"वींणावादिनी" का बसेरा।
प्रकृति मे है,
संगीत सारा।
हवाओं की गुनगुन,
लताओं की सरसर,
बूँदों की छमछम मे,
बजता है सरगम।
नदिया की कल कल मे,
लहरों के वर्तुल मे,
पक्षियों के कलरव मे,
संगीत सुरीला।
भौंरों की गुनगुन,
मधुर रस को घोले।
सुर ताल लय से,
मधुर राग छेड़े।
गेहूँ की बालियाँ,
झूम झूम के गाएं।
कोयल की कूक,
सुरों को सजाएं।
अमिया की बगिया मे
महफिल लगाएं।
सुरों के सरगम,
सारे ग़म को भुलाएं।
जीवन को खुशियों से,
सम्पूर्ण बनाएं।
©प्रीति
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यदि विश्लेषण करें
सही पर्यवेक्षण करें
तो जीवन में संगीत है
और आभूषण प्रीत है।
नदिया सागर से मिलती
कलकल की ध्वनि है खिलती
कोयल कूक कूक करती
सबका ही ध्यान वह हरती।
बगिया की धुन सुगन्ध है
हरियाली पुष्प मकरन्द है
पूर्णिमा जब गीत गाती
मुस्करा उठता चन्द्र है।
जीवन कर्म का ही साज़ है
कर्म की सुरीली आवाज़ है
कर्मशील का अलग ही राज है
और उस पर सबको नाज़ है।
संगीत समझो जीवन को
गूॅजा दो अपने तन मन को
वरना बोझ हो जायेगा
सम्भालो सम्भालो इस धन को।
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तप्त मरू में शीत बयार
बंजर में रिमझिम बौछार
घोर तिमिर में पावन बाती
एकांत पथ का प्रणय साथी
प्रिय को प्रिय का निवेदन
प्राणों का प्राणों से बंधन
नयनों में घुलता मधुमास
वियोगी का विकल संत्रास
प्रतिक्षण नव पल्लवित गीत
जीवन का पल पल संगीत ।
संगीत
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रुह के साज पर
धड़कन के तार कसे
सांसो की तान पर
गीत छिड़े दिल के मकां पर
सुर श्रृंगार रचे
छंदों की बहार छटे
अलंकृत अवरोह की
आरोही स्वर लय बजे
संगीत के रंग चढ़े
थिरकत पग ताल दे
कंचन कचनार सी
कमरिया बलखाये सखी
चंचल चपल नैनन की
थिरकन पे
भौंहन सूं बतिया करे
रास-रंग में डूबे सबे
अंग अंग सब चितवन के।।
डा. नीलम
(अजमेर)
प्राण मन संकल्प तुम तुम ही प्रज्ञा ज्ञान हो।
तुम ही धुन बांसुरी की ताल का तुम थाप हो।
आलाप सा आरम्भ हो संगत सा अवसान हो।
गीत का मुखड़ा कभी और कभी हो अन्तरा।
राग हो वीणा का तुम सुर का तुम उपमान हो।
एक सरस बन्दिश हो तुम ताल की हो गमक।
नाद स्वर राग तुम तुम ही लय और तान हो।
विपिन सोहल
अलसवेरे ढोलक की थाप, नौबत बधाईयां
सुरों की सप्तक संग, संगीत में रूबाईयां
किन्नरों की किस्मत में, कैसी ये रूसवाईयां
नित नित स्वांग रचाते, हाय बजाते तालियां
हाय खोखली तालियां, हाय खोखली तालियां!!
बिन ब्याहे कुमकुम टीका, सौलह श्रंगारियां
तन अधूरा मन अधूरा, ना बजती शहनाईयां
दामन में आशीर्वाद की, भरते गोद भराईयां
ललना जनम लिये तो, वारी वारी बलहारियां
हाय खोखली तालियां, हाय खोखली तालियां!!
ना कोई अपना संगी साथी, ना रिश्तेदारिया
छोटी सी खोली में तन्हा जीवन की तन्हाईयां
कदम कदम पे ठोकरें,औ समाज की गालियां
खुद का वजूद ढूंढतें, उफ ये कैसी लाचारीयां
हाय खोखली तालियां, हाय खोखली तालियां!!
