Monday, August 12

" बाढ़ "12अगस्त 2019

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ब्लॉग संख्या :-475

बाढ़

कुदरत ने दीया,

धरती को वरदान ।
उँचे पहाड़,बहती नदियां ।
घने जंगल,झरनो का शोर ।
इन्सान का गया,
इनपर ध्यान ।
डोल गया उसका इमान ।
चल निकला लेकर ।
बारुद,डंपर,बुलडोजर ।
झूकने लगे पहाड़ ।
सहमने लगी नदियां ।
थम गया झरनों का शोर ।
उजडे हुए जंगल,
लगने लगे बोर ।
पहाडो से उँचे,
बनने लगे भवन ।
दिन रात होने लगा दोहन ।
चारो तरफ,बारुद का धूर ।
धरती माँ पीटने लगी उर ।
खत्म हुवा उसका अवसान ।
आने लगे,
बाढ़,भुकंप,तूफान ।
चारो तरफ पानी ।
जीवन की भीख मांगता,
इन्सान और प्राणी ।
अब ले सज्ञान,
हे इन्सान ।
नही तो !
ना रहेगे प्राण,ना प्राणी,
चारो तरफ होगा बस,
बाढ़ का पानी ।

@प्रदीप सहारे


नमन मंच भांवो के मोती
विषय बाढ़, जल प्रलय
विधा कविता

12 अगस्त 2019,सोमवार

इंद्र प्रकोप होता धरती पर
नदियां सागर बन जाती है।
नगर गाँव में विलय सलिल
विपदाएँ हिय छा जाती है

पीने का पानी नहीं मिलता
भौज्य वस्तु हेतु सब तरसे।
पशु पक्षी सभी दुःखी मन
मूसलाधर पानी जब बरसे।

गिरधारी बन आते सैनिक
जो जनता को आश्रय देते।
वे रक्षक बन प्राण बचाते
हर संकट जन के सह लेते।

कार बहती ट्रेक्टर बहते
बह जाते हैं रोज मवेशी।
सब बहते मकान कच्चे
मात्र सैनिक बने हितेषी।

पारावार नहीं है जल का
ऊपर जल है नीचे जल है।
भयावह स्वरूप धरा का
हाहाकार मचा नभथल है।

जन धन क्षति बाढ़ से होती
जनता सारी साहस खोती।
बालक बूढे युवा सभी जन
सब कुछ खोकर आँखे रोती।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

नमन भावों के मोती
विषय-बाढ़
विधा-छंद मुक्त


"#बाढ़_का_पानी"

अथाह जल ने 
घेर रखी है 
गाँव की सब गलियाँ
पड़ी है दीवार कहीं
कहीं पूरा घर ही डूब गया
दब गए बच्चे 
एक परिवार के
मचा हुआ है कोलाहल
भीड़ लगी है मलवा हटाने
टूटे हैं तार बिजली के
मर गए कई मवेशी करंट से
नीड़ सब उजड़ गए हैं
ठिकाना नहीं पक्षियों का
प्यास से व्याकुल है सब
बह रहा है पानी भरपूर
मटमेला,कीच से सना
बह गए घर के बर्तन
गर्दन बाहर निकाल रहा है चम्मच
जैसे बोल रहा हो बचाओ
पता नहीं उसे 
तेरी क्या औकात 
बहाव बड़ा उग्र है
बह रही है गाड़ियाँ
डूबी नौका की तरह
वफादार जानवर भी बह रहे हैं
देख रहे हैं गाँव के लोग 
नम आँखों से
गेंहूँ भी ऊपर तैर रहा है
बहते पानी के साथ
खाने के लाले पड़े हैं
कौन बढाए हाथ 
मर गए मुर्गे, मरी हैं भेड़े
थी जिनकी रोजी
हाथ निकल आया बाहर पानी से
आवाज आई एक बार 
निकालो मुझे
बस,बन्द हो गई आवाज
मर गई एक बूढी अम्मा 
बिन ईलाज के
दवाइयों की कमी से
हाथ पर हाथ
धरे बैठे टीले पर सब
चू रहा रहा तम्बू टप-टप
और डूब रहा है गाँव
ढह गए जिन्दगी के सपने
दिखाई दे रहा है 
दूर-दूर तक पानी ही पानी

रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा,

शीर्षक-- बाढ़ 
।। मेघ ।।
प्रथम प्रस्तुति


मेघ भी क्या जोशीले करें जंग है
अजब आदत रहें मस्त मलंग है ।।

कहीं बरसें तो बरसते ही रहें 
कहीं तरसायें बजायें चंग है ।।

खाली आऐं और खाली जाऐं
मचाते रहें गगन में हुड़दंग है ।।

क्या मन में है बतायें खुलके
कितनें को न करदें यह तंग है ।।

बिहार बम्बई क्यों रूलाये क्या
कोई ग़लतफ़हमी उन संग है ।।

हर वर्ष वही अड़ियल रवैया 
ये इंद्रदैव की बजह से दबंग है ।।

जबकि कृष्ण फटकारे थे इन्हे
पर आज भी इनका वही रंग है ।।

कौन समझाये इनको 'शिवम'
लगे ज्यों इन संग कोई कुसंग है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/08/2019

12/8/2019
बाढ़/जल प्रलय
नमन भावों के मोती।

सुप्रभात गुरुजनों, मित्रों।

बाढ़ ने तबाही मचाई,
गूंजे चहूं ओर चीख,पूकार।
कितने बह गये माल मवेशी,
कितने बह गये इन्सान।

भूखे,प्यासे बच्चे रोते,
खाना नहीं मिलता है।
कितने तो मर जाते हैं भूख से हीं,
यह छाई कैसी विवशता है।

रहने को घर नहीं,
सोने को बिस्तर नहीं।
जायें तो जायें कहां,
है कोई भी ठौर नहीं।

रोते, चिल्लाते हैं,
कोई मसीहा आता है।
पानी से बाहर लाकर,
फिर जिंदगी दिलाता है।

इसी तरह से विवशता में,
कट रही है जिन्दगी।
ना जाने कहां तक,
ले जायेगी ये वेवशी।

स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी

नमन:"भावों के मोती "
दिनांक:12/08/2019
विषय:बाढ/जल प्रलय 

विधा:मुक्तक 

बात है सत्तर के दशक की लखनऊ में 
बाढ का मंजर देखा था पहली बार ।
गोमती नदी का स्तर यू बढने लगा 
डूब गया था छत्तरतमंजिल का काफी हिस्सा ।
सारे कर्मचारी फस गये थे कार्यालयों में 
फिर आई मदद् अधिकारियों व सैनिको से ।
चलने लगी नावे उन्ही गलियारों में 
हुजूम उमड़ आया प्रलय देखने को 
कुछ समय में सब सामान्य होने लगा 
पर बहा कर ले गया बहुतो के घर व अरमान ।

आज फिर से जल प्रलय का दस्तक हो रहा
विस्तार जल का केरल कर्नाटका में हो रहा।
आओ करें तैयारियां रहते समय मे 
छति हो न कोई नित वर्ष ऐसी आपदा से।
वैज्ञानिकों ,भौगोलिको,मौसम विशेषज्ञों 
कर के मनन् सब संग बैठ कर 
रणनीति तय करना है कि 
देश को न झेलना हो सूखा य जल प्रलय से।
#स्वरचित 
#नीलम श्रीवास्तव

नमन-भावो के मोती
दिनांक-12/08/2019
विषय-प्रलय


जलधारा चांदी का मुकुट पहने

अपने यौवन पर है इठलाती।

मरघट की ठंडी बुझी राख

गुबार धुएँ में सुलग जाती।।

जब जब जलप्रलय आती

प्रकोप पीड़ा की मंदाकिनी बहाती।

थके हुए जीवो को जलधि करती

तरंगघात प्रलय करती..............

बाढ वीभत्सतता अपने गरूर पर इतराती।।

अर्धरात्रि की निश्चलता में मदमस्त मुस्काती

मुझे सुलाती सौंदर्य सरिता के विस्तृत वक्ष स्थल में।

अपनी सोती कमल कामिनी शांत सरोवर के दलदल में।

तिमिराचंल की चंचलता जैसी उसकी लहरें

तरंग घात प्रलय करती जिधर जाती उसकी नजरें।

धन गर्जन को जलधि करती

क्षिति में, नभ में, अनिल में, अनल में

प्रलय करती..................

सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

 बाढ़

कितनी शिद्दत से

व्यक्ति अपना घर बनाता है
और बाढ़ का पानी
चंद मिंटों में बहाकर ले जाता है
राहत शिविरों में रहने को
मजबूर वह हो जाता है
ऐसी स्थिति में उसे
समझ कुछ नहीं आता है
सड़कों पर चलना
मुश्किल हो जाता है
पशुओं के लिए भी
मुसीबत बन जाता है
पर्यावरण भी 
प्रदूषित हो जाता है
कौन है जिम्मेदार इसके लिए
प्रकृति, प्रारब्ध या क्रियाकलाप मानव के
प्रश्न प्रश्न ही रह जाता है।

-- हरीश सेठी झिलमिल
(स्वरचित)

नमन मंच
विषय-बाढ़/जल प्रलय
**********************
बाँस की कोठरियों से झाँकते
असहाय,छटपटाते स्त्री -पुरुष
घुटनों तक खड़े पानी में
कभी खुद,कभी प्रकृति को कोसते
माथे पर चिंता की सिलवटें लिए हुए
जाने कितने दिनों से डूबे घरों को निहारते
मन के किसी कोने में 
आशा का दीप जलाये
परिस्थितियों के थपेड़ों को झेलते
आस भरी निगाह से देखते हुए
बस यही सोचते कि कब होगा अंत
उनकी परेशानियों का,
प्रकृति के तांडव का,
मानव की असीमित आकांक्षाओं का,
शायद हम ही हैं इस सब के जिम्मेदार
दोहन ,शोषण करता मनुष्य
न चेते अभी तो निश्चित ही 
विनाश व् प्रलय की गोद में
सृष्टि का समावेश हो जायेगा।

सर्वेश पाण्डेय
12-08-2019


प्रयास दूसरा
नमन- भावों के मोती🎀
शीर्षक-बाढ़ अथवा जल प्रलय

मान ले तू मेरी ये सौ टके की बात
बड़ी अचरज सी प्रतीत होती है ये बात,
जो मरु में आज हुई इस कदर बरसात।
मान ले तू मेरी ये सौ टके की बात,
इंद्र देव ने जो किया तुम पर अट्टहास।
सूखे में जो आन पड़ी इस कदर बाढ़,
मानुष बचा ना उसका कोई आवास।
देखते देखते जल प्रलय ने किया उपहास,
बौना प्रतीत हुआ आज मानुष का विकास।
विकास की रफ्तार में प्रकृति का किया नाश,
मान ले तू मेरी ये सौ टके की बात....
पर्यावरण के हर घटक है निर्मित बड़े खास
रुख प्रकृति का मोड़ के स्वयं ने किया आगाज।
क्यों कोसना इंद्र को,जब खुद के कर्मो पर नही विश्वास,
यकीन कर ए मानुष,प्रकृति से केवल कर सद आस,
मान ले तू मेरी ये सौ टके की बात..
तू ना कर अत्यधिक दुरपयोग,रख ये सलाह अपने पास
ना इस प्रकृति पर हक़ तेरा,एक बार स्वयं के अंदर तो झाँक,,तू एक बार स्वयं के अंदर तो झाँक,,
मान ले मेरी ये सौ टके की बात,रे मानुष मान ले ये सौ टके की बात,,
स्वरचित

