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ब्लॉग संख्या :-652
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
वहीं तिमिर,जहाँ प्रकाश नहीं होता।
भूलों के शूलों से बिंध विदीर्ण मन।
करता है नि:शक्त और जीर्ण तन।
आशंकाओं में प्रयास नहीं खोता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
घोर शीत रात्रि का पट जैसे खुलता।
प्रहर, वीर-धीरो का स्वतः बदलता।
किस निशापरान्त प्रभास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता
बरबस होता वह जो अकल्पनीय है।
मानव नरश्रेष्ठ बना क्यूं दयनीय है।
दैवयोग क्या अनायास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
भीरू मन भय से लज्जित कब तक।
मुक्ति अवश्यमभावी किन्तु जब तक।
स्वयं से स्वयं का उपहास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
स्वरचित विपिन सोहल
वहीं तिमिर,जहाँ प्रकाश नहीं होता।
भूलों के शूलों से बिंध विदीर्ण मन।
करता है नि:शक्त और जीर्ण तन।
आशंकाओं में प्रयास नहीं खोता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
घोर शीत रात्रि का पट जैसे खुलता।
प्रहर, वीर-धीरो का स्वतः बदलता।
किस निशापरान्त प्रभास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता
बरबस होता वह जो अकल्पनीय है।
मानव नरश्रेष्ठ बना क्यूं दयनीय है।
दैवयोग क्या अनायास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
भीरू मन भय से लज्जित कब तक।
मुक्ति अवश्यमभावी किन्तु जब तक।
स्वयं से स्वयं का उपहास नहीं होता।
असफलता से मैं निराश नहीं होता।
स्वरचित विपिन सोहल
10/2 /2020
बिषय,, सफलता
असफलता में छिपा सफलता का राज
कर दिखाने की लालसा पहनाता ताज
सम्भाबनाऐं अनेकों पानेवाला चाहिए
बिखरे हुए रत्न मोती उठाने बाला चाहिए
सागर की उफनती लहरों से टकराने बाला चाहिए
पर्वत की उँचाइयों पर चढ़ जाने बाला चाहिए
.तूफानों के झंझावातों से लड़ जाने बाला चाहिए
कर दृढ़ संकल्प बस अड़ जाने बाला चाहिए
फिर तो सफलता कदम हमारे चूमेगी
यश कीर्ति धन दौलत इर्दगिर्द घूमेगी
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
बिषय,, सफलता
असफलता में छिपा सफलता का राज
कर दिखाने की लालसा पहनाता ताज
सम्भाबनाऐं अनेकों पानेवाला चाहिए
बिखरे हुए रत्न मोती उठाने बाला चाहिए
सागर की उफनती लहरों से टकराने बाला चाहिए
पर्वत की उँचाइयों पर चढ़ जाने बाला चाहिए
.तूफानों के झंझावातों से लड़ जाने बाला चाहिए
कर दृढ़ संकल्प बस अड़ जाने बाला चाहिए
फिर तो सफलता कदम हमारे चूमेगी
यश कीर्ति धन दौलत इर्दगिर्द घूमेगी
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
विधा काव्य
10 फरवरी 2020,सोमवार
जग जीवन है कड़ी तपस्या
संघर्षो से बढ़ते हम आगे।
कई ठोकरें जो खाता जग
सुषुप्त मानव निंद्रा से जागे।
करे निर्धारित लक्ष्य स्वयं जो
बढ़ता आगे सदा सद्कर्म से।
सत्य सनातन है अमर आत्मा
मिले सफलता सदा धर्म से।
जीवन सुमनों की शैय्या नहीं
यह काँटो का भरा बिछोना।
तपना पड़ता है इस तन को
मिलता है जग स्नेह सलौना।
सदा सफलता चरण चूमती
मेहनत की कभी हार न होती।
तिमिरता में आलोक खोजता
तब जलती जीवन में ज्योति।
कड़ी परीक्षा है प्रिय जीवन
परिश्रम का फल मीठा होता।
उसे सफलता मिले जीवन में
श्रम बल से बीजों को बोता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
10 फरवरी 2020,सोमवार
जग जीवन है कड़ी तपस्या
संघर्षो से बढ़ते हम आगे।
कई ठोकरें जो खाता जग
सुषुप्त मानव निंद्रा से जागे।
करे निर्धारित लक्ष्य स्वयं जो
बढ़ता आगे सदा सद्कर्म से।
सत्य सनातन है अमर आत्मा
मिले सफलता सदा धर्म से।
जीवन सुमनों की शैय्या नहीं
यह काँटो का भरा बिछोना।
तपना पड़ता है इस तन को
मिलता है जग स्नेह सलौना।
सदा सफलता चरण चूमती
मेहनत की कभी हार न होती।
तिमिरता में आलोक खोजता
तब जलती जीवन में ज्योति।
कड़ी परीक्षा है प्रिय जीवन
परिश्रम का फल मीठा होता।
उसे सफलता मिले जीवन में
श्रम बल से बीजों को बोता।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - सफलता
सुना है सफलता चलकर आए
हमको काबिल बनना होता है।
आत्मावलोकन कर हमें सही
राह सही पथ चुनना होता है।
घटे जासे हमारा आत्मविश्वास
वो काम नही करना होता है।
अपने हुनर में हमको हर रोज
कुछ नया रंग भरना होता है।
