Thursday, May 24

" किसान"-15 मई 2018





आज के विषय "किसान" पर मेरी रचना वो खेतीहर

गीली लकङी सा धीमा सा धुआँ, धुआँ, सुलग रहा है। 

तन के जीते,मन के हार यहां वहां सा, भटक रहा है। 
अपनी ख्वाहिशों के पंख खुजाते………..
आंख मिचौली करती सी किस्मत………….
सूरज के इरादों को आंखे तरेरता …….. 
छिपा हुआ बादल कभी तो रूप बदलेगा? 
दरकती हुई सी जमीन की सूखी पपङी और
उसका अन्न के दाने निकालने का ये हुनर। 
बिना छत बरसात बिताता, दिवास्वप्न सा जीता, 
चाहे कुछ दाने उसकी मुटठी में भी ना हो गर। 
औरो की खुशियों संग अपने जख्मों को सीना, 
प्रभातवेला में पंछीयों का मधुर गान उसकी वीणा।
मां सी धरती, बहता सा पानी, मेहनत भरा पसीना, 
आंखें चमक जाती हैं, जब आता सावन का महीना। 
क्यूं कर नहीं होती उसपे देवी देवताओं की महर, 
क्यूं बरपा करता है उसपे ही ये कुदरत का कहर। 
पहचान थी गरीबी जो अब माथे की सलवटें बन गयी 
उसकी मासूम नजरें आज समाचारों का हर्फ बन गयी।
आजकल खेल रही, खेतीहर संग राजनीति भी चौसर , 
आत्महत्याओं पर उसके लग रही है नेताओं की मोहर।

------ डा. निशा माथुर/8952874359


15 मई 2018

" किसान " -जय जवान जय किसान
*****************************
जय जवान जय किसान का नारा तो हम लगाते हैं

पर क्या उनके प्रति अपने कर्तव्यों को भी निभाते हैं

भूँखा मरता है किसान और मोर्चे पे जो जवान

उनके परिवारों को हम कौन सा ढाँढस बँधाते है

दर दर न्याय के लिये भटकते उनके परिवार के लोग

गली गली शहर शहर में ठोकर खाते देखे जाते हैं

वैसे तो सरकार है कानून है और तमाम संस्थाये भी हैं

पर भ्रष्टाचारी दानव सब कहीं मुँह बाये नज़र आते है

हर काम के लिये पैसे लगते ऊपर से निर्देश आते हैं

जिनके पास वो नहीं वो ठोकरों पे ठोकरे खाते हैं

बहरी अदालतें थोथे कानून और ढीला ढाला ढाँचा

यथास्थिति में कुछ भी परिवर्तन न कर पाते हैं

और हमारे किसान और जवानों के पीड़ित परिवार 

परेशान जगह जगह भटकते नज़र आते हैं


काश कृषि अच्छी होती सोच रहा बैठा किसान
पर बारिष इतनी कम होगी किया नही अनुमान ।।

इन्द्र देवता रूष्ट हुये सरकार भी है अन्जान
कैसे हो किसान की समस्याओं का निदान ।।

कभी कृषि उत्तम कहलायी आज न वो सम्मान
बदल गये अब श्रष्टि के भी बिधि और विधान
।।

कभी अल्प कभी अति बारिष , कभी तूफान 
मौत को भी गले लगा रहे अब बेचारे नादान ।।

ज्वलन्त समस्या है खड़ी घर किसान के आन 
किसके आगे रोय ''शिवम" देय न कोई कान ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"





शीर्षक : किसान

दीन हीन मलीन
मैं भैया
दीन हीन मलीन
संघर्षों के 
हल मैं चलाता
होकर के तल्लीन

बेटी मेरी
लहरा रही है
हो खुशी में लीन
कौन जतन करूं
इसे बचाऊं
सोच ये संगीन

पाल पोस कर
खून से सींचा
ले संयंत्र प्राचीन
धूप की चादर
तन पर ओढी
बन कौशल कुलीन

काले मेघा
भीषण बरसे
कर दिया मुझे क्षीण
बेटी मेरी
धम्म से गिरी है
जैसे प्राण विहीन

हरित क्रान्ति
का भाग्य प्रणेता
हर किसान गमगीन
लोगों आओ
इसे उठाओं
ये भूमिपुत्र बेहतरीन

इसे संभालो
हाथ बढ़ाओ
विकास करो नवीन
दीन हीन मलीन
रहे क्यूं
बने कुशल प्रवीण

स्वरचित मिलन जैन


क्षुधा तृप्ति पर ही टिका हुआ उत्थान 
प्रकृति का भी यही है मूल विधान
इसकी महत्वपूर्ण कड़ी होता है एक किसान 
और यही है खुशी और खूबी की पहचान। 

समृद्ध रहे सदा हमारा कृषक वर्ग
धरती पर निश्चित होगा अनुपम स्वर्ग
कितनी चिन्ता की बात है लेकिन 
यह बेचारा करता अपने प्राणोत्सर्ग। 

हमारा देश है सदा से कृषिप्रधान
फिर भी कृषक त्यागता अपने प्रान
कैसे सोयेंगे हम फिर लम्बी तान 
किसान तो समृद्धि का प्रथम गुमान। 

गर्मी में बरसात में और कड़कती सर्दी में




रौशनी के रहम पर और तूफानों की गर्दी में 
हर समय हर घड़ी मौसम की बेदर्दी में
कौन खड़ा रहता भला इस भोले की हमदर्दी में।

मौसम कहर बरपाता है
बादल खूब तड़पाता है
धनाभाव रुलाता है
पसीने में तर हो जाता है। 

कलम भी हो जाती भावुक
चलती चलती जाती रुक
ओ! किस्मत लिखने वाले बता
तेरी गर्दन क्यों नहीं जाती झुक।


"भावों के मोती"
तिथि..15/05/2018
विषय-किसान

चंद हाइकु 
(1)
राह को ताके
किसान झोली खेत
बादल झाँके
(2)
मौसम मार
कृषक झोली आँसू
श्रम बर्बाद
(3)
ठिठुरी रात
खेत माँ का आँचल
गोद किसान
(4)
कर्ज का मर्ज
किसान आत्महत्या
श्रम को शर्म
(5)
प्रभु आसरे
स्वप्न बोए किसान
आशा के खेत
(6)
खेत माँ सर
किसान पहनाता
हरी चुनर
(7)
खेत मन्दिर
किसान पूजे कर्म
श्रम ही धर्म

ऋतुराज दवे


★किसान★ 
*नियति का* सान्निध्य धरोहर,
* अवनि* तनय जग *तात।

*गगनांचल *आँचल *कर्मनिष्ठ,
*कर्मण्य *कृषक क्या बात।।

*शिला* स्फूरीत कर मोती चुनता,
*मृतिका *महक से धोता।
*रवि *रश्मियों से *कुंदन *रूपित,
धन *धान्य को लहराता।।

भुनसार से *सांन्ध्य* नीशा तक,
*यत् *किंचित* अथाह* परिश्रम।
*खेतिहर यह *पशुधन स्वामी,
*अवनि *अबंर * मध्य *कालक्रम।।

*मृग* मरिचीका *विकट जाल में,
*मृग *तृष्णा कि* विभीषिका।
खेतिहर, किसान, कृषक कि,
*क्षणभंगुर जीव,*पुष्टि *कणिका।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 
*रागिनी शास्त्री*
*दाहोद(गुजरात)*
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