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ब्लॉग संख्या :-483
शीर्षक-- चंदन
प्रथम प्रस्तुति
अजब कायदे समझ न आऐ
खुशबुओं को काँटे बिछाये ।।
हो गुलाब चाहे हो चंदन
नसीब ऐसे ही कहलाये ।।
गुलाब को शूलों ने घेरा
चंदन को साँप लिपटाये ।।
चंदन माथे पर शोभा देय
देवों को भी खूब भाये ।।
पर सोचो भुजंगों के संग
साथ में रहे क्या घबराये ।।
डर के आगे जीत कहाये
यही तो यह हमें दर्शाये ।।
कुल्हाड़ी को भी मँहकाये
जो उन्हे काटने को धाये ।।
चंदन की तरह हृदय 'शिवम'
कौन भला जग में है पाये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/08/2019
प्रथम प्रस्तुति
अजब कायदे समझ न आऐ
खुशबुओं को काँटे बिछाये ।।
हो गुलाब चाहे हो चंदन
नसीब ऐसे ही कहलाये ।।
गुलाब को शूलों ने घेरा
चंदन को साँप लिपटाये ।।
चंदन माथे पर शोभा देय
देवों को भी खूब भाये ।।
पर सोचो भुजंगों के संग
साथ में रहे क्या घबराये ।।
डर के आगे जीत कहाये
यही तो यह हमें दर्शाये ।।
कुल्हाड़ी को भी मँहकाये
जो उन्हे काटने को धाये ।।
चंदन की तरह हृदय 'शिवम'
कौन भला जग में है पाये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/08/2019
जय भांवो के मोती
विषय चंदन
विधा काव्य
21 अगस्त 2019,बुधवार
चंदन मलय सुवासित भारत
कण कण में चंदन सी महक।
अति भाग्यशाली हम सब हैं
कभी सुपुत्र न जाना बहक।
नन्दनवन सा प्रिय कश्मीर
चंदनमय केसर की क्यारी।
सुवासित स्वर्गीम सुख देता
छटा अनौखी इसकी न्यारी।
शीतल सुवासित चंदन महके
श्री नारायण भाल विराजित।
भक्त शिरोमणी कर से घिसते
टीका चंदन का अति राजित।
विद्वजन का स्वभाव चंदन वत
भक्तिभाव नित जीवन भरते।
कुकर्मी कपट कठोर हृदय भी
परहित डग जीवन में चलते ।
काया नश्वर इस जीवन में
नित हम चंदन लेप लीपते।
चंदन पर अर्थी को रखकर
माटी देह,देख सिर पीटते ।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय चंदन
विधा काव्य
21 अगस्त 2019,बुधवार
चंदन मलय सुवासित भारत
कण कण में चंदन सी महक।
अति भाग्यशाली हम सब हैं
कभी सुपुत्र न जाना बहक।
नन्दनवन सा प्रिय कश्मीर
चंदनमय केसर की क्यारी।
सुवासित स्वर्गीम सुख देता
छटा अनौखी इसकी न्यारी।
शीतल सुवासित चंदन महके
श्री नारायण भाल विराजित।
भक्त शिरोमणी कर से घिसते
टीका चंदन का अति राजित।
विद्वजन का स्वभाव चंदन वत
भक्तिभाव नित जीवन भरते।
कुकर्मी कपट कठोर हृदय भी
परहित डग जीवन में चलते ।
काया नश्वर इस जीवन में
नित हम चंदन लेप लीपते।
चंदन पर अर्थी को रखकर
माटी देह,देख सिर पीटते ।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
चंदन
चंदन हमें सिखाता,
एक ही बात ।
खूद को घिसकर,
खूद को पिसकर ।
बिखराता हैं खूशबु ।
आता हैं काम ।
कभी ना करता आकांत ।
बस रहता शांत ।
यही हैं करना,
हमें जीवन में ।
चाहें कितना संघर्ष हो,
ना ड़रो,कुछ करो ।
संघर्ष होगा शांत ।
@प्रदीप सहारे
चंदन हमें सिखाता,
एक ही बात ।
खूद को घिसकर,
खूद को पिसकर ।
बिखराता हैं खूशबु ।
आता हैं काम ।
कभी ना करता आकांत ।
बस रहता शांत ।
यही हैं करना,
हमें जीवन में ।
चाहें कितना संघर्ष हो,
ना ड़रो,कुछ करो ।
संघर्ष होगा शांत ।
@प्रदीप सहारे
नमन भावों के मोती
दिनांक .. 21/8/2019
विषय .. चन्दन
***********************
चन्दन है भारत की माटी, कण-कण मे भगवान।
धन्य हर मानव का जीवन, जिसकी यह पहचान।
सब देवों की करे वन्दना, मन रख करके साफ।
मानव सेवा परम धर्म है , कर गलती को माफ।
चन्दन सा पहचान बने हम, शीतलता आधार।
भावों से मोती ही छलके, अहम को जाये हार।
ईश्वर पर विश्वास शेर का, वो ही कृपा निधान।
वो ही एक सम्पूर्ण सत्य है, बाकी माया जान।
स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ
दिनांक .. 21/8/2019
विषय .. चन्दन
***********************
चन्दन है भारत की माटी, कण-कण मे भगवान।
धन्य हर मानव का जीवन, जिसकी यह पहचान।
सब देवों की करे वन्दना, मन रख करके साफ।
मानव सेवा परम धर्म है , कर गलती को माफ।
चन्दन सा पहचान बने हम, शीतलता आधार।
भावों से मोती ही छलके, अहम को जाये हार।
ईश्वर पर विश्वास शेर का, वो ही कृपा निधान।
वो ही एक सम्पूर्ण सत्य है, बाकी माया जान।
स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ
दि- 21-8-19
विषय- चन्दन
सादर मंच को समर्पित -
🌻🌹🇮🇳 गीत 🇮🇳🌹🌻
*****************************
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
चन्दन माटी मातृभूमि की ,
पावन रज को सिर धारें ।
करें वन्दना भारत माँ की ,
तन-मन जीवन बलिहारें ।।
अमर तिरंगा शान हमारी ,
उच्च शिखर पर लहराये ।
ढाल सरीखा खड़ा हिमालय,
भाल मुकुट शोभा पाये ।।
गंगा- यमुना पावन धारा ,
प्रयागराज भव्य संगम ।
माँ वैष्णव की दिव्य पताका ,
सनातनी आस्था परचम ।।
मिली-जुली संस्कृति सरिता में ,
निखर प्यार से जयकारें ।
करें वन्दना भारत माँ की ,
तन-मन जीवन बलिहारें ।।
अमर शहीदों ने मिट कर ही ,
स्वतंत्रता दिलवाई है ।
राणा, शिवा , सुभाष वीर की
बलिदानी अँगड़ाई है ।।
भगत सिंह ,आजाद शौर्य से ,
शंखनाद था फूँक दिया ।
लक्ष्मी बाई थी मर्दानी ,
अन्त समय तक युद्ध किया ।।
जलियाँँवाले बाग भुन गये ,
इंकलाव को उच्चारें ।
करें वन्दना भारत माँ की ,
तन-मन जीवन बलिहारें ।।
उसी देश में जयचंदों ने ,
देशद्रोह फैलाया है ।
उकसाते अलगाववाद को ,
जनता को बहकाया है ।।
आज पुकारे भारत माँ फिर ,
जागें , नींद भुलानी है ।
जो न समय पर उबाल लेता ,
खून नहीं वह पानी है ।।
उठें, मात दें उनको पहले ,
एक सूत्र बँध हुंकारें ।
करें वन्दना भारत माँ की ,
तन-मन जीवन बलिहारें ।।
🌹🌴☀️🌻🍀🌷
🌲🇮🇳**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
विषय- चन्दन
सादर मंच को समर्पित -
🌻🌹🇮🇳 गीत 🇮🇳🌹🌻
*****************************
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
चन्दन माटी मातृभूमि की ,
पावन रज को सिर धारें ।
करें वन्दना भारत माँ की ,
तन-मन जीवन बलिहारें ।।
अमर तिरंगा शान हमारी ,
उच्च शिखर पर लहराये ।
ढाल सरीखा खड़ा हिमालय,
भाल मुकुट शोभा पाये ।।
गंगा- यमुना पावन धारा ,
प्रयागराज भव्य संगम ।
माँ वैष्णव की दिव्य पताका ,
सनातनी आस्था परचम ।।
मिली-जुली संस्कृति सरिता में ,
निखर प्यार से जयकारें ।
करें वन्दना भारत माँ की ,
तन-मन जीवन बलिहारें ।।
अमर शहीदों ने मिट कर ही ,
स्वतंत्रता दिलवाई है ।
राणा, शिवा , सुभाष वीर की
बलिदानी अँगड़ाई है ।।
भगत सिंह ,आजाद शौर्य से ,
शंखनाद था फूँक दिया ।
लक्ष्मी बाई थी मर्दानी ,
अन्त समय तक युद्ध किया ।।
जलियाँँवाले बाग भुन गये ,
इंकलाव को उच्चारें ।
करें वन्दना भारत माँ की ,
तन-मन जीवन बलिहारें ।।
उसी देश में जयचंदों ने ,
देशद्रोह फैलाया है ।
उकसाते अलगाववाद को ,
जनता को बहकाया है ।।
आज पुकारे भारत माँ फिर ,
जागें , नींद भुलानी है ।
जो न समय पर उबाल लेता ,
खून नहीं वह पानी है ।।
उठें, मात दें उनको पहले ,
एक सूत्र बँध हुंकारें ।
करें वन्दना भारत माँ की ,
तन-मन जीवन बलिहारें ।।
🌹🌴☀️🌻🍀🌷
🌲🇮🇳**....रवीन्द्र वर्मा आगरा
नमन मंच🙏💐
दिनांक 21/08/2019
विषय - *चंदन*
विधा- "हाइकु"
**********
(1)
चंदन गंध
महकता कानन
लिपटे सर्प
(2)
माथ चंदन
गले सजे भुजंग
शिव शंकर
(3)
बन चंदन
महकाओ जीवन
मेरी प्रेयसी
(4)
चमके चंदा
अम्बर के मस्तक
जैसे चंदन
(5)
मन चंदन
खुशबू बिखेरता
प्रेम-बंधन
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
दिनांक 21/08/2019
विषय - *चंदन*
विधा- "हाइकु"
**********
(1)
चंदन गंध
महकता कानन
लिपटे सर्प
(2)
माथ चंदन
गले सजे भुजंग
शिव शंकर
(3)
बन चंदन
महकाओ जीवन
मेरी प्रेयसी
(4)
चमके चंदा
अम्बर के मस्तक
जैसे चंदन
(5)
मन चंदन
खुशबू बिखेरता
प्रेम-बंधन
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
नमन मंच भावों के मोती
21 /8 /2019
बिषय,चंदन,,
चंदन सम हो मानव जीवन
खुशबू से महकता सारा चमन
सुवासित रहती मलय पवन
शीतल करता तन और मन
माथे को करता सुशोभायमान
तिलक का करते सभी सम्मान
सुवासित सुरभित इसकी फितरत
सम्मोहित रहती इस पर कुदरत
है सदा प्रभु का मनभावन
चंदन लगा सब रहते पावन
संतों के माथे का टीका
बिन इसके सब कुछ है फीका
क्यों न बनें हम इसके आधार
खुशबू से महकाऐं घर संसार
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
21 /8 /2019
बिषय,चंदन,,
चंदन सम हो मानव जीवन
खुशबू से महकता सारा चमन
सुवासित रहती मलय पवन
शीतल करता तन और मन
माथे को करता सुशोभायमान
तिलक का करते सभी सम्मान
सुवासित सुरभित इसकी फितरत
सम्मोहित रहती इस पर कुदरत
है सदा प्रभु का मनभावन
चंदन लगा सब रहते पावन
संतों के माथे का टीका
बिन इसके सब कुछ है फीका
क्यों न बनें हम इसके आधार
खुशबू से महकाऐं घर संसार
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
नमन :"भावों के मोती मंच "को समर्पित
दिनांक:21/08/2019
विधा: हाइकु
विषय:चंदन
सावन माह
चंदन का तिलक
शिवपूजन।
सर्पों कीा माला
चंदन शीतलता
जै नीलकंठ ।
चंदन लेप
औषधि अनमोल
निरोग काया।
चंदन ,बेला
धूप ,अगरबत्ती
पूजन पूर्ण ।
गुलाब जल
चंदन ,मुलतानी
निखरा रूप ।
#स्वरचित रचना
#नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
दिनांक:21/08/2019
विधा: हाइकु
विषय:चंदन
सावन माह
चंदन का तिलक
शिवपूजन।
सर्पों कीा माला
चंदन शीतलता
जै नीलकंठ ।
चंदन लेप
औषधि अनमोल
निरोग काया।
चंदन ,बेला
धूप ,अगरबत्ती
पूजन पूर्ण ।
गुलाब जल
चंदन ,मुलतानी
निखरा रूप ।
#स्वरचित रचना
#नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
भावों के मोती
21/08/19
विषय-चंदन
बन रे मन तूं चंदन वन
सौरभ का बन अंश-अंश।
कण-कण में सुगंध जिसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।
बन रे मन तूं चंदन वन।
भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन में वास नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।
बन रे मन तूं चंदन वन ।
मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा।
बन रे मन तूं चंदन वन ।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का।
बन रे मन तूं चंदन वन ।।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
21/08/19
विषय-चंदन
बन रे मन तूं चंदन वन
सौरभ का बन अंश-अंश।
कण-कण में सुगंध जिसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।
बन रे मन तूं चंदन वन।
भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन में वास नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।
बन रे मन तूं चंदन वन ।
मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा।
बन रे मन तूं चंदन वन ।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरूं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं,कहे
लो काठ जला है चंदन का।
बन रे मन तूं चंदन वन ।।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
नमन "भावो के मोती"
21/08/2019
"चंदन"
1
भारत भूमि
कर्मों का समर्णण
मिट्टी चंदन
2
मिट्टी चंदन
हल्दीघाटी गौरव
शौर्य तिलक
3
वृक्ष चंदन
अद्भुत है सुगंध
अंग भुजंग
4
चित्ताकर्षक
चंदन सा वदन
लावण्यमयी
5
प्रेम चंदन
सुरभित जीवन
हर्षित मन
6
माता व पिता
आशीर्वाद चंदन
धन्य जीवन।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
21/08/2019
"चंदन"
1
भारत भूमि
कर्मों का समर्णण
मिट्टी चंदन
2
मिट्टी चंदन
हल्दीघाटी गौरव
शौर्य तिलक
3
वृक्ष चंदन
अद्भुत है सुगंध
अंग भुजंग
4
चित्ताकर्षक
चंदन सा वदन
लावण्यमयी
5
प्रेम चंदन
सुरभित जीवन
हर्षित मन
6
माता व पिता
आशीर्वाद चंदन
धन्य जीवन।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
21/8/2019
नमन मंच।
नमन गुरुजनों, साथियों।
चंदन
💐💐
चंदन की है विशेषता।
खुद डाली से कटकर भी,
औरों को खुशबू देता।
सर्प भी उससे रहे लिपटकर,
तो भी उफ्फ तक नहीं करता।
चाहे कितना भी हो वह विषैला,
फिर भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अपनी खुशबू उसे देकर,
उसके हृदय को प्रफ्फुलित करता रहता।
अपनी खुशबू बिखेरने को,
सदा है तैयार।
इन्सान तुम भी बनो चंदन सा,
मानव सेवा को रहो सदा तैयार।
....... स्वरचित........
