Wednesday, February 5

"सुरभि/महक"05फरवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-647
दिनांक-05/02/2020
विषय-सुगंध


सुगंधो झकोरे रोकते हैं राह मेरी
खींच लेती है पकड़कर महक
तुम्हारी बांह मेरी।।
तुम आती हो सुगंधो की
मंदाकिनी बहाते हुये।
थके हुए जीवो को
स्नेह का प्याला पिलाते हुये

सुलाती मुझे अपने कंधो पर
सुगंध की निर्मलता से।
अर्धरात्रि की निश्चलता में
मदमस्त करती महको की मुस्काने।।

मुझे सुलाती सौंदर्य सरिता
के विस्तृत वक्षस्थल में।
अपने सोती शांत सरोवर
कमल -कामिनी के दलदल में।।

तिमिराचंल की चंचलता जैसे
मधुर मधुर है उसके सुगंधित अधर।
हृदय राज्य की रानी कहता मैं
जाते तेरे जिधर नज़र।।

सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद

विषय सुगन्ध,महक ,सुरभि
विधा काव्य

05 फरवरी 2020,बुधवार

जीवन सुन्दर पावन उपवन
पेड़ लगाओ फूल खिलाओ।
माँ वसुंधरा के हर कण को
सुरभि समीर जगत सजाओ।

केसर की कश्मीर क्यारियां
बहुधा मन आकर्षित करती।
सौरभ सुगन्ध हवा बहे नित
मलय पवन जगति में भरती।

प्रदूषण की जगत आपदा है
सभी निरोगी रोगी बन रहे।
जीवन स्वस्थ अगर करना है
पुष्प लगाओ नित सुरभि बहे।

प्रिय धरा पर वसंत आगमन
कलियां चटके प्रसून महकेंगे।
प्रिय भँवरो का गुजन होगा
सुरभि सुगंध रस धार बहेंगी।

जीवन की सुंदर बगिया को
श्रमदान कर नित्य सजाओ।
अनवरत नित ध्यान लगाकर
प्रिय सुगंध उपवन महकाओ।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

तरह तरह के फूल पौधा लगा
अपना मन आंगन सत्य से जगा
दिल के आंगन मां सत्य बाग लगा

सब जगह उसकी महक मगा
जीवन की बगिया को खुशबू से जगाओ
एक धर्म का प्यारा सा पौधा लगाओ
ना बने कुछ तो कम से कम
अपनी जीवन की बगिया
अंधे कुंये में तो मत ले जाओ
ताल ठोककर धर्म की बीन बजाओ ,,
और खुशियों के गीत गाओ
स्वरचित एस डी शर्मा

5 /2 /2020
बिषय,, सुरभि,, महक,,सुगंध

जो संगठित हो घर परिवार
प्यार स्नेह की सुरभि मर्यादा की वयार
एक दूसरे का हो सम्मान
धन दौलत का न हो अभिमान
भरोसे के हों यदि संबंध
विश्वास की जो महके सुगंध
हो फिर तो वहाँ आनंद ही आनंद
परस्पर हो सुदृढ़ संगठन
महक जाएगा मानव जीवन
समर्पित भावना हो भाईचारा
फिर तो विश्वगुरू बनेगा देश हमारा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।

पुष्प सुगंधित खिले हुए हैं।
सुरभि फैल रही है चहुं ओर।
प्रकृति की सुंदरता को देखकर।
नाचने लगता है मन मोर।

सुगंधित हुई हवायें।
जब खिल उठे सुमन।
इससे बढ़कर कुछ नहीं सुन्दर।
प्रफ्फुलित हो गया मन।

धूप, अगरबत्ती होते हैं सुगंधित।
पूजा करके मन होता प्रसन्नचित्त।
इसीलिए हम सुबह-सवेरे।
स्नान पूजा करते हैं नित।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
Damyanti Damyanti 

विषय_ सुरभि,महक,
भारत माँ आगन सुन्दर
सजा विभिन्न फूलो से

फैली एकता की महक
देखो पूरे विश्व मे |
इसको बनाये रखना
हो रिश्तों मे महक ऐसी
महक उठे गुलशन सारा |
यही महक जन जन फैले
आवौ करे जतन ऐसा
नरहे अन्याय आदि विकसित बुराईयाँ |
धरती माँ के आँ चल से मिलती
ऐसी महक बयार तनमन रहता हर्षित |
इसको न बनाओ बंजर
पेड पौधे अधिक लगावो |
मिले महकती प्राण वायु जीवो को |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा |
5/2/20
विषय-महक ,सुगंध।


