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ब्लॉग संख्या :-480
सुप्रभात "भावो के मोती"
18/08/2019
स्वतंत्र लेखन......
"चाय"
1
है
प्यारी
सहेली
अलबेली
किस्मत वाली
दूजी घरवाली
एक चाय की प्याली।
2
लें
शाम
सुबह
चाय चुस्की
आ जाए स्फूर्ति
मूल्य. थोड़ी सस्ती
चाय में भरी मस्ती।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
18/08/2019
स्वतंत्र लेखन......
"चाय"
1
है
प्यारी
सहेली
अलबेली
किस्मत वाली
दूजी घरवाली
एक चाय की प्याली।
2
लें
शाम
सुबह
चाय चुस्की
आ जाए स्फूर्ति
मूल्य. थोड़ी सस्ती
चाय में भरी मस्ती।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन मंच भांवो के मोती
विषय स्वतंत्र लेखन
विधा काव्य
18 अगस्त 2019,रविवार
सबसे पहले आया पैसा
चमक दमक लाया पैसा।
माया नगरी में अति पैसा
मान सम्मान सब है पैसा।
पैसा है रोगी की औषध
पैसा है शिष्य की शिक्षा।
पैसा होता अति जरूरी
पैसा हेतु याचक भिक्षा।
नाते रिश्ते स्नेह है पैसा
जग उपवन होता है पैसा।
जन्म मृत्यु मध्य में पैसा
अर्चन पूजन यात्रा पैसा।
पैसा पीछे दुनियां भगती
पैसा क्षुधा मिटाती उदर ।
पैसा है तो सब है अपना
पैसा से बनता जग सुन्दर।
मायामोह बंधन है पैसा
भाई बहिन स्नेह पैसा।
सजे अर्थी खनके पैसा
काम सदा आता पैसा।
पैसों में भगवान की मूरत
पैसो में कुछ भी क्रय करलो।
पैसों से है चमक नयनों की
पैसो से जग पीड़ा को हरलो।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा ,राजस्थान।
विषय स्वतंत्र लेखन
विधा काव्य
18 अगस्त 2019,रविवार
सबसे पहले आया पैसा
चमक दमक लाया पैसा।
माया नगरी में अति पैसा
मान सम्मान सब है पैसा।
पैसा है रोगी की औषध
पैसा है शिष्य की शिक्षा।
पैसा होता अति जरूरी
पैसा हेतु याचक भिक्षा।
नाते रिश्ते स्नेह है पैसा
जग उपवन होता है पैसा।
जन्म मृत्यु मध्य में पैसा
अर्चन पूजन यात्रा पैसा।
पैसा पीछे दुनियां भगती
पैसा क्षुधा मिटाती उदर ।
पैसा है तो सब है अपना
पैसा से बनता जग सुन्दर।
मायामोह बंधन है पैसा
भाई बहिन स्नेह पैसा।
सजे अर्थी खनके पैसा
काम सदा आता पैसा।
पैसों में भगवान की मूरत
पैसो में कुछ भी क्रय करलो।
पैसों से है चमक नयनों की
पैसो से जग पीड़ा को हरलो।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा ,राजस्थान।
नमन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :- 18/08/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
तुम चिड़ियों की चहक....
तुम ही फूलों की महक...
कर्णप्रिय वीणा की धुन सी...
तुम ही पवन प्रभाती हो...
प्रतिमूर्ति तुम यौवन की...
कली हो किसी मधुबन की...
तितलियों सी तुम सुंदर..
मेरे मन को लुभाती हो..
मुख विस्तृत भोर लालिमा...
गेसू काली घटा से घनघोर...
अधरों को मौन हलचल दे...
यूँ मंद मंद जो मुस्काती हो...
आभा तुम्हारी दामिनी सी...
चाल जैसे गजगामिनि सी...
सुखद स्वप्न की भोर बन...
यूँ मन को जगाती हो...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिन :- रविवार
दिनांक :- 18/08/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
तुम चिड़ियों की चहक....
तुम ही फूलों की महक...
कर्णप्रिय वीणा की धुन सी...
तुम ही पवन प्रभाती हो...
प्रतिमूर्ति तुम यौवन की...
कली हो किसी मधुबन की...
तितलियों सी तुम सुंदर..
मेरे मन को लुभाती हो..
मुख विस्तृत भोर लालिमा...
गेसू काली घटा से घनघोर...
अधरों को मौन हलचल दे...
यूँ मंद मंद जो मुस्काती हो...
आभा तुम्हारी दामिनी सी...
चाल जैसे गजगामिनि सी...
सुखद स्वप्न की भोर बन...
यूँ मन को जगाती हो...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन मंच भावों के मोती
दिनाँक-१८/०८ /२०१९
दिन- रविवार
विषय- स्वतंत्र लेखन(एक अनार सौ बीमार)
देश का कैसा हाल है देखो।
हर कोई बीमार है देखो।
भर्ती जैसे ही आयी है,
पहुँची कोर्ट के द्वार है देखो।।
लूट मची है चारो ओर।
फिर भी कहीं नही है शोर।
जो बैठा है जिस कुर्सी पर,
लगा दिया है पूरा जोर।।
नीति नही कोई स्पष्ट।
पूरा सिस्टम इनका भ्रष्ट।
भले युवा अवसादग्रस्त है,
मगर किसी को नही है कष्ट।।
चिंता में है बेरोजगार।
आँख मूँद सोए सरकार।
हर भर्ती में लगता जैसे,
एक अनार सौ बीमार।।
रविशंकर 'विद्यार्थी'
सिरसा मेजा प्रयागराज
दिनाँक-१८/०८ /२०१९
दिन- रविवार
विषय- स्वतंत्र लेखन(एक अनार सौ बीमार)
देश का कैसा हाल है देखो।
हर कोई बीमार है देखो।
भर्ती जैसे ही आयी है,
पहुँची कोर्ट के द्वार है देखो।।
लूट मची है चारो ओर।
फिर भी कहीं नही है शोर।
जो बैठा है जिस कुर्सी पर,
लगा दिया है पूरा जोर।।
नीति नही कोई स्पष्ट।
पूरा सिस्टम इनका भ्रष्ट।
भले युवा अवसादग्रस्त है,
मगर किसी को नही है कष्ट।।
चिंता में है बेरोजगार।
आँख मूँद सोए सरकार।
हर भर्ती में लगता जैसे,
एक अनार सौ बीमार।।
रविशंकर 'विद्यार्थी'
सिरसा मेजा प्रयागराज
दि- 18-8-19
रविवार
मनपसंद लेखन
सादर मंच को समर्पित -
🍊🌻 गीत 🌻🍊
**********************
घूँट भर-भर कर गगन से
आज पानी झर रहा है ।
घने काले बादलों की कोख से ,
कड़कती घन बिजलियों की ओट से ,
धूप खिलती हो गयी कुछ मन्द सी ,
उमस की तड़पन हुई अब बन्द सी ,
नम फुहारों से तरवतर
शोख यौवन भर रहा है ।
घूँट भर-भर कर गगन से
आज पानी झर रहा है ।।
प्यास से तरसी धरा अब तृप्त है ,
सुलगती मन विरह कलिका सुप्त है ,
हूक उठती सिसकियाँ भी थम गयीं ,
आँख अपलक जो ,सजल हलचल हुईं,
सुरमयी झोंका पवन का
गात पुलकित कर रहा है ।
घूँट भर-भर कर गगन से
आज पानी झर रहा है ।।
याद रह-रह कर जलाती है जिया ,
जो गुजारे पल करें छलनी पिया ,
उड़ गये वादे विरह की आँधियाँ ,
आज सूनी लग रही हैं वादियाँ ,
मन मयूरा चहक उठता
मौन साँसें भर रहा है ।
घूँट भर-भर कर गगन से
आज पानी झर रहा है ।।
रविवार
मनपसंद लेखन
सादर मंच को समर्पित -
🍊🌻 गीत 🌻🍊
**********************
घूँट भर-भर कर गगन से
आज पानी झर रहा है ।
घने काले बादलों की कोख से ,
कड़कती घन बिजलियों की ओट से ,
धूप खिलती हो गयी कुछ मन्द सी ,
उमस की तड़पन हुई अब बन्द सी ,
नम फुहारों से तरवतर
शोख यौवन भर रहा है ।
घूँट भर-भर कर गगन से
आज पानी झर रहा है ।।
प्यास से तरसी धरा अब तृप्त है ,
सुलगती मन विरह कलिका सुप्त है ,
हूक उठती सिसकियाँ भी थम गयीं ,
आँख अपलक जो ,सजल हलचल हुईं,
सुरमयी झोंका पवन का
गात पुलकित कर रहा है ।
घूँट भर-भर कर गगन से
आज पानी झर रहा है ।।
याद रह-रह कर जलाती है जिया ,
जो गुजारे पल करें छलनी पिया ,
उड़ गये वादे विरह की आँधियाँ ,
आज सूनी लग रही हैं वादियाँ ,
मन मयूरा चहक उठता
मौन साँसें भर रहा है ।
घूँट भर-भर कर गगन से
आज पानी झर रहा है ।।
क्या कहें क्या न कहें ??