वीणा झा
....... बोकारो स्टील सिटी.......
नमन मंच।
नमन गुरुजनों, साथियों।
चंदन
💐💐
चंदन की है विशेषता।
खुद डाली से कटकर भी,
औरों को खुशबू देता।
सर्प भी उससे रहे लिपटकर,
तो भी उफ्फ तक नहीं करता।
चाहे कितना भी हो वह विषैला,
फिर भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अपनी खुशबू उसे देकर,
उसके हृदय को प्रफ्फुलित करता रहता।
अपनी खुशबू बिखेरने को,
सदा है तैयार।
इन्सान तुम भी बनो चंदन सा,
मानव सेवा को रहो सदा तैयार।
....... स्वरचित........
वीणा झा
....... बोकारो स्टील सिटी.......
21/8/2019
विषय-चंदन
..................
'जो रहीम उत्तम प्रकृति
का करि सकत कुसंग
चंदन विष व्याप्त नहीं
लिपटे रहत भुजंग.."
=ज्ञानी कबहु न त्यागे
ईश्वर प्रदत्त निज स्वभाव
संगति से निर्लिप्त रहे
कहने का यही है भाव
हमने भी दृढ़ निश्चय किया
नहीं छोड़ेंगे निज मूल स्वभाव
परंतु चहुँ दिश दिखता मुझे
सदाचार,सद्चरित्र का अभाव
अब तो सर्प भी सर्प न रहे
बन गए हैं वो इच्छाधारी नाग
कब विष छोड़ें,कब मुंह मोड़ें
कब दे दें वो हमें मीठा सा पराग
कैसे हम चंदन बन सुगंध फैलाएं
खुद भी महकें,जग को भी महकाएं?
तभी अंतर्मन ने एक आवाज हमें दी
मत दे उलाहने, न कर बहाने ए फरेबी !
अकर्मण्य,कर्तव्यविमुख,अज्ञानी
यदि जग में हो जाएंगे सभी
तब तो शाश्वत मूल्यों की
सारता ही न रहेगी कभी
किसी एक को आगे बढ़कर
उत्तम उदाहरण तो रखना होगा
बहुरूपिये विषधरों को पहचानने हेतु
चंदन बन घिस कर महकना ही होगा ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय-चंदन
..................
'जो रहीम उत्तम प्रकृति
का करि सकत कुसंग
चंदन विष व्याप्त नहीं
लिपटे रहत भुजंग.."
=ज्ञानी कबहु न त्यागे
ईश्वर प्रदत्त निज स्वभाव
संगति से निर्लिप्त रहे
कहने का यही है भाव
हमने भी दृढ़ निश्चय किया
नहीं छोड़ेंगे निज मूल स्वभाव
परंतु चहुँ दिश दिखता मुझे
सदाचार,सद्चरित्र का अभाव
अब तो सर्प भी सर्प न रहे
बन गए हैं वो इच्छाधारी नाग
कब विष छोड़ें,कब मुंह मोड़ें
कब दे दें वो हमें मीठा सा पराग
कैसे हम चंदन बन सुगंध फैलाएं
खुद भी महकें,जग को भी महकाएं?
तभी अंतर्मन ने एक आवाज हमें दी
मत दे उलाहने, न कर बहाने ए फरेबी !
अकर्मण्य,कर्तव्यविमुख,अज्ञानी
यदि जग में हो जाएंगे सभी
तब तो शाश्वत मूल्यों की
सारता ही न रहेगी कभी
किसी एक को आगे बढ़कर
उत्तम उदाहरण तो रखना होगा
बहुरूपिये विषधरों को पहचानने हेतु
चंदन बन घिस कर महकना ही होगा ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
रुपसी नारी,
चंदन सा बदन,
सादा लिबास।।१//
२/श्वेत परी सी,
गदराया बदन,
चंदन गंध।।२।।
चंदन् वन,
सुगंध सा महक,
सर्प का डेरा।।३।।
चंदन गुणी,
सज्जन जो मानव
परोपकारी।।४।
५/मानव प्रेमी,
प्रेम प्रभु का द्वार,
दया सागर।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,गया,।।
चंदन सा बदन,
सादा लिबास।।१//
२/श्वेत परी सी,
गदराया बदन,
चंदन गंध।।२।।
चंदन् वन,
सुगंध सा महक,
सर्प का डेरा।।३।।
चंदन गुणी,
सज्जन जो मानव
परोपकारी।।४।
५/मानव प्रेमी,
प्रेम प्रभु का द्वार,
दया सागर।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,गया,।।
नमन भावों के मोती
आज का विषय, चंदन
दिनांक, 2 1,8,2019,
दिन, बुधवार,
मातृ भूमि की माटी चंदन ,
हम सब इसको शीश धरें ।
चंदन के वृक्षों की तरह ही ,
हम देश को सुवासित करें ।
मन अभिमान नहीं जिसको,
सदा ही बिषधरों के संग रहे ।
बिष नहीं व्यापे इसके तन में ,
ये सर्पों को निज वश में करें।
व्यक्तित्व चंदन का कुछ ऐसा,
ये मोहित पल में सबको करे ।
शांत सौम्य व महकता जीवन ,
