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ब्लॉग संख्या :-525
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4 /10/2019
बिषय ,स्पर्श
अति वृष्टि से गांवों में हाहाकार मचा
फसलें चौपट हो रहीं न कोई त्यौहार बचा
कभी फसलों को को देखे
कभी तकता है आसमान
इस बरबादी को देख रोता है किसान
गर्मी सर्दी में में मेहनत करता दिन रात
यही सोच कर प्रभु देंगें सौगात
पर प्रकृति को उसकी खुशियां रास नहीं आईं
नयनों को कर स्पर्श उल्टे पांव लौट गईं
इसके सिवाय और नहीं कोई चारा
अति वृष्टि अनावृष्टि की मार से जूझता बेचारा
समझौता ही इसकी नियति है
भगवान पर ही निर्भर अवनति उन्नति है
मौसमी मार को सदा ही सहता है
अब नहीं तो फिर सही कहता है
शहर में त्यौहार ,गाँव में मौसम की मार
किसान खुश तो देश खुशहाल
आशावादी होने से थोड़े में ही हो जाता निहाल
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय ,स्पर्श
अति वृष्टि से गांवों में हाहाकार मचा
फसलें चौपट हो रहीं न कोई त्यौहार बचा
कभी फसलों को को देखे
कभी तकता है आसमान
इस बरबादी को देख रोता है किसान
गर्मी सर्दी में में मेहनत करता दिन रात
यही सोच कर प्रभु देंगें सौगात
पर प्रकृति को उसकी खुशियां रास नहीं आईं
नयनों को कर स्पर्श उल्टे पांव लौट गईं
इसके सिवाय और नहीं कोई चारा
अति वृष्टि अनावृष्टि की मार से जूझता बेचारा
समझौता ही इसकी नियति है
भगवान पर ही निर्भर अवनति उन्नति है
मौसमी मार को सदा ही सहता है
अब नहीं तो फिर सही कहता है
शहर में त्यौहार ,गाँव में मौसम की मार
किसान खुश तो देश खुशहाल
आशावादी होने से थोड़े में ही हो जाता निहाल
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय स्पर्श
विधा काव्य
04 अक्टूबर 2019,शुक्रवार
जिस भूमि पर जन्म मिला
आओ भाल से स्पर्श करें।
परोपकार की चादर धारण
परहित डग नित चरण धंरे।
मात पिता को चरण स्पर्श
अग्रज गुरुओं चरण स्पर्श।
विश्व नियंता प्रिय परमेश्वर
सादर चरण आपको स्पर्श।
बिगड़े काम बने स्पर्श से
माँ स्पर्श शिशु सो जाता।
सद्ग्रन्थों स्पर्श अध्ययन
महा मूर्ख विद्वान कहाता।
हरे घाव मरहम स्पर्श से
दर्द हरण सुख शांति देता।
खून पसीना सदा बहाओ
स्नेह स्पर्श हर पीड़ा हरता।
गौतम् नारी श्राप अहिल्या
चरण स्पर्श से राम तार दी।
चरण कमल स्पर्श ईश को
भक्त उतारें मङ्गल आरती।
चिकित्सक के स्नेह स्पर्श से
पीडित की पीड़ा हर जाती।
कर स्पर्श अभिवादन से मिल
सदा दोस्ती अति मन भाती।
पारस स्पर्श करता है लोहा
बन जाती है कंचन काया।
सत्संग सद्पुरुषों का स्पर्श
मिट जाती सांसारिक माया।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
04 अक्टूबर 2019,शुक्रवार
जिस भूमि पर जन्म मिला
आओ भाल से स्पर्श करें।
परोपकार की चादर धारण
परहित डग नित चरण धंरे।
मात पिता को चरण स्पर्श
अग्रज गुरुओं चरण स्पर्श।
विश्व नियंता प्रिय परमेश्वर
सादर चरण आपको स्पर्श।
बिगड़े काम बने स्पर्श से
माँ स्पर्श शिशु सो जाता।
सद्ग्रन्थों स्पर्श अध्ययन
महा मूर्ख विद्वान कहाता।
हरे घाव मरहम स्पर्श से
दर्द हरण सुख शांति देता।
खून पसीना सदा बहाओ
स्नेह स्पर्श हर पीड़ा हरता।
गौतम् नारी श्राप अहिल्या
चरण स्पर्श से राम तार दी।
चरण कमल स्पर्श ईश को
भक्त उतारें मङ्गल आरती।
चिकित्सक के स्नेह स्पर्श से
पीडित की पीड़ा हर जाती।
कर स्पर्श अभिवादन से मिल
सदा दोस्ती अति मन भाती।
पारस स्पर्श करता है लोहा
बन जाती है कंचन काया।
सत्संग सद्पुरुषों का स्पर्श
मिट जाती सांसारिक माया।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक -04.10.2019
शीर्षक-स्पर्श
विधा मुक्तक
======================
(01)
मन घायल हो गया कौन यह रण है ?
स्पर्श तुम्हारा हाथ चेत दूषण है ।।
प्रिय! रखतीं हैं हलकान तुम्हारी यादें,
बिना तुम्हारे व्याकुल यह छण-छण है।।
(02)
जब-जब तुमको स्पर्श किया करता हूँ ।
तब-तब मन को उत्कर्ष दिया करता हूँ।।
तुम्हें देख मन की झोली भर लेता,
स्मृतियाँ रख, साहर्ष जिया करता हूँ ।।
========================
'अ़क्स ' दौनेरिया
शीर्षक-स्पर्श
विधा मुक्तक
======================
(01)
मन घायल हो गया कौन यह रण है ?
