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ब्लॉग संख्या :-519
शीर्षक मंथन
विधा काव्य
28 सितम्बर 2019,शनिवार
जो वाणी का मंथन करते
सोच समझकर सदा बोलते।
गूढ़ ज्ञान गाम्भीर्य भाव से
रहस्यमयी नव राज खोलते।
बिन मंथन घृत नहीं निकले
मंथन श्रम जीवन का साथी।
जो शिष्य नित करता मंथन
जले हिय में ज्ञान की बाती।
जीवन सागर मंथन ही है
जो मथेगा उसे ही मिलेगा।
खून पसीना सदा बहाकर
वह जीवन में सदा खिलेगा।
मंथन है जीवन की मंजिल
सोचे समझे फिर वह चढ़ता।
थकने पर भी कभी न रुकता
सदा लक्ष्य की ओर ही बढ़ता।
कर्मों का मंथन मिल करलो
दुःख दर्दो को मिलकर सहलो।
आना जाना बस जीवन यह
प्रिय जनों को हिय से भरलो।
स्वहित जो जीते हैं जग में
वे क्या जाने नर पीर पराई
पशुवत जीते पशुवत मरते
वे अंजाने जगत भलाई।
स्वरचित,मौलिक
विधा काव्य
28 सितम्बर 2019,शनिवार
जो वाणी का मंथन करते
सोच समझकर सदा बोलते।
गूढ़ ज्ञान गाम्भीर्य भाव से
रहस्यमयी नव राज खोलते।
बिन मंथन घृत नहीं निकले
मंथन श्रम जीवन का साथी।
जो शिष्य नित करता मंथन
जले हिय में ज्ञान की बाती।
जीवन सागर मंथन ही है
जो मथेगा उसे ही मिलेगा।
खून पसीना सदा बहाकर
वह जीवन में सदा खिलेगा।
मंथन है जीवन की मंजिल
सोचे समझे फिर वह चढ़ता।
थकने पर भी कभी न रुकता
सदा लक्ष्य की ओर ही बढ़ता।
कर्मों का मंथन मिल करलो
दुःख दर्दो को मिलकर सहलो।
आना जाना बस जीवन यह
प्रिय जनों को हिय से भरलो।
स्वहित जो जीते हैं जग में
वे क्या जाने नर पीर पराई
पशुवत जीते पशुवत मरते
वे अंजाने जगत भलाई।
स्वरचित,मौलिक
दिनांक28/09/2019
विषय-मंथन
करें हम श्रवण, मनन, निधिध्यासन
से मुखरित होकर मंथन।
नित नव भाव प्रस्फुटित होवे मन मे
साधक बनकर करे चिंतन।।
स्वर व्यंजन के समावेश से
रसातीत अधरों पर रचना का करें अर्चन।।
शब्द शीर्ष शिखर पर चढ़ जाते हैं
अलंकारों से उसे पिरोते, व्यंजन से करते नर्तन।।
जड़ चेतन भाषा का सृजन हार हो
तुम बनो भाषा सृष्टि का आधार, मैं हूं मात्र अकिंचन।।
सृष्टि की दृष्टि में मृगतृष्णा कोरा खेल
आओ अतीत को छोड़कर ,बर्तमान का करें चिंतन।।
मौलिक रचना
सत्यप्रकाश सिंह प्रयागराज
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय-मंथन
करें हम श्रवण, मनन, निधिध्यासन
से मुखरित होकर मंथन।
नित नव भाव प्रस्फुटित होवे मन मे
साधक बनकर करे चिंतन।।
स्वर व्यंजन के समावेश से
रसातीत अधरों पर रचना का करें अर्चन।।
शब्द शीर्ष शिखर पर चढ़ जाते हैं
अलंकारों से उसे पिरोते, व्यंजन से करते नर्तन।।
जड़ चेतन भाषा का सृजन हार हो
तुम बनो भाषा सृष्टि का आधार, मैं हूं मात्र अकिंचन।।
सृष्टि की दृष्टि में मृगतृष्णा कोरा खेल
आओ अतीत को छोड़कर ,बर्तमान का करें चिंतन।।
मौलिक रचना
सत्यप्रकाश सिंह प्रयागराज
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
प्रथम प्रस्तुति
आत्म मंथन नित हमें करना होगा
हर पहलू में रंग हमें भरना होगा ।।
एक पहलू है गर जो गमगीन तो
और पहलु में हमें निखरना होगा ।।
जीवन ही पहेली यूँ न बूझी जाय
गुरू चरणों में शीष हमें धरना होगा ।।
आत्म रूप में क्या हैं हम जानें ये
सीढ़ी दर सीढ़ी इसमें उतरना होगा ।।
आत्म गलानि हो जिन कर्मों से उन
कर्मो से बचना और डरना होगा ।।
आत्म मंथन से उजाला आया है
