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ब्लॉग संख्या :-465
दिनांक .. ३••८••२०१९
विषय .. नींव/ आधार
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
सुनाते है दिल के राज तुमसे,
सुनो शेर की ही ये जुबानी।
दबा के रखा है दिल मे जिसको,
ये है हमारी ही दास्तानी ॥
सुनाते है दिल....
हमेशा सोचा की कह दे सबसे,
मगर हया आँखों मे थी पानी।
कहेगे अब हम वो सारी बातें,
जुबाँ पे होगी सभी कहानी ॥
सुनाते है दिल....
अभी से कर देना माफ मुझको,
सुनोगे तुम भी मेरी कहानी।
हिला के नींव, वफा का तुमने,
बदल के रख दी है जिन्दगी ॥
सुनाते है दिल....
लगा के हमपें ही दाग तुमने,
छुडा लिया था ये हाथ अपना।
अभी भी आँखो मे मेरे पानी,
कहेगी जो तेरी बेईमानी ॥
सुनाते है दिल....
अभी तो कहने ही बैठे दिल की,
मगर हल्क से ना निकली बानी।
तेरी मोहब्बत मे दाग था पर,
वफा शेर की ना दाग दानी ॥
सुनाते है दिल....
किया मोहब्बत था दिल से जिससे,
भला कर कैसे बेईमानी ।
जा जी ले दिलवर हमें भुला कर,
भुला दी मैने तेरी जवानी॥
सुनाते है दिल....
स्वरचित .... शेर सिंह सर्राफ
देवरिया (उ0प्र0)
विषय .. नींव/ आधार
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
सुनाते है दिल के राज तुमसे,
सुनो शेर की ही ये जुबानी।
दबा के रखा है दिल मे जिसको,
ये है हमारी ही दास्तानी ॥
सुनाते है दिल....
हमेशा सोचा की कह दे सबसे,
मगर हया आँखों मे थी पानी।
कहेगे अब हम वो सारी बातें,
जुबाँ पे होगी सभी कहानी ॥
सुनाते है दिल....
अभी से कर देना माफ मुझको,
सुनोगे तुम भी मेरी कहानी।
हिला के नींव, वफा का तुमने,
बदल के रख दी है जिन्दगी ॥
सुनाते है दिल....
लगा के हमपें ही दाग तुमने,
छुडा लिया था ये हाथ अपना।
अभी भी आँखो मे मेरे पानी,
कहेगी जो तेरी बेईमानी ॥
सुनाते है दिल....
अभी तो कहने ही बैठे दिल की,
मगर हल्क से ना निकली बानी।
तेरी मोहब्बत मे दाग था पर,
वफा शेर की ना दाग दानी ॥
सुनाते है दिल....
किया मोहब्बत था दिल से जिससे,
भला कर कैसे बेईमानी ।
जा जी ले दिलवर हमें भुला कर,
भुला दी मैने तेरी जवानी॥
सुनाते है दिल....
स्वरचित .... शेर सिंह सर्राफ
देवरिया (उ0प्र0)
नमन मंच,भांवो के मोती
विषय नींव ,आधार
विधा काव्य
03 अगस्त 2019,शनिवार
जीवन का आधार ईश्वर है
पंच तत्वों का वह निर्माता।
परमपिता है पालन करता
सुख शांति का है वह दाता ।
दृढ़ मजबूत अगर नींव है
आलीशान ईमारत बनती।
कई तलों से वह निर्मित है
वह कभी नहीं खिसकती।
जीवन का आधार शिक्षा है
वह दानव को मानव करती।
अंधकार अज्ञान हृदय नित
ज्ञानआलोक से श्वेता भरती।
मात पिता गुरु आशीष से
मनोवांछित फल पाते हम।
हैं वही आधार जीवन के
फल फूलते उनके ही दम।
नींव अर्थ होती है कुर्बानी
पूरा भार उठाता सिर पर।
भार वहन करता निशदिन
पत्थर रखता है दिल पर।
जय जवान जय किसान से
अन्न वसन सुरक्षा को पाते।
ये आधार हैं मातृभूमि के
अमन चैन नित नित बरसाते।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
विषय नींव ,आधार
विधा काव्य
03 अगस्त 2019,शनिवार
जीवन का आधार ईश्वर है
पंच तत्वों का वह निर्माता।
परमपिता है पालन करता
सुख शांति का है वह दाता ।
दृढ़ मजबूत अगर नींव है
आलीशान ईमारत बनती।
कई तलों से वह निर्मित है
वह कभी नहीं खिसकती।
जीवन का आधार शिक्षा है
वह दानव को मानव करती।
अंधकार अज्ञान हृदय नित
ज्ञानआलोक से श्वेता भरती।
मात पिता गुरु आशीष से
मनोवांछित फल पाते हम।
हैं वही आधार जीवन के
फल फूलते उनके ही दम।
नींव अर्थ होती है कुर्बानी
पूरा भार उठाता सिर पर।
भार वहन करता निशदिन
पत्थर रखता है दिल पर।
जय जवान जय किसान से
अन्न वसन सुरक्षा को पाते।
ये आधार हैं मातृभूमि के
अमन चैन नित नित बरसाते।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
शीर्षक-- नींव/आधार
प्रथम प्रस्तुति
कर्मों की लड़ाई पीढ़ियों चलती है
माँ बाप की सोच बच्चों में फलती है ।।
वक्त निकाल कभी चिन्तन मनन
किया कर उम्र यूँ ही ये ढलती है ।।
नींव हम किसी इमारत के जाने क्यों
सही गलत पर नजर नही टिकती है ।।
