Wednesday, February 19

"वापसी"19फ़रवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-661
विषय वापसी
विधा काव्य

19 फरवरी 2020,बुधवार

हो वापसी राम राज्य की
गाँधी ने शुभ सपना देखा।
किये स्वदेश अंग्रेज वापसी
भारत विकास बनाया लेखा।

सत्य अहिंसा पथ अनवरत
खुला हुआ अब भी भारत मे।
हो वापसी निज कर्तव्यों की
जीवन सुखमय रहे भारत में।

दूध दही नदियां बहती थी
कदम डाल वंशी बजती थी।
हो वापसी उस सुकाल की
धेनु समूह गोकुल चरती थी।

सूर तुलसी रसखान कबीरा
लिखते थे अमृतमय वाणी।
स्वर्ण काल की हो वापसी
सदा सुखी रहें भू पर प्राणी।

ये भारत भरतों की भूमि है
सत्य अहिंसा पथ सुंदर हो।
पुनः वापसी हो उस युग की
घर घर में पावन मन्दिर हो।

सदा सत्य की विजय हुई है
भारत माँ अनवरत हँसी है।
हो वापसी सद्भाव स्नेह की
स्वर्ग से सुन्दर प्रिय मही है।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

नमन मंच भावों के मोती समूह। गुरुजनों, मित्रों।

जो चले जाते हैं जहां से,
उनकी वापसी नहीं होती।

जिन्दगी थी, जबतक सबकुछ था,
फिर कोई खबर नहीं मिलती।

बाकी सभी जीते रहते हैं,
उनके बगैर भी यहां।

सच हीं कहा है किसी ने,
जिन्दगी दुबारा नहीं मिलती।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
19 /2//2020
बिषय ,वापसी

फौजियों की घर वापसी बड़ी सुखद होती है
स्वागत में धरा भी मोती माल संजोती है
आसमां भी करता है ऊपर से अभिनंदन
भारत का कण कण करता है नमन
विजयी होने की अलग ही है शान
देश के गौरान्वित हमारा अभिमान
तिरंगा फहराकर बढ़ाते जो शान
भूमि के लिए न्यौछावर हैं जिनके प्राण
जो चले गए वो वापिस नहीं आते
यादों का तोहफा सदा के लिए दे जाते
हृदयतल में कुछ ऐसे समा जाते
चाहते हुए भी हम भुला नहीं पाते
इन्हें ही कहते हैं जन्मजन्मांतर के नाते
कभी मधुर यादों में नयन अश्रुपूरित हो जाते
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार

विषय-वापसी।स्वरचित।
वापसी हुई मेरी बीस साल बाद
लेखन के दौर में।
जो बन्द हो गया था अनिच्छा से
समय के फेर में।।

अभी नहीं हुई है ज्यादा देर
समझाया खुद को खुद ही।।
अभी तो लंम्बा है सफर जिंदगी का
बेशक चाहे ना हो भरोसा पल का भी।
पर आशावादी तो होना ही चाहिए ना।
निराश होके जिंदगी कटती तो है जैसे-तैसे
पर जी नहीं पाते,भरपूर लुत्फ़ उठा नहीं पाते।।

वैसे भी जिंदगी में और भी बहुत कुछ
है जरूरी,अपने शौकों के अलावा
तभी तो त्यागमूर्ति कहते हैं नारी को
पर फिर भी शुक्रिया उस ऊपरवाले का
फिर मौका तो दिया वापसी का।।

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
19/02/2020
दिनांक 18-02-2020
विषय-वापसी


फिज़ा में वापसी बहार की,
शांति सुखदायक हो विहान।
इंतज़ार रहता है सुसमय का,
मलिन हृदय का है ये निदान।

स्वर्णिम स्मृतियां अतीत की,
मन में विश्वास जगाती हैं।
परिवर्तन प्रकृति का नियम,
जिजीविषा यह बढा़ती है ।

बसंत निदाघ पावस शीत की,
वापसी होती सदा समय पर।
चंदा रवि तारे भी नियमित,
नहीं आते कभी असमय पर।

सुख दुख एक से रहते नहीं,
वापसी क्रम से होती रहती ।
रुकता नहीं है वक्त कभी भी,
धार है इसकी बहती रहती।

इतिहास है दोहराता खुद को,
विजय पराजय वापसी होती ।
युद्ध विनाश सदा ही लाता,
द्वेष नफरत ही आपसी होती।

