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ब्लॉग संख्या :-482
शीर्षक -- तीर
प्रथम प्रस्तुति
हर दिन के अलग थे अन्दाज
वो बहुत अच्छे थे तीरंदाज़ ।।
क्यों न होय ये दिल कायल
उनका क्यों नही करे नाज़ ।।
तीर चलाये वह रूलाये
पर उन्हीं के हैं ये परवाज़ ।।
कहाँ होय वो हौसले जिगर
सोहबत ही दिलाये ताज ।।
करहाते हुए उठा ये दिल
आ गयी अब इसमें आवाज ।।
दर्द ही अब बयां करे ये दिल
करीने से ज्यों सजी हो साज ।।
जहाँ पर दर्द बसा था 'शिवम'
वहीं होय शेर का आगाज़ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 20/08/2019
प्रथम प्रस्तुति
हर दिन के अलग थे अन्दाज
वो बहुत अच्छे थे तीरंदाज़ ।।
क्यों न होय ये दिल कायल
उनका क्यों नही करे नाज़ ।।
तीर चलाये वह रूलाये
पर उन्हीं के हैं ये परवाज़ ।।
कहाँ होय वो हौसले जिगर
सोहबत ही दिलाये ताज ।।
करहाते हुए उठा ये दिल
आ गयी अब इसमें आवाज ।।
दर्द ही अब बयां करे ये दिल
करीने से ज्यों सजी हो साज ।।
जहाँ पर दर्द बसा था 'शिवम'
वहीं होय शेर का आगाज़ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 20/08/2019
नमन मंच भांवो के मोती
विषय तीर
विधा काव्य
20 अगस्त 2019,मंगलवार
ऐसी वाणी कभी न बोलो
जो हृदय पर तीर चलावे।
मुख मुखौटा पहन सदा ही
क्यों दूजों को रोज रुलावे?
शर शैया भीष्म प्रतिज्ञ ने
अंत समय तीरों पर काटा।
धुरंधर धनुर्धर रण कौशल
स्नेह सदा परहित में बांटा।
शब्दभेदी तीर छोड़कर
पृथ्वी ने गौरी ललकारा।
द्रोण अर्जुन और कर्ण ने
कुरुक्षेत्र में रिपुदल मारा।
वीर धीर गम्भीर नर श्रेष्ठ
मातृभूमि हित जीते मरते।
तीर तीर पर तीर चलाकर
सदा वतन की रक्षा करते।
त्रेता युग और द्वापर युग में
युद्ध लड़े मिलकर तीरों से ।
मन्त्रित करके तीर छोड़ते
लोहा लेते वे नित वीरों से ।
तीर चलाओ ऐसे नित तुम
बैर भाव घृणा न फैले ।
प्यार और विश्वास बने हिय
हर जन स्व विवेक खेले।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
विषय तीर
विधा काव्य
20 अगस्त 2019,मंगलवार
ऐसी वाणी कभी न बोलो
जो हृदय पर तीर चलावे।
मुख मुखौटा पहन सदा ही
क्यों दूजों को रोज रुलावे?
शर शैया भीष्म प्रतिज्ञ ने
अंत समय तीरों पर काटा।
धुरंधर धनुर्धर रण कौशल
स्नेह सदा परहित में बांटा।
शब्दभेदी तीर छोड़कर
पृथ्वी ने गौरी ललकारा।
द्रोण अर्जुन और कर्ण ने
कुरुक्षेत्र में रिपुदल मारा।
वीर धीर गम्भीर नर श्रेष्ठ
मातृभूमि हित जीते मरते।
तीर तीर पर तीर चलाकर
सदा वतन की रक्षा करते।
त्रेता युग और द्वापर युग में
युद्ध लड़े मिलकर तीरों से ।
मन्त्रित करके तीर छोड़ते
लोहा लेते वे नित वीरों से ।
तीर चलाओ ऐसे नित तुम
बैर भाव घृणा न फैले ।
प्यार और विश्वास बने हिय
हर जन स्व विवेक खेले।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
नमन मंच भावों के मोती
20 /8 / 2019
बिषय,,#तीर #
#########
स्वभाव से परिचय कराती वाणी की मिठास
एक शब्द बुझाता हृदयतल की प्यास
कठोर वक्तव्य चुभते ज्यों हो तीर
उम्रदराज तक जकड़ें जैसे जंजीर
वाणी माधुर्यपूर्ण बिगड़े कार्य बनाती
जैसे चमन की खुशबू चहुंओर फैल जाती
व्यक्तित्व व्यवहार वाणी की प्रधानता
सदियों से देख रहे ऋषि मुनियों की महानता
सही कहा कवि ने वोली करै सो होय
वरना इस संसार में ज्ञानी ध्यानी न कोय
प्रेम में सब कुछ नाहीं तो सब खोय
ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ें सो पंडित होय
सद्भभावना स्नेह ही जीवन का है सार
मर्णोंपरांत तक साथ चलेगा व्यक्ति का व्यवहार
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार
20 /8 / 2019
बिषय,,#तीर #
#########
स्वभाव से परिचय कराती वाणी की मिठास
एक शब्द बुझाता हृदयतल की प्यास
कठोर वक्तव्य चुभते ज्यों हो तीर
उम्रदराज तक जकड़ें जैसे जंजीर
वाणी माधुर्यपूर्ण बिगड़े कार्य बनाती
जैसे चमन की खुशबू चहुंओर फैल जाती
व्यक्तित्व व्यवहार वाणी की प्रधानता
सदियों से देख रहे ऋषि मुनियों की महानता
सही कहा कवि ने वोली करै सो होय
वरना इस संसार में ज्ञानी ध्यानी न कोय
प्रेम में सब कुछ नाहीं तो सब खोय
ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ें सो पंडित होय
सद्भभावना स्नेह ही जीवन का है सार
मर्णोंपरांत तक साथ चलेगा व्यक्ति का व्यवहार
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार
तीर
एक बार जो तीर,
निकले कमान से ।
उद्देश होता हैं,
एक और एक ही ।
ना भटके,
अपने निशान से ।
वह तीर,
देता हैं हमें,
जीवन बोध ।
रहकर जीवन में दक्ष ।
लेकर चलो एक लक्ष ।
तो सफलता मिलना,
होता हैं आसान ।
सफलता से ही मिलता ।
जीवन में सम्मान ।
स्वरचित-प्रदीप सहारे
एक बार जो तीर,
निकले कमान से ।
उद्देश होता हैं,
एक और एक ही ।
ना भटके,
अपने निशान से ।
वह तीर,
देता हैं हमें,
जीवन बोध ।
रहकर जीवन में दक्ष ।
लेकर चलो एक लक्ष ।
तो सफलता मिलना,
