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ब्लॉग संख्या :-481
नमन मंच भावों के मोती
तिथि-19/08/2019
वार-सोमवार
विषय-मुलाकात
**********************
अब तो मेरी ये सारी कायनात हो गई,
जब से तेरी -मेरी मुलाकात हो गई!
थी पतझड़ सी जिंदगी कभी मेरी यहां,
तुम आई गई तो मानो बरसात हो गई!
कुछ ख्वाब थे आंखों में अधूरे अधूरे से ,
वो सारी मन की हर पूरी बात हो गई !
हमसफ़र बनकर आई जिस दिन से तुम,
मेरी सुखद शाम और सुहानी रात हो गई!
थी जिंदगी के दहलीज पर केवल तन्हाई,
"नील"अब तो सारी दुनियां बारात हो गई!
स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
तिथि-19/08/2019
वार-सोमवार
विषय-मुलाकात
**********************
अब तो मेरी ये सारी कायनात हो गई,
जब से तेरी -मेरी मुलाकात हो गई!
थी पतझड़ सी जिंदगी कभी मेरी यहां,
तुम आई गई तो मानो बरसात हो गई!
कुछ ख्वाब थे आंखों में अधूरे अधूरे से ,
वो सारी मन की हर पूरी बात हो गई !
हमसफ़र बनकर आई जिस दिन से तुम,
मेरी सुखद शाम और सुहानी रात हो गई!
थी जिंदगी के दहलीज पर केवल तन्हाई,
"नील"अब तो सारी दुनियां बारात हो गई!
स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
नमन मंच,भांवो के मोती
विषय मुलाकात
विधा लघुकविता
19 अगस्त 2019 ,सोमवार
मुलाकात है ज्ञान सुधा रस
हँसी खुशी से हम सब पीवें।
स्वहित तो जग सब ही जीते
बन परोपकारी जीवन जीयें।
मुलाकात हो विद्वानों से
खुशहाली जीवन मे भर दे।
पारस ज्ञान मिंले जीवन मे
अंध लोह को कंचन कर दे।
मुलाकात जीवन का सुख है
तन मन में नव ऊर्जा भर दे।
पीड़ा आपदा विपदाओं को
तुरत फुरत जीवन से हर ले।
दूजा नाम अगर जीवन का
मुलाकात हर नव पल होता।
नर वही पाता जग जीवन
जो करनी बीज नित बोता।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय मुलाकात
विधा लघुकविता
19 अगस्त 2019 ,सोमवार
मुलाकात है ज्ञान सुधा रस
हँसी खुशी से हम सब पीवें।
स्वहित तो जग सब ही जीते
बन परोपकारी जीवन जीयें।
मुलाकात हो विद्वानों से
खुशहाली जीवन मे भर दे।
पारस ज्ञान मिंले जीवन मे
अंध लोह को कंचन कर दे।
मुलाकात जीवन का सुख है
तन मन में नव ऊर्जा भर दे।
पीड़ा आपदा विपदाओं को
तुरत फुरत जीवन से हर ले।
दूजा नाम अगर जीवन का
मुलाकात हर नव पल होता।
नर वही पाता जग जीवन
जो करनी बीज नित बोता।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
मन मंच भावों के मोती।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
मुलाकात
हाइकु लेखन
1
स्नेह मिलन
सुख दुःख बांटना
हल्का हो मन
2
रिश्ते टिकते
सम्बन्ध बना रहे
हो मुलाकात
3
प्रेम रहते
मुलाकात होने से
दिल मिलते
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
मुलाकात
हाइकु लेखन
1
स्नेह मिलन
सुख दुःख बांटना
हल्का हो मन
2
रिश्ते टिकते
सम्बन्ध बना रहे
हो मुलाकात
3
प्रेम रहते
मुलाकात होने से
दिल मिलते
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
19/8/2019
द्वितीय प्रस्तुति
मुलाकात
जो हुई तुमसे मुलाकात सखी।
रोते रहे गले मिलकर।
कुछ कह नहीं सकी तुम सखी।
कुछ नहीं कह सके हम भी मिलकर।
बचपन का था प्रेम हमारा।
साथ खेल कूदकर बड़े हुए।
फिर चली गई तुम साजन घर।
हम भी ससुराल चले गए।
इतने दिनों की बीच की दूरी।
हमने काटी तुम्हें याद कर कर।
फिर जो हुई मुलाकात तुमसे।
रोते विसुरते बीते ये पल।
जाओ अपने घर,सुख से रहना।
मुझे भी याद कर लेना कभी।
गर संभव हो तो आकर घर मेरे।
मुलाकात कर लेना कभी।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
द्वितीय प्रस्तुति
मुलाकात
जो हुई तुमसे मुलाकात सखी।
रोते रहे गले मिलकर।
कुछ कह नहीं सकी तुम सखी।
कुछ नहीं कह सके हम भी मिलकर।
बचपन का था प्रेम हमारा।
साथ खेल कूदकर बड़े हुए।
फिर चली गई तुम साजन घर।
हम भी ससुराल चले गए।
इतने दिनों की बीच की दूरी।
हमने काटी तुम्हें याद कर कर।
फिर जो हुई मुलाकात तुमसे।
रोते विसुरते बीते ये पल।
जाओ अपने घर,सुख से रहना।
मुझे भी याद कर लेना कभी।
गर संभव हो तो आकर घर मेरे।
मुलाकात कर लेना कभी।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
विषय-- मुलाकात
विधा--🌷ग़ज़ल🌷
प्रथम प्रयास
तड़फा दिल जिनसे मुलाकात को
बीतीं मुद्दतें ....अब उस बात को ।।
वक्त ने रोकीं ...वह सारी राहें
मिलाया मुझको झंझावात को ।।
चक्रव्यूह की तरह घेरे मुझको
कैसे भूलूँ किस्मत की घात को ।।
उठ गयी महफिल कौन सुने
देखे अब इस दिले नाशाद को ।।
वो मुलाकातें यादें रह गयीं
भूला न दिल उस आघात को ।।
नेह जल से सींची जाए प्रीत
बिन माली सूखे दिखे पात को ।।
दिल का दर्द अब कौन सुने 'शिवम'
उठ उठ कर लिखूँ अब मैं रात को ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/08/2019
विधा--🌷ग़ज़ल🌷
प्रथम प्रयास
तड़फा दिल जिनसे मुलाकात को
बीतीं मुद्दतें ....अब उस बात को ।।
वक्त ने रोकीं ...वह सारी राहें
मिलाया मुझको झंझावात को ।।
चक्रव्यूह की तरह घेरे मुझको
कैसे भूलूँ किस्मत की घात को ।।
उठ गयी महफिल कौन सुने
देखे अब इस दिले नाशाद को ।।
वो मुलाकातें यादें रह गयीं
भूला न दिल उस आघात को ।।
नेह जल से सींची जाए प्रीत
बिन माली सूखे दिखे पात को ।।
दिल का दर्द अब कौन सुने 'शिवम'
उठ उठ कर लिखूँ अब मैं रात को ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/08/2019
भावों के मोती
बिषय- मुलाकात
फुर्सत निकाल कर कभी तो
खुद से मुलाकात किया करो।
औरों से मिलने मिलाने में ही
यूं पूरा वक्त न गंवाया करो।।
कभी तो सुनो दिल की बात
कभी तो करो खुद से बात
कभी तो कहो अपने जज्बात
कलम कागज से राफ्ता करो।
कुछ न जाने वाला साथ तेरे
किस बात का अहंकार है रे।
औरों के दर्द को महसूस कर
कुछ तो सत्कर्म किया करो।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- मुलाकात
फुर्सत निकाल कर कभी तो
खुद से मुलाकात किया करो।
औरों से मिलने मिलाने में ही
यूं पूरा वक्त न गंवाया करो।।
कभी तो सुनो दिल की बात
कभी तो करो खुद से बात
कभी तो कहो अपने जज्बात
कलम कागज से राफ्ता करो।
कुछ न जाने वाला साथ तेरे
किस बात का अहंकार है रे।
औरों के दर्द को महसूस कर
कुछ तो सत्कर्म किया करो।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
नमन भावों के मोती🙏
19/8/2019
विषय - मुलाक़ात
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
एक दूसरे को टटोलने से बेहतर है
दिल से दिल की मुलाकात कर ली जाए
पहली मुलाकात गर यादगार बनानी है तो पहले अपने ही भीतर दूसरे को जी लिया जाए
मगर ये तभी मुमकिन है जब खुद से भेंट का पहले इंतज़ाम कर लिया जाए..
