Monday, September 2

"स्वतंत्र लेखन"1सितम्बर 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-492


नमनःभावों के मोती
दि.01/9/19
स्वतंत्र लेखन


घनाक्षरीः
'परहित'निज स्वार्थ त्याग करना परार्थ,
हानि की न परवाह कर कष्ट झेलना।
लेकर उमंग की तरंग पर-कारज की,
दूसरों के दुःख की शिलाओं को ढकेलना।
निबल निरीह आँसुओं की पीर अनुमान,
शुष्क-म्लान मनों पर स्नेह-वारि मेलना।
उपकार बिरला है धर्म का किरीट -रत्न,
धन्य है परार्थ निज प्राणों पर खेलना।।

-धर्मरथी(खण्ड काव्य )पृ.19.

-डा.उमाशंकर शुक्ल 'शितिकंठ'


भावों के मोती
विषय= स्वतंत्र लेखन

=============
धन लालसा
इंसान है लिपटा
लौकी की बेल

पुष्प में भौंरा
राह खड़े मनचले
कहाँ ठिकाना

जीवन यात्रा
खट्टी-मीठी स्मृतियाँ
अंगूर गुच्छ

खिलता पुष्प
भंवरे का गुंजन
झरा पराग

बाँस के पेड़
मूर्ख संग मित्रता
कुल्हाड़ी पैर

बाल्टी कूप की
रीति-रिवाज पाश 
नारी जकड़ी

बाल श्रमिक
ज़िंदगी है जलती
भट्टी में आग

कृषक पीड़ा--
बरसात की मार
कर्ज में गढ़ा

कृषक पीड़ा
आषाढ़ की विदाई
अंबर शून्य

वन में ठूँठ
संतान अनदेखी
बुजुर्ग मूक

वन में ठूँठ
इंसान का प्रहार
घायल धरा

साँप की बाम्बी
कुटिल से मित्रता
जीवन हानी

भोर का सूर्य
उजास भरे मन
मिटाएं तम

पंक का फूल
झोपड़ी का भविष्य
कर्म सुगंध

तारो की आभा
दृश्य मनभावन
नभ आँगन।

पंक का फूल
सांझ ढले सिमटा
कैद भंवरा

तारो की आभा
जगमगाता व्योम
निशा आगोश

हरसिंगार
रजनी का दुलारा
भोर से बैर

मेथी के दाने
उपयोगी औषधि
स्वाद कसैला

छाज में गेंहू
टिप-टिप बारिश
धूप की आस

केसर क्यारी
जलता था हृदय
प्रीत मुस्काई

चाँद का बिंब--
प्रियतमा निहारें
नैन सजन

चाँद का बिंब
कौतूक से ताकता
बाल नयन

अंकुर फूटा
बंजर थी बरसों
केसर क्यारी

बया का नीड़
छोटी-सी बुनकर
कला अद्भुत

अद्भुत कला
बया बुनती नीड़
वृक्ष पे टंगा

गौ टीले पर
धूप से जली घास
ढूँढती चारा

चिकित्सालय
वैद्य की पोटली में
नीम के पत्ते

नीम का पत्र
आर्युवेदिक तत्व
गुणों से युक्त

रात की वर्षा
सबेरे की चाय पे
गहन चर्चा

ग्रहों के मध्य
राहु-केतु प्रभाव
भानू ग्रहण

दलाली रोग
मीठे गुण है खोता
गन्ने का खेत

बाबा थैली में
कमलनाल अंश
पुष्प के संग

तुलसीदल
मंजरी से शोभित
औषधि तत्व

वैद्य झोली में
तुलसीदल मंजरी
सुगंध पुष्प

युवा भविष्य 
बढ़ी बेरोजगारी
चौसर खेल

महके वात
शिकारी ढूँढता है
कस्तूरी गंध 

कस्तूरी गंध 
कानन कंदरा में
अहेरी मृत

रुई के खेत
हिमालय ऊपर
चादर श्वेत

हिना के पात
दुल्हन सजा स्वप्न
पालकी द्वार

रचती हाथ
सुहागिन का प्रेम
हिना के पात

चौसर खेल
दाँव-पेच जटिल
पांसे सत्ता के

विकट स्थिति-
मांझी बिना ही डोले
नदी में कश्ती

***अनुराधा चौहान***स्वरचित

दि- 1-9-19
मनपसंद 
सादर मंच को समर्पित -


🌺💧 गीतिका 💧🌺
***************************
🍊 आधार छंद - तमाल 🍊
विधान- मात्रा भार=19 , अंत -गाल
( चौपाई+ 21 )
समान्त- आर , अपदांत 
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

आज जगालें मन-मन्दिर में प्यार ।
हृदय बसालें सत जीवन का सार ।।

मोह हमेशा हमको घेरे रोज ,
आस पराई तज दें मद का खार ।

माया ठगिनी सदा लूटती , जान ,
धन की भूख लोभ है चिन्ता ज्वार ।

जीवन जीना एक कला है , सोच ,
है सन्तोष परम धन सुख का द्वार ।

कौन पराया जग में सब हैं मीत ,
चलें बनालें सबको दिल का हार ।

यह दुनिया तो आनी - जानी ढाँव ,
रैन बसेरा फिर जाना उस पार ।

जीना उसका जो जग बाटें नेह ,
याद यहाँ रह जाये मृदु व्यवहार ।।


🌹**.... रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा 

विषय -स्वतंत्र लेखन
दिनांक 1 -9-2019
तू कर गुनाह, हिसाब एक दिन होगा।
तेरे हर जुल्म हिसाब, कुछ ऐसे होगा।।

तूने बहुत चतुराई से, सबूते निशां मिटाएं हैं।
तेरा भी जिक्र होगा,कैसे बेगुनाह होगा।।

मैं चुप रह लूंगा ,तेरी रुसवाई के डर से।
पढ़ने वालों ने, खामोशी को पढा होगा।।

कब तक तेरी, गलतियों पर पर्दा मैं डालूंगा।
आएगा वह दिन, सच सामना करना होगा।।

बदल ले खुद को, खुदा कब तक बर्दाश्त करेगा ।
तू जी लेगा मेरे बगैर , मेरा क्या होगा ।।

वीणा वैष्णव
(स्वरचित)
कांकरोली


नमन मंच -भावों के मोती
1-09/2019
रविवार

विषय - मुक्त
विधा- स्वत्रंत
---------
विधा -- हाईकु 

ऐ चाँद सुन
मेरी अंतर ब्यथा
तूझसे कहूं

प्रीतम मेरा
मुझसे है बिछड़ा
मन बेकल

ये दिल मेरा
बचैन है रहता 
उनके बिना

पागल मन 
देखे राह उनकी 
बांहे फैलाये

उसके बिना
मेरा जिया ना लगे
जाऊं कहां मैं

संदेशा भेजूं
मिलन कहीं जाये
मन हर्षित 

एक बार ही
मिलने तो आओ
बात तो मानों

आओगे जब
नयनो में रखू़ंगी 
छोडूगीं नहीं

साक्षी बनेगी
शुभ्र चाँदनी रात
शुभ मिलन 

स्वरचित डॉ विभा रजंन(कनक)
नयी दिल्ली

नमन-भावो के मोती
दिनांक-01/09/2019


स्वतंत्र सृजन....

मौन ओढ़े सभी , हो रही है तैयारी।

राख के नीचे दबी जरूर है एक चिंगारी।।......

विकल मौन एक शस्त्र था।

असंतृप्त मन निर्वस्त्र था।

न मन में एक हार थी।

न मन में एक जीत थी।

जिंदगी के जाम में

घमंड से ना प्रीति थी।

शौर्य के शान में

बलिदानों की एक जीत थी।

अधरों की मुस्कानों में

स्वरों की एक गीत थी।

निःशब्द मौन व्यर्थ था।

न जीत थी ,न हर्ष था।

अंतरनाद का उत्कर्ष था।

अमूर्त सपनों का संघर्ष था।

झुका नहीं निराश में

डिगा नहीं हताश में

विराट का एक द्वंद था।

निःशब्द एक छंद था

चिर जगत निर्द्धंद्व..........

स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित@$#
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज इलाहाबाद

जीवट
ग्रह गोचर के माया जाल
जीवन चक्र हुआ जंजाल

हिम्मत टूट गयी और 
लगा मानो समय हुआ विपरीत
सब ग्रह हुए अब दुश्मन 
बचा न कोई मीत
दिन प्रतिदिन बढ़ रही
दशा ,जीवन की हो रही 
दुर्दशा,
समय नही रहा अनुकूल
प्रयत्न की हो रही सारी धूल,
प्रयास भी न काम आ रहा
अवरोध हर पल हर दिन आ रहा
जो अपने अदम्य साहस से डटे रहो,
हिम्मत से तुम बने रहो ,
तो कहानी नई लिख पाओगे
बुरे समय मे स्वयं से सम्बल 
स्वतः ही पाओगें,
समय ही बलवान
रखे सबका ध्यान,
नवल दृश्य फिर आएगा 
अपने को अनुकूल पाओगे
ये समय भी जैसे तैसे कट जाएगा
अंधियारी रात के बाद मनोरम
सवेरा फिर आएगा।
जीवट से तुम बने रहो,
राह पर अपनी चलते रहो
किसी की कथनी पर ध्यान न दो
बस लिए सफलता की आस आगे बढ़ते रहो।
बस करो अपना कर्म और
ईश पर रखो ,आस्था और विश्वास 
बस उसी से कर लो अपनी अरदास
मुक्त हो जाएंगे दोष जीवन फिरसे
लिखेगा नई कहानी,
स्वतः के जीवट से बुनी 
स्वयं की कर्मगाथा सुहानी।
कामेश की कलम से
1 सितंबर 2019

भावों के मोती 
सादर प्रणाम 
विषय =स्वतंत्र लेखन 

विधा=हाइकु 
🌺🌺🌺
ममता मोती 
मिले एक जगह
माता की झोली 

भरते घाव 
हृदय से निकले
निर्मल भाव

हो रही आज 
रिश्तो में सिकुड़न
व्यस्त जीवन

छोड़ के माया 
चली मोक्ष के द्वार
निर्मल काया

इंद्र करता 
धरा का अभिषेक
मेघ पुष्प से 

बरसा पानी 
प्राणवान हो गई
नदिया सारी 

कुछ नदियां 
करती है जौहर 
जाकर समुद्र

स्वरचित 
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश

नमन मंच,भांवो के मोती
विषय स्वतंत्र लेखन
विधा। काव्य

01 सितंबर 2019,रविवार

वक्त बड़ा है इस दुनियां में
काल जेयी कोई भी नहीं है।
जिसने समझा किया चिंतन
उसके पास पारस मणि है।

जो टकराया महाकाल से
औंधे मुँह नर मूर्ख गिरा है।
माया मोह भरी दुनियां में
परमानन्द किसे मिला है?

समय सागर की लहरों सा
आगे नित बढ़ता जाता है।
जैसी करनी करता जग में
वैसे मानव फल पाता है।

बड़े प्रतापी जग नायक बन
शहंशाह सिकन्दर यँहा आये।
हाथ पसारे गए वसुधा पर
समय देख कर अति पछताये।

यश अपयश मान अपमान
समय खेल है अति निराला।
रंक सिर पर ताज सुशोभित
तरसे ताजसी एक निवाला।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

बिषयः#नन्ही परी#
विधाःः काव्यः ः

अपनी बिटिया सबसे न्यारी।
कितनी सुंन्दर है फुलवारी।
खूब पकडना चाहे तितली,
बिटिया बहुत लगे मतवारी।

चहक रही बेटी बगिया में।
रंगबिरंगी फुलबगिया में।
आओ हम खिलाऐं बेटियां,
घर आंगन या कुटिया में।

बिटिया तो स्वर्ग घर अपना।
बेटी चाहिए फुदकती रहना।
खिलखिलाऐ जब बेटी घर में,
माने ये सबसे बडा धन अपना।

बेटी पा हम खुश हो जाऐं।
लालन पालन खूब कराऐं।
शिक्षा दीक्षा इसे दिलाकर,
प्रगतिशील हम इसे बनाऐं।

स्वरचितःः ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

नमन मंच
दिनाँक-०१/०९/२०१९
दिन-रविवार

विधा- विधाता छंद
विषय- विद्यार्थी

सजाकर ख्वाब आँखों में, 
लगा है जंग वो लड़ने।

किताबों का सहारा ले, 
चला आकाश में उड़ने।।

तिमिर से युद्ध है उसका, 
निराशा से हुई रंजिश।।

लड़ेगा और जीतेगा, 
सभी वो तोड़कर बंदिश।।

उड़ेगा भाँति पंक्षी के, 
कलम उसका बनेगी पर।

सतत पथ पर चलेगा वो, 
न उसको है किसी से डर।।

चला है शून्य से लेकिन,
शिखर ही लक्ष्य है जिसका।

हवाएँ रोक पाएंगी, 
भला क्या राह अब उसका?