आत्म मंथन से हमें सँवरना होगा ।।
भटकने से कुछ नही हासिल 'शिवम'
आत्म मंथन कर स्व से मिलना होगा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/09/2019
आत्म मंथन नित हमें करना होगा
हर पहलू में रंग हमें भरना होगा ।।
एक पहलू है गर जो गमगीन तो
और पहलु में हमें निखरना होगा ।।
जीवन ही पहेली यूँ न बूझी जाय
गुरू चरणों में शीष हमें धरना होगा ।।
आत्म रूप में क्या हैं हम जानें ये
सीढ़ी दर सीढ़ी इसमें उतरना होगा ।।
आत्म गलानि हो जिन कर्मों से उन
कर्मो से बचना और डरना होगा ।।
आत्म मंथन से उजाला आया है
आत्म मंथन से हमें सँवरना होगा ।।
भटकने से कुछ नही हासिल 'शिवम'
आत्म मंथन कर स्व से मिलना होगा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/09/2019
28/09/19
विषय-मंथन
मन की अगणित परतों मे दबी ढकी आग
कभी सुलगती कभी मद्धम कभी धीमी फाग।
यूं न जलने दो नाहक इस तेजस अनल को
सेक लो हर लौ पर जीवन के पल-पल को।
यूं न बनाओ निज के अस्तित्व को नीरस
पकालो आत्मीयता की मधुर पायस।
गहराई तक उतर के देखो सत्य का दर्पण
निज मन की कलुषिता का कर दो तर्पण ।
बस उलझन का कोहरा ढकता उसे कुछ काल
मन "मंथन "का गरल पी शिव बन,उठा निज भाल।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
विषय-मंथन
मन की अगणित परतों मे दबी ढकी आग
कभी सुलगती कभी मद्धम कभी धीमी फाग।
यूं न जलने दो नाहक इस तेजस अनल को
सेक लो हर लौ पर जीवन के पल-पल को।
यूं न बनाओ निज के अस्तित्व को नीरस
पकालो आत्मीयता की मधुर पायस।
गहराई तक उतर के देखो सत्य का दर्पण
निज मन की कलुषिता का कर दो तर्पण ।
बस उलझन का कोहरा ढकता उसे कुछ काल
मन "मंथन "का गरल पी शिव बन,उठा निज भाल।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
28 //9//2019
बिषय,, मंथन
सत्य असत्य का मंथन कर लें
जीवन निर्थक न जाएगा
राग द्वेष से मुक्त हो झूठ पर सत्य की विजय पाऐगा
समभाव का हो चिंतन
परहित का रहे मनन
माधुर्य का हो समावेश
प्रेम संचार का हो परिवेश
सर्वेभवन्तु सुखनः का मूल मंत्र अपनाएगा
सादा जीवन उच्च बिचार
जिसने समझा जीने का सार
परहित को बना आधार
सत्कर्म कर सारे बंधनों से मुक्ति पाएगा
फले हुए बृक्षों सा जिसने
झुकना सीखा है
भूत वर्तमान भविष्य सव उसी का है
सर्वगुणों की खान यश से अलंकृत हो जाएगा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, मंथन
सत्य असत्य का मंथन कर लें
जीवन निर्थक न जाएगा
राग द्वेष से मुक्त हो झूठ पर सत्य की विजय पाऐगा
समभाव का हो चिंतन
परहित का रहे मनन
माधुर्य का हो समावेश
प्रेम संचार का हो परिवेश
सर्वेभवन्तु सुखनः का मूल मंत्र अपनाएगा
सादा जीवन उच्च बिचार
जिसने समझा जीने का सार
परहित को बना आधार
सत्कर्म कर सारे बंधनों से मुक्ति पाएगा
फले हुए बृक्षों सा जिसने
झुकना सीखा है
भूत वर्तमान भविष्य सव उसी का है
सर्वगुणों की खान यश से अलंकृत हो जाएगा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
भावों के मोती
विषय--मंथन
दिनाँक--२८/९/२०१९
समुद्र मंथन तो मेरा भी है
और रोज ही है
चहूँ और निराशा भी है और उम्मीद की भोर भी है
मथना है मुझको रोज ही
अपने दिन भर के कामों को
खोजना है मुझको रोज ही
हर बार नई राहों को
मैं खोई हुई मंज़िल भी हूँ और खुद की तलाश में परेशान भी हूँ...