जितना ऊंचा लक्ष्य उतना धैर्य
और साहस से सँवरना होता है।
असफलतायें भी आतीं हैं मगर
असफलता से न डरना होता है।
दृढ़ इच्छाशक्ति प्रबल होय कब ये
राह मोड़े सतत बढ़ना होता है।
विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी
कभी नही हमें बिखरना होता है।
ये जिन्दगी एक पाठशाला नित
इम्तिहान से गुजरना होता है।
सफलता ऐसे ही न आए 'शिवम'
सफल व्यक्तियों को पढ़ना होता है।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 10/02/2020
सुना है सफलता चलकर आए
हमको काबिल बनना होता है।
आत्मावलोकन कर हमें सही
राह सही पथ चुनना होता है।
घटे जासे हमारा आत्मविश्वास
वो काम नही करना होता है।
अपने हुनर में हमको हर रोज
कुछ नया रंग भरना होता है।
जितना ऊंचा लक्ष्य उतना धैर्य
और साहस से सँवरना होता है।
असफलतायें भी आतीं हैं मगर
असफलता से न डरना होता है।
दृढ़ इच्छाशक्ति प्रबल होय कब ये
राह मोड़े सतत बढ़ना होता है।
विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी
कभी नही हमें बिखरना होता है।
ये जिन्दगी एक पाठशाला नित
इम्तिहान से गुजरना होता है।
सफलता ऐसे ही न आए 'शिवम'
सफल व्यक्तियों को पढ़ना होता है।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 10/02/2020
विजात छंद (14 मात्राएं)
1222 1222
नया संधान भारत का।
नया अभियान भारत का।।
सफलता की नयी सीढ़ी।
चकित होती गयी पीढ़ी।
कसौटी है खरी पाई।
सुहानी है घड़ी आई।।
ग्रहों का ज्ञान पा जाएं।
नयी बस्ती बसा जाएं।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
1222 1222
नया संधान भारत का।
नया अभियान भारत का।।
सफलता की नयी सीढ़ी।
चकित होती गयी पीढ़ी।
कसौटी है खरी पाई।
सुहानी है घड़ी आई।।
ग्रहों का ज्ञान पा जाएं।
नयी बस्ती बसा जाएं।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विषय-सफलता
दिनांक-10/02/2020
कविता
मन वचन कर्म पे बलि हो जाये
नया नया कुछ ऐसा भाव जगाये
आओ सफलता की राह बनाये
मन वचन कर्म पर बलि हो जाये।
एक लक्ष्य लिया जीवन पथ का
दृढ़ संकल्प लिया एक सपथ का
जो आकार लिया उसे साकार बनाये
मन वचन कर्म पर बलि हो जाये।
ईर्ष्या मन से मिटाते जाना
द्वेष क्लेश मन से हटाते जाना
धूल जमी जो उसे मन से मिटाये
मन वचन कर्म पर बलि हो जाये।
कट जायेगी काली रात जब होंगी भोर
हिम्मत न हार पथ पर चलके पकड़ तू छोर
निज निज कर्म से आयेंगी सफलतायें
मन वचन कर्म से बलि हो जाये।।
उमाकान्त यादव उमंग
स्वरचित
मौलिक
दिनांक-10/02/2020
कविता
मन वचन कर्म पे बलि हो जाये
नया नया कुछ ऐसा भाव जगाये
आओ सफलता की राह बनाये
मन वचन कर्म पर बलि हो जाये।
एक लक्ष्य लिया जीवन पथ का
दृढ़ संकल्प लिया एक सपथ का
जो आकार लिया उसे साकार बनाये
मन वचन कर्म पर बलि हो जाये।
ईर्ष्या मन से मिटाते जाना
द्वेष क्लेश मन से हटाते जाना
धूल जमी जो उसे मन से मिटाये
मन वचन कर्म पर बलि हो जाये।
कट जायेगी काली रात जब होंगी भोर
हिम्मत न हार पथ पर चलके पकड़ तू छोर
निज निज कर्म से आयेंगी सफलतायें
मन वचन कर्म से बलि हो जाये।।
उमाकान्त यादव उमंग
स्वरचित
मौलिक
दिनांक-10-2-2020
विषय-सफलता
हज़ार प्रयास किए
फिर भी विफल हुए
तो क्या
मेहनत तो कभी विफल न होगी..
हर विफलता से
एक नया सबक मिलता है
आखिरी बार तो सफलता हासिल होगी..
हार मान कर बैठ गए
माना तभी हार गए..
असफलता से टूटना नही
थक हार कर बैठना नही..
सफलता सिर्फ
चंद कदम आगे थी
बस मिलने ही वाली थी
कि तुम निराश हुए..
मायूस हुए,तो समझो हार गए..
एक कदम और
मिल जायेगा तुम्हे ठौर..
आशा की किरण जलाये रखना
मजबूत कदम बढ़ाए रखना..
कामयाबी तेरे कदम चूमेगी
तेरे हौसलो को दुनिया सलाम करेगी..
तेरी एक कोशिश से दुनियां रोशन होगी
सफलता तेरे कदम चूमेगी
सफलता तुझे अवश्य मिलेगी...!!
*वंदना सोलंकी*'©स्वरचित
विषय-सफलता
हज़ार प्रयास किए
फिर भी विफल हुए
तो क्या
मेहनत तो कभी विफल न होगी..
हर विफलता से
एक नया सबक मिलता है
आखिरी बार तो सफलता हासिल होगी..
हार मान कर बैठ गए
माना तभी हार गए..
असफलता से टूटना नही
थक हार कर बैठना नही..
सफलता सिर्फ
चंद कदम आगे थी
बस मिलने ही वाली थी
कि तुम निराश हुए..
मायूस हुए,तो समझो हार गए..
एक कदम और
मिल जायेगा तुम्हे ठौर..
आशा की किरण जलाये रखना
मजबूत कदम बढ़ाए रखना..
