साज़ और आवाज़ का,
इक मखमली एहसास है।
सुरों की सुन्दर रागिनी,
सुकुमार सुमधुर सरगम,
इक शान्त सौम्य एहसास है।
सलिल सरिता सागर की,
इक मंत्रमुग्ध मनुहार है।
बाँसुरी की धुन सुरीली,
इक मधुर आमंत्रण,
राधिका संग श्याम हैं।
सप्ततारों से प्रस्फुटित,
स्वरों की झन्कार,
आसमां मे गूँजती,
इक अलौकिक अनुभूति है।
©प्रीति
प्रकृति में है
"वींणावादिनी" का बसेरा।
प्रकृति मे है,
संगीत सारा।
हवाओं की गुनगुन,
लताओं की सरसर,
बूँदों की छमछम मे,
बजता है सरगम।
नदिया की कल कल मे,
लहरों के वर्तुल मे,
पक्षियों के कलरव मे,
संगीत सुरीला।
भौंरों की गुनगुन,
मधुर रस को घोले।
सुर ताल लय से,
मधुर राग छेड़े।
गेहूँ की बालियाँ,
झूम झूम के गाएं।
कोयल की कूक,
सुरों को सजाएं।
अमिया की बगिया मे
महफिल लगाएं।
सुरों के सरगम,
सारे ग़म को भुलाएं।
जीवन को खुशियों से,
सम्पूर्ण बनाएं।
सुर,लय, ताल
जिंदगी के सुर में सुर मिलाते चल।
जिंदगी है छोटी,तूँ मुस्कुराके चल।
तेरी मधुर वाणी से जो सुर निकलेंगे।
गीत की तरह असर औरों पे छोड़ेंगे।
सबके हो जाओगे प्यारे,जो मधुर धुन छेड़ोगे।
जिंदगी की लय में जो लय मिलाओगे।
हसीन होगी जिंदगी,जो सुर,ताल से चलोगे।
मुस्कुराएगी जिंदगी,जो सुर में बोलोगे।।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
25मई 2018
गीत तुम संगीत तुम तुम ही गन्धर्व गान हो।
प्राण मन संकल्प तुम तुम ही प्रज्ञा ज्ञान हो।
तुम ही धुन बांसुरी की ताल का तुम थाप हो।
आलाप सा आरम्भ हो संगत सा अवसान हो।
गीत का मुखड़ा कभी और कभी हो अन्तरा।
राग हो वीणा का तुम सुर का तुम उपमान हो।
एक सरस बन्दिश हो तुम ताल की हो गमक।
नाद स्वर राग तुम तुम ही लय और तान हो।
विपिन सोहल
जीवन एक बहार है, प्रकृति का उपहार है,
बिना सुर ,लय और ताल के जीवन ये बेकार है।
धरती के आँचल पर, आसमाँ का दुलार है,
बाग और बगियानों में, बहार ही बहार है।
बिना सुर,लय और ताल के जीवन ये बेकार है।
पक्षियों का कलरव और, झरनों की कलकल है,
वन और उपवन में, उल्लास ही उल्लास है,
बिना सुर, लय और ताल के जीवन ये बेकार है।
तारों के सर पर, चंद्रमा का ताज है,
चाँदनी रात में,अमृत की बरसात है।
बिना सुर और लय के जीवन ये बेकार है।
कवि की कविता में, रस की बहार है,
मधुर मिलन की बेला में ,उमंग की बयार है।
बिना सुर,लय और ताल के जीवन ये बेकार है।
जीवन एक बहार है, प्रकृति का उपहार है,
🌿🌿
सांझ की झरती तालों पर
लयबद्ध पंछियों की कतारों से
फूटते मिलन को आतुर सुर
आह्लादित कर देते हैं अंतर्मन
जैसे थका हारा पथिक
लौट रहा हो अपनत्व के द्वार
स्पंदन की छितराई ताल पर
साधता हुआ पदचाप की लय
पुनः सजाने को जीवन के सुर ।
सपना सक्सेना
ग्रेटर नोएडा
(25-52018)
💐भावों के मोती💐
4
प्रिय,सजन
तुम ही मेरी ताल हो
तुम ही मेरा श्वास हो
जिंदगी के सिमटते पन्नों की
तुम्ही अंतिम आस हो।।
अंनत इच्छाओं,भावनाओं को
खुद में समाएं बैठी हूँ
तुम कब आकर प्रिय
मंजिल मेरी बन जाओगे।।
श्वासों के सुर उखड़ रहे है
धड़कने ठहर रही है
नयनों की ज्योति भी
तुम्हें पाने को तरस रही है।।
सात फेरों के वचनों को
कब आकर तुम निभाओगे
साथ चलने के वादे किए थे
अध राहों पर न छोड़ जाओगे।।
ये जिस्म,दिल दो है मगर
मंजिल तो अब एक ही है
क्यो दूर रहो हमसे सनम
जब राहें हमारी एक ही है।।
वीणा शर्मा
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मन अनुमोदित
तन अनुमोदित
जीवन सुर लय ताल अलंकृत
बगिया गुंझार प्ररूपित
हृदय उत्साह से झंकृत
पवन सुरमय सुर प्रवाहित
मेघा लय फुहार समन्वित
प्रकृति नवरुप ताल प्रवर्तित
वीणा मन झंकार
प्रफुल्लित
ह्रदय मेघमल्हार स्फुटित
नव उन्नत प्रयास प्रज्जवल्लित
मन अनुमोदित
तन अनुमोदित
जीवन सुर लय ताल अलंकृत
स्वरचित ; मिलन जैन
मन वीणा के तार हैं टूटे कैसे बने सुर लय ताल ।।
कैसे कोई हँसे भला बड़ा कठिन ये जग जंजाल
वैसे तो हैं साज बहुत मगर करें कुछ समय कमाल ।।
बजा के देखे सारे साज चलते हैं वो साल दो साल
टूट ही जाते एक दिन वो चाहे जितना रखो ख्याल ।।
मन वीणा को भूल गया जग , बदल गई जग की चाल
कितने साजों पर थिरकना वाकई हुनर का है सवाल ।।
समय सुनिशचित करके में मिलाता हूँ सब में सुरताल
पारंगतता आ ही जाती चलो ''शिवम"न करो मलाल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
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