Wednesday, May 30

"प्रेम"-30 मई 2018



प्यार कोई बोल नहीं,
प्यार आवाज़ नहीं,
इक एहसास है ये।

दिल से महसूस करो,
रुह से निकलती,
इक खुश्बू है ये।
इसका कोई मोल नहीं,
सीप की घोर तपस्या का,
अनमोल मोती है ये।
इसमे कोई चाह नहीं,
उम्मीदों की राह नहीं।
निःस्वार्थ भाव का,
अथाह समुन्दर है ये।
प्यार का अन्त नहीं,
शाश्वत सत्य सुन्दर,
सौभाग्य है ये।
©प्रीति



ज़िंदगी आ तुझे मैं प्यार करुँ,
खुद से ज्यादा तुझ पर एतबार करूं
सपने सलोने सारे साकार करूँ।

खुशी औ गम से नजरें चार करूँ,
बीते पलों को ना याद करुँ।
जिंदगी आ तुझे मै प्यारकरूँ।
बन के तितली बागों मे फिरूँ,
भौरे की गुनगुन मन में भरूँ।
गुलाब सी हँसी जग मे बिखेरुँ,
काँटों के संग मुस्कुराना सीखूँ।
ज़िंदगी आ तुझे मैं प्यार करूँ।
सूरज सा रौशन हो जीवन हमारा,
चंदा सा शीतल हो जीवन हमारा।
मन में उमंगें तरंगें भरी हो,
खुशियों का सुंदर संसार हो।
मुश्किल से मुश्किल राहें,
धीरज और हिम्मत से आसान हो।
आ तुझसे मैं इक वादा करूँ,
हँसते हँसते सारे गम बेकार करूँ।
ज़िन्दगी आ तुझे मैं प्यार करुँ,
खुद से ज्यादा तुझ पर एतबार करुँ।
©प्रीति


''प्रेम"

प्रेम पूर्ण मन में होता ,सदगुणों का संचार

प्रेम शब्द से विलग हुये तो हर खुशी बेकार ।।

प्रेममयी हृदय में , बसता वो निर्विकार
जिसकी है ये श्रष्टि जिसका ये संसार ।।

प्रेम की महिमा जो गाये, जोड़े प्रेम के तार
अलौकिक सुख पाये वो भये भवसागरसे पार ।।

छल और कपट क्या आये जब हो सच्चा प्यार
सच्चे प्यार को समझे जो , सुधरे स्वयं आचार ।।

प्रेम का कोई मोल नही , प्रेम में डूबो यार 
प्रेम से चलता है ये जग , नफरत नरक द्वार ।।

सबमें ही है वो बसा , करलो नेक विचार
उसकी ही लीला ये , वो जग का आधार ।।

''शिवम्" सूर हों या मीरा , सबने किया स्वीकार
प्रेम समझो मेरे भाई , करो खुद पर उपकार ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


 "प्रेम'

माँ से तो है जन्मो का रिश्ता।

उनसे अटूट प्रेम करे हम सदा।।

पिता करे प्यार तो हमारें लिए
हर दिन जैसे त्योहार।।

भाई जो करे बहना से प्यार।
बहना का रहे मैका आबाद।।

दोस्त जो करें दोस्त से प्यार।
जीवन बगीया महके सालो साल।।

पति जो करे पत्नी से प्यार।
महके पत्नी का घर संसार।।

बच्चों जो करे हमें प्यार।
स्वर्ग से सुन्दर हो घर संसार।

देश से करें हम प्यार।
एकता रहे बरकरार।।

ईश्वर से करें हम प्यार।
जीवन नैया हो पार।।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।


चले आईये......

आ सको तो आ जाओ बन कर मेरी, 

प्रेम क्या है ना मुझको समझाइये।

खोल कर रख दिया है हृदय मेरा,
अब चले आईये बस चले आईये।।

जल सकोगी अगर तुम बन करके लौ,
तो पतिंगे की तरह मैं जल जाऊंगा।

धूप बन करके जो साथ तुम चल सको,
शाम की तरह मैं भी ढल जाऊंगा।

जल रहा है बदन बनके शीतल पवन,
आज बह जाईये आज बह जाईये।।

आ सको तो.........
प्रेंम क्या है..........
खोल कर रख......
अब चले.........

प्रेम की बात करता है सारा जहाँ,
प्रेम क्या है ये समझा है बिरला कोई।

प्रेम को ढाई आखर बताता कोई,
प्रेम सागर से गहरा गिनाता कोई।।

प्रेम ना आदि है प्रेम ना अंत है,
प्रेम दूजा नई प्रेम बस प्रेम है ।

बात इतनी सी है जो,
समझ जाईये हां समझ जाइये।।

आ सको...........

प्रेम क्या ........

खोलकर.....
चले आईये......

