Monday, October 14

"हलचल /थिरकन ""5अक्टुबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-526
विषय थिरकन,हलचल
विधा काव्य

05 अक्टूबर 2019,शनिवार

हलचल तो पक्की मानो
जब कोई हमको छेड़ेगा।
भारत के इस मानचित्र में
नया मोड़ भू पर आयेगा।

सत्य अहिंसा के साधक
मत परीक्षा रिपु तुम लेना।
हलचल क्या हड़कम्प मचेगा
लेने के पड़ जायँगे देना।

सब सुखी स्वस्थ रहे जग
बुद्ध युद्ध कभी न चाहते।
तुम सीमा के अंदर आये
हम सीमा घुस तुम्हे मारते।

मात पिता से जो लड़ते
कभी सुखी वे नहीं रहते।
थिरक थिरक जाए कलेजा
सिंह दहाडो को जब सुनते।

हलचल से ही यह जीवन है
हलचल से विकास जगत का।
प्रगति से नित हलचल होगी
समाधान होता हर संकट का।

चंद्रयान जब गया गगन में
हलचल तो होगी निश्चित है।
दृढ़ संकल्पित जीवन जीना
स्वास्थ्य हेतु अति उचित है।

बिन हलचल हक नहीं मिलते
हलचल में हम बड़े पले सब।
अगर उठाई देश पर उंगली
मिट्टी में घुल जाओ तुम अब।

स्वरचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा-- काव्य
प्रथम प्रस्तुति


खत्म हुईं न कभी हलचलें
हर मोड़ नयी कहानी है ।
जीवन क्या आनी जानी
बहता दरिया का पानी है ।

हलचल आतीं ही रहेंगीं
हवायें भी तूफानीं हैं ।
कब किस संग क्या करें बवाल
आदत सबने ही जानी हैं ।

हो चिराग या झील पहाड़
हर जगह कारस्तानी है ।
झीलों का पानी मीलों तक
उड़ा देय वो जवानी है ।

एक हवा ही नही यहाँ पर
जो देती आँखों में पानी है ।
लाखों लाखों शत्रु छुपे हैं
जो करते सदा हैरानी है ।

कितना शांत है सागर पर
लहरें वहाँ मनमानी हैं ।
हम सब मानव मात्र 'शिवम'
कुछ भी न एक सैलानी हैं ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 05/10/2019
5,10,2019,
हलचल


हलचल जीवन में बनी रहे माँ,
तेरे स्नेहमयी लाड़ दुलार की ।
मुझे जरूरत रहेगी हरदम ,
जगदम्बे के ममतामयी व्यवहार की ।
तेरे आँचल की छाया अम्बे,
हलचल जीवन में कर जाती ।
उत्साह उमंग की बड़ी धरोहर,
हमको आपसे मिल जाती ।
थिरकने पैरों में होने लगती ,
जब जगजगनी सामने होती ।
बलिहारी दुनियाँ हो जाती ,
जब जले भवानी की ज्योती।
धड़कन कितनी हलचल करती,
जब वरदायिनी सामने होती ।
माँग लूँ माँ से हर एक खुशी,
अजब मन की हालत होती।
आदिशक्ति सब जान रहीं,
भक्तों पर कृपा वे लुटा रहीं।
आओ हम सब भर लें झोली,
माँ बैठीं राह निहार रहीं ।

स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश 

दिनांक-05/10/2029
विषय-थिरकन


कंपन अधरों का

सुनामी लहरों की

मृदुल पांव की थिरकन

बीते सदा बसंती जीवन।।

नृत्य मयूरा का नर्तन

सिहरा -सिहरा मेरा मन

श्यामल श्यामल तेरा तन

यह कैसा विह्वल स्पंदन।।

सजल चांदनी सजा गगन

फिर भी आलिंगन मौन मगन

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
बिषय _#हलचल /थिरकन#
विधा _काव्य

