Tuesday, August 27

"कान्हा से प्रीत (जन्माष्टमी)"24 एवं 25 2019

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ब्लॉग संख्या :-485


नमन मंच भावों के मोती
#मेरी_प्रथम_प्रस्तुति
विधा- लीला छंद

विषय- कान्हा से प्रीत
23/8/2019

श्याम नहीं आ रहे, रूठ कहांँ जा रहे।
बात हुई है बुरी, तान छिड़ी बेसुरी।।

राज बताओ जरा, माधव आओ जरा।
गोकुल के लाल हो, या मथुरा भाल हो।।

तात बता कौन है, कृष्ण सखा मौन है।
रूठ गए आज हैं, व्यर्थ सभी काज हैं।।

ग्वाल गए हाँफते, देख सखा भागते।
दूध नहीं पी रहे, कोप बसा जी रहे।।

रंक हुए नंद हैं, भंग सभी छंद हैं।
पीर दिखी मात को, खत्म करो बात को।।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित



नमन मंच भावों के मोती
#मेरी_चतुर्थ_प्रस्तुति
विषय- कान्हा से प्रीत

विधा- गीत
24/8/2019
212 212 212 212

मुखड़ा
श्याम तू है लला प्रेम से है पला,
मांँ यशोदा लला को मनाती रही।

1))) अंतरा

मोर का पंख है मात का अंक है,
चंद्र का बिंब कान्हा निहारा करें,
मात गागर हिला कर दिखाती रही।

मांँ यशोदा.........

2))) अंतरा

मटकियाँ फोड़ दीं बांँसुरी तोड़ दी,
पीर मन में उठी शूल सी चुभ रही,
खेल मैया निराले जुटाती रहीं।

मांँ यशोदा.......

3))) अंतरा

मात मोहन कहें तात लाला कहें,
मोल में ले लिया गांँव सारा कहे,
मांँ डिठौना लला के लगाती रही।

मांँ यशोदा.........

4))) अंतरा

भाव की भूख है नेह की प्यास है,
सहचरों से मिलन की बड़ी आस है,
मात लोरी सुना कर सुलाती रही।

मांँ यशोदा........

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित


नमन मंच भावों के मोती
#मेरी_द्वितीय_प्रस्तुति
विषय- कान्हा से प्रीत

विधा - राधिका छंद
23/8/2019

कान्हा छवि है बेजोड़, जपें सब माला।
मुरली है लगती सौत, सहें ब्रजबाला।
कान्हा वैजंती डाल ,मोहिनी मारे।
हों अष्टसखी बदनाम, कृष्ण बेचारे।

बजती बाँसुरिया मधुर, ग्वाल सुध खोते।
कर में धरते हरि चक्र, विकल अरि होते।
मंथन से उपजा शंख, नाद है करता।
पांडव सेना में हर्ष, गर्जना भरता।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

🌻जय श्री कृष्णा🌻।। बुन्देलखंडी लोकगीत ।।

मोरो ललना बड़ो है प्यारो ..
कोऊ कहो न ऊखों को कारो ..
जिया न धरे जो मोरो धीर ..
जब जब रोऐ मोरो वारो ..

सखियाँ बुरो भलो चहे कहवें 
चाहे संग ....कोऊ न रहवें 
बिष सी लगे हरेक वो बात 
जा में रोय मोरो गभुआरो ....

मोरो ललना बड़ो है प्यारो
कोऊ कहो न ऊखों कारो..

कल से ललना मोरो रिसानो 
एकऊ बात न मोरी मानो 
पूछन लगे वो माँ को नाम 
कहे मैं छल कपट को मारो ...

मोरो ललना बड़ो है प्यारो
कोऊ कहो न ऊखों कारो..

कोऊ कहे मोल को लीन्हो 
मैंने माँ को विपदा दीन्हो 
अँखियन भर भर आवे नीर
कैसे कहूँ रहस्य मैं सारो ....

मोरो ललना बड़ो है प्यारो
कोऊ कहो न ऊखों कारो..

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/08/2019



शुभ संध्या
नमन भावों के मोती
🌻।। कान्हा की मुरली ।।🌻
्वितीय प्रस्तुति

तेरी मुरली दर्द जगाय ..
कान्हा नींद मोहे न आय ..

कैसे स्वर ...छेड़े तूँ बाके..
मन की सुदबुद सब विसराय ..

कौन सा दर्द जो है समेटे..
आकर कुछ तो मोहे बताय...

क्या मैं तेरी नही कान्हा...
क्यों तूँ मुझको रहे छुपाय ...

सुनूँ अगर तो सुदबुद खोऊँ..
न सुनूँ तो जिया अकुलाय ...

जब से बँधी प्रीति की डोरी ..
मन यह कहीं नही सुख पाय ...

साँझ हुए मैं राह निहारूँ...
जब तूँ नही मोहे दिखाय..

बेचैनी बढ़ जाय जिया की ...
'शिवम' बतायी नही वह जाय ...

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/08/2019



सुप्रभात! 
नमन भावों के मोती
विषय--कान्हा से प्रीत

तृतीय प्रस्तुति

।। द्रोपदी की पुकार ।।

कहाँ छुपे हो कृष्ण मुरारी
लाज तुम्हारे हाथ हमारी ।।

आज अगर नही आए श्याम
भूल जायगी हिन्द की नारी ।।

भरी सभा में दु:शासन ये
कैसी रार करे गिरधारी ।।

इक अबला की आह न चीन्ही 
खींच रहा है ....मेरी सारी ।।

विद्धजनों के हाथ बँधे हैं 
राजद्रोह की उन्हे लाचारी ।।

कौन धर्म यहाँ बड़ा कहाए 
गयी है सबकी मति मारी ।।

महा भूचाल आ जायेगा 
ऐसे कर्म की है तैयारी ।।

आकर दण्ड दो इन्हे कान्हा
देर करो न बाँके बिहारी ।।

इक पल भी जो देर लगायी 
पड़ जावेगी 'शिवम' भारी ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 24/08/2019

शुभ संध्या
नमन भावों के मोती
शीर्षक-- कान्हा से प्रीत

चतुर्थ प्रस्तुति

काह तजे बृजधाम श्याम मोरो जिया न लागे 
किससे जोड़ूँ प्रीत के धागे समझ न आवे ।।

गऊयें भी अकुलाय रमांय इत उत धावे 
वाणी तो न पायी मगर वो सब कह जावे ।।

क्यों विसराय दियो मोरे कान्हा कुछु बतावे 
बार बार मन बंशीवट पर नजर गढ़ावे ।।

न ही तूँ न ग्वाल वाल कोऊ नही दिखावे 
व्याकुल अँखियाँ व्याकुल सखियाँ वारी जावे ।।

कौन आज अब जमुना तट पर रास रचावे 
हो चर या हो अचर 'शिवम' सब दुखी कहावे ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 24/08/2019
नमन भावों के मोती
दिनांक .. 22/8/2019
शीर्षक -" काँन्हा से प्रीत

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
मन साधत है यही साधना ,क्या ऐसा हो जाये।
काँन्हा सा इक नन्हा बालक, मेरे भी अँगना आये।
हा.. मेरे भी अँगना आये...

पग पैजनीया बाँध वो मुझको, मईया कहके बुलाये।
ठुमक ठुमक कर चाल चले, मोरा मन हर्षित हो जाये।
हा.. मोरा मन हर्षित हो जाये...

साँवला मुँख हो लट घुँघराले, नैना हो कजरारे।
कमर करधनी हाथ मे कंगन, मोर पंख सिर बाँधे।
हा... मोर पंख सिर बाँधे....

पूरे घर को सिर पे उठा ले, माखन मिश्री खाये।
भारत की हर माता ये सोचे, काँन्हा मेरे घर भी आये।
हा.. काँन्हा मेरे घर भी आये...

दिव्य रूप हो छँटा निराली, बरबस ममता जागे।
शेर कहे काँन्हा इस जग के, अदभुद पुत्र निराले।
हा.. अदभुद पुत्र निराले....

भादों मास के शुक्ल पक्ष मे, अष्ठमी दिन जो आये।
आर्याव्रत के खण्ड खण्ड मे, सोहर गाया जाये।
हा.. सोहर गाया जाये....

स्वरचित ...
शेर सिंह सर्राफ 
देवरिया उ0प्र0


नमन मंच भावों के मोती
23/08/2019
घनाक्षरी मनहरण छंद


अपना ही विम्ब देख, उसको पकड़ने को,
घुटनों के बल जब, कृष्ण चलने लगे।
माँ हुई मगन देख, बाल रूप वह तब,
किलकारी मार जब, श्याम हँसने लगे।

भूल गई अपनी भी, माँ यशोदा सुध तब,
मुँख में प्रभु के जब, दाँत दिखने लगे।
रखा जैसे ही भवन, में था पाँव नंद जी ने,
मनोहारी रूप देख, वह रीझने लगे।।

मैया रही नंदलाल, को निहार एकटक,
देख दृश्य यह ग्वाल, बाल झूमने लगे।
अनुभूति नंद की न, देख सकता था कोई,
उर में प्रसन्नता के, भाव फूटने लगे।

झार दिया धूरि जब, मैया ने धरा पे तब,
नंदलाल को उठा के, नंद चूमने लगे।
लिखने लगा जो रवि,लीला बाल रूप की तो,
अपने आराध्य से थे, तार जुड़ने लगे।।

रविशंकर विद्यार्थी
सिरसा मेजा प्रयागराज

नमन मंच भावों के मोती
तिथि 23/08/19
विषय। कान्हा से प्रीत

विधा दोहा छन्द
****
लीला न्यारी कृष्ण की ,करते सब गुणगान
बिना प्रभू आशीष के ,कैसे करूं बखान ।।

कृष्ण पक्ष की अष्टमी ,थी भादों की रात ।
द्वापर युग मोहन हुए,दें अनुपम सौगात।।

केशव मोहन श्याम हैं ,माधव के अवतार,
लाल देवकी आठवें, करें कंस पर वार।

मातु पिता हर्षित भये ,निरखि रूप संतान
बन्दीगृह बाधक हुआ,कौन बचाये प्रान ।

लीला प्रभु की जान के ,खुलते बन्दी द्वार, 
तात चले शिशु को लिए,यमुना नीर अपार ।

गोकुल की गलियां सजीं,आया माखनचोर।
मातु यशोदा धन्य हैं , बाबा नंद विभोर ।।

अधरों पर बंसी सजी ,श्याम रचायें रास ।
मोर मुकुट मस्तक धरें,उर में करें निवास ।

मीठी बंसी तान पर ,झूम उठे सब ग्वाल
वस्त्र गोपियों का हरे छिपे कुंज की डाल।।

विरह अग्नि राधा जले ,कहाँ गये तुम श्याम।
व्यर्थ स्वर्ण नगरी लगे,प्रेम राधिका नाम ।।

लाज बचायी द्रौपदी ,सुन अबला की पीर।
देख सुदामा की दशा,भरे आँख में नीर ।।

अर्जुन के बन सारथी ,मिटाये सभी क्लेश।
युद्ध क्षेत्र में तुम दिये ,गीता का उपदेश ।।

अधर्मियों के नाश को ,हर युग लो अवतार ।
दुखियों की रक्षा करो ,जग के पालनहार ।।

स्वरचित
अनिता सुधीर



चतुर्थ प्रस्तुति
कर्मयोगी की वेदना
दोहा छन्द गीत के माध्यम से

**

आहत है मन देख के ,ये कैसा संसार।
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

नौनिहाल भूखे रहें ,मुझे लगाओ भोग ,
तन उनके ढकते नहीं,स्वर्ण मुझे दे लोग।
संतति मेरी कष्ट में,उनका जीवन तार ,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...

नहीं सुरक्षित बेटियां ,दुर्योधन का जोर,
भाई अब दुश्मन बने,कंस हुए चहुँ ओर ।
आया कैसा काल ये ,मातु पिता हैं भार,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...

प्रेम अर्थ समझे नहीं ,कहते राधेश्याम,
होती राधा आज है,गली गली बदनाम।
रहती मन में वासना,करते अत्याचार ,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...

सुनो भक्तजन ध्यान से ,समझो केशव नाम,
क्या लेकर तू जायगा ,कर्म करो निष्काम।
स्वयं कल्कि अवतार हो,कर सबका उद्धार,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...

अनिता सुधीर

नमन मंच भावों के मोती
को सादर समर्पित
23 / 8/ 2019 /

बिषय ,,कान्हा की प्रीत,,
मुझे भाई कान्हा की प्रीत
जमाना छोड़ दिया
वह मेरे मन का मीत जमाना छोड़ दिया।।
भूल गई कहीं आना जाना
दुनिया मुझको देती ताना
मैंने तोड़ी जग की रीत ।।(जमाना )
जबसे देखा सुध बुध खोई
तेरी थी तेरी मैं होई
मै तो भूल गई अतीत ।।(जमाना)
ए दिल है श्याम दीवाना
भावै वृंदावन बरषाना
मैं तो गाऊं तेरे ही गीत (जमाना)
दुनिया की परवाह नहीं है
दर्शन पाउं चाह यही है
प्रभु कर दो मेरी जीत 
जमाना छोड़ दिया
स्वरिचत ,,,सुषमा ब्यौहार




नमन मंच भावों के मोती को सादर समर्पित
24 / 8 /2019 
बिषय कान्हा से प्रीत
कान्हा की प्रीत निभाउंगी 
मैं तो गुदना गुदाउंगी
बालों में बांकेबिहारी
माथे पे मोहन लिखाउंगी ।।(मैं तो)
नैनों में गुदवाउं नंदलाला
गालों में गोविंद गोपाला
मुख में मुरारी लिखाउंगी ।।
मैं तो गुदना गुदाउंगी।।
कानों में कुवंर कन्हैया
बैयौं में बलदाऊ के भैया
गले गिरधारी लिखाउंगी।।
मैं तो गुदना गुदाउंगी।।
.हाथों में लिखवाउं हठीले
छतियन में छैल छबीले
कमर कुंजबिहारी लिखाउंगी।।
मैं तो गुदना गुदाउंगी ।।
रोम रोम में रसिक बिहारी
राधा जी जिनको अति प्यारी
मन में मनमोहन रमाउंगी
मैं तो गुदना गुदाउंगी।।
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार,,


नमन मंच भावों के मोती को सादर समर्पित
24/ /8//2019
बिषय ,,कान्हा से प्रीत

मथुरा में जाकर सब भूले
बृंदावन आना छोड़ दिया
कहते थे परसों परसों
अब बीत गए बरसों बरसों
कुब्जा से प्रीत है क्या कीन्ही
हम सबसे नाता तोड़ लिया
वो रोती है यशोदा मैया
भटक रही दर दर गैया
माखन खाने बाला ही नहीं
तो दही का जमाना छोड़ दिया
राधा की गलियों जब जाते
बैद्य मनहारी बनकर आते
सब भूल गए हो मोहन
गोकुल बरसाना छोड़ दिया
कुछ याद करो मनमोहन मधुबन में रास रचाते थे
बादे तेरे सब झूठे थे 
इन बातों में आना छोड़ दिया
कान्हा से प्रीत पुरानी है
ए समझे हमारी नादानी है
बेदर्दी तेरी बातों में दिल को समझाना छोड़ दिया
स्वरचित,, द्वितीय प्रस्तुति
सुषमा,, ब्यौहार,


भावों के मोती 
23/08//19
विषय-कान्हा से प्रीत


पाती आई प्रेम की
आज राधिका नाम 
श्याम पिया को आयो संदेशो
हियो हुलसत जाए
अधर छाई मुस्कान सलोनी
नैना नीर बहाए
एक क्षण भी चैन पड़त नाही
हियो उड़ी-उड़ी जाए
जाय बसूं उस डगर
जासे आए नंद कुमार 
राधा जी मन आंगनें
नौबत बाजी जाए
झनक-झनक
पैजनिया खनके
कंगन गीत सुनाय
धीर परत नही मन में
पांख होतो उड़ी जाए
जाय बसे कान्हा के नैनन
सारा जग बिसराय ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी।


भावों के मोती
24/08/19
विषय-कान्हा से प्रीत

चतुर्थ प्रस्तुति

हे बनवारी 
कृष्ण मुरारी 
हर दिन ही 
ऐसो भुलावो 
देतो तूं 
कभी गईया 
कभी मैया 
कभी बांसुरी, 
कभी ग्वाल बाल 
को लेकर बहानो 
भाज्यो तूं 
तेरी लीला 
खूब जानूं
अब न इतनी भोरी मैं
मन को कारो, 
छलिया मुरली वारो ।
स्वरचित।

कुसुम कोठारी।


 नमन-मंच को

दिनांक-23/08/2019


विषय- कान्हा से प्रीति.....

छम छम बरसे अखियां मोरी

नजरें मिली तो अगियाँ तोरी।।

है क्या ऐसी तेरी नज़र में

समझ ना पाऊं मै तेरे बसर में

जब -जब तेरा नाम दोहराऊँ।।

कहो कान्हा राज है क्या तेरा

चरणों में मैं तेरे रम जाऊं

है जादू तेरा बड़ा निराला

हो तू मेरे भाग्य का उजाला।।

हो विभोर भीगे आंचल

रंग में तेरे रंगती जाऊं

रज चरणों पर बलिहारी पाऊँ।।

हल्की सी तेरी एक झलक पर
पल-पल मैं इतराऊँ

स्वरचित....

सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

ऊद्धव तुम किन्हे समझाने चले हो 
क्यूँ अपमान अपना यूँ कराने चले हो
जिन गोपियों के अथरों की मुस्कान मैं छीन लाया हूँ 
उनका दिल तुम बहलाने चले हो 
पूछेगी यशोदा तो क्या बोलोगे जाकर 
खाता है कान्हा माखन क्या
अब भी चुराकर 
क्यूँ नँद बाबा की पीड़ा बढ़ाने चले हो
मिलेगी राधा तो क्या झेल पाओगे 
उसे भी क्या वेदों का पाठ सुनाओगे
क्यूँ प्रेम के रंग पर ज्ञान रंग चढ़ाने चले हो क्यूँ अपमान अपना़़़़़़़़़़़
स्वरचित

सबको कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
गुरुजनों तथा मित्रों को नमन।

कान्हा से प्रीत
💐💐💐💐

हाय!
कैसे जाऊं यमुना के तीर।

करे वरजोड़ी कान्हा....
....मोरी एक ना माने.....
खैंचत मोरे चीर.......
हाय!
कैसे जाऊं यमुना के तीर।

मैं तोसे कहूं. ........
....... तुम सुनो मोरी बतियां........
होकर धीर,गम्भीर...........
हाय!
कैसे जाऊं यमुना के तीर।

पूछेगी मोसे ..........
.........सास ननदिया......
भई कैसे देरी यमुना के तीर.........
हाय!
कैसे जाऊं यमुना के तीर।

बोले मुस्काकर ...........
...........जब तुम हो सामने राधा...........
फिर कैसे धरूं धीर............
हाय!
कैसे जाऊं यमुना के तीर।

....... स्वरचित........
..... वीणा झा.....

बिषयःः#कान्हा से प्रीत #जन्माष्टमी #
विधाःःगीत
एक प्रयास ः

जन्मे जन्मे कृष्ण कन्हैया
मोहन मुरलीवाले।
प्रसन्न हुआ सारा बृजमंडल,
यहां आऐ बंशीवाले।
गली गली में शोर रे ।आया नंदकिशोर रे......

टूट गए बंदीगृह के ताले।
सोए हुए सब पहरेवाले।
मात देवकी भावविभोर है
यहां छाऐ बादल काले।
जन्मा है चितचोर रे।आया नंदकिशोर रे......

चिंतित हुए वसुदेव देवकी
कैसे इसे बचाऐं।
दुष्ट कंस है मामा इसका,
कैसे कहीं पहुंचाऐं।
अब होने वाला भोर रे।आया नंदकिशोर रे....

रखकर सिरपर भागे तात
यमुना कीन्ही जल्दी पार।
डाला गोद यशोदा इनको,
लेकर कन्या एक उधार।
छाई घटा घनघोर रे।आया नंदकिशोर रे.......

पता चला जब दुष्ट कंस को,
दी कन्या फेंक उछाल।
सुनी आसमान से जब बोली,
तब मामा हुआ बेहाल।
तेरा नहीं चलेगा जोर रे।आया नंदकिशोर.....

लीला बहुत दिखाईं तूने,
तू नटखट गिरधारी।
जन्मों फिर इकबार कन्हाई,
हे नटनागर बनवारी।
ये जगह जगह पर शोर रे।आया नंदकिशोर रे
आया माखनचोर रे।
अपना नंदकिशोर रे।आया माखनचोर रे.....

स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्रीकृष्ण

.#जन्माष्टमी ,कान्हा से प्रीत#गीत
23/8/2019/गुरुवार

 द्वितीय प्रस्तुति

कान्हा से प्रीत

🌺🌺🌺🌺🌺
रास, रंग सब भूल गई,
रहा ना कोई उमंग.......

........जब से कान्हा ने ब्रज को छोड़ा
कोई रहा नहीं संग.............
सखी री!
.......... कोई रहा नहीं संग.........

ग्वाल बाल सब बैठे उदास हैं.............
...........किसीको अपनी खबर नहीं है........
राधा अब नहीं जाती यमुना तट..........
............उसको कुछ भी सुधि नहीं है......
क्या करूं, कहां ढूंढूं कान्हा को.......
..........समझ हो गई तंग...........
सखी री!
....... कोई रहा नहीं संग......

...... स्वरचित.......
.... वीणा झा....
बोकारो स्टील सिटी......


नमन मंच 
दिनांक - 23 - 08 - 19
आयोजन- श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष " कान्हा से प्रीत "
विधा - गीत ( भजन) 
मापनी - 122. 122. 122. 122
===============================

जपूँ नाम तेरा सुबह शाम मोहन |
कि बिगड़े बना दो सभी काम मोहन ||

यशोदा दुलारे कहें नंदलाला ,
बड़े लाड़ से है तुम्हें खूब पाला ,
नयन में बसाकर हमेशा सँभाला -
यही देखकर सब जले खूब ग्वाला ,

भुलाये न भूलें कभी नाम मोहन |
जपूँ नाम तेरा सुबह शाम मोहन ||

अधर बांसुरी को रखा है सजाकर ,
सखा ग्वाल सबको रखा है नचाकर ,
हमें पाठ अपना रखा है पढ़ाकर -
न हम रह सकेंगे रखा है चुराकर ,

मिले अब कहीं पर न आराम मोहन |
जपूँ नाम तेरा सुबह शाम मोहन ||

रहें हर घड़ी अब तुम्हारे सहारे ,
भटकते रहे पर न मिलते किनारे ,
मिटा पीर दो अब हरो दर्द सारे -
हमेशा रहे हैं भगत हम तुम्हारे ,

कहीं हो न जाएं कि बदनाम मोहन |
जपूँ नाम तेरा सुबह शाम मोहन ||

एल एन कोष्टी गुना म प्र 
स्वरचित एवं मौलिक

दोस्तो आज जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनाएं
आज एक गीत सबाल जबाव के रुप में पैश कर रहा हूं अच्छा लगे तो नवाजे।

तेरी पैदाईश की बात पर है इख्तिलाफ
कान्हा गोकुल का तू या मथूरा का यार।

कान्हा:- न में गोकुल का हूं न मथूरा का यार
मुझे तुम पाओगे बसे जहां प्यार। 

हमने सुना तू है देवकी का ललना
और जसोदा ने झुलाया तुझे पलना।
दोनों में कौन सी मां का तू प्यार ।
कान्हा:-देवकी ने जन्म दे पहुंचाया गोकुल
इस तरह जसोदा का मिला प्यार मुझे कुल
दोनों ही मां के प्यार का हूं इजहार।

वसुदेव करा गये तुझे पार जमना
बाबा नन्द समझ बैठे तुझको अपना
बोल कान्हा तू है किसका दुलार।
कान्हा:-वसुदेवजी ने जो जमना पार कराई
उसी से मेंने कृपा नन्द जी की पाई
सुनो यारों में हूं दोनों का ही दुलार।

न में गोकुल का हूं न ही माथूरा का यार
तुम मुझे पाओगे बसे जहां प्यार।

हामिद सन्दलपुरी की कलम से


नमन मंच 
दिनांक - 23 - 08 - 19
आयोजन- श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष " कान्हा से प्रीत "
विधा - सार छन्द गीत

आज यशोदा के द्वारे पर ,
बाज रही शहनाई ।
गोकुल भर -भर नेह लुटाए ,
देते सभी बधाई ।।
🌹🌹🎊🌹🌹
जन्म लिया लीला धारी ने ,
उत्सव नगर मनाएं ।
बांकी चितवन है कान्हा की ,
चित् को रही चुराए ।
मोद प्रमोद भये अँखियन में ,
खुशियां हैं अँगनाई ।।
गोकुल भर -भर नेह लुटाए ,
देते सभी बधाई ।।

🌹🌹🎊🌹🌹 
गोप- ग्वाल सुध बुध बिसराते ,
झूम रही सब गइयाँ ।
लीलाएं अद्भुत कान्हा की , 
माता लेत बलइयां । 
हरि के मुख ब्रह्मांड समाया ,
चकित यशोदा माई ।।

गोकुल भर- भर नेह लुटाए ,
देते सभी बधाई ।।

🌹🌹🎊🌹🌹
अत्याचार कंस का भारी ,
रीति नीति तज दीन्ही ।
मार गिराया दुष्ट कंस को 
,विपद कृष्ण हर लीन्ही ।
धरा गगन आनन्द मनाते ,
हर्षित बेला आयी ।।

गोकुल भर -भर नेह लुटाए ,
देते सभी बधाई ।।

रीना गोयल (सरस्वती नगर )
हरियाणा

नमन मंच - भावों के मोती 
दिनांक - 23 - 08 - 19
आयोजन - कान्हा से प्रीत 
विधा - गीत

रखें माँ...यशोदा.....छिपाए |
किसी की नजर लग न जाए ||

नयन भींगतें हैं खुशी से ,
सभी झूमतें हैं खुशी से ,
कहीं बज रही है बधाई -
कहीं बँट रही है मिठाई ,

सभी भक्त घर आज आए |
रखें माँ ...यशोदा ..छिपाए ||

कि लल्ला बहुत है सलोना ,
जरा दूर ..से ही ...मिलोना ,
लुटाओ खुशी के खिलौना -
बिछा फूल का दो बिछौना ,

दरश को पलक सब बिछाए |
रखें माँ .. यशोदा ....छिपाए |

खिलें हैं सभी के नयन अब ,
बरसनें लगे हैं सुमन अब ,
यही देख नाचे गगन अब -
महकने लगे हैं चमन अब ,

कि मोहन न हो दूर साए |
रखें माँ यशोदा छिपाए ||

रानी कोष्टी गुना म प्र 
स्वरचित एवं मौलिक


नमन भावों के मोती
दिनांक २३/८/१९
आयोजन - श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष " कान्हा से प्रीत "
जय मां शारदे
जय सरस्वती मैया
जय श्री कृष्णा
श्री राधे

गीत

न मत्तगयंद सवैया छंद पर आधारित गीत
२११*७ + २२

मोहन जन्म भए मथुरा मथुरा नगरी अब झूम रही है, 
अंक उठाय चली सुत को तब मां मुखमण्डल चूम रही है। 
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सेन करे मनमोहन से मन ही मन लाड लडाय रही है, 
नंद पधार रहे घर में मनमोहन को बतलाय रही है। 
ढोल बजे नवरंग उड़े सब मंगल गान सुनाय रहे हैं , 
देव लियो अवतार धरा पर पुष्प सभी बरसाय रहे हैं। 
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मोहन नाम जपे मथुरा मनमोहन नाम कि धूम रही है , 
अंक उठाय चली सुत को तब मां मुखमण्डल चूम रही है। 
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मोहन केशव नाम धरे तब माखन चोर करे नित लीला , 
श्याम सखा उर नेह बसाकर माथ लगाकर चंदन पीला। 
मोहन कूद गए यमुना यमुना तब मोहन श्याम हुई है , 
प्रेम पगी सखियां सब ही मनमोहन ये बदनाम हुई है। 
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व्याकुल हो हरि मात चली ब्रज की गलियों घर घूम रही है , 
अंक उठाय चली सुत को तब मां मुखमण्डल चूम रही है। 
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स्वरचित 
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब


23-8 -19
तूने गोपियों संग, रास रचाई।
मैंने किया तो ,गलत ठहराई।।

तुम्हें अपना, आदर्श बताई ।
मैंने तो बस, कल दोहराई।।

तेरे किए को, सही बतलाई,।
मैंने किया, बावरी कहलाई।।

गलत हे प्रभु ,जग फैसलाई ।
तू ही सबको ,राह दिखाई ।।

दोस्त सुदामा,बन दिखलाई ।
लोगों के मन, शंका हैआई।।

हे स्वार्थ, तभी करीब आई ।
नहीं तो पहले, क्यों बिसराई ।।

जग को मैं, ना समझ पाई ।
तूने क्या ,माधो रचना बनाई।।

प्रभु अब तू ही, मार्ग दिखाई ।
जिस पर चलूं, प्रेम संग भाई ।।

यह दुनियाँ है ,बहुत हरजाई।
नहीं समझ, दिल क्या भाई ।।

ना राधा ना सुदामा,नजरआई। 
कैसे अब मैं ,प्रीत निभाई ।।

चहुँओर मोहे,कपट नजर आई। 
किसको अपना, मीत बनाई ।।

कान्हा संग मैने, प्रीत लगाई । 
अब ना जरूरत,किसी की भाई।।

तेरी छवि ,मैंने नैनन बसाई।
दिल में जगह, कोई ना पाई।।

मैंने तो सब , सुख है पाई ।
जब शरण मैं ,तेरी आई ।।

भव सागर, पार कर जाई।
"वीणा"कान्हा, प्रीत लगाई।।

🌹 जय श्री कृष्णा 🌹

वीणा वैष्णव 
( स्वरचित)



🙏भावों के मोती को समर्पित 

ंद घर जब ,लल्ला आया ।
चहूँओर बस,आनंद छाया।

बिजली कड़क,उजाला छाया। 
बादल जल, फूल बरसाया ।।

कारागार द्वार, खुल गया ।
वासु सर धर, चल दिया ।।

तूफानों ने रुख, मोड़ दिया ।
जब कान्हा ,अवतार लिया ।।

देवकी को ,अभिमान भया । 
कान्हा उसकी, जान हो गया ।।

बांसुरी बजा ,मोहित किया ।
ऐसा सुंदर कान्हा, रूप लिया।।

माखनचोर, खूब रंग जमाया ।
नटखट अदा, सब मन भाया।।

सखा संग खुब ,माखन चुराया। गोपियों संग बहु ,रास रचाया।।

सांवली सूरत ,खूब लुभाया।
एक नजर बस, दिल चुराया।।

छलिया राधा, रास रचाया।
कान्हा से प्रीत,मन हरसाया।।

बाल घुंघराले ,सरताज धराया। मोहक मुस्कान, मन लुभाया ।।

गोवर्धन पर्वत, धारण किया।
सबको जीवन ,दान दिया ।।

झूम उठा गोकुल वृंदावन ।
जब दर्शन ,कान्हा पाया ।।

सुदामा से सखा, प्रेम निभाया। 
विपदा में ,सदा हाथ बढ़ाया।।

नाविक की, पतवार बन गया। 
कंस मार, तारणहार भया ।।

अर्जुन का ,सारथी बन गया ।
दे उपदेश, मार्ग प्रशस्त किया।।

तीनो लोक ,प्रभु कहलाया ।
ऐसा पुत्र , देवकी जाया ।।

हर घर आज ,आनंद भया। 
प्रभु ने आज ,जन्म लिया।।

कान्हा से प्रीत,तार दिया। 
जीवन सफल,मोरा भया।। 


🌹जय श्री कृष्णा🌹

वीणा वैष्णव 

कांकरोली
नमन भावों के मोती
🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️
मोहन की मोहक छवि देख देखकर
गोपी संग यशोदा हरषाय रही है।
कान्हा की मुरली की तान सुनकर
प्रकृति भी अमृत बरसाय रही है।
दधि मुख लगाय के मोहत है कान्हा
सुंदर छवि नैनन में समाय रही है।
गोपी की मटकी फोड़त गोपाल हैं
वह अपने भागन पे इतराय रही है।
जिन पर ग्वाल सँग खेलत है श्याम
वसुधा भी स्वयं पर मुस्काय रही है।
कालिंदी तट पर ,कदम्ब की डारन पे
राधा मोहन को झूला झुलाय रही है।

सर्वेश पाण्डेय
23-08-2019
स्वरचित


"नमन भावो के मोती"
कलम की यात्रा
दिo 23/24//08/2019
दिन शु्क्रवार/शनिवार 
विषय- "कान्हा से प्रीत"

===============================
चक्र सुदर्शन हाथ में,.और बांसुरी साथ।
मोहक ऎसा रूप ले,हृदय बसो हे नाथ।।
-------------------------
दिया नेह सब जगत को ,फिर भी सब नाराज।
नेह करो गोपाल से ,. . . सदा सँवारें काज।।
------------------
नियमित सुमिरन कीजिये ,कृष्ण जसोदा नन्द।
नाम लेत कटि जात हैं ,... भव सागर के फंद।।
-----------------
सब दुनिया को दे रहा,अन्न और जल रोज।
गोकुल में वो चोर बन ,माखन खाये खोज।।
--------------------
जिसकी इच्छा के बिना,ग़िज़ा न मानव पाय।
लीला करने जगत में ,. माखन रहा चुराय।।
------------------
भवन अन्न अरु वसन सब,हैं जिसके आधीन।
चोरी की लीला करे ,. . समझ न सके ज़हीन।।
-------------------
योगी मानव देवता ,. . . नहीं सके ये जान।
क्या रस माखन में बसा ,चुरा रहे भगवान्।।
------------------------
सभी दुखों की है दवा ,सब का है उपचार।
राधे मोहन प्रेम से ,.... रटिये बारम्बार।।
-----------------

मेरे सब संकट हरौ ,.... हे राधे गोपाल।
तेरी किरपा के बिना ,होत हाल बेहाल।।
-----------------
राधे राधे बोलिये ,बन जायें सब काम।
राधे राधे में छुपा ,है मोहन का नाम।।
-----------------
ये बतलाती जगत को , है मीरा की प्रीत।
प्रीत अगर तेरी खरी ,लेगी जग को जीत।।
-----------------------
मीरा सा विश्वास हो ,अगर किसी के साथ।
ज़हर बने अमृत यहाँ,पकड़ो जो प्रभु हाथ।।
===============================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
"स्वरचित"
एटा --यूपी

द्वितीय प्रस्तुति

कृष्ण,द्वारिकाधीश, माखनचोर

जन्माष्टमी की शुभकामनाये
****

माखनचोर
मटकी मत फोड़
नंदकिशोर

यमुना तीरे
राधा के संग कृष्ण
रास रचायें

हे साँवरिया
अधर बाँसुरिया
नाग नथैया

द्वारिकाधीश
सुदामा के तंदुल
धन प्रचुर

प्रेम राधा का 
पराकाष्ठा प्रेम की 
मीरा बावली

महाभारत
कान्हा बने सारथी 
गीतोपदेश

भवसागर
जप हरे किसना
मोक्षदायक

अनिता सुधीर

 कान्हा से प्रीत II नमन भावों के मोती.... समूह के सभी सदस्यों को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं.... बधाई... सब पर कृष्णा के प्रेम की वर्षा हो... जय हो...