स्पर्श तुम्हारा हाथ चेत दूषण है ।।
प्रिय! रखतीं हैं हलकान तुम्हारी यादें,
बिना तुम्हारे व्याकुल यह छण-छण है।।
(02)
जब-जब तुमको स्पर्श किया करता हूँ ।
तब-तब मन को उत्कर्ष दिया करता हूँ।।
तुम्हें देख मन की झोली भर लेता,
स्मृतियाँ रख, साहर्ष जिया करता हूँ ।।
========================
'अ़क्स ' दौनेरिया
दिंनाक.. 04/10/2019
विषय.. स्पर्श
***********************
कविता के इस नये सफर मे,
निकला सीना तान।
भावों के मोती मै करता,
तुमको प्रथम प्रणाम॥
**
लय छंदो के साथ सजाना है,
कविता का साज।
दिप्ति अलौकिक होगी तेरी तो,
मेरा भी सम्मान ॥
**
मन को जो स्पर्श करे,
छेडे जीवन के तार।
भाव विभोर हो मन मेरा,
स्पर्श में है वो प्यार॥
**
शेर के तपते मन की पीडा,
तेरा है वरदान।
शब्द मेरे है पर भाव है तेरे,
सर्वधर्म सम्भाव॥
**
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
विषय.. स्पर्श
***********************
कविता के इस नये सफर मे,
निकला सीना तान।
भावों के मोती मै करता,
तुमको प्रथम प्रणाम॥
**
लय छंदो के साथ सजाना है,
कविता का साज।
दिप्ति अलौकिक होगी तेरी तो,
मेरा भी सम्मान ॥
**
मन को जो स्पर्श करे,
छेडे जीवन के तार।
भाव विभोर हो मन मेरा,
स्पर्श में है वो प्यार॥
**
शेर के तपते मन की पीडा,
तेरा है वरदान।
शब्द मेरे है पर भाव है तेरे,
सर्वधर्म सम्भाव॥
**
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
विधा--ग़ज़ल
प्रथम प्रयास
❤🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻❤
करती न स्पर्श जो उनकी नजर मदभरी
कैसे होती दिल की बगिया हरी-भरी ।।
मुख़्तलिफ़ गुल खिल गये मँहक उठा चमन
सावन के बूँदों सी भावों की यह झड़ी ।।
रोज पिरोऊँ माला मैं उन भावों की
पेश करूँ वो महफिल में मैं घड़ी-घड़ी ।।
सुन्दर अहसासों को सुन्दर ही रखूँ
सीख भी तो मिली है हरदम बड़ी-बड़ी ।।
प्यार को पूजा माना है पूजा है
तभी ये गगरी भावों की भरी-भरी ।।
एक स्पर्श प्यार का क्या करे 'शिवम'
सच्चे प्यार की महिमा की बड़ी लड़ी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 04/10/2019
प्रथम प्रयास
❤🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻❤
करती न स्पर्श जो उनकी नजर मदभरी
कैसे होती दिल की बगिया हरी-भरी ।।
मुख़्तलिफ़ गुल खिल गये मँहक उठा चमन
सावन के बूँदों सी भावों की यह झड़ी ।।
रोज पिरोऊँ माला मैं उन भावों की
पेश करूँ वो महफिल में मैं घड़ी-घड़ी ।।
सुन्दर अहसासों को सुन्दर ही रखूँ
सीख भी तो मिली है हरदम बड़ी-बड़ी ।।
प्यार को पूजा माना है पूजा है
तभी ये गगरी भावों की भरी-भरी ।।
एक स्पर्श प्यार का क्या करे 'शिवम'
सच्चे प्यार की महिमा की बड़ी लड़ी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 04/10/2019
दि.04.10.19
शीर्षकः स्पर्श
*
झिलमिल होते वर बाहु - वलय
खिल-खिल उठतीं द्रुत पुचकारें।
वे सुख - स्पर्श आमोद - विकल
पुष्पांजलियों की मनुहारें।
पद-तल में प्रणत पद्म , पाटल
टटकी अरुणाई गुड़हाली।
वर महावरी ज्यों महाकाव्य
की छन्दाली महिमाशाली।।
-डा.'शितिकंठ'
शीर्षकः स्पर्श
*
झिलमिल होते वर बाहु - वलय
खिल-खिल उठतीं द्रुत पुचकारें।
वे सुख - स्पर्श आमोद - विकल
पुष्पांजलियों की मनुहारें।
पद-तल में प्रणत पद्म , पाटल
टटकी अरुणाई गुड़हाली।
वर महावरी ज्यों महाकाव्य
की छन्दाली महिमाशाली।।
-डा.'शितिकंठ'
4/10/19
विषय-स्पर्श
सबसे कोमल स्पर्श जगत में
नवजात शिशु का होता है,
फूलों से नाजुक सुकोमल
रेशम से भी मुलायम ,
पर कभी जाना इस से
कोमल क्या होता है ?
