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ब्लॉग संख्या :-471
नमन मंच
दिनांक .. ८••८••२०१९
विषय .. नाता
*********************
सब जन्म मुझी से पाते है,
फिर मुझ मे ही लौट के आते है।
ये बातें युगो- युगो की है,
जिसे बार-बार दोहराते है॥
**
जिसने भी जन्म लिया जग में,
उसे काल के गाल समाना है।
सब रिश्ता-नाता माया है,
जग मे जिसे छोड के जाना है॥
**
धन- दौलत वैभव नाम सभी,
इस धरती पर रह जायेगा।
सतकर्म का रथ ही साथ तेरे,
हरि द्वारे तक ले जायेगा ॥
**
फिर काहे मूरख बन करके,
तेरा मेरा करता रहता।
तुम शेर की रचना पढो अगर,
मन धीरज को धरता रहता॥
**
स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ
दिनांक .. ८••८••२०१९
विषय .. नाता
*********************
सब जन्म मुझी से पाते है,
फिर मुझ मे ही लौट के आते है।
ये बातें युगो- युगो की है,
जिसे बार-बार दोहराते है॥
**
जिसने भी जन्म लिया जग में,
उसे काल के गाल समाना है।
सब रिश्ता-नाता माया है,
जग मे जिसे छोड के जाना है॥
**
धन- दौलत वैभव नाम सभी,
इस धरती पर रह जायेगा।
सतकर्म का रथ ही साथ तेरे,
हरि द्वारे तक ले जायेगा ॥
**
फिर काहे मूरख बन करके,
तेरा मेरा करता रहता।
तुम शेर की रचना पढो अगर,
मन धीरज को धरता रहता॥
**
स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ
8/8/2019
नाता
💐💐
नमन भावों के मोती।
नमन गुरुजनों, मित्रों।
💐💐🙏🙏💐💐
सारे रिश्ते, नाते झूठे,
मतलब की यह दुनियां है।
कोई किसी का नहीं यहां पर,
मौकापरस्ती की दुनियां है।
जरुरत हुई अगर किसी की,
तो मतलब निकल आता है।
जरूरत होने पर तो,
गधा भी बाप हो जाता है।
मतलब निकल गया तो,
पलटकर देखते नहीं।
अपनी राह चले जाते हैं,
खैरियत तक पूछते नहीं।
ईश्वर तक को भी,
उन्होंने छोड़ा नहीं।
लड्डू,पेड़े चढाये,
जब जरूरत हुई।
स्वार्थवश जुड़े रहते हैं,
सब एक दूजे से।
गर स्वार्थ नहीं हो तो,
मतलब नहीं किसी से।
💐💐💐💐💐💐
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नाता
💐💐
नमन भावों के मोती।
नमन गुरुजनों, मित्रों।
💐💐🙏🙏💐💐
सारे रिश्ते, नाते झूठे,
मतलब की यह दुनियां है।
कोई किसी का नहीं यहां पर,
मौकापरस्ती की दुनियां है।
जरुरत हुई अगर किसी की,
तो मतलब निकल आता है।
जरूरत होने पर तो,
गधा भी बाप हो जाता है।
मतलब निकल गया तो,
पलटकर देखते नहीं।
अपनी राह चले जाते हैं,
खैरियत तक पूछते नहीं।
ईश्वर तक को भी,
उन्होंने छोड़ा नहीं।
लड्डू,पेड़े चढाये,
जब जरूरत हुई।
स्वार्थवश जुड़े रहते हैं,
सब एक दूजे से।
गर स्वार्थ नहीं हो तो,
मतलब नहीं किसी से।
💐💐💐💐💐💐
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच,भांवो के मोती
08 अगस्त 2019,गुरुवार
विषय नाता
विधा काव्य
सदा हँसी बिखेरे मिलते
एक दूजे को गले लगाते।
यह रिश्ते नाते हैं पावन
हर्षोल्लास जीवन में लाते।
मात पिता गुरुजन नाता
प्रेरक मार्ग हमें बतलाते।
भूले भटके सदा डगर पे
सन्मार्ग वे हमें दिखलाते।
जन्म जन्मांतरण नाता
मातृभूमि स्नेह का होता ।
वह जीवन में वह सब पाता
जो जीवन जग में बोता ।
ममता दया स्नेह समर्पण
यह नाता जग में न्यारा ।
परोपकार जो नित करता
सारा जग उसका प्यारा ।
जीवन ही रिश्ता नाता है
कभी खोता कभी पाता ।
निःस्वार्थ बंधन अति पावन
शुभ सुखमय गीत गाता ।
मित्रभाव का सुन्दर नाता
कृष्ण सुदामा जब मिलते हैं।
आँसू से प्रक्षालन करते पद
दो हृदय मिलकर खिलते हैं।
माँ बेटे का पावन नाता
यह देती है तब हम खाँवे।
खेलें कूदे पावन अंचल पर
मातृभूमि हित बलि जावें।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
08 अगस्त 2019,गुरुवार
विषय नाता
विधा काव्य
सदा हँसी बिखेरे मिलते
एक दूजे को गले लगाते।
यह रिश्ते नाते हैं पावन
हर्षोल्लास जीवन में लाते।
मात पिता गुरुजन नाता
प्रेरक मार्ग हमें बतलाते।
भूले भटके सदा डगर पे
सन्मार्ग वे हमें दिखलाते।
जन्म जन्मांतरण नाता
मातृभूमि स्नेह का होता ।
वह जीवन में वह सब पाता
जो जीवन जग में बोता ।
ममता दया स्नेह समर्पण
यह नाता जग में न्यारा ।
परोपकार जो नित करता
सारा जग उसका प्यारा ।
जीवन ही रिश्ता नाता है
कभी खोता कभी पाता ।
निःस्वार्थ बंधन अति पावन
शुभ सुखमय गीत गाता ।
मित्रभाव का सुन्दर नाता
कृष्ण सुदामा जब मिलते हैं।
आँसू से प्रक्षालन करते पद
दो हृदय मिलकर खिलते हैं।
माँ बेटे का पावन नाता
यह देती है तब हम खाँवे।
खेलें कूदे पावन अंचल पर
मातृभूमि हित बलि जावें।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शीर्षक-- नाता/रिश्ता
प्रथम प्रस्तुति
कौन निभाया रिश्ता कब तक झूठी सारी माया है ।
एक प्रभु को भजा न जिसने ये खेल रचाया है ।।
सच्चा रिश्ता समझ एक क्यों न उसे ध्याया है ।
उसके बिना क्या कभी पत्ता भी हिल पाया है ।।
इसे उसे हम मढ़ें दोष कोई न दोषी कहाया है ।
स्वकर्म की किताब पढ़ कोई पाठ ये आया है ।।
वही पाठ सुधारने को यहाँ तुझे भिजवाया है ।
उसी दयालु को न जाना जिसने तरस खाया है ।।
कब समझेगा हकीकत क्यों मन भटकाया है ।
मौका परस्ती दुनिया में खूब मन भरमाया है ।।
नित नये नाते बनें तूँ अपना फर्ज निभाया है ।
पाने की इच्छा रखे खोना भी क्या भाया है ।।
आत्म चिन्तन का सार समझ सार समाया है ।
रिश्तों से भागा कौन उसने ही जाल बिछाया है ।।
नातों ने रूलाया तो नातों ने 'शिवम' हँसाया है ।
नातों की कर कद्र इससे प्रभु भी हरषाया है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/08/2019
प्रथम प्रस्तुति
कौन निभाया रिश्ता कब तक झूठी सारी माया है ।
एक प्रभु को भजा न जिसने ये खेल रचाया है ।।
सच्चा रिश्ता समझ एक क्यों न उसे ध्याया है ।
उसके बिना क्या कभी पत्ता भी हिल पाया है ।।
इसे उसे हम मढ़ें दोष कोई न दोषी कहाया है ।
स्वकर्म की किताब पढ़ कोई पाठ ये आया है ।।
वही पाठ सुधारने को यहाँ तुझे भिजवाया है ।
उसी दयालु को न जाना जिसने तरस खाया है ।।
कब समझेगा हकीकत क्यों मन भटकाया है ।
मौका परस्ती दुनिया में खूब मन भरमाया है ।।
नित नये नाते बनें तूँ अपना फर्ज निभाया है ।
पाने की इच्छा रखे खोना भी क्या भाया है ।।
आत्म चिन्तन का सार समझ सार समाया है ।
रिश्तों से भागा कौन उसने ही जाल बिछाया है ।।
नातों ने रूलाया तो नातों ने 'शिवम' हँसाया है ।
नातों की कर कद्र इससे प्रभु भी हरषाया है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/08/2019
नमन मंच भावों के मोती
8/8/2019
बिषय,, नाता
बड़े ही अनोखे ए दुनियां के नाते
सारे चमन में खुशबू महकाते
वात्सल्य से सराबोर माँ का नाता
जन्मजन्मांतर बेटा चुका न पाता
भाई बहिन का रिश्ता पवित्र रक्षाबंधन
भावों के मोतियों से भरा दामन
कुछ नाते बनते कुछ बनाए जाते
कुछ ईश्वर के अनुपम उपहार में पाते
कुछ रिश्ते जबरदस्त थोप दिए जाते
स्वार्थपूर्ण नाते ज्यादा न टिक पाते
