Monday, October 14

"निःशब्द " 3अक्टुबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-524

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विषय निःशब्द
विधा काव्य

03 अक्टूबर 2019,गुरुवार

व्यापक सृष्टि के रचयिता
जल थल नभ के संचालक।
अद्भुत आभा देख निःशब्द
धन्य धन्य प्रिय जग पालक।

पंचतत्व निर्मित यह काया
भू जल नभ वायु अनल है।
विराट स्वरूप देखा कौन्तेय
निःशब्द नर श्रेष्ठ सजल है।

निःशब्द हो जाती रसना
जुल्म अन्येक देख न पाते।
स्वार्थमयी अपने कर्मो से
हम जीवन भर ही पछताते।

हम कठपुतली जैसे नाचे
जग मंच पर नाटक करते।
मायावी भव्य मेले में मिल
जैसा करते वैसा ही भरते।

निःशब्द हो जाता मानस
जब अपनों से धोखा मिलता।
प्यार महोब्बत बांटो मित्रों
मुरझा चेहरा फिर से खिलता।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा--ग़ज़ल
प्रथम प्रयास


उनकी ख़ामोशी अब खा रही
रातों को नींद अब कहाँ रही ।।

नि: शब्द होकर हम कितना कहें
यह गुस्ताख़ी अब कुछ सिखा रही ।।

रोज ही रोज वो नजर पढ़ें हम
रोज ही रोज वो कुछ लिखा रही ।।

वो कम बोलने वाला चलन भी
अच्छा ही था यह समझ आ रही ।।

शब्द बेशक शरमाये 'शिवम' पर
आँखों की ये ख़ता सदा रही ।।

आँखों की कहन दिल में उतरी
दिल पर अब वो नश्तर चला रही ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/10/2019
3/10/2019
बिषय,, नि:शब्द

इस तरह खामोशी उनकी सह नहीं पाए
नि:शब्द ही रहे कुछ कह नहीं पाए
हाल दिल अपना सुनाऐंगे वो
अतीत में डुबकी लगाऐंगे वो
कुछ समय मेरे संग बिताऐंगे वो
पर एक पल भी ठहर न पाए वो
मैंने भी परिस्थितियों से समझौता कर लिया
उन पलों को सहेज आँचल में भर लिया
खुश हूं जो कुछ भी उन्होंने मुझे दिया
कतरा कतरा जीवन मैंने जी लिया
डूबते गए हम बह नहीं पाए
संजीदगियों उनकी बहुत कुछ पा लिया
नजरों के इशारों को दिल
में सजा लिया
यादों का दीपक दिल में जला लिया
नजदीक उनके हम भी रह नहीं पाए
स्वरचित,, सुषमा,, ब्यौहार
दिनांक .. 03/10/2019
विषय .. निःशब्द

***********************

ये जो अनकही इच्छायें है,
सच ये ही तो कवितायें हैं।
भर दें जो भाव हृदय में वों,
अदभुद सी अमिट कथाएं है॥
**
निःशब्द नही आँखे मेरी,
अनबूझ मगर रचनाएं है।
शब्दों ने गढा मेरा जीवन,
व्यक्तित्व यही रचनाएं है॥
**
जीवन मे द्वंद बहुत ही है,
जो लडा वही आशाएं है।
रिद्धम अरू लय में जीवन है,
निःशब्द नही कविताएं है॥
**
मन जुडा रहा मन से तेरे,
निःशब्द शेर की आहें है।
मन की बातें पढ लो मेरी,
निःशब्द प्रीत की राहें है॥
**
चाहत भी है निःशब्द मेरी,
पर दबी हुई इच्छाएं है।
जो शेर कभी ना कह पाया,
कविता मे वही आशाएं है॥
**
पढ लो प्रिय मेरे इनको तुम,
ये भाव भरी रचनाएं है।
है प्रेम उजागर मन मेरा,
निःशब्द मगर रचनाएं है॥
**

स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ

भावों के मोती::विषय:: निःशब्द :: 3-10-२०१९.
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° हँसी चाँदनी रात और तेरा मेरा ये साथ।
यूँ ही रहेगें हम-तुम, बस यही थी आस।

तुमसे मिलने की नित बढ़ती गई प्यास।
सच!मेरे हृदय में बस तुम ही थी ख़ास।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
अनभिज्ञ था, 'काल-चक्र करता है नर्तन।'
इस सुखद क्षण में भी हो गया परिवर्तन।
हुआ तुम्हारा अजनबी से जीवन- बंधन।
नियति ने किया निःशब्द,मन करता क्रंदन।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
(स्वरचित) ***"दीप"***

(लावणी मुक्तक)

------नि:शब्द ------

कर मुझको, निःशब्द दिया है,
बिन बोले,कुछ कहे बिना।
तेरी इन आँखों ने कह दी,
तेरे ही दिल की,दास्ताँ ।
दिल का तेरे पाठ पढा है,
इन अँसुवारी आँखों में।
कहने की कुछ नहीं जरूरत,
सब कुछ दिल ने किया बयाँ ।।
अमरनाथ
तिथि - 3/10/2019 /गुरूवार
बिषय - #नि:शब्द #

विधा - काव्य

मां तुझसे क्या कह पाऊं मैं
मेरा हाल तू सभी जानती ।
तू व्यापक और सृष्टि तेरी,
नि:शब्द रहूं तू सभी जानती ।

ये काया मां महामाया तेरी ।
मैं अबोध मां तू माता मेरी ।
समझ नहीं तुझसे क्या मांगू
नि:शब्द हुई वाणी मां मेरी.।

सब कुछ दिया है तूने माता ।
जगजननी तू भाग्यविधाता ।
नि:शब्द क्यूँ प्रखर वाणी दी ,
शतशत नमन तुझको माता.।

उलझन सारी तुम सुलझाती ।
तू ममता समता हमें लुटाती ।
सदा प्रेम प्रीति बरसाती माते,
जब भी रोऐं मां हमें दुलारती ।

निशंक निःसंकोच कहें हम,
मां सुनले नि:शब्द शिकायत ।
है प्रेममयी अपनी माँ वरदानी,
विश्व शांति हो यही इनायत ।

स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश

विधा-छंद मुक्त
विषय-निःशब्द


मैं निःशब्द हूँ
तुम्हारे कुछ शब्द
मूक कर गए मुझे
विस्फारित नयनों से
तुम्हारे लिखे शब्द
देख रही हूँ
कुछ शबनम के मोती
जम गए हैं
मेरी पलकों पर
हृदय में दबी चिंगारी
उच्छवास की हवा पा
धुआं बन
भड़कने को तत्पर
हो उठी
कह पाऊँगी
क्या कुछ कभी
दे पाऊँगी जवाब
उस हथौड़े का
चोट कर गया जो
कोमल भावनाओं पर
उजली रंगत पर
कर गया हृदय दर्पण
चूर चूर
सिहर गई मैं
रह गई सदा के लिए
मौन और आवाक
निरुत्तर और निःशब्द

सरिता गर्ग

शीर्षक- निःशब्द
सादर मंच को समर्पित -


🌺🍀 गीतिका 🍀🌺
*************************
 छंद-विष्णुपद 
मात्रा=26 ( यति-16,10 )चरणांत- गुरु
समांत- आऊँ, पदांत- मैं
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

कण-कण में तुम सदा व्याप्त हो ,
कहाँ बताऊँ मैं ।
कहाँ नहीं हो , मेरे भगवन ,
सोच लुभाऊँ मैं ।।

पत्ता भी हिलता न कभी है ,
जग में बिन तेरे ,
सृष्टि अनौखी , प्रकृति रुपहली ,
महिमा गाऊँ मैं ।

ऋषि मुनि ज्ञानी बहुविधि ध्यानें,
जप तप अजपा से ,
किसको मिलते , बोल निःशब्द,
पार न पाऊँ मैं ।

मन्दिर, मस्जिद , हज, तीरथ में ,
खोज करें धर्मी ,
दीन दुखी की पुकार प्रकटो ,
बलि-बलि जाऊँ मैं ।

साँस-साँस घट , मन-मन्दिर में ,
हो अन्तर्यामी ,
जड़-चेतन हर क्रिया समाये ,
क्यों भरमाऊँ मैं ।।

🌹🍀🌺🍏🍊🌷

🌹🌻**....रवीन्द्र वर्मा आगरा

3/10/19
विषय- निःशब्द(नीरव)


नीरव निशा का दामन थामे देखो मंयक,
धरा को छूने आया अपनी रश्मियों से ।

मचल मचल लहरें सागर के दिल से ,
दौडती है किनारों से मिलने कसक लिए,
छोड कुछ हलचल फिर समाती सागर में,
हवाओं में फिर से कुछ नई रवानी है ,
दूर क्षितिज तक फैली निहारिकाऐं,
मानो कुछ कह रही है पुकार के हमें ,
यूं ही बिखरा "निःशब्द" मेला बहारो का,
सर्द मौसम अब समझाने लगा नये अर्थ ।

नीरव निशा का दामन थाम देखो मंयक
धरा को छूने आया अपनी किरणों से ।

स्वरचित।
कुसुम कोठारी ।

तिथि _3/10/2019 /गुरूवार
बिषय_#नि:शब्द#

विधा _ छंद मुक्त

मन की उलझनें
मन में रह रही
वाणी न:शब्द हुई
कुछ कही अनकही.।
अपना सच मै बता न सका
मन में उगते सवाल
हृदय की पीर
मन की उलझन बनी
क्योंकि हमने
दिल की दिल में रखी
नि:शब्द निर्बाध निर्विघ्न
कितनी अनसुनी.।
नि:शब्द रहते पशु मूक प्राणी
कुछ तो उनकी भाषा समझ जाते हैं
हम मध की मध में रखते
मगर भगवान तो
मन की बात और अपनी
हर व्यथा विश्वास आस्था
मन की उलझने समझ जाते हैं.।
हम भी अंतर्मन में गौर से झांकें
अपने हृदय को टटोलें
मूक नि:शब्द नहीं रहें
जो भी असमंजस की स्थिति
है बाहर निकालें
करें अपनों से अपनी बात
मन की उलझनें
मन में ही क्यों उबालें
शब्दों को धार देकर
निसंकोच भाव व्यक्त करें
अपनी समस्याओं से संबंधित
सरल उपाय ढूंढे।

स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश

विषय -नि:शब्द
दिनांक 3-10- 2019
आजकल के बच्चे,माँ बाप को नि:शब्द कर देते है।
जो जीते थे समाज में सर उठा, आज वह खामोश रहते हैं।।

नहीं समझते मां-बाप की तकलीफ, गलत काम करते हैं।
गलत कामों का हर्जाना, मां-बाप खामोश रह देते हैं

खुद दुःख सह, बच्चों को हर खुशी से नवाजा करते हैं।
बच्चे सिर्फ अपने में खोए,माँ बाप को नि:शब्द करते हैं।।

बड़े हो जाते हैं बच्चे,कुछ नहीं समझते हो कहते हैं।
हर छोटी छोटी बात पर, वो घर में कलेश करते हैं।।

पड़ोसी सुन ना ले, इस डर से मां-बाप खामोश रहते हैं।
इसी मजबूरी का फायदा उठा, वह मनमर्जी करते हैं।।

करते हैं उन्हें नि:शब्द और, बहुत दर्द उन्हें देते हैं ।
कैसा कलयुग आ गया, बच्चे बाप को खामोश रहना सिखाते हैं।।