होता हैं आसान ।
सफलता से ही मिलता ।
जीवन में सम्मान ।
स्वरचित-प्रदीप सहारे
नमन भावों के मोती
विषय तीर
विधा कविता
दिनांक 20.8.2019
दिन मंगलवार
तीर
🍁🍁🍁
बडे़ भयंकर शब्द तीर
इनसे मिलती पीर गम्भीर
मन को भी ये देते चीर
कर देते एकदम अधीर।
नीचे से और ऊपर तक
ज्वाला भड़काते धक धक
हृदय सारा छलनी होता
और रोता रहता है फकफक।
शब्दों में काँटे कभी न हों
शब्दों में चाँटे कभी न हों
ऐसी हो शालीन भाषा
शब्दों में घाटे कभी न हों।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय तीर
विधा कविता
दिनांक 20.8.2019
दिन मंगलवार
तीर
🍁🍁🍁
बडे़ भयंकर शब्द तीर
इनसे मिलती पीर गम्भीर
मन को भी ये देते चीर
कर देते एकदम अधीर।
नीचे से और ऊपर तक
ज्वाला भड़काते धक धक
हृदय सारा छलनी होता
और रोता रहता है फकफक।
शब्दों में काँटे कभी न हों
शब्दों में चाँटे कभी न हों
ऐसी हो शालीन भाषा
शब्दों में घाटे कभी न हों।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
नमन :"भावों के मोती मंच" को समर्पित
दिनांक:20/08/2019
विधा:पिरामिड
विषय:तीर
हैं
तीर
अर्जुन
तीरंदाज
निपुण शास्त्र
देवव्रत शस्त्र
महाभारत अस्त्र।
वो
राम
रावण
लक्षमण
तीर निपुण
गान रामायण
तुलसी का पुराण ।
हाँ
सीता
गुमान
अरमान
तीर कमान
हो अभिनन्दन
रघुबर की शान।
#स्वरचित
# नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
दिनांक:20/08/2019
विधा:पिरामिड
विषय:तीर
हैं
तीर
अर्जुन
तीरंदाज
निपुण शास्त्र
देवव्रत शस्त्र
महाभारत अस्त्र।
वो
राम
रावण
लक्षमण
तीर निपुण
गान रामायण
तुलसी का पुराण ।
हाँ
सीता
गुमान
अरमान
तीर कमान
हो अभिनन्दन
रघुबर की शान।
#स्वरचित
# नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
20/8/2019
नमन मंच भावों के मोती।
नमस्कार गुरुजनों,प्रवुद्धजनों।
तीर
💐💐
ना गोली, बन्दूक से,
नाहीं कोई हथियार से।
ईन्सां जब भी मरता है,
केवल नैनन तीरों के वार से।
जब चलते नैनों के तीर,
उठते प्रेमी हृदय में पीर।
फिर घायल हो जाते वो,
रुठते सारे संसार से।
ईन्सां जब भी...............
इन रोगों का कोई नहीं इलाज,
ये रोग है लाइलाज।
कह गए हकीम, वैध भी,
बचकर रहना इन तीरों के वार से।
ईन्सां जब भी................
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती।
नमस्कार गुरुजनों,प्रवुद्धजनों।
तीर
💐💐
ना गोली, बन्दूक से,
नाहीं कोई हथियार से।
ईन्सां जब भी मरता है,
केवल नैनन तीरों के वार से।
जब चलते नैनों के तीर,
उठते प्रेमी हृदय में पीर।
फिर घायल हो जाते वो,
रुठते सारे संसार से।
ईन्सां जब भी...............
इन रोगों का कोई नहीं इलाज,
ये रोग है लाइलाज।
कह गए हकीम, वैध भी,
बचकर रहना इन तीरों के वार से।
ईन्सां जब भी................
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच
भावों के मोती
20.8.2019
मंगलवार
विषय- तीर
“तीर “
#तीर ना तलवार से ,दुश्मन झुकेगा प्यार से
जिन्दगी ख़ुशहाल होगी ,अपने
सद् व्यवहार से।।
देख लेना एक दिन ,ये चाँद नभ से उतरेगा
आसमाँ झुक जाएगा उस दिन ज़मीं पर प्यार से ।।
इन्तिहा इंतज़ार की,होगी कभी
तुम देखना
चाँद-तारे भी फ़लक से,लाएगा वो प्यार से।।
दुश्मनी से कुछ नहीं हासिल,
ज़माने में यहाँ
ज़िन्दगी की जंग जीती है सभी ने प्यार से ।।
हीर-राँझा,शीरी और फ़रहाद सबको याद हैं
इश्क का ही फ़लसफ़ा सबको सुनाना प्यार से ।।
झूम कर लहरा के दिल भी ,गीत गाता प्यार के
प्यार का मौसम सुहाना,छा गया है प्यार से ।।
सुन ‘ उदार ‘ तुझको भी दुनियाँ भूल अब ना पाएगी
काँच का दिल ले के तू,टकराया पत्थर वार से ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
भावों के मोती
20.8.2019
मंगलवार
विषय- तीर
“तीर “
#तीर ना तलवार से ,दुश्मन झुकेगा प्यार से
जिन्दगी ख़ुशहाल होगी ,अपने
सद् व्यवहार से।।
देख लेना एक दिन ,ये चाँद नभ से उतरेगा
आसमाँ झुक जाएगा उस दिन ज़मीं पर प्यार से ।।
इन्तिहा इंतज़ार की,होगी कभी
तुम देखना
चाँद-तारे भी फ़लक से,लाएगा वो प्यार से।।
दुश्मनी से कुछ नहीं हासिल,
ज़माने में यहाँ
ज़िन्दगी की जंग जीती है सभी ने प्यार से ।।
हीर-राँझा,शीरी और फ़रहाद सबको याद हैं
इश्क का ही फ़लसफ़ा सबको सुनाना प्यार से ।।
झूम कर लहरा के दिल भी ,गीत गाता प्यार के
प्यार का मौसम सुहाना,छा गया है प्यार से ।।
सुन ‘ उदार ‘ तुझको भी दुनियाँ भूल अब ना पाएगी
काँच का दिल ले के तू,टकराया पत्थर वार से ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
मन -भावो के मोती
दिनांक-20/08/2019
विषय-तीर
प्रतिध्वनि के प्रबंजन में
धनुषो की टंकार पुकारे
रात्रि के अंतिम प्रहर में
लहरों के निमंत्रण में
धनुर्धर अपनी कमान संभाले।।
शून्य से भरता उन्माद में
रहस्यमयी प्रत्यंचा पुकारे।।
मैं छोड़ दूं तीर प्रमाद का
शुष्क धरा आसुओं से
झन-झन वीणा के तार पुकारे।।
व्यथित मन विह्वल
नींद मेरी सुख से सोती
मरू ह्रदय में लहरा रहा सर।।
पावन तपन में छिपा स्वर
मौन गंधर्व बैठे हैं
शरब्य मेरा ये नश्वर।।
सर नहीं है किन्नर का
साथ में देवों के धुरंधर
नाम जिनका एरावत के पुरंदर।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक-20/08/2019
विषय-तीर
प्रतिध्वनि के प्रबंजन में
धनुषो की टंकार पुकारे
रात्रि के अंतिम प्रहर में
लहरों के निमंत्रण में
धनुर्धर अपनी कमान संभाले।।
शून्य से भरता उन्माद में
रहस्यमयी प्रत्यंचा पुकारे।।
मैं छोड़ दूं तीर प्रमाद का
शुष्क धरा आसुओं से
झन-झन वीणा के तार पुकारे।।
व्यथित मन विह्वल
नींद मेरी सुख से सोती
मरू ह्रदय में लहरा रहा सर।।
पावन तपन में छिपा स्वर
मौन गंधर्व बैठे हैं
शरब्य मेरा ये नश्वर।।
सर नहीं है किन्नर का
साथ में देवों के धुरंधर
नाम जिनका एरावत के पुरंदर।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
भा.नमन साथियों
तिथि ः20/8/2019/मंगलवार
बिषय ः#तीर#
विधाःःःकाव्यः ः
भले नयनों से तीर चलें पर,
कभी नहीं चलें वाणी के बाण।
प्रभु कुछ मीठा मधुरस घोलें ,
तुम कृपा करें हे कृपानिधान ।
चलें प्रेम प्रीत के तीर यहाँ पर।
नहीं पाले कोई बिषधर यहाँ पर।
निशदिन वहे प्यार की गंगा धारा,
प्रभु रहे सौहार्द घर घर यहाँ पर।
प्रेम बाण से सभी हों घायल।
रुनझुन रुनझुन बाजे पायल।
अगर चलें तीर तो गद्धारों पर,
हों एकदूजे हम सब कायल।
यहां वैरभाव नहीं पाले कोई।
यहाँ नहीं एक तीर भी घाले कोई।
केवल प्रेमालंगन से हों हम घायल,
यहाँ दुश्मन नजर नहीं डाले कोई।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्री राम रामजी
1.भा.#तीर #काव्यःः
20/8/2019/मंगलवार
तिथि ः20/8/2019/मंगलवार
बिषय ः#तीर#
विधाःःःकाव्यः ः
भले नयनों से तीर चलें पर,
कभी नहीं चलें वाणी के बाण।
प्रभु कुछ मीठा मधुरस घोलें ,
तुम कृपा करें हे कृपानिधान ।
चलें प्रेम प्रीत के तीर यहाँ पर।
नहीं पाले कोई बिषधर यहाँ पर।
निशदिन वहे प्यार की गंगा धारा,
प्रभु रहे सौहार्द घर घर यहाँ पर।
प्रेम बाण से सभी हों घायल।
रुनझुन रुनझुन बाजे पायल।
अगर चलें तीर तो गद्धारों पर,
हों एकदूजे हम सब कायल।
यहां वैरभाव नहीं पाले कोई।
यहाँ नहीं एक तीर भी घाले कोई।
केवल प्रेमालंगन से हों हम घायल,
यहाँ दुश्मन नजर नहीं डाले कोई।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्री राम रामजी
1.भा.#तीर #काव्यःः
20/8/2019/मंगलवार
नमन मंच
विधा गीतिका
विषय तीर
20/8/2019::मंगलवार
*******************************************
शब्दों के जब चलते बाण
जिव्हा बनती तीर कमान
बोल कभी कड़वे मत बोल
शब्द शब्द को लो तुम छान
लगें कर्ण प्रिय ऐसे बोल
देते सदा सरस पहचान
सरस शब्द मिश्री रस घोलें
अरु करते सबका सम्मान
परिभाषित रिश्तों की डोर
प्रेम पगे जब शब्द महान
कभी न सुलझे रेशम गाँठ
समझो मत कोरा अनुमान
प्रेम प्रतीति राखो सब सँग
कभी नहीं करना अभिमान
रजनी रामदेव
विधा गीतिका
विषय तीर
20/8/2019::मंगलवार
*******************************************
शब्दों के जब चलते बाण
जिव्हा बनती तीर कमान
बोल कभी कड़वे मत बोल
शब्द शब्द को लो तुम छान
लगें कर्ण प्रिय ऐसे बोल
देते सदा सरस पहचान
सरस शब्द मिश्री रस घोलें
अरु करते सबका सम्मान
परिभाषित रिश्तों की डोर
प्रेम पगे जब शब्द महान
कभी न सुलझे रेशम गाँठ
समझो मत कोरा अनुमान
प्रेम प्रतीति राखो सब सँग
कभी नहीं करना अभिमान
रजनी रामदेव
नमन मंच भावों के मोती
20/08/19
विषय तीर
विधा लघु कविता
1)
शब्दों के तीर
क्यों चलाते हो तुम
ऐसा नहीं कि
मेरे तरकस में तीर नहीं ,
चुप रह जाती हूँ
होठों को सिये रहती
तुम्हारी ही सलामती चाहती
मुस्कान लिए रहती हूँ।
पर घाव दे जाते जहर भरे तीर
इनकी चुभन से होती है पीर
कुछ दरक उठता है
कुछ कसक उठता है,
फिर तैयार हो जाती हूँ
तुम्हारे दूसरे वार के लिये ।
2)
बड़े बड़े धनुर्धर हैं
बड़े हैं तीरंदाज ,
तीर निशाने के लिये
करते हैं तैयार,
ढीली रह जाती प्रत्यंचा
तीर निशाने से चूक जाता है।
ये ही हो रहा समाज में
प्रेम ,समर्पण त्याग की
प्रत्यंचा ढीली हो रही
मिलता नहीं वांछित निशाना
जीवन नैया का डगमगाना
तीर का निशाने पर न लग पाना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
20/08/19
विषय तीर
विधा लघु कविता
1)
शब्दों के तीर
क्यों चलाते हो तुम
ऐसा नहीं कि
मेरे तरकस में तीर नहीं ,
चुप रह जाती हूँ
होठों को सिये रहती
तुम्हारी ही सलामती चाहती
मुस्कान लिए रहती हूँ।
पर घाव दे जाते जहर भरे तीर
इनकी चुभन से होती है पीर
कुछ दरक उठता है
कुछ कसक उठता है,
फिर तैयार हो जाती हूँ
तुम्हारे दूसरे वार के लिये ।
2)
बड़े बड़े धनुर्धर हैं
बड़े हैं तीरंदाज ,
तीर निशाने के लिये
करते हैं तैयार,
ढीली रह जाती प्रत्यंचा
तीर निशाने से चूक जाता है।
ये ही हो रहा समाज में
प्रेम ,समर्पण त्याग की
प्रत्यंचा ढीली हो रही