नाता तो वही जो दिल में बस जाए
जहां से जाने के बाद भी चर्चा में आए
अनुराग अनुकूलता से चलते हैं नाते
वरना गीली मिट्टी से फिसलते हैं नाते
बड़ा ही अनुकरणीय दोस्ती का नाता
सारी दुनिया में अपना परचम लहराता
विनम्रता विश्वास नेह से चलती रिश्तों की डोर
रहें न रहें हम रिश्तों की महक रहे चहुँ ओर
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
8/8/2019
बिषय,, नाता
बड़े ही अनोखे ए दुनियां के नाते
सारे चमन में खुशबू महकाते
वात्सल्य से सराबोर माँ का नाता
जन्मजन्मांतर बेटा चुका न पाता
भाई बहिन का रिश्ता पवित्र रक्षाबंधन
भावों के मोतियों से भरा दामन
कुछ नाते बनते कुछ बनाए जाते
कुछ ईश्वर के अनुपम उपहार में पाते
कुछ रिश्ते जबरदस्त थोप दिए जाते
स्वार्थपूर्ण नाते ज्यादा न टिक पाते
नाता तो वही जो दिल में बस जाए
जहां से जाने के बाद भी चर्चा में आए
अनुराग अनुकूलता से चलते हैं नाते
वरना गीली मिट्टी से फिसलते हैं नाते
बड़ा ही अनुकरणीय दोस्ती का नाता
सारी दुनिया में अपना परचम लहराता
विनम्रता विश्वास नेह से चलती रिश्तों की डोर
रहें न रहें हम रिश्तों की महक रहे चहुँ ओर
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
भावों के मोती
बिषय- नाता
सुरज का हम सब लोगों से,
एक अटूट, अनोखा नाता है।
जिसकी सुनहरी किरणों से
सारा जग जीवन पाता है।।
फूल जिसे देख मुस्काता
भोंरों का मन खिल जाता है।
चांद जिससे प्रकाश लेकर
चाँदनी जग में बिखराता है।।
सागर से जल ले सुरज ही
बादल बना जल बरसाता है।
नयी ऊर्जा देता हम सबको
नया दिन जीवन में लाता है।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- नाता
सुरज का हम सब लोगों से,
एक अटूट, अनोखा नाता है।
जिसकी सुनहरी किरणों से
सारा जग जीवन पाता है।।
फूल जिसे देख मुस्काता
भोंरों का मन खिल जाता है।
चांद जिससे प्रकाश लेकर
चाँदनी जग में बिखराता है।।
सागर से जल ले सुरज ही
बादल बना जल बरसाता है।
नयी ऊर्जा देता हम सबको
नया दिन जीवन में लाता है।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
1भा.सादर नमन साथियों
तिथिःः8/8/219/गुरूवार
बिषयः ः#नाता#
विधाःः काव्यःः
नाते रिश्ते नहीं रहे अब,
अपना स्वार्थ से नाता है।
अपनों को ही भूल गये हैं,
न अपना हमें सुहाता है।
वैर भाव में लगा आदमी।
मोह राग में जुटा आदमी।
लिपटा है माया ठगनी से,
न प्रेमभाव में रहा आदमी।
क्यों हुए स्वयं तक सीमित।
नातों को ही भूल गये हम।
न दिखे श्रीकृष्णसी मित्रता,
अर्थ मित्रता भूल रहे हम।
नाता धन दौलत से रखते।
कुछ नाते शौहरत से होते।
जातपात से भी नहीं रिश्ते।
टूटें कहीं गफलत से रिश्ते।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1भा.#नाता#काव्यःः
8/8/2019/गुरूवार
तिथिःः8/8/219/गुरूवार
बिषयः ः#नाता#
विधाःः काव्यःः
नाते रिश्ते नहीं रहे अब,
अपना स्वार्थ से नाता है।
अपनों को ही भूल गये हैं,
न अपना हमें सुहाता है।
वैर भाव में लगा आदमी।
मोह राग में जुटा आदमी।
लिपटा है माया ठगनी से,
न प्रेमभाव में रहा आदमी।
क्यों हुए स्वयं तक सीमित।
नातों को ही भूल गये हम।
न दिखे श्रीकृष्णसी मित्रता,
अर्थ मित्रता भूल रहे हम।
नाता धन दौलत से रखते।
कुछ नाते शौहरत से होते।
जातपात से भी नहीं रिश्ते।
टूटें कहीं गफलत से रिश्ते।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1भा.#नाता#काव्यःः
8/8/2019/गुरूवार
रिश्तो का आभास, क्यूँ नहीं हो पाता है ।
अहंकार में डूब तू, रिश्तों को भूलाता है ।।
ना जाने कैसे ,रिश्तों को बनाया जाता है।
मन भरने पर, अपनों को भी दुत्कारा जाता है।।
रिश्ते वही निभाते हैं, जिनमें स्वार्थ ना होता है।
झुकता वही है, जो रिश्ता निभाना चाहता है।।
झुकने वाले को भी, स्वार्थी समझा जाता है ।
पर रिश्तों की कद्र तो ,वही समझ पाता है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
अहंकार में डूब तू, रिश्तों को भूलाता है ।।
ना जाने कैसे ,रिश्तों को बनाया जाता है।
मन भरने पर, अपनों को भी दुत्कारा जाता है।।
रिश्ते वही निभाते हैं, जिनमें स्वार्थ ना होता है।
झुकता वही है, जो रिश्ता निभाना चाहता है।।
झुकने वाले को भी, स्वार्थी समझा जाता है ।
पर रिश्तों की कद्र तो ,वही समझ पाता है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमन मंच
8/8/2019::वीरवार
विषय- नाता
छंदमुक्त रचना
----------------------------------
नाता
*************
रिश्ते नातों पर जमने लगी
वक्त की गर्द
अपने सगों का होने लगा
अब तो रक्त सर्द
इसीलिए सूनी रहीं बाबुल
की अंगनाइयाँ
और कुछ सूनी रहीं
भाइयों की कलाइयाँ
ऐसा नहीं कि पहुँचीं नहीं
अहसासों की डोर
ग़र बहना रोई यहाँ
तो भीगे भाई के कोर
रूठे दोनों ही रहे
पाले एक वहम
पहले कौन मनाएगा
अपने अपने अहम
पैसा फिर मिल जाएगा
रिश्ता मिले न कल
सत्य यही है सृष्टि का
रहता सदा अटल
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
8/8/2019::वीरवार
विषय- नाता
छंदमुक्त रचना
----------------------------------
नाता
*************
रिश्ते नातों पर जमने लगी
वक्त की गर्द
अपने सगों का होने लगा
अब तो रक्त सर्द
इसीलिए सूनी रहीं बाबुल
की अंगनाइयाँ
और कुछ सूनी रहीं
भाइयों की कलाइयाँ
ऐसा नहीं कि पहुँचीं नहीं
अहसासों की डोर
ग़र बहना रोई यहाँ
तो भीगे भाई के कोर
रूठे दोनों ही रहे
पाले एक वहम
पहले कौन मनाएगा
अपने अपने अहम
पैसा फिर मिल जाएगा
रिश्ता मिले न कल
सत्य यही है सृष्टि का
रहता सदा अटल
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
नमन मंच🙏💐
दिनांक- 8/8/2019
शीर्षक- "नाता"
विधा- कविता
**************
कुछ रिश्ते जन्म से जुड़े होते हैं,
कुछ हम स्वयं ही बना लेते हैं ,
जीवन सफर यूँ आसान नहीं होता,
अगर किसी से रिश्ता-नाता न होता |
कहीं रिश्ते हैसियत देखकर बनते,
और कहीं दिलों के मिलने से बनते,
इंसान का इंसानियत से नाता हो,
रिश्तों की डोर में कभी गांठे न हो |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
दिनांक- 8/8/2019
शीर्षक- "नाता"
विधा- कविता
**************
कुछ रिश्ते जन्म से जुड़े होते हैं,
कुछ हम स्वयं ही बना लेते हैं ,
जीवन सफर यूँ आसान नहीं होता,
अगर किसी से रिश्ता-नाता न होता |
कहीं रिश्ते हैसियत देखकर बनते,
और कहीं दिलों के मिलने से बनते,
इंसान का इंसानियत से नाता हो,
रिश्तों की डोर में कभी गांठे न हो |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
नमन भावों के मोती💐
कार्य:-शब्दलेखन
बिषय:- नाताविधा:-मुक्त
आज-
एकल समय में
सोचता हूँ,कुछ लिखूं
कुछ ही लिख पता हूँ कि,
हर वक्त लेखनी पर
बड़ा भारी धर्म संकट आता है।
हाथों में फंसी लेखनी
कोरे कागज पर
फिसलती असहाय स्याही
कुछ फीके,कुछ गाड़े से
अधलिखे पन्नों पे
उछरती
और उछरती रही।
पर-
लेखन का हाथों से
कागज का स्याही से
