Thursday, February 27

"निर्माता"27फ़रवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-669
विषय निर्माता
विधा काव्य

27 फरवरी 2020,गुरुवार

शब्द निर्माता अति गहन है
तन मन धन अर्पण करता।
सृजन करता खुशियां देता
वह जग की विपदाएँ हरता।

खून पसीना सदा बहा कर
पालन कर्ता वह सब सहता।
एक लक्ष्य उसका विकास है
परोपकार नर क्या न करता?

परमपिता परिवार निर्माता
संस्कारित करते बालक को।
सब कुछ सहकर वे चुप रहते
धन्य कह सकते पालक को।

निर्माता निर्देशक नारायण
जो कभी दिखाई नहीं देता।
सूरज बनकर वह आता है
स्वयं तपकर तम हर लेता।

भव्य ताजमहल बनाकर भी
हाथ कटवा दिए निर्माता के।
माँ सब कुछ देती है शिशु को
चरण शीश झुकावें माता के।

चार वेद उपनिषद निर्माता
महाकवि ईश्वर की मूरत है।
महाभारत रामायण निर्माता
नव विज्ञान शिक्षा सूरत है।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय - निर्माता
प्रथम प्रस्तुति


अपने भाग्य के खुद निर्माता बनना होगा
सोच समझ कर अपनी राह चुनना होगा!!
माना कि कुछ रेखायें बनकर आयीं हैं
फिर भी उसमें रंग हमको भरना होगा!!

तकदीरों को यहाँ बदलते हमने देखा
कौन कहे ये केवल है हाथ की रेखा!!
परिन्दे भी घर अपना बनाते देखे
कौन किया उस कला का भला अनदेखा !!

चलो आज और अब से कुछ निर्मान करें
अपनी काबलियत का कुछ अनुमान करें!!
बिना हुनर की कोई भी कृति नही 'शिवम'
दाता की हर एक कृति का सम्मान करें!!

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 27/02/2020
तिथि 27/2/2020/गुरुवार
विषय-*निर्माता*

विधा-काव्य

बृह्मा जी ने सृष्टि रचाई,
मनुष्य स्वयं भाग्य निर्माता।
अपने ऊपर ही निर्भर है,
मानव चाहता जो बनाता।

कर्म करें हम चलें धर्म पर,
अपना सम्मान बढाऐंगे।
प्रेमभाव से रहें अगर हम,
सचमुच उन्नति कर पाऐंगे।

ईश्वर अपना जीवन दाता।
मात-पिता हैं पालन करता।
बुद्धिदेव हमें बुद्धि देते,
तबही मानव कुछ कर पाता।

अंतरिक्ष में मानव पहुंचा,
आविष्कार नित नूतन करता।
ईश्वर केवल प्राण डालते,
कोई द्वेषभाव भी भरता।

सृजनशीलता अच्छी होगी।
यदि मेहनत अच्छी की होगी।
निर्माण करो निर्माता मनसे,
तभी प्रगति यहां अच्छी होगी।

हुए कभी संविधान निर्माता।
कुछ लोगों के भाग्य विधाता।
कटुता संविधान में समझें,
कब तक चलें मरे निर्माता।

अब कब इसका पालन होता।
लगता जैसे बुजदिल ढोता।
वोट नोट पाने के कारण,
गधा गुलाब जामुन पचाता।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
विषय , निर्माता
दिनांक, २७,२,२०२० .

वार , गुरुवार

हमको निर्माता संसार का ये कहता बारम्बार,
सृजन से ही तो संसार है करो सृजन से प्यार ।

धरती और आकाश ही इस सृष्टि का आधार ,
मानव जीवन के लिए किए कितने अविष्कार।

आज जो स्वरूप संसार का कई निर्माता हाथ,
विकास तभी हो सका है जब रहा हाथ में हाथ।

कहती हर एक सभ्यता कायम रखना विश्वास,
जहाँ पर होगी एकता वहाँ होगा सदा विकास ।

हम जग के निर्माता बनें खिलाएं प्रेम के सुमन ,
भाईचारा महके सदा निर्माताओं को करें नमन।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

दिनांक : - 27/02/2020
विषय : - निर्माता


बेचैनी में कटी रातें
दिल दहल उठता है
बजती जब पुलिस की साइरन
वक्त मानों ठहर जाता है।

उठ रहा है अभी भी धुँआ
उन राख के ढ़ेरों से
गूँज रहीं है दर्द की चीखें
जले सुनसान उन गलियारों से।