तुम्हारी रग रग में बह रही है मधुर रागिनी
पहले ध्यान से इस संगीत को सुन लिया जाए
मेरे खयाल से यही बाज़िब है कि
इस जहाँ से मिलने से पहले
खुद से खुद की मुलाकात कर ली जाए
सुबह का मंज़र सुहाना है दिलकश नज़ारा है
चलो,सबसे पहले खुदा की इबादत कर ली जाए ..!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
19/8/2019
विषय - मुलाक़ात
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
एक दूसरे को टटोलने से बेहतर है
दिल से दिल की मुलाकात कर ली जाए
पहली मुलाकात गर यादगार बनानी है तो पहले अपने ही भीतर दूसरे को जी लिया जाए
मगर ये तभी मुमकिन है जब खुद से भेंट का पहले इंतज़ाम कर लिया जाए..
तुम्हारी रग रग में बह रही है मधुर रागिनी
पहले ध्यान से इस संगीत को सुन लिया जाए
मेरे खयाल से यही बाज़िब है कि
इस जहाँ से मिलने से पहले
खुद से खुद की मुलाकात कर ली जाए
सुबह का मंज़र सुहाना है दिलकश नज़ारा है
चलो,सबसे पहले खुदा की इबादत कर ली जाए ..!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
बूंदों में बरसातो मे इन काली ठंडी रातों में।
तुम याद मुझे आते हो बीती गुजरी बातों में।
सिहरन दौडी तन में है अकुलाहट सी मन में।
नहीं भूलते वे क्षण जब हाथ दिया हाथों में।
जब पवन चले पुरवाई याद तुम्हारी आई।
पास नही ढूंढू तुमको फूलों कलियों पातों में।
वो छुवन नई नवेली खुश्बू थी संग सहेली।
खो गया देख मैं तुमको सपनो की बारातो में।
नयनो की मदिरा तेरी छलकाए प्यास है मेरी।
अब मन नहीं भरता मेरा दो चार मुलाकातों में।
विपिन सोहल. स्वरचित
तुम याद मुझे आते हो बीती गुजरी बातों में।
सिहरन दौडी तन में है अकुलाहट सी मन में।
नहीं भूलते वे क्षण जब हाथ दिया हाथों में।
जब पवन चले पुरवाई याद तुम्हारी आई।
पास नही ढूंढू तुमको फूलों कलियों पातों में।
वो छुवन नई नवेली खुश्बू थी संग सहेली।
खो गया देख मैं तुमको सपनो की बारातो में।
नयनो की मदिरा तेरी छलकाए प्यास है मेरी।
अब मन नहीं भरता मेरा दो चार मुलाकातों में।
विपिन सोहल. स्वरचित
भावों के मोती
सादर प्रणाम
🌹🌹🌹🌹🌹
भावों के मोती द्वारा मुलाकात
नहीं भेदभाव चाहे कोई जातपात
जो झेल सकता हैं जलालत
वहीं कर सकता है सियासत
भाई उनसे मत करिए अदावत
नहीं तो पहुचा देगें वो अदालत
सैन्य शक्ति बड़ा लीजिए आप भी
दूजा लड़ने की ना करे हिमाकात
नफरत करते हैं जो भ्रष्टाचारियों से
वहीं अपने वतन से करते मोहब्बत
ऐसे नेताओं को सलाम है मेरा
जो लिख रहें देश की नई इबारत
===स्वरचित ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
19/08/2019
सादर प्रणाम
🌹🌹🌹🌹🌹
भावों के मोती द्वारा मुलाकात
नहीं भेदभाव चाहे कोई जातपात
जो झेल सकता हैं जलालत
वहीं कर सकता है सियासत
भाई उनसे मत करिए अदावत
नहीं तो पहुचा देगें वो अदालत
सैन्य शक्ति बड़ा लीजिए आप भी
दूजा लड़ने की ना करे हिमाकात
नफरत करते हैं जो भ्रष्टाचारियों से
वहीं अपने वतन से करते मोहब्बत
ऐसे नेताओं को सलाम है मेरा
जो लिख रहें देश की नई इबारत
===स्वरचित ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
19/08/2019
दि- 19-8-19
विषय- मुलाकात
सादर मंच को समर्पित --
🍏🌺 गीतिका 🌺🍏
***************************
🌸 मुलाकात 🌸
छंद- वाचिक स्रग्विणी
मापनी-212 212 212 212
समांत- आने , पदांत- लगा
☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀
वक्त के साथ गम मुस्कराने लगा ।
अब मुलाकात से प्यार आने लगा ।।
सिलसिला यह चला ,खो गये जो कभी ,
मीत थे सामने , मन लुभाने लगा ।
आँधियाँ ले गयीं , बाग की रौनकें ,
पीय दीदार से फाग छाने लगा ।
जी रहे थे कभी प्यार की प्यास में ,
छा गयी वह खुशी घर सुहाने लगा ।
जिन्दगी में खिली भोर की लालिमा ,
मन मयूरा नये राग गाने लगा ।।
🌹🍀☀🌺🌷
🍊🍀**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
विषय- मुलाकात
सादर मंच को समर्पित --
🍏🌺 गीतिका 🌺🍏
***************************
🌸 मुलाकात 🌸
छंद- वाचिक स्रग्विणी
मापनी-212 212 212 212
समांत- आने , पदांत- लगा
☀☀☀☀☀☀☀☀☀☀
वक्त के साथ गम मुस्कराने लगा ।
