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ब्लॉग संख्या :-521
🙏 माँ 🙏तू धरती , तू अंबर, तू ही मेरा पैगंबर,
तू वसन चराचर जगत की , तू ही माँ दिगंबर ,
हे अखिल ब्रम्हांड वासिनी, मोक्ष दायिनी,
शिव, शिवा , शंकर , शक्ति तू ही अभयंकर ।
आंगन की तुलसी है माँ ,
चहकते बच्चे देखकर हुलसी है माँ
तपती धूप में देख बच्चों को
स्वयं भीतर तक झुलसी है माँ ।
देहरी पर बिछा गुलमोहर है माँ
ठंड की गुनगुनी दोपहर है माँ
भीषण आतप में शीतल छाया
सकल ब्रम्हांड की अमूल्य धरोहर है माँ ।
स्वयं पूजा की थाली, महकती चंदन माँ ,
मधुर लोरी मतवाली, खनकता कंगन माँ
संतोषी , शारदा , सुरसरी, बच्चों के हित पल में चामुंडा बनी ,
सकल भार धात्री वसुधा, तेरा नित नित वंदन माँ ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
तू वसन चराचर जगत की , तू ही माँ दिगंबर ,
हे अखिल ब्रम्हांड वासिनी, मोक्ष दायिनी,
शिव, शिवा , शंकर , शक्ति तू ही अभयंकर ।
आंगन की तुलसी है माँ ,
चहकते बच्चे देखकर हुलसी है माँ
तपती धूप में देख बच्चों को
स्वयं भीतर तक झुलसी है माँ ।
देहरी पर बिछा गुलमोहर है माँ
ठंड की गुनगुनी दोपहर है माँ
भीषण आतप में शीतल छाया
सकल ब्रम्हांड की अमूल्य धरोहर है माँ ।
स्वयं पूजा की थाली, महकती चंदन माँ ,
मधुर लोरी मतवाली, खनकता कंगन माँ
संतोषी , शारदा , सुरसरी, बच्चों के हित पल में चामुंडा बनी ,
सकल भार धात्री वसुधा, तेरा नित नित वंदन माँ ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
नमन-भावो के मोती
दिनांक-30/09/2019
विषय-माँ
सिंह के वाहन शोक नसावन
ज्ञान की ज्योति जलाय रही है।।
दिव्य अलौकिक वेष धारे
सारे जग मातु लुभार रही है।।
कहीं दुर्गा, कहीं काली, कहीं चंडी
का रूप बनके दिखा रही है।।
भृकुटी चढि जाये लिलार जबै
सारे जग नाच नचाय रही है।।
छलके दृग बिंदु तो सिंधु बने
कर में कृपाण लिए हरषाय रही है।।
फागुन में सतरंगी बनी
माघ मासे प्रयाग में छाय रही है।।
कश्मीर से कन्याकुमारी पियारी
घटा बनके घहराय रही है।।
आंख दियो नित अंधन को
पग पंगु पहाड़ चढ़ाय रही है।।
बाँझन गोद में लाल खेले
शरण कृपा की बरसाय रही है।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक-30/09/2019
विषय-माँ
सिंह के वाहन शोक नसावन
ज्ञान की ज्योति जलाय रही है।।
दिव्य अलौकिक वेष धारे
सारे जग मातु लुभार रही है।।
कहीं दुर्गा, कहीं काली, कहीं चंडी
का रूप बनके दिखा रही है।।
भृकुटी चढि जाये लिलार जबै
सारे जग नाच नचाय रही है।।
छलके दृग बिंदु तो सिंधु बने
कर में कृपाण लिए हरषाय रही है।।
फागुन में सतरंगी बनी
माघ मासे प्रयाग में छाय रही है।।
कश्मीर से कन्याकुमारी पियारी
घटा बनके घहराय रही है।।
आंख दियो नित अंधन को
पग पंगु पहाड़ चढ़ाय रही है।।
बाँझन गोद में लाल खेले
शरण कृपा की बरसाय रही है।।
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
30//9//2019//
बिषय,, माँ
शारदेय नवरात्रि का महापर्व
माँ भगवती की आराधना
शक्ति स्वरुपा जगदम्बा
श्री चरणों में समर्पित मन भावना
माँ जगतारणि आदिशक्ति भवानी
अखलेश्वरी तुम मैं अज्ञानी
तुम्हीं ने रचा विस्तृत अपरिमित संसार
संपूर्ण ब्रह्मांड के रज रज में तेरी कला का संचार
तेरे ही कर कमलों में समस्त सृष्टि का प्रभार
माँ कल्याणी सारे जग की एक तुम्हीं हो पालनहार
पराशक्ति तुम ही पल में
दुष्टों का करतीं संहार
धनहीन बलहीन मनहीन मेरी अवस्था
ज्ञान चक्षुओं को जाग्रत कर मेरी भी कर दो ब्यबस्था
साधक की दृढ़ इच्छाशक्ति का दो माँ अभीष्ट वरदान
अर्थ धर्म काम का दो माँ मुझे ज्ञान
तुम ही मंगला काली भद्रकाली कपालनि
सिद्धि स्वरुपा आनंदरुपा लक्ष्मी शिवा पारायणि
मुझमें ऐसी क्षमता कहां जो करुं तेरी उपासना
हे जगमाता भाग्यबिधाता
अर्पित शब्दभावना
अम्बे तुम्हारी किस करुं आराधना बहुबार श्रीचरणों में मेरी वंदना
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, माँ
शारदेय नवरात्रि का महापर्व
माँ भगवती की आराधना
शक्ति स्वरुपा जगदम्बा
श्री चरणों में समर्पित मन भावना
माँ जगतारणि आदिशक्ति भवानी
अखलेश्वरी तुम मैं अज्ञानी
तुम्हीं ने रचा विस्तृत अपरिमित संसार
संपूर्ण ब्रह्मांड के रज रज में तेरी कला का संचार
तेरे ही कर कमलों में समस्त सृष्टि का प्रभार
माँ कल्याणी सारे जग की एक तुम्हीं हो पालनहार
पराशक्ति तुम ही पल में
दुष्टों का करतीं संहार
धनहीन बलहीन मनहीन मेरी अवस्था
ज्ञान चक्षुओं को जाग्रत कर मेरी भी कर दो ब्यबस्था
साधक की दृढ़ इच्छाशक्ति का दो माँ अभीष्ट वरदान
अर्थ धर्म काम का दो माँ मुझे ज्ञान
तुम ही मंगला काली भद्रकाली कपालनि
सिद्धि स्वरुपा आनंदरुपा लक्ष्मी शिवा पारायणि
मुझमें ऐसी क्षमता कहां जो करुं तेरी उपासना
हे जगमाता भाग्यबिधाता
अर्पित शब्दभावना
अम्बे तुम्हारी किस करुं आराधना बहुबार श्रीचरणों में मेरी वंदना
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय माँ
विधा काव्य
30 सितम्बर 2019,सोमवार
मेरे जीवन की फुलवारी
शिशुवस्था की रखवाली।
माँ अद्भुत संसार दिखाया
तुम जीवन की हरियाली।
माँ तुम सब कुछ देती हो
बदले में कुछ भी न लेती।
तुम गङ्गा सी पावन माता
स्नेह दुलार सदा ही देती।
माँ कुमाता कभी न होती
पूत कपूत तो बन जाता है।
संस्कारित करती कर्मों को
मन मेरा तेरा यश गाता है।
माँ तुम हो देवी की प्रतिमा
मनोवांछित फल देती हो।
गीले में तुम खुद सोती हो
मैं रोऊँ तो माँ तुम रोती हो।
पालन पौषण करे गर्भ में
स्व रक्त से सिंचित करती।
शुभ मंगल नित करे कामना
लौरी गाकर संकट हरती।
ऋण उऋण नहीं हो सकते
चाहे हम कितना भी कर लेवें।
स्नेह भाव हम कुछ न जाने
पद सरोज रज शीश चढ़ा लेवें।
स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
30 सितम्बर 2019,सोमवार
मेरे जीवन की फुलवारी
शिशुवस्था की रखवाली।
माँ अद्भुत संसार दिखाया
तुम जीवन की हरियाली।
माँ तुम सब कुछ देती हो
बदले में कुछ भी न लेती।
तुम गङ्गा सी पावन माता
स्नेह दुलार सदा ही देती।
माँ कुमाता कभी न होती
पूत कपूत तो बन जाता है।
संस्कारित करती कर्मों को
मन मेरा तेरा यश गाता है।
माँ तुम हो देवी की प्रतिमा
मनोवांछित फल देती हो।
गीले में तुम खुद सोती हो
मैं रोऊँ तो माँ तुम रोती हो।
पालन पौषण करे गर्भ में
स्व रक्त से सिंचित करती।
शुभ मंगल नित करे कामना
लौरी गाकर संकट हरती।
ऋण उऋण नहीं हो सकते
चाहे हम कितना भी कर लेवें।
स्नेह भाव हम कुछ न जाने
पद सरोज रज शीश चढ़ा लेवें।
स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
30/09/2019
हे माँ दुर्गा! हे मातंगी!
हे चामुंडा! हे चित्तरूपा!
दुःख कष्ट हरो मेरी मैया,
अब मेरे ऊपर करो कृपा।
आशीष मुझे अपना देकर,
माँ मेरा जीवन धन्य करो।
हे तपस्विनी! हे कालरात्रि!
हे रौद्रमुखी! हे महातपा!
आह्वान तुम्हारा करता हूँ,
हे सावित्री!हे बहुलप्रिया!
उपकार करो मेरे ऊपर,
हे वैष्णवी ! हे आर्या!
तेरी स्तुति दिन रात करूँ,
माँ कृपा दृष्टि मुझ पर रखना।
ना कलम ये मेरी रुके कभी,
हे भवप्रीता! हे रत्नप्रिया!
रविशंकर 'विद्यार्थी'
सिरसा मेजा प्रयागराज
हे माँ दुर्गा! हे मातंगी!
हे चामुंडा! हे चित्तरूपा!
दुःख कष्ट हरो मेरी मैया,
अब मेरे ऊपर करो कृपा।
आशीष मुझे अपना देकर,
माँ मेरा जीवन धन्य करो।
हे तपस्विनी! हे कालरात्रि!
हे रौद्रमुखी! हे महातपा!
आह्वान तुम्हारा करता हूँ,
हे सावित्री!हे बहुलप्रिया!
उपकार करो मेरे ऊपर,
हे वैष्णवी ! हे आर्या!
तेरी स्तुति दिन रात करूँ,
माँ कृपा दृष्टि मुझ पर रखना।
ना कलम ये मेरी रुके कभी,
हे भवप्रीता! हे रत्नप्रिया!