छीन लेती हूँ किस्मत में से दो चार पल अपने लिए
अड़ जाती हूँ कभी कभी अपने ही वजूद के लिए
मैं खुद की सगी भी हूँ और खुद से गैर भी हूँ....
धरती हूँ विष रोज ही कंठ और हृदय में
पीती हूँ रोज ही विष नया
मैं बहन-बेटी भी हूँ और लोगों की नज़रों में कुछ और भी हूँ...
स्वरचित
अर्पणा अग्रवाल
विषय--मंथन
दिनाँक--२८/९/२०१९
समुद्र मंथन तो मेरा भी है
और रोज ही है
चहूँ और निराशा भी है और उम्मीद की भोर भी है
मथना है मुझको रोज ही
अपने दिन भर के कामों को
खोजना है मुझको रोज ही
हर बार नई राहों को
मैं खोई हुई मंज़िल भी हूँ और खुद की तलाश में परेशान भी हूँ...
छीन लेती हूँ किस्मत में से दो चार पल अपने लिए
अड़ जाती हूँ कभी कभी अपने ही वजूद के लिए
मैं खुद की सगी भी हूँ और खुद से गैर भी हूँ....
धरती हूँ विष रोज ही कंठ और हृदय में
पीती हूँ रोज ही विष नया
मैं बहन-बेटी भी हूँ और लोगों की नज़रों में कुछ और भी हूँ...
स्वरचित
अर्पणा अग्रवाल
शनिवार
2 8,9,2019
जग मंथन सब कर रहे ,
मिला न मन का छोर ।
मन मानी ही बस किये,
सुना न दिल का शोर ।।
मायामय संसार है ,
भटक रहा हर जीव ।
बिछा कर्म का जाल है ,
जैसी जिसकी नीव ।।
ज्ञान वान भी भूलता ,
आये हम किस काज ।
जन मानस कैसे भला ,
मन में लाये लाज ।।
गुण अवगुण सबके रहें,
गुण का करे विकास ।
जीवन वही सफल कहें ,
हो दुनियाँ में पास ।।
आत्म मंथन कर लिया ,
पा लिया सदाचार ।
मानवता पैदा किया ,
जग में जय जयकार ।।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
2 8,9,2019
जग मंथन सब कर रहे ,
मिला न मन का छोर ।
मन मानी ही बस किये,
सुना न दिल का शोर ।।
मायामय संसार है ,
भटक रहा हर जीव ।
बिछा कर्म का जाल है ,
जैसी जिसकी नीव ।।
ज्ञान वान भी भूलता ,
आये हम किस काज ।
जन मानस कैसे भला ,
मन में लाये लाज ।।
गुण अवगुण सबके रहें,
गुण का करे विकास ।
जीवन वही सफल कहें ,
हो दुनियाँ में पास ।।
आत्म मंथन कर लिया ,
पा लिया सदाचार ।
मानवता पैदा किया ,
जग में जय जयकार ।।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
28/09/2019
विषय मंथन
विधा -- सायली छंद
मंथन
करना चाहिये
हर विषय पर
व्यक्ति को
हमेंशा
इससे
चेतना बढ़ेगी
बुद्धि प्रखर होगी
निड़र रहेगा
मानव
मंथन
प्रक्रिया है
आत्म विवेचन की
परखने की
सबकी
इसलिए
इसे अपनाओ
मंथन किया करो
आत्मबल बढ़ेगा
तुम्हारा
स्वरचित डॉ.विभा रजंन (कनक)
नयी दिल्ली
विषय मंथन
विधा -- सायली छंद
मंथन
करना चाहिये
हर विषय पर
व्यक्ति को
हमेंशा
इससे
चेतना बढ़ेगी
बुद्धि प्रखर होगी
निड़र रहेगा
मानव
मंथन
प्रक्रिया है
आत्म विवेचन की
परखने की
सबकी
इसलिए
इसे अपनाओ
मंथन किया करो
आत्मबल बढ़ेगा
तुम्हारा
स्वरचित डॉ.विभा रजंन (कनक)
नयी दिल्ली
तिथि =28/9 /2019 /शनिवार
बिषय ::#मंथन#
विधा ::दोहा सृजन
नियम-चार चरण बिषम में 13 13 अंत गुरू वर्णसे.सम चरण में 11,11 मात्राऐं अंत लघु से
दो दो चरण तुकांत होते हैं।
सम चरण 11 मात्रा बिषम चरण 1 मात्राभार
=====
क्यों आए हम इस जग में, जानें अपना काम ।
सोच समझ मंथन करें, जप लें हरि का नाम.। (1)
************************************
शुभ मंथन हो हमारा, ऊंची लगे छलांग.।
धीर वीर गंभीर तो , नहीं गैर की मांग ।(2)
**********************'************'***
आज हमारा कल नहीं, मंथन कर लें यार.।
मौत हमारे सामने, देखें करें विचार । (3)