कामयाबी तेरे कदम चूमेगी
तेरे हौसलो को दुनिया सलाम करेगी..
तेरी एक कोशिश से दुनियां रोशन होगी
सफलता तेरे कदम चूमेगी
सफलता तुझे अवश्य मिलेगी...!!
*वंदना सोलंकी*'©स्वरचित
तिथि-10/2/2020/सोमवार
विषय-*सफलता*
विधा-काव्य
करें हम सद्कर्म सफलता मिलती।
चलें निजधर्म तब सफलता मिलती।
सतत करें प्रार्थना ईश से हम
सच विफलता नहीं सफलता मिलती।
परिणाम परिश्रम कर के मिलेगा।
पालन पोषण से ही वंश बढ़ेगा।
असफलताओं से निराशा कैसी,
कठोर श्रम से ही सुफल मिलेगा।
संघर्षों से अपना जीवन खिलता।
सदैव सुयश हमें आत्म सुख मिलता।
लगे रहें मेहनत से नहीं डरें,
सही जीवट मानव शिखर पहुंचता।
समझें हमें विफलता कुछ सिखाती।
अपनी कमियां असफलता दिलाती।
निराशा प्रगति का पूर्णविराम ,
मेहनत सही सफलता मिलवाती।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी
विषय-*सफलता*
विधा-काव्य
करें हम सद्कर्म सफलता मिलती।
चलें निजधर्म तब सफलता मिलती।
सतत करें प्रार्थना ईश से हम
सच विफलता नहीं सफलता मिलती।
परिणाम परिश्रम कर के मिलेगा।
पालन पोषण से ही वंश बढ़ेगा।
असफलताओं से निराशा कैसी,
कठोर श्रम से ही सुफल मिलेगा।
संघर्षों से अपना जीवन खिलता।
सदैव सुयश हमें आत्म सुख मिलता।
लगे रहें मेहनत से नहीं डरें,
सही जीवट मानव शिखर पहुंचता।
समझें हमें विफलता कुछ सिखाती।
अपनी कमियां असफलता दिलाती।
निराशा प्रगति का पूर्णविराम ,
मेहनत सही सफलता मिलवाती।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी
शीर्षक --सफलता
दिनांक- 10.2.2020
विधा -दोहा मुक्तक
1.
श्रम औ प्रयास से सदा, मिले सफलता दून।
कर्म सिद्धि आवृद्धि हित, चहिए सतत जुनून ।
कुसुम सफलता का खिले, जीवन हो वरदान --
खुशी तरक्की हर्ष के, खिलें सदैव प्रसून ।
2.
जीवन में संतुलन का ,नाम खरा व्यवहार।
कर्म,मित्र,परिवार को,साधे, वह आचार ।
सतत सन्तुलन साधना, सदा पायँ सम्मान।
सदा सफलता का यही, बनता है आधार ।
*****स्वरचित************
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
दिनांक- 10.2.2020
विधा -दोहा मुक्तक
1.
श्रम औ प्रयास से सदा, मिले सफलता दून।
कर्म सिद्धि आवृद्धि हित, चहिए सतत जुनून ।
कुसुम सफलता का खिले, जीवन हो वरदान --
खुशी तरक्की हर्ष के, खिलें सदैव प्रसून ।
2.
जीवन में संतुलन का ,नाम खरा व्यवहार।
कर्म,मित्र,परिवार को,साधे, वह आचार ।
सतत सन्तुलन साधना, सदा पायँ सम्मान।
सदा सफलता का यही, बनता है आधार ।
*****स्वरचित************
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
दिनांक , १०,२,२०२०
दिन, सोमवार,
सफलता सभी चाहते हैं,
पर राह न सीधी चलते हैं।
रस्ता छोटा अपनाने वाले,
अक्सर ज्यादा इतराते हैं।
रहते हैं मद में चूर जल्द ही ,
अर्श से फर्श पर आते हैं।
सफलता मिले मेहनत से,
लोग विनीत हो जाते हैं ।
फलदार वृक्ष जग में हमको,
हरदम झुके हुए मिलते हैं।
नाम करते हैं रोशन अपना,
पालक का मान बढ़ाते हैं।
सही सफलता होती है वही,
जो नई दिशा दिखलाती है।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिन, सोमवार,
सफलता सभी चाहते हैं,
पर राह न सीधी चलते हैं।
रस्ता छोटा अपनाने वाले,
अक्सर ज्यादा इतराते हैं।
रहते हैं मद में चूर जल्द ही ,
अर्श से फर्श पर आते हैं।
सफलता मिले मेहनत से,
लोग विनीत हो जाते हैं ।
फलदार वृक्ष जग में हमको,
हरदम झुके हुए मिलते हैं।
नाम करते हैं रोशन अपना,
पालक का मान बढ़ाते हैं।
सही सफलता होती है वही,
जो नई दिशा दिखलाती है।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
विषय -सफलता
दिन -सोमवार
दिनांक १०/०२/२०२०
कर्म करो संघर्ष करो ,
हर पल सतत, प्रयास करो ।
हर असफलताओं के पीछे
सफलता का है रहस्य छिपा।
मेहनत करने वाले कभी,
निराश नहीं हो पाते हैं।
सदा सफलता की सीढ़ी ,
पर चढ़ते ही जाते हैं।
त्याग, तपस्या करने वाले ,
नित गिर -गिर कर चढ़ने वाले।
निराशा कभी ना आने पाए,
नित वही सफलताएं पाए।
