Thursday, May 24

"चेहरा "-23 मई 2018




चेहरा....…

सबको तो दिल का आईना लगे है चेहरा
क्यूं मगर हमको लगे सबको ठगे है चेहरा

चेहरे से ज्यादा खूबसूरत लगें दिल हमको
फिर भी चेहरे को न जाने क्यूँ तके है चेहरा

यूं तो लफ्जों में मेरे जान बताते हैं कई
फिर भी क्यूँ मेरी ये पहचान बने है चेहरा

होके गमगीन भी कुछ तो हैं मुस्कुराते यहां
क्यों नहीं चुगली वहीं पर ही करे है चेहरा

है ये चेहरा भी निगाहों में कई चेहरों की
"अनिल" इस बात से ही बस ये डरे है चेहरा

समीर (अनिल)
(स्वरचित)
मेरठ (उत्तर प्रदेश)



😏 👹 👽 चेहरा 💀 😞 👹
यूं तो होता है सबकी अपनी पहचान का चेहरा,
पर कोई बन जाता है दम्भ व अभिमान का चेहरा ।
दिखते
 तो हैं आजकल बहुत शैतान के चेहरे ,
अजूबा बन गया है धरती पर इन्सान का चेहरा !
भीतर भी भिखारी हैं बाहर भी भिखारी,
भक्तों में श्रद्धा ढूंढता भगवान का चेहरा।
क्या खोजना मिल जायेंगे राहों में बहुत से,
दर-बदर चलते-फिरते अपमान का चेहरा ।
हुए शमशानों पे कब्जे अब हवेली बन गए ,
कुछ इस तरह बदला है बियाबान का चेहरा ।
है देखना जो रौनक नेताओं की जाकर देख ,
कब देखा किसी सरकार ने किसान का चेहरा,
गर किसको संत और लंठ का संगम हो देखना,
देखो रामरहीम आशाराम के अंजाम का चेहरा।
वहां चेहरों की बात पर धरो विराम ! परदेशी ,
बदलती रहती है जहाँ सुबहो-शाम का चेहरा
सन्तोष परदेशी


 भा.23/5/2018(बुधवार)शीर्षकःःचेहराःःः
मासूम चेहरा श्याम सलोना दिखता है।
मुझे तो यह सुंन्दर खिलौना दिखता है।

दिखें मासूमियत भरे प्रफुल्लित चेहरे,
सचमुच ये वातावरण सुहाना लगता है।

बताऐं मनहूस चेहरे ये किसको भाते हैं।
मुस्कुराते चेहरे ही हम सबको सुहाते हैं।
ईश से बस यही प्रार्थना करता हूँ हरदम,
प्रसन्नचित चेहरे रहें जो हमको लुभाते हैं।

नहीं चाहते अत्याचारी दिखे हमें चेहरा।
कुछ बांधते बलात्कारी दिखे हमें सेहरा।
सफाया करें अखिलेश ऐसे कमीनों का,
जो शराफत ओढकर बनाते हमें मोहरा।

चेहरा दिखे गर मेरा सभी के मन भाऐ।
देखते इसके किसी का काम बन जाऐ।
नहीं हो कोई परेशान प्रभु मेरे चेहरे से,





चेहरा 
🎭🎭🎭

किस्सा, हाल, किताबी चेहरा 
दिल में ठाठ नवाबी चेहरा 

कभी-कभी तो दुश्मन दिल का 
करता बड़ी खराबी चेहरा 

कितने ही रंगो का डेरा 
पीला लाल गुलाबी चेहरा 

अगर नजर हो पढ़ने वाली 
तो अलमस्त हिसाबी चेहरा 

बंद लवो की जुबान जानो 
लगता साफ जवाबी चेहरा ।

जिऊँ मुस्कुराते नहीं किसी ठन पाऐ।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी।



आज का शिर्षक है-"चेहरा"

"चेहरा"

देखूँ जब मैं चेहरा तेरा,
आँखों में चमक आ जाती है,
मुस्कान तेरे लबों की,
मेरे अंतर्मन तक जाती है।
*******************
बगिया तुम मेरे घर की,
फूलों से महकाती हो,
हो जाता हूँ मायूस मैं,
जब तूम नजर नहीं आती हो।
***********************
वो खुले केश करके तेरा आना,
जब लटें चेहरे पर आ जाती है,
नजर भर के देखूँ तुम्हे,
क्यों हाथों से चेहरा छुपा लेती हो।
**************************
इस चेहरे मे बसती मेरी दुनियाँ,
दूर तुम्हे ना जाने दूँ,
रहो महकाती बगिया मेरी,
कभी ना तुम्हे मुरझाने दूँ।
स्वरचित
"रेखा रविदत्त"
23/5/18
बुधवार

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