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ब्लॉग संख्या :-474
सुप्रभात"भावो के मोती"
11/08/2019
स्वतंत्र लेखन के तहत
"तिरयाला"
**********************
बात बात से यूं आशिकी नहीं होती।
झूठ मूठ की जो बातें यूं नहीं किया करते।
चाँद के बिना रातें चाँदनी नहीं होती।
बात बात से यूं आशिकी नहीं होती।
सर झुके बिना जैसे बंदगी नहीं होती।
आशिक गमों को पीके ही तो जिया करते हैं।
बात बात से यूं आशिकी नहीं होती।
झूठ मूठ की जो बातें यूं नहीं किया करते ।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
11/08/2019
स्वतंत्र लेखन के तहत
"तिरयाला"
**********************
बात बात से यूं आशिकी नहीं होती।
झूठ मूठ की जो बातें यूं नहीं किया करते।
चाँद के बिना रातें चाँदनी नहीं होती।
बात बात से यूं आशिकी नहीं होती।
सर झुके बिना जैसे बंदगी नहीं होती।
आशिक गमों को पीके ही तो जिया करते हैं।
बात बात से यूं आशिकी नहीं होती।
झूठ मूठ की जो बातें यूं नहीं किया करते ।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन मंच भांवो के मोती
विषय मनपसंद लेखन
विधा काव्य
11 अगस्त 2019,रविवार
मन पसंद सबका कश्मीर
जो जान से सबको प्यारा।
डल झील में चले शिकारा
सौरभ सुन्दर स्वर्ग है न्यारा।
महके केसर की क्यारियां
लाल वाटिका शान बढ़ावे।
माँ भारती का किरीट यह
विमल नीर झेलम सुहावे।
बालटाल में अमरनाथ हैं
कटरा में माँ वैष्णव देवी।
जम्मू में रघुनाथ विराजित
नव दुर्गा कश्मीर में सेवी।
रजत मंडित श्वेत हिमालय
बना प्रहरी सदा वतन का।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख भाई
नहीं मिसाल इस जन्नत का।
माँ वसुधा का प्यार भव्य है
जो स्वर्ग सा सदा हर्षाता।
मोहित करता पर्यटक नित
सदा मुल्क का मान बढ़ाता।
शस्यश्यामल भारत माँ का
प्रेम भाव सौहार्द रहे मन में।
जन्म मृत्यु अटल सत्य यह
कोई अर्थ नहीं अनबन में।
इंसानियत कायम हो हिय
द्वेष कुंठा दिल से निकले ।
मुस्लिम हिन्दू भाई भाई हैं
छाती चौड़ी कर तू मिल ले।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय मनपसंद लेखन
विधा काव्य
11 अगस्त 2019,रविवार
मन पसंद सबका कश्मीर
जो जान से सबको प्यारा।
डल झील में चले शिकारा
सौरभ सुन्दर स्वर्ग है न्यारा।
महके केसर की क्यारियां
लाल वाटिका शान बढ़ावे।
माँ भारती का किरीट यह
विमल नीर झेलम सुहावे।
बालटाल में अमरनाथ हैं
कटरा में माँ वैष्णव देवी।
जम्मू में रघुनाथ विराजित
नव दुर्गा कश्मीर में सेवी।
रजत मंडित श्वेत हिमालय
बना प्रहरी सदा वतन का।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख भाई
नहीं मिसाल इस जन्नत का।
माँ वसुधा का प्यार भव्य है
जो स्वर्ग सा सदा हर्षाता।
मोहित करता पर्यटक नित
सदा मुल्क का मान बढ़ाता।
शस्यश्यामल भारत माँ का
प्रेम भाव सौहार्द रहे मन में।
जन्म मृत्यु अटल सत्य यह
कोई अर्थ नहीं अनबन में।
इंसानियत कायम हो हिय
द्वेष कुंठा दिल से निकले ।
मुस्लिम हिन्दू भाई भाई हैं
छाती चौड़ी कर तू मिल ले।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दि- 11-8-19
रविवार
मन पसंद लेखन
सादर मंच को समर्पित --
🌹🍀 गीत 🍀🌹
************************
💧🍊💧🍊💧🍊💧🍊💧
नेह की बंशी बजा कर
प्राण पुलकित कर गये ।
बोध के अंकुर उगा कर
राग विकसित कर गये ।।
क्यों दिखाई स्वप्न शोभित
प्रीति अन्तस राग की ।
भेद डाली सुप्त लहरें
शान्त नीर तड़ाग की ।।
एक सोंधी सी छुअन ने
पोर कंपित कर दिये ।
बहकती पावन महक ने
रोम सुरभित कर दिये ।।
हलचलें पैदा हुईं उर ,
साँस विचलित कर गये ।
नेह की बंशी बजा कर
प्राण पुलकित कर गये ।।
बढ़ चली थी प्यास निशदिन
दृष्टि ओझल जब हुए ।
राह ताकें नैन हरदम
दूर ज्यों हमदम हुए ।।
क्या यही था प्यार जिससे
थम गयी थी जिन्दगी ।
चैन दिल को था नहीं
बस याद आती वन्दिगी ।।
हो गया था हाल कैसा
व्योम अंकित कर गये ।
नेह की बंशी बजा कर
प्राण पुलकित कर गये ।।
आ गयी ऋतु सावनी
रिमझिम शरीर जला रही ।
जब भिगो जातीं फुहारें
सिरहनें मचला रही ।।
कब सुहाती नभ घटायें
और तड़प बढ़ा रही ।
कड़क बिजली तड़पती तो
जिया को धधका रही ।।
याद उठ आती हिया में
हूक हुलसित कर गये ।
नेह की बंशी बजा कर
प्राण पुलकित कर गये ।।
🌺🍀🌻💧🌹
🌴☀ **....रवीन्द्र वर्मा आगरा
रविवार
मन पसंद लेखन
सादर मंच को समर्पित --
🌹🍀 गीत 🍀🌹
************************
💧🍊💧🍊💧🍊💧🍊💧
नेह की बंशी बजा कर
प्राण पुलकित कर गये ।
बोध के अंकुर उगा कर
राग विकसित कर गये ।।
क्यों दिखाई स्वप्न शोभित
प्रीति अन्तस राग की ।
भेद डाली सुप्त लहरें
शान्त नीर तड़ाग की ।।
एक सोंधी सी छुअन ने
पोर कंपित कर दिये ।
बहकती पावन महक ने
रोम सुरभित कर दिये ।।
हलचलें पैदा हुईं उर ,
साँस विचलित कर गये ।
नेह की बंशी बजा कर
प्राण पुलकित कर गये ।।
बढ़ चली थी प्यास निशदिन
दृष्टि ओझल जब हुए ।
राह ताकें नैन हरदम
दूर ज्यों हमदम हुए ।।
क्या यही था प्यार जिससे
थम गयी थी जिन्दगी ।
चैन दिल को था नहीं
बस याद आती वन्दिगी ।।
हो गया था हाल कैसा
व्योम अंकित कर गये ।
नेह की बंशी बजा कर
प्राण पुलकित कर गये ।।
आ गयी ऋतु सावनी
रिमझिम शरीर जला रही ।
जब भिगो जातीं फुहारें
सिरहनें मचला रही ।।
कब सुहाती नभ घटायें
और तड़प बढ़ा रही ।
कड़क बिजली तड़पती तो
जिया को धधका रही ।।
याद उठ आती हिया में
हूक हुलसित कर गये ।
नेह की बंशी बजा कर
प्राण पुलकित कर गये ।।
🌺🍀🌻💧🌹
🌴☀ **....रवीन्द्र वर्मा आगरा
नमन मंच भावों के मोती
दिनांक-11/8/2019
स्वतंत्र लेखन ग़ज़ल
1212 1122 1212 22/112
निहाल प्यार हुआ है खयाल रख्खा है,
हबीब से ये जो रिश्ता बहाल रख्खा है।
दिखे बहार चमन में मुझे जवां दिलबर,
ख़िजां मिटी है तो मैंने गुलाल रख्खा है।
निगाह डाल ज़रा देख तो ज़माने में,
फिज़ा हुई है सुहानी जमाल रख्खा है।
हजार बात बनेंगी ज़हान रूठा है,
दुआ में हाथ नहीं तो मलाल रख्खा है।
दिखे स़फीर ज़मीं पर तिरी सदाकत से,
हसीन शाम हुई है रुमाल रख्खा है।
लरज़ रही है हकीकत किसी फ़साने में,
लिहाज़ तेरी वफ़ा का कमाल रख्खा है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनांक-11/8/2019
स्वतंत्र लेखन ग़ज़ल
1212 1122 1212 22/112
निहाल प्यार हुआ है खयाल रख्खा है,
हबीब से ये जो रिश्ता बहाल रख्खा है।
दिखे बहार चमन में मुझे जवां दिलबर,
ख़िजां मिटी है तो मैंने गुलाल रख्खा है।
निगाह डाल ज़रा देख तो ज़माने में,
फिज़ा हुई है सुहानी जमाल रख्खा है।
हजार बात बनेंगी ज़हान रूठा है,
दुआ में हाथ नहीं तो मलाल रख्खा है।
दिखे स़फीर ज़मीं पर तिरी सदाकत से,
हसीन शाम हुई है रुमाल रख्खा है।
लरज़ रही है हकीकत किसी फ़साने में,
लिहाज़ तेरी वफ़ा का कमाल रख्खा है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
नमन :भावों के मोती मंच
विषय:मेरी विदेश यात्रा
विधा:कविता
11/08/2019
बेटी की उच्च शिक्षा थी पिट्सबर्ग शहर में
किया उसकी आखों से विदेश का भ्रमण ।।
कही बहुमंजिली इमारतें तो कही दूर तक हरियाली
कही पहाड़ी सफर ,तो कही झरने व समुन्दर विशाल
सडकों पर व्यवस्थित गाडिय़ों व लोगों की कतार
सडक पर पैदल व साइकिल वालो की अलग कतार ।।
जब गई वह पहले दिन अपने विश्वविद्यालय
चकित थी वह देख कर साफ सुथरा प्रांगण ।।
खुश हुई वह तुरत पाकर अपना परिचय पत्र
उसी से जुडती गई सभी जरूरती सुविधाए।।
पहुंच कर गर्भित हुई देख अपना प्राध्यापक
अरे यह तो भारतीय है सोच कर नमन कर मन में ।।
शुभ हुआ दिन ,शुरू हो गई नई विद्या नीति
दिनों दिन बढ़ती रही ,ञान की सीमाएं ।।
समय के साथ दिनों रात मौसम बदलने लगे
आ गई विदेश मे सर्दियों का अनोखा मौसम ।।
सुना था पर देखा कैमरे नुमा आखों से हर पल
महसूस किया आसमान से रूई समान गिरती बर्फ ।।
और सडकों पर फैली थी बर्फ की मोटी होती चादर
व्यवस्थित शहर भी कुछ अव्यवस्थित होने लगे थे।।