जय आदिशक्ति मां जय अंम्बे,
कुछ हलचल इस जीवन में हो ।
हम सुनें मां कदमों की आहट,
धडकन मां हर जीवन में हो ।

सदा रहें हृष्ट-पुष्ट हम माते.,
मां शरीर सौष्ठव बना रहे.।
थिरकन हो सबके पैरों में ,
हर जन यहां सौष्ठव बना रहे ।

धीर वीर गंभीर बनें हम.,
सदैव चलें हम प्रगति पथ पर ।
स्वधर्म कर्म पर बढें निरंतर,
चलें लगातार सद्गति पथ पर.।

मान सम्मान स्वयं हम चाहें ,
फिर क्यों न सबका मान रखें ।
हलचल हो इस मधुवन सुंदर ,
कुछ मन थिरकन का भान रखें ।

मातकृपा के हम आकांक्षी,
हमें जरूर मिलेगा सब चाहें ।
हरक्षण धडकन थिरकन होती,
नियत सभी जीवन में मानें ।

स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश

5 /10/2019
, बिषय, हलचल/थिरकन

यहाँ वहाँ कुछ हुई है हलचल
दिल की धड़कनें बढ़ गईं हैं
पत्ता से गिर पड़े हैं हम भी
यादें परवान सी चढ़ गईं हैं
वो बचपन का अतीत मैंने थोड़ा चुरा लिया है
बैठकर कोने में इर्दगिर्द कतरा कतरा बिछा दिया है
लौटेगी न वह जिंदगी जो मुझसे बिछड़ गई है
छोटे छोटे भाई बहिन आज सब हो गए बड़े
अपने जीवन में मस्त हो बच्चों की उंगली पकड़ खड़े
रिश्ते नातों की गहरी नींव
उखड़ गई है
मासूम बचपन की जब याद आती है
सच कहूं बस आँख भर आती है
जब अतीतों के साए में घिर जाती हूँ
बस घायल हिरनी सी छटपटाती हूँ
हाथ पैर की थिरकन पारंपरिक बेड़ियों में जकड़ गई
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

विषय- हलचल,थिरकन

तुमको देखें जब सजन, धड़कन क्यों बढ़ जाय
मन में हलचल सी मचे,नयन मेरे झुक जाय
लगता ऐसा हो रहा हम को पहली बार
चैना हमको न मिले , दिन-रैना सब जाय

नर्तन मेरा मन करे ,जैसे नाचत मोर
तकते तकते राह भी , हो जाती है भोर
थिरक-थिरक हम नाचते,ढूंढत है चहुँ
ओर
आंखें जल से हैं भरी,अंसुअन टपके कोर

सरिता गर्ग
05/10/2019
"हलचल/थिरकन"

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हवा का झोंका ऐसा आया
मन में हलचल मचा गया
नैनों की चंचलता बढ़ा गया
अधरों पर थिरकने दे गया।

ठहरे हुए पानी में कंकड़ जो गिरा..
हलचल हुई औ वृताकार तरंगें बना गया
मानो जिंदगी का संतुलन बिगड़ गया
ठहराव में उथल-पुथल मचा गया...।

राहों में कोई अपना सा मिल गया
सफर का वो हमराही जो बन गया
उसे ख़ुदा बना दिल में बसा लिया
खामोश मन के आकाश में हलचल दे गया।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

5/10/2019
विषय-हलचल/थिरकन
~
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ये मन बड़ा चंचल है
यहाँ प्रति पल होती हलचल है
इसको काबू में करना होगा....

सागर की लहरों में हलचल है
निज मन के भीतर कोलाहल है
आवेशित हो कंकड़ किसी ने फेंका होगा..

दिल की गहराई में तो शांत जलधि है
अकंपित अलौकिक दिव्य अलख है
गहन ध्यान से ही परम तत्व प्रस्फुटित होगा..!

तन मन अंग अंग में होती थिरकन है
शीतल मंद हवाओं की सी सिरहन है
संग हवा के हमें भी बहना होगा...

माँ के द्वार में गहन शांत सी नीरवता है
चित्त शांत है यहाँ,न जग की हलचल है
मैया का साक्षात्कार हमें यहीं पर होगा...

सच्ची श्रद्धा से नवरात्रि हम मनाएं
सद्भावना सहयोग की राह अपनाएं
सच्चा व्रत त्यौहार तभी फलीभूत होगा. !!

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®

दिन :- शनिवार
दिनांक :- 05/10/2019

शीर्षक :- हलचल/थिरकन

है हलचल थोड़ी...
हो रही सुगबुगाहट भी..
कहीं बन रहे दीये माटी के...
कहीं पटाखों की आहट भी..
मन उन्मादित हो रहा..
दीपावली के आगमन में...
जले दीया माटी का..
हर घर के आँगन में...
है ख्वाहिश बस इतनी सी...
गरीब के घर भी खुशियाँ हो...
रहे दीवाली उनकी भी खुशहाल...
बस इतनी सी कोशिश हो...
मेहनत का उनको फल दे देना...
चार दीये ही सही...
पर माटी के ले लेना...
आस उनकी टूटे न...
खुशियाँ उनसें रूठे न...
चुनियाँ, मुनियाँ सब खुश हो जाए...
ऐसा करम कुछ कर देना...
खुशियाँ खिले हर आँगन..
बस इतना रहम कर देना...

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

5/10/19
विषय-हलचल


कभी न कभी

मन की दहलीज पर
स्मृति का चंदा उतर आता
यादों के गगन पर,

सागर के सूने तट पर
फिर लहरों की "हलचल"
सपनो का भूला संसार
फिर आंखों में ,

दूर नही सब
पास दिखाई देते हैं
न जाने उन अपनो के
दरीचों में भी कोई
यादों का चंदा
झांकता हो कभी,

हां भुला सा कल सभी को
याद तो आता ही होगा
यादों की दहलीज पर
कोई मुस्कुराता ही होगा
कभी न कभी ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी ।

 भावों के मोती
शीर्षक- हलचल/ थिरकन
है थिरकन नये गीतों की

मेरे मौन दिखते अधर पर।
है आहट उसके आने की
मेरी सांसों की सरगम पर।।
हुए ख्वाब अब जाके पूरे,
पड़े हुए थे कब से अधूरे।
स्वप्न सतरंगी सज गए
मेरे दृगों के कैनवास पर।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

दिनांक 05/10/2019
विधा:आराधना
विषय :हलचल/थिरकन
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हलचल है चहुँ ओर देखो माता आई है।
सजे हुए पंठाल रोज नित नये रूप मे।
मेले लगे अथाह मिले गुब्बारे झूले
बच्चों की है मौज देखो मइया आई है।
आज कालरात्री योग माँ की शक्ति का
स्तुति देती बोध हमे अपनी छमता का।
हलचल ....
मन मे थी हलचल अपने आने वाले कल की
देख वृद्धों का हाल अपने आसपास अब।
कोई चलने को मोहताज कोई देखने को
पल पल गिरता देख उन्हे हरदिन हर पल ।
माँगू माँ से एक दुआ उन परिवार जनो की
कृपा दृष्टि कर दो उन पर हर लो दुःख उनके ।
थिरकूँगी चहुँ ओर देख उनको खुश मै भी
सदा करूंगी गान आपकी हर नवराते।।
हलचल...
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

भावों के मोती
५/१०/२०१९
विषय-हलचल

चित अतृप्त व्यथित , व्याकुल चंचल,
कुछ पाने को, नित रहे आकुल

सुप्त ज्ञान बुद्धि, विवेक निश्चल,
इक पल को भी , न पड़ता कल।

भावों की गगरी, भरी छल छल,
हृदय मची, हलचल हलचल।

मैं विवश व्यथित, प्यासी हरपल,
नहीं स्वार्थ रहित, न हूं निश्छल।

पीती रहती, चुपचाप गरल,
हर ओर मचा है, कोलाहल।

कुछ पाने को, अंतर आकुल,
ये छलना छलती, पल पल पल।

इन सबसे दूर, मैं जाऊं निकल,
उर रस की धार, बहे अविरल ।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