सरहद से जवानों की वापसी,
खुशियों की सौगात है लाती ।
परिवार प्रियजन अपनों के,
जीवन में उमंग बहार है लाती।

कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
दिनांक, १ ९,२,२०२०
दिन, बुधवार

विषय, वापसी

आँखें पथ पर बिछीं हुई हैं , माँ बैठी कब से इंतजार में।
क्यों लौटा नहीं आँख का तारा, होगा जाने वो किस हाल में।
पिछले बरस गया था कह के, अब माँ फगुआ में मैं आऊँगा।
अपनी प्यारी बहन की शादी , जरूर नवरात्रि में कराऊँगा।
माँ मैं नई बनाऊँगा छत घर की , और चश्मा भी तेरा ले आऊँगा ।
छोटू को जल्द पढ़ने भेजूँगा, उसे अच्छे स्कूल में भर्ती कराऊँगा।
क्या बेटा सब वादे भूल गया है, क्यों नहीं वापसी करता है।
बन जा भारत माता का लाड़ला , पर मुझको क्यों सताता है।
रहता है गुमसुम गुमसुम तेरा बापू , क्यों तुझे नहीं कुछ कहता है।
माँ की ममता स्वीकार न पाती , कोई बेटा शहीद जब होता है ।
हरदम राह देखती है बेटे की , जल्दी उसकी वापसी चाहती है।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
दिनांक-19-2-2020
विषय-वापसी

विधा-कविता

वापसी

पतझड़ के बाद बहार
बिखरे मोती से बना हार
रूठे साजन से मनुहार
बड़ी भली लगती है

मायके से लौटी पत्नी
आँखो में सारी रात कटनी
कुछ कहनी कुछ करनी
दिल की लगी लगती है

तिमिर के बाद उजाला
भोर की चाय का प्याला
दिनचर्या को खंगाला
दिनांत में राहत ही मिलती है

बुढ़ापे में लौटा बचपन
उम्र हुई है पचपन छप्पन
बच्चों का सा हुआ है मन
ये वापसी बड़ी अच्छी लगती है

कहीं किसी की मृत्यु हुई है
कहीं कोई आत्मा जन्मी है
आत्मा की वापसी ही हुई है
चेहरों पर मुस्कान खिली है

वापसी किसी की भी हो
बड़ी भली लगती है।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय : वापसी
विधा : कविता

तिथि : 19.2.2020

कमान से छूटा तीर
ज़बान से निकली शमशीर,
होवे न इनकी वापसी-
रख स्मरण व धीर।

मनु बन ऐसा तूं वीर
जो रोके कमान में तीर
मधु और मिश्री के घोल सी
बना दे मिष्टी, जिह्वा-शमशीर।

मनु बन सके यदि तूं ऐसा तापसी
हो जाएगी रूठे रिश्तों की वापसी
शत्रु भी निकट मित्र बन जाएंगे
मेलजोल बड़ जाए गा आपसी।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
गुणीजनों को नमन
विषय वापसी
िनांक 19/2/20

हर तरफ सुंदर नजारा लगता है
भीड़ में हर कोई हमारा लगता है।

सागर भी नहीं लेता किसी की जान
घाट का हर किनारा न्यारा लगता है।

चांद भी जमी उतरता है अब
हर तरफ काश्मीर सा प्यारा लगता है।

क्या कोई सैलाब छुपता है लहर में
या अमन की #वापसी# होती शहर में

स्वरचित✍🏻
सीमा आचार्य

दिनाँक-१९/२/२०
विधा-काव्य

विषय-वापिसी

कल परदेश में घर की याद आएगी
घर की दहलीज की कुछ याद भी साथ रखना

कदम उठेंगे जब घर से दूर जाने के लिए
तर होती चश्म में माँ की फरियाद भी साथ रखना

बाँधोगे कलाई में घड़ी जब वक़्त के लिए
लाखों सवाल पूछती बहन की अरदास भी साथ रखना

छूट जायेगी जब कोई चीज घर पर ही काम की
प्यार भरी पिता की मीठी सी डाँट भी साथ रखना

रहोगे जब दूर घर से,घर के ही लिए
अपनों की हर याद,हर बात भी साथ रखना

कदम उठें जब घर वापिसी के लिये तुम्हारे
मन में अपने लिए हमारा सम्मान भी साथ रखना।

समझना ना ख़ुद को परदेस में अकेला
मुठ्ठी भर मिट्टी में अपने वतन की सौगात भी साथ रखना

न सोचना कि किन कदमों से वापिस लौटेंगे
छलकते आँसू, सिसकती सी हर साँस भी साथ रखना।

स्वरचित-अर्पणा अग्रवाल
वापसी
छंदमुक्त

**

नादानी में यूं जिंदगी दांव पर लगा रहे
क्यों इन हुक्मरानों के झांसे में आ रहे
कहीं ग्रेनेड ,कहीं पत्थर कहीं गोली
एक मोहरा बन खेलते खून की होली
शिक्षा के मंदिर को तुम बदनाम करते
अपने ही हाथों अपना जीवन बर्बाद करते
कभी ये सोचा है हाथ तेरे क्या आयेगा
इस भरी दुनिया मे तू अकेला रह जायेगा
एक दिन गुमनाम गलियों में गुम जायेगा
तेरा कोई नामोंनिशान यहाँ ना रह पायेगा।
जो किया भूल जाओ, देर नही हुई
सुधर जाओ अभी जीने के रास्ते कई
अभी समय ,वापसी जीवन में कर जाओ।
हौसले को उड़ान दे नया सफर शुरू करो
मेहनत लगन से अपनी नई मंजिल तय करो ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
19/02/2020
"वापिसी"
*
**********
युद्ध वापिसी के आसार लगते हैं
महाभारत के पट फिर से खुलते लगते है।
सबक लेना नही सीखे,भूले बैठे है लोग
प्रीत-भाव से किनारा करने लगे हैं लोग।
ध्यातव्य है, जीवन सरिता अनवरत नही बहेगी
अंततः निश्चित ही रुकेगी।
निज नाम सुख सुविधओं को छोड़
धृतराष्ट्र सम बन जाते हैं लोग।
कहाँ किसी को यथार्थ से मतलब रहता है
स्वहित ही तो युद्ध वापिसी का पर्याय बन जाते है लोग।।


स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ 

दिनांक:19/02/2020
तुझे वापस लौट के आना होंगा
दिल में जो हैं दाग मिटाना होंगा।

अफसोस नही इस तन्हाई का
हँस हँस के नूर दिखाना होंगा।।

आंखों में मोती जो झलके
उन्हें दिल तक पहुचाना होंगा।।

गुजरी रातो में याद तुम्हारी छायी
लौट के फिर अहसास जताना होंगा।।

बातें जो रही अधूरी अब तक
दिल पे हाथ रखके पूरा बताना होंगा।।

उमाकान्त यादव उमंग
स्वरचित
मौलिक
मंच को नमन
विषय वापिसी

तूफान के बाद शान्ति की वापिसी होती।
अंधेरे के बाद उजाले की वापिसी होती।
ये जीवन क्रम तो यूहि चलता रहेगा।
दुख के बाद सुख की वापिसी होगी।।

मायके गयी है वीवी घर होगी वापिसी।
सजन गये है टूर पर अवश्य वापिसी।।
सजनी के बिन रहा ना जाये सजन से।
उदासी के बाद चहल पहल की वापिसी।
स्वरचित
रीतू गुलाटी...ऋतंभरा
19/02/2020
बुधवार

विषय -" वापसी "पर हमारी प्रस्तुति ......

हर इक सफ़र में.....
इंतज़ार है वापसी का !!

तन मन में प्यार ....
इंतज़ार है वापसी का !!

जैसे रात को भोर का....
सुबह को शाम का है
इंतज़ार वापसी का!!

बड़ा चमत्कारी होता है...
त्रृतुओं को प्यास है वापसी का!!

ग्रीष्म , सावन ,शीत
पतझड़ और बसंत ...
हरकी अलग अलग
अनुभूति जगाता है
मन में अनुराग वापसी का !!

प्रेम बिना जीवन सुना
दस्तक देता है
बसंत बहार वापसी का !!

मिलना बिछुड़ना सबकी
करता है मनुहार वापसी का !!

