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ब्लॉग संख्या :-501
नमन मंच भांवो के मोती
विषय चैन की बंसी
विधा काव्य
10 सितम्बर 2019,मंगलवार
चैन की बंसी कर्म से बाजे
जैसा बोते वैसा फल पाते।
दीन दुःखी सेवा में रत जो
हर्षोल्लास जीवन में लाते।
वृन्दावन की कुंज गलिन
चैन की बंसी बजती थी।
माधव गोविन्द गोपाल की
ब्रजबाला भक्ति करती थी।
इस भारत में दूध दही की
नदियां सदा बहा करती थी।
सोने की चिड़िया कहलाती
सुख चैन बंसी बजती थी।
राम राज्य था इस भारत में
न्याय सत्य कानून की चलती।
जन मन में उल्लास समाहित
नित चैन की बंसी मन बजती।
स्वहित त्याग परहित जी लो
दया सदा पीड़ा को हरती है।
दीन दुःखी असहाय जन मन
सदा चैन की बंसी बजती है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय चैन की बंसी
विधा काव्य
10 सितम्बर 2019,मंगलवार
चैन की बंसी कर्म से बाजे
जैसा बोते वैसा फल पाते।
दीन दुःखी सेवा में रत जो
हर्षोल्लास जीवन में लाते।
वृन्दावन की कुंज गलिन
चैन की बंसी बजती थी।
माधव गोविन्द गोपाल की
ब्रजबाला भक्ति करती थी।
इस भारत में दूध दही की
नदियां सदा बहा करती थी।
सोने की चिड़िया कहलाती
सुख चैन बंसी बजती थी।
राम राज्य था इस भारत में
न्याय सत्य कानून की चलती।
जन मन में उल्लास समाहित
नित चैन की बंसी मन बजती।
स्वहित त्याग परहित जी लो
दया सदा पीड़ा को हरती है।
दीन दुःखी असहाय जन मन
सदा चैन की बंसी बजती है।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय:-चैन की बंशी
विधा:-नज्म
आँखों के आँसुओं मे भीगी वो नज्म हूँ।
दुनिया पढ रही है मेरे प्यार को छोड़ कर।।
चैन की बंशी सुने अब कैसे दिल
मेरा दिल।
आँसुओं ने घर बना लिया खिजा
ओढ़ कर ।।
कहने वाले कहते हैं क्या बात है बड़ी ।
इश्क मामलात में फरार रहता है
चैन खो कर ।।
मिजाज न पूछे कोइ अब दिल का
रास्ता देखती है आँखें बहार ओढ कर।।
वावस्तगी हमारी कफ़स से जो उसने पूछी।
दरों दीवार भी रो पड़े करार को तोड़ कर।।
नीलम शर्मा #नीलू
विधा:-नज्म
आँखों के आँसुओं मे भीगी वो नज्म हूँ।
दुनिया पढ रही है मेरे प्यार को छोड़ कर।।
चैन की बंशी सुने अब कैसे दिल
मेरा दिल।
आँसुओं ने घर बना लिया खिजा
ओढ़ कर ।।
कहने वाले कहते हैं क्या बात है बड़ी ।
इश्क मामलात में फरार रहता है
चैन खो कर ।।
मिजाज न पूछे कोइ अब दिल का
रास्ता देखती है आँखें बहार ओढ कर।।
वावस्तगी हमारी कफ़स से जो उसने पूछी।
दरों दीवार भी रो पड़े करार को तोड़ कर।।
नीलम शर्मा #नीलू
नमन मंच भावों के मोती
10 /9 / 2019
बिषय ,,चैन की बंशी ,,
कब.आओगे भारत में कान्हा
प्रेम सुधा बरसाने वाले
चहुंओर घोर अंधेरा है
झूठ छल कपट का डेरा है
कब कष्ट हरोगे कान्हा तुम
सुदर्शन चक्र चलाने वाले
आपस में झगड़ रहे
भाई से भाई लड़ रहे
इन्हें आकर कुछ तो समझा दो
गिरवर को उठाने वाले
यहां सरेआम लुटतीं बाला
शर्म हया पे लगा ताला
अब कोई नहीं है रखवाला
सुनो लाज बचाने वाले
आरत जन तुम्हें पुकारते हैं
आने की वाट निहारते हैं
फिर से चैनों अमन कर जाओ
चैन की बंशी बजाने वाले
स्वरचित,, सुषमा,, ब्यौहार
10 /9 / 2019
बिषय ,,चैन की बंशी ,,
कब.आओगे भारत में कान्हा
प्रेम सुधा बरसाने वाले
चहुंओर घोर अंधेरा है
झूठ छल कपट का डेरा है
कब कष्ट हरोगे कान्हा तुम
सुदर्शन चक्र चलाने वाले
आपस में झगड़ रहे
भाई से भाई लड़ रहे
इन्हें आकर कुछ तो समझा दो
गिरवर को उठाने वाले
यहां सरेआम लुटतीं बाला
शर्म हया पे लगा ताला
अब कोई नहीं है रखवाला
सुनो लाज बचाने वाले
आरत जन तुम्हें पुकारते हैं
आने की वाट निहारते हैं
फिर से चैनों अमन कर जाओ
चैन की बंशी बजाने वाले
स्वरचित,, सुषमा,, ब्यौहार
जला दूँ तू कहे तो खत वो सब तेरी निशानी।
मिटा दूँ प्यार वो जज्बात वो तेरी कहानी।
भला अब काम क्या उसका पुराना वक्त ना अब,
कहो तो हम मिटा दे दिल से तेरी सब निशानी।
**
भला हम ही क्यो तडपे, रात दिन यादों मे बँध करके।
बजाओ चैन की बँशी तुम हमको ही भूला करके।
नही जब है मिलन होना तो जीना क्यो भला घुट के,
कहो तो प्यार करते है हम दोनो फिर शुरू से।
शेर सिंह सर्राफ
मिटा दूँ प्यार वो जज्बात वो तेरी कहानी।
भला अब काम क्या उसका पुराना वक्त ना अब,
कहो तो हम मिटा दे दिल से तेरी सब निशानी।
**
भला हम ही क्यो तडपे, रात दिन यादों मे बँध करके।
बजाओ चैन की बँशी तुम हमको ही भूला करके।
नही जब है मिलन होना तो जीना क्यो भला घुट के,
कहो तो प्यार करते है हम दोनो फिर शुरू से।
शेर सिंह सर्राफ
शीर्षक-- चैन की बंशी
प्रथम प्रस्तुति
चैन की बंशी बजने दो
दिल को दिल में गसने दो ।।
बहुत बसे दौलत में हम
दिल को दिल में बसने दो ।।
कुछ तुम छेड़ों कुछ हम भी
राग बागेश्री सजने दो ।।
रात की रानी खिल गयी
कुछ मन को भी खिलने दो ।।
चाँद की महफिल सज गयी
हमको चाँद से मिलने दो ।।
मत ढाँको घूँघट में मुखड़ा
आँखों की प्यास बुझने दो ।।
दोनो ओर आग बराबर
अब आग और न बढ़ने दो ।।