प्रफुल्लित थी यू महसूस कर नया नया अनुभव
पहुंची थी वहीं मैं भी ,मन से वही बेटी के साथ ।।
#स्वरचित
#नीलम श्रीवास्तव
विषय:मेरी विदेश यात्रा
विधा:कविता
11/08/2019
बेटी की उच्च शिक्षा थी पिट्सबर्ग शहर में
किया उसकी आखों से विदेश का भ्रमण ।।
कही बहुमंजिली इमारतें तो कही दूर तक हरियाली
कही पहाड़ी सफर ,तो कही झरने व समुन्दर विशाल
सडकों पर व्यवस्थित गाडिय़ों व लोगों की कतार
सडक पर पैदल व साइकिल वालो की अलग कतार ।।
जब गई वह पहले दिन अपने विश्वविद्यालय
चकित थी वह देख कर साफ सुथरा प्रांगण ।।
खुश हुई वह तुरत पाकर अपना परिचय पत्र
उसी से जुडती गई सभी जरूरती सुविधाए।।
पहुंच कर गर्भित हुई देख अपना प्राध्यापक
अरे यह तो भारतीय है सोच कर नमन कर मन में ।।
शुभ हुआ दिन ,शुरू हो गई नई विद्या नीति
दिनों दिन बढ़ती रही ,ञान की सीमाएं ।।
समय के साथ दिनों रात मौसम बदलने लगे
आ गई विदेश मे सर्दियों का अनोखा मौसम ।।
सुना था पर देखा कैमरे नुमा आखों से हर पल
महसूस किया आसमान से रूई समान गिरती बर्फ ।।
और सडकों पर फैली थी बर्फ की मोटी होती चादर
व्यवस्थित शहर भी कुछ अव्यवस्थित होने लगे थे।।
प्रफुल्लित थी यू महसूस कर नया नया अनुभव
पहुंची थी वहीं मैं भी ,मन से वही बेटी के साथ ।।
#स्वरचित
#नीलम श्रीवास्तव
।। कमाल आत्मविश्वास का ।।🌻
पिया है पानी मैंने घाट घाट का
तभी लिखूँ संपादकीय हर पाठ का ।।
मुझे अपनी जिन्दगी रास आ गयी
अब न कोई ख्वाब ठाठ बाट का ।।
हर वक्त से समझौता करना आया
मैं नही पुत्र कोई जिद्दी जाट का ।।
मेरा तराना हर महफिल में गूँजे
लिखूँ श्रंगार होने वाला साठ का ।।
मन मार कर बैठ जाना नही सीखा
पूछो हवा से किस्सा उस मात का ।।
धराशायी हो गयीं थीं वो हवायें
जब था मैं केवल वर्ष आठ का ।।
दिल में जुनून जगा होना चाहिये
फल सभी को मिलता प्रयास का ।।
मैं खुलकर कहूँ मेरा स्वभाव नही
राजाओं के यहाँ गाने वाले भाट का ।।
सोचूँ जज़्बा जगे 'शिवम' जब कोई
पढ़े पहला पाठ मेरी किताब का ।।
चेतना जाग जाय उसके अन्तर्मन में
दिखाए कमाल आत्म विश्वास का ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/08/2019
पिया है पानी मैंने घाट घाट का
तभी लिखूँ संपादकीय हर पाठ का ।।
मुझे अपनी जिन्दगी रास आ गयी
अब न कोई ख्वाब ठाठ बाट का ।।
हर वक्त से समझौता करना आया
मैं नही पुत्र कोई जिद्दी जाट का ।।
मेरा तराना हर महफिल में गूँजे
लिखूँ श्रंगार होने वाला साठ का ।।
मन मार कर बैठ जाना नही सीखा
पूछो हवा से किस्सा उस मात का ।।
धराशायी हो गयीं थीं वो हवायें
जब था मैं केवल वर्ष आठ का ।।
दिल में जुनून जगा होना चाहिये
फल सभी को मिलता प्रयास का ।।
मैं खुलकर कहूँ मेरा स्वभाव नही
राजाओं के यहाँ गाने वाले भाट का ।।
सोचूँ जज़्बा जगे 'शिवम' जब कोई
पढ़े पहला पाठ मेरी किताब का ।।
चेतना जाग जाय उसके अन्तर्मन में
दिखाए कमाल आत्म विश्वास का ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/08/2019
नमन मंच मनपसंद लेखन के अन्तर्गत
दिनांकः-11- 8- 2010
वारः-रविवार
विधाः-हास्य सृजन
शीर्षकः लो आ गया हूँ वापस मैं लौट
लो आगया हूँ फिर से वापस मैं लौट ।
डाक्टर बोले दिमाग में हुया कोई खोट।।
आज तक प्रयोग में नहीं गया है लाया।
पड़े पड़े निष्क्रिय, बेकार अब हो गया।।
पूछा क्या लिख सकता हूँ मैं कवितायें ।
लिख सकते हो, मन अगर आपके भाये।।
जैसे बिना दिमाग के आप रहते लिखते।
दिमाग प्रयोग में मगर, ला नहीं सकते।।
करा प्रयोग दिमाग तो गजब हो जायगा।
पढ़ने वाला बेचारा भी पागल हो जायगा।।
पागल होकर वह भी कवि बन जायगा।
कवि बन कविता, आपको वह सुनायेगा।।
व्यथित हृदय, कविता यदि उसकी सुनेगा।
उसका लिखा समझ किसी के न आयेगा।।
लिखने से बाज़ न आया तो पत्थर खायेगा।
कविता को होकर प्रकट, फरमाना पड़ेगा।।
कोई पत्थर नहीं मारो मेरे इस दीवाने को।
लिखा नहीं इसने, कुछ आपके सताने को।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दिनांकः-11- 8- 2010
वारः-रविवार
विधाः-हास्य सृजन
शीर्षकः लो आ गया हूँ वापस मैं लौट
लो आगया हूँ फिर से वापस मैं लौट ।
डाक्टर बोले दिमाग में हुया कोई खोट।।
आज तक प्रयोग में नहीं गया है लाया।
पड़े पड़े निष्क्रिय, बेकार अब हो गया।।
पूछा क्या लिख सकता हूँ मैं कवितायें ।
लिख सकते हो, मन अगर आपके भाये।।
जैसे बिना दिमाग के आप रहते लिखते।
दिमाग प्रयोग में मगर, ला नहीं सकते।।
करा प्रयोग दिमाग तो गजब हो जायगा।
पढ़ने वाला बेचारा भी पागल हो जायगा।।
पागल होकर वह भी कवि बन जायगा।
कवि बन कविता, आपको वह सुनायेगा।।
व्यथित हृदय, कविता यदि उसकी सुनेगा।
उसका लिखा समझ किसी के न आयेगा।।
लिखने से बाज़ न आया तो पत्थर खायेगा।
कविता को होकर प्रकट, फरमाना पड़ेगा।।
कोई पत्थर नहीं मारो मेरे इस दीवाने को।
लिखा नहीं इसने, कुछ आपके सताने को।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
सभी कलमकारों को आदाब एक गीत बचपन की याद में
जमाने में शोहरत की चाहत नहीं है
न दौलत के खातिर करु कोई धंधा।
है हसरत मेरी फिर बचपन में जाकर
अंटी वो कंच्चे खेलूं गिल्ली डंडा।
मदरसे से आकर बस्ता पटक कर,
खाना खाकर बाहर निकल कर,
मिट्टी में खेलूं करु कपड़े गंदा।
है हसरत मेरी फिर
पगडंडी पे चलकर खेतों में जाना
बैलों वो गैय्यो को पानी पिलाना,
थककर के बैठूं में चच्चा का कंधा
है हसरत मेरी फिर बचपन
वारिष में पोखर पे जाकर नहाना,
मित्रों के संग खूब उदम मचाना,
गलती पे पड़ता अब्बा का डंडा।
है हसरत मेरी फिर बचपन
वो सुनना हमें दादी से कहानी,
अम्मा सिखाती वो बातें सयानी,
महंगा पड़ेगा हमको बहना से पंगा,
है हसरत मेरी फिर बचपन
सतोला भी खैलू कब्बडी में खेलूं,
साबन जो आये तो झूला में झूलू,
लेकर के दोडू में हामिद तिरंगा,
है हसरत मेरी फिर बचपन में जाकर
अंटी वो कंच्चे खेलूं गिल्ली डंडा।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
जमाने में शोहरत की चाहत नहीं है
न दौलत के खातिर करु कोई धंधा।
है हसरत मेरी फिर बचपन में जाकर
अंटी वो कंच्चे खेलूं गिल्ली डंडा।
मदरसे से आकर बस्ता पटक कर,
खाना खाकर बाहर निकल कर,
मिट्टी में खेलूं करु कपड़े गंदा।
है हसरत मेरी फिर
पगडंडी पे चलकर खेतों में जाना
बैलों वो गैय्यो को पानी पिलाना,
थककर के बैठूं में चच्चा का कंधा
है हसरत मेरी फिर बचपन
वारिष में पोखर पे जाकर नहाना,
मित्रों के संग खूब उदम मचाना,
गलती पे पड़ता अब्बा का डंडा।
है हसरत मेरी फिर बचपन
वो सुनना हमें दादी से कहानी,
अम्मा सिखाती वो बातें सयानी,
महंगा पड़ेगा हमको बहना से पंगा,
है हसरत मेरी फिर बचपन
सतोला भी खैलू कब्बडी में खेलूं,
साबन जो आये तो झूला में झूलू,
लेकर के दोडू में हामिद तिरंगा,
है हसरत मेरी फिर बचपन में जाकर
अंटी वो कंच्चे खेलूं गिल्ली डंडा।
हामिद सन्दलपुरी की कलम से
नमन मंच को🙏🏼
दिनांक- 11/8/2019
🌹शीर्षक - हा मै रचना हूँ🌹
मैं रचना हूँ हां मैं वही रचना हूँ
मस्तिष्क में उठते विचारों
की मैं रचना हूँ
कवि के अंतर्मन कि मैं रचना हूँ
भावनाओं को व्यक्त करती मैं रचना हूँ
अपने गमों को मैं लयबद्ध रचना
में डाल देती मैं वही रचना हूँ
मैं काल्पनिक नही मैं हकीकत हूँ
जो खुद से रची गई मैं वही रचना हूँ
क्यूँ तुम नही जानते मुझे
जो भावों को व्यक्त करे मै वही रचना हूँ
मैं वही रचना हूँ जिसमे स्वंय से
बिना बोले बात हो और मीठी सी
मुलाकात हो बस एहसास एहसास हो
जिसमें शब्दकोश से दूर सर्जन हो
और कुछ नही बस भजन ही भजन हो
जिसमें संस्कारों का किस्सा अमर हो
और बुराइयों का पतन हो
हां मैं वही रचना हूँ जिसमें साहित्य
का ना कोई व्यापार हो बस
प्यार ही प्यार हो*****
मै वही रचना हूँ जो सीमा पर
डटे जवान भारत माँ की खातिर
हो जाते बलिदान
हंसते-हंसते सीने पर गोली खा जाते
मैं वही रचना हूँ जिसमें वृद्धों को
