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ब्लॉग संख्या :-487
26/8/2019
पिरामिड
"पल"
(1)
ये
पल
नरेश
सुविशेष
कर्म अशेष
हंसों जैसे मोती
जीवन बनी ज्योति।।
(2)
ये
पल
अतिथि
मस्त मौला
अमूल्य कोष
हर्ष परितोष
चंद्र बन सहेज।।
(3)
ये
पल
चंचल
सुकोमल
मुट्ठी में बंद
फिसलता रेत
सहारा रेगिस्तान।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक
पिरामिड
"पल"
(1)
ये
पल
नरेश
सुविशेष
कर्म अशेष
हंसों जैसे मोती
जीवन बनी ज्योति।।
(2)
ये
पल
अतिथि
मस्त मौला
अमूल्य कोष
हर्ष परितोष
चंद्र बन सहेज।।
(3)
ये
पल
चंचल
सुकोमल
मुट्ठी में बंद
फिसलता रेत
सहारा रेगिस्तान।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक
नमन मंच ,भांवो के मोती
विषय पल
विधा लघुकविता
26 अगस्त 2019,सोमवार
पल जीवन का सृंगार है
पल जीवन का विनाश है।
पल को जिसने पकड़ लिया
पल भर में होता विकास है।
तेज गति से जाता है पल
रुकता नहीं भागता है पल।
हमको कभी रूलाता है पल
कभी हमे हँसाता नित पल।
पल भर में प्रलय आजाता
पल भर में सूरज उग जाता।
पल पल परिवर्तन जग होता
पल से रंक राजा कह लाता।
कौन जीत सका है पल को
पल के आगे मानव हारा है।
द्वेष कपट छल छोड़ रे पगले
पल पकड़ स्वर्गीम द्वारा है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय पल
विधा लघुकविता
26 अगस्त 2019,सोमवार
पल जीवन का सृंगार है
पल जीवन का विनाश है।
पल को जिसने पकड़ लिया
पल भर में होता विकास है।
तेज गति से जाता है पल
रुकता नहीं भागता है पल।
हमको कभी रूलाता है पल
कभी हमे हँसाता नित पल।
पल भर में प्रलय आजाता
पल भर में सूरज उग जाता।
पल पल परिवर्तन जग होता
पल से रंक राजा कह लाता।
कौन जीत सका है पल को
पल के आगे मानव हारा है।
द्वेष कपट छल छोड़ रे पगले
पल पकड़ स्वर्गीम द्वारा है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन मंच
दिनांक .. 26/8/2019
विषय .. पल
********************
पल पल हर पल हर इक ही पल,
याद तेरी तडपाती है।
जैसा मेरा हाल है क्या,
तुमको मेरी याद सताती हैं।
**
सावन कब का बीत गया,
भादों से नयना बरसें है।
याद मे तेरी ओ बेदर्दी,
जियरा मोरा कसके है॥
**
काँन्हा ने भी जन्म ले लिया,
राधारानी बाकी है।
प्रेम का वो सम्पूर्ण सत्य जो,
शेर हृदय मे जागी है॥
**
भाव छलक कर बिखर रहे है,
शब्द गढे है कविता की।
पल पल की यादें कविता मे,
शेर हृदय के जीवन की॥
**
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
दिनांक .. 26/8/2019
विषय .. पल
********************
पल पल हर पल हर इक ही पल,
याद तेरी तडपाती है।
जैसा मेरा हाल है क्या,
तुमको मेरी याद सताती हैं।
**
सावन कब का बीत गया,
भादों से नयना बरसें है।
याद मे तेरी ओ बेदर्दी,
जियरा मोरा कसके है॥
**
काँन्हा ने भी जन्म ले लिया,
राधारानी बाकी है।
प्रेम का वो सम्पूर्ण सत्य जो,
शेर हृदय मे जागी है॥
**
भाव छलक कर बिखर रहे है,
शब्द गढे है कविता की।
पल पल की यादें कविता मे,
शेर हृदय के जीवन की॥
**
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
"मुद्दतें हो गई वो पल आ न सका,
तुम मुझे और मै तुम्हें पा न सका।
दौरे दस्तूर नुमाया बनावट का है,
सजा न सका कुछ मै बना न सका।
कहने को मुहब्बत थी हमनें भी की,
तुम जता न सके मै निभा न सका।
तुम समन्दर बहा कर विदा हो गए,
चुप रहा अश्क दो मै बहा न सका ।