लो चंदन महका और खुशबू उठी हवाओं में
कैसी सुषमा निखरी वन उपवन उद्धानों में

निकला उधर अंशुमाली गति देने जीवन में
निशांत का,संगीत ऊषा गुनगुना रही अंबर में

मन की वीणा पर झंकार देती परमानंद में
महा अनुगूंज बन बिखर गई सारे नीलांबर में

वो देखो हेमांगी पताका लहराई क्षितिज में
पाखियों का कलरव फैला चहूं और भुवन में

कुमुदिनी लरजने लगी सूर्यसुता के पानी में
विटप झुम उठे हवाओं के मधुर संगीत में

वागेश्वरी स्वयं नवल वीणा ले उतरी धरा में
कर लो गुनगान अद्वय आदित्य के आचमन में

लो फिर आई है सज दिवा नवेली के वेश में
करे सत्कार जगायें नव निर्माण विचारों में।

स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय - महक/खुशबू
प्रथम प्रस्तुति

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

महक रहा यह मन मधुवन
कोई तो खुशबू दे गया।
जाने या अन्जाने में
कुछ न कुछ कोई कह गया।

करूँ व्याख्या निश दिन वो
पर सोचूं फिर कुछ रह गया।
पूरा कभी न कह पाऊँ
अब तो शबाब भी ढह गया।

भावों का उठता सैलाब
गीत गज़ल बन बह गया।
थी रातरानी या जूही
मैं जुदाइ कैसे सह गया।

महक नही जाती दिल से
आ जाती किसी कोने से।
फूल नही तो खुशबु पायी
अब क्या रखा 'शिवम' रोने से।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 05/02/2020

दिनांक- 5/02/2020
शीर्षक- "सुरभि/महक/सुगन्ध"
िधा- कविता
****************

आज निमंत्रण श्री कृष्णा को,
राधे संग घर में पधारे जी,
धूप-दीप सजा थाल है,
अर्चना मेरी स्वीकारो जी |

तरह-तरह के पुष्प चुनें मैंने,
सुन्दर बनाऊँ तुमरे गहने,
सुगंधित हो रहा घर,आँगन,
महक रहा है आज अंग-अंग |

मिस्री,माखन भोग तुम्हें लगाऊँ,
तेरी महिमा मैं गाती जाऊँ ,
छप्पन भोग आज बनाऊँ,
खुशबू ही खुशबू खूब महकाऊँ |

मुरली की तुम तान छेड़ना,
एक गोपी मैं भी बन जाऊँ,
रास रसइया ओ साँवरिया,
तेरे चरणों में जगह पा जाऊँ |
🙏जय श्री कृष्णा 🙏

स्वरचित- संगीता कुकरेती

तिथि 5_2_2020
विषय सुरभि/महक/सुगन्ध


गुज़रती हूँ जब
अनजान राहों से
तन्हा तो नही होती हूँ
तुम्हारी यादें संग हो लेती हैं
वो तुम्हरा मुस्कुराना
अपनी बाहों में मुझे छिपाना
हौले हौले से गुनगुनाना
ऐसा लगता है मानो
आज भी तुम मिलोगे
इसी राह पर
ये जो फूलों की महक है ना
अहसास कराती है
तुम्हारे आस पास होने का
इसीलिए तो
रोज़ ही तन्हा
हाँ यादो संग तुम्हारी
गुज़रती हूँ इसी राह
तुम्हारी महक पाने के लिये

स्वरचित
सूफिया ज़ैदी

आज का शीर्षक- सुरभि, सुगंध
5/2/2020

विधा- मनोरम छंद
2122 2122

ऋतु वसंती आ रही है।
गीत प्यारा गा रही है।
पुष्प उपवन में खिले हैं।
ओष्ठ पतझड़ के सिले हैं।

मंजरी कुछ कह रही है।
भृंग आगम सह रही है।
स्वप्न सुरभित मन सलोना।
प्रेम का उल्लास होना।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

भावों के मोती
शीर्षक -- महक/सुगंध/ सुरभि



नेकी का इत्र घुला किरदार में
वो पूछ रहे ये "महक" किसकी है


जाड़े की सुबह एक कप चाय
गुलाबी रूखसार हुए और गुलाबी
चाय से उठती इश्क की "महक"
तसव्वुर में उभरता अक्स तुम्हारा
किसे है फुरसत अब इस मौसम
कि देखे और कोई मुड़ के नज़ारा