दूरगामी परिणामों पर नजर डालें
संकीर्णता मानवता से दूर करती है ।।
विशाल हृदयी बन वह विशाल है
जिसके आगे ये दुनिया झुकती है ।।
रेत पर महल बनाना ठीक न 'शिवम'
नादानी क्यों नही मन से निकलती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/08/2019
प्रथम प्रस्तुति
कर्मों की लड़ाई पीढ़ियों चलती है
माँ बाप की सोच बच्चों में फलती है ।।
वक्त निकाल कभी चिन्तन मनन
किया कर उम्र यूँ ही ये ढलती है ।।
नींव हम किसी इमारत के जाने क्यों
सही गलत पर नजर नही टिकती है ।।
दूरगामी परिणामों पर नजर डालें
संकीर्णता मानवता से दूर करती है ।।
विशाल हृदयी बन वह विशाल है
जिसके आगे ये दुनिया झुकती है ।।
रेत पर महल बनाना ठीक न 'शिवम'
नादानी क्यों नही मन से निकलती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/08/2019
नींव/आधार
नमन मंच।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
अगर नींव हीं हो कमजोर,
तो मजबूत इमारत बन नहीं सकता।
अगर जड़ हीं हो कमजोर,
तो वृक्ष कभी फल-फूल नहीं सकता।
नींव को तो मजबूत होना चाहिए,
जिससे इमारत में आये मजबूती।
वैसे हीं हो जब जड़ मजबूत,
तो वृक्ष पनपे उसकी बढ़े खुबसूरती।
सबकुछ निर्भर है आधार पर,
आधार के बिना मनुष्य कुछ भी नहीं।
अगर आधार हीं हो संस्कारहीन,
तो बच्चे बनेंगे कुछ भी नहीं।
आवारागर्दी करेंगे,
सड़कों पर फिरेंगे।
आतंकवादी बनेंगे,
बर्बादी की ओर बढ़ेंगे।
इसीलिए मजबूत नींव होना चाहिए,
जड़ और आधार होना चाहिए।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
अगर नींव हीं हो कमजोर,
तो मजबूत इमारत बन नहीं सकता।
अगर जड़ हीं हो कमजोर,
तो वृक्ष कभी फल-फूल नहीं सकता।
नींव को तो मजबूत होना चाहिए,
जिससे इमारत में आये मजबूती।
वैसे हीं हो जब जड़ मजबूत,
तो वृक्ष पनपे उसकी बढ़े खुबसूरती।
सबकुछ निर्भर है आधार पर,
आधार के बिना मनुष्य कुछ भी नहीं।
अगर आधार हीं हो संस्कारहीन,
तो बच्चे बनेंगे कुछ भी नहीं।
आवारागर्दी करेंगे,
सड़कों पर फिरेंगे।
आतंकवादी बनेंगे,
बर्बादी की ओर बढ़ेंगे।
इसीलिए मजबूत नींव होना चाहिए,
जड़ और आधार होना चाहिए।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नींव के पत्थर हिल रहे,
मीनार एक पल में ढह जाएगी ।
लाख बार लगाओ चूना उसके, लेकिन पहले जैसी मजबूती न आएगी ।।
बहुत अरमानों से सजाया था, यह आशियाँ कुछ महानुभावों ने । थोड़ी सी खींचा तानी से, दरार इसमें पड़ जाएगी ।
पता है नहीं रह सकते, एक दूजे के बिन अधूरे है ।
मत खींचों स्नेह रुपी डोर को, इतना की यह टूट जाएगी ।।
भुला दो सारे गिले-शिकवे, क्योंकि सब हैं आपके अपने ।
लगा लो सब को फिर गले, खुशियां चहुँओर बिखर जाएगी।।
फिर देखो आपके सपनों का यह मंच शिखर को पाएगा ।
लग जाएंगे चार चांद, विजय झंडा लहराएगा ।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
मीनार एक पल में ढह जाएगी ।
लाख बार लगाओ चूना उसके, लेकिन पहले जैसी मजबूती न आएगी ।।
बहुत अरमानों से सजाया था, यह आशियाँ कुछ महानुभावों ने । थोड़ी सी खींचा तानी से, दरार इसमें पड़ जाएगी ।
पता है नहीं रह सकते, एक दूजे के बिन अधूरे है ।
मत खींचों स्नेह रुपी डोर को, इतना की यह टूट जाएगी ।।
भुला दो सारे गिले-शिकवे, क्योंकि सब हैं आपके अपने ।
लगा लो सब को फिर गले, खुशियां चहुँओर बिखर जाएगी।।
फिर देखो आपके सपनों का यह मंच शिखर को पाएगा ।
लग जाएंगे चार चांद, विजय झंडा लहराएगा ।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमन भावों के मोती
आज का विषय, नीव, आधार
शनिवार
3,8,2019.
आधार बिना जीवन कैसा ,
हवाई किले नहीं टिकते।
नींव नहीं हो जिस मकान में,
वे घर द्वार नहीं बचते ।
गीली मिट्टी से बचपन को,
जब सही आकार नहीं मिलते ।
बनते अमर बेल से शोषक वे ,
घर समाज को हैं छलते ।
हो मजबूत नींव संस्कारों की,
विकास का पर्याय बन जाते ।
होती शुभ कर्मों की मजबूत नींव,
जीवन उन्नत बनते ।
है भाग्य विधाता ऊपर वाला,
हम कर्म ही कर सकते ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
आज का विषय, नीव, आधार
शनिवार
3,8,2019.