रविशंकर विद्यार्थी
सिरसा मेजा प्रयागराज


नमन,मंच
नमन "भावों के मोती"
विधा:-तुकांत कविता

🍀🌹🍀🌹🍀🌹🍀

फिर से यादों का पानी
आँख मे उतर आया है
न रोक मुझे मेरे दिल 
. ये राहों में उतर आया है

देखता है तुझे दिन भर
कुछ और न अब भाता है
एक आहट हुई तेरे आने की
सैलाब आँखों में पाया है

एक तू मिले मुकम्मल,
जहां हो मेरा अब हमदम
यही नगमा मेरे दिल
ने तेरे लिए गाया है।

दूर कहीं छिटकी चाँदनी
देखूँ जब मैं शून्य में
बादलों की ओट से एक
चाँद खिडक़ी में भाया है

स्वरचित


तिथि-01सितम्बर2019
वार-रविवार
विधा-ग़ज़ल

2122 2122 212

वक़्त की हर शय जो खंजर बन गई,
फिर ये दुनिया सारी पत्थर बन गई।

दौलतों को पाने की तेरी हवस,
पहले बद अब और बदतर बन गई।

जब मिली मंज़िल हुआ अहसास ये,
मैं नदी खारा समुंदर बन गई।

औरतों को जो कोई सामाँ कहे,
ज़हनियत उसकी तो बंजर बन गई।

जब दुआ माँगी क़ज़ा की हमने तो,
ज़िन्दगी रब की ये मुख़्बर बन गई।

पुरसुकूं से गुज़री फिर तो अपनी शब,
जब तेरी आगोश बिस्तर बन गई।

यूँ हुई बेपर्दा वो तो बज़्म में,
बस कयामत का ही मंज़र बन गई।

जब जुबाँ पे लफ्ज़ सारे थम गए,
ये निगाह फिर पयम्बर बन गई।

हिज़्र के मारों से कोई पूछे तो,
चाँदनी भी क्यूँ सितमगर बन गई।

मुश्किलें जो राह की आसाँ करे,
तुम वही तो मेरी रहबर बन गई।

हुस्न ने जादू किया कुछ इस कदर,
'रण' का वो ख़्वाब-ए-मुकर्रर बन गई।

पूर्णतया स्वरचित,स्वप्रमाणित रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर, मोहाली(पंजाब)


नीलम शर्मा #नीलू



नमन मंच भावों के मोती
1 /9//2019
बिषय,, स्वतंत्र लेखन

समझ भी न पाए कब वक्त निकल गया
बर्फ की तरह मन पिघल गया
गुबार लिए दिल में भटकते ही रहे
स्वयं उधेड़बुन में अटकते ही रहे
वही मौसम आया बदल गया
हँसने लगा हम पर जमाना
छोटी सी बात का बन गया फसाना
सागर की लहरों सा नाम उछल गया
सब लुटा होश में आने का क्या फायदा
अपना सके न हम जमाने का कायदा
दुनिया के उसूलों से दिल दहल गया
बेपरवाही की सजा मिल गई
दिल की शिकायत आंसुओं में निकल गई
किसी ने थामा हाथ तो मन संभल गया
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार

नमन "भावो के मोती"
01/09/2019
आज स्वतंत्र लेखन के तहत..

################
तेरी ही खातिर मन्नत की।
दूनिया से भी तो बगावत की।।

देख लो दूनिया वालों तू भी।
क्या सिला है मिला मुहब्बत की।।

भूल जाना यूँ याद न करना।
अब मिला है जवाब ये खत की।।

प्यार को वो अभी कैसे समझे।
जब नशां लग गया हो दौलत की।।

हम नसीहत किसी की मानें भी।
अब है इंतजार तो कयामत की।।

दूर वो जा रहा न जाने क्यों।
जिंदगी भर जिसकी इबादत की।।

देख ली दूनिया की भी नीयत।
फैसला है मंजूर कुदरत की।।

खो गई प्रीत दरमियाँ अब तो।
फायदा न दिखा जहानत की।।

जिंदगी में खुश तू रहे सदा।
माँगुँ दूआ तेरी सलामत की।।

याद मेरी कभी भी आये तो।
तोड़ आना जंजीरें नफरत की।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।



नमन "भावो के मोती"
सभी सुहागनों को हरितालिका तीज की अग्रिम बधाई🌹🌹
01/09/2019
्वतंत्र लेखन के अंतर्गत..
"चोका"