बही थी जो रक्त की धार वहाँ
फर्क हम नहीं कर पाएँ
था कौन हिन्दू कौन मुस्लिम का
रंग एक सा, गर्म भी एक सा
सच नहीं हम जान पाएँ।

लग गई है किसी की नजर
दो भाईयों के मोहब्बत को
हो गया जलकर राख सबकुछ
बुझा दो अब सारे चिंगारियों को।

है जो निर्माता इसका
उसे कहाँ खरोंच आई
बेघर, बेरोजगार तुम हुए
उस पर कहाँ कोई आँच आई।

स्वरचित : - मुन्नी कामत।

दिनांक- 27/02/2020
शीर्षक-"निर्माता"
वि
धा- कविता
************
इस जग का एक ही निर्माता,
किसी भी धर्म से वो नहीं आता,
राम कहो चाहे कहो उसे रहीम,
वो ही हम सबका भाग्य विधाता |

उसकी हर रचना बड़ी है खास,
कण-कण में उसका ही निवास,
सबके सुख-दु:ख का वो साथी,
उसकी नहीं है कोई जाति |

युग का जब निर्माण हुआ,
कहां पता था उठेगा यूँ धुआँ,
हिंसा की आग लगी है भारी,
जल रहे यहाँ नर और नारी |

राक्षसी शक्तियां उत्पात मचाते,
अपराध,भ्रष्टाचार को फैलाते,
कैसे होगा नव-युग का निर्माण?
भाई ही भाई की ले रहा है जान |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय -निर्माता
दिनांक 27 फरवरी 2020 गुरुवार


राष्ट्र निर्माता भाग्य विधाता,
करें राष्ट्र का नवनिर्माण ।
नन्हे-मुन्ने बच्चों के मन में ,
लाते नवजीवन का विहान।।

जगत पिता जगदीश्वर रचते ,
मानव रूपी काया देते,
जगत नियंता जग अभियंता
करें राष्ट्र का नव निर्माण ।।

जाड़ा ,गर्मी, धूप सहन कर ,
पहाड़ पर्वत तोड़ -तोड़ कर,
श्रमिक श्रम दिन-रात करें ।
सड़कों का निर्माण करें ।।

सतत प्रयत्न निरंतर करते,
नई चेतना जन-जन में भरते,
करते राष्ट्र में नव निर्माण ।
सत पुरुषों की यही पहचान।।

स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह प्रयागराज
तिथि-27/02/2020
दिन - गुरुवार

विषय - " निर्माता "
विधा - काव्य

हे निर्माता भाग्य विधाता,
आँखे खोलो देखो संसार ।
भर दो अंतस में ...
ज्ञान का प्रकाश ।।
देश में आएं खुशहाली,
मानव के मिले विचार ।।
मानव के मिले विचार,
मन से मन का दीप जले ।
दूर हो नफ़रत का अंधेरा ,
मातृभूमि में प्रेम के फूल खिले।।

स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड

27/02/2020
शीर्षक - निर्माता


जो मेहनती
जो निर्माता,
जिसके कारण
जग सुख पाता,
बहाये पसीना
हो थककर चूर,
सबको दे सुविधा
खुद सबसे दूर,
भवन बनाकर
सहे सर्दी, धूप,
सबका संबल
स्वयं मजबूर,
जो है कर्मठ
जो है श्रमिक,
तरसे छत को
हाँ...वो है मजदूर......!

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित

27 / 2/ 2020
बिषय,, निर्माता

हम अपने भाग्य के स्वयं बनें निर्माता
सफलता अवश्य ही देगा हमें बिधाता
सद्गुणों का जो करेंगे संचार
सद्भभावना का जो होगा व्यवहार
हम खुद में करेंगे सुधार
हम सुधरेंगे सुधरेगा संसार
नेकियों से भर लें जो झोली
मधुर संबंध मधुर बोली
मन में जो दृढ़ विश्वास
हम ही क्या सारे जग का होगा विकास
एक दूसरे के लिए हित की हो भावना
सम्पन्न संस्कृति की बढ़ेगी संभावना
समाज व देश सुकर्मों से सुवासित हो जाएगा
विश्वगुरु का तिरंगा फहराएगा
स्वरचित, सुषमा ,ब्यौहार
निर्माता

भाग्य विधाता
जग निर्माता
जग चलाता
विध्वंसकर्ता
हैं
ब्रहमा विष्णु महेश

संस्कार निर्माता
ऊँगली पकड़
चलना सिखाता
संघर्षरत बनाता
दुनियांदारी सिखाता
माता है वो
और पिता

लड़ो अन्याय से
बनों देशभक्त
चलो ईमान की
राह पर
भजो ईश राम को
होगा स्व विकास
देगा साथ
स्वयं विश्व निर्माता