मिलता नहीं वांछित निशाना
जीवन नैया का डगमगाना
तीर का निशाने पर न लग पाना ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
ईश्क़ मे तेरे पागल हो जाने को दिल करता है।
नैन का तेरे, काजल हो जाने को दिल करता है।
कमान समान भंवें ,तीखे है नज़रों के तीर तेरे।
इन तीरों से, घायल हो जाने को दिल करता है।
तुम घोर घटा बन के चमको मेरे मन आंगन मे।
आज मेरा भी, बादल हो जाने को दिल करता है।
क्या किस्मत पाई है इन तेरे बेजान लिबासो ने।
तेरे सीने का आंचल हो जाने को दिल करता है।
तेरी अदाएं ,हुस्न तेरा हर ढंग गज़ब ढानेवाला।
कसम , तेरा कायल हो जाने को दिल करता है।
विपिन सोहल
नैन का तेरे, काजल हो जाने को दिल करता है।
कमान समान भंवें ,तीखे है नज़रों के तीर तेरे।
इन तीरों से, घायल हो जाने को दिल करता है।
तुम घोर घटा बन के चमको मेरे मन आंगन मे।
आज मेरा भी, बादल हो जाने को दिल करता है।
क्या किस्मत पाई है इन तेरे बेजान लिबासो ने।
तेरे सीने का आंचल हो जाने को दिल करता है।
तेरी अदाएं ,हुस्न तेरा हर ढंग गज़ब ढानेवाला।
कसम , तेरा कायल हो जाने को दिल करता है।
विपिन सोहल
नमन मंच🙏
🌹भावों के मोती🌹
20/8/2019
विषय-तीर
🏹🏹🏹🏹
सफेद बादलों के बीच
सफेद रुई की गेंद सा
नील गगन में निकला
एक मनमोहक इंद्रधनुष
अर्धवृत्ताकार,धनुषाकार लिए
प्रत्यंचा चढ़ाए हुए
मगर इसके तीर
कहीं नज़र नहीं आते
ये संधान लिए हैं
जो सिर्फ प्रकृति की
शोभा ही बढ़ाते हैं
ये लक्ष्यहीन हैं,क्योंकि
इनके पास तीर ही नहीं हैं
इनसे कोई निशाना
नहीं साधा जाएगा
धनुष की अपनी क्या पहचान है
वो तो तीर से पहचाना जाएगा
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
🌹भावों के मोती🌹
20/8/2019
विषय-तीर
🏹🏹🏹🏹
सफेद बादलों के बीच
सफेद रुई की गेंद सा
नील गगन में निकला
एक मनमोहक इंद्रधनुष
अर्धवृत्ताकार,धनुषाकार लिए
प्रत्यंचा चढ़ाए हुए
मगर इसके तीर
कहीं नज़र नहीं आते
ये संधान लिए हैं
जो सिर्फ प्रकृति की
शोभा ही बढ़ाते हैं
ये लक्ष्यहीन हैं,क्योंकि
इनके पास तीर ही नहीं हैं
इनसे कोई निशाना
नहीं साधा जाएगा
धनुष की अपनी क्या पहचान है
वो तो तीर से पहचाना जाएगा
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
नमन भावों के मोती
दिनांक .. 19/8/2019
विषय .. तीर
*******************
मोहिनी सी मुस्कान है , नैना तीर कमान।
आ मिल ले तू प्रियतमा, शेर का रख कर मान॥
**
दूरी सदा ही राखिए, मन शंकित होत भान।
न जाने कब शंक ले ले, सम्बन्धो की जान॥
**
घर परिवार ना भुलिए, मित्रो रहे जब पास।
समय बदल अब कह रहा, काम से रख ह काम॥
**
कहे निरंकुश शब्द जो, मत देना सम्मान ।
बिना विचारे बोलते , देत नही ये मान॥
**
मीरा सी भक्ति नही, राधा सी न प्रीती ।
हनुमंत सा दास नाहि, जय हो ह रघुवीर॥
**
रहे सदा वो कैद मे, दूजे बोली बोल।
तोता तो कैदी भया, कागो कर्कश बोल॥
**
बालेपन की प्रीत जो, पल मे जात ह सूख।
पानी गिरते रेत पे, पल मे जात ह सूख॥
**
शेर सिंह सर्राफ
दिनांक .. 19/8/2019
विषय .. तीर
*******************
मोहिनी सी मुस्कान है , नैना तीर कमान।
आ मिल ले तू प्रियतमा, शेर का रख कर मान॥
**
दूरी सदा ही राखिए, मन शंकित होत भान।
न जाने कब शंक ले ले, सम्बन्धो की जान॥
**
घर परिवार ना भुलिए, मित्रो रहे जब पास।
समय बदल अब कह रहा, काम से रख ह काम॥
**
कहे निरंकुश शब्द जो, मत देना सम्मान ।
बिना विचारे बोलते , देत नही ये मान॥
**
मीरा सी भक्ति नही, राधा सी न प्रीती ।
हनुमंत सा दास नाहि, जय हो ह रघुवीर॥
**
रहे सदा वो कैद मे, दूजे बोली बोल।
तोता तो कैदी भया, कागो कर्कश बोल॥
**
बालेपन की प्रीत जो, पल मे जात ह सूख।
पानी गिरते रेत पे, पल मे जात ह सूख॥
**
शेर सिंह सर्राफ
द्वितीय प्रस्तुति
विषय तीर
विधा काव्य
20 08 2019
तुम हवा में तीर न फेंको
स्वयं आत्मघाती होंगे।
हवा बह रही हिन्द की मित्रों
चक्रवात में बह जाओगे।
धनुर्धर कौंतेय जीवित है
तीक्ष्ण तीर न सह पाओगे।
बुरी दयनीय स्थिति तेरी
जीवन भर तुम पछताओगे।
ताज हिमालय हँस रहा है
देख तुम्हारी मूर्खता को।
सने हैं तीर गरलमय आज
तुम्हारी देख क्षमता को।
घातक तीर चलेंगे अब
दिल सहम कम्प जाएगा।
अरे मूर्ख समझ जरा तो
आखिर कैसे बच पायेगा ?
भारत सिंहो का देश है
गीदड़ भभकी से न डरता।
तीर मिसाल जब चलेंगे
बस,तिरंगा जग फहरता ।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय तीर
विधा काव्य
20 08 2019
तुम हवा में तीर न फेंको
स्वयं आत्मघाती होंगे।
हवा बह रही हिन्द की मित्रों
चक्रवात में बह जाओगे।
धनुर्धर कौंतेय जीवित है
तीक्ष्ण तीर न सह पाओगे।
बुरी दयनीय स्थिति तेरी
जीवन भर तुम पछताओगे।
ताज हिमालय हँस रहा है
देख तुम्हारी मूर्खता को।
सने हैं तीर गरलमय आज
तुम्हारी देख क्षमता को।
घातक तीर चलेंगे अब
दिल सहम कम्प जाएगा।
अरे मूर्ख समझ जरा तो
आखिर कैसे बच पायेगा ?