जब कष्ट में हो बच्चा
सर पर माँ के हाथ की छुवन
और कहना उन का
सब ठीक होगा चिंता न कर,
लगता स्वयं विधाता
साक्षात सांत्वना देता,
ममता भरा स्पर्श माँ का
जग में सब से कोमल होता
जग में सब से कोमल होता ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय-स्पर्श
सबसे कोमल स्पर्श जगत में
नवजात शिशु का होता है,
फूलों से नाजुक सुकोमल
रेशम से भी मुलायम ,
पर कभी जाना इस से
कोमल क्या होता है ?
जब कष्ट में हो बच्चा
सर पर माँ के हाथ की छुवन
और कहना उन का
सब ठीक होगा चिंता न कर,
लगता स्वयं विधाता
साक्षात सांत्वना देता,
ममता भरा स्पर्श माँ का
जग में सब से कोमल होता
जग में सब से कोमल होता ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
04/10/19
स्पर्श / सिहरन
हाइकु
प्रथम स्पर्श
तन मे सिहरन
प्रेमानुभूति
नाजुक स्पर्श
नवजात बेटी का
हर्षित मन
हृदय स्पर्शी
बेटी भ्रूण कूड़े में
दुर्गा उत्सव
तन कम्पन
शीत लहर स्पर्श
लाचार वृद्ध
चीखों का स्पर्श
व्यथित होता मन
वेदना तन।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
स्पर्श / सिहरन
हाइकु
प्रथम स्पर्श
तन मे सिहरन
प्रेमानुभूति
नाजुक स्पर्श
नवजात बेटी का
हर्षित मन
हृदय स्पर्शी
बेटी भ्रूण कूड़े में
दुर्गा उत्सव
तन कम्पन
शीत लहर स्पर्श
लाचार वृद्ध
चीखों का स्पर्श
व्यथित होता मन
वेदना तन।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
4/10/2019
विषय-स्पर्श
~~~~~~~~~~~~
मेरे तन मन पर अब भी
अंकित है स्पर्श तेरा!
ऐसा स्पर्श दिया तूने
यूँ लगता है
तेरी बाहों ने मुझे है घेरा
कोमल चेतना जाग गई
दिल से रूह तक समा गई
ऐसा तेरी छुअन का था फेरा
सूर्य की ऊष्मा
चाँद की शीतलता
गहन ध्यान की समाधि में
दिखा मुझे नीरवता का डेरा
देह से परे
चाँद तारों से परे
उस धाम में निर्मल अनुभूति
तेरे स्पर्श का सुखद बसेरा
तुलसी पत्र और
दो बून्द गँगाजल सा
पावन साथ है प्रभु तेरा मेरा ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
विषय-स्पर्श
~~~~~~~~~~~~
मेरे तन मन पर अब भी
अंकित है स्पर्श तेरा!
ऐसा स्पर्श दिया तूने
यूँ लगता है
तेरी बाहों ने मुझे है घेरा
कोमल चेतना जाग गई
दिल से रूह तक समा गई
ऐसा तेरी छुअन का था फेरा
सूर्य की ऊष्मा
चाँद की शीतलता
गहन ध्यान की समाधि में
दिखा मुझे नीरवता का डेरा
देह से परे
चाँद तारों से परे
उस धाम में निर्मल अनुभूति
तेरे स्पर्श का सुखद बसेरा
तुलसी पत्र और
दो बून्द गँगाजल सा
पावन साथ है प्रभु तेरा मेरा ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
विषय- स्पर्श
दिनांक 4-10- 2019
एक तेरा स्पर्श, मुझे अपना सा लगता है।
ना जाने क्यूँ, उसका स्पर्श काटों सा चुभता है।।
खिल उठता ह्रदय,जब तेरा स्पर्श पाता है।
पाकर तेरा स्पर्श,मन सब को बिसराता है।।
नहीं रहती होश में,जब सपने में तू आता है।
तेरा वह स्पर्श भी,हकीकत एहसास कराता है।।
चेहरे की चमक से, वहम सबको हो जाता है।
खामोश रहती हूँ, पर भेद वह खोल जाता है।।
हाव-भाव से,खुशी का अंदाज जहां लगाता है।
लौट आओ दीवानापन, पागल मुझे बनाता है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 4-10- 2019
एक तेरा स्पर्श, मुझे अपना सा लगता है।
ना जाने क्यूँ, उसका स्पर्श काटों सा चुभता है।।
खिल उठता ह्रदय,जब तेरा स्पर्श पाता है।
पाकर तेरा स्पर्श,मन सब को बिसराता है।।
नहीं रहती होश में,जब सपने में तू आता है।
तेरा वह स्पर्श भी,हकीकत एहसास कराता है।।
चेहरे की चमक से, वहम सबको हो जाता है।
खामोश रहती हूँ, पर भेद वह खोल जाता है।।
हाव-भाव से,खुशी का अंदाज जहां लगाता है।
लौट आओ दीवानापन, पागल मुझे बनाता है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
04/10/2019
"स्पर्श"
################
ईश्वर का रुप साक्षात हो न हो..
अंतर्मन में श्रद्धा-भक्ति का स्पर्श हो..।
सर पर हाथ किसी का हो न हो..
माता का पर सदैव स्पर्श हो.।
फूलों का जीवन में गर हो स्पर्श...
जीवन में काँटों का भी स्पर्श हो..।
जिस्मानी खुबसूरती हो न हो.
मन की सुंदरता का स्पर्श हो।
छुवन तन-वदन का हो न हो..
रूह का रूह से पर स्पर्श हो।
कविता में क्लिष्ट शब्द हो न हो..