वृद्ध आश्रम जाते देखा है
मैं वही रचना हूँ जिसमें अनाथ बच्चों
को भूखे तड़पते बिलखते देखा
मैं वही रचना हूँ बारिश में भीगता
हुआ मेरा बचपन
अबोध बालक सी मासूमियत
दुख की छलबलाहट
सुख की सरसराहट मैं वही रचना हूँ
मैं वही रचना हूँ
जिसमें गांव शहर के अजनबी
चेहरे इसमें भविष्य के स्वप्न सुनहरे
मैं वही रचना हूँ जिसमें आम
आदमी के बड़े-बड़े काम
सत्ता की खातिर नेताओं को जनता
को बेवकूफ बनाते देखा है
हां हां मैं वही रचना हूँ जिसमें मैं
अकेली और तन्हाई से घिरी
गमो और दर्द मुस्कुराहट को समेटे हुये
हां मैं वही रचना हूँ हो रहे नारी
पर अत्याचार कि ,समाज में हो रहे
मानसिक और शारीरिक बलात्कार
की रचना
प्रेम से उत्पन्न भावों की रचना हूँ
कभी श्रगांर रस मे ठुबी रचना
तो कभी व्याकुल मन की रचना
कभी दर्द से बिलबिलाती कराहती
कभी क्रोध से ज्वाला सी रचना
दोस्ती में खाये धोखे की रचना
हां मैं वही रचना हूँ प्रेम का
इजहार करती ,नारी के रूप का
बखान करती,खुशियों को समेटती
हुई दुखों को उकेरती हुई
हां भई हां मैं वही रचना हूँ
रचनाकार की रचना ,उसके पन्नों में
मैं यू बिछ सी जाती और रचनाओ
से रच देती एक अमर कथा
जो फिर कहलाती है एक रचना
💕स्वरचित - हेमा जोशी
दिनांक- 11/8/2019
🌹शीर्षक - हा मै रचना हूँ🌹
मैं रचना हूँ हां मैं वही रचना हूँ
मस्तिष्क में उठते विचारों
की मैं रचना हूँ
कवि के अंतर्मन कि मैं रचना हूँ
भावनाओं को व्यक्त करती मैं रचना हूँ
अपने गमों को मैं लयबद्ध रचना
में डाल देती मैं वही रचना हूँ
मैं काल्पनिक नही मैं हकीकत हूँ
जो खुद से रची गई मैं वही रचना हूँ
क्यूँ तुम नही जानते मुझे
जो भावों को व्यक्त करे मै वही रचना हूँ
मैं वही रचना हूँ जिसमे स्वंय से
बिना बोले बात हो और मीठी सी
मुलाकात हो बस एहसास एहसास हो
जिसमें शब्दकोश से दूर सर्जन हो
और कुछ नही बस भजन ही भजन हो
जिसमें संस्कारों का किस्सा अमर हो
और बुराइयों का पतन हो
हां मैं वही रचना हूँ जिसमें साहित्य
का ना कोई व्यापार हो बस
प्यार ही प्यार हो*****
मै वही रचना हूँ जो सीमा पर
डटे जवान भारत माँ की खातिर
हो जाते बलिदान
हंसते-हंसते सीने पर गोली खा जाते
मैं वही रचना हूँ जिसमें वृद्धों को
वृद्ध आश्रम जाते देखा है
मैं वही रचना हूँ जिसमें अनाथ बच्चों
को भूखे तड़पते बिलखते देखा
मैं वही रचना हूँ बारिश में भीगता
हुआ मेरा बचपन
अबोध बालक सी मासूमियत
दुख की छलबलाहट
सुख की सरसराहट मैं वही रचना हूँ
मैं वही रचना हूँ
जिसमें गांव शहर के अजनबी
चेहरे इसमें भविष्य के स्वप्न सुनहरे
मैं वही रचना हूँ जिसमें आम
आदमी के बड़े-बड़े काम
सत्ता की खातिर नेताओं को जनता
को बेवकूफ बनाते देखा है
हां हां मैं वही रचना हूँ जिसमें मैं
अकेली और तन्हाई से घिरी
गमो और दर्द मुस्कुराहट को समेटे हुये
हां मैं वही रचना हूँ हो रहे नारी
पर अत्याचार कि ,समाज में हो रहे
मानसिक और शारीरिक बलात्कार
की रचना
प्रेम से उत्पन्न भावों की रचना हूँ
कभी श्रगांर रस मे ठुबी रचना
तो कभी व्याकुल मन की रचना
कभी दर्द से बिलबिलाती कराहती
कभी क्रोध से ज्वाला सी रचना
दोस्ती में खाये धोखे की रचना
हां मैं वही रचना हूँ प्रेम का
इजहार करती ,नारी के रूप का
बखान करती,खुशियों को समेटती
हुई दुखों को उकेरती हुई
हां भई हां मैं वही रचना हूँ
रचनाकार की रचना ,उसके पन्नों में
मैं यू बिछ सी जाती और रचनाओ
से रच देती एक अमर कथा
जो फिर कहलाती है एक रचना
💕स्वरचित - हेमा जोशी
नमन मंच🙏
दिनांक 11/8/2019
स्वतंत्र लेखन विषय- "सरस्वती वंदना"
विधा - दोहा
***********************
दुविधा मेरी तुम हरो,मात शारदे आज।
मन्द बुद्धि जानूँ नहीं, लय- सुर का मैं राज ||
चक्षु ज्ञान के खोलकर,दो ऐसा वरदान।
माँ तेरे आशीष से, पूरण हो हर काज ||
विद्या के भंडार की, अद्भुत यारों बात।
खर्च करो जितना मगर,बढ़ती ये दिन-रात।।
स्रवित करो माँ शारदे,सात सुरों की धार।
हृदय तिमिर सब दूरकर,कर दो बेड़ा पार।।
स्वरचित-संगीता जोशी कुकरेती
दिनांक 11/8/2019
स्वतंत्र लेखन विषय- "सरस्वती वंदना"
विधा - दोहा
***********************
दुविधा मेरी तुम हरो,मात शारदे आज।
मन्द बुद्धि जानूँ नहीं, लय- सुर का मैं राज ||
चक्षु ज्ञान के खोलकर,दो ऐसा वरदान।
माँ तेरे आशीष से, पूरण हो हर काज ||
विद्या के भंडार की, अद्भुत यारों बात।
खर्च करो जितना मगर,बढ़ती ये दिन-रात।।
स्रवित करो माँ शारदे,सात सुरों की धार।
हृदय तिमिर सब दूरकर,कर दो बेड़ा पार।।
स्वरचित-संगीता जोशी कुकरेती
नमन - सम्मानित मंच
विषय - मनपसंद
11-8-19 , रविवार
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
गीतिका
----------
जन्नत भी फीकी लगे, देखें जब कश्मीर,
कोई क्या वर्णन करे, हर बाला है हीर।
कुंदन सी दमकें सदा, करती भाव विभोर,
चपल चंचला गोरियाँ, मन को करें अधीर।
केसर वाली क्यारियाँ, सकल विश्व मशहूर,
उनमें बारूदें भरी, बात बड़ी गम्भीर।
सेवों के बागान भी, हुए सभी बर्बाद,
इनको अभी सुधारना, बदलेगी तस्वीर।
धारा तीन सौ सत्तर, हो गई है निरस्त,
कश्मीरी सब खुश हुए, सुधरेगी तकदीर।
देश द्रोह का सूर्य भी, हो जायेगा अस्त,
अपना प्रिय कश्मीर अब,अपनी है जागीर।
मँजूरी दी संसद ने, खुशियाँ हैं सब ओर,
भारत माँ की जय कहें,जय जय जय कश्मीर ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
विषय - मनपसंद
11-8-19 , रविवार
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गीतिका
----------
जन्नत भी फीकी लगे, देखें जब कश्मीर,
कोई क्या वर्णन करे, हर बाला है हीर।
कुंदन सी दमकें सदा, करती भाव विभोर,
चपल चंचला गोरियाँ, मन को करें अधीर।
केसर वाली क्यारियाँ, सकल विश्व मशहूर,
उनमें बारूदें भरी, बात बड़ी गम्भीर।
सेवों के बागान भी, हुए सभी बर्बाद,
इनको अभी सुधारना, बदलेगी तस्वीर।
धारा तीन सौ सत्तर, हो गई है निरस्त,
कश्मीरी सब खुश हुए, सुधरेगी तकदीर।
देश द्रोह का सूर्य भी, हो जायेगा अस्त,
अपना प्रिय कश्मीर अब,अपनी है जागीर।
मँजूरी दी संसद ने, खुशियाँ हैं सब ओर,
भारत माँ की जय कहें,जय जय जय कश्मीर ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
नमन मंच भावों के मोती
11/08/19
विषय किसान
दोहावली
***
माटी अपने खेत की,.....पूजें धरतीपुत्र,
अन्नदाता बन कर ये ,करते कर्म पवित्र। (१)
वर्षा पर निर्भर रहे ,.....ये मजबूर किसान ,
सूखा अरु अतिवृष्टि का ,कैसे करे निदान ।(२)
कड़ी धूप या शीत हो,"हल" में जुटे किसान,
फसल बढ़े जब खेत में,उसमें बसती जान।(३)
सपन सजा के नैन में ,रोपें बिरवा धान।
नष्ट हुआ अतिवृष्टि से ,कैसे कन्यादान ।।(४)
खेती करें जो पान की ,धन का रहे अभाव ।
मोहभंग अब हो रहा,उचित मिले नहि भाव।।(५)
बरस बीत इतने गये ,हालत वो ही आज,
डूबे रहते कर्ज में,चुका न पाये ब्याज ।(६)
जय किसान नारा लगा ,फिर भी देते जान,
हम सब इनके हैं ऋणी,रक्खे इनका मान ।(७)
स्वरचित
अनिता सुधीर
11/08/19
विषय किसान
दोहावली
***
माटी अपने खेत की,.....पूजें धरतीपुत्र,
अन्नदाता बन कर ये ,करते कर्म पवित्र। (१)
वर्षा पर निर्भर रहे ,.....ये मजबूर किसान ,
सूखा अरु अतिवृष्टि का ,कैसे करे निदान ।(२)
कड़ी धूप या शीत हो,"हल" में जुटे किसान,
फसल बढ़े जब खेत में,उसमें बसती जान।(३)
सपन सजा के नैन में ,रोपें बिरवा धान।
नष्ट हुआ अतिवृष्टि से ,कैसे कन्यादान ।।(४)
खेती करें जो पान की ,धन का रहे अभाव ।
मोहभंग अब हो रहा,उचित मिले नहि भाव।।(५)
बरस बीत इतने गये ,हालत वो ही आज,
डूबे रहते कर्ज में,चुका न पाये ब्याज ।(६)
जय किसान नारा लगा ,फिर भी देते जान,
हम सब इनके हैं ऋणी,रक्खे इनका मान ।(७)
स्वरचित
अनिता सुधीर
भा.सादर नमन साथियों
11/8/2019/रविवार
बिषयःःः #मेरी पूंछ#
विधाःः अतुकांत, हास्य व्यंग्यःः
मेरी मूंछ तो पहले ही नहीं थी
बाद में शनैः शनैः पूंछ भी कट गई