कोई हमारे बीच से ...चला जाता
उसका गुणगान हमको बहुत भाता ।।
क्यों न हमें उसके पद चिन्हों पर
दृढ़ होकर के चलना सुहाता ।।
जब होता है टाँग खींची जाती
न होने पर वह आँसू रूलाता ।।
समझ नही आए यह मनोदशा
हम भारतीयों की क्या दर्शाता ।।
क्या महान लोगों का नसीब यही
ठोकरें, पदक तो मर कर पाता ।।
जीते जी तो जीने न दिया और
मरने पर घड़ियाली अश्रु बहाता ।।
माँ बाप के साथ भी यही हाल
बढ़ता ये गुण बदसलूकी बताता ।।
पास रहकर बुराई दिखती 'शिवम'
दूर जाने पर वह फ़रिश्ता कहलाता ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/08/2019
कोई हमारे बीच से ...चला जाता
उसका गुणगान हमको बहुत भाता ।।
क्यों न हमें उसके पद चिन्हों पर
दृढ़ होकर के चलना सुहाता ।।
जब होता है टाँग खींची जाती
न होने पर वह आँसू रूलाता ।।
समझ नही आए यह मनोदशा
हम भारतीयों की क्या दर्शाता ।।
क्या महान लोगों का नसीब यही
ठोकरें, पदक तो मर कर पाता ।।
जीते जी तो जीने न दिया और
मरने पर घड़ियाली अश्रु बहाता ।।
माँ बाप के साथ भी यही हाल
बढ़ता ये गुण बदसलूकी बताता ।।
पास रहकर बुराई दिखती 'शिवम'
दूर जाने पर वह फ़रिश्ता कहलाता ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/08/2019
नमन मंच 🙏
दिनांक- 18/08/2019
स्वतंत्र लेखन आयोजन
विषय-"मन"
विधा-कविता
***********
मन इतनें क्यों तुम चंचल,
बाँध सके तुम्हें न कोई बंधन,
पानी जैसे तुम बहते हो,
दु:ख,सुख सब तुम सहते हो |
मन की गति को नहीं विराम,
भटकते रहना इसका काम,
कभी इधर तो कभी उधर,
पल भर न करता आराम |
जब निर्णय कोई लेता,
दिमाग सोच विचार कर लेता,
मन हो जाता थोड़ा नादान,
भावनाओं से लेता काम |
मन,मनमौजी जब हो जाता,
बिना पंख ही उड़ने लगता,
गति में न लगता फिर विराम,
मन न करता कभी आराम |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
दिनांक- 18/08/2019
स्वतंत्र लेखन आयोजन
विषय-"मन"
विधा-कविता
***********
मन इतनें क्यों तुम चंचल,
बाँध सके तुम्हें न कोई बंधन,
पानी जैसे तुम बहते हो,
दु:ख,सुख सब तुम सहते हो |
मन की गति को नहीं विराम,
भटकते रहना इसका काम,
कभी इधर तो कभी उधर,
पल भर न करता आराम |
जब निर्णय कोई लेता,
दिमाग सोच विचार कर लेता,
मन हो जाता थोड़ा नादान,
भावनाओं से लेता काम |
मन,मनमौजी जब हो जाता,
बिना पंख ही उड़ने लगता,
गति में न लगता फिर विराम,
मन न करता कभी आराम |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
पाला पड़ा _______
ज़िंदगी के फलसफे में सीखने को बहुत कुछ मिला
थोड़ी ज़हमत कुछ नजरअंदाजो से हमारा पाला पड़ा ,,
रखते है रिश्ते बड़े प्यार - मोहब्ब्त के हमसे
बुरे हालातों में चेहरा इनका हमारे सामने पड़ा ,,
जनाब बिखरे थे बिखर कर सिमट गए ख़ुद
जाने किस -किस से जिंदगी में हमारा पाला जो पड़ा ,,
तू भी अए ज़िन्दगी क्या याद ऱखेगी मुझे
ये बंदा हर दुःखो के सामने कभी बेबस ना पड़ा ,,
करती है माँ मेरी दुआएँ सलामती की
तुम जैसे कइयों का हमारे जिंदगी से पाला जो पड़ा ,,
✍️ ,,,स्वरचित,,,स्वप्रमाणित,,,सर्वाधिकार सुरक्षित रचना ,,,
,,, उत्तर-प्रदेश ,,,संत कबीर नगर ,,
ज़िंदगी के फलसफे में सीखने को बहुत कुछ मिला
थोड़ी ज़हमत कुछ नजरअंदाजो से हमारा पाला पड़ा ,,
रखते है रिश्ते बड़े प्यार - मोहब्ब्त के हमसे
बुरे हालातों में चेहरा इनका हमारे सामने पड़ा ,,
जनाब बिखरे थे बिखर कर सिमट गए ख़ुद
जाने किस -किस से जिंदगी में हमारा पाला जो पड़ा ,,
तू भी अए ज़िन्दगी क्या याद ऱखेगी मुझे
ये बंदा हर दुःखो के सामने कभी बेबस ना पड़ा ,,
करती है माँ मेरी दुआएँ सलामती की
तुम जैसे कइयों का हमारे जिंदगी से पाला जो पड़ा ,,
✍️ ,,,स्वरचित,,,स्वप्रमाणित,,,सर्वाधिकार सुरक्षित रचना ,,,
,,, उत्तर-प्रदेश ,,,संत कबीर नगर ,,
नमन मंच भावों के मोती
तिथि-18/08/2019
विषय-स्वतंत्र लेखन
**********************
साथ चल ज़िन्दगी में सफ़र है अभी
सर पे बादल ब-रंग-ए-शहर है अभी
सोचना ही नहीं, भूल जाएगा वो
उस ख़ुदा की ज़मीं पर नज़र है अभी
कह दिया किसने ये साथ कोई नहीं
उस पर माँ की दुआ का असर है अभी
मत समझ ये यहाँ मंज़िलें ही नहीं
तुझ को मिलनी है जो वह डगर है अभी
जीतने के लिये तू यहाँ है अगर,
जीत ले नील खुद को अगर है अभी
राजेन्द्र मेश्राम "नील"
तिथि-18/08/2019
विषय-स्वतंत्र लेखन
**********************
साथ चल ज़िन्दगी में सफ़र है अभी
सर पे बादल ब-रंग-ए-शहर है अभी
सोचना ही नहीं, भूल जाएगा वो
उस ख़ुदा की ज़मीं पर नज़र है अभी
कह दिया किसने ये साथ कोई नहीं
उस पर माँ की दुआ का असर है अभी
मत समझ ये यहाँ मंज़िलें ही नहीं
तुझ को मिलनी है जो वह डगर है अभी
जीतने के लिये तू यहाँ है अगर,
जीत ले नील खुद को अगर है अभी
राजेन्द्र मेश्राम "नील"
नमन-भावो के मोती
दिनांक-18/08/2019
स्वतंत्र लेखन.....
नयनों के मौन निमंत्रण.......को
अनचाहे मन, चाहे तो पढ़ लेना।
नैनो के मौन निमंत्रण को।।
हर धड़कन पर नाम तुम्हारा।
खुले अधरों के आमंत्रण को।।
कनक मंजरी कर्ण के।
नछत्र तुम्हारे नित्य-निरंतर।।
अधर चांदनी पी रहे।
उम्मीदों के नव अभ्यंतर को।।
स्मृतियों की बाहों में।
यामिनी व्याकुल खड़ी सी,
चांदनी सेज सजा रही,।
वेदना कसकती इतनी भयंकर।।
अंग अंग नव छंद आज।
देख पुकार उठी धड़कन,
रुधिर में बढी रक्त की लालिमा
सांसो का क्रम हुआ इतना परिवर्तन।।
कष्टों की कलमुँही रात में।
आधी रात की काली सच ने
वेदनाओं ने रचे नए-नए स्वयंवर।।
खुलेआम जालिम दुनिया ने।
हंसते हंसते आंसू लड़ियों को लुटे।
अगणित बूंदे गिरी पृष्ठ पर
भावनाओं के कोरे झरने फूटे।।
नहीं मिला कोई भी अब तक अपना प्रियवर।
साक्षी रहे कलयुग के अवनी और अंबर।।
प्यार के सरहद पर खड़ी रहूंगी
जलते दीपक की तरह तत्पर...........
स्वरचित
@ sp सिंह सर्वाधिकार सुरक्षित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज इलाहाबाद
दिनांक-18/08/2019
स्वतंत्र लेखन.....
