💐भावों के मोती💐
28--4--2018
चित्रलेखन
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आजा रास बिहारी,तुझ बिन मीरा अधूरी
श्वेत वस्त्र मैं धारी,तेरी रंग रलिया न्यारी।।
लिए सितार और मजीरे,तुझ पे मैं बलिहारी
गोपियों सँग रास रचाओ,मैं तेरी प्रेम पुजारी।।
रंग रंगीली दुनिया तेरी,मैं हो गई श्वेत सलोनी
सुधबुध ले लो अब गिरधर,तुझ बिन मैं हारी।।
मोर मुकुट पितांबर धारी,गले वैजयंती माला
दूर खड़े क्यों ताक रहे,मीरा की भक्ति शाला।।
मन ही मन मुस्काए वो,कैसा जादू कर डाला
मंत्र मुग्ध है बैठी मीरा,दिल छलनी कर डाला।।
प्रेम की भक्ति भड़क रही,अब तो आ साँवरियाँ
छोड़ रास रंग की गली ,झलक दिखा साँवरियाँ।।
पंथ निहारूँ तेरा कान्हा, जोगनियाँ मैं हो गई
बिंदी,कँगन,गले की माला,सब तेरी हो गई।।
वीणा शर्मा
तू ही माला, तू ही मंतर, तू ही पूजा, तू ही मनका
का कहूं के, मेरी धड़कन पे गंगाजल सी प्रीत लिखूं।
तू है मधुबन में, तेरे होठों पे मुरलीया, सुन मेरे कान्हा
कैसे मै इन अधरों पर, मेरे मधुर बंसी का गीत लिखूं
तू है सृष्टि में, तू है दृष्टि में, तू ही काल कराल वृष्टि में
मैं निपट अकेली इस जग में कैसे विरह की पीर लिखूं।
मन की बंजारन, तन से भी हुई बावरी, ओ मेरे मोहन,
कैसे अपनी भूली सुधियों पे बहते अश्रु का नीर लिखूं !
तू ही रैन, तू ही मेरा चैन, तू ही मेरा चोर, तू चितचोर
बहती यमुना सी आकुल हदय की कैसे धीर अधीर लिखूं।
तू ही नंदन, तू ही कानन, तू ही वंदन, सुन मेरे कृष्णा
कैसे मेरे निर्झर नैनो मे तेरे दर्शन की पीर अधीर लिखूं !
तू ही सासों में, तू ही रागों मे, तू ही संगीत , तू मेरे साजो में
का कहूं की, मुरलिया सुध बुध बिसरायी,मै हार या जीत लिखूं।
छू लूं तेरे चरण, मै तेरी शरण, कर आलिंगन, ओ मेरे श्यामा।
तेरे होठो की बंसी बन बन जाउँ और शाश्वत संगीत लिखूं।------डा. निशा माथुर(8952874359whatsapp)
एक प्रयास ः
जय जय मेरे कृष्ण कन्हाई।
सखियों संग द्वार तेरे आई।
अपनी वीणा हाथ थामकर,
हुई मगन भक्त ये मीराबाई।
तुझे महल द्वार सब मैंने छोडे।
श्याम मुझे मिले कितने थे रोडे।
श्वेत वस्त्र शरीर पर धारण कर,
सितार हाथ आभूषण भी छोडे।
मै अंगअंग कृष्णा के बस जाऊँ।
हाथ थाम वीणा सितार मै गाऊँ।
मुरलीमनोहर मुझे सुना दे वंशी,
मै वंशीधर संग रास रचाना चाहूँ।
जैसे भी हो प्रभु मै तुझे रिझाऊँ।
निशदिन वंशीवाले के गुण गाऊँ।
बजा सितार मनमोही मनमोहन,
तन मन धन सब मै यहाँ लुटाऊँ।
मैंने श्वेत वस्त्र तेरे कारण पहने हैं।
अब करताल वीणा मेरे गहने हैं।
ये मोती माला माथे की बिंदिया,
मतवाले तेरी ही खातिर पहने हैं।
सुधबुध खोई हुई तन्मय बेगानी।
मै पूरी तरह हुई कृष्ण दीवानी।
संग साथ सहेलियाँ नृत्य करूँ मै,
अब तो बस कान्हा की दीवानी।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
प्रेम रस भीगी सुध बुध
बिसार आई
रास रसैया किशन कन्हैया
रास रचाय ताता थैया
प्रीत रस में डूबी मोहे मीरा
ग्वाल बालन ज्यूं सोहे राधा
भजन सरिता की मधु धारा
बहती मानो शीतल चँदन छाया
रेतीले धोरों से उद्गमित भक्ति सरिता
कर आई गोवर्धन परिक्रमा
मेड़तड़ी मीरां महाराणी
वृंदावनी कुंज गलियन की
प्रेम दीवानी
द्वापर युग का श्याम सलोना
बन घनश्याम कलियुग आयो
ज्यूं राधै को प्रेम निभायों
त्यूं ही मीरा को अंग लगायो ।
डा. नीलम
दिल जीगर मे रख कर तेरो नाम
मीरा जोगन भई तेरी घन श्याम।
राणा ने जो भेजा विष का प्याला
वो झट से पी गई लेकर तेरा नाम।
क्या है तेरे नाम जो भई बावरिया
रानी होकर तजो सारो ऐशोआराम।
लोक लाज सब छोडकर वो हरदम
गाती फिरती मेरे श्याम घनश्याम ।
सकल जगत आज तक उसे जाने
मीरा ही है भक्त तेरी ओ घनश्याम ।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
मुरली मनोहर
नटखट मदन गोपाल
मैं हार रही जीवन की बाजी
मोहे तू लगा दे पार
हरी-भरी मेरे जीवन बगिया
सूरज की तपन से मुरझाई
मेरे श्याम संभाल ले इसे
ना कर मुझसे रुसवाई
रुकमा का तू नटखट नागर
यशोदा का नंदलाल
राधा के हृदय में बसे
मेरे कृष्ण गोपाल
क्यों कराएं मेरी जग हंसाई
मेरे घनश्याम
कृष्ण कन्हैया
मुरली मनोहर
नटखट मदन गोपाल
प्रीत में तेरी बावरी होकर
बन बन भटकी जाऊं
कान्हा मेरे मन में बसे
यह दर्द किसे दिखाऊं
मीरा बोले सुन मेरे कान्हा
अर्ज मेरी सुन ले
या तो मुझको गले लगा ले
या प्रीत मेरी हर ले
अखियां मेरी तरस रही है
अब मान ले मेरी बात
कृष्ण कन्हैया
मुरली मनोहर
नटखट मदन गोपाल
घिरी तूफान में मेरी नैया
डगमग डगमग डोले
मेरी पार लगा दे जीवन नैया
क्यों तू मुखड़ा मोड़ें
मैं विनती करूं मेरे प्रभु
कर ले मेरी संभाल
अपने चरणों में जगह देकर
कर मुझ पर उपकार
कृष्ण कन्हैया
मुरली मनोहर
नटखट मदन गोपाल
स्वरचित मिलन जैन