आशा पंवार

दिनांक-5-2-2020
विषय-सुगंध/महक/सुरभि


अकेली चली हवा
था मन उसका उदास
कितनी दुखी हुई
तभी सुखद अहसास हुआ
राह में साथी जो मिले
चन्दन और सुमन संग चले
तब सुगंध सखी हुई
उदासी हुई हवा
चली हवा चंदन पुष्प गंध फैलाने

प्रसन्न वदन चली जग को महकाने।

व्यथित,रिक्त हवा अब
स्वयं भी महकी,जग भी महका
संग उसके मेरा अंतर्मन भी
महक उठा
उसने आवाज हमें दी
मत कर बहाने
चल मेरे संग
प्रेम का इत्र बहाने।

चलो तुम भी जग को महकाने।

विधि का यही है विधान
जो है तुझ में समाहित
वही तो जब में फैलाएगा
चंदन फूल संग सुरभि मिले
कंटक संग तो कष्ट ही पाएगा
है ज्ञानी वही जो
परहित की पीड़ा को पहचाने।

चलो फिर जग को महकाने।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित

तिथि ५/२/२०२०
विषय सुगंध /महक /सुरभि
राष्ट्र प्रेम 🌻🌺 भारत माता
🚶🛂🚶🛃🚶🛃🚶
बहु रंगो की कतार हूँ मैं हर दिल में राष्ट्र प्रेम की सुगंध से भरी हूँ मैं ।,
ललाट मेरा हिम शिखर बीरों की महकती अमर ज्योति से सजी हूँ मैं।
ऋतुओं सी उमंग जन-जनके हृदय में बसंती बयार से सुरभि सजी हूँ मैं ।
फूल फूल पर सुगंध भरी मधुकरो की गूँज हूँ मैं।
मैं माँ हू माँ के हृदय की महक से अपने लालों को पोषित करती हूँ मैं ।
मेरी सुरभि भरी रजको मस्तिष्क पर लेपन कर्ता मेरा हर शपूत ,
अपने लालों की सुगंध भरी शौर्य ता की महक से सजी हूँ मैं ।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक नैनीताल

दिनांक: - 5/2/2020
विषय: - महक

🦋🍁🍁🍁🍁🍁🦋

दूर देश से
संदेशा आया है,
महक उठी तब से ये फिजाएं
जब से उनका बुलावा आया है।

कह दिया मैंने भी उनसे
जल्द मिलन की बात,
छट जाएगी जब ये धुमिल छाया
होगी अपनी मुलाकात।

हूँ प्रहरी मैं माँ भारती का
पहले बेटे का फर्ज निभाऊंगा,
दुआ करना तुम रब से
मैं दुश्मन के सीने पर
तिरंगा लहरा जल्द वापस आऊँगा।

माँ- बाबा की दवाई
मुन्ना की पढ़ाई
संग अपना भी खयाल रखना,
मैं ढ़ाल बन खड़ा हूँ शरहद पर
तुम आँगन की रखवाली करना।

स्वरचित : - मुन्नी कामत।
विषय-महक।स्वरचित।

ये आचरण की महक है।
सुवासित करती हर का मन।
घर-आंगन और वातावरण।।

रंग-रूप और धन दौलत
सब कुछ पल के किस्से हैं।
बोलचाल और व्यवहार
तुम्हारे आचरण के हिस्से हैं।।

तुम हो एक माटी का ढेला
पल में मिट्टी मिल जाओगे।
जैसे आए थे तुम जग में
क्या वैसे ही जा पाओगे?

तुम पत्थर का कोई टुकड़ा
या फिर कांच का कण कोई।
जैसा भी मन चाहे तराश लो।

बन जाओ कोई मूरत या
पैरों का पग में रोड़ा कोई।
बन जाओ हीरा कोहिनूर
या फिर चुभ घायल करदो।।

संघर्षों की भट्टी में तप कर
बन जाओ तुम चाहे कुंदन।
यह सब तुम पर है निर्भर।।

चले गए सब दुनिया से धन,बलवाले
हो गया मिट्टी तन मिट्टी के हवाले।
रह गया गुमान धरा,धरा पर ही।

बस रह जाती है यादें उनकी
जिनमें आचरण की प्रमुखता है।
पाप पुण्य किसने किया
देखती ऊपर की सत्ता है।।

रह जाएगी महक सिर्फ तुम्हारे
सद्गुण-व्यवहारों की।
कर लो सुवासित अन्तर्मन को
फैलाओ शील-गुणों की झांकी।।
*****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
05/02/2020