आधार बिना जीवन कैसा ,
हवाई किले नहीं टिकते।
नींव नहीं हो जिस मकान में,
वे घर द्वार नहीं बचते ।
गीली मिट्टी से बचपन को,
जब सही आकार नहीं मिलते ।
बनते अमर बेल से शोषक वे ,
घर समाज को हैं छलते ।
हो मजबूत नींव संस्कारों की,
विकास का पर्याय बन जाते ।
होती शुभ कर्मों की मजबूत नींव,
जीवन उन्नत बनते ।
है भाग्य विधाता ऊपर वाला,
हम कर्म ही कर सकते ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
नमन-भावो के मोती
दिनांक-03/08/2019
विषय-नींव
शौर्य दमकता मेरे दम पर
मैं बुर्जों आलीशान शान हूं
सजा दरबार मेरे दम पे
बज्मों कि मैं जान हूं।।
अर्श हमारा स्वप्न दृष्टा बने
मजबूत नींवो के पत्थर पर
पवन प्रेरित पताका फहरे
अखंड चट्टानों के मस्तर।।
जिसपे होना है....
नए युग का नवनिर्माण
कीर्ति यशगान किकिंर बने
पाषाणी छाती के विकिरण पर।
जिन बुलंदियों पर नाज है
मेरी गौरव गाथा खुद नहीं कहूंगा
पुण्य किया हूं सदा नीवों में ही रहूंगा
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
दिनांक-03/08/2019
विषय-नींव
शौर्य दमकता मेरे दम पर
मैं बुर्जों आलीशान शान हूं
सजा दरबार मेरे दम पे
बज्मों कि मैं जान हूं।।
अर्श हमारा स्वप्न दृष्टा बने
मजबूत नींवो के पत्थर पर
पवन प्रेरित पताका फहरे
अखंड चट्टानों के मस्तर।।
जिसपे होना है....
नए युग का नवनिर्माण
कीर्ति यशगान किकिंर बने
पाषाणी छाती के विकिरण पर।
जिन बुलंदियों पर नाज है
मेरी गौरव गाथा खुद नहीं कहूंगा
पुण्य किया हूं सदा नीवों में ही रहूंगा
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
दि- 3- 8-19
विषय- नींव / आधार
सादर मंच को समर्पित -
🌹 गीतिका 🌹
***************************
☀ नींव/आधार ☀
छंद भुजंग प्रयात
मापनी- 122 , 122 , 122 , 122
****************************
नयी नींव है नव कहानी गढ़ेंगे ।
जवाँ जोश, हिम्मत सुहानी गढ़ेंगे ।।
हमें रोक सकता नहीं खौफ का डर ,
लहू की कसम खा , जवानी गढ़ेंगे ।
अथक शक्ति आधार है बाजुओं पर ,
बढ़ें वीर , साहस , गुमानी गढ़ेंगे ।
न दरिया , न लहरें , न तूफान रोके ,
तमस चीर कर हम रवानी गढ़ेंगे ।
उन्हें है चुनौती करें बार छिप कर ,
जड़ें खोद , हन कर निशानी गढ़ेंगे ।।
🌹🍀🌺🌼🌸🌷
🍒🌱🌺***....रवीन्द्र वर्मा आगरा
विषय- नींव / आधार
सादर मंच को समर्पित -
🌹 गीतिका 🌹
***************************
☀ नींव/आधार ☀
छंद भुजंग प्रयात
मापनी- 122 , 122 , 122 , 122
****************************
नयी नींव है नव कहानी गढ़ेंगे ।
जवाँ जोश, हिम्मत सुहानी गढ़ेंगे ।।
हमें रोक सकता नहीं खौफ का डर ,
लहू की कसम खा , जवानी गढ़ेंगे ।
अथक शक्ति आधार है बाजुओं पर ,
बढ़ें वीर , साहस , गुमानी गढ़ेंगे ।
न दरिया , न लहरें , न तूफान रोके ,
तमस चीर कर हम रवानी गढ़ेंगे ।
उन्हें है चुनौती करें बार छिप कर ,
जड़ें खोद , हन कर निशानी गढ़ेंगे ।।
🌹🍀🌺🌼🌸🌷
🍒🌱🌺***....रवीन्द्र वर्मा आगरा
भावों के मोती
3/8/2019
विषय-नींव/आधार
*************
है अस्तित्व मेरा
उस ईंट की तरह
जो बहुत गहराई तक
जमीन में दबाई गई होती है
क्योंकि वो नींव की ईंट होती है
ऊपर से दिखाई नहीं देती
गहन अंधकार में छिपाई गई होती है
नींव की ईंट अदृश्य रह कर भी
संभाले रहतीं है पूरा भार
नींव की ईंट अनुपस्थित रहती है
ताउम्र बाहरी परिदृश्य से
सौंदर्य दिखता है उसका
सुंदर इमारतों में
महल दुमहलों में
जगमग उजालों में
पर खामोश,अनदेखी
नींव की ईंट
गुमनामी के अंधेरों में
पड़ी रहती है चुपचाप..
मगर उसे अफसोस नहीं है
बल्कि गर्व है कि
अपने मजबूत कंधों पर
उठा रखे हैं उसने दायित्व
भूलती नहीं वो कभी
अपना कर्तव्य बोध
जैसे दुनियाँ ने
कर दिया उसे अनदेखा
सब दिखावा कर रहे हैं
उससे छलावा कर रहे हैं
दबे को दबाना तो
दुनिया की रीत है
आधार को नजरअंदाज करना
न उपलब्धि न ही कोई जीत है
बुनियाद को भूल कर
क्या कोई खुश रह पाया है?
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
3/8/2019
विषय-नींव/आधार
*************
है अस्तित्व मेरा
उस ईंट की तरह
जो बहुत गहराई तक
जमीन में दबाई गई होती है
क्योंकि वो नींव की ईंट होती है
ऊपर से दिखाई नहीं देती
गहन अंधकार में छिपाई गई होती है
नींव की ईंट अदृश्य रह कर भी
संभाले रहतीं है पूरा भार
नींव की ईंट अनुपस्थित रहती है
ताउम्र बाहरी परिदृश्य से
सौंदर्य दिखता है उसका
सुंदर इमारतों में
महल दुमहलों में
जगमग उजालों में
पर खामोश,अनदेखी
नींव की ईंट
गुमनामी के अंधेरों में
पड़ी रहती है चुपचाप..