भारत सिंहो का देश है
गीदड़ भभकी से न डरता।
तीर मिसाल जब चलेंगे
बस,तिरंगा जग फहरता ।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
भावों के मोती
बिषय- तीर
शब्दों के तीर मुझ पर चलाते रहे।
मेरे सब्र को तुम हरदम आजमाते रहे।।
मैं तेरी राह तकती रही शाम- सबेरे
तुम गैरों के पहलू में मुस्कुराते रहे।
क्या कसूर था मेरा कभी बताया नहीं
और सजा बेवफाई की सुनाते रहे।
चांदनी से चाँद अलग हो नहीं सकता
इस सच को हमेशा झूठलाते रहे।
तुम मेरे थे,मेरे हो और मेरे ही रहे
चाहे कितना ही दूर मुझसे जाते रहे।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- तीर
शब्दों के तीर मुझ पर चलाते रहे।
मेरे सब्र को तुम हरदम आजमाते रहे।।
मैं तेरी राह तकती रही शाम- सबेरे
तुम गैरों के पहलू में मुस्कुराते रहे।
क्या कसूर था मेरा कभी बताया नहीं
और सजा बेवफाई की सुनाते रहे।
चांदनी से चाँद अलग हो नहीं सकता
इस सच को हमेशा झूठलाते रहे।
तुम मेरे थे,मेरे हो और मेरे ही रहे
चाहे कितना ही दूर मुझसे जाते रहे।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
नमन मंच:भावों के मोती:
#दिनांक:20"8"2019:
#विषय:तीर:बाण:
#विधा:काव्य:
+"""+"""+ #तीर +"""+"""+
धनुष की आकृति के हैं होंठ हमारे,
तीर से भी कातिल हैं हमारी जुबान,
तीर का घायल बच भी सकता हैं,
घायल वो ना बचा जिसे छेदे जुबान,
शब्दों के बाण ज़ब चले इस जहां में,
दर्ज़ हुआ इतिहास में कुछ असमान
ऊँचे बोलों के परिणाम हुवे भयानक,
यही मिलता है हमें बुजुर्गों से ज्ञान,
अर्जुन जीत लिया तीर चला स्वयंवर,
तीर से ही इंदजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाया,
लक्ष्मण को ज़ब लगी थी ब्रह्म शक्ति,
वीर हनुमत ने समूचा पर्वत उठा लाया,
तीर ज़ब भी चला हैं किसी कमान से,
और तीखी बोली निकली हैं जुबान से,
कड़वी भाषा सुन निकल पड़ता हैं,
गड़ा हुआ मुर्दा स्वयं भी श्मशान से,
रचनाकार "*"दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया मंडला(मप्र)
#दिनांक:20"8"2019:
#विषय:तीर:बाण:
#विधा:काव्य:
+"""+"""+ #तीर +"""+"""+
धनुष की आकृति के हैं होंठ हमारे,
तीर से भी कातिल हैं हमारी जुबान,
तीर का घायल बच भी सकता हैं,
घायल वो ना बचा जिसे छेदे जुबान,
शब्दों के बाण ज़ब चले इस जहां में,
दर्ज़ हुआ इतिहास में कुछ असमान
ऊँचे बोलों के परिणाम हुवे भयानक,
यही मिलता है हमें बुजुर्गों से ज्ञान,
अर्जुन जीत लिया तीर चला स्वयंवर,
तीर से ही इंदजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाया,
लक्ष्मण को ज़ब लगी थी ब्रह्म शक्ति,
वीर हनुमत ने समूचा पर्वत उठा लाया,
तीर ज़ब भी चला हैं किसी कमान से,
और तीखी बोली निकली हैं जुबान से,
कड़वी भाषा सुन निकल पड़ता हैं,
गड़ा हुआ मुर्दा स्वयं भी श्मशान से,
रचनाकार "*"दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया मंडला(मप्र)
नमन मंच भावों के मोती
20/08/19
विषय - तीर
विधा - कविता
"""""""""""""""""""""""
शब्दों के तीर
""""""""""'''''"""""""""""""""""""""""'''''''''''''""""
मेरे तरकस में एक भी तीर नहीं है
बहरी हो गई दुनिया को सुनाने को शब्द नहीं है
बड़ी-बड़ी बातें और बनावटी लोग हैं शहर में
सच छुप गई है कहीं क्योंकि उसके साथ कोई नहीं है
तस्वीर बदलने को तो सूर्यदीप मैं ही काफी हूँ
पर तकदीर में कुछ और ही खुदा को मंजूर नहीं है
झूठों का शहर में बोल बाला है हर तरफ मुंह काला है उंगलियों पे गिन सकूं उतने झूठे नहीं है
मेरे तरकस में एक भी तीर नहीं है
बहरी हो गई दुनिया को सुनाने को शब्द नहीं है |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित व मौलिक
20/08/19
विषय - तीर
विधा - कविता
"""""""""""""""""""""""
शब्दों के तीर
""""""""""'''''"""""""""""""""""""""""'''''''''''''""""
मेरे तरकस में एक भी तीर नहीं है
बहरी हो गई दुनिया को सुनाने को शब्द नहीं है
बड़ी-बड़ी बातें और बनावटी लोग हैं शहर में
सच छुप गई है कहीं क्योंकि उसके साथ कोई नहीं है
तस्वीर बदलने को तो सूर्यदीप मैं ही काफी हूँ
पर तकदीर में कुछ और ही खुदा को मंजूर नहीं है
झूठों का शहर में बोल बाला है हर तरफ मुंह काला है उंगलियों पे गिन सकूं उतने झूठे नहीं है
मेरे तरकस में एक भी तीर नहीं है
बहरी हो गई दुनिया को सुनाने को शब्द नहीं है |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित व मौलिक
शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
20/08/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"तीर"
(1)
राम का तप
सत्य तीर के आगे
अहम गर्त
(2)
कर्म के तीर
हौसला तरकश
लक्ष्य की जीत
(3)
बुद्धि कमान
जिह्वा से छूटा तीर
छोड़े निशान
(4)
रवि के तीर
भेद दिया अँधेरा
हुआ सवेरा
(5)
विषैली जीभ
भारत माँ के सीने
घर से तीर
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
नमन "भावों के मोती"🙏
20/08/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"तीर"
(1)
राम का तप
सत्य तीर के आगे
अहम गर्त
(2)
कर्म के तीर
हौसला तरकश
लक्ष्य की जीत
(3)
बुद्धि कमान
जिह्वा से छूटा तीर
छोड़े निशान
(4)
रवि के तीर
भेद दिया अँधेरा
हुआ सवेरा
(5)
विषैली जीभ
भारत माँ के सीने
घर से तीर
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
II तीर II नमन भावों के मोती....