स्पर्श पर भावनाओं का हो..।
घर की दीवारों पे सज्जा हो न हो..
स्पर्श पर संस्कारों का हो..।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"स्पर्श"
################
ईश्वर का रुप साक्षात हो न हो..
अंतर्मन में श्रद्धा-भक्ति का स्पर्श हो..।
सर पर हाथ किसी का हो न हो..
माता का पर सदैव स्पर्श हो.।
फूलों का जीवन में गर हो स्पर्श...
जीवन में काँटों का भी स्पर्श हो..।
जिस्मानी खुबसूरती हो न हो.
मन की सुंदरता का स्पर्श हो।
छुवन तन-वदन का हो न हो..
रूह का रूह से पर स्पर्श हो।
कविता में क्लिष्ट शब्द हो न हो..
स्पर्श पर भावनाओं का हो..।
घर की दीवारों पे सज्जा हो न हो..
स्पर्श पर संस्कारों का हो..।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विधा-छंद मुक्त
विषय-स्पर्श
स्पर्श बातों का
विचारों का,ख्यालों का
छूता अंतर्मन
सुख-दुख,खुशी,वेदना का
हँसाता या रुला देता है
माँ के आंचल का स्पर्श
लोरी बन सुलाता है
प्रिय की पहली छुअन
झंकृत कर देती है
मन-वीणा के तार
सिहर उठता है
तन और मन
स्पर्श नवजात का
रेशम सा
रुई के फाहे सा
भर देता है हृदय
ममता और वात्सल्य से
जख्मों पर मरहम लगाता
किसी अपने का स्पर्श
हर पीड़ा हर लेता है
नजरों का स्पर्श
चीर कर हृदय
छू लेता मन
मिटा देता दूरियाँ
गुरुजनों का स्पर्श
आशीष की बौछार करता
प्रभु चरणों का स्पर्श
पहुँचा देता है उस लोक में
जहाँ एकांत है,तन्हाई है
और है परम् शांति
आओ चरण स्पर्श करें
नमन करें
माँ अम्बा ,जगदम्बा का
विध्न विनाशिनी के
वरद-हस्त का स्पर्श
देगा सुख की
शीतल छाया
सरिता गर्ग
विषय-स्पर्श
स्पर्श बातों का
विचारों का,ख्यालों का
छूता अंतर्मन
सुख-दुख,खुशी,वेदना का
हँसाता या रुला देता है
माँ के आंचल का स्पर्श
लोरी बन सुलाता है
प्रिय की पहली छुअन
झंकृत कर देती है
मन-वीणा के तार
सिहर उठता है
तन और मन
स्पर्श नवजात का
रेशम सा
रुई के फाहे सा
भर देता है हृदय
ममता और वात्सल्य से
जख्मों पर मरहम लगाता
किसी अपने का स्पर्श
हर पीड़ा हर लेता है
नजरों का स्पर्श
चीर कर हृदय
छू लेता मन
मिटा देता दूरियाँ
गुरुजनों का स्पर्श
आशीष की बौछार करता
प्रभु चरणों का स्पर्श
पहुँचा देता है उस लोक में
जहाँ एकांत है,तन्हाई है
और है परम् शांति
आओ चरण स्पर्श करें
नमन करें
माँ अम्बा ,जगदम्बा का
विध्न विनाशिनी के
वरद-हस्त का स्पर्श
देगा सुख की
शीतल छाया
सरिता गर्ग
बिषय-स्पर्श
तेरी आँखो का स्पर्श
जब होता है मेरे चेहरे पर।
नर्म नाज़ुक अहसास
मचल उठते हैं रह-रहकर।।
मत देखा करो तुम यूं
वक़्त बेवक्त प्यार से मुझे।
खुशीयों का समंदर दिल में
हिलोरें भरने लगता है।।
हमने ख्वाब में भी सोचा न था
तुमसा प्यारा कोई मिलेगा मुझे।
तेरा मिलना अब भी मुझे
एक ख्वाब ही सा लगता है।।
तुमसे जिन्दगी हुई है मुकम्मल
तुम संग अब रहना है हरपल।
ना जाना कभी छोड़ के मुझे
ये ख्वाब टूटने से दिल डरता है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
तेरी आँखो का स्पर्श
जब होता है मेरे चेहरे पर।
नर्म नाज़ुक अहसास
मचल उठते हैं रह-रहकर।।
मत देखा करो तुम यूं
वक़्त बेवक्त प्यार से मुझे।
खुशीयों का समंदर दिल में
हिलोरें भरने लगता है।।
हमने ख्वाब में भी सोचा न था
तुमसा प्यारा कोई मिलेगा मुझे।
तेरा मिलना अब भी मुझे
एक ख्वाब ही सा लगता है।।
तुमसे जिन्दगी हुई है मुकम्मल
तुम संग अब रहना है हरपल।
ना जाना कभी छोड़ के मुझे
ये ख्वाब टूटने से दिल डरता है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
दिनांक 04/10/2019
विधा : हाइकु
विषय:स्पर्श
👣👣👣
प्रथम स्पर्श
गणपति चरण
पुष्प अर्पित ।
👣👣👣
प्रातः वंदन
गुरुजन सम्मान
चरण स्पर्श ।
👫👫👫
प्रेमिका स्पर्श
झंकृति रोम रोम
निर्मल धारा।
🤝🤝🤝🤝
हाथो मे हाथ