*************************************
सत अहिंसा राह चलें, मधुरम वाणी बात ।
रहें प्रेम से हम सभी , मंथन कभी न घात.। (4)
************************************
मंथन से साहित्य रचें , कविगण सारे भूप ।
सबकुछ चरितार्थ करें, दिखते सुंदर रूप ।(5)
**************************************
स्वरचित :::
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी
1भा #मंथन#दोहा
28/9 /2019 /शनिवार
बिषय ::#मंथन#
विधा ::दोहा सृजन
नियम-चार चरण बिषम में 13 13 अंत गुरू वर्णसे.सम चरण में 11,11 मात्राऐं अंत लघु से
दो दो चरण तुकांत होते हैं।
सम चरण 11 मात्रा बिषम चरण 1 मात्राभार
=====
क्यों आए हम इस जग में, जानें अपना काम ।
सोच समझ मंथन करें, जप लें हरि का नाम.। (1)
************************************
शुभ मंथन हो हमारा, ऊंची लगे छलांग.।
धीर वीर गंभीर तो , नहीं गैर की मांग ।(2)
**********************'************'***
आज हमारा कल नहीं, मंथन कर लें यार.।
मौत हमारे सामने, देखें करें विचार । (3)
*************************************
सत अहिंसा राह चलें, मधुरम वाणी बात ।
रहें प्रेम से हम सभी , मंथन कभी न घात.। (4)
************************************
मंथन से साहित्य रचें , कविगण सारे भूप ।
सबकुछ चरितार्थ करें, दिखते सुंदर रूप ।(5)
**************************************
स्वरचित :::
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी
1भा #मंथन#दोहा
28/9 /2019 /शनिवार
मंथन
कान का कच्चा
आँख का अंधा
अक्ल का खोटा क्यू?
करें मंथन रोज
हृदय का आप,
तमोगुण होगा दूर।
ईश्वर प्रदत
सुन्दर जीवन
यूं न करें बर्बाद
सर्वज्ञ है ईश हमारे।
महत्त्वकांक्षी हम जरूर,
कर्मठ बने,हठर्धमी नहीं
उपकृत हम रहे सदा
सर्वव्यापी है ईश हमारे
समर्दशी वे भरपूर।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
कान का कच्चा
आँख का अंधा
अक्ल का खोटा क्यू?
करें मंथन रोज
हृदय का आप,
तमोगुण होगा दूर।
ईश्वर प्रदत
सुन्दर जीवन
यूं न करें बर्बाद
सर्वज्ञ है ईश हमारे।
महत्त्वकांक्षी हम जरूर,
कर्मठ बने,हठर्धमी नहीं
उपकृत हम रहे सदा
सर्वव्यापी है ईश हमारे
समर्दशी वे भरपूर।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
28/09/19
विषय:मंथन
विधा:छंदमुक्त काव्य
जीवन एक संघर्ष
प्रत्येक क्षण यहाँ मंथन
मानव को मानव बनाने का
मानवता का पथ दिखलाने को
मंथन करना जरूरी है
समाज को जगाना है
सोच का स्तर बढ़ाना है
मनुष्यता को जिताना है
आत्म मंथन चरित्र बनाता है
जीवन सवांरता है
मंथन ही अमृत पिलाता है
जिन्दगी की राह दिखाता है
नव निर्माण मंथन का प्रतिफल है
विश्व विकास का आधार है
मंथन ही महान कल है
सत्य -असत्य का आधार है
मनीष कुमार श्रीवास्तव
रायबरेली
स्वरचित
विषय:मंथन
विधा:छंदमुक्त काव्य
जीवन एक संघर्ष
प्रत्येक क्षण यहाँ मंथन
मानव को मानव बनाने का
मानवता का पथ दिखलाने को
मंथन करना जरूरी है
समाज को जगाना है
सोच का स्तर बढ़ाना है
मनुष्यता को जिताना है
आत्म मंथन चरित्र बनाता है
जीवन सवांरता है
मंथन ही अमृत पिलाता है
जिन्दगी की राह दिखाता है
नव निर्माण मंथन का प्रतिफल है
विश्व विकास का आधार है
मंथन ही महान कल है
सत्य -असत्य का आधार है
मनीष कुमार श्रीवास्तव
रायबरेली
स्वरचित
28/9/2019
विषय-मंथन
###########
इस जीवन में आधा अंधेरा है
और आधा ही है उजाला
सुख दुःख का हम सबको
पीना ही पड़ता है प्याला ..