मगर उसे अफसोस नहीं है
बल्कि गर्व है कि
अपने मजबूत कंधों पर
उठा रखे हैं उसने दायित्व
भूलती नहीं वो कभी
अपना कर्तव्य बोध
जैसे दुनियाँ ने
कर दिया उसे अनदेखा
सब दिखावा कर रहे हैं
उससे छलावा कर रहे हैं
दबे को दबाना तो
दुनिया की रीत है
आधार को नजरअंदाज करना
न उपलब्धि न ही कोई जीत है
बुनियाद को भूल कर
क्या कोई खुश रह पाया है?
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
II नींव / आधार II नमन भावों के मोती....
विधा: वर्ण पिरामिड
१.
है
नींव
सृजन
अन्वेषण
अवलोकन
चिंतन मनन
सार समन्वयन
२.
है
नींव
संस्कार
परिवार
ठोस आधार
समाज सुधार
राष्ट्र प्रगति द्वार
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०३.०८.२०१९
विधा: वर्ण पिरामिड
१.
है
नींव
सृजन
अन्वेषण
अवलोकन
चिंतन मनन
सार समन्वयन
२.
है
नींव
संस्कार
परिवार
ठोस आधार
समाज सुधार
राष्ट्र प्रगति द्वार
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०३.०८.२०१९
भावों के मोती:
#दिनांक"३"८"२०१९:
#विषय:आधार नींव:
#विधा:काव्य:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
*"""*नींव:आधार*"""*
वर्षा की पहली शुरुआती कुछ बूंदें,
हो जाती हैं दफन जब जलती धूप में,
तब ही यदा कदा एकत्रित हो पाती हैं,
जल राशि चिलचिलाती इस भूप में,
बूंदों का जल जाना किसे दिखता है,
प्यासा रखता है सिर्फ पानी को याद,
नींव में दफन हुवे जो बनकर पत्थर,
हम भूले भगत और बिसरे आजाद,
पत्थर जो दफन हुवे हैं धरती में,
बनकर भवन की मजबूती व म्याद,
हम सब चमक धमक को देते हैं दाद,
अनदेखी करते हैं सख्त बुनियाद,
मैंने इमारत बुलन्द भारत की देखी,
आधार ही क्रांतिवीरों की सहादत थी
नींव में छुपे है मां भारती के वो सपूत,
जिनके मन में वतन की हिफाजत थी,
#दिनांक"३"८"२०१९:
#विषय:आधार नींव:
#विधा:काव्य:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:
*"""*नींव:आधार*"""*
वर्षा की पहली शुरुआती कुछ बूंदें,
हो जाती हैं दफन जब जलती धूप में,
तब ही यदा कदा एकत्रित हो पाती हैं,
जल राशि चिलचिलाती इस भूप में,
बूंदों का जल जाना किसे दिखता है,
प्यासा रखता है सिर्फ पानी को याद,
नींव में दफन हुवे जो बनकर पत्थर,
हम भूले भगत और बिसरे आजाद,
पत्थर जो दफन हुवे हैं धरती में,
बनकर भवन की मजबूती व म्याद,
हम सब चमक धमक को देते हैं दाद,
अनदेखी करते हैं सख्त बुनियाद,
मैंने इमारत बुलन्द भारत की देखी,
आधार ही क्रांतिवीरों की सहादत थी
नींव में छुपे है मां भारती के वो सपूत,
जिनके मन में वतन की हिफाजत थी,
नमन भावों के मोती
विषय --नींव/आधार
दिनांक--3-8-19
विधा --दोहे
1.
पुख्ता जितनी नींव हो,उतना भवन बुलंद।
चूमे वो आकाश को,पा गौरव मकरंद।।
2.
नींव पूज्य रहती सदा, लंबे कर्म प्रवेश।
छूना कोई लक्ष्य हो, कसर रहे नहिं शेष।।
3.
काम शुरू कोई करें,बने नींव आधार।
काम सतत बढ़ता रहे,तभी लक्ष्य साकार।।
4.
सही जगह पर पाँव हों,हो दृढ़ता आधार।
आगे बढ़ने के तभी , मिलते हैं आसार ।।
******स्वरचित*****
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय --नींव/आधार
दिनांक--3-8-19
विधा --दोहे
1.
पुख्ता जितनी नींव हो,उतना भवन बुलंद।
चूमे वो आकाश को,पा गौरव मकरंद।।
2.
नींव पूज्य रहती सदा, लंबे कर्म प्रवेश।
छूना कोई लक्ष्य हो, कसर रहे नहिं शेष।।
3.
काम शुरू कोई करें,बने नींव आधार।
काम सतत बढ़ता रहे,तभी लक्ष्य साकार।।
4.
सही जगह पर पाँव हों,हो दृढ़ता आधार।
आगे बढ़ने के तभी , मिलते हैं आसार ।।
******स्वरचित*****
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
भावों के मोती
बिषय- आधार
हैं परिवार का आधार पिता।
जीवन नैया की पतवार पिता।।
कभी डांटते, कभी दुलारते
कभी हंसाते, कभी रूलाते
हम पर रखते अधिकार पिता।
दिखते सख़्त नारियल सरीखे
भीतर से जो मुलायम रेशम से
लगते हैं प्यार का भंडार पिता।
अपनी नहीं कोई परवाह उन्हें
हमारी खुशी की बस चाह उन्हें
हम पर करते जां निसार पिता।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- आधार
हैं परिवार का आधार पिता।
जीवन नैया की पतवार पिता।।
कभी डांटते, कभी दुलारते
कभी हंसाते, कभी रूलाते
हम पर रखते अधिकार पिता।
दिखते सख़्त नारियल सरीखे
भीतर से जो मुलायम रेशम से
लगते हैं प्यार का भंडार पिता।
अपनी नहीं कोई परवाह उन्हें
हमारी खुशी की बस चाह उन्हें
हम पर करते जां निसार पिता।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषयःः नींव/आधार
विधाःः काव्यः ः
नींव हमारे अस्तित्व का आधार।
नींव हमारे दर्शन संस्कृति संसार।
बुनियाद अगर मजबूत किले की,
तो फिर सदा सहेगा अपना भार।
कैसे ज्ञानवान धैर्यवान बनें हम
जब ये नींव हमारी है कमजोर।
संस्कार ढलें बचपन में कर्मठता,
नहीं बन सकते कभी कामचोर।
माता पिता फिर गुरु विद्यालय,
हैं आधार हमारे सुसंस्कारों के।
सतसंग कहीं हमें मिल जाऐ तो,
सब हकदार मूल अधिकारों के।
सुदृढ नींव संस्कृति संस्करों की,
ये मानस कभी हिल नहीं सकता।
है आधार गर मकान का पक्का,
ये सदियों तक गिर नहीं सकता।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1* भा.#नींव/आधार# काव्यःः
3/8/2019/शनिवार
विधाःः काव्यः ः
नींव हमारे अस्तित्व का आधार।
नींव हमारे दर्शन संस्कृति संसार।
बुनियाद अगर मजबूत किले की,
तो फिर सदा सहेगा अपना भार।
कैसे ज्ञानवान धैर्यवान बनें हम
जब ये नींव हमारी है कमजोर।
संस्कार ढलें बचपन में कर्मठता,
नहीं बन सकते कभी कामचोर।
माता पिता फिर गुरु विद्यालय,
हैं आधार हमारे सुसंस्कारों के।
सतसंग कहीं हमें मिल जाऐ तो,
सब हकदार मूल अधिकारों के।
सुदृढ नींव संस्कृति संस्करों की,
ये मानस कभी हिल नहीं सकता।
है आधार गर मकान का पक्का,
ये सदियों तक गिर नहीं सकता।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1* भा.#नींव/आधार# काव्यःः
3/8/2019/शनिवार
विषय,,,नीव/ आधार|
धर्म,जीवन रिश्ते नाते टिके नीव पर|
हो मानवीय मूल्यौ की आधार शीला मजबूत |
वही सब रहते देव,करते रमण |
न लाज हया आँखो मे हे नर्क |
गीता ग्रंथ है वैदिक धर्म की नींव|
सब धर्मो की आधार शीला |
नेता वही श्रेष्ठ जो हो दृढ़ निश्चय
विष्शिठ अस्तित्व व व्यक्तित्व का धनी |
देश का अस्तित्व विकास उसीसे |
आज कमी हे नीव/आधार की मजबूतीकी |
स्वरचित,,,दमयंती मिश्रा |
गरोठ मध्यप्रदेश
धर्म,जीवन रिश्ते नाते टिके नीव पर|
हो मानवीय मूल्यौ की आधार शीला मजबूत |
वही सब रहते देव,करते रमण |
न लाज हया आँखो मे हे नर्क |
गीता ग्रंथ है वैदिक धर्म की नींव|
सब धर्मो की आधार शीला |
नेता वही श्रेष्ठ जो हो दृढ़ निश्चय
विष्शिठ अस्तित्व व व्यक्तित्व का धनी |
देश का अस्तित्व विकास उसीसे |
आज कमी हे नीव/आधार की मजबूतीकी |
स्वरचित,,,दमयंती मिश्रा |
गरोठ मध्यप्रदेश
भावों के मोती "
पटल
वार : शनिवार
दिनांक : 03.08.2019
आज का शीर्षक : नींव / आधार
विधा : काव्य
गीत
पहले हम आधार तय करें ,
फिर देते आकार हैं !
सही नींव है , मेहनत सच्ची ,
हुए स्वप्न साकार हैं !!
जीवन का आधार बचपना ,
जहाँ टिकाये पैर हैं !
कटी रात माँ के आँचल में ,
आँखें खुली सबेर है !
मात पिता संरक्षण देते ,
बचपन स्नेहाधार है !!
शिक्षा दीक्षा सज धज सँवरे ,
जीवन यहाँ निखारते !
छट जाता है मैल कभी तो ,
मन को यहाँ बुहारते !
नैतिकता आधार बन चले ,
खुशियाँ मिले अपार है !!
चढ़ी जवानी हिम्मत आयी ,
बल को यहाँ सँवारते !
धनबल , भुजबल अगर बटोरा ,
शेखी खूब बघारते !
कहे जवानी बल और संयम ,
सचमुच मूलाधार हैं !!
रोजगार , व्यवसाय सदा ही ,
देते है गतिमान भी .
अर्जन और प्रशंसा पाते ,
बदले से दिनमान भी .
संबल हमको मिल ही जाता , सच्चाई आधार है .
स्नेह जगाया , बढ़ी मित्रता ,
बंधते परिणय में सभी .
हलचल उठती , तूफाँ उठते ,
हो जाते हैं शांत भी .
यहाँ नींव विश्वास अगर है ,
आँचल बंधी बहार है .
साथ समय के चलते चलते ,
पा जाते हैं थाह भी !
सरल ,कठिन की बात नहीं है ,
कट जाती है राह भी !
चरित्र बने जब ठोस धरातल ,
होठों पर मनुहार है !!
कदम चले जब लगे थकन सी ,
जानो यहाँ विराम है !
रह रह कर जब उम्र सरकती ,
मानो ढलती शाम है !