मैय्या पार्वती
हरितालिका तीज
तिहारे द्वार
करके उपवास
मेहंदी हाथ
खनके ये कंगना
पति अँगना
सुहाग का प्रतीक
रखी हूँ पान
मंगलसूत्र साज
सिनुरा लाज
अखंड हो सौभाग्य
दो वरदान
दो कुल की मर्यादा
निभा सकूँ सर्वदा ।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल ।।

प्रणाम मित्रो...सादर नमन।भावो के भाव मोती 
कुछ पंक्तियां निवेदित कर रही हूँ।
कभी मैं श्याम लिखती हू ।

कभी घनश्याम लिखती हू।
हृदय मे नित न ए प्रियतम 
के मैं नाम लिखती हूँ

हूँ मैं बावरी प्रियतम के 
बस प्यार मे कह दूं
मुझे है प्यार मोहन से
ये सरेआम लिखती हूँ ।

बनू मैं श्याम के चरणों की
रज यह आरजू तो है
पढ़े पाती मेरी मोहन
उन्हें एक काम लिखती हूँ

छवि मोहन की सलोनी सावरी
अखिंयो मे नित रहती
तुम्हारा नाम हे माधव 
मैं आठो याम लिखती हूँ।

चले आओ मेरे मोहन
तुम्हें प्रियतम बुलाती हूँ
सुनो हे सावरे निज धाम
को बृजधाम लिखती हूँ
...शिखा माहेश्वरी दीपशिखा
. ............पुणे महाराष्ट्र......


नमन भावों के मोती
दिनांक १/९/२०१९
स्वतंत्र लेखन

लघुकथा"-आईना"

"दीदी कृपया आकर मेरे साथ कुछ जरूरी काम निबटा दो, मैं अकेले नही कर पाऊँगी, तुम्हें तो पता ही है कि मैं उतनी कुशलता से सभी काम नही निबटा पाऊँगी,"प्रीति की रिक्वेस्ट सुनकर,उसकी बड़ी बहन तृप्ति अपनी तमाम जरूरी काम छोड़कर अपनी छोटी बहन को मदद करने आ गई।
दोनों ने मिलकर सभी जरूरी काम सही समय पर निबटा दिये, कुछ काम प्रीति को पसंद आये तो कुछ नहीं परन्तु अपनी बहन को कुछ नहीं बोली,और समय मिलते ही अपना बेटा से उसकी चुगली करने लगी, कुछ देर शांति से सुनने के बाद उसका बेटा उसे टोकते हुए कहा,"मम्मी मुझे भी कुछ कहना है" प्रीति ने खुश होकर कहा" हाँ बेटा बोलो"उसने माँ को टोकते हुए कहा" माँ तुम कौन होती हो दूसरों को जज करने वाली, दूसरों को जज करना छोड़ दो,जो जैसा है,उसी रूप में उसे अपनाओ,तभी रिश्ता का मान रखना पाओगी"
बेटा के आईना दिखाते ही उसे उसका भूल का एहसास हुआ और जो जैसा है उसे उसी रूप में सहर्ष स्वीकार करने लगी,अब वह पहले से ज्यादा खुश रहने लगी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।


मन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :- 01/09/2019

विषय :- स्वतंत्र लेखन एवं दृश्य श्रव्य आयोजन

स्पर्श तुम्हारा महताब सा...
नूर चमकता आफताब सा..
महकता है मधुबन तुमसे...
घर लगता तुमसे आबाद सा...
तितलियों की तुम सहेली...
लगती हो कोई पहेली..
गोरैया सी चहकती आँगन...
करती कईं अठखेली...
बेटी बनकर आई हो..
खुशियाँ बनकर छाई हो...
लगती जैसे तुम हो कोई....
खिली-खिली अमराई हो....
नन्हें तुम्हारे कदम ताल...
भर जाते है नयनन ताल...
तुतलाती तुम्हारी मधुर वाणी..
छेड़ जाती मधुर सुर ताल...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

तेरी लीला अपरम्पार प्रभु। 
तू सबका पालनहार प्रभु। 


तेरी कृपा फली, मन आनंद। 
तेरा ध्यान मोक्ष , परमानन्द। 
डगमग डोलूं भवसागर में। 
इक तुम ही खेवनहार प्रभु। 

तेरी लीला अपरम्पार प्रभु। 
तू सबका पालनहार प्रभु।

घट घट में तेरा वास है प्रभु।
विश्व तू ही विश्वास है प्रभु। 
सत्य, नित्य और सनातन। 
सब है तेरे ही अवतार प्रभु। 