दिनांक-५/२/२०२०
शीर्षक-सुरभि/महक, सुगंध


चहकने लगी है धरा हमारी
मौसम भी हुये गुलाबी
छाने लगी है फिजाओं में रौनक
घुलने लगी है हवाओं में महक।

निमत्रंण पाकर खिल उठा बसंत
विटप,सुमन भी झूमे संग
हुये उल्लासित खग की टोली
कोयल भी अब संग संग डोली।

फिर सजेगी धरा हमारी
पीली सरसों व चुनर धानी
भौंरे गूंजें डाली डाली
आलिया संग झूमे बाली।

बसंत का करें सभी अभिनंदन
महके उपवन,खिले मन
निरस मन में भर दे आशा
नवजीवन का है अभिलाषा।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

5/2/20

बहुत याद आती है
ओ माँ तेरे आँचल
की प्यारी खुशबू
घर की सोंधी मिट्टी
चूहले का धुआं
रसोई की महक
प्यार की खुशबू
सबसे ज्यादा माँ
तेरे सासों की महक
जो मेरे अंदर बसी है
जो दें न है तेरी
तू चली तो गई
इस जहाँ से
पर ढेरो सुगंध
दे गई मुझे
उपहार के रूप में

स्वरचित
मीना तिवारी


गाँव की यादो में
कुछ समृतियो के चिन्ह
ढेरो कहानियां
तब्दील वीरानीय
वो खेतो के मेड
ट्रेक्टर का शोर
बैलों की घंटी
चक्की का शोर
मोरो की आवाज
पक्षियों का कलरव
स्वच्छ हवाये
कुएं का पानी
मिट्टी के घर
छप्पर का बंगला
घर का बरौठा
गोबर की महक
सोंधी सी महक
खर पतवार
चूल्हे की रोटी
आम का अचार
दूध दही औऱ छाछ
नही कोई मिलावट का साज
प्रेम व्यवहार
अपनेपन का ताज
साधारण लिबास

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय : सुगंध, महक, सुरभि
विधा : हाईकू

तिथि : 5.2.2020

हर्ष सुगंध
जीवनम तरंग
मन उमंग।

सुज्ञान धन
जीवन जो चंदन
पाता वंदन

पुष्प सुगंध
महके उपवन
खिलता मन।

स्नेह सुगंध
महकाती संबंध
रच निर्बंध।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
विषय--सुगंध/महक/सुरभि
_______________________
सुवास सुमन उमंग भरी,
पवन बसंत डोल रही।
अम्बर में उड़ी पतंगें,
चारों दिशा में डोल रही।

झूम झूम सरसों के संग,
गीत बसंत सुना रहा।
फूल उठी अमराई संग,
फागुन भी बौरा रहा।
कुंज-कुंज भंवरे डोलें
राग बहार छेड़ रही।
सुवास सुमन उमंग भरी,
पवन बसंत डोल रही।।

प्रकृति भी कर उठी श्रृंगार,
ऋतु बासंती आ गई।
महक-महक डालियों पे,
कलियाँ फूल बन मुसकाई।
चंदा संग चमक-चमक,
चंद्रिका खिलखिला रही।
सुवास सुमन उमंग भरी,
पवन बसंत डोल रही।।

सजते द्वार वंदनवार,
बसंत की बहार में।
उत्सव छटाएं ले आया,
ऋतुराज संग साथ में।
लहर-लहर पुरवाई चले,
प्रिय संदेशे ला रही।
सुवास सुमन उमंग भरी,
पवन बसंत डोल रही।।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
विषय -महक
**************

धरा देखो महक उठी है
पाकर सुरभि आम्र कुञ्ज से
नभ में फैली खुशबू देखो
महुए से निकली है देखो

सुगन्ध आरही अरुणोदय की
प्राची के वर्ण को देखो
पश्चिम से अब लौट रही ज्यो
अस्तांचल के रवि को देखो

वन उपवन में खिले पुष्प सब
अमराई को महक दे रहे अब
संग बयार के झूम झूम कर
हिल मिल कर मिल रहे अब

धरती पर खुशहाली छाई
देख बसन्त की बेला को
सारे खग कलरव करते है
सुबह में आती उर्बेला को
छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
विषय, महक, सुगंध, सुरभि,
बुधवार .

५,२,२०२०.