आत्मसात ये सबको ही करे ।
हम सब का जीवन जग में जो,
अगर उदाहरण चंदन का बने ।
हो उन्नति व खुशहाली देश में ,
चहुँ और मानवता विस्तार करे ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
आज का विषय, चंदन
दिनांक, 2 1,8,2019,
दिन, बुधवार,
मातृ भूमि की माटी चंदन ,
हम सब इसको शीश धरें ।
चंदन के वृक्षों की तरह ही ,
हम देश को सुवासित करें ।
मन अभिमान नहीं जिसको,
सदा ही बिषधरों के संग रहे ।
बिष नहीं व्यापे इसके तन में ,
ये सर्पों को निज वश में करें।
व्यक्तित्व चंदन का कुछ ऐसा,
ये मोहित पल में सबको करे ।
शांत सौम्य व महकता जीवन ,
आत्मसात ये सबको ही करे ।
हम सब का जीवन जग में जो,
अगर उदाहरण चंदन का बने ।
हो उन्नति व खुशहाली देश में ,
चहुँ और मानवता विस्तार करे ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
नमन मंच - भावों के मोती
दिनांक- - 21 - 08 - 19
दिन - बुधबार
विधा - हाइकु
1 - चंदन वृक्ष
लिपटते भुजंग
हर पहर
2 - चंदन टीका
माथे शिव शंकर
लागे सुंदर
3 - चंदन मन
चंदन की लकड़ी
महकती है
4 - रेशम डोरी
चंदन को पलना
झूले ललना
रानी कोष्टी
गुना म प्र
स्वरचित एवं मौलिक
दिनांक- - 21 - 08 - 19
दिन - बुधबार
विधा - हाइकु
1 - चंदन वृक्ष
लिपटते भुजंग
हर पहर
2 - चंदन टीका
माथे शिव शंकर
लागे सुंदर
3 - चंदन मन
चंदन की लकड़ी
महकती है
4 - रेशम डोरी
चंदन को पलना
झूले ललना
रानी कोष्टी
गुना म प्र
स्वरचित एवं मौलिक
भावों के मोती दिनांक 21/8/19
चंदन
बनो तुम
चंदन से
फैले जब
सुगंध सब ओर
हो जाएँ
दीवाने सब
जीवन में
लगे जो
चंदन माथे पर
शीतल हो जाएँ
तन मन
लगे जब
चंदन
देव को
मिले आशीष
उनका
जीवन में
घिसे चंदन
मंदिर में
भक्त
पावन होता
देव स्थल
लगाओ
चंदन
बुजुर्गो को नित्य
मिलेगा आशीष
उनका
जीवन भर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
चंदन
बनो तुम
चंदन से
फैले जब
सुगंध सब ओर
हो जाएँ
दीवाने सब
जीवन में
लगे जो
चंदन माथे पर
शीतल हो जाएँ
तन मन
लगे जब
चंदन
देव को
मिले आशीष
उनका
जीवन में
घिसे चंदन
मंदिर में
भक्त
पावन होता
देव स्थल
लगाओ
चंदन
बुजुर्गो को नित्य
मिलेगा आशीष
उनका
जीवन भर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन मंच
चन्दन
पिरामिड
हो
मन
चन्दन
सुरभित
आत्म दर्शन
प्रफुल्लित आनन
आलोकित जीवन।1।
है
स्निग्ध
चन्दन
गौर वर्ण
गमके तन
आकर्षित मन
महके उपवन।2।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
चन्दन
पिरामिड
हो
मन
चन्दन
सुरभित
आत्म दर्शन
प्रफुल्लित आनन
आलोकित जीवन।1।
है
स्निग्ध
चन्दन
गौर वर्ण
गमके तन
आकर्षित मन
महके उपवन।2।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
नमन मंच
चन्दन
मुक्तक
भारत भू की माटी लगती है जैसे चन्दन।
इस धरती का सभी देवता करते है अभिनन्दन।
इस मिट्टी में खेले ,बड़े हुए सब पलकर,
जन्में यहीं पर राम कृष्ण करते सब जिनका वन्दन।
वन है सुवासित गन्ध से,बिखरे कितने रंग।
चंदन की शाखा कई,लिपटे रहे भुजंग।
होता चन्दन पर नहीं, विष का कभी प्रभाव
सज्जन विचलित न हुए, संग में रहे कुसंग।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
चन्दन
मुक्तक
भारत भू की माटी लगती है जैसे चन्दन।
इस धरती का सभी देवता करते है अभिनन्दन।
इस मिट्टी में खेले ,बड़े हुए सब पलकर,
जन्में यहीं पर राम कृष्ण करते सब जिनका वन्दन।
वन है सुवासित गन्ध से,बिखरे कितने रंग।
चंदन की शाखा कई,लिपटे रहे भुजंग।
होता चन्दन पर नहीं, विष का कभी प्रभाव
सज्जन विचलित न हुए, संग में रहे कुसंग।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
नमन भावों के मोती
21/08/19
