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ब्लॉग संख्या :-484
प्रथम प्रस्तुति🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
वो प्यार बना गले का हार
न रार न इन्कार न इकरार ।।
अप्रितम अनुभूति गयी नही
मंहका रहा दिल का दयार ।।
उसी मँहक को चुन चुन के अब
करूँ मैं ...यह कविता तैयार ।।
सबके मन को भा जाती है
बस यही एक है पुरस्कार ।।
नसीब तो सदा रूठा रहा
कोई स्वप्न न करा साकार ।।
इक कवि का खिताब पाकर के
ज्यों हुई ......पूरी हर दरकार ।।
अलंकरण यह कविताई का
देवे सन्तुष्टि 'शिवम' अपार ।।
नही मिलता तो कुछ भी न था
रोता ही .... जाता मिरे यार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/08/2019
वो प्यार बना गले का हार
न रार न इन्कार न इकरार ।।
अप्रितम अनुभूति गयी नही
मंहका रहा दिल का दयार ।।
उसी मँहक को चुन चुन के अब
करूँ मैं ...यह कविता तैयार ।।
सबके मन को भा जाती है
बस यही एक है पुरस्कार ।।
नसीब तो सदा रूठा रहा
कोई स्वप्न न करा साकार ।।
इक कवि का खिताब पाकर के
ज्यों हुई ......पूरी हर दरकार ।।
अलंकरण यह कविताई का
देवे सन्तुष्टि 'शिवम' अपार ।।
नही मिलता तो कुछ भी न था
रोता ही .... जाता मिरे यार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/08/2019
सुप्रभात "भावो के मोती"
22/08/2019
"गले का हार"
***************************
साजन ही चले जो गए...
क्या करुँ अब गले का हार।
साजन बिना ये लगे बेकार..
फंदा सा लगता गले का हार।
कितनी यादें जुड़ी है इसमें..
अब तो चुभता गले का हार।
जाने का सोचा था तुमने जब..
संग अपने ले जाते गले का हार।
अगर संदेशा कोई देकर जाते...
सजाए मैं रखती गले का हार।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
22/08/2019
"गले का हार"
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साजन ही चले जो गए...
क्या करुँ अब गले का हार।
साजन बिना ये लगे बेकार..
फंदा सा लगता गले का हार।
कितनी यादें जुड़ी है इसमें..
अब तो चुभता गले का हार।
जाने का सोचा था तुमने जब..
संग अपने ले जाते गले का हार।
अगर संदेशा कोई देकर जाते...
सजाए मैं रखती गले का हार।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
नमन मंच भावों के मोती
22/ 8 / 2019 /
बिषय ,, "गले का हार"
ममत्वमूर्ति माँ के बच्चे सदैव गले के हार
सुख दुख में हाथ फैलाए तत्पर तैयार
वहीं प्रेयसी प्रियतम से डाल गले बैंयां करती मनुहार
कितने नेह से साजन सजनी
डाल गले बैंयां बने हुए बांहों का हार
अति अनुपम पावन है परस्पर इनका प्यार
नेताजी गौरान्वित होते पाकर निज गले में हार
इक मंदिर की की मूरत में बरसाता भक्तों का प्यार
नव युगल इक दूजे को पहनाकर
बसाते नया घर परिवार
वहीं अर्थी में सजता छूट गया जिसका संसार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
22/ 8 / 2019 /
बिषय ,, "गले का हार"
ममत्वमूर्ति माँ के बच्चे सदैव गले के हार
सुख दुख में हाथ फैलाए तत्पर तैयार
वहीं प्रेयसी प्रियतम से डाल गले बैंयां करती मनुहार
कितने नेह से साजन सजनी
डाल गले बैंयां बने हुए बांहों का हार
अति अनुपम पावन है परस्पर इनका प्यार
नेताजी गौरान्वित होते पाकर निज गले में हार
इक मंदिर की की मूरत में बरसाता भक्तों का प्यार
नव युगल इक दूजे को पहनाकर
बसाते नया घर परिवार
वहीं अर्थी में सजता छूट गया जिसका संसार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
गले का हार
💐💐💐💐
जिसने दिया जन्म धरती पर,
गाएं गुण उस ईश्वर के दिन भर।
भजन करूं दिन रैन,
तब कुछ आए चैन।
कभी देखा नहीं उसे,
फिर भी याद आए हर बार।
उस परमपिता का रहूं आभार,
वो बन गया मेरे गले का हार।
सुख हो या आए कितने दुःख,
एक वही याद आये।
इसीलिए वही परमेश्वर,
गले का हार कहलाये।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
नमन भावों के मोती,
आज का विषय, गले का हार
दिन, गुरुवार
दिनांक 22, 8, 2019,
जीव अमर सबको पता,
माया जाल शरीर ।
लीपा पोती देह की ,
रहता जीव अधीर ।।
मोती - मोती को मिला,
बना गले का हार ।
श्वांस - श्वांस पर टिका ,
रहे देह का भार ।।
मोल नहीं इस देह का,
जिसकी साज सँवार ।
मनका कर हरि नाम का,
बना गले का हार ।।
माया ममता ना टिके,
चले साथ हरि नाम ।
दौलत जहाँ हराम है ,
छोड़ कपट भज राम ।।
नेह मीत रख पास में ,
निष्कपट व्यवहार ।
दिल से दिल जो जुड़ गया,
वही गले का हार ।।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
आज का विषय, गले का हार
दिन, गुरुवार
दिनांक 22, 8, 2019,
जीव अमर सबको पता,
माया जाल शरीर ।
लीपा पोती देह की ,
रहता जीव अधीर ।।
मोती - मोती को मिला,
बना गले का हार ।
श्वांस - श्वांस पर टिका ,
रहे देह का भार ।।
मोल नहीं इस देह का,
जिसकी साज सँवार ।
मनका कर हरि नाम का,
बना गले का हार ।।
माया ममता ना टिके,
चले साथ हरि नाम ।
दौलत जहाँ हराम है ,
छोड़ कपट भज राम ।।
नेह मीत रख पास में ,
निष्कपट व्यवहार ।
दिल से दिल जो जुड़ गया,
वही गले का हार ।।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
नमन भावों के मोती
विषय गले का हार
विधा कविता
दिनांक 22.8.2019
दिन गुरुवार
गले का हार
🍁🍁🍁🍁
सबसे बडा़ होता उपहार
खुशियाँ यहीं होती साकार
जब खिलखिलाकर बच्चा
डालता गले बाहों का हार।
यह दृश्य होता कितना निर्मल
जब प्रेमाश्रु बहते छल छल
सागर प्रीत का उमड़ आता
हो उठती सजीव कविता उस पल।
नन्हें हाथों में अदभुत हिलोर
कितनी पावन है यह डोर
इस हार पर न्योछावर सब कुछ
यहाँ समर्पित मन का मोर।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विषय गले का हार
विधा कविता
दिनांक 22.8.2019
दिन गुरुवार
गले का हार
🍁🍁🍁🍁
सबसे बडा़ होता उपहार
खुशियाँ यहीं होती साकार
जब खिलखिलाकर बच्चा
डालता गले बाहों का हार।
यह दृश्य होता कितना निर्मल
जब प्रेमाश्रु बहते छल छल
सागर प्रीत का उमड़ आता
हो उठती सजीव कविता उस पल।
नन्हें हाथों में अदभुत हिलोर
कितनी पावन है यह डोर
इस हार पर न्योछावर सब कुछ
यहाँ समर्पित मन का मोर।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
नमन मंच भावों के मोती
दिनांक-22/08/2019
दिन-गुरुवार
विषय-गले का हार
**********************
माँ भारती के गले का ,
है हार वन्देमातरम,
बंकिम,भगत,सुखदेव की ,
तलवार वन्देमातरम!