फिर भी लोग
मुझसे चिपक रहे हैं
मेरे सहारे अभी भी कुछ बेचारे
वैतरणी पार करना
ऊपर पट्टू चाह रहे हैं।
मेरी पूंछ का केवल
एक ठुंठा बचा है
पता नहीं क्यों इनके जेहन में
अभी भी ये रचा बसा है।
मै तो स्वयं ही इस अधेडावस्था में
अपना सहारा ढूंढ रहा हूँ
फिर ये कैसे लोग हैं जो
मेरी कटी पूंछ से
अपना अपना किनारा तलाश रहे हैं।
मैने बहुत रूप धारण कर लिए
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारों के चक्कर काटे
तिलक लगाऐ जनेऊ लटकाऐ
संसद में भी मैने अपने
हुनर के बेहतरीन जलवे दिखलाऐ
मगर सब कुछ हुआ बेकार
मेरी चालाकी या कहूँ वेवकूफी
किसी काम न आई
मेरी चाटुकारिता में कमी न आई
लेकिन मेरी पूंछ नहीं बढ पाई
उल्टी बेचारी कटती गई
धीरे धीरे घटती गई
और भाई लोग मुझे और मेरी कटी पूंछ को
अभी भी नहीं छोड़ रहे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
11/8/2019/रविवार
बिषयःःः #मेरी पूंछ#
विधाःः अतुकांत, हास्य व्यंग्यःः
मेरी मूंछ तो पहले ही नहीं थी
बाद में शनैः शनैः पूंछ भी कट गई
फिर भी लोग
मुझसे चिपक रहे हैं
मेरे सहारे अभी भी कुछ बेचारे
वैतरणी पार करना
ऊपर पट्टू चाह रहे हैं।
मेरी पूंछ का केवल
एक ठुंठा बचा है
पता नहीं क्यों इनके जेहन में
अभी भी ये रचा बसा है।
मै तो स्वयं ही इस अधेडावस्था में
अपना सहारा ढूंढ रहा हूँ
फिर ये कैसे लोग हैं जो
मेरी कटी पूंछ से
अपना अपना किनारा तलाश रहे हैं।
मैने बहुत रूप धारण कर लिए
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारों के चक्कर काटे
तिलक लगाऐ जनेऊ लटकाऐ
संसद में भी मैने अपने
हुनर के बेहतरीन जलवे दिखलाऐ
मगर सब कुछ हुआ बेकार
मेरी चालाकी या कहूँ वेवकूफी
किसी काम न आई
मेरी चाटुकारिता में कमी न आई
लेकिन मेरी पूंछ नहीं बढ पाई
उल्टी बेचारी कटती गई
धीरे धीरे घटती गई
और भाई लोग मुझे और मेरी कटी पूंछ को
अभी भी नहीं छोड़ रहे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
नमन मंच ११/०८/२०१९
लघु कविता
विषय---"कश्मीर हमारा गौरव है"
आज तिरंगे ने देखो,कश्मीर से नाता जोड़ा है।
कश्मीर हमारा गौरव है,यह बच्चा बच्चा बोला है।।
देश भक्त हैं गले लग रहे, गद्दारों में सन्नाटा है।
अपना हक हासिल करके, दुश्मन को हमने रौंदा है।।
खुशी मनाओ देश में आज , फिर से आजादी आई है।
हटी तीन सौ सत्तर अब,गद्दारों की शामत आई है।।
सत्तर वर्षों से जो बिमारी थी, उसका है आज इलाज हुआ।
आजादी के रूप में देखो ,कैसी खुशहाली छाई है।।
घाटी में चलकर देखो, केसर कैसे महकी है।
आज देश के हर दिल में एक ज्वाला सी दहकी है।।
भारत माँ के वीरों ने , पौरुष अपना दिखलाया है।
देख वीरता वीरों की , दुश्मन की छाती दहली है।।
अब कश्मीर हमारा है, हर कश्मीरी हमारा भाई है।
जा कर कहदो गद्दारों से, अब उनकी शामत आई है।।
देश प्रेम का पाठ पढें ,या देश छोड़ कर भागें वो।
जरा गौर से देखो तो , घर घर खुशहाली छाई है।।
हर घर में मिष्ठान पका है, जब से खुशी यह पाई है।
जो जुदा हो गए इस हेतु , उनकी भी याद तो आई है।।
इन त्रिदेवों की जोड़ी ने, ऐसी खुशहाली सौंपी है।
कश्मीरी गलियों नें फिर से , श्रीराम की धुन सुनाई है।।
चुन चुन के अफजल को मारो, अब है उसकी खैर नहीं।
लेकिन सच्चे हिन्दूस्तानी से ,हमको है कोई बैर नहीं।।
आज सुनों ललकार वत्स की,चुप होकर न बैठेंगे।
जब तक पी.ओ.के.न ले लें हमको है तब तक चैन नहीं।।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर
लघु कविता
विषय---"कश्मीर हमारा गौरव है"
आज तिरंगे ने देखो,कश्मीर से नाता जोड़ा है।
कश्मीर हमारा गौरव है,यह बच्चा बच्चा बोला है।।
देश भक्त हैं गले लग रहे, गद्दारों में सन्नाटा है।
अपना हक हासिल करके, दुश्मन को हमने रौंदा है।।
खुशी मनाओ देश में आज , फिर से आजादी आई है।
हटी तीन सौ सत्तर अब,गद्दारों की शामत आई है।।
सत्तर वर्षों से जो बिमारी थी, उसका है आज इलाज हुआ।
आजादी के रूप में देखो ,कैसी खुशहाली छाई है।।
घाटी में चलकर देखो, केसर कैसे महकी है।
आज देश के हर दिल में एक ज्वाला सी दहकी है।।
भारत माँ के वीरों ने , पौरुष अपना दिखलाया है।
देख वीरता वीरों की , दुश्मन की छाती दहली है।।
अब कश्मीर हमारा है, हर कश्मीरी हमारा भाई है।
जा कर कहदो गद्दारों से, अब उनकी शामत आई है।।
देश प्रेम का पाठ पढें ,या देश छोड़ कर भागें वो।
जरा गौर से देखो तो , घर घर खुशहाली छाई है।।
हर घर में मिष्ठान पका है, जब से खुशी यह पाई है।
जो जुदा हो गए इस हेतु , उनकी भी याद तो आई है।।
इन त्रिदेवों की जोड़ी ने, ऐसी खुशहाली सौंपी है।
कश्मीरी गलियों नें फिर से , श्रीराम की धुन सुनाई है।।
चुन चुन के अफजल को मारो, अब है उसकी खैर नहीं।
लेकिन सच्चे हिन्दूस्तानी से ,हमको है कोई बैर नहीं।।
आज सुनों ललकार वत्स की,चुप होकर न बैठेंगे।
जब तक पी.ओ.के.न ले लें हमको है तब तक चैन नहीं।।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर
द्वितीय प्रस्तुति
💐💐💐💐💐💐
******सेनेरयु ******
××××××
(1)
मावोवाद का
सरकारी इलाज़
जंगलराज
(2)
चौराहे खुश
बूत बनके खड़े
महापुरुष
(3)
अंगूठा छाप
एकलव्य बन जा
अंगूठा काट
(4)
सारे फसाद
पापी पेट के वास्ते
है निर्विवाद
(5)
लोकतंत्र का
नाजायज औलाद
आतंकवाद
(6)
ऐ.सी. में बैठ
गरीबी पर चर्चा
ज़ुबानी खर्चा
(7)
पानीदार भी
पानी-पानी न हुए
वाहरे पानी
(8)
गणतंत्र में
बढ़िया कारोबार
भ्रष्ट आचार
(9)
हे!राम हाय
बेचारी जनता है
दुधारू गाय
(10)
राम अकेला
मुद्रा के बाज़ार में
बिके ना धेला
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
💐💐💐💐💐💐
******सेनेरयु ******
××××××
(1)
मावोवाद का
सरकारी इलाज़
जंगलराज
(2)
चौराहे खुश
बूत बनके खड़े
महापुरुष
(3)
अंगूठा छाप
एकलव्य बन जा
अंगूठा काट
(4)
सारे फसाद
पापी पेट के वास्ते
है निर्विवाद
(5)
लोकतंत्र का
नाजायज औलाद
आतंकवाद
(6)
ऐ.सी. में बैठ
गरीबी पर चर्चा
ज़ुबानी खर्चा
(7)
पानीदार भी
पानी-पानी न हुए
वाहरे पानी
(8)
गणतंत्र में
बढ़िया कारोबार
भ्रष्ट आचार
(9)
हे!राम हाय
बेचारी जनता है
दुधारू गाय
(10)
राम अकेला
मुद्रा के बाज़ार में
बिके ना धेला
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
नमन भावों के मोती
दिनांक:11अगस्त19
विषय: बारिश /पानी
विधा:कविता
रिमझिम बरस रहा पानी
बूंदें मचा रहीं मनमानी
खेतों की है छटा सुहानी
हरित वसुंधरा रंगत धानी
कीट पतंगे दादुर वानी
कोयल है जानी पहचानी
सुंदर पुष्प रात की रानी
चम्पा,चमेली बड़ी सायानी
सुंदर मौसम बरखा रानी
रिमझिम बरस रहा पानी
मनीष श्री
रायबरेली
दिनांक:11अगस्त19
विषय: बारिश /पानी
विधा:कविता
रिमझिम बरस रहा पानी
बूंदें मचा रहीं मनमानी
खेतों की है छटा सुहानी
हरित वसुंधरा रंगत धानी
कीट पतंगे दादुर वानी
कोयल है जानी पहचानी
सुंदर पुष्प रात की रानी
चम्पा,चमेली बड़ी सायानी
सुंदर मौसम बरखा रानी
रिमझिम बरस रहा पानी
मनीष श्री
रायबरेली
नमन मंच
भावों के मोती
11/8/2019
“जीवन “
जीवन को कुछ
यूँ आकार दो
सपने सब नहीं
पर कुछ तो साकार हो
पल-पल भले ना
ख़ुशियों की भरमार हो
पर कभी-कभी
इस मन का भी सत्कार हो
बिछड़ना चाहे बार-बार हो
पर सच्चा प्यार तो एक बार हो
जीतना चाहे बार-बार हो
पर एक बार हार भी स्वीकार हो
क़दम लड़खड़ाये बार- बार
पर इरादों की ना हार हो
जीने कै पल सिर्फ़ चार हों
पर फिर बाक़ी ना
जीवन का कुछ उधार हो
जीना मरना चाहे बार- बार हो
पर हिम्मत की कभी ना हार हो
शेहला जावैद
भावों के मोती
11/8/2019
“जीवन “
जीवन को कुछ
यूँ आकार दो
सपने सब नहीं
पर कुछ तो साकार हो
पल-पल भले ना
ख़ुशियों की भरमार हो
पर कभी-कभी
इस मन का भी सत्कार हो
बिछड़ना चाहे बार-बार हो
पर सच्चा प्यार तो एक बार हो
जीतना चाहे बार-बार हो
पर एक बार हार भी स्वीकार हो
क़दम लड़खड़ाये बार- बार
पर इरादों की ना हार हो
जीने कै पल सिर्फ़ चार हों
पर फिर बाक़ी ना
जीवन का कुछ उधार हो
जीना मरना चाहे बार- बार हो
पर हिम्मत की कभी ना हार हो
शेहला जावैद
विषय - स्वतंत्र
दिनांक - 11/08/2019
विधा- गीत
**भींगती धरा की यह हर्षित बेला**
---------------------------------------------------------------------------
बरसात का मौसम आया है, हर ओर हरियाली छायी।
भींगती धरा की यह हर्षित बेला, सबके मन को भायी।।
********************************************
क्या बच्चे, क्या बूढ़े, सब पर जवानी आयी,
वन - कानन में चहुँओर खूब बहारें छायी।
मोर, मोरनी को पंख फैला नाच दिखाए,
हर प्राणी में प्रेम का खूब लहर फैलाए,
काली-काली बदरिया गगन पथ पर इधर-उधर मँडराई।
भींगती धरा की यह हर्षित बेला, सबके मन को भायी।।
********************************************
किसान खुशी से हल बैलों संग खेत जाते,
नर-नारी अत्यंत खुशी में राग मल्हार गाते।
हर ओर आनंद ही आनंद की शुरुआत है,
जीवन में खुशी की होने वाली बरसात है,
नभ में घन प्रिया की चमक से हर चेहरे में चमक आयी।
भींगती धरा की यह हर्षित बेला, सबके मन को भायी।।
*********************************************
बहने लगी चारों तरफ सरस स्नेह की धार,
सराबोर हर जीव जगत प्रेम में बार-बार।
खोकर हर दुःख दर्द को सावन पर्व मनाए,
मौसम ले अंगराई उमंग हर उर जगाए,
छलछलाती , इठलाती वर्षा बूँद - बूँद प्रीत बरसायी।
भींगती धरा की यह हर्षित बेला, सबके मन को भायी।।
*********************************************
बरसात का मौसम आया है, हर ओर हरियाली छायी।
भींगती धरा की यह हर्षित बेला, सबके मन को भायी।।
*********************************************
-- रेणु रंजन
( स्वरचित )
बेरुखी
प्यार हमको बेपनाह कर गए,
फिरसे जिन्दगी में हमको तन्हा कर गए,
चाहत थी उनके इश्क में फना होने की पर
तुम लौट कर आने को भी मना कर गए।
बस तुम्हारे नाम से मोहब्बत की है,
तुम्हारे हर अहसास से मोहब्बत की है,
तुम पास नही फिर भी तुम्हारी याद से
मोहब्बत की है,
जो कभी तुमने हमे किया हो याद तो
उन लम्हो के अहसास से मोहब्बत की है,
तुमसे मिलना अब एक ख्वाब सा लगता है,
मैने तुम्हारे इंतजार से मोहब्बत की है।
यकीन है मुझे कभी तो होगा निगाहे करम,
मैने इस उम्मीद से तुम्हारी बेरुखी से भी
मोहब्बत की है।
कामेश की कलम से
11 अगस्त 2019
प्यार हमको बेपनाह कर गए,
फिरसे जिन्दगी में हमको तन्हा कर गए,
चाहत थी उनके इश्क में फना होने की पर
तुम लौट कर आने को भी मना कर गए।
बस तुम्हारे नाम से मोहब्बत की है,
तुम्हारे हर अहसास से मोहब्बत की है,
तुम पास नही फिर भी तुम्हारी याद से
मोहब्बत की है,
जो कभी तुमने हमे किया हो याद तो
उन लम्हो के अहसास से मोहब्बत की है,
तुमसे मिलना अब एक ख्वाब सा लगता है,
मैने तुम्हारे इंतजार से मोहब्बत की है।
यकीन है मुझे कभी तो होगा निगाहे करम,
मैने इस उम्मीद से तुम्हारी बेरुखी से भी
मोहब्बत की है।
कामेश की कलम से
11 अगस्त 2019
नमन भावों के मोती
11,8, 2019.
स्वतंत्र सृजन
रविवार
🌻 तारीफ 🌻
दुनियाँ में तारीफ है ऐसा अस्त्र ,
विफल नहीं कभी जो हो सकता है ।
बड़े बड़े बहुत से लोगों से ,
इसके बल पे कितनों ने जागीरों को लूटा है ।
तारीफों के बाँध बाँध कर के पुलिन्दे ,
जिसके भी सिर पे लाद दिया है ।
उसने ही खुशी खुशी उस बोझा को ,
आँख मूँदकर वहन किया है।
होती है अच्छी बात प्रशंसा करना,
नहीं जो उसमें चाटुकारिता का रंग भरा है।
नये समय की यह देन बन गई ,
तारीफें झूठीं मूंठी ही करना है।
सत्यता को रखकर के ताक पर,
बस उल्लू अपना ही सीधा करना है।
समझदार नहीं कभी झांसे में आते,
हर समय हकीकत का उनको पता है।
जो जागरूक इंसान कभी नहीं ,
इन सब बेबुनियादी बातों में आता है।
हमेशा बुध्दिमान समझता इससे,
उसका विकास मार्ग अवरुद्ध होता है।
तारीफ हमेशा स्वस्थ सजग हो,
नहीं स्वार्थ का उसमें मिश्रण करना है।
देश में हैं प्रतिभाऐं जहाँ कहीं भी,
सही मार्गदर्शन हमको उनको देना है।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
11,8, 2019.
स्वतंत्र सृजन
रविवार
🌻 तारीफ 🌻
दुनियाँ में तारीफ है ऐसा अस्त्र ,
विफल नहीं कभी जो हो सकता है ।
बड़े बड़े बहुत से लोगों से ,
इसके बल पे कितनों ने जागीरों को लूटा है ।
तारीफों के बाँध बाँध कर के पुलिन्दे ,
जिसके भी सिर पे लाद दिया है ।
उसने ही खुशी खुशी उस बोझा को ,
आँख मूँदकर वहन किया है।
होती है अच्छी बात प्रशंसा करना,
नहीं जो उसमें चाटुकारिता का रंग भरा है।
नये समय की यह देन बन गई ,
तारीफें झूठीं मूंठी ही करना है।
सत्यता को रखकर के ताक पर,
बस उल्लू अपना ही सीधा करना है।
समझदार नहीं कभी झांसे में आते,
हर समय हकीकत का उनको पता है।
जो जागरूक इंसान कभी नहीं ,
इन सब बेबुनियादी बातों में आता है।
हमेशा बुध्दिमान समझता इससे,
उसका विकास मार्ग अवरुद्ध होता है।
तारीफ हमेशा स्वस्थ सजग हो,
नहीं स्वार्थ का उसमें मिश्रण करना है।
देश में हैं प्रतिभाऐं जहाँ कहीं भी,
सही मार्गदर्शन हमको उनको देना है।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
:भावों के मोती:
#दिनांक :11:8:2019:
#विषय :एक्छिक लेखन :
#विधा :काव्य :
*""""""* वामपंथी चाल *"""""""*
गरीब को गरीब ही बनाये रखना,
वामपंथियों का यही एक फंडा है,
मज़दूर अगर धनवान बन गया,
फिर साम्यवाद का पीछे डंडा है,
इनका अस्तित्व तो तब तक ही है,
ज़ब तुम निर्धन और मज़बूर ही रहो,
धनवान से ईर्षा और जलन रखो,
और पेट कामरेडों का भरते रहो,
समता को सिरे से खारिज करिये,
सिद्धांत नहीं यह कुछ वाजिब है,
कोई साहस करे और धनहीन रहे,
कामचोर भी क्यों फिर साहिब है,
कुदरत ने भी अंतर रखा हुआ है,
उच्चता और निम्नता स्वाभाविक हैं,
कोई डूब रहा चुल्लू भर पानी में,
कोई सागर का साहसी नाविक है,
मरुस्थल पर्वत सागर और नदी,
इन सबकी अपनी अपनी महत्ता है,
सब के सब जो मैदान बन जाएँ,
महत्व हीन फिर कुदरत की सत्ता है,
कायरता को महिमा मंडित करती,
वामपंथी मूर्खता भरी एक सोच है,
ये लामबंद होकर हड़ताल हैँ कराते,
देश द्रोह से भी ना इनको संकोच है,
मेहनती आलसी में अंतर होता है,
दोनों का पारितोषक भी बेमेल है,
तू जैसा करेगा"दुर्गा"वैसा ही भरेगा,
गुण दोष का भी क्या कोई मेल है,
रचनाकार*""*दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया जिला मंडला
#दिनांक :11:8:2019:
#विषय :एक्छिक लेखन :
#विधा :काव्य :
*""""""* वामपंथी चाल *"""""""*
गरीब को गरीब ही बनाये रखना,
वामपंथियों का यही एक फंडा है,
मज़दूर अगर धनवान बन गया,
फिर साम्यवाद का पीछे डंडा है,
इनका अस्तित्व तो तब तक ही है,
ज़ब तुम निर्धन और मज़बूर ही रहो,
धनवान से ईर्षा और जलन रखो,
और पेट कामरेडों का भरते रहो,
समता को सिरे से खारिज करिये,
सिद्धांत नहीं यह कुछ वाजिब है,
कोई साहस करे और धनहीन रहे,
कामचोर भी क्यों फिर साहिब है,
कुदरत ने भी अंतर रखा हुआ है,
उच्चता और निम्नता स्वाभाविक हैं,
कोई डूब रहा चुल्लू भर पानी में,
कोई सागर का साहसी नाविक है,
मरुस्थल पर्वत सागर और नदी,
इन सबकी अपनी अपनी महत्ता है,
सब के सब जो मैदान बन जाएँ,
महत्व हीन फिर कुदरत की सत्ता है,
कायरता को महिमा मंडित करती,
वामपंथी मूर्खता भरी एक सोच है,
ये लामबंद होकर हड़ताल हैँ कराते,
देश द्रोह से भी ना इनको संकोच है,
मेहनती आलसी में अंतर होता है,
दोनों का पारितोषक भी बेमेल है,
तू जैसा करेगा"दुर्गा"वैसा ही भरेगा,
गुण दोष का भी क्या कोई मेल है,
रचनाकार*""*दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया जिला मंडला
नमन भावों के मोती
🙏शुभ संध्या🙏
11/8/2019
रविवारीय स्वतंत्र लेखन
🌹🌹🌹🌹🌹
*यदि मैं न होता तो क्या होता..?'*
बहुधा हमें ये भ्रम हो जाता है
कि...'यदि मैं न होता तो क्या होता..?'