मनबल का आधार अगर है ,
जीवन का सत्कार है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
पटल
वार : शनिवार
दिनांक : 03.08.2019
आज का शीर्षक : नींव / आधार
विधा : काव्य
गीत
पहले हम आधार तय करें ,
फिर देते आकार हैं !
सही नींव है , मेहनत सच्ची ,
हुए स्वप्न साकार हैं !!
जीवन का आधार बचपना ,
जहाँ टिकाये पैर हैं !
कटी रात माँ के आँचल में ,
आँखें खुली सबेर है !
मात पिता संरक्षण देते ,
बचपन स्नेहाधार है !!
शिक्षा दीक्षा सज धज सँवरे ,
जीवन यहाँ निखारते !
छट जाता है मैल कभी तो ,
मन को यहाँ बुहारते !
नैतिकता आधार बन चले ,
खुशियाँ मिले अपार है !!
चढ़ी जवानी हिम्मत आयी ,
बल को यहाँ सँवारते !
धनबल , भुजबल अगर बटोरा ,
शेखी खूब बघारते !
कहे जवानी बल और संयम ,
सचमुच मूलाधार हैं !!
रोजगार , व्यवसाय सदा ही ,
देते है गतिमान भी .
अर्जन और प्रशंसा पाते ,
बदले से दिनमान भी .
संबल हमको मिल ही जाता , सच्चाई आधार है .
स्नेह जगाया , बढ़ी मित्रता ,
बंधते परिणय में सभी .
हलचल उठती , तूफाँ उठते ,
हो जाते हैं शांत भी .
यहाँ नींव विश्वास अगर है ,
आँचल बंधी बहार है .
साथ समय के चलते चलते ,
पा जाते हैं थाह भी !
सरल ,कठिन की बात नहीं है ,
कट जाती है राह भी !
चरित्र बने जब ठोस धरातल ,
होठों पर मनुहार है !!
कदम चले जब लगे थकन सी ,
जानो यहाँ विराम है !
रह रह कर जब उम्र सरकती ,
मानो ढलती शाम है !
मनबल का आधार अगर है ,
जीवन का सत्कार है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
सादर नमन
नींव
भवन-भाल विशाल नभ तक खड़े
सकल बोझ को धारित धैर्य धरे
ठोक-ठोक कर ठोस बहुल आधार
नींव के प्रारब्ध में भार का प्रभार
तज कर निज दंभ नीचे पड़ी है
स्वस्ति-भाव शुचि सहज प्रहरी है
आकंठ डूब कर भी मृदा खोह में
आगत पीढ़ियों के सुखद मोह में
पोर-पोर में पीड़ा, उर में छाले है
अप्रकट अस्तित्व, सब संभाले है
है कराहती नींव, जान के लाले है
बिन सोच-समझ जो उठते माले है
-©नवल किशोर सिंह
03-08-2019
स्वरचित
नींव
भवन-भाल विशाल नभ तक खड़े
सकल बोझ को धारित धैर्य धरे
ठोक-ठोक कर ठोस बहुल आधार
नींव के प्रारब्ध में भार का प्रभार
तज कर निज दंभ नीचे पड़ी है
स्वस्ति-भाव शुचि सहज प्रहरी है
आकंठ डूब कर भी मृदा खोह में
आगत पीढ़ियों के सुखद मोह में
पोर-पोर में पीड़ा, उर में छाले है
अप्रकट अस्तित्व, सब संभाले है
है कराहती नींव, जान के लाले है
बिन सोच-समझ जो उठते माले है
-©नवल किशोर सिंह
03-08-2019
स्वरचित
नमन मंच को
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 03/08/2019
शीर्षक :- नींव/आधार
एकांत में दुबकी रहती....
भार अथाह वह सहती...
खामोश रहती वह सदा...
कभी कुछ भी न कहती...
सहती मार तुफानों की...
बनती आधार सपनों की...
रहती सदा अनजानी सी...
देती उड़ान आसमानों की...
दबी सहमी सी रहती वह...
अनमनी अनजानी सी...
रह जाती बनकर वह...
अनसुनी कहानी सी...
मिट्टी में पलती है...
मिट्टी में ही मिटती है...
सारी जिंदगी वह...
गुमनामी में जीती है...
नींव है वह अभागी सी...
सपनों को वह बुनती है..
मौन सिसकियाँ उसकी...
स्वार्थी दुनिया कब सुनती है...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 03/08/2019
शीर्षक :- नींव/आधार
एकांत में दुबकी रहती....
भार अथाह वह सहती...
खामोश रहती वह सदा...
कभी कुछ भी न कहती...
सहती मार तुफानों की...
बनती आधार सपनों की...
रहती सदा अनजानी सी...
देती उड़ान आसमानों की...
दबी सहमी सी रहती वह...
अनमनी अनजानी सी...
रह जाती बनकर वह...
अनसुनी कहानी सी...
मिट्टी में पलती है...
मिट्टी में ही मिटती है...
सारी जिंदगी वह...
गुमनामी में जीती है...
नींव है वह अभागी सी...
सपनों को वह बुनती है..
मौन सिसकियाँ उसकी...
