आजादी किसे न भाती ये सबको लुभाती है
मगर ये आजादी हमको एक दिन गिराती है ।।
जब से श्रष्टि शुरू हुई ये दास्ता बताती है
आदिमानव मानव में फर्क यही कराती है ।।
अनुशासन की पट्टी पढ़ सभ्यता निकट आती है
बच्चों की आजादी ठीक न कही जाती है ।।
औरत की आजादी भी गलत कहलाती है
आजादी की तस्वीर आज साफ नजर आती है।।
अदब जैसे गायब है तहजीब गोता खाती है
आगे की तस्वीर ''शिवम" बहुत ही डराती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
मगर ये आजादी हमको एक दिन गिराती है ।।
जब से श्रष्टि शुरू हुई ये दास्ता बताती है
आदिमानव मानव में फर्क यही कराती है ।।
अनुशासन की पट्टी पढ़ सभ्यता निकट आती है
बच्चों की आजादी ठीक न कही जाती है ।।
औरत की आजादी भी गलत कहलाती है
आजादी की तस्वीर आज साफ नजर आती है।।
अदब जैसे गायब है तहजीब गोता खाती है
आगे की तस्वीर ''शिवम" बहुत ही डराती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
विषय-आजादी
******"
हाइकु
१
आजादी ओज
देशभक्ति का जोश
तिरंगा केतु
२
रण चमन
आजाद हिंदुस्तान
वीर अमन
३
सुंदर स्वप्न
आजाद हुआ हिंद
मुक्त गगन
४
नेता ने ठूंसा
आजादी पकवान
दीनो का स्वप्न
५
तिरंगा दर्ज
आजादी लें आकार
हिंद का फर्ज
****
रंजना सिन्हा सैराहा...
सभी कलम के सिपाहीयो को आदाब
एक राष्टीय गीत पेश है।
खिजा चमन की बहार को मिटा नही पाई
बयार वतन परस्त शमा को बुझा नही पाई।
आजादी को ढुढंने निकले,
हम बच्चे हिन्दुस्तानी।
खो गई गुम हो गई है,
हिन्द मे हिन्द की रानी।
हर तरफ ही शौर मचा है,
वोटो का सब खेल रचा है।
मारो काटो बचो बचाओ,
देश की बिगढी रूहानी।
आजादी को ढुढंने ,,,,,,,
साम्प्रदायिकता की आग लगाई,
मजहबी ऑधी खुब चलाई।
नेता जी आरक्षण को लेकर,
और लाये काबेरी का पानी।
आजादी को ढुढंने,,,,,,?
आजादी को हुये साल सत्तर,
अब भी नारी की हालत है बत्तर।
जुल्म और अत्याचार सहने मे,
नारी का नही कोई सानी।
आजादी को ढुढंने नि,,,,,,
चरित्र हमारा था कभीअच्छा,
देश पे मरता था हर बच्चा।
अब मंहगाई व भष्ट चलन से
कैसी पिघल रही है जवानी ।
आदादी को ढुंढने ,,,,, ऐसा फिर विश्वास जगाये,
फिर हम मुल्क मे अमन बढाऐ।
वतन की अस्मत के खातिर,
देनी होगी कई कुर्बानी ।
खो गई गुम हो गई
हिन्द मे हिन्द की रानी
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
एक राष्टीय गीत पेश है।
खिजा चमन की बहार को मिटा नही पाई
बयार वतन परस्त शमा को बुझा नही पाई।
आजादी को ढुढंने निकले,
हम बच्चे हिन्दुस्तानी।
खो गई गुम हो गई है,
हिन्द मे हिन्द की रानी।
हर तरफ ही शौर मचा है,
वोटो का सब खेल रचा है।
मारो काटो बचो बचाओ,
देश की बिगढी रूहानी।
आजादी को ढुढंने ,,,,,,,
साम्प्रदायिकता की आग लगाई,
मजहबी ऑधी खुब चलाई।
नेता जी आरक्षण को लेकर,
और लाये काबेरी का पानी।
आजादी को ढुढंने,,,,,,?
आजादी को हुये साल सत्तर,
अब भी नारी की हालत है बत्तर।
जुल्म और अत्याचार सहने मे,
नारी का नही कोई सानी।
आजादी को ढुढंने नि,,,,,,
चरित्र हमारा था कभीअच्छा,
देश पे मरता था हर बच्चा।
अब मंहगाई व भष्ट चलन से
कैसी पिघल रही है जवानी ।
आदादी को ढुंढने ,,,,, ऐसा फिर विश्वास जगाये,
फिर हम मुल्क मे अमन बढाऐ।
वतन की अस्मत के खातिर,
देनी होगी कई कुर्बानी ।
खो गई गुम हो गई
हिन्द मे हिन्द की रानी
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
गोधूली बेला मे,
सहसा एक मिट्ठू,
गिरा मेरे बागीचे मे।
तन रक्त से सना,
मन सहमा सहमा,
लगता था।
किसी निर्मम ने शायद,
भरपूर शक्ति आजमायी थी.