विधा : गीत - हे कृष्ण गोविन्द हे हरी मुरारी...

हे कृष्ण गोविन्द हे हरी मुरारी...
माधव केशव ओ बांके बिहारी.... 
स्यामल छवि नैनं जो निहारी....
सुद्बुध गयी मैं खुद ही हारी....

कुण्डल हिलें कानन गोसइयां...
चाँद सितारे सब राह भुलईआं..
चंचल तेरे नैनों से मैं बिहारी....
हुई बावरी तेरी गिरिवर धारी... 

छन् छन् बाजे तेरी पायलिया...
मुरली मधुर सुन तेरी सांवरिया... 
योग ध्यान भूल कर के संसारी... 
नाचें प्रकृर्ति संग जाएँ बलिहारी... 

मात यशोधा का हो कर लल्ला...
नाच नचाये सब को ता ता थईआ... 
भोली सुरतिया हैं आँखें कजरारी... 
लूट ले सब को तू ओ मायाधारी... 

बिनती सुनो मोरी श्याम प्यारे तुम...
अपनी ही रंग रंग लीजो मोहे तुम... 
जपूँ नाम तेरा पल-पल छिन-छिन... 
करूँ देह त्याग मैं जपत मुरारी... 

हे कृष्ण गोविन्द हे हरी मुरारी...
माधव केशव ओ बांके बिहारी.... 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 


II कान्हा से प्रीत II नमन भावों के मोती...

II छंद चौपाई II 

मुरली मनोहर नन्द लाला, गोवर्ध्नधारी गोपाला....
दिल पर ऐसा जादू डाला, हर कोई उसका मतवाला....

रूप अनोखा उसका प्यारा, सब की आँखों का वो तारा...
उसे दूध माखन है प्यारा, मात यशोधा नंद दुलारा... 

नहीं अनुज हलधर सा कोई, पार न पाया जिसका कोई... 
कंस गया बेचारा मारा, हुआ पूतना का उद्धारा....

हाथ जोड़ मैं बिनती करहूँ, नाथ कृपा अब अपनी करहूँ... 
श्याम सांवरे ओ चक्र धारी, अवगुण मोरे हरो बिहारी...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२३.०८.२०१९




II कान्हा से प्रीत II नमन भावों के मोती....जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं... जय श्री कृष्णा...

विधा: गीत -लौ लगी कृष्णा तेरी मन में... 

लौ लगी कृष्णा तेरी मन में... 
सृष्टि दैदीप्य लगे कण कण में... 

मन पथिक हर राह निहारे... 
कान्हा आएंगे कौन से द्वारे... 
आँख न मीचे मन व्याकुल ये...
अब आएंगे प्राण प्यारे....
देखूं आतुर हर इक जन में....
देखूं आतुर हर इक जन में....
लौ लगी कृष्णा तेरी मन में 

कारी बदरिया घिर है आयी...
उम्र गगरिया भी भर आयी...
नैनाँ पुकारें सांसें निहारें...
कब आओगे प्रीतम प्यारे...
डूबी जाऊं मैं हर क्षण में....
डूबी जाऊं मैं हर क्षण में....
लौ लगी कृष्णा तेरी मन में

'चन्दर' जग न भाये मन को....
न चाहे अब ये इस तन को....
चाह इसे रम जाऊं तुझ में...
तेरी लौ हूँ थम जाऊं तुझ में...
संग तेरे विचरूँ कण कण में...
संग तेरे विचरूँ कण कण में...

लौ लगी कृष्णा तेरी मन में....
सृष्टि दैदीप्य लगे कण कण में... 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२४.०८.२०१९

II कान्हा से प्रीत II नमन भावों के मोती....जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं... जय श्री कृष्णा...

विधा: गीत -लौ लगी कृष्णा तेरी मन में... 


लौ लगी कृष्णा तेरी मन में... 
सृष्टि दैदीप्य लगे कण कण में... 

मन पथिक हर राह निहारे... 
कान्हा आएंगे कौन से द्वारे... 
आँख न मीचे मन व्याकुल ये...
अब आएंगे प्राण प्यारे....
देखूं आतुर हर इक जन में....
देखूं आतुर हर इक जन में....
लौ लगी कृष्णा तेरी मन में 

कारी बदरिया घिर है आयी...
उम्र गगरिया भी भर आयी...
नैनाँ पुकारें सांसें निहारें...
कब आओगे प्रीतम प्यारे...
डूबी जाऊं मैं हर क्षण में....
डूबी जाऊं मैं हर क्षण में....
लौ लगी कृष्णा तेरी मन में

'चन्दर' जग न भाये मन को....
न चाहे अब ये इस तन को....
चाह इसे रम जाऊं तुझ में...
तेरी लौ हूँ थम जाऊं तुझ में...
संग तेरे विचरूँ कण कण में...
संग तेरे विचरूँ कण कण में...

लौ लगी कृष्णा तेरी मन में....
सृष्टि दैदीप्य लगे कण कण में... 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२४.०८.२०१९

नमन भावों के मोती मंच 🙏
*************************
दिनांक :- 23/08 /19
िषय :- कान्हा से प्रीत

सम्मुख बैठे राधा जी, कृष्ण से पूछे सवाल। 
कब से बाट निहारती, कहाँ हो तुम गोपाल।।

मंद-मंद मुस्काये कर, कृष्ण कहे यही बात।
हृदय में क्यू न खोजती, वहीं तो मेरो वास ।।

चंद्र-सी झलक दिखायके, मन को लेते मोह।
तू ही बता अब हे कृष्णा, क्यु न व्याकुल होये।।

चन्दन तिलक लगाए कर, पहन वैजयंती माल।
सब भक्तन को रिझावते, ये जग के पालनहार।। 

मुरली मधुर बजाए कर, धरे मन - मोहक रूप। 
गोपियों को लुभावता, मन - मोहन का स्वरूप।। 


Uma vaishnav 
(स्वरचित और मौलिक)


नमन भावों के मोती 🙏
तृतीया प्रस्तुति

राधे - राधे 

राधे - राधे जापे से ,
श्री कृष्ण चले आते हैं,
प्रेम की मुरलीया खूब बजाते हैं,

राधे - राधे बोलो तो,
श्याम चले आते हैं,
भगतों अपने दरश दिखाते हैं

राधे - राधे काहोगें तो,
कान्हा चले आयेगे ,
भगतों के सारे कष्ट मिटागे।

Uma vaishnav
मौलिक और स्वरचित


विधाः- छन्द मुक्त

शीर्षकः- जन्माष्टमी प्रभु का अवतरण

कृष्ण पक्ष अष्टमी को प्रभु पधारे माया के संग।
कर दिया उन्होंने पापियों के पापों को ही भंग।।

भेजी चेतावनी, भक्तों को मेरे देना न कोई कष्ट।
कष्ट देने वाले दुष्टों को कर देंगे मेरे प्रभु ही नष्ट।।

नाचो गाओ झूम झूम के और दो सब ही बधाई
आने वाला है, दर्शन देने वाला हमारा कन्हाई।।

कान्हा ने जन्म लेते ही दिखाये सबको चमत्कार।
है हमारा कन्हा तो साक्षात ईश्वर का ही अवतार।।

कारागार मैं ही हुआ था अवतरित मुरली वाला।
पैदा होते ही उसने माता पिता का संकट टाला।।

मामा ने उनके माता पिता को था जेल में डाला।
कृष्ण के भाईयों को तो पैदा होते था मार डाला।।

टूटी बेड़ियां माता पिता की खुला जेल का ताला।
आते ही संसार में, मेरे प्रभु ने कमाल कर डाला।।

जेल के प्रहरियों पर मन मोहन ने दी मोहनी फेर।
सब के सब प्रहरी एक साथ हो गये नींद में ढ़ेर।।

घोर वर्षा गुप अंधेरा दिख नहीं रहा हाथ को हाथ।
वासदेव चल पड़े गोकुल को लेके कान्हा को साथ।।

पहुँचने से पहले गोकुल में अपनी माया को पठाया।
माया ने अपने प्रभाव से वहाँ पर सबको ही सुलाया।।

माता यशोदा ने भी तब तक एक कन्या को था जाया।
उठा के कन्या वासुदेव ने कृष्ण को वहाँ पर सुलाया।।

उस कन्या को लेके वासुदेव मथुरा कारागार में आये।
माया, जकड़ी बेड़ियां तथा कारागार में ताले लगाये।।

कंस कारागार आया जैसे ही पुत्री जन्म का पता चला।
आते ही दुष्ट ने कन्या को पटक पटक कर मार डाला।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित

नमन मंच भावों के मोती
दिनाँक-23/08/2019
विषय-कान्हा से प्रीत

******************************
कान्हा तुझसे प्रीत जबसे लगा ही लिया,
सुध-बुध सारे अपने बिसरा दिया!

भूल गया सब रिश्ते नाते,जग के बंधन सारे,
छूट गए है विरह वेदना,मन के क्रन्दन सारे!
जीवन सारा तुझपे अर्पण किया!
सुध बुध सारे........

हे मुरलीधर, हे गोपाला,अपनी शरण मे ले लो,
दास रहूँ तेरा जन्मो तक,कृपा प्रसादी दे दो!
तेरी प्यारी मूरत मन मे बसा ही लिया!
सुध बुध सारे..........

तेरी प्रीत में मतवाला हूँ ,मनमोहन गिरधारी,
प्यारे कृष्ण कन्हैया तुझपे जाऊं मैं बलिहारी!
तेरे प्यार के रंगो में तन रँगा ही लिया!
सुध बुध सारे........

मैं अज्ञानी पूजा,वन्दन,भक्ति, भाव न जानू,
भावों के मोती हृदय सजाकर, दिल से तुझको मानू!
भक्ति के रंग में मैन रंग ही लिया!
सुध बुध सारे.........
स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"

नमन मंच : भावों के मोती
दिनांक : 23/08/2019
रचना : हम वृंदावन वाले हैं

हम वृंदावन वाले हैं, कान्हा 
तेरी नगरी में रहने वाले हैं। 
हमें दर्शन दे दे कान्हा एक 
बार,हम तेरे चाहने वाले हैं।। 

हम वृंदावन वाले हैं, हाँ हम 
वृंदावन वाले हैं, ओ कान्हा
तेरी नगरी में रहने वाले हैं। 

तुझे मन-मंदिर में बिठाएंगे
तुझे हम अपना बनाएंगे। 
तेरा नाम सिमर-सिमरके
कान्हा हम तुझे ध्याएंगे
हम भजनों से अपने, हाँ
हम भजनों से अपने,कान्हा
तुझे रिझाने वाले हैं।। 

हम वृंदावन वाले हैं, हाँ हम
वृंदावन वाले हैं, ओ कान्हा
तेरी नगरी में रहने वाले हैं। 

मेरा तू साँवरा,कृष्ण-कन्हैया 
है, हो तू मेरा बंसी बजैया है। 
तेरी जै-जै कार कर-करके, कान्हा हम ये सबसे कहेंगे, 
तू इस जग का रचैया है। 
तेरे पावन चरणों में, हाँ 
तेरे पावन चरणों में, हम
सब शीश झुकाने वाले हैं।। 

हम वृंदावन वाले हैं, हाँ 
वृंदावन वाले हैं, ओ कान्हा
तेरी नगरी में रहने वाले हैं

हम वृंदावन वाले हैं, हाँ हम वृंदावन वाले हैं, ओ कान्हा 
हम वृंदावन वाले हैं। 

रौशनी अरोड़ा (रश्मि)

कान्हा तुमरी मुरली 
कहाँ खो गई


राधा-राधा रटते-रटते
हाँ देखो शाम हो गई
ओ कान्हा मोरे तुमरी 
मुरली कहाँ खो गई। 

तोसे भी, प्यारी लागे है 
राधा को ये, तोरी मुरली
जल्दी-जल्दी ढूँढो कान्हा
देखो तुम मुरली अपनी
जो ना ढूँढी कान्हा तूने
मुरली अपनी, तो बना 
देगी तोहे राधा चटनी
और पूछेगी तोसे ओ 
कान्हा मोरे तुमरी 
मुरलीकहाँ खो गई । 

राधा-राधा रटते-रटते 
हाँ देखो शाम हो गई
ओ कान्हा मोरे तुमरी 
मुरली कहाँ खो गई। 

जब जब बजाते हो तुम 
कान्हा मुरली अपनी
मुरली की धुन में,हो 
मगन, संग गोपियों 
के नाचे राधा अपनी
जो ना ढूँढी कान्हा तूने
मुरली अपनी,तो कैसे 
झूमेगी नाचेगी हो मस्त, 
मगन राधा जो है तोरी 
अपनी हाँ तोरी अपनी
जल्दी जल्दी ढूँढलो तुम
कान्हा मुरली अपनी,
नहींतो बना देगी तोहे 
कान्हा,राधा चटनी और 
पुछेगी तोसे ओ कान्हा मोरे 
तुमरी मुरली कहाँ खो गई

राधा-राधा रटते-रटते 
हाँ देखो शाम हो गई
ओ कान्हा मोरे तुमरी
मुरली कहाँ खो गई। 

रौशनी अरोड़ा (रश्मि)

नमस्कार मंच 🙏
भावों के मोती को और कान्हा को समर्पित 
सेदोका विधा मेंं मेरी कविता 
दिनांक -23/08/19

मधुर छंद 
प्रियतम तुम्हारे 
मनमोहक राग 
कहो हे कृष्ण ! 
धुन बाँसुरी की क्यूँ 
दृग मेंं दी विराग ? 

प्रणयिनी मैं 
युगों से हूँ तुम्हारी 
सींची प्रेम पराग 
कहो हे कृष्ण ! 
धुन बाँसुरी की क्यूँ 
मिटायी अनुराग ? 

कहो हे कृष्ण ! 
प्रीत है क्यूँ अधूरी 
क्यूँ विरह मेंं जली ? 
यमुना तट 
है क्यूँ निर्जन कान्हा 
रिक्त है प्रेम कली ? 

किस गोपी ने 
क्यूँ मोह लिया तुम्हे 
क्यूँ त्यागी प्रीत गली ? 
कहो हे कृष्ण ! 
धुन बाँसुरी की क्यूँ 
हृस्पंदन को छली ? 

