आज के चित्रलेखन प्रतियोगिता पर मेरे मान के भाव आपके समक्ष...... चलो भाई हम दोनों ढूढें, सपनो की अपनी दुनियां,
जहां सिर्फ प्यार, मस्ती की,हम नित उङाये चिंदियां।
जहां सूरज रोजाना नंगे पांव चलकर आता हो।
घाटियो की हवाओं का कपङे बदलकर बहना हो।
जहां कागज की कश्ती, बारिश का पानी हो।
वहीं एक दूजे के साथ अपनी मीठी सी उङान हो।
जहां ना कोई बोझ हो, ना दुनियादारी की फिकर।
ना कोई हो दिखावा, फिर उलाहने भी हों क्यूं कर।
जहां ना मंजिलों की चिंता, ना कुछ कर कमाने की।
वहीं जुगत बारीशों में अपना आशियाना बसाने की।
जहां तुम मेरे साथी, मेरे बचपन, मेरी पहचान बनो।
तुमही मेरा साया, मेरी हकीकत, मेरी जान बनो।
जहां कदम कदम के फसलें पर मेरी मुस्कान बनो।
वहीं उस दुनियां में मेरा दीन मजहब, ईमान बनो।
चलो भाई हम दोनों ढूढें सपनो की अपनी दुनियां
जहां सिर्फ प्यार, मस्ती की हम नित उङाये चिंदियां।
----डा. निशा माथुर/8952874359
जहां सिर्फ प्यार, मस्ती की,हम नित उङाये चिंदियां।
जहां सूरज रोजाना नंगे पांव चलकर आता हो।
घाटियो की हवाओं का कपङे बदलकर बहना हो।
जहां कागज की कश्ती, बारिश का पानी हो।
वहीं एक दूजे के साथ अपनी मीठी सी उङान हो।
जहां ना कोई बोझ हो, ना दुनियादारी की फिकर।
ना कोई हो दिखावा, फिर उलाहने भी हों क्यूं कर।
जहां ना मंजिलों की चिंता, ना कुछ कर कमाने की।
वहीं जुगत बारीशों में अपना आशियाना बसाने की।
जहां तुम मेरे साथी, मेरे बचपन, मेरी पहचान बनो।
तुमही मेरा साया, मेरी हकीकत, मेरी जान बनो।
जहां कदम कदम के फसलें पर मेरी मुस्कान बनो।
वहीं उस दुनियां में मेरा दीन मजहब, ईमान बनो।
चलो भाई हम दोनों ढूढें सपनो की अपनी दुनियां
जहां सिर्फ प्यार, मस्ती की हम नित उङाये चिंदियां।
----डा. निशा माथुर/8952874359
आज के चित्र पर रचना
समय का सूरज चढ़ता जाये
वक्त अपना बढ़ता जाये
चल साथी हाथ बड़ा फिर
क्यों तू हताश निराश हो जाए
माना मंजिल दूर बहुत
रस्ता थोड़ा दुरुह जरुर है
पर हिम्मत मत हार ओ साथी, थाम ले मेरी बाँह साथी
जीवन जीना सरल नहीं है
समतल रस्ता कहीं नहीं है
सूरज भी तो कहीं ठहरा नहीं है फिर तू क्यूं ठहरा साथी
जन्म मृत्य के बीच में राही
खड्डे गह्वर और हैं खाई
सबको तू पाट राह तू अपनी बना
चल थाम ले मेरी बाँह पा मंजिल की राह।।
डा. नीलम (अजमेर)
समय का सूरज चढ़ता जाये
वक्त अपना बढ़ता जाये
चल साथी हाथ बड़ा फिर
क्यों तू हताश निराश हो जाए
माना मंजिल दूर बहुत
रस्ता थोड़ा दुरुह जरुर है
पर हिम्मत मत हार ओ साथी, थाम ले मेरी बाँह साथी
जीवन जीना सरल नहीं है
समतल रस्ता कहीं नहीं है
सूरज भी तो कहीं ठहरा नहीं है फिर तू क्यूं ठहरा साथी
जन्म मृत्य के बीच में राही
खड्डे गह्वर और हैं खाई
सबको तू पाट राह तू अपनी बना
चल थाम ले मेरी बाँह पा मंजिल की राह।।
डा. नीलम (अजमेर)
"भावों के मोती "
शनिवार - 12/5/18
चित्र लेखन
साथ
------
साथ रहे जो साथी तेरा
हर पथ पर तैयार हूं मैं
ले आऊं धरती पर अंबर
हर बाधा के पार हूं मैं
रुक जाऊं जो थककर मैं
तो मुझको देना हाथ तेरा
जग की हर चाहत से बढ़कर
मुझको प्यारा साथ तेरा
कितनी भी हो कठिन डगर
बस एक तेरा साथ रहे
हर आफत से लड़ जाऊं
जो हाथ में तेरा हाथ रहे ।
शनिवार - 12/5/18
चित्र लेखन
साथ
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साथ रहे जो साथी तेरा
हर पथ पर तैयार हूं मैं
ले आऊं धरती पर अंबर
हर बाधा के पार हूं मैं
रुक जाऊं जो थककर मैं
तो मुझको देना हाथ तेरा
जग की हर चाहत से बढ़कर
मुझको प्यारा साथ तेरा
कितनी भी हो कठिन डगर
बस एक तेरा साथ रहे
हर आफत से लड़ जाऊं
जो हाथ में तेरा हाथ रहे ।
चित्रलेखन-
जब थामा हाथ तूने मेरा,
अब मंजिल को पाना है,
जगाई, तूने ये उम्मिद है,
रवि की तरह नाम चमकाना है।
अंधकार में रोशनी तू बना,
विचारों से तुमने राह दिखाई,
पद-चिन्हों पर चलकर तेरे,
दुनियाँ में जगह ये पाई।
बातें सुन इस दुनियाँ की,
सोच रहे चलें किधर हम,
झाँका नीचे शाह अँधेरा,
थामा हाथ तेरा बढाया कदम।
बातों से सब साथ हैं होते,
सच्चा साथी नही कहलाए,
छोड़ मुनाफा आज का,
आगे का सुख समझाए।
" रेखा रविदत्त"
जब थामा हाथ तूने मेरा,
अब मंजिल को पाना है,
जगाई, तूने ये उम्मिद है,
रवि की तरह नाम चमकाना है।
अंधकार में रोशनी तू बना,
विचारों से तुमने राह दिखाई,
पद-चिन्हों पर चलकर तेरे,
दुनियाँ में जगह ये पाई।
बातें सुन इस दुनियाँ की,
सोच रहे चलें किधर हम,
झाँका नीचे शाह अँधेरा,
थामा हाथ तेरा बढाया कदम।
बातों से सब साथ हैं होते,
सच्चा साथी नही कहलाए,
छोड़ मुनाफा आज का,
आगे का सुख समझाए।
" रेखा रविदत्त"
चल साथ दे तू हाथ दे
संसार को पछाड़ दे
आकाश को तू चूम ले
मन में वह जुनून ले
पथ में ढेर बाधा है
पर हौंसला न आधा है
चल आ मैं तेरा साथ दूं
सूरज को भी पछाड़ दूं
ऊंचाई तेरा ताज है
जिस पर मुझको नाज़ है
विश्वास को न कम कर
मन में न वहम भर
हौंसले बुलन्द कर
और जीत का तू जश्न कर
देख श्रम तो दिप्तिमान है
इस आभा को प्रणाम है
स्वरचित मिलन जैन
संसार को पछाड़ दे
आकाश को तू चूम ले
मन में वह जुनून ले
पथ में ढेर बाधा है
पर हौंसला न आधा है
चल आ मैं तेरा साथ दूं
सूरज को भी पछाड़ दूं
ऊंचाई तेरा ताज है
जिस पर मुझको नाज़ है
विश्वास को न कम कर
मन में न वहम भर
हौंसले बुलन्द कर
और जीत का तू जश्न कर
देख श्रम तो दिप्तिमान है
इस आभा को प्रणाम है
स्वरचित मिलन जैन
"भावों के मोती"
हाथ पकड़कर मैं
तेरा साथ निभाउंगा
तू आ मेरे दोस्त
मंजिल ओर जाऊँगा।
अगर साथ-साथ हम
चलते हुए जाएँगे
मुश्किलो को पार कर
मंजिल को पाएंगे।
हाथ से हाथ मिला हो
कोई मुश्किल न आएगी
दोस्त तेरा साथ मिलकर
हर मुश्किल गुजर जाएगी।
✍परमार प्रकाश
हाथ पकड़कर मैं
तेरा साथ निभाउंगा
तू आ मेरे दोस्त
मंजिल ओर जाऊँगा।
अगर साथ-साथ हम
चलते हुए जाएँगे
मुश्किलो को पार कर
मंजिल को पाएंगे।
हाथ से हाथ मिला हो
कोई मुश्किल न आएगी
दोस्त तेरा साथ मिलकर
हर मुश्किल गुजर जाएगी।
✍परमार प्रकाश
*भावों के मोती*
दूर क्षितिज में अंबर जैसे अवनि से आ मिलता हैं।
प्राचीर से अरूणिम आभा ले भास्कर खूब दमकता है।
वहीं प्रभा अस्तांचल को दे,संध्या को ले बाहों में।
सांन्ध्य नीशा का मिलन,शशी की शीतलता को धोता है।
दूर नहीं मंजिल राही जब लक्ष्य अटल उम्मीदों का।
पथिक नेह का हाथ साथ हो,दुर्गम पथ हो शूलों का।
नई भोर रात का तमस, निगल कर उजियारा ले आयेगी।
क्लांत नहीं पुनि शांत उरून से,राह तके प्रगति पथ का.....
दूर क्षितिज में अंबर जैसे अवनि से आ मिलता हैं।
प्राचीर से अरूणिम आभा ले भास्कर खूब दमकता है।
वहीं प्रभा अस्तांचल को दे,संध्या को ले बाहों में।
सांन्ध्य नीशा का मिलन,शशी की शीतलता को धोता है।
दूर नहीं मंजिल राही जब लक्ष्य अटल उम्मीदों का।
पथिक नेह का हाथ साथ हो,दुर्गम पथ हो शूलों का।
नई भोर रात का तमस, निगल कर उजियारा ले आयेगी।
क्लांत नहीं पुनि शांत उरून से,राह तके प्रगति पथ का.....
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