एकदा अभिमान हुआ था हनुमत को
जब दशानन तलवार ले दौड़ा
मारने जनक नंदिनी को
तभी मंदोदरी ने पति का हाथ पकड़ कर रोका था
'एक स्त्री पर हाथ उठाते हो 'कह कर उसको टोका था
ये दृश्य देख भान हुआ तब हनुमत को
भ्रम दूर हुआ और ज्ञान हुआ मारुत को
कि यदि मैं न होता तो सिय को कौन बचाता ?
कि..यदि मैं न होता तो क्या होता..?
उसकी लीला वो ही जाने
हम स्वयं को अहम समझ क्यों भ्रम पालें
वो प्रभु हैं उन्हें ज्ञात है किससे क्या करवाना है
किससे किस की मदद करानी है
ये उनका एक बहाना है
वो जिससे चाहे उससे कार्य सिद्ध करवा लेते हैं
और हम बेध्यानी में सारा श्रेय स्वयं ले लेते हैं
कि.... यदि मैं न होता तो क्या होता..?
त्रिजटा नाम की एक राक्षसी थी लंका में
एक रात्रि स्वप्न उसने देखा कि
एक वानर आग लगाएगा लंका में
सुन अब हनुमत हुए चिंतित कि
ऐसा आदेश तो नहीं दिया था प्रभु ने
तभी रावण के सैनिक आयुध लेकर
मारने दौड़े दूत पवन सुत को
अन्याय देख विभीषण बोले,
'ये तो घोर अनीति है भ्राता!
जो मारने चले हो एक दूत को '
तब ये आदेश दिया अभिमानी लंकेश ने
वसन लपेट कर,घी डालकर आग दो इस नटखट बंदर की पूँछ में
अब हनुमत लगे सोचने
कि लंकिनी त्रिजटा की बात सच हुई वरना इस विशाल अपरिचित लंका को भस्म करने हेतु
मै घी, तेल, कपड़ा कहाँ से लाता और कहां जाकर आग ढूंढता ?
पर सब कुछ तो अनायास ही
उपलब्ध हो गया
वरना मुझमें फिर यह दम्भ हो जाता
कि...यदि मैं न होता तो क्या होता..?
प्रभु की लीला प्रभु ही जाने
ये तो थी उस युग की सुश्रुत बातें
अब करते हैं कुछ अपनी
कुछ जग की बातें
जब अपने स्वजन हमें छोड़ कर
उस दुनियां में चले हैं जाते
तब भी सहज,सरल कार्य
तो किसी भी तरह पूर्ण हो ही जाते
सच है कि उनकी कमी हमें जीवन भर खलती है
पर ये तो प्रकृति की लीला है
जो कार्य अपना स्वतः ही करती है
कोई निमित्त बन कार्य करा ही जाता है
तब हमारा भ्रम दूर हो जाता है
कि ...यदि मैं न होता तो क्या होता ?
इसमें न कोई आश्चर्य है न ही कोई संशय है
कुछ ईश्वरीय विधान है कुछ प्रकृति का एहसान है
इस जगत का खेला स्वतः ही चलता जाता है
तो हे भोले प्राणी ! सुन ले अमर ये वाणी !
ये सनातन जगत तेरे बिना भी चलता आया है
और तेरे बिना भी चलता रहेगा यही शाश्वत सत्य है
तो ये भ्रम कभी भी मन में न पालें
कि... यदि मै न होता तो क्या होता..!!
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
🙏शुभ संध्या🙏
11/8/2019
रविवारीय स्वतंत्र लेखन
🌹🌹🌹🌹🌹
*यदि मैं न होता तो क्या होता..?'*
बहुधा हमें ये भ्रम हो जाता है
कि...'यदि मैं न होता तो क्या होता..?'
एकदा अभिमान हुआ था हनुमत को
जब दशानन तलवार ले दौड़ा
मारने जनक नंदिनी को
तभी मंदोदरी ने पति का हाथ पकड़ कर रोका था
'एक स्त्री पर हाथ उठाते हो 'कह कर उसको टोका था
ये दृश्य देख भान हुआ तब हनुमत को
भ्रम दूर हुआ और ज्ञान हुआ मारुत को
कि यदि मैं न होता तो सिय को कौन बचाता ?
कि..यदि मैं न होता तो क्या होता..?
उसकी लीला वो ही जाने
हम स्वयं को अहम समझ क्यों भ्रम पालें
वो प्रभु हैं उन्हें ज्ञात है किससे क्या करवाना है
किससे किस की मदद करानी है
ये उनका एक बहाना है
वो जिससे चाहे उससे कार्य सिद्ध करवा लेते हैं
और हम बेध्यानी में सारा श्रेय स्वयं ले लेते हैं
कि.... यदि मैं न होता तो क्या होता..?
त्रिजटा नाम की एक राक्षसी थी लंका में
एक रात्रि स्वप्न उसने देखा कि
एक वानर आग लगाएगा लंका में
सुन अब हनुमत हुए चिंतित कि
ऐसा आदेश तो नहीं दिया था प्रभु ने
तभी रावण के सैनिक आयुध लेकर
मारने दौड़े दूत पवन सुत को
अन्याय देख विभीषण बोले,
'ये तो घोर अनीति है भ्राता!
जो मारने चले हो एक दूत को '
तब ये आदेश दिया अभिमानी लंकेश ने
वसन लपेट कर,घी डालकर आग दो इस नटखट बंदर की पूँछ में
अब हनुमत लगे सोचने
कि लंकिनी त्रिजटा की बात सच हुई वरना इस विशाल अपरिचित लंका को भस्म करने हेतु
मै घी, तेल, कपड़ा कहाँ से लाता और कहां जाकर आग ढूंढता ?
पर सब कुछ तो अनायास ही
उपलब्ध हो गया
वरना मुझमें फिर यह दम्भ हो जाता
कि...यदि मैं न होता तो क्या होता..?
प्रभु की लीला प्रभु ही जाने
ये तो थी उस युग की सुश्रुत बातें
अब करते हैं कुछ अपनी
कुछ जग की बातें
जब अपने स्वजन हमें छोड़ कर
उस दुनियां में चले हैं जाते
तब भी सहज,सरल कार्य
तो किसी भी तरह पूर्ण हो ही जाते
सच है कि उनकी कमी हमें जीवन भर खलती है
पर ये तो प्रकृति की लीला है
जो कार्य अपना स्वतः ही करती है
कोई निमित्त बन कार्य करा ही जाता है
तब हमारा भ्रम दूर हो जाता है
कि ...यदि मैं न होता तो क्या होता ?
इसमें न कोई आश्चर्य है न ही कोई संशय है
कुछ ईश्वरीय विधान है कुछ प्रकृति का एहसान है
इस जगत का खेला स्वतः ही चलता जाता है
तो हे भोले प्राणी ! सुन ले अमर ये वाणी !
ये सनातन जगत तेरे बिना भी चलता आया है
और तेरे बिना भी चलता रहेगा यही शाश्वत सत्य है
तो ये भ्रम कभी भी मन में न पालें
कि... यदि मै न होता तो क्या होता..!!
✍️वंदना सोलंकी©️स्वरचित
#आयोजन - लेखन,ऑडियो
#वार - रविवार
#तिथि - 11/08/2019
#विधा - घनाक्षरी
#विषय - स्वपसन्द ( मेहनत )
........................................
हिम्मत न हारो कभी , बन जायें काम सभी ,
मन में लगन हो तो , चाँद चढ़ जाइये |
मेहनत से काम हो , न बहुत आराम हो ,
कुछ भी असम्भव न , कर दिखलाइये |
भागीरथ प्रयास से , लाये गंग आकाश से ,
पूर्वज हैं तार दिये , आप भी नहाइये |
लाये थे संजीवनी को , मारुति बैकुण्ठ जाय ,
''माधव'' इतिहास में , आप छप जाइये |
#वार - रविवार
#तिथि - 11/08/2019
#विधा - घनाक्षरी
#विषय - स्वपसन्द ( मेहनत )
........................................