भावों के मोती
विषय-हलचल/थिरकन
================
यादों की बदली-सी छाई
ख्व़ाबों में दिखी इक परछाई
आँखों में अश्रु थिरकने लगे
मन के भावों ने ली अंगड़ाई

हलचल-सी मची सीने में
रिश्तों की महक संग ले आई
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें
याद आईं कुछ बीती बातें

अमराई की सौंधी खुशबू
ज़ेहन में सरसों फूल उठी
रेहट की खट-पट, खट-पट
बैलों के घुंघरू की गूँज उठी

मटके की थाप पे थिरक उठे
पर्दे में छिपे गोरे मुखड़े
पायल की मधुर रुनझुन-रुनझुन
चूड़ियों से खनकते घर के कोने

पर्दे, घुंघरू,रेहट,सरसों
बीत गए इन्हें देखे बरसों
सब चारदीवारी में सिमट गए
पत्थरों के शहर में जो बस गए
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित 

5/10/2019
विषय थिरकन,हलचल
विधा हाइकु

जीवन बना
पैरों में थिरकन-
नृत्यांगना के

आतंकवाद
घाटी में हलचल-
रक्त नदियां

प्रेम पत्रिका-
दिल में हलचल
डाकिया बाँटे

थिरके पाँव
मोबाईल की घण्टी
पिया का चित्र

मनीष श्री
स्वरचित

विषय--हलचल, थिरकन
लघु कविता

हम दूर सही मगरूर सही, पर याद तुम्हें आती होगी।
जब याद तुम्हें आती होगी ,दिल में हलचल होती होगी।।

तुम चली गई जीवन ही गया, जीवन का सार तुम्ही से था।
जब भी तुम घर आती होगी, आँखें तो नम होती होंगी।।

इक बात कहूँ यदि बतलाओ,क्या फोटो अब भी रखती हो।
यदि देखा होगा उस फोटो को,दिल में हूक उठी होगी।।

जब याद हमारी आती होगी, तुम कैसे उसे झुठलाती हो।
यादों के समन्दर में तुमने, दिल से तो आह भरी होगी।।

बेवफा तुम्हें हम कैसे कहें,जब खुशियाँ ही हमसे रूठी हों।
एकांत क्षणों में तुमने भी, आँखें अपनी नम की होंगी।।
छोड़ो इन पुरानी बातों को, अपने साथी में खो जाओ।
फिर भी यदि याद कभी आए, आवाज एक बस दे देना।।

जब भी हलचल इस दिल में हो, बस याद हमें तुम कर लेना।
हम दूर सही मगरुर सही, पर खुशियाँ तुम्हें दे जाएंगे।।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
रैनी, मऊ उत्तरप्रदेश

दिनाँक-05/10/2019
शीर्षक-हलचल , थिरकन
विधा-हाइकु

1.
छाए बादल
हलचल नभ में
ओझल रवि
2.
चाँदनी रात
हलचल दिल में
प्यार की बात
3.
आती बरखा
हलचल पेडों में
फूटी कोपलें
4.
नृत्य डांडिया
थिरकन पैरों में
संग साथिया
5.
मिले नयन
हलचल दिल में
संग प्रेमिका
**********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

विषय थिरकन
विधा कविता
दिनांक 5.10.2019
दिन शनिवार

थिरकन
💘💘💘💘

दिल की रखनी यदि मस्त धड़कन
तो जमानी होगी पैरों की थिरकन
धीरे धीरे सब किनारे होंगी
जो परेशान करतीं हैं अड़चन।