मौलिक रचना
स्वरचित , रंजना सिंह
दिन -सोमवार
दिनांक १०/०२/२०२०
कर्म करो संघर्ष करो ,
हर पल सतत, प्रयास करो ।
हर असफलताओं के पीछे
सफलता का है रहस्य छिपा।
मेहनत करने वाले कभी,
निराश नहीं हो पाते हैं।
सदा सफलता की सीढ़ी ,
पर चढ़ते ही जाते हैं।
त्याग, तपस्या करने वाले ,
नित गिर -गिर कर चढ़ने वाले।
निराशा कभी ना आने पाए,
नित वही सफलताएं पाए।
मौलिक रचना
स्वरचित , रंजना सिंह
10-02-2020
*सफलता* (ताटंक छंद -16,14 अंत-तीन गुरु)
सफल सजग मुस्कान सजाए, देखें हैं जिन होठों को।
क्या कभी हम देख भी पाए, अंतस के भी चोटों को॥
छेनी का छलना जो झेले, बनती तभी अटारी है।
पोर-पोर पत्थर बनते हैं, तनती तभी अटारी है॥
कठिन डगर, कंटक पग-पग पर, उर लथपथ है छालों से।
चलना अरु काँटों को दलना, भीत नहीं विकरालों से॥
शिखर-शलाका वो बनते हैं, पथ नूतन गढ़ पाते जो।
जग उनका ही वंदन करता, शैल-शिखर चढ़ जाते जो॥
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित10/2/20
*सफलता* (ताटंक छंद -16,14 अंत-तीन गुरु)
सफल सजग मुस्कान सजाए, देखें हैं जिन होठों को।
क्या कभी हम देख भी पाए, अंतस के भी चोटों को॥
छेनी का छलना जो झेले, बनती तभी अटारी है।
पोर-पोर पत्थर बनते हैं, तनती तभी अटारी है॥
कठिन डगर, कंटक पग-पग पर, उर लथपथ है छालों से।
चलना अरु काँटों को दलना, भीत नहीं विकरालों से॥
शिखर-शलाका वो बनते हैं, पथ नूतन गढ़ पाते जो।
जग उनका ही वंदन करता, शैल-शिखर चढ़ जाते जो॥
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित10/2/20
चूमती कदम
सफलतायें जब
उम्मीदों की आस
सपनो की चाह
जतन की टोकरी
संकल्पों की ढाल
पथ चिन्हीत
लक्ष्य संकल्पित
मंजिल को तत्पर
बढ़ते रहना
लड़ते रहना
सूरज से तपकर
पसीने से भीगकर
लथपत लथपत
न ब्याथित हो
न थकित हो
न भ्रमित हो
धैर्य को लिए हुए
इच्छाओं के अधीन
बढ़ते चलो बढ़ते चलो
कर्म वीर बनकर
चुनौतियों को पार कर
अभिमान को त्याग कर
चले चलो चले चलो
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय-सफलता
दिनांक 10-2-2020
सफलता पानी है तुम्हें,तो मन को आजाद करो।
सपनों से बाहर निकल,हकीकत सामना करो।
रख लक्ष्य को नजर में, हर कदम आगे करो।
डरो मत मुसीबत से,हौसलों को फौलाद करो।
तोड़ो,पुराने रीति-रिवाजों की बेंडियो को तुम।
पर बड़े बुजुर्गों का कभी,भूल अपमान ना करो।
सफलता मिल जाएगी,आशीष से एक दिन।
पर भाग्य के भरोसे बैठ ,इंतजार ना करो।
बुरे लोगों की संगति से,सदा ही तुम दूर रहो।
व्यर्थ की बातों में,अपना समय बर्बाद ना करो।
कहती वीणा,तोड़ दीवारों को जो रोके उजाला।
पानी है अमरता,तो देश के लिए कुछ नया करो।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 10-2-2020
सफलता पानी है तुम्हें,तो मन को आजाद करो।
सपनों से बाहर निकल,हकीकत सामना करो।
रख लक्ष्य को नजर में, हर कदम आगे करो।
डरो मत मुसीबत से,हौसलों को फौलाद करो।
तोड़ो,पुराने रीति-रिवाजों की बेंडियो को तुम।
पर बड़े बुजुर्गों का कभी,भूल अपमान ना करो।
सफलता मिल जाएगी,आशीष से एक दिन।
पर भाग्य के भरोसे बैठ ,इंतजार ना करो।
बुरे लोगों की संगति से,सदा ही तुम दूर रहो।
व्यर्थ की बातों में,अपना समय बर्बाद ना करो।
कहती वीणा,तोड़ दीवारों को जो रोके उजाला।
पानी है अमरता,तो देश के लिए कुछ नया करो।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित।
मेरी सफलतामेरी खुद की है,
कहते हैं कई कहने वाले।
भौतिक सफलता को आंकते
अभिमान में अभिभूत बिसारते।।
भूलजाते हैं वो सफलता के पीछे के
अदृश्य हाथ और साथ।
जन्म से मृत्यु तक कौन रहा अकेला,
चला अकेला,बिना संग-साथ?
उस परम सत्ता की तो छोड़ो,
इस संसार सागर में आने को,
बना निमित्त था पिता का अंश
मां की कोख का सहारा।।
पला-बढ़ा अनगिनत
साहचर्यों के अवदान से।
शिक्षा संस्कार लिए
संस्कृति धारकों से।।
प्रेरक बने कुछ राह के
मंजिल की सीढ़ियां भी कुछ हुये।
फिर किस पर मान?
कैसा अभिमान?