विधा : छंद - दोहा
बाण सरीखे बोल से, रूह बचे न शरीर...
घात करे तो चीर दे, पीर न पाए तीर....
नयन मिले जो नयन से, होश उड़े सशरीर...
तीव्र ह्रदय संधान कर, पहुँचा तरकश तीर...
दिल के बदले दिल दिया, दिल बन गया फ़कीर...
झोली भर ली दर्द से, पलकें यमुना तीर...
शूल निकाले शूल को, पीर मिटाये पीर....
काट ह्रदय अर्पण करूँ, मिलता धीर न तीर..
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२०.०८.२०१९
विधा : छंद - दोहा
बाण सरीखे बोल से, रूह बचे न शरीर...
घात करे तो चीर दे, पीर न पाए तीर....
नयन मिले जो नयन से, होश उड़े सशरीर...
तीव्र ह्रदय संधान कर, पहुँचा तरकश तीर...
दिल के बदले दिल दिया, दिल बन गया फ़कीर...
झोली भर ली दर्द से, पलकें यमुना तीर...
शूल निकाले शूल को, पीर मिटाये पीर....
काट ह्रदय अर्पण करूँ, मिलता धीर न तीर..
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२०.०८.२०१९
नमन भावों के मोती
आज का विषय, तीर
दिनांक, 20,8,2019,
वार, मंगलवार,
विधा, दोहा
मन पंछी घायल हुआ ,
लगे शब्द के वाण ।
जीते जी ही मर गया ,
बचे रहे तन प्राण ।।
मरा नहीं जो बात से,
वो कैसा इंसान ।
आन बान में सिर गया,
जाने सकल जहान ।।
दिल का रोगी तड़पता,
लगा नयन का तीर ।
जीत सकेगा वो नहीं ,
हो कितना भी वीर ।।
जतन सभी कर के थका,
मिला न इक पल चैन ।
तीर घुसा ममता भरा,
हँसे रहे बैचैन ।।
रीत जगत की लूटती ,
किस्मत का सब खेल ।
गुजर गई सब जिंदगी,
खुद से हुआ न मेल ।।
माया में उलझा रहा ,
लगा मोह का तीर ।
नाम जपा हरि का नहीं ,
कहता किससे पीर ।।
भक्ति भाव का जब लगा ,
मन बीणा में तीर ।
मधुर भजन गाता रहा ,
जग की ममता चीर ।।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
आज का विषय, तीर
दिनांक, 20,8,2019,
वार, मंगलवार,
विधा, दोहा
मन पंछी घायल हुआ ,
लगे शब्द के वाण ।
जीते जी ही मर गया ,
बचे रहे तन प्राण ।।
मरा नहीं जो बात से,
वो कैसा इंसान ।
आन बान में सिर गया,
जाने सकल जहान ।।
दिल का रोगी तड़पता,
लगा नयन का तीर ।
जीत सकेगा वो नहीं ,
हो कितना भी वीर ।।
जतन सभी कर के थका,
मिला न इक पल चैन ।
तीर घुसा ममता भरा,
हँसे रहे बैचैन ।।
रीत जगत की लूटती ,
किस्मत का सब खेल ।
गुजर गई सब जिंदगी,
खुद से हुआ न मेल ।।
माया में उलझा रहा ,
लगा मोह का तीर ।
नाम जपा हरि का नहीं ,
कहता किससे पीर ।।
भक्ति भाव का जब लगा ,
मन बीणा में तीर ।
मधुर भजन गाता रहा ,
जग की ममता चीर ।।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
नमन "भावों के मोती"
विषय:-तीर
विधा :-मुक्तक आधार कविता
बना कर तीर नजरों से किया था बार जब उसने
वो कान्हा छिप गया है क्यों बुलाकर पास अपने
कहाँ ढूँढने में जाऊँ उसके काले नैन चितवन के
लगा गले जब हृदय के पुष्प पुलकित किये उसने
निभाना था प्यार जब साथ थे दोनों राह में
लुटाकर कश्तियाँ दिल की फसें मजधार में
दिखाई दे रहा है वो अब भी अँधेरी राह पर
मिटे हैं हम लगाकर हर दाव अब जिंदगी में
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
विषय:-तीर
विधा :-मुक्तक आधार कविता
बना कर तीर नजरों से किया था बार जब उसने
वो कान्हा छिप गया है क्यों बुलाकर पास अपने
कहाँ ढूँढने में जाऊँ उसके काले नैन चितवन के
लगा गले जब हृदय के पुष्प पुलकित किये उसने
निभाना था प्यार जब साथ थे दोनों राह में
लुटाकर कश्तियाँ दिल की फसें मजधार में
दिखाई दे रहा है वो अब भी अँधेरी राह पर
मिटे हैं हम लगाकर हर दाव अब जिंदगी में
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
भावों के मोती दिनांक 20/8/20
तीर
परिवेश - एक काला युग
लेटा है
तीरों की
शैया पर भीष्म
इस उम्मीद में
आ कर
डालेगा दो बूँद
जल कोई
थके-मांदे है
सैनिक अनेक
कोई कर रहा
आर्तनाद
अपने अपनों
के लिए
व्यस्त हैं
अगली रणनीति में
कौरव - पांडव
बिछा रहा
अगली बिसात
शकुनि
लहू से नहाया है
रणक्षेत्र
उत्सव मना रहे
गिध्द चील यम
मृत्यु के आगोश
में समा रहा
एक युग
चमक रहे
मशालों की
रोशनी में
तीर औ भाल
है प्यासे
लहू और लहू
चिन्ता
भीष्म की
बदनाम होगा
ये युग काला
त्याग दूंगा
मैं , तो
ये देह नश्वर
कहलाएगा
निर्लज्जता, हठ, अह॔
षड्यंत्रों और
तीर भालों का
ये महाभारत
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
तीर
परिवेश - एक काला युग
लेटा है
तीरों की
शैया पर भीष्म
इस उम्मीद में
आ कर
डालेगा दो बूँद
जल कोई
थके-मांदे है
सैनिक अनेक
कोई कर रहा
आर्तनाद
अपने अपनों
के लिए
व्यस्त हैं
अगली रणनीति में
कौरव - पांडव
बिछा रहा
अगली बिसात
शकुनि
लहू से नहाया है
रणक्षेत्र
उत्सव मना रहे
गिध्द चील यम
मृत्यु के आगोश
में समा रहा
एक युग
चमक रहे
मशालों की
रोशनी में
तीर औ भाल
है प्यासे
लहू और लहू
चिन्ता
भीष्म की
बदनाम होगा
ये युग काला
त्याग दूंगा
मैं , तो
ये देह नश्वर
कहलाएगा
निर्लज्जता, हठ, अह॔
षड्यंत्रों और
तीर भालों का
ये महाभारत
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन "भावो के मोती"
20/08/2019
"तीर"
मुक्तक
1
त्याग और समर्पण से जीवन तपा था,
इच्छा मृत्यु का उन्हें वरदान मिला था,
तीरों की शय्या पर सो गए पितामह,
युद्ध दौरान मृत्यु को न वरण किया था।
2
तेरी नजरों के तीर से दिल घायल हुआ,
तेरी मीठी बातों का दिल कायल हुआ,
यादों की बरसात में मन भीगता रहा,
रात सपनों में जो तेरा आना हुआ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
20/08/2019
"तीर"
मुक्तक
1
त्याग और समर्पण से जीवन तपा था,
इच्छा मृत्यु का उन्हें वरदान मिला था,
तीरों की शय्या पर सो गए पितामह,
युद्ध दौरान मृत्यु को न वरण किया था।
2
तेरी नजरों के तीर से दिल घायल हुआ,
तेरी मीठी बातों का दिल कायल हुआ,
यादों की बरसात में मन भीगता रहा,
रात सपनों में जो तेरा आना हुआ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
नमन मंच को
दिन :- मंगलवार
दिनांक :- 20/08/2019
शीर्षक :- तीर
शब्दों की भी एक अनोखी तासीर है...