तेरी लीला अपरम्पार प्रभु। 
तू सबका पालनहार प्रभु़।

प्रभु इतना सदैव ज्ञान रहे। 
प्रतिपल हमे तेरा ध्यान रहे। 
मन में छवि तेरी अमित रहे। 
तुमसे ही जीवन संसार प्रभु। 

तेरी लीला अपरम्पार प्रभु। 
तू सबका पालनहार प्रभु। 

विपिन सोहल


भावों के मोती
1/09/19
विषय स्वतंत्रत लेखन 

विधा-छंद मुक्त अतुकान्त कविता।

ओ मेरी कविता कहां तिरोहित हुई तुम ,
अंतर से निकल शल्यकी में ढलती नहीं क्यूं,
हे भाव गंगे मेरी , सुरंग पावस ऋतु छाई 
पावन सलिल बन फिर छलकती नहीं क्यूं ।

क्यों मन सीपिज अवली में गूंथते नहीं ,
क्यों शशि अब सोमरस बरसाता नहीं ,
चंचल किरणें भी मन आंगन उतरती नही ,
कलियां चटकती नहीं, प्रसून खिलते नही ।

मधुबन क्यों है रिक्त सुधा ,बोध पनघट सूना,
हवा में संगीत नहीं, मां की लोरी अंतर्धान ,
भौंरे तितली सब गये ना जाने कौन दिसावर,
घटाएं बरसती नहीं, कोयल पपीहा मूक सभी ।

नंदन वन की वो भीनी-भीनी मतवाली सौरभ ,
बन मधु स्मृति सी मन मंजुषा में क्यों कैद हुई,
वर्णपट अब सजते नहीं जा काव्य क्षितिज,
पायल भी नीरव ,ओस निरीह ,पाखी उदास ।

मेरे भावों की सहचरी क्यों मूक बने बैठी हो,
आजाओ खोल पटल छलका दो काव्य सरस ,
ओ मेरी कविता, मुझसे विमुख न होना तुम ,
मेरे गीतों में ढल जाना बन नए बोल नव धुन ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी।


नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-01.09.2019
स्वतंत्र लेखन के तहत प्रेषित

ग़ज़ल -
मात्रा भार- 212 212 212 2
====================
तुम को दिल में बसाया न होता ।
आज मैं चोट खाया न होता ।।
-----------------------
उनकी औकात मुँह फेर लेना ,
मुझ से यह प्यार ज़ाया न होता ।।
------------------------
तीरगी भर रही है घरों में,
रौशनी का बसेरा न होता ।।
-----------------------
लोग मुझ को चिड़ीमार कहते ,
जाल मैंने समेंटा न होता ।।
----------------------
बाजरे की फ़सल सूख जाती ,
'अ़क्स' यूँ अब्र बरसा न होता ।।
=====================
'अ़क्स' बाहवी

सादर नमन
स्वतन्त्र लेखन में मेरी रचना


जिस दिन से तुझसे बात हुई,
दिल में जज्बातों की बरसात हुई,
विरान थी दिल की बगिया मेरी,
तुझ संग जिंदगी आबाद हुई।
**
याद कर तेरे चेहरे को कटती रातें हैं,
जीने का सहारा तेरी सब वो बातें हैं,
मजबूरी के रिश्तों से अच्छे यहाँ,
निभते सच्चे दिलों के नातें हैं।
**
बात तुझसे दिल की कहना चाहूँ,
संग तेरे अब मैं रहना चाहूँ,
तेरे प्रेम के फूलों से ,
घर अपना बसाना चाहूँ।
**
जान बूझ कर तू अंजान बना,
मान जा अपने दिल का कहना,
काँटों में भी तेरे साथ चलूँगी,
बाहों का तेरे पहनकर गहना।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
1/9/19
रविवार


नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-01/09/2019
दिन-रविवार

विधा-कविता
विषय-स्वतन्त्र

हिन्दी को अपनाकर देखो--

माँ की लोरी गा कर देखो।
हिंदी को अपना कर देखो।।

बिना दांत के कोमल शिशु सा,
थोड़ा तो तुतला कर देखो।।

भरती जो मानवता मन में,
थोड़ा हिंदी गा कर देखो।।

सूरदास की ब्रज भाषा में,
बंसी जरा बजा कर देखो।

तुलसी की अवधी बानी में,
मंगलभवन सुना कर देखो।

सावन में झूले के ऊपर,
थोड़ा कजरी गा कर देखो।

हिंदी की बहती धारा में,
प्रिय के गीत सुना कर देखो।

दादा नाना की वाणी में,
किस्सा जरा सुना कर देखो।

ट्विंकिल-ट्विंकिल छोड़ जरा सा,
उठो लाल अब गा कर देखो।

लन्दन,पेरिस,अमरीका में,
हिन्दी को फैलाकर देखो।

जीवन मधुमय हो जाएगा,
हिंदी को अपना कर देखो।

लाल चन्द्र यादव(अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश)
स्वरचित, मौलिक