.....अनिमा दास ....
कटक , ओडिशा

नमन मंच : भावों के मोती
स्वरचित रचना :- जय हो 
कृष्ण कन्हैया की

दिनांक :- 24/08/2019

जय हो कृष्ण कन्हैया की

जय हो,जय हो,जय हो कृष्ण 
कन्हैया की,हो जय हो मेरे प्यारे 
साँवरे सलोने बंसी बजैया की

बंसी बजैया की, हो रास रचैया 
की, हो जय हो,जय हो जय हो 
मेरे कृष्ण कन्हैया की

गऊएंँ चराते, लीला दिखाते
ग्वाल मित्रों के संग मिलके वो 
यमुना तट से सब गोपियों के 
वस्त्र ले वृक्ष पे चढ़ जाते, ऐसे 
थे नटखट मेर कृष्ण कन्हैया जी

कृष्ण कन्हैया जी, हो मेरे कृष्ण 
कन्हैया जी,बंसी बजैया जी, हो रास 
रचैया जी, हो मेरे कृष्ण कन्हैया जी

बंसी बजाएँ, माखन चुराएँ और बंसी की 
मधुर धुन से वो राधा और गोपियों का दिल 
हर्षाएँ, राधा संग मिल, हृदय में सबके, प्रेम 
सुधा बरसाने, वृंदावन गोकुल में अवतार ले 
कर इस धरती पे आए, मेरे कृष्ण कन्हैया जी 

कृष्ण कन्हैया जी, हो मेरे कृष्ण 
कन्हैया जी,हो बंसी बजैया जी, हो रास 
रचैया जी, हो मेरे कृष्ण कन्हैया जी

कंस के और पूतना के अत्याचारों से हम 
सबको बचाया, कालिया नाग के जहरीले 
ज़हर से भी बचाया, कंस और कई दानवों 
का वध करने हेतु,अवतरण हुआ इस धरती 
पे, तुम्हारा कृष्ण कन्हैया जी

कृष्ण कन्हैया जी, हो मेरे कृष्ण 
कन्हैया जी, बंसी बजैया जी, हो रास 
रचैया जी, हो मेरे कृष्ण कन्हैया जी। 

जय हो, जय हो, जय हो तेरी कृष्ण कन्हैया जी, हो जय हो मेरे प्यारे साँवरे सलोने बंसी बजैया जी, बंसी बजैया जी, हो मेरे कृष्ण कन्हैया जी। 

जय श्री कृष्ण जी
जन्माष्टमी की हार्दिक
शुभकामनाएं

रौशनी अरोड़ा (रश्मि)

नमन मंच
भावों के मोती

मंच को नमन
आयोजन-काव्व सृजन
विषय-श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व
दिनांक-23-8-2019

# भजन #
********************
मैं राह देख कर हारी,
कब आओगे कृष्ण मुरारी।
आज आएंगे कल आएंगे,
कहती सखियाँ सारी....
********************
कब आओगे कृष्ण.....
********************
नयनों से अंसुवन छलके, 
दिल तुझसे मिलने बहके।
कैसे खुद को समझाऊँ,
मन लगता बहुत भारी। 
********************
कब आओगे कृष्ण......
********************
तुने राधा से प्रीत लगाई,
रुक्मणी को रानी बनाई।
जहर को अमृत बनाकर-
मीरा की भक्ति स्विकारी।

********************
कब आओगे कृष्ण......
*******************
एक बार आओ कन्नेया, 
गोपियों संग रास रचैया।
हम संग भी रास रचाओ,
बजाकर बंसी प्यारी...
********************
हम राह......
********************
जब तू मिलने आये,
हम माखन मिश्री खिलायें। 
हम संग रास रचाकर-
बुझाओ प्यास हमारी।
********************
हम राह देख कर हारी...
कब आओ कृष्ण मुरारी... 
********************
स्वरचित मौलिक रचना 
********************
कुसुम त्रिवेदी दाहोद गुजरात 

विधाःः गजल
(,प्रयास मात्रः)

चलो हम कृष्णा से तुमको मिला दें,
जरा दुनियादारी इनको बता दें।

मुरली सुदर्शन ये हाथों धराता ।
गर प्रीत कृष्णा से सबको जता दें।

रथ का पहिया ये कभी भी उठा ले,
मटकी फोडना हम इसको सिखा दें।

गाय पाले वहीं बांसुरिया बजाऐ,
लगा प्रीति कान्हा दिल को भुला दे।

बजाऐ शंख महाभारत कराऐ,
यही नाग नथैया तुमको मिला दें।

स्वरचित ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजयश्री रामरामजी
Medha Arya 🙏 

नमन ! मंच,भावों के मोती एवं सुधी मित्रगण ।
दिन, दिनांक : शुक्रवार, २३/८/२०१९
प्रदत्त विषय : कान्हा से प्रीत
विधा- गीतिका
आधार- वाचिक स्त्रग्विणी छंद
मापनी- गालगा × ४

दीप फिर आस्था के सजाओ न तुम ।
रागिनी प्रीति की फिर बजाओ न तुम ।

छा रहा है अँधेरा घृणा का घना,
रोशनी प्रेम की आ, जलाओ न तुम ।

खो गईं गोपियाँ ग्वाल-बाले कहीं,
रास वृन्दावनी अब रचाओ न तुम ।

याद करते तुम्हें गाय - गोकुल सभी,
बाँसुरी पर मिलन धुन सुनाओ न तुम ।

नैन व्याकुल दरस को तरसते बड़े,
प्यास आकर दृगों की बुझाओ न तुम ।

बिन तुम्हारे ये' जलती पड़ी है धरा,
बढ़ रही बेकली को घटाओ न तुम ।

संकटों की लगी है निरन्तर झड़ी,
धार पर्वत कनिष्ठा उठाओ न तुम ।

'प्रीत कान्हा' करी है तुम्ही से सदा,
लौट आओ गले से लगाओ न तुम ।
🌿🌺🌼🌺🌿

…  मेधा आर्या,
"स्वरचित."

नमन मंच -- भावों के मोती
23/08/2019
शुक्रवार
विधा -- चोका छंद

राधिका कृष्ण
परिपूर्ण है प्रेम
प्रेम अमर
अलौकिक सात्विक
एक विश्वास
दोनों के हृदय हैं
वचनवद्ध
अटल है उनकी
प्रतिबद्धता
राधा का है विश्वास
कान्हा रहेगें
सखा निरतंर ही
उसके पास
वो उनकी मुरली
कृष्ण है तान
दर्द होती राधा को
तड़पे कृष्ण
पाराकाष्ठा है यह
पावन प्रेम
अतिशय प्रेम का
बंधन नहीं
वैवाहिक भी कोई
जोड़ी बनी है
राधाकृष्ण के प्रेम
पूजा होती है 
भक्ति से मंदिरों में
भारत वर्ष 
नहीं सारा विश्व है 
नत मस्तक
शुद्ध प्रेम समक्ष
अभिनंदन
वंदना स्वीकार लो
चरणों में रख लो

स्वरचित डॉ.विभा रजंन(कनक)
नयी दिल्ली


नमन"भावो के मोती"
23/08/2019
(2)

"कान्हा से प्रीत"
1
कृष्णावतार
जन्माष्टमी त्योहार
पूर्ण स्वरूप
2
कृष्ण चरण
मन का समर्पण
प्रेम अर्पण
3
प्रेम पुकारा
मिला कृष्ण सहारा
जग को जीता
4
प्रेम बंधन
बंध गए मुरारी
राधिका प्यारी
5
कृष्ण राधिका
अद्भुत महारास
गोपियाँ साथ
6
कृष्ण श्रृंगार
दिव्य रुप निहार
नैनाभिराम


"वर्ण पिरामिड"

है
कृष्ण
अनंत
आकर्षण
दिव्य आकाश
पूर्ण अवतार
जगत का उद्धार।


"सेदोका"

श्यामसुंदर
बाँसुरी जो बजाई
राथा हुई बावरी
भागती आई
सुधबुध भी खोई
सखि देख मुस्काई।।


"तांका"

कृष्ण-कन्हैया
ग्वाल-बाल के संग
माखन चुरैय्या
नाचते ता-ता थैय्या
देखे यशोदा मैय्या।

स्वरचि पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।


नमन "भावो के मोती"
(4)
23/08/2019
"कान्हा से प्रीत"

बाल रुप देखकर मुग्ध हो रहे देवगण..
नभ से पुष्प वृष्टि कर रहे देवगण..
ऋषि-मुनी गण सखा के रुप हैं धरे..
वृदांवन में उतर रहे देवगण..।

कर सोलह शृगांर बैठे लड्डु गोपाल..
अनुपम रुप हैं मोर मुकुट गोपाल..
अवतरण लिए धरा को करने उद्धार..
लीलाएँ करे हजार बाल गोपाल।।

माखन मटकी औ बाँसुरी संग आए कृष्ण कन्हैया..
ग्वाल-बाल सखा संग नाच रहे कृष्ण कन्हैया..
घर-घर में खुशहाली बाँट रहे हमारे लाला..
ता-ता-थैय्या देख खिजावे बड़े बलदाऊ भैय्या..।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।


नमन "भावो के मोती"
24/08/2019
(5)

"कान्हा से प्रीत"

माखन चोर कृष्ण कन्हैया
माखन देख मन लुभाया
वृंदावन की कुंज गलियाँ
देव पधारे बनके गोपियाँ।

ग्वाल-बाल संग चराये गैया
कंदुक क्रीड़ा धूम मचैया
गोधूलि बेला घर को पधारे
माता यशोदा लेती बलईयाँ

यमुना तीरे कदंब की डाली
चीर हरके वंशी बजाए
गोपियों को सबक सिखाए
खेल -खेल में गगरी फोड़े
गोपियों को खूब रिझावे।

सखा संग खेल खेलते
प्यास लगे छाछ माँगते
छाछ लिये दौड़ी गोपियाँ
नृत्य कराती फिर छाछ देती
नाच रहे हैं ता-ता थैय्या
अपरुप सौंदर्य कृष्ण कन्हैया

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।



भावों के मोती
23/08/19
विषय -कान्हा से प्रीत।
द्वितिय प्रस्तुति।

कान्हा तूं क्यों पाषण, 
फिर मोहे काहे दियो मानुष जनम ,
जो जग में मोहे आनो ही थो
तो द्वापर की सौगात देतो,
वो कदंब की छाव देतो ,
मनोहर तेरी छबि निरखती 
वो गोकुल को धाम देतो,
बंसी की वो तान सुनातो ,
गैया, मैया, सखा, गोपियां 
या राधा सो अनुराग देतो, 
पाहन बनातो उस गिरी को
जो धारण कर गिरीधर कहायो,
या वो मिट्टी ही बनातो 
जिसकी बनती माखन मटकी,
तूं चोरी चोरी मुझ माही 
हाथ डार फिर माखन खातो ,
या बनातो बांस, बन बाँसुरी 
तेरे संग ही रहती, 
मोर पंखी बना देतो माधव तो
तेरे शीश सजी रहती ,
या वो लकुटी भली 
जिसे लेय गाय चरावन जातो ।
कान्हा तूं क्यों ........... 
स्वरचित।
कुसुम कोठारी ।

 नमन मंच 
23.8.2019
शुक्रवार 

जन्माष्टमी पर्व 
विषय-कान्हा से प्रीत 
विधा -भक्ति गीत 

एक भजन 

कान्हा मेरे कान्हा 

कान्हा मेरे कान्हा ,मैं तुमको बुलाऊँगी 
तुम्हीं को अपनाऊँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

मैं राधा बन जाऊँगी ,मैं प्रेम गीत गाऊँगी 
मैं रास रचाऊँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

मैं मीरा बन जाऊँगी ,मैं भक्ति गीत गाऊँगी 
मगन मन नाचूँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

यशोदा बन जाऊँगी ,मैं गोद में खिलाऊँगी 
मैं पालने झुलाऊँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

मैं शबरी बन जाऊँगी, मैं राह निहारूँगी
मैं बेर खिलाऊँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

अहिल्या बन जाऊँगी ,मैं पक्थर में समाऊँगी
चरण-रज पाऊँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

मैं द्रौपदी बन जाऊँगी ,मैं संकट में पुकारूँगी 
मैं चीर बढ़वाऊँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

मैं गोपियाँ बन जाऊँगी ,मैं उद्धव को सताऊँगी 
तुम्हारे गुन गाऊँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

मैं भक्त बन जाऊँगी ,संगत में बुलाऊँगी 
मैं भजन सुनाऊँगी ,अनंत सुख पाऊँगी ।।

स्वरचित 
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

भावों के मोती को समर्पित 
मेरी स्वरचित रचना 

ओ मेरे कान्हा जी 
""""""""""""""""""""""""""
ओ मेरे कान्हा जी 

अब तो आजा गोकुल जी 

तेरे बिना सूनी है 

ये गोकुल की गलियाँ

महारास फिर रचाओ 

गोपियों संग आओ 

तुम्हारे बिना गोकुल बेरंग है 

श्याम तुम हो तो सब रंग है 

सबकी आँखों को है भाता 

तेरी मनमोहक प्यारी अदा

ख्यालों मेेें सबके कान्हा ही आता 

बस तू सदा हमारे गोकुल में रहता

मिलने को तुमसे आता 

चेहरा हमारा खिल जाता

भक्ति की शक्ति महिमा अपरंपार 

दुनिया को तू ना छोड़ हे पालनहार 

ओ मेरे कान्हा जी 

अब तो आजा गोकुल जी |

- सूर्यदीप कुशवाहा

स्वरचित


नमन भावों के मोती,
आज का विषय, कान्हा से प्रीत,
दिनांक, 2 3,8,2019.
वार, शुक्रवार,

मात यशोदा जातीं बलिहारी ,
कान्हा से प्रीत उन्हें है लागी ।
लीला रचा रहे वहाँ गिरधारी ,
सुत देवकी गोद यशोदा भाई ।

बने नंद बाबा के सुत कन्हाई ,
खुद को माखनचोर कहलाई ।
कान्हा से प्रीत सबने लगाई , 
प्रीत गोपियों ग्वालों की भाई ।

कान्हा से प्रीत राधा ने लगाई,
मनमोहन नाम राधे ही धराई ।
रीत युग युग से यही चल आई,
बिके प्रेम में श्री कृष्ण कन्हाई ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


नमन भावों के मोती
24,8,2019,
शनिवार,


हे नाथ चले आओ अब तुम, 
अवतरण तुम्हारा जरूरी है। 
इस रंग बदलती दुनियाँ का , 
अब शुध्दीकरण जरूरी है । 
जब रक्षक ही भक्षक हुए यहाँ , 
फिर दीन बिचारे जायें कहाँ । 
प्रभु दीन दयाल जी अरज सुनो , 
दुष्टों का नाश जरूरी है।...... 
होता हो जब सत्य दण्डित , 
और हो झूठ महिमा मण्डित ।
तब ईमान के मारे जायें कहाँ,
प्रभु जी दुनियाँ में न्याय जरूरी है।.......
जब अनीति ही यहाँ पर धर्म हुआ,
हर ओर अधर्म का बोलबाला हुआ।
कोई सम्मान रहा नहीं नारी का,
अब इक आपसा भाई जरूरी है।.....
बनी है राजनीति गहरा दलदल ,
अब चलता है यहाँ पर तो भुजबल।
परोपकारी हो रहे बदनाम यहाँ ,
फिर से नया गीता ज्ञान जरूरी है।....
सुनो हे जगदीश्वर हे परमेश्वर ,
जनहित में यहाँ अब आ जाओ।
बहुत नफरत की आँधियाँ चलतीं हैं ,
हुआ संदेश प्यार का जरूरी है।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


 द्वितीय प्रस्तुति
विषय कान्हा से प्रीत
विधा काव्य

23 अगस्त,2019,शुक्रवार

जयति राधे जयति कृष्णा
जयति मोहन मदनमुरारी।
अब कान्हा से प्रीत लगी है
जयति जय हो श्री बनवारी।

कारावास अवतारित मथुरा
गोकुल नंद भवन शिशु लीला।
ग्वाल बाल मिल माखन चोरी
नित यमुना तट करते क्रीड़ा ।

कंस वध दानव दल मारे
भक्त वत्सल भाग्य सँवारे।
असत्य पर सत्य विजय कर
महाभारत पांडव प्रिय तारे।

कुरुक्षेत्र रथ के ऊपर ही
अर्जुन गीता ज्ञान दिया था।
मेरे तो प्रिय गिरिधर नागर
मीरां ने विष पान किया था।

स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

नमन मंच 
23.8.2019
शुक्रवार 
जन्माष्टमी पर्व 
विषय-कान्हा से प्रीत 
विधा -मुक्त

एक भजन 

🏵️ *कान्हा*🏵️

मन प्रफुल्लित अब होत बलिहारी

गलियन गलियन कूँचे किलकारी

नैनन से तुम अब करिहौ बातै

श्याम शलौने गीत सुनाके

मोरे मनवा में तुमने डाका डाला

ऐसे गया अब वो हरसा के

पकड़े मोरे वो कलाई रसिया

मन इतराय अब रह रह के

जानौ अब ना कौनो बतिया

वो गये है अब प्रीत रचा के

प्रेम में उनके तड़प रही हूँ

विरह की अब ना कटे रतिया

पूनम रात्रि अब वो शर्माने

चन्द्र देखूं यू देखूं कृष्णा

मन में उठती है अब तृष्णा

मुझ को कुछ ना समझ आए

प्रीत पराई तुम्ही जानौ

मैं तुम्ही को सजना मानौ

मोही तो कुछ ना देई सुझाई

सब रूपन मा तुम्ही गोसाईं।।

🎇 *आकिब जावेद, बाँदा*

भावों के मोती
जन्माष्टमी विशेष
दिनाँक 23,,08,,2019

जन्मदिन आज हैं घनश्याम गोकुलधाम प्यारे का।
बसे सबके दिलों में जो बने सबके सहारे का।।

कोई चित्त चोर माखनचोर या रणछोड़ कहता हैं।
द्वारिकाधीश जगत के ईस, यशोदा के दुलारे का।।

कन्हैया नाम है जिनका,वृंदावन धाम है जिनका।
अरे आकाश में जो चाँद सा चमके सितारे का।

चलें गौवें चराने वन,करे दुष्टों का जो मर्दन,
श्री ब्रजचन्द्,देवकी नंद सुदर्शन चक्र धारे का।

शिव कुमार लिल्हारे ,,अमन,
बालाघाट मध्यप्रदेश
भावों के मोती ",मंच को शत् शत् नमन 🙏🙏
दिनांक 23/08/2019
शीर्षक: कान्हा की प्रीत 
िधा: काव्य 