भावों के मोती
12/8/2019
विषय-बाढ़/जल प्रलय
विधा-छंदमुक्त
🌧️🌦️🌨️🌩️💧🌊
कल मेरी इंद्रदेव से झड़प हो गई
मैंने उनको खूब खरी खोटी सुनाईं
मैंने कहा,धरती पर सब प्राणी
भीषण गर्मी से त्रस्त, बेहाल परेशान हैं
और वहाँ आप स्वर्ग में आनंद उठा रहे हैं
कभी कहीं भयंकर आग वर्षा रहे हैं
कहीं बाढ़ के प्रकोप से जन धन
को डुबो डुबो कर मार रहे हैं
आखिर आपकी मंशा क्या है
क्यों आप प्रकृति में
संतुलन में नहीं ला पा रहे हैं
यदि आप अपना दायित्व 
भली भांति नहीं निभा पा रहे हैं
तो पदच्युत हो जाईये
अपनी जगह किसी 
काबिल व्यक्ति को बैठाइए
इंद्रदेव शांतिपूर्वक सब सुनते रहे
धैर्यपूर्वक मुझे बोलने का अवसर देते रहे
फिर बोले,
"हे मूर्ख नादान प्राणी!
ये जो प्रकृति में असंतुलन व्याप्त है
ये तुम मनुजों के अक्षम्य कृत्य का परिणाम है
अपनी स्वार्थपरता में तुम ने
धरती को जलमग्न कर डाला है
कहीं सूखाग्रस्त बीहण कर डाला है
वनों को काट कर 
कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए
पहाड़ो का सीना चीर कर
सड़कें ,राजमार्ग बनाए
समंदर में भी घुसकर निरीह जल जंतुओं 
पर ज़ुल्म ढाए
अपने कुकृत्यों का देख लो अब
आँखो देखा हाल
अब मत करना मुझसे
बेवजह के सवाल
अपनी बर्बादी का जाल
तुम मनुष्यों ने स्वयं रच डाला है....
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित

12/8/19
भावों के मोती
विषय= बाढ़/जल प्रलय
_____________________
यह प्रलय का आगाज नहीं
यह प्रकृति का क्रौध है
गरजती हुई दामिनी
बादलों का रोद्र रुप है
गरज-गरज बरस-बरस
तांडव है मचा हुआ
जलमग्न होता शहर
पहाड़ गिर बिखर गया
बह गया घर-द्वार
सामान सब बह गया
छिन गया आसरा
इंसान हुआ बेआसरा
यह प्रलय का आगाज नहीं
यह प्रकृति का क्रौध है
उफन रही है नदियाँ
नदी-नाले हैं उफान पर
बह रहा सिर के ऊपर
पानी अब मकान पर
राहत की आस देखती
ज़िंदगियाँ तड़प उठी
बचा नहीं तिनका भी कुछ
बाढ़ के साथ सब बह गया
थम रहा न रौद्र रूप
न थम रहा बादलों का क्रौध
यह प्रलय का आगाज नहीं
यह प्रकृति का क्रौध है
***अनुराधा चौहान***©️®️ स्वरचित

 नमन मंच 
12/08/19
बाढ़ 

दोहावली

प्राकृतिक आपदा करे ,जन जीवन बेहाल।
इससे बचने के लिये ,चलें समझ के चाल ।।

जीवन संकट में पड़ा ,आया ये सैलाब।
वर्षा देती कष्ट अब ,गाँव बने तालाब ।।

हाल यही प्रतिवर्ष का,मनुज हुआ बेहाल।
नष्ट हुआ सब बाढ़ में,बुरी वक़्त की चाल।।

क्षरण मृदा का जो रुके,लगे बाढ़ पर रोक।
वृक्षों का रोपण करें,पूरी ताकत झोंक । ।

बाँधे माटी को जड़ें ,रोके मृदा कटाव ।
स्वच्छ नदी की तलहटी,रोके बाढ़ बहाव।।

बाढ़ और सूखा बने ,जीवन में अभिशाप ।
कहे नदी की धार अब ,जतन करो मिल आप।।

स्वरचित
अनिता सुधीर


 नमन भावों के मोती
12 अगस्त 19 सोमवार
विषय-बाढ़/जलप्रलय

विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
जल प्रलय
सर पे हाथ धरे
किसान बैठे 👌
💐💐💐💐💐💐
सैनिक गण
बचाव कार्य करें
बाढ़ में फँसे👍
💐💐💐💐💐💐
भीषण बाढ़
बचाव व राहत
सैन्य जवान💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला

सादर नमन साथियों
तिथिःः12/8/219/सोमवार
बिषयःः# जलप्रलय/बाढ#
विधाःः काव्यःः

जलधर इतना जल भर लाऐ,
ये जल प्रलय से शोर मचाऐं।
मुश्किल में प्रभु पडी जिंदगी,
तुम गंगाधर अब हमें बचाऐं।

यहाँ नदियां नाले झूम रहे हैं।
प्रत्येक शिखर ही चूम रहे हैं।
तांडव नृत्य करते जल देवा,
घुमड घुमडकर बरस रहे हैं।

मकान दुकान तैरते पानी में।
हाहाकार मचा रजधानी में।
घर गृहस्थी वहती रोजाना,
बहुत व्यथित हैं परेशानी में।

सैनिक सहायक बने हुए हैं।
सब सेवाकार्य में डटे हुए हैं।
डाल जान जोखिम में ऐसे,
वीर जवान सब लगे हुए हैं।

सब बाढ पीडित परेशान हैं।
क्या करें बहुत व्यवधान है।
जल प्रवाह भी रूकता नहीं,
पशुपक्षी अब डरे किसान हैं।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

भावों के मोती :
#दिनांक :12"8"19
#विषय :#जलप्रलय /#बाढ़ 
#विधा :काव्य :

*""""""* सैलाब *""""""*

अब भी अगर हम ना सुधरे,
और जारी रखा नदियों का पुराव, 
हम कचरा उनमें ही फैकते रहे, 
वो देती रहेंगी जलप्रलय कर घाव, 

कुदरत कर कहर अभी बाकी है
बाकी है अभी सैलाब का कहर, 
हो जाएंगे पूरे जड़ से ही समाप्त, 
गाँव कस्बे नगर और शहर,

सुखद जीवन जीने को हमने, 
नदियों के तट पर बस्तियां बसाई, 
जल को हक अपना मान लिया,
गटर और गंदगी भी हमने फैलाई, 

बाढ़ का पानी हुआ दिशाहीन, 
नदियों मैं ना रही अब वो गहराई, 
समन्दरों से सुनामी का उठा खतरा, 
आगे है कुवां तो पीछे है खाई, 

मुहिम चलाकर अब चेतना जगाएं, 
वर्ना जल प्रलय बन कहर बरपाएगा 
जिस जल से हम जीवन पाते हैं, 
वही जल जलजला बन जाएगा,

रचनाकार*"""*दुर्गा सिलगीवाला सोनी 
भुआ बिछिया जिला मंडला 
मध्यप्रदेश,

नमन मंच
12/8/2019::सोमवार
विषय बाढ़
**********************
ढलता सूरज
तेरी खमोशियाँ
बयाँ करती हैं
वक्त के कुछ निशाँ
बादलों का दिख रहा
कैसा सरूर 
धरती पर चलने लगीं
हैं किश्तियाँ
बाढ़ का मंजर भी अब
खामोश है
अब कैसे गुज़र होंगी
ये जिन्दगियाँ
बैठ तन्हा इसकदर
मैं सुन रहा
खमोशियाँ करने लगीं
सरगोशियाँ
कहने को तो है फ़क़त
इक झोपड़ा
क़ैद इसमें भी
मुहब्बत की निशानियाँ
साथी मेरा ये शज़र
बनता रहा
क्या पता दे रहा 
मेरे लिए कुर्बानियाँ
काश कोई आन पूछे
सलामती मेरी
धीरे धीरे बढ़ रहीं
बेताबियाँ
रश्क़ हो जाये मुझे भी
जीस्त पर
भेज दूँ मैं खुदा को
अपनी सलमियाँ
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

