Monday, October 14

"विवेक" 27 सितम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-518
दिनाँक-27-09-1019
विषय-विवेक

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
⚛️⚛️विवेक⚛️⚛️
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सही गलत में अंतर जाने
सच की धार को जो पहचाने
मन में भाव रखे जो नेक
कहलाता है वही विवेक।
बुद्धि सभी के पास हो सकती
विवेक भी हो अनिवार्य नहीं
दोनों प्रतीत एक से होते
लेकिन होते पर्याय नहीं।
कठिनाई में धैर्य जो रखता
लक्ष्य जो रखता है एक
कहलाता है वही विवेक।
मुश्किल में पहचान है होती
चुनते जो भावों के मोती
कभी नहीं वो निष्फल होते
बीज सदा जो सच का बोते
जड़ता को जो देता फेंक
कहलाता है वही विवेक।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
सर्वेश पाण्डेय
स्वरचित

प्रथम प्रस्तुति

विवेक शून्य हो जाता है
जब बुरा वक्त आता है ।।

जन्मों के कर्मो का बोझ
हमको यहाँ झुकाता है ।।

किस तरफ झुके ये पलड़ा
इंसा समझ न पाता है ।।

पल भर में क्या कर जाय
इंसा कठपुतली कहाता है ।।

कुलीन घर की थी कैकई
क्योंकर बनी कुमाता है ।।

क्यों वो विवेकहीन हुई
फ़लसफ़ा कुछ बताता है ।।

आसाराम सा ज्ञानी भी
जेल में वक्त बिताता है ।।

विवेक अविवेक सबमें है
सिर्फ प्रभु हमें बचाता है ।।

प्रभु चरणों में रमों 'शिवम'
अनुभव यही सिखाता है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/09/2019
दिनांक_२७/९/२०२९
शीर्षक -विवेक

छंदमुक्त कविता
आज विवेक रो रहा
करके इंतजार,
सो रहा ,
आकर कोई जगाये उसे
मन की बात
सुनाये जिसे
कल तक लोग देते थे
मान सम्मान
आज सिसक रहा,कोने में आज
सौतेला भाई "अभिमान "हो गया है
ज्यादा ताकतवर
कोई तो आकर उठाये उसे
फिर से जाग जाये इंसान
ले फिर विवेक से काम,
बिना विवेक,इस धरा पर
कैसे हो सुखी इंसान।
विवेक जब जाग जायेगा
नही फिर होगा बँटवारा
माँ-बाप का,
एक बेटा के हिस्से में माँ और
दूसरे बेटा के हिस्से में बाप को जाना होगा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

27 सितम्बर 2019,शुक्रवार

बुद्धि चातुर्य और कौशल
संस्कार से अंकुरित होते।
ज्ञान प्रकाश से हर मानव
कर्म बीज जीवन मे बोते।

स्वविवेक चिंतन मनन से
साधक को सिद्धि मिलती।
सत्य असत्य अंतर करता
विद्वजनों में होती गिनती।

मानव विवेक जब मरता
वह दानव जग कहलाता।
सदा असत्य मार्ग चलता
स्वयं रोकर जन रूलाता।

विद्व विवेकी निज ज्ञान से
सत्य अहिंसा पहने बाना।
परोपकार का जीवन जीता
सदा गीत खुशी के गाता।

सत्संग व्यवहार स्नेहमयी
सदशिक्षा विवेक जगाती।
क्या सत्य है क्या असत्य
वह दोनों में भेद बताती।

बिन विवेक जीवन है शून्य
विवेक हमें सदमार्ग चलाता।
पाप आवरण सदा हटाकर
पुण्य मार्ग नित हमें बताता।

स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


विषय-विवेक
विधा-दोहा

1)अपने विवेक से करो,सही गलत का ज्ञान।
हर मुश्किल होने लगे,देखो फिर आसान।
2) बनते हैं विवेक सदा,सारे बिगड़े काम।
रख धीरज जो ध्यान दे,मिलता है आराम।
3)संयम विवेक से रहे,जो ज्ञानी इन्सान।
फैलाता है जगत में,वो सदैव ही ज्ञान।
4) जो हैं हीन विवेक से,उनसे रहिये दूर।
ज्ञानी होकर भी रहे,जो घमंड से चूर।
5)जब हो विवेक हीनता,कैसे फैले ज्ञान।
प्राणी स्वार्थी ही रहे, फिर कब बने सुजान।
स्वरचित श्रद्धांजलि शुक्ला"अंजलि"



