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दिनांक 7. 10 .2019.
शीर्षक: शांति
विदा : पद (छंद मुक्त कविता)
लालसा
क्या ख्वाहिश है इंसान की
स्वस्थ है
निरोग है
खुश है
पर फिर भी....
संतुष्ट नहीं है
अपने आप से
ढूँढ रहा है सुख को
शांति को
बड़े-बड़े बंगलों
व गाड़ियों में
जहाँ पर नींद भी
गोलियाँ खाकर आती है
सुख-शांति पाने की लालसा में
विमुख होकर वह
भटक रहा है
मृग की तरह
दर-दर
कोई बताए जरा उसे कि ....
दीपक तले ही अंधेरा होता है
सुख-शांति को पाने की लालसा ही
दुख का कारण है
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित कविता
मौलिक
शीर्षक: शांति
विदा : पद (छंद मुक्त कविता)
लालसा
क्या ख्वाहिश है इंसान की
स्वस्थ है
निरोग है
खुश है
पर फिर भी....
संतुष्ट नहीं है
अपने आप से
ढूँढ रहा है सुख को
शांति को
बड़े-बड़े बंगलों
व गाड़ियों में
जहाँ पर नींद भी
गोलियाँ खाकर आती है
सुख-शांति पाने की लालसा में
विमुख होकर वह
भटक रहा है
मृग की तरह
दर-दर
कोई बताए जरा उसे कि ....
दीपक तले ही अंधेरा होता है
सुख-शांति को पाने की लालसा ही
दुख का कारण है
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित कविता
मौलिक
7 /10 /2019
बिषय ,,शांति
शांति की तलाश में भटकते कहाँ कहाँ
बेचैनियां लिए फिरते यहाँ वहाँ
संतुष्ट जो हो.जाए कोई जरुरतमंद
प्रफुल्लित रहता आनंद हीआनंद
समदृष्टि स्नेह प्रेम का स्त्रोत है
वह तो शांति से ओतप्रोत है
पारिवारिक सामाजिक हो सद्भभावना
जहाँ सर्वत्र हो मंगल की कामना
परस्पर सौहार्दपूर्ण हो संबंध
शर्तें जहाँ न हो अनुबंध
अच्छा न कर सको तो बुरा न करें हम
उजाला न दे सकें तो क्यों फैलाऐं तम
क्यों करें किसी से व्यर्थ के विबाद
विवेक पूर्ण हो हमारे संवाद
अरुचिकर न हो हास परिहास
वहाँ लक्ष्मी,शांति सद्वुद्धि का रहता निवास
स्वरचित,, सुषमा,, ब्यौहार
बिषय ,,शांति
शांति की तलाश में भटकते कहाँ कहाँ
बेचैनियां लिए फिरते यहाँ वहाँ
संतुष्ट जो हो.जाए कोई जरुरतमंद
प्रफुल्लित रहता आनंद हीआनंद
समदृष्टि स्नेह प्रेम का स्त्रोत है
वह तो शांति से ओतप्रोत है
पारिवारिक सामाजिक हो सद्भभावना
जहाँ सर्वत्र हो मंगल की कामना
परस्पर सौहार्दपूर्ण हो संबंध
शर्तें जहाँ न हो अनुबंध
अच्छा न कर सको तो बुरा न करें हम
उजाला न दे सकें तो क्यों फैलाऐं तम
क्यों करें किसी से व्यर्थ के विबाद
विवेक पूर्ण हो हमारे संवाद
अरुचिकर न हो हास परिहास
वहाँ लक्ष्मी,शांति सद्वुद्धि का रहता निवास
स्वरचित,, सुषमा,, ब्यौहार
शीर्षक -- शांति
विधा--ग़ज़ल
प्रथम प्रयास
😂😁
शांति तो मानो जैसे समाप्त हो गयी
जहाँ देखो तहाँ अशांति व्याप्त हो गयी ।।
जिसे भी देखो उसे दुखी दिखे आज
कोई न कहे संपत्ति पर्याप्त हो गयी ।।
पूछा पड़ोसी से बस पूछना ही था
इस चक्कर में उससे विवाद हो गयी ।।
किसी का सुख दुख आँकना ठीक नही है
लोगों की सोच अमा की रात हो गयी ।।
पत्नि को शांति कहा पर वो इसके उलट
मेरे शोध की इक शुरूआत हो गयी ।।
जथा नाम तथा गुण फार्मुला नाकाम
मेरी हर तरकीब को मात हो गयी ।।
शांति का संदेश देते देते 'शिवम'
मेरे मन में कई बार क्रांति हो गयी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/10/2019
विधा--ग़ज़ल
प्रथम प्रयास
😂😁
शांति तो मानो जैसे समाप्त हो गयी
जहाँ देखो तहाँ अशांति व्याप्त हो गयी ।।
जिसे भी देखो उसे दुखी दिखे आज
कोई न कहे संपत्ति पर्याप्त हो गयी ।।
पूछा पड़ोसी से बस पूछना ही था
इस चक्कर में उससे विवाद हो गयी ।।
किसी का सुख दुख आँकना ठीक नही है
लोगों की सोच अमा की रात हो गयी ।।
पत्नि को शांति कहा पर वो इसके उलट
मेरे शोध की इक शुरूआत हो गयी ।।
जथा नाम तथा गुण फार्मुला नाकाम
मेरी हर तरकीब को मात हो गयी ।।
शांति का संदेश देते देते 'शिवम'
मेरे मन में कई बार क्रांति हो गयी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/10/2019
नमन भावों के मोती
आज का विषय, शांति
दिन, सोमवार
दिनांक 7,10,2019.