मन भावों के मोती
, आज का विषय, बाढ़ जल प्रलय
सोमवार
12, 8, 2019,

आजकल हमारे देश का हो रहा, हाल बहुत बेहाल ।

इन्द्र देव के कोप से , कई राज्य हुऐ हैं बदहाल।

कहर बाढ़ का झेल रहे हैं , कितने ही अपने लोग ।

सहना पड़ रहा है हमें ,
कितनी ही जानों का वियोग ।

वजह हुई है क्या ये सब जानना भी ,
फिर कभी होगी आत्ममंथन की बात।

पहले तो हम कस लें अपनी कमर को,
और चलें हम भी पीड़ित लोगों के पास।

क्यों ना हर मुमकिन सहयोग करें हम ,
दें दुख में हम सब चलकर उनका साथ ।

ये मानव जीवन है फिर किसलिऐ ,
जो आये नहीं कभी भी अपनों के काम ।

जल वस्त्र दवा और सब खाद्य पदार्थ,
पहुचायेगी सरकार पर उन्हे चाहिए हाथ ।

आओ आगे बढ़ चलो और,बटाओ उनका हाथ ।
मदद हमारी अभी चाहिए, क्यों देख रहे हो वाट ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

शुभ संध्या
विषय-- बाढ़ 
।। बारिश ।।
द्वितीय प्रस्तुति

बारिश जितना पुण्य करती 
उतना ही तूँ पाप करती ।।

क्यों नही अपने दिल में
सबके प्रति इंसाफ रखती ।।

हर वर्ष कितनी दुआ और
बददुआ से दामन भरती ।।

क्यों नही तेरी रूह इन 
बद दुआओं से है डरती ।।

बताती भी तो नही अपनी
लगी क्यों ये खीज रहती ।।

कब किससे तूँ खुश रहे 
और कब किससे चिढ़ती ।।

बाद में पता चलता जब
तबाही से जनता मरती ।।

तूँ बारिश पूज्यनीय हर
वर्ष कितनों को निगलती ।।

क्यों तुझमें शैतानी समायी 
बता 'शिवम' क्यों मुकरती ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/08/2019


विता 
विषय:-"बाढ़" विविध दृष्टिकोण से... 

सूचनाओं की बाढ़ 
सत्य डगमगा रहा 
हिचकोले खा रही 
आज तथ्यों की नाव 

राष्ट्रप्रेम की बाढ़ 
एकता का ज्वार 
बदल गया नक्शा 
बना दिया इतिहास 

ममता की बाढ़ 
उफनती क्षीर धार 
धर्म,जाति बह जाते 
आँचल में भरा प्यार 

महंगाई की बाढ़ 
निगल गई गरीब 
कर्ज़ में डूबे कृषक 
बैंक बने अमीर 

रचनाओं की बाढ़ 
कहीं कोढ़ में खाज 
तैर रहें हैं शब्द 
और डूब रहे हैं भाव 

स्वरचित एवं मौलिक 
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)

नमन मंच
जलप्रलय
इंद्र का कोप या वरुण निरुपाय
धरा धसक जीव जन असहाय
सागर सहन मिलकर एकाकार
धरा पर पसरा करुण हाहाकार
मैया, गैया दीन दैया की पुकार
आर्त्तनाद-त्राहि माम् मंत्रोच्चार
जल प्रलय हा! तोड़ रही साँसें
जल माला में बहती जिंदा लाशें
-©नवल किशोर सिंह
12-08-2019
स्वरचित

नमन मंच को
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 12/08/2019
शीर्षक :- बाढ़/जल प्रलय

उजाड़ती घर-बार...
ये उद्दंड जल-धार..
लेकर रूप बाढ़ का...
छिन्न-भिन्न करती परिवार...
बिलखते बच्चे भूख से...
मानव की छोटी सी चूक से..
रूप भयावह धरती प्रकृति...
समूल नाश करती प्रकृति...
अस्त-व्यस्त करती जीवन...
काल ग्रास बनाती जीवन...
शहर बन जाते ताल-तलैया...
सरकारें करती ताथा-थैया..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

नमन् भावों के मोती
12अगस्त19
विषय:बाढ़/जल प्रलय
विधा:कविता

नभ मण्डल में तैर रहे,
विप्लव बादल वीर ।
धीर- वीर भी डर रहे,
दिखता केवल नीर।
घनघोर घटा की छटा,
प्रलयंकारी गम्भीर।
जल थल में अंतर कठिन,
झर-झर बरसे नीर।
बाढ़ विभीषिका आपदा,
थर थर कांपें शरीर।
गम्भीर हुई मौसम विपदा,
कृषक बहुत अधीर।
झकझोर वर्षा की छटा,
घटा बड़ी गम्भीर।
त्राहि त्राहि कर पीड़ित जन,
प्रभु की स्तुति करते धीर।
जल प्रलय विकराल समस्या,
प्रभु दूर करो नयन नीर।