ये तान और तरंग है ,
मदमस्त खिलते बहारों का,
आकाश के बहते पवन की ,
धार वन्देमातरम!
हो रहे है वासित कुसुमदल ,
खिल रही है प्यारी क्यारियां,
दुल्हन बनी है ये धरा ,
ओढ़ी है धानी चुनरियां!
मधुर सी मुस्कान ,
चिरंतन प्यार वन्देमातरम!
माँ भारती......
एक सिहरन ये उदधि का है,
एक कम्पन ये पवन का है,
एक चन्दन ये धरा का है,
एक स्पंदन गगन का है!
है सर्वदा जो बरसता ,
मनुहार वन्देमातरम!
माँ भारती.....
माता तेरे शेर जैसे ,
बेटों की ये है गर्जना,
शत्रु भय से कांपे थर-थर ,
दुश्मनों की है तर्जना!
जुल्मो की आवाज का ,
प्रतिकार वन्देमातरम!
माँ भारती....
ज्ञान,धर्म,चरित्र से करता,
सबको है धन्य धन्य,
प्राणों का संचार है करता ,
हृदय का है ये चैतन्य!
पुण्यप्रद,पावन गुणों का ,
अंबार वन्देमातरम!
माँ भारती...
स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
दिनांक-22/08/2019
दिन-गुरुवार
विषय-गले का हार
**********************
माँ भारती के गले का ,
है हार वन्देमातरम,
बंकिम,भगत,सुखदेव की ,
तलवार वन्देमातरम!
ये तान और तरंग है ,
मदमस्त खिलते बहारों का,
आकाश के बहते पवन की ,
धार वन्देमातरम!
हो रहे है वासित कुसुमदल ,
खिल रही है प्यारी क्यारियां,
दुल्हन बनी है ये धरा ,
ओढ़ी है धानी चुनरियां!
मधुर सी मुस्कान ,
चिरंतन प्यार वन्देमातरम!
माँ भारती......
एक सिहरन ये उदधि का है,
एक कम्पन ये पवन का है,
एक चन्दन ये धरा का है,
एक स्पंदन गगन का है!
है सर्वदा जो बरसता ,
मनुहार वन्देमातरम!
माँ भारती.....
माता तेरे शेर जैसे ,
बेटों की ये है गर्जना,
शत्रु भय से कांपे थर-थर ,
दुश्मनों की है तर्जना!
जुल्मो की आवाज का ,
प्रतिकार वन्देमातरम!
माँ भारती....
ज्ञान,धर्म,चरित्र से करता,
सबको है धन्य धन्य,
प्राणों का संचार है करता ,
हृदय का है ये चैतन्य!
पुण्यप्रद,पावन गुणों का ,
अंबार वन्देमातरम!
माँ भारती...
स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
नमन-भावो के मोती
दिनांक22/08/2019
विषय- गले का हार
तप कर अगणित चोटें सहकर
तब स्वर्ण खरा उतरता है
किसी के गले का हार बनता
किसी के कर्णो का बुंदकः
हर स्त्री के बाहों का बंधक।।
बीच भंवर में मुझको को थामो .......।।
लहरों में जरा उतरकर
चलो निरंतर तुम मत बैठो
हाथों को पकडकर
गगन चूमने के खातिर
निज पंखों का विस्तार करो
गले मे पहनने वाले
हार को स्वीकार करो।।
जुल्फों को ढक लेते हैं......
अंतर्मन की साया से
मन की मादकता को डस लेते हैं
जीवन पथ की काया को।।
जीवन की इस बहुमूल्य हार को......
तुम स्वीकार करो
आर करो या पार करो
हर कंटक पथ स्वीकार करो
कष्टों के आलिंगन को
अंगीकार करो या तो तेज धार करो......
स्वरचित.....
सर्वाधिकार सुरक्षित@#$
सत्य प्रकाश सिंह
दिनांक22/08/2019
विषय- गले का हार
तप कर अगणित चोटें सहकर
तब स्वर्ण खरा उतरता है
किसी के गले का हार बनता
किसी के कर्णो का बुंदकः
हर स्त्री के बाहों का बंधक।।
बीच भंवर में मुझको को थामो .......।।
लहरों में जरा उतरकर
चलो निरंतर तुम मत बैठो
हाथों को पकडकर
गगन चूमने के खातिर
निज पंखों का विस्तार करो
गले मे पहनने वाले
हार को स्वीकार करो।।
जुल्फों को ढक लेते हैं......
अंतर्मन की साया से
मन की मादकता को डस लेते हैं
जीवन पथ की काया को।।
जीवन की इस बहुमूल्य हार को......
तुम स्वीकार करो
आर करो या पार करो
हर कंटक पथ स्वीकार करो
कष्टों के आलिंगन को
अंगीकार करो या तो तेज धार करो......
स्वरचित.....
सर्वाधिकार सुरक्षित@#$
सत्य प्रकाश सिंह
22/8/2019
विषय-गले का हार
🥀🌹🥀🌹🥀🌹
मन के कल्पित भावों से
प्रभु के गले का हार
कहो! मैं कैसे बन जाऊं..?
सुमन की सुगंध अति मनभावन
तोड़ कर सुंदर पुष्पों को
कैसे गले का हार बनाऊं..?
किंचित समय बीत जाने पर
पुष्पित पुष्प मुरझा जाएंगे
उन्हें उतार फेंकने को कैसे मैं हाथ बढाऊँ?
सहज भाव से सरल हृदय से
अकथित मौन से,सजल नयन से
हे प्रभु !तुमको मैं सांसो की माला पहनाऊं..!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय-गले का हार
🥀🌹🥀🌹🥀🌹
मन के कल्पित भावों से
प्रभु के गले का हार
कहो! मैं कैसे बन जाऊं..?
सुमन की सुगंध अति मनभावन
तोड़ कर सुंदर पुष्पों को
कैसे गले का हार बनाऊं..?
किंचित समय बीत जाने पर
पुष्पित पुष्प मुरझा जाएंगे
उन्हें उतार फेंकने को कैसे मैं हाथ बढाऊँ?