क्यों अशांति धरती पर इतनी,
बैचेन बना रहता है क्यों मनु ।
जीवन जीना हुआ क्यों दुष्कर
मीन तड़पती बिन पानी जनु ।
साधन सुविधा की अति लालसा,
ईष्र्या द्वेष नहीं हृदय समाता ।
विशिष्टता की बढ़ गई भावना ,
लगे अपने आगे हर कोई बौना।
चमक रूपये की इतनी ज्यादा,
अपना कोई भी नजर न आता ।
अम्बार लगा ख्वाहिश का इतना,
आखिर पूरा हो कैसे हर सपना।
मन बैचैन कहीं नहीं टिकता,
दीवानापन बस बढ़ता जाता।
धन से करे शांति की चाहना,
सदा ईश्वर से भी वही माँगना।
हो मन में अगर शांति कामना,
तो लोभ मोह से दूर ही रहना।
मिल जाये जब संतोष का गहना,
होगा तय फिर शांति का मिलना ।
उम्मीद ईश से एक ही करना ,
हृदय बीच प्रभु आकर बसना।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
आज का विषय, शांति
दिन, सोमवार
दिनांक 7,10,2019.
क्यों अशांति धरती पर इतनी,
बैचेन बना रहता है क्यों मनु ।
जीवन जीना हुआ क्यों दुष्कर
मीन तड़पती बिन पानी जनु ।
साधन सुविधा की अति लालसा,
ईष्र्या द्वेष नहीं हृदय समाता ।
विशिष्टता की बढ़ गई भावना ,
लगे अपने आगे हर कोई बौना।
चमक रूपये की इतनी ज्यादा,
अपना कोई भी नजर न आता ।
अम्बार लगा ख्वाहिश का इतना,
आखिर पूरा हो कैसे हर सपना।
मन बैचैन कहीं नहीं टिकता,
दीवानापन बस बढ़ता जाता।
धन से करे शांति की चाहना,
सदा ईश्वर से भी वही माँगना।
हो मन में अगर शांति कामना,
तो लोभ मोह से दूर ही रहना।
मिल जाये जब संतोष का गहना,
होगा तय फिर शांति का मिलना ।
उम्मीद ईश से एक ही करना ,
हृदय बीच प्रभु आकर बसना।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
तिथि __7/10/2019 /सोमवार
बिषय __शांति
विधा __काव्य
जय शांतिस्वरूपा लक्ष्मीस्वरूपा,
माते तुम सौहार्द शांति कर देना.।
रहें सभी खुशहाल यहां पर माता,
हम सबको कुछ ऐसा ही वर देना ।
तुम कल्याणी हो मां दुर्गे भवानी
कैसे करें हम तुम्हारी आराधना ।
तुम हो रिद्धि-सिद्धि दायिनी माते,
हम कहां कर पाते कोई साधना ।
तुम शुभदायी हो शुभफलदायी मां,
करें सभी सुखद शांति की कामना ।
सुख शांति का वातावरण निर्मित हो
ऐसी ही मां हम सभी रखें भावना ।
नहीं पता हमें ऐसा क्या कारण है ।
चारों तरफ अशांत वातावरण है ।
दिखता हर प्राणी अब कुछ परेशान
सचमुच पूरा अशांत पर्यावरण है ।
स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी " अजेय"
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी
1 भा "शांति "काव्य
7/10/2019 /सोमवार
(मात्रा भार 20)
बिषय __शांति
विधा __काव्य
जय शांतिस्वरूपा लक्ष्मीस्वरूपा,
माते तुम सौहार्द शांति कर देना.।
रहें सभी खुशहाल यहां पर माता,
हम सबको कुछ ऐसा ही वर देना ।
तुम कल्याणी हो मां दुर्गे भवानी
कैसे करें हम तुम्हारी आराधना ।
तुम हो रिद्धि-सिद्धि दायिनी माते,
हम कहां कर पाते कोई साधना ।
तुम शुभदायी हो शुभफलदायी मां,
करें सभी सुखद शांति की कामना ।
सुख शांति का वातावरण निर्मित हो
ऐसी ही मां हम सभी रखें भावना ।
नहीं पता हमें ऐसा क्या कारण है ।
चारों तरफ अशांत वातावरण है ।
दिखता हर प्राणी अब कुछ परेशान
सचमुच पूरा अशांत पर्यावरण है ।
स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी " अजेय"
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी
1 भा "शांति "काव्य
7/10/2019 /सोमवार
(मात्रा भार 20)
नमन-भावो के मोती
दिनांक07/10/2010
विषय-शान्ति
अधरों की मुस्कानों पर
नाम शांति का लिख देना।
खुशियां तुमने बहुत लिखी होंगी
पैगाम शांति का लिख देना।।
शांति बिरह बनकर डसती
सियासत मंद मंद हंसती
लुट गई राम की महिमा
लबों पर शांति है थिरकती।।
गैरों की इस भीड़ में
माह बसंती लिख देना।
शांति की रातें व्यथित हैं
मधुमास द्रवित लिख देना।।
आंधियारों के जश्न तड़पते
गरल पान का मान लिख देना।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक07/10/2010
विषय-शान्ति
अधरों की मुस्कानों पर
नाम शांति का लिख देना।
खुशियां तुमने बहुत लिखी होंगी
पैगाम शांति का लिख देना।।
शांति बिरह बनकर डसती
सियासत मंद मंद हंसती
लुट गई राम की महिमा
लबों पर शांति है थिरकती।।
गैरों की इस भीड़ में
माह बसंती लिख देना।
शांति की रातें व्यथित हैं
मधुमास द्रवित लिख देना।।
आंधियारों के जश्न तड़पते
गरल पान का मान लिख देना।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
नमन भावों के मोती
शीर्षक --शांति
दिनांक--7-10-19
विधा--मुक्तक
1.