इस मिट्टी की महक लुभाती है,
होगा वतन से प्यारा कौन हमें ।
मेरी सांसों को ये महकाती है,
अपने प्राणों से प्यारा देश हमें।

ऊँचे-ऊँचे पर्वत यहाँ कितने हैं,
नदियों की अविरल हैं धारायें।
खेतों में फसलें लहलहातीं हैं ,
सुरभित रहें वृक्षों की शाखाएं।

संस्कृति भाषा मन मोहती है,
आती है महक अपनेपन की।
रिश्तों से रोशन घर आँगन है,
बिखरी रहे खुशबू ममता की।

विकिसित राष्ट्र को करना है,
हम दुनियाँ में नाम करें ऊँचा।
सुरभित हवाओं को रखना है,
होगा मन भी सुगंधित अपना।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश

दिनांक - 5/02/2020
दिवस - बुधवार

विषय - सुगंध/महक/सुरभि
विधा - स्वतंत्र
बेटी तुम कुछ ऐसा काम करो,
जिससे जगत में फैले सुगंध।
जो कुछ तुम्हारे मन को भाए ,
खुशी के साथ करो, न रखो मन में कोई द्वंद।
तुम बेटी हो पर नहीं हो बेटों से कम ,
इस जगत में ऐसा तुम कुछ काम करो ।
अपने अनमोल करनामों से,
सुरभि विश्व तक फैलाओ।
तेरी अधरों की मुस्कान ,
न कोई और उसे छीनने पाए,
ऐसी तुम फौलाद बनो।
ऐसी तुम फौलाद बनो।।

मौलिक रचना - स्वरचित रंजना सिंह प्रयागराज

विषय- सुगन्ध
दिनांक-05/02/2020


सुगन्ध ही सुगन्ध है

उठ रही हवाये
उठ रही धुन्ध है
चारों तरभ फैल रही
सुगन्ध ही सुगन्ध है।

कहीं फूलो की
कहीं अगरबत्ती की
मंदिरों में उठ रही
सुंदर मोहक रन्ध है।
सुगन्ध ही सुगन्ध है

सुगन्ध से सुगन्धा
जान इसको बंदा
इत्र से कई खींच रहें मित्र
आदमी इनके चक्कर मे अंध है।
सुगन्ध ही सुगन्ध है

सुगंध से निकली मन की आशा
पूरी होती देवताओं की अभिलाषा
बदबू लेके जब चली हवा
सब का दरवाजा तुरन्त बंद है।
सुगंध ही सुगन्ध है

मोहनी बनी सुगंध से सुधा
बारिश में सुगन्ध फैला रही बसुधा
सुगंध से मिट रही प्रेम की क्षुदा
हवा लेके इसको बनी छन्द है।
सुगन्ध ही सुगन्ध है

उमाकान्त यादव उमंग
स्वरचित
मौलिक
शीर्षक-सुरभि /महक
सादर मंच को समर्पित -


🏵🍀 दोहा गज़ल 🍀🏵
******************************
🌹🌻 सुरभि 🌻🌹
🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺

नयनाभिराम चूनरी , सरसों फूली पीत ।
अमुआ बौरे बाग में , गूँजत भँवरे गीत ।।

ऋतु वसंत का आगमन ,खिली लता बहुरूप ,
सतरंगे गहने सुमन , सुरभि सुधा संगीत ।

कोयल कूके बाग में , चहुँदिश नाचत मोर ,
मन-मयूर विचलित ठगा , पिय बिन जियरा रीत ।

वासंती चूनर रँगी , लँहगा , चोली साज ,
बिन हरजाई सून है , कंटक चुभन प्रतीत ।

आ जाओ मन मीत अब , पथराये हैं नैन ,
तड़पत जियरा रात-दिन , होय न वक्त व्यतीत ।।

🌹🌻🍀🌺🌴

🌷☀️🌻**....रवीन्द्र वर्माआगरा

दिन :- बुधवार
दिनांक :- 05/02/2020

शीर्षक :- सुगंध/महक/सुरभि

खुशियों की सरताज वो,
दामन है का महताब वो।
जिससे है महका जीवन,
है आँगन का गुलाब वो।
है वो मेरी हमराह मेरी हमसफर।
है सुरभित जिससे मेरा हर पल,
कटता नहीं बिन उसके क्षण भर।
मेरी खुशियों की है चाबी वो,
मेरी हर सफलता की सीढ़ी वो।
है वो मेरी हमराह मेरी हमसफर।
होती खट्टी मीठी नोंकझोंक,
करती है थोड़ी सी रोकटोक।
फिर भी वो आदत सी बन गई,
हँसते मुस्कुराते यूँ कटता सफर।
है वो मेरी हमराह मेरी हमसफर।
है वो चैत की पुरवाई सी,
लेती सावन सी अंगडाई।
आए जितने भी पतझड़,
सह लेती सब वो तन्हा ही।
है वो मेरी हमराह मेरी हमसफर।

