आओ जी मेहमान जी
जीमो जी पकवान जी
रूठे रूठे क्यों खडे हो
करूँ में सम्मान जी
जबसे तुम हो आए जी
घर आंगन खुशियां छाए जी
अतिथि देवो भव: को
करूं मैं चरितार्थ जी
मेहमान चरण महान जी
पति भी हैं शान्त जी
बच्चे भी अनुशासित रहते
मन को आराम जी
काम तो बढ़ जाए जी
पर किचकिच घट जाए जी
घूमें फीरें नाचें गाएं
मनाएं त्यौहार जी😀😀
स्वरचित मिलन जैन
माँ बाप के कलेजे की है जान बेटियाँ।
अपने ही घर में क्यों है मेहमान बेटियाँ।
कुदरत ने धरा रूप और घर तेरे आई।
इन्सानियत को है तो है वरदान बेटियाँ।
माँ बाप के माथे की शिकन मत कहना।
हर घड़ी में दिल की है मुस्कान बेटियां।
लाओगे सजाने को तुम घर पे डोलियाँ।
रहे खबर बाबुल का है अरमान बेटियाँ।
हर सुबह सिहरता हूँ पढ के अखबार में।
निगले हवस मे मासूम सी शैतान बेटियाँ।
विपिन सोहल
विषय-अतिथि, मेहमान
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हाइकु
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दिव्य अतिथि
आशुतोष प्रसन्न
रुद्राभिषेक
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काया मृत्तिका
भावना हो अर्पित
प्राण अतिथि
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संस्कार मन
अतिथि देवो भव
भारतवंशी
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मन का मान
अतिथि आगमन
सुस्वागतम
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रंजना सिन्हा सैराहा.
घर मे आया है।
खुशियाँ ही खुशियाँ,
संग ले कर आया है।
उसकी प्यारी सी मुस्कान,
हम सबकी है जान।
नन्हें नन्हें पाँव,
छूने को आसमान।
सपनों से सजी आँखें,
बन्द मुट्ठी में आशाओं का ,
सुनहरा सुन्दर संसार।
नयी नयी दुनिया में,
अपने अपनों के बीच।
सजीला सा मेहमान,
" मेहमान'
मेहमान के आने के है खुशी दिन चार।
मेहमान टीक जाये तो खुशी भाग जाये तत्काल।
रोज चाहते वे सैर सपाटा और चाहते खास पकवान।
उनके आने से हम बेवजह ठहाके लगाते।
नही परेशानी हम अपनी दिखाते।
उनके बच्चे धमाचौकड़ी मचाते।
हमारे बच्चे बेवजह पीट जाते।
दिन भर टीवी फूल साउंड मे बजाते।
तभी मेहमान को चैन आ पाते।
रोते रहते चुन्नू मुन्नू होमवर्क वे नही कर पाते।
बिजली पानी का तो बाट लगा दे
कोई युक्ति फिर काम न आये।
हे मेहमान है तुम्हे नमस्कार।
आना है तो आओ हर बार।
बस एक ता०। बता दो।
कब जाओगे तुम अपने घर -बार।
ममता से भरा सन्देश,
लेकर आया है।
एक नन्हा सा मेहमान ,
घर में आया है।
©प्रीति
दिल में वो चुपचाप मेहमान बन के आ धमके
बिना बताये बिना जताये या शोर शराबा करके
और अब वो हक जमाये बैठे ऐसे कि जाते ही नहीं
और हमारा है ये हाल की उनके बगैर कुछ भी भाता नहीं
सोते जागते हर समय बस उनके ख्याल में हूँ रहता
यारों बताओ अब इस मेहमान को मैं कैसे करूँ चलता
सख्ती कर सकता नहीं क्रोध भी कर सकता नहीं
बड़ी मुलामयमियात से तो उनको मिलता है बढ़ावा
और डॉक्टर हैं कि आँख देखते गला देखते रोग पकड़ पाते नहीं
सब कहते हैं रोग है लाइलाज और नाम बतलाते मोहब्बत
कहते इस रोग में मेहमान मर्ज ताउम्र जाते नहीं
(स्वरचित)
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संसार सराय हम अतिथि
कुछ दिन के मेहमान हम
हंसी -खुशी, गम-विषाद
संगी साथी मेरे हैं
धूप छाँव का बिछौना
हवा पानी का भोजन है
चाँद सूरज की सड़क पर
हमको बढ़ते जाना है
दिन जीवन लाता है पल का
रात मौत का आगोश है
पर मायावी मनवा फिर भी
भटके ख्वाबों के देश में
चार पड़ाव जीवन के
चार पहर से बीत रहे
बचपन ,जवानी ,प्रोढ़
बुढ़ापा ये ही तो पल हैं
हम अतिथि इस संसार के
पल चार के नहीं जगत कभी किसी का
ये संसार बेगाना है।।
डा. नीलम..अजमेर.
स्वरचित
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