शांत चित्त मन भाव से,सरते सगरे काम ।
कठिन समय में शांति से,करें कर्म निष्काम।
समय कभी रुकता नहीं, बुरा व अच्छा दोय--
शांति से सब सोचकर, काटें जीवन वाम।
2.
शांति की भाषा जिनको नहीं भाती।
सुलह तस्वीर जिनको नहीं सुहाती।
उनसे उनकी भाषा में करें बात---
'हितैषी' अनुभव की नजीर सिखाती।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
शीर्षक --शांति
दिनांक--7-10-19
विधा--मुक्तक
1.
शांत चित्त मन भाव से,सरते सगरे काम ।
कठिन समय में शांति से,करें कर्म निष्काम।
समय कभी रुकता नहीं, बुरा व अच्छा दोय--
शांति से सब सोचकर, काटें जीवन वाम।
2.
शांति की भाषा जिनको नहीं भाती।
सुलह तस्वीर जिनको नहीं सुहाती।
उनसे उनकी भाषा में करें बात---
'हितैषी' अनुभव की नजीर सिखाती।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय -शांति
दिनांक। 7-10 -2019
हे प्रभु, एक विनती मेरी सुन ले।
सबके हृदय,शांति सद्भाव भर दे।
द्वेष के दलदल में,डूब रहे सब।
भाईचारे के भाव भर,शांत कर दे।
कोई भूखा ना रहे, कृपा कर दे ।
जो मिले,शांति खाना सिखा दे ।
स्वर्ण महल,ठौर भले हमें ना दे ।
एक दूसरे के ह्रदय, जगह बना दे।
दूध की नदियां,बहती थी मेरे देश में।
एक बारअमन, सब हृदय भर दे।
बुद्धि दे सबको,बल प्रयोग न करें।
दो बोल मीठे,शांति रहना सिखा दे।
मेरे वतन में,अमन प्रेम तू भर दे।
शांति के प्रतीक कबूतर फिर उड़ा दे।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक। 7-10 -2019
हे प्रभु, एक विनती मेरी सुन ले।
सबके हृदय,शांति सद्भाव भर दे।
द्वेष के दलदल में,डूब रहे सब।
भाईचारे के भाव भर,शांत कर दे।
कोई भूखा ना रहे, कृपा कर दे ।
जो मिले,शांति खाना सिखा दे ।
स्वर्ण महल,ठौर भले हमें ना दे ।
एक दूसरे के ह्रदय, जगह बना दे।
दूध की नदियां,बहती थी मेरे देश में।
एक बारअमन, सब हृदय भर दे।
बुद्धि दे सबको,बल प्रयोग न करें।
दो बोल मीठे,शांति रहना सिखा दे।
मेरे वतन में,अमन प्रेम तू भर दे।
शांति के प्रतीक कबूतर फिर उड़ा दे।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
तिथि __7/20/2019 / सोमवार
बिषय ___शांति
विधा ____मुक्तक
(मात्रा भार 20)
लगता प्रदूषित वातावरण अपना ।
हम नहीं कर पाऐं कोई साधना ।
ये शक्ति शांति नहीं मिलती हमको
नहीं कर पाते कोई आराधना ।
अब सारा चीत्कार कर्ता समुदाय ।
क्यों मान रहा कर्ता धर्ता असहाय ।
भक्ति आराधना में नहीं लगता मन
लगे शांति साधना हुई निरूपाय ।
गर कर पाऐं कहीं कुछ आराधना ।
शायद कर पाऐ कुछ शांति स्थापना ।
शक्ति शांति दें सिद्धिदात्री सावित्री,
करें भक्ति भाव से शांत उपासना ।
सभी नवरात्रि मां पारायण कर लें ।
पाठ भगवती मां रामायण कर लें ।
हम कुछ आदिशक्ति मां जगदंबा की ,
सच निर्मल मन मां आराधन कर लें ।
स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
बिषय ___शांति
विधा ____मुक्तक
(मात्रा भार 20)
लगता प्रदूषित वातावरण अपना ।
हम नहीं कर पाऐं कोई साधना ।
ये शक्ति शांति नहीं मिलती हमको
नहीं कर पाते कोई आराधना ।
अब सारा चीत्कार कर्ता समुदाय ।
क्यों मान रहा कर्ता धर्ता असहाय ।
भक्ति आराधना में नहीं लगता मन
लगे शांति साधना हुई निरूपाय ।