जख्म सब भर गए पर निशां खूब है,
था अजब हादसा मै भुला न सका।
आज हंसता है मुझपे यूं सारा जहाँ,
बैठ दरिया किनारे मै नहा न सका।
तेरी चाहत की तुझपे लानत "सोहल",
लूट के दौर भी कुछ कमा न सका।"
विपिन सोहल स्वरचित
तुम मुझे और मै तुम्हें पा न सका।
दौरे दस्तूर नुमाया बनावट का है,
सजा न सका कुछ मै बना न सका।
कहने को मुहब्बत थी हमनें भी की,
तुम जता न सके मै निभा न सका।
तुम समन्दर बहा कर विदा हो गए,
चुप रहा अश्क दो मै बहा न सका ।
जख्म सब भर गए पर निशां खूब है,
था अजब हादसा मै भुला न सका।
आज हंसता है मुझपे यूं सारा जहाँ,
बैठ दरिया किनारे मै नहा न सका।
तेरी चाहत की तुझपे लानत "सोहल",
लूट के दौर भी कुछ कमा न सका।"
विपिन सोहल स्वरचित
विषय--पल
प्रथम प्रस्तुति
हर पल तेरी याद और मीठी बातें
कैसे भूल सकता मैं वो मुलाकातें ।।
वैसे तो किस्मत की रही बेवफाई
मगर पल जो साथ थे समझूँ सौगातें ।।
पलपल के किस्सों को अब आज उकेरूँ
खोकर उन पलों में बीतें गम की रातें ।।
ये हवा के झोंके ....हैं किसने रोके
अब भी न खत्म किस्मत की वो घातें ।।
कभी कड़कती धूप हुई जो राहों में
बन गई तेरी यादें 'शिवम' ज्यों कनातें ।।
दिल में तेरा बसा न होता जो ये नूर
न कटतीं अमा की स्याह रात विरातें ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 26/08/2019
हर लम्हा मैं कुदरत के
करीब हो जाऊँ...
मेरी रूह एक सुकून में खो जाए ...
न कोई कोलाहल हो...
न हो कोई व्यग्रता...
सब दुःख भूल कर...
ऐसी मदहोश हो जाऊं...
दूर किसी मंदिर से आती ...
घण्टियों की मधुर धुन...
और गूंजता मंत्रोच्चार
का पावन संगीत...
हर दिशा दिशा पुकारे
जैसे लेकर मेरा नाम...
प्रतिध्वनि कुछ ऐसी!
कि खुद से खुद की
पहचान करा जाऊं...
इस अनुगूंज में ऐसी खो जाऊँ ...
कि धन, पद, मान सब छोड़
कर बस प्रभु की हो जाऊँ....
स्वरचित 'पथिक रचना'
नमन भावों के मोती मंच
26/08/2019
🍂 पल/लम्हे 🍂वह लम्हें कितने अच्छे थे....
जब तुम मुस्काया करते थे
तेरी आँखों के सागर में
जब मेरे अक्स उभरते थे
जब थाम के यूँ तुम हाथ मेरा
आश्वास जताया करते थे
वह लम्हें कितने अच्छे थे...
जब भी तुम हँसकर मुझको
इक चपत जमाया करते थे
और सोने जो लग जाऊँ मैं
गुदगुदी लगाया करते थे
मेरी इक आवाज जो सुन लो
तुम भागे आ जाते थे
वह लम्हें कितने अच्छे थे....
जब किसी खेल में हारूँ तो
तुम बहुत चिढ़ाया करते थे
और जब मैं रुठ जाती थी
तुम मुझे मनाया करते थे
यूँ हीं बेमतलब दूर कहीं
हम दूर कहीं हो आते थे
वह लम्हें कितने अच्छे थे...
तुम मेरी सुबह के सूरज
जीवन में रंग यूँ भरते थे
जब भी होती थी धूप कभी
तुम छतरी बन कर तनते थे
मेरी खुशियों के लिए सभी
तकलीफ उठाया करते थे
वह लम्हें कितने अच्छे थे...
तुम हीं मेरी अमावस में
दीपक प्रकाश बन जलते थे
तुमसे हीं थी चाँद रात
बन चादर लिपटे रहते थे
मुझपर कोई मुश्किल आये
"मैं हूँ न" ऐसा कहते थे
वह लम्हें कितने अच्छे थे...
संग तेरे चाहे आँधी हो
मेरी हिम्मत बन जाते थे
चाहे टूटे बिजली कोई
तुम मेरा साथ निभाते थे
मुझको घमंड हो जाता था
जब हाथ पकड़ तुम लेते थे
वह लम्हें कितने अच्छे थे...
फिर धीरे से सबकुछ बदला
था वक्त रेत जैसे फिसला
हम मिलने से मजबूर हुए
और दो दिल गम से चूर हुए
कुछ घाव दिलों में गहरे थे
वादों के धागे कच्चे थे
वह लम्हें कितने अच्छे थे...
