वाह क्या तंत्र है
मेरा देश प्रजातंत्र है
प्रजा को ही लूटे
ये कैसा षडयंत्र है
चारा यहां नेता खाते
कोयले में खुद पुत जाते
घोटालों का यहां आंतक है
वाह क्या प्रजातंत्र है
स्कूलों में डोनेशन
अस्पतालों में कमीशन
नौकरी मे आरक्षण
पूरा सिस्टम ही परतंत्र हैं
वाह क्या लोकतंत्र है
कालाबाज़ारी रिश्वतखोरी
हवाला ,मिलावट,टेक्स की चोरी
देश का नाडी तंत्र हैं
जो देश को गर्त में गिरादे
कैसा ये जनतंत्र है
भ्रष्ट नेता भ्रष्ट ही अफसर
भ्रष्ट सब संयत्र है
ज़र्रे ज़र्रे में बसा
भ्रष्टाचार ही जीवनमंत्र है
है जननायक है गणतंत्र
देश हुआ है फिर परतंत्र
ध्वस्त कर दो ये षड़यंत्र
भ्रष्टाचार की होली जलाकर
कर दो देश को फिर स्वतंत्र
स्वरचित मिलन जैन
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अदना तक तो धनकुबेर है, क्या कहें सरकार की
अमर बेल सा पसर गया है, जय हो भ्रष्टाचार की
बिल्ली के भाग से छींका टूटा, बन बैठे सरकारी
जितना खर्चा हरदिन लेंगे ,आए कर तैयारी
कैसे नियम कानून कायदे, साहिब सबसे ऊपर
चक्कर लगा लगा के मर गयी,जनता हुई घनचक्कर
सबसे पहले अपना घर और अपना पेट भरेंगे
बाद अगर कुछ बचा रहा तो जनसेवा कर लेंगे
और अगर जो उनसे भिड़े तो जानो शामत आई
जिंदा को मुर्दा कर देंगे झेलोगे जग हंसाई
देख रहे क्या मूरत बनके खुद तुमने जड़ को सींचा
कितना कसैला निकल कर आया फल इस पौधे का
अब भी थोड़ा समय है बाकी कर पाओ तो कर लो
चलो हमेशा सीधे रस्ते यह बात गांठ में धर लो
भ्र्ष्टाचार////
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खो गया है मूल्य नैतिक,
समाजिक लोकाचार में।
आकंठ डूबा है यहाँ,
हर ओहदा भ्र्ष्टाचार में।।
पाप-पुण्य, नैतिक-अनैतिक,
इनके लिए सब गौड़ हैं।
ये समाजिक कुकर्मी हैं,
समाज के लिये कोढ़ हैं।।
भिखारियों से भीख लेते,
रोगियों से रोग है।
मुर्दे को मुर्दा बताने के,
लिए भी भोग है।।
जिनको दे रहे गालियां भला,
ये लोग कौन है।
ये हमारे अपने ही तो है,
हम इसलिए तो मौन है।।
है मिथ्या हमारे लिए,
सत्य का व्योहार है।
झूठे फरेबियों से ही,
हमारा सरोकार है।।
एक बोतल मदिरा में,
हम बेच देते वोट हैं।
फिर हम कहते है कि,
नेताओं में खोट है।।
जहाँ अपना फायदा,
ओ सत्य का व्योहार है।
नही तो सब कर्म झूठा,
सबकुछ भ्रष्टाचार है।।
जिस दिन हम बदले,
उसदिन दुनिया बदलेगी।
वर्षों से जमी ये वर्फ,
उसदिन पिघलेगी।।
जिसदिन हम भ्र्ष्टाचार ,
का दामन छोड़ देंगे।
उससे हर रिस्ते नाते,
स्वं ही तोड़ देंगे।।
जिस दिन हम लाएंगे,
बदलाव अपने विचार में।
उसदिन से कोई डूब नही,
पायेगा भ्र्ष्टाचार में।।
खो गया.......
आकंठ डूबा........
.....राकेश पाण्डेय,,
सभी फनकारो को प्यार भरा आदाब
एक गजल पेश कर रहा हू ।
वक्त की रफ्तार को गर रोक सके तो रोक ले
आज के हालात पर कुछ सोचसके तो सोच ले।
ऑख मे ऑसू लिये अब रो रही है बेवसी
उसके उफनते अश्क सोखसके तो सोख ले।
भष्टाचार के संजाल मे वतन है गुंथा हुआ
तार एक एक जाल के तोड सके तो तोड ले।
हर तरफ बुराई है यू तो सारे जहान मे
पोध तू अच्छाई का रोप सके तो रोप ले।
विस्फोटो की आग से जल रहा है आस्मा
दाग बे वजह खून के पोछ सके तो पोछ ले।
हामिद अभी भी वक्त है जेहाद अमन का छेड दे
कयामती सैलाब को जो रोक सके तो रोक ले।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से