अब मुलाकात से प्यार आने लगा ।।
सिलसिला यह चला ,खो गये जो कभी ,
मीत थे सामने , मन लुभाने लगा ।
आँधियाँ ले गयीं , बाग की रौनकें ,
पीय दीदार से फाग छाने लगा ।
जी रहे थे कभी प्यार की प्यास में ,
छा गयी वह खुशी घर सुहाने लगा ।
जिन्दगी में खिली भोर की लालिमा ,
मन मयूरा नये राग गाने लगा ।।
🌹🍀☀🌺🌷
🍊🍀**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
नमन मंच भावों के मोती
19/8/2019
बिषय ,,मुलाकात,,
क्या कहूँ मैं बात उस रात की
एक झलक मैं सुनाऊं मुलाकात की
वो आए कुछ इस तरहा टहलते हुए
कुछ सभंलते हुए कुछ मचलते हुए
मैं समझ भी न पाई कि क्या बात थी ।।
हाथ अपना वो आगे बढ़ाने लगे
मोहनी डालकर मुश्कराने लगे
दिल में खुशी लेकर आई बारात थी
सामने कह न सके नजरों से कह डाली सब
कोई पर्दा न होगा मेरा उनसे अब
वो समझ गए मन में क्या बात थी
जब आ ही गए फिर शरमाना क्या
पकड़ी कलाइ तो घबराना क्या
राजदार हूँ उनके जज्बात की
इक तेरे लिए सब कुछ छोड़ दूं
जग के झूठे बंधन तोड़ दूं
प्रभु तेरे हूं तेरे साथ थी
ऐ मेरी और कृष्ण की मुलाकात थी।।
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
19/8/2019
बिषय ,,मुलाकात,,
क्या कहूँ मैं बात उस रात की
एक झलक मैं सुनाऊं मुलाकात की
वो आए कुछ इस तरहा टहलते हुए
कुछ सभंलते हुए कुछ मचलते हुए
मैं समझ भी न पाई कि क्या बात थी ।।
हाथ अपना वो आगे बढ़ाने लगे
मोहनी डालकर मुश्कराने लगे
दिल में खुशी लेकर आई बारात थी
सामने कह न सके नजरों से कह डाली सब
कोई पर्दा न होगा मेरा उनसे अब
वो समझ गए मन में क्या बात थी
जब आ ही गए फिर शरमाना क्या
पकड़ी कलाइ तो घबराना क्या
राजदार हूँ उनके जज्बात की
इक तेरे लिए सब कुछ छोड़ दूं
जग के झूठे बंधन तोड़ दूं
प्रभु तेरे हूं तेरे साथ थी
ऐ मेरी और कृष्ण की मुलाकात थी।।
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
नमन"भावो के मोती"
19/08/2019
"मुलाकात"
**********************
जिंदगी में रहा हरपल गमों का ही डेरा
मन के आँगन में दु:ख के बादल ने आ घेरा
ऐ काश! खुशी संग मेरी मुलाकात हो जाए
होठों पे मीठी मुस्कान खिल जाए।
गर्दिश में जब से है किस्मत का सितारा
मन के आशियां में है अंधेरों का बसेरा
ऐ काश!उजालों संग मेरी मुलाकात हो जाए
दूनिया हमारी भी रौशन हो जाए।
बिछुड़ गया जो था साथी सफर में हमारा
रहा न अब किसी का साथ हमारा
ऐ काश!साथी संग मुलाकात हो जाए
जीवन की राहों में हमसफर मिल जाए।
गुम हो गया है जाने कहाँ दिल हमारा
क्या मालूम किसके पास रह गया बेचारा
ऐ काश! मेरे दिल संग मुलाकात हो जाए
फिर वही दिन और रात सी बात हो जाए।
काले बादल के दामन में लिपटी रजनी
खो गई है जो चँदा की चाँदनी
ऐ काश! चाँद संग मुलाकात हो जाए
पूनम की रात को चाँदनी खिल जाए।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
19/08/2019
"मुलाकात"
**********************
जिंदगी में रहा हरपल गमों का ही डेरा
मन के आँगन में दु:ख के बादल ने आ घेरा
ऐ काश! खुशी संग मेरी मुलाकात हो जाए
होठों पे मीठी मुस्कान खिल जाए।
गर्दिश में जब से है किस्मत का सितारा
मन के आशियां में है अंधेरों का बसेरा
ऐ काश!उजालों संग मेरी मुलाकात हो जाए
दूनिया हमारी भी रौशन हो जाए।
बिछुड़ गया जो था साथी सफर में हमारा
रहा न अब किसी का साथ हमारा
ऐ काश!साथी संग मुलाकात हो जाए
जीवन की राहों में हमसफर मिल जाए।
गुम हो गया है जाने कहाँ दिल हमारा
क्या मालूम किसके पास रह गया बेचारा
ऐ काश! मेरे दिल संग मुलाकात हो जाए
फिर वही दिन और रात सी बात हो जाए।
काले बादल के दामन में लिपटी रजनी
खो गई है जो चँदा की चाँदनी
ऐ काश! चाँद संग मुलाकात हो जाए
पूनम की रात को चाँदनी खिल जाए।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन भावों के मोती
दिनांक-१९/८/२०१९
शीर्षक-मुलाकात"
मुझमें था अभिमान बड़ा
"मैं श्रेष्ठ" का अहम भरा
ढोती रही अभिमानी मन
नहीं मिलती किसी से खुले मन।
नहीं भूलता तुमसे वह आखिरी मुलाकात
तुमने सीखाये जीवन का पाठ
क्यों करना कोई अभिमान
चार दिन की यह जिंदगानी
क्यों तू इतनी अभिमानी।?