सहज भाव से सरल हृदय से
अकथित मौन से,सजल नयन से
हे प्रभु !तुमको मैं सांसो की माला पहनाऊं..!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय -गले का हार।
बिछ जाऊं बन सुमन तेरे मंदिर श्याम
आ जाओ मधुसूदन देने मधु वरदान ,
कब आवोगे साहिबा
तक-तक थक गये नैन ,
खडी झरोखे मृगनयनी
लिये दरस चाह दिन रैन,
कहां निशिगंधा महकी
बांसती सौरभ उड आई,
क्या नंदन बन महका
या मोहन को छू बयार आई,
मन महका पांव थिरका
झडी है सावन की, चमके बिजुरिया ,
श्यामल घटा बरसे कान्हा
आ नेह मेह मे भीगें ,
राधे झुकाय मुख बोली
मोरे चित चढ्यो घनश्याम ,
आ जाओ मनमोहना
रिमझिम पडे फुहार ,
मन में जगे अनुराग,
मिलन की ऋतु आई ,
कैसी नेह बदरी छाई,
मैं तो कब से खडी
खोल किवांडी जोऊं बाट ,
नैनो में ले ,मिलन की आस
समझे ना हिय की पीर सांवरे
कैसो जतन करूं,
तूं मानस के बन राज हंस
बन जाऊं मैं मोती ,
चंदा में तेरी सूरत देखूं कान्हा ,
जिधर देखूं तुम मुस्काते कान्हा ,
बार-बार बजते मन वीणा के तार
अम्बर सजा अवनी सजी
सजा भुवन विस्तार ,
भानु आया ले के देखो
नवयौवन परभात ,
संवार दो आओ आली
कुंतल घने ,घटा श्याम,
गूथों एक बेणी बिजूरी सी
डर छुप जाये नैनन मेरे
सांवरो नंद कुमार,
मैं बन सज जाऊं,
माधव"गले का हार"।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी
बिछ जाऊं बन सुमन तेरे मंदिर श्याम
आ जाओ मधुसूदन देने मधु वरदान ,
कब आवोगे साहिबा
तक-तक थक गये नैन ,
खडी झरोखे मृगनयनी
लिये दरस चाह दिन रैन,
कहां निशिगंधा महकी
बांसती सौरभ उड आई,
क्या नंदन बन महका
या मोहन को छू बयार आई,
मन महका पांव थिरका
झडी है सावन की, चमके बिजुरिया ,
श्यामल घटा बरसे कान्हा
आ नेह मेह मे भीगें ,
राधे झुकाय मुख बोली
मोरे चित चढ्यो घनश्याम ,
आ जाओ मनमोहना
रिमझिम पडे फुहार ,
मन में जगे अनुराग,
मिलन की ऋतु आई ,
कैसी नेह बदरी छाई,
मैं तो कब से खडी
खोल किवांडी जोऊं बाट ,
नैनो में ले ,मिलन की आस
समझे ना हिय की पीर सांवरे
कैसो जतन करूं,
तूं मानस के बन राज हंस
बन जाऊं मैं मोती ,
चंदा में तेरी सूरत देखूं कान्हा ,
जिधर देखूं तुम मुस्काते कान्हा ,
बार-बार बजते मन वीणा के तार
अम्बर सजा अवनी सजी
सजा भुवन विस्तार ,
भानु आया ले के देखो
नवयौवन परभात ,
संवार दो आओ आली
कुंतल घने ,घटा श्याम,
गूथों एक बेणी बिजूरी सी
डर छुप जाये नैनन मेरे
सांवरो नंद कुमार,
मैं बन सज जाऊं,
माधव"गले का हार"।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी
नमन भावों के मोती
दिनांक-२२/८/२०१९
शीर्षक-गले का हार
दिग्भ्रमित क्यों हो,करें सदा सद्व्यवहार
सन्मार्ग पर चलना सीखें,सीखें बनना गले का हार।
निश्चल मन से करें संकल्प, निष्फल नही प्रयास।
श्रेष्ठ कर्म करें सदा,मिलेगा सबका प्यार।
सबके गले का हार बनना, इतना नहीं आसान
लोभ,क्रोध सब छोड़ कर,करें जगत कल्याण।
चुपके से समाज हित में काम करना, नही सबके बस की बात।
प्रेम पूर्वक जीवन जिये ,नही खराब करे ईमान।
हर बच्चा होता है, माँ के गले का हार।
बच्चों से बढ़कर दुनिया में, नही और कोई उपहार।
दुनिया सिमट आये कदमों में, आँसू ढ़लके कपाल।
बूढ़े माँ बाप का ख्याल रखना,हर बच्चे का काम,इससे बड़ा नहीं जग में श्रेष्ठ कर्म है आज।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
दिनांक-२२/८/२०१९
शीर्षक-गले का हार
दिग्भ्रमित क्यों हो,करें सदा सद्व्यवहार
सन्मार्ग पर चलना सीखें,सीखें बनना गले का हार।
निश्चल मन से करें संकल्प, निष्फल नही प्रयास।
श्रेष्ठ कर्म करें सदा,मिलेगा सबका प्यार।
सबके गले का हार बनना, इतना नहीं आसान
लोभ,क्रोध सब छोड़ कर,करें जगत कल्याण।
चुपके से समाज हित में काम करना, नही सबके बस की बात।
प्रेम पूर्वक जीवन जिये ,नही खराब करे ईमान।
हर बच्चा होता है, माँ के गले का हार।
बच्चों से बढ़कर दुनिया में, नही और कोई उपहार।
दुनिया सिमट आये कदमों में, आँसू ढ़लके कपाल।
बूढ़े माँ बाप का ख्याल रखना,हर बच्चे का काम,इससे बड़ा नहीं जग में श्रेष्ठ कर्म है आज।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
विषय-🌹 गले का हार🌹 दिनांक -22 -8-19
प्रीतम बाँह लगे, मोहे गले का हार।
जिंदगी की राह छोटी, क्यों करें तकरार।।
सजना दिए उपहार ,लाए गले का हार।
नहीं मन रचा बस, दे दो बाँहों का हार।।
सावन बीता भादो आया, मन विरह जगाया ।
नहीं चाहिए सुख मोहे, कंटक पथ स्वीकार।।
रहूंँ सदा मैं साथ तेरे ,चाहे रहूंँ अभाव।
पाँऊ मैं सब सुख, हो बाँह गले का हार।।
वीणा वैष्णव
स्वरचित
कांकरोली
प्रीतम बाँह लगे, मोहे गले का हार।
जिंदगी की राह छोटी, क्यों करें तकरार।।
सजना दिए उपहार ,लाए गले का हार।
नहीं मन रचा बस, दे दो बाँहों का हार।।
सावन बीता भादो आया, मन विरह जगाया ।
नहीं चाहिए सुख मोहे, कंटक पथ स्वीकार।।
रहूंँ सदा मैं साथ तेरे ,चाहे रहूंँ अभाव।
पाँऊ मैं सब सुख, हो बाँह गले का हार।।
वीणा वैष्णव
स्वरचित
कांकरोली
दिनांक-22-8-2019
स्वरचित गीत
प्रदत्त पंक्ति-"गले का हार"
मुझे मां ने दिया 'गले का हार'
मन मेरा नाचे पिया..