आत्म मंथन जब करेंगे
सद्गुणों के रत्न तब प्रस्फुटित होंगे
कुविचारों के हलाहल निःसृत होंगे
कल्याणकारी शिव तत्व तब जाग्रत होंगे
हम आत्मदीप बन कर
फैला दें जग में उजियारा
जब निकलेगा सुख का सूरज
तब दूर भागेगा दुख का अंधियारा
परोपकार की राह पकड़ लें
छोड़ के सारे गोरख धंधे
संकल्पों की गंगा नहा लें
खोलें कुविचारों के फंदे..
आत्म सूर्योदय जब होगा
तब होगा मन मंदिर में उजाला
दिव्य ज्योति प्रज्ज्वलित होगी
तब कहाँ टिकेगा अंधकार का जाला ..!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय-मंथन
###########
इस जीवन में आधा अंधेरा है
और आधा ही है उजाला
सुख दुःख का हम सबको
पीना ही पड़ता है प्याला ..
आत्म मंथन जब करेंगे
सद्गुणों के रत्न तब प्रस्फुटित होंगे
कुविचारों के हलाहल निःसृत होंगे
कल्याणकारी शिव तत्व तब जाग्रत होंगे
हम आत्मदीप बन कर
फैला दें जग में उजियारा
जब निकलेगा सुख का सूरज
तब दूर भागेगा दुख का अंधियारा
परोपकार की राह पकड़ लें
छोड़ के सारे गोरख धंधे
संकल्पों की गंगा नहा लें
खोलें कुविचारों के फंदे..
आत्म सूर्योदय जब होगा
तब होगा मन मंदिर में उजाला
दिव्य ज्योति प्रज्ज्वलित होगी
तब कहाँ टिकेगा अंधकार का जाला ..!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
भावों के मोती दिनांक 28/9/19
मंथन
है जीवन क्षणभंगुर
दिया है प्रभु ने इसे सुन्दर
करो काम अच्छे अच्छे
करो मंथन सच्चे सच्चे
माता पिता ने दिया है जीवन
हैं उनके प्रति भी दायित्व हमारे
करें सेवा उनकी जीवन में
हो शामिल यह भी मंथन हमारे
बढ़े मंथन से ज्ञान सभी का
दिखाई ॠषि मुनियों ने राह
करके मंथन हो गये
तुलसी काली महान
रहे जब तक ये जीवन
बना रहे साथ मंथन का हमारा
जिस दिन आँखे बंद हुई
बंद हुआ चिंतन मनन सारा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
मंथन
है जीवन क्षणभंगुर
दिया है प्रभु ने इसे सुन्दर
करो काम अच्छे अच्छे
करो मंथन सच्चे सच्चे
माता पिता ने दिया है जीवन
हैं उनके प्रति भी दायित्व हमारे
करें सेवा उनकी जीवन में
हो शामिल यह भी मंथन हमारे
बढ़े मंथन से ज्ञान सभी का
दिखाई ॠषि मुनियों ने राह
करके मंथन हो गये
तुलसी काली महान
रहे जब तक ये जीवन
बना रहे साथ मंथन का हमारा
जिस दिन आँखे बंद हुई
बंद हुआ चिंतन मनन सारा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
भावों के मोती
शीर्षक- मंथन
मंथन करके अपने हृदय का
गरल सारा निकालना होगा।
राग-द्वेष, नफ़रत,अहंकार को
अपने जीवन से हटाना होगा।।
तभी तो हम बन पाएंगे पावन
स्वच्छ निर्मल होगा तन-मन।
सुख सुविधाओं को भूलकर
परहीत कर्म में लग जाना होगा।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
शीर्षक- मंथन
मंथन करके अपने हृदय का
गरल सारा निकालना होगा।
राग-द्वेष, नफ़रत,अहंकार को
अपने जीवन से हटाना होगा।।
तभी तो हम बन पाएंगे पावन
स्वच्छ निर्मल होगा तन-मन।
सुख सुविधाओं को भूलकर
परहीत कर्म में लग जाना होगा।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
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