स्वार्थी दुनिया कब सुनती है...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन मंच
दिनांक-३/८/२०१९
शीर्षक-नींव/आधार
मत अधीर हो तुम नींव का ईंट
तुम्हारा काम है महान
नहीं आसान नींव का ईंट बनना
सुख त्याग ,वहन करना सब भार।
दमके लाख सोने का ईंट
पर बन न सके वो नींव
बस भरे तिजोरी धनवानों का
उस तिजोरी को जो ईंट संभाले,
उस ईंट को मेरा नमस्कार।
धर्य, दक्षता,नेकी ये सब
सिर्फ तुम्हारे बस की बात
मत अधिर हो नींव का ईंट।
जब भी बने महल अटारी
पहला निमंत्रण तुम्हारे पास
मूक रहकर तुम सौभाग्य वृद्धि करें,
ये देख तुम्हें मिला वरदान।
जब भी कोई सृजन होगा
पहला पूजन तुम्हारा होगा
स्पर्द्धा के इस दौर में
पहला नाम तुम्हारा होगा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
दिनांक-३/८/२०१९
शीर्षक-नींव/आधार
मत अधीर हो तुम नींव का ईंट
तुम्हारा काम है महान
नहीं आसान नींव का ईंट बनना
सुख त्याग ,वहन करना सब भार।
दमके लाख सोने का ईंट
पर बन न सके वो नींव
बस भरे तिजोरी धनवानों का
उस तिजोरी को जो ईंट संभाले,
उस ईंट को मेरा नमस्कार।
धर्य, दक्षता,नेकी ये सब
सिर्फ तुम्हारे बस की बात
मत अधिर हो नींव का ईंट।
जब भी बने महल अटारी
पहला निमंत्रण तुम्हारे पास
मूक रहकर तुम सौभाग्य वृद्धि करें,
ये देख तुम्हें मिला वरदान।
जब भी कोई सृजन होगा
पहला पूजन तुम्हारा होगा
स्पर्द्धा के इस दौर में
पहला नाम तुम्हारा होगा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
नमन मंच
शीर्षक-- नींव/आधार
द्वितीय प्रस्तुति
वो अनकही सी बातें
वो अनछुआ सा प्यार ।।
कर गया इस दिल को
कितना नही बेकरार ।।
जाने क्यों पता न चली
वो बाँकी नयन कटार ।।
कितनी नही कहलायी
आखिर वह धारदार ।।
अब तक नही गया वो
दिले दर्द और खुमार ।।
वही दर्द अब बन गया
इस शायरी का आधार ।।
उसी से मैं करता हूँ
इन छंदों का व्यापार ।।
आधार मुहैया किसे
कौन हो कर ऐतबार ।।
समझ रब कारिस्तानी
'शिवम' हर-सू बेशुमार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/08/2019
शीर्षक-- नींव/आधार
द्वितीय प्रस्तुति
वो अनकही सी बातें
वो अनछुआ सा प्यार ।।
कर गया इस दिल को
कितना नही बेकरार ।।
जाने क्यों पता न चली
वो बाँकी नयन कटार ।।
कितनी नही कहलायी
आखिर वह धारदार ।।
अब तक नही गया वो
दिले दर्द और खुमार ।।
वही दर्द अब बन गया
इस शायरी का आधार ।।
उसी से मैं करता हूँ
इन छंदों का व्यापार ।।
आधार मुहैया किसे
कौन हो कर ऐतबार ।।
समझ रब कारिस्तानी
'शिवम' हर-सू बेशुमार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/08/2019
भावों के मोती दिनांक 3/8/19
नींव / आधार
भले ही
हो घर छोटा
या हो बड़ा
पर चाहिए
नींव मजबूत
देती है
यह जीवन भर
आधार
रहता निश्चिंत
पूरा परिवार
धर्म ईमान का
पढ़ते पाठ
जो बच्चे
जीवन में
वही सिध्दान्त
बनाते है
महान
है न
साथी कोई
जीवन में
जब हो
नींव कमजोर
खोखला न करे
दुश्मन कोई
देश की नींव
न हो कोई
मौकपरस्त
सब रहे खुश
करें उन्नति और
विकास
जीवन में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नींव / आधार
भले ही
हो घर छोटा
या हो बड़ा
पर चाहिए
नींव मजबूत
देती है
यह जीवन भर
आधार
रहता निश्चिंत
पूरा परिवार
धर्म ईमान का
पढ़ते पाठ
जो बच्चे
जीवन में
वही सिध्दान्त
बनाते है
महान
है न
साथी कोई
जीवन में
जब हो
नींव कमजोर
खोखला न करे
दुश्मन कोई
देश की नींव
न हो कोई
मौकपरस्त
सब रहे खुश
करें उन्नति और
विकास
जीवन में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
हाइकु(5/7/5)विषय:-"नींव "
(1)
झोंकी ताकत
शहीद बने नींव
खड़ा भारत
(2)
टूटे संस्कार
शिक्षा की नींव हिली
गिरा समाज
(3)
मौन संभाले
चढ़ती ईमारत
नींव के काँधे
(4)
तन मकान
साँसों की नींव टिका
वक़्त से ढ़हा
(5)
शब्दों की ईंट
कविता का भवन
भावना नींव
स्वरचित एवं मौलिक
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
(1)
झोंकी ताकत
शहीद बने नींव
खड़ा भारत
(2)
टूटे संस्कार
शिक्षा की नींव हिली
गिरा समाज
(3)
मौन संभाले
चढ़ती ईमारत
नींव के काँधे
(4)
तन मकान
साँसों की नींव टिका
वक़्त से ढ़हा
(5)
शब्दों की ईंट
कविता का भवन
भावना नींव
स्वरचित एवं मौलिक
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
मंच को नमन
दिनांक -3/8/2019
विषय-नींव/ आधार
आज दिखावे का चलन हो चुका है
क़िस्सा नींव का विलुप्त हो चुका है ।
आँखे दी है देखने को भगवान ने
पर इन्हें फेर लिया अब इंसान ने ।
नींव कोई भी हो शक्तिशाली होती है
कंगूरा बंनने की ना कोई तलब होती है ।
गर विपदा कोई आए तो भवन थरथराता
नींव आगे बढ़कर हाथ थाम लेती
उसके वजूद को क्योंकर मिटने देती ?