मन का मुझसे
यह नाता जोड़ने पर
बड़ा भारी धर्म संकट आता है।
स्वरचित:
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना मध्यप्रदेश
कार्य:-शब्दलेखन
बिषय:- नाताविधा:-मुक्त
आज-
एकल समय में
सोचता हूँ,कुछ लिखूं
कुछ ही लिख पता हूँ कि,
हर वक्त लेखनी पर
बड़ा भारी धर्म संकट आता है।
हाथों में फंसी लेखनी
कोरे कागज पर
फिसलती असहाय स्याही
कुछ फीके,कुछ गाड़े से
अधलिखे पन्नों पे
उछरती
और उछरती रही।
पर-
लेखन का हाथों से
कागज का स्याही से
मन का मुझसे
यह नाता जोड़ने पर
बड़ा भारी धर्म संकट आता है।
स्वरचित:
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी, गुना मध्यप्रदेश
विषय,,,नाता/रिश्ते |
न जाने क्यों भाव बदल रहे |
अपनो से नाता तोड अन्य से जोड रहे |
रिश्तो की गहराई तो सागर जैसी .|
मंन करे आत्मा से तो रत्न ही रत्न .उपरी मन से तो मात्र कंकड |
कैसे कहाँ तिरोहित हो रहे भाव रिश्तो के |
येतो माला के मोती हे न तोडोकोई |
टूटे रिश्ते नही जुडते कांच की तरह |
आओ इन्हे पुनः सहेजने का प्रयास करे |
अपने लिऐ परिवार समाज देश के लिऐ |
जो बल जुडे रहने मे बिखरने मे नही
स्वरचित दमयंती मिश्रा
न जाने क्यों भाव बदल रहे |
अपनो से नाता तोड अन्य से जोड रहे |
रिश्तो की गहराई तो सागर जैसी .|
मंन करे आत्मा से तो रत्न ही रत्न .उपरी मन से तो मात्र कंकड |
कैसे कहाँ तिरोहित हो रहे भाव रिश्तो के |
येतो माला के मोती हे न तोडोकोई |
टूटे रिश्ते नही जुडते कांच की तरह |
आओ इन्हे पुनः सहेजने का प्रयास करे |
अपने लिऐ परिवार समाज देश के लिऐ |
जो बल जुडे रहने मे बिखरने मे नही
स्वरचित दमयंती मिश्रा
भावों के मोती दिनांक 8/8/19
नाता
रखो
आपस में
प्रेम ,
अपनापन
रहेंगे ज़िन्दा
नाते रिश्ते
रह नहीं
जाता कुछ
जब टूट
जाता है
नाता
आत्मा का
देह से
जोड़ो नाता
ईश से
वही है
पालनहार
बाकी सब
तो है
भ्रम और
मायाजाल
आसान है
तोड़ना
नाता
अपनों से
लग जाते हैं
वर्षों
नाते जोड़ने में
करो सम्मान
नातों का
यही देंगे
जीवन में
मान और शान
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नाता
रखो
आपस में
प्रेम ,
अपनापन
रहेंगे ज़िन्दा
नाते रिश्ते
रह नहीं
जाता कुछ
जब टूट
जाता है
नाता
आत्मा का
देह से
जोड़ो नाता
ईश से
वही है
पालनहार
बाकी सब
तो है
भ्रम और
मायाजाल
आसान है
तोड़ना
नाता
अपनों से
लग जाते हैं
वर्षों
नाते जोड़ने में
करो सम्मान
नातों का
यही देंगे
जीवन में
मान और शान
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन भावों के मोती
विषय--नाता
दिनांक--8-8-19
विधा --मुक्तक
1.
रिश्ते नातों के नाम न इतराइए।
कब तक रहें बुलन्द ये तो बताइए।
' हितैषी' ने नाते देखें हैं मरते--
नाता बनायँ तो अंत तक निभाइए।
2.
नाता कोई था नहीं, थे पूरे बहिरंग।
उन्हें जमानत चाहिए,सुनकर थे सब दंग।
खानापूर्ति पूर्ण की ,बिना किसी परवाह--
ऐसे बहिरँग बाद में,बने हुए अंतरँग।
******स्वरचित*****
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय--नाता
दिनांक--8-8-19
विधा --मुक्तक
1.
रिश्ते नातों के नाम न इतराइए।
कब तक रहें बुलन्द ये तो बताइए।
' हितैषी' ने नाते देखें हैं मरते--
नाता बनायँ तो अंत तक निभाइए।
2.
नाता कोई था नहीं, थे पूरे बहिरंग।
उन्हें जमानत चाहिए,सुनकर थे सब दंग।
खानापूर्ति पूर्ण की ,बिना किसी परवाह--
ऐसे बहिरँग बाद में,बने हुए अंतरँग।
******स्वरचित*****
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
नमन"भावो के मोती"
08/08/2019
"नाता"
छंदमुक्त
################
जन्म के साथ ही मिल जाती
रिश्तों की सौगातें.....
हम चलना तक न जानते
पर जीवन का सफर...
चल पड़ता है....
सफर में कुछ दिल के रिश्ते
बन जाते हैं.......
और अपने से हो जाते हैं..
कभी होती ऐसी हालातें...
पड़ जाती रिश्तों में दरारें
कुछ रिश्ते रुठ जाते हैं...
कुछ रिश्ते टूट जाते हैं...
कुछ खामोश हो जाते हैं..
फिर भी वो दिल में ...
बस जाते हैं....
याद आते हैं...उनकी बातें
कैसी भी हो हालातें...
रिश्ता नाता रहे ना रहे..
वक्त रुकता नहीं.....
सफर थमता नहीं....
बस टूट कर बिखरना नहीं
दो दिन की है जिंदगी...
हँसते जाना...मुस्कुराते जाना
प्रेम की सौगाते बाँटते जाना
आस का दीया जलाते जाना
अपनों के साथ #नाता#
कभी टूटता नहीं......।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
08/08/2019
"नाता"
छंदमुक्त
################
जन्म के साथ ही मिल जाती
रिश्तों की सौगातें.....
हम चलना तक न जानते
पर जीवन का सफर...
चल पड़ता है....
सफर में कुछ दिल के रिश्ते
बन जाते हैं.......
और अपने से हो जाते हैं..
कभी होती ऐसी हालातें...
पड़ जाती रिश्तों में दरारें
कुछ रिश्ते रुठ जाते हैं...
कुछ रिश्ते टूट जाते हैं...
कुछ खामोश हो जाते हैं..
फिर भी वो दिल में ...
बस जाते हैं....
याद आते हैं...उनकी बातें
कैसी भी हो हालातें...
रिश्ता नाता रहे ना रहे..
वक्त रुकता नहीं.....
सफर थमता नहीं....
बस टूट कर बिखरना नहीं
दो दिन की है जिंदगी...
हँसते जाना...मुस्कुराते जाना
प्रेम की सौगाते बाँटते जाना
आस का दीया जलाते जाना
अपनों के साथ #नाता#
कभी टूटता नहीं......।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन मंच
दिनाक... ८••८••२०१९
विषय .. नाता
*********************
किसको सुनाए हाल सभी, किससे कहे कहानी।
दिल मेरा सूखी सी धरती, तू घनघोर घटा पानी।
चाहत दबा के दिल मे सदा, तुझको ही चाहता रहा,
वर्षो के बाद जो तू मिली, आयी मुझे जवानी।
किसको सुनाए....
दर्पण से जब कभी मिला, खुद को ही कोसता रहा।
तोड के तुझसे नाता सभी, गम दर्द का पीता रहा।
किस्मत मे जानें क्या लिखा, मै जान पाया ना मगर,
अब जो है तू मुझे मिली, केशु है खीँजाबी।
किसको सुनाए....
आज ही मिली थी वो मुझे, हँस करके मुझसे कह दिया।
क्यो इतनी देर से कहाँ , पहले ही क्यो ना कह दिया।
विरान इस चमन को, मधुमास ना मिला कभी,
अब मिल के भी करेगे क्या, अब ना रही जवानी।
किसको सुनाए....
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
दिनाक... ८••८••२०१९
विषय .. नाता
*********************
किसको सुनाए हाल सभी, किससे कहे कहानी।
दिल मेरा सूखी सी धरती, तू घनघोर घटा पानी।
चाहत दबा के दिल मे सदा, तुझको ही चाहता रहा,
वर्षो के बाद जो तू मिली, आयी मुझे जवानी।
किसको सुनाए....
दर्पण से जब कभी मिला, खुद को ही कोसता रहा।
तोड के तुझसे नाता सभी, गम दर्द का पीता रहा।
किस्मत मे जानें क्या लिखा, मै जान पाया ना मगर,
अब जो है तू मुझे मिली, केशु है खीँजाबी।
किसको सुनाए....
आज ही मिली थी वो मुझे, हँस करके मुझसे कह दिया।
क्यो इतनी देर से कहाँ , पहले ही क्यो ना कह दिया।
विरान इस चमन को, मधुमास ना मिला कभी,
अब मिल के भी करेगे क्या, अब ना रही जवानी।
किसको सुनाए....