थिरकनों में सुन्दर अन्दाज़ है भरा
थिरकनों में जीवन का साज है भरा
परेशानियाँ बेकार की दूर रहें कैसे
इस दवा के सूत्र का राज़ है भरा।

आओ थोडा़ थिरक लें मिलकर
आओ थोडा़ थिरक लें हिलकर
जब सबकी उमंगें मिलकर थिरकतीं
तो वेदनायें कैसी भी हों वे भी सिहरतीं।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर

दिनांक_५/१०/२०१९
शीर्षक-हलचल/थिरकन।
हो गई है हलचल शुरू
लौहनगरी की बढ़ी है थिरकन
घर घर माँ देवी की पूजा
अलौकिक छवि में आई माँ दुर्गा।

करें जब हम देवी की पूजा
क्यों भूले घर की नारी, देवी स्वरूपा।
हर नारी है देवी समान
कभी ना हो उनका अपमान।

शंख घंटा की ध्वनि जब बाजे
मन की हर विकार दूर भागे
थिरकने लगे हैं सभी नर नारी
डांडिया रास की अद्भुत तैयारी।

घर घर हो पूजा की हलचल
थिरके हर कदम,हर घर हो उत्सव
करूं मैं आराधना देवी माँ
दे दो तुम ऐसा वरदान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

5/10/19
शीर्षक-हलचल
क्या करूँ इन यादों का,
जो बिन बताए आ जाती हैं,
हृदय में करती हैं हलचल,
और आँखें आँसू बहाती हैं,
यादों की ये नाव,
हृदय सागर में चलती है,
आँसूओं के भँवर में फिर,
तस्वीर तेरी बनती है,
लबों पर लाकर मुस्कान,
दुख अपना छुपाती हूँ,
अरमानों की हलचल में,
जज्बात अपने छुपाती हूँ,
साया तेरी यादों का,
हरपल साथ रहता है,
हो आसपास मेरे,
मन सदा ये कहता है।
***
स्वरचित रेखा रविदत्त


विषय - हलचल / थिरकन

1

प्रेम हिलोर
मची है हलचल
ह्रदय सिंधु

2

घूंघट पट
हिय में हलचल
प्रिय दर्शन

3

लज्जा के गाल
मन की थिरकन
हुए हैं लाल

4

आतंकवाद
देश में हलचल
उखाड़ फेंको

5

बाँध घुँघरू
थिरके काले मेघ
नाचे मयूर

6

मन अंचल
जीवन हलचल
दुख के पल

7

मियादी प्रेम
देशभक्ति का ढोंग
नेतायी रोग

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )

हलचल /धिरकन

छंदमुक्त कविता

है कुछ
हलचल सी
जिन्दगी में
एक तरफ
मौत है तो
दूसरी तरफ
जीने की आशा

थिरकने सी
लगती है
जिन्दगी
जब कोई
अपना सा
मिल जाता है
जिन्दगी में

थम जाती है
हलचल
शरीर की जब
टूट जाता है
कोई अपना तब

थिरकती रही है
जब तक वो
घर आँगन में
रहा आबाद
घर संसार
सहती रही
दुख तकलीफ
करती रही
घर में नव संचार

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

हलचल

धरती माँ तुम
जन्मदायिनी हो ,
जीवन दायिनी हो
पर तुम्हारे सीने की
हलचल
लील लेती हैं जिंदगी
पैरों की थिरकन
तुम्हारी ,मिटा
देती हैं सभ्यताएं।
माँ कहते हैं सब तुम्हें
बच्चों की चीखें क्या
तुम्हें सुनाई नहीं देती
वो उजड़े घर
उजड़ी माँग
तुम्हें द्रवित नहीं करते ,
या तुम्हारे द्रवित होने
से तरल बाहर निकल
चक्रवात ले आता ।
ये हलचल
बंद करो माँ ...
स्वरचित
अनिता सुधीर






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