मन मंच
1.9.3019 
रविवार। 

विषय -मन पसंद विषय 
लेखन 
विधा - भक्ति गीत 

गणेश चतुर्दशी 
पर्व पर 
गणपति का आवाहन 

गजानन घर आओ
🌹🌹🌹
गजानन घर आओ इक बार 
ख़ुशियाँ बरसें बारम्बार ।।

सुख-समृद्धि के देने वाले
गौरी सुत जग के रखवाले
सुन लो आ कर मेरी पुकार 
गजानन घर आओ इक बार ।।

नन्हा मूषक तुम्हरा वाहन
तुम ही कहलाते पंचानन
अब मेरी नाव लगाओ पार 
गजानन घर आओ इक बार ।।

बुद्धि और ऐश्वर्य के दाता
तुम हो जग के भाग्य विधाता 
बदलो आ कर भाग्य हमार 
गजानन घर आओ इक बार।।

मंगलमूर्ति मंगलकर्ता
दीनबंधु तुम हो दु:खहर्ता 
मंगलमय कर दो संसार
गजानन घर आओ इक बार ।।

हे शिवांश हे पार्वतीनंदन
प्रथम पूज्य जग करता वंदन
करुणामय करुणा अवतार 
गजानन घर आओ इक बार ।।

विघ्न हरो हे विघ्न के हर्ता
गणपति जग के पालनकर्ता 
बरसाओ अमृत की धार 
गजानन घर आओ इक बार ।।

स्वरचित 
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
CM Sharma II 

स्वतंत्र लेखन II नमन भावों के मोती....

विधा : गीत - बाजे मुरलिया बाजे....


बाजे मुरलिया बाजे.... 
बाजे मुरलिया बाजे...
गोपिन्ह ग्वाल बिसर गई सुरति... 
ताल बिना सब नाचे... 
बाजे मुरलिया बाजे.... 

सृष्टि ठिठके, खग मृग भटके...
राह चलत हर जन यूं अटके...
कोई न जाने न पहचाने...
बंधे मोह जिस धागे.....
बाजे मुरलिया बाजे....

कान्हा मुरली तान स्वाति...
'चन्दर' गात सात स्वर गाती...
झूमे हर पल दीखते हर कण... 
श्याम ही श्याम बिराजे...
बाजे मुरलिया बाजे...
बाजे मुरलिया बाजे...

गात = देह 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
०१.०९.२०१९

भावों के मोती दिनांक 1/91/19
स्वपसंद 
लघुकथा


शिक्षा 

आज गाँव के स्कूल को रंग बिरंगे तौरण से खूब सजाया जा रहा था । जिला शिक्षा अधिकारी मुनियां स्कूल में आ रहीं थी। 

स्कूल में आते ही मुनियां की आँखो के आगे एक चलचित्र घुम गया ।

बरतन माँझते हुए मुनियां सोच रही थी :

" भगवान मेरी कैसी परीक्षा ले रहे है ? 

मैं भी तो स्कूल जाती थी , खूब होशियार थी लेकिन भगवान् ने मुझ से पापा को छीन लिया और उसी गम में माँ को लकवा लग गया अब घर तो चलाना ही है इसलिए मुझे ही दूसरों के घर बरतन माँझने पड़ रहे है

थोड़े पैसे खाना मिल जाता है बस ।"

मुनियां घर के बाहर लगे नल पर नीलम अंटी के घर बरतन माँझ रही थी, उसी रास्ते से दिनेश , सुरेश और लक्ष्मी भी स्कूल के लिए निकलते थे । 

बच्चों को भी मुनियां को देख कर बडा दुख होता था , वह सोचते :

" जिस उम्र हम लोग स्कूल जा रहे है , खुशी से घूमते फिरते है यह यहाँ काम कर रही है ।"

एक दिन उन्होंने मुनियां से बात की तब मुनियां ने अपने घर की समस्या उन बच्चों को बताई ।

दिनेश समझदार लड़का था उस ने एक दिन यह बात अपने स्कूल के अध्यापक को बताई । वह बहुत सज्जन थे और बच्चों के भविष्य के लिए चिंता करते थे । 

उन्होंने मुनियां और उसकी मम्मी से बात की । 

मुनियां तो खूब पढ़ लिख कर बड़ी अधिकारी बनना चाहती थी । 

अध्यापक ने मुनियां को स्कूल में प्रवेश दिलाया और छात्रवृत्ति का भी इन्तजाम करवाया जिससे वह पढाई भी करे और उसके घर की जरूरत भी पूरी हो सके । 

अब मैं अनुरोध करूँगा : " मुनियां मेडम से अपने विचार व्यक्त करें ।"

मुनियां के आगे चल रहा चलचित्र बिखर गया था और उसने बिना झिझक अपनी बात सब को बताई ।

उसने कहा : " शिक्षा वरदान है कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए भी शिक्षा नहीं छोड़नी चाहिए। "

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव सेवानिवृत्त भोपाल

#दिनांक:1"9"2019:
#विषय:मुक्त लेखन:

#विधा:काव्य:

"*"*"#नेताजी "*"*"

जीवन के गिरते मूल्य दर्ज़ है, 
लोकतंत्र के सभी स्तम्भों मैं,
आग लगाती खुली आज़ादी, 
कुत्सित राजनीती के दंभों मै, 

नेता नाम मैं तत्व हैं नेत्र का, 
पर इन्हें कहाँ दिखाई देता है,
आगे रहता है लाभ लेने मैं,
हानि जनता के सर मढ़ देता है, 

पांच साल ही बहुत होते है, 
खुद अपना घर भर लेने को, 
टिकिट फिर से बिकती होगी, 
फिर तैयार हैं रिश्वत देने को, 

समस्याएं अपनी हल कराने, 
चुनकर सदन तुम्हे भेजते हैं,
तुम समस्या खुद बन जाते हो, 
हम खुद ही खुद पर झेंपते हैं, 

जनता का हित है किसी बिल मैं, 
तुम निश्चित ही विवाद गहराओगे, 
वेतन अगर बढ़ाना हो खुद का, 
बहुमत से बिल पास कराओगे, 

"दुर्गा" तू भी एक नेता बन जा, 
ये तो मुफ्तखोरी का धंधा है, 
बंदूक चला तू भी रख रख कर,, 
जनता का मज़बूत कन्धा है, 

"*"रचनाकार दुर्गा सिलगीवाला सोनी भुआ बिछिया जिला मंडला 
मध्यप्रदेश

विधाःः मनोरम छंद(2122,2122)
एक प्रयासः

शान से मै खा रहा हूँ।
आज ही मै जा रहा हूँ।
खोइये आपा नहीं अब।
रोकिये हमको नहीं अब।

जीविका सुख से चलेगी।
प्रीति तो मन से चलेगी।
भाग दौड़ तबतक होगी।
जीव मौत जबतक होगी।

दीपिका प्रेमी जलाऐं।
राधिका अपनी बुलाऐं।
आपको झूला झुलाऐं।
साथ में कृष्णा झुलाऐं।

चाल चलते गजब भाई।
गोटि तुमने कब बिछाईं।
मात कोई यार देगा।
शायद मीत मार देगा।

स्वरचितःः ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

 नमन भावों के मोती परिवार 
01/09/2019
विषय - लंबोदर / गणपति /गणेश

विधा- हाइकु 

प्रथम देव 
गणपति सुमिरि 
लाखों प्रणाम 

माथे सिंदूर 
शोभे पान मुख में 
अति सुन्दर 

हे गौरी लाल 
अंग पिताम्बर है 
छवि न्यारी सी 

मंगल मोद 
मनाएं सब मिल
करें पूजन 

हे गणेश जी 
सिद्धिविनायक जी
रखिए लाज़

हर कार्य में 
प्रथम पूजन का 
विधान मान 

लंबोदराय 
हर कार्य सफ़ल 
बनाएं आ के

भारत खुश
समृद्धि विकास हो
जय देवा की 

घर -घर में 
शांति तप जोवन 
त्याग गणेशा 

आपका रहे 
आशीर्वाद गणेशा 
उन्नति होवें 

स्वरचित मौलिक रचना 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
रत्ना वर्मा 
धनबाद-झारखंड

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...