विषय - चन्दन
विधा - हाइकु
1)
केसरिया चोला
टिका चंदन
पंडित भोला
2)
प्रभु बंदन
प्रकाश बिखेरता
मेरा चंदन
3)
महके यौवन
लगा चंदन
मेरा बदन
स्वरचित
सूर्यदीप कुशवाहा
21/08/19
विषय - चन्दन
विधा - हाइकु
1)
केसरिया चोला
टिका चंदन
पंडित भोला
2)
प्रभु बंदन
प्रकाश बिखेरता
मेरा चंदन
3)
महके यौवन
लगा चंदन
मेरा बदन
स्वरचित
सूर्यदीप कुशवाहा
भावों के मोती
विषय=चंदन
============
रिश्तों को बीच खड़ी
द्वेष की शिला
सपनों को कुचलती
तोड़ती नन्ही आशाएं
दिलों के बीच खड़ी
बिखेरती है जज़्बात
चुभती रहती मन में
तोड़कर प्रेम विश्वास
इंसान को है इंसान से
बांटकर गर्व से अड़ी
यह नफ़रत की शिला
इंसानों के कर्म से खड़ी
दिनों दिन बढ़ रही है
दीवारें गलतफहमी की
झुकना कोई चाहे नहीं
यह बड़ी है मजबूरी
सोचता है मन यही
काश हो कुछ करिश्मा
मिटाकर दूरियाँ दिलों की
चंदन-सी महक जाएं
रिश्तों की वादियाँ
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
विषय=चंदन
============
रिश्तों को बीच खड़ी
द्वेष की शिला
सपनों को कुचलती
तोड़ती नन्ही आशाएं
दिलों के बीच खड़ी
बिखेरती है जज़्बात
चुभती रहती मन में
तोड़कर प्रेम विश्वास
इंसान को है इंसान से
बांटकर गर्व से अड़ी
यह नफ़रत की शिला
इंसानों के कर्म से खड़ी
दिनों दिन बढ़ रही है
दीवारें गलतफहमी की
झुकना कोई चाहे नहीं
यह बड़ी है मजबूरी
सोचता है मन यही
काश हो कुछ करिश्मा
मिटाकर दूरियाँ दिलों की
चंदन-सी महक जाएं
रिश्तों की वादियाँ
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
विषयः चंदन
*
भारती - भाल का चंदन बन,
'शितिकंठ' कंठ के गान सकें।
जो कनक किशोरी के कायल,
ऋत की महिमा पहचान सकें।
मन वचन कर्म संयम का तप,
कवि नहीं , कौन फिर साधेगा?
कलुषित कंचन की नगरी में,
शुचि - प्रेम कौन अवराधेगा?
-डा.'शितिकंठ'
*
भारती - भाल का चंदन बन,
'शितिकंठ' कंठ के गान सकें।
जो कनक किशोरी के कायल,
ऋत की महिमा पहचान सकें।
मन वचन कर्म संयम का तप,
कवि नहीं , कौन फिर साधेगा?
कलुषित कंचन की नगरी में,
शुचि - प्रेम कौन अवराधेगा?
-डा.'शितिकंठ'
नमन भावों के मोती
दिनांक २१/८/२०१९
शीर्षक-"चंदन'
सज्जन मन चंदन सम
नहीं कुसंग प्रभाव
ऐसे मेरे हृदय हो सुन्दर
करों कृपा भगवान।
दुर्जन सज्जन सभी है
इस जग में ब्याप्त
एक समान कर्म हो अपना
जैसे चंदन आचार।
सुवासित हो जीवन अपना
जैसे चंदन उपहार
राग द्वेष न भरमाये कभी
जैसे भुजंग न लाये आँच।
मैं मलिन भुजंग सम
तुम चंदन भगवान
मुझको लो अपनाये तुम
जैसे चंदन अपनाये साँप।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक २१/८/२०१९
शीर्षक-"चंदन'
सज्जन मन चंदन सम
नहीं कुसंग प्रभाव
ऐसे मेरे हृदय हो सुन्दर
करों कृपा भगवान।
दुर्जन सज्जन सभी है
इस जग में ब्याप्त
एक समान कर्म हो अपना
जैसे चंदन आचार।
सुवासित हो जीवन अपना
जैसे चंदन उपहार
राग द्वेष न भरमाये कभी
जैसे भुजंग न लाये आँच।
मैं मलिन भुजंग सम
तुम चंदन भगवान
मुझको लो अपनाये तुम
जैसे चंदन अपनाये साँप।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
भावों के मोती समूह
21-8-2019
विषय ~ चंदन
अमर ~ प्रेम ~~
देह बनी है चंदन मेरी
महक उठी है अँगनाई
नेहा लगा के नैना जुड गए
भीगा ~ भीगा मन ~ पावन
तेरी प्रीत में हो के बाबरी
बाट निहारूँ मैं निसदिन
दिन उजियारे रात अँधेरी
निंदिया बन गई है बैरन
आया ना तेरा प्रेम संदेशा
थक गए मेरे नयन
मन पंछी पंखों को खोले
नाप रहा है नीलगगन
दूर क्षितिज से मिले धरा भी
ढूँढे तुझको पागल ~ मन
प्रेम ~ पुष्पों से गुंथें सजीले
भावों से बँध गया मन ~ बंधन
तेरे लिए ही सजूँ औ, थिरकूँ
जीवन तुझको है अर्पण