स्वरचित 'पथिक रचना'
नमन मंच भावों के मोती
26 /8 /2019 /
बिषय,,, ,,,पल,,,
खबर नहीं है कुछ पल की
क्यों बात करे हैं पल की
आज नहीं तो कल,, कल नहीं तो परसों
ऐसा कहते कहते प्यारे बीत जाऐंगे बरसों
इस पल के हैं तो होते अनेकों रंग
जग से जीता वही जिसने पहचाने ढंग
पल भर में राजा पल में भिखारी
पल भर में हो जाए इंद्रासन का अधिकारी
सांसों का भी नहीं पल पल का भरोसा
न जाने किस वक्त दे जाए हमें धोखा
जिंदगी के कुछ पल हों मनभावन
वरना यूं ही बीत जाए जैसे सूखा सावन
मलय पवन सा सुवासित कर देगा पल
वर्तमान संवार लें संवर जाएगा कल
स्वरिचत ्् सुषमा ब्यौहार
भावों के मोती
बिषय- पल
जिंदगी को बनाने
या बिगाड़ने के लिए
एक पल ही काफी है।
एक गलत फैसला
जिंदगी का सुंदर रूप
बदरंग बना देता है।
एक कदम गलत राह पर
मंज़िल तक न पहुंचाकर
गर्त में गिरा देता है।
एक पल की गलत सोच
सालों के रिश्तों को
चुटकी में मिटा देती है।
इसलिए दोस्तों!
एक पल के लिए भी
अपनी सोच व कदम को
भटकने न देना।
वरना पड़ेगा तुम्हें
जिन्दगी भर पछताना।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
नमन मंच -- भावों के मोती
26/08/2019
सोमवार
विषय -पल
विधा - मुक्त छंद कविता
वो पल हमारे
कशिश भरे
याद है तुमको?
जो हमने तुमने
मिल कर बोयी थी!
अपनी ज़िंदगी की
मीठी सी नींव!
उसकी कशिश!
उसका अहसास!
आज भी जिंदा है!
जब, तुमने मुझे छुआ था
कांप उठे थे तुम भी!
खिल उठे थे,
हमारे गुनगुनाते अरमान
मैं!आज भी वहीं हूं!
तुम कहां खो गये?
मैं! आज अकेली
वही पल लिये
टटोलती रहती हूं!
उस मिट्टी को
जिसमें बसी है
तुम्हारी सोंधी खुशबू
जो आज भी मेरी
रुह में बसी है
तुम्हारे कशिश के साथ
बन कर एक मधुर अहसास
स्वरचित डॉ.विभा रजंन(कनक)
विषय:पल
विधा पिरामिड
ये
पल
चंचल
अविरल
मन निश्छल
भाव है मंगल
बहता कल कल।
है
भाग्य
उदय
सूर्योदय
हो ञानोदय
पल नवोदय
निखरू सर्वोदय ।
हाँ
पल
अटल
करतल
न आए कल
आकंशा का हल
मन उडता चल।
स्वरचित रचना
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
विषय- पल
सादर मंच को समर्पित -
🌹☀️ मुक्तक ☀️🌹
*************************
🏵 पल 🏵
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
जीवन की नित भाग-दौड़ से
फुरसत निकालें मनन को ।
भँवर जाल में फँसते रहते
कुछ पल चुरालें भजन को ।
है अनमोल मिला यह जीवन
बुद्धि, विवेक प्रयोग करें--
मानव तन को सार्थक करने
सत पथ बनालें गमन को ।।
🌲🌻🌷 🌾🌺
☀️🌴**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
मन भावों के मोती🙏
26/8/2019
विषय-पल
🥀🌹🥀🌹🥀
मंज़िल पर नज़र ज़रूर रखें
पर रास्ते के सुहाने मंज़र का
मज़ा भी लीजिए ..!
ख्वाबों के आसमाँ में बेशक उड़ें
पर पांव ज़मीं पर रख कर ही
चला कीजिये..!!
छोटी सी तो है ज़िंदगानी
जी भर के सुनहरे पलों को
जी लीजिए..!
गमों के कड़वे घूंट गर
पीने पड़ें तो हँस कर
पी लीजिए..!
अजी,छोड़िए कल की बातें
उन्हें गुजरे पल में ही
रहने दीजिए..!
आज का सुहाना पल जो मिला है
बस उसी में भरपूर जीवन
जी लीजिए...!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
26/08/2019
"पल"
**********************
सुख-दु:ख तो आनी जानी है
दूनिया की यही कहानी है..