कहीं हरते पीर तो कहीं लगते तीर है...
सलते बहुत हैं लगते जब ये दिल पर...
छोड़ते नीशां ये गहरे नादान दिल पर..
तोल मोल के बोल बना देते अहमियत...
शब्द-शब्द आपके बतलाते असलियत..
जिह्वा कमान संयमित रहे गर आपकी...
बनाकर रखे ये जग में ईज्जत आपकी...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिन :- मंगलवार
दिनांक :- 20/08/2019
शीर्षक :- तीर
शब्दों की भी एक अनोखी तासीर है...
कहीं हरते पीर तो कहीं लगते तीर है...
सलते बहुत हैं लगते जब ये दिल पर...
छोड़ते नीशां ये गहरे नादान दिल पर..
तोल मोल के बोल बना देते अहमियत...
शब्द-शब्द आपके बतलाते असलियत..
जिह्वा कमान संयमित रहे गर आपकी...
बनाकर रखे ये जग में ईज्जत आपकी...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन मंच को
विषय : तीर
दिनांक : 20/08/2019
विधा : नवगीत
भारत नाम है
नापाक इरादों को, ध्वस्त जो कर दें ,
देश प्रेम से भरे, यहां वीर तमाम हैं ।
सोचना तू छोड़, कि कश्मीर तेरा है ,
वादियों में देख , लिखा भारत नाम है ।
वादियों में -----------------नाम है ।
तू कुटिल चाल, चल कर तो देख,
तेरी हर चाल को, विफल कर देंगे ।
यह वतन है दीवानों का, मस्तानों का ,
जान देकर जीवन, सफल कर लेंगे ।
हिंदुस्तान के तरकश में तीर तमाम हैं,
वादियों में -----------------------नाम है ।
तू करता रहा है, छल कपट ही सदा ,
हर बार घड़ियाली, आंसु बहाए है ।
हम तो रहे सदा, अमन के परवाने ,
विश्वासघात किया जब गले लगाए है।
रोशन है भारत, तू आज भी गुमनाम है ,
वादियों में -----------------------नाम है ।
सच्चाई के हौसले, बुलंद होते सदा ही ,
फौलादी इरादा यहां हर एक वीर का ।
छोड़ दे आतंक अब, खुद को संभाल तू,
राग ना आलाप अब, कभी कश्मीर का ।
खाक में ना मिल जाए, कहीं तेरा नाम है ,
वादियों में देख , लिखा भारत नाम है ।
वादियों में देख , लिखा भारत नाम है ।
॥ जय हिंद ॥
॥ बंदे मातरम ॥
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विषय : तीर
दिनांक : 20/08/2019
विधा : नवगीत
भारत नाम है
नापाक इरादों को, ध्वस्त जो कर दें ,
देश प्रेम से भरे, यहां वीर तमाम हैं ।
सोचना तू छोड़, कि कश्मीर तेरा है ,
वादियों में देख , लिखा भारत नाम है ।
वादियों में -----------------नाम है ।
तू कुटिल चाल, चल कर तो देख,
तेरी हर चाल को, विफल कर देंगे ।
यह वतन है दीवानों का, मस्तानों का ,
जान देकर जीवन, सफल कर लेंगे ।
हिंदुस्तान के तरकश में तीर तमाम हैं,
वादियों में -----------------------नाम है ।
तू करता रहा है, छल कपट ही सदा ,
हर बार घड़ियाली, आंसु बहाए है ।
हम तो रहे सदा, अमन के परवाने ,
विश्वासघात किया जब गले लगाए है।
रोशन है भारत, तू आज भी गुमनाम है ,
वादियों में -----------------------नाम है ।
सच्चाई के हौसले, बुलंद होते सदा ही ,
फौलादी इरादा यहां हर एक वीर का ।
छोड़ दे आतंक अब, खुद को संभाल तू,
राग ना आलाप अब, कभी कश्मीर का ।
खाक में ना मिल जाए, कहीं तेरा नाम है ,
वादियों में देख , लिखा भारत नाम है ।
वादियों में देख , लिखा भारत नाम है ।
॥ जय हिंद ॥
॥ बंदे मातरम ॥
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
नमन मंच
विषय--तीर
विधा--मुक्त
दिनांक :--20 / 08 / 19
-------------------------------
लबों की कमान से
शब्दों के तीर जब
निकलते हैं
पीर पगे जब हों तो
रुह में उतर
दर्द की चादर
बन जाते हैं
कभी जो निकले जहर
में डूबे
जन्म जन्मांतर के रिश्ते भी पल में टूट जाते हैं
गर लब की कमान हो
गुलाब पंखुडी -सी
तो तीर प्यार बन जाते हैं
रुह -ए-जन्नत में
फिर खुशियों के
चमन खिल जाते हैं।
डा. नीलम
विषय--तीर
विधा--मुक्त
दिनांक :--20 / 08 / 19
-------------------------------
लबों की कमान से
शब्दों के तीर जब
निकलते हैं
पीर पगे जब हों तो
रुह में उतर
दर्द की चादर
बन जाते हैं
कभी जो निकले जहर
में डूबे
जन्म जन्मांतर के रिश्ते भी पल में टूट जाते हैं
गर लब की कमान हो
गुलाब पंखुडी -सी
तो तीर प्यार बन जाते हैं
रुह -ए-जन्नत में
फिर खुशियों के
चमन खिल जाते हैं।
डा. नीलम
भावों के मोती!🙏
#आज का विषय,,,तीर,,,,,,,🏹
भावों के मोती मंच को बहुत बहुत धन्यवाद,मुझे इस समूह में सम्मिलित करने के लिए!🙏
प्रस्तुत है आज मेरा प्रथम प्रयास उस समूह में,,,,हाइकु के रूप में!
