जो समेटता है सबको वो गंदा हो जाता है
नेता के संग भी कुछ ऐसा धंधा हो जाता है ।।
क्या भला क्या बुरा सभी का चंदा हो जाता है
मजबूरी में ही बेचारा नेता अंधा हो जाता है ।।
सबका साथ निभाना कितना टेड़ा है
गंगा कितनी निर्मल उसके संग बखेड़ा है ।।
चंदन की जो बात करे वो चाँद पर है
दिलों के जज्बात भरे वो चाँद पर है ।।
धरती पर रहना है धरती की बात करो
नेता संग फिजूल न ''शिवम्"फसाद करो ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
देश की रक्षा करना है तो,
नवयुवकों तुम आगे आओ।
देश के सच्चे सेवक बन,
नेतागिरी को दूर करो।
नेताओं की पार्टीबन्दी,
गुटबन्दी और भ्रष्टाचार,
इन खतरों को दूर करो।
देश की सच्ची सेवा कर ,
देश को तुम मजबूत करो।
नेताओं के स्वार्थसिद्धि,
आपसी फूट मतभेदों से,
देश खोखला हुआ जा रहा।
दुश्मनों की आँख लगी है,
देश पर कब्ज़ा करने को।
नेताओं की दाल न गले,
तुम ऐसी सुन्दर नीति गढ़ो।
उनके झाँसे मे आ कर,
नवयुवकों तुम आगे आओ।
देश के सच्चे सेवक बन,
नेतागिरी को दूर करो।
नेताओं की पार्टीबन्दी,
गुटबन्दी और भ्रष्टाचार,
इन खतरों को दूर करो।
देश की सच्ची सेवा कर ,
देश को तुम मजबूत करो।
नेताओं के स्वार्थसिद्धि,
आपसी फूट मतभेदों से,
देश खोखला हुआ जा रहा।
दुश्मनों की आँख लगी है,
देश पर कब्ज़ा करने को।
नेताओं की दाल न गले,
तुम ऐसी सुन्दर नीति गढ़ो।
उनके झाँसे मे आ कर,
दंगा फसाद,हड़ताल न करो।
लालबहादुर औ राजेन्द्र प्रसाद से,
कर्मठ नेताओं की सुदृढ सेना,
तुम सब मिल कर तैयार करो।
देश की रक्षा करना है तो,
नवयुवकों तुम आगे आओ।
देश के सच्चे सेवक बन,
नेतागिरी को दूर करो।
©प्रीति
लालबहादुर औ राजेन्द्र प्रसाद से,
कर्मठ नेताओं की सुदृढ सेना,
तुम सब मिल कर तैयार करो।
देश की रक्षा करना है तो,
नवयुवकों तुम आगे आओ।
देश के सच्चे सेवक बन,
नेतागिरी को दूर करो।
©प्रीति
✍🏻 आजकल के नेताजी ...
"""""""""""""""""""""""""""""""""कवि जसवंत लाल खटीक
###############
💐काव्य गोष्ठी मंच💐
कांकरोली , राजसमन्द
आजकल के नेताजी,
सफेद कुर्ता ,सफेद टोपी ,
सफेद गाडी ।
फिर भी ,
काला दिल होता इनका ।।
देश को खा रहे नेताजी ,
जैसे दीमक लकड़ी खाते ।
फिर भी इनकी हिम्मत देखो ,
देशभक्ति का तिलक लगाते ।।
झूठ बोलना काम इनका ,
सच का कभी नाम नही लेते ।
काम एक भी नही करवाते ,
आश्वासन ये हर रोज देते ।।
आठ जमात पढ़े नेताजी ,
चौदहवी पढे को समझाते है ।
बजट पास नही हुआ कहते ।
फिर ,
घर, कार और जमीन ,
कहाँ से लाते है ।।
फाइले भेज दी आगे ,
पास पता नही कब होगी ।
आस लगाये बैठी जनता ,
मांगे पूरी सबकी होगी ।।
जनता को तरसाते हुए ,
चार साल खूब कमाते ।
चुनावी साल में नेताजी ,
थोडा सा धन बरसाते ।।
भोली- भाली जनता इनके ,
बहकावे में आ जाती है ।
मीठी बोली, हाथ जोड़ने पर ,
वोट इनको दे जाती है ।।
काश " कवि जसवंत " नेता होता ,