मर-मर कर हम क्यों जीएँ..
हर गमों को भूलकर......
पल दो पल खुशी से जी लें।
मेरा तेरा नहीं कुछ भी यहाँ
जग में प्यार मिले तो कहाँ..
नफरतें क्यों दिल में पाले...
प्रेम से हम जीत लें जहां..
पल दो पल प्यार बाँटें....।
जिंदगी तो है मौत के हवाले
अहंकार क्यों मन में पालें....
देना क्यों जहर के प्याले...
किसी के दिल में न हो छाले
पल दो पल हँस-बोल लें....।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंदिश ।।
नमन "भावो के मोती"
26/08/2019
"पल"
**********************
कभी हँसाते.कभी रुलाते पल
खट्टे पल..... मिठे पल......
खुशियों के पल.......
मिला कभी गमगीन पर..
व्यस्तता से भरे हों पल...
कभी अवकाश मिला पल
आशा की किरण जगाता पल
निराशा के बादल छाता पल..
मिलन महकाता पल...
जुदाई तड़पाए पल....
अरमान मचलते पल..
पाँव थिरकते पल....
दिलों को जोड़ते पल...
सपनें सजाते पल...
सफलता चूमते पल..
विफलता रुलाते पल..
धूप और छाँव के पल...।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।।
26/8/2019
नमन मंच भावों के मोती।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
पल
पिरामिड लेखन
1
ये
पल
अमूल्य
बहुमूल्य
बीते ना पल
कर डालो अभी
छोड़ो ना कल पर
2
है
पल
बस ये
बहुत हीं
बेशकीमती
हीरे से भी ज्यादा
सोने से भी कीमती
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
नमन मंच
भावों के मोती
विषय-पल
हर पल इंतजार करता रहता सारा जमाना,
कब आएगा वो पल मिलेगा खुशी का खजाना।
जीवन में झूठ फरेब दगाखोरी से बैचेन लोग-
चाहते है अब वफादारी से सबको हँसाना।
जिंदगी हमारी चाहे कैसे भी गुजरी हो।
पर अंत समय जो पल भी सुधरी हो।
गलतियों पर रिश्तों से क्षमा दान मिल जाएं,
समझ लो स्वर्ग की राह खूद ही संवर जाएं।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
नमन भावों के मोती
दिनांक - २६/०८/२०१९
दिन - सोमवार
विषय - पल
--------------------------------------------
पल - पल बीत रहा है ये पल,
आज ये कल में रहा है बदल।
आते जाते पल में हम-सब -
ढलते जाते हैं बस पल पल।
आज गुजर कर कल होता है,
कल फिर बीता कल होता है।
कल,आज और कल के पीछे-
ये जीवन पल - पल होता है।
पल में वक्त बदल जाता है,
पल में पल ये ढल जाता है।
बात बिगड़ जाते हैं पल में-
पल में बात संभल जाता है।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित
दिनांक :-26/08 /19
विषय :- पलओस की बूँदो को,
पत्तों पर बिखरते देखा है।
हमने पल भर में,
इंसानों को बदते देखा है।
जुगनुओं को,
रातों में चमकते देखा हैं।
हमने पल भर में,
किस्मतो को बदलते देखा है।
अरमानों को,
आसूंओ में बहते देखा हैं।
हमने पल भर में,
रिश्तों को बदलते देखा है।
पल भर की,
अब बात करे क्या
हमने एक पल को,
पल भर में बदलते देखा हैं।
Uma vaishnav
मौलिक और स्वरचित
विधाःः काव्यः ः
सचमुच यहाँ खुशी का अहसास हो जाऐ।
पल दो पल यदि प्रभु का साथ मिल जाऐ।
क्या पता कब ये सौभाग्य मिल पाऐ मुझे,
चाहता यही कुछ उसका साथ मिल जाऐ।
नहीं मालूम मैं कब तलक जिंदा रहूँ यहाँ,
ईश कुछ पल सत्संग साथ मिल जाऐ।
लेलो सारी धरोहर जो हमको बख्शी है,
बस पल दो पल ही तेरा साथ मिल जाऐ।
निशदिन लिपटा हुआ इन वासनाओं से,
कुछ पल के लिए अच्छा साथ मिल जाऐ।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्री राम राम जी
भावों के मोतीविषय - पल
दिनांक - 26/08/19
विधा - सोनेट
***********************
सिर्फ तुम ही तो नहीं थे उस रात
वरना आसमां को देखते
मेरी बाहों में सिमटते पिघलते
और सुनते सितारों की मधुर बात ।
बेसुध हवाएं जब कैद कर रही थी
कांपते पत्तों को आगोश में
मंद रोशनी समा रही थी झील में
तुम्हें शायद मैं महसूस कर रही थी ।
ये कैसा सवाल था जिंदगी का
तुम कविता और मैं क्यों काव्यांश ?