छोड़ दो अभिमान सदा
जीवन होगा खुशहाल ज्यादा
सीखा कर मुझे जीवन का पाठ
छोड़ गई तू नश्वर संसार।
गर तू जीवित होती
नहीं समझती तुम्हारी बातें
न जाने कितने मिले वो बिछूड़े
तुम्हारे सम सखी न दूजा मिले।
"चार दिन की यह जिंदगानी"
मैंने इसे पंच लाइन मानी
छोड़कर सारे अभिमान
समझ गई जीवन का सार।
चार दिन की यह जिंदगानी
मिलजुल कर रहना सदा,
तुम्हारी वह आखिरी मुलाकात
सीखा गई मुझे जीवन का पाठ।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक-१९/८/२०१९
शीर्षक-मुलाकात"
मुझमें था अभिमान बड़ा
"मैं श्रेष्ठ" का अहम भरा
ढोती रही अभिमानी मन
नहीं मिलती किसी से खुले मन।
नहीं भूलता तुमसे वह आखिरी मुलाकात
तुमने सीखाये जीवन का पाठ
क्यों करना कोई अभिमान
चार दिन की यह जिंदगानी
क्यों तू इतनी अभिमानी।?
छोड़ दो अभिमान सदा
जीवन होगा खुशहाल ज्यादा
सीखा कर मुझे जीवन का पाठ
छोड़ गई तू नश्वर संसार।
गर तू जीवित होती
नहीं समझती तुम्हारी बातें
न जाने कितने मिले वो बिछूड़े
तुम्हारे सम सखी न दूजा मिले।
"चार दिन की यह जिंदगानी"
मैंने इसे पंच लाइन मानी
छोड़कर सारे अभिमान
समझ गई जीवन का सार।
चार दिन की यह जिंदगानी
मिलजुल कर रहना सदा,
तुम्हारी वह आखिरी मुलाकात
सीखा गई मुझे जीवन का पाठ।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
मन भावों के मोती मंच 🙏
दिनांक - 19/08 /2019
विषय - मुलाकात
मुलाकात
चल पड़ा है आज मन,
बीते पलों के गाँव में।
चाहता है बैठना यह,
यादों के उस छाँव में।
सजे हुए हैं आँखों में,
वे पल सुहाने आज भी।
स्मृतियाँ भी ला देती हैं,
गुदगुदाती लाज सी।
हर ओर खिलती चाँदनी,
अन्तर में उस साँझ थी।
अनछुई सी दौड़ती,
रग - रग में कोई राग थी।
चुगली सी करती लगी थी,
नीरवता वह रात की।
अमर बेल सी आज भी,
लिपटी यादें हैं मुलाकात की।
पिघलता हुआ सा अन्तर,
अजब था वह सिलसिला।
थे शब्द होठों में सिले,
मुखर मौन था हो चला।
स्व रचित
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण (बिहार)
दिनांक - 19/08 /2019
विषय - मुलाकात
मुलाकात
चल पड़ा है आज मन,
बीते पलों के गाँव में।
चाहता है बैठना यह,
यादों के उस छाँव में।
सजे हुए हैं आँखों में,
वे पल सुहाने आज भी।
स्मृतियाँ भी ला देती हैं,
गुदगुदाती लाज सी।
हर ओर खिलती चाँदनी,
अन्तर में उस साँझ थी।
अनछुई सी दौड़ती,
रग - रग में कोई राग थी।
चुगली सी करती लगी थी,
नीरवता वह रात की।
अमर बेल सी आज भी,
लिपटी यादें हैं मुलाकात की।
पिघलता हुआ सा अन्तर,
अजब था वह सिलसिला।
थे शब्द होठों में सिले,
मुखर मौन था हो चला।
स्व रचित
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण (बिहार)
नमन भावों के मोती
विषय--मुलाकात
दिनांक--19-8-19
विधा --गीतिका
दो चार दिन में फिर से मुलाकात हो गई।
चाहा नहीं था हमने मगर बात हो गई ।
कुदरत का करिश्मा ये बहुत ही भला लगा,
तुम भगती जा रही थीं करामात हो गई ।
रोशनी बन के छाया चेहरे भरा नूर ,
दिन सा हुआ एहसास और रात खो गई।
जो नजर झुकी झुकी थी चुपके से जब उठी,
एक तीर सा लगा औ, मुई घात हो गई ।
मुकद्दर स्वयं 'हितैषी ',ऐसे हुआ गुलाम,
सब कुछ था पास मेरे, मगर मात हो गई ।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय--मुलाकात
दिनांक--19-8-19
विधा --गीतिका
दो चार दिन में फिर से मुलाकात हो गई।
चाहा नहीं था हमने मगर बात हो गई ।
कुदरत का करिश्मा ये बहुत ही भला लगा,
तुम भगती जा रही थीं करामात हो गई ।
रोशनी बन के छाया चेहरे भरा नूर ,
दिन सा हुआ एहसास और रात खो गई।
जो नजर झुकी झुकी थी चुपके से जब उठी,
एक तीर सा लगा औ, मुई घात हो गई ।
मुकद्दर स्वयं 'हितैषी ',ऐसे हुआ गुलाम,
सब कुछ था पास मेरे, मगर मात हो गई ।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
नमन मंच
विषय :---मुलाकात
विधा--मुक्त
दिनांक :--19 / 08 / 19
--------------------------------
सितारों की महफ़िल
सजी है
चाँदनी भी देखो
खिली-खिली है
आ अब तो आ
अपनी ..........
एक मुलाकात
बाकी है
देख
अब तो
घिर आईं
काली घटायें
रिमझिम बूँदे भी
बरसने लगी हैं
आ अब तो आ
अपनी एक मुलाकात
बाकी है अभी
ठंडी हवाओं में
लहराता आँचल
सुनी निगाहों का
सूना सावन
बिन बरसे ही
दे रहा दुहाई है
आ अब तो आ
अपनी एक मुलाकात
बाकी है अभी
जबसे गया तू
छोड़ के मुझको
तबसे बस इक
आस लगी है
जब से तुमने आस
विषय :---मुलाकात
विधा--मुक्त
दिनांक :--19 / 08 / 19
--------------------------------
सितारों की महफ़िल
सजी है
चाँदनी भी देखो
खिली-खिली है
आ अब तो आ
अपनी ..........
