Monday, October 14

"शत्रु " 2अक्टुबर 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-523

https://m.facebook.com/groups/101402800724751?view=permalink&id=448275769370784



150वीं गाँधी जयंती

जब आज़ादी की आंधी में
थी आवाज उठाई गांधी ने
देशभक्ति की मशाल जगा
पाने आज़ादी था देश जगा
सब एकसाथ उठ खड़े हुए
अहिंसा की माला में जड़े हुए
जब भारत की ताकत बढ़ने लगी
अंग्रेजी हुकूमत डरने लगी
भारतीयों पर अत्याचार बढे
जब सभी "कर" थे कर दिए कड़े
तब असहयोग चलाया था
फिरंगियों को बतलाया था
करो अत्याचार सह जाएंगे
पर हम न हथियार उठाएंगे
सत्य ,अहिंसा और भाईचारे का बापू ने पाठ पढ़ाया था
प्रेमभाव से मिलजुलकर रहना हमे सिखाया था
बापू के हर इक सपने को आओ हम पूरा आज करें
देश को आगे बढ़ाये हम ऐसे कुछ मिलकर काज करें
हर बालक को मिले शिक्षा कोई भी न वंचित रह पाएं
पढ़ लिख कर विद्वान बने और देश का नाम वे कर पाएं
आओ स्वछता के इस सपने को हम मिलकर साकार करें
शपथ ले हम स्वछता की न गंदगी अगली बार करें
बापू के दिखलाए मार्ग पर मिलकर कदम बढ़ाते है
150वीं जयंती पर बापू को शीश झुकाते है
ऊंच नीच के भेद को त्यागे सब भाईचारे की बात करें
आओ मिलकर हम सब इक नए भारत की शुरुवात करें
स्वरचित :- जनार्धन भरद्वाज
श्री गंगानगर (राजस्थान )

प्रथम प्रस्तुति

जिन्दगी यह जान लेती जाना है
फिर भी हमने मौत को शत्रु माना है ।।

कितनी बार न घिरे अपने ही घर में
दुश्मन को घर में ही पहचाना है ।।

शत्रु यहाँ एक नही शत्रु यहाँ हजार हैं
जिनका घर में रहे आशियाना है ।।

पर गजब यह हमने ही पनाह दी है
यह हमारा अन्दाज भी मस्ताना है ।।

हम समझ नही पाऐं वो वार करें
बनाया उन्होने मुकम्मिल ठिकाना है ।।

बाहर के शत्रुओं से सभी पूर्ण वाकिफ
अन्दर के से हरेक अन्जाना है ।।

अपने घर के ही हम मालिक नही हैं
कहें सबल निर्बल तानाबाना है ।।

जानकर 'शिवम' अन्जान रहें जकड़ा -
जंजीरों ने वो हुक्म निभाना है ।।

हमें समझौता आया बुराई संग
या फिर दस्तूर जो ये जमाना है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 02/09/2019
नमन मंच भावों के मोती
2/ 10/2019
बिषय ,,शत्रु,,

आज का दिन है बड़ा महान
दो फूलों के खिलने से महक उठा था हिंदुस्तान
भारत माँ के अधिनायक सच्चे सपूत थे
शत्रु,, भी जिनसे मात खाए ऐसे देवदूत थे
सत्य अहिंसा हिंद स्वराज की परिकल्पना
कर्तव्यनिष्ठ सौहार्दपूर्ण आजादी की आराधना
अंतर्निहित आध्यात्मिक चिंतन की रही भावना
स्वदेशी में जीना मरने की उपासना
ऐसे ही हमारे श्री बहादुर लाल थे
सादा जीवन उच्च बिचार आदर्शों के प्रतिपाल थे
भारत माँ के लाल तुम्हें करुँ बहुबार नमन
वंदन है वंदन तुमको मेरा बहु वंदन
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय शत्रु
विधा काव्य

02 अक्टूबर 2019,बुधवार

स्वार्थ ही आधार शत्रुता
स्वार्थ में अंधा संसार
चमन उजाड़ा पुष्प तोड़कर
लौटे कैसे जग बहार