गर कर पाऐं कहीं कुछ आराधना ।
शायद कर पाऐ कुछ शांति स्थापना ।
शक्ति शांति दें सिद्धिदात्री सावित्री,
करें भक्ति भाव से शांत उपासना ।
सभी नवरात्रि मां पारायण कर लें ।
पाठ भगवती मां रामायण कर लें ।
हम कुछ आदिशक्ति मां जगदंबा की ,
सच निर्मल मन मां आराधन कर लें ।
स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
दिनांक:07/09/2019
विधा:हाइकु
विषय:शांति
सुप्रभात समूह के सभी साथियों को ।आज मैने शांति को कई रसो मे हाईकु का प्रयोग किया है । पहला हमारी पंछी के पंख जो ऊंची उडान का प्रतीक, फिर
शांति प्रतीक मे वीर रस ,शांति बाई हास्य रस व आखरी मे सामाजिक कर्तव्य पर लिखने की कोशिश की है ।
🕊🕊🕊🕊
शांति प्रतीक
आकांक्षा रूपी पंख
नभ की ओर।
👮♂️👮♂️👮♂️👮♂️
पडोसी देश
विफल शांति वार्ता
अस्त्र विकल्प ।
चौकन्ने वीर
आशंकित शांति
युद्ध प्रारम्भ ।
रण की शांति
रक्तपूर्ण धरती
सैनिक भक्ति।
👯♂️👯♂️👯♂️👯♂️
दस्तक हुई
शांति बाई के स्वर
खुशी की घंटी ।
🌲🌳🦚🦜
गोद ले गाँव
झूम उठी धरती
स्वागत शांति ।
👨👩👦👦👨👩👦👦👨👩👦👦👨👩👦👦
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विधा:हाइकु
विषय:शांति
सुप्रभात समूह के सभी साथियों को ।आज मैने शांति को कई रसो मे हाईकु का प्रयोग किया है । पहला हमारी पंछी के पंख जो ऊंची उडान का प्रतीक, फिर
शांति प्रतीक मे वीर रस ,शांति बाई हास्य रस व आखरी मे सामाजिक कर्तव्य पर लिखने की कोशिश की है ।
🕊🕊🕊🕊
शांति प्रतीक
आकांक्षा रूपी पंख
नभ की ओर।
👮♂️👮♂️👮♂️👮♂️
पडोसी देश
विफल शांति वार्ता
अस्त्र विकल्प ।
चौकन्ने वीर
आशंकित शांति
युद्ध प्रारम्भ ।
रण की शांति
रक्तपूर्ण धरती
सैनिक भक्ति।
👯♂️👯♂️👯♂️👯♂️
दस्तक हुई
शांति बाई के स्वर
खुशी की घंटी ।
🌲🌳🦚🦜
गोद ले गाँव
झूम उठी धरती
स्वागत शांति ।
👨👩👦👦👨👩👦👦👨👩👦👦👨👩👦👦
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
07/10/2019
"शांति"
################
सुबह होते ही दौड़ती जिंदगी है
पेट की खातिर ही भागमभाग है
दो जून की रोटी की जुगाड़ है
शांति कहाँ किसी के पास है।
कभी टुट गए जो सपने हैं
कभी रूठ गए जो अपने हैं
बेचैनियों से ही पड़ा वास्ता है
शांति का ही होता अभाव है।
अगर आशा कभी हो गई पूरी
मगर इच्छाएँ तो... अनंत है
यह सदैव रह जाती है अधूरी
शांति दूर से ही निहारती है।
जिंदगी के सफर में हमारे संग
साथ शांति की समानांतर चाल है
साथ चलते हुए न मिलाती हाथ है
चिर निद्रा में मिल जाती शांति है।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"शांति"
################
सुबह होते ही दौड़ती जिंदगी है
पेट की खातिर ही भागमभाग है
दो जून की रोटी की जुगाड़ है
शांति कहाँ किसी के पास है।
कभी टुट गए जो सपने हैं
कभी रूठ गए जो अपने हैं
बेचैनियों से ही पड़ा वास्ता है
शांति का ही होता अभाव है।
अगर आशा कभी हो गई पूरी
मगर इच्छाएँ तो... अनंत है
यह सदैव रह जाती है अधूरी
शांति दूर से ही निहारती है।
जिंदगी के सफर में हमारे संग
साथ शांति की समानांतर चाल है
साथ चलते हुए न मिलाती हाथ है
चिर निद्रा में मिल जाती शांति है।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
07/10/2019
विषय:-"शांति"
छंदमुक्त रचना..