विद्युतीय प्रवाह
स्पर्श सानिध्य ।
😣😣😣😣
मार्मिक स्पर्श
बुजुर्ग असहाय
कष्टों का साथ।
🍺🍺🍺🍺
कुंठित स्पर्श
नित पीडित स्त्री
मर्यादा तार।
🙏🙏🙏
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विधा : हाइकु
विषय:स्पर्श
👣👣👣
प्रथम स्पर्श
गणपति चरण
पुष्प अर्पित ।
👣👣👣
प्रातः वंदन
गुरुजन सम्मान
चरण स्पर्श ।
👫👫👫
प्रेमिका स्पर्श
झंकृति रोम रोम
निर्मल धारा।
🤝🤝🤝🤝
हाथो मे हाथ
विद्युतीय प्रवाह
स्पर्श सानिध्य ।
😣😣😣😣
मार्मिक स्पर्श
बुजुर्ग असहाय
कष्टों का साथ।
🍺🍺🍺🍺
कुंठित स्पर्श
नित पीडित स्त्री
मर्यादा तार।
🙏🙏🙏
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय:-स्पर्श
विधा:-हरिगीतिका
🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹
हरिगीतिका २२१२ २२१२ २, २१२२ २१२
श्री राम चंद्र कृपालु राजन्,धर्म की पहचान हैं।
पट्पीत धारण धनुष धारी,देश का अभिमान हैं ।
वो कर्म योगी मर्म साधक,त्याग पद को बढ़ चले ।
जब मिल गई पितु आज्ञा तब,छोड़ सुख वन में रहे ।
कोमल कली सुख में पली थी, जानकी माता बढ़ी ।
त्यागा महल फल फूल खाये, कुटि बना वन में खड़ी ।
स्पर्श कर रज भूमि मात सिर ले, वो अवध से चल पड़ी ।
चौदह वरष वन में कटेंगे, सुख नहीं दुख की घड़ी ।
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
विधा:-हरिगीतिका
🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹
हरिगीतिका २२१२ २२१२ २, २१२२ २१२
श्री राम चंद्र कृपालु राजन्,धर्म की पहचान हैं।
पट्पीत धारण धनुष धारी,देश का अभिमान हैं ।
वो कर्म योगी मर्म साधक,त्याग पद को बढ़ चले ।
जब मिल गई पितु आज्ञा तब,छोड़ सुख वन में रहे ।
कोमल कली सुख में पली थी, जानकी माता बढ़ी ।
त्यागा महल फल फूल खाये, कुटि बना वन में खड़ी ।
स्पर्श कर रज भूमि मात सिर ले, वो अवध से चल पड़ी ।
चौदह वरष वन में कटेंगे, सुख नहीं दुख की घड़ी ।
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
भावों के मोती
विषय=स्पर्श
===========
मन वीणा के तार हो तुम
धड़कन की आवाज़ हो तुम
तुमसे ही यह ज़िंदगी है
जीवन का हर साज हो तुम
मुरझाया मन का रजनीगंधा
खिल उठा जो तूने छुआ
स्पर्श के एहसास से भींगें
खुशियों के हर रंग हो तुम
रोम-रोम तुमसे ही महके
तुमसे ही यह जीवन चहके
साँसों की सरगम तुमसे
जीवन का हर गीत हो तुम
तुम मेरे मन के दर्पण हो
तुझमें ही मेरा अक्स घुला
झील के ठहरे पानी में
चाँद का प्रतिबिंब हो तुम
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय=स्पर्श
===========
मन वीणा के तार हो तुम
धड़कन की आवाज़ हो तुम
तुमसे ही यह ज़िंदगी है
जीवन का हर साज हो तुम
मुरझाया मन का रजनीगंधा
खिल उठा जो तूने छुआ
स्पर्श के एहसास से भींगें
खुशियों के हर रंग हो तुम
रोम-रोम तुमसे ही महके
तुमसे ही यह जीवन चहके
साँसों की सरगम तुमसे
जीवन का हर गीत हो तुम
तुम मेरे मन के दर्पण हो
तुझमें ही मेरा अक्स घुला
झील के ठहरे पानी में
चाँद का प्रतिबिंब हो तुम
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
बिषय _#स्पर्श #
विधा _ काव्य
स्पर्श मिला मां के हाथों का
अपना मन पुलकित हो जाऐ ।
मिले आशीष हमें सदा ही ,
यह हिया हुलसित हो जाऐ ।
मिले स्पर्श गुरू के चरणों का
हम सब प्रगतिशील बन जाऐं ।
रहें सुसभ्य सुसंस्कारित हम
निश्चित विवेकशील रह पाऐं ।
वरदहस्त हो सिर पर गुरूवर
सुसंस्कार मात-पिता से पाऐं ।
चलें चरण स्पर्श प्रणाम करके
शुभाशीष मात पिता से पाऐं.।
स्पर्श मिले मां के चुंबन का
कितना अपना माथा दमके ।
मिले हजारों आशीष मात से
मानो भाग्य इसी से चमके ।
स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी
1भा#स्पर्श #काव्य
4/10 /2019 /शुक्रवार
विधा _ काव्य
स्पर्श मिला मां के हाथों का