सर्वे भवन्तु सुखिनः जग हो
भूल गए हम शुभ संदेश
अपने को अपने ही लूट रहे
कैसे सुधरे पावन ये देश

सत्य अहिंसा बापू की भूले
जय किसान शास्री संदेश
संत महात्मा मठाधीश सब
छिपे हुये हैं साधु के भेष

माया मोह ममता में स्वार्थ
किस पर हम विश्वास करें
परहित डगर भूल गए सब
सब स्वार्थ पथ कदम भरें

आज पड़ौसी शत्रु बनके
बंदूकें आतंकी तान रहे
वे अवकात स्वयं भूलकर
स्वयम्भू वे स्वंय मान रहे

किसका शत्रु कैसा शत्रु
सब स्वार्थ में डूबे शत्रु
अपनी ढपली स्व राग भर
घूम रहे स्व स्वार्थ शत्रु

दया करुणा स्नेह सौहार्द
परिवर्तित मन हो रिपु दल
आना जाना है बस जीवन
क्यों रखते मानस में मल।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

शीर्षक- शत्रु
बुधवार

सादर मंच को समर्पित -

🇮🇳🌻🌹 गीतिका 🌹🌻🇮🇳
********************************
🌺🌻 शत्रु 🌻🌺
🌺 छंद-हरिगीतिका 🌺
मापनी- 2212 , 2212 , 2212 , 2212
समान्त- अरते , पदांत- नहीं
🍀🍀🍀🍀🍀🍀

जो खेलते हैं आग से , वे मौत से डरते नहीं ।
हम राष्ट्र के रण वाँकुरे पीछे कदम धरते नहीं ।।

है राष्ट्र रक्षा ही प्रथम , तन-मन सदा हैं सोंपते ,
लेकर तिरंगा हाथ में , यों खौफ से मरते नहीं ।

अरमान रखते शौर्य पर , जाँबाज सीमा पर डटें ,
माँ भारती की शान में , झूठी शपथ भरते नहीं ।

यह जानता है विश्व हमको , शान्ति है प्यारी सदा ,
बिन बात पहले शत्रु पर , यों बार हम करते नहीं ।

यदि हो रहा नापाक दुश्मन , रार ठाने खुद कभी ,
घर तक छकाते शत्रु को, रण जीत बिन टरते नहीं ।।

🍊🌹🇮🇳🌻🌷

🌴🌺**.... रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा

2/10/19
विषय-शत्रु , दुश्मन (दुश्मनी)


क्या रखा है ऊंच नीच में और क्या जात पांत है,
स्नेह का एक अंकुर प्रस्फुटित हो तो कोई बात है।

धर्म को ना आड बना के "दुश्मनी" पालो,
खून बहो किसी का भी होता आखिर खून है,
पीछे रह जाती सिसकियां और चित्कार है,
जाना तो सब को आखिर एक ही राह है,
वहाँ जाने वालों की कौन पूछता जात है,

स्नेह का अंकुर प्रस्फुटित हो तो कोई बात है।

अपने ही मद में फूलता हर नादां इंसान है,
काल सिरहाने खडा करता निशब्द हास है,
एक पैसा तक तो जा पाता नही साथ है,
संचय करता धन के साथ कितना पाप है,
पतझर आते ही देखो पेडों से झरते पात है,

स्नेह का अंकुर प्रस्फुटित हो तो कोई बात है।

कितने आये चले गये विश्व विजय का ध्येय लिये,
रावण जैसे यूं गये कि वंश दीप तक नही रहे,
अहंकार और स्वार्थ का ना तुम संसार रचो,
अनेकांत के मार्ग पर चल सभी को सम्मान दो,
दिल के उजाले चुकते ही फिर अंधेरी रात है।

स्नेह का अंकुर प्रस्फुटित हो तो कोई बात है।

स्वरचित।
कुसुम कोठारी।

तिथि - 2/10/2019 /बुधवार
बिषय - #शत्रु #

विधा - काव्य

कौन शत्रु है कौन मित्र है
इसको कुछ तो जानें हम ।
प्रेमभावना और दुश्मनी,
अबतक नहीं पहचाने हम ।