तुम गीतिका और मैं क्यों गद्यांश ?
सांसें गिन रही थी शेषांश जिंदगी का ।
यही तो था उस #पल सबकुछ तुम्हारे पास
मेरी कल्पना सत्य और चिरंतन विश्वास ।
#स्वरचित ....
....अनिमा दास ...
कटक , ओडिशा
दिनांक-26/8/2019
शीर्षक- "पल"
विधा- कविता
**************
जिंदगी की भाग-दौड़ में,
सुकून के पल ढूंढ रही हूँ,
मैं उसे और वो समझे मुझे,
साथी एक ऐसा ढूंढ रही हूँ |
बीते पलों में लगी जो धूल,
आज मैं उन्हें पोंछ रही हूँ ,
इंटरनेट के इस जमाने में,
चिट्टी वाला साथी ढूंढ रही हूँ |
पल-पल जिंदगी रेत समान,
फिसल रही है मेरे हाथों से,
रेतीली जिंदगी थाम ले कोई,
ऐसा हमसफर मैं ढूंढ रही हूँ |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
25/08/19
विषय-पल
रोने वाले सुन आंखों में
आंसू ना लाया कर
बस चुपचाप रोया कर,
नयन पानी देख अपने भी
कतरा कर निकल जाते हैं।
जिंदगी की आंधियां "पल-पल"
बुझाती रहती है जलते चराग,
पर जो दे चुके भरपूर रौशनी
उनका एहसान कभी न भूल
उस के लिए दीप बन जल।
जिस छत तले बसर की जिंदगी
तूफानों ने उजाड़ा उसी गुलशन को ,
गुल ना कली ना कोई महका गूंचा
बिखरी पंखुरियों का मातम ना कर
फिर एक उड़ान का हौसला रख ।
सुख के वो बीते "पल "औ लम्हात
नफासत से बचाना यादों में,
खुशी की सौगातें बाधं रखना गांठ,
नाजुक सा दिल बस साफ रहे
मासूमियत की हंसी होंठों पे सजी रहे।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक :26.08.2019
विधा- पिरामिड
शीर्षक:पल
1.
हैं
पल
कीमती
बहुमूल्य
घड़ी बताती
समय का सही
अहसास कराती
2
दो
पल
घड़ी की
टिक टिक
सुइयाँ बड़ी
समय की कड़ी
अहसासों की लड़ी
हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा
(स्वरचित)
विषय :- "पल"
दिनांक :- 26/8/19.
"गीत"
*******
वो ही था सुमधुर पल,जो बिसर गया।
जब हुआ, तेरा मेरा पहला मिलन।
प्यार की दिल में थी इस मीठी चुभन।
अनकहे कुछ बोल, अधरों पर तेरे,
लगायी जिन्ह दो दिलों, में थी अगन ।
प्रेम-दाह में तप के, दिल निखर गया।
वो ही था सुमधुर पल, जो बिसर गया।
चांदनी रातों में, अंबर के तले।
प्रेम बेल में फूल बगिया में खिले।
चुपके चुपके छुपके सारी दुनि से,
प्रेम दिवाने पखेरू छत पर मिले।
नया सा उजास, चार-शू बिखर गया।
वो ही था सुमधुर पल,जो बिसर गया।
सुहानी छिटकी थी, छत पर चांदनी।
सामने सूरत थी, इक मन भावनी।
बिछ गई थी रूप की रश्मि गगन तक,
रूप तेरा था या, नभ में दामिनी।
लख नजारा रूप का, मैं सिहर गया।
वो ही था सुमधुर पल,जो बिसर गया।
हम जगे थे, नींद में खोया था जग।
पशु-नर सब, नींद के आगोश में खग।
सन्नाटा चारों तरफ, था गांव में,
सोये गली - कूचे, थे सुनसान मग।
आंख खुलीं स्वप्न था,वो बिखर गया।
वो ही था सुमधुर पल,जो बिसर गया।
आज का विषय , पल
दिन, सोमवार
दिनांक, 26,8, 2019.
