आज अनुप्रास अलंकार पर प्रयास
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पावन,पतित,पुलकित,पुष्पित तन मन
धीर गंभीर नारी, लजाता लावण्य तन मन।।
जगमग ज्योति जीवन जाग्रत हो जन मन
शीतल,संबल, अर्पण,समर्पण हो जन मन।।
कण कण में वास,पल पल आराध्य है नारी
वैध नैवेध, धूप भभूत अर्पित तुझपे है नारी।।
दुर्बलता,व्याकुलता से छिन्न भिन्न न हो नारी
भक्ति भाव भावना सदा तुझपे वारी है नारी।।
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वीणा शर्मा
"भावों के मोती"
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सबसे अच्छा व्यवहार करना
तुम सब लोगो से प्यार करना।
मधुरस पवन तुम देना सबको
शीतल सरिता की धार करना।
माने जो तुमको सच्चे दिल से
उससे तुम आंखे चार करना।
औरों को तुझसे कोई सीख मिले
ऐसा निज जीवं का सार करना।
तेरे जाने के बाद,दुनिया याद करे
बहुत ऊंचा नाम "परमार" करना।
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✍परमार प्रकाश
Hamid Khan
गफलत की जिंदगी को जीए जा रहै है हम
अमृत समझ जहर को पीए जा रहै है हम ।
जिस काम को भूल से भी न करना चाहिए
उसको बडी खुशी से किए जा रहे है हम।
शिर्क का गुनाह मुआफ नही दरबारे खास मे
फिर भी शिर्क पर शिर्क किए जा रहे है हम।
इन्सा की जिन्दगी तो मिलती है एक बार
नादान बनके ना शुक्री किए जा रहै है हम।
तोबा का दरवाज़ा अभी खुला है तेरे लिए
फिर भी क्यो नही तोबा किए जा रहै है हम।
ये दुनिया की दौलत हामिद जाती न साथ मे
किसलिए उसकी हबीस किए जा रहे है हम।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
"भावों के मोती "
रविवार -स्वतंत्र लेखन
बहुत खूबसूरत गजल लिख रही हूं
तुझे सोचकर आजकल लिख रही हूं
दिन मुस्कुराहट तो रातें हैं साया
तुझसे हैं महकी ये ठंडी हवाएं
शायद नजर तेरी पड़ रही है
मदमस्त सी हैं जो ये फिजाए
आँखों को गहरी नीली सी झीलें
तो होठों को तेरे कमल लिख रही हूं
तुझसे मिलन हो तो कशमकश है
और ना मिले तो एक बेकरारी
बड़ी मुश्किलों से गुजरते हैं लम्हे
कैसे उमर जायेगी गुजारी
न तुझसे पहले ना बाद तेरे
तुझे बस तुझे हर पल लिख रही हूं ।
वीरजी मन में है पीड़ाअपार
भाई जी बहना करे है पुकार
देश की बेटी बिलख रही है
निर्मोही हो मुस्काए
देश विदेश के चक्कर काटे
घर की सुध बिसराए
मोदी जी सुण लोजी अरज हमार
भाई जी बहना करे है पुकार
बेटे विकास को ढूंढ रहे हो
बेटी ध्यान न आए
नन्हीं कोंपले रुंध रही हैं
मन पीड़ा न समाय
मोदी जी सुण लोजी अरज हमार
भाई जी बहना करे है पुकार
क्या बूढ़ी क्या बच्ची सबका
शील कोई न बचाए
नारी सुरक्षित नहीं देश में
वो देश क्या कहलाए
मोदी जी सुण लोजी अरज हमार
भाई जी बहना करे है पुकार
मान भंग की पीड़ा ह्रदय में
फांस बन चुभ जाए
दिल में गहरा घाव करे
वो घाव ज़हर बन जाए
मोदी जी सुण लोजी अरज हमार
भाई जी बहना करे है पुकार
हो निडर तुम दुनिया जाने
क्यूं न करो उपाय
सत्ता में ही बैठे भेडिये
क्यूं तोहे नज़र न आए
मोदी जी सुण लोजी अरज हमार
भाई जी बहना करे है पुकार
करो कानून कड़ा देश का
दुष्ट दलन घबराए
घर की बेटी निकले शान से
वो फूल बन मुस्काए
मोदी जी सुण लोजी अरज हमार
वीरजी विनती करूं जी मैं अपार
भाई जी बहना करे है पुकार
स्वरचित मिलन जैन
दिनांक २० मई २०१८
हमें उनसे हैं मुहब्बत कभी कहना नहीं आया।
है सूना अब भी ये दिल उसे रहना नहीं आया।
गुज़र जाते गम से तो मन्जिल पार हो जाती।