बाजें हिरदय की वीणा के तार
सांची कहूं तोसे पिया
हो मन मेरा नाचे पिया...
मुझे मां ने दिया 'गले का हार'
मन मेरा...
हरवा में मेरे चंदरमा चमकता-
देखूं सदा मोरा मन नाही भरता,
अरि-नजरों की तीखी कटार-
कलेजा देवै उखार.
मुझे मां ने दिया 'गले का हार'
मन मेरा नाचे पिया..
इस हरवा में मोतियन की माला
फोटू लगाया मैंने शिमला वाला
जहां घूमके आए भरतार
लगी तन पे शीतल बयार
मन मेरा नाचे पिया..
मुझे मां ने दिया गलहार
मन मेरा नाचे पिया
______
स्वरचित
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
स्वरचित गीत
प्रदत्त पंक्ति-"गले का हार"
मुझे मां ने दिया 'गले का हार'
मन मेरा नाचे पिया..
बाजें हिरदय की वीणा के तार
सांची कहूं तोसे पिया
हो मन मेरा नाचे पिया...
मुझे मां ने दिया 'गले का हार'
मन मेरा...
हरवा में मेरे चंदरमा चमकता-
देखूं सदा मोरा मन नाही भरता,
अरि-नजरों की तीखी कटार-
कलेजा देवै उखार.
मुझे मां ने दिया 'गले का हार'
मन मेरा नाचे पिया..
इस हरवा में मोतियन की माला
फोटू लगाया मैंने शिमला वाला
जहां घूमके आए भरतार
लगी तन पे शीतल बयार
मन मेरा नाचे पिया..
मुझे मां ने दिया गलहार
मन मेरा नाचे पिया
______
स्वरचित
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
II गले का हार II नमन भावों के मोती....
(क्यूंकि आज का विषय बहुत रोचक मुहावरा है तो कोशिश की है मैंने भी ग़ज़ल में मुहावरों के प्रयोग की)
विधा: ग़ज़ल - इश्क़ की मंज़िल के हम अनुवाद हो गए....
हम नज़र से तेरी तो आबाद हो गए
थे रकीब मेरे जो सब नाशाद हो गए...
दिल रहे बेचैन तेरे दीद के लिए.....
तुम न जाने ईद का क्यूँ चाँद हो गए....
कर वफ़ा दिल टूटना तो आम हो गया....
हम तेरी नफरत जफ़ा बर्बाद हो गए...
बन गले का हार मुझको ऐसे तुम मिले...
जिस्म दो इक जान के संवाद हो गए....
ज़िन्दगी और मौत की हद्द पार कर गए....
इश्क़ की मंज़िल के हम अनुवाद हो गए....
घास मत डालो कभी उन मंद इंसां को....
इश्क़ के बेवजह जो प्रतिवाद हो गए....
तुम गले का हार तो 'चन्दर' न बन सके...
इश्क़ तहज़ीब-ए-वफ़ा इरशाद हो गए....
चुप्प तुम 'चन्दर' रहो शोर न करो अब....
लो मुहावरे भी ग़ज़ल के स्वाद हो गए....
रकीब = प्रतिद्वंद्वी/प्रतिस्पर्धी
नाशाद = दुःखी
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२२.०८.२०१९
(क्यूंकि आज का विषय बहुत रोचक मुहावरा है तो कोशिश की है मैंने भी ग़ज़ल में मुहावरों के प्रयोग की)
विधा: ग़ज़ल - इश्क़ की मंज़िल के हम अनुवाद हो गए....
हम नज़र से तेरी तो आबाद हो गए
थे रकीब मेरे जो सब नाशाद हो गए...
दिल रहे बेचैन तेरे दीद के लिए.....
तुम न जाने ईद का क्यूँ चाँद हो गए....
कर वफ़ा दिल टूटना तो आम हो गया....
हम तेरी नफरत जफ़ा बर्बाद हो गए...
बन गले का हार मुझको ऐसे तुम मिले...
जिस्म दो इक जान के संवाद हो गए....
ज़िन्दगी और मौत की हद्द पार कर गए....
इश्क़ की मंज़िल के हम अनुवाद हो गए....
घास मत डालो कभी उन मंद इंसां को....
इश्क़ के बेवजह जो प्रतिवाद हो गए....
तुम गले का हार तो 'चन्दर' न बन सके...
इश्क़ तहज़ीब-ए-वफ़ा इरशाद हो गए....
चुप्प तुम 'चन्दर' रहो शोर न करो अब....
लो मुहावरे भी ग़ज़ल के स्वाद हो गए....
रकीब = प्रतिद्वंद्वी/प्रतिस्पर्धी
नाशाद = दुःखी
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२२.०८.२०१९
आज का विषय गले का हार,
ग़ज़ल,पेश साथियों,
दुखों को गले का हार बनाना आ गया,
रोते दिलों को हंसाना आ गया।।१।।
सच की ताकत सभी पहचानते ,
झूठे रिश्तों से मुंह मोड़ना आ गया।।२।।
पर्याय का पैगाम मिलते उनको,
रुप को संवरना आ गया।।३।।
अकेले खुद से बतियाने है,
जग की भीड़ में जीना आ गया।।४।।
क्यों मांगे सहारा जीने का,
अपना बोझ उठाना आ गया।।५।।
नेह के दीप जलते जब रात में,
रुठे पिया को हंसाना आ गया।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,ग,।।
ग़ज़ल,पेश साथियों,
दुखों को गले का हार बनाना आ गया,
रोते दिलों को हंसाना आ गया।।१।।
सच की ताकत सभी पहचानते ,
झूठे रिश्तों से मुंह मोड़ना आ गया।।२।।
पर्याय का पैगाम मिलते उनको,
रुप को संवरना आ गया।।३।।
अकेले खुद से बतियाने है,
जग की भीड़ में जीना आ गया।।४।।
क्यों मांगे सहारा जीने का,
अपना बोझ उठाना आ गया।।५।।
नेह के दीप जलते जब रात में,
रुठे पिया को हंसाना आ गया।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,ग,।।
सादर मंच को समर्पित -
🍊 गीतिका 🍊
*********************
🌺 गले का हार 🌺
🍀 छंद-माधव मालती 🍀
मापनी- 2122 , 2122 , 2122 , 2122
समांत- आँव ,पदांत- लिख दूँ
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
मीत हँसती धूप लिख दूँ
या सुहानी छाँव लिख दूँ ।
आपके हैं पाँव कोमल
मखमली हर ठाँव लिख दूँ ।।
जिन्दगी तेरे हवाले
क्यों रहें हम दूर राही ,
प्यार का गल हार सुन्दर
एक स्वप्निल गाँव लिख दूँ ।
सावनी मौसम सुहाना
है गले का हार जैसा ,
पायली झनकार बाजे
सुर्ख अलता पाँव लिख दूँ ।
लो घटायें घिर रहीं हैं
आज बादल भी जवाँ हैं ,
मोर की आवाज लरजें
