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दिनांक :08-05-2018
विषय :" लक्ष्य "
विधा : कविता
मेरी प्रस्तुति...
लक्ष्य तो सदा ही ऊँचा ही होना चाहिये
उसको पाने के लिये भरपूर प्रयास होना चाहिये
ग़र प्रयासों में न रहे कोई भी क़सर
सफलता के लिये आपको आश्वस्त होना चाहिये
लक्ष्य पर रहे नज़र आँख से ओझल न हो
अपने लक्ष्य के विषय में आपको कोई संशय न हो
फिर तो लक्ष्य सिध्दि में परमात्मा का आशीष है
सच्चे प्रयास करनेवाले को लक्ष्य सदा भाग्य झुकाता शीश है
(स्वरचित)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
लक्ष्य से मिलती है जीवन को पहचान,
पर पाना इसे नहीं है आसान।
रास्ते है अनेक,
बस रखना साथ विवेक।
होगा कई बार तू विफल,
मत होना हताश, होगा तू जरूर सफल।
बस बनना सदाचारी व्यक्ति,
देगा ईश्वर तुझे पूण शक्ति।
हो गलतियाँ, फिर भी रख कोशिश जारी तू ,
जो भी पाएँ, बस रहना प्रभु का आभारी तू।
मिलेगा तुझे सफलता का मुकाम,
नहीं होगी तेरी मेहनत नाकाम।
कर परिश्रम, कर अभ्यास घोर,
नहीं है तू कमज़ोर।
(स्वरचित)
-शुभांक
भा.8/5/2018मंगलवार शीर्षकः लक्ष्य ःः
एक समय एक लक्ष्य होना चाहिऐ।
क्या करना चाहते स्पष्ट होना चाहिऐ।
भरसक प्रयास लक्ष्य भेदन में करें, लक्ष्य सिर्फ एकलव्य सा होना चाहिऐ।
धनुर्धर लक्ष्य निर्धारित करें भेद पाऐंगे।
लक्ष्य निर्धारित नहीं हम कुछ कर पाऐंगे।
विवशता कितनी भी रहे दुनिया में अगर,
लक्ष्य अर्जुन सा रखेंअपना लक्ष्य पाऐंगे।
नहीं कर सकते हम यहाँ करके दिखाऐं।
ठान लें हम सागर सीना चीर के दिखाऐं।
केवल कामनाओं कुछ हासिल नहीं होता,
मूर्तरूप दे लक्ष्य साकार करके दिखाऐं।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
शीर्षक : लक्ष्य
मैने चलना सीख लिया है
ओ पथिक महान
मैने उड़ना सीख लिया है
बन पंछी बलवान
कर लक्ष्य अडिग चलता चल
डगर कंटीली बढ़ता चल
राह के पत्थरबडे नुकीले
अवरोधों से बचता चल
गागर में सागर भरता चल
है लक्ष्य कठिन तू चलता चल
हौंसले तेरे कदम बढ़ाए
अंधेरा तुझको छू भी न पाए
सागर से मोती चुनता चल
कर लक्ष्य प्रबल तू बढता चल
सूरज तेरा बदन जलाए
तूफां तुझे राह भटकाए
मनोबल तेरा टूट न पाए
तूंफा में दीप जलाता चल
है लक्ष्य ही संबल बढ़ता चल
हताश करेगे निराश करेंगे
लोग असंख्य प्रयास करेंगे
बाधाओं को छलता चल
सूरज से आंख मिलाता चल
है लक्ष्य ही मंजिल बढता चल
देखो मैंने पंख फैलाए
आज मुझे कोई रोक न पाए
लक्ष्य को प्रणाम कर
जीत का प्रयाण कर
आकाश को भेद कर
नए युग का निर्माण कर
स्वरचित मिलन जैन
फलक से तोङ कर सितारों को, फिर जंमी पर लाना है।
लक्ष्य अभी बाकी है!!!! दोस्तों, क्षितिज के पार जाना है।
कामयाबी किसे कहते हैं, और कमाई होती है क्या?,
मन मेरा तो बस आशीर्वाद की , गंगा से नहाया है।
चुन-चुन के स्नेह के मोती मैने अपने दामन में भरे,
भरी भीङ, मैं कंहा अकेली, मेरे अपनो का साया है।
लक्ष्य अभी बाकी है!!!! दोस्तों, क्षितिज के पार जाना है।
हम आये खाली हाथ हैं, और खाली हाथ है जाना,
साथ मेरे तो युगों-युगों तक, रिश्तों का सरमाया है।
कितनी दौलत है आँगन में मेरे, कितना प्यार समाया,
नेह ,आशीष, दुआ, प्रशंसा, सबने ही साथ निभाया है।
लक्ष्य अभी बाकी है!!!! दोस्तों, क्षितिज के पार जाना है।
मन में एक टीस है बाकी, अब ऐसा कुछ कर जाना है
हस्ती को मिटा कर अपनी, अपना नाम कर जाना है।
अविरल चलते ही रहना, थकन ,विश्राम फिर,क्यूं हो,
उङते पाखी से जीवन में, बहुत कुछ करके जाना है।
फलक से तोङ कर सितारों को, फिर जंमी पर लाना है।
लक्ष्य अभी बाकी है!!!! दोस्तों, क्षितिज के पार जाना है।
डा. निशा माथुर/8952874359 ( whatsapp)