सफलता तो इसी में है कि
सफलता ना चढ़े सिर।
मस्तक रहे नत, याद रख
हर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान।।
हम रहें कृतज्ञ करें अर्पन
निज विनय भाव समर्पन।
मां पिता और सब गुरूजन
ईश्वर में रत हर क्षण,प्रतिछन।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
10/02/2020
मेरी सफलतामेरी खुद की है,
कहते हैं कई कहने वाले।
भौतिक सफलता को आंकते
अभिमान में अभिभूत बिसारते।।
भूलजाते हैं वो सफलता के पीछे के
अदृश्य हाथ और साथ।
जन्म से मृत्यु तक कौन रहा अकेला,
चला अकेला,बिना संग-साथ?
उस परम सत्ता की तो छोड़ो,
इस संसार सागर में आने को,
बना निमित्त था पिता का अंश
मां की कोख का सहारा।।
पला-बढ़ा अनगिनत
साहचर्यों के अवदान से।
शिक्षा संस्कार लिए
संस्कृति धारकों से।।
प्रेरक बने कुछ राह के
मंजिल की सीढ़ियां भी कुछ हुये।
फिर किस पर मान?
कैसा अभिमान?
सफलता तो इसी में है कि
सफलता ना चढ़े सिर।
मस्तक रहे नत, याद रख
हर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान।।
हम रहें कृतज्ञ करें अर्पन
निज विनय भाव समर्पन।
मां पिता और सब गुरूजन
ईश्वर में रत हर क्षण,प्रतिछन।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
10/02/2020
भावों के मोती
दिनांक 10 /2/2020
विषय -सफलता
मत घबराना
कठिनसमय आना
आगे कदम बढ़ाना
पीछे छोड़ जमाना ।
विफल ना होना
कठिन परिश्रम करना सफलता को पाना
विश्वास बढ़ जाना ।
कर्मठ बने रहना
दुनिया को क्या कहना
सब कुछ सहना
चुप चुप रहना ।
अच्छे कर्म करना
बुराई से डरना
मां का कर्ज चुकाना
पिता का फर्ज निभाना।
जिम्मेदारी से न बचना देश की रक्षाकरना सीमा प्रहरी ब नना
शहीद का दर्जा पाना।
भ्रष्टाचार भगाना आतंकवाद मिटाना अफवाह न फैलाना नागरिक नेक कहलाना। स्वरचित
वीना तंवर
दिनांक 10 /2/2020
विषय -सफलता
मत घबराना
कठिनसमय आना
आगे कदम बढ़ाना
पीछे छोड़ जमाना ।
विफल ना होना
कठिन परिश्रम करना सफलता को पाना
विश्वास बढ़ जाना ।
कर्मठ बने रहना
दुनिया को क्या कहना
सब कुछ सहना
चुप चुप रहना ।
अच्छे कर्म करना
बुराई से डरना
मां का कर्ज चुकाना
पिता का फर्ज निभाना।
जिम्मेदारी से न बचना देश की रक्षाकरना सीमा प्रहरी ब नना
शहीद का दर्जा पाना।
भ्रष्टाचार भगाना आतंकवाद मिटाना अफवाह न फैलाना नागरिक नेक कहलाना। स्वरचित
वीना तंवर
10/02/2020
"सफलता"
***********
हौसले हो अगर अडिग तो
सफलता मिल ही जाती है।
अंधेरे में भी किरण से राह
यकीनन,दिख ही जाती है।
कर्मपथ से न च्युत होना कभी
सफलता इतिहास रच ही देती है।
थपेड़े खा कर भी तट किनारे
वृक्ष हौसले खोता नही।
धीरे-धीरे,बढ़ते-बढ़ते
फल-फूल से लदता वही।
सफलता नही चुटकियों का खेल है
समय,धैर्य,शांति का अनुपम मेल है।
अक्सर युवा हताश होते दिखते हैं
क्यों नही सहनशीलता पाठ पढ़ते है।
बुद्धि,विवेक होकर भी
न जाने क्यों गलत राह चलते हैं।
स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ
"सफलता"
***********
हौसले हो अगर अडिग तो
सफलता मिल ही जाती है।
अंधेरे में भी किरण से राह
यकीनन,दिख ही जाती है।
कर्मपथ से न च्युत होना कभी
सफलता इतिहास रच ही देती है।
थपेड़े खा कर भी तट किनारे
वृक्ष हौसले खोता नही।
धीरे-धीरे,बढ़ते-बढ़ते
फल-फूल से लदता वही।
सफलता नही चुटकियों का खेल है
समय,धैर्य,शांति का अनुपम मेल है।
अक्सर युवा हताश होते दिखते हैं
क्यों नही सहनशीलता पाठ पढ़ते है।
बुद्धि,विवेक होकर भी
न जाने क्यों गलत राह चलते हैं।
स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ
विधा कविता
दिनाँक 10.2.2020
दिन सोमवार
सफलता
💘💘💘💘
कर्मभूमि श्रम पहले माँगती है
तब ही सफलता पग लाँघती है
सफलता के लिये स्वप्न होते
स्वप्न पूर्ति के लिये प्रयत्न होते।
प्रयत्न भी माँगते एडी़ चोटी
भले ही न जाय पेट में रोटी
नींद न आये चाहे भले ही
थक जाये चाहे बोटि बोटि।
एक बात और भगवन् कहते
दुखी भाव में यह भी सहते
कर्म कर पर न इच्छा कर फल की
मन की स्थिति रहेगी फिर हलकी।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिनाँक 10.2.2020
दिन सोमवार
सफलता
💘💘💘💘
कर्मभूमि श्रम पहले माँगती है
तब ही सफलता पग लाँघती है
सफलता के लिये स्वप्न होते
स्वप्न पूर्ति के लिये प्रयत्न होते।
प्रयत्न भी माँगते एडी़ चोटी
भले ही न जाय पेट में रोटी
नींद न आये चाहे भले ही
थक जाये चाहे बोटि बोटि।
एक बात और भगवन् कहते
दुखी भाव में यह भी सहते
कर्म कर पर न इच्छा कर फल की
मन की स्थिति रहेगी फिर हलकी।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विषय -सफलता
दिलों में पालते हैं अरमान सभी
मगर सबके कब ये पूरे होते हैं !
विषम हालात,सवालात के चलते
दिल के वे अरमान अधूरे होते हैं ।
निराशा का गहन अंधकार मिटा
कदम दर कदम चलना पड़ता है
आशा का जगमग दीप जलाकर
रोशन खुद को ही करना पड़ता है।
जीवन में अपना लक्ष्य साधे बिना
भला कब,कोई प्रयास करता है !
साहसी,कर्मठ,वीर योद्धा सदा ही
बाधा पर,वार प्रतिपल करता है ।
भाग्य की रेख पर उसे नही भरोसा
अपना भाग्य खुद वह लिखता है
सफलता की नई ऊँचाइयाँ छूकर
जग में आदर्श,प्रतिमान गढ़ता है ।
विषम हालात ,पर अनुकूल बनाए
इतिहास के पन्नों ने दी गवाही है
गुदड़ी के लालों ने यही सिखलाया
सफलता संघर्षों से हमने पाई है ।
ऐशो आराम भी त्यागना जरूरी
श्रम-साधना कठोर करनी चाहिए
सजीला एक उन्मुक्त स्वप्न हमें-
खुली आँखों से ही देखना चाहिए।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
दिलों में पालते हैं अरमान सभी
मगर सबके कब ये पूरे होते हैं !
विषम हालात,सवालात के चलते
दिल के वे अरमान अधूरे होते हैं ।
निराशा का गहन अंधकार मिटा
कदम दर कदम चलना पड़ता है
आशा का जगमग दीप जलाकर
रोशन खुद को ही करना पड़ता है।
जीवन में अपना लक्ष्य साधे बिना
भला कब,कोई प्रयास करता है !
साहसी,कर्मठ,वीर योद्धा सदा ही
बाधा पर,वार प्रतिपल करता है ।
भाग्य की रेख पर उसे नही भरोसा
अपना भाग्य खुद वह लिखता है
सफलता की नई ऊँचाइयाँ छूकर
जग में आदर्श,प्रतिमान गढ़ता है ।
विषम हालात ,पर अनुकूल बनाए
इतिहास के पन्नों ने दी गवाही है
गुदड़ी के लालों ने यही सिखलाया
सफलता संघर्षों से हमने पाई है ।
ऐशो आराम भी त्यागना जरूरी
श्रम-साधना कठोर करनी चाहिए
सजीला एक उन्मुक्त स्वप्न हमें-
खुली आँखों से ही देखना चाहिए।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 10/02/2020
शीर्षक :- सफलता
सफलता..
उपहार है श्रम का..
स्वेद के कण-कण का..
सफलता..
परमानंद है..
मान है सम्मान है..
सफलता..
श्रेय है लगन का..
वटवृक्ष सी शीतल छाँव है..
परिमाप है श्रेष्ठता का..
सफलता..
बल है संघर्ष का..
मार्ग है उत्कर्ष का...
है क्षण यही हर्ष का..
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 10/02/2020
शीर्षक :- सफलता
सफलता..
उपहार है श्रम का..
स्वेद के कण-कण का..
सफलता..
परमानंद है..
मान है सम्मान है..
सफलता..
श्रेय है लगन का..
वटवृक्ष सी शीतल छाँव है..
परिमाप है श्रेष्ठता का..
सफलता..
बल है संघर्ष का..
मार्ग है उत्कर्ष का...
है क्षण यही हर्ष का..
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
बिषय - सफलता
सफलता के शिखर को छू रहीं हैं बेटियाँ।
घर आंगन मे खुशियाँ बिखेर रही हैं बेटियाँ।
बेटी को यहाँ क्यों नहीं मिलता बेटा जैसा प्यार,
तनया के जन्म होने पर क्यों देते उसको दुत्कार।
बेटी घर की लक्ष्मी चहल-पहल रहती घर-द्वार,
बेटी ना हो जिस घर में सूना लगे वो परिवार।
बेटे ने जन्म लिया तो लोग खुशियाँ मनाते हैं,
बेटी के जन्म होने से माथे पर शिकन बनाते हैं।
क्यों लगती है बोझ बेटी, बेटी हमारा अभिमान है,
सानिया, सिंधू, ऊषा देखो मिला उन्हें सम्मान है।
नाम डुबोते बच्चे ही बच्चों से ही मिलता मान,
आज की बेटियों को देखो छू रहीं हैं आसमान।
बेटी घर की आन-बान और बेटी घर की शान,
बेटी को भी प्यार मिले, बेटा-बेटी एक समान।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
सफलता के शिखर को छू रहीं हैं बेटियाँ।
घर आंगन मे खुशियाँ बिखेर रही हैं बेटियाँ।
बेटी को यहाँ क्यों नहीं मिलता बेटा जैसा प्यार,
तनया के जन्म होने पर क्यों देते उसको दुत्कार।
बेटी घर की लक्ष्मी चहल-पहल रहती घर-द्वार,
बेटी ना हो जिस घर में सूना लगे वो परिवार।
बेटे ने जन्म लिया तो लोग खुशियाँ मनाते हैं,
बेटी के जन्म होने से माथे पर शिकन बनाते हैं।
क्यों लगती है बोझ बेटी, बेटी हमारा अभिमान है,
सानिया, सिंधू, ऊषा देखो मिला उन्हें सम्मान है।
नाम डुबोते बच्चे ही बच्चों से ही मिलता मान,
आज की बेटियों को देखो छू रहीं हैं आसमान।
बेटी घर की आन-बान और बेटी घर की शान,