अपना मन पुलकित हो जाऐ ।
मिले आशीष हमें सदा ही ,
यह हिया हुलसित हो जाऐ ।
मिले स्पर्श गुरू के चरणों का
हम सब प्रगतिशील बन जाऐं ।
रहें सुसभ्य सुसंस्कारित हम
निश्चित विवेकशील रह पाऐं ।
वरदहस्त हो सिर पर गुरूवर
सुसंस्कार मात-पिता से पाऐं ।
चलें चरण स्पर्श प्रणाम करके
शुभाशीष मात पिता से पाऐं.।
स्पर्श मिले मां के चुंबन का
कितना अपना माथा दमके ।
मिले हजारों आशीष मात से
मानो भाग्य इसी से चमके ।
स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी
1भा#स्पर्श #काव्य
4/10 /2019 /शुक्रवार
आज का विषय, स्पर्श
दिन, शुक्रवार
दिनांक 4,10,2019
स्पर्श तुम्हारे हाथों का,
माँ कितनी राहत दे जाता है।
दुनियाँ की तपती राहों में,
बरगद की छाया बन जाता है।
पापा जब जब आपका स्पर्श ,
हमें आशिष देने में मिलता है ।
हिम्मत हौंसला बढ़ जाता ,
मंजिल का आगाज होता है ।
स्पर्श कभी जब अपनों का ,
दुख की घड़ियों में मिलता है ।
वक्त से आदमी लड़ जाता ,
पीड़ित मन का बोझ उतरता है।
भावों की अभिव्यक्ति होना ,
शब्दों में जब मुश्किल होता है।
स्पर्श ही माध्यम बन जाता ,
दिल तक बात पहुँचाता है ।
स्पर्श सुख दिया ईश्वर ने ,
भावों का भरा खजाना है ।
उपयोग इसे हम करते रहें,
होगा घर संसार सुहाना है ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
दिन, शुक्रवार
दिनांक 4,10,2019
स्पर्श तुम्हारे हाथों का,
माँ कितनी राहत दे जाता है।
दुनियाँ की तपती राहों में,
बरगद की छाया बन जाता है।
पापा जब जब आपका स्पर्श ,
हमें आशिष देने में मिलता है ।
हिम्मत हौंसला बढ़ जाता ,
मंजिल का आगाज होता है ।
स्पर्श कभी जब अपनों का ,
दुख की घड़ियों में मिलता है ।
वक्त से आदमी लड़ जाता ,
पीड़ित मन का बोझ उतरता है।
भावों की अभिव्यक्ति होना ,
शब्दों में जब मुश्किल होता है।
स्पर्श ही माध्यम बन जाता ,
दिल तक बात पहुँचाता है ।
स्पर्श सुख दिया ईश्वर ने ,
भावों का भरा खजाना है ।
उपयोग इसे हम करते रहें,
होगा घर संसार सुहाना है ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
✍🏻स्पर्श (मुक्त हो जाना)✍🏻
#############
सादर भावों के मोती
अब बचा है नम हथेलियों में
केवल वह पहला स्पर्श.....
तुम्हारी हथेलियों का स्पर्श......
कहीं कुछ अनछुआ-सा स्पर्श.....
काश!
मैं सहेज पाता उसे मुट्ठियों में
उससे कहा भी था मैनें
"क्या हममें से कोई याद रखेगा
इन लम्हों को,या
कोई एक भूल जाऐगा?"
और वह शर्माती, सकुचाती,
निहारते सिर्फ मुस्कुराई थी
मैनें तो वादा किया था,
"मैं खुशी-खुशी तकूँगा उस राह
को,उस लम्हें को।"
"तुम भी याद रखना,जब
चला जाऊँ मैं कहीं बहुत दूर
मेरे ख़यालों के बिछुड़े
अवशेषों को छोड़ कर
तुम्हारे हृदय के किनारों पर।"
सूनो!
यादों के झरोखों से,
ना ग्लानि के आँसू बहाना
याद रखना वह पहला स्पर्श.....
तुम्हारी हथेलियों का स्पर्श....और
खोल देना अपने हृदय के द्वार
मुक्त हो जाना जैसे
मुक्त हो जाती है सुबह की
पवित्र ओस सूरज की पहली
किरण में।।
->गोविन्दसिंग चौहान।
#############
सादर भावों के मोती
अब बचा है नम हथेलियों में
केवल वह पहला स्पर्श.....
तुम्हारी हथेलियों का स्पर्श......
कहीं कुछ अनछुआ-सा स्पर्श.....
काश!
मैं सहेज पाता उसे मुट्ठियों में
उससे कहा भी था मैनें
"क्या हममें से कोई याद रखेगा
इन लम्हों को,या
कोई एक भूल जाऐगा?"
और वह शर्माती, सकुचाती,
निहारते सिर्फ मुस्कुराई थी
मैनें तो वादा किया था,
"मैं खुशी-खुशी तकूँगा उस राह
को,उस लम्हें को।"
"तुम भी याद रखना,जब
चला जाऊँ मैं कहीं बहुत दूर
मेरे ख़यालों के बिछुड़े
अवशेषों को छोड़ कर
तुम्हारे हृदय के किनारों पर।"
सूनो!
यादों के झरोखों से,
ना ग्लानि के आँसू बहाना
याद रखना वह पहला स्पर्श.....