अपनी संस्कृति प्रेम अहिंसा
हमसब बुद्ध गांधी के देश के ।
जहां रचे बसे भारत दिल में,
हम उस भारतीय परिवेश के ।

बुद्ध महावीर की धरती है ये
हमें वैरभाव न कभी सिखाती ।
नहीं शत्रुता हम मित्रता रक्खें
हमारी सभ्यता सदैव बताती ।

रहे सत्य अहिंसा वादी गांधी
जन्मे शास्त्री लालबहादुर यहां ।
रामकृष्ण परमहंस का भारत
जन्में विवेकानंद से सपूत यहां ।

हम शत्रु किसी को नहीं मानते ।
ये विश्व बंधुत्व के भाव मानते ।
अब गया जमाना गांधीजी का,
क्यों मानस बदला सभी जानते ।

स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश

दिनांक .. 02/10/2019
विषय .. शत्रु

********************

मन में भले नही पर गाँधी,
सबकी जेब मे बसते है।
रंगभेद का परम पुरोधा,
रंगों मे ही बसते है॥
**
श्वेत वसन वो आधी धोती,
सादा सा जीवन जिनका।
भिन्न- भिन्न रंगों से भरा है,
मुद्रा मे तन मन उनका॥
**
गाँधी बाबा आपकी जय हो,
आप ही हो मन मन्दिर में।
रंग गुलाबी सबसे प्यारा,
बसा है जो अन्तर्मन में॥
**
लेकिन भाग्य से हीन शेर के,
जेब मे ''शत्रु'' गोडसे है।
जितना भी मै छुपा लू जेब में,
पर रहते नही उसमे हो॥
**
गाँधी बाबा अमर रहे,
उनकी हो जय जयकार सदा।
जिनके लाठी चरखे से ही,
भारत है आजाद यहाँ॥
**
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ

भावों के मोती
बिषय- शत्रु
लोभ, क्रोध, घृणा,अहंकार

शत्रु है हमारी सुख शान्ति के
इनसे हमें लड़ना होगा।
हर रिश्ते टूट जाते हैं इनकी वजह से
हमें इन पर काबू पाना होगा।
सिर्फ दुःख ही देते हैं ये दुश्मन
इनसे दूर दूर ही रहना होगा।
वरना रोते रोते गुजर जाएंगी उमर
यह खुद को समझंना और
दूसरों को समझाना होगा।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

2/10/2019
विषय-शत्रु
=
==============
वो हमारे शत्रु नहीं मित्र हैं
तुम नाहक ही घबराते हो
वो जब भी सामने आते हैं
तब बेमन से ही सही
हम उनको अपनाते हैं
शिक्षक हैं वो हमारे जीवन के
अधूरे,अपरिपक्व हैं हम बिन उनके
घूरती घाम सा दुख
व्यथित पीड़ित पीड़ा
अज्ञान का घनघोर अंधेरा
इन सबने है सबको घेरा
आशा की किरण का स्पर्श पा
हम चैन की श्वास हैं ले पाते
यदि ये शत्रु न होते जीवन में
तो सुख का लुत्फ नहीं उठा पाते
स्याह रात्रि के बाद ही तो
पूनम की रात भली लगती है
निंदारूपी वैरिन भी
सखी सी लगने लगती है
जब हम खुले हृदय से
निष्पक्ष भाव से
शत्रुओं को अपनाते हैं ।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®

आज का विषय, शत्रु
दिन , बुधवार

दिनाँक , 2,10,2019,

सबसे बड़ा शत्रु मन अपना ,
कठिन बहुत है इसे समझना ।
हरदम तरह तरह का सपना ,
देख देख कर रहे भटकना।
करुणा ममता दया भुलाये ,
लोभ मोह में फसता जाये ।
नाते रिश्तों की सब बातें ,
माँ की ममता की सौगातें ।
किया पिता का याद नहीं है ,
बंधु बहिन से राग नहीं है ।
काँटे लगते मित्र पड़ोसी ,
अभिमान की रहे मदहोशी ।
गद्दारी और बेईमानी,
की सब राहें हैं पहचानी।
घड़ा पाप का भरता रहता,
दया धर्म की बात न कहता।
बनकर शत्रु देह में बसता ,
अनहित करने को ही ठसता।
जीत सके जो मन को कोई ,
इंसा विकसित समझो सोई ।