अनमोल है हर पल जीवन का,
सदुपयोग हमें करना होगा ।
भगवान की दी इस थाथी का ,
सोच समझ खर्चा करना होगा।
रहे धार समय की तेज बहुत ,
तेरा आलस बाधा बन जायेगा।
सुख सुविधा का दीवानापन ,
हमें ईश्वर से दूर ले जायेगा ।
परहित से बड़ा तप कोई नहीं,
आँसू को मुस्कान भेंट में देगा।
जब झोली भरेगी दुआओं से,
सार्थक जीवन हो जायेगा ।
पल पल जन हितार्थ सोचना,
दुश्मन पे भारी हर पल पड़ना।
जननी जनक की सेवा हरपल,
ये मकसद जीवन का रखना।
सदा मन में स्मरण हो हरी का,
कर्तव्यों का निर्वहन रहे चलता।
जो उद्देश्य सही हो जीवन का,
फिर आनंद आयेगा हर पल का।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
विधा : हाइकु
१.
पल्वित पल
पुलकित अंतस
पराग सांसें
२.
प्रेमालोकित
पुष्पित प्रतिपल
पारस तन
३.
क्षणभंगुर
जल का बुलबुला
जीवन पल
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२६.०८.२०१९
भावों के मोती
विषय - पल
मान जाओ न रूठो अब प्यारे सनम
लगा कर गले से बुझा दो अगन
यह मौसम बहारों के यह सुन्दर से पल
क्या पता जिन्दगी में न आएं यह कल
पल दो पल की जिन्दगी में
न रहे कोई शिकवा गिला प्यार में
कोई छेडो़ तराना बडे़ प्यार से
और गाओ गजल तुम बड़े राग से
धड़कनें भी हैं कम और साँसें भी कम
जा रही हैं बहारें और जिन्दगी है कम
आ जाओ मिटा दो यह सारा भरम
एक पल मैं निहारूँ फिर जाऊँ सनम
स्वरचित
संध्या गर्ग त्रिपाठी
धन्यवाद "भावों के मोती,
नमन --- भावों के मोती
विषय --- पल
दिनांक --- 26 - 08 - 2019
हर पल की खामोशी में
यूं ही रहे हमारा साथ
आ जी लें हर पल
थामे एक दूसरे का हाथ
जिंदगी का कोई भरोसा
नहीं मेरे हमदम
दिल से जियें जिंदगी
हरदम हर कदम
तु रहे हमेशा मेरे साथ
हर गम हर खुशी में
चाहे दुनिया साथ
रहे न रहे उस पल में
किसी की परवाह
अब हमको न करना
मेरे जीवन साथी
हर पल साथ में रहना ।।
दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
नमन मंच भावो के मोती |
विषय,,पल |
पल पल बीत रही जिदंगी |
हंसकर जीलो हर पलको |
न करो ऐसे कर्म कोई ऐसा |
सांसे लेना कठिनहो जाय |
सुख दुख के पल आते जीवन में|
सहेज लो सुनहरे पलो की यादो को |
ये ही पल देते हिम्मत व होंसला |
जब कुछ फल आते कठिनतम जीवन मे |
चल संभलकर राह पर राही ऐसे
कोन सा पल अतिंम हो जीवन का |
स्वरचित ,,दमयंती मिश्रा
जय माँ शारदा
..सादर नमन भावों के मोती..
दि. - 26.08.19
विषय- #पल
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित....
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"#गीतिका"
मोल करो पल पल का प्यारे जीवन में पहचान तभी है |
चलो समय सँग कदम मिलाकर तो निश्चित उत्थान तभी है ||
बीत रहा हर पल कहता है मैं वापस फिर न आऊँगा,
मुझे सँवारोगे जब तुम तो सच मानो यशगान तभी है |
कम होते हर पल में जीवन-मृत्यु का अंतर कम होता,
बात समझ लो सीधी सच्ची ये जीवन आसान तभी है |
मत बैठो तकदीर सहारे कर्म पथिक बन चलते जाओ,
सीख यही देता है हर पल पूरा हर अरमान तभी है |
हैं अनमोल बड़े जीवन के ये पल इनको जी लो जी भर,
याद करे ये दुनिया इक दिन तो सच्चा सम्मान तभी है |
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प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
कभी लहरों से टकराये कभी गम में डूबे
कभी टूटे कभी हौसलों की उड़ान भरी
हर पल को हमने शिद्त जिया .
कुछ पीछे छूट जाता हैं
कोई रूठ जाता हैं
कुछ बदल जाता हैं
पर जिंदगी के अनमोल पल दिल में रह जाते हैं .
हर गुजरते पल के साथ याद आता हैं
फिर भी आरजू हैं बचपन का पल फिर आ जाये
फिर से गुड्डे गुड़ियों का खेल हो
संग सखियों का मेल-जोल हो .