27 //9//2019
बिषय,, विवेक,,

जहां विद्या विनय विवेक का मान
जहाँ सरस्वती का सम्मान
जहाँ न हो अभिमान
वहाँ स्वत:ही होते सारे काम
वहीं रहता लक्ष्मी का बास
वहीं रिध्दी सिद्धि करतीं निवास
जहाँ दया धर्म क्षमा का स्थान
उस हृदय में बसते भगवान
जहाँ त्याग सहनशीलता अरु प्यार
जहाँ धैर्य संयम मीठी वाणी का ब्यवहार
.वह घर नहीं स्वर्ग का है द्वार
. जहाँ सत्य सनातन का संचार
वहाँ ठहर नहीं सकते कुसंस्कार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार



विषय-विवेक
==
===========

बुद्धि, विवेक से पूरित
मानव जीवन है हमें मिला
फिर भी जीवन भर हम हर किसी से
करते रहते हैं गिला
हीरा सम निजअस्तित्व को परखने हेतु हम जौहरी नहीं बन पाते हैं

बुद्धि विवेक में प्रखरता भरकर
नव जीवन में जीवंतता लाकर
क्यों नहीं हम मिलजुल कर शांति से,इस जग चमन में रह पाते हैं ?

शुद्ध विचार से पूरित शुभ संकल्प हों
सहज विवेक बुद्धि से सभी जन युक्त हों
सरस रसभीनी मीठी वाणी वाले प्राणी
पशु से भिन्न विवेकवान मनुज कहलाते हैं

उदारमना प्रकृति हमें यही सिखाती है
भेदभाव रहित हो प्रचुर सम्पदा लुटाती है
विवेकवान मनुज होकर भी क्यों हम
इस अनुपम शिक्षा से विमुख हुए जाते हैं ?

सत्य-असत्य,उचित-अनुचित का ज्ञान
ये जीवन है जग रूपी संग्राम
नीर क्षीर विवेक की तलवार के द्वारा ही जीवन युद्ध जीते जाते हैं ।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®



विषय- विवेक
सादर मंच को समर्पित -


🌹🌴 गीत 🌴🌹
***************************
🌹 विवेक 🌹
छंद - लावणी
मात्रा =30 ( 16+14 )
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️

झाँक चलें रे मन मन्दिर में ,
सत्य सदा ही स्वीकारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।

सृष्टि सँजोती प्रकृति रुपहली ,
कण-कण संजीवन बोती ।
पग-पग पर बिखरीं हैं खुशियाँ ,
चुन लें हम सागर मोती ।।
मानव श्रेष्ठ बनाया जग में ,
बुद्धि , विवेक , ज्ञान पाया ।
संवेदना प्यार उपजाया ,
गर्मी , शीत ,पवन छाया ।।

चन्दन माटी द्रव्य खजाना ,
नत मस्तक हो सिर धारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।

बड़े भाग्य मानव तन पाया ,
मिली साँस हैं गिनती की ।
क्या था करना , क्या करते हम,
उड़ें उड़ानें नभ ऊँची ।।
आज रेत पर दौड़ चल रही ,
भूल जमीनी सच्चाई ।
कागज की नावें गल जातीं ,
अंधी होड़ न सुखदायी ।।

जीवन मर्म जान लें मितवा ,
अभी साँस कल भू धारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।

जैसी करनी वैसी भरनी ,
यहीं कर्मफल मिल जाये ।
फिर पछताये क्या रे बन्दे ,
चिड़िया खेती चुग जाये ।।
सुबह भूल कर शाम लौटता ,
भूला नहीं कहाता रे ।
अब भी देर नहीं है मीता ,
अन्त भला सुख पाता रे ।।

यह दुनिया तो रैन बसेरा ,
पंछी फिर उड़ संचारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।

🌹🌴🌻🌸

🍀🌹...... रवीन्द्र वर्मा
37ए/111डी , मधु नगर ,आगरा



27/08/19
विवेक

***
भटकाव लिये मन हुआ दिशाहीन,
बोझ इच्छाओं का अब अंतहीन ।
शक्ति ,धैर्य विवेक का हुआ ह्रास,
मद के नशे में जन अस्तित्वहीन।।

भ्रष्टाचार का बोलबाला आज,
बिना रिश्वत न कोई होता काज।
सिद्धान्तों की बलि चढ़े बार बार ,
कुटिल चालों से क्यों न आयें बाज ।।

आधुनिक युग में खो रहे संस्कार,
आवश्यक है अब इसका उपचार।
नैतिकता को बना के शस्त्र आज,
सभी बुराईयों पर करें प्रहार ।।

बने नहीं जो इच्छाओं का दास ,
विषम परिस्थिति में रखे रहे आस।
वो जग में कर जाते अपना नाम,
संस्कार के मान से रचें इतिहास ।।