इन्तज़ार की घड़ी खतम
बात में रात न खपने दो ।।
मधुर मिलन की घड़ी 'शिवम'
इस घड़ी में रँग भरने दो ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/09/2019
प्रथम प्रस्तुति
चैन की बंशी बजने दो
दिल को दिल में गसने दो ।।
बहुत बसे दौलत में हम
दिल को दिल में बसने दो ।।
कुछ तुम छेड़ों कुछ हम भी
राग बागेश्री सजने दो ।।
रात की रानी खिल गयी
कुछ मन को भी खिलने दो ।।
चाँद की महफिल सज गयी
हमको चाँद से मिलने दो ।।
मत ढाँको घूँघट में मुखड़ा
आँखों की प्यास बुझने दो ।।
दोनो ओर आग बराबर
अब आग और न बढ़ने दो ।।
इन्तज़ार की घड़ी खतम
बात में रात न खपने दो ।।
मधुर मिलन की घड़ी 'शिवम'
इस घड़ी में रँग भरने दो ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/09/2019
विषय- चैन की बंसी
दिनांक 10 -9- 2019चैन की बंसी कहांँ बजती,भागा दौड़ी चहुँओर है।
दौड़ रहे पैसों के पीछे, पागलपन सब ओर है।।
मांँ बाप से दूर रह, बताते स्वर्ग इस ओर है।
चैन खो सब अपना,भाग रहे विनाश ओर है ।।
शांति तलाश भटक रहे, नहीं कहीं ठौर है ।
चैन की बंसी ठोर,प्रभु चरणों की ओर है ।।
अब भी लौट अपने घर,भोर भयी चहुँओर है।
ना भटक रंगीनियों में, यह सिर्फ चितचोर है।।
नया सवेरा लाया खुशियांँ, देख चहुँओर है ।
चैन की बंसी बजा, मनु जीवन नहीं ओर है ।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 10 -9- 2019चैन की बंसी कहांँ बजती,भागा दौड़ी चहुँओर है।
दौड़ रहे पैसों के पीछे, पागलपन सब ओर है।।
मांँ बाप से दूर रह, बताते स्वर्ग इस ओर है।
चैन खो सब अपना,भाग रहे विनाश ओर है ।।
शांति तलाश भटक रहे, नहीं कहीं ठौर है ।
चैन की बंसी ठोर,प्रभु चरणों की ओर है ।।
अब भी लौट अपने घर,भोर भयी चहुँओर है।
ना भटक रंगीनियों में, यह सिर्फ चितचोर है।।
नया सवेरा लाया खुशियांँ, देख चहुँओर है ।
चैन की बंसी बजा, मनु जीवन नहीं ओर है ।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमन भावों के मोती
दिनांक :- 10/09 /19
विषय पर :- चैन की बंसी
मेरे घर में आओ प्रभु जी,
प्रेम की बंसी बजाओ प्रभु जी,
हम तेरे हैं, भक्त प्रभु जी ,
रखना हमारा ध्यान प्रभु जी,
तुम बिन हमरा कौन प्रभु जी,
लेलो शरण में हम को प्रभु जी,
अज्ञान हमारा मिटा दो प्रभु जी
ज्ञान का प्रकाश दिखा दो प्रभु जी
मेरे घर पर आओ प्रभु जी
चैन की बंशी बजा दो प्रभु जी,
Uma vaishnav
स्वरचित और मौलिक
दिनांक :- 10/09 /19
विषय पर :- चैन की बंसी
मेरे घर में आओ प्रभु जी,
प्रेम की बंसी बजाओ प्रभु जी,
हम तेरे हैं, भक्त प्रभु जी ,
रखना हमारा ध्यान प्रभु जी,
तुम बिन हमरा कौन प्रभु जी,
लेलो शरण में हम को प्रभु जी,
अज्ञान हमारा मिटा दो प्रभु जी
ज्ञान का प्रकाश दिखा दो प्रभु जी
मेरे घर पर आओ प्रभु जी
चैन की बंशी बजा दो प्रभु जी,
Uma vaishnav
स्वरचित और मौलिक
भावों के मोती नमन
दिनांक -10/9/2019
विषय -चैन की बंसी
चैन की बंसी मुझसे बजे ना कान्हा
अब तुम्हीं सहारा मुझे युक्ति बताना
अवसादों का गहराता साया
धीरज मेरा तब डगमगाया
विजय इस पर पाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
ईमानदारी का ना कोई मोल रहा
बेईमानी का गहरा दंश झेल रहा
सिद्धांतों को अपने बचाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
सच्ची बातें जग को कड़वी लगती
झूठी बातें ही मीठी चाशनी दिखती
सत्य राह से ख़ुद को भटकाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
सम्मुख होकर जताते प्यार
पीठ पीछे कर जाते प्रहार
ऐसे सम्बंधों को निभाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
मुखौटों से चेहरा छिपाते लोग
दाँव पेंच का भी अपना योग
निज पहचान बनाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
बाते अधिकारों की सब करते
कर्तव्यों पर तब सोच पलटते
निज विवेक रखूँ क़ायम कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
दिनांक -10/9/2019
विषय -चैन की बंसी
चैन की बंसी मुझसे बजे ना कान्हा
अब तुम्हीं सहारा मुझे युक्ति बताना
अवसादों का गहराता साया
धीरज मेरा तब डगमगाया
विजय इस पर पाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
ईमानदारी का ना कोई मोल रहा
बेईमानी का गहरा दंश झेल रहा
सिद्धांतों को अपने बचाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
सच्ची बातें जग को कड़वी लगती
झूठी बातें ही मीठी चाशनी दिखती
सत्य राह से ख़ुद को भटकाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
सम्मुख होकर जताते प्यार
पीठ पीछे कर जाते प्रहार
ऐसे सम्बंधों को निभाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
मुखौटों से चेहरा छिपाते लोग
दाँव पेंच का भी अपना योग
निज पहचान बनाऊँ कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
बाते अधिकारों की सब करते
कर्तव्यों पर तब सोच पलटते
निज विवेक रखूँ क़ायम कैसे
चैन की बंसी बजाऊँ कैसे ?