कूक कोयल काँव लिख दूँ ।
खो नहीं जाओ कहीं तुम
इस जमाने की बला से ,
मैं चुरा लूँ मीत तुम को
आज ऐसा दाँव लिख दूँ ।।
🌺🍀🍊🌻🌹
🌴🌻💧🍊**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
🍊 गीतिका 🍊
*********************
🌺 गले का हार 🌺
🍀 छंद-माधव मालती 🍀
मापनी- 2122 , 2122 , 2122 , 2122
समांत- आँव ,पदांत- लिख दूँ
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
मीत हँसती धूप लिख दूँ
या सुहानी छाँव लिख दूँ ।
आपके हैं पाँव कोमल
मखमली हर ठाँव लिख दूँ ।।
जिन्दगी तेरे हवाले
क्यों रहें हम दूर राही ,
प्यार का गल हार सुन्दर
एक स्वप्निल गाँव लिख दूँ ।
सावनी मौसम सुहाना
है गले का हार जैसा ,
पायली झनकार बाजे
सुर्ख अलता पाँव लिख दूँ ।
लो घटायें घिर रहीं हैं
आज बादल भी जवाँ हैं ,
मोर की आवाज लरजें
कूक कोयल काँव लिख दूँ ।
खो नहीं जाओ कहीं तुम
इस जमाने की बला से ,
मैं चुरा लूँ मीत तुम को
आज ऐसा दाँव लिख दूँ ।।
🌺🍀🍊🌻🌹
🌴🌻💧🍊**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
गुरूवार
विषय -‘ गले का हार ‘
विधा -भक्ति गीत
गले का हार
करूँ मैं ,ईश नमन हर बार
पढ़ूँ हर पल,गीता का सार,
कन्हैया मनमोहन घनश्याम
बना लो मुझे, गले का हार।।
निरखती रहूँ ,छवि अविराम
मुझे जग से अब क्या है काम
तुम्हारी मनमोहक मुसकान
बना लो मुझे गले का हार ।।
करूँ रच-रच तुम्हरा श्रृंगार
सुनाऊँ भजन मैं बारम्बार,
साँवरे,मुरलीधर,सुखधाम
बना लो मुझे गले का हार ।।
मुझे बस तेरा ही आधार
तुम्हीं मेरे मन का हो श्रृंगार,
कन्हैया तुम मेरे चितचोर
बना लो मुझे गले का हार ।।
बनाया तुमने ,मुझे ‘ उदार ‘
करो अब भवसागर से पार,
तुम्हीं तुम ,मेरे चारो धाम
बना लो मुझे गले का हार ।।
स्वरचित
सद्य: रचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
विषय -‘ गले का हार ‘
विधा -भक्ति गीत
गले का हार
करूँ मैं ,ईश नमन हर बार
पढ़ूँ हर पल,गीता का सार,
कन्हैया मनमोहन घनश्याम
बना लो मुझे, गले का हार।।
निरखती रहूँ ,छवि अविराम
मुझे जग से अब क्या है काम
तुम्हारी मनमोहक मुसकान
बना लो मुझे गले का हार ।।
करूँ रच-रच तुम्हरा श्रृंगार
सुनाऊँ भजन मैं बारम्बार,
साँवरे,मुरलीधर,सुखधाम
बना लो मुझे गले का हार ।।
मुझे बस तेरा ही आधार
तुम्हीं मेरे मन का हो श्रृंगार,
कन्हैया तुम मेरे चितचोर
बना लो मुझे गले का हार ।।
बनाया तुमने ,मुझे ‘ उदार ‘
करो अब भवसागर से पार,
तुम्हीं तुम ,मेरे चारो धाम
बना लो मुझे गले का हार ।।
स्वरचित
सद्य: रचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
नमन मंच
भावों के मोती
विषय-गले का हार
🌷उपहार🌷
नहीं चाहिये मुझे गले का हार।
जो दिखने में हो हीरो का हार।
बे वक्त पर बन गले का फंदा-
पहुंचादें मुझे यमराजा के द्वार।
है ईश्वर तू मुझे उपहार देना।
पति की बाहों का हार देना।
सास ससुर का स्नेह पाऊँ-
बच्चों से भरा परिवार देना।
हरी भरी सी एक बगिया हो।
चीं चीं चहकती बिटिया हो
आँगन में संस्कारी पुत्र खेले-
खुशियों भरे दिन रतिया हो।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
भावों के मोती
विषय-गले का हार
🌷उपहार🌷
नहीं चाहिये मुझे गले का हार।
जो दिखने में हो हीरो का हार।
बे वक्त पर बन गले का फंदा-
पहुंचादें मुझे यमराजा के द्वार।
है ईश्वर तू मुझे उपहार देना।
पति की बाहों का हार देना।
सास ससुर का स्नेह पाऊँ-
बच्चों से भरा परिवार देना।
हरी भरी सी एक बगिया हो।
चीं चीं चहकती बिटिया हो
आँगन में संस्कारी पुत्र खेले-
खुशियों भरे दिन रतिया हो।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
नमन भावों के मोती
शीर्षक --गले का हार
दिनांक--22-8-19
विधा-- दोहा मुक्तक
1.
पग पग प्रेम जताय के, बनी गले का हार।
यही हार अब बन गया ,झंझट की तलवार।
ग्राहक नंबर चार मैं, हुआ पस्त औ ढेर --
जीवन में ऐसा कभी हुआ नहीं लाचार ।
2.
बिन सोचे बिन ज्ञान के , करे काम नहिं कोय।
पहले पूरा परख लें, तभी भार को ढोय।
धूर्त बहुत हैं विश्व में,सदा रखें ये याद--
चुनें गले का हार तो, निज आपा नहिं खोय।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
शीर्षक --गले का हार
दिनांक--22-8-19
विधा-- दोहा मुक्तक
1.
पग पग प्रेम जताय के, बनी गले का हार।
यही हार अब बन गया ,झंझट की तलवार।
ग्राहक नंबर चार मैं, हुआ पस्त औ ढेर --
जीवन में ऐसा कभी हुआ नहीं लाचार ।
2.
बिन सोचे बिन ज्ञान के , करे काम नहिं कोय।
पहले पूरा परख लें, तभी भार को ढोय।
धूर्त बहुत हैं विश्व में,सदा रखें ये याद--
चुनें गले का हार तो, निज आपा नहिं खोय।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
मुझे ईश उपहार हो सैंया
अपने गले का हार।
नहींऔर चाहूँ कुछ कान्हा
तेरा बडा उपकार।अपने गले का हार........
रंगरसिया है तू मनबसिया।
प्रियतम मेरा तूही संवरिया।
भूल गई सब हुई बावरी,
तूने नहीं ली मेरी खबरिया।
अब मै लूंगी प्रतिकार।अपने गले का हार......
जन्मा तू जन्माष्टमी के दिन।
थे कुछ उछलकूद करने दिन।
नटखट तू बडा नटनागर,
तेरे मौजमस्ती करने के दिन।
तुझ पर हम वलिहार।अपने गले का हार......