निवेदित है!,,,,,,(५ ७ ५)🏹
१ नयन तीर,
करे घाव गंभीर,
रहे अधीर!
२
मधुर वाणी,
प्रेम गीत समान,
तीर निदान!
३
है दूर तीर,
ले चल मेरे मांझी,
हर ले पीर!
४
शब्द तीर,
द्रौपदी ने थे मारे,
संग्राम भारे!
५
तीर चलाया,
देवदत्त ने मारा,
हंस कराहा!
६
भीष्म महान,
तीरों पर शयन,
उत्तर यान!
७
ओ श्यामा मेरे,
भव सागर तरे,
तीर उतारे!
८
आएगा नहीं,
तीर कमान में,
भ्रम मन में!
९
तीर तूणीर,
शिकारी है चलाए,
खग को मारे!
१०
छलनी जिया,
फिर शब्द तीर से,
जाए ना जीया!
११
तीर की मार,
दिल के आर पार,
अंतस वार!
१२
शब्दों के तीर,
करते छिन्न भिन्न,
रहते खिन्न।
मौलिक स्वरचित,
नीलू मेहरा।🙏
मम प्रथमं प्रयासं मंचं समक्षे।🙏
#आज का विषय,,,तीर,,,,,,,🏹
भावों के मोती मंच को बहुत बहुत धन्यवाद,मुझे इस समूह में सम्मिलित करने के लिए!🙏
प्रस्तुत है आज मेरा प्रथम प्रयास उस समूह में,,,,हाइकु के रूप में!
निवेदित है!,,,,,,(५ ७ ५)🏹
१ नयन तीर,
करे घाव गंभीर,
रहे अधीर!
२
मधुर वाणी,
प्रेम गीत समान,
तीर निदान!
३
है दूर तीर,
ले चल मेरे मांझी,
हर ले पीर!
४
शब्द तीर,
द्रौपदी ने थे मारे,
संग्राम भारे!
५
तीर चलाया,
देवदत्त ने मारा,
हंस कराहा!
६
भीष्म महान,
तीरों पर शयन,
उत्तर यान!
७
ओ श्यामा मेरे,
भव सागर तरे,
तीर उतारे!
८
आएगा नहीं,
तीर कमान में,
भ्रम मन में!
९
तीर तूणीर,
शिकारी है चलाए,
खग को मारे!
१०
छलनी जिया,
फिर शब्द तीर से,
जाए ना जीया!
११
तीर की मार,
दिल के आर पार,
अंतस वार!
१२
शब्दों के तीर,
करते छिन्न भिन्न,
रहते खिन्न।
मौलिक स्वरचित,
नीलू मेहरा।🙏
मम प्रथमं प्रयासं मंचं समक्षे।🙏
मंच को नमन
दिनांक -20/8/2019
विषय-तीर
कमान से उसकी तीर निकलना चाहिए
आज फिर से अर्जुन निशानेबाज़ चाहिए
भटक रहे युवा इस शिक्षा के बाज़ार में
डिग्रियों के गोरख धंदे और व्यापार में
लक्ष्य उनको खोजना ख़ुद ही चाहिए
आज फिर से अर्जुन निशानेबाज़ चाहिए
दूध दही खाना समझो फूहड़ हो गया
पब हुक्का बार अब मशहूर हो गया
सात्विक आहार की एक अपील चाहिए
आज फिर से अर्जुन निशानेबाज़ चाहिए
जीवन मूल्यों का घटन बदस्तूर जारी है
सम्बंधों में संक्रमण भी बड़ी बीमारी है
मानवीयता का हमें एक पुजारी चाहिए
आज फिर से अर्जुन निशानेबाज़ चाहिए
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
दिनांक -20/8/2019
विषय-तीर
कमान से उसकी तीर निकलना चाहिए
आज फिर से अर्जुन निशानेबाज़ चाहिए
भटक रहे युवा इस शिक्षा के बाज़ार में
डिग्रियों के गोरख धंदे और व्यापार में
लक्ष्य उनको खोजना ख़ुद ही चाहिए
आज फिर से अर्जुन निशानेबाज़ चाहिए
दूध दही खाना समझो फूहड़ हो गया
पब हुक्का बार अब मशहूर हो गया
सात्विक आहार की एक अपील चाहिए
आज फिर से अर्जुन निशानेबाज़ चाहिए
जीवन मूल्यों का घटन बदस्तूर जारी है
सम्बंधों में संक्रमण भी बड़ी बीमारी है
मानवीयता का हमें एक पुजारी चाहिए
आज फिर से अर्जुन निशानेबाज़ चाहिए
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
सादर नमन
विषय-तीर
तेरे प्रशनों के तीर,
हृदय घायल कर रहे हैं,
बेटी बेटा एक समान,
हम सब ये कह रहे हैं,
आज भी मन ड़रता है,
बेटी जब बाहर होती है,
बुरी नजर के तीरों से,
अस्मत उसकी खोती है,
पूछ रही है वो भोली,
इंसानियत क्यों आज रोती है,
खींचता है जब वो आँचल,
उस भाई की भी तो बहन होती है
मजबूत इरादे लेकर बेटी,
खड़ी जब होती है,
शब्दों के तीरों से,
आत्मा छलनी होती है,
बनकर चिडिया जो लाड़ो,
बाबुल तेरी बगिया में चहकती है,
पंख फैला कर उड़ना चाहे,
सड़क पर चलने से क्यों ड़रती है ।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
20/8/19
मंगलवार
विषय-तीर
तेरे प्रशनों के तीर,
हृदय घायल कर रहे हैं,
बेटी बेटा एक समान,
हम सब ये कह रहे हैं,
आज भी मन ड़रता है,
बेटी जब बाहर होती है,
बुरी नजर के तीरों से,
अस्मत उसकी खोती है,
पूछ रही है वो भोली,
इंसानियत क्यों आज रोती है,
खींचता है जब वो आँचल,
उस भाई की भी तो बहन होती है
मजबूत इरादे लेकर बेटी,
खड़ी जब होती है,
शब्दों के तीरों से,
आत्मा छलनी होती है,
बनकर चिडिया जो लाड़ो,
बाबुल तेरी बगिया में चहकती है,
पंख फैला कर उड़ना चाहे,
सड़क पर चलने से क्यों ड़रती है ।
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
20/8/19
मंगलवार
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