कान्हा की प्रीत निराली..
वह मोहक है पर मोहित नहो
सब को लागे वह उसका है
पर व्यक्तित्व बहु आयामी है।

कान्हा की प्रीत निराली ..
उसकी लीलाऐं मधुर
कभी वह माखन चुराए
कभी गोपियों के वस्त्र ।

ग्वालों संग गाय चराए
गोपियों संग रास रचाए 
मुरली की धुन पर
राधा संग नाच नचाए।

कान्हा की प्रीत निराली ..
जब वर्षा का कोप बढा
गोवर्धन उठा उंगली पर
भक्तन की जान बचाए।

कान्हा की प्रीत निराली..
जब जग में आतंक छा गया
कंस मामा का चारो ओर
दुष्ट मामा का संहार किया तब।

कृष्ण सुदामा की प्रीत निराली
देती दोस्ती की मिसाल है 
आज भी सुदामा नही रहेंगे 
यदि दोस्त कान्हा बन जाए।

# स्वरचित रचना
#नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
भावों के मोती को समर्पित
बिषय- कान्हा से प्रीत
कर ली मैंने तो कान्हा से प्रीत
कामनाओं पर पा ली जीत।
सुन्दर मुख छवि उनकी है मन में
दिवानी भई,भूली जग की रीत।
प्रेम नीर बहते अंखियन से
जब से पीया है प्रेम-धुन का अमृत।
कान्हा कान्हा पूकारे हरपल मुख
हो गया मन पावन औ पुनीत।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर


 सादर नमन भावों के मोती
कान्हा से प्रीति
तिथि-२३:८:१९

वार शुक्रवार
दिग्पाल छंद
221-2122-221-2122

वंदन करूंँ उसी का, वो सांँवरा हमारा,
नजरें झुका झुका कर, करता रहा इशारा। 

🌹🌹

जब से मिली निगाहें, खुद से हुई पराई,
दिल की तड़प मिटी है, कर कृष्ण से सगाई।
अब हर तरफ दिखा है, बस श्याम का नजारा,
नजरें झुका झुका कर ,करता रहा इशारा ।

🌹🌹

अब थाम जो लिया है, दामन नहीं छुड़ाना,
मझदार में न छोड़ो ,कुछ भी कहे जमाना ।
इस प्यार की डगर पर, देना सदा सहारा ,
नजरें झुका झुका कर, करता रहा इशारा।

🌹🌹

मनुहार प्यार तुझसे ,दिल चीर के दिखा दें,
अँखियांँ तरस रही है, नैना जरा मिला लें।
नाराज तुम न होना, अब आसरा तुम्हारा ,
नजरें झुका झुका कर ,करता रहा इशारा।

🌹🌹

वसुदेव की लगन में ,तन को लगा लिया है,
नव भक्ति भाव से मन, आनंद पा लिया है।
साक्षात दर्श देकर, मन में करो उजारा,
नजरें झुका झुका कर ,करता रहा इशारा ।

🌹🌹

वंदन करूंँ उसी का, वो सांँवरा हमारा,
नजरें झुका झुका कर, करता रहा इशारा ।।

चंचल पहुंचा
स्वरचित

नमन 'भावों के मोती'

कान्हा से प्रीत
दिनाँक: 23.08.2019

कान्हा तेरी मुरली का
ये कैसा जादू ??
चाहकर भी कर न पाएं 
हम खुद पर क़ाबू।।

तेरी मुरली की मधुरधुन
करे मुझे गुमसुम।
पहले मैं जाऊं.. पहले मैं..
छिड़े गोपियों में जंग।।

भाता है तेरा नटखटी भाव
बतियाने को करे मन।
सब कुछ किया वश में मेरा 
तन मन और धन।।

या तो बन्द कर मुरली वादन,
या बनो आँखो के उद्दीपन।
जन्माष्टमी के इस पावन पर
हर लो सब के व्याकुल मन।।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा

नमन मंच
"भावो के मोती"

* कान्हा से प्रीत*
००००००००००० 

काला मेरा कान्हा दिल नही काला
इसलिए जग मे बना मतवाला
वारे मेरे लाला ,वारे मेरे लाला

कान्हा से प्रीत लगाई ब्रजबाला
उमर नाही देखी प्रेम कर डाला
वारे मेरे लाला, वारे मेरे लाला

ब्रज गैय्यन के बन गए ग्वाला
मिश्री माखन से माँ ने पाला
वारे मेरे लाला, वारे मेरे लाला

गौरी-गौरी राधे का काला कान्हा
कुद कालिन्दी नाग नाथ डाला
वारे मेरे लाला ,वारे मेरे लाला

मधु पालीवाल
{स्वरचित}
23 / 8 / 2019
नमन मंच
"भावों के मोती "समूह को समर्पित 
दिनांक-23-8-2019
विषय-कान्हा से प्रीत"

एक गीतिका 
*********
वाचिक स्राग्वणी छंद में,,,,
212 212 212 212
************************
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
श्याम से आज मेरी मिलन हो गई!
जिंदगी आज मेरी ,,,मगन हो गई !!
🌷
मंदिरों में कभी ,,श्याम रहते नहीं,
प्रेम में वो दिखें,इक जगन हो गई!!
🌷
वो समाए हुए,हर प्रकृति में छिपे,
वो चमन मे छुपे,,मैं सुमन हो गई!!
🌷
ढूंढ लें हम सभी, कर्म में श्याम को,
मैं ते'री ज्ञान-गीता बचन हो गई!!
🌷
श्याम या राम हों,भावना में रमें,
साधना हो प्रबल,तो भजन हो गई!!
🌷
दीनबंधू कहाते,सुदामा -सखे,
आज मैं भी अकिंचन शरण हो गई /
🌷
बालकों में दिखें, बाल कृष्णा मेरे, 
आज उनकी छवी ज्यों किशन हो गई //
🌷
कौन कहता? हमे श्याम मिलते नहीं,
आज मीरा- हृदय की लगन हो गई!
🌷
प्रेम-"वीणा " बजी,साँवरे के लिए,
श्याम के पद-कमल मे नमन हो गई!!
🌷
****************************
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित (गाजियाबाद)



नमन मंच 
भावों के मोती "को समर्पित 
दिनांक-23-8-2019
विषय- कान्हा से प्रीत
जन्माष्टमी पर विशेष 
द्वितीय प्रस्तुति,,,
विधा- चोका
#जन्माष्टमी पर्व पर कथात्मक " चोका -
। "ॐ कृष्णावतार"
****************( ॐ ध्वनि है अक्षर मे ना गिने )
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
********************
--- श्री कृष्णा- जन्म
--- जन्माष्टमी का पर्व
--- अवर्णनीय
--- हिन्दु धर्म त्योहार
--- ॐ कृष्णावतार
--- साक्षात ब्रह्म- जन्म
--- कारागार मे
--- देवकी के गर्भ से
--- ॐ कृष्णा का जन्म
--- भगवान प्राकट्य
--- विष्णु स्वरुप
--- श्री कृष्णा की लीलाऐं
--- यमुना पार
--- वासुदेव का जाना
--- गोकुलाष्टमी
--- यशुदा के कन्हाई
--- नंद नंदन
--- बृन्दावन मे धूम
--- बाजे बधाई
--- कंस बध के हेतु
--- द्वापर युग
--- दानवनाश हेतु
--- धर्मस्थापक
--- ॐ कृष्ण ने जन्म लिया
--- अधर्म नाश किया //
********************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ब्रह्माणी "वीणा"हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित (गाजियाबाद)