रास रचैया मुरली वाला।
तू नंदलाला बंशी वाला।
वन वन में तू गैयाँ चराता,
कृष्णा तू गैयों का ग्वाला।
तुझसे कौन करे तकरार।अपने गले का हार...
हार बांहों का तुझे पहनाऊँ।
अपना सजना तुझे बनाऊँ।
है बांकेबिहारी तू गिरधारी,
कैसे कन्हाई मैं तुझे रिझाऊँ।
तू है सचमुच काअवतार।अपने गले का हार..
अगर नहीं करे उद्धार हमारा
तो देंगे तुझे सब धिक्कार।
रोज जन्माष्टमी हम मनाऐंगे,
तू गिरधर करदे बेडा पार।
अब जल्दी कर स्वीकार।अपने गले का हार...
स्वरचित ःःसर्वाधिकार सुरक्षित
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
अपने गले का हार।
नहींऔर चाहूँ कुछ कान्हा
तेरा बडा उपकार।अपने गले का हार........
रंगरसिया है तू मनबसिया।
प्रियतम मेरा तूही संवरिया।
भूल गई सब हुई बावरी,
तूने नहीं ली मेरी खबरिया।
अब मै लूंगी प्रतिकार।अपने गले का हार......
जन्मा तू जन्माष्टमी के दिन।
थे कुछ उछलकूद करने दिन।
नटखट तू बडा नटनागर,
तेरे मौजमस्ती करने के दिन।
तुझ पर हम वलिहार।अपने गले का हार......
रास रचैया मुरली वाला।
तू नंदलाला बंशी वाला।
वन वन में तू गैयाँ चराता,
कृष्णा तू गैयों का ग्वाला।
तुझसे कौन करे तकरार।अपने गले का हार...
हार बांहों का तुझे पहनाऊँ।
अपना सजना तुझे बनाऊँ।
है बांकेबिहारी तू गिरधारी,
कैसे कन्हाई मैं तुझे रिझाऊँ।
तू है सचमुच काअवतार।अपने गले का हार..
अगर नहीं करे उद्धार हमारा
तो देंगे तुझे सब धिक्कार।
रोज जन्माष्टमी हम मनाऐंगे,
तू गिरधर करदे बेडा पार।
अब जल्दी कर स्वीकार।अपने गले का हार...
स्वरचित ःःसर्वाधिकार सुरक्षित
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
*+*+* गले का हार *+*+*
गले पड़ गया हार या गले पड़ गई हार,
लिंग बदला लगता है बदल गया है सार,
पहले हार मैं जीत मिली दूजे हार मैं हार,
तीसरे हार का वर्णन है स्त्री गले का हार,
स्त्री गले का हार बहुमूल्य है यह उपहार,
यह नारी का श्रंगार का उत्कृष्ट है आधार,
सदियों से ही परिवारों यही है एक चलन,
निर्माता इसका ही है कोई ना कोई सुनार,
आपातकाल का रहा है यही अर्थ माध्यम,
जायदाद है अनंत कल से ही परिवार का,
सोलह श्रंगारों मैं यह भी एक नारी श्रंगार,
आकर्षण से मोहित है इसपर सारा संसार,
पति गले स्त्री ज़ब भी वर माला डालती,
तब ही विवाह का संपूर्ण होता है संस्कार,
बदले मैं चढ़ावा उसे मिलता गले का हार,
सात जन्मों के बंधन का होता मंत्रोच्चार,,
*+*रचनाकार*+*दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया जिला मंडला
मध्यप्रदेश,,
गले पड़ गया हार या गले पड़ गई हार,
लिंग बदला लगता है बदल गया है सार,
पहले हार मैं जीत मिली दूजे हार मैं हार,
तीसरे हार का वर्णन है स्त्री गले का हार,
स्त्री गले का हार बहुमूल्य है यह उपहार,
यह नारी का श्रंगार का उत्कृष्ट है आधार,
सदियों से ही परिवारों यही है एक चलन,
निर्माता इसका ही है कोई ना कोई सुनार,
आपातकाल का रहा है यही अर्थ माध्यम,
जायदाद है अनंत कल से ही परिवार का,
सोलह श्रंगारों मैं यह भी एक नारी श्रंगार,
आकर्षण से मोहित है इसपर सारा संसार,
पति गले स्त्री ज़ब भी वर माला डालती,
तब ही विवाह का संपूर्ण होता है संस्कार,
बदले मैं चढ़ावा उसे मिलता गले का हार,
सात जन्मों के बंधन का होता मंत्रोच्चार,,
*+*रचनाकार*+*दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया जिला मंडला
मध्यप्रदेश,,
शीर्षक - गले का हार
""""""""""""""""""""""""""""""""'
बन के पिया तेरे हार गले का
मैं सपना जो संजोती हूं
तेरे लिए ही जीती हूं
तेरे लिए ही मरती हूं
बस तेरे दिल में मैं रहूं
कुछ भी नहीं तुमसे मांगू
मेरे लिए सोना चांदी का मोल नहीं
बस से तेरे प्यार की चाहत है
इसके लिए मैं तरसती हूं
आंखों से आंसू झर झर बहते हैं
नींद नहीं आती मुझको
हर पल याद सताती है
परदेश से घर वापस आओ
अपने गले का हार बनाओ |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित व मौलिक
""""""""""""""""""""""""""""""""'
बन के पिया तेरे हार गले का
मैं सपना जो संजोती हूं
तेरे लिए ही जीती हूं
तेरे लिए ही मरती हूं
बस तेरे दिल में मैं रहूं
कुछ भी नहीं तुमसे मांगू
मेरे लिए सोना चांदी का मोल नहीं
बस से तेरे प्यार की चाहत है
इसके लिए मैं तरसती हूं
आंखों से आंसू झर झर बहते हैं
नींद नहीं आती मुझको
हर पल याद सताती है
परदेश से घर वापस आओ
अपने गले का हार बनाओ |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित व मौलिक
नमन मंच
विषय :--गले का हार
विधा--मुक्त
दिनांक :--22 / 08 / 19
***********************
होती बिटिया गले का हार
घरभर रहता उससे खुशहाल
जैसे बगिया महके फूलों से
वैसे घर भी महके बिटिया से
दादा -दादी की प्यारी गुड़िया
नाना-नानी की राजदुलारी है
मामा-मामी, चाचा-चाची, बुआ-फुफा की सोन परी बिटिया
घर की चार दिवारी में
खनके उसकी चूड़ी-पैजनिया
खिड़की से झांक गोरे मुखड़े
संग उसकी लाल चुनरिया
गली-मौहल्ले में वो नटखट
भागती दौड़ती हरदम रहती
स्कूल में रहती अव्वल हरदम
गुरुजन की आँख की पुतली बिटिया
माँ बाबा की आँखों का तारा घर -भर के *गले का हार* है बिटिया ।
डा .नीलम
विषय :--गले का हार
विधा--मुक्त
दिनांक :--22 / 08 / 19
***********************
होती बिटिया गले का हार
घरभर रहता उससे खुशहाल
जैसे बगिया महके फूलों से
वैसे घर भी महके बिटिया से
दादा -दादी की प्यारी गुड़िया
नाना-नानी की राजदुलारी है
मामा-मामी, चाचा-चाची, बुआ-फुफा की सोन परी बिटिया
घर की चार दिवारी में
खनके उसकी चूड़ी-पैजनिया
