फागुन चोर मचाए शोर
रुत पिया मिलन की आई
धरती नाचे अम्बर नाचे
नाचे लोग लुगाई
डफ बाजे चंग है बाजे
और बाजे शहनाई
मन मयूर हर थाप में नाचे
नव यौवन मस्ती छाई
मन पलाश छाई अंगार
मौसम ने ली अंगडाई
रुत विभोर चले ओर छोर
प्रीत अल्हड़ बन हर्षाइ
अबीर गुलाल संग रीझ रही है
बरसाने की छोरी
आज पिया मोहे रंग लगा दो
प्रीत की खेलो होरी
फाग के रंग में रंग गई राधे
कान्हा से यूं बोली
छैल छबीले रंग रंगीले
मोसे ना कर जोरा जोरी
मन उपवन कोंपल फूटे
नव पल्लव बन इतराई
अमराई पर छाई मंजरी
भ्रमर गुंजन बौराई
हो बासंती करूं श्रृंगार
दुल्हन बन शरमाई
पूर्ण चन्द्र बन तुझे निहारूं
बन फागुन इठलाई
स्वरचित मिलन जैन
करलो - करलो थे तैयारी,
आग्यो होली रो त्यौहार ।
संगला मिल जुल खेलेँगा,
करस्या रंगा री बौछार ।।
लागी पतझड़ री फनकार,
आ ग्यो फागण रो त्यौहार ।
खेले रंगा सु टाबरिया,
फैली रंग बिरंगी बौछार ।।
भरल्यो रंगा सु पिचकारी,
करल्यो सगळा ने रंगदार ।
मिटे सगळा सु दुश्मनी,
या है पिचकारी री धार ।।
छोरा करे हंसी ठिठोली,
मरवण ढूंढे रसिया भरतार ।
सगळा खेले फागण रास,
संग लावे मिठाई रसदार ।।
वेवे बुराइया रो नाश,
यो है होली रो उपहार ।
थाने पाणो है सम्मान,
करज्यो था मधुर व्यवहार ।।
"कवि जसवंत" की अर्ज़ है,
पाणी री बचावो धार ।
सूखा रंगा सु खेलकर,
वनाज्यो सतरंगी संसार ।।
फागुन आया हे!सखी, मन में उठे हिलोर।
देह कामिनी जल रही,छोड़ गया चित चोर।।
झुमका कंगन पायलें, बैठी है ख़ामोश।
वासन्ती खुशबू उड़े,मन मेरा मदहोश।।
पिय का पंथ निहारती,बैठी सागर तीर।
पाती पढ़ पढ़ प्रेम की,गहराती है पीर।।
राग-रंग बेरंग सब,नीरस रस के पुंज।
भूला है क्यूँ सांवरा, गोकुल का हर कुंज।।
दर्पण सम्मुख बैठकर,गौरी करे विचार।
यौवन सिसकी ले रहा,सजन करो उपचार।।
साजन साजन मैं करूँ,साजन है परदेश।
विरहा की रातें बड़ी,कब आओगे देश।।
साजन आए स्वप्न में,ले हाथों में रंग।
गाल गुलाबी कर गए,मन में उठी उमंग।।
जूही चम्पा खिल रही,मदमाता कचनार।
रुत आई है मिलन की,करलो अब इकरार।।
खेमचन्द उदास जयपुरी
16--5--2018
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फागुन फुहारें😊
होली की मस्ती
गुझियों के संग हो
प्रेम की बस्ती।
बैर मिटा कर😊
गले लगा कर
आओ सब मिल कर
फागुन गीत गुनगुनाएं।
पलाश सुगंध😊
गेंदों की रंग
अबीर लगाओ
मखमली गालों में तुम।
थोड़ी शराफत😊
कुछ छेड़खानी
ये मस्ती दीवानी
होली कि खुमारी।
लबों पे लाली😊
चाँद भी शरमाए
खुद पर इतराना
फिर उसको न भाए।
ढोल की थाप😊
भांग के संग
मौज-तरंग
रिश्ते दमकाए।
आज है मौका😊
बन खेले मुरारी
गोपियों की टोली
कान्हा पे भारी।
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वीणा शर्मा
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सावन बीता फागुन आया,
कुछ मन उमड़ा कुछ मन तड़फा।
बसुंधरा भी सजी आज,
करके पूर्ण श्रंगार ।।
आम बौराया ,टेसू फूला
हरियाली मुस्काई ।
बिरही तड़फा,जग ना समझा
क्यों,स्याह घटा घिर आई ।।
चाहा मन ने होली खेलें,
साथ तुम्हारे,पर हैं मजबूर।
तन का रंग न छिड़क सकें,
मन का रंग ,रंग दें। ।।
"स्वर्ण"रंग से रंगा ह्रदय,
प्रीत रंग पिचकारी।
निकली भावों की यह धारा
"फागुन"अर्पण है मनमीत ।।
*फाग गीत*
मानो कह्यो मेरो श्याम
घूंघट मे मत डारो गुलाल
बसंती बयार संग फागुन आयो
ले आयो रंगों की जुवाल
मानो कह्यौ मेरो...........