एक मुलाकात
बाकी है
देख
अब तो
घिर आईं
काली घटायें
रिमझिम बूँदे भी
बरसने लगी हैं
आ अब तो आ
अपनी एक मुलाकात
बाकी है अभी
ठंडी हवाओं में
लहराता आँचल
सुनी निगाहों का
सूना सावन
बिन बरसे ही
दे रहा दुहाई है
आ अब तो आ
अपनी एक मुलाकात
बाकी है अभी
जबसे गया तू
छोड़ के मुझको
तबसे बस इक
आस लगी है
जब से तुमने आस
भावों के मोती:
#दिनांक:19:8:2019:
#विषय:मुलाक़ात:
#विधा:काव्य:
+"""+मुलाक़ात+"""+
मिलकर तुमसे जो भूले ना भुलाती,
वो खुशनुमा रातों की वो मुलाक़ात,
कुछ तुमने कही कुछ तुमसे सुनी,
वो ख्वाबों में सजी यादों की बारात,
फिर पुनर्मिलन के सपने सच होते,
फिर होती वैसी ही रिमझिम बरसात,
फिर गीत नया गाते हम मिलजुल,
मिलती जीवन को एक नई सौगात,
फिर चल पड़ते मिलन के सिलसिले,
तन्हाइयों में ना चुभती बैरन सी रात,
फिर लौट आती महफिलों की रौनक़,
उदासी का आलम ना चुभते जज़्बात,
सफर जिंदगी का उमंगो में कटता,
सहरे में भी सजतीं रंगीन हर रात,
जो तुम मुस्कुराते हम खिलखिलाते,
नज़ारे भी जहाँ के हसीन नजर आते,
कहने को कुछ तो अब भी बाकी हैं,
सुनने को तरसे हम दिन और रात,
शायद इस जनम में भी लिखी हो,
तुमसे फिर हमारी अगली मुलाक़ात,
*"""*रचनाकार दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया मंडला (मप्र)
लगाई
तब दिल में प्यास
जगी है
आ अब तो आ
सदा के लिए
अपनी आखरी मुलाकात
तेरे फिर ना जाने
के लिए बाकी है
अभी।
डा. नीलम
#दिनांक:19:8:2019:
#विषय:मुलाक़ात:
#विधा:काव्य:
+"""+मुलाक़ात+"""+
मिलकर तुमसे जो भूले ना भुलाती,
वो खुशनुमा रातों की वो मुलाक़ात,
कुछ तुमने कही कुछ तुमसे सुनी,
वो ख्वाबों में सजी यादों की बारात,
फिर पुनर्मिलन के सपने सच होते,
फिर होती वैसी ही रिमझिम बरसात,
फिर गीत नया गाते हम मिलजुल,
मिलती जीवन को एक नई सौगात,
फिर चल पड़ते मिलन के सिलसिले,
तन्हाइयों में ना चुभती बैरन सी रात,
फिर लौट आती महफिलों की रौनक़,
उदासी का आलम ना चुभते जज़्बात,
सफर जिंदगी का उमंगो में कटता,
सहरे में भी सजतीं रंगीन हर रात,
जो तुम मुस्कुराते हम खिलखिलाते,
नज़ारे भी जहाँ के हसीन नजर आते,
कहने को कुछ तो अब भी बाकी हैं,
सुनने को तरसे हम दिन और रात,
शायद इस जनम में भी लिखी हो,
तुमसे फिर हमारी अगली मुलाक़ात,
*"""*रचनाकार दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया मंडला (मप्र)
लगाई
तब दिल में प्यास
जगी है
आ अब तो आ
सदा के लिए
अपनी आखरी मुलाकात
तेरे फिर ना जाने
के लिए बाकी है
अभी।
डा. नीलम
शुभ साँझ
नमन मंच
विषय--मुलाकात
विधा--🌷ग़ज़ल🌷
द्वितीय प्रयास
तुम अपना चश्मा सँभालो हम दिल
सजने दो प्यार की फिर से महफिल ।।
होने दो फिर से प्यार की बातें
छिड़ने दो रूबाई और ग़ज़ल ।।
हम तो ख्वाब में मिलने के आदी
हकीकत में नही किस्मत की पहल ।।
तस्वीर है .. दिल में करूँ शायरी
आशिक पुराना किस्मत की दखल ।।
मेरे लिए सदा ..पूनम की रात
मिला साथ तुम्हारा रब की फ़ज़ल ।।
आइये कभी इस ग़रीबखाने पर
इन्तज़ार रूह को जब से अज़ल ।।
बनाली 'शिवम' शायरी की किताब
खरीद रखी उस वास्ते इक रहल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/08/2019
नमन मंच
विषय--मुलाकात
विधा--🌷ग़ज़ल🌷
द्वितीय प्रयास
तुम अपना चश्मा सँभालो हम दिल
सजने दो प्यार की फिर से महफिल ।।
होने दो फिर से प्यार की बातें
छिड़ने दो रूबाई और ग़ज़ल ।।
हम तो ख्वाब में मिलने के आदी
हकीकत में नही किस्मत की पहल ।।
तस्वीर है .. दिल में करूँ शायरी
आशिक पुराना किस्मत की दखल ।।
मेरे लिए सदा ..पूनम की रात
मिला साथ तुम्हारा रब की फ़ज़ल ।।
आइये कभी इस ग़रीबखाने पर
इन्तज़ार रूह को जब से अज़ल ।।
बनाली 'शिवम' शायरी की किताब
खरीद रखी उस वास्ते इक रहल ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/08/2019
नमन भावों के मंच को
विषय : मुलाकात
विधा : छंदमुक्त नवगीत
दिनांक : 19/08/2019
मुलाकात का असर
भुला ना सकेंगे तेरी बात का असर ,
ऐसा हो गया है मुलाकात का असर ।
ऐसा हो ------------------------- असर ।
तुम ही तो रहती हो ख्यालों में मेरे ,
टूट भी ना पाएं तेरी यादों के घेरे ।
मेरे दिलो दिमाग में तुम ही तुम हो ,
तुमसे ही रौशन मेरे सांझ सवेरे ।
क्या यही है इश्क की सौगात का असर,
ऐसा हो गया है मुलाकात का असर ।
ऐसा हो ------------------------- असर ।
अब अपना लगे ना कोई तेरे सिवा ,
दिल चाहे करना फिर से गुनाह ।
करने लगा है दिल हमसे बगावत,
संग तेरे रहना वो तो चाहे सदा ।
उतरेगा कैसे यह जज्बात का असर,
ऐसा हो गया है मुलाकात का असर ।
ऐसा हो गया है मुलाकात का असर ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विषय : मुलाकात
विधा : छंदमुक्त नवगीत
दिनांक : 19/08/2019
मुलाकात का असर
भुला ना सकेंगे तेरी बात का असर ,
ऐसा हो गया है मुलाकात का असर ।
ऐसा हो ------------------------- असर ।
तुम ही तो रहती हो ख्यालों में मेरे ,
टूट भी ना पाएं तेरी यादों के घेरे ।
मेरे दिलो दिमाग में तुम ही तुम हो ,
तुमसे ही रौशन मेरे सांझ सवेरे ।
क्या यही है इश्क की सौगात का असर,
ऐसा हो गया है मुलाकात का असर ।
ऐसा हो ------------------------- असर ।
अब अपना लगे ना कोई तेरे सिवा ,
दिल चाहे करना फिर से गुनाह ।
करने लगा है दिल हमसे बगावत,
संग तेरे रहना वो तो चाहे सदा ।
उतरेगा कैसे यह जज्बात का असर,
ऐसा हो गया है मुलाकात का असर ।
ऐसा हो गया है मुलाकात का असर ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