मनीष श्री
स्वरचित

 नमन"भावो के मोती"
12/08/2019
"बाढ़/जल प्रलय"

**********************
जल प्रलय चारो ओर..
उसमें मेघों का है शोर..
दुश्चिंता से मन रहा डोल
जन-जन ईश्वर को रहे हैं पुकार....

प्रकृति का है कैसा कहर..
डूब रहा गाँव और शहर...
उफान भरती सभी नदियाँ
लबालब भरा है नहर......

हमारे वीर जवान......
मुस्तैदी से हैं तैनात....
रक्षा कर रहें सबके प्राण
धन्य उनकी माता महान।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

 नमन
भावों के मोती
१२/८/२०१९

विषय-बाढ़/जलप्रलय

जलप्रलय
हर ओर विनाश
डूबते घर
मचता हाहाकार
त्रस्त जनजीवन।

जलप्रलय
प्राकृतिक आपदा
डहे पहाड़
उफनती नदियां
विनाश ही विनाश।

टूटी सड़कें
डूबे गांव-शहर
सर्वत्र बाढ़
विवश है इंसान
प्रकृति के समक्ष।

सर्वत्र पानी
करी कैसी नादानी
काटे हैं वृक्ष
कुदरत से खेल
मानव तू ही झेल।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

भावों के मोती दिनांक 12/7/19
बाढ़ जल प्रलय 

बनता है मानव 
अनजान
बहुत भोला है
उसका ज्ञान 
बाढ़ जल प्रलय 
से होता है
परेशान 
प्रकृति को 
करता है
बदनाम
रोक दिये है
बहाव के 
सब रस्ते
अब बहते है
बच्चे बस्ते

नहीं है चिंता 
पर्यावरण की
प्रदूषण है
भरपूर
पाट दिये है
घाट किनारे
कांक्रीट के
महल बना के

है हर साल
वही बाढ़ 
जय प्रलय 
करते नहीं 
जल प्रबंधन 

करते हैं 
उम्मीद 
जिन्दगी की
दिखाती है
बाढ़ 
रूद्र रूप अपना
अब भी चेतो
करो बंद 
अतिक्रमण 
नदी नालों 
ताल तालाब
झीलों पर

जियो और 
जीने दो
प्रकृति 
और मानव को

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

भावों के मोती
बिषय-जलप्रलय

दृश्य भयानक होता
सदा ही जलप्रलय का।
डूबते स्त्री-पुरुष, बच्चे,
पशु, खेत-खलिहान।

प्रकृति का ये कहर
भर देता मन में डर।
क्रोध नदियों का देख
तन कांपता थर-थर।।

नेताओं की मगर यहां
हो जाती बल्ले बल्ले।
हेलीकॉप्टर से देखते 
दृश्य सारे मजे ले ले।
राहत कार्य के नाम पे 
खुब सारे रूपये बटोरते।।

मगर हमारे वीर जवान
लग जाते मुश्तैदी से।
जाती धर्म न पूंछ कर
सबको बचाते खुशी से।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

नमन मंच 
12/08/2019
कविता 
"बाढ़"

बाढ़ का पानी उतर गया,
पर आंखों में पानी रह गया,
डूबी यादों की जमा पूँजी, 
रिश्तों का धन भी बह गया l

दीनता पहले ही लाचार थी,
वक़्त क्रूर मज़ाक कर गया, 
हँसता खेलता घर था कभी, 
हाथों को खाली कर गया l

कुछ तो कारण रहा होगा, 
कि दरिया समंदर बन गया, 
प्रकृति से छेड़छाड़ बहुत हुई, 
और रूप उसका बदल गया l

तिनका-तिनका जोड़ा था, 
बुना हर स्वप्न बिखर गया,
बाढ़ का पानी उतर गया, 
पर आंखों में पानी रह गया l