वो पल भी बहुत खूब थे
दिल के हम अमीर थे
जिंदगी में ख़ुशी के पल अनमोल थे
फिर से लौट आये काश वो पल अनमोल .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
#स्वरचित
मन् भावों के मोती
दिनांक:26/08/2019
विषय:पल
विधा:हाईकु
काल का चक्र
पल भर न रुके
जीव भरमे
चाँद का प्यार
हर पल रहता
ढूढ़ें चकोरी
समा जलती
परवाना जलता
पल में राख
प्रलय स्थिति
जिन्दगी डांवाडोल
नाजुक पल
प्रभु भजन
पल भर न भूलें
जीवन धर्म
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
बिषयःः# पल#
विधाःः ःःमुक्तक
आओ पल दो पल बांहों में समाऐं।
पल भर सही मगर सांसो में समाऐं।
नाव मझधार में पहुंच रही अपनी,
सुखद पलों को एक दूजों में समाऐं।
बची पल दो पल की जिंदगी हमारी।
बीच मझधार नैया भटकी हमारी।
कुछ पलों में हम सभी डूब जाऐंगे,
अब सिर्फ शेष ईश वंदगी हमारी।
पतवार किसे सोंपी कैसे बताऐं।
बीच मझधार अटके कैसे सुनाऐं।
है गुहार अब गिरधारी से हमारी,
कोई पल गंवाऐं जैसे बचाऐं।
स्वरचित ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जयजय श्री राम राम जी
शुभ संध्या
विषय -- पल
द्वितीय प्रस्तुति
अगले पल क्या हो जाय नही पता
फिर भी हम करें सदा यही ख़ता ।।
आने वाले पल में मन रहें डुबोय
क्या पता वो हो तूफां से लदा ।।
वर्तमान की कदर करना सीखिये
बीते पल अगले पल को क्या सदा ।।
एक एक पल मोती बन दमके
जानो वो कला और सुलह रज़ा ।।
दीन हीन के मददगार बनो तुम
इंसानियत से खुद को लो सजा ।।
पल की कीमत जो करे यहाँ 'शिवम'
आने वाले पल बन आय फ़िज़ा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 26/08/2019
द्वितीय कृति
एक दो पल की जिंदगी है
कुछ इसमें अद्भुत कर लेते।
निज स्वार्थ में रत रह कुछ
लेते लेते सब कुछ खो देते।
पल दो पल जीने के खातिर
राम कृष्ण मानव बन आये।
जीवन सौंपा जनहित में नित
नए प्रसून जग चमन खिलाये।
पल पल में परिवर्तन होता
कालचक्र चलता रहता है ।
अमर आत्मा होती जग में
गीता का सदेश कहता है।
हर पल को उत्सवमय जीओ
पल पल बड़ा मूल्यवान है।
जिसने पल को समझ लिया है
वह धरा पर विद्व सुजान है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा-हाईकु
विषय-पल
१
मधुर पल
जीवन महकाए
कष्ट भगाए
२
खुशी के पल
सुखद अहसास
मन में तृप्ति
३
जीवन बेला
पल -पल बदले
दिल समेटे
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
26/8/19
सोमवार
सादर नमन
विषय- पल
"पल"
मधुर पलों को,
तुम समेट लो,
मन में रख मिटे भाव,
दिल सबका जीत लो,
हर पल बदलती है दुनियाँ,
किमत हर पल की जानों,
द्वेष भाव सब भूल कर,
आत्म ज्ञान को पहचानों ,
दुख सुख की लहरों को,
स्नेह सरिता बना लो,
खिला प्रेम के फूलों को,
बगिया अपनी महका लो,
सुंगधित पलों की,
कीमत पहचान कर,
फूलों संग हैं काँटें भी,
फिर भी जीना है हमें हंंसकर।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
26/8/19
सोमवार
नमन मंच भावों के मोती
26/08/19
शीर्षक - पल
मेरी यह बात सब मान लो
पल में बदल जाती है लोगों की किस्मत
पल की कीमत अब पहचान लो |
कोई बना है राजा से रंक भी
कोई बन सकता है पल में रंक से राजा भी
सब दे या ले जाए मेरी यह बात सब मान लो |
कभी चमक जाती है दुनिया तो कभी
खुशियां ले आती तो पल में गम दे जाए
पल के हर रुप को अब सब जान लो |
प्यार की नदी में गोता लगाते रहो
पल सिमित दिए हैं प्रभु ने गिन चुनकर
आनंद के पल को आंखों में सब बसा लो |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
नमन मंच
विषय :--पल
विधा--मुक्त
दिनांक :--26 / 08 /19
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खुदा ने जन्म देकर
पल की गाँठ
दामन में बाँध दी
सफर लंबा
उमर छोटी कर दी
चार पल की
जिंदगी में
इक पलजब
टूट कर गिरा
नन्हा सा था
पर..........