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
,भावों के मोती,
#दिनांक,८"८"२०१९,
#विषय,नाता,
#विधा,काव्य,
#रचनाकार, दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
**"""""""** नाता **""""""""**
तुम भी अपने दिल से हटा लो,
370 की ये जुल्मी धारा,
कब तक तेरी नफरत सहूं मैं,
फिरता रहूं मैं मारा मारा,
रिश्ता मुझसे तू जोड़ ले,
बना ले मुझसे भी तू नाता,
सात जन्मों तक साथ निभाऊं,
अपना ईश्वर हैं भाग्य विधाता
तुझे देखूं मन मेरा हरस गया,
तेरी एक झलक को तरस गया,
मेरे दिल पे बना ले शिकारा,
फिरुं कब तक मैं मारा मारा,
तेरा जिस्म लगे केशर क्यारी,
तेरी झलक लगे मुझको न्यारी,
फैली सी चांदनी तुम चीडों पर,
यौवन की अलहदा तुम नारी,
35,A का मुझे भी दे दो लाभ,
मेरा पूरा कर दो वषों का ख्वाब,
मेरी रूह से मिला लो अपनी रूह,
जैसे मिलती हैं रावी और चिनाब,
#दिनांक,८"८"२०१९,
#विषय,नाता,
#विधा,काव्य,
#रचनाकार, दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
**"""""""** नाता **""""""""**
तुम भी अपने दिल से हटा लो,
370 की ये जुल्मी धारा,
कब तक तेरी नफरत सहूं मैं,
फिरता रहूं मैं मारा मारा,
रिश्ता मुझसे तू जोड़ ले,
बना ले मुझसे भी तू नाता,
सात जन्मों तक साथ निभाऊं,
अपना ईश्वर हैं भाग्य विधाता
तुझे देखूं मन मेरा हरस गया,
तेरी एक झलक को तरस गया,
मेरे दिल पे बना ले शिकारा,
फिरुं कब तक मैं मारा मारा,
तेरा जिस्म लगे केशर क्यारी,
तेरी झलक लगे मुझको न्यारी,
फैली सी चांदनी तुम चीडों पर,
यौवन की अलहदा तुम नारी,
35,A का मुझे भी दे दो लाभ,
मेरा पूरा कर दो वषों का ख्वाब,
मेरी रूह से मिला लो अपनी रूह,
जैसे मिलती हैं रावी और चिनाब,
तेरा मेरा क्या रिश्ता है।
क्या नाम इसे दू।
क्या कह के पुकारू।
क्यूं दिल में बसता है।
तेरा मेरा क्या रिश्ता है।
कैसा है ये बन्धन।
कोई नहीं नाता।
ये पीर है कैसी।
क्या है दर्द जगाता।
मन देख हँसता है।
तेरा मेरा क्या रिश्ता है।
तुझे देख न पाऊं।
कितना घबराऊं।
देखूं तुझे जो मै।
कितना शरमाऊं।
नेह प्रेम का इन।
आखों से बरसता है।
तेरा मेरा क्या रिश्ता है।
विपिन सोहल
क्या नाम इसे दू।
क्या कह के पुकारू।
क्यूं दिल में बसता है।
तेरा मेरा क्या रिश्ता है।
कैसा है ये बन्धन।
कोई नहीं नाता।
ये पीर है कैसी।
क्या है दर्द जगाता।
मन देख हँसता है।
तेरा मेरा क्या रिश्ता है।
तुझे देख न पाऊं।
कितना घबराऊं।
देखूं तुझे जो मै।
कितना शरमाऊं।
नेह प्रेम का इन।
आखों से बरसता है।
तेरा मेरा क्या रिश्ता है।
विपिन सोहल
नमन,"भावों के मोती"🙏
शुभ दोपहरी🌹💐💐🌹
विषय:-नाता/रिश्ते
विधा:-सयाली छंद
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
1)))
नाता
लुभाने लगे
जब साथ अपने
निस्वार्थ प्रेम
नि:संदेह
2)))
धरती,
बूँदें समेटे,
बरसे आसमानी बादल,
लहलहाते खलिहान,
नाता !
3)))
रिश्ता
माता पिता
निस्वार्थ करते कर्म
शिष्टाचार सिखाते
सभी
4)))
नाता,
अपना यही,
माँगे स्नेह बहुत,
प्यार आषीश,
पाते,
5)))
एक
नाता प्रभु
चर अचर में
व्याप्त रहते
दयालु
स्वरचित
नीलम शर्मा
शुभ दोपहरी🌹💐💐🌹
विषय:-नाता/रिश्ते
विधा:-सयाली छंद
🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁🍂🍁
1)))
नाता
लुभाने लगे
जब साथ अपने
निस्वार्थ प्रेम
नि:संदेह
2)))
धरती,
बूँदें समेटे,
बरसे आसमानी बादल,
लहलहाते खलिहान,
नाता !
3)))
रिश्ता
माता पिता
निस्वार्थ करते कर्म
शिष्टाचार सिखाते
सभी
4)))
नाता,
अपना यही,
माँगे स्नेह बहुत,
प्यार आषीश,
पाते,
5)))
एक
नाता प्रभु
चर अचर में
व्याप्त रहते
दयालु
स्वरचित
नीलम शर्मा
नमन भावों के मोती
आज का विषय, नाता
8,8,2019.
गुरुवार ,
नाता जो दुनियाँ से हमारा तुम्हारा,
झूठा नहीं कुछ सब सच ही है यारा।
मानव को है बस मानव का सहारा,
हकीकत यही चाहे करो न गँवारा
दुनियाँ चाहे अनचाहे रिश्तों का है मेला,
जुड़कर भी यहाँ पर हर कोई है अकेला ।
जब आत्मा से मिलन मन कर नहीं पाता,
अनजानों से कैसे फिर निभायेगा नाता ।
स्वार्थ से जुड़ गया जब से हम सब का नाता,
रूठ गया है तब से ही हमसे विधाता ।
रही रौनक नहीं टूटा है खुशियों से नाता,
उजड़ा उजड़ा सा हर गुलशन नजर आता ।
श्रृंगार है मानवता का यहाँ पर हर नाता,
एक दूजे बिन कभी गुजारा नहीं हो पाता ।
योगदान सबका कुछ न कुछ जीवन में होता ,
हम समझें नहीं तो है ये आँखों का धोखा।
रहता एहसासों से जुड़ा हमारा गहरा है नाता ,
गुलशन के हर फूल से माली बनाता है माला ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
आज का विषय, नाता
8,8,2019.
गुरुवार ,
नाता जो दुनियाँ से हमारा तुम्हारा,
झूठा नहीं कुछ सब सच ही है यारा।
मानव को है बस मानव का सहारा,
हकीकत यही चाहे करो न गँवारा
दुनियाँ चाहे अनचाहे रिश्तों का है मेला,
जुड़कर भी यहाँ पर हर कोई है अकेला ।
जब आत्मा से मिलन मन कर नहीं पाता,
अनजानों से कैसे फिर निभायेगा नाता ।
स्वार्थ से जुड़ गया जब से हम सब का नाता,
रूठ गया है तब से ही हमसे विधाता ।
रही रौनक नहीं टूटा है खुशियों से नाता,
उजड़ा उजड़ा सा हर गुलशन नजर आता ।
श्रृंगार है मानवता का यहाँ पर हर नाता,
एक दूजे बिन कभी गुजारा नहीं हो पाता ।
योगदान सबका कुछ न कुछ जीवन में होता ,
हम समझें नहीं तो है ये आँखों का धोखा।
रहता एहसासों से जुड़ा हमारा गहरा है नाता ,
गुलशन के हर फूल से माली बनाता है माला ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
भावों के मोती
8/8/2019
विषय-नाता
🌷🌹🌷🌹🌷
जन्म से पूर्व ही
माँ का शिशु से
अटूट नाता जुड़ जाता है
भाई बहन का नाता
पावन रिश्ता कहलाता है
कहते हैं,पति पत्नी का रिश्ता
ऊपर वाला बनाता है ।
पहले रिश्ते नातों के
घर हुआ करते थे
अब तो हर रिश्ता
एकल परिवार में
सिमटा जाता है
संयुक्त परिवार से नाता
धीरे धीरे टूटता सा जाता है
दादा दादी,मौसी मामी
चाचा चाची,बुआ ताई
आज के बच्चे क्या जाने
इनसे इनका कौन सा नाता है?
बासी हो चुके हैं
अब कुछ रिश्ते नाते
जिन्हें गर्म करने पर भी
असली स्वाद न मिल पाता है ।।
✍🏻वंदना सोलंकी©️स्वरचित
8/8/2019
विषय-नाता
🌷🌹🌷🌹🌷
जन्म से पूर्व ही
माँ का शिशु से
अटूट नाता जुड़ जाता है
भाई बहन का नाता
पावन रिश्ता कहलाता है
कहते हैं,पति पत्नी का रिश्ता
ऊपर वाला बनाता है ।
पहले रिश्ते नातों के
घर हुआ करते थे
अब तो हर रिश्ता
एकल परिवार में
सिमटा जाता है
संयुक्त परिवार से नाता
धीरे धीरे टूटता सा जाता है
दादा दादी,मौसी मामी
चाचा चाची,बुआ ताई
आज के बच्चे क्या जाने
इनसे इनका कौन सा नाता है?
बासी हो चुके हैं
अब कुछ रिश्ते नाते
जिन्हें गर्म करने पर भी
असली स्वाद न मिल पाता है ।।
✍🏻वंदना सोलंकी©️स्वरचित
नमन मंच
दिनांक ८/८/२०१९
शीर्षक-"
नाता"
रिश्ते नाते जीवन में अनमोल
कटू शब्दों से आते इसमें झोल
मीठे शब्दों का बनाये ताना बाना
जो देंगे रिश्तों में मधुर रस घोल।
माँ बाप से जन्मों का रिश्ता
रिश्तों में ये सबसे उत्तम रिश्ता
करें हम सदा इनका सम्मान
ये तो हमारा फर्ज बनता।
मित्रता से है पहचान बनता
उनसे नहीं खून का रिश्ता
पर अटूट रिश्ते होते उनसे
सब रिश्ते पर ये भारी पड़़ते।
जितना भी भव्य महल बनाने ले
पड़ोसी से न झगड़ा पाले
उनसे भी है रिश्ते नाते
खुशी खुशी बस उसे निभाले।
जीवन नही अकेले का नाम
रिश्ते नाते सदा आये काम
हर रिश्ते का अपना महत्व
बस इसे समझ जाये हम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
दिनांक ८/८/२०१९
शीर्षक-"
नाता"
रिश्ते नाते जीवन में अनमोल
कटू शब्दों से आते इसमें झोल
मीठे शब्दों का बनाये ताना बाना
जो देंगे रिश्तों में मधुर रस घोल।
माँ बाप से जन्मों का रिश्ता
रिश्तों में ये सबसे उत्तम रिश्ता
करें हम सदा इनका सम्मान
ये तो हमारा फर्ज बनता।
मित्रता से है पहचान बनता
उनसे नहीं खून का रिश्ता
पर अटूट रिश्ते होते उनसे
सब रिश्ते पर ये भारी पड़़ते।
जितना भी भव्य महल बनाने ले
पड़ोसी से न झगड़ा पाले
उनसे भी है रिश्ते नाते
खुशी खुशी बस उसे निभाले।
जीवन नही अकेले का नाम
रिश्ते नाते सदा आये काम
हर रिश्ते का अपना महत्व
बस इसे समझ जाये हम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
दि- 8-8-19
विषय- नाता
सादर मंच को समर्पित --
🌹🌻 गीतिका 🌻🌹
****************************
🌹 नाता 🌹
मापनी-122 , 122 , 122 , 122
समान्त -आर , पदांत - होगी
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
न नाते मिटेंगे , न हित मार होगी ।
रहें प्यार से तो , न तकरार होगी ।।
रखें अहं को दूर यदि हम सभी तो ,
न अलगाव होगा , न हद पार होगी ।
जहाँ शर्म रहती सदा आँख पानी ,
न परिवार टूटे , न दीवार होगी ।
सदा पूर्ण सम्मान दें यदि सभी को ,
न कोई लड़ेगा , न नित रार होगी ।
कभी भी न संवेदना शून्य हम हों ,
चलें एक होकर न फिर हार होगी ।।
🍓🌻☀️🌹🌴🌺
🌲🌷**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
विषय- नाता
सादर मंच को समर्पित --
🌹🌻 गीतिका 🌻🌹
****************************
🌹 नाता 🌹
मापनी-122 , 122 , 122 , 122
समान्त -आर , पदांत - होगी
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
न नाते मिटेंगे , न हित मार होगी ।
रहें प्यार से तो , न तकरार होगी ।।
रखें अहं को दूर यदि हम सभी तो ,
न अलगाव होगा , न हद पार होगी ।
जहाँ शर्म रहती सदा आँख पानी ,
न परिवार टूटे , न दीवार होगी ।
सदा पूर्ण सम्मान दें यदि सभी को ,
न कोई लड़ेगा , न नित रार होगी ।
कभी भी न संवेदना शून्य हम हों ,
चलें एक होकर न फिर हार होगी ।।
🍓🌻☀️🌹🌴🌺
🌲🌷**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
II नाता / रिश्ता II नमन भावों के मोती.....
बूढी अम्मा के कमरे में एक बक्सा पड़ा है...
ऊपर बड़ा सा ताला जड़ा है....
घर के लोगों की आँखों में वो कभी चमक....
कभी निराशा सा देता है....
"अजी सुनो कभी पुछा अपनी अम्मा से...
इस 'पिटारे' में ऐसा क्या छुपा रखा है"...
"हां पूछा बहुत बार, पर कोई जवाब नहीं मिला".....
एक सुबह अम्मा अपने नित-नेम से निवृत हो...
बक्से के पास बैठ गयी...
इतने में ही खबर कानों में पंहुच गयी...
सब की आँखें बक्से पे जम गयीं...
अम्मा ने बक्सा खोला....
सबसे ऊपर एक सादा लाल सा जोड़ा पड़ा है...
शादी का लगता है...
फिर एक सूट निकला साथ में कुछ पैसे...
"अरे ये तो वही सूट और पैसे हैं अम्मा..
जो मैंने तुमको "दिए" थे जब पहली तनख्वाह मिली थी....
अभी तक रखे हैं "....
और निकले उपहार जो कभी अम्मा ने....
अपनी बहु बेटे को शादी की सालगिरह पर दिए थे...
पर उनको पसंद नहीं थे....पड़े थे...
फिर अम्मा ने हाथ में धागे उठाये...शायद २५-३०......
राखी के धागे हैं..एक दूसरे से बंधे......
जो उस भाई के लिए थे जो उसको छोड़ गया था...
क्यूँकी उसने घर की मर्जी के बिना शादी की थी....
फिर निकला पायल का जोड़ा...जो उसने पोती को दिया था...
पर बहु-बेटे ने वापिस कर दिया था...
और..... बस.....यही कुछ उसमें भरा पड़ा था...
बाकी सारा बक्सा खाली पड़ा था...
अम्मा की जीवन में रिश्तों की तरह....
अम्मा की वीरान आँखें दीवार को देख रही थी...
जैसे सवाल हो उन आँखों में....क्या कसूर था उसका...
उसने तो बेटी..बहन..पत्नी..माँ..दादी का रिश्ता जीया....
पर उसको...
पति भी ५ साल पहले छोड़ के संसार से चला गया...
कौन सा रिश्ता उसके पास है....
फिर धीरे धीरे फिसलती पुतलियाँ स्थिर हो गयी....
बक्से का मुह खुला हुआ था...कह रहा हो जैसे....
लो अब सब खाली हो गया......
घर में शोर सा मच गया...
अजी "बुढ़िया" चली गयी....अब जल्दी से इसकी तयारी कर दो...
और ४ दिन में ही सब काम ख़तम कर दो मेरे पास टाइम नहीं है....
मेरे दिल से वो "रिश्तों के पिटारे" की तस्वीर नहीं जाती....
आँखों के आगे से "हिर्दय विहीन रिश्तों" की तस्वीर नहीं जाती....
क्या करूँ मैं......
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०८.०८.२०१९
बूढी अम्मा के कमरे में एक बक्सा पड़ा है...
ऊपर बड़ा सा ताला जड़ा है....
घर के लोगों की आँखों में वो कभी चमक....
कभी निराशा सा देता है....
"अजी सुनो कभी पुछा अपनी अम्मा से...
इस 'पिटारे' में ऐसा क्या छुपा रखा है"...
"हां पूछा बहुत बार, पर कोई जवाब नहीं मिला".....
एक सुबह अम्मा अपने नित-नेम से निवृत हो...
बक्से के पास बैठ गयी...
इतने में ही खबर कानों में पंहुच गयी...
सब की आँखें बक्से पे जम गयीं...
अम्मा ने बक्सा खोला....
सबसे ऊपर एक सादा लाल सा जोड़ा पड़ा है...
शादी का लगता है...
फिर एक सूट निकला साथ में कुछ पैसे...
"अरे ये तो वही सूट और पैसे हैं अम्मा..
जो मैंने तुमको "दिए" थे जब पहली तनख्वाह मिली थी....
अभी तक रखे हैं "....
और निकले उपहार जो कभी अम्मा ने....
अपनी बहु बेटे को शादी की सालगिरह पर दिए थे...
पर उनको पसंद नहीं थे....पड़े थे...
फिर अम्मा ने हाथ में धागे उठाये...शायद २५-३०......
राखी के धागे हैं..एक दूसरे से बंधे......
जो उस भाई के लिए थे जो उसको छोड़ गया था...
क्यूँकी उसने घर की मर्जी के बिना शादी की थी....
फिर निकला पायल का जोड़ा...जो उसने पोती को दिया था...
पर बहु-बेटे ने वापिस कर दिया था...
और..... बस.....यही कुछ उसमें भरा पड़ा था...
बाकी सारा बक्सा खाली पड़ा था...
अम्मा की जीवन में रिश्तों की तरह....
अम्मा की वीरान आँखें दीवार को देख रही थी...
जैसे सवाल हो उन आँखों में....क्या कसूर था उसका...
उसने तो बेटी..बहन..पत्नी..माँ..दादी का रिश्ता जीया....
पर उसको...
पति भी ५ साल पहले छोड़ के संसार से चला गया...
कौन सा रिश्ता उसके पास है....
फिर धीरे धीरे फिसलती पुतलियाँ स्थिर हो गयी....
बक्से का मुह खुला हुआ था...कह रहा हो जैसे....
लो अब सब खाली हो गया......
घर में शोर सा मच गया...
अजी "बुढ़िया" चली गयी....अब जल्दी से इसकी तयारी कर दो...
और ४ दिन में ही सब काम ख़तम कर दो मेरे पास टाइम नहीं है....
मेरे दिल से वो "रिश्तों के पिटारे" की तस्वीर नहीं जाती....
आँखों के आगे से "हिर्दय विहीन रिश्तों" की तस्वीर नहीं जाती....
क्या करूँ मैं......