रविशंकर 'विद्यार्थी'
सिरसा मेजा प्रयागराज
30/09/2019
विषय - माँ
जगत जननि जय जगदम्बे माँ आदिशक्ति परमेश्वरी।
सती-साध्वी चांमुडा भवानी वैष्णवी वाराही दुर्गेश्वरी।
शंख चक्र धनु गदा विराजे कमल त्रिशूल आशीर्वाद मिले,
शुभ-निशुम्भ दानव मारे, मोर पे आरूढ़ हो सर्वेश्वरी।
माथे मुकुट गले में माला हाथों चूडी पांव पायल वाजे,
तन पे ओढे लाल चुंदरी, पीले सिंह पे बैठी भुवनेश्वरी।
पान सुपारी ध्वजा नारियल भेट चढाऊँ माँ चरणों में,
हलुआ चने, पूडी बतासे का भोग लगाओं मातेश्वरी।
रिपु-दैत्यों का उद्धार करें, सारे जग की जगतारिणी,
मन्नतें भक्तों की पूरी करती माँ केला देवी राजेश्वरी।
मंगलकरनी दुखहरणी कल्याणकारी भवतारिणी।
जो भी भक्त माँ के दर पे आये झोली भरे माहेश्वरी।
✍ सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
विषय - माँ
जगत जननि जय जगदम्बे माँ आदिशक्ति परमेश्वरी।
सती-साध्वी चांमुडा भवानी वैष्णवी वाराही दुर्गेश्वरी।
शंख चक्र धनु गदा विराजे कमल त्रिशूल आशीर्वाद मिले,
शुभ-निशुम्भ दानव मारे, मोर पे आरूढ़ हो सर्वेश्वरी।
माथे मुकुट गले में माला हाथों चूडी पांव पायल वाजे,
तन पे ओढे लाल चुंदरी, पीले सिंह पे बैठी भुवनेश्वरी।
पान सुपारी ध्वजा नारियल भेट चढाऊँ माँ चरणों में,
हलुआ चने, पूडी बतासे का भोग लगाओं मातेश्वरी।
रिपु-दैत्यों का उद्धार करें, सारे जग की जगतारिणी,
मन्नतें भक्तों की पूरी करती माँ केला देवी राजेश्वरी।
मंगलकरनी दुखहरणी कल्याणकारी भवतारिणी।
जो भी भक्त माँ के दर पे आये झोली भरे माहेश्वरी।
✍ सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
30सितम्बर2019सोमवार
विषय-माँ
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
माँ शेरोवाली
मनोकामना पूरी
करो सबकी👌
💐💐💐💐💐💐
माँ भगवती
विद्या-बुद्धि दायक
बना लायक👍
💐💐💐💐💐💐
माँ तम हर
प्रकाश पुंज भर
दे ज्ञान भर💐
💐💐💐💐💐💐
शक्ति दायिनी
माँ जगत-जननी
अज्ञान हर🎂
💐💐💐💐💐💐
माँ जगदम्बे
तेजोमय कर दे
भाग्य-विधाता👍
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐💐💐💐💐💐
विषय-माँ
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
माँ शेरोवाली
मनोकामना पूरी
करो सबकी👌
💐💐💐💐💐💐
माँ भगवती
विद्या-बुद्धि दायक
बना लायक👍
💐💐💐💐💐💐
माँ तम हर
प्रकाश पुंज भर
दे ज्ञान भर💐
💐💐💐💐💐💐
शक्ति दायिनी
माँ जगत-जननी
अज्ञान हर🎂
💐💐💐💐💐💐
माँ जगदम्बे
तेजोमय कर दे
भाग्य-विधाता👍
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐💐💐💐💐💐
दिनांक 30.09.2019
विधा : कविता
विषय : माँ
माँ
ईश्वर की
सर्वश्रेष्ठ कृति
माँ की महिमा
अपरम्पार
तन मन धन
सब न्योछावर करती
करती बच्चों से
अनन्त प्यार
सूखे में
बच्चे को सुलाती
गीले में सो जाती
हर बार
उंगली पकड़कर
चलना सिखाती
अपनी गोदी में
खूब खिलाती
जब भी कभी
मुसीबत आती
माँ हमेशा
ढाँढ़स बँधाती
माँ तो होती
है माँ
माँ का कर्ज़
नहीं कोई
चुका पाता है
तभी तो
चोट लगने पर
ईश्वर के नाम
से पहले
माँ का नाम ही
जुबाँ पर
आता है
--हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा
(स्वरचित )
विधा : कविता
विषय : माँ
माँ
ईश्वर की
सर्वश्रेष्ठ कृति
माँ की महिमा
अपरम्पार
तन मन धन
सब न्योछावर करती
करती बच्चों से
अनन्त प्यार
सूखे में
बच्चे को सुलाती
गीले में सो जाती
हर बार
उंगली पकड़कर
चलना सिखाती
अपनी गोदी में
खूब खिलाती
जब भी कभी
मुसीबत आती
माँ हमेशा
ढाँढ़स बँधाती
माँ तो होती
है माँ
माँ का कर्ज़
नहीं कोई
चुका पाता है
तभी तो
चोट लगने पर
ईश्वर के नाम
से पहले
माँ का नाम ही
जुबाँ पर
आता है
--हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा
(स्वरचित )
दिनाँक, 30,9,2019,
सोमवार
हे जग जननी माता भवानी ,
द्वार आपके आये हैं ।
हम भावों के पुष्पों की माला,
माँ भेंट आपकी लाये हैं ।
शैलपुत्री माँ जग की उद्धारक ,
हम तुमसे लगन लगाये हैं ।
सब कष्ट निवारेंगीं जगदम्बा ,
आशा मन में सजाये हैं।
सुनिए अरज ब्रम्हचारिणी देवी,
हम शीश नवाये बैठे हैं ।
ज्ञान बुद्धि नहीं पास हमारे ,
अभिलाषा कृपा की लाये हैं।
करो चंद्रघंटा माँ दूर परेशानी,
शत्रु बहुत ही उतराये हैं ।
सब घंटाध्वनि हर लेगी पीड़ा,
भावना यही हम लाये हैं।
कूष्मांडा माँ स्कन्दमाता जी ,
हम भक्त भेंट जो लाये हैं।
निराश नहीं हमको कर देना,
हम तो आपके जाये हैं ।
हे कात्यायनी माँ कालिरात्रि,
बादल दुराचार के छाये हैं।
पापनाशिनी समृद्धि दायिनी ,
हम शरण आपकी आये हैं।
जय माँ महामाया गौरी की ,
जो सुख सम्पत्ति लुटाये है ।
सदा खुले रहें भंडार दया के,
आशीष माँगने आये हैं ।
कार्य सभी माँ सिध्द करेंगीं,
आस सिध्दिदात्री से लगाये हैं।
अवतरित हों अब हे जगदम्बे ,
यही भक्त आपके चाहे हैं ।
हर घर में माँ छाये खुशहाली,
उम्मीद सद्भावना की लाये हैं।
अनुनय विनय झोलियाँ खाली,
सभी दास आपके लाये हैं ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
सोमवार
हे जग जननी माता भवानी ,
द्वार आपके आये हैं ।
हम भावों के पुष्पों की माला,
माँ भेंट आपकी लाये हैं ।
शैलपुत्री माँ जग की उद्धारक ,
हम तुमसे लगन लगाये हैं ।
सब कष्ट निवारेंगीं जगदम्बा ,
आशा मन में सजाये हैं।
सुनिए अरज ब्रम्हचारिणी देवी,
हम शीश नवाये बैठे हैं ।
ज्ञान बुद्धि नहीं पास हमारे ,
अभिलाषा कृपा की लाये हैं।
करो चंद्रघंटा माँ दूर परेशानी,
शत्रु बहुत ही उतराये हैं ।
सब घंटाध्वनि हर लेगी पीड़ा,
भावना यही हम लाये हैं।
कूष्मांडा माँ स्कन्दमाता जी ,
हम भक्त भेंट जो लाये हैं।
निराश नहीं हमको कर देना,
हम तो आपके जाये हैं ।
हे कात्यायनी माँ कालिरात्रि,
बादल दुराचार के छाये हैं।
पापनाशिनी समृद्धि दायिनी ,
हम शरण आपकी आये हैं।
जय माँ महामाया गौरी की ,
जो सुख सम्पत्ति लुटाये है ।
सदा खुले रहें भंडार दया के,
आशीष माँगने आये हैं ।
कार्य सभी माँ सिध्द करेंगीं,
आस सिध्दिदात्री से लगाये हैं।
अवतरित हों अब हे जगदम्बे ,
यही भक्त आपके चाहे हैं ।
हर घर में माँ छाये खुशहाली,
उम्मीद सद्भावना की लाये हैं।
अनुनय विनय झोलियाँ खाली,
सभी दास आपके लाये हैं ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
हे माँ सुनलो
💘💘💘💘💘
डालती इच्छायें विघ्न
मन रहता है उद्विग्न
टूट जाती है लगन
कैसे रहूँ ध्यान मगन।
शब्दों से तू तो है परे
मन्त्रों की बात कौन करे
ऐसा भी कहाँ हो पाता
शुद्ध भावों से निकले हरे हरे।
दिन पर दिन रहे हैं बीत
सूना रहा बिल्कुल अतीत
इधर उधर बातों में उलझा
नहीं कभी हुई तुझसे प्रीत।
अस्ताचल में हिलता मंच
है व्यँगात्मक शैली में प्रपंच
बुझे हृदय से करता स्मरण
माँ तुम्हीं करो मेरा तरण।
💘💘💘💘💘
डालती इच्छायें विघ्न
मन रहता है उद्विग्न
टूट जाती है लगन
कैसे रहूँ ध्यान मगन।
शब्दों से तू तो है परे
मन्त्रों की बात कौन करे
ऐसा भी कहाँ हो पाता
शुद्ध भावों से निकले हरे हरे।
दिन पर दिन रहे हैं बीत
सूना रहा बिल्कुल अतीत
इधर उधर बातों में उलझा
नहीं कभी हुई तुझसे प्रीत।
अस्ताचल में हिलता मंच
है व्यँगात्मक शैली में प्रपंच
बुझे हृदय से करता स्मरण
माँ तुम्हीं करो मेरा तरण।
शीर्षक -- माँ
प्रथम प्रस्तुति
रूह के रिश्तों की यह गहराई
हमको चोट लगी माँ चिल्लायी ।।
माँ कहाँ नही है माँ को जानो
ये सम्पूर्ण सृष्टि माँ कहलायी ।।
माँ शब्द में बहुत सार छुपा हुआ है
जब भी नाम लिया आँख भर आयी ।।
अन्तर्मन के ये तार जुड़ जाऐं
है करूणा का सागर सुखदायी ।।
माँ में आस्था है सच्ची आस्था
उस परमात्म से जिसने सृष्टि रचायी ।।
माँ को रचकर सृष्टि परिकल्पना
उसने यह क्रियान्वित करायी ।।
माँ को कभी नही भूलो जग में
माँ ने ही हमें दुनिया दिखायी ।।
माँ को नमन करो साकार रूप में
कितने करीब रह कृपा बरसायी ।।
उसी का ऋण है हम पर 'शिवम'
क्यों उसकी ये अहमियत भुलायी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 30/09/2019
प्रथम प्रस्तुति
रूह के रिश्तों की यह गहराई
हमको चोट लगी माँ चिल्लायी ।।
माँ कहाँ नही है माँ को जानो
ये सम्पूर्ण सृष्टि माँ कहलायी ।।
माँ शब्द में बहुत सार छुपा हुआ है
जब भी नाम लिया आँख भर आयी ।।
अन्तर्मन के ये तार जुड़ जाऐं
है करूणा का सागर सुखदायी ।।
माँ में आस्था है सच्ची आस्था
उस परमात्म से जिसने सृष्टि रचायी ।।
माँ को रचकर सृष्टि परिकल्पना
उसने यह क्रियान्वित करायी ।।
माँ को कभी नही भूलो जग में
माँ ने ही हमें दुनिया दिखायी ।।
माँ को नमन करो साकार रूप में
कितने करीब रह कृपा बरसायी ।।
उसी का ऋण है हम पर 'शिवम'
क्यों उसकी ये अहमियत भुलायी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 30/09/2019
30/9/2919
"माँ"
जब से मैं इस जग में आया
जग ने है बस रब को गाया
जिसको रब ना कर पाया
उसको है माँ ने कर दिखलाया।
प्रथम स्पर्श पाकर जो हर्षाया
वो थी मेरी माँ की काया
दुग्ध पान करा जिसने मुझको हर्षाया
वो थी मेरी माँ की माया।
भूल रहे हम जिसकी कुर्बानी
याद करो बचपन से जवानी
वृद्धा अवस्था में भी जो करती रक्षा
बनकर ढाल है ये मर्दानी।
माँ का कोई मोल नहीं है
पिता की बोली है अनमोल
कर्ज नही, हमें है ये धर्म निभाना
माँ को है अब, माँ का बचपन लौटना।
प्रण करे हम, अब घर घर मे है श्रवण जगाना। 🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐
स्वरचित
जगमोहन शर्मा
"माँ"
जब से मैं इस जग में आया
जग ने है बस रब को गाया
जिसको रब ना कर पाया
उसको है माँ ने कर दिखलाया।
प्रथम स्पर्श पाकर जो हर्षाया
वो थी मेरी माँ की काया
दुग्ध पान करा जिसने मुझको हर्षाया
वो थी मेरी माँ की माया।
भूल रहे हम जिसकी कुर्बानी
याद करो बचपन से जवानी
वृद्धा अवस्था में भी जो करती रक्षा
बनकर ढाल है ये मर्दानी।
माँ का कोई मोल नहीं है
पिता की बोली है अनमोल
कर्ज नही, हमें है ये धर्म निभाना
माँ को है अब, माँ का बचपन लौटना।
प्रण करे हम, अब घर घर मे है श्रवण जगाना। 🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐
स्वरचित
जगमोहन शर्मा
बिषय:- माँ
💐तू याद आती है माँ 💐
***************
1.