रात नशीली बन के सुहागन
यादों की गठरी खोले
सपने सजीले बनके रंगीले
ज्यों मन में मिश्री घोले
भाव ~ तूलिका से सज ~ धजकर
सपने संवारे मन सावन
अमर ~ प्रेम है मेरा रंगीले
तन, मन, सब तुझको अर्पण |
✍ ~ सीमा गर्ग " मंजरी "
मेरी स्वरचित रचना ©
मेरठ
21-8-2019
विषय ~ चंदन
अमर ~ प्रेम ~~
देह बनी है चंदन मेरी
महक उठी है अँगनाई
नेहा लगा के नैना जुड गए
भीगा ~ भीगा मन ~ पावन
तेरी प्रीत में हो के बाबरी
बाट निहारूँ मैं निसदिन
दिन उजियारे रात अँधेरी
निंदिया बन गई है बैरन
आया ना तेरा प्रेम संदेशा
थक गए मेरे नयन
मन पंछी पंखों को खोले
नाप रहा है नीलगगन
दूर क्षितिज से मिले धरा भी
ढूँढे तुझको पागल ~ मन
प्रेम ~ पुष्पों से गुंथें सजीले
भावों से बँध गया मन ~ बंधन
तेरे लिए ही सजूँ औ, थिरकूँ
जीवन तुझको है अर्पण
रात नशीली बन के सुहागन
यादों की गठरी खोले
सपने सजीले बनके रंगीले
ज्यों मन में मिश्री घोले
भाव ~ तूलिका से सज ~ धजकर
सपने संवारे मन सावन
अमर ~ प्रेम है मेरा रंगीले
तन, मन, सब तुझको अर्पण |
✍ ~ सीमा गर्ग " मंजरी "
मेरी स्वरचित रचना ©
मेरठ
मंच भावों के मोती
दिन:- बुधवार ।21/8/2029
विषय :- चंदन ।
विधा :-पद्य
जिस देश की माटी
चंदन सी माथे धर
तिलक लगाती हूँ ।
वह देश मेरा जो
यह अपना है
आंखों ने देखा
जो सपना है ।
जिसकी गौरव
गरिमा पर मैं
नित् तन मन
धन दाव पर
लगाती हूँ ।
गैरों कीनज़र
बचा कर भी
अपनी नज़र
लगाती हूं ।
जिसकी रक्षा में
जीवन क्या ?
मैं मौत को भी
झुठलाती हूं ।
साकार शहीदों
का,सपना है
उस सपने पर
बलि जाती हूं ।
उषासक्सेना:-स्वरचित
दिन:- बुधवार ।21/8/2029
विषय :- चंदन ।
विधा :-पद्य
जिस देश की माटी
चंदन सी माथे धर
तिलक लगाती हूँ ।
वह देश मेरा जो
यह अपना है
आंखों ने देखा
जो सपना है ।
जिसकी गौरव
गरिमा पर मैं
नित् तन मन
धन दाव पर
लगाती हूँ ।
गैरों कीनज़र
बचा कर भी
अपनी नज़र
लगाती हूं ।
जिसकी रक्षा में
जीवन क्या ?
मैं मौत को भी
झुठलाती हूं ।
साकार शहीदों
का,सपना है
उस सपने पर
बलि जाती हूं ।
उषासक्सेना:-स्वरचित
नमन मंच 🙏
दिनांक - 21/08/19
विषय - चंदन
*******************
स्मृतिपट से महकती छवि जाती नहीं
सौंदर्य की ऋतु मेंं तृष्णा समाती नहीं ।
भीग जाती हैं तन की अर्धपूर्ण इच्छाएँ
पसर जाती है दीर्घ निशा की भावनाएँ ।
मृदु मलय की सुरभि से निस्तेज है मन
पुष्पों के हर्षित अश्रुओं से प्लावित घन ।
आलिंगन मेंं तीर्ण धरा का रूप मधुमय सा
अंतर्ज्वाला मेंं भस्मीत स्वप्न तामसमय सा ।
श्रावणी नैनों मेंं पुलकित दुःखों की तरलता
हेमंती सुवास मेंं क्षुण्ण भावों की उद्विग्नता ।
महासागर गर्भ मेंं है आत्मप्रणय का समापन
प्रतीक्षारत हृदय मेंं है स्व दाह का उत्तापन ।
द्रवित स्पंदन मेंं कामनाओं का हो रहा अंत
स्मृति चंदन से सुगंधित हो रहा शेष वसंत ।
......अनिमा दास ...
कटक , ओडिशा
दिनांक - 21/08/19
विषय - चंदन
*******************
स्मृतिपट से महकती छवि जाती नहीं
सौंदर्य की ऋतु मेंं तृष्णा समाती नहीं ।
भीग जाती हैं तन की अर्धपूर्ण इच्छाएँ
पसर जाती है दीर्घ निशा की भावनाएँ ।
मृदु मलय की सुरभि से निस्तेज है मन
पुष्पों के हर्षित अश्रुओं से प्लावित घन ।
आलिंगन मेंं तीर्ण धरा का रूप मधुमय सा
अंतर्ज्वाला मेंं भस्मीत स्वप्न तामसमय सा ।
श्रावणी नैनों मेंं पुलकित दुःखों की तरलता
हेमंती सुवास मेंं क्षुण्ण भावों की उद्विग्नता ।
महासागर गर्भ मेंं है आत्मप्रणय का समापन
प्रतीक्षारत हृदय मेंं है स्व दाह का उत्तापन ।
द्रवित स्पंदन मेंं कामनाओं का हो रहा अंत
स्मृति चंदन से सुगंधित हो रहा शेष वसंत ।
......अनिमा दास ...
कटक , ओडिशा
चन्दन सी है यह मेरे देश की माटी,
और नेता मिले थे हमें सारे वीरप्पन,
लूट ही लिया सभी चोरों ने मिलकर,
सीना मिला हमें पूरे नाप का छप्पन,
सत्तर वर्षों तक किया हम पर राज,
अन्न जल को भी रहा देश मोहताज़,
जूझ रही थी जनता खुद आपस में,
बन कर दुश्मन भिड़े थे धर्म समाज,
पद लोलुपता और ऐसी खुदगर्जी,
चहुँओर ही मचा हुआ था हाहाकार,
खून का प्यासा ही बन गया आदमी,
एक दूजे पर करने लगा था प्रहार,
आपसी सौहार्द का हुआ था ह्रास,
जगह जगह हुवे सीरियल बिस्फोट,
आतंकवाद भी कुछ इतना बढ़ा था,
बैंक बन गया था अल्पसंख्यक वोट,
अपहरण लूट संगठित व्यवसाय थे,
घोटाले हवाला से तंग था भारत वर्ष,
जंगल राज से अब मिला छुटकारा,
अतीत ही बीता हमारा करते संघर्ष,
रचनाकार"*"दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया मंडला
मध्यप्रदेश,
और नेता मिले थे हमें सारे वीरप्पन,
लूट ही लिया सभी चोरों ने मिलकर,
सीना मिला हमें पूरे नाप का छप्पन,
सत्तर वर्षों तक किया हम पर राज,
अन्न जल को भी रहा देश मोहताज़,
जूझ रही थी जनता खुद आपस में,
बन कर दुश्मन भिड़े थे धर्म समाज,
पद लोलुपता और ऐसी खुदगर्जी,
चहुँओर ही मचा हुआ था हाहाकार,
खून का प्यासा ही बन गया आदमी,
एक दूजे पर करने लगा था प्रहार,
आपसी सौहार्द का हुआ था ह्रास,
जगह जगह हुवे सीरियल बिस्फोट,
आतंकवाद भी कुछ इतना बढ़ा था,
बैंक बन गया था अल्पसंख्यक वोट,
अपहरण लूट संगठित व्यवसाय थे,
घोटाले हवाला से तंग था भारत वर्ष,
जंगल राज से अब मिला छुटकारा,
अतीत ही बीता हमारा करते संघर्ष,
रचनाकार"*"दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया मंडला
मध्यप्रदेश,
विषय-चंदन
ख़ुशबू और शीतलता चंदन की
जग वालों से है कहाँ छिपी हुई
चंदन के इन गुणों की मुझे
आवश्यकता बहुत महसूस हुई
मानवता अब दम तोड़ रही
रिश्तों का दामन टटोल रही
जीवन मूल्यों की ख़ुशबू मिल जाए
सम्बंधों में समरसता घुल जाए
खान पान और रहन सहन का
तौर तरीक़ा ख़ूब बदल रहा
तन मन के धरातल पर जाकर
पुण्य भावों को ही रौंद रहा
सुख सुविधाओं में लिपटकर
असंतोषी होकर जीवन काट रहा
जो मिल रहा उसे भाता नही
समायोजन वह चाहता नही
आपाधापी के महायज्ञ में
शीतलता सामग्री दे रहा
विस्मित हूँ पर आशावादी हूँ
सकारात्मकता की पक्षपाती हूँ
चंदन की सीरत अपनाकर
वंदन की अभिलाषी हूँ
हाँ.जीवन के इस उपवन मे
चंदन की दर्शनाभिलाषी हूँ..
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
ख़ुशबू और शीतलता चंदन की
जग वालों से है कहाँ छिपी हुई
चंदन के इन गुणों की मुझे
आवश्यकता बहुत महसूस हुई
मानवता अब दम तोड़ रही
रिश्तों का दामन टटोल रही
जीवन मूल्यों की ख़ुशबू मिल जाए
सम्बंधों में समरसता घुल जाए
खान पान और रहन सहन का
तौर तरीक़ा ख़ूब बदल रहा
तन मन के धरातल पर जाकर
पुण्य भावों को ही रौंद रहा
सुख सुविधाओं में लिपटकर
असंतोषी होकर जीवन काट रहा
जो मिल रहा उसे भाता नही
समायोजन वह चाहता नही
आपाधापी के महायज्ञ में
शीतलता सामग्री दे रहा
विस्मित हूँ पर आशावादी हूँ
सकारात्मकता की पक्षपाती हूँ
चंदन की सीरत अपनाकर
वंदन की अभिलाषी हूँ
हाँ.जीवन के इस उपवन मे
चंदन की दर्शनाभिलाषी हूँ..
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
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