स्वरचित
अनिता सुधीर



आज का विषय, विवेक
शुक्रवार

27,9,2019,

संस्कार और संगत मानव की जब होती है उत्तम ,
मानव मन में ठहर नहीं सकता है तब मति भ्रम ।
भला बुरा अपना सब कुछ ही समझ सकते हैं हम ,
होते हैं इस संसार में पर ऐसे लोग बहुत ही कम ।
विवेकवान जब तक रहता है ज्ञान का धारक ,
रह पाता है तभी वह मानवता सही का प्रचारक ।
विवेकहीन ज्ञान सदा ही बन जाता विनाश का कारक ,
रावण से ज्ञानी भी तो बन गये थे पाप के साधक ।
जब विवेक हो साथ हमारे रहें नहीं राह में कंटक ।
बन जाता विवेक हमारा हर बाधा का उद्धारक ।

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,



विषय विवेक
विधा छंदमुक्त काव्य

विवेक मरा
जिंदगी रुठी
हसरतें अधूरी
दुनिया झूठी
कोमल आशा
हुई निराशा
जिज्ञासा अपनी
रही अधूरी
विवेक बचा
जीवन हंसा
किस्मत खुली
जिन्दगी की पोटली
पूरी दुनिया रहती दीवानी
विवेक कसौटी

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली


27/09/2019
"विवेक"

लघु कविता
-----------------------------------
विवेक जब गुम हुआ
मानव मन क्रुर हुआ
मानवता को भूल गया
क्षुद्र स्वार्थ के अधिन हुआ।

विवेक से जब काम लिया
मुश्किल राह आसान हुआ
हौसला भी न कम हुआ
मुसीबतों में मुस्कान खिला।

विवेकी इंसां न होता नादां
मन ,बुद्धि ,अहंकार को भी
वश में अपने कर लिया
अपना स्वरुप समझ लिया।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।



विषय-विवेक

निज विवेक पर ध्यान दे,होते चतुर सुजान।
आफत के तूफां उठें , उनको लेते
जान।।

मेधा,बल उपयोग कर,काग बचाये प्राण।
जल-घट कंकड़ डाल के,प्यासा पाया त्राण।।

समझ बूझ से वो तुरत,उसपर देते ध्यान।
कर जाते पल में सभी, कारज कई महान।।

हे भगवन देना हमें, बल विवेक औ तेज।
दुष्कर्मों से हम सदा , किया करें परहेज।।

मेधा सीधी ही चले , चले न टेढ़ी
चाल।
हम कर जायें जगत में ,पैदा एक मिसाल।।

सरिता गर्ग



बिषय- विवेक
हे प्रभु! कर दो शुद्ध विचार हमारे

हम न कभी किसी का बुरा विचारें।
सत्य वचन , दृढ़ संकल्प के सहारे
तुफां में भी जोवन नैया पार उतारें।।

मानव तन का सदा सदुपयोग करें।
बुद्धी विवेक के साथ हर कदम धरें।
खुद में छुपे बल को सही से जान लें।
तद्नुसार पूर्ण अपने हर काम करें।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर



भावों के मोती
विषय-विवेक

===========
क्रौध में इंसान का
बुद्धि-विवेक क्षीण होने से
बिगड़ जाते कई रिश्ते
टूट जाते संबंध
अच्छा-बुरा भूलकर
बेकार के किस्सों में उलझकर
एक-दूसरे को नीचा दिखाने में
खुद भी नीचे गिर जाते
कहाँ छुपा बैठे हैं सब
अपनापन पहले जैसा
मतभेद इतने बड़े हो गए
विवेक पे दीमक से लग गए
समय के साथ बदले
परिवेश की ही यह देन है
समय-समय पर झाड़ते
रिश्तों पर जमीं धूल को
प्यार से सहलाते
बुद्धि-विवेक को अपनों की
भलाई में लगाते तो
आज यह मतलब की
खड़ी दीवार न होती
विवेक पे लगी दीमक
खोखली कर रही
सोचने-समझने की शक्ति
इंसान की मार से घायल
आज़ यह इंसानियत न रोती
इंसानी भेष में छुपी
हैवानियत आजाद न फिरती
किसी मोड़, किसी नुक्कड़ पर
न कोई बेटी सिसकती
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित 