जाड़े की ठिठुरती रातों में तू
ममता के गर्म हाथों से तू
उलट-पुलट जब करती थी माँ
खुद गीले में रहकर भी तू
सूखे में हमें सुलाती थी माँ
फ़टी गुदड़ी और वो ठण्ड
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
2.
रातों रात जागती थी तू
लोरी सुना थपकियों से तू
रोज हमको बहलाती थी माँ
छोटी सी मेरी एक छींक से तू
कितनी वे-चैन हो जाती थी माँ
तेरी चूड़ियों की वो खनक
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
3.
मांटी की हांडी में पकाती थी तू
कंडों पे सेंकती रुआ-वाटी भी तू
घी-गुड़ का चूरमा बनाती थी माँ
छोले के चटुये से उफनती महेरी ( राबड़ी)
भीनीं महक फैल जाती थी माँ
तेरे आंसू और माथे का पसीना
आज भी याद आता है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
4.
मेरे नन्हे-नन्हे पग बजती पैजनिया
घुंघरुओं की खनक सुन-सुन तू
खिलखिला कर हंस देती थी माँ
दो डग भरूँ जब गिरने को होता
गोदी में मुझे तू उठा लेती थी माँ
तेरी बलैयां और चेहरे की चमक
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
स्वरचित:
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी
गुना (म.प्र.)
💐तू याद आती है माँ 💐
***************
1.
जाड़े की ठिठुरती रातों में तू
ममता के गर्म हाथों से तू
उलट-पुलट जब करती थी माँ
खुद गीले में रहकर भी तू
सूखे में हमें सुलाती थी माँ
फ़टी गुदड़ी और वो ठण्ड
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
2.
रातों रात जागती थी तू
लोरी सुना थपकियों से तू
रोज हमको बहलाती थी माँ
छोटी सी मेरी एक छींक से तू
कितनी वे-चैन हो जाती थी माँ
तेरी चूड़ियों की वो खनक
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
3.
मांटी की हांडी में पकाती थी तू
कंडों पे सेंकती रुआ-वाटी भी तू
घी-गुड़ का चूरमा बनाती थी माँ
छोले के चटुये से उफनती महेरी ( राबड़ी)
भीनीं महक फैल जाती थी माँ
तेरे आंसू और माथे का पसीना
आज भी याद आता है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
4.
मेरे नन्हे-नन्हे पग बजती पैजनिया
घुंघरुओं की खनक सुन-सुन तू
खिलखिला कर हंस देती थी माँ
दो डग भरूँ जब गिरने को होता
गोदी में मुझे तू उठा लेती थी माँ
तेरी बलैयां और चेहरे की चमक
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
स्वरचित:
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी
गुना (म.प्र.)
बिषय- माँ
माँ! तु तो ऐसी न थी।
हरपल हंसती रहती थी।
चिड़ियों सी चहकती रहती थी।
फूलों सी महकती रहती थी।
आखिर क्यों,तु यूं खामोश हो गई।
दर्द को छुपा,मन ही मन रो रही।
तेरे एक बोल को तरस रहे हम
तेरी बस एक हंसी चाह रहे हम।
अच्छी नहीं लग रही, तेरी उदासी
तेरी खुशी में है, हमारी खुशी भी।
है इल्तज़ा,तु पहले सी बन जा।
हमारे लिए ही सही,एक बार मुस्कुरा।
स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर
माँ! तु तो ऐसी न थी।
हरपल हंसती रहती थी।
चिड़ियों सी चहकती रहती थी।
फूलों सी महकती रहती थी।
आखिर क्यों,तु यूं खामोश हो गई।
दर्द को छुपा,मन ही मन रो रही।
तेरे एक बोल को तरस रहे हम
तेरी बस एक हंसी चाह रहे हम।
अच्छी नहीं लग रही, तेरी उदासी
तेरी खुशी में है, हमारी खुशी भी।
है इल्तज़ा,तु पहले सी बन जा।
हमारे लिए ही सही,एक बार मुस्कुरा।
स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर
भावों के मोती
विषय--माँ
दिनाँक--३०/९/२०१९
हर युग में आओ तुम माँ
धरती का अंधकार मिटाने
पाप का तम हरने
धरती पर प्रकाश फैलाने
दुष्टों का संहार करने
किसी भी रूप में आओ माँ
किसी भी धर्म में आओ माँ
पर आओ माँ
हैं बहुत महिषासुर यहाँ माँ
आओ दुर्गा बन माँ
अनगिनत ही शुम्भ निशुम्भ हैं यहाँ माँ
आओ बन महाकाली माँ
है इंतेज़ार तेरा बस माँ
धरती से दुष्टों का बोझ हटाने आओ माँ..
स्वरचित
अर्पणा अग्रवाल
विषय--माँ
दिनाँक--३०/९/२०१९
हर युग में आओ तुम माँ
धरती का अंधकार मिटाने
पाप का तम हरने
धरती पर प्रकाश फैलाने
दुष्टों का संहार करने
किसी भी रूप में आओ माँ
किसी भी धर्म में आओ माँ
पर आओ माँ
हैं बहुत महिषासुर यहाँ माँ
आओ दुर्गा बन माँ
अनगिनत ही शुम्भ निशुम्भ हैं यहाँ माँ
आओ बन महाकाली माँ
है इंतेज़ार तेरा बस माँ
धरती से दुष्टों का बोझ हटाने आओ माँ..
स्वरचित
अर्पणा अग्रवाल
विषय- माँ
सादर मंच को समर्पित -
🌹 माँ 🌹
************************
🌺🌻🌺🌻🌺🌻🌺🌻🌺
वीणा के स्वर मोहक झनकार ,
शारदे मधुर रस वर्षायें ।
अनुपम शृंगार, हंसे सवार ,
नव ज्ञान की ज्योति जला जायें ।।
तुम पुस्तक धारिनि माता हो ,
सब को नित ज्ञान प्रदाता हो ।
अज्ञान तिमिर की नाशक हो ,
जीवन प्रकाश सुख दाता हो ।
सद्बुद्धि भावना जाग्रत कर ,
तन-मन आलोकित कर जायें ।।
तुम्ही दुर्गे उमा जगदम्बे हो ,
चामुण्डा और महा माया हो ।
शैलजा चन्द्रघण्टा काली ,
वैष्णवी व मंशा ज्वाला हो ।
महिषासुर मर्दिनि त्रिशूल ले ,
दानवी आतंक मिटा जायें ।।
माँ शक्ति स्वरूपा देवी हो ,
अन्याय और पाप नाशिनी हो ,
देवता असुर सब की पूज्या ,
तुम अखिल विश्व की जननी हो ।
अन्नपूर्णा महालक्ष्मी बन ,
धन-धान्य समृद्धि दे हर्षायें ।।
हे माँ वर दो मन झंकृत हो ,
नव रस संगीत अलंकृत हो ।
वाणी पर सदा विराजित हो ,
लेखनी धर्म आराधित हो ।
गूँजे स्वर लहरी लहर-लहर ,
शत नमन ओजामृत भर जायें ।।
🌺🍀🍊🌸🌹
🌴🌻😍**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
सादर मंच को समर्पित -
🌹 माँ 🌹
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🌺🌻🌺🌻🌺🌻🌺🌻🌺
वीणा के स्वर मोहक झनकार ,
शारदे मधुर रस वर्षायें ।
अनुपम शृंगार, हंसे सवार ,
नव ज्ञान की ज्योति जला जायें ।।
तुम पुस्तक धारिनि माता हो ,
सब को नित ज्ञान प्रदाता हो ।
अज्ञान तिमिर की नाशक हो ,
जीवन प्रकाश सुख दाता हो ।
सद्बुद्धि भावना जाग्रत कर ,
तन-मन आलोकित कर जायें ।।
तुम्ही दुर्गे उमा जगदम्बे हो ,
चामुण्डा और महा माया हो ।
शैलजा चन्द्रघण्टा काली ,
वैष्णवी व मंशा ज्वाला हो ।
महिषासुर मर्दिनि त्रिशूल ले ,
दानवी आतंक मिटा जायें ।।
माँ शक्ति स्वरूपा देवी हो ,
अन्याय और पाप नाशिनी हो ,
देवता असुर सब की पूज्या ,
तुम अखिल विश्व की जननी हो ।
अन्नपूर्णा महालक्ष्मी बन ,
धन-धान्य समृद्धि दे हर्षायें ।।
हे माँ वर दो मन झंकृत हो ,
नव रस संगीत अलंकृत हो ।
वाणी पर सदा विराजित हो ,
लेखनी धर्म आराधित हो ।
गूँजे स्वर लहरी लहर-लहर ,
शत नमन ओजामृत भर जायें ।।
🌺🍀🍊🌸🌹
🌴🌻😍**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
दिनांक 39/9/2019
माँ
देहरी पर बजती
अंतर्मन की सांकल
नेह प्यार की बहती
हो तुम वह पुरवाई मां
मन सूना उपवन
हो सावन की झड़ी
खुशियों की यूँ बजती
हो तुम वह शहनाई माँ
गम के अंधियारे में
खुशियों की उजियार
साथ न छोड़ा जिसने
हो तुम वह परछाई मां
मन नभ झिलमिल
आशाओं की रिमझिम
खुशियों की बजती धुन सी
हो तुम मनभाई माँ
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
30/9/2919
"माँ"
सृष्टि की सबसे सुंदर कृति ,
माँ, जो है सबसे अनमोल!
नहीं दूजा कोई माँ के जैसा,
तीनो लोक में ढूंढ लो चाहे।
प्रभु भी तरसे ममता को
इसलिये धरा पर अवतरित हुये,
माँ की ममता मिले उन्हें भी
इसीलिये हर युग मे हुये।
माँ ने रचा हम सबको,
ममता लुटाई बेहिसाब
कोई कर्ज़ चुका ना पाये
ममता के आगे सब नतमस्तक,
माँ का नहीं कोई मोल
वो तो है अनमोल।
स्वरचित
कल्पना
"माँ"
सृष्टि की सबसे सुंदर कृति ,
माँ, जो है सबसे अनमोल!
नहीं दूजा कोई माँ के जैसा,
तीनो लोक में ढूंढ लो चाहे।
प्रभु भी तरसे ममता को
इसलिये धरा पर अवतरित हुये,
माँ की ममता मिले उन्हें भी
इसीलिये हर युग मे हुये।
माँ ने रचा हम सबको,
ममता लुटाई बेहिसाब
कोई कर्ज़ चुका ना पाये
ममता के आगे सब नतमस्तक,
माँ का नहीं कोई मोल
वो तो है अनमोल।
स्वरचित
कल्पना
विषय - मांँ
दिनांक 30 -9-2019लाल रंग चुनरी माँ, दरबार तेरा सजाऊंगी ।
आशीष तेरा पा, हर द्वार खुशियांँ लाऊंगी।।
फूलों से द्वार सजा,माँ कुमकुम तिलक लगाऊंगी।
शारदे का साज हूँ,मैं गीतों में माँ तुम्हें गाऊंगी।।
सुख में सब के साथ रह, दुख में ना घबरऊंगी ।
तेरे ही आशीष से मांँ,भव पार कर जाऊंगी ।।
भूलकर जीवन व्यथा,किसी को ना सुनाऊंगी।
जब भी व्यथित ज्यादा,मांँ तेरे द्वार आऊंगी।।
तेरी शरण आ माँ, मैं प्रसन्नता को पाऊंगी।
देख तुझे एक नजर, हर दुख में बिसराऊंगी।।
हुंकार कर सबके हृदय से,पाप का नाश कर दे ।
बस यही आज तुझसे मैं,अरदास कर जाऊंगी।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 30 -9-2019लाल रंग चुनरी माँ, दरबार तेरा सजाऊंगी ।
आशीष तेरा पा, हर द्वार खुशियांँ लाऊंगी।।
फूलों से द्वार सजा,माँ कुमकुम तिलक लगाऊंगी।
शारदे का साज हूँ,मैं गीतों में माँ तुम्हें गाऊंगी।।
सुख में सब के साथ रह, दुख में ना घबरऊंगी ।
तेरे ही आशीष से मांँ,भव पार कर जाऊंगी ।।
भूलकर जीवन व्यथा,किसी को ना सुनाऊंगी।
जब भी व्यथित ज्यादा,मांँ तेरे द्वार आऊंगी।।
तेरी शरण आ माँ, मैं प्रसन्नता को पाऊंगी।
देख तुझे एक नजर, हर दुख में बिसराऊंगी।।
हुंकार कर सबके हृदय से,पाप का नाश कर दे ।
बस यही आज तुझसे मैं,अरदास कर जाऊंगी।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
( छंदः'सोमराजी/'शंखनारी' (वार्णिक ;दो यगण) पर आधारित मुक्तकः
*
१.