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
विषय - चैन की बंशी
सादर मंच को समर्पित --
🐚 दोहा गजल 🐚
*******************************
🌷 चैन की बंशी 🌷
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
बजे बाँसुरी चैन की , जीवन है संगीत ।
हिल-मिल बाँटें प्यार हम, यह वसुधा ही मीत ।।
मन का रावण मार कर , दिल के अन्दर झाँक ,
पहचानें निज राम को , घट को करें पुनीत ।
पथ पर बढ़ करके चुनें , बिखरीं खुशियाँ नेक ,
लक्ष्य भेदती साधना , अवरोधों में जीत ।
जागरण का वक्त है , जगें, जगायें आज ,
शंखनाद अब चाहिए , यही राष्ट्र का गीत ।
चला न जाये व्यर्थ ही , जीवन यह अनमोल ,
कर लें कुछ सत्कर्म भी , वक्त न जाये बीत ।।
🏵🌴🌺🍀🌸🌹
🐚☀️☀️**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
सादर मंच को समर्पित --
🐚 दोहा गजल 🐚
*******************************
🌷 चैन की बंशी 🌷
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
बजे बाँसुरी चैन की , जीवन है संगीत ।
हिल-मिल बाँटें प्यार हम, यह वसुधा ही मीत ।।
मन का रावण मार कर , दिल के अन्दर झाँक ,
पहचानें निज राम को , घट को करें पुनीत ।
पथ पर बढ़ करके चुनें , बिखरीं खुशियाँ नेक ,
लक्ष्य भेदती साधना , अवरोधों में जीत ।
जागरण का वक्त है , जगें, जगायें आज ,
शंखनाद अब चाहिए , यही राष्ट्र का गीत ।
चला न जाये व्यर्थ ही , जीवन यह अनमोल ,
कर लें कुछ सत्कर्म भी , वक्त न जाये बीत ।।
🏵🌴🌺🍀🌸🌹
🐚☀️☀️**...रवीन्द्र वर्मा आगरा
नमन् भावों के मोती
दिनाँक:10/09/2019
विषय:चैन की बंसी
विधा:कविता
दुनिया में छायी है मन्दी
जीडीपी गिरती रहती
चहुँ और आर्थिक बन्दी
जनता ही पिसती रहती
जनता होती जाती चिंदी
नेताओं की चैन की बंसी
विश्व पर्यटन बनती मन्दी
त्राहि त्राहि जनता खांसी
माथे सिलवट लाती मन्दी
चैन की बंसी बनती कर्कस
हरकत कैसी होती गन्दी
पतन की बनती यही चरस
कड़ी नकेल उबारती मन्दी
अर्थव्यवस्था उत्थान उपाय
जोड़-जोड़ कर रद्दी चिंदी
चिंतित देश करे रहे उपाय
सुदृढ़ नीति की मोर्चा बन्दी
बिखराती जनता में हंसी
दृढ़ता करती छूमन्तर मन्दी
जनता में बजती चैन की बंसी
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
दिनाँक:10/09/2019
विषय:चैन की बंसी
विधा:कविता
दुनिया में छायी है मन्दी
जीडीपी गिरती रहती
चहुँ और आर्थिक बन्दी
जनता ही पिसती रहती
जनता होती जाती चिंदी
नेताओं की चैन की बंसी
विश्व पर्यटन बनती मन्दी
त्राहि त्राहि जनता खांसी
माथे सिलवट लाती मन्दी
चैन की बंसी बनती कर्कस
हरकत कैसी होती गन्दी
पतन की बनती यही चरस
कड़ी नकेल उबारती मन्दी
अर्थव्यवस्था उत्थान उपाय
जोड़-जोड़ कर रद्दी चिंदी
चिंतित देश करे रहे उपाय
सुदृढ़ नीति की मोर्चा बन्दी
बिखराती जनता में हंसी
दृढ़ता करती छूमन्तर मन्दी
जनता में बजती चैन की बंसी
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
नमन भावों के मोती
विषय--चैन की बंशी
दिनांक--10-9-19
विधा--दोहा मुक्तक
1.
बजती बंशी चैन की, प्रभु का हो आशीष।
बिना त्याग की जिन्दगी,पाती नहिं बख्शीश।
समन्वय व सौहार्द से, मिलती मन को शांति--
जो परहित को साधता,वही दूत है,ईश।
2.
लोभ,मोह औ क्रोध से,रहते जितना दूर।
जिन्न क्रूरता का अगर,रखें उसे मजबूर।
पीड़ित,दलित मनुज हिते,बढ़े मदद का हाथ--
बजती बंशी चैन की, हों कठिनाई दूर।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय--चैन की बंशी
दिनांक--10-9-19
विधा--दोहा मुक्तक
1.
बजती बंशी चैन की, प्रभु का हो आशीष।
बिना त्याग की जिन्दगी,पाती नहिं बख्शीश।
समन्वय व सौहार्द से, मिलती मन को शांति--
जो परहित को साधता,वही दूत है,ईश।
2.
लोभ,मोह औ क्रोध से,रहते जितना दूर।
जिन्न क्रूरता का अगर,रखें उसे मजबूर।
पीड़ित,दलित मनुज हिते,बढ़े मदद का हाथ--
बजती बंशी चैन की, हों कठिनाई दूर।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
नमन भावों के मोती
10/9/2019
विषय-चैन की बंसी
विधा-छंदमुक्त कविता
**********
सारी उम्र वो सोचते ही रहे
कब दायित्व पूर्ण हो
कब हम चैन की बंसी बनाएं
अभी बच्चे छोटे हैं
चैन मिलेगा जरा ये बड़े हो जाएं
पहले स्कूल,फिर कॉलेज फिर नौकरी
बस होने ही लगी है ज़िम्मेदारी अब पूरी
अब मज़े से चैन की बांसुरी बजाएंगे
अरे अभी कहाँ!!
अभी तो बच्चों की शादी करनी है
ये भी कार्य पूर्ण हुआ
अब हमारा कार्य पूरा हुआ
अब शांति से बैठ चैन की बंसी बजाएंगे
परन्तु अभी कहाँ!
अभी तो इम्तिहान बाकी है
अभी बहुत कुछ देखना बाकी है
अब शुरू हुआ बंटवारे का खेल
भाई भाई में नहीं है मेल
बड़ा कहता माता पिता तेरी जिम्मदारी
छोटा बोला छह महीने तुम रखो साथ में
फिर आएगी हमारी बारी
दो व्यक्तियों का खर्चा एक अकेले से
न उठाया जाएगा
तो एक मेरे संग रहेगा
दूसरा तेरे संग जाएगा
सुन कर ये फरमान
व्यथित हुए श्रीमती श्रीमान
आँखो ही आँखों में कुछ कहने लगे
प्रभु से मौन विनती करने लगे
एक आह उठी सीने में
क्या लाभ अब जीने में
अब तो मरणोपरांत ही
चैन की बंसी बज पाएगी ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
10/9/2019
विषय-चैन की बंसी
विधा-छंदमुक्त कविता
**********
सारी उम्र वो सोचते ही रहे
कब दायित्व पूर्ण हो
कब हम चैन की बंसी बनाएं
अभी बच्चे छोटे हैं
चैन मिलेगा जरा ये बड़े हो जाएं
पहले स्कूल,फिर कॉलेज फिर नौकरी
बस होने ही लगी है ज़िम्मेदारी अब पूरी
अब मज़े से चैन की बांसुरी बजाएंगे
अरे अभी कहाँ!!
अभी तो बच्चों की शादी करनी है
ये भी कार्य पूर्ण हुआ
अब हमारा कार्य पूरा हुआ
अब शांति से बैठ चैन की बंसी बजाएंगे
परन्तु अभी कहाँ!
अभी तो इम्तिहान बाकी है
अभी बहुत कुछ देखना बाकी है
अब शुरू हुआ बंटवारे का खेल
भाई भाई में नहीं है मेल
बड़ा कहता माता पिता तेरी जिम्मदारी
छोटा बोला छह महीने तुम रखो साथ में
फिर आएगी हमारी बारी
दो व्यक्तियों का खर्चा एक अकेले से
न उठाया जाएगा
तो एक मेरे संग रहेगा
दूसरा तेरे संग जाएगा
सुन कर ये फरमान
व्यथित हुए श्रीमती श्रीमान
आँखो ही आँखों में कुछ कहने लगे
प्रभु से मौन विनती करने लगे
एक आह उठी सीने में
क्या लाभ अब जीने में
अब तो मरणोपरांत ही
चैन की बंसी बज पाएगी ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
भावों के मोती
विषय=चैन की बंशी
===============
बेचैन मन को चैन नहीं,
तो जग अंधियारा दिखता है।
चिंता-फिकर का रोग लगा,
मधुवन भी उजड़ा दिखता है।
डाला आँखों पे झूठ का परदा,
अब अपनापन कहाँ दिखता है।
राग-द्वेष को मन में बसा लिया,
फिर मन का प्रेम कहाँ दिखता है।
चैन की बंशी अब कहाँ बजे,
जब भाग्य ही रूठा दिखता है।
पल दो पल का जीवन मेला,
इंसान खिलौने-सा यहाँ नचता है।
रिश्तों का बंधन रिक्त हो रहा,
सिर्फ दिखावा सिर उठाए चलता है।
सच्चाई से मुँह मोड़कर इंसान,
चादर झूठ की ओढ़े फिरता है।
किसी की बात न सुनना "अनु" तुम,
यहाँ हर कोई छलावा-सा दिखता है।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय=चैन की बंशी
===============
बेचैन मन को चैन नहीं,
तो जग अंधियारा दिखता है।
चिंता-फिकर का रोग लगा,
मधुवन भी उजड़ा दिखता है।
डाला आँखों पे झूठ का परदा,
अब अपनापन कहाँ दिखता है।
राग-द्वेष को मन में बसा लिया,
फिर मन का प्रेम कहाँ दिखता है।
चैन की बंशी अब कहाँ बजे,
जब भाग्य ही रूठा दिखता है।
पल दो पल का जीवन मेला,
इंसान खिलौने-सा यहाँ नचता है।
रिश्तों का बंधन रिक्त हो रहा,
सिर्फ दिखावा सिर उठाए चलता है।
सच्चाई से मुँह मोड़कर इंसान,
चादर झूठ की ओढ़े फिरता है।
किसी की बात न सुनना "अनु" तुम,
यहाँ हर कोई छलावा-सा दिखता है।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
नमन भावों के मोती मंच को समर्पित
दिनांक: 10/09/2019
विषय :चैन की बंसी
विधा:हाइकु
चैन की बंसी
कृष्णा के अधरों पे
राधा सखियाँ ।
प्रतिज्ञा पूर्ण
चैन की बंसी बजी
सन्तुष्ट मन।
चित्त व्यथित
विक्रम से सम्पर्क
चैन की बंसी ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
दिनांक: 10/09/2019
विषय :चैन की बंसी
विधा:हाइकु
चैन की बंसी
कृष्णा के अधरों पे
राधा सखियाँ ।
प्रतिज्ञा पूर्ण
चैन की बंसी बजी
सन्तुष्ट मन।
चित्त व्यथित
विक्रम से सम्पर्क
चैन की बंसी ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
चैन की वंशी
नमन मंच भावों के मोती।
नमन गुरूजनों, मित्रों।
कैसे बजे चैन की वंशी।
.......जब जीवन में घिरे हों अंधेरे।
चारों ओर उजड़ा हुआ चमन हो।
....... और छाये हों दिल पर बादल घनेरे।
फिर कैसे बजे वंशी।
....... कैसे हों मृदुभाषी।
कर्कश वाणी निकलेगी हृदय से।
....... बजेगी कभी नहीं चैन की वंशी।
जब छाये दिल में मधुमास।
.......कोयल की कूक सुनाई दे।
चारों ओर वसन्त का आलम।
...... खुशबू मंजर की अमराई दे।
फिर आने की आहट पी की हो।
.......तब बजे चैन की वंशी।
खुशियां खिले तन,मन में।
....... अठखेलियां हों आंगन में।
बजने लगे चैन की वंशी।
....... फिर मेरे भी मन में।
थिरक,थिरक उठे पग मेरे।
......साजन आये हैं घर मेरे।
नाचे,गाये बावरा मन मेरा।
......तब बजे चैन की वंशी।
....... वीणा झा.......
.... बोकारो स्टील सिटी ....
........ स्वरचित.......
नमन मंच भावों के मोती।
नमन गुरूजनों, मित्रों।
कैसे बजे चैन की वंशी।
.......जब जीवन में घिरे हों अंधेरे।
चारों ओर उजड़ा हुआ चमन हो।
....... और छाये हों दिल पर बादल घनेरे।
फिर कैसे बजे वंशी।
....... कैसे हों मृदुभाषी।
कर्कश वाणी निकलेगी हृदय से।
....... बजेगी कभी नहीं चैन की वंशी।
जब छाये दिल में मधुमास।
.......कोयल की कूक सुनाई दे।
चारों ओर वसन्त का आलम।
...... खुशबू मंजर की अमराई दे।
फिर आने की आहट पी की हो।
.......तब बजे चैन की वंशी।
खुशियां खिले तन,मन में।
....... अठखेलियां हों आंगन में।
बजने लगे चैन की वंशी।
....... फिर मेरे भी मन में।
थिरक,थिरक उठे पग मेरे।
......साजन आये हैं घर मेरे।
नाचे,गाये बावरा मन मेरा।
......तब बजे चैन की वंशी।
....... वीणा झा.......