तुम्हारी हथेलियों का स्पर्श....और
खोल देना अपने हृदय के द्वार
मुक्त हो जाना जैसे
मुक्त हो जाती है सुबह की
पवित्र ओस सूरज की पहली
किरण में।।
->गोविन्दसिंग चौहान।
दिनांक ४/१०/२०१९
शीर्षक-स्पर्श "
आज है विडंबना भारी
चरण स्पर्श करना , बच्चे भूल गये
माँ बन गई अब मम्मा
बाबूजी बने डैड है।
दिखावे के इस युग में
चरण स्पर्श करना वे भूल गये,
हस्तक्षेप उन्हें पसंद नही
बस करते वे मनमानी।
महत्त्वकांक्षाओ को सर पर लादे
बस नमस्कार वे बोल गये,
बड़ों के चरण स्पर्श से
मिलते जो हमें रज कण,
बन जाते वे माथे का चंदन
खुल जाते तब किस्मत के द्वार,
है अभिलाषा बड़ा बनने की
पर भूल गये अपनी संस्कार।
बड़ों का आशीर्वाद पाकर ही
हम कर सकते मंजिल आसान,
,धरा के कण कण में है
स्पर्श की स्पष्ट परिभाषा।
सूर्य की प्रथम किरण
स्पर्श करें जब धरा को
खिल जाते धरा के कण कण,
महक उठता तब जग सारा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-स्पर्श "
आज है विडंबना भारी
चरण स्पर्श करना , बच्चे भूल गये
माँ बन गई अब मम्मा
बाबूजी बने डैड है।
दिखावे के इस युग में
चरण स्पर्श करना वे भूल गये,
हस्तक्षेप उन्हें पसंद नही
बस करते वे मनमानी।
महत्त्वकांक्षाओ को सर पर लादे
बस नमस्कार वे बोल गये,
बड़ों के चरण स्पर्श से
मिलते जो हमें रज कण,
बन जाते वे माथे का चंदन
खुल जाते तब किस्मत के द्वार,
है अभिलाषा बड़ा बनने की
पर भूल गये अपनी संस्कार।
बड़ों का आशीर्वाद पाकर ही
हम कर सकते मंजिल आसान,
,धरा के कण कण में है
स्पर्श की स्पष्ट परिभाषा।
सूर्य की प्रथम किरण
स्पर्श करें जब धरा को
खिल जाते धरा के कण कण,
महक उठता तब जग सारा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
4/10/19
विषय स्पर्श
विधा छन्द मुक्त कविता
प्रेम का स्पर्श,
जिन्दगी की नाव
स्नेह का स्पर्श,
जीवन का आनन्द
बड़ों का चरण स्पर्श,
शुभाशीष की बरसात
मित्र का स्पर्श,
संघर्ष में भी राग
डॉक्टर का स्पर्श,
रोग का निदान
गुरू का स्पर्श,
जिंदगी की छाँव
वात्सल्य रूपी स्पर्श,
सन्तान का जिन्दगी
भगवद् भजन स्पर्श,
जिंदगी परमानन्द।
मनीष श्री
विषय स्पर्श
विधा छन्द मुक्त कविता
प्रेम का स्पर्श,
जिन्दगी की नाव
स्नेह का स्पर्श,
जीवन का आनन्द
बड़ों का चरण स्पर्श,
शुभाशीष की बरसात
मित्र का स्पर्श,
संघर्ष में भी राग
डॉक्टर का स्पर्श,
रोग का निदान
गुरू का स्पर्श,
जिंदगी की छाँव
वात्सल्य रूपी स्पर्श,
सन्तान का जिन्दगी
भगवद् भजन स्पर्श,
जिंदगी परमानन्द।
मनीष श्री
04-10-19 गुरुवार
विषय-स्पर्श
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
स्पर्श तुम्हारा
सिहरन भर दे
तन -मन में👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
खूबसूरत
मन की सुंदरता
भावना-स्पर्श👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
प्रेमानुभूति
मात-पितु का प्यार
स्पर्श-संस्कार💐
💐💐💐💐💐💐
(४)
प्रेम का स्पर्श
सहानुभूति साथ
सर पे हाथ👌
💐💐💐💐💐💐
(५)
मन-भावन
धन्य हुआ जीवन
स्पर्श माता की💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू"अकेला"
विषय-स्पर्श
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
स्पर्श तुम्हारा
सिहरन भर दे
तन -मन में👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
खूबसूरत
मन की सुंदरता
भावना-स्पर्श👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
प्रेमानुभूति
मात-पितु का प्यार
स्पर्श-संस्कार💐
💐💐💐💐💐💐
(४)
प्रेम का स्पर्श
सहानुभूति साथ
सर पे हाथ👌
💐💐💐💐💐💐
(५)
मन-भावन
धन्य हुआ जीवन
स्पर्श माता की💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू"अकेला"
विषय - स्पर्श
04/10/19
शुक्रवार
कविता
माँ तुम्हारा साथ जो मिल जाएगा,
स्वप्न मेरा सत्य ही हो जाएगा।
चाँद- तारे कुछ नहीं मेरे लिए,
यह जहां मुट्ठी में मेरी आएगा ।
चाँद को छू लूंगी मैं खुद हाथ से ,
मेरा जीवन-लक्ष्य ही मिल जाएगा।
तेरे हाथों के मथुर स्पर्श से
मुझको कोई कष्ट न हो पाएगा।
तेरी ममता का मिला संबल मुझे,
जिसके बल पर रास्ता कट जाएगा।
तूने ही मुझको दिखाया रास्ता ,
साथ तेरे हौसला बढ़ जाएगा।
लक्ष्य पा लूँगी मैं जीवन मार्ग का,
मन-सुमन आनंद से खिल जाएगा।
विघ्न -बाधा मुझको रोकेगी नहीं ,
तेरा आशीर्वाद जो मिल जाएगा।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
04/10/19
शुक्रवार
कविता
माँ तुम्हारा साथ जो मिल जाएगा,
स्वप्न मेरा सत्य ही हो जाएगा।
चाँद- तारे कुछ नहीं मेरे लिए,
यह जहां मुट्ठी में मेरी आएगा ।
चाँद को छू लूंगी मैं खुद हाथ से ,
मेरा जीवन-लक्ष्य ही मिल जाएगा।
तेरे हाथों के मथुर स्पर्श से
मुझको कोई कष्ट न हो पाएगा।
तेरी ममता का मिला संबल मुझे,
जिसके बल पर रास्ता कट जाएगा।
तूने ही मुझको दिखाया रास्ता ,
साथ तेरे हौसला बढ़ जाएगा।
लक्ष्य पा लूँगी मैं जीवन मार्ग का,
मन-सुमन आनंद से खिल जाएगा।
विघ्न -बाधा मुझको रोकेगी नहीं ,
तेरा आशीर्वाद जो मिल जाएगा।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
भावों के मोती:: विषय::"स्पर्श":: ४-१०- २०१९.