स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश 

02/10/2019
"शत्रु"

################
शत्रु ही तो करते हमसे शत्रुता
मौका मिलते ही दिखाते नीचा
सामने से शत्रु प्रहार करते
पीठ पीछे भी छुरियाँ चलाते
हम खुद को वार से बचाते
शत्रु से सौ गज दूर ही रहते
तभी तो शत्रु वो कहलाते ।

शत्रुता गर अपने ही करने लगे
हरी जख्मों को भी कुरेदने लगे
बातों-बातों से डराने भी लगे
दामन खामोशी का थामने लगे
प्यार अपनापन भी भुलाने लगे।

या खुदा! ओ मेरे परवरदिगार
ऐ! मालिक तू ही इसे संभाल
लगी कैसी ये स्वार्थ की हवा
इंसानियत खो गई है कहाँ
अपने भी करने लगे शत्रुता
देखा हो जो ऐसी शत्रुता
तू ही बता जीए तो कैसे भला।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

भावों के मोती
विषय-शत्रु

____________________
भारत माता के लाल थे प्यारे
छोटे कद के सीधे-सादे
लाल बहादुर शास्त्री उनका नाम
हिन्दुस्तान करे उन्हें सलाम

देश से उनको प्रीत बड़ी
देश के सच्चे मीत वही
कष्ट सहकर भी हटे नहीं
किसी के आगे झुके नहीं

जीवन देश हित में लगाके
निज जीवन का रूप संवारा
निर्मल मन दुर्बल काया
जिया सदा ही जीवन सादा

श्रम की कसौटी पर खरे
देश के द्वितीय प्रधानमंत्री बने
शास्त्री जी ने अपना जीवन
किया देश के नाम समर्पण

शत्रु को झुकाने का उनमें सामर्थ्य
भर हृदयों में देशभक्ति का जज्बा
जय जवान,जय किसान का दे नारा
पाक को भारत के आगे झुकाया

अनुराधा चौहान -स्वरचित

नमन भावों के मोती
विषय :शत्रु
विधा :पद (छंदबद्ध कविता )

2 अक्टूबर 2019

दुश्मन मेरे चार मार दे

शिक्षा ,दिक्षा और नैतिकता,
रख जिंदे संस्कार शारदे ।
काम,क्रोध,लोभऔर लालच,
दुश्मन मेरे चार मार दे ।।

उच्च सोच,सादा पहनावा,
ज्ञान कभी भी गुप्त रहे ना ।
विषय ,वासना और नशा में,
मन मेरा ये लुप्त रहे ना।।

नाव बहे ना कभी लहर में ,
कृपया करके पार तार दे ।
काम,क्रोध,लोभऔर लालच,
दुश्मन मेरे चार मार दे ।।

घमंड,गुरुर,गुमान व गाली,
मन के निकट कभी नआयें।
वंदेमातरम,जय भारत माँ,
जन-गन-मन सब मिलकर गाएँ।

हीन भावना ,हिंसा जैसे ,
रखना दूर विकार शारदे ।
काम,क्रोध,लोभ और लालच,
दुश्मन मेरे चार मार दे ।।

आदर भाव सदा हो दिल में,
और साथ में धर्म , ईमान।
अंधे,अपंग,अपाहिज ,नारी,
मात-पिता,गुरुजनों का मान।।

विनती ,विनय व प्रेम ,प्रार्थना,
करना सब स्वीकार शारदे ।
काम ,क्रोध ,लोभ और लालच,
दुश्मन मेरे चार मार दे ।।