हिम्मत न हारो कभी , बन जायें काम सभी ,
मन में लगन हो तो , चाँद चढ़ जाइये |
मेहनत से काम हो , न बहुत आराम हो ,
कुछ भी असम्भव न , कर दिखलाइये |
भागीरथ प्रयास से , लाये गंग आकाश से ,
पूर्वज हैं तार दिये , आप भी नहाइये |
लाये थे संजीवनी को , मारुति बैकुण्ठ जाय ,
''माधव'' इतिहास में , आप छप जाइये |
कुछ तो तुम आंख में पानी रखते।
पाक दामन यह जवानी रखते।
सुनके जिसको यकीन आ जाए।
ऐसा गम ऐसी कहानी रखते।
ये माना के लफ्ज़ नहीं मिलते।
कुछ तो सूरत की बयानी रखते।
जख्म सब सी दिए मेरे तुमने।
कुछ तो चाहत की निशानी रखते।
खूबसूरत हो फक्र यह है तुमको।
काश सीरत भी सुहानी रखते।
हमको दुनियांँ ने सताया "सोहल"।
आप कुछ तो मेहरबानी रखते ।
स्वरचित विपिन सोहल
#स्वरचित
#सन्तोष_कुमार_प्रजापति_माधव_
#कबरई_महोबा_उत्तर_प्रदेश
पाक दामन यह जवानी रखते।
सुनके जिसको यकीन आ जाए।
ऐसा गम ऐसी कहानी रखते।
ये माना के लफ्ज़ नहीं मिलते।
कुछ तो सूरत की बयानी रखते।
जख्म सब सी दिए मेरे तुमने।
कुछ तो चाहत की निशानी रखते।
खूबसूरत हो फक्र यह है तुमको।
काश सीरत भी सुहानी रखते।
हमको दुनियांँ ने सताया "सोहल"।
आप कुछ तो मेहरबानी रखते ।
स्वरचित विपिन सोहल
#स्वरचित
#सन्तोष_कुमार_प्रजापति_माधव_
#कबरई_महोबा_उत्तर_प्रदेश
नमन "भावो के मोती"
11/08/2019
शुभ सांझ🙏
स्वतंत्र लेखन के तहत
मुक्तक...."खामोशी"
1
किसी की नाराजगी ने मुझे खामोश बना दिया,
मन में उभरी बातों को मन में ही दफना दिया,
जल रहा था जो दीया,अब वो बुझने वाला है,
हालातों नें सूनी राह में चलना सीखा दिया।
2
खामोशी किसी की मन को खल रहे थे,
मन में ही अरमान मेरे मचल रहे थे,
बड़ी मुश्किलों से ही मन को शांत किया,
वरना बेचैनी कहाँ संभल रहे थे।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
11/08/2019
शुभ सांझ🙏
स्वतंत्र लेखन के तहत
मुक्तक...."खामोशी"
1
किसी की नाराजगी ने मुझे खामोश बना दिया,
मन में उभरी बातों को मन में ही दफना दिया,
जल रहा था जो दीया,अब वो बुझने वाला है,
हालातों नें सूनी राह में चलना सीखा दिया।
2
खामोशी किसी की मन को खल रहे थे,
मन में ही अरमान मेरे मचल रहे थे,
बड़ी मुश्किलों से ही मन को शांत किया,
वरना बेचैनी कहाँ संभल रहे थे।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन भावों के मोती 🙏
दिनांक :- 11/08 /19
विषय - मुक्त रचना
🧖♂️ तस्वीरें 🧖♀️
तस्वीरें बोलती है
अपनी ही भाषा,
यादें हो जाती है,
इनसे कई ताजा,
सुनहेरे पल कैद होते हैं,
इनमें कई सारे,
याद आ जाते है
गुजरे जमाने,
इन में होती है,
सदियों की कहानी,
जिंदा इनसे रहती है,
अपनो की निशानी,
बचपन की शरारत है,
कैद इनमे सारी,
जवानी की मस्ती,
ताजा होती सारी,
ये तो है जीवन का,
अनमोल खजाना,
दोस्तो तुम कभी ना,
इसको गवाना
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित
दिनांक :- 11/08 /19
विषय - मुक्त रचना
🧖♂️ तस्वीरें 🧖♀️
तस्वीरें बोलती है
अपनी ही भाषा,
यादें हो जाती है,
इनसे कई ताजा,
सुनहेरे पल कैद होते हैं,
इनमें कई सारे,
याद आ जाते है
गुजरे जमाने,
इन में होती है,
सदियों की कहानी,
जिंदा इनसे रहती है,
अपनो की निशानी,
बचपन की शरारत है,
कैद इनमे सारी,
जवानी की मस्ती,
ताजा होती सारी,
ये तो है जीवन का,
अनमोल खजाना,
दोस्तो तुम कभी ना,
इसको गवाना
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित
नमन मंच
दिनांक-११/८/२०१९
"स्वतंत्र लेखन"
लघुकथा-"छिन्द्रान्वेषी"(दूसरों के दोष को ढूंढने वाला)
"अनिला,आज अपने अलावा दो व्यक्ति का और खाना बना लेना"अपने पति के फोन पर यह फरमाइश सुनते ही, अनिला ने गुस्से से फोन पटक दिया,और गुस्से से बड़बड़ाने लगी,इनको मेरा जरा भी ध्यान नही,अभी १५दिन घर पर रहकर जेठ जेठानी सिर्फ एक दिन के लिए जेठानी के मैके गये है,परसों ही तो वह लौटने वाले है,और आज ये फिर से किसी को आमंत्रित कर डाले।
आज वह थोड़ा आराम के मुड़ में थी,१५ दिन से काम कर वह बहुत थक चुकी थी, परन्तु आज फिर से नई फरमाइश, उसने मन ही मन ठान लिया चाहे आज जो हो जाये,वह अपने परिवार के अलावा किसी और के लिए भोजन बनायेगी ही नही, चाहे उसके पति को होटल से ही खाना क्यों नहीं मंगवाना पड़े।
दोपहर १२बजते ही डोरबेल बज उठी, उसने अनमन्यस्क भाव से दरवाजा खोला और यह देखकर आश्चर्य चकित रह गई कि दरवाजे पर उसके स्वंय के भैया भाभी खड़े है,अब तो उसके खुशी का ठिकाना ही नही रहा, एक ही शहर में होने के वावजूद,वह अपने भैया भाभी से बहुत दिन से नही मिल पाई थी,जो उसके माँ, पिताजी के समान थे और माँ पिताजी के मृत्यु के पश्चात भैया भाभी ने ही उसे संभाला था,और इतना अच्छा घर वर देखकर उसकी शादी की थी
अब तो उसमें गज़ब की फुर्ती आ गई थी, फटाफट गैस के दोनों चुल्हे पर दो दो कुकर चढ़ा भैया भाभी के मंनपसंद डीश बना डाली,तब तक उसके पति और बच्चे भी घर आ गये, सबने मिलकर गरमागरम भोजन का आनंद उठाया,और भैया भाभी उसकी बहुत तारीफ कर रहे थे कि उसने इतना जल्दी इतना स्वादिष्ट भोजन तैयार किया, किन्तु वह मन ही मन शर्मिंदा थी, उनके जाने के बाद उसके पति उससे बोले"अनिला तुम मेरे भैया भाभी के लिए इतना कुछ करती हो,तो एक दिन के छुट्टी में मैंने सोचा की क्यों न मैं तुम्हे तुम्हारे भैया भाभी से मिला दूं, और तुम उनसे अचानक मिल कर बहुत खुश होगी, यही सोचकर मैंने तुम्हें पहले नही बतायाऔर हर समय तुम अपने चेहरे पर मुस्कान लिए रहती हो अतः हमें पता ही नही चला की तुम्हारे मन में क्या चल रहा है।
अब अनिला यह सोचने लगी कि किसी ने ठीक ही कहा है कि"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलया कोय,
जो दिल ढूंढ़ा अपने, मुझसे बुरा ना कोय।"
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
दिनांक-११/८/२०१९
"स्वतंत्र लेखन"
लघुकथा-"छिन्द्रान्वेषी"(दूसरों के दोष को ढूंढने वाला)
"अनिला,आज अपने अलावा दो व्यक्ति का और खाना बना लेना"अपने पति के फोन पर यह फरमाइश सुनते ही, अनिला ने गुस्से से फोन पटक दिया,और गुस्से से बड़बड़ाने लगी,इनको मेरा जरा भी ध्यान नही,अभी १५दिन घर पर रहकर जेठ जेठानी सिर्फ एक दिन के लिए जेठानी के मैके गये है,परसों ही तो वह लौटने वाले है,और आज ये फिर से किसी को आमंत्रित कर डाले।
आज वह थोड़ा आराम के मुड़ में थी,१५ दिन से काम कर वह बहुत थक चुकी थी, परन्तु आज फिर से नई फरमाइश, उसने मन ही मन ठान लिया चाहे आज जो हो जाये,वह अपने परिवार के अलावा किसी और के लिए भोजन बनायेगी ही नही, चाहे उसके पति को होटल से ही खाना क्यों नहीं मंगवाना पड़े।
दोपहर १२बजते ही डोरबेल बज उठी, उसने अनमन्यस्क भाव से दरवाजा खोला और यह देखकर आश्चर्य चकित रह गई कि दरवाजे पर उसके स्वंय के भैया भाभी खड़े है,अब तो उसके खुशी का ठिकाना ही नही रहा, एक ही शहर में होने के वावजूद,वह अपने भैया भाभी से बहुत दिन से नही मिल पाई थी,जो उसके माँ, पिताजी के समान थे और माँ पिताजी के मृत्यु के पश्चात भैया भाभी ने ही उसे संभाला था,और इतना अच्छा घर वर देखकर उसकी शादी की थी
अब तो उसमें गज़ब की फुर्ती आ गई थी, फटाफट गैस के दोनों चुल्हे पर दो दो कुकर चढ़ा भैया भाभी के मंनपसंद डीश बना डाली,तब तक उसके पति और बच्चे भी घर आ गये, सबने मिलकर गरमागरम भोजन का आनंद उठाया,और भैया भाभी उसकी बहुत तारीफ कर रहे थे कि उसने इतना जल्दी इतना स्वादिष्ट भोजन तैयार किया, किन्तु वह मन ही मन शर्मिंदा थी, उनके जाने के बाद उसके पति उससे बोले"अनिला तुम मेरे भैया भाभी के लिए इतना कुछ करती हो,तो एक दिन के छुट्टी में मैंने सोचा की क्यों न मैं तुम्हे तुम्हारे भैया भाभी से मिला दूं, और तुम उनसे अचानक मिल कर बहुत खुश होगी, यही सोचकर मैंने तुम्हें पहले नही बतायाऔर हर समय तुम अपने चेहरे पर मुस्कान लिए रहती हो अतः हमें पता ही नही चला की तुम्हारे मन में क्या चल रहा है।
अब अनिला यह सोचने लगी कि किसी ने ठीक ही कहा है कि"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलया कोय,
जो दिल ढूंढ़ा अपने, मुझसे बुरा ना कोय।"
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
*भारत माँ मुस्काई है ।*
केसरिया घाटी महकी है
स्वर्ग भूमि हर्षाई है
ऋषि कश्यप की तपोभूमि पर
राष्ट्र ध्वजा लहराई है
*भारत माँ मुस्काई है ।*
घाटी में मचते तांडव से
वीरों के ताबूतों से
अब तक रोती रही सिसकती
भूल नहीं कुछ पाई है
*भारत माँ मुस्काई है ।*
सत्तर सालों से सहती सब
न्याय मांगती शीशों के
दर्द नहीं समझा था कोई
उर अन्तस की टीसों के
आज पुनः गर्वित है मस्तक
घड़ी सुहानी आई है
*भारत माँ मुस्काई है ।*
अमन चैन अब कायम होवे
रक्त पात की बात न हो
राष्ट्र धर्म हो मजहब केवल
बहके फिर जज़्बात न हों
करें सृजन नव काश्मीर का
स्वर्णिम वेला आई है
*भारत माँ मुस्काई है ।*
*अनुराग दीक्षित*
केसरिया घाटी महकी है
स्वर्ग भूमि हर्षाई है
ऋषि कश्यप की तपोभूमि पर
राष्ट्र ध्वजा लहराई है
*भारत माँ मुस्काई है ।*
घाटी में मचते तांडव से
वीरों के ताबूतों से
अब तक रोती रही सिसकती
भूल नहीं कुछ पाई है
*भारत माँ मुस्काई है ।*
सत्तर सालों से सहती सब
न्याय मांगती शीशों के
दर्द नहीं समझा था कोई
उर अन्तस की टीसों के
आज पुनः गर्वित है मस्तक
घड़ी सुहानी आई है
*भारत माँ मुस्काई है ।*
अमन चैन अब कायम होवे
रक्त पात की बात न हो
राष्ट्र धर्म हो मजहब केवल
बहके फिर जज़्बात न हों
करें सृजन नव काश्मीर का
स्वर्णिम वेला आई है
*भारत माँ मुस्काई है ।*
*अनुराग दीक्षित*
नमन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :- 11/08/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
कल्पनाओं को पंख देकर...