कहती है वीणा, इतिहास सदा दोहराया जाता है।
दादा दादी का बदला,पोते नि:शब्द कर माँ बाप से लेते हैं।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
3/10/2019
विषय-निःशब्द
=
=============
प्रकृति निःशब्द
निज कार्य सम्पन्न करती है
अनदेखी प्राणवायु
निरंतर जीव में संचरण करती है
निःशब्द अंशुमाली
जग को प्रकाशित करता है
प्रकृति के कण कण में
ईश्वर का बास होता है
शशि सितारों का भी
मौन कार्यक्रम नियत रहता है
वृक्ष,पुष्प,नदिया निःशब्द
बिन बताए,बिन जताए
नित परोपकार में रत रहते हैं
एक मानव ही है जो
शोर मचाकर,ढोंग दिखाकर
अकरणीय कार्य करता है
तब प्रकृति या ईश्वर
प्रचंड रुप धारण करता है
तब वह निःशब्द नहीं
हाहाकार मचाता है
जग को चेतावनी देने आता है
तो क्यों न हम उसे
निःशब्द ही रहने दें !!

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित

दिनांक 03/10/2019
विधा:हाइकु

विषय:नि:शब्द

नि:शब्द प्रेम
भक्ति में पूर्ण आस्था
दैविक शक्ति ।

भाषा नि:शब्द
पढूं नयन भाव
कर्तव्यरत।

आत्मसम्मान
हूँ मैं आज नि:शब्द
समय चक्र ।

वार्ता नि:शब्द
अहंवाद जकडे
उलझे रिश्ते ।

आतंकवाद
मानवीयता नग्न
धरा नि:शब्द ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
दिनांक ३/१०/२०१९
शीर्षक-नि: शब्द"

कण कण में है भगवान बसे
नभ में बसे चाँद सितारे
सूर्य चमके,नभ के आँगन
खग वृंद उड़ चले नभकी ओर।

देख विधाता की अद्भुत सृजन
मन नि: शब्द ,हो जाये विभोर
भावानाओं का जब हो अतिरेक
मुहँ से न बोली फूटे एक।

नि: शब्द मन जब करें पुकार
दौड़े विधाता, छोड़ सब काज
हर कार्य का लेखा जोखा
रखे है वे अपने पास।

हर काम का उचित पुरस्कार या दंड
हर मनुज को देते वे ,
है अंदाज निराला उनका
नि: शब्द हो करें काम

उनके लाठी में आवाज नहीं
पर न्याय वे करें जरूर
कण कण में जो ईश बसे
मन की भाषा समझे भरपूर।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

आज का विषय, निःशब्द
दिन, गुरुवार

दिनांक, 3, 10,2019,

ये धरा मौन हो ,
सह रही वेदना,
चलेगा कब तलक ये,
प्रताड़ना का सिलसिला ।
स्वार्थ ने लूट लिया,
धानी चुनर बेरंग हुआ ,
घुट रहा दम हर कदम,
निःशब्द सहती वसुंधरा।
सृष्टि का चलन चला,
प्राण पोषती है धरा ,
अंकुरित कर बीज को ,
कहलाती है उर्वरा ।
मनु के आघात सह,
वह पा रही जर्जरता ,
किया नहीं जो कुछ अभी,
तो बचेगी सिर्फ निःशब्दता ।
बढ़ा कदम ऐ इंसान तू ,
दिखा जरा अपनी चातुर्यता,
बंजर होती जमीन को,
बना दे तू हरा भरा ।
बचा ले अपनी पीढ़ियों को,
कर सुरक्षित नस्ल जरा ,
निःशब्दता भली नहीं अब ,
कुछ ओढ़ ले मुखरता ।

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश 
3/10/2019
विषय निःशब्द

विधा छंदमुक्त काव्य

कविता में आज शब्द देना
कितना दुरूह हो जाता है
सीमा पर प्रहरी का प्राण गंवाना
निःशब्द स्वयं कर जाता है
आन मान की रक्षा करना
कर्तव्य सभी का हो जाता है
देश की रक्षा में रक्त बहाना
सर्वोच्च शिखर दे जाता है
दुश्मन की गोली सीने पे झेलना
निःशब्द देश को कर जाता है
रक्तिम आभा से भाल चमकना
गर्वित मुखमण्डल कर जाता है
आफ़त विपत्ति झेल तिरंगा लहराना
निःशब्द काव्य को कर जाता है
हृदय विदारक दृश्य झेलना
स्तब्ध सभी को कर जाता है
कविता में आज शब्द देना
कितना दुरूह हो जाता है