नमन मंच 
भावों के मोती समूह को समर्पित 
विषय-"कान्हा से प्रीत"
जन्माष्टमी पर विशेष 
(तृतीय प्रस्तुति )
भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर ,,,,,,,,
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
समर्पित 
पारम्परिक छंद 
" वाचिकश्रग्विणी छंद "======= . 
मापनी : 212 212 212 212 " 
********************************
सीमांत =आर
पदांत = से 
*********
गीतिका 
÷÷÷÷÷
🙏🍁🙏🍁🙏🍁🙏🍁🙏🍁🙏
******************************
माँ धरा थी त्रसित, खल अनाचार से 
जब अधम बढ़ गए पाप - विस्तार से !
~~~~~
कंस की असुरता ,,,,चरम के पार थी ,
धर्म खण्डित हुआ दैत्य -व्यभिचार से !
~~~~~
जन्म लेना पड़ा ईश को ,,,,,भूमि पर ,
धर्म की स्थापना- सतवचन -सार से !
~~~~~~
नैन विगलित हुए, विष्णु-दर्शन किया, 
पुत्र पा तात रोए ,,,,,,,,सजल धार से !
~~~~~~
गर्भ से देवकी ,,,,,,,,,जेल में संत्रसित , 
पुत्र अदभुत मिला *कृष्ण अवतार * से !
~~~~~~~
टूट कर हथकड़ी ,,,,,,हाथ से गिर पड़ी ,
जगमगाने लगी जेल,,,,,,,,अवतार से ॥
*******************************
🙏🍁🙏🍁🙏🍁🙏🍁🙏🍁🙏
रचनाकार = ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित (गाजियाबाद)



नमन मंच
भावों के मोती^को समर्पित 
दिनांक-24-8-2019
विषय - कान्हा से प्रीत^
विधा- #चवपैया छंद में,,,,
10 +8+ 6 6=30 मात्रा,प्रथम द्वितीय चरण में तुकान्त आवश्यक अंत दो गुरु 
उदाहरण-( भय प्रगट कृपाला,दीन दयाला,,,)
********************************
#चवप॓इया छंद में; 10+8+6+6( मापनी
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
श्री #कृष्णजन्माष्टमी
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🍁🌾🍁🌾🍁🌾🍁🌾
*****************************
जन्मे गोपाला,,यशुमति लाला,
मगन भई महतारी !
नाचत बृजबाला,गोकुल ग्वाला,
ढोल बजै करतारी !
प्रगटे नंदलाला,, दीन दयाला,
कृष्ण लिहिन अवतारी !
बृजधामहि चंदन,,,,,नंदसुनंदन,
संतन के हितकारी !
************************
जय कृष्ण कन्हैया,,,नाग नथैया,
लीलाधर गोपाला !
हे देवकिनन्दन ,,,,,असुरनिकंदन,
पूजत हैं बृजबाला !
भक्तन हितकारी,,,,कृष्ण मुरारी,
राधावर नंदलाला !
मन-वीणा"गावत,श्याम रिझावत,
आजा वंशीवाला!!
*******************************
🍁🌾🍁🌾🍁🌾🍁🌾🍁
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित (गाजियाबाद)
भावों को समर्पित मेरी स्वरचित रचना
नमन मंच
वार-शुक्रवार
दिनांक-23-08-2019

श्री कृष्ण से मेरी प्रार्थना🙏🙏

हे कृष्ण! हे गोपाल!हे वंशीधर!हे जगपालक! अज्ञानता का अँधकार दूर कर ज्ञान का वरदान दीजिए

हे कृष्ण!हे गोपाल!हे वंशीधर!हे जगपालक! जग में सर्वत्र शांति हो, दीन दुखियों का दुःख दूर कर दीजिए।

हे कृष्ण! हे गोपाल!हे वंशीधर!हे जगपालक! बेसहारों को सहारा प्रदत कीजिए।हर घर खुशहाली हो खुश रहने का आशीष प्रदत कीजिए।

हे कृष्ण! हे गोपाल!हे वंशीधर!हे जगपालक! दुराचारियों के मन में सुविचार भर दीजिए।मन से अहंकार, ईर्ष्या मिट जाए यह वरदान दीजिए।

हे कृष्ण!हे गोपाल!हे वंशीधर!हे जगपालक! परिश्रमी सफलता प्राप्त करें,सफल होने का वरदान दीजिए।

हे कृष्ण! हे गोपाल!हे वंशीधर!हे जगपालक! मन मंदिर में अहंकार, ईर्ष्या स्पर्श न करें यह वरदान दीजिए।

हे कृष्ण! हे गोपाल! हे वंशीधर! हे जगपालक! बन जाऊं सहारा डगमगाते कदमों का यह सामर्थ्य मुझे प्रदत कीजिए।

हे कृष्ण! हे गोपाल! हे वंशीधर! हे जगपालक! बेसहारों का सहारा बनूं,सद्बुद्धि प्रदत कीजिए।

✍️©कुमार_संदीप


नमन् भावों के मोती
23/08/19
विषय:कान्हा
विधा:कविता

वृन्दावन में धेनु चरावत
ग्वाल बाल को खूब नचावत
यमुना तट पर खेल खिलावत
कान्हा सब पर प्रेम लुटावत

रुठी माँ को कान्ह मनावत
दाऊ को भी खूब खिझावत
मर्यादा का मान सिखावत
नन्द बाबा का मान बढ़ावत

राधा संग गोपियाँ मनावत
कान्हा सबहिं भेद मिटावत
प्रेम पथ का मार्ग सिखावत
मोक्ष राह आसान बनावत

अधरों पर बांसुरी विराजत
मधुर संगीत धुन सुनावत
पशु-पक्षी सब खुशी मनावत
वृन्दावन में कृष्ण विराजत

मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली

नमन मंच
दिन - शुक्रवार
दिनाँक - 23/08/2019
विषय - कान्हा से प्रीत
विधा - मुक्तक
मापनी - 1222 1222 1222 1222
========

जपो राधे रटो राधे न कोई जब सहारा हो ,
सभी कुछ छोड़ दो उस पर न तेरा गर गुजारा हो,
न भूलो भूलकर भी तुम परम् सत्ता वही "माधव"
सुने वो ईश सबका ही , न कोई जब तुम्हारा हो l

============

धरम की हानि जब होती प्रभो अवतार लेते हैं,
बढ़े जब पाप दुनिया में प्रभो संहार देते हैं, 
वचन तेरे कहे गीता कन्हैया आपके बोले,
रखो अब लाज माधव जी तुम्हारा नाम लेते हैं I

#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई जिला - महोबा ( उ. प्र. )

सादर नमन आदरणीय मंच 
भावों के मोती
🙏🙏🙏🙏🙏
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आप सभी प्रबुद्ध जनों को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां
💐💐💐💐💐

श्रीकृष्ण की शिक्षा

अगर श्रीकृष्ण की शिक्षा का जग को ज्ञान हो जाए ।
तो मानव जाति का जीवन सुखद वरदान हो जाए ॥

जनम माँ देवकी ने दी, यशोदा माँ ने था पाला ।
लला वसुदेव का था पर, कहाया नंद का लाला ।
कि पालनहार का माँ बाप सा सम्मान हो जाए ॥1॥
अगर श्री कृष्ण की शिक्षा का, जग को ज्ञान हो जाए ॥

न हो यमुना विषैली इस, लिए कर कालिया मर्दन ।
सिखाया पूजना नदियां, उठाया हाथ गोवर्धन ।
प्रदूषण मुक्त ये धरती, सुखों की खान हो जाए ॥2॥
अगर श्री कृष्ण की शिक्षा का, जग को ज्ञान हो जाए ॥

भुलाकर राजश्री वैभव, गए संदीपनी आश्रम ।
चराई गाय गुरुवर की, कि सीखा साथ शिक्षा श्रम ।
बने यूँ नीति शिक्षा की, नवल संधान हो जाए ॥3॥
अगर श्री कृष्ण की शिक्षा का, जग को ज्ञान हो जाए ॥

सुदामा सा सखा हो तो, गले उसको लगा लें हम ।
गरीबी इस तरह दुनिया, से सारी ही भगा लें हम ।
बिना बोले सखा की सब जरूरत भान हो जाए॥4॥
अगर श्री कृष्ण की शिक्षा का, जग को ज्ञान हो जाए ॥

बढ़ा कर चीर मीता का, सभा में मान रक्खा था ।
बचाने ऋषि दुर्वासा से, जरा सा भात चक्खा था ।
जो हर बेटा कन्हैया हो, तो बिटिया आन हो जाए ॥5॥
अगर श्री कृष्ण की शिक्षा का, जग को ज्ञान हो जाए ॥

अगर श्रीकृष्ण की शिक्षा का जग को ज्ञान हो जाए ।
तो मानव जाति का जीवन सुखद वरदान हो जाए ॥

स्वरचित एवं मौलिक रचना
©®🙏
-अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
छिंदवाड़ा मप्र

दिनांक-23-8-2019
विषय-"कान्हा से प्रीत"
स्वरचित गीत

रे माखन की चोरी छोड़ 
कन्हैया मैं समझाऊँ तोय

बाबा नंद की नौलख गौएं
दूध दही सब होय
फिर काहे चोरी करे कान्हा
तेरी बुराई होय
रे माखन की चोरी छोड़ 
कन्हैया मैं समझाऊँ तोय 

बरसाने से आई सगाई 
इत उत चरचा होय
बड़े घरन की हैं राधिका रानी
नाम धरेंगी तोय
रे माखन की चोरी छोड़ 
कन्हैया मैं समझाऊँ तोय 

मुरलीधर बागों में जाके
रास रचाते होय
गोप-गोपियां मस्त मगन हो 
अपना आपा खोय
रे माखन की चोरी छोड़ 
कन्हैया मैं समझाऊँ तोय 

_______
स्वरचित
डा. अंजु लता सिंह 
नई दिल्ली

नमन 'भावों के मोती'

तिथि:- 23-08-2019
कान्हा से प्रीत

कान्हा तेरे हाथों का स्पर्श
लौकिक प्रेम जगा रहा है।
सुध-बुध सब खो बैठी मैं
एक ऐसा मदसा रहा है।।

ऊपर से तेरा मुरली वादन
मेरे कर्णों को वश करे।
तेरी मुरली की ये मधुरधुन
मैं ना सुनूँ तो गश पडे।।

लोक लाज सब छोड़ कर मैं
तेरे पीछे-पीछे विचरण करूँ।
मदहोशी की सी हालत है...
अब तू ही बता मैं क्या करूँ??

-:-स्वरचित-:-

सुखचैन मेहरा

मन मंच... भावों के मोती..
विधा - काव्य गीत 
विषय - कान्हा तुम संग प्रीत .. (जन्माष्टमी विशेष) 
गीत स्वर/तर्ज़ - सांवली सूरत पे मोहन दिल दीवाना हो गया.. 

कान्हा तुम संग प्रीत लगाकर..
मै दर्श दीवाना हो गया..
देखी जब तेरी मोहनी सूरत...
जग भी बेगाना हो गया...
कान्हा तुम.....1

देवकी के लाल तुम हो..
यशुमति के नंदलाल भी..
राधारानी के प्राण तुम हो..
ग्वालवालों का मान भी...
कान्हा तुम.....2

कभी चुराया दूध मक्खन...
कभी वस्त्र सब गोपियों के...
देख कर तेरी बाल लीला..
ब्रज का मन मोहित हुआ...
कान्हा तुम.....3

वृंदावऩेश्वरी के प्रेम मे जब...
रासलीला रची गयी...
गोपियों संग रास करके..
ब्रज मे प्रेम की लौ जली... 
कान्हा तुम.....4

जब किया संहार तुमने..
पूतना, मामा कंस का..
दे दिया वरदान जग को..
पाप अधर्म से मुक्त किया..
कान्हा तुम.....5

जब महायुद्ध मे नचाया...
सबको मुरली की तान मे...
गीता का उपदेश देकर..
जग का फिर कल्याण किया... 
कान्हा तुम.....6

अब प्रभु है एक ही आरजू....
मेरी अर्ज़ मे भी ध्यान दो...
मन मे विराजों संग राधारानी...
देह मे जब तक ये प्राण है...
कान्हा तुम.....7

रचनाकार -
विनय गौतम (विनम्र)

:भावों के मोती को
#समर्पित मेरी काव्य रचना:
#दिनांक:23"8"2019:
#विषय:कान्हा से प्रीत:
#विधा:काव्य:
#रचनाकार:दुर्गा सिलगीवाला सोनी:

!!!!!!!!!!!कान्हा से प्रीत!!!!!!!!

अरज़ लिख दी मैंने हृदय की पाती, 
कान्हा से प्रीत जन्मों तक निभाती, 
सौगंध ली हैं मैंने जमुना जल छूकर, 
ब्रज राज किशोर से जो मिल जाती, 

कब तक भटकूं मथुरा की गलियां, 
बन जोगन दर दर बिरह गीत गाऊं,
प्रीत मैं नटवर की मैं होकर दीवानी, 
सांझ ढले अब वृंदावन ही बिताऊं, 

मिल ना सको सजीवन मनमोहन, 
एक बार तो स्वप्न मैं दरस दिखाओ, 
मैं थक ना जाऊं कहीं राह निहारत, 
अब तो मिलन की आस जगाओ, 

मेरी रातें हैं उदास और मनवा बेचैन, 
काटे नहीं कटती हैं बिरहा की रैन, 
पीकर बच गई मैं जहर का प्याला, 
तूने मोहन ये क्या जादू कर डाला, 

मीरा के प्रभु तुम हो गिरधर नागर, 
मेरी विनती सुनो अब मदन मुरारी, 
त्याग दिया है तन मन धन सरवस,
शरण ले लियो मोहे मोहन त्रिपुरारी,

ना तो सोच रुके और नाही चाह घाटे, 
ना ही जागती हूँ और ना सोती हूँ, 
यादों मैं तेरी मैं खोई रहती हूँ सांवरे,
ना तो हंसती हूँ और नाही रोती हूँ,


 नमन भावों के मोती 
विषय -कान्हा से प्रीत 
23/08/19

शुक्रवार 
दोहे 

अंग सुशोभित पीत-पट , उर बैजन्ती माल ।
मोर -मुकुट ,कटि-करधनी,चंचल नयन विशाल।।

सबके मन- मंदिर बसे , नटखट माखनचोर।
नटवर नंद- किशोर की , महिमा है चहुँ ओर।।

जिसकी वंशी से चली, मधुर प्रेम की रीत ।
हम सच्चे मन से करें , उस कान्हा से प्रीत।।

आज पालना झूलते ,सबके पालनहार। 
मधुर- मनोरम छवि निरख,उमगे हर्ष अपार।। 

असुर-शक्तियों का किया , गिरधर ने संहार ।
स्वयं कर्म करके दिया , जीवन-सुख का सार।।

प्रेम और सौन्दर्य से , किया दुखों का त्राण। 
कर्मयोग के ज्ञान से , हुआ जगत कल्याण।। 

धरती पर चारों तरफ़ ,मानवता बेहाल। 
उसकी रक्षा के लिए ,आओ फिर गोपाल।। 

श्री चरणों में हों नमित , करते वंदन लोग ।
हे बंशीधर ! फिर वही , करो प्रेम संयोग।।

कर्म , प्रेम , सद्भाव का , देने शुभ संदेश। 
फिर आओ हे मधुसूदन! , दूर करो सब क्लेश।।

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर

नमन भावों के मोती
दिनाँक-23/08/2019
शीर्षक-कान्हा से प्रीत
विधा -गीत

आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा
कृष्ण-कृष्ण तो सब गावै
मन मै कोय कोय ध्यावै।
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा।

राधा तेरी सबसे प्यारी
उसको कंठ लगा जा
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा

राधा तेरी खड़ी बाट में
तेरे दर्शन की वो प्यासी
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा।

दूध की मटकी लावै गुजरी
उसको फोड़ के तू जाना
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा ।

नाचै गोपी सारी बनके तेरी दासी
आजा रे कन्हैया बनके बृजवासी
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा।

सारी गोपियाँ करै रासलीला
एक बै सिर मोरपंख लगाना
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा।

मात यशोदा तनै बुलावै
माखन रोटी खा जा।
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा।

भगतन तेरे सब अर्जी लावै
एक बै दर्शन देके जाना
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा।

अशोक करै कविताई
वो प्रेम तै करै गाना
आजा आजा रे
आजा आजा रे
कन्हैया एक बै आजा।

अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

नमन मंच 
"भावों के मोती "को समर्पित 
दिनांक -23/8/2019
दिन -शुक्रवार 
विषय -कान्हा से प्रीत

मोर मुकुट धारी 
कृष्ण मुरारी 
अदभुत छवि न्यारी 
एकटक तोहे 
निहारे नयना 
कान्हा से प्रीत 
सदा रहे हमारी 
तुम सम सखा 
तुम सम ललना 
तुम सम रास रचैया 
न कोय 
तुम्हारी शरण 
जो आये सब 
सब सुख पाये 

स्वरचित 
शिल्पी पचौरी


नमन भावों के मोती
२३/०८/२०१९

मंच को समर्पित करती हूँ
अपनी एक रचना

मेरे कृष्णा से! 

मन मोहन !
तेरे मधुबन में बस पतझड़ का हीं है संसार 
इस मर्मर सी वीणा के सब टूटे टूटे से हैं तार ।

प्यासी-प्यासी सारी धरती , दलदल में भी है अँगार 
कहाँ गई मुरलीधर !तेरी मुरली में सब सुख का सार ।

हे बनवारी ! स्वर साधो 
स्वर साधो , जिसकी ताकत से एक जादू की आवाज़ उठे 
स्वर साधो जो इस सृष्टि की वीणा पर मंगल साज उठे । 

हे वंशीधर ! वंशी तेरी , माँझी हर मँझधार का,
धुन तू कोई जगा,जगत के सपनों के आधार का।

ओ यदुनन्दन ! तान सुना,स्वर धार तनिक लहराने दे 
इस महातिमिर की बेला में,प्रभात किरण मुस्काने दे ।

मानव मानव की आँखों में , काँटा बन बन कर नहीं खले 
अन्याय मिटे , अज्ञान घटे ममता- समता का दीप जले 
इस शूल बिंधे से मधुबन में , सुनसान खिले विरान खिले ।

हे माधव ! ऐसी धुन हो 
तप रहे रेत के सीने पर,शीतल नदिया का तीर बहे 
जो बुझा सके अँगारों को,धरती पर कोमल प्रीत बहे।

स्वरचित "पथिक रचना"



नमन भावों के मोती
२४/०८/२०१९
मंच को समर्पित मेरी दूसरी रचना

"मैं कृष्णा तुम्हारा"

न पुकारो तुम मुझको
करके मेरा पूजन -आराधन
पाना चाहो गर मेरी शरण
जो प्रेम को पहचान सको 
तो मैं कृष्णा तुम्हारा।।

शुभ्र हो मन - दर्पण
राधा सा समर्पण
मीरा सा सर्वस्व-अर्पण
जो कर सको तुम
तो मैं कृष्णा तुम्हारा।।

अहंकार को छोड़
सद्भावना की मटुकी फोड़
स्नेह का माखन 
जो बाँट सको 
तो मैं कृष्णा तुम्हारा।।

रिश्तों के बंधन
संतुलन का झूला
निश्छल विचारों की सरिता
जो बहा सको तो 
तो मैं कृष्णा तुम्हारा।।

हटाकर घृणित - भावनाएँ
मिटाकर कुत्सित- कामनाएँ
किसी द्रौपदी का सम्मान
जो बचा सको 
तो मैं कृष्णा तुम्हारा।।

हो अंतर्मन - चेतन
मर्यादित - आचरण
निर्मल पावन -ज्योत 
जो जला सको 
तो मैं कृष्णा तुम्हारा।।

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं🙏

स्वरचित "पथिक रचना"

नमन:"भावों के मोती" मंच को समर्पित 
दिनांक 23/08/2019
विषय :पधारो मोरे कान्हा 
विधा: सयाली छंद 
#दूसरी रचना 

जन्माष्टमी 
लड्डू गोपाल 
जन्म खीरे पत्तेदार 
चरणामृत स्नान
झूलेलाल ।

जन्मोत्सव 
जीमे फलाहार 
कान्हा से प्रीत 
गावे मंगलगान 
सत्कार ।

कृष्णामय
मीरा भक्ति 
पूजन आरती थाल
बजते बारह
नन्दलाला।

कृष्णा
बाँके बिहारी 
यशोदा का लाल 
देवकी नन्दन 
मुरलीधर ।

मथुरा
गोवर्धन पर्वत 
वृंदावन की गलियाँ
कदंब वृक्ष 
द्वारिका ।

#स्वरचित रचना 
#नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।


नमन"भावों के मोती"
🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹
विषय:-कान्हा से प्रीत

मधुमालती छंद पर गीत

2212 , 2212
मुखड़ा
कान्हा बजाए बाँसुरी,
मैं तो हुई हूँ बाँबरी,
त्र
1))) अंतरा

दिल थाम कर कान्हा चलूँ,
साँसें लुटा कर मैं कहूँ ,
तू आ मिला ऋतु फागुनी,
है आज संध्या माधुरी।

कान्हा बजाए ..........

2))) अंतरा,

कर आज तू उपकार तो,
हारूँ नहीं तुम साथ जो,
आँखें कहे प्रिय हाँ तुही,
लाना नहीं हाँ आँसु ही,

कान्हा बजाए .........

3)))अंतरा

लगजा गले, रैना जले,
प्रिय रात भर, नैना जगे,
दिन रात अब,तूही दिखे,
राधा बनी, तुमको मिले ।

कान्हा बजाए बाँसुरी...
मैं तो........

4)))अंतरा
मुरली सजा पागल बना,
हाँ नेह के , दीपक जला,
उर में बहे,रस माधुरी,
ऋतु छा गई, है जादुई ।

कान्हा बजाए बाँसुरी
मैं तो....................

स्वरचित
नीलम शर्मा# नीलू

भावोंके मोती 
24/8/19
हाइकु गीत 
श्री कृष्ण हरे 
++++++++++
1)
श्री कृष्ण हरे
ईश्वर रूप धरे
गोप पधारे।।
2)
श्रीकृष्ण हरे 
मन मोहक छवि 
रंग सांवरे।।
3)
श्री कृष्ण हरे 
यशोदा के सितारे 
नंद दुलारे ।।
4)
श्री कृष्ण हरे 
माखनचोर प्यारे 
मुरलीधरे ।।
5)
श्री कृष्ण हरे 
जग पालन हारे
कंस संहारे।।
6)
श्री कृष्ण हरे 
भक्त जब पुकारे 
संकट टारे ।
7)
श्री कृष्ण हरे 
माता-पिता,हो तुम
सखा सहारे ।।
8)
श्री कृष्ण हरे
विराट विश्व रूप 
अज्ञान हारे।।
9)
श्री कृष्ण हरे 
क्षीरोद मन,प्राण 
अर्पण करे।।
--------------------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित

24/8/19
भावों के मोती
विषय=कान्हा से प्रीत
प्रथम प्रस्तुति
================
जन्मोत्सव की शुभ बेला में
फिर से जन्म लो हे कान्हा
कष्टों से धरती काँप रही
उसे अपना सहारा दो कान्हा

आओ फिर इस धरती पर
सुनो व्यथा हर नारी की
हैवानों के डर से छिन रही
बची-खुची आजादी भी

आओ फिर से नाश करो
तुम कलयुगी कंसों का
दुर्योधन के चंगुल से मुक्त
चीर हरण हर लड़की का

दोस्त बना दोस्त का दुश्मन
उनमें फिर प्रेम का संचार करो
बंशी की सुरीली तान छेड़कर
मन के सभी तुम विकार हरो

करो कृपा हे कृष्ण कन्हैया
सब प्रीत के रंग में रंग जाएं 
जात-पात से ऊपर उठकर
फिर मानव हित में रम जाएं

राधे-राधे जय श्री कृष्णा
गलियों गलियों धूम मचे
प्रेम रस की बारिश में
तन-मन सबके झूम उठे
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित


24/8/2019
विषय-कान्हा से प्रीत
*************
आज समाज मे देखो तो कान्हा!
कैसा अनाचार का बोलबाला है
कूटनीति के द्रोण ने फिर से
अनैतिकता का व्यूह रच डाला है

कान्हा अब तुझ सङ्ग प्रीत
कोई न करता
लालची नेताओं की स्वार्थलिप्सा
सही मार्ग अब नहीं सूझता
भ्रष्टाचारियों ने मिलकर निर्धन के हक़ पर डाका डाला है...

भोले,अबोध अभिमन्यु रूपी जनता को
फंसा लिया है चिकनी बातों में
उन्हें घेरने का कुचक्र
अनीति के कौरवों ने अब फिर से रच डाला है

क्षत विक्षत अभिमन्यु
पड़ा हुआ है धरती पर
अमर्यादित,असंवेदनशील
कौरवों की टोली हँस रही है ठठाकर

हे केशव ! कहाँ है तू!
अवतरित हो,,!उद्धार कर!
इन अधर्मियों ने देखो!ये क्या कर डाला है...?

**वंदना सोलंकी©स्वरचित



नमन भावों के मोती!🙏
शुभ जन्माष्टमी!🙏
आज के दृश्य एवं श्रव्य कार्य,,,कान्हा से प्रीत,,, के अंतर्गत प्रस्तुत है मेरा प्रथम प्रयास, गीत के रूप में मंच के समक्ष!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय!🙏
ओ कान्हा मैं आई तेरे द्वार,
कर दे तू मेरा बेड़ा पार,
छोड़ के आई मैं घर संसार,
तू दाता तू पालनहार!

१ निशिदिन तुझको याद करु मैं,
हर पल तेरी माला फेरू मैं,
बन जाऊ तेरे गले का हार,
तू दाता तू पालनहार!
ओ कान्हा मैं,,,,,,,,,,,,,,,,,

२ कुंज गलिन में तुझको पुकारू,
मन मन्दिर में आरती उतारू,
ताने देवें घर परिवार,
तू दाता तू पालनहार!
ओ कान्हा मैं आईं,,,,,,,,,,,,,,,

३ गल वैजन्ती माल विराजे,
मोर मुकुट कुण्डल है साजे,
वारी वारी जांवा,जांवा बलिहार!
तू दाता तू पालनहार!
ओ कान्हा मैं आई,,,,,,,,,,,,,,

४ रात दिन मेरी बरसत अंखियां,
सबसे करु तेरी प्यारी प्यारी बतियां
कर दे तू सबको भव से पार,
तू दाता तू पालनहार!
ओ कान्हा मैं आई तेरे द्वार,
कर दे तू मेरा बेड़ा पार,
छोड़ के आईं मैं घर संसार,
तू दाता तू पालनहार!🙏

मौलिक स्वरचित,
इति,,,,,,,,,,,,,,नीलू मेहरा!




विधाःः गीतःःश्रंगार

जबसे प्रीति कान्हा से जोडी,
अपनी सुधबुध खोई।
नहीं दिखता जब भी ये मुझको,
मै भरभर अंखियां रोई।

पता नहीं तू क्या चाहे कान्हा
क्यों मुझसे नाता जोडा।
मैं तेरी और तू मेरा था
फिर क्योंकर रिश्ता तोडा।
अब करदी मुझे पराई रे।मैं भरभर अंसुआ.....

जीवन मेरा डोल रहा है।
मधुवन मेरा घूम रहा है।
मुरलीवाला मुरलीधर तू,
हमको ही क्यों भूल रहा है।
तूने कैसी प्रीति निभाई रे।मै भरभर अंसुआ ..

माखन तुझे खूब खिलाया।
तूने हमको बहुत रूलाया।
हम कृष्ण के प्यार में डूबे,
पर कृष्ण ने हमें बिसराया।
मै तभी से गुमसुम होई रे।भरभर असुंआ...

छोड गया मझधार कन्हाई
कोई प्रीत से नहीं वास्ता।
सुन मनमोही मनमोहन मेरे,
अब तेरा मेरा अलग रास्ता।
मै सारी रतियां रोई रे।भरभर अंसुआ.......

गिरधर सचमुच तू रंगरसिया।
तू नटखट बडा मनबसिया।
शायद तू केवल राधेरानी का,
इस दुनियां में तू ही छलिया।
मैंने अपनी खुशियां खोई रे।भरभर अंसुआ...

स्वरचित ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजयश्री रामरामजी

3भा.#कान्हा से प्रीत#गीत
24/8/2019/शनिवार



सादर नमन
समूह के सभी सदस्यों को जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।

सुन बाँसुरी कान्हा की,
सुध-बुध मैं खो बैठी,
देख मन मोहक सूरत,
दिल अपना दे बैठी,
मोर मुकुट रहने मुरारी,
कानन कुँडल सज रहे,
भक्ति में लीन तेरी,
नाम तेरा हम भज रहे,
ग्वाल बाल सब सखा तेरे,
नदी किनारे राह तक रहे,
तोड़ मटकी ग्वालन की,
मंद-मंद मुस्कुरा रहे।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
24/8/19
शनिवार


मन मंच 
विषय:--कान्हा से प्रीत
विधा--मुक्त 

दिनांक :--24 / 08 / 19

**+**+**+**+**+**+**
कान्हा तोरी प्रीत में 
राधे सुध-बुध खोई
रुह रटे कान्हा कान्हा 
श्वासें वीतरागी होईं

नयन कटोरे मीन रही
बिन जल तरपी जाई
हृदय माही धड़कन भी
राग ना छेड़े कोई 

सब तन पिंजर ह्वै गया
मलिन सारी- अंगिया होई 
अगन लगे बाहर -भीतर
राधे शीत में जली जली जाई 

तू तो प्रीत की फांस लगा
अधमरी कर गया कान्हा 
निठुर भया द्वारिका जाय
प्रिया बैठी बैठी रोई

सुनी हो गई गोकुल नगरी 
बेघर ग्वालिन सगरी 
मटकी फोर फोर गुजरियां
माखन इत उत फेंकी

कालिंदी को तट सूना ऐसे
ज्यों आत्मा तन सूं निकली
सप्तसुरों की बाँसुरिया भी
प्रीत ,गीत, राग सब भूली

कान्हा तोरी प्रीत में........ 

डा, नीलम , अजमेर

नमन
भावों के मोती
24/8/2019

बिषय-कान्हा से प्रीत

ओ मनमोहन माधव मुरारी,
हे कान्हा हे रासबिहारी।

तेरी मुरलिया सुन गिरधारी,
प्रीत में तेरी हुई बावरी।

ओ सुन्दर सलोने बांके बिहारी,
ओ नंदलाला, बृज के बिहारी।

कितनी तेरी है प्यारी सूरत,
मन में बसी बस तेरी मूरत।

ओ छलिया ओ कृष्ण कन्हैया,
पार लगा देना जीवन नैया।

ओ मोहन ओ घनश्याम,
तुझे पुकारूं आठों याम।

ओ नटवर ओ मेरे कृष्णा,
मन में बसी बस तेरी तृष्णा।

तू इस जग का पालनहारा,
गोपियों का है सबसे प्यारा।

हे गोविन्द हे गोपाला,
तू है इस जग का रखवाला।

राधा का तू श्याम सलोना,
जीवन का तू स्वप्न सलोना।

शरण में तेरी दुनिया सारी,
प्रीत करें तुमसे सकल नर-नारी।

अभिलाषा चौहान

*तुझ-सा इस जगत में कोई नहीं**
----------------------------------------------------------
हे कण-कण में बसने वाले माधव।
है इस जगत में तुझ - सा कोई नहीं।।-2
**********************************
जब - जब धरती पर विपदा आती है, 
तू ले अवतार दूर भगाने आता।
निशाचर, दुष्ट, खल, अत्याचारी से,
पीड़ित मानव को आ के हर्षाता।।
चाहे जो भी तू जग में होता वही।
है इस जगत में तुझ - सा कोई नहीं।।-2
**********************************
हे कण-कण में बसने वाले माधव।
है इस जगत में तुझ - सा कोई नहीं।।-2
**********************************
आकर खोया - पाया जो भी यहाँ,
उसका कर्ता - धर्ता तू ही तो है।
लोगों के कर्मों - धर्मों का यहाँ,
रखता लेखा - जोखा तू ही तो है।।
है सब झूठा यहाँ इक तू ही सही।
है इस जगत में तुझ - सा कोई नहीं।।
**********************************
हे कण-कण में बसने वाले माधव।
है इस जगत में तुझ - सा कोई नहीं।।-2
**********************************
मिट्टी, पानी, वायु और हर प्राणी, 
तुझसे पाता जीवन अपना क्षण-क्षण।
इस वसुंधरा पर जो भी दिखता है,
होता है निर्मित तुझसे ही कण-कण।।
तू निराकार रहता, दिखता न कहीं।
है इस जगत में तुझ - सा कोई नहीं।।
***********************************
हे कण-कण में बसने वाले माधव।
है इस जगत में तुझ - सा कोई नहीं।।-2
***********************************
-- रेणु रंजन
( स्वरचित )


नमन भावों के मोती ।
सभी आदरणीय प्रबुद्ध गुणी जन को सादर नमन ।
"कान्हा से प्रीत " विषयांतर्गत मेरी दूसरी प्रस्तुति 


**जग के रखबईया... पालनहार..**
---------------------------------------------------------------------------
जग के रखबईया... पालनहार.. तेरा करे जग जयकार।
ओ कृष्ण-कन्हैया. रास- रचैया.. तेरा करे जग जयकार।।
********************************************
पर्वत - धरती, नदी - ताल और नभ तारे।
तृण-तृण, कण-कण में रचे है जीवन सारे।।- 2
जग के बनबईया...सिरजनहार.. तेरा करे जग जयकार।
ओ कृष्ण-कन्हैया. रास- रचैया.. तेरा करे जग जयकार।।
********************************************
नर - नारी, काले - गोरे, धनी या गरीब।
अच्छे - बुरे , चाहे होवे चोर या शरीफ़।।-2
सबके बसबईया...तारणहार.... तेरा करे जग जयकार।
ओ कृष्ण-कन्हैया. रास- रचैया.. तेरा करे जग जयकार।।
********************************************
लुले - लंगड़े, अंधे - काने , मूक - बधिर।
बाँझ चाहे बाँझिन या होवे जो अधीर।।-2
सब के रखबईया... पालनहार.. तेरा करे जग जयकार।
ओ कृष्ण-कन्हैया. रास- रचैया.. तेरा करे जग जयकार।।
********************************************
जग के रखबईया... पालनहार.. तेरा करे जग जयकार।
ओ कृष्ण-कन्हैया. रास- रचैया.. तेरा करे जग जयकार।।
********************************************
-- रेणु रंजन
( स्वरचित )


नमन भावों के मोती ।
सभी आदरणीय प्रबुद्ध गुणी जन को सादर नमन ।
"कान्हा से प्रीत " विषयांतर्गत मेरी तीसरी प्रस्तुति ( भोजपुरी में)

**बाजेला बधईया, गोकुल नगरिया** 
--------------------------------------------------------------------
बाजेला बधईया, गोकुल नगरिया 
लिहले जनम नंदलाला हो।-2
****************************************
श्याम वरण उनकर रूपवा, मोहे सबके मनवा हो।
खुशी में मगन नन्दबाबा, लगाई के करेजवा हो।।-2
गावेला बधईया, सब गोप-गोपिया, 
लिहले जनम नंदलाला हो।
****************************************
बाजेला बधईया, गोकुल नगरिया 
लिहले जनम नंदलाला हो।-2
****************************************
मगन हो यशोदा मईया, लुटावे बलईया हो।
लगा के काजल के टीका, बचावे कन्हैया हो।।-2
नाचे पमरिया, यशोदा दुअरिया,
लिहले जनम नंदलाला हो। 
****************************************
सुनर रूपवा कन्हैया के, देखे सगर नगरिया हो।
मगन हो के नाचे गावे, आनंद के लहरिया हो।।-2
बाजेला बधईया, गोकुल नगरिया।
लिहले जनम नंदलाला हो।
****************************************
बाजेला बधईया, गोकुल नगरिया 
लिहले जनम नंदलाला हो।-2
****************************************
-- रेणु रंजन
( स्वरचित )




नमन भावों के मोती ।
सभी आदरणीय प्रबुद्ध गुणी जन को सादर नमन वंदन 
"कान्हा से प्रीत " विषयांतर्गत मेरी चौथी प्रस्तुति 


**जरा मुरली की धुन सुना दे रे**
----------------------------------------------------------------------------
मन आज विकल हुआ रे, ओ मोहन प्यारे, 
जरा मुरली की धुन सुना दे रे।
*********************************************
जग की माया समझ न आए, जिंदगी मेरी उलझती जाए।
जग में कुछ पा लेता इंसान, फिर रंगत ही बदलती जाए।।
मन आज विफल हुआ रे , ओ मोहन प्यारे,
जरा रीत जगत की सीखा दे रे।
**********************************************
कैसे-कैसे लोग है जो, दूसरों की खुशियाँ छिनने आए।
वैरी अपनों को बना कर, दूसरों में खुशियाँ ढूँढने जाए।
मन आज अमल हुआ रे , ओ मोहन प्यारे, 
जरा राज़ की बात बता दे रे।
***********************************************
तेरे दरस को व्याकुल अँखिया, ढूँढ रही है तुझको दिन-रैन। 
झलक एक बार दिखा दे तू, मिल जाएँगे फिर दिल को चैन।
मन आज सरल हुआ रे, ओ मोहन प्यारे, 
जरा अँखिया प्यास बुझा दे रे।
***********************************************
मन आज विकल हुआ रे, ओ मोहन प्यारे, 
जरा मुरली की धुन सुना दे रे।
***********************************************
-- रेणु रंजन
( स्वरचित )
भावों के मोती दिनांक 24/8/19
कान्हा से प्रीत 


है जीवन 
क्षणभंगुर
कर लो
कान्हा से प्रीत 
तर जायेगा
जीवन ये

प्रीत बिन 
जीवन है अधूरा
देती है प्रीत 
माता की
शीतल छाया

धागा स्नेह सा
बहनिया का 
देता है
प्यार की छाया

बन राधा
दीवानी
घूमी 
दर दर 
वृन्दावन 
मिली उसे 
तब ही जीत
जब जुड़ी 
उसकी
कान्हा से प्रीत 

बनाया 
कान्हा ने
जग को 
मतवाला 
बस हुआ 
वही धन्य 
जीवन में 
जिसने जोड़ी 
कान्हा से प्रीत 

स्वलिखित 
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल





24/08/2019
छंदमुक्त रचना 
विषय:-"कृष्ण" 

कृष्ण..
दिव्य है, विराट है, 
कूटनीतिज्ञ,परमार्थ है, 
परिभाषाओं से परे,
मनुजता का विस्तार है l
कृष्ण..
नाम है प्रीत का, 
अधर्म पे धर्म की जीत का, 
दुराचारियों का काल है, 
मित्रता की मिसाल हैl
कृष्ण...
गुरु है, विचार है, 
संस्कृति है, संस्कार है, 
मन मंदिर में है विराजमान,
मनु श्रेष्ठ अवतार है l
कृष्ण...
रिश्तों का हार है, 
राधा का प्यार है, 
यशोदा का लाड़ला, 
मनमोहक है माखनचोर, 
गिरिराज धरण, तारणहार है
कृष्ण.... 
गीता का ज्ञान है, 
अपने गुरु का मान है, 
कर्म की देता प्रेरणा, 
निर्देशक, कमान है l
कृष्ण..... 
गौरव गान है, 
चक्रधारी, विद्वान है, 
पांचजन्य हुंकारता, 
धर्मयोद्धा महान है l
कृष्ण....