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

नमन मंच
दिनांक .. 12/8/2019
विषय .. बाढ/जल प्रलय
*******************

मानव के दुष्कृत्यो का,
परिणाम भयानक आया है।
आधा भारत ही लगभग,
जल प्रलय के गाल समाया है॥
***
गाँव के गाँव डूब गयी सडकें,
कुछ भी नजर ना आया है।
बाढ का ऐसा मँजर जीवन,
त्राहि त्राहि बन आया है॥
***
सिमट रही नदियों के किनारें,
बस्ती नया बनाया है।
नदी का रस्ता रोका तो ही,
जल प्रलय ये आया है॥
***
काट दिया लाखों तटबन्धक,
वृक्ष का श्राप ही पाया है।
प्रकृति का अनदेखा कर ,
कैसा विकास ये पाया है॥
***
डूब गये है जनधन कितनी,
शेर हृदय अकुलाया है।
बडी देर से लिखा है क्योकि,
समय नही मिल पाया है॥
***

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ

नमन मंच
विषय- बाढ./ जल प्रलय

सबसे खतरनाक मंजर
धरा पर इन्द्र का ताडंव
सब तरफ जल ही जल
कैसा होगा इसका सवेरा
क्या आएगा इसका कल
प्रकृति पर भूचाल आया
अचानक बाढ़ को लाया
गाँव का अस्तित्व मिटा
बहकर सब चला गया
कच्ची पक्की भीत मकां
सीमाएँ मिटी हर गाँव की
कहानी बिलखते मनु की
मीडिया हुआ है सक्रिय
मंजर बहुत ही भयानक
ये क्या हुआ है अचानक
इसके पिछे के जिम्मेदार
कभी कौसता इन्सान को
कभी कौसता सियासत
उपस्थित रह दिन -रात
लाइव रहे सभी के साथ
आश्वासन दे बता रहे है
जन-धन हानि मानव को
घोर अन्धेरा फिर छाया
शान्त क्लान्त एकान्त है
भौर की पहली किरण
मीडिया हुआ सक्रिय
कैमरा उठा बढा़ आगे
जल प्रलय का मंजर
कई गाँव जल विलय
सब तरफ है सन्नाटा
पसरा किचड़ गन्दगी
मलबे में दबे है लोग
लाशे संडा़ध मारती
आशंका है महामारी
पूरे गाँव उजड़ गये
अपने से बिछुड गये
मंजर बाढ़ का दिखा
सबक इन्सा को सिखा
दुहाई प्रकृति को देते
दोहरान न करना ऐसा
जल प्रलय जल प्रलय

मधु पालीवाल
स्वरचित
12 / 8 / 2019

नमन मंच
दिनांक-१२/८/२०१९
शीर्षक-"बाढ़"
पत्थर दिल भी पिघल जाये
देख विभिषिका बाढ़ की,
त्राहि-त्राहि मचे चहूँ ओर
इंसान, मवेशी के बह गये ठौर।

सड़कें डूबी पानी के अंदर
घर घर घुसा पानी बन कहर
दर्प चुड़ हुआ मानव का
प्रकृति के आगे हुआ विवश।

अहंकार जब बढ़ जाये
विनाश के कगार लाये
संतुलन जरूरी प्रकृति के संग
असंतुलन है निमंत्रण मौन।

जंगल काट जो हम लाये विनाश
बाढ़ लाये नदियाँ विरोध जताये
नदी ओ मनु की एक ही गति
मर्यादा में ही रहना उचित।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

नमन मंच 
विषय :--बाढ़ /जल प्रलय
विधा--मुक्त 

अबके आई ऐसी बाढ़
बह गये खिड़की और किवाड़
प्रलयकारी आँधी में 
डह गये सारे किले -पहाड़ 

त्राहि -त्राहि चारो ओर
पानी -पानी ओर छोर
अवनि -अंबर जल प्रपात 
बची ना जीवन की भी डोर

अंबर टूट पड़ा धरती पर
जैसे क्रोधित हो आशुतोष 
तांडव कर रोंद रहें हो
प्रकृति की छटा को। 

डा .नीलम , अजमेर

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