(राकेश पांडेय)




शीर्षक : प्रेम
प्रेम की भाषा मौन अभिलाषा
प्रियतम समझ न पाए रे
कोन जतन करूं तुझे रिझाऊं
बेरी समझ न पाए रे

मन का पागल पंछी देखो
प्रेम पंख फैलाए रे
पिया अनाड़ी बन बेगाना
मंद मंद मुस्काए रे

हृदय हार करूँ समर्पित
काहे तू इतराए रे
रूप तेरा बडा सलोना
मन में प्रीत जगाए रे

नैन शराबी चाल नवाबी
हलचल सी मचाए रे
कैसे अपना दिल न हारुं
कोई तो मुझे बताए रे

प्रेम प्रीत में बावली राधा
श्याम मिलन धुन गाए रे
मीरा लोक लाज त्याग कर
कान्हा प्रेम रंग जाए रे

हीर रांझा और लैला मजनू
प्रेम में मिट जाए रे
मै सुन्दर सी नार नवेली
काहे ना तू भरमाए रे

तुझको देखूं सांस भरूं मैं
तन शक्ति आ आये रे
दूरी तेरी सह ना पाऊँ
नैना नीर बहाए रे

ह्रदय समर्पित जान समर्पित
धड़कन शोर मचाए रे
मैं हूं तेरी प्रियतम मेरे
आ प्रेम में जग बिसरावें रे

स्वरचित : मिलन जैन


प्रेम शक्ति है, प्रेम है भक्ति 
कहीं वियोग कहीं आसक्ति 
राधा के लिए बंसी वाला 
मीरा के लिए विष का प्याला 
सीता के लिए पंचवटी है 
उर्मिला और सावित्री है 
गीत कविता और गजल है 
चांद चकोर ताजमहल है 
प्रेम अथाह सुख का सागर 
कभी छलकती लोचन गागर 
तप्त मरू में शीतल नीर 
तन सहलाता मंद समीर 
प्रेम रागिनी प्रेम ही वीणा 
-------- ------
प्रेम मिलन है प्रेम है सपना 


 "प्रेम" पर कुछ हाइकु

१-परमानंद

है सकल आनन्द
प्रेम सुगंध।

२-कृष्ण का प्रेम
है मित्रवत स्नेह
सुदामा मित्र।

३-पिता का प्रेम
दशरथ के राम
प्रेम निष्काम।

४-देश से प्रेम
सैनिकों की वीरता
वीर शहीद।

५-निःस्वार्थ प्रेम
माँ का प्यार दुलार
अन्तःकरण।

सर्वेश पाण्डेय

भा.30/5/2018,बुधवार ,शीर्षक ः(प्रेम )
विधाःःकविता ः
प्रेम प्रभु के रूप में मिलता।
प्रेम पुष्प से हृदय खिलता।
प्रेमसुधा गर पी लें हम सब,
मन में वैरभाव नहीं घुलता।
प्रेम प्रफुल्लित करता है हृदय।
प्रेमसुमन से कुसमित प्रेमालय।
प्रेम भक्ति में हम सब डूबें तो,
निश्चित सुरभित होता देवालय।
प्रेम परिभाषा सुनिश्चित नहीं है।
उपासना से प्रेम निश्चित नहीं है।
प्रेमसाधना से पाप धुल जाऐ कहीं,
इससे बडा उपाय प्रायश्चित नहीं है।
प्रेम पिपासु हर मानव होता है।
नहीं समझे ये वो दानव होता है।
प्रेम यज्ञ में आहुति देना चाहें हम,
प्रेम में छिपा अंश राघव होता है।
स्वरचितः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी।


30-5-2018
प्रेम
2

प्रेम की अभिवेदना में
नैन मूँदे ,अश्क बहते
है विकट परिस्थिती में,
क्या यही है प्रेम की अभिव्यंजना?

अनगिनत स्वर्ग थे गढ़े
प्रेम की परिकल्पना में
ढह गए पल पल खड़े,
क्या यही है प्रेम की अभिव्यंजना?

प्रेम की पायल पहन
जग में झनकी जब कहीं
तार टूट,नैन विगलित,
क्या यही है प्रेम की अभिव्यंजना?

प्रेम मेरा है निरूपित
नही पतित है वो कहीं
पुष्प में काँटों को सहना,
क्या यही है प्रेम की अभिव्यंजना?

चर चराचर है जगत में
प्रेम की वर्षा रही
कहीं झोली भरी,कोई खाली रह गया
क्या यही है प्रेम की अभिव्यंजना?