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०८.०८.२०१९
नमन भावों के मोती
दिनांक:7/08/19
विषय: नाता/रिश्ता
विधा:हाइकु
1
सगे सम्बन्धी
जिन्दगी उपहार
रक्त का नाता
2
मानव सेवा
परोपकार धर्म
नेह का रिश्ता
3
प्रकृति रक्षा
जीवन का कर्तव्य
स्नेह का नाता
4
मोक्ष का द्वार
गुरू शिष्य के रिश्ते
जीवन सार
5
जिन्दगी नाता
तात और जननी
वात्सल्य प्राण
6
राष्ट्र उत्थान
देशप्रेम का रिश्ता
विश्व विजय
7
सृष्टि सृजन
सजीव व निर्जीव
खामोश रिश्ते
8
दिल के रिश्ते
अजीब उलझन
प्रेमी प्रेमिका
9
कवि हृदय
साहित्य का गढ़ना
सृजन नाता
मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
दिनांक:7/08/19
विषय: नाता/रिश्ता
विधा:हाइकु
1
सगे सम्बन्धी
जिन्दगी उपहार
रक्त का नाता
2
मानव सेवा
परोपकार धर्म
नेह का रिश्ता
3
प्रकृति रक्षा
जीवन का कर्तव्य
स्नेह का नाता
4
मोक्ष का द्वार
गुरू शिष्य के रिश्ते
जीवन सार
5
जिन्दगी नाता
तात और जननी
वात्सल्य प्राण
6
राष्ट्र उत्थान
देशप्रेम का रिश्ता
विश्व विजय
7
सृष्टि सृजन
सजीव व निर्जीव
खामोश रिश्ते
8
दिल के रिश्ते
अजीब उलझन
प्रेमी प्रेमिका
9
कवि हृदय
साहित्य का गढ़ना
सृजन नाता
मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
नमन मंच को
8/8/2019
नाता
नयनो में अश्रु, दिल में तस्वीर है,
माथा सजा है जिससे आज वो कश्मीर है l
अंत होगा मारकाट का, दिल बहुत अधीर है,
कहीं है हरा रंग और कहीं अबीर है ll
ख़ुशी जो मांगी थी हमने, बही अब पुरवैया समीर है,
न कोई तलवार न कोई अब तीर है ll
नहीं अब बहेगा लाल खून लाल का,
कट गयी दो झंडो की अब जंजीर है l
नाता जोड़ दिया खुशिओं से भारत का,
देखो फिर से कितना प्यारा हमारा कश्मीर है ll
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
8/8/2019
नाता
नयनो में अश्रु, दिल में तस्वीर है,
माथा सजा है जिससे आज वो कश्मीर है l
अंत होगा मारकाट का, दिल बहुत अधीर है,
कहीं है हरा रंग और कहीं अबीर है ll
ख़ुशी जो मांगी थी हमने, बही अब पुरवैया समीर है,
न कोई तलवार न कोई अब तीर है ll
नहीं अब बहेगा लाल खून लाल का,
कट गयी दो झंडो की अब जंजीर है l
नाता जोड़ दिया खुशिओं से भारत का,
देखो फिर से कितना प्यारा हमारा कश्मीर है ll
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
शुभ साँझ
विषय-- नाता/रिश्ता
विधा--ग़ज़ल
द्वितीय प्रयास
समझ न आए इस रिश्ते को क्या नाम दूँ
कितनी दुआयें और कितने सलाम दूँ ।।
अजीब सी खुशी अजीब सी सिहरन जगे
जब दिल को उसके आने का पयाम दूँ ।।
दिल तड़फने लगे दिल मचलने लगे
बेशक ख्वाबों में उन आँखों का जाम दूँ ।।
कौन सा रिश्ता दिल का समझ न आए
कोई बताये उसको मुँह माँगा ईनाम दूँ ।।
जब कभी भी दर्द सताये इस दिल को
यही एक यादों की मरहम रूपी बाम दूँ ।।
अचूक दवा है यह इस दिल की यारो
साथ रखता हूँ सदा सुवह और शाम दूँ ।।
अब तो आदत सी पड़ गयी है दिल को
उसके बिना कैसे इस दिल को आराम दूँ ।।
मुक़द्दस यह रिश्ता मुक़द्दस रहेगा 'शिवम'
रब की सौगात यह रब को क्या दाम दूँ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/08/2019
विषय-- नाता/रिश्ता
विधा--ग़ज़ल
द्वितीय प्रयास
समझ न आए इस रिश्ते को क्या नाम दूँ
कितनी दुआयें और कितने सलाम दूँ ।।
अजीब सी खुशी अजीब सी सिहरन जगे
जब दिल को उसके आने का पयाम दूँ ।।
दिल तड़फने लगे दिल मचलने लगे
बेशक ख्वाबों में उन आँखों का जाम दूँ ।।
कौन सा रिश्ता दिल का समझ न आए
कोई बताये उसको मुँह माँगा ईनाम दूँ ।।
जब कभी भी दर्द सताये इस दिल को
यही एक यादों की मरहम रूपी बाम दूँ ।।
अचूक दवा है यह इस दिल की यारो
साथ रखता हूँ सदा सुवह और शाम दूँ ।।
अब तो आदत सी पड़ गयी है दिल को
उसके बिना कैसे इस दिल को आराम दूँ ।।
मुक़द्दस यह रिश्ता मुक़द्दस रहेगा 'शिवम'
रब की सौगात यह रब को क्या दाम दूँ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/08/2019
भावों के मोती दिनांक 8/8/19
नाता / रिश्ता
हाइकु विधा
इतर
1
नहीं हो नाते
स्वार्थ मतलब के
रिश्ते हो सच्चे
2
पत्नी से नाता
लड़ना झगड़ना
है मोहब्बत
3
देश से नाता
सैनिक हैं तत्पर
जय भारत
4
रिश्ते कश्मीर
खुशियाँ है अपार
अपना घर
5
जो रखे नाता
माता पिता हैं खूश
आशीर्वाद अपार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नाता / रिश्ता
हाइकु विधा
इतर
1
नहीं हो नाते
स्वार्थ मतलब के
रिश्ते हो सच्चे
2
पत्नी से नाता
लड़ना झगड़ना
है मोहब्बत
3
देश से नाता
सैनिक हैं तत्पर
जय भारत
4
रिश्ते कश्मीर
खुशियाँ है अपार
अपना घर
5
जो रखे नाता
माता पिता हैं खूश
आशीर्वाद अपार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन भावों के मोती नमन आ0 वीणा शर्मा वशिष्ठ जी
शीर्षकः- नाता
हमारा तुम्हारा तो था जन्म जन्म का नाता।
वरना यों ही नहीं दिल को दूजे से है लगाता।।
दिल भी नहीं कोई भी ऐसा कभी कहीं लगाता।
भूल जाये वह सबसे ही अपना सामस्त नाता।।
एक दूजे के अतिरिक्त नहीं उसे है नजर आता।
अपनी जान को कुर्बान दूजे पे कर है वह जाता।।
अपने समस्त हितों को भी सदा वह भूल जाता ।
मौत से टकराने से नहीं वह कभी भी घबराता।।
जाने वाला लौट कर वापस कभी भी नहीं आता।
पर फिर भी उसको भुलाया नहीं कभी है जाता।।
हर शुभचिन्तक एवं हितैशी उसे कितना समझाता।
परन्तु उसकी आँखों से बहते आंसू नहीं रोक पाता।।
भगवान उन बेचारो पर ऐसे सितम ही क्यों है ढ़ाता।
व्यथित हृदय की समझ में किंचित भी नहीं है आता।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव“
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
शीर्षकः- नाता
हमारा तुम्हारा तो था जन्म जन्म का नाता।
वरना यों ही नहीं दिल को दूजे से है लगाता।।
दिल भी नहीं कोई भी ऐसा कभी कहीं लगाता।
भूल जाये वह सबसे ही अपना सामस्त नाता।।
एक दूजे के अतिरिक्त नहीं उसे है नजर आता।
अपनी जान को कुर्बान दूजे पे कर है वह जाता।।
अपने समस्त हितों को भी सदा वह भूल जाता ।
मौत से टकराने से नहीं वह कभी भी घबराता।।
जाने वाला लौट कर वापस कभी भी नहीं आता।
पर फिर भी उसको भुलाया नहीं कभी है जाता।।
हर शुभचिन्तक एवं हितैशी उसे कितना समझाता।
परन्तु उसकी आँखों से बहते आंसू नहीं रोक पाता।।
भगवान उन बेचारो पर ऐसे सितम ही क्यों है ढ़ाता।
व्यथित हृदय की समझ में किंचित भी नहीं है आता।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव“
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दिल का धड़कन से
सौरभ का सुमन से
माली का चमन से
है अटूट नाता।
चाँद का चाँदनी से
सूरज का रोशनी से
गीत का रागिनी से
है अटूट नाता
कवि का वनिता से
जल का सरिता से
संतान का माता-पिता से
है अटूट नाता
भावों का ह्रदय से
वीरों का जय से
गुणियों का विनय से
है अटूट नाता
उमा शुक्ला नीमच
स्वरचित
सौरभ का सुमन से
माली का चमन से
है अटूट नाता।
चाँद का चाँदनी से
सूरज का रोशनी से
गीत का रागिनी से
है अटूट नाता
कवि का वनिता से
जल का सरिता से
संतान का माता-पिता से
है अटूट नाता
भावों का ह्रदय से
वीरों का जय से
गुणियों का विनय से
है अटूट नाता
उमा शुक्ला नीमच
स्वरचित
भावों के मोती
8/08/19
विषय-नाता
इंसा क्यों निर्बल होता है ?
जज्बातों की जंजीर में जकड़ा
निज मन की कुंठा में उलझा
खुद को खोऐ जाता है ।
प्रश्न वही, इंसा क्यों बेबस होता है ?
मन मंथन का गरल भी पीता
निज प्राण पीयूष भी हरता
फिर भी न स्वयंभू होता है ।
प्रश्न वही, इंसा क्यों विवश होता है ?