नयनों के मौन निमंत्रण.......को
अनचाहे मन, चाहे तो पढ़ लेना।
नैनो के मौन निमंत्रण को।।
हर धड़कन पर नाम तुम्हारा।
खुले अधरों के आमंत्रण को।।
कनक मंजरी कर्ण के।
नछत्र तुम्हारे नित्य-निरंतर।।
अधर चांदनी पी रहे।
उम्मीदों के नव अभ्यंतर को।।
स्मृतियों की बाहों में।
यामिनी व्याकुल खड़ी सी,
चांदनी सेज सजा रही,।
वेदना कसकती इतनी भयंकर।।
अंग अंग नव छंद आज।
देख पुकार उठी धड़कन,
रुधिर में बढी रक्त की लालिमा
सांसो का क्रम हुआ इतना परिवर्तन।।
कष्टों की कलमुँही रात में।
आधी रात की काली सच ने
वेदनाओं ने रचे नए-नए स्वयंवर।।
खुलेआम जालिम दुनिया ने।
हंसते हंसते आंसू लड़ियों को लुटे।
अगणित बूंदे गिरी पृष्ठ पर
भावनाओं के कोरे झरने फूटे।।
नहीं मिला कोई भी अब तक अपना प्रियवर।
साक्षी रहे कलयुग के अवनी और अंबर।।
प्यार के सरहद पर खड़ी रहूंगी
जलते दीपक की तरह तत्पर...........
स्वरचित
@ sp सिंह सर्वाधिकार सुरक्षित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज इलाहाबाद
वो बूढे़ सज्जन
🍁🍁🍁🍁🍁
उसके खुरदुरे हाथों में थे,आशीर्वाद बडे़ कोमल
उसका बस चलता,तो वो बिछा देता मलमल
उसके चेहरे की हर झुर्री,मुस्कराती थी
मुहल्ले के बच्चों को देख,खूब बतियाती थी।
पीपल के नीचे वह भी, लगा लेता था एक चारपाई
अपनी उम्र की चादर में,इस बहाने कर लेता था तुरपाई
उसके चेहरे पर खुशी, अपने छींटे डाल देती थी
जब कोई बच्ची उसके लिये,अपनी गैंद उछाल देती थी।
गैंद भी तो इच्छाओं की ही,रिश्तेदार है
पकड़ते रहो,पकड़ते रहो,इसका न कोई पार है
आयु की सीमा रेखा पर भी,गैंद उछलती है
कैच छूट जाये तो,मलिन हो हाथ मलती है।
बड़बडा़ कर बच्चों को उसने,अपने पास बुलाया और बोला
अपने अनुभवों का, एक सुन्दर सा पृष्ठ खोला
इच्छाओं की गैंद उतनी ही उछले, जितनी पकड़ सकें
और हम इसे पकड़ कर, आगे बढ़ सकें।
परिश्रम और लगन से ही,केवल बात बनती है
छलनीयों से निकल कर ही ,कोई चीज छनती है
हम जितने छनेंगे,उतने ही साफ़ रहेंगे
जीवन की ऊँचाईयों के,कुछ माप रहेंगे।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि।
🍁🍁🍁🍁🍁
उसके खुरदुरे हाथों में थे,आशीर्वाद बडे़ कोमल
उसका बस चलता,तो वो बिछा देता मलमल
उसके चेहरे की हर झुर्री,मुस्कराती थी
मुहल्ले के बच्चों को देख,खूब बतियाती थी।
पीपल के नीचे वह भी, लगा लेता था एक चारपाई
अपनी उम्र की चादर में,इस बहाने कर लेता था तुरपाई
उसके चेहरे पर खुशी, अपने छींटे डाल देती थी
जब कोई बच्ची उसके लिये,अपनी गैंद उछाल देती थी।
गैंद भी तो इच्छाओं की ही,रिश्तेदार है
पकड़ते रहो,पकड़ते रहो,इसका न कोई पार है
आयु की सीमा रेखा पर भी,गैंद उछलती है
कैच छूट जाये तो,मलिन हो हाथ मलती है।
बड़बडा़ कर बच्चों को उसने,अपने पास बुलाया और बोला
अपने अनुभवों का, एक सुन्दर सा पृष्ठ खोला
इच्छाओं की गैंद उतनी ही उछले, जितनी पकड़ सकें
और हम इसे पकड़ कर, आगे बढ़ सकें।
परिश्रम और लगन से ही,केवल बात बनती है
छलनीयों से निकल कर ही ,कोई चीज छनती है
हम जितने छनेंगे,उतने ही साफ़ रहेंगे
जीवन की ऊँचाईयों के,कुछ माप रहेंगे।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि।
मनपसंद विषय लेखन
नमन मंच भावों के मोती।
सुप्रभात गुरुजनों, मित्रों।
18/8/2019
आस
झूठी आस में जीते हैं जो,
घूंट अश्क के पीते हैं जो।
सुबहो शाम करते इंतजार।
उनकी यह आस रहे बरकरार।
फौजी बेटे की राह तकत मां,
सोते,जगते करत चिन्तन मां।
शायद आज आये घर बेटा,
मीठे पकवान बनाए रोज मां।
पत्नी देखे राह पति की,
बोर्डर पर लड़ने गया था जिसकी।
इतने दिनों से घर नहीं आया,
मन घबड़ाए याद में उसकी।
ना जाने वो कब आयेंगे,
जब आयेंगे,तब आयेंगे।
तबतक श्रृंगार मैं कर लूं अपना,
शायद आज हीं सच हो मेरा सपना।
उनकी झूठी आस ना टूटे,
किसी मां का सपूत नहीं रूठे।
फीका ना पड़े शृंगार ललनाओं का,
झूठी हीं इस आस में ये जीते रहें सदा।
उन जवानों को शत् शत् नमन,जो अपनी जान देकर हमारे देश की रक्षा करते हैं।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती।
सुप्रभात गुरुजनों, मित्रों।
18/8/2019
आस
झूठी आस में जीते हैं जो,
घूंट अश्क के पीते हैं जो।
सुबहो शाम करते इंतजार।
उनकी यह आस रहे बरकरार।
फौजी बेटे की राह तकत मां,
सोते,जगते करत चिन्तन मां।
शायद आज आये घर बेटा,
मीठे पकवान बनाए रोज मां।
पत्नी देखे राह पति की,
बोर्डर पर लड़ने गया था जिसकी।
इतने दिनों से घर नहीं आया,
मन घबड़ाए याद में उसकी।
ना जाने वो कब आयेंगे,
जब आयेंगे,तब आयेंगे।
तबतक श्रृंगार मैं कर लूं अपना,
शायद आज हीं सच हो मेरा सपना।
उनकी झूठी आस ना टूटे,
किसी मां का सपूत नहीं रूठे।
फीका ना पड़े शृंगार ललनाओं का,
झूठी हीं इस आस में ये जीते रहें सदा।
उन जवानों को शत् शत् नमन,जो अपनी जान देकर हमारे देश की रक्षा करते हैं।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
अमन-शांति आयी है ।।
भारत के मोर मुकुट पर
किस्मत रंग क्या लायी है,
श्वेत फूल-मालाओं पर
अमन-शांति आयी है।
सत्तर वर्ष के इतिहास में
लहर, क्रांति की छायी है,
भड़काने वाले लोगों की
अब शामत आयी है।
कश्मीर के विकास की
किसी ने अलख जगायी है,
बूढ़े हो चुके कश्मीर में
फिर जवानी आयी हैं।
मेहमानों के स्वागत की
अबकी पूरी तैयारी है,
जो रोकेगा काफिले को
उनकी मौत आयी है।
श्वेत मोतियों की वर्षा ने
धरा पर जन्नत पायी है,
पर्यटकों की फ़ौज भी
उनसे मिलने आयी है।
भाविक भावी
भारत के मोर मुकुट पर
किस्मत रंग क्या लायी है,
श्वेत फूल-मालाओं पर
अमन-शांति आयी है।
सत्तर वर्ष के इतिहास में
लहर, क्रांति की छायी है,
भड़काने वाले लोगों की
अब शामत आयी है।
कश्मीर के विकास की
किसी ने अलख जगायी है,
बूढ़े हो चुके कश्मीर में
फिर जवानी आयी हैं।
मेहमानों के स्वागत की
अबकी पूरी तैयारी है,
जो रोकेगा काफिले को
उनकी मौत आयी है।
श्वेत मोतियों की वर्षा ने
धरा पर जन्नत पायी है,
पर्यटकों की फ़ौज भी
उनसे मिलने आयी है।
भाविक भावी
II स्वतंत्र विषय लेखन II नमन भावों के मोती....
विधा :: ग़ज़ल - मेरी उल्फत ज़रा नुरानी थी...
मेरी उल्फत ज़रा नुरानी थी...
टूटने की यही कहानी थी....
डूब कर भी न मैं पकड़ पाया....
मंज़िले इश्क़ बदगुमानी थी....
होलिका को मुग़ालता ही रहा...
आंच उस पर न कोई आनी थी....
चढ़ गया फिर ईमान सूली पे....
खुश हर इक आँख बेईमानी थी....
गुमशुदा से रहे वो महफ़िल में....
ज़हन में कोई सरगरानी थी....
जब बुढ़ापे ने उम्र जकड़ी तो...
सब अकड़ और गुम जवानी थी...
चाँद तू आसमान का 'चन्दर'...
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सरगरानी = सोच / फ़िक्र
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१८.०८.२०१९
विधा :: ग़ज़ल - मेरी उल्फत ज़रा नुरानी थी...
मेरी उल्फत ज़रा नुरानी थी...
टूटने की यही कहानी थी....
डूब कर भी न मैं पकड़ पाया....
मंज़िले इश्क़ बदगुमानी थी....