बेटी को भी प्यार मिले, बेटा-बेटी एक समान।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
शीर्षक- सफलता
सादर मंच को समर्पित -
🌹🍀 मुक्तक 🍀🌹
***********************
🌻 सफलता 🌻
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
भट्टी में तप कर ही कुन्दन
सच्चा निखार पाता है ।
चोटों को सह कर ही लोहा
सुन्दर प्रकार पाता है ।
मानव भी पीड़ा में तप के
गढ़े लकीरें हाथों की --
जीवन यों झंझावातों में
तप कर प्रसार पाता है ।।
🌹🌻🍀🌺🍊
🍑🌹 मुक्तक 🌹🍑
*****************************
पदान्त - रही है , समान्त - इखा
मापनी - 2212, 2112 , 2212, 122
******************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
चींटी हमेशा श्रम कर हमको सिखा रही है ।
गिर कर सदा ही उठना, बढ़ना दिखा रही है ।
श्रम से ही हमें मिलती हर लक्ष्य को सफलता--
खटती, कुचलती श्रम की गाथा लिखा रही है ।।
🌸🌲🌹🌱🍑🌲
🌺☀💧**.... रवीन्द्र वर्मा आगरा
सादर मंच को समर्पित -
🌹🍀 मुक्तक 🍀🌹
***********************
🌻 सफलता 🌻
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
भट्टी में तप कर ही कुन्दन
सच्चा निखार पाता है ।
चोटों को सह कर ही लोहा
सुन्दर प्रकार पाता है ।
मानव भी पीड़ा में तप के
गढ़े लकीरें हाथों की --
जीवन यों झंझावातों में
तप कर प्रसार पाता है ।।
🌹🌻🍀🌺🍊
🍑🌹 मुक्तक 🌹🍑
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पदान्त - रही है , समान्त - इखा
मापनी - 2212, 2112 , 2212, 122
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चींटी हमेशा श्रम कर हमको सिखा रही है ।
गिर कर सदा ही उठना, बढ़ना दिखा रही है ।
श्रम से ही हमें मिलती हर लक्ष्य को सफलता--
खटती, कुचलती श्रम की गाथा लिखा रही है ।।
🌸🌲🌹🌱🍑🌲
🌺☀💧**.... रवीन्द्र वर्मा आगरा
विषय : सफ़लता
विधा : कविता
तिथि : 10.2.2020
आस्था का हवन
प्रयास की आहुति,
सफ़लता का पाना है साथ
विफ़लता का न सहेंगे घात।
निश्चय से तूं थाम चुनौती
मिटानी है जड़ से पनौती
थामें गे सफ़लता का हाथ
विफ़लता को दे कर मात।
मन में है पूर्ण जाग्रति-
सपनों की बसी आकृति
पानी सफ़लता की सौगात
विफ़लता को लगानी लात।
दिखानी है अपनी करामात
भाग्य करे कितने आघात!
विफ़लता की मिटा कर रात
सफ़लता का लाना है प्रभात।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 10.2.2020
आस्था का हवन
प्रयास की आहुति,
सफ़लता का पाना है साथ
विफ़लता का न सहेंगे घात।
निश्चय से तूं थाम चुनौती
मिटानी है जड़ से पनौती
थामें गे सफ़लता का हाथ
विफ़लता को दे कर मात।
मन में है पूर्ण जाग्रति-
सपनों की बसी आकृति
पानी सफ़लता की सौगात
विफ़लता को लगानी लात।
दिखानी है अपनी करामात
भाग्य करे कितने आघात!
विफ़लता की मिटा कर रात
सफ़लता का लाना है प्रभात।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
दिनाँक-10/02/2020
विषय:-सफलता
विधा-सेदोका(5/7/7/5/7/7)
(1)
कर्म का मंत्र
सकारात्मक सोच
असफलता सीख
लक्ष्य संधान
धैर्य राह चलता
मिलती सफलता
(2)
बीज संस्कार
श्रम पर विश्वास
संग आत्मविश्वास
जीवन शूल
अभावों में भी खिले
सफलता के फूल
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय:-सफलता
विधा-सेदोका(5/7/7/5/7/7)
(1)
कर्म का मंत्र
सकारात्मक सोच
असफलता सीख
लक्ष्य संधान
धैर्य राह चलता
मिलती सफलता
(2)
बीज संस्कार
श्रम पर विश्वास
संग आत्मविश्वास
जीवन शूल
अभावों में भी खिले
सफलता के फूल
स्वरचित
ऋतुराज दवे
दिनाँक-10/02/2020
शीर्षक-सफलता
विधा-कविता
एक किसान था बहुत बूढा
लेकर बैठा था वो मूढा।
पुत्र थे उसके अपने चार
थे सब के सब बेरोजगार।
आपस में लड़ते थे भाई
करते नहीं थे वे समाई।
किसान ने नसीहत लगाई
कुछ काम करो मेरे भाई।
बेटों को बात समझ आई
तभी उन्होंने फाली उठाई।
सबने मेहनत कर दिखाई
नेक सफलता उनको पाई।
सब में एक आवाज़ गूँजी
मेहनत सफलता की कुंजी।
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
शीर्षक-सफलता
विधा-कविता
एक किसान था बहुत बूढा
लेकर बैठा था वो मूढा।
पुत्र थे उसके अपने चार
थे सब के सब बेरोजगार।