नमन भावों के मोती
आज का विषय, मुलाकात
दिनांक 1 9,8,2019,
वार, सोमवार
कभी मुलाकात अगर ईमान से हो,
हमारी जो जीवन में इक भी बार।
बजह जरूर बेवफाई की मैं पूछूँगी,
और पूछूँगी जुदाई वाली भी बात ।
उसका छुप छुप कर रहने का मकसद,
और उससे होने वाले सब ही लाभ ।
आखिर कंगाली में क्या सुख मिलता ,
भाता नहीं क्या उसको धन का साथ ।
उसे राजनीति से लगता है डर क्यों,
नहीं टिक पाते क्यों नेताओं के पास ।
एक मुलाकात मुहब्बत से भी है जरूरी ,
डपटूँगी ये क्यों रंग बदलती है बारम्बार ।
क्यों ये शर्म हया को नहीं रखती पास में ,
लज्जा वाली ही क्यों करती रहती है बात ।
क्यों न चलो हम सब ढूँढ़ें अपने आप को ,
कर लें खुद की हम क्यों न खुद से बात ।
बिछड़ गया है जो दिल रोज की आपाधापी में ,
हम कभी तो उससे भी कर लें दो पल की मुलाकात ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
आज का विषय, मुलाकात
दिनांक 1 9,8,2019,
वार, सोमवार
कभी मुलाकात अगर ईमान से हो,
हमारी जो जीवन में इक भी बार।
बजह जरूर बेवफाई की मैं पूछूँगी,
और पूछूँगी जुदाई वाली भी बात ।
उसका छुप छुप कर रहने का मकसद,
और उससे होने वाले सब ही लाभ ।
आखिर कंगाली में क्या सुख मिलता ,
भाता नहीं क्या उसको धन का साथ ।
उसे राजनीति से लगता है डर क्यों,
नहीं टिक पाते क्यों नेताओं के पास ।
एक मुलाकात मुहब्बत से भी है जरूरी ,
डपटूँगी ये क्यों रंग बदलती है बारम्बार ।
क्यों ये शर्म हया को नहीं रखती पास में ,
लज्जा वाली ही क्यों करती रहती है बात ।
क्यों न चलो हम सब ढूँढ़ें अपने आप को ,
कर लें खुद की हम क्यों न खुद से बात ।
बिछड़ गया है जो दिल रोज की आपाधापी में ,
हम कभी तो उससे भी कर लें दो पल की मुलाकात ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
नमन भावों के मोती
19/08/19
विषय - मुलाक़ात
"""""""""""""""""""""""""
मुलाक़ात
"""""""'''''"""""""""""""""""""""""""""""""""
हम तो रोज तुमसे सपनों में मुलाक़ात करते हैं
उस हर एक मुलाक़ात को याद हम रखते हैं
भले ही तेरी जुदाई से डरकर आह भरते हैं
फिर भी तेरी मुलाक़ात का इंतजार करते हैं
हम मुहब्बत भी तुमसे बहुत करते हैं
भले ही आप बेरुखी दिखाया करते हैं
राह में मुलाक़ात की खुशी छिपाया करते हैं
फिर भी तेरे इश्क में दुनिया भुलाया करते हैं
लोग मुझे पागल पागल चिल्लाया करते हैं
तेरी एक मुलाक़ात को तरसा करते हैं
बेगुनाह होकर भी गुनाह करते है
फिर भी हम गम नहीं करते हैं |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
19/08/19
विषय - मुलाक़ात
"""""""""""""""""""""""""
मुलाक़ात
"""""""'''''"""""""""""""""""""""""""""""""""
हम तो रोज तुमसे सपनों में मुलाक़ात करते हैं
उस हर एक मुलाक़ात को याद हम रखते हैं
भले ही तेरी जुदाई से डरकर आह भरते हैं
फिर भी तेरी मुलाक़ात का इंतजार करते हैं
हम मुहब्बत भी तुमसे बहुत करते हैं
भले ही आप बेरुखी दिखाया करते हैं
राह में मुलाक़ात की खुशी छिपाया करते हैं
फिर भी तेरे इश्क में दुनिया भुलाया करते हैं
लोग मुझे पागल पागल चिल्लाया करते हैं
तेरी एक मुलाक़ात को तरसा करते हैं
बेगुनाह होकर भी गुनाह करते है
फिर भी हम गम नहीं करते हैं |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
नमन "भावों के मोती"
१९-८-१९
"मुलाकात "🌹
मेरी नजरों को तलाश, एक इंसान की है।
आरजू सिर्फ उससे ,एक मुलाकात की है।।
मुलाकात तो हुई पर, बात कभी नहीं की है।
वह खामोश, मैं खामोश ,बस यही मुलाकात की है।।
ना कह पाए कभी ,जिसके लिए मुलाकात की है।।
थोड़ा जमाने का डर, थोड़ा अपनों के सम्मान की है।।
खोए हैं ख्वाबों में, बस यही एक भूल की है।।
ना किया इजहार कभी, जिसके लिए मुलाकात की है।।
स्वरचित
वीणा वैष्णव
कांकरोली
१९-८-१९
"मुलाकात "🌹
मेरी नजरों को तलाश, एक इंसान की है।
आरजू सिर्फ उससे ,एक मुलाकात की है।।
मुलाकात तो हुई पर, बात कभी नहीं की है।
वह खामोश, मैं खामोश ,बस यही मुलाकात की है।।
ना कह पाए कभी ,जिसके लिए मुलाकात की है।।
थोड़ा जमाने का डर, थोड़ा अपनों के सम्मान की है।।
खोए हैं ख्वाबों में, बस यही एक भूल की है।।
ना किया इजहार कभी, जिसके लिए मुलाकात की है।।
स्वरचित
वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमन
भावों के मोती
१९/८/२०१९
विषय-मुलाकात
खुद की खुद से ,
कभी मुलाकात न हुई।
देखते रहे दुनिया को,
खुद से कभी बात नहीं हुई।
दूसरों को जानने में
निकल गई उम्र,
खुद को कभी जानने की
याद न रही।
खुद से मुलाकात करते,
तो होता अलग जीवन।
जीवन को कभी नहीं लगते,
चिंताओं के घुन।
न सोचा न विचारा,
न कभी खुद पर दिया ध्यान,
बांटते रहे सदा दूसरों को ज्ञान।
अपने को आंकते रहे
दूसरों की नजर से।
हम खुद क्या है,
न कह सके फक्र से।
भावों के मोती
१९/८/२०१९
विषय-मुलाकात
खुद की खुद से ,
कभी मुलाकात न हुई।
देखते रहे दुनिया को,
खुद से कभी बात नहीं हुई।
दूसरों को जानने में
निकल गई उम्र,
खुद को कभी जानने की
याद न रही।
खुद से मुलाकात करते,
तो होता अलग जीवन।
जीवन को कभी नहीं लगते,
चिंताओं के घुन।
न सोचा न विचारा,
न कभी खुद पर दिया ध्यान,
बांटते रहे सदा दूसरों को ज्ञान।
अपने को आंकते रहे
दूसरों की नजर से।
हम खुद क्या है,
न कह सके फक्र से।
नमन मंच को
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 19/08/2019
विषय :- मुलाकात
आज के विषय पर एक पुरानी रचना...
आ मिल बैठें कुछ बात करें...
छोटी सी एक मुलाकात करें...
अनंत व्यस्तता भरे पलों से..
कुछ खुशनुमा पल आबाद करें..
आ मिल बैठें कुछ बात करें..
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें...
कुछ यूँ रिश्तों का आगाज करें...
चंद पल मिले है फुरसत के आज..
आ एक दूजे को आत्मसात करें...
आ मिल बैठें कुछ बात करें...
दैनिक कामकाज से लेलें थोड़ी सी रजा...
आ लेलें जिंदगी का थोड़ा सा मजा..
आ हँस लें थोड़ा सा..
गीत प्यार के गुनगुना लें..
आ मिल बैठें कुछ बात करें..
कुछ पुरानी यादें...
कुछ पुरानी बातें...
कह दें एक दूजे से..
प्रीत की ऊँची नीची राहों पर...
चलें थामकर एक दूजे का हाथ..
लेकर संकल्प जन्म-जन्म का साथ..
आ मिल बैठें कुछ बात करें...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
समय रहते करलो,
खुद से मुलाकात।
जाग उठेगा खुद ही,
अटूट आत्मविश्वास।
क्या कर सकते थे,
क्या करते रहे उम्र भर।
पछतावा न रहे शेष
जब बीत जाए ये उम्र।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 19/08/2019
विषय :- मुलाकात
आज के विषय पर एक पुरानी रचना...
आ मिल बैठें कुछ बात करें...
छोटी सी एक मुलाकात करें...
अनंत व्यस्तता भरे पलों से..
कुछ खुशनुमा पल आबाद करें..
आ मिल बैठें कुछ बात करें..
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें...
कुछ यूँ रिश्तों का आगाज करें...
चंद पल मिले है फुरसत के आज..
आ एक दूजे को आत्मसात करें...
आ मिल बैठें कुछ बात करें...
दैनिक कामकाज से लेलें थोड़ी सी रजा...
आ लेलें जिंदगी का थोड़ा सा मजा..
आ हँस लें थोड़ा सा..
गीत प्यार के गुनगुना लें..
आ मिल बैठें कुछ बात करें..
कुछ पुरानी यादें...
कुछ पुरानी बातें...
कह दें एक दूजे से..
प्रीत की ऊँची नीची राहों पर...
चलें थामकर एक दूजे का हाथ..
लेकर संकल्प जन्म-जन्म का साथ..
आ मिल बैठें कुछ बात करें...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
समय रहते करलो,
खुद से मुलाकात।
जाग उठेगा खुद ही,
अटूट आत्मविश्वास।
क्या कर सकते थे,
क्या करते रहे उम्र भर।
पछतावा न रहे शेष
जब बीत जाए ये उम्र।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
नमन् भावों के मोती
19अगस्त19
विधा हाइकु
विषय मुलाकात
मुलाकात को
पपीहा निहारता-
स्वाती की बूंदें
चाँद-चकोरी
मुलाकात को खड़े-
प्यार की डोर
भूलती नहीं
पुरानी मुलाक़ातें-
कॉलेज यादें
प्यार अधूरा
बिसरीं मुलाक़ातें-
नयन नीर
प्रीतम आया
तिरंगे में लिपटा-
मुलाक़ात को
ख्वाहिश पूरी-
सफ़ल मुलाक़ात
रोल मॉडल
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
19अगस्त19
विधा हाइकु
विषय मुलाकात
मुलाकात को
पपीहा निहारता-
स्वाती की बूंदें
चाँद-चकोरी
मुलाकात को खड़े-
प्यार की डोर
भूलती नहीं
पुरानी मुलाक़ातें-
कॉलेज यादें
प्यार अधूरा
बिसरीं मुलाक़ातें-
नयन नीर
प्रीतम आया
तिरंगे में लिपटा-
मुलाक़ात को
ख्वाहिश पूरी-
सफ़ल मुलाक़ात
रोल मॉडल
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
नमन मंच,
दिनांक :- 19/8/19.
विषय :- "मुलाकात"
यूँ तो हर दिल में कोई दर्द बसा रहता है।
हर लगा जख़्म कोई राज़ बयाँ करता है।
ये है मुमकिन कि कहीं हो न कोई ताज महल,
फिर भी हर दिल में इक मुमताज़ रहा करता है।
खु़दा गर तीरे - नज़र, बख़्से हैं हसीनों को,
दिले - फ़ौलाद भी आशिक को दिया करता है।
वो मगरूर तो समझा ना मुलाकातों का सबब,
दिले-नादान,बेचारा दुआऐ-वस्ल किया करता है।
********************************
दिनांक :- 19/8/19.
विषय :- "मुलाकात"
यूँ तो हर दिल में कोई दर्द बसा रहता है।
हर लगा जख़्म कोई राज़ बयाँ करता है।
ये है मुमकिन कि कहीं हो न कोई ताज महल,
फिर भी हर दिल में इक मुमताज़ रहा करता है।
खु़दा गर तीरे - नज़र, बख़्से हैं हसीनों को,
दिले - फ़ौलाद भी आशिक को दिया करता है।
वो मगरूर तो समझा ना मुलाकातों का सबब,
दिले-नादान,बेचारा दुआऐ-वस्ल किया करता है।
********************************
नमन-भावो के मोती
विषय-मुलाकात
दिनांक-19/08/2019
तपती चांदनी
सितारों के आंसू
प्रभात के मुलाकात की...