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय- निर्माता।स्वरचित।
कृतज्ञता व्यक्त करती हूं
हृदय की हर धड़कन से
बनाने वाले परमेश्वर
निर्माता के प्रति
जिसने दिया मौका
इस पावन भूमि पर जनमने का।।

कृतज्ञता व्यक्त करती हूं
इस तन के रोम-रोम से
उस मां निर्माता के प्रति
जिसने रखा कोख में
मोती पनपता है जैसे सीप में।।

कृतज्ञता व्यक्त करती हूं
जीवन के हर प्रारब्ध के लिए
उस पिता निर्माता के प्रति
जिसने किया सर्वस्व समर्पित
हमारी ख्वाहिशों को परवान चढ़ाने में।।

कृतज्ञता व्यक्त करती हूं
मेरे प्रेरक बनने के लिए
हर एक पाठक साथी को
जिसने दिया अमूल्य समय
मेरी तुच्छ रचनाओं को पढ़ने,
प्रतिक्रिया देने, उत्साह बढ़ाने और
मेरे निर्माता होने का गवाह बनने के लिए।।
***
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
27/02/2020
विषय-निर्माता

सृजक सृजन जब भी करता है
निर्माता कहलाता है
मिट्टी गूंद-गूंद हाथों से
मूर्तिकार मूरत ग़ढ़ता है
सुंदर सी वो कृति बनाकर
उसमें प्राण फूँकता है
ईंट-ईंट जोड़े कारीगर
ऊँचे महल बनाता है
सड़कें ,पुल और ताल,सरोवर
मानव ही निर्माता है
पर्वत चीरे, नदियाँ मोड़े
क्या-क्या रूप सजाता है
चित्रकार रंग-संयोजन कर
सुंदर चित्र बनाता है
सधे हाथ से चला तूलिका
कागज खूब सजाता है
राष्ट्र-निर्माण ,चरित्र-निर्माण
जीवन को दे सही दिशा-ज्ञान
मात-पिता दें संस्कार
गुरु शिक्षा दे , निर्माता है
दुनिया भी एक कैनवास है
चित्रकार वो ईश्वर है
जड़-चेतन हैं चित्र उसी के
क्या अद्भुत संयोजन है

सरिता गर्ग

विषय-निर्माता
विधा-चौपाई
________________
ममता का सागर है गहरा,
बच्चों पर रखती है पहरा।
संकट कोई पास न आता,
सबसे लड़ जाती है माता।१।

धीर,गंभीर,कोमल मन की
खुशियाँ देती वो बचपन की।
सच्चाई का पाठ पढ़ाती,
अच्छा बुरी बात बतलाती।२।

माँ के आगे झुकता माथा,
त्याग भरी यह सच्ची गाथा।
माँ सरिता सी बहती धारा,
डूबा जिसमें जीवन सारा।३।

आँखों में करुणा का सागर,
भरो ज्ञान से अपनी गागर।
माँ भविष्य की है निर्माता,
माँ से कोई पार न पाता।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय - निर्माता

है जो निर्माता इस संसार का।
वो कहाँ है धर्म से बंधा हुआ।
ईश्वर अल्लाह हो या जिसस हो।
एक है यह जहां और एक खुदा।

याद करने का अलग विधान है।
एक ही शक्ति है वो महान है।
गॉडफादर है कोई पुकारता।
खुदा बाप कोई तो परमपिता।

अर्थ यही एक है सब जान लें।
वो पिता है हम सभी का मान लें।
आत्मा हैं रूह या फिर सोल हैं।
संतति हैं हम सभी पहचान लें।

पूरे ब्रह्माण्ड का मालिक वही।
जिसने रचा धरती आकाश भी।
फूल भी उसने रचे कांटे भी।
जल भी उसने बनाए आग भी।

स्वरचित
बरनवाल मनोज
धनबाद, झारखंड
चित्र पर आधारित - निर्माता

सिर पे बोझ ढोते श्रमिक करते अनवरत काम।

मेहनत मजदूरी करते न करते दिन में आराम।

ईंट, कंक्रीट, रेत, सीमेंट से बन जाते है मकान,
दिनभर काम में लीन रहते नही होती थकान।

अपनी प्रतिभा से देते सुन्दर सा नया आकार,
जिसमें हम रहते है और हमारा पूरा परिवार।

चंद खुशी में खुश हो जाते मलिन बस्ती के लोग,
मेहनत मजदूरी करके मस्त रहते मजदूर लोग।