होलिका को मुग़ालता ही रहा...
आंच उस पर न कोई आनी थी....
चढ़ गया फिर ईमान सूली पे....
खुश हर इक आँख बेईमानी थी....
गुमशुदा से रहे वो महफ़िल में....
ज़हन में कोई सरगरानी थी....
जब बुढ़ापे ने उम्र जकड़ी तो...
सब अकड़ और गुम जवानी थी...
चाँद तू आसमान का 'चन्दर'...
और फिर मेरी ज़िद्द पुरानी थी...
सरगरानी = सोच / फ़िक्र
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१८.०८.२०१९
नमन🙏
स्वतंत्र लेखन
विधा-कविता
विषय-ऋत पिया मिलन की
ऋत पिया मिलन की
नदी के किनारे,
नदी की अटखेलियां देख रही थी।
उस चंचला की चंचलता,
चपला की चपलता देख रही थी।
सद्ययौवना का यौवन ले रहा था उफान।
अंग अंग कामिनी का हो रहा था सजान।
हर लहर पर वो ले रही थी करवट।
हर बौछार उसकी लगती थी अंगड़ाई।
मेरे मुंह पर छींटें उछाल,खिलखिलाती ,
वो गजगामिनी,वो अभिमानिनी बोली,
"सखी, ऋत पिया मिलन की आई"।
सरिता 'विधुरश्मि'
स्वतंत्र लेखन
विधा-कविता
विषय-ऋत पिया मिलन की
ऋत पिया मिलन की
नदी के किनारे,
नदी की अटखेलियां देख रही थी।
उस चंचला की चंचलता,
चपला की चपलता देख रही थी।
सद्ययौवना का यौवन ले रहा था उफान।
अंग अंग कामिनी का हो रहा था सजान।
हर लहर पर वो ले रही थी करवट।
हर बौछार उसकी लगती थी अंगड़ाई।
मेरे मुंह पर छींटें उछाल,खिलखिलाती ,
वो गजगामिनी,वो अभिमानिनी बोली,
"सखी, ऋत पिया मिलन की आई"।
सरिता 'विधुरश्मि'
नमन मंच मनपसंद विषय लेखन
दिनांकः-18-8-2019
वारः- रविवार
विधाः- हास्य व्यंग्य
शीर्षकः- चलते चलते
देखा हमने आदमी को गिरगिट से जल्द रंग बदलते।
अपनों से ही अपनों को भी देखा है जाता हुआ छलते।।
कुछ होते बहुत समझदार फटाफट ही पाला हैं बदलते।
जिस जहाज़ पर थे सवार उसी जहाज को देते पलटते।।
लोगों की आस्तीनों में देखा है जहरीले सांपो को पलते ।
काटने पर उन सापों के देखा उनका दम हुये निकलते।।
कपड़ों की भाँति हमसफर को भी हैं देते चट से बदलते।
काट देते हैं गला भी अपनों का ही खूबी से चलते चलते।।
नेता गण तो दल बदलने में पल भर की देर भी नहीं लगाते।
जहाँ मिलती हलवा पूरी उधर पहुँच के ही ग्रहण कर लेते।।
जनता, दल व देश सब को वह लक्ष्मी का वाहन हैं बनाते।
उस वाहन से उतार लक्ष्मी माता को स्वयं हैं डकार जाते।।
समस्त दल अपराधियों को खुले दिल से टिकट रहे बांटते।
करने पर अपराध जनता के स्थान पर उनकी रक्षा करते।।
बचाने को उन्हें पुलिस को वह रिपोर्ट ही नहीं लिखने देते।
जाता जो लिखाने उनके विरुध्द काम तमाम उसका करते।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दिनांकः-18-8-2019
वारः- रविवार
विधाः- हास्य व्यंग्य
शीर्षकः- चलते चलते
देखा हमने आदमी को गिरगिट से जल्द रंग बदलते।
अपनों से ही अपनों को भी देखा है जाता हुआ छलते।।
कुछ होते बहुत समझदार फटाफट ही पाला हैं बदलते।
जिस जहाज़ पर थे सवार उसी जहाज को देते पलटते।।
लोगों की आस्तीनों में देखा है जहरीले सांपो को पलते ।
काटने पर उन सापों के देखा उनका दम हुये निकलते।।
कपड़ों की भाँति हमसफर को भी हैं देते चट से बदलते।
काट देते हैं गला भी अपनों का ही खूबी से चलते चलते।।
नेता गण तो दल बदलने में पल भर की देर भी नहीं लगाते।
जहाँ मिलती हलवा पूरी उधर पहुँच के ही ग्रहण कर लेते।।
जनता, दल व देश सब को वह लक्ष्मी का वाहन हैं बनाते।
उस वाहन से उतार लक्ष्मी माता को स्वयं हैं डकार जाते।।
समस्त दल अपराधियों को खुले दिल से टिकट रहे बांटते।
करने पर अपराध जनता के स्थान पर उनकी रक्षा करते।।
बचाने को उन्हें पुलिस को वह रिपोर्ट ही नहीं लिखने देते।
जाता जो लिखाने उनके विरुध्द काम तमाम उसका करते।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
नमन"भावो के मोती"
18/08/2019
स्वतंत्र लेखन
**********************
नैन से नैन मिलाया कीजिए।
प्रीत को भी गुनगनाया कीजिए।।
याद आती हो जो मेरी भी कभी।
हाल-ए-दिल भी बताया कीजिए।।
क्यों सिर्फ आते हैं ख्वाबों में ही।
दिल में भी मेरे समाया कीजिए।।
दूर क्यों करते हैं नजरों से हमें।
कभी पलकों पे बिठाया कीजिए।।
हँसने वाले जहां में कम तो नहीं।
जख्म खुलके मत दिखाया कीजिए।।
जालिम है ये जमाना प्रेम का।
दुनिया से भी प्रेम छुपाया कीजिए।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
18/08/2019
स्वतंत्र लेखन
**********************
नैन से नैन मिलाया कीजिए।
प्रीत को भी गुनगनाया कीजिए।।
याद आती हो जो मेरी भी कभी।
हाल-ए-दिल भी बताया कीजिए।।
क्यों सिर्फ आते हैं ख्वाबों में ही।
दिल में भी मेरे समाया कीजिए।।
दूर क्यों करते हैं नजरों से हमें।
कभी पलकों पे बिठाया कीजिए।।
हँसने वाले जहां में कम तो नहीं।
जख्म खुलके मत दिखाया कीजिए।।
जालिम है ये जमाना प्रेम का।
दुनिया से भी प्रेम छुपाया कीजिए।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
भावों के मोती:
#दिनांक:18:8:2019:
#विषय:स्वेक्च्छिक लेखन:
#विधा:काव्य:
+""+ भारत के भगवान +""+
भूमि और गगन वायु और अगन,
सहित नीर अहम ये वो कारक हैं,
यही पंच तत्व हैं जीव उत्पत्ति के,
अनुपस्थिति ही इनकी संहारक है,
जीवन कारक ये सभी पांच तत्व,
भगवान शब्द में ही समाहित हैँ,
इनसे ही संचालित है यह श्रष्टि,
जीवन रूपी नदी भी प्रवाहित है,
हर बार जन्मते हैँ भारत ही में,
भगवान को भी हिंदुत्व से प्रीत है,
यहाँ पत्थर पहाड़ नदियां हैं पुजतीं,
गोधन पूजन भी यहाँ की रीत है,
जड़ चैतन्य और पशु और पक्षी में,
होती यहाँ ईस्वर के अंश की खोज,
कण कण में बसते है राघव माधव,
हर युग में मिला चक्रधर से ओज,
नारी है धरणी नर यहाँ परसोत्तम,
सद आचरण से भी समझे जाते है,
दुर्जन भी जो रावण सा बलि हो,
नर श्रेष्ठ श्रीराम से ही मारे जाते हैं,
ऋषि मुनियों की इस तपो भूमि में,
ज़ब ज़ब पहुंची है धरम को हानि,
कंस हिरण्डय ना ही रावण ही बचा,
ना बचा कोई भस्मासुर अभिमानी,
""+""रचनाकार + दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया जिला मंडला(मप्र)
#दिनांक:18:8:2019:
#विषय:स्वेक्च्छिक लेखन:
#विधा:काव्य:
+""+ भारत के भगवान +""+
भूमि और गगन वायु और अगन,
सहित नीर अहम ये वो कारक हैं,
यही पंच तत्व हैं जीव उत्पत्ति के,
अनुपस्थिति ही इनकी संहारक है,
जीवन कारक ये सभी पांच तत्व,
भगवान शब्द में ही समाहित हैँ,
इनसे ही संचालित है यह श्रष्टि,
जीवन रूपी नदी भी प्रवाहित है,
हर बार जन्मते हैँ भारत ही में,
भगवान को भी हिंदुत्व से प्रीत है,
यहाँ पत्थर पहाड़ नदियां हैं पुजतीं,
गोधन पूजन भी यहाँ की रीत है,
जड़ चैतन्य और पशु और पक्षी में,
होती यहाँ ईस्वर के अंश की खोज,
कण कण में बसते है राघव माधव,
हर युग में मिला चक्रधर से ओज,
नारी है धरणी नर यहाँ परसोत्तम,
सद आचरण से भी समझे जाते है,
दुर्जन भी जो रावण सा बलि हो,
नर श्रेष्ठ श्रीराम से ही मारे जाते हैं,
ऋषि मुनियों की इस तपो भूमि में,
ज़ब ज़ब पहुंची है धरम को हानि,
कंस हिरण्डय ना ही रावण ही बचा,
ना बचा कोई भस्मासुर अभिमानी,
""+""रचनाकार + दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया जिला मंडला(मप्र)
नमन मंच भावों के मोती
१८/०८/२०१९
लघु कविता
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि
" कवि हृदय -हे हिन्द श्रेष्ठ"
हे कवि हृदय , हे हिन्द श्रेष्ठ
क्यों विदा हो गए, हमसे तुम?