स्वयं अंधेरे गर्त में ख़ुद को छिपाती
त्यागकर निज पहचान अंधेरे मे दब जाती
ज़मीन में धँसी कुरूप नींव का समर्पण
औरों के हित की ख़ातिर बन जाती तर्पण।
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित
दिनांक -3/8/2019
विषय-नींव/ आधार
आज दिखावे का चलन हो चुका है
क़िस्सा नींव का विलुप्त हो चुका है ।
आँखे दी है देखने को भगवान ने
पर इन्हें फेर लिया अब इंसान ने ।
नींव कोई भी हो शक्तिशाली होती है
कंगूरा बंनने की ना कोई तलब होती है ।
गर विपदा कोई आए तो भवन थरथराता
नींव आगे बढ़कर हाथ थाम लेती
उसके वजूद को क्योंकर मिटने देती ?
स्वयं अंधेरे गर्त में ख़ुद को छिपाती
त्यागकर निज पहचान अंधेरे मे दब जाती
ज़मीन में धँसी कुरूप नींव का समर्पण
औरों के हित की ख़ातिर बन जाती तर्पण।
✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
मौलिक एवं स्वरचित
नमन मंच 🙏
विषय - नींव / आधार
हे प्रभु ! मेरे इस जीवन का आधार तुम्हीं
ये जग रूठे तो रूठे,
हे ईश तुम रूठ ना जाना कहीं ।
कृपा करो हे कृपा निधान,
जग छूटे तो छूटे
हाथ मेरा छोड़ ना देना कहीं ।
हे प्रभु , मेरे इस जीवन का आधार तुम्हीं ।
नश्वर इस देह का , हो अमर श्रृंगार तुम्हीं ।
सद् कर्मों का आधार तुम्हीं
आकर तुम्हीं ,निराकार तुम्हीं ।
सृष्टि की नींव मैं ,
नींव का आधार तुम्हीं ।
घनघोर तम में ,प्रकाश तुम्हीं
हे प्रभु , मेरे इस जीवन का आधार तुम्हीं ।
हे संसार सागर के खिवैया
नैया तुम , पतवार तुम्हीं ।
हे जगत के तारणहार
सुन लो मेरी भी पुकार
पतझर की इस संझा में
आवागमन की झंझा में
हे वरदानी कृपा करो
इस जीवन में भक्ति की शक्ति भर दो ।
चराचर इस जगत से अब मुक्ति कर दो ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
विषय - नींव / आधार
हे प्रभु ! मेरे इस जीवन का आधार तुम्हीं
ये जग रूठे तो रूठे,
हे ईश तुम रूठ ना जाना कहीं ।
कृपा करो हे कृपा निधान,
जग छूटे तो छूटे
हाथ मेरा छोड़ ना देना कहीं ।
हे प्रभु , मेरे इस जीवन का आधार तुम्हीं ।
नश्वर इस देह का , हो अमर श्रृंगार तुम्हीं ।
सद् कर्मों का आधार तुम्हीं
आकर तुम्हीं ,निराकार तुम्हीं ।
सृष्टि की नींव मैं ,
नींव का आधार तुम्हीं ।
घनघोर तम में ,प्रकाश तुम्हीं
हे प्रभु , मेरे इस जीवन का आधार तुम्हीं ।
हे संसार सागर के खिवैया
नैया तुम , पतवार तुम्हीं ।
हे जगत के तारणहार
सुन लो मेरी भी पुकार
पतझर की इस संझा में
आवागमन की झंझा में
हे वरदानी कृपा करो
इस जीवन में भक्ति की शक्ति भर दो ।
चराचर इस जगत से अब मुक्ति कर दो ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
बिषयःः# नींव/आधार#
विधाःः काव्यःः
जबसे संस्कारों की नींव डिगी है।
तभी से रिश्तों की कडी हिली है।
इसीलिये रिश्ते लगातार बिखर रहे,
यह मानसिकता स्वार्थ की पली है।
हम अपने अपनों के तक नहीं रहे।
क्यों सीमित स्वयं तक ही रह रहे।
पता नहीं इस सोच को क्या हुआ,
स्वस्वार्थ तक ही सिमट के रह रहे।
बच्चे अपनी अलग दुनिया बसा रहे।
माता पिता को पास नहीं बिठा रहे।
रिश्ते नातों से हमें कोई मतलब नहीं,
घरू छोड दुश्मनों को गले लगा रहे।
अब प्रेम की नींव कहीं पडती नहीं है।
स्नेह सरिता अब कहीं बहती नहीं है।
ये प्रेमाधार ही नहीं बचा तो कैसे कहें,
यहाँ प्यार की गंगा हमें दिखती नहीं है।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
2भा#.रिश्ते, नींव /आधार #काव्यःः
3/8/2019/शनिवार
विधाःः काव्यःः
जबसे संस्कारों की नींव डिगी है।
तभी से रिश्तों की कडी हिली है।
इसीलिये रिश्ते लगातार बिखर रहे,
यह मानसिकता स्वार्थ की पली है।
हम अपने अपनों के तक नहीं रहे।
क्यों सीमित स्वयं तक ही रह रहे।
पता नहीं इस सोच को क्या हुआ,
स्वस्वार्थ तक ही सिमट के रह रहे।
बच्चे अपनी अलग दुनिया बसा रहे।
माता पिता को पास नहीं बिठा रहे।
रिश्ते नातों से हमें कोई मतलब नहीं,
घरू छोड दुश्मनों को गले लगा रहे।
अब प्रेम की नींव कहीं पडती नहीं है।
स्नेह सरिता अब कहीं बहती नहीं है।
ये प्रेमाधार ही नहीं बचा तो कैसे कहें,
यहाँ प्यार की गंगा हमें दिखती नहीं है।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
2भा#.रिश्ते, नींव /आधार #काव्यःः
3/8/2019/शनिवार
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