खिड़की से झांक गोरे मुखड़े
संग उसकी लाल चुनरिया
गली-मौहल्ले में वो नटखट
भागती दौड़ती हरदम रहती
स्कूल में रहती अव्वल हरदम
गुरुजन की आँख की पुतली बिटिया
माँ बाबा की आँखों का तारा घर -भर के *गले का हार* है बिटिया ।
डा .नीलम
नमन मंच
22/8/2019
विषय -गले का हार
बनना सब चाहते
गले का हार
सोने की तरह
किन्तु तपना कोई
नहीं चाहता सोने जैसे
यूँ ही नहीं बन जाते
हम किसी के लिए
गले का हार
बहुत कुछ सहना
चुपचाप रहना
हर लम्हा साथ देना
अपनी खुशी का परे होना
दूजे का सर्वोपरि होना
कुछ पाने की न आस
खोने को तत्पर होना
ऐसा बनता जब व्यवहार
कहलाता वो गले का हार
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
22/8/2019
विषय -गले का हार
बनना सब चाहते
गले का हार
सोने की तरह
किन्तु तपना कोई
नहीं चाहता सोने जैसे
यूँ ही नहीं बन जाते
हम किसी के लिए
गले का हार
बहुत कुछ सहना
चुपचाप रहना
हर लम्हा साथ देना
अपनी खुशी का परे होना
दूजे का सर्वोपरि होना
कुछ पाने की न आस
खोने को तत्पर होना
ऐसा बनता जब व्यवहार
कहलाता वो गले का हार
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
नमन भावों के मोती
दिनांक: - 22/8/019
विषय : - गले का हार
गले का हार
धागों के गुच्छे में
कभी मोतियों, कभी पत्थरों,
कभी पुष्पों से
पिरोए जाती हूँ
बनकर हार मैं अराध्य के
गले से चरणों तक सजाई जाती हूँ।
जब लाल जोड़ें में सजी दुल्हन
रत्न माला कंठहार पहनती है
चतुर्थ की चंद्रमा सी उनकी छवि
देख मैं इठलाती हूँ।
शहीदों के गले में जब
बन पुष्पहार मैं जाती हूँ
गौरवमयी हो उनसे लिपट
सिसक कर लोरी सुना सुलाती हूँ।
जब डाली जाती हूँ
भ्रष्ट जनों के गले में
मैं शर्म से वहीं मर जाती हूँ
घिन्न आती है मुझे हार बनने पर
सोचती हूँ माली के घर ही मैं
क्यों नहीं सूख जाती हूँ।
पर होती प्रसन्नता फिर एक बार
जब बनकर हार नहीं फंदा मैं
गद्दारो की गरदन मरोड़ती हूँ
सफल हो जाता मेरा जीवन
जब मैं देश के काम आती हूँ।
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
दिनांक: - 22/8/019
विषय : - गले का हार
गले का हार
धागों के गुच्छे में
कभी मोतियों, कभी पत्थरों,
कभी पुष्पों से
पिरोए जाती हूँ
बनकर हार मैं अराध्य के
गले से चरणों तक सजाई जाती हूँ।
जब लाल जोड़ें में सजी दुल्हन
रत्न माला कंठहार पहनती है
चतुर्थ की चंद्रमा सी उनकी छवि
देख मैं इठलाती हूँ।
शहीदों के गले में जब
बन पुष्पहार मैं जाती हूँ
गौरवमयी हो उनसे लिपट
सिसक कर लोरी सुना सुलाती हूँ।
जब डाली जाती हूँ
भ्रष्ट जनों के गले में
मैं शर्म से वहीं मर जाती हूँ
घिन्न आती है मुझे हार बनने पर
सोचती हूँ माली के घर ही मैं
क्यों नहीं सूख जाती हूँ।
पर होती प्रसन्नता फिर एक बार
जब बनकर हार नहीं फंदा मैं
गद्दारो की गरदन मरोड़ती हूँ
सफल हो जाता मेरा जीवन
जब मैं देश के काम आती हूँ।
स्वरचित : - मुन्नी कामत।
नमन भावों के मोती
विषय:गले का हार
विधा:हाइकु
1
प्रिया श्रृंगार-
लहराते कुन्तल
गले का हार
2
जीत बनती
संघर्ष की कहानी-
गले का हार
3
विजय नाद-
पुष्प गले का हार
चुनाव बाद
4
गले का हार
सम्मान को सत्कार-
मिलता प्यार
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
विषय:गले का हार
विधा:हाइकु
1
प्रिया श्रृंगार-
लहराते कुन्तल
गले का हार
2
जीत बनती
संघर्ष की कहानी-
गले का हार
3
विजय नाद-
पुष्प गले का हार
चुनाव बाद
4
गले का हार
सम्मान को सत्कार-
मिलता प्यार
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
भावों के मोती दिनांक 22/8/19
गले का हार
बन जाते हैं
हमसफ़र
दो अज़नबी
जब बन जाते
गले का हार
होता मान
देव का
जब दिखता
उनमें
गले का हार
देते इज्जत
माता पिता को
जब डाल
गले में हार
आशीर्वाद लेते
उनसे
विजयी के
जब दिखे
गले का हार
समझो
बढाया सम्मान
देश और
समाज का
गले के हार
तेरी
दुःखद कहानी
जब होती
यात्रा अंतिम
जीवन की
दिखते बहुत
गले के हार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
गले का हार
बन जाते हैं
हमसफ़र
दो अज़नबी
जब बन जाते
गले का हार
होता मान
देव का
जब दिखता
उनमें
गले का हार
देते इज्जत
माता पिता को
जब डाल
गले में हार
आशीर्वाद लेते
उनसे
विजयी के
जब दिखे
गले का हार
समझो
बढाया सम्मान
देश और
समाज का
गले के हार
तेरी
दुःखद कहानी
जब होती
यात्रा अंतिम
जीवन की
दिखते बहुत
गले के हार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय:हीरे का हार
विधा: हाइकु
शुभ संध्या 🙏🙏🌹🌹
गले का हार
बहू मुँह दिखाई
सासू जी नेग।
बेटी बिदाई
माँ देती उपहार
परंपराएं ।
आर्थिक मंदी
जरूरत का साथ
गले का हार ।
दहेज़ रूप
बनी फासी की सजा
गले का हार ।
मुख्य अतिथि
शाल , गले में हार
शुभ सत्कार।
माँ सरस्वती
पूजन बारम्बार
बेला का हार ।
हीरे का हार
प्रतिष्ठित समाज
न हो गुमान ।
#स्वरचित रचना
# नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
विधा: हाइकु
शुभ संध्या 🙏🙏🌹🌹
गले का हार
बहू मुँह दिखाई
सासू जी नेग।
बेटी बिदाई
माँ देती उपहार
परंपराएं ।
आर्थिक मंदी
जरूरत का साथ
गले का हार ।
दहेज़ रूप
बनी फासी की सजा
गले का हार ।
मुख्य अतिथि
शाल , गले में हार
शुभ सत्कार।
माँ सरस्वती
पूजन बारम्बार
बेला का हार ।
हीरे का हार
प्रतिष्ठित समाज
न हो गुमान ।
#स्वरचित रचना
# नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
विषम:-गले की माला
मनोरम छंद
2122 2122
गालगाना गालगाना
फाइलातुन फाइलातुन
1)))
पूजते हैं देवता को,
भेजते हैं माँ पिता को,
उलझनों में क्यों पड़े हैं?