देश से भ्रष्टाचार जरूर मिटाता ।
स्वच्छ राजनीति अपना कर ,
गन्दी राजनीति जड़ से मिटाता ।।
"""""""""""""""""""""""""""""""""कवि जसवंत लाल खटीक
###############
💐काव्य गोष्ठी मंच💐
कांकरोली , राजसमन्द
आजकल के नेताजी,
सफेद कुर्ता ,सफेद टोपी ,
सफेद गाडी ।
फिर भी ,
काला दिल होता इनका ।।
देश को खा रहे नेताजी ,
जैसे दीमक लकड़ी खाते ।
फिर भी इनकी हिम्मत देखो ,
देशभक्ति का तिलक लगाते ।।
झूठ बोलना काम इनका ,
सच का कभी नाम नही लेते ।
काम एक भी नही करवाते ,
आश्वासन ये हर रोज देते ।।
आठ जमात पढ़े नेताजी ,
चौदहवी पढे को समझाते है ।
बजट पास नही हुआ कहते ।
फिर ,
घर, कार और जमीन ,
कहाँ से लाते है ।।
फाइले भेज दी आगे ,
पास पता नही कब होगी ।
आस लगाये बैठी जनता ,
मांगे पूरी सबकी होगी ।।
जनता को तरसाते हुए ,
चार साल खूब कमाते ।
चुनावी साल में नेताजी ,
थोडा सा धन बरसाते ।।
भोली- भाली जनता इनके ,
बहकावे में आ जाती है ।
मीठी बोली, हाथ जोड़ने पर ,
वोट इनको दे जाती है ।।
काश " कवि जसवंत " नेता होता ,
देश से भ्रष्टाचार जरूर मिटाता ।
स्वच्छ राजनीति अपना कर ,
गन्दी राजनीति जड़ से मिटाता ।।
नेता
चारों तरफ चुनावी माहौल देख तबीयत हो गई नर्म
नेताओं के बारे में की गई तारीफें सुनकर रह गए हम दंग
कुर्सी कुर्सी कुर्सी का ये आलम सत्तालोलुपता इसका है कारण
ये सत्तालोलुपी नेता
वादों के समंदर में नहाते हैं
परंतु आश्चर्य
सूखे ही निकल आते हैं
चुनावी माहौल में यह नेता
दरिद्र हो जाते हैं
वोटों के लालच में
भिखारी तक बन जाते हैं
अर्जुन ही अर्जुन
दिखाई दे रहे हैं
जो मछली के रूप में
कुर्सी को देख रहे हैं
कुर्सी के स्वयंवर में
भाग लेने ये आए
दुशासन दुर्योधन है पहने
अर्जुन का चोगा
इन बहरूपिया से
रहना है सावधान
कब ये अपना
बदलदें परिधान
कुर्सी का चीरहरण
करेगा जो दुशासन
तो कैसे बचाएगें
इसको नारायण
कंसों की दुनिया में
कृष्ण का कहां है काम
आज तो कंस ही है
कृष्ण की पहचान
समझ है हमारी कि
हम कृष्ण को पहचाने
और उसी को हम
कुर्सी पर बैठा दें
देश को खुशहाल
समृद्ध बनाकर
आसमां पर चमकता
ध्रुव बना दे
स्वरचित मिलन जैन
हाथ जोड़कर कहे ये जनता, विनती सुन लो नेता जी
पाप कर गए तुम्हे जिता कर, काम तो कर लो नेता जी
खूब कमाओ खूब उडाओ ,लेकिन इतना ध्यान रहे
कमा कमा के मर गयी जनता ,कितने कर सिर लाद दिए
हो हर थाली में दाल भात , कुछ कृपा कर लो नेता जी
विनती सुन लो नेता जी
कुछ नही तुमसे और मांगते, रोशन सारी गलियां हो
घर घर हो विद्या उजियारा, बाग में खिलती कलियां हो
चिड़िया खुलके उड़े गगन में, गिद्धों को धर लो नेता जी
विनती सुन लो नेता जी
अपनी किस्मत तुम्हे सौंप दी, जनता का विश्वास हो तुम
आत्मा की आवाज पे चलना, सबसे बढकर आस हो तुम
तुम्हे कसम है मातृभूमि की, तौबा कर लो नेता जी
विनती सुन लो नेता जी
सपना सक्सेना
ग्रेटर नोएडा