महाशक्ति -- वन्ता!
अनाद्या - अनन्ता!
नगाधीश -- कन्या,
सुसेव्या - सुसन्ता!
२.
सुशुभ्रा शरीरा!
तपोपूत धीरा!
महागौरि देवी,
हरो विश्व पीरा!
३.
सती साध्वि आर्या!
पिनाकी - सुभार्या!
त्रिनेत्रा भवानी,
तुम्ही सृष्टि - कार्या!
४.
मनोबुद्धि - रूपा!
अहंकार - भूपा!
चिदानंद - सत्ता,
अभव्या अनूपा!
५.
शिवा भद्रकाली !
कुमारी कराली !
निशुम्भादि - हन्त्री,
निशा - काल वाली!
६.
अनेकास्त्र - हस्ता!
अनन्ता - सुशस्त्रा!
चिता मुक्तकेशी,
महा रौद्र - वक्त्रा!
७.
अघी दैत्य - नाशा!
अविद्या -- विनाशा!
क्रिया ग्यान नित्या,
सुविद्या प्रकाशा!
८.
शताधिक्य नामा!
पराम्बा शिवा माँ!
त्वदीयांघ्रि - पूजा।
समा नान्य दूजा।
९.
दया - दृष्टि फेरा।
हरे माँ ! अँधेरा।
रहे 'मैं' , न 'मेरा'।
न 'तू' और 'तेरा'।।
-डा.'शितिकंठ'
*
१.
महाशक्ति -- वन्ता!
अनाद्या - अनन्ता!
नगाधीश -- कन्या,
सुसेव्या - सुसन्ता!
२.
सुशुभ्रा शरीरा!
तपोपूत धीरा!
महागौरि देवी,
हरो विश्व पीरा!
३.
सती साध्वि आर्या!
पिनाकी - सुभार्या!
त्रिनेत्रा भवानी,
तुम्ही सृष्टि - कार्या!
४.
मनोबुद्धि - रूपा!
अहंकार - भूपा!
चिदानंद - सत्ता,
अभव्या अनूपा!
५.
शिवा भद्रकाली !
कुमारी कराली !
निशुम्भादि - हन्त्री,
निशा - काल वाली!
६.
अनेकास्त्र - हस्ता!
अनन्ता - सुशस्त्रा!
चिता मुक्तकेशी,
महा रौद्र - वक्त्रा!
७.
अघी दैत्य - नाशा!
अविद्या -- विनाशा!
क्रिया ग्यान नित्या,
सुविद्या प्रकाशा!
८.
शताधिक्य नामा!
पराम्बा शिवा माँ!
त्वदीयांघ्रि - पूजा।
समा नान्य दूजा।
९.
दया - दृष्टि फेरा।
हरे माँ ! अँधेरा।
रहे 'मैं' , न 'मेरा'।
न 'तू' और 'तेरा'।।
-डा.'शितिकंठ'
कहा क्या खूब है जन्नत मेरी मां के कदमों में।
है मां का करम जो कामयाबी खुद बुलाती है।
मां की रहमत का बड़ा कर्जा चढा हम पर।
पीकर जहर अमृत वो छाती से पिलाती है।
मां के रहने से है रहती इस घर में मेरे बरकत।
उसकी दुआओं से जिन्दगी मेरी जगमगाती है।
उस की हर साँस मे है फिक्र मेरी दुनिया का।
जाती बिखर खुद घर का हर कोना सजाती है।
सर पे साया मां का जैसे नेमत बडी रब की।
मां के आंचल की छाया मुसीबत से बचाती है।
रौशन करे जल कर दिया जो मां वो बाती है।
सदा रौशन रहे घर वो जहां मां मुस्कुराती है।
विपिन सोहल
है मां का करम जो कामयाबी खुद बुलाती है।
मां की रहमत का बड़ा कर्जा चढा हम पर।
पीकर जहर अमृत वो छाती से पिलाती है।
मां के रहने से है रहती इस घर में मेरे बरकत।
उसकी दुआओं से जिन्दगी मेरी जगमगाती है।
उस की हर साँस मे है फिक्र मेरी दुनिया का।
जाती बिखर खुद घर का हर कोना सजाती है।
सर पे साया मां का जैसे नेमत बडी रब की।
मां के आंचल की छाया मुसीबत से बचाती है।
रौशन करे जल कर दिया जो मां वो बाती है।
सदा रौशन रहे घर वो जहां मां मुस्कुराती है।
विपिन सोहल
30/9/2019
विषय-माँ
🙏🙏🙏🙏🙏
मेरी खुशियों का आस
मेरे जीवन का सार है
मेरी मुस्कुराहटों की मिठास,
मेरी आशाओं का आधार है
हाँ ...वो मेरी माँ ही तो है ..
तज कर निज सुख
देती बच्चों को सुख
चाहे संतान का हित
किंचित सा मुझे देख व्यथित
स्व नयन सजल कर जाए
हाँ...वो मेरी माँ ही तो है
निश्छल पावन अनुराग लिए है
सबका हित सौभाग्य लिए है
अपनी कभी न परवाह करे
कुटुंब के हित की चाह करे
हाँ... वो मेरी माँ ही तो है
प्रार्थना में स्व से ऊपर
संतान का ही ध्यान धरे
कभी मूक हो कर
कभी मुखरित हो कर
मम हित दुआ माँगा करे
हाँ.. वो मेरी माँ ही तो है...
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
विषय-माँ
🙏🙏🙏🙏🙏
मेरी खुशियों का आस
मेरे जीवन का सार है
मेरी मुस्कुराहटों की मिठास,
मेरी आशाओं का आधार है
हाँ ...वो मेरी माँ ही तो है ..
तज कर निज सुख
देती बच्चों को सुख
चाहे संतान का हित
किंचित सा मुझे देख व्यथित
स्व नयन सजल कर जाए
हाँ...वो मेरी माँ ही तो है
निश्छल पावन अनुराग लिए है
सबका हित सौभाग्य लिए है
अपनी कभी न परवाह करे
कुटुंब के हित की चाह करे
हाँ... वो मेरी माँ ही तो है
प्रार्थना में स्व से ऊपर
संतान का ही ध्यान धरे
कभी मूक हो कर
कभी मुखरित हो कर
मम हित दुआ माँगा करे
हाँ.. वो मेरी माँ ही तो है...
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
मां,
सबकी, मां,
मां,शेरा वाली,
मेरी मां,
मेरी जन्मदात्री,
मेरी हंसी,
मेरा आनंद,
मेरा सुख,
मेरा रोनापर,
लोरी गाती,
ममता लुटाती,
गीले बिस्तर पर,
खुद सो,
सूखे में सुलाती,
आंसू पौंछ,
मुझको हंसाती,
उसके बोल,
गीता के श्लोक जैसे,
जीवन के लिए,
सुखद होता,
जन्मदात्री,
पालन हार,
पोषण हार,
मां मेरी,
जिन्दगी,
उसके बिना,
जीवन
उदास, निराश,
अनाथ हो जाता है।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ ग,।ज
सबकी, मां,
मां,शेरा वाली,
मेरी मां,
मेरी जन्मदात्री,
मेरी हंसी,
मेरा आनंद,
मेरा सुख,
मेरा रोनापर,
लोरी गाती,
ममता लुटाती,
गीले बिस्तर पर,
खुद सो,
सूखे में सुलाती,
आंसू पौंछ,
मुझको हंसाती,
उसके बोल,
गीता के श्लोक जैसे,
जीवन के लिए,
सुखद होता,
जन्मदात्री,
पालन हार,
पोषण हार,
मां मेरी,
जिन्दगी,
उसके बिना,
जीवन
उदास, निराश,
अनाथ हो जाता है।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ ग,।ज
30/09/2019
विषय - प्यारी माँकितनी मासूम, कितनी प्यारी है,
सारे जग से देखो वो न्यारी है ।
निश्छल सी है ममता उसकी ,
दुनिया की हर तपिश से बचाती हैं ।
घर का सारा बोझ उठाकर ,
ओठो पर मुस्कान दे जाती है।
खुद चाहे जितनी भी थकी हो ,
अपने हाथों से खाना खिलाती हैं ।
खुद रोकर भी हँसती रहती,
बच्चो को कभी ना रोने देती।
अपना हर फ़र्ज़ निभाकर ,
पैरो तले स्वर्ग बनाती हैं ।
दिल दुखता है ,आँखे रोती है,
फिर भी शिकायत ना करती है।
अपने आँचल की छाव में रखकर ,
हर दुःख ,तकलीफ से बचाती हैं ।
बिन लोरी ना आती निंदिया,
अदभुत ऐसा जादू करती है।
नींद में भी मिले सुकूँ ,
पूरी रात जागकर बिताती है।
हर ख्वाहिश पूरी करती है ,
मुख से कुछ ना कहती है।
जब भी कदम लड़खड़ाये मेरे,
लाठी बन साथ निभाती हैं ।
ख़ुद काँटों में भी रहकर ,
फूलों की सेज पर सुलाती है।
राहो के सारे कांटे चुनकर
मखमली जमीं पर चलाती हैं।
चाहे कितनी कठिन डगर हो,
आगे ही आगे कदम बढ़ना है।
राहो में आए जितनी भी मुश्किलें,
डटकर सामना करना सिखाती हैं।
कभी जो भटकूँ राहो पर,
सही राह दिखलाती है ।
सत्य की राह बड़ी कठिन है,
झूठ के आगे ना झुकना सिखाती हैं।
अपनी सारी दुवाएं देकर ,
आशीष देने को बाहे फैलाती है।
तेरा क़र्ज़ ना कोई चुका पायेगा,
देकर जीवन इस धरा पर लाती है।
माँ बन करके ही जाना है ,
माँ के हर दर्द को पहचाना है।
उसकी गोद में ही स्वर्ग बसता है,
ईश्वर भी उसके आगे झुकता है ।
शशि कुशवाहा
मौलिक एवं स्वरचित
विषय - प्यारी माँकितनी मासूम, कितनी प्यारी है,
सारे जग से देखो वो न्यारी है ।
निश्छल सी है ममता उसकी ,
दुनिया की हर तपिश से बचाती हैं ।
घर का सारा बोझ उठाकर ,
ओठो पर मुस्कान दे जाती है।
खुद चाहे जितनी भी थकी हो ,
अपने हाथों से खाना खिलाती हैं ।
खुद रोकर भी हँसती रहती,
बच्चो को कभी ना रोने देती।
अपना हर फ़र्ज़ निभाकर ,
पैरो तले स्वर्ग बनाती हैं ।
दिल दुखता है ,आँखे रोती है,
फिर भी शिकायत ना करती है।
अपने आँचल की छाव में रखकर ,
हर दुःख ,तकलीफ से बचाती हैं ।
बिन लोरी ना आती निंदिया,
अदभुत ऐसा जादू करती है।
नींद में भी मिले सुकूँ ,
पूरी रात जागकर बिताती है।
हर ख्वाहिश पूरी करती है ,
मुख से कुछ ना कहती है।
जब भी कदम लड़खड़ाये मेरे,
लाठी बन साथ निभाती हैं ।
ख़ुद काँटों में भी रहकर ,
फूलों की सेज पर सुलाती है।
राहो के सारे कांटे चुनकर
मखमली जमीं पर चलाती हैं।
चाहे कितनी कठिन डगर हो,
आगे ही आगे कदम बढ़ना है।
राहो में आए जितनी भी मुश्किलें,
डटकर सामना करना सिखाती हैं।
कभी जो भटकूँ राहो पर,
सही राह दिखलाती है ।
सत्य की राह बड़ी कठिन है,
झूठ के आगे ना झुकना सिखाती हैं।
अपनी सारी दुवाएं देकर ,
आशीष देने को बाहे फैलाती है।
तेरा क़र्ज़ ना कोई चुका पायेगा,
देकर जीवन इस धरा पर लाती है।
माँ बन करके ही जाना है ,
माँ के हर दर्द को पहचाना है।
उसकी गोद में ही स्वर्ग बसता है,
ईश्वर भी उसके आगे झुकता है ।
शशि कुशवाहा
मौलिक एवं स्वरचित
दिनांक:30/09/2019
विधा: पिरामिड
विषय: माँ
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
माँ
जय
विजय
ब्रह्मचर्य
प्रथम पूज्य
शत्रु पराजय
ब्रह्मचारिणी दिव्य ।
ओम्
मैया
अभाव्या
दक्षकन्या
तू रत्नप्रिया
है विद्यादायनी
जय विध्यवासिनी।
माँ
चर
अचर
तू अंबर
अभयंकर
पार्वती शंकर
पृथ्वी जल चराचर ।
हे
मान
पूजन
अंर्तमन
करू अर्चन
भजन कीर्तन
नारी शक्ति मंथन
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विधा: पिरामिड
विषय: माँ
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
माँ
जय
विजय
ब्रह्मचर्य
प्रथम पूज्य
शत्रु पराजय
ब्रह्मचारिणी दिव्य ।
ओम्
मैया
अभाव्या
दक्षकन्या
तू रत्नप्रिया
है विद्यादायनी
जय विध्यवासिनी।
माँ
चर
अचर
तू अंबर
अभयंकर
पार्वती शंकर
पृथ्वी जल चराचर ।
हे
मान
पूजन
अंर्तमन
करू अर्चन
भजन कीर्तन
नारी शक्ति मंथन
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
30/09/19
विषय-मां
हां मैं पागल हूं
मां हूं ना!!