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
भावों के मोती
विषय--निःशब्द

दिनाँक--३/१०/२०१९

निःशब्द से तुम, शब्द सी मैं
खामोश से तुम,चीखती सी मैं
हवा से तुम,जड़ सी मैं
चलायमान से तुम,ठहराव सी मैं
श्याम से तुम,मीरा सी मैं
राम से तुम,अहिल्या सी मैं
माला से तुम,बिखरी सी मैं
रूप से तुम,निखरी से मैं
शांत से तुम,अग्नि सी मैं
सूर्य से तुम,रात सी मैं
चन्दन से तुम,ताप सी मैं
हृदय में तुम,धड़कन सी मैं
मैं शब्द भली,निःशब्द से तुम हो
फिर भी मेरी खामोशियों में चीखते से तुम हो...

स्वरचित
अर्पणा अग्रवाल

03/10/2019
"नि:शब्द"

################
आज आसमान खामोश है
मिट्टी के कण-कण में नमी है
गिरे हुए ये अश्क किसके हैं
या भोर की झरी ओस बूँदें हैं
शायद पुरवाईया रूठी हुई है
खिली-खिली धूप की कमी है
जाने क्यों मौन सूर्य रश्मि है
आज नि:शब्द दसों दिशायें है

आज भावना मेरी शून्य है
मन आकुल-व्याकुल है.....
धड़कनों में मचा तूफान है
अधरों पे ये कैसी थिरकन है
नयनों में सपने बुझे-बुझे हैं
उलझा हुआ मेरा जीवन है
आज शब्द जाने कहाँ खो गई
नि:शब्द मेरी लेखनी हो गई।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

03/10/19
निःशब्द

***
निःशब्द हो जाती हूं
जब विद्वजनों की लेखनी
में खो जाती हूँ
और लेखन रस के संसार में
डूब जाती हूँ ।
कलाकारों की कलाकृतियां
देख साँस थामे
निशब्द अपने भाव
प्रकट कर आती हूँ
उन उंगलियों का स्पर्श
कर ,मौन प्रशंसा कर आती हूँ।
निःशब्द परमसत्ता
के रहस्यमयी संसार
में हूँ ।
निःशब्द मन की उड़ान में हूँ।
पर आज निःशब्द हूँ.....
इतिहास में दफन राज
पर होती निरर्थक बहस
और विचार से ,
बिना समय ,परिस्थिति जाने
उसकी सत्यता से ,
महापुरुषों को अपशब्द कहने से ..
झाड़ू की राजनीति से..
अब शब्द देने पड़ेंगे
विचारों की स्वच्छता के लिए
सत्य की कसौटी के लिए ,
युवा मस्तिष्क से
जहर को दूर करने के लिए
अब शब्द देने पडेंगे।
वाणी मुखर करनी होगी ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

तिथि-3 /10 /2019
विषय-निःशब्द

विधा-मुक्तक
वार-गुरुवार

मचा भयानक कोलाहल है चहुँ ओर।
कान फोड़ते हैं ये कई सुरों के शोर।
कैसी कशमकश है यह जिंदगी की,
बुरी तरह से उलझी जीवन की डोर।

एक हड़बड़ी में दुनिया भाग रही है।
आधी रात तक बस्ती जाग रही है ।
कोई सुकून नहीं है शहरों में अब,
पर मजबूरी सलीबों पर टांग रही है।

चलो भाग चलें यहां से अब गांव में।
झुलसती गर्मी से अमराई की छांव में।
होगी शांति जहां पर हरियाली भी होगी,
बरसत में थिरकन होगी चंचल पांव में।