विषय -विवेक
दिनांक 27 -9- 2019

विवेक से कार्य कर,कभी न अपमानित होय।
जो विवेक काम ना लिया, जानवर तू कहलाय।।

प्रभु श्रेष्ठ रचना, तू सदा कहलाय।
विवेक के ही कारण, मनु योनि तू पाय।।

कर अच्छे कार्य, विवेक तू लगाय।
देश विकास में हाथ बटा, देश आगे बढ़ाय।।

विवेक नहीं जिसके पास, पागल वह कहलाय।
है विवेक तेरे पास, तू क्यों न यश पाय।।

दिया प्रभु विवेक तुझे ,जहां में पहचान बनाय।
अनमोल जीवन को, व्यर्थ ना तू गवांय।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली



विषय--विवेक
दिनाँक--27/9/2019

रख लो वाणी में विन्रमता
स्वभाव में मधुरता रख लो
जब भी आए दुविधा कोई
साथ में अपने विवेक रख लो

ना घबरा आँधी तूफानों से
बन जा अंधेरे का दीपक तू
चले जब भी हवा कोई
कर ले अर्श की ओट तू
निज मन में अपने हिम्मत का संचय कर लो
जब भी आये दुविधा कोई
साथ में अपने विवेक रख लो

कर बाधाएँ पार, कोशिश कर जरिया बन जा
सागर से मिलने को आतुर, नदियां बन जा
मिलेगी एक रोज मंज़िल, दिल में उम्मीद रख लो
जब भी आये दुविधा कोई
साथ में अपने विवेक रख लो

स्वरचित
अर्पणा अग्रवाल



27/09/19
विषय-विवेक

हे मानव
आत्म ज्ञानी बन
आत्म केन्द्रित नही
पर अस्तित्व को जान
अनेकांत का विशाल
मार्ग पहचान
"जियो और जीने दो"
"मै ही सत्य हूं "ये "हठ "है
"हठ- योग" से मानवता का
विध्वंस निश्चित है
समता और संयम
दो सुंदर हथियार है
पास हमारे "विवेक "से
बस उपयोग करें
जीवन को सार्थक बनाएं
पर हितार्थी बनें
फिर भव परभव
हर जगह आनंद ही आनंद।

स्वरचित

कुसुम कोठारी।




27/09/19
शुक्रवार
विषय - विवेक
कविता

मानव ने विवेक खोकर यह कैसा कुत्सित मार्ग चुना,
मन की बेचैनी का कितना यह दूषित प्रतिकार गुना।

नशाखोर बनकर उसने जीवन अपना अभिशप्त किया ,
तन -मन-धन तीनों कोषों का वैभव समझो नष्ट हुआ।

इस शराबखोरी ने उसके जीवन का रस चूस लिया ,
मात्र हड्डियों का ढाँचा बन मृत्यु का दर ढूँढ लिया ।

उसको क्या मालूम कि उसपर कितनी जिम्मेदारी थी,
माँ की आस , पिता के सपने ,पत्नी की खुशहाली थी।

अब उसके अभाव में कैसे वे जीवित रह पाएँगे ,
गहन वेदना से आहत हो जीते जी मर जाएँगे ।

सच है नशा किसी व्यक्ति के हित में कार्य नहीं करता,
इस गंभीर समस्या का कोई प्रतिकार नहीं करता ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर



तिथि 27/9 /2019 /शुक्रवार
बिषय __विवेक
विधा __काव्य

संयम विवेक दोनों ही मेरे
पता नहीं कहाँ खो गए हैं ।
मै अपने वश में नहीं रहा,
जब से कहीं ये सो गए हैं ।

सब संस्कृति संस्कार भूले.।
रह गए यहां सभी अकेले.।
विवेकहीन हुए हम तभी से
आजतक नहीं हो पाए दुकेले ।

विवेकवान ही तो ज्ञानवान है ।
ये सबसे बडा सामर्थ्यवान है ।
विद्वान इसी को मानते सभी
विवेकशील ही तो पहलवान है ।

मरा विवेक तो फिर क्या बचा ।
विवेक शून्य सिर्फ ढोंग रचा ।
जिंदगी को सडी गली मान लें
विवेक नहीं तभी तो शोर मचा ।

स्वरचित ::
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी

1भा#विवेक #काव्य
27/9 /2019 /शुक्रवार



विवेक

न खोए विवेक कभी
चाहे हो कितना ही
मुश्किल समय

चलती है
जिन्दगी सुगम
कर्मठता और
ईमानदारी से
साथ हो अगर
विवेक साथ
सोने पे
सुहागा हो जाए

है
दुनियां की
पूँजी
सबसे बड़ी
हिम्मत
बदल जाती है
ये कर्मठता में
हो साथ
अगर विवेक

विवेक है
जीवन का
एक सत्य
जितना रहोगे
पास इसके
पाओगे सफलता
उतनी जीवन में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल


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