खुद को खोता, चैन गंवाता
मन के तम में भटका जाता
समय की ठोकर खाता है ।
प्रश्न वही इंसा क्यों अंजान होता है?
दूर किसी से "नाता ,जोङे
पास से अंजान होता
आसमान तो मिले नही
अपना आधार भी खोता है ।
प्रश्न वही इंसा क्यों नादां होता है?
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
8/08/19
विषय-नाता
इंसा क्यों निर्बल होता है ?
जज्बातों की जंजीर में जकड़ा
निज मन की कुंठा में उलझा
खुद को खोऐ जाता है ।
प्रश्न वही, इंसा क्यों बेबस होता है ?
मन मंथन का गरल भी पीता
निज प्राण पीयूष भी हरता
फिर भी न स्वयंभू होता है ।
प्रश्न वही, इंसा क्यों विवश होता है ?
खुद को खोता, चैन गंवाता
मन के तम में भटका जाता
समय की ठोकर खाता है ।
प्रश्न वही इंसा क्यों अंजान होता है?
दूर किसी से "नाता ,जोङे
पास से अंजान होता
आसमान तो मिले नही
अपना आधार भी खोता है ।
प्रश्न वही इंसा क्यों नादां होता है?
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
नमन मंच भावों के मोती
नाता
छंदमुक्त
सम्बन्धों को परिभाषित करता
धागा ये रिश्तों नातो का..
स्नेह,प्रेम सुख दुःख सम्बल है
प्रेम भरी उन बातों का...
जोड़ा है मानव से मानव को,
ये नाते है जग से अनमोल
अभिसिंचित प्रीति से ये उपवन
कलि कुसुम रहे है मधु घोल।
मर्यादा जिसकी नींव बनी
रिश्तों नातों का सुगढ़ भवन।
बसता है कण कण में अनुराग
होता पल में संताप शमन।
अहंकार मदभेद तोड़ते
है पल में नाते सारे।
टूट रहे परिवार आज सब
खड़ी हो रही दीवारें।
प्रेम प्रकाश भरे जीवन में
करके मदभेदों को दूर
अपनों की कर क्षमा गलतियाँ
सजते नातों के कोहिनूर।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
नाता
छंदमुक्त
सम्बन्धों को परिभाषित करता
धागा ये रिश्तों नातो का..
स्नेह,प्रेम सुख दुःख सम्बल है
प्रेम भरी उन बातों का...
जोड़ा है मानव से मानव को,
ये नाते है जग से अनमोल
अभिसिंचित प्रीति से ये उपवन
कलि कुसुम रहे है मधु घोल।
मर्यादा जिसकी नींव बनी
रिश्तों नातों का सुगढ़ भवन।
बसता है कण कण में अनुराग
होता पल में संताप शमन।
अहंकार मदभेद तोड़ते
है पल में नाते सारे।
टूट रहे परिवार आज सब
खड़ी हो रही दीवारें।
प्रेम प्रकाश भरे जीवन में
करके मदभेदों को दूर
अपनों की कर क्षमा गलतियाँ
सजते नातों के कोहिनूर।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
तिथि - 8/8/19
विधा - छंद मुक्त
विषय - नाता
पहली ही नजर तेरी
दिल में घर कर गई
बार बार तुझे देखने को
तबियत मचल गई
दिल की धड़कन के
साज बजने लगे
ख्वाब कई आँखों में
तुझे देख सजने लगे
लगता तुझसे पिछले
जन्मों का नाता है
यूँ ही नहीं कोई
किसी को भाता है
रोज मेरी शामें
तुझे देख-देख भरने लगीं
जोड़ने को नाता तुझसे
यूँ ही सँवरने लगी
बार बार लगता
तुझे खूब हम जानते हैं
दो दिल खुद यह
रिश्ता पहचानते हैं
रिश्ते नातों की डोर
दिल से बंधी होती है
दर्द दिल में जगता है
अंखियाँ न सोती हैं
आओ एक सूत्र में
आज बंध जाए हम
फिर अपना नाता यह
कभी न भूल पाये हम
जीवन की लंबी डगर
साथ चलते जाएं हम
नाता पूरी निष्ठा से
अपना निभाये हम
सरिता गर्ग
विधा - छंद मुक्त
विषय - नाता
पहली ही नजर तेरी
दिल में घर कर गई
बार बार तुझे देखने को
तबियत मचल गई
दिल की धड़कन के
साज बजने लगे
ख्वाब कई आँखों में
तुझे देख सजने लगे
लगता तुझसे पिछले
जन्मों का नाता है
यूँ ही नहीं कोई
किसी को भाता है
रोज मेरी शामें
तुझे देख-देख भरने लगीं
जोड़ने को नाता तुझसे
यूँ ही सँवरने लगी
बार बार लगता
तुझे खूब हम जानते हैं
दो दिल खुद यह
रिश्ता पहचानते हैं
रिश्ते नातों की डोर
दिल से बंधी होती है
दर्द दिल में जगता है
अंखियाँ न सोती हैं
आओ एक सूत्र में
आज बंध जाए हम
फिर अपना नाता यह
कभी न भूल पाये हम
जीवन की लंबी डगर
साथ चलते जाएं हम
नाता पूरी निष्ठा से
अपना निभाये हम
सरिता गर्ग
नमन
भावों के मोती
८/८/२०१९
विषय-नाता
जन्म जन्म का नाता साथी,
जैसे हो हम दीपक बाती।
बनके चलूं मैं तेरी परछाई,
ए मेरे हमदम ऐ मेरे साथी।
दुख सुख मिलकर साथ सहेंगे,
पग-पग हम साथ चलेंगे।
रहे अमर ये नाता हमारा,
हर संकट से मिलकर लड़ेंगे।
ये जीवन का सफर सुहाना,
तेरा मेरे जीवन में आना।
जैसे उतरा चांद जीवन में,
महका गुलशन था जो वीराना।
ये सुंदर सा अपना आंगन
कितना प्यारा है मनभावन।
कितने फूल खिले नातों के,
जिनसे महका अपना जीवन।
आओ मिलकर सींचे ये फुलवारी,
प्रेम की खाद डालें-क्यारी-क्यारी।
मतभेदों के शूल हटा दें,
बने ये दुनिया सबसे प्यारी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
भावों के मोती
८/८/२०१९
विषय-नाता
जन्म जन्म का नाता साथी,
जैसे हो हम दीपक बाती।
बनके चलूं मैं तेरी परछाई,
ए मेरे हमदम ऐ मेरे साथी।
दुख सुख मिलकर साथ सहेंगे,
पग-पग हम साथ चलेंगे।
रहे अमर ये नाता हमारा,
हर संकट से मिलकर लड़ेंगे।
ये जीवन का सफर सुहाना,
तेरा मेरे जीवन में आना।
जैसे उतरा चांद जीवन में,
महका गुलशन था जो वीराना।
ये सुंदर सा अपना आंगन
कितना प्यारा है मनभावन।
कितने फूल खिले नातों के,
जिनसे महका अपना जीवन।
आओ मिलकर सींचे ये फुलवारी,
प्रेम की खाद डालें-क्यारी-क्यारी।
मतभेदों के शूल हटा दें,
बने ये दुनिया सबसे प्यारी।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
नमन "भावों के मोती"🙏
08/08/2019
वर्ण पिरामिड (वर्ण 1-7)
विषय :-नाता/रिश्ता
(1)
है
रिश्ते
सौगात
बूझे मन
मीठा बंधन
दे अपनापन
बेशकीमती धन
(2)
है
आज
दिखते
स्वार्थी रिश्ते
शर्तों पे जीते
धन से टिकते
रंग भी बदलते
(3)
यूँ
गढ़े
जीवन
सर्वोत्तम
दिल का रिश्ता
मन को पढ़ता
दर्द भी संभलता
(4)
है
वक़्त
गवाही
क्या पढाई
रोती सच्चाई
संस्कृति गँवाई
रिश्तों पे आँच आई
(5)
हैं
धन्य
निःस्वार्थ
नेक रिश्ते
दर्द सिलते
बनते फ़रिश्ते
जीवन बदलते
(6)
वो
मनु
महान
सींचे प्राण
वक़्त का दान
रिश्तों का सम्मान
असली धनवान
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद (राज.)
08/08/2019
वर्ण पिरामिड (वर्ण 1-7)
विषय :-नाता/रिश्ता
(1)
है
रिश्ते
सौगात
बूझे मन
मीठा बंधन
दे अपनापन
बेशकीमती धन
(2)
है
आज
दिखते
स्वार्थी रिश्ते
शर्तों पे जीते
धन से टिकते
रंग भी बदलते
(3)
यूँ
गढ़े
जीवन
सर्वोत्तम
दिल का रिश्ता
मन को पढ़ता
दर्द भी संभलता
(4)
है
वक़्त
गवाही
क्या पढाई
रोती सच्चाई
संस्कृति गँवाई
रिश्तों पे आँच आई
(5)
हैं
धन्य
निःस्वार्थ
नेक रिश्ते
दर्द सिलते
बनते फ़रिश्ते
जीवन बदलते
(6)
वो
मनु
महान
सींचे प्राण
वक़्त का दान
रिश्तों का सम्मान
असली धनवान
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद (राज.)