कैसे समझायें ,हम मन को
तुम दूर हो गए, हमसे क्यों ?
हे अटल इरादे के कुबेर
क्यों चले गए, हमसे यों दूर?
हे शब्द पुरोधा ,अटल हृदय,
क्यों शांत हुए, कुछ तो बोलो?
हे हिन्दू मन ,हे हिन्द श्रेष्ठ,
क्यों रूठ गए, कुछ तो बोलो?
हे भारत रतन, हे सरल हृदय,
क्यों दूर हुए, कुछ तो बोलो?
हे कुशल प्रधान ,हे देशभक्त,
हे सांसद श्रेष्ठ, हे कर्तव्य निष्ठ।
क्यों चुप हो अब, कुछ तो बोलो?
तुम गौरव थे , तुम साहस थे
तुम से तो शान हमारी थी।
तुम चले गए, एक युग ही गया
कैसे गाथा अब , गाऊं मैं ?
हैं शब्द मौन , औऱ नेत्र सजल ,
हे कवि हृदय , हे हिन्द श्रेष्ठ।
आ जाओ फिर से, लौट यहाँ।
यह वत्स पुकार रहा है अब।
अब कौन हमें साहस देगा ?
अब कौन हमें दुलराएगा ?
हे कवि हृदय , हे हिन्द श्रेष्ठ
आ जाओ ना, तुम लौट यहाँ।
देखो वह संसद मौन हुई,
गमगीन हो गया काव्य जगत।
आकर फिर से हुंकार भरो,
यह धरा पुकार रही है अब।
आ जाओ बस एक बार यहाँ।
कर जाओ फिर से धन्य हमें।।
हे कवि हृदय हे हिन्द श्रेष्ठ।
कर जाओ फिर से धन्य हमें।।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
१८/०८/२०१९
लघु कविता
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि
" कवि हृदय -हे हिन्द श्रेष्ठ"
हे कवि हृदय , हे हिन्द श्रेष्ठ
क्यों विदा हो गए, हमसे तुम?
कैसे समझायें ,हम मन को
तुम दूर हो गए, हमसे क्यों ?
हे अटल इरादे के कुबेर
क्यों चले गए, हमसे यों दूर?
हे शब्द पुरोधा ,अटल हृदय,
क्यों शांत हुए, कुछ तो बोलो?
हे हिन्दू मन ,हे हिन्द श्रेष्ठ,
क्यों रूठ गए, कुछ तो बोलो?
हे भारत रतन, हे सरल हृदय,
क्यों दूर हुए, कुछ तो बोलो?
हे कुशल प्रधान ,हे देशभक्त,
हे सांसद श्रेष्ठ, हे कर्तव्य निष्ठ।
क्यों चुप हो अब, कुछ तो बोलो?
तुम गौरव थे , तुम साहस थे
तुम से तो शान हमारी थी।
तुम चले गए, एक युग ही गया
कैसे गाथा अब , गाऊं मैं ?
हैं शब्द मौन , औऱ नेत्र सजल ,
हे कवि हृदय , हे हिन्द श्रेष्ठ।
आ जाओ फिर से, लौट यहाँ।
यह वत्स पुकार रहा है अब।
अब कौन हमें साहस देगा ?
अब कौन हमें दुलराएगा ?
हे कवि हृदय , हे हिन्द श्रेष्ठ
आ जाओ ना, तुम लौट यहाँ।
देखो वह संसद मौन हुई,
गमगीन हो गया काव्य जगत।
आकर फिर से हुंकार भरो,
यह धरा पुकार रही है अब।
आ जाओ बस एक बार यहाँ।
कर जाओ फिर से धन्य हमें।।
हे कवि हृदय हे हिन्द श्रेष्ठ।
कर जाओ फिर से धन्य हमें।।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
नमन मंच
18.8.2019
रविवार
मनपसंद विषय लेखन
अटल जी की स्मृति में
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
🌹🌹🌹
अटल तुम अटल थे,अटल ही रहोगे
मुस्कुराते रहे तुम,सफल तुम
रहोगे ।।
मधुर नेह पूरित थी ,वाणी तुम्हारी
मगर ओजमय ,गर्जना तुम रहोगे।।
जिए देश हित ,की है साहित्य सेवा
निडर थे,निडर ही रहे और रहोगे।।
सजग ,दूरदर्शी थी ,दृष्टि तुम्हारी
अमर साधना के , पुजारी रहोगे।।
राजनीति के ,कुशल चितेरे
कर्मठ, सबल , सशक्त रहोगे।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
18.8.2019
रविवार
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🌹🌹🌹
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मुस्कुराते रहे तुम,सफल तुम
रहोगे ।।
मधुर नेह पूरित थी ,वाणी तुम्हारी
मगर ओजमय ,गर्जना तुम रहोगे।।
जिए देश हित ,की है साहित्य सेवा
निडर थे,निडर ही रहे और रहोगे।।
सजग ,दूरदर्शी थी ,दृष्टि तुम्हारी
अमर साधना के , पुजारी रहोगे।।
राजनीति के ,कुशल चितेरे
कर्मठ, सबल , सशक्त रहोगे।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
नमन मंच भावों के मोती18/8/2019
बिषय स्वतंत्र लेखन
हम करते रहे उम्र भर उनका इंतजार
क्या पता था इस जहां में बिकता है प्यार
वो छलते रहे हम छलाते रहे
वो सव्जबाग हमको दिखाते रहे
हम नादां रहे वो रहे होशियार
गर कहीं राह में वो मिल जाऐंगे
दो दो सवाल हम भी कर जाऐंगे
हम इतने बुरे जो देख सके इक बार
चुपके से इस तरहा निकल जाऐंगे
मौसम की तरह यूं ही बदल जाऐंगे
हम अपना समझते रहे हर बार
ऐसी भी बेरुख़ी किस बात की
बस मेरी तो छोटी सी फरियाद थी
बिन कहे बसा लिया अलग संसार
जब जी में आए चले आना तुम
मन में जरा भी न सकुचाना तुम
तुम्हारे लिए तो खुले मेरे द्वार
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
बिषय स्वतंत्र लेखन
हम करते रहे उम्र भर उनका इंतजार
क्या पता था इस जहां में बिकता है प्यार
वो छलते रहे हम छलाते रहे
वो सव्जबाग हमको दिखाते रहे
हम नादां रहे वो रहे होशियार
गर कहीं राह में वो मिल जाऐंगे
दो दो सवाल हम भी कर जाऐंगे
हम इतने बुरे जो देख सके इक बार
चुपके से इस तरहा निकल जाऐंगे
मौसम की तरह यूं ही बदल जाऐंगे
हम अपना समझते रहे हर बार
ऐसी भी बेरुख़ी किस बात की
बस मेरी तो छोटी सी फरियाद थी
बिन कहे बसा लिया अलग संसार
जब जी में आए चले आना तुम
मन में जरा भी न सकुचाना तुम
तुम्हारे लिए तो खुले मेरे द्वार
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
नमन:"भावों के मोती मंच"
दिनांक:18/08/2019
विधा: सयाली छंद
विषय:पर्यावरण चुनौतियां
#स्वरचित
पृथ्वी
बंजर शोषण
माँगे विषेश पोषण
करके जतन
उत्पादन ।
वायु
दौडते वाहन
कंक्रीट के जंगल
उद्योग विस्तार
कम्प्यूटरीकरण ।
जल
बहता कलकल
संचित भविष्य संकल्प
गिरता जलस्तर
विचारणीय ।
औद्योगीकरण
विकसित देश
प्रदूषित पर्यावरण परिवेश
बढता तापमान
आधुनिकीकरण ।
# नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
दिनांक:18/08/2019
विधा: सयाली छंद
विषय:पर्यावरण चुनौतियां
#स्वरचित
पृथ्वी
बंजर शोषण
माँगे विषेश पोषण
करके जतन
उत्पादन ।
वायु
दौडते वाहन
कंक्रीट के जंगल
उद्योग विस्तार
कम्प्यूटरीकरण ।
जल
बहता कलकल
संचित भविष्य संकल्प
गिरता जलस्तर
विचारणीय ।
औद्योगीकरण
विकसित देश
प्रदूषित पर्यावरण परिवेश
बढता तापमान
आधुनिकीकरण ।
# नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
नमन भावों के मोती
रविवार
1 8,8,2019
स्वतंत्र लेखन
**जिंदगानी **
गहरी नदिया बनी जिंदगानी,
भटक रहा है इसमें प्राणी ।
आशा तृष्णा लोभ सतावै ,
अहंकार ने डुबोने की ठानी ।
फिरे अकडता मद में डूबा ,
नेह ममता नहीं पहचानी ।
अपनों का कुछ ख्याल न करता ,
करता रहता बस मन मानी ।
अंहकार का पथ पथरीला ,
समझ सके तो समझ ले प्राणी।
दीप प्यार का एक जला ले ,
कर ले दूर अंधेरा अभिमानी।
शुभ कर्मों का बाग लगा ले,
महक उठेगी तेरी जिंदगानी।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
रविवार
1 8,8,2019
स्वतंत्र लेखन
**जिंदगानी **
गहरी नदिया बनी जिंदगानी,
भटक रहा है इसमें प्राणी ।
आशा तृष्णा लोभ सतावै ,
अहंकार ने डुबोने की ठानी ।
फिरे अकडता मद में डूबा ,
नेह ममता नहीं पहचानी ।
अपनों का कुछ ख्याल न करता ,
करता रहता बस मन मानी ।
अंहकार का पथ पथरीला ,
समझ सके तो समझ ले प्राणी।
दीप प्यार का एक जला ले ,
कर ले दूर अंधेरा अभिमानी।
शुभ कर्मों का बाग लगा ले,