दुनियादारी से दूर
नटखट, शरारती
हर गम से
अंजान था
दूसरे पल पर
जमाने का बोझ
फर्ज और कर्म का
भार था
पर जोश ए जवानी
का जुनून
सारे जहान के
दर्द से लबरेज था
सफर का तीसरा लम्हा
कुछ गतिशील
कुछ निढाल था
कभी अपनी
कभी जमाने की
बीमारी से ग्रस्त रहा
चौथा पल जो आया
वो नटखट भी
बेजार भी
कभी मचलता
टाफी के लिए
कभी चाहता गोली वो
चाहत दौड़ लगाने की
तो शब्दों की
दौड़ लगा लेता
बैठे -बैठे भी
घरभर को अपने
चारों ओर
नचा लेता
यूं रब की
चार पलों की
गाँठ ........
धीरे -धीरे-धीरे
खुलती है।
डा. नीलम
भावों के मोती
26/8/19
विषय - पल
विधा- मुक्तक
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मान हो, सम्मान हो
नारि देश का अभिमान हो
जब होगा ऐसा कल
तब होगा सुनहरा पल।।
2
छोटा न कोई खोटा हो
बेटी हो या बेटा हो
प्रेम बराबर हिस्सा होगा
स्वर्णिम पल तब होगा ।
3
होगा शिक्षित हर बालक
जब जागेगा हर पालक
ज्ञान की धारा बहे कलकल
आगे भारत बढ़े पल-पल ।
4
रिश्तों में ना हो छल
स्वार्थ से ऊपर ,प्रेम निश्छल
विवाद घिरे तो विचार हो हल
घर घर खुशियाँ आये हर-पल ।
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क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
दिनांक २६/८/२०१९
शीर्षक-"पल"
बेटी की विदाई, भिंगोय मन पल पल
माँ लेती बलइया,दे रही आशिष हर पल।
हर पल हो सुहाना तेरा, खुशियाँ बरसे आँगन सदा।
सुखी रहें घर परिवार,प्रभु रखें सदा खुशहाल।
राह निहारे,हम तुम्हारे
पल पल तेरी याद सताये
हर पल नजर दरवाजे पर जाये
वो पल जल्दी क्यों न आये
जिस पल तू दरवाजे पर आये।
तांका
सुन्दर पल
एहसास जगाते
खुशियाँ संजोए
हो प्रोत्साहित मन
सफल हर कर्म।
सुन्दर पल
प्रकृति निहारते
सौन्दर्य जागे
हो सफर सुहाना
मंजिल उपहार।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
नमन " भावों के मोती "
पटल
दिनांक : 26.08.2019
वार : सोमवार
आज का कार्य :
विषय : पल
विधा : काव्य
गीत
" पल दो ही मिल जाये "
बन्धन है जकड़े से ,
कहाँ उड़ाने !
अधरों पर सजते हैं ,
कभी तराने !!
रेशम रेशम सपने ,
छुई मुई से !
अपनों से मिलते हैं ,
भेंट सरीखे !
हँसने के भी ढूंढे ,
रोज़ बहाने !!
चाह पले हरजाई ,
कोने कोने !
रंग दिखाया करती ,
बड़े सलोने !
पास हमारे जो भी ,
चले सजाने !!
रंग भरा करते हैं ,
कोरे पल में !
मुश्किल है कुछ पाना ,
कोलाहल में !
पल दो ही मिल जाये ,
मिले सुहाने !!
हासिल क्या होना है ,
गुणा भाग ना !
उड़ते ही जाना है ,
थके कभी ना !
समय कहाँ मुट्ठी में ,
जो चले भुनाने !!
रोज परीक्षा देते ,
चढ़े कसौटी !
याद सँजोई हमने ,
छोटी छोटी !
किस्मत बदला करती ,
रोज़ ठिकाने !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
इस दिल को हसरत है
तेरे आवन की
पलकों को भी इजाज़त नहीं
इक पल झपकने की
जो ये चिलमन गिरे
और मेरा दिलबर
आकर चला जाए
मेरी चाहत तो कुछ
इस कदर है मिलने की
क़ि तेरी वंशी की लकड़ी बन
तेरे अधरों पे सज जाऊँ
तूँ बने दहिया और मै
मटकी बन माखन में मिल जाऊँ
तुम बन के फूल खिलो मेरे दिल में
मै धागे में बिंधकर
तेरे हृदय से लिपट जाऊँ
छोटी सी विनय है मोहन
तेरे चरणों की ऱज़ बनकर
ये जीवन धन्य कर पाऊँ
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
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