दान, दया ,सत्कर्म सहायता ,
और हवन नित रोज कराऊँ।
कन्या पूजूँ , पेड़ लगाऊँ ,
दुआ बड़ों की दिल से पाऊँ।।

ईश्वर भक्ति करूँ भाव से ,
हिला दे दिल के तार शारदे ।
काम,क्रोध,लोभ और लालच,
दुश्मन मेरे चार मार दे।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित कविता
मौलिक

दिनांक_२/१०/२०२९
शीर्षक-शत्रु

शत्रु नही मित्र हैं हम
निष्पक्ष, निश्चल निर्णय हमारा
मनोबल न टूटे तुम्हारा
कर्म करने से पहले
सोचों परिणाम तुम जरा।
चक्षु रखो सिर्फ लक्ष्य पर
दो त्याग तुम आलस्य आज
अनुशासनहीन न हो कर्म तुम्हारा
शत्रु नही हम मित्र हैं तुम्हारा।
लोभ क्रोध को भगाओ आज
प्रबल शत्रु आलस्य को दो त्याग ,
मानो बात समझो हालात
शत्रु है आवेश तुम्हारा,
आलस्य, विवेकहीनता,क्रोध,लोभ को जब तुम त्याग पाओगे
निश्चय ही तुम विजयी कहलाओगे।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

नमन् भावों के मोती
2/10/19
विषय शत्रु

विधा हाईकु

शत्रु की चाल
काश्मीर में आतंक
मकड़जाल

शत्रु से घिरा
निहत्था अभिमन्यु-
छल प्रपंच

ढूढ़ें न मिले
मित्रता आजकल-
शत्रु मण्डल

मिलते धोखे
मित्र बनते शत्रु
समय चक्र

मनीष कुमार श्री
स्वरचित
आज का शीर्षकः- शत्रु

अपने शत्रुओं रहना सदा ही सावधान।
समझना नहीं कमजोर उन्हें तू नादान।।

अशिक्षा को तो सबसे बड़ी ही शत्रु मान।
दूर भगायेंगे गुरु तेरे देकर विद्या दान।।

अगला नम्बर इसके बाद घमंड का आता।
घमंड तो रावण जैसे को भी नीचे गिराता।।

चाटूकार भी बड़े शत्रुओं में से एक है होता।
चढ़ा कर चने झाड़ पर तुझको मूर्ख बनाता।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्थथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित

भावों के मोती
विषय--शत्रु

दिनाँक--२/१०/२०१९

(शत्रु ) मुख़ालिफ़
इस शहर में दिल जब भी रहा,तन्हा ही हुआ
ना कोई मुख़ालिफ़ रहा,ना कोई हमनवां ही हुआ...

जब भी नापे रास्ते, दिल की सरजमीं के
हर कोई गुमनाम मिला,न कोई अपना ही हुआ...

दिलों ने बढ़ा ली है इस हद तक हमने दुश्मनी
जब भी कोई गमगीन हुआ,दिल खुश हमारा ही हुआ...

मोहब्बत भी की उसने,अदावत भी निभायी
गैरों की तरह मिला हमसे,जब भी सामना ही हुआ...

अब तो वहशत सी होती है मोहब्बत के नाम से
जिसको भी इश्क़ हुआ,वो हिज़्र में परेशां ही हुआ..

स्वरचित
अर्पणा अग्रवाल

विषय -शत्रु
दिनांक 2 -10 -2019
देशद्रोह की बात करें, वह शत्रु होता है।
दुश्मन का जो साथ दे, वह शत्रु होता है।।

पीठ पीछे करें बुराई, वह शत्रु होता है।
झूठा अपनापन दिखाए, वह शत्रु होता है।।

गलत बात करें समर्थन,वह शत्रु होता है।
अपनों को जो बहकाए,वह शत्रु होता है।।

झूठी हां में हां मिलाए,वह शत्रु होता है।
राह भ्रमित जो हमें करें, वह शत्रु होता है ।।

अच्छे कर्म करने से रोके, वह शत्रु होता है।
झूठ बोलना जो सीखाए, वह शत्रु होता है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली



No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...