आपस में लड़ते थे भाई
करते नहीं थे वे समाई।
किसान ने नसीहत लगाई
कुछ काम करो मेरे भाई।
बेटों को बात समझ आई
तभी उन्होंने फाली उठाई।
सबने मेहनत कर दिखाई
नेक सफलता उनको पाई।
सब में एक आवाज़ गूँजी
मेहनत सफलता की कुंजी।
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
दिनांक 10-02-2020
विषय -सफलता
ध्यान ध्येय पर हो सदा, कर्म उसी अनुसार।
मिले सफलता हर जगह, लिए खुशी का हार।।
कभी-कभी मिलता नहीं, यद्यपि अथक प्रयास।
लेकिन मन में बना रहे, मिलने का दृढ़ आस।।
मिले सफलता यदि नहीं, मूल्यांकन हो ध्येय।
करो कर्म, तत्पर होकर, मिलेगा फिर श्रेय।।
निश्चय जिनका फौलादी, कठिन परिश्रम साथ।
सूना रहता फिर नहीं, हुए सफल बिन हाथ।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह "राही"
विषय -सफलता
ध्यान ध्येय पर हो सदा, कर्म उसी अनुसार।
मिले सफलता हर जगह, लिए खुशी का हार।।
कभी-कभी मिलता नहीं, यद्यपि अथक प्रयास।
लेकिन मन में बना रहे, मिलने का दृढ़ आस।।
मिले सफलता यदि नहीं, मूल्यांकन हो ध्येय।
करो कर्म, तत्पर होकर, मिलेगा फिर श्रेय।।
निश्चय जिनका फौलादी, कठिन परिश्रम साथ।
सूना रहता फिर नहीं, हुए सफल बिन हाथ।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह "राही"
दिनाँक-10/2/20
विषय-सफलता
विधा-हाईकु
१
जीवन भूमि
सफलता फसल
श्रमिक बन
२
जीवन पार
सफलता की ड़ोर
उम्मिद संग
३
मंजिल हाथ
सफलता की सीढ़ी
आलस त्याग
***
स्वरचित- रेखा रविदत्त
विषय-सफलता
विधा-हाईकु
१
जीवन भूमि
सफलता फसल
श्रमिक बन
२
जीवन पार
सफलता की ड़ोर
उम्मिद संग
३
मंजिल हाथ
सफलता की सीढ़ी
आलस त्याग
***
स्वरचित- रेखा रविदत्त
विषय सफलता
सफलता चूमें सदा उनके कदम
बाधाओं से जो हार न माने ,
बढ़े सदा ही आगे आगे ,
हिम्मत का गीत सुनाया हो ,
मन का संतुलन न खोया हो,
विफलता रोक नहीं पाए जिनके कदम।
सफलता चूमें सदा उनके कदम।।
चाहे राहें ऊंची हों, नीची हों,
तूफानों से डर आंखें मीचीं हो ,
चाहें अंतर्मन में चलती आंधी हो ,
फिर भी हाथों से सच न छूटा हो ,
टूटे सपनों से जो ना होते बेदम ।
सफलता चूमें सदा उनके कदम।।
मन के सपनों के कोपल ,
खिल उठे सदा ही हरपल,
मन की हार जीत को ना जाना हो ,
राह नई तलाशना जीवन माना हो,
जो आशाओं के दीप जलाते हरदम।
सफलता चूमें सदा उनके कदम।।
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित।
सफलता चूमें सदा उनके कदम
बाधाओं से जो हार न माने ,
बढ़े सदा ही आगे आगे ,
हिम्मत का गीत सुनाया हो ,
मन का संतुलन न खोया हो,
विफलता रोक नहीं पाए जिनके कदम।
सफलता चूमें सदा उनके कदम।।
चाहे राहें ऊंची हों, नीची हों,
तूफानों से डर आंखें मीचीं हो ,
चाहें अंतर्मन में चलती आंधी हो ,
फिर भी हाथों से सच न छूटा हो ,
टूटे सपनों से जो ना होते बेदम ।
सफलता चूमें सदा उनके कदम।।
मन के सपनों के कोपल ,
खिल उठे सदा ही हरपल,
मन की हार जीत को ना जाना हो ,
राह नई तलाशना जीवन माना हो,
जो आशाओं के दीप जलाते हरदम।
सफलता चूमें सदा उनके कदम।।
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित।
सफलता
होती नहीं सफलता
मोहताज किसी की
मेहनत लगन और
ईमानदारी से मिलती है
सफलता
रहते जो भाग्य भरोसे
असफलता ही उनको
भाग्य परोसे
लेते टक्कर
जो तूफान में
हिम्मत से
पाते वो ही
सफलता
जीवन में
आशीर्वाद
बुजुर्गो का
देता है
संबल
प्रोत्साहित
करता है
आगे बढने को
उत्साहित
करता है
संघर्षरत रहने को
है यही राह
सफलता पाने की
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
होती नहीं सफलता
मोहताज किसी की
मेहनत लगन और
ईमानदारी से मिलती है
सफलता
रहते जो भाग्य भरोसे
असफलता ही उनको
भाग्य परोसे
लेते टक्कर
जो तूफान में
हिम्मत से
पाते वो ही
सफलता
जीवन में
आशीर्वाद
बुजुर्गो का
देता है
संबल
प्रोत्साहित
करता है
आगे बढने को
उत्साहित
करता है
संघर्षरत रहने को
है यही राह
सफलता पाने की
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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