उत्सव है,उल्लास है, 
जीवन का राग है,रास है, 
मोर मुकुटधारी बाँसुरी वाला, 
सादगी का श्रृंगार है....l 

स्वरचित एवँ मौलिक 
ऋतुराज दवे

Hema Joshi 🙏🏻

प्रेम से बोलो राधे राधे 
नमन मंच को 
दिन
ांक =24/08/2019
शीर्षक= कन्हैया
बधाई हो बधाई आज 
शुभ घड़ी आयी जन्मे है 
कृष्ण कन्हैया 

रक्षण करते भक्तों का
बंसी बजैया सकल विश्व 
में पूर्ण पुरुषोत्तम 
जन्मे है कृष्ण कन्हैया 

सारा गोकुल धूम मचाता 
सब भक्ति में झूमे
बाजे है ढोल मृदंग 
और बजे है शहनाई 
बधाई हो बधाई आज 
शुभ घड़ी आई जन्मे है 
कृष्ण कन्हैया

घर घर में खुशियों की 
लहर है छाई
मात यशोदा देख देख 
लल्ला को यूँ हितरायी 
ले गोद कान्हा का माथा चूमे

बधाई हो बधाई आज शुभ
घड़ी आयी जन्मे है कृष्ण कन्हैया 
भ्राता बलराम इठलाते ड़ोले 
आयो हैं मेरो प्यारो भैया 

प्रफुल्लित हो रही प्रकृति
आनंदित हुई यमुना मैया 
आनंदित हो गयी गैया 
आगयो गोकुल में खिवैया 
आ गयो रास रचैया 

जो भी कान्हा के दर्शन पाता 
उनका जन्म सफल हो जाता
और नही कुछ उनको भाता 
छवि देख कन्हैया की वो
तो उनमे ही खो जाता

जब जब पाप बड़े धरती पर
और होता अत्याचार 
तब तब लिया प्रभु ने अवतार 
अनंत रूपो में प्रभु ने दर्शन 
देकर किया हम पर उपकार

नरसिंह रूप लिया प्रभु ने
लिया राम अवतार
वामन रूप में दर्शन देकर 
कर दिया सबका जीवन साकार
कृष्ण रूप में आये प्रभु तो 
कर दिया कंस पर प्रहार 

बधाई हो बधाई आज शुभ घड़ी
आई जन्मे है कृष्ण कन्हैया 
🙏🏻स्वरचित= हेमा जोशी🙏🏻
कान्हा जी के जन्म दिवस पर सभी दोस्तों को हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई




नमन भावों के मोती
दिनांक - 24/8/2019
विषयब- कान्हा से प्रीत आयोजन के अंतर्गत मेरी पहली रचना भावों के मोती समूह को समर्पित


-----वृन्दावन के रसिया-----

नंद गोपाला , यशोदा के लाला,
हुई दीवानी तेरी , मैं ब्रज बाला।

सखा संग मिल मक्खन चुराया,
बजा बाँसुरी, तूने रिझाया।

मार कंकड़ फोड़ी मटकी,
मुख मंडल चंद्र आभा छिटकी।

चित चोर , तूं माखन चोर,
सजा माथे मुकुट सिरमौर।

पकड़ी बाँह , मरोड़ी कलईया,
पनघट रास लीला रचईया।

क्या मीरा क्या राधा रानी,
बिन तेरे बरसे अखियां पानी।

हे नटवर नागर, गिरिधर गोपाल,
बिन तेरे उदास ,गोपी संग ग्वाल।

वृन्दावन आकर रास रचाओ ना,
हुई बावरी कान्हा लाज बचाओ ना

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा(हरियाणा)


दिनांक - 24/8/2019
विषय - कान्हा से प्रीत आयोजन के अंतर्गत मेरी चौथी रचना भावों के मोती समूह को समर्पित


----हे नंदलाला---

देवाधिदेव देवकीनंदन
बाल सखा ब्रज गोपाला
मतवाली सांवली सूरत
यशोदापालक नन्दलाला

माथे मोर मुकुट सजे
कमलनयन पीताम्बरधारी
मनमोहन मुरली मनोहर
तुम मधुसूदन त्रिपुरारी

अनंता अनंतजीत अनिरुद्धा
तुम देवाधिदेव दयानिधि
विश्वरूपा गीता उपदेशक
सर्वेश्वर तुमसे रिद्धि सिद्धि

मंद-मंद मुस्कान सदा
गोपियां रिझावत चितचोर
उठा गोवर्धन रचाई लीला
मटकी तोड़ माखन चोर

यमुना तीर कदम्ब पेड़
गोपियों संग रास रसिया
चरण वंदन करो उद्धार
राधा रानी मन बसिया

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)


 नमन :- भावो के मोती
विषय :- कृष्णा
सन्दर्भ :- कृष्ण का गोकुल से जाना/ गोपियों के वियोग

-------------

प्रीत में सांवरे की, जो गोपियां दीवानी हुई,
लाज सब छोड़ दीनी, कहूँ क्या कहानी हुई,

सुधबुध वो तो खोके, खुद को ही हार उठी,
अखियन नीर झरे, कान्हा को पुकार उठी,

कान्हा को पुकारती वो, रथ पीछे दौड़ रही,
कान्हा के वियोग में,जों सांस देह छोड़ रही,

अक्रूर को देती गाली, कान्हा को दुलारती है,
तेरे बिना कौन कान्हा, गोकुल का सारथी है,

कौन फिर तेरे बिना, धुन बांसुरी सुनाएगा,
कौन बृज की धरा पे, अब रास यों रचायेगा,

कौन फिर छिप छिप, वैसे कंकरिया मारेगा,
कौन फिर गोकुल के, अब दुख कष्ट हारेगा,
🖊️ #प्रकाश_जांगिड़_प्रांश 


तृतीय प्रस्तुति 
नमन:" भावों के मोती मंच" को समर्पित 
शूभ संध्या समस्त प्रबुद्धजन 
दिनांक 24/08/2019
विषय :कान्हा तेरी रीति निराली 
विधा : छन्द मुक्त 

ऐसी कान्हा रीति है
छोड दुर्योधन का पकवान 
विदुर कुटी में प्रेम से
खाएं बथुआ साग।

पित्र मोह में पड गये 
समझे न विदुर नीति 
ठान दिया धृतराष्ट्र ने
पांडवो से महा युद्ध ।

एक ओर कौरव संग सेना
दूसरी ओर कृष्णा पांडव संग 
चला युद्ध ,आहत सब अपने 
कृष्ण सीख चले अर्जुन सब।

कान्हा का है भाव निराला ..

आज भी उस विदुर तपोस्थली मे
अनेकों गुरु शिष्य हो रहे
हरा भरा बंधुआ का साग है 
गंगा छूने आतीं हर साल ।

कान्हा तेरी रीति निराली ..

कौरवो की घृणित चाल मे
हारे जब दौपदी को पांडव
झुक गये दरबार में सर सब 
चीर हरण में दौपदी की लाज बचाई।

कान्हा तेरी रीति निराली..

#स्वरचित तीसरी प्रस्तुति 
@नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश

जय माँ शारदा 
..सादर नमन भावों के मोती..
दि.- 24.08.19 / शनिवार 
िषय - "कान्हा से प्रीत"
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित... 
🌷...सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएँ...🌷
********************************
🌹#भजन 🌹
=== ======

विनय सुन लीजिए भगवन तुम्हारे द्वार आया हूँ |
समर्पित हैं ये श्रद्धा के सुमन उपहार लाया हूँ |

हे माखन चोर मनमोहन हे मुरलीधर हे बनवारी |
सुदामा के सखा बलदाऊ के भैया हे गिरधारी ||
यशोदा मात के छैया पे दिल यूँ हार आया हूँ |
विनय सुन लीजिए.... 

पतित हूँ मैं पतित पावन कहाते आप हे प्रभु जी |
भँवर में डोलती नैया लगाते पार हे प्रभु जी ||
किनारे कीजिए नैया मेरी दरकार लाया हूँ |
विनय सुन लीजिए.... 

सहारा आपका मुझको जो मिल जाए सँवर जाऊँ |
रहम की टुक नजर मुझ पर भी कर दो तो निखर जाऊँ |
मैं पाने आपका भगवन वही तो प्यार आया हूँ |
विनय सुन लीजिए..... 

*********************************
#स्वरचित (24.08.19)
प्रमोद गोल्हानी सरस 
कहानी सिवनी म.प्र.

नमन भावों के मोती!
दिनांक,,२४/०८/१९
विषय,,,, कांहा से प्रीत के अंतर्गत, 

मेरा द्वितीय प्रयास!
विधा,,,,, पिरामिड!


ओ,
कान्हा,
गोपाला,
नारायणा,
मन मोहना,
हे नन्द नंदना,
मेरे घर आवना!


हे,
श्याम,
प्रणाम,
घनश्याम,
नंदकिशोर,
नाचे मन मोर,
है तू माखनचोर!


हे,
कृष्ण,
अगम,
सनातन,
छाई बहार,
करू मनुहार,
आजा ना इक बार!


हे,
कान्हा,
बावरा,
अगोचरा,
मुरलीधरा,
तू मेरा सहारा,
कई बार पुकारा!


हे
सखे,
अजर,
नटवर,
छाई बाहर,
खुशी की बौछार,
कर भव से पार!


ओ,
श्यामा,
प्रसन्ना,
ब्रजबाला,
बाल गोपाला,
प्रकट भइला,
नन्द यशोदा लाला!


हे,
आदि,
अनन्त,
है बेअंत,
मनमोहन,
पुनीत पावन,
हृदय लुभावन!


ओ,
प्रिए,
कन्हैया,
ता ता थैय्या,
बंसी बजैय्या
गैय्या है चरैय्या,
मैं तो लेऊ बलैय्या!


ओ,
सखे,
गोपाला,
ब्रज बाला,
वैजन्ती माला,
नथे नाग ज्वाला,
पिए विष कराला!

१०
ओ,
श्याम,
माखन,
चुरावत,
दधी पिबत,
धेनु चरावत,
कालिया नथावत!

११
हे,
कान्हा,
श्रीधरा,
वंशीधरा,
कंस को मारा,
राधा का है प्यारा,
है सबका सहारा!

१२
हे,
वंद्य,
अचिंत्य,
सनातन,
सदा अदृश्य,
तू आदि अनन्त,
व्याप्त है दिग्दिगंत!

मौलिक स्वरचित,
नीलू मेहरा।

नमन "भावो के मोती"
24/08/2019
"कान्हा से प्रीत"


कान्हा से प्रीत

हे अनंत घनश्याम
आपको मेरा प्रणाम
1
नंद के नंदलाल
यशोदा के गोपाल
हे दीनबंधु कृपासिंधु
आपको मेरा प्रणाम
हे अनंत........
2
यमुना तीरे शाम सवेरे
राधा को दरश दिए श्याम
हे गिरिधारी, मदन मुरारी
आपको मेरा प्रणाम
हे अनंत.........
3
युग युगांतर अनंत काल
कृष्ण विराजे वृंदावन धाम
हे बाँकेबिहारी, बनवारी,पद्मनाभ
आपको मेरा प्रणाम
हे अनंत........
4
ललिता विशाखा राधा संग
मधुवन में रास रचाए श्याम
जग को प्रेम का दिया ज्ञान
आपको मेरा प्रणाम
हे अनंत.....
5
नित-नित लीला से
दुष्टों का किया संहार
हे सुदर्शन चक्रधारी श्रीकांत
आपको मेरा प्रणाम
हे अनंत....
6
मथुरा के कारागृह में
देवकी के अष्टम गर्भ में
जन्म लिए भगवान
धरती को करने उद्धार
हे देवकीनंदन वंदन करें स्वीकार
हे अनंत घनश्याम...।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।

नमन मंच "भावों के मोती"
24/08/2019
चंद हाइकु(5/7/5)

"कृष्ण" 
(1)
दृष्टि विराट 
परिभाषा से परे 
कृष्ण अपार 
(2)
लीला रचाई 
कृष्ण युगावतार 
सृष्टि समाई 
(3)
गोकुल ग्राम 
ग्वाल-गोपियाँ गाएं 
गीत गोपाल
(4)
कृष्ण का जादू
बंसी पर गोकुल
कंस भी काबू
(5)
विकास अंधा 
भू का चीरहरण
पुकारे कृष्ण 
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
"वर्ण पिरामिड"
(1)
है 
कृष्ण 
मोहक 
मनु श्रेष्ठ 
जगत गुरु 
पथ प्रर्दशक 
जीवन निर्देशक 

(2)
है 
कृष्ण
महान
कर्म ध्यान 
अधर्म काल 
प्रेम की बाँसुरी 
विष्णु का अवतार 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे
नमन मंच को 
प्रथम प्रस्तुति 
जय श्री राधे

24/8/2019
पिरामिड 
1
हे 
योगी 
वियोगी 
सर्वव्यापी 
पालन हार 
विष्णु अवतार 
किये कंस संहार 
2
ओ 
कान्हा 
सौतन 
मुरलिया 
गोपी सताए 
राधा अकुलाये 
मीरा को तरसाये 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित

नमन मंच को 
24/8/2019
प्रस्तुति 2

राधे राधे 
हाइकु 
1
यशोदा मैया 
शरारती है दैया 
तेरा कन्हैया 
2
योगी थे कृष्ण 
छोड़ दिया गोकुल 
राधा व्याकुल 
3
श्याम सांवरे 
गोपियाँ तकती रे 
हुए बावरे 
4
कृष्ण ओ राधा 
प्रेम रहा है आधा 
निभे न वादा 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित

नमन मंच
भावों के मोती
कान्हा से प्रीत


* प्रेम पवित्रता *
************

राधा तेरी प्रेम कहानी समझ न पाई ।
इसको समझने मैं गोकुल से वृन्दावन आई ।

कान्हा से प्रीत राधे तूने कैसी लगाई
कृष्ण से पहले राधे तेरी जग में महिमा गाई ।

राधे-राधे गावे यहाँ सब लोग लुगाई।
गजब वृन्दावन में राधे प्रेम की दुनियाँ सजाई ।

साचा प्रेम राधे-कृष्णा लो दिल में बसाई ।
ढाई आखर प्रेम की सब दिल में ज्योत जलाई ।

जग वालो सुन लो अब तो कान लगाई ।
राधेकृष्णा पवित्र प्रेम की "मधु"ने महिमा गाई ।

मधु पालीवाल
【स्वरचित】
24 / 8 / 2019

नमन भावों के मोती
दृश्य श्रव्य आयोजन
दिनांक - २३-२४/०८/२०१९

विषय - कान्हा से प्रीत
---------------------------------------------

मेरे कान्हा से प्रीत जो लगाएगा,
मनमोहन को मीत जो बनाएगा।
दुःख पाएगा न जीवन में वो कभी-
सदा खुशियों के गीत गुनगुनाएगा।

श्याम सांवरे को सखा जो बनाएगा,
उसे सारा संसार मिल जाएगा।
हाथ थाम ले तू अभी घनश्याम का-
तुम्हें भव से ये पार लगाएगा।

यहां अपना पराया भूल जाएगा,
मनमोहना को जब अपनाएगा।
छूट जाएगा मनुज मोहजाल से-
श्याम चरणों में सदा सुख पाएगा।
"पिनाकी"
धनबाद ((झारखण्ड)
#स्वरचित

भावों के मोती को समर्पित मेरी स्वरचित रचना 

कान्हा से प्रीत 


जब आयी राधा नयी नयी तो सखियाँ उन्हें बतलाने लगी 
नटवर नागर की लीला से राधा को अवगत करवाने लगी 
मत जाना तुम प्रेम गलियों में मोहन जादू कर देगा 
नैनो से नैना को मिलकर अपने रंग में रंग देगा 
वो मनमोहन गिरधारी नटवर ऐसी बंसी बजायेगा 
मन में कुछ न रहेगा बाकी वो प्रेम रस भर जाएगा 
मत मिलाना नैना से नैना उनके ऐसा वो समझने लगी 
नटवर नागर की लीला से राधा को अवगत करवाने लगी 
पानी भरने जाओगी जब वो छुपकर गगरी तोड़ेगा 
रंग डालेगा होली पर वो किसी सखी को न छोड़ेगा 
वस्त्र चुराए वो सखियों के स्नान करन जब जावे है 
भोर में वो जमना के तट पर मनमोहक बंसी बजावे है
केशव की महिमा को राधा के समक्ष वो गाने लगी 
नटवर नागर की लीला से राधा को अवगत करवाने लगी 
माखन का है बड़ा लालची चोरी करके खावे है 
गोपाला धेनु चराने अपने सखा संग जावे है 
वृन्दावन में नित लीला करता उसकी लीला हज़ार है 
उसकी लीला का दीवाना यह पूरा संसार है 
रासबिहारी के रास का दृश्य राधा को वो बताने लगी 
नटवर नागर की लीला से राधा को अवगत करवाने लगी 
राधा बोली बंद करो यह श्याम गुण न गाओ तुम 
राधा आयी है वृन्दावन में उस मोहन को बतलाओ तुम 
राधा का सुनकर नाम अपनी लीला भूल वो जाएगा 
छोड़कर सारे कामकाज वो राधा से मिलने आएगा 
इतना कहकर कृष्ण की राधा मंद मंद मुस्काने लगी 
कृष्ण और राधा एक ही है यह सखियों को बतलाने लगी 

स्वरचित-: जनार्धन भरद्वाज 
श्री गंगानगर (राजस्थान )

नमन भावों के मोती
आज का विषय, कृष्ण
दिन, शनिवार

दिनांक, 24,8,2019

नमन कृष्ण
जन्माष्टमी का पर्व
भक्ति भाव है ।

मित्र सुदामा
परंपरा स्थापित 
आदर्श कृष्ण ।

प्रेम सर्वस्य
समर्पित जीवन
कृष्ण मंथन ।

कर्म प्रधान
फल का परित्याग
गीता के श्लोक ।

द्वारिकाधीश
यदुवंशी महान
कृष्ण मुरारी ।

देवकी सुत
यशोमति के लाला
कृष्ण कन्हैया ।

नंदकिशोर 
श्री कृष्ण प्रिय ग्वाला
मुरलीधर ।

कृष्ण उवाच
मति भ्रम अर्जुन 
महाभारत ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश


नमन :- "भावों के मोती"
विषय :-"कृष्ण की प्रीत"
दिनांक :- 24/8/19.

विधा:- "दोहा"

आनन्दित नर-नार हैं, खुश है गोकुल धाम।
शंख मजीरे बज रहे, चहुं-दिश मंगल गान।
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बस एक प्रयास 
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ऊधो निर्गुण ज्ञान बघारै।
बहुत लगायौ जोर काहु विधि,गोपिन कीमतिमारै।

निर्गुण कियौ बखान,ध्यान से सुनौ हमारी बाणी।
दीखौ ना अज्ञान,लगौ चितवन सौं बडी सयानी।

मेरी मानो निर्गुण ही तो, रमा जगत सारे में।
सूरज में है वही, अगन, जल, पृथ्वी में तारे में।

भक्ति नहीं तुम्हरे बस,मत समय गंवाओअपना।
निर्गुण-भक्ति करो जगत में और दूसरा तपना। 
ध्यान निर्गुण कौ श्रेष्ठ उचारै।

सुन ऊधो के बचन,विहँसिइक बोलीसखीसयानी।
कैसौ निर्गुण रंग-रूप रे ! कैसी उसकी बानी।

हम तो मूढ़ मति की ग्वालिन,तू बहुतेरौ ज्ञानी।
कैसी चालढाल सब कह दै,दिलसौं मिटै गिलानी।

कितनेक सखा संग में वाके,कितनेक दासौ दासी।
कितनिक सखी संगवाके,जो निशदिन रहें उदासी।
बता क्यूं दीदे आँख निकारै।

अपनौ ज्ञान राखि संगअपने,मत हमकूं बहकावै।
प्रीत लगी 'मोहन' सौं हमरी, दूजौ नाय सुहावै।

हमरी प्रीत श्याम संग ऊधो, मधुबन रास रचैया।
ग्वाल - सखा संग धैनु चरावै, काली नाग नथैया।

मनमें मूरति छपी श्याम की,जो पलछिन तड़पावै।
वा छलिया नटवर के आगै, और न कछु सुहावै।
ऊधो अब का कहूं विचार।

गाढ़ी प्रीत करी 'मोहन' संग, कैसे उसे भुला दें।
ये हम ते नाय होय, श्याम ते अपनो नेह डिगा दें।

आयौ जो समझाने हमकूं, 'निर्गुण' हम ना जानैं।
वा 'छलिया' कौ रूप सलौनौ, हम बस वाकूं मानैं।

अब सुन गोपिन के बैन, शिथिल ऊधो की बानी।
निश्छल प्रीत से हार मान चले 'ऊधो' ज्ञानी। 
'
प्रीत' कौ मोल समझ कैऊधो, प्रीतहि-प्रीतपुकारै।
अब ना निर्गुण ज्ञान बघारै।
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"अंदाज"05मई2020

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