महक उठेगी तेरी जिंदगानी।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
वर्ण पिरामिड(वर्ण 1-7)
विषय:-"भारत"
(1)🇮🇳
है
शक्ति
भारत
विविधता
मंत्र एकता
प्रगति के पथ
लोकतंत्र का रथ
(2)🇮🇳
है
गुरु
भारत
देव भूमि
गंगा पावन
गीता देती ज्ञान
लोकतंत्र महान
(3)🇮🇳
माँ
गोद
भारत
पले जन
खेलते धर्म
वीर लेते जन्म
पूजनीय चरण
(4)🇮🇳
हा
खिले
संस्कृति
वीर भूमि
बीज संस्कारी
भिन्न धर्म क्यारी
भारत फुलवारी
(5)🇮🇳
है
स्तुत्य
भारत
बेमिसाल
गौ, गंगा, गीता
धर्मों की सरिता
आदर्श राम-सीता
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
नमन "भावों के मोती"🙏
वर्ण पिरामिड(वर्ण 1-7)
विषय:-"भारत"
(1)🇮🇳
है
शक्ति
भारत
विविधता
मंत्र एकता
प्रगति के पथ
लोकतंत्र का रथ
(2)🇮🇳
है
गुरु
भारत
देव भूमि
गंगा पावन
गीता देती ज्ञान
लोकतंत्र महान
(3)🇮🇳
माँ
गोद
भारत
पले जन
खेलते धर्म
वीर लेते जन्म
पूजनीय चरण
(4)🇮🇳
हा
खिले
संस्कृति
वीर भूमि
बीज संस्कारी
भिन्न धर्म क्यारी
भारत फुलवारी
(5)🇮🇳
है
स्तुत्य
भारत
बेमिसाल
गौ, गंगा, गीता
धर्मों की सरिता
आदर्श राम-सीता
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
शुभ साँझ
ग़ज़ल
द्वितीय प्रयास
उनकी आँखों का हर हर्फ़ हम जाने
बेशक वह हमको माने या न माने ।।
दास्तां ये अनूठी प्यार इक तरफा
नही हो कभी भी यह हम अनुमाने ।।
पर मुफ़लिसी के जब दौर हों तो
कौन किसको कहाँ यहाँ पहचाने ।।
ये मुफ़लिसी मार देती इंसान को
खोना पड़े अपने अपनों के तराने ।।
दामन में ही छुपाये रहे वह दर्द
आज हम अब वह दर्द है बखाने ।।
पल में पांसा पल्टे पल में हवायें
अब हम हर पल हर लम्हा सनमाने ।।
दरख्तों के पंछी भी कभी वहाँ पर
आयँ जहाँ गाये उनने कभी गाने ।।
बस यूँ ही ये ग़ज़ल गाऊँ मैं 'शिवम'
शायद उन तक पहुँचे स्वर के खजाने ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/08/2019ै
ग़ज़ल
द्वितीय प्रयास
उनकी आँखों का हर हर्फ़ हम जाने
बेशक वह हमको माने या न माने ।।
दास्तां ये अनूठी प्यार इक तरफा
नही हो कभी भी यह हम अनुमाने ।।
पर मुफ़लिसी के जब दौर हों तो
कौन किसको कहाँ यहाँ पहचाने ।।
ये मुफ़लिसी मार देती इंसान को
खोना पड़े अपने अपनों के तराने ।।
दामन में ही छुपाये रहे वह दर्द
आज हम अब वह दर्द है बखाने ।।
पल में पांसा पल्टे पल में हवायें
अब हम हर पल हर लम्हा सनमाने ।।
दरख्तों के पंछी भी कभी वहाँ पर
आयँ जहाँ गाये उनने कभी गाने ।।
बस यूँ ही ये ग़ज़ल गाऊँ मैं 'शिवम'
शायद उन तक पहुँचे स्वर के खजाने ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/08/2019ै
नमन भावों के मोती
आयोजन-दृश्य/श्रव्य
तिथि-18अगस्त2019
वार -रविवार
विधा-ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
चंद किस्से अपने ख़्वाबों के सुनाने आया हूँ,
ज़ख्म तन्हा रातों के तुमको दिखाने आया हूँ।
मुद्दतों से रोक रक्खा था जिन्हें इन आँखों में,
अपने अश्क़ों का वही दरिया बहाने आया हूँ।
चाँद, जुगनू, तितलियों, फ़ूलों से कह दे तो कोई,
उनसे उनकी हर अदा को ही चुराने आया हूँ।
किस ख़ुमारी में लिखे थे ये तो बस जाने ख़ुदा,
सामने तेरे लिखे वो ख़त जलाने आया हूँ।
जा के बतलाये कोई तो इन सियासतदानों को,
मैं फ़रेबी वो मुखौटा अब हटाने आया हूँ।
जो चढ़ाया था कभी इस अपनी रूह-ओ-जान पर,
वो ही रंग - ए - इश्क़ मैं तेरा मिटाने आया हूँ।
छत न कपड़ा पेट खाली उसपे शब का भी कहर,
गुरबतों में तर सुकूँ सूरत दिखाने आया हूँ।
मैंने जिसको था छुपाया इस ज़माने से कभी,
हाल-ए-दिल अपना वही तुमको सुनाने आया हूँ।
मिल ही जाए आज मेरे सब गुनाहों की सज़ा,
दे के खंजर तुमको ही 'रण' आज़माने आया हूँ।
पूर्णतया स्वरचित,स्वप्रमाणित
सर्वाधिकार सुरक्षित
अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)
आयोजन-दृश्य/श्रव्य
तिथि-18अगस्त2019
वार -रविवार
विधा-ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
चंद किस्से अपने ख़्वाबों के सुनाने आया हूँ,
ज़ख्म तन्हा रातों के तुमको दिखाने आया हूँ।
मुद्दतों से रोक रक्खा था जिन्हें इन आँखों में,
अपने अश्क़ों का वही दरिया बहाने आया हूँ।
चाँद, जुगनू, तितलियों, फ़ूलों से कह दे तो कोई,
उनसे उनकी हर अदा को ही चुराने आया हूँ।
किस ख़ुमारी में लिखे थे ये तो बस जाने ख़ुदा,
सामने तेरे लिखे वो ख़त जलाने आया हूँ।
जा के बतलाये कोई तो इन सियासतदानों को,
मैं फ़रेबी वो मुखौटा अब हटाने आया हूँ।
जो चढ़ाया था कभी इस अपनी रूह-ओ-जान पर,
वो ही रंग - ए - इश्क़ मैं तेरा मिटाने आया हूँ।
छत न कपड़ा पेट खाली उसपे शब का भी कहर,
गुरबतों में तर सुकूँ सूरत दिखाने आया हूँ।
मैंने जिसको था छुपाया इस ज़माने से कभी,
हाल-ए-दिल अपना वही तुमको सुनाने आया हूँ।
मिल ही जाए आज मेरे सब गुनाहों की सज़ा,
दे के खंजर तुमको ही 'रण' आज़माने आया हूँ।
पूर्णतया स्वरचित,स्वप्रमाणित
सर्वाधिकार सुरक्षित
अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)
भा.,नमन साथियों
तिथि ः18/8/2019/रविवार
बिषय ः# बंधन,रिश्ते,#
विधाःः काव्य ः
रिश्ते नाते सभी ईश्वर बनाता।
मानव बंधकर लाभ उठाता।
निस्वार्थ भाव तो ठीक वरना
जग में बिल्कुल नहीं लुभाता।
है प्रेमभाव तो बंधन में बंधते।
रिश्ते नाते कभी नहीं दरकते।
गर रुपया पैसा बीच में आया,
सच रिश्ते नाते टूटन में छंटते।
बिना स्वार्थ कहाँ कोई रिश्ते।
यहाँ वैर भाव के बढते रिश्ते।
सभी रक्षाबंधन भले मना लें,
नहीँ प्रेमभाव के मिलते रिश्ते।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्री राम राम जी
तिथि ः18/8/2019/रविवार
बिषय ः# बंधन,रिश्ते,#
विधाःः काव्य ः
रिश्ते नाते सभी ईश्वर बनाता।
मानव बंधकर लाभ उठाता।
निस्वार्थ भाव तो ठीक वरना
जग में बिल्कुल नहीं लुभाता।
है प्रेमभाव तो बंधन में बंधते।
रिश्ते नाते कभी नहीं दरकते।
गर रुपया पैसा बीच में आया,
सच रिश्ते नाते टूटन में छंटते।
बिना स्वार्थ कहाँ कोई रिश्ते।
यहाँ वैर भाव के बढते रिश्ते।
सभी रक्षाबंधन भले मना लें,
नहीँ प्रेमभाव के मिलते रिश्ते।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्री राम राम जी
मंच को नमन
दिनांक -18/8/2019
विषय-स्वतंत्र
हम सभी स्वतंत्र है
अभिमान होना चाहिए
देश के हर वीर का
सम्मान होना चाहिए
देश के संविधान का
ख़ूब वंदन होना चाहिए
सरहद के हर सैनिक का
अभिनंदन होना चाहिए
अपने देश की माटी ही
भाल चंदन होना चाहिए
तिरंगे की आन बान शान में
हमें नतमस्तक होना चाहिए
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
दिनांक -18/8/2019
विषय-स्वतंत्र
हम सभी स्वतंत्र है
अभिमान होना चाहिए
देश के हर वीर का
सम्मान होना चाहिए
देश के संविधान का
ख़ूब वंदन होना चाहिए
सरहद के हर सैनिक का
अभिनंदन होना चाहिए
अपने देश की माटी ही
भाल चंदन होना चाहिए
तिरंगे की आन बान शान में
हमें नतमस्तक होना चाहिए
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
नमन "भावों के मोती"
दिनांक :-18/8/19.
