काश सरहद की दीवार गिरा पाते,
तुम भी खुश होते हम भी मुस्कुराते l
ये सियासत तो एक बेदर्द तवायफ है ,
काश इस तवायफ का घूंघट उठा पाते ll
अल्लाह हू अकबर के जो नारे लगाते ,
बेकार के है जो जय जयकारे लगाते l
काश इन बुड़बक को हम समझा पाते,
सियासत का चेहरा इनको दिखा पाते ll
यहां के हर दर्पण है तुम्हे भरमाते ,
कोई दर्पण तुम्हे नहीं सच दिखाते l
रंजो गम नहीं होता हमको तुमको ,
काश सच दिखाने वाला आइना बनाते ll
सबके अपने अपने फायदे है ,
सबके अपने अपने कायदे है l
हमको तुमको लड़ाने के लिए ,
फजूल के इनके सब वायदे है ll
न तेरा खुदा जिहाद में बसता है ,
न मेरा राम मंदिर में रहता है l
उनका काम है लड़ाने भिड़ाने का,
कोई मंदिर कोई मस्जिद बनाने को कहता है l
पापा, आना सरहद पार से!!!!
पापा, आना सरहद पार से
दुश्मन के घर बार से
रस्ता देखें थकी है अखियां
चुप हूं मेरी खो गयी निंदिया
सुन चिठ्ठी तेरे नाम पे!!
पापा, आना सरहद पार से
दादी करे भगवान से बातें
बूढे दादा यूं दिन भर खांसे
बस तेरी फोटो थाम के!!
पापा, आना सरहद पार से
मां मेरी तो निष्प्राण पङी है
छोटी बहन भी शून्य खङी है
यूं हाथ कलेजा थाम के!!
पापा, आना सरहद पार से
पुरवइया फिर लोरी गा देंगी
यादें हमारी मरहम रख देंगी
हां, तेरी घायल चाम पे!
पापा, आना सरहद पार से
मां कहती तू अब ना आयेगा
ना ही तेरा कोई शव आयेगा
हम बैठे तिरंगा थाम के!
पापा, आना सरहद पार से
दुश्मन के घर बार से!
----- डा. निशा माथुर/8952874359(whats app)
नहीं सोचा था कि आजाद ऐसा हिन्दोस्तां होगा।
न होंगे बोस, बिस्मिल, चन्द्रशेखर, वीर सावरकर।
भगत सिंह जैसा न फिर हिंद मे बांका जवां होगा।
गुलाम की जिंदगी से बेहतर उन्होंने मौत को माना।
हासिले जवानी के वो आजादी से कम नहीं माना।
सदायें गूंजती है आज भी सतलुज के पानी में।
वही जज्बा न जाने फिर इस लहू मे कब रवां होगा।
हसीं जवानी के चन्द दिन क्या उनको न प्यारे थे।
किसी ममता भरी गोदी के क्या वे भी न दुलारे थे।
जब मौत को चूमा होगा वतन की मिट्टी के लालों ने।
क्या गुजरी होगी लहू माता की छाती से बहा होगा।
मगर अब देखिये क्या देखना कुछ और बाकी है।
पी चुके लहू हिन्द का, कुछ पी रहे जो और बाकी है।
सर से पांव तक नेता डूबे हुए हैं बेईमानी के गर्त में।
शिकारे जुल्म इनका, अहले वतन अहले वफा होगा।
गिरगिट सी फितरत है आंसू है लिए घड़ियाल के।
एक बार मौका मिले तो रहम नहीं किसी हाल में।
पी गए सब मालों जर है और हाजमा तो देखिये।
बापू को इल्म न था कि खद्दर से भी गाली बयां होगा।
वतन पर मिटने वालों का कहाँ बाकी निशां होगा।
नहीं सोचा था कि आजाद ऐसा हिन्दोस्तां होगा।
न होंगे बोस , बिस्मिल , चन्द्रशेखर, वीर सावरकर।
भगत सिंह जैसा न फिर हिंद मे बांका जवां होगा।
दरख्तों कि साया में जीवन बिताना,
वो कहते हैं फिर भी बुरा है जमाना।
जो खुद को न ढूंढे करे राहों को इशारा,
वो कहते हैं फिर भी नहीं है ठिकाना।
जो मंजिल को देखें न देखे ये मेहनत,
है चमन भी उसी का उसी का तराना।
मैं तो थम सा गया हूँ हवाओं के मानिंद,
नजर में है मंजिल न चूके निशाना।
कोई रूठ कर भी मनाने चला है,
ये सन्नाटा दिखता है हँसता जमाना।
मुझे भी हँसी में न उलझाओ साथी,
है सन्नाटा कैसा लूटा क्या खजाना।
सरहद पर रुक-रुक के गोली चली है,
शहादत इधर थी उधर था निशाना।
भूपेन्द्र डोंगरियाल
23/04/2017
तुम्हें शत् शत् नमन है मेरा।
भारत माँ के वीरों,
दे कर अपनी कुर्बानी।
देश की रक्षा करनेवालों,
तुम्हें शत् शत् नमन है मेरा।
जिस माँ ने तुमको जन्म दिया,
जिस पिता ने तुमको पाला।
जिस बहन के तुम प्यारे भाई,
दिल पर पत्थर रख कर,
जिसनें सरहद पर तुमको भेजा,
उस माँ को शत् शत् नमन मेरा।
फक्र करे जो पत्नी,
तुम्हारी शहादत पर।
विधवा बन कर गर्व करे हर पल,
उस पत्नी को शत् शत् नमन मेरा।
हर भारतवासी परइक कर्ज़तुम्हारा है।
जिस देश की ख़ातिर,
दी तुमनें अमर शहादत।
उस देश की रक्षा करना,
हम सबकी जिम्मेदारी है।
सरहद पर मरने वालों,
तुम्हें शत् शत् नमन मेरा।
© प्रीति
भावों के मोती
सरहद
23-4-2018
सोमवार
शहादत शहीदों की बनी मोती
जीवन पर्यन्त चमचमाती ज्योति
मान-सम्मान में न आए कमी
अखंडता से लहरा दो जमीं।
सीने पर जो गोली खाई थी
रंगोली भी लाल बनाई थी
वीर शहीदों की शहादत पर
धरती खुद पर इठलाई थी।।
करो जतन तुम भारतवासी
शहादत कभी न जाए खाली
उपकार उसके कभी न भूलों
सरहद चंडी बन जाओ नारी।
वीणा शर्मा
पंचकूला