8/8/19
भावों के मोती
विषय=नाता
============
सावन के वो दिन थे सुहाने
मन को भाते थे रिश्ते-नाते
त्यौहारों का रंग हुआ फीका
रस्मों-रिवाजों से नाता टूटा
रिश्तों की दिखावटी झलकें
याद दिलाती गुजरे पल की
दिल में किसी कोने से झलकी
यादें पीहर की हल्की-हल्की
अमुवा की डाली पड़ा हिंडोला
भाई-बहन संग मिलकर झूला
छूट गए वो दिन अब पीछे
आँगन पट गए मिट गए झूले
भाई से जो दूर हैं बहनें
राखी पर मिलने को तरसे
सावन के संग आँसू बरसे
मेहंदी लगे हाथों से विरहन
राह तके कब आएंगे साजन
बीत न जाए दिन यह फीके
सावन के झूले भी रीते
हो फिर से उमंग भरा सावन
चौमासे का माह यह पावन
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
भावों के मोती
विषय=नाता
============
सावन के वो दिन थे सुहाने
मन को भाते थे रिश्ते-नाते
त्यौहारों का रंग हुआ फीका
रस्मों-रिवाजों से नाता टूटा
रिश्तों की दिखावटी झलकें
याद दिलाती गुजरे पल की
दिल में किसी कोने से झलकी
यादें पीहर की हल्की-हल्की
अमुवा की डाली पड़ा हिंडोला
भाई-बहन संग मिलकर झूला
छूट गए वो दिन अब पीछे
आँगन पट गए मिट गए झूले
भाई से जो दूर हैं बहनें
राखी पर मिलने को तरसे
सावन के संग आँसू बरसे
मेहंदी लगे हाथों से विरहन
राह तके कब आएंगे साजन
बीत न जाए दिन यह फीके
सावन के झूले भी रीते
हो फिर से उमंग भरा सावन
चौमासे का माह यह पावन
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित
नमन मंच
भावों के मोती,
******************************
आज हमारी सभ्यता,
न जाने कहाँ खो गई,
ये रिश्ता ये नाता सब,
वक्त की बात हो गई।
अपनी बिगड़ी बनाने,
लोग कदमों में गिर जाते,
काम बना जो उनका तो,
कभी नजर नही आते।
जिन्हें कहते हम अपने सगे,
सब के सब वासना में लदे
कुछ नाता दिखता नही,
नन्ही कली चाहे हो भले!
कितना प्यारा शब्द है नाता,
जैसे पिता,पुत्र और माता,
भाई बहन का पवित्र बंधन
कितना सच्चा मन को लुभाता।
रचना-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
भावों के मोती,
******************************
आज हमारी सभ्यता,
न जाने कहाँ खो गई,
ये रिश्ता ये नाता सब,
वक्त की बात हो गई।
अपनी बिगड़ी बनाने,
लोग कदमों में गिर जाते,
काम बना जो उनका तो,
कभी नजर नही आते।
जिन्हें कहते हम अपने सगे,
सब के सब वासना में लदे
कुछ नाता दिखता नही,
नन्ही कली चाहे हो भले!
कितना प्यारा शब्द है नाता,
जैसे पिता,पुत्र और माता,
भाई बहन का पवित्र बंधन
कितना सच्चा मन को लुभाता।
रचना-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
नमन मंच
08/08/19
नाता
****
नाते रिश्ते प्रेम विश्वास की
बुनियाद पर टिके
क्यों
अपने को श्रेष्ठ समझते रहे
अपनी चौधराहट दिखाते रहे
बात बात पर तिलमिलाहट
झल्लाहट ,फुसफुसाहट से
दूसरों की अकुलाहट बढ़ा
दिलों में कड़वाहट बढ़ाते रहे ।
इतनी घबराहट,कुलबुलाहट
और हिचकिचाहट क्यों
रिश्तों की कड़वाहट
मिटाने में देरी क्यों!
हर समय की किचकिचाहट को
मन की कड़वाहट को
जरा सी शरारत
जरा सी मुस्कुराहट
थोड़ी सी चुलबुलाहट से
थोड़ी सी सरसराहट से
प्यार की गुनगुनाहट से
कड़वाहट मिटाते चलो।
सुनो उन कदमों की आहट
रखो रिश्तों नातों में गर्माहट
और खिलखिलाहट से
जीवन में जगमगाहट रखें ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
08/08/19
नाता
****
नाते रिश्ते प्रेम विश्वास की
बुनियाद पर टिके
क्यों
अपने को श्रेष्ठ समझते रहे
अपनी चौधराहट दिखाते रहे
बात बात पर तिलमिलाहट
झल्लाहट ,फुसफुसाहट से
दूसरों की अकुलाहट बढ़ा
दिलों में कड़वाहट बढ़ाते रहे ।
इतनी घबराहट,कुलबुलाहट
और हिचकिचाहट क्यों
रिश्तों की कड़वाहट
मिटाने में देरी क्यों!
हर समय की किचकिचाहट को
मन की कड़वाहट को
जरा सी शरारत
जरा सी मुस्कुराहट
थोड़ी सी चुलबुलाहट से
थोड़ी सी सरसराहट से
प्यार की गुनगुनाहट से
कड़वाहट मिटाते चलो।
सुनो उन कदमों की आहट
रखो रिश्तों नातों में गर्माहट
और खिलखिलाहट से
जीवन में जगमगाहट रखें ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
नमन मंच को
दिनांक -8/8/2019
विषय-नाता /रिश्ता
रिश्ता ही सिखाता प्रेम की परिभाषा,
प्रेम समर्पण त्याग इन्हीं रिश्तों से है आता ।
हर रिश्ते की है एक खूबसूरती,
जीवन की बगिया इन्ही से है फलती फूलती ।
रिश्ते नहीं तो जीवन सूखा रेगिस्तान है ,
रिश्तों से बंधा ये सारा जहान है ।
रिश्तों की डोर सदा थामे रहना ,
जीवन को प्रेम से सराबोर रखना ।
रिश्ते हैं वे अनमोल मोती ,
जिनकी माला हमें हरपल जोड़े रहती।
प्रेम विश्वास की इस डोर को सदा थामे रखना ,
रिश्तों की सरसता को सदा बनाए रखना ।
रिश्तों की गरिमा देश काल सब से बेगानी है ,
इनको निभाने में न करना तुम मनमानी है ।
इनमें कटुता अविश्वास का जहर न घोलना,
रिश्तों को कभी पैसों से मत तोलना ।
तभी तुम्हे रिश्तों की सुगंध महकायेगी,
जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ नजर आएँगी ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
दिनांक -8/8/2019
विषय-नाता /रिश्ता
रिश्ता ही सिखाता प्रेम की परिभाषा,
प्रेम समर्पण त्याग इन्हीं रिश्तों से है आता ।
हर रिश्ते की है एक खूबसूरती,
जीवन की बगिया इन्ही से है फलती फूलती ।
रिश्ते नहीं तो जीवन सूखा रेगिस्तान है ,
रिश्तों से बंधा ये सारा जहान है ।
रिश्तों की डोर सदा थामे रहना ,
जीवन को प्रेम से सराबोर रखना ।
रिश्ते हैं वे अनमोल मोती ,
जिनकी माला हमें हरपल जोड़े रहती।
प्रेम विश्वास की इस डोर को सदा थामे रखना ,
रिश्तों की सरसता को सदा बनाए रखना ।
रिश्तों की गरिमा देश काल सब से बेगानी है ,
इनको निभाने में न करना तुम मनमानी है ।
इनमें कटुता अविश्वास का जहर न घोलना,
रिश्तों को कभी पैसों से मत तोलना ।
तभी तुम्हे रिश्तों की सुगंध महकायेगी,
जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ नजर आएँगी ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
भावों के मोती नमन
विषय - नाता
हे हरि! मेरो मन मयूर मेघ संग नाचे,
गाये कोयलिया, पपीहा पी की पाती बाँचे,
प्रभु तुम संग जनम जनम का नाता
बिन फेरे ही बंध गये बंधन साँचे ।
पहन पायलिया पनघट पर राधा नाची,
कान्हा संग तुम्हरी प्रीत सांची,
जाने तीनों लोक चौदह भुवन के स्वामी
सखियाँ करें ठिठोली, हुए कपोल लाल ज्यों प्राची ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
विषय - नाता
हे हरि! मेरो मन मयूर मेघ संग नाचे,
गाये कोयलिया, पपीहा पी की पाती बाँचे,
प्रभु तुम संग जनम जनम का नाता
बिन फेरे ही बंध गये बंधन साँचे ।
पहन पायलिया पनघट पर राधा नाची,
कान्हा संग तुम्हरी प्रीत सांची,
जाने तीनों लोक चौदह भुवन के स्वामी
सखियाँ करें ठिठोली, हुए कपोल लाल ज्यों प्राची ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
नाता
मान,सम्मान ।
आदर,अथित्य ।
प्रेम,विश्वास ।
प्रेम संबोधन ।
हँसी, खुशी ।
रुठना,मनाना ।
हँसी ठीठोली ।
वह रंगो की होली ।
वह फूलझडी संग,
प्यारी दिपावली ।
यह सब,
एक शब्द में हैं समाता ।
कहते हम उसे,
नाता ।
@प्रदीप सहारे
मान,सम्मान ।
आदर,अथित्य ।
प्रेम,विश्वास ।
प्रेम संबोधन ।
हँसी, खुशी ।
रुठना,मनाना ।
हँसी ठीठोली ।
वह रंगो की होली ।
वह फूलझडी संग,
प्यारी दिपावली ।
यह सब,
एक शब्द में हैं समाता ।
कहते हम उसे,
नाता ।
@प्रदीप सहारे
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