कुछ क्रोधित, कुछ विवह्ल मन से,
आँचल में ले आयी।
प्रथम चिकित्सा कर,
जल की कुछ बूंदें मुख में जो डाला,
मिट्ठू कुछ चैतन्य हुआ।
बच्चों ने देखा नन्हा साथी,
खुशी खुशी पिजरा ले आये।
बडे जतन से मिट्ठू की सेवा,
हम चारों ने मिल कर की।
तन मन को मान सुरक्षित,
खुशी खुशी वो पिजरे मे,रहता।
तरह तरह के करतब करता,
सबका मन बहलाता ।
जैसे जैसे बडा हुआ वो,
पिजरा सकरा होता गया।
दुनिया से लडऩे की ताकत ,
जब उसमे आई,सोचा करता,
उस निर्मम को सबक सिखाने,
कब मैं बाहर निकलूँ।
धीरे धीरे घर के अन्दर,
उसको उडना सिखलाया।
निर्मम जग से टक्कर लेने का,
गुर उसको सिखलाया।
स्वयं सुरक्षा का आश्वासन देकर,
सबल पंख पसारे,
आसमान मे ओझल होकर,
दे गया घर मे सूनापन।
घर खाली खाली, मन खाली खाली,
हम चारों ने रखा उस दिन,
अपना पेट भी खाली।
गुमसुम बच्चों के सम्मुख,
मैं अपराधी सी खडी रही।
आँखों मे आँसू भर कर,
बच्चे बोले माँ,
मिट्ठू ठीक तो होगा न !
मिट्ठू को आजादी देकर,
मैं मुक्त हुई अपराधबोध से।
©प्रीति
सहसा एक मिट्ठू,
गिरा मेरे बागीचे मे।
तन रक्त से सना,
मन सहमा सहमा,
लगता था।
किसी निर्मम ने शायद,
भरपूर शक्ति आजमायी थी.
कुछ क्रोधित, कुछ विवह्ल मन से,
आँचल में ले आयी।
प्रथम चिकित्सा कर,
जल की कुछ बूंदें मुख में जो डाला,
मिट्ठू कुछ चैतन्य हुआ।
बच्चों ने देखा नन्हा साथी,
खुशी खुशी पिजरा ले आये।
बडे जतन से मिट्ठू की सेवा,
हम चारों ने मिल कर की।
तन मन को मान सुरक्षित,
खुशी खुशी वो पिजरे मे,रहता।
तरह तरह के करतब करता,
सबका मन बहलाता ।
जैसे जैसे बडा हुआ वो,
पिजरा सकरा होता गया।
दुनिया से लडऩे की ताकत ,
जब उसमे आई,सोचा करता,
उस निर्मम को सबक सिखाने,
कब मैं बाहर निकलूँ।
धीरे धीरे घर के अन्दर,
उसको उडना सिखलाया।
निर्मम जग से टक्कर लेने का,
गुर उसको सिखलाया।
स्वयं सुरक्षा का आश्वासन देकर,
सबल पंख पसारे,
आसमान मे ओझल होकर,
दे गया घर मे सूनापन।
घर खाली खाली, मन खाली खाली,
हम चारों ने रखा उस दिन,
अपना पेट भी खाली।
गुमसुम बच्चों के सम्मुख,
मैं अपराधी सी खडी रही।
आँखों मे आँसू भर कर,
बच्चे बोले माँ,
मिट्ठू ठीक तो होगा न !
मिट्ठू को आजादी देकर,
मैं मुक्त हुई अपराधबोध से।
©प्रीति
आजादी कैसे साकार हुआ है ,
मनमौजी यहां सरकार हुआ है l
जनता शासन नहीं अब जनतंत्र ,
लोकतंत्र वोटो का बाजार हुआ है ll
नेता सब वोटो का खरीददार हुआ है ,
धन बल से ही नेता असरदार हुआ है l
जिसकी बोली सबसे उची बाजार में ,
वही नेता हुआ वही सरदार हुआ है ll
लोकतंत्र में ये सब बारम्बार हुआ है ,
लालच से लोकतंत्र लाचार हुआ है l
जहां - जहां भी मनोनीत गणित हैं ,
वही पर लोकतंत्र तार - तार हुआ है ll
मनमौजी यहां सरकार हुआ है l
जनता शासन नहीं अब जनतंत्र ,
लोकतंत्र वोटो का बाजार हुआ है ll
नेता सब वोटो का खरीददार हुआ है ,
धन बल से ही नेता असरदार हुआ है l
जिसकी बोली सबसे उची बाजार में ,
वही नेता हुआ वही सरदार हुआ है ll
लोकतंत्र में ये सब बारम्बार हुआ है ,
लालच से लोकतंत्र लाचार हुआ है l
जहां - जहां भी मनोनीत गणित हैं ,
वही पर लोकतंत्र तार - तार हुआ है ll
नमन भावो के मोती।
"आजादी'।
आजादी है हमको प्यारी
हम है आजाद देश के नारी।
देश आजाद है ,हम आजाद है
इस आजादी को कायम रखना
प्रत्येक नर नारी का काम है।
इस आजादी को पाने में हमनें
कितने अपनो को खोये है।
आजादी की हवा जब श्वासों
मे घुलती है,हमारी लेखनी स्वतः
ही गीत आजादी की गाती हैं।
आगे आये चाहे कोई चुनौतिया
पीछे हम न पग हटायेगे।
अपने देश की आजादी पर
कभी न आंच आयेंगे।
"आजादी'।
आजादी है हमको प्यारी
हम है आजाद देश के नारी।
देश आजाद है ,हम आजाद है
इस आजादी को कायम रखना
प्रत्येक नर नारी का काम है।
इस आजादी को पाने में हमनें
कितने अपनो को खोये है।
आजादी की हवा जब श्वासों
मे घुलती है,हमारी लेखनी स्वतः
ही गीत आजादी की गाती हैं।
आगे आये चाहे कोई चुनौतिया
पीछे हम न पग हटायेगे।
अपने देश की आजादी पर
कभी न आंच आयेंगे।