अपना बचपन देखा उसमे
मेरा अंश है वो
मां हूं मैं ।
मेरी प्रतिछाया
मेरी फलती आशा
चित्रकार हूं मैं।
पल पल जीया
उसे अपने अंदर
जननी हूं मैं ।
साकार हुवा सपना
उसे देख कर
पूर्ण तृप्ता हूं मैं ।
मैं गर्वित हूं
विधाता की तरह
रचना कार हूं मैं ।
खिला रहे शाश्वत वो
मेरी बगिया में
बागबां हूं मैं ।
सम्मान देता ईश सम,
मुझ से कहता
पालन हार हूं मैं।
स्वरचित।
कुसुम कोठरी।
विषय-मां
हां मैं पागल हूं
मां हूं ना!!
अपना बचपन देखा उसमे
मेरा अंश है वो
मां हूं मैं ।
मेरी प्रतिछाया
मेरी फलती आशा
चित्रकार हूं मैं।
पल पल जीया
उसे अपने अंदर
जननी हूं मैं ।
साकार हुवा सपना
उसे देख कर
पूर्ण तृप्ता हूं मैं ।
मैं गर्वित हूं
विधाता की तरह
रचना कार हूं मैं ।
खिला रहे शाश्वत वो
मेरी बगिया में
बागबां हूं मैं ।
सम्मान देता ईश सम,
मुझ से कहता
पालन हार हूं मैं।
स्वरचित।
कुसुम कोठरी।
30-9-2019
हे माँ जगदम्बे नौ रूप धर इन दिनों में धरती पर आ जाओ ,
अधर्मी, कपटी, दुर्जनो को शिक्षा दे, सत्य पाठ पढ़ा जाओ l
ये प्राणी अज्ञानी है मोह-माया में बंध अनेक पाप वह करता,
समझने की भाषा न आती, परिणामो को भोग कर समझता l
कन्या तुमसे है वर मांगती, बालक-किशोर विधा का अर्जन ,
कोई धन-दौलत का अभिलाषी,प्रार्थना सुबह-शाम वो करता l
माता तूने बहुत दिया,तेरी महानता से जन -जन नतमस्तक ,
हम दुखी-दरिद्र मनुष्य अहंकारी दिवा स्वप्न से जागे नहीं तक l
कर जोड़, थाल सजा, आरती पुष्प चंदन से तुझे ही रिझाऐ,
दुखो की आवक में हुई बढ़ोतरी, दिल ही दिल तो घबराऐ l
ऐसी घड़ी में धरतीपर आकर आशाओ की आस बँधाओ ,
तुम्हारा मान-आस्था बहुमूल्य मनुजो को अब न देर लगाओ l
डॉ पूनम सिंह
मौलिक
लख़नऊ
हे माँ जगदम्बे नौ रूप धर इन दिनों में धरती पर आ जाओ ,
अधर्मी, कपटी, दुर्जनो को शिक्षा दे, सत्य पाठ पढ़ा जाओ l
ये प्राणी अज्ञानी है मोह-माया में बंध अनेक पाप वह करता,
समझने की भाषा न आती, परिणामो को भोग कर समझता l
कन्या तुमसे है वर मांगती, बालक-किशोर विधा का अर्जन ,
कोई धन-दौलत का अभिलाषी,प्रार्थना सुबह-शाम वो करता l
माता तूने बहुत दिया,तेरी महानता से जन -जन नतमस्तक ,
हम दुखी-दरिद्र मनुष्य अहंकारी दिवा स्वप्न से जागे नहीं तक l
कर जोड़, थाल सजा, आरती पुष्प चंदन से तुझे ही रिझाऐ,
दुखो की आवक में हुई बढ़ोतरी, दिल ही दिल तो घबराऐ l
ऐसी घड़ी में धरतीपर आकर आशाओ की आस बँधाओ ,
तुम्हारा मान-आस्था बहुमूल्य मनुजो को अब न देर लगाओ l
डॉ पूनम सिंह
मौलिक
लख़नऊ
....नमन भावों के मोती...
दि. -30.09.19
विषय - माँ
******************************************
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
माँ के आँचल से बढ़कर इस जग में पावन क्या होगा |
माँ के जैसा कोई नहीं है |
माँ जैसी तो बस माँ ही है |
ईश्वर कितने रूप बनाता -
इसीलिए उसने माँ दी है |
माँ के चरणों की रज से बढ़कर कोइ चंदन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़कर जग में मनभावन क्या होगा ||
त्याग और तप की ये मूरत |
सबसे सुंदर है ये सूरत |
बिन इसके जीवन है अधूरा -
सबको इसकी बहुत ज़रूरत |
माँ के बिन सोचो तो जरा कि अपना जीवन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
माँ है तो हर घर जन्नत है |
माँ की दुआ से हर नेमत है |
माँ के बिन जग सूना सूना -
माँ से ही चलती कुदरत है |
माँ की ममता के जैसा सच्चा अपनापन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
माँ पर ध्यान सदा ही देना |
गौरव गान सदा ही देना |
रब को पूजो न पूजो पर-
माँ को मान सदा ही देना |
माँ के चरणों से बढ़कर काशी वृंदावन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
माँ के आँचल से बढ़कर इस जग में पावन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
******************************************
स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी - सिवनी म.प्र.
दि. -30.09.19
विषय - माँ
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माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
माँ के आँचल से बढ़कर इस जग में पावन क्या होगा |
माँ के जैसा कोई नहीं है |
माँ जैसी तो बस माँ ही है |
ईश्वर कितने रूप बनाता -
इसीलिए उसने माँ दी है |
माँ के चरणों की रज से बढ़कर कोइ चंदन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़कर जग में मनभावन क्या होगा ||
त्याग और तप की ये मूरत |
सबसे सुंदर है ये सूरत |
बिन इसके जीवन है अधूरा -
सबको इसकी बहुत ज़रूरत |
माँ के बिन सोचो तो जरा कि अपना जीवन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
माँ है तो हर घर जन्नत है |
माँ की दुआ से हर नेमत है |
माँ के बिन जग सूना सूना -
माँ से ही चलती कुदरत है |
माँ की ममता के जैसा सच्चा अपनापन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
माँ पर ध्यान सदा ही देना |
गौरव गान सदा ही देना |
रब को पूजो न पूजो पर-
माँ को मान सदा ही देना |
माँ के चरणों से बढ़कर काशी वृंदावन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
माँ के आँचल से बढ़कर इस जग में पावन क्या होगा |
माँ की ममता से बढ़ कर जग में मन भावन क्या होगा ||
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स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी - सिवनी म.प्र.
30/09/19
सोमवार
विषय - माँ
दोहे
कनक कलेवर पर सजे , लहंगा- चुनरी लाल ।
लाल तिलक से शोभता ,माँ का गर्वित भाल।।
घर- घर में है सज रहा , माता का दरबार।
श्रद्धा से करते सभी , माँ की जय-जयकार।।
माता के दरबार में , होता मंत्रोच्चार।
उसकी पूजा से मिले , सबको शांति अपार।।
सभी भक्त नवरात्र पर , भजते माँ का नाम।
अम्बे माता प्रेम से , करती पूरे काम।।
शक्ति, ज्ञान औ प्रेम की ,तू अतुलित भंडार।
माँ दुर्गे ! हम सब करें,तेरी जय-जयकार।।
रमा ,सरस्वति ,कालिका , की अद्भुत अवतार।
तेरे चरणों में मिले , जीवन-सुख का सार।।
धन, पौरुष, बल, ज्ञान की, माँ ! तू है आगार ।
तेरी महिमा का नहीं , कोई पारावार ।।
दुर्गा माँ ! शक्ति तेरी , सचमुच अपरंपार ।
तेरी करुणा कर रही , कष्टों का निस्तार।।
तुम महिषासुर-मर्दिनी , करती जग का त्राण।
तेरे चरणों में निहित , भक्तों का कल्याण।।
जगजननी,जगदम्बिका,जग की शान्ति-निधान।
सबको सुख-समृद्धि का , दो माता वरदान ।।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
सोमवार
विषय - माँ
दोहे
कनक कलेवर पर सजे , लहंगा- चुनरी लाल ।
लाल तिलक से शोभता ,माँ का गर्वित भाल।।
घर- घर में है सज रहा , माता का दरबार।
श्रद्धा से करते सभी , माँ की जय-जयकार।।
माता के दरबार में , होता मंत्रोच्चार।
उसकी पूजा से मिले , सबको शांति अपार।।
सभी भक्त नवरात्र पर , भजते माँ का नाम।
अम्बे माता प्रेम से , करती पूरे काम।।
शक्ति, ज्ञान औ प्रेम की ,तू अतुलित भंडार।
माँ दुर्गे ! हम सब करें,तेरी जय-जयकार।।
रमा ,सरस्वति ,कालिका , की अद्भुत अवतार।
तेरे चरणों में मिले , जीवन-सुख का सार।।
धन, पौरुष, बल, ज्ञान की, माँ ! तू है आगार ।
तेरी महिमा का नहीं , कोई पारावार ।।
दुर्गा माँ ! शक्ति तेरी , सचमुच अपरंपार ।
तेरी करुणा कर रही , कष्टों का निस्तार।।
तुम महिषासुर-मर्दिनी , करती जग का त्राण।
तेरे चरणों में निहित , भक्तों का कल्याण।।
जगजननी,जगदम्बिका,जग की शान्ति-निधान।
सबको सुख-समृद्धि का , दो माता वरदान ।।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
30/09/2019
विधा - वर्ण पिरामिड
शीर्षक - माँ
1-
माँ,
भू माँ,
प्रसूता,
सृष्टि सार,
धैर्य अपार,
इनकी रक्षार्थ,
करूँ प्राण न्यौछार ।
2-
माँ,
शक्ति,
स्व मुक्ति,
करूँ भक्ति,
ये भरे रिक्ति,
सर्व रक्षा युक्ति,
परमार्थ संयुक्ति ।
-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित
विधा - वर्ण पिरामिड
शीर्षक - माँ
1-
माँ,
भू माँ,
प्रसूता,
सृष्टि सार,
धैर्य अपार,
इनकी रक्षार्थ,
करूँ प्राण न्यौछार ।
2-
माँ,
शक्ति,
स्व मुक्ति,
करूँ भक्ति,
ये भरे रिक्ति,
सर्व रक्षा युक्ति,
परमार्थ संयुक्ति ।
-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित
दिनांक -- 30/09/2019
विषय -- मांँ
तेरे चेहरे पे उदासी , अच्छी नहीं लगती
तेरे लबों की खामोशी , अच्छी नहीं लगती
जानती हूं मां तुने ,सहन किया बहुत कुछ
दुखों को अपने में समेटे , अच्छी नहीं लगती
एक बेटी की चिंता तुम्हें , हर पल सताती है
मेरा घर से निकलना , तुम्हें पल पल डराती है
मैं तो परछायी हूं तेरी , तेरी ही राहों पे चलती हूं
जो तुने समझाया सही गलत ,उसपे अमल करती हूं
लेकिन मां तु यूं हिम्मत हार के , अब उदास न बैठ
मेरी मां मेरी हिम्मत तु है , अब मेरी ओर तो देख
अभी तो मैं चलती हूं , तेरी ऊंगलियों को थामे
अभी बाकी है मेरी जिंदगी की , कई अंधेरी शामें
मां उन अंधेरों में दिखाना , तुम रौशनी की किरणें
चल सकूं इस जहां में मैं , उठाकर अपनी नजरें
कभी झुकने न दूंगी मां , मैं तेरा मान सम्मान
भरोसा रख दीप पर , तेरा नाम करेगी रोशन ।।
दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छ.ग.