वीणा शर्मा(स्वरचित )


*प्रेम*
------------
दुख की भीषण बदली में
वो बूंद बूंद रिसता है
और मर्म पर मेरे
प्रेम का मरहम रखता है

वो पास नहीं है मेरे पर
अहसास में मेरे रहता है
आँखों में काजल बनकर
लब पर थरथरातीयाद बनकर

रुह में पिघलता है मोम की तरहा
रग रग में बहता है लहु की तरहा
रोम रोम में महकता है
गुलाब की खुश्बू की तरह

निगाहों से दूर निगाह के पास है
मेरा प्रेम दूर रह कर भी मेरे पास है।।

डा.नीलम.. अजमेर

आज के विषय "प्रेम" पर मेरी ये रचना ................साँस साँस चन्दन हो गयी ...............
साँस साँस चंदन हो गयी

मैं! नीर भरी कुंज लतिका सी 
साँस साँस महकी चंदन हो गयी
छुई अनछुई नवेली कृतिका सी
पिय से लिपटन भुजंग हो गयी!

अंगनाई पुरवाई महके मल्हार सी 
रूप रूप दर्पण मधुबन हो गयी
प्रियतम प्रेम में अथाह अम्बर सी
मन राधा सी वृंदावन हो गयी!

गात वल्लरी हिल हिल हर्षित सी
तरूवर तन मन पुलकन हो गयी
मैं माधवी मधुर राग कल्पित सी
मोहनी मूरत सी मगन हो गयी!

अनहद नाद उर की यमुना सी
मन तृष्णा विरहनी अगन हो गयी
भीगी अलकों की संध्या यौवना सी
दृग नीर भरे नैनन खंजन हो गयी!

मैं! विस्मित मौन विभा के फूल सी
बूंद बूंद घन पाहुन सारंग हो गयी
बिंदिया खो गयी मेरी सूने कपोल 
साँसों से महकी अंग अंग हो गयी!

डा. निशा माथुर

 **भावों के मोती **
######प्रेम######
ढाई अक्षर का यह शब्द 

पूरा ब्रह्माण्ड समेटे है 
ना शब्द है ना साहस है 
कलम भी मेरे रूठे है 

प्रेम पावन भाव है 
ममता है वात्सल्य है 
आशा है विश्वास है 
धैर्य है सद्भाव है 
रश्मि है ज्योति है 
प्रेम से ही तो तेज़ है 
राधा है मीरा है 
यशोदा और सुदामा है 
प्रेम है तो जीवन है 
कृष्ण हैं प्रेम है 
प्रेम है तो जीवन है। 
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल 


" प्रेम"
प्रेम शब्द अधूरा होकर ,

जीवन में रंग भरता है,
कब हो जाए प्रेम,
पता भी नही चलता है,
*****************
प्रेम वो मूक भाषा है,
नजरों से जो समझाए,
खुली आँखों से सपनें,
हर कोई दिल में सजाए,
********************
संसार के हर जीव के,
दिल में जगह रखता है,
उपवन में भँवरों का,
फूलों से प्रेम दिखता है,
*****************
मिला जो प्रेम तेरा,
जीवन में खुशीयों के रंग भरे,
प्रेम शब्द अधूरा होकर भी,
जीवन को हमारे सम्पूर्ण करे,
"रेखा रविदत्त"
30/5/18
बुधवार


(1)प्रेम का मोल नहीं न भाव। 
प्रेम है हंसता दुखता घाव।

लिए फिरे मन सदा उडाय।
न प्रेम के पंख नहीं न पांव।

न सोचे समझे भोला प्यार। 
चलाती ये दुनिया कैसे दांव।

कहां डूबे कहां उतरे न जाने। 
चले कैसे बिन पतवारी नाव।

गोरी के कारी हो वो मतवारी़। 
न ये देखे शहर न देखे गांव।

विपिन सोहल
(2)मुहब्बत नाम है तन्हाई में तन्हा सुलगने का
अजब खेल है तकदीर के बनने बिगड़ने का


कहां कब जान पाया हूँ मिजाजे़ हुस्न मै तेरा
बहाना ढूंढ के मिलना कभी मौका झगड़ने का

करोगे इश्क तो जानोगे तुम जलवे मुहब्बत के
मजा खूब है महबूब से मिलने को तड़पने का

ये दुनिया देखती है तजरबो को हिकारत से
सफर एक शै का है ये कली से फूल बनने का

मुहब्बत एक नेमत है मेहरबानी है कुदरत की
यही एक दौर है सोहल पत्थर के पिघलने का

विपिन सोहल 

नमन "भावों के मोती"
30/5/2018
चंद हाइकु 
विषय -प्रेम 
(।)
राधा या मीरा
छिछली है वासना 
प्रेम गहरा
(2)
प्रेम प्रतीक
श्रृद्धा, आस्था, विश्वास
देवत्व वास
(3)
घृणा है शूल
जीवन की बगिया
प्रेम है फूल
(4)
प्रेम निःस्वार्थ
सिर्फ देना ही जाने
है परमार्थ
(5)
तन व मन 
अहं का विसर्जन
प्रेम सृजन
ऋतुराज दवे

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