'' नोट "
बच्चे बूढ़े सभी को भाये
जितना भी हो कम कहलाये ।।
क्या अरबपति क्या फक्कड़
सभी लगायें उसके चक्कर ।।
भाई भाई को भी भुलाये
हरेक कार्य जिससे हो जाये ।।
बताओ वो क्या चीज है
हर दिल जिसका अजीज है ।।
वो फल फूल न वो अखरोट
वो है ''शिवम" सिर्फ एक नोट ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
बाप भलो न भैया।
सबसे बडो रूपैया।
रोज पूजते हैं हम,
कहते लक्ष्मी मैया।
नहीं चलती नोट बिन
गृहस्थी की गाडी,
नहीं होते कुछ काम।
धनलक्ष्मी हाथ अपने तो
बनते बिगडे काम।
एक कदम आगे नहीं बड पाते
बिन लक्ष्मी के भैया।
लक्ष्मी जी गर साथ में हैं तो
सब करते ताता थैया।
बिन लक्ष्मी कुछ नहीं चल पाऐ
होते हम सब हैरान।
धन से ही व्यवहार चल पाते
यह अच्छा है मेहमान।
धनदौलत से रिश्ते बनते हैं,
धनदौलत से ही पहचान।
अपने घर यदि नोट नहीं तो
अपनी नहीं है कुछ भी शान।
लगे रातदिन हम नोट बटोरने ,
नहीं कोई जात पात का भेद।
जैसेभी जितना समेट लेंय हम
फिर जल्दी काला करें सफेद।
बैंक सभी हम खोखले कर दें
नीरव मोदी माल्याजू के संग।
लूट माल देश का भागें फिर,
निश्चिंत करें विदेश हुडदंग।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी।
एक दो पैसे की पुङिया में कभी मुझ गरीब के नाम,
क्या कोई लेकर आयेगा मेरे लिये जीने का पैगाम?
मुखौटे लगाकर, और खूबसूरत लफजों की जुबान,
क्या मुझे सङक से उठाकर कभी कोई देगा आराम।
कुछ थोङी सी चांदनी, लाकर कुछ थोङी सी धूप
मेरे पेट में जलती हुयी, कब मिटेगी, ये मेरी भूख।
मांगू थोङी सी हंसी, फिर चाहूं थोङी सी खुशी
एक मैली फटी सी चादर, क्या यहीं है मेरी बेबसी!
बंदरबांट से बंट गये है, धरती मां के दाने दाने,
खाली चूल्हा,गीली लकङी पे कैसे अरमान पकायें।
लोग कहते है कि मजलूम का कोई घर नहीं होता,
फरिश्तो की दुआओं में शिद्दत और रहम नहीं होता।
आज! मैं इस सङक पे एक चुभन लिये पल रहा हूं
पूछो तो सही जन्म से ही,कैसे मर मर के मर रहा हूं।
क्या मेरी गरीबी और भूख की पहचान कभी बदलेगी,
क्या वो दो पैसे की पुङिया मेरा भाग्य भी बदलेगी ?
---डा. निशा माथुर/8952874359(whatsapp)
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देखिये ये पैसा क्या कमाल कर गया
हंसी लबों से लूट के कंगाल कर गया
वो जिसके लिए कांटो पे गुजार दी उम्र
आंखो को आंसुओं से लाल कर गया
पल भर में गैर कह के तोड़ डाले सब भरम
जख्मों से इस दिल को मालामाल कर गया
जज्बात चूर चूर हैं बेरंग है मंजर
सीने में तूफान है क्या हाल कर गया
वफा के बदले दे गया हजार तोहमत
जादूगर था काम बेमिसाल कर गया ।
सपना सक्सेना
नोएडा
ये तो क्षणभंगुर है।
साथ जाएगा कर्म तेरा,
जग मे होगा नाम अमर।
सेवा सत्कर्म और रहम,
ये ही देंगे सच्चा सुख।
धन के मद मे चूर,
रिश्तों को मत भूलना।
धन तो आना जाना है,
रिश्ते तो अनमोल ख़जाना है।
हर पल बढ़ते जाना है।
धन का उपयोग उचित हो,
ये हम सबको समझना होगा।
ज़रुरतमंदों की मदद करें,
यही हमारा आज है।
कल किसने देखा है,
ना जाने किस रूप में,
"नारायण" मिल जाएं।
©प्रीति
"नोट'
सुनो सुनो मेरी रामकहानी।
मैं नोट मेरी बात है निराली।
मै सबके मनभावन हूँ
मै हूँ सबकी आली।
दुनिया को मैं खूब नचाउँ
योगी हो या भोगी।
रिश्ते नाते रखें ताक पर
मुझसे मोह न तोड़े।
मंदिर मस्जिद हो या गिरिजाघर
मेरे बिना वे बन नही पाते।
डाक्टर हो या इनंजीनियर
मुझसे ही रोटी पाते।
हर काम के पीछे मैं हूँ।
हर नाम के पीछे मैं।
फकीरचंद हो या दौलतराम
मुझसे ही नाम कमाते।
परन्तु मेरी गति समझे ना कोई।
दान करें जो वही मीत मेरे होई।
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है
वो 8 नवंबर को मोदी जो बोले
नोटों के बंडल रद्दी में है बदले
चुपचाप निकाले हरे नोटों की रंगत
जाने कब कैसे काली हो चली थी
देखी आज उनकी फिर जेब भरी है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है
वो किटी के पैसे और जुगाडू रुपये
तिजोरी में पड़े मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे
पति से छुपाकर जोड़ी जो बचाई
वो मेहनत मेरी पानी-पानी हो गई थी
पति की नजर अब मुझ पे अटी है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है
वो पड़ोसन काकी और रिश्ते की दादी
बड़ी जोड़-तोड़ करके बचाई कमाई
बुढ़ापे का सहारा काला हो गया था
महीला विकास का नारा मद्धम हो चला था
मेरे साथ काकी दादी रो रही है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है
नीति अनीति कौन किसको बताए
राजनीति का ये खेला हमें भीसीखाए
नेताओं के पैसे सफेद हो गए हैं
और गूढ़ सी बातें हवा हो गई हैं
जुगाड़ से जिंदगी फिर चल पड़ी है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है
लगी आज नोटों की ऐसी झड़ी है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है
मिलन जैन
27-4-2018
नोट, रुपया,धन,दौलत
पिरामिड
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है
क्यों
रुदन
हर मन
धन संचित
स्नेह से वंचित
संस्कार न अर्जित।
वीणा शर्मा