Wednesday, May 9

"ख़ुशी"-9 मई 2018






 "खुशी'
"बदल गये है खुशियों के मायने'।


बदल गये है मेरे खुशियों के मायने।
मिल बाँट कर जब खाते थे
टूकड़ा मिठाई भी खुशियाँ बाँट थे।
आज भरा पड़ा है मिठाई का डब्बा
जब डाक्टर ने है मना कर रखा
जब घूमते थे मीलों पैदल
चहक उठता था तब बचपन।
आज नही भाता रिक्शा मे घुमाना
ए सी कार बिना मन नही भरता।
पहले अपने सब मिलकर खुशियों बाँटते
आज सब मिलकर जिओ मे रमते।
मेला घूमने मे जो मिलती खुशियां
वही खुशी नही मिलती अब माँल घुमने मे।
दिन बदले और बदल गया जमाना
अब मैं पा गई खुशियों का ठीकाना।
सच्ची खुशी अब समझ में आई।
सबका साथ सबका विकास।
इसी मे है हम सबका भलाई।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।




"खुशी"
रिश्तो के तहख़ाने,
टूटते आशियाने,

इस खुशी को कौन जाने। 

बूढ़ापे की मज़बूरी,
अपनो से दूरी ,
वृद्ध आश्रम में हो अब ज़िंदगी पूरी,
मुस्कराहट तो अब भी अधूरी।

जवान बेटियों के साथ बलात्कार,
उनकी रुह का तिरस्कार,
तेजाब से उनकी आज़माइशो पर वार,
दानवो की इस खुशी ने हर दिन किया शर्मसार।

है किन्नर लाचार, 
अठहास का विष्य बनते कई बार, 
होते है शोषण का शिकार,
फिर भी किया ज़िन्दगी के समझौतो को साकार। 

आतंकवादियो ने किया देश की गरिमा का अपमान, 
भ्रष्टाचार से ढलती देश की शान, 
आत्महत्या करता किसान, 
मंहगाई से सरकार अनजान, 
विदेशों में बन रही झूठी पहचान,
भूखा तो अभी भी आधा हिन्दुस्तान। 

ज़िंदगी का तो अब ये आलम है,
खुशी का कहाँ किसी को मालूम है।

(स्वरचित) 
-शुभांक

गज़ल

बड़े दिनों में आयी खुशी का अहसास सुहाना होता है
खुशी किसे न प्यारी लगती हर कोई दीवाना होता है ।।

इंतजार में खुशियों के हर गम भुलाना होता है 
खुशियों की खातिर शत्रु से हाथ मिलाना होता है ।।

खुशी न बाँध पाया कोई ये आना जाना होता है 
इक पल हँसे तो दूजे पल अश्रु बहाना होता है ।।

धरती जब तपती तब बारिष का आना होता है 
दुख से क्यों घबड़ाता क्यों सच से अन्जाना होता है।।

हर खुशी का ''शिवम" कभी असर पुराना होता है 
प्रभु से प्रीति बढ़ाओ खुशियों का बड़ा खजाना होता है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"



मेरी मुफलिसी ने इतना खासो-खास रखा मुझे
महफिलों ने ठुकराया तन्हाईओं ने पास रखा मुझे
उमर गुजार दी जिसकी तलाश में,उन
चंद लम्हात की खुशियों ने बरसों उदास रखा मुझे
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ऐ खुदा क्या तुझे कोई फरक नहीं पड़ता
क्यूं दुआओं में कोई असर नहीं पड़ता
रोज तकता हूं सुबहो-शाम रस्ता उसका
पर खुशियों की राह में मेरा घर नहीं पड़ता



भा.1**9/5/2018बुधवार शीर्षकः ःखुशीः

हे प्रभु आरजू है खुशियाँ सबको देना।

सबका घर आंगन खुशियों से भर देना।
प्रफुल्लित कुसमित हो हरजन का मन ,
खुशी लें खुशियाँ बांटे ऐसा ही वर देना।

मकरंद घुले मन में कुछ ऐसा कर देना।
सभी प्रसन्नचित्त रहें प्रभु ऐसा कर देना।
खुशी खुशी रहें मिलजुलकर हम सबही,
हे अखिलेश्वर ये विश्व शांतिमय कर देना।

चहुँओर दिखें उल्लहासित चेहरे हमको।
सबतरफ दिखें खुशप्रमुदित चेहरे हमको।
संम्पूर्ण जगत हो खुश खुशहाली छा जाऐ, 

सदा दिखाई दें खुश किस्मत चेहरे हमको।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी।




"अंदाज"05मई2020

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