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
शुभ-नवरात्रि का पावन पर्व आया है।
तेरे दर्शन का सौभाग्य हमने पाया है।
हे माँ दुर्गे! इस जग में तेरा ही सहारा है।
कर स्पर्श चरण माँ आशीष तेरा पाया है।।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
घोर तिमिर है माँ, अंधकार की छाया है।
मानव के जीवन में माँ दुखों का साया है।
दूर करो माँ कष्ट हमारे,जग में अंधियारा है।
दुःख दूर करो माँ, शत-शत नमन हमारा है।।
(स्वरचित) ***"दीप"***
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शुभ-नवरात्रि का पावन पर्व आया है।
तेरे दर्शन का सौभाग्य हमने पाया है।
हे माँ दुर्गे! इस जग में तेरा ही सहारा है।
कर स्पर्श चरण माँ आशीष तेरा पाया है।।
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घोर तिमिर है माँ, अंधकार की छाया है।
मानव के जीवन में माँ दुखों का साया है।
दूर करो माँ कष्ट हमारे,जग में अंधियारा है।
दुःख दूर करो माँ, शत-शत नमन हमारा है।।
(स्वरचित) ***"दीप"***
स्पर्श
स्पर्श हो अनजाना,
तो सिहर उठता मन ।
झटकर हाथ को,
होता हैं तांडव शुरु ।
पल भर शुरु होती,
महाभारत की कहानी ।
लेकिन,
वह स्पर्श हो अपना तो,
चाहे कितने भी हो परेशान
सब लगता अासान ।
धिरज बढाता वह स्पर्श ।
हौसला बढाता वह स्पर्श ।
नई उम्मीद का...
@प्रदीप सहारे
स्पर्श हो अनजाना,
तो सिहर उठता मन ।
झटकर हाथ को,
होता हैं तांडव शुरु ।
पल भर शुरु होती,
महाभारत की कहानी ।
लेकिन,
वह स्पर्श हो अपना तो,
चाहे कितने भी हो परेशान
सब लगता अासान ।
धिरज बढाता वह स्पर्श ।
हौसला बढाता वह स्पर्श ।
नई उम्मीद का...
@प्रदीप सहारे
4/10/2019
स्पर्श हाइकु
1
प्रथम स्पर्श
गर्भ था घर बार
माता थी अर्श
2
प्रेम स्पर्श
युगल का संघर्ष
त्याग सहस्र
3
ममता स्पर्श
दुर्लभ है उत्कर्ष
जग संघर्ष
कुसुम उत्साही
स्वरचित
स्पर्श हाइकु
1
प्रथम स्पर्श
गर्भ था घर बार
माता थी अर्श
2
प्रेम स्पर्श
युगल का संघर्ष
त्याग सहस्र
3
ममता स्पर्श
दुर्लभ है उत्कर्ष
जग संघर्ष
कुसुम उत्साही
स्वरचित
दिनांक -4/10/2019
विषय-स्पर्श
माँ का स्पर्श, बच्चे का हर्ष
शिशु का प्रथम स्पर्श,माँ का अपार हर्ष
प्रियतम/प्रियतमा का स्पर्श
जीवन में भर दे मधुर रंग ।
हरक्षण- हरपल अद्भुद उमंग ।
आशीर्वाद का मधुर स्पर्श
भर दे उमंग ,भर दे आनंद ।
ठंडी-ठंडी बूँदों का सुखद स्पर्श
मन को करता है अति तृप्त ।
स्वरचित - मोहिनी पांडेय
विषय-स्पर्श
माँ का स्पर्श, बच्चे का हर्ष
शिशु का प्रथम स्पर्श,माँ का अपार हर्ष
प्रियतम/प्रियतमा का स्पर्श
जीवन में भर दे मधुर रंग ।
हरक्षण- हरपल अद्भुद उमंग ।
आशीर्वाद का मधुर स्पर्श
भर दे उमंग ,भर दे आनंद ।
ठंडी-ठंडी बूँदों का सुखद स्पर्श
मन को करता है अति तृप्त ।
स्वरचित - मोहिनी पांडेय
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