खो गई है शांति
और...
मन भी खो गया है
आस पास भीड़ है
फिर भी..
आदमी अकेला हो गया है l
घर की मुर्गी बराबर दाल
और....
जो मिला, सके न सही संभाल
अशांति का वास हो गया है
और..
रिश्तों की कीमत भूलने लगे
स्वार्थ का व्यापार हो गया है l
असंतोष,विषमताएं
और....
होड़,भौतिकताएँ
शांति को हर लिया है
और....
भीतर की राह भूल गए
मनुज बाहर खो गया है l
बदले धर्म, चढ़े पहाड़
और....
रोके न रुके, सोच की बाढ़
कर्म में विकार हो गया है
और ...
शांति के नाम युद्ध तैयार
कैसा विरोधाभास हो गया है?
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
विषय:-"शांति"
छंदमुक्त रचना..
खो गई है शांति
और...
मन भी खो गया है
आस पास भीड़ है
फिर भी..
आदमी अकेला हो गया है l
घर की मुर्गी बराबर दाल
और....
जो मिला, सके न सही संभाल
अशांति का वास हो गया है
और..
रिश्तों की कीमत भूलने लगे
स्वार्थ का व्यापार हो गया है l
असंतोष,विषमताएं
और....
होड़,भौतिकताएँ
शांति को हर लिया है
और....
भीतर की राह भूल गए
मनुज बाहर खो गया है l
बदले धर्म, चढ़े पहाड़
और....
रोके न रुके, सोच की बाढ़
कर्म में विकार हो गया है
और ...
शांति के नाम युद्ध तैयार
कैसा विरोधाभास हो गया है?
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
710/2019
विषय-शांति
💐💐💐💐💐💐
शांति कोई चीज़ नहीं
जिसे हासिल किया जाय
शांति कोई खिलौना नहीं
जिसके संग खेला जाय
शांति कोई बिछौना नहीं
जो ओढ़ कर सो लिया जाय
शांति कोई चिड़िया नहीं
जो फुर्र से उड़ जाय
शांति एक अनुभव है
गहन सोच विचार कीजिये
जरा शांत स्वरूप में
ध्यान लगा कर बैठिए
जो स्वयं अंतर्निहित है
उसकी खोज में वक़्त
ना बर्बाद कीजिये
शांति प्रत्येक हृदय के भीतर है
बस उसे महसूस कीजिए
बस वो वहीं है
जहाँ उसे होना चाहिए ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
विषय-शांति
💐💐💐💐💐💐
शांति कोई चीज़ नहीं
जिसे हासिल किया जाय
शांति कोई खिलौना नहीं
जिसके संग खेला जाय
शांति कोई बिछौना नहीं
जो ओढ़ कर सो लिया जाय
शांति कोई चिड़िया नहीं
जो फुर्र से उड़ जाय
शांति एक अनुभव है
गहन सोच विचार कीजिये
जरा शांत स्वरूप में
ध्यान लगा कर बैठिए
जो स्वयं अंतर्निहित है
उसकी खोज में वक़्त
ना बर्बाद कीजिये
शांति प्रत्येक हृदय के भीतर है
बस उसे महसूस कीजिए
बस वो वहीं है
जहाँ उसे होना चाहिए ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
07 /10/19
शांति /सकून
**
जिंदगी भर करती रही ,शांति की तलाश।
लम्हा लम्हा बीत रहा,होते अब निराश ।।
जीवन की रात अंधेरी, खुशियां हुई दूर।
आपाधापी लगी रही ,हम हुये मजबूर ।।
मंदिर मस्जिद भटके हैं ,आया न कुछ रास।
थके हार सब छोड़ दिया,पाया अपने पास।।
चादर में पैर पसारे , खरचे करे न्यून ।
गरीब को देकर देखा ,रोटियां दो जून ।।
बूढ़ों सँग समय बिताया ,सेवा है जुनून।
बच्चों की किलकारी में ,मिलता है सुकून।।
बीते वक़्त की याद में,खोये दिल का चैन।
भविष्य का पता नहीं क्यों ,मन करे बैचैन।।
उम्मीद हम क्योंकर करें ,करती ये हताश।
वर्तमान में खुश रह कर,पूरी करें तलाश ।।
भानु प्रातः का उदित हुआ ,बीती जाय रात।
है सुकून जब जीवन में,खुशियों की बरात ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
शांति /सकून
**
जिंदगी भर करती रही ,शांति की तलाश।
लम्हा लम्हा बीत रहा,होते अब निराश ।।
जीवन की रात अंधेरी, खुशियां हुई दूर।
आपाधापी लगी रही ,हम हुये मजबूर ।।
मंदिर मस्जिद भटके हैं ,आया न कुछ रास।
थके हार सब छोड़ दिया,पाया अपने पास।।
चादर में पैर पसारे , खरचे करे न्यून ।
गरीब को देकर देखा ,रोटियां दो जून ।।
बूढ़ों सँग समय बिताया ,सेवा है जुनून।