स्वार्थ कर्तव्य से बड़े हैं?
2)))
तुम गले का हार रहते,
हर दुखों से दूर करते,
सह गये हर मुश्किलें जो,
बोझ माँ पितु अब बने वो।
स्वरचित
नीलम. शर्मा #नीलू
मनोरम छंद
2122 2122
गालगाना गालगाना
फाइलातुन फाइलातुन
1)))
पूजते हैं देवता को,
भेजते हैं माँ पिता को,
उलझनों में क्यों पड़े हैं?
स्वार्थ कर्तव्य से बड़े हैं?
2)))
तुम गले का हार रहते,
हर दुखों से दूर करते,
सह गये हर मुश्किलें जो,
बोझ माँ पितु अब बने वो।
स्वरचित
नीलम. शर्मा #नीलू
विषय-गले का हार
बिंदिया पायल कंगन और गले का हार
इन सबसे होता है नारी का श्रृंगार
नारी का श्रृंगार दमक उठता है
जब नारी के आभूषणों में गले का हार होता है ।
गले के हार ने बनाए कितने किस्से
कभी -कभी रिश्तों के कर डाले हैं हिस्से ।
प्रिया ने माँगा प्रिय से गले का हार
न ले पाया बेचारा ले आया उधार।
ले आया उधार जिंदगी दूभर हो गई
आ गया गले का हार जिंदगी मुसीबत हो गई ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
बिंदिया पायल कंगन और गले का हार
इन सबसे होता है नारी का श्रृंगार
नारी का श्रृंगार दमक उठता है
जब नारी के आभूषणों में गले का हार होता है ।
गले के हार ने बनाए कितने किस्से
कभी -कभी रिश्तों के कर डाले हैं हिस्से ।
प्रिया ने माँगा प्रिय से गले का हार
न ले पाया बेचारा ले आया उधार।
ले आया उधार जिंदगी दूभर हो गई
आ गया गले का हार जिंदगी मुसीबत हो गई ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
मंच को नमन
दिनांक -22/8/2019
विषय - गले का हार
लौटना होगा अतीत में
तलाशना होगा तेरा वजूद
एक दिन था वह
फूलों का माला में गूँथना
फिर गले का हार बनना
रस्मों में ढलना
क़समों पर चलना
नव जीवन का सँवरना
सपनों का मचलना
गृहस्थी में बदलना
ज़िम्मेदारियों को सहना
आज तलक साथ निभाना
क्या मात्र गले का हार ??
नही , जीवन का शृंगार
परिणय का संस्कार
सोने चाँदी को नकार
मात्र फूलों से प्यार
पिया के हाथों से पहना
गले का अनमोल हार
जीवन आज भी सुगंधमय
बेमोल धातुएँ हैं
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
दिनांक -22/8/2019
विषय - गले का हार
लौटना होगा अतीत में
तलाशना होगा तेरा वजूद
एक दिन था वह
फूलों का माला में गूँथना
फिर गले का हार बनना
रस्मों में ढलना
क़समों पर चलना
नव जीवन का सँवरना
सपनों का मचलना
गृहस्थी में बदलना
ज़िम्मेदारियों को सहना
आज तलक साथ निभाना
क्या मात्र गले का हार ??
नही , जीवन का शृंगार
परिणय का संस्कार
सोने चाँदी को नकार
मात्र फूलों से प्यार
पिया के हाथों से पहना
गले का अनमोल हार
जीवन आज भी सुगंधमय
बेमोल धातुएँ हैं
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
नमन "भावो के मोती"
विषय :- गले का हार
नई नई शादी में खुद की,
हर शख्स नाचा करता है,
तारीफों में निज पत्नी कि,
वो कसीदे बांचा करता है,
कुछ दिनों के बाद खुद को,
महसूस करता लाचार होना,
बड़ा मुश्किल है यारो,
किसी गले का हार होना,
जीवन में सुख के चार दिन,
कुंवारों को ही मिल पाते हैं,
शादीशुदा के जीवन मे तो,
बस तानो जैसी ही बाते हैं,
शादीशुदा से मत पूछो,
बिन गलती के रार होना,
बड़ा मुश्किल है यारो,
किसी गले का हार होना,
वेब कैमरे जैसी दो आंखे,
हरपल पीछा करती है,
गलती से भी गलती हो तो,
अजी जान हमारी डरती है
बड़ी जिल्लत संग सीखता,
दुखी होने को तैयार होना,
बड़ा मुश्किल है यारो,
किसी गले का हार होना,
परन्तु......
जब जीवन मे चिंता आये,
वही साथ हमेशा देती है,
बड़े प्रेम और अपनेपन से,
हर विपदा को हर लेती है,
वो होती तो लगता मुझको
इस जीवन का सार होना,
बड़ा मुश्किल है यारो,
किसी गले का हार होना।
#प्रकाश_जांगिड़_प्रांश
विषय :- गले का हार
नई नई शादी में खुद की,
हर शख्स नाचा करता है,
तारीफों में निज पत्नी कि,
वो कसीदे बांचा करता है,
कुछ दिनों के बाद खुद को,
महसूस करता लाचार होना,
बड़ा मुश्किल है यारो,
किसी गले का हार होना,
जीवन में सुख के चार दिन,
कुंवारों को ही मिल पाते हैं,
शादीशुदा के जीवन मे तो,
बस तानो जैसी ही बाते हैं,
शादीशुदा से मत पूछो,
बिन गलती के रार होना,
बड़ा मुश्किल है यारो,
किसी गले का हार होना,
वेब कैमरे जैसी दो आंखे,
हरपल पीछा करती है,
गलती से भी गलती हो तो,
अजी जान हमारी डरती है
बड़ी जिल्लत संग सीखता,
दुखी होने को तैयार होना,
बड़ा मुश्किल है यारो,
किसी गले का हार होना,
परन्तु......
जब जीवन मे चिंता आये,
वही साथ हमेशा देती है,
बड़े प्रेम और अपनेपन से,
हर विपदा को हर लेती है,
वो होती तो लगता मुझको
इस जीवन का सार होना,
बड़ा मुश्किल है यारो,
किसी गले का हार होना।
#प्रकाश_जांगिड़_प्रांश
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