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश


05/02/2020बुधवार
विषय-महक/सुरभि/सुगन्ध

विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
कूकी कोयल

आम्र बौर महके

हिया घायल👌
💐💐💐💐💐💐
फैली सुरभि

निशा में खिली,झक्क

रजनीगंधा👍
💐💐💐💐💐💐
मन को भाए

महकता गुलाब

महके खिजाँ💐
💐💐💐💐💐💐
निशा की बेला

मादकता घोल दे

रात की रानी🎂
💐💐💐💐💐💐
बेला जो खिली

मन उपवन में

खुशबू फैली💐
💐💐💐💐💐💐
आया बसन्त

अंग-अंग फड़का

मन बहका💐
🎂🎂🎂🎂🎂🎂
श्रीराम साहू"अकेला"
💐💐💐💐💐💐


तिथि बुधवार
विषय-*सुगंध/महक/सुरभि*

विधा-काव्य

महकें सुरक्षित हों सब गलियारे।
प्रभु हों जगत में शुभ उजियारे।
राम राज अब फिर से आ जाए,
भारतवासी हों सब सुखयारे।

रहें सदैव सुगंधित वातावरण।
रहे अपना सुरक्षित पर्यावरण।
सुरभि बहे प्रीत प्रेम करणा की,
रहें सभीजन पुलकित मनभावन।

उड़ें अबीर गुलाल यहां सुगंधित।
बहें वयार गुलाब यहां सुरक्षित।
महक उठें हम सब अंतरतम से,
मिलें चाहे कहीं वैरी प्रमुदित।

करें प्रदूषण की सभी सफाई।
नहीं प्रदूषित हो कहीं भलाई।
बहे बासंती हवाऐं यहां पर,
महकित होए सारी तरूणाई।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र

विषय सुगन्ध
विधा कविता

दिनाँक 5.2.2020
दिन बुधवार

सुगन्ध/ सुरभि
💘💘💘💘💘

नहीं लग सकता कोई भी प्रतिबन्ध
जब फैलती सब ओर है सुगन्ध
चाहे वह इत्र हो या मित्र हो
कर्ण हो या कृष्ण सा चरित्र हो।

व्यक्तित्व की चाहे बात हो
या रजनीगन्धा की रात हो
या लावण्य हो महकता हुआ
और ऐसी कुछ सौगात हो।

मिट्टी की सौंधी गन्ध में
मेघों से नये अनुबन्ध में
धरा होती जब आप्लावित
प्रकृति डूबती सुगन्ध में।

राम कृष्ण के अवतार में
निराकार से साकार में
ब्रह्माण्ड तक सुगन्ध जाती
धरा से स्वर्ग तक सम्बन्ध बनाती।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त

दिनांक - 5/2/2020
विषय - सुगंध/महक/सुरभि


जीवन की बगिया महकाने को
आओ हम पुष्प बनकर खिल जाएँ
हवा के झोकों का सानिध्य पाकर
अपने परिवेश में घुलमिल जाएँ ।

इस जीवन का उद्धार करने को
सत्कर्मों की तितलियाँ बन जाएँ
जन-जन की करूण पीड़ा हरने आओ पराग संवेदना में सन जाएँ

जीव-जगत का होगा कल्याण
दसों दिशाएँ यश-गाथा गाएँगी
आदर्श का प्रतिमान समझकर
भावी पीढ़ियाँ तेरा मान बढ़ाएँगी ।

सुरभित होगा परिवार और समाज
दिशा देश की स्वत: बदल जाएगी
आचार-विचार की इस संहिता से
नैतिकता की राह संभल जाएगी ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘


दिनांक -6/2/2020
विषय -सुगंध/महक/सुरभि

जीवन को सुरभित होने दो
नित नूतन पल्लव सजने दो
पल्लव हो उच्चाकांक्षाओं के
पल्लव हो उत्तम कार्यों के ।
सुरभित वयार से जीवन महके
चहुँ ओर खुशी की फसल सजे ।जीवन का नैराश्य छटे,
नित खुशियों की बारात सजे।
हर ओर सुरभि की मादकता में
हर पल हर क्षण जीवन महके ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय


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"अंदाज"05मई2020

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