छीनी खुशी छीने सपने, क्या थी गुस्ताखियां
हो दरवेष, स्वांगी भेष, किससे कैसी यारीयां
कुदरत के अभिशाप पे, हाय प्रभु से दुहाईयां
किन्नर जनम कभी ना दीजे,ना दीजे तालियां
हाय खोखली तालियां, हाय खोखली तालियां!!
--डा. निशा माथुर/8952874359
भा.1*4/5/2018शुक्रवार।शीर्षक संगीत ः
संगीत श्रेष्ठ वही जो कान्हा तान सुनाऐ।
थिरके मुरलीधुन पर मधुरम रास रचाऐ।
मनभावन संगीत मुझे वही लगता है जो,
माँ शारदा वीणा से झंकृत मन कर जाऐ।
संगीत वही भाऐ जो मन में भक्ति जगाऐ।
मीठा संगीत सुनाकर हमको रोज जगाऐ।
डूब कृष्णभक्ति में जब मीरा तान छेडकर, मनमोहन मुरलीधर के हमको गीत सुनाऐ।
सूरदास श्यामसुंन्दर को जो संगीत सुनाऐ।
मिश्रीसी घोले कानों में सबके मनको भाऐ।
घनश्याम मुरलियाबाले की मुरली मै सुनलूँ,
ऐसा संगीत मिले जो सारे जग को लुभाऐ।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी।
माँ सरस्वती के बीणा छेड़े
सात स्वरो का मधुर संगीत।
कृष्ण की मुरलिया छेड़े
राधा रानी के मन में संगीत।
डम डम बाजे भोले का संगीत
सृष्टि के नाद बन जाये।
माँ जब छेड़े मधुर संगीत
बच्चों के लोरी बन जाये।
जब दवा काम न आये
संगीत रोगी के जान बचाये।
जब मन मे विकार जम जाये
संगीत उसमे विवेक जगाये।
संगीत ही जीवन है।संगीत
प्राण है।
संगीत के बिना जीवन बेकार है
सुर में वादा किये और निभाने लगे,
प्रित है नहीं ये तो क्या है सनम ।
इक धुन मे जो फेरी लगाती है धरा ,
वजह जिसके धूप ये हुआ है सनम ।
संगीत की बात अब मैं बताउं सुनो ,
दम पे इसके दिया भी जला है सनम ।
संगीत में जहर कभी घुलता नहीं,
वो तो सिर्फ दवा ही दवा है सनम।
जग में अमर रहे नाम तानसेन का,
लबों पे सबके यही अब दुआ है सनम ।
संगीत परदेशी का तुमने जो सुना ध्यान से ,
नहीं क्या असर तुमपे इसका हुआ है सनम।
सन्तोष परदेशी
4-5-2018
"संगीत"
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फागुन फुहारे
संगीत की मस्ती
फूलों के संग हो
प्रेम की बस्ती।
बैर मिटा कर
गले लगा कर
आओ सब मिल
संगीत गुनगुनाएं।
पलाश सुगंध
गेंदों के रंग
अबीर लगाओ
संगीत के तुम।
थोड़ी शराफत
कुछ छेड़खानी
ये मस्ती दीवानी
प्रीत सुहानी।
लबों पे लाली
चाँद भी शरमाए
खुद पर इतराना
उसको न भाए।
ढोल की थाप
प्रीत के संग
मौज तरंग
संगीत के संग।
वीणा शर्मा
संगीत
(1)
काया है साज
जीवन का "संगीत"
माँगे अभ्यास
(2)
प्रेम के सुर
धड़कन "संगीत"
नाचता दिल
(3)
"संगीत" धुन
सात सुरों का जादू
गायब मन
(4)
फूल नाचते
समीर का "संगीत"
पत्ते भी गाते
(5)
"संगीत" दवा
सरगम का स्पर्श
घावों को भरा
ऋतुराज दवे