कवि भरता नभ की उड़ान...
कागज पर सजा देता वह...
सितारों से भरा आसमान...
आशाओं के दीप जलाकर...
कर देता है जग प्रकाशित...
हर मन में उमंग जगाकर..
कर देता है मन उल्लासित..
लेखनी को कूंची बनाकर...
करता वह श्रृंगार प्रकृति का....
भावों की बहाता वो सरिता...
गाता राग सदा संस्कृति का...
कवि बनकर कभी बंजारा...
फिरता वन-वन मारा-मारा..
कभी करता बाल बचपना..
कभी बनता पागल आवरा...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिन :- रविवार
दिनांक :- 11/08/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
कल्पनाओं को पंख देकर...
कवि भरता नभ की उड़ान...
कागज पर सजा देता वह...
सितारों से भरा आसमान...
आशाओं के दीप जलाकर...
कर देता है जग प्रकाशित...
हर मन में उमंग जगाकर..
कर देता है मन उल्लासित..
लेखनी को कूंची बनाकर...
करता वह श्रृंगार प्रकृति का....
भावों की बहाता वो सरिता...
गाता राग सदा संस्कृति का...
कवि बनकर कभी बंजारा...
फिरता वन-वन मारा-मारा..
कभी करता बाल बचपना..
कभी बनता पागल आवरा...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन भावों के मोती
स्वतंत्र लेखन
🌹🙏🌹
हिमनद के नीचे जहाँ बहती ज्वाला है ,
अमृत सी केसर क्यारी में जहाँ
घुली आतंकी हाला है ।
तपती बर्फीली घाटी में ,
देवों की स्वर्णिम माटी में ,
जहाँ दर्द चिंघाडा करता है,
माँ की छाती से दूध नहीं अंगारा बहा करता है ।
हंसकर शहीद होते हैं जो
उन फौजी भाइयों को पत्थर मारा जाता है,
भारत का खाकर ,
भारत को ही धिक्कार जाता है ।
कश्मीर की कराहों से
दर्द भरी आहों से
घायल मोदी , अमित शाह जी
बर्फीले अंगारों में तपकर,
स्वर्ण सा निखर कर
तोड़ दिया बंधन तीन सौ सत्तर , पैंतीस ए का ,
खुश है कश्मीर अब ,
मनाता जश्न आतंक से आजादी का ।
स्वागत है हर हिंदुस्तानी के दिल में
फूलों वाली वादी का ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
स्वतंत्र लेखन
🌹🙏🌹
हिमनद के नीचे जहाँ बहती ज्वाला है ,
अमृत सी केसर क्यारी में जहाँ
घुली आतंकी हाला है ।
तपती बर्फीली घाटी में ,
देवों की स्वर्णिम माटी में ,
जहाँ दर्द चिंघाडा करता है,
माँ की छाती से दूध नहीं अंगारा बहा करता है ।
हंसकर शहीद होते हैं जो
उन फौजी भाइयों को पत्थर मारा जाता है,
भारत का खाकर ,
भारत को ही धिक्कार जाता है ।
कश्मीर की कराहों से
दर्द भरी आहों से
घायल मोदी , अमित शाह जी
बर्फीले अंगारों में तपकर,
स्वर्ण सा निखर कर
तोड़ दिया बंधन तीन सौ सत्तर , पैंतीस ए का ,
खुश है कश्मीर अब ,
मनाता जश्न आतंक से आजादी का ।
स्वागत है हर हिंदुस्तानी के दिल में
फूलों वाली वादी का ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
नमन मंच
विषय --साँझ
विधा--मुक्त
*****************
दिन के कटोरे से
धूप पिधल कर
बहती रही
सुनहरी आब की
इक नदी
दूर क्षितिज -सागर
में समाती रही
देख मिलन
अद्भुत ,अद्वैत अंदाज सा
धीरे धीरे-धीरे, मंथर -मंथर
सुरमई साँझ
खामोशी की धुन पर
यादों की धुंधली
तस्वीर बनाती
आ गई
झांकने लगी रुहें
सितारों की शक्ल में
चाँद ने भी
लालटेन अपनी जला
तम के सायों को
उजाले का
दरिया दे दिया
साँझ फिर शरमा गई
ओढ़ तारों जड़ी ओढ़नी
बनकर दुल्हन
चाँदनी की चादर पर
ख्वाब सजाए
सजन चाँद
से अठखेलियाँ
करने लगी।
डा .नीलम ,अजमेर
विषय --साँझ
विधा--मुक्त
*****************
दिन के कटोरे से
धूप पिधल कर
बहती रही
सुनहरी आब की
इक नदी
दूर क्षितिज -सागर
में समाती रही
देख मिलन
अद्भुत ,अद्वैत अंदाज सा
धीरे धीरे-धीरे, मंथर -मंथर
सुरमई साँझ
खामोशी की धुन पर
यादों की धुंधली
तस्वीर बनाती
आ गई
झांकने लगी रुहें
सितारों की शक्ल में
चाँद ने भी
लालटेन अपनी जला
तम के सायों को
उजाले का
दरिया दे दिया
साँझ फिर शरमा गई
ओढ़ तारों जड़ी ओढ़नी
बनकर दुल्हन
चाँदनी की चादर पर
ख्वाब सजाए
सजन चाँद
से अठखेलियाँ
करने लगी।
डा .नीलम ,अजमेर
नमन भावों के मोती
विषय - स्वतंत्र सृजन
11/08/19
रविवार
गीत
मातृभूमि का जो दीवाना हो जाता है,
उसका तो बस एक लक्ष्य ही बन जाता है।
तन-मन-धन से भारत-माँ का सेवक बनकर,
जीवन भर वह गीत देश के ही गाता है।
उसको नहीं रोक सकती पथ की बाधाएं,
वह उन सबको रौंद राह में बढ़ जाता है।
राष्ट्रधर्म की बातें उसको प्रेरित करतीं,
और बसंती चोला ही उसको भाता है।
अंतिम सांसों तक करता धरती की रक्षा,
और तिरंगे पर तन अर्पित कर जाता है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय - स्वतंत्र सृजन
11/08/19
रविवार
गीत
मातृभूमि का जो दीवाना हो जाता है,
उसका तो बस एक लक्ष्य ही बन जाता है।
तन-मन-धन से भारत-माँ का सेवक बनकर,
जीवन भर वह गीत देश के ही गाता है।
उसको नहीं रोक सकती पथ की बाधाएं,
वह उन सबको रौंद राह में बढ़ जाता है।
राष्ट्रधर्म की बातें उसको प्रेरित करतीं,
और बसंती चोला ही उसको भाता है।
अंतिम सांसों तक करता धरती की रक्षा,
और तिरंगे पर तन अर्पित कर जाता है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
भावों के मोती दिनांक 11/8/19
स्वतंत्र लेखन
कविता
है भारत अखंड
न झुका है
न झुकेगा
खत्म की 370
एक देश
एक ध्वज
एक से विचार
कश्मीर से
कन्याकुमारी तक
है भारत
एक पहचान
दुनियाँ में
हुआ एक बार
फिर स्वतंत्र
भारत
15 अगस्त को
हटी 370
कश्मीर से
है कर्तव्य हर
नागरिक का
रहें मिलजुल कर
बना रहे
सद्भाव, प्यार
और भाईचारा
हर भारतवासी में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
स्वतंत्र लेखन
कविता
है भारत अखंड
न झुका है
न झुकेगा
खत्म की 370
एक देश
एक ध्वज
एक से विचार
कश्मीर से
कन्याकुमारी तक
है भारत
एक पहचान
दुनियाँ में
हुआ एक बार
फिर स्वतंत्र
भारत
15 अगस्त को
हटी 370
कश्मीर से
है कर्तव्य हर
नागरिक का
रहें मिलजुल कर
बना रहे
सद्भाव, प्यार
और भाईचारा
हर भारतवासी में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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