रिक्शा चलाये, सब्जी बेचे, कोई ढ़ोये सामान,
मेहनत के बदले फल नही मिलें ना मिले सम्मान।

सर्दी-गर्मी, तपती धूप हो या बरसात आ जाये,
पसीना बहाकर काम करते चाहे कुछ हो जाये।

ना कोई खाने का शौक नही कोई सुख-सुविधा,
ना किसी से होड करें और नही कोई है दुविधा।

ना ऐश आराम की चिन्ता ना उनको कोई फिकर,
जो भी मिलता खुश हो जाते ना किसी से डर।

दिन-रात मेंहनत कर बच्चों का करते पोषण,
चटनी,रोटी से खुश रहते ना करते आरोपण।

अच्छी स्थिती ना श्रमिकों की कुछ न करें सरकार,
जुल्म के विरूद्ध आवाज न उठाये न ले कोई रार।

सुमन अग्रवाल सागरिका
आगरा

भावों के मोती
27/02/2020गुरुवार
िषय-निर्माता
विधा-हाइकु
❤️💙💟💙💝💙
राष्ट्र निर्माता
शिक्षक समुदाय
गुरु का दर्जा🌷

विश्व निर्माता
कृषक मजदूर
मेरे देश के👌

जग नियन्ता
तेरा तुझे अर्पण
मेरा क्या जाता👍

विश्व विधाता
शुक्रिया के अलावा
तुझे क्या देता🍁
✍️🙏✍️🙏✍️🙏
श्रीराम साहू"अकेला"

शीर्षक-निर्माता

गिरिधर है जग के निर्माता
रखते ये सबसे नाता
समदृष्टि रखते ये सदा
भूल न जाये इन्हें कदा।

भवन के निर्माता मजदूर हमारे
ईट मिट्टी सिर पर धारे
पर ये खुद भूखे सोते
मिले इनको मजूरी पूरी
तभी होगी हमारी कर्त्तव्य पूरी।

माँ बच्चों के भविष्य निर्माता
निर्मल होती इनकी ममता
अधूरी इच्छा हो इनकी पूरी
जो है हमारे परिवार की धुरी।

गुरु शिष्य के भविष्य निर्माता
बाहर भीतर ठोक बजाता
उचित अनुचित का ज्ञान सीखाता
गुरु की महिमा ईश भी गाता।

हम है अपने भाग्य निर्माता
सुन्दर कर्म के सुन्दर गाथा
कर्म ही हमारा भाग्य बनाता
अपने भविष्य के हम निर्माता।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

विषय : निर्माता
विधा : कविता

तिथि : 27.2.2020

बो फ़सल सत्कर्मी
न बोना बीज अधर्मी
कौन सा कर्म चुने, बन इसका ज्ञाता
तूं स्वयं अपने कर्मों का निर्माता।

जन्म चर्खा, कर्म कपास
उजला हो सूत-
जो तूने काता।
तूं स्वयं अपने कर्मों का निर्माता।

कार्मिक जमावड़ा
नहीं खिलावड़ा
बना सात्विक खाता
तू स्वयं अपने कर्मों का निर्माता।

अपनी भूमि की सींचों से-
अपने कार्मिक बीजों से-
बन स्वयं का भाग्यविधाता,
तूं स्वयं अपने कर्मों का निर्माता।

रीता ग्रोवर
स्वरचित

दिनांक 27-02-2020
विषय-निर्माता


तुम निर्माता हो धरती पर
करते हो निर्माण निरन्तर
श्रम से परिपूरित है जीवन
निर्मल अतिशय ही है अन्तर..
नहीं अछूता कुछ धरती पर
जिसको तुमने नहीं बनाया
तन्मय होकर कर्म में अपने
रक्त जमी पर नहीं गिराया ...
छोटी -बडी सब अट्टालिका
सड़क, बाँध, कल-कारखाने
अस्त्र-शस्त्र, गोला -बारूद
वाहन, खाने के सब दानें..
सब में महक तुम्हारे श्रम की
गाँव, शहर की सारी गलियां
खिली हुई जो उपवन में है
हर्षाती सारी ही कलियाँ..
तुमने स्व से ऊपर उठकर
सबके हित में कार्य किया है
सुविधाएं दे करके जग को
दुविधा का रसवान किया है...

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
27/2/2020
विषय निर्माता

विधा पिरामिड

ये
बुद्धि
प्रयास
सुविचार
मन के राग
स्व रचे प्रारब्ध
हो जीवन निर्माता

हो
शील
सद्भाव
कर्म धार
प्रेम आधार
बन स्व निर्माता
रचे जग नवल

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

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