.... बोकारो स्टील सिटी ....
........ स्वरचित.......
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!
छेड़ कर मधुर तान तुम बुलाया न करो,
हां बुलाया न करो......!!
जानते हो तुम, हम तुम्हारे है सनम,
मानते हो तुम, मुहब्बत के मारे है हम
फायदा इस बात तुम का उठाया न करो,
उठाया न करो..........!
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!!
तुम हो तो, उजले है, दिन रात अपने,
हर पल देखते है, हम तेरे ही सपने,
सपनों में आकर फिर तुम जाया न करो,
जाया न करो............!
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!!
पल पल यादों में क्यों आते हो मुरारी,
रातों की नींद क्यों उड़ाते हो हमारी,
लूट कर दिल चैन हमे सताया न करो,
सताया न करो.........!
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!!
बंसी की धुन से बहकता है दिल,
बहकता है दिल, दहकता है दिल
इस दिल को इशारो पे नचाया न करो,
नचाया न करो..........!
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!!
बजाया न करो.........!
छेड़ कर मधुर तान तुम बुलाया न करो,
हां बुलाया न करो......!!
जानते हो तुम, हम तुम्हारे है सनम,
मानते हो तुम, मुहब्बत के मारे है हम
फायदा इस बात तुम का उठाया न करो,
उठाया न करो..........!
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!!
तुम हो तो, उजले है, दिन रात अपने,
हर पल देखते है, हम तेरे ही सपने,
सपनों में आकर फिर तुम जाया न करो,
जाया न करो............!
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!!
पल पल यादों में क्यों आते हो मुरारी,
रातों की नींद क्यों उड़ाते हो हमारी,
लूट कर दिल चैन हमे सताया न करो,
सताया न करो.........!
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!!
बंसी की धुन से बहकता है दिल,
बहकता है दिल, दहकता है दिल
इस दिल को इशारो पे नचाया न करो,
नचाया न करो..........!
बंसी की धुन तुम बजाया न करो,
बजाया न करो.........!!
विधाःःभजन, गीतःःः
एक प्रयास ः
बंशी बजैया कृष्ण कन्हैया
बजाऐ चैन की बंशी।
यही अरज करते हैं तुमसे,
प्रभु हाथ जोड रघुवंशी।
आऐं बृंदावन धाम।भजलें कृष्ण कन्हैया नाम.
राधेरानी इनके साथ में।
गोपी ग्वाले सब साथ में।
वेणु बजाऐ हमें रिझाऐ,
ले बंशीवाले बंशी हाथ में।
आऐं हमारे गाम।भजलें कृष्ण कन्हैया नाम...
मोरमुकुट पीताम्बर सोहे।
गले मोती की माला सोहे।
मधुवन जब रास रचाऐ,
तिरछी चितवन मन मोहे।
ये देखें सुबहोशाम।भजलें कृष्ण कन्हैया नाम.
बजे चैन की बंशी कृष्णा।
छूट जाऐ जीवन की तृष्णा।
मोहन मधुर मुरलिया बाजे,
भूल जाऐं सारी मृगतृष्णा।
चहुंओर दिखें घनश्याम।
भजलें कृष्ण कन्हैया नाम।
भजमन कृष्ण कन्हाई नाम।
स्वरचितःः मौलिक ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र
एक प्रयास ः
बंशी बजैया कृष्ण कन्हैया
बजाऐ चैन की बंशी।
यही अरज करते हैं तुमसे,
प्रभु हाथ जोड रघुवंशी।
आऐं बृंदावन धाम।भजलें कृष्ण कन्हैया नाम.
राधेरानी इनके साथ में।
गोपी ग्वाले सब साथ में।
वेणु बजाऐ हमें रिझाऐ,
ले बंशीवाले बंशी हाथ में।
आऐं हमारे गाम।भजलें कृष्ण कन्हैया नाम...
मोरमुकुट पीताम्बर सोहे।
गले मोती की माला सोहे।
मधुवन जब रास रचाऐ,
तिरछी चितवन मन मोहे।
ये देखें सुबहोशाम।भजलें कृष्ण कन्हैया नाम.
बजे चैन की बंशी कृष्णा।
छूट जाऐ जीवन की तृष्णा।
मोहन मधुर मुरलिया बाजे,
भूल जाऐं सारी मृगतृष्णा।
चहुंओर दिखें घनश्याम।
भजलें कृष्ण कन्हैया नाम।
भजमन कृष्ण कन्हाई नाम।
स्वरचितःः मौलिक ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र
"सादर नमन भावों के मोती"
दि. - 10.09.19
विषय - "चैन की बंशी"
==========================
चैन की बंशी बजाने फिर चले आओ कन्हैया |
इस भटकते मन को अब तो राह दिखलाओ कन्हैया ||
आप बिन यमुना का तट देखो सुहाता ही नहीं है,
कुँज की गलियाँ बुलातीं दरस दिखलाओ कन्हैया |
विरह की अग्नि में सारी गोपियाँ ये जल रही हैं,
वेदना उनकी मिटाने मेघ बन छाओ कन्हैया |
वो दधि माखन तरसता और गऊयें भी तरसतीं,
हे मदन मोहन बनो गोपाल आ जाओ कन्हैया |
पाप और संताप से व्याकुल धरा तुमको पुकारे,
चैन की बंशी सुना संताप हर जाओ कन्हैया |
===========================
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
दि. - 10.09.19
विषय - "चैन की बंशी"
==========================
चैन की बंशी बजाने फिर चले आओ कन्हैया |
इस भटकते मन को अब तो राह दिखलाओ कन्हैया ||
आप बिन यमुना का तट देखो सुहाता ही नहीं है,
कुँज की गलियाँ बुलातीं दरस दिखलाओ कन्हैया |
विरह की अग्नि में सारी गोपियाँ ये जल रही हैं,
वेदना उनकी मिटाने मेघ बन छाओ कन्हैया |
वो दधि माखन तरसता और गऊयें भी तरसतीं,
हे मदन मोहन बनो गोपाल आ जाओ कन्हैया |
पाप और संताप से व्याकुल धरा तुमको पुकारे,
चैन की बंशी सुना संताप हर जाओ कन्हैया |
===========================
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
नमन-भावो के मोती
दिनांक-10/09/2019
विषय- चैन की बंशी
हे वीणा वादिनी.......
चैन की बंसी मेरे जीवन में,नाद वीणा की तू बजा दे।
सात सुरों के संगम से तार वीणा की झंकृत करा दे।।
मन मोहिनी स्वर लहरी कंठ गायन तू करा दे।
सूने दिल के उपवन में हे जगदंबे स्वर बिहार तू करा दे।।
नेह दृष्टि बरसाती थल में, रंक को राजा तू बना दे।।
अनजानी राहों के राही को, बीच भंवर में पार करा दे।
अज्ञानी बालक के मन में, चक्षु ज्ञान तू करा दे।।
रसमय रसीली स्वर व्यंजनों की झड़ी लगा दे।
तार तार वीणा के अनुराग से ,प्रेम का प्याला तू पिला दे।।
श्वेत वसन धारें पद्मासन, जीवन में रज कमल खिला दे।
मेरे जीवन में चैन की बंसी तू बजा दे......
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक-10/09/2019
विषय- चैन की बंशी
हे वीणा वादिनी.......
चैन की बंसी मेरे जीवन में,नाद वीणा की तू बजा दे।
सात सुरों के संगम से तार वीणा की झंकृत करा दे।।
मन मोहिनी स्वर लहरी कंठ गायन तू करा दे।
सूने दिल के उपवन में हे जगदंबे स्वर बिहार तू करा दे।।
नेह दृष्टि बरसाती थल में, रंक को राजा तू बना दे।।
अनजानी राहों के राही को, बीच भंवर में पार करा दे।
अज्ञानी बालक के मन में, चक्षु ज्ञान तू करा दे।।
रसमय रसीली स्वर व्यंजनों की झड़ी लगा दे।
तार तार वीणा के अनुराग से ,प्रेम का प्याला तू पिला दे।।
श्वेत वसन धारें पद्मासन, जीवन में रज कमल खिला दे।
मेरे जीवन में चैन की बंसी तू बजा दे......
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
चैन की बंसी
ईश पहलू
बजाई जब
मधुर बंसी
किसन ने
वृन्दावन
झूम उठा
नाची राधा
बाबरी बन
गऊन दौड़ी
किसन ओर
हर दिशा
हुई खुशहाल
चैन की बंसी
बजाते रहो
किसन
होता रहेगा
वृन्दावन
मस्तहाल
------------
मानव पहलू
छोड़ो सारे
झूठ भरेव सब
ईश तरफ
लगाओ मन
करो पूरे
कर्तव्य अपने
होगा जब
सुख चैन
जिन्दगी में
तब बजेगी
चैन की बंसी
जीवन में
---------------
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
ईश पहलू
बजाई जब
मधुर बंसी
किसन ने
वृन्दावन
झूम उठा
नाची राधा
बाबरी बन
गऊन दौड़ी
किसन ओर
हर दिशा
हुई खुशहाल
चैन की बंसी
बजाते रहो
किसन
होता रहेगा
वृन्दावन
मस्तहाल
------------
मानव पहलू
छोड़ो सारे
झूठ भरेव सब
ईश तरफ
लगाओ मन
करो पूरे
कर्तव्य अपने
होगा जब
सुख चैन
जिन्दगी में
तब बजेगी
चैन की बंसी
जीवन में
---------------
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन् भावों केमोती
10/9/19
विषय:चैन की बंसी
विधा:हाइकु
द्वितीय प्रस्तुति
स्वच्छ पवन
स्वस्थ्य हमारी काया
चैन की बंसी
सुबह शाम
पेट भर भोजन
चैन की बंसी
मिली मंजिल
कठिन मेहनत
चैन की बंसी
चिंता रहित
सुकून भरी नींद
चैन की बंसी
स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली
10/9/19
विषय:चैन की बंसी
विधा:हाइकु
द्वितीय प्रस्तुति
स्वच्छ पवन
स्वस्थ्य हमारी काया
चैन की बंसी
सुबह शाम
पेट भर भोजन
चैन की बंसी
मिली मंजिल
कठिन मेहनत
चैन की बंसी
चिंता रहित
सुकून भरी नींद
चैन की बंसी
स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली
"चैन की बंशी"
-----------------------------------
नश्वर संसार में हम फँसे
माया का है मोह -जाल
चौरासी योनियों में घूम रहे
हे प्रभु !! कर दो उद्धार ।
पिछले कर्मों को भोग रहे
अपनी नियती को जी रहे
पलभर भी मिले न आराम
हे कृष्णा!!चरणों में दे स्थान।
हम कब तक भटकते रहेंगे
ये जन्म-मृत्यु के चक्र में
मन को शांति मिलता कहाँ
हे ईश्वर!!नियंता हो आप।
हम सब आपके हैं संतान
हमारी पीड़ा को देखकर
कष्ट आपको होते अपार
मन को घेरे जो अधीरता
"चैन की बंशी"न बजा पाते।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
-----------------------------------
नश्वर संसार में हम फँसे
माया का है मोह -जाल
चौरासी योनियों में घूम रहे
हे प्रभु !! कर दो उद्धार ।
पिछले कर्मों को भोग रहे
अपनी नियती को जी रहे
पलभर भी मिले न आराम
हे कृष्णा!!चरणों में दे स्थान।
हम कब तक भटकते रहेंगे
ये जन्म-मृत्यु के चक्र में
मन को शांति मिलता कहाँ
हे ईश्वर!!नियंता हो आप।
हम सब आपके हैं संतान
हमारी पीड़ा को देखकर
कष्ट आपको होते अपार
मन को घेरे जो अधीरता
"चैन की बंशी"न बजा पाते।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
दिनांक- 10/9/19
शीर्षक- "चैन की बंशी"विधा- कविता
**************
कैसे बजाऊँ चैन की बंशी कान्हा,
दुविधाओं का जीवन ताना बाना,
इसे खुशी दूँ तो वो रूठ जाये,
मेरी तो अब कुछ समझ न आये,
तुम ही कोई धुन ऐसी सुनाना,
जिसमें हो खुशियों का तराना |
ये दुनियां कान्हा बड़ी मतलबी,
सबको बस अपनी अपनी पड़ी,
कहीं भुखमरी कितनी है दिखती,
कहीं पैसों की टकसाल लगी,
दया, धर्म सब अब भूल रहे हैं,
धन, दौलत में रिश्ते तौल रहे हैं |
ये सब देख मन मेरा घबराये,
बेचैनी मेरी बस बढ़ती ही जाये,
आगे जीवन में और क्या होगा?
जवाब इसका कहाँ से लाऊँ?
चैन की बंशी कैसे मैं बजाऊँ?
मन की शांति कहाँ मैं पाऊँ?