"स्वतन्त्र लेखन"
************
"गीत"
******
कैसे गाऊं गीत सुरीले.....?
जब टप - टप बरसे बरसाती।
रहे 'विवशता' बदन छुपाती।
भूखा 'शैशव' बिलख रहा पर,
ममता की , है सूखी छाती।
करुण क्रंदन सुन निज सुत का,
माता छुप - छुप रोए जाती।
बचपन के हों बने आसरे, कूड़े के मेहराबी टीले.....
कैसे गाऊँ गीत सुरीले.....?
रमुआ निकले काम ढूंढने,
रूखे - सूखे बांध निवाले।
मंजिल दस चढ़ने को तत्पर,
करता खुद को राम हवाले।
लौटे खाली हाथ शाम को,
भूखे बैठे सब घरवाले।
बाट जोह पथराई आंखें मुखड़े ज़र्द दिखे जब पीले।.....
कैसे गाऊँ गीत सुरीले......?
जेठ दुपहरी वखटै खेत में,
फिर भी तन पर फटी लंगोटी।
भरता पेट जहां सारे का,
खुद की थाली में ना रोटी।
सिर पर भारी कर्ज सेठ का,
द्वार खड़ा फटकारै सोटी।
छाती में हों गड़े हुए जब साहूकार के दांत नुकीले।....
कैसे गाऊँ गीत सुरीले....?
मजदूरी ना मिले जवां को,
कैसे अपना जीवन काटें।
बूढ़े मात - पिता घर बैठे,
कैसे उनके दुख को बांटें।
विकट दुखों में करी पढ़ाई,
क्या 'डिग्री' पर चटनी चाटें।
कैसे बढें शिखर को छूलें,पथ में कांटे बिछे कंटीले।...
कैसे गाऊँ गीत सुरीले......?
मौज़ उड़ाते बैठ निठल्ले,
कर्म-निष्ठ फ़ाका करते हों।
कागज़ ओढ़ भविष्य देश के,
अपने सिर ढांपा करते हों।
ऊंचे पद पर बैठ 'पहरुए',
निर्धन हक काटा करते हों।
उनके दरपर लटक रहे हों,जगमग बंदनवार सजीले....
कैसे गाऊँ गीत सुरीले....?
दिनांक :-18/8/19.
"स्वतन्त्र लेखन"
************
"गीत"
******
कैसे गाऊं गीत सुरीले.....?
जब टप - टप बरसे बरसाती।
रहे 'विवशता' बदन छुपाती।
भूखा 'शैशव' बिलख रहा पर,
ममता की , है सूखी छाती।
करुण क्रंदन सुन निज सुत का,
माता छुप - छुप रोए जाती।
बचपन के हों बने आसरे, कूड़े के मेहराबी टीले.....
कैसे गाऊँ गीत सुरीले.....?
रमुआ निकले काम ढूंढने,
रूखे - सूखे बांध निवाले।
मंजिल दस चढ़ने को तत्पर,
करता खुद को राम हवाले।
लौटे खाली हाथ शाम को,
भूखे बैठे सब घरवाले।
बाट जोह पथराई आंखें मुखड़े ज़र्द दिखे जब पीले।.....
कैसे गाऊँ गीत सुरीले......?
जेठ दुपहरी वखटै खेत में,
फिर भी तन पर फटी लंगोटी।
भरता पेट जहां सारे का,
खुद की थाली में ना रोटी।
सिर पर भारी कर्ज सेठ का,
द्वार खड़ा फटकारै सोटी।
छाती में हों गड़े हुए जब साहूकार के दांत नुकीले।....
कैसे गाऊँ गीत सुरीले....?
मजदूरी ना मिले जवां को,
कैसे अपना जीवन काटें।
बूढ़े मात - पिता घर बैठे,
कैसे उनके दुख को बांटें।
विकट दुखों में करी पढ़ाई,
क्या 'डिग्री' पर चटनी चाटें।
कैसे बढें शिखर को छूलें,पथ में कांटे बिछे कंटीले।...
कैसे गाऊँ गीत सुरीले......?
मौज़ उड़ाते बैठ निठल्ले,
कर्म-निष्ठ फ़ाका करते हों।
कागज़ ओढ़ भविष्य देश के,
अपने सिर ढांपा करते हों।
ऊंचे पद पर बैठ 'पहरुए',
निर्धन हक काटा करते हों।
उनके दरपर लटक रहे हों,जगमग बंदनवार सजीले....
कैसे गाऊँ गीत सुरीले....?
नमन "भावो के मोती"
18/08/2019
स्वतंत्र लेखन के तहत...
"आहिस्ता-आहिस्ता"
**********************
आहिस्ता-आहिस्ता कोई बदल रहा था,
मेरे मन में ऐसा खयाल आ रहा था,
इन खयालों में मैं इस कदर उलझी हुई थी,
वो है कि दूर जा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।
आहिस्ता-आहिस्ता कोई दूर जा रहा था,
वो नैनों के आईने में जो बसा हुआ था,
ये सोच-सोच मैं घबराई हुई थी,
और वो है कि मुझे बार-बार रुला रहा था।
आहिस्ता-आहिस्ता कोई भूला रहा था,
ये बातें सीने में यूँ अगन लगा रहा था,
जिसके खातिर मैं जग से पराई हुई थी,
रूह को छूकर अब वो मुझे तड़पा रहा था।
आहिस्ता-आहिस्ता कोई ज़ुदा हो रहा था,
यादें उसकी मुझे रातों को जगा रहा था,
उसके लिए मैं जो सपनें सजाई हुई थी,
अब सपनों को बेरंग करके जला रहा था।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल ।।
18/08/2019
स्वतंत्र लेखन के तहत...
"आहिस्ता-आहिस्ता"
**********************
आहिस्ता-आहिस्ता कोई बदल रहा था,
मेरे मन में ऐसा खयाल आ रहा था,
इन खयालों में मैं इस कदर उलझी हुई थी,
वो है कि दूर जा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।
आहिस्ता-आहिस्ता कोई दूर जा रहा था,
वो नैनों के आईने में जो बसा हुआ था,
ये सोच-सोच मैं घबराई हुई थी,
और वो है कि मुझे बार-बार रुला रहा था।
आहिस्ता-आहिस्ता कोई भूला रहा था,
ये बातें सीने में यूँ अगन लगा रहा था,
जिसके खातिर मैं जग से पराई हुई थी,
रूह को छूकर अब वो मुझे तड़पा रहा था।
आहिस्ता-आहिस्ता कोई ज़ुदा हो रहा था,
यादें उसकी मुझे रातों को जगा रहा था,
उसके लिए मैं जो सपनें सजाई हुई थी,
अब सपनों को बेरंग करके जला रहा था।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल ।।
सादर नमन
'उम्मीदों के पंख'
पंख फैला कर उड़ना चाहूँ,
दिल के भावों को लिखना चाहूँ,
रोके ना रूके भाव का सागर,
जोड़ लफ्जों को मैं गीत बनाऊँ,
**
उम्मीदों के पंख लगाकर,
भावों को मैं कलम बनाकर,
लाचारी को काट गिराऊँ,
स्वाभिमान को तलवार बनाकर,
**
हौंसलों को मेरे उड़ान मिली,
सफलताओं की कलियाँ खिली,
दिखलाना है कुछ करके,
दुनियाँ से है इजाजत मिली
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
18/8/19
रविवार
'उम्मीदों के पंख'
पंख फैला कर उड़ना चाहूँ,
दिल के भावों को लिखना चाहूँ,
रोके ना रूके भाव का सागर,
जोड़ लफ्जों को मैं गीत बनाऊँ,
**
उम्मीदों के पंख लगाकर,
भावों को मैं कलम बनाकर,
लाचारी को काट गिराऊँ,
स्वाभिमान को तलवार बनाकर,
**
हौंसलों को मेरे उड़ान मिली,
सफलताओं की कलियाँ खिली,
दिखलाना है कुछ करके,
दुनियाँ से है इजाजत मिली
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
18/8/19
रविवार
नमन"भावों के मोती"
💓💓💓💓💓💓
स्वतंत्र लेखन
भीगा तन मन आँखें हैं नम लगती है बरसात हुई ।
आज़र्दाह रहा अब जीवन आमादा जिद् आज जगी।।
एक ज़रा सा दिल टूटा है फिर भी अब आवाज नहीं ।
साज बजा कर इसको बहलाता ऐसा अब राग नहीं ।।
तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं ।
आज हमारे दिल से पूछो रातों की अब बात नयी।।
आँखों में सपनों की डोरी सजती है दिन रात यही।
सोचूँ हर पल तुमको ऐसे साजन है
या चाँद तुही ।।
साथ रहा मेरे ख्वाहिश बन दिन रातें हमराज वही ।
आज यहाँ फिर जिक्र रहा हिज्र शबे की दास्तान कहीं ।।
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
💓💓💓💓💓💓
स्वतंत्र लेखन
भीगा तन मन आँखें हैं नम लगती है बरसात हुई ।
आज़र्दाह रहा अब जीवन आमादा जिद् आज जगी।।
एक ज़रा सा दिल टूटा है फिर भी अब आवाज नहीं ।
साज बजा कर इसको बहलाता ऐसा अब राग नहीं ।।
तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं ।
आज हमारे दिल से पूछो रातों की अब बात नयी।।
आँखों में सपनों की डोरी सजती है दिन रात यही।
सोचूँ हर पल तुमको ऐसे साजन है
या चाँद तुही ।।
साथ रहा मेरे ख्वाहिश बन दिन रातें हमराज वही ।
आज यहाँ फिर जिक्र रहा हिज्र शबे की दास्तान कहीं ।।
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
जय माँ शारदा
...नमन भावों के मोती...
दि. - 18.08.19 रविवार
स्वतंत्र सृजन अंतर्गत मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित....
**********************************
ए दिले नादाँ बता कैसे तुझे समझाऊँ मैं |
उलझनें जो हैं तेरी कैसे उन्हें सुलझाऊँ मैं ||
दर्द के मंज़र यहाँ हर ओर आते हैं नज़र,
जख़्म ये तेरे भला किसको यहाँ दिखलाऊँ मैं |
राह ये आसाँ नहीं इस ज़िंदगी की है मगर,
बिन चले तू ही बता कैसे कहीं रुक जाऊँ मैं |
मंज़िलों की चाहतों ने कुछ किया ऐसा असर,
मुश्किलों के सामने भी ना कभी झुक पाऊँ मैं |
क्या करेगा ये ज़माना कद्र अपने हुन्र का,
गीत अपनी प्रीत के क्यों कर यहाँ फिर गाऊँ मैं |
सीख देती ज़िंदगी ये खुश रहो हर हाल में,
हार हो या जीत हो हर हाल में मुस्काऊँ मैं |
है बहुत आसाँ अरे नादाँ समझ ले बात ये,
ज़िंदगी का फलसफा ये सुन तुझे बतलाऊँ मैं |
*********************************
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
...नमन भावों के मोती...
दि. - 18.08.19 रविवार
स्वतंत्र सृजन अंतर्गत मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित....
**********************************
ए दिले नादाँ बता कैसे तुझे समझाऊँ मैं |
उलझनें जो हैं तेरी कैसे उन्हें सुलझाऊँ मैं ||
दर्द के मंज़र यहाँ हर ओर आते हैं नज़र,
जख़्म ये तेरे भला किसको यहाँ दिखलाऊँ मैं |
राह ये आसाँ नहीं इस ज़िंदगी की है मगर,
बिन चले तू ही बता कैसे कहीं रुक जाऊँ मैं |
मंज़िलों की चाहतों ने कुछ किया ऐसा असर,
मुश्किलों के सामने भी ना कभी झुक पाऊँ मैं |
क्या करेगा ये ज़माना कद्र अपने हुन्र का,
गीत अपनी प्रीत के क्यों कर यहाँ फिर गाऊँ मैं |
सीख देती ज़िंदगी ये खुश रहो हर हाल में,
हार हो या जीत हो हर हाल में मुस्काऊँ मैं |
है बहुत आसाँ अरे नादाँ समझ ले बात ये,
ज़िंदगी का फलसफा ये सुन तुझे बतलाऊँ मैं |
*********************************
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
भावों के मोती दिनांक 18/8/19
स्वपसंद
छंदमुक्त कविता
भारत अखंड
है भारत अखंड
न झुका है
न झुकेगा
खत्म की
धारा 370
एक देश है
एक ध्वज होगा
है एक से
विचार सब के
कश्मीर से
कन्याकुमारी तक
है पहचान
भारत की
है कर्तव्य
हर नागरिक का
रहें मिलजुल कर
बना रहे सदा
सद्भाव, प्यार
और भाईचारा
भारतवासियों में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
स्वपसंद
छंदमुक्त कविता
भारत अखंड
है भारत अखंड
न झुका है
न झुकेगा
खत्म की
धारा 370
एक देश है
एक ध्वज होगा
है एक से
विचार सब के
कश्मीर से
कन्याकुमारी तक
है पहचान
भारत की
है कर्तव्य
हर नागरिक का
रहें मिलजुल कर
बना रहे सदा
सद्भाव, प्यार
और भाईचारा
भारतवासियों में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
भावों के मोती..
दिनाँक - 18/08/2019..
विषय - बेटी का आगमन..
स्वरचित...
गूंजी किलकारी घर आई..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
गर्भ गर्त से बाहर आकर..
जग मे ली पहली अंगड़ाई..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
माँ पिता की आँख का तारा..
बन कर खूब धूम मचायी..
लक्ष्य बनाकर जीवन का फिर..
बचपन से खूब करी पढ़ाई..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
किया सब हासिल जो भी चाहा..
जीवन को दी एक नयी उचाई..
बीते अभी कुछ ही दिन थे कि..
समय हुआ करने का बिदाई...
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
कल तक थी आंगन की रानी ..
अब वो बिटिया हुई परायी...
थी बेटी,बहन, अब पत्नी,बहु बन
रिश्ते की नयी डोर सजायी..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
उसी डोर मे बंधके सिमटकर..
जीवन की जानी, कटु सच्चाई..
अपने सपने करके समर्पित..
पति सेवा की, मन ना सकुचायी..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
देकर वंशज कुल दीपक वो..
माँ बनकर नयी दुनिया सजाई..
अंधकारमय अपने जीवन मे..
खुशियों की एक लौ जलायी..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
है काल चक्र जीवन का ऐसा..
जिसने कभी ना हिम्मत हारी...
जीवन भर करे समर्पण खुद का ..
फिर भी कहते है वो अबला नारी..
विनय गौतम (विनम्र)
दिनाँक - 18/08/2019..
विषय - बेटी का आगमन..
स्वरचित...
गूंजी किलकारी घर आई..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
गर्भ गर्त से बाहर आकर..
जग मे ली पहली अंगड़ाई..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
माँ पिता की आँख का तारा..
बन कर खूब धूम मचायी..
लक्ष्य बनाकर जीवन का फिर..
बचपन से खूब करी पढ़ाई..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
किया सब हासिल जो भी चाहा..
जीवन को दी एक नयी उचाई..
बीते अभी कुछ ही दिन थे कि..
समय हुआ करने का बिदाई...
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
कल तक थी आंगन की रानी ..
अब वो बिटिया हुई परायी...
थी बेटी,बहन, अब पत्नी,बहु बन
रिश्ते की नयी डोर सजायी..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
उसी डोर मे बंधके सिमटकर..
जीवन की जानी, कटु सच्चाई..
अपने सपने करके समर्पित..
पति सेवा की, मन ना सकुचायी..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
देकर वंशज कुल दीपक वो..
माँ बनकर नयी दुनिया सजाई..
अंधकारमय अपने जीवन मे..
खुशियों की एक लौ जलायी..
वो नन्ही परी सवेरा लायी..
है काल चक्र जीवन का ऐसा..
जिसने कभी ना हिम्मत हारी...
जीवन भर करे समर्पण खुद का ..
फिर भी कहते है वो अबला नारी..
विनय गौतम (विनम्र)
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