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद- झारखंड
विषय-वापसी
दिनांक 20-2-2020


आना है दोबारा धरा,वापसी राह बना आसान।
प्रभु पारखी नजर देख रहा, कितना तू बेईमान।

चेहरे इंसानियत नकाब लगा, करता खोटे काम।
जनता को पागल बना,बनता तू प्रभु के समान।

सोच समझ बात कर,मत बन तू इतना नादान।
चला शब्दों के तीर तू,खो देगा अपनी पहचान।

कौरव रावण कंस ने,बंद कर दिए वापसी द्वार।
वो तो सब महान बनते थे,तू तो है सिर्फ इंसान।

कर भला जग में मनु,मत बन कर्मो से हैवान।
प्रभु होगा शर्मिंदा,क्या बनाई मैने रचना महान।

इंसानियत का काम कर,मत खो अपना ईमान।
प्रभु श्रेष्ठ रचना मनु,ना कोई दूजा तेरे समान।

कहती वीणा बन मनु,ला सबके चेहरे मुस्कान।
खोल धरा वापसी द्वार,और बन जा तू इंसान।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय - वापसी
दिनांक - 19/02/2020


वापस आने की कवायद,
में वहाँ कुछ छूट गया।
कुछ तो संग में ले आया पर,
बाकि सब कुछ लूट गया।

आशिष पिता का ले आया,
पर डांटें उनकी छूट गई।
माँ की ममता साथ आई पर,
आंचल उसका रूठ गया।

बहना की राखी है अब भी,
मेरी कलाई की शोभा।
लाड़ लड़ाई संग संग था जो,
सब कुछ जैसे रूठ गया।

आई थी जो संग मेरे घर
अपने मात-पिता का छोड़।
होंठों की लाली ले आया
आंसू वहीं दिया फिर छोड़।

भारत माँ की रक्षा खातिर,
आया सब कुछ छोड़ वहीं।
जो लाया वो उर में मेरे,
बाकि बंधन तोड़ वहीं।

माँ ने दूध की कसम दिलाई,
बहना ने राखी बांधी थी।
पिता ने हंसकर माथा चुमा
प्रियतम ने तिलक लगाई थी।

वादा किया है सबसे मैंने,
वापस तब ही जाऊँगा।
या वैरी को मार गिराऊँ
या छाती पे गोली खाऊँगा।

स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड
छोड़ कर चला गया
किसी ढलती शाम
किसी प्रेयसी के पास
फिर भी रखती है आस
भर्ती है सिंदूर की रेखा
हर ढलती शाम
गर्व से करती है टीका धारण
भर्ती है चूड़ियों की कलाई
पहनती है घुघरू के पायल
सहन करती है बिछुओ कि चुभन
नही देती अधिकार किसी को
यही है आस ओर समर्पण
जनून औऱ उन्मुक्त प्रदर्सन
औऱ सिंदूर का आसरा
वापसी का इंतजार

स्वरचित मीना तिवारी
#वापसी

क्या लिखूँ
वापसी हुई मेरी
जीवन का रेखाचित्र खिंचा था
बीस वर्ष पहले
और उसी में उलझता चला गया
और बीस वर्ष बाद
उसे फिर से सुलझाने में लगा हूँ।
ज्योमेट्री की
आड़ी-तिरछी, सरल और वक्ररेखाओं में ढूँढता रहा
अपने जीवन का अस्तित्व
पता चला ही नहीं कि
इसका अंत कहाँ है।
शायद
हो सकता है कि
इतने दिनों की कोशिश
जीवन के उतार-चढ़ाव में
इतनी परिपक्वता आ गई होगी
कि इस बार वापसी में
इसके हल ढूँढ़ लूँ।

रत्नेश कुमार शर्मा"रत्नाकर"
पोखर तल्ला, मिहिजाम
जामताड़ा।
वापसी
19/2/20

वापसी
बूढ़े हैं माँ बाप..
रहे पंथ निहार
आजा रे परदेशी
देख तो आकार एक बार..

माँ रोकर है बेहाल
न कोई बताये हाल
सूनी आँखों में आस
तू देख तो आके एकबार..

तू ऐसा गया परदेश
माँ बाप की टूटी आस
उखड़ी है अब उनकी साँस
अब वापिस तो आ एक बार..

रही न कोई आस..
कर कोई सन्देश
टूटे उम्मीद की डोर..
वापसी के मिले न छोर

भूला तू उनका नेह
मोल नहीं वो स्नेह
घर की वो ड्योढ़ी भूल
गया कहाँ तू दूर...

वापिसी कर एक बार
रहे तुझे पुकार
आ जा रे एक बार
बंद न हो जाये उनके नैन
पूजा नबीरा काटोल

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