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- "चैन की बंशी"विधा- कविता
**************
कैसे बजाऊँ चैन की बंशी कान्हा,
दुविधाओं का जीवन ताना बाना,
इसे खुशी दूँ तो वो रूठ जाये,
मेरी तो अब कुछ समझ न आये,
तुम ही कोई धुन ऐसी सुनाना,
जिसमें हो खुशियों का तराना |
ये दुनियां कान्हा बड़ी मतलबी,
सबको बस अपनी अपनी पड़ी,
कहीं भुखमरी कितनी है दिखती,
कहीं पैसों की टकसाल लगी,
दया, धर्म सब अब भूल रहे हैं,
धन, दौलत में रिश्ते तौल रहे हैं |
ये सब देख मन मेरा घबराये,
बेचैनी मेरी बस बढ़ती ही जाये,
आगे जीवन में और क्या होगा?
जवाब इसका कहाँ से लाऊँ?
चैन की बंशी कैसे मैं बजाऊँ?
मन की शांति कहाँ मैं पाऊँ?
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
द्वतीय प्रयास
चौपाई छंद
🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹🍂
आज कहै तोसे दुखियारी ।
कहाँ गया हे कृष्ण मुरारी ।
सुना चैन की बंसी मोहे ।
साँसों पै सिमरू मैं तोहे ।
कौन विधि मैं तोहे रिझाऊँ।
कौन सूरत तोहे दिखाऊँ।
साँवरिया तुझ पर बलिहारी।
राह तकूँ तेरी गिरधारी।
देख व्यथा को मेरी कान्हा ।
मोहे अपने चरण लगाना ।
साँझ पड़े बंसीवट आना ।
बंसी प्यारी मधुर बजाना ।
राधा संग हृदय तू बसता ।
मोर मुकुट तेरे सिर सजता ।
नाज उठाएं जसुदा प्यारी ।
तुझ पर सारी दुनिया बारी
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
चौपाई छंद
🌹🍂🌹🍂🌹🍂🌹🍂
आज कहै तोसे दुखियारी ।
कहाँ गया हे कृष्ण मुरारी ।
सुना चैन की बंसी मोहे ।
साँसों पै सिमरू मैं तोहे ।
कौन विधि मैं तोहे रिझाऊँ।
कौन सूरत तोहे दिखाऊँ।
साँवरिया तुझ पर बलिहारी।
राह तकूँ तेरी गिरधारी।
देख व्यथा को मेरी कान्हा ।
मोहे अपने चरण लगाना ।
साँझ पड़े बंसीवट आना ।
बंसी प्यारी मधुर बजाना ।
राधा संग हृदय तू बसता ।
मोर मुकुट तेरे सिर सजता ।
नाज उठाएं जसुदा प्यारी ।
तुझ पर सारी दुनिया बारी
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
नमन मंच
विषय:--चैन की बंशी
विधा :--मुक्त
था युग जब तेरा
तू बजा बांसूरी
नचाता रहा
ग्वाल बाल सब ही को
तब बजती थी हर सूं
चैन की बंशी
तब बहती थी घर घर में
दूध दही की नदियां
हर घर खुशहाल था
हर घर में था चैन
तब बजती थी हर सूं
चैन की बंशी
बांसूरी की धुन पर
थिरक उठते थे पैर
गैया और मैया सब ही
के मन में था सुख-चैन
तब बजती थी हर सूं
चैन की बंशी
अब तो हर दिशा में
बेचैनी का आलम है
भूख का पेट उघडा़ है
गरीबी का तन निर्वस्त्र
तब कोई कैसे चैन की बंशी
बजाए
धनवानों के हाथ में
सत्ता का फंदा है
झोंपडि़यों पर महलों की
कुदृष्टि का पहरा है
तब कोई कैसे चैन की बंशी बजाए
लूट-पाट,चोरी-डैकेती
हर महकमें में
सत्ता की चर्बी
हर आँख पर चढी़ हुई
तब कैसे कोई चैन की बंशी
बजाए
घर घर आग लगी है
गली -गली है जल रही
धन की हो या जिस्म की
हवस हरेक मन लगी
तब कोई कैसे चैन की बंशी
बजाए
जिस देश में बच्ची की
अस्मत दाँव लगी हुई
जहाँ जन्म से पहले ही
लड़की कोख में मारी गई
तब कोई कैसे चैन की बंशी बजाए
*धर्मस्य मा धिकारस्ते* के
देश में, धर्म की ही बोली
लगाई जाती है
तब कोई कैसे चैन की बंशी
बजाए।
डा.नीलम
स्वरचित
विषय:--चैन की बंशी
विधा :--मुक्त
था युग जब तेरा
तू बजा बांसूरी
नचाता रहा
ग्वाल बाल सब ही को
तब बजती थी हर सूं
चैन की बंशी
तब बहती थी घर घर में
दूध दही की नदियां
हर घर खुशहाल था
हर घर में था चैन
तब बजती थी हर सूं
चैन की बंशी
बांसूरी की धुन पर
थिरक उठते थे पैर
गैया और मैया सब ही
के मन में था सुख-चैन
तब बजती थी हर सूं
चैन की बंशी
अब तो हर दिशा में
बेचैनी का आलम है
भूख का पेट उघडा़ है
गरीबी का तन निर्वस्त्र
तब कोई कैसे चैन की बंशी
बजाए
धनवानों के हाथ में
सत्ता का फंदा है
झोंपडि़यों पर महलों की
कुदृष्टि का पहरा है
तब कोई कैसे चैन की बंशी बजाए
लूट-पाट,चोरी-डैकेती
हर महकमें में
सत्ता की चर्बी
हर आँख पर चढी़ हुई
तब कैसे कोई चैन की बंशी
बजाए
घर घर आग लगी है
गली -गली है जल रही
धन की हो या जिस्म की
हवस हरेक मन लगी
तब कोई कैसे चैन की बंशी
बजाए
जिस देश में बच्ची की
अस्मत दाँव लगी हुई
जहाँ जन्म से पहले ही
लड़की कोख में मारी गई
तब कोई कैसे चैन की बंशी बजाए
*धर्मस्य मा धिकारस्ते* के
देश में, धर्म की ही बोली
लगाई जाती है
तब कोई कैसे चैन की बंशी
बजाए।
डा.नीलम
स्वरचित
दिनांक :- 10/9/19.