बच्चों की किलकारी में ,मिलता है सुकून।।
बीते वक़्त की याद में,खोये दिल का चैन।
भविष्य का पता नहीं क्यों ,मन करे बैचैन।।
उम्मीद हम क्योंकर करें ,करती ये हताश।
वर्तमान में खुश रह कर,पूरी करें तलाश ।।
भानु प्रातः का उदित हुआ ,बीती जाय रात।
है सुकून जब जीवन में,खुशियों की बरात ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
०७/१०/२०१९
विषय--शांति
शांति की तलाश में
अधरों का प्रश्न छुपा कर चला
मिलों दूर चलता ही रहा
न शांति मिली न जगह मिली।
जब मिली न शांति मुझे कहीं
मैने अपने मन से पूछा
क्यों ढ़ूंढ़ रहे हो शांति आज
मन ने कुछ कहना ही चाहा
पर अधरों ने नहीं साथ दिया।
कोलाहल मेरे अंतरमन में था
कुछ समझा कुछ मैं शांत रहा
इतने में मन बोला मुझसे
जिसे ढ़ूंढ़ रहा है इधर उधर
वह रहती है तेरे अन्दर
कर शांत इस अंतरमन को
सब मिल जाएगा यहीं तुझे।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
रैनी, मऊ उत्तरप्रदेश।
विषय--शांति
शांति की तलाश में
अधरों का प्रश्न छुपा कर चला
मिलों दूर चलता ही रहा
न शांति मिली न जगह मिली।
जब मिली न शांति मुझे कहीं
मैने अपने मन से पूछा
क्यों ढ़ूंढ़ रहे हो शांति आज
मन ने कुछ कहना ही चाहा
पर अधरों ने नहीं साथ दिया।
कोलाहल मेरे अंतरमन में था
कुछ समझा कुछ मैं शांत रहा
इतने में मन बोला मुझसे
जिसे ढ़ूंढ़ रहा है इधर उधर
वह रहती है तेरे अन्दर
कर शांत इस अंतरमन को
सब मिल जाएगा यहीं तुझे।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
रैनी, मऊ उत्तरप्रदेश।
विषय शाँति
विधा कविता
दिनांक 7.10.2019
दिन सोमवार
शाँति
💘💘💘
शान्ति में ही मन का चैन
नींद में कट जाती रैन
अशान्त मन तो रहता है
दिन और रात पूरा बैचैन।
शान्त मन की अलग सोच
वह नहीं लेता कोई उत्कोच
समर्पित भाव से काम करता
काम से अपना नाम करता।
शान्त भाव की पूँजी ध्यान
अध्यात्म में लग सकते प्रान
सच्चे आनन्द का होता अनुमान
कहाँ दिखती है फिर थकान।
पूरी दुनियाँ है पडी़ अशान्त
नाचता हर ओर आक्रान्त
यौन शोषण से चेहरे क्लान्त
असुरक्षित है हरेक प्रान्त।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विधा कविता
दिनांक 7.10.2019
दिन सोमवार
शाँति
💘💘💘
शान्ति में ही मन का चैन
नींद में कट जाती रैन
अशान्त मन तो रहता है
दिन और रात पूरा बैचैन।
शान्त मन की अलग सोच
वह नहीं लेता कोई उत्कोच
समर्पित भाव से काम करता
काम से अपना नाम करता।
शान्त भाव की पूँजी ध्यान
अध्यात्म में लग सकते प्रान
सच्चे आनन्द का होता अनुमान
कहाँ दिखती है फिर थकान।
पूरी दुनियाँ है पडी़ अशान्त
नाचता हर ओर आक्रान्त
यौन शोषण से चेहरे क्लान्त
असुरक्षित है हरेक प्रान्त।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
।। अमन-शांति आयी है ।।
भारत के मोर मुकुट पर
किस्मत रंग क्या लायी है,
श्वेत फूल-मालाओं पर
अमन-शांति आयी है।
सत्तर वर्ष के इतिहास में
लहर, क्रांति की छायी है,
भड़काने वाले लोगों की
अब शामत आयी है।
कश्मीर के विकास की
किसी ने अलख जगायी है,
बूढ़े हो चुके कश्मीर में
फिर जवानी आयी हैं।
मेहमानों के स्वागत की
अबकी पूरी तैयारी है,
जो रोकेगा काफिले को
उनकी मौत आयी है।
श्वेत मोतियों की वर्षा ने
धरा पर जन्नत पायी है,
पर्यटकों की फ़ौज भी
उनसे मिलने आयी है।
भाविक भावी
भारत के मोर मुकुट पर
किस्मत रंग क्या लायी है,
श्वेत फूल-मालाओं पर
अमन-शांति आयी है।
सत्तर वर्ष के इतिहास में
लहर, क्रांति की छायी है,
भड़काने वाले लोगों की
अब शामत आयी है।
कश्मीर के विकास की
किसी ने अलख जगायी है,
बूढ़े हो चुके कश्मीर में
फिर जवानी आयी हैं।
मेहमानों के स्वागत की
अबकी पूरी तैयारी है,
जो रोकेगा काफिले को
उनकी मौत आयी है।