बेला चमेली टेसुई फूली
बगिया भै गई निहाल
मानो कह्यो मेरो...........
पिचकारी भरी अंगवा पे डारी
चुनरी हो गई लाल
मानो कह्यो मेरो.............
लोग लुगाई खेलत होरी
हो गई बिरज मे धमाल
मानो कह्यो मेरो..............
सास सेठाणी ननदी हठीली
बलमवा लालमलाल
मनो कह्यो मेरो श्याम
घुँघट मे मत डारो गुलाल
मत डारो गुलाल
मत......डारो..........गुलाल..
रागिनी शास्त्री
"फागुन"
लाल ,गुलाबी, हरा, पीला,
बरसे रंगों की बाहर,
मन में प्रेम जगाए,
फागुन का त्योहार।
नोंक, झोंक ये चलती रहती,
होती अगर रिश्तों में दरार,
प्रेम का रंग बरसाके,
मनाओ फागुन का त्योहार।
हर तरफ मन रही खुशियाँ,
पिया, फिर तेरी याद आई,
हो रही है, रंगों की फुहार,
लबों पर हंसी पर आँख मेरी भर आई।
भरी आँख से देखूँ, खुशी बच्चों की,
याद आ गये, लम्हें वो रंगीन,
रंगों को लेके आ गया फिर फागुन,
सोच रही कैसे बनाऊँ तेरे बिन।
" रेखा रविदत्त"
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मैं फागुनिया रंग में रंग गयी!
पियाजी मोरे फाग, खेलत छुप छुप के,
सैंया जी मोरे फाग खेलत छुप छुप के,
मैं फागुनिया रंग में रंग गयी,
शरमाऊं घूंघट से..........
पियाजी मोरे फाग, खेलत छुप छुप के,
होलीया में उङे गुलाल अबीरा
टिमकी ढोलक, झांझ मजीरा
चंग की थाप जियरा धङके!
पियाजी मोरे फाग, खेलत छुप छुप के,
आंगन चहकी सोन चिरैया
मै राधा बन हुई बावरीया
नैनन प्रीत तोरी छलके..........
पियाजी मोरे फाग, खेलत छुप छुप के,
ज्यूं डाली, बोले कोयलिया
गुनगुन करता भंवरा छलिया
बहियां पकङ करे जोरे..........
पियाजी मोरे फाग, खेलत छुप छुप के,
जा देखे तोरे रंग कन्हैया
रंग दी नी मोरी धानी चुनरीया
सूरत अबीरीया मलके..........
पियाजी मोरे फाग, खेलत छुप छुप के,
मैं फागुनिया रंग में रंग गयी,
शरमाऊं घूंघट से..........
पियाजी मोरे फाग, खेलत छुप छुप के,
---डा .निशा माथुर/8952874359
फागुन मास बड़ा सुहाना
घूमो मथुरा या बरसाना ।।
होली की उमंग है छाई
जहाँ खेले स्वयं कन्हाई ।।
घर घर रंगों की तैयारी
प्रेम से सरावोर नर नारी ।।
शीत ऋतु की भई विदाई
फागुन की हुई पहुनाई ।।
टेशू सबका मन लुभाये
वन की शोभा वरनि न जाये ।।
फागुन मास बड़ा अलबेला
वन में लगता है ज्यों मेला ।।
सबके मन में प्रेम समाया
सबने बैर भाव विसराया ।।
ढोलक झाँझ मँजीरा चंग
बाजे गलिन गलिन मृदंग ।।
सबके मन में है उमंग
होली की हो रही हुड़दंग ।।
मन में भरो ''शिवम" उल्लास
आया सजीला फागुन मास ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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