विषय :- "चैन की बंशी"
वृंदावन बंशी बजी, मोहे तीनों लोक।
वे कुण से मोहे नहीं, रहे कौन से लोक।
*******************************
"छंद-मुक्त रचना"
**************
भये 'चैन की बंशी' सुनकर,
नयन राधिका के रतनारे।
विह्वल व्है सुन बंशी की धुन,
लोक-लाज तज छाड़ि चौबारे।
सुधि-बुधि सब बिसराई तन की,
सखियन के, पीछे चले लारे।
लख ये रूप, श्याम बंशी में,
'सुर' भर राधा नाम पुकारे।
छलिया छुप कै कुंजगलिन में,
छेडै़ राग रागिनी न्यारे।
राधा ढूंढत फिरै बावरी,
दर्शन नाय दे श्याम सुकारे।
ढूंढत-ढूंढत हार थकी फिर,
बैठ रही वृषभानु दुलारी।
प्रेम अटूट रह्यौ मोहन सौं,
धर धीरज बैठी सुकुमारी।
कहा खोट भयौ मोसौं प्रीतम,
अब तो दै दर्शन त्रिपुरारी।
प्रेम-पाश में बंध राघा के,
दौड़े आये कृष्ण मुरारी।
ऐसो ही नेह करौ मोहन सौं,
तब, मनशुद्धी होय तुम्हारी।
'चैन की बंशी' सुन पाएंगे,
आत्म-शुद्धि गर होय हमारी।
***************************
विषय :- "चैन की बंशी"
वृंदावन बंशी बजी, मोहे तीनों लोक।
वे कुण से मोहे नहीं, रहे कौन से लोक।
*******************************
"छंद-मुक्त रचना"
**************
भये 'चैन की बंशी' सुनकर,
नयन राधिका के रतनारे।
विह्वल व्है सुन बंशी की धुन,
लोक-लाज तज छाड़ि चौबारे।
सुधि-बुधि सब बिसराई तन की,
सखियन के, पीछे चले लारे।
लख ये रूप, श्याम बंशी में,
'सुर' भर राधा नाम पुकारे।
छलिया छुप कै कुंजगलिन में,
छेडै़ राग रागिनी न्यारे।
राधा ढूंढत फिरै बावरी,
दर्शन नाय दे श्याम सुकारे।
ढूंढत-ढूंढत हार थकी फिर,
बैठ रही वृषभानु दुलारी।
प्रेम अटूट रह्यौ मोहन सौं,
धर धीरज बैठी सुकुमारी।
कहा खोट भयौ मोसौं प्रीतम,
अब तो दै दर्शन त्रिपुरारी।
प्रेम-पाश में बंध राघा के,
दौड़े आये कृष्ण मुरारी।
ऐसो ही नेह करौ मोहन सौं,
तब, मनशुद्धी होय तुम्हारी।
'चैन की बंशी' सुन पाएंगे,
आत्म-शुद्धि गर होय हमारी।
***************************
नमन भावों के मोती
आज का विषय, चैन की वंशी
मंगलवार
10, 9, 2019,
काम क्रोध मद लोभ नहीं जहाँ,
बजती वहीं चैन की बंसी ।
दौलत संतोष की पास रहे जब ,
तब ही बजती है चैन की बंसी।
नया जमाना ले आया ऐसी सौगातें ,
दिन व्यस्तता में कटते और बैचेनी में रातें।
अविश्वास की फैल गई हर तरफ बीमारी,
तन्हाई ने मानव में अपनी जगह बनाई ।
जग में स्वार्थपरता कुछ अधिक ही बढ़ गई ,
बुजुर्गों की कहीं नहीं होती सुनवाई ।
घर की दीवारों में परिवार बदल गये ,
रिश्तों में अब तो हृदयहीनता छाई ।
चहुँ ओर नफरत ही नफरत है बरसती ।
सम्बन्धों में प्रेम प्यार पर जैसे काली घटा छाई।
दर्दनाक वातावरण हो जब ऐसा ,
संसार में चैन की बंसी फिर कौन सुनेगा ।
हम जगायें चेतना और खुद भी जागें ,
तब ही जग में चैन की बंसी के सुर बाजें ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
आज का विषय, चैन की वंशी
मंगलवार
10, 9, 2019,
काम क्रोध मद लोभ नहीं जहाँ,
बजती वहीं चैन की बंसी ।
दौलत संतोष की पास रहे जब ,
तब ही बजती है चैन की बंसी।
नया जमाना ले आया ऐसी सौगातें ,
दिन व्यस्तता में कटते और बैचेनी में रातें।
अविश्वास की फैल गई हर तरफ बीमारी,
तन्हाई ने मानव में अपनी जगह बनाई ।
जग में स्वार्थपरता कुछ अधिक ही बढ़ गई ,
बुजुर्गों की कहीं नहीं होती सुनवाई ।
घर की दीवारों में परिवार बदल गये ,
रिश्तों में अब तो हृदयहीनता छाई ।
चहुँ ओर नफरत ही नफरत है बरसती ।
सम्बन्धों में प्रेम प्यार पर जैसे काली घटा छाई।
दर्दनाक वातावरण हो जब ऐसा ,
संसार में चैन की बंसी फिर कौन सुनेगा ।
हम जगायें चेतना और खुद भी जागें ,
तब ही जग में चैन की बंसी के सुर बाजें ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
विषय- चैन की बंसी
कविता
कर्ज से दबे फंदे पर ,
झूलते धरतीपुत्र किसान।
शूल की तरह चुभती,
ब्याह लायक बिनब्याही बेटियां।
कचरे के ढेर में,
भटकता बचपन।
महज पेट की आग बुझाने के खातिर
तन बेचने को मजबूर औरतें।
शिक्षा के अभाव में रूढ़ियों व अंधविश्वासों,
के भेंट चढ़ती मासूम जिंदगियां।
भ्रष्टाचार, आतंक, घोटाले, जालसाजी के विषबेल,
से लिपटती इंसानियत।
जब तक मौजूद है समाज में ये तमाम विसंगतियां,
तब तक हे भारतवंशी!
कैसे बजाओगे चैन की बंसी?
स्वरचित
रानी कुमारी,
पूर्णियां, बिहार
कविता
कर्ज से दबे फंदे पर ,
झूलते धरतीपुत्र किसान।
शूल की तरह चुभती,
ब्याह लायक बिनब्याही बेटियां।
कचरे के ढेर में,
भटकता बचपन।
महज पेट की आग बुझाने के खातिर
तन बेचने को मजबूर औरतें।
शिक्षा के अभाव में रूढ़ियों व अंधविश्वासों,
के भेंट चढ़ती मासूम जिंदगियां।
भ्रष्टाचार, आतंक, घोटाले, जालसाजी के विषबेल,
से लिपटती इंसानियत।
जब तक मौजूद है समाज में ये तमाम विसंगतियां,
तब तक हे भारतवंशी!
कैसे बजाओगे चैन की बंसी?
स्वरचित
रानी कुमारी,
पूर्णियां, बिहार
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