श्वेत मोतियों की वर्षा ने
धरा पर जन्नत पायी है,
पर्यटकों की फ़ौज भी
उनसे मिलने आयी है।
भाविक भावी
विषय शांति
विधा काव्य
07 अक्टूबर,2019 सोमवार
शिशु जन्म जब घर में होता
सुख शान्ति परिवार में आती।
मीठा मुख सबका करते मिल
बलिहारी बलि बलि सब जाती।
भौतिकवादी इस जीवन में
चाहत की सीमा नहीं होती।
प्रतिस्पर्धा जन जन में फैली
रहे तनावग्रस्त शांति रोती।
दया ममता स्नेह समर्पण
जीवन में सुख शांति देता।
घृणा बैर अहंकार जो पाले
जीवन में मिलता नहीं धेला।
जो नर जीवन में संतोषी
सन्तोषी नर शांति पाता है।
परोपकार के पथ चल कर
शांति गीत हँसकर गाता है।
तेरा मेरा इसका उसका
भेदभाव करे जो नर में।
ये मायावी अद्भुत दुनियां
तू सुरक्षित नहीं है घर में।
पर्यावरण जगत समस्या है
आच्छादित प्रदूषण अशांति।
जल वायु ध्वनि मृदा स्वच्छ हो
रोग निवारण जग में हो शांति।
भिन्न भिन्न मत सब ही के
मन मलीन फैली है भ्रांति
पागल बनकर घूम रहा नर
है निश्चित हरि ओम शांति।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
07 अक्टूबर,2019 सोमवार
शिशु जन्म जब घर में होता
सुख शान्ति परिवार में आती।
मीठा मुख सबका करते मिल
बलिहारी बलि बलि सब जाती।
भौतिकवादी इस जीवन में
चाहत की सीमा नहीं होती।
प्रतिस्पर्धा जन जन में फैली
रहे तनावग्रस्त शांति रोती।
दया ममता स्नेह समर्पण
जीवन में सुख शांति देता।
घृणा बैर अहंकार जो पाले
जीवन में मिलता नहीं धेला।
जो नर जीवन में संतोषी
सन्तोषी नर शांति पाता है।
परोपकार के पथ चल कर
शांति गीत हँसकर गाता है।
तेरा मेरा इसका उसका
भेदभाव करे जो नर में।
ये मायावी अद्भुत दुनियां
तू सुरक्षित नहीं है घर में।
पर्यावरण जगत समस्या है
आच्छादित प्रदूषण अशांति।
जल वायु ध्वनि मृदा स्वच्छ हो
रोग निवारण जग में हो शांति।
भिन्न भिन्न मत सब ही के
मन मलीन फैली है भ्रांति
पागल बनकर घूम रहा नर
है निश्चित हरि ओम शांति।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय,_शांति|
आज छाई चहू ओर अशांति |
मन बुद्धि सब खोये खोये से |अस्थिरता अनुशासन परस रहा जीवन जीना बेसुरासा लग रहा |
हो शांति स्थिरता मन मे तो सब अच्छा |
लगता मन आत्मा की गहराई मेखोया |
कुछ पाने को मंथन कर रहा |
जो खोया वह पाने को गोते लगा रहा |
मथंन से मिलता ईश्वर जो आत्मा मे समाया |
मिला वह जो जीने के तत्व हे इच्छा शक्ति |
सात्विक ता से जिये जीवनबस |
स्वरचित,,,,,दमयंती मिश्रा
आज छाई चहू ओर अशांति |
मन बुद्धि सब खोये खोये से |अस्थिरता अनुशासन परस रहा जीवन जीना बेसुरासा लग रहा |
हो शांति स्थिरता मन मे तो सब अच्छा |
लगता मन आत्मा की गहराई मेखोया |
कुछ पाने को मंथन कर रहा |
जो खोया वह पाने को गोते लगा रहा |
मथंन से मिलता ईश्वर जो आत्मा मे समाया |
मिला वह जो जीने के तत्व हे इच्छा शक्ति |
सात्विक ता से जिये जीवनबस |
स्वरचित,,,,,दमयंती मिश्रा
शुभ साँझ
🌹💐🌹💐🌹💐🌹
विषय:-शान्ति
दो घड़ी सुकून का अब नहीं मिला
ऐ जिन्दगी हमें नहीं तुझसे अब गिला
जो रूठी हैं राहे वो गमो से हैं चूर
हमनें भी उनमें खुशियों का अंकुर खिला दिया ।
लोग ढूँढते हैं शान्ति के पल जो नहीं मिले
कर्तव्यों के खोज में जो अनबरत चले
लगने लगेंगे फूल भी झूमेगी डाल डाल
महकने लगेगी राह भी कर्मो के फूल से
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
🌹💐🌹💐🌹💐🌹
विषय:-शान्ति
दो घड़ी सुकून का अब नहीं मिला
ऐ जिन्दगी हमें नहीं तुझसे अब गिला
जो रूठी हैं राहे वो गमो से हैं चूर
हमनें भी उनमें खुशियों का अंकुर खिला दिया ।
लोग ढूँढते हैं शान्ति के पल जो नहीं मिले
कर्तव्यों के खोज में जो अनबरत चले
लगने लगेंगे फूल भी झूमेगी डाल डाल
महकने लगेगी राह भी कर्मो के फूल से
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
7/10/19
विषय-शांति
*आत्म निवेदन *
एक सदा दे मुझको
कहां जाना है पता दे मुझ को
भव सागर तर जाने की
नाव नही ,हौसला दे मुझको
बिआवान फैला है
चारों और कोलाहल का
बस एक छोटा उपवन
"शांति" का दे मुझ को
मोक्ष पथ ही दिखे सदा
ऐसा अमर फल दे मुझ को
मुझ से मै निकल जाय
सिर्फ़ तूं ही तूं रह जाय
ऐसी प्रज्ञा मिल जाय ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय-शांति
*आत्म निवेदन *
एक सदा दे मुझको
कहां जाना है पता दे मुझ को
भव सागर तर जाने की
नाव नही ,हौसला दे मुझको
बिआवान फैला है
चारों और कोलाहल का
बस एक छोटा उपवन
"शांति" का दे मुझ को
मोक्ष पथ ही दिखे सदा
ऐसा अमर फल दे मुझ को
मुझ से मै निकल जाय
सिर्फ़ तूं ही तूं रह जाय
ऐसी प्रज्ञा मिल जाय ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
07/10/19
सोमवार
विषय- शान्ति
कविता
अमन, चैन और शान्ति शब्द अब तो बेगाने लगते हैं,
वर्तमान भारत में अब तो अलग तराने बजते हैं।
ऋषियों-मुनियों की धरती पर भीषण विप्लव आया है,
हर भारतवासी के मन में भ्रष्टाचार समाया है।
अपने गौरवमय अतीत को लगता है सब भूल गये,
वैभव की दुनिया को पाकर अहंकार में फूल गये ।
उनके शब्दकोश में अब न अमन -चैन की बातें हैं,
एक- दूजे पर षडयंत्रों की आज लग रही घातें हैं।
रिश्ते-नातों की कडियाँ सब एक-एक कर टूट रहीं,
मानव-मूल्यों की गरिमामय बातें पीछे छूट रही।
बच्चे, वृद्ध और महिलाएं नहीं सुरक्षित लगते हैं ,
उनके शोषण के किस्से प्रतिदिन मन विचलित करते हैं।
कब तक दानवता सबके मन को पीड़ा पहुँचाएगी,
कभी तो मानवता लोगों के हृदयों को पिघलाएगी।
समय जागने का है बस अब हम सब मिल संकल्प करें,
भारत -भू पर दानवता का हम अंतिम संस्कार करें।
तभी शान्ति-दूत भारत फिर उसी रूप में आएगा ,
फिर अपनी पावन वसुधा पर अमन -चैन छा जाएगा।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
सोमवार
विषय- शान्ति
कविता
अमन, चैन और शान्ति शब्द अब तो बेगाने लगते हैं,
वर्तमान भारत में अब तो अलग तराने बजते हैं।
ऋषियों-मुनियों की धरती पर भीषण विप्लव आया है,
हर भारतवासी के मन में भ्रष्टाचार समाया है।
अपने गौरवमय अतीत को लगता है सब भूल गये,
वैभव की दुनिया को पाकर अहंकार में फूल गये ।
उनके शब्दकोश में अब न अमन -चैन की बातें हैं,
एक- दूजे पर षडयंत्रों की आज लग रही घातें हैं।
रिश्ते-नातों की कडियाँ सब एक-एक कर टूट रहीं,
मानव-मूल्यों की गरिमामय बातें पीछे छूट रही।
बच्चे, वृद्ध और महिलाएं नहीं सुरक्षित लगते हैं ,
उनके शोषण के किस्से प्रतिदिन मन विचलित करते हैं।
कब तक दानवता सबके मन को पीड़ा पहुँचाएगी,
कभी तो मानवता लोगों के हृदयों को पिघलाएगी।
समय जागने का है बस अब हम सब मिल संकल्प करें,
भारत -भू पर दानवता का हम अंतिम संस्कार करें।
तभी शान्ति-दूत भारत फिर उसी रूप में आएगा ,
फिर अपनी पावन वसुधा पर अमन -चैन छा जाएगा।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
हाइकु,
शांति की खोज,
वासनाएं मिटाओ,
आनंद पाओ,१/
२/वासना शून्य,
मन रहता शांत,
परमानंद।।२/
वासनाओं से,
मन अशांत रहे,
शांति को ढूंढो।।३।।
अशांत मन,
ज्ञान ज्योतिमिटाऐ,
अज्ञात तय।।४।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ ग।
शांति की खोज,
वासनाएं मिटाओ,
आनंद पाओ,१/
२/वासना शून्य,
मन रहता शांत,
परमानंद।।२/
वासनाओं से,
मन अशांत रहे,
शांति को ढूंढो।।३।।
अशांत मन,
ज्ञान ज्योतिमिटाऐ,
अज्ञात तय।।४।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ ग।
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