निस्तब्ध निशा जब धीरे-धीरे उतरेगी ।
ओढ़ के चूनर तारों की वह ख़ूब सजेगी।
चुनरी में झिलमिल जुगनू की होगी
कंगन चंदा का रात रानी से महकेगी।

निःस्तब्ध चांदनी में बिखरा सम्मोहन।
पल पल मिलता है सपनों से मन ।
निःशब्द शांति के इस राग- रंग में,
मैं अर्पण कर दूं अपना सारा जीवन।

आशा शुक्ला-शाहजहांपुर
उत्तरप्रदेश
3.10.2019
गुरूवार

आज का शब्द - नि:शब्द
विधा -छंदमुक्त

नि:शब्द

शब्द
सब #नि:शब्द हो कर
बह चले हैं
मौन की
स्वीकृति में
लगते अब भले हैं
ज़िन्दगी
मनुहार करती
है बहुत
भाव के मोती
समंदर में भरे हैं
कब करें श्रृंगार
मन दर्पण
है कहता
साधना
आराधना
में ही, भले हैं ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

नि:शब्द

कह देते है
निःशब्द भी
बहुत कुछ
मौन रह
कर भी
हो जाते है
निष्ठुर कभी
संवेदनहीन कभी
आंसुओं में
खो जाते हैं कभी

है निःशब्द
विचित्र
कहानी तेरी
बंद मुंह
से कह जाती है
दास्ताँ अपनी
वो अपने परिवार
को समर्पित नारी

जिन्दगी भर
निःशब्द रहती है माँ
सिखाती है
शब्द बच्चों को
वही अपमानजनक शब्द
जब बरसातें हैं बच्चे
उस पर
टूट जाती है वो

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
 निश:ब्द

जीवन की ,

अंतिम निशा में ।
लड़खड़ाती जुबा संग,
थरथराते हाथ ।
चेहरे की झुर्रीयों में,
छोटी निस्तेज आँखे ।
कान को ,
स्थीर रखकर ।
सोचती वह ,
कोई दस्तक,
दे दरवाजे पर !
तो मैं,
चारपाई से,
उठकर ।
दूं,
सबुत होने का ।
लेकिन ,
जुबा पर आएं शब्द,
नहीं आ पाते,
जुबा से बाहर ।
और हो जाती वह,
निश:ब्द...
सदा सदा के लिए ।

@प्रदीप सहारे

विषय- निशब्द
दिनांकः 3:10:2019
गुरूवार
विधा-मुक्तक

आज आदमी जान बूझकर ,
जाने क्यों हो गया मौन है ।
उसे ज्यों साॅप सूंघ गया हो,
बरगलाता उनको कौन है।।

उन्हें देश की परवाह नहीं,
वे राज छुपाये बैठे हैं ।
अपने निज हित के कारण ही,
वे निशब्द होकर ऐंठे है।।

अब उनको सोचना ये चाहिए,
हमारा देश आगे जाये ।
आज छोडकर निशब्दता अब,
वे देश भक्त भी बन जायें ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर
(डॉ नरसिंह शर्मा' निर्भय ,जयपुर )
चयन के लिए

बिषय _ निःशब्द रहना मना है
विधा _काफिया *अना *की बंदिश
(मात्रा भार 20)

हम निःशब्द रहें क्या बोलना मना है.।
इस देश में रहें फांकना मना है.।

तुमने भाषण तो अबतक बहुत दिये
लेकिन अब ज्यादा सोचना मना है.।

निःशब्द रहो चाहे नफरत फैलाओ
जानो अफवाह फैलाना मना है.।

हम सभी रहें भारत अपना समझकर
अब भाईचारा मिटाना मना है.।

जो कोई निःशब्द समझा अबतक हमें
हमें इनको यहां बसाना मना है.।

स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी

3भा शी#निःशब्द #
काफिया अना की बंदिश
(मात्रा भार - 20)
3/10 /2019 /गुरूवार


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"अंदाज"05मई2020

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