मगर अश्को की तरह हमे बहना नहीं आया।
पता था दर्दे- इश्क है ये जां लेकर ही छोड़ेगा।
कोई शिद्दत न थी या के हमे सहना नहीं आया।
न जाने कितने ही हादसों से मै गुजर आया हूँ।
कोशिशें उसने बड़ी की मुझे ढहना नहीं आया।
बेचैनियों से मुझे सुकूं नहीं मिला जब तलक।
हार के हार मैं जीत का उसे पहना नहीं आया।
विपिन सोहल
बिन तुम्हारे कुछ नही,,,,
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मेरे इस जीवन समर में,
टेढ़े-मेढ़े उल्टे डगर में।
भाव के डुलते लहर में,
गांव में या फिर नगर में।।
....बिन तुम्हारे कुछ नही,,
कुछ भी नही,,
गीत में राग में,
प्रेम में अनुराग में।
वसंती स्वाग में,
फागुन के फाग में।।,,,,
बिन तुम्हारे कुछ नही,
कुछ भी नही,,,,
कबित्त के रास में,,
यौवना के पास में।
हर्ष में उल्लाश में,
सावनी वातास में।।,,,
,,,,बिन तुम्हारे कुछ नही
कुछ भी नही,,,,
नैनों के बाण में,
जोबन की खान में।
सुरा के पान में,
देवों के वरदान में।।,,
,,,बिन तुम्हारे कुछ नही,
कुछ भी नही,,,,,
उपवन में कान में,
निर्जन में सुनसान में।
दिवस में अवसान में,
मृत में प्राण में।।,,,
,,,,बिन तुम्हारे कुछ नही,
कुछ भी नही,,,,,
(राकेश पांडेय)
प्रथम ही नमुं गणेश, सर्व देव के देव है।
वर्णन कथा विषेश, अधिक!अधिक फल देय है।
नारायण का रूप,वसुधा को उत्तम मिला।
अधिक मास है शेष, पुरुष उत्तम नाम मिला।।
पुरुषोत्तम सदेह,अवनि पर अवतरित हुऐ।
किया पाप का नाश,जग मे नामांकित हुऐ।
महिमा अपरंपार, दान धर्म उपवास की।
स्नान, ध्यान, जप,त्याग, नीति नियम निर्वाहन की।।
जग में भारत भूमि, संस्कारों की जननी है।
राम,कृष्ण, नरसिंह, अवतारों कि धरणी है।
धर्म अर्धम सुजान,निच्छल मनसा वीथिका।
आदि अनादि वितान, देह धर्म की गीतिका।।
*रागिनी शास्त्री*
*दाहोद(गुजरात)*
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*गजल*
बुझ गये सारे दिये, पर जली बाती तो है
और महोब्बत भी बला कि शोखियाँ लाती तो है
है बड़ा ही खूबसूरत ,जश्ने महफिल का समा
रात बाकी बात बाकी, हुस्न बरपाती तो है
ये अदाएँ हुस्न कि,कुछ हंसी कुछ शौख सी
आपकी सरगोशियां, दिल खोेल मुसकाती तो है
हमसफर गुमसुम से क्यों हो,कुछ यूँ रंगत लाईये
शोख ये चंचल हवाएँ, हमको सहलाती तो है
ऐ सनम हमको सदा यूँ साथ तेरा चाहिए
हो दिवा का स्वप्न तुम,तुमको ही दोहराती तो है
हूँ ज़मीं पर एक शिफर,हर्फ ने रंग भर दिये
एक मीठी सी छुवन, एहसास जतलाती तो है
दूर तक फैला समंदर, क्षितिज तक भासित हुआ
पर ये लहरें लौट कर, कैसे चली आती तो है
सांसों कि सरगम से कैसे, दिल चमन आबाद है
और ये धड़कन क्या, गज़ब रागिनी गातीं तो है.........
*रागिनी शास्त्री*
*दाहोद(गुजरात)*
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शीर्षक--"नारी"
आजाद अब है नारी ।
दुनिया पर है भारी।।
भले हाथौ में चूड़ी बाजे।
फिर भी दुनिया पर ना गाजे ।।
मेरी मस्ती मेरी कश्ती।
देखो कितनी है सस्ती।।
मोलभाव का दोर नहीं है।
इसका कोई छोर नहीं है।।
मेरी बातें कितनी प्यारी।
कहती है दुनिया सारी।।
कहते हैं न किसी से हम।
दिल के अपने सारे ग़म।
प्रेम समर्पण समता भाव।
झेलती देखो कितने घाव।।
त्याग बलिदान की है मूरत।
भोली-भाली सी है सुरत।।
भगवान की हो तुम रचना।
मुश्किल है तुमसे बचना।।
पवित्रता की शान हो।
सृष्टि का निर्माण हो।।
स्वरचित- ममता सकलेचा
२०/५/१८
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