काली घटाएं
रिमझिम बरसात
हवाओं के जज्बात के....मुलाकात
ये उदासी ,ये थकन
दर्द है की चुभन
बंद कमरे की घुटन
चांदनी बारात की.......मुलाकात
सजती उमंगे
खयालों के अंधेरे में
हर रात एक मुलाकात की.....
ओसों की बूंदे
सूर्य के अरुणोदय की
सुप्रभात का सौगात
बस एक मुलाकात........
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-मुलाकात
दिनांक-19/08/2019
तपती चांदनी
सितारों के आंसू
प्रभात के मुलाकात की...
काली घटाएं
रिमझिम बरसात
हवाओं के जज्बात के....मुलाकात
ये उदासी ,ये थकन
दर्द है की चुभन
बंद कमरे की घुटन
चांदनी बारात की.......मुलाकात
सजती उमंगे
खयालों के अंधेरे में
हर रात एक मुलाकात की.....
ओसों की बूंदे
सूर्य के अरुणोदय की
सुप्रभात का सौगात
बस एक मुलाकात........
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
नमन मंच
19.8.2019
सोमवार
शीर्षक -‘ मुलाक़ात ‘
विधा -मुक्तक
मुलाक़ात
(1)
बिन #मुलाक़ात ही दिल मिले मन खिले
खिल गए मन कमल,झील में अधखिले ,
चाँद की चाँदनी का असर यह हुआ
शांत -शीतल हृदय मिल गए बिन मिले ।।
आभासी दुनिया की ,है #मुलाक़ात आभासी
घंटों बतियाते हैं फिर भी ,
मिटती नहीं उदासी ,
फ़ोन, फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप से दुनियाँ मुट्ठी में
भीग नहीं पाता मन निर्मल रिश्ते हैं मधुमासी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार
19.8.2019
सोमवार
शीर्षक -‘ मुलाक़ात ‘
विधा -मुक्तक
मुलाक़ात
(1)
बिन #मुलाक़ात ही दिल मिले मन खिले
खिल गए मन कमल,झील में अधखिले ,
चाँद की चाँदनी का असर यह हुआ
शांत -शीतल हृदय मिल गए बिन मिले ।।
आभासी दुनिया की ,है #मुलाक़ात आभासी
घंटों बतियाते हैं फिर भी ,
मिटती नहीं उदासी ,
फ़ोन, फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप से दुनियाँ मुट्ठी में
भीग नहीं पाता मन निर्मल रिश्ते हैं मधुमासी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार
सादर नमन
विषय- मुलाकात
दिल को तड़पाएँ ,
तेरी हर बात,
कैसे भूलूँ मैं,
तुझसे वो मुलाकात,
सिंदुरी शाम का वो आलम,
पपीहों की वो गुँजन,
पा सामिप्य तेरा,
घबरा रहा था मन
चाँदनी रात में,
तुम बने चाँद मेरे,
सुर्ख गाल हो गए थे,
पाके तेरी बाहों के घेरे,
उस मुलाकात के वो लम्हें,
जीवन में मुस्कान देते हैं,
आती है जब याद तुम्हारी,
आँखों को हम मूँद लेते हैं।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
19/8/19
सोमवार
विषय- मुलाकात
दिल को तड़पाएँ ,
तेरी हर बात,
कैसे भूलूँ मैं,
तुझसे वो मुलाकात,
सिंदुरी शाम का वो आलम,
पपीहों की वो गुँजन,
पा सामिप्य तेरा,
घबरा रहा था मन
चाँदनी रात में,
तुम बने चाँद मेरे,
सुर्ख गाल हो गए थे,
पाके तेरी बाहों के घेरे,
उस मुलाकात के वो लम्हें,
जीवन में मुस्कान देते हैं,
आती है जब याद तुम्हारी,
आँखों को हम मूँद लेते हैं।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
19/8/19
सोमवार
जय माँ शारदा
सादर नमन भावों के मोती
दि. - 19.08.19
विषय- मुलाकात
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित...
------------------------------------------------------
दिल से दिल की #मुलाकात कर लें चलो |
पास बैठो ज़रा बात कर लें चलो ||
दूरियाँ क्यों भला अब रहें दरम्याँ,
ठीक अब तो ये हालात कर लें चलो |
गलतियाँ किससे क्या हो गईं भूलकर,
दूर सारे हिसाबात कर लें चलो |
ज़िंदगी के ये पल हैं बड़े कीमती,
खूबसूरत ये सौगात कर लें चलो |
मीत बन कर सभी के रहें हम #सरस,
यूँ हसीं अपने जज़्बात कर लें चलो |
------------------------------------------------
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
सादर नमन भावों के मोती
दि. - 19.08.19
विषय- मुलाकात
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित...
------------------------------------------------------
दिल से दिल की #मुलाकात कर लें चलो |
पास बैठो ज़रा बात कर लें चलो ||
दूरियाँ क्यों भला अब रहें दरम्याँ,
ठीक अब तो ये हालात कर लें चलो |
गलतियाँ किससे क्या हो गईं भूलकर,
दूर सारे हिसाबात कर लें चलो |
ज़िंदगी के ये पल हैं बड़े कीमती,
खूबसूरत ये सौगात कर लें चलो |
मीत बन कर सभी के रहें हम #सरस,
यूँ हसीं अपने जज़्बात कर लें चलो |
------------------------------------------------
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
स्वरचित
(मुलाकात)
दो मुक्तक---
रोज मुलाकात होती है रे बगीचे में
निहारती हूं उन्हें बैठ नैन मीचे मैं
मयूर,वन के पशु और पंछी हैंअनगिन-
कुलेल करते हैं वो दूब के गलीचे में.
मुलाकात हो और बात ना हो
यह भी कोई बात हुई
भोर जागी, जगाई कायनात
रात हुई
भला कहो खुद ही को खुद खुदा सा मान लिया-
ये भी कोई बात है ,हाय!ना कोई बात हुई.
स्वरचित--
डा अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
(मुलाकात)
दो मुक्तक---
रोज मुलाकात होती है रे बगीचे में
निहारती हूं उन्हें बैठ नैन मीचे मैं
मयूर,वन के पशु और पंछी हैंअनगिन-
कुलेल करते हैं वो दूब के गलीचे में.
मुलाकात हो और बात ना हो
यह भी कोई बात हुई
भोर जागी, जगाई कायनात
रात हुई
भला कहो खुद ही को खुद खुदा सा मान लिया-
ये भी कोई बात है ,हाय!ना कोई बात हुई.
स्वरचित--
डा अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
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