विषय -- मांँ
तेरे चेहरे पे उदासी , अच्छी नहीं लगती
तेरे लबों की खामोशी , अच्छी नहीं लगती
जानती हूं मां तुने ,सहन किया बहुत कुछ
दुखों को अपने में समेटे , अच्छी नहीं लगती
एक बेटी की चिंता तुम्हें , हर पल सताती है
मेरा घर से निकलना , तुम्हें पल पल डराती है
मैं तो परछायी हूं तेरी , तेरी ही राहों पे चलती हूं
जो तुने समझाया सही गलत ,उसपे अमल करती हूं
लेकिन मां तु यूं हिम्मत हार के , अब उदास न बैठ
मेरी मां मेरी हिम्मत तु है , अब मेरी ओर तो देख
अभी तो मैं चलती हूं , तेरी ऊंगलियों को थामे
अभी बाकी है मेरी जिंदगी की , कई अंधेरी शामें
मां उन अंधेरों में दिखाना , तुम रौशनी की किरणें
चल सकूं इस जहां में मैं , उठाकर अपनी नजरें
कभी झुकने न दूंगी मां , मैं तेरा मान सम्मान
भरोसा रख दीप पर , तेरा नाम करेगी रोशन ।।
दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छ.ग.
दिनांक ३०/९/२०१९
शीर्षक-माँ"
चरण वंदना करूँ मैं नौ दुर्गा की,
दुःख हर लो मेरी माँ।
दुनिया के नजरों में नही
तेरी नज़रों में मैं ऊपर उठना चाहूँ माँ।
नौ दिनो में नौ दुर्गा की
कृपा पाना चाहूं मैं माँ।
हे माँ दुर्गे गले लगा लो
शरण लगा लो मेरी माँ।
माँ तेरी भजन करूँ दिन रात
आपकी कृपा सदैव बनी रहे,
यही माँगु वरदान मै आज।
करो कृपा हे माँ दुर्गे,नौ महरानी माँ।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-माँ"
चरण वंदना करूँ मैं नौ दुर्गा की,
दुःख हर लो मेरी माँ।
दुनिया के नजरों में नही
तेरी नज़रों में मैं ऊपर उठना चाहूँ माँ।
नौ दिनो में नौ दुर्गा की
कृपा पाना चाहूं मैं माँ।
हे माँ दुर्गे गले लगा लो
शरण लगा लो मेरी माँ।
माँ तेरी भजन करूँ दिन रात
आपकी कृपा सदैव बनी रहे,
यही माँगु वरदान मै आज।
करो कृपा हे माँ दुर्गे,नौ महरानी माँ।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
भावों के मोती
विषय-माँ
=========
मेरी माँ का देखो दिव्य स्वरूप
अद्भुत,अनुपम,अलौकिक रूप
माँ दुर्गा हैं कष्ट निवारणी
निराकार है माँ की ज्योति
नेत्र माँ के अमृत रस बरसाते
असुरों पर अंगार गिराते
माँ शक्ति है बड़ी ही अलौकिक
ऋषि, मुनियों को यह वर देती
अन्नपूर्णा यह जग की माता
दुखियों की यह भाग्य विधाता
अष्टभुजाएं शस्त्र से शोभित
माँ दुर्गा हैं सिंह पर आसित
नौ-नौ अद्भुत रूप हैं माँ के
दर्शन कर सब पाप मिट जाते
असुरों पर है रूप प्रलयंकर
भक्तो के हर लेती संकट
शुंभ,निशुंभ को मार गिराया
धरती से हरो अब पाप की छाया
पाप बढ़े धरा पे बहुतेरे
खोल दे माँ बंद त्रिनेत्र तेरे
मिटे अधर्म का घनघोर अंधेरा
खुशियों भरा हो नया सबेरा
मेरी माँ का देखो दिव्य स्वरूप
अद्भुत,अनुपम,अलौकिक रूप
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय-माँ
=========
मेरी माँ का देखो दिव्य स्वरूप
अद्भुत,अनुपम,अलौकिक रूप
माँ दुर्गा हैं कष्ट निवारणी
निराकार है माँ की ज्योति
नेत्र माँ के अमृत रस बरसाते
असुरों पर अंगार गिराते
माँ शक्ति है बड़ी ही अलौकिक
ऋषि, मुनियों को यह वर देती
अन्नपूर्णा यह जग की माता
दुखियों की यह भाग्य विधाता
अष्टभुजाएं शस्त्र से शोभित
माँ दुर्गा हैं सिंह पर आसित
नौ-नौ अद्भुत रूप हैं माँ के
दर्शन कर सब पाप मिट जाते
असुरों पर है रूप प्रलयंकर
भक्तो के हर लेती संकट
शुंभ,निशुंभ को मार गिराया
धरती से हरो अब पाप की छाया
पाप बढ़े धरा पे बहुतेरे
खोल दे माँ बंद त्रिनेत्र तेरे
मिटे अधर्म का घनघोर अंधेरा
खुशियों भरा हो नया सबेरा
मेरी माँ का देखो दिव्य स्वरूप
अद्भुत,अनुपम,अलौकिक रूप
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
30/09/19
विषय - माँ
*********
नवरात्री आया
मंगल कामना लाया
नवदुर्गा ने नव रूप धरा
हर रूप की अपनी महिमा है
शब्द भी कम पड़ जाएं
माँ की ऐसी महिमा है
प्रथम दिन शैलपुत्री बन आती
हिमराज की बेटी कहलाती
दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी का रूप तुम
दुखियों की दुखहारिणी तुम
तृतीय दिन चंद्रघण्टा का विकराल रूप
असुर देख जाते सब कांप
चौथे दिन कुष्मांडा का अद्भुत रूप
उल्लास से भर देती हो माँ ऐसा स्वरुप
पांचवे दिन स्कन्द माता बन जाती हो माँ
कार्तिकेय के संग पूजी जाती हो माँ
छठवें कात्यायनी का रूप लिए माँ
कात्यान ऋषि की बेटी बन जाती हो माँ
सातवें दिन माँ कालरात्रि बन जाती हो
दुष्ट असुरों का काल बन आती हो
आठवें दिन महागौरी का रूप माँ
सुमन सी कोमल नारी का रूप धरे आती हो माँ
नवें दिन सिद्धिदात्री बनकर
सुख समृद्धि और मोक्ष दे जाती हो माँ |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित एवं मौलिक
विषय - माँ
*********
नवरात्री आया
मंगल कामना लाया
नवदुर्गा ने नव रूप धरा
हर रूप की अपनी महिमा है
शब्द भी कम पड़ जाएं
माँ की ऐसी महिमा है
प्रथम दिन शैलपुत्री बन आती
हिमराज की बेटी कहलाती
दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी का रूप तुम
दुखियों की दुखहारिणी तुम
तृतीय दिन चंद्रघण्टा का विकराल रूप
असुर देख जाते सब कांप
चौथे दिन कुष्मांडा का अद्भुत रूप
उल्लास से भर देती हो माँ ऐसा स्वरुप
पांचवे दिन स्कन्द माता बन जाती हो माँ
कार्तिकेय के संग पूजी जाती हो माँ
छठवें कात्यायनी का रूप लिए माँ
कात्यान ऋषि की बेटी बन जाती हो माँ
सातवें दिन माँ कालरात्रि बन जाती हो
दुष्ट असुरों का काल बन आती हो
आठवें दिन महागौरी का रूप माँ
सुमन सी कोमल नारी का रूप धरे आती हो माँ
नवें दिन सिद्धिदात्री बनकर
सुख समृद्धि और मोक्ष दे जाती हो माँ |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित एवं मौलिक
माँ
शक्ति रूपा
सृजन सृष्टि रूपा
ब्रह्मचारिणी प्रकृति प्रतीक रूपा
नौ रूप माँ देते संदेश सत्य अहिंसा के |
सृजन
नही माँ
बिन तेरे ब्रह्मांड
हर नारी तेरा अंश
स्वयं को पहचाने देती संदेश
येजगत सूना सारा बिन माँके |
आँचल की छाया ममत का सागर छलकता
ऐ
वरदायनी
वीणापाणी ज्ञान दात्री
केवल तूही माँ केवल तुही
आओ माँ जग पुकार रहा आपको
फैला अज्ञानाधंकार चंहू ओर घनघोर |
दूर कर उज्जवल प्रकाश पूंज से करो माँ दुखकरो|
स्वरचित,,दमयंती मिश्रा
शक्ति रूपा
सृजन सृष्टि रूपा
ब्रह्मचारिणी प्रकृति प्रतीक रूपा
नौ रूप माँ देते संदेश सत्य अहिंसा के |
सृजन
नही माँ
बिन तेरे ब्रह्मांड
हर नारी तेरा अंश
स्वयं को पहचाने देती संदेश
येजगत सूना सारा बिन माँके |
आँचल की छाया ममत का सागर छलकता
ऐ
वरदायनी
वीणापाणी ज्ञान दात्री
केवल तूही माँ केवल तुही
आओ माँ जग पुकार रहा आपको
फैला अज्ञानाधंकार चंहू ओर घनघोर |
दूर कर उज्जवल प्रकाश पूंज से करो माँ दुखकरो|
स्वरचित,,दमयंती मिश्रा
30/09/2019
"माँ"
################
चलो सखि करलो शृंगार
माँ दुर्गा आ गई है द्वार
कास खिलें हैं डगर -डगर
झर रहे हरश्रृंगार बहक-बहक
नाच रहा है मन चहक -चहक
आ गया देखो शरद नवरात्र
चलो सखि करलो शृंगार
माँ दुर्गा आ गई है द्वार
ढाक,कासर,और हो शंखनाद
उलुक ध्वनि करें साथ-साथ
नैवेद्य ,धूप -दीप लेकर हाथ
माँ का स्वागत करें हम साथ
चलो सखि करलो शृंगार
माँ दुर्गा आ गई है द्वार
लाल फूल ..चरणों में चढ़ाएँ
सौभाग्य का आशीर्वाद पाएँ
आशीषों की हो रही बरसात
हाथों में लेकर पूजा का थाल
चलो सखि करलो शृंगार
माँ दुर्गा आ गई है द्वार।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"माँ"
################
चलो सखि करलो शृंगार
माँ दुर्गा आ गई है द्वार
कास खिलें हैं डगर -डगर
झर रहे हरश्रृंगार बहक-बहक
नाच रहा है मन चहक -चहक
आ गया देखो शरद नवरात्र
चलो सखि करलो शृंगार
माँ दुर्गा आ गई है द्वार
ढाक,कासर,और हो शंखनाद
उलुक ध्वनि करें साथ-साथ
नैवेद्य ,धूप -दीप लेकर हाथ
माँ का स्वागत करें हम साथ
चलो सखि करलो शृंगार
माँ दुर्गा आ गई है द्वार
लाल फूल ..चरणों में चढ़ाएँ
सौभाग्य का आशीर्वाद पाएँ
आशीषों की हो रही बरसात
हाथों में लेकर पूजा का थाल
चलो सखि करलो शृंगार
माँ दुर्गा आ गई है द्वार।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
(माँ)
***
माँ दुर्गा माँ!
हिन्दुओं की प्रमुख देवी,
शाक्त सम्प्रदाय शक्ति,
सिंह की सवारिणी,
स्वयं ब्रहमतुल्य मातु।
निरूपित पुराणों में,
निर्भया वीरांगना एक,
आदिशक्तिरूपिणी,
मोक्षदायिनी सदा।
ज्योर्तिलिंग वे सदैव,
जहाँ आप स्थापित,
सिद्धपीठ भूतल पर,
सर्वदा कहाते हैं।
गुणवती माया और,
मुख्य प्रकृति भी,
बुद्धि तत्व लोकों मे,
आप माँ सुहाती हो।
आप शक्तिरूपा है,
ऊर्जा हैं आप स्वयं,
आपके अभाव में,
शिव शवतुल्य स्वयं।
अनेकानेक रूपों में,
तुम भवानी,उग्रचंडी,
ऊर्जा से ओतप्रोत,
विघ्ननाशिनी जननि।
भक्तवत्सला अजेय,
सुखशांति, स्वास्थ्य,
यश,समृद्धि दायिनी,
कृपालु हो,कृपा करो।
सदज्ञानदायिनी जननि,
करुणानिधान हो अपार
अपनत्व,प्रेम भाव भी,
हृदय गहन में भरो।
माँ दुर्गा माँ!
--स्वरचित--
(अरुण)
***
माँ दुर्गा माँ!
हिन्दुओं की प्रमुख देवी,
शाक्त सम्प्रदाय शक्ति,
सिंह की सवारिणी,
स्वयं ब्रहमतुल्य मातु।
निरूपित पुराणों में,
निर्भया वीरांगना एक,
आदिशक्तिरूपिणी,
मोक्षदायिनी सदा।
ज्योर्तिलिंग वे सदैव,
जहाँ आप स्थापित,
सिद्धपीठ भूतल पर,
सर्वदा कहाते हैं।
गुणवती माया और,
मुख्य प्रकृति भी,
बुद्धि तत्व लोकों मे,
आप माँ सुहाती हो।
आप शक्तिरूपा है,
ऊर्जा हैं आप स्वयं,
आपके अभाव में,
शिव शवतुल्य स्वयं।
अनेकानेक रूपों में,
तुम भवानी,उग्रचंडी,
ऊर्जा से ओतप्रोत,
विघ्ननाशिनी जननि।
भक्तवत्सला अजेय,
सुखशांति, स्वास्थ्य,
यश,समृद्धि दायिनी,
कृपालु हो,कृपा करो।
सदज्ञानदायिनी जननि,
करुणानिधान हो अपार
अपनत्व,प्रेम भाव भी,
हृदय गहन में भरो।
माँ दुर्गा माँ!
--स्वरचित--
(अरुण)
30/09/19
माँ
***
माँ दुर्गा के नवरूप है इस जीवन का आधार
कल्याणकारिणी देवी करतीं जन जन का उद्धार।
शैलपुत्री माता तुम नव चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता ,अनंत दिव्यता से मन भरो ।
चन्द्रघण्टा मन की अभिव्यक्ति ,इच्छाओं को एकाग्र करो ।
कूष्मांडा प्राणशक्ति तुम ऊर्जा का भंडार भरो ।
स्कंदमाता ज्ञानदेवी कर्मपथ पर ले चलो
कात्यायनी माता तुम क्रोध का संहार करो ।
कालरात्रि माता तुम जीवन में शक्ति भरो
महागौरी माँ सौंदर्य से दैदीप्यमान करो ।
सिद्धिदात्री माता जीवन मे पूर्णता प्रदान करो
नवदुर्गे माँ जन जन के जीवन को आलोकित करो ।
आत्मसात कर सके ये अलौकिक रूप तुम्हारे
ऐसी कृपा हम पर करो ,ऐसी कृपा हम पर करो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
माँ
***
माँ दुर्गा के नवरूप है इस जीवन का आधार
कल्याणकारिणी देवी करतीं जन जन का उद्धार।
शैलपुत्री माता तुम नव चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता ,अनंत दिव्यता से मन भरो ।
चन्द्रघण्टा मन की अभिव्यक्ति ,इच्छाओं को एकाग्र करो ।
कूष्मांडा प्राणशक्ति तुम ऊर्जा का भंडार भरो ।
स्कंदमाता ज्ञानदेवी कर्मपथ पर ले चलो
कात्यायनी माता तुम क्रोध का संहार करो ।
कालरात्रि माता तुम जीवन में शक्ति भरो
महागौरी माँ सौंदर्य से दैदीप्यमान करो ।
सिद्धिदात्री माता जीवन मे पूर्णता प्रदान करो
नवदुर्गे माँ जन जन के जीवन को आलोकित करो ।
आत्मसात कर सके ये अलौकिक रूप तुम्हारे
ऐसी कृपा हम पर करो ,ऐसी कृपा हम पर करो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
जय माँ भवानी
*****
नमन मंच
"भावों के मोती "साहित्यिक संस्था
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
सभी मित्रों को,,
30-9-2019
शीर्षक -माँ
************
आनंदवर्धक आधार छंद में *गीतिका*
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
2 1 22 ,2122 ,2122 ,212=( मात्रिक)
मात्रा पतन रहित,,
"जय भवानी"
🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺
************************************
जय भवानी माॅ शिवानी, हम शरण में आ गए ।
साधना के पल सुकोमल,मन-कमल महका गए ।।
~~
जब तुम्हारे नेह की बाती जली,,,,,मन प्राण में,
पल लगा माँ ,ज्यों हृदय पे, नेह-जल बरसा गए।।
~~
जब हुआ मन प्राण आकुल,जिंदगी की राह में,
माॅ,! तुम्हारा प्रेम पाकर, ,,,,भक्ति के क्षण भा गए।।
~~
कंटकों में,दुर्गमों में, ,,,,जब फंसे मझधार में ,
मातु की पाई कृपा, ,,,,,,हम मंजिलों को पा गए।।
~~
माँ ! हमारी प्रेम की "वीणा" बजी,,सुरताल मय
भूल कर जीवन व्यथा ,,,हम गीत मधुरिम गा गए।।
~~
************************************
🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित (गाजियाबाद)
*****
नमन मंच
"भावों के मोती "साहित्यिक संस्था
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
सभी मित्रों को,,
30-9-2019
शीर्षक -माँ
************
आनंदवर्धक आधार छंद में *गीतिका*
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
2 1 22 ,2122 ,2122 ,212=( मात्रिक)
मात्रा पतन रहित,,
"जय भवानी"
🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺
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जय भवानी माॅ शिवानी, हम शरण में आ गए ।
साधना के पल सुकोमल,मन-कमल महका गए ।।
~~
जब तुम्हारे नेह की बाती जली,,,,,मन प्राण में,
पल लगा माँ ,ज्यों हृदय पे, नेह-जल बरसा गए।।
~~
जब हुआ मन प्राण आकुल,जिंदगी की राह में,
माॅ,! तुम्हारा प्रेम पाकर, ,,,,भक्ति के क्षण भा गए।।
~~
कंटकों में,दुर्गमों में, ,,,,जब फंसे मझधार में ,
मातु की पाई कृपा, ,,,,,,हम मंजिलों को पा गए।।
~~
माँ ! हमारी प्रेम की "वीणा" बजी,,सुरताल मय
भूल कर जीवन व्यथा ,,,हम गीत मधुरिम गा गए।।
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित (गाजियाबाद)
30/09/20019
विषय - माँ
विधा - पिरामिड
माँ
दुर्गा
भवानी
अष्टभुजी
शक्तिदायिनी
संकट हरणी
पधारों मेरे घर
माँ
तेरा
दर्शन
मिल जाये
मैं बलिहारी
कटे पाप मेरे
हो जाये बेडा पार
स्वरचित डॉ.विभा रजंन (कनक)
नयी दिल्ली
विषय - माँ
विधा - पिरामिड
माँ
दुर्गा
भवानी
अष्टभुजी
शक्तिदायिनी
संकट हरणी
पधारों मेरे घर
माँ
तेरा
दर्शन
मिल जाये
मैं बलिहारी
कटे पाप मेरे
हो जाये बेडा पार
स्वरचित डॉ.विभा रजंन (कनक)
नयी दिल्ली
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 30/09/2019
विषय :- माँ
माँ एक शब्द नहीं...
एहसास है ममता का..
सागर है करुणा का...
बहाव है सरिता सा..
भावनाओं की वर्णमाला...
संवेदनाओं की पर्वतमाला...
माँ में बसे कोटि रूप ईश्वर के...
माँ का रूप सबसे निराला...
माँ जैसा कोई अंतर्यामी नहीं...
माँ जैसा कोई स्वामी नहीं...
माँ ही माँ का अपरूप है...
माँ ही शक्ति का स्वरूप है...
माँ अनुभूति है..
माँ जागृति है...
माँ जननी है...
माँ जगति है..
माँ आधार है..
माँ संस्कार है..
माँ संस्कृति माँ ही सभ्यता है..
सकल वेदों में वर्णित... माँ वो विधाता है..
माँ पृथ्वी है..
माँ आकाश है...
माँ श्वांस है..
माँ की ममता निस्वार्थ है
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिनांक :- 30/09/2019
विषय :- माँ
माँ एक शब्द नहीं...
एहसास है ममता का..
सागर है करुणा का...
बहाव है सरिता सा..
भावनाओं की वर्णमाला...
संवेदनाओं की पर्वतमाला...
माँ में बसे कोटि रूप ईश्वर के...
माँ का रूप सबसे निराला...
माँ जैसा कोई अंतर्यामी नहीं...
माँ जैसा कोई स्वामी नहीं...
माँ ही माँ का अपरूप है...
माँ ही शक्ति का स्वरूप है...
माँ अनुभूति है..
माँ जागृति है...
माँ जननी है...
माँ जगति है..
माँ आधार है..
माँ संस्कार है..
माँ संस्कृति माँ ही सभ्यता है..
सकल वेदों में वर्णित... माँ वो विधाता है..
माँ पृथ्वी है..
माँ आकाश है...
माँ श्वांस है..
माँ की ममता निस्वार्थ है
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
*विधा--------सार छंद*
विषय---------माँ*
नित्य दिन करती आराधना ,
दीपक कलश सजाये ।
लाली चुनरी ओढ़े मैया ,
नव श्रृंगार सुहाये ।।
उपासना करती हूँ निशदिन ,
दो दरस माँ भवानी ।
पूरी कर दो मनो कामना ,
अब तो माता रानी ।।
दिव्य रूप मोहक छवि सोहे ,
माता जग से न्यारी।
शक्ति स्वरूपा जगत तारिणी ,
माँ की महिमा भारी ।।
खुशियाँ लातीं झोली भरकर ,
जिस घर होती मैया ।
संकट से पार करा देती ,
मेरी माँ खेवैया ।।
महा गौरी माता भवानी ,
कल्याणी माँ काली ।।
दुष्टहारिणी चंडी देवी ,
देती जग खुश हाली ।।
यश की देवी माता दुर्गा ,
धन वैभव बरसाती ।
जो करते अंबे की सेवा ,
सुख समृद्धि घर आती ।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़ ,छत्तीसगढ़*
विषय---------माँ*
नित्य दिन करती आराधना ,
दीपक कलश सजाये ।
लाली चुनरी ओढ़े मैया ,
नव श्रृंगार सुहाये ।।
उपासना करती हूँ निशदिन ,
दो दरस माँ भवानी ।
पूरी कर दो मनो कामना ,
अब तो माता रानी ।।
दिव्य रूप मोहक छवि सोहे ,
माता जग से न्यारी।
शक्ति स्वरूपा जगत तारिणी ,
माँ की महिमा भारी ।।
खुशियाँ लातीं झोली भरकर ,
जिस घर होती मैया ।
संकट से पार करा देती ,
मेरी माँ खेवैया ।।
महा गौरी माता भवानी ,
कल्याणी माँ काली ।।
दुष्टहारिणी चंडी देवी ,
देती जग खुश हाली ।।
यश की देवी माता दुर्गा ,
धन वैभव बरसाती ।
जो करते अंबे की सेवा ,
सुख समृद्धि घर आती ।।
*धनेश्वरी देवांगन "धरा"*
*रायगढ़ ,छत्तीसगढ़*
30.9.2019
सोमवार
विषय -माँ
विधा -भक्ति गीत
माँ
🌹
मंगल कलश रख आई मैं, मेरी अम्बे मैया आएँगी
जोत जला कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी।।
अम्बे मैया आएँगी,संग लक्ष्मी माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी,मेरी अम्बे मैया आएँगी
तोरण लगा कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी।।
अम्बे मैया आएँगी, संग गौरा माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी,मेरी अम्बे मैया आएँगी
आसन बिछा कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी।।
अम्बे मैया आएँगी,संग शारदा माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी,मेरी अम्बे मैया आएँगी
फूल बिछा कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी।।
अम्बे मैया आएँगी, संग सरस्वती माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी, मेरी अम्बे मैया आएँगी
वीणा सजा कर आई मैं, जगदम्बे माँ आएँगी ।।
अम्बे मैया आएँगी, संग गायत्री माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी, मेरी अम्बे मैया आएँगी
मंत्रोच्चार कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी ।।
अम्बे मैया आएँगी, नवदुर्गा रुप सजाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी, मेरी अम्बे मैया आएँगी
संगत बुला कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
सोमवार
विषय -माँ
विधा -भक्ति गीत
माँ
🌹
मंगल कलश रख आई मैं, मेरी अम्बे मैया आएँगी
जोत जला कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी।।
अम्बे मैया आएँगी,संग लक्ष्मी माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी,मेरी अम्बे मैया आएँगी
तोरण लगा कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी।।
अम्बे मैया आएँगी, संग गौरा माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी,मेरी अम्बे मैया आएँगी
आसन बिछा कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी।।
अम्बे मैया आएँगी,संग शारदा माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी,मेरी अम्बे मैया आएँगी
फूल बिछा कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी।।
अम्बे मैया आएँगी, संग सरस्वती माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी, मेरी अम्बे मैया आएँगी
वीणा सजा कर आई मैं, जगदम्बे माँ आएँगी ।।
अम्बे मैया आएँगी, संग गायत्री माँ को लाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी, मेरी अम्बे मैया आएँगी
मंत्रोच्चार कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी ।।
अम्बे मैया आएँगी, नवदुर्गा रुप सजाएँगी
ख़ुशियाँ बरसाएँगी, मेरी अम्बे मैया आएँगी
संगत बुला कर आई मैं,जगदम्बे माँ आएँगी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
दिनांक- 30-9-2019
विषय - माँ
🙏नमस्कार🙏
सिंहावलोकन घनाक्षरी सादर समीक्षार्थ 🙏😊🌻
वीणा पाणि शारदे माँ , मुझको भी तारदे माँ ,
कलम में खड्ग जैसी , धार मुझे चाहिए ।
धार मुझे चाहिए माँ, भाव मुझे चाहिए माँ ,
छन्द हेतु अनुपम , अलड्कार चाहिए।
अलङ्कार चाहिए जी , शब्द को सजाइए जी ,
रचना बने जो दिव्य , वो निखार चाहिए ।
वो निखार चाहिए भी , संग आप आइए भी ,
है पुनीत की पुकार , अम्ब प्यार चाहिए ।
पुनीता भारद्वाज
विषय - माँ
🙏नमस्कार🙏
सिंहावलोकन घनाक्षरी सादर समीक्षार्थ 🙏😊🌻
वीणा पाणि शारदे माँ , मुझको भी तारदे माँ ,
कलम में खड्ग जैसी , धार मुझे चाहिए ।
धार मुझे चाहिए माँ, भाव मुझे चाहिए माँ ,
छन्द हेतु अनुपम , अलड्कार चाहिए।
अलङ्कार चाहिए जी , शब्द को सजाइए जी ,
रचना बने जो दिव्य , वो निखार चाहिए ।
वो निखार चाहिए भी , संग आप आइए भी ,
है पुनीत की पुकार , अम्ब प्यार चाहिए ।
पुनीता भारद्वाज
माँ
है माँ का
प्यार अमूल्य
है किस्मत वाले
जिन्हें मिलता
माँ का प्यार
माँ ही देवी
माँ ही आस्था
माँ ही विश्वास
माँ ही ईमान
माँ ही संसार
करों सम्मान माँ का
रखो मान माँ का
है माँ से शान
आंचल माँ का
है खुशहाल जिन्दगी
जब हो साथ माँ का
नवरात्र में
लो आशीर्वाद
माँ का
कष्ट संकट
विघन बाधाएं
हो जाए दूर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
है माँ का
प्यार अमूल्य
है किस्मत वाले
जिन्हें मिलता
माँ का प्यार
माँ ही देवी
माँ ही आस्था
माँ ही विश्वास
माँ ही ईमान
माँ ही संसार
करों सम्मान माँ का
रखो मान माँ का
है माँ से शान
आंचल माँ का
है खुशहाल जिन्दगी
जब हो साथ माँ का
नवरात्र में
लो आशीर्वाद
माँ का
कष्ट संकट
विघन बाधाएं
हो जाए दूर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दिनांक 30 सितंबर 19
विषय: माँविधा : पद (छंदबद्ध कविता)
🙏🙏🙏🙏 माँ 🙏🙏🙏🙏
'माँ 'शब्द में करें बसेरा ,
ब्रह्मा,विष्णु और महेश ।
माँ कहने से मुंह भर जाता ,
मिट जाते दिल के सब द्वेष।।
ममता करुणा और प्रेम दया ,
सहानुभूति की खान है माँ ।
बच्चों को है दिल से प्यारी,
रूप अलग ,एक जान है माँ।।
दीपक में है जैसे बाती ,
दिल में उसी समान है माँ ।
मन बुद्धि आत्मशक्ति की ,
हाथ में लिये कमान है माँ ।।
खाती -पीती , उठती -बैठती ,
रखती सदा बच्चों का ध्यान ।
देव, मुन्नी तेरी करें वंदना ,
ईश्वर से भी हो तुम महान ।।
पेट में रखा नो महीनों तक ,
रही होगी कितनी परेशान ।
दूध पिलाकर अपने तन से ,
भूख से मेरी बचायी जान ।।
करअपने हाथों पालनपोषण,
भर दियाअमूल्य नैतिक ज्ञान।
दुख -दर्द सहे चुपचाप सभी,
न छिपी कभी मुख से मुस्कान।।
भूल सकूँ नहीं माँ वह लोरी,
खुद जगी पर मुझे सुलाया ।
मिली न फुर्सत तुझे कभी ,
पर हर रोज मुझे नहलाया।।
मैं था जिद्दी और शरारती ,
माँ रो-रो कर तुझे खूब रुलाया।
लातें मारकर , गीला करके ,
मैंने रात भर तुझे जगाया ।।
हाथ सदा रहा सिर पर तेरा ,
माँ दुआ सदा रही मेरे साथ ।
संभल गया उस दिन से मैं ,
पकड़ी उँगली जब तेरी हाथ।।
अपनी तरफ से कसर न रखी ,
जितना माँ तुमसे हो पाया ।
एक अज्ञानी को गढ़कर तुमने ,
दिया ज्ञान सभ्य इंसान बनाया ।।
जब भी लगा कभी ठोकर काटा,
द्रवित दिल ने दर्द है बाँटा।
गलती पर मुझे मारकर चाँटा ,
तुम मार्गदर्शक रही हो माता।।
अंतिम साँस तक चाहती है माँ ,
हष्ट -पुष्ट बच्चों की बेल ।
जलती है दीपक मैं भाँती ,
लेकर दिल में ममता का तेल ।।
न इतनी शक्ति मेरी कलम में,
जो करदे माँ तेरा व्याख्यान ।
सौ जन्मों तक करके सेवा ,
न चुका सकूँ माँ तेरा अहसान ।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
जिला महेंद्रगढ़ ,हरियाणा
विषय: माँविधा : पद (छंदबद्ध कविता)
🙏🙏🙏🙏 माँ 🙏🙏🙏🙏
'माँ 'शब्द में करें बसेरा ,
ब्रह्मा,विष्णु और महेश ।
माँ कहने से मुंह भर जाता ,
मिट जाते दिल के सब द्वेष।।
ममता करुणा और प्रेम दया ,
सहानुभूति की खान है माँ ।
बच्चों को है दिल से प्यारी,
रूप अलग ,एक जान है माँ।।
दीपक में है जैसे बाती ,
दिल में उसी समान है माँ ।
मन बुद्धि आत्मशक्ति की ,
हाथ में लिये कमान है माँ ।।
खाती -पीती , उठती -बैठती ,
रखती सदा बच्चों का ध्यान ।
देव, मुन्नी तेरी करें वंदना ,
ईश्वर से भी हो तुम महान ।।
पेट में रखा नो महीनों तक ,
रही होगी कितनी परेशान ।
दूध पिलाकर अपने तन से ,
भूख से मेरी बचायी जान ।।
करअपने हाथों पालनपोषण,
भर दियाअमूल्य नैतिक ज्ञान।
दुख -दर्द सहे चुपचाप सभी,
न छिपी कभी मुख से मुस्कान।।
भूल सकूँ नहीं माँ वह लोरी,
खुद जगी पर मुझे सुलाया ।
मिली न फुर्सत तुझे कभी ,
पर हर रोज मुझे नहलाया।।
मैं था जिद्दी और शरारती ,
माँ रो-रो कर तुझे खूब रुलाया।
लातें मारकर , गीला करके ,
मैंने रात भर तुझे जगाया ।।
हाथ सदा रहा सिर पर तेरा ,
माँ दुआ सदा रही मेरे साथ ।
संभल गया उस दिन से मैं ,
पकड़ी उँगली जब तेरी हाथ।।
अपनी तरफ से कसर न रखी ,
जितना माँ तुमसे हो पाया ।
एक अज्ञानी को गढ़कर तुमने ,
दिया ज्ञान सभ्य इंसान बनाया ।।
जब भी लगा कभी ठोकर काटा,
द्रवित दिल ने दर्द है बाँटा।
गलती पर मुझे मारकर चाँटा ,
तुम मार्गदर्शक रही हो माता।।
अंतिम साँस तक चाहती है माँ ,
हष्ट -पुष्ट बच्चों की बेल ।
जलती है दीपक मैं भाँती ,
लेकर दिल में ममता का तेल ।।
न इतनी शक्ति मेरी कलम में,
जो करदे माँ तेरा व्याख्यान ।
सौ जन्मों तक करके सेवा ,
न चुका सकूँ माँ तेरा अहसान ।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
जिला महेंद्रगढ़ ,हरियाणा
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