Tuesday, September 10

"कटु/कड़वा"4सितम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-495






















विषय संक्षिप्त ,लघु
विधा काव्य
04 सितम्बर 2019,बुधवार

लघु आकार महत्वपूर्ण है
करे सदा रचनात्मक कार्य।
लघु स्वरूप होता है सुई का
नए वस्त्र सिल भव्यता लाये।

स्वर वर्ण लघु सी आकृतियां
महाकाव्यों का सृजन कर देती।
गागर में सागर भर कृतियां
भक्तिभाव से विपदाएँ हर लेती।

लघु आकारित चींटी छोटी
चलती रहती कभी न थकती।
किले महल बनाती दिन भर
गिरी धरती अभया न रूकती।

त्रुटि कभी मत करना मित्रों
मानव होकर लघु नहीं होता।
देवत्व की शक्ति सन्निहित है
जग हित सुमन सदा ही बोता।

लघु बूँद एक गरल की होती
करे विनाश जो जीवन का।
लघु बीज धरती में जाकर
रंग बदलता है उपवन का।

लघु रूप धर वामन अवतारी
तीनों लोक श्री पद से नापे।
लाल बहादुर सचिन छोटे थे
काम बड़े यश गान को गाते।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।



 नमन मंच भावों के मोती
4/9/2019
बिषय,, संक्षिप्त,,/लघु

संक्षिप्त वाणी संक्षिप्त निवास संक्षिप्त हो गए रिश्ते नाते
संक्षिप्त विबरण संक्षिप्त परिचय संक्षिप्त परिवार सभी को भाते
बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी भी जहाँ मात खा जाते
वहीं लघु बनकर ईश्वर से साक्षात्कार हो जाते
तलवार विनाश का द्योतक जो
युद्ध की ओर ले जाती
वहीं सुई पैवंद लगा आपस में जोड़ना सिखलाती
केवट शबरी जैसे भक्त लघु बनकर हुए भवपार
श्री राम स्वंय चलकर आऐ हैं इनके द्वार
लघुता में ही बड़प्पन लघुता में
महानता
बड़े बड़े कार्य बनाती लघुता की प्रधानता
जैसे कि चीटी से खा जाता है हाथी मात
पृथ्वी तृप्त तभी होती जब धीमी धीमी हो बरसात
स्वरिचत ्सुषमा ब्यौहार


🌹भावों के मोती🌹
4/9/2019
"संक्षिप्त"

नही संक्षिप्त ये जीवन
अथाह कर्मों के अवसर हैं
बढ़ा ले जो अगर तू पग
ये जीवन छांव देती है।

इसी संक्षिप्त जीवन मे
बने श्री राम मर्यादा
इसी संक्षिप्त जीवन में
रची वाणी थी गीता की।

ये धरती है पुराणों की
वेदों और प्रतापों की
असंख्य है रचे इतिहास
इसी संक्षिप्त जीवन ने।

चलो सँग आज तुम मेरे
पुनः इतिहास रचते है
गागर में सागर भरने सा
ये अद्भुत काम करते है।।

अति शीघ्रता में रचित🙏🌹
वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित।




शीर्षक-- संक्षिप्त/मुख़्तसर
प्रथम प्रस्तुति

जिन्दगी जानिय खास है
जिन्दगी यह मधुमास है ।।

बेशक है मुख़्तसर मगर
इसमें बहुत आभास है ।।

इंसान ही इस धरा का
बादशाह बेताज है ।।

इंसा को क्या न संभव
आज चाँद के पास है ।।

रंग भरे जो जाने ये
महत्ता और प्रकाश है ।।

तारे तोड़ना कहें जो
दो राय न आगाज़ है ।।

हिन्दोस्ता की सरज़मीं
चन्द्रयान सफल प्रयास है ।।

संक्षिप्त में बादशा वो
जो नेकी का दास है ।।

नेकी को जो न जाने
उसकी कीर्ति का ह्रास है ।।

उपलब्धियाँ वहाँ गईं
जहाँ दामन पाक साफ है ।।

मुख़्तसर सी जिन्दगी पर
'शिवम' खुशी अड़नाप है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 04/09/2019


भावों के मोती मंच को नमन दिन :--बुधवार:/ताः-4/9/2029 ।
विषय:-संक्षिप्त/लघु
विधा :-गद्य कहानी (चित्र आधारित)
मीनाक्षी तालाब के किनारे बैठी छोटे-छोटे कंकड़ उठा कर फेंक रही थी ।कंकड़ के प्रहार से उठती लहरों को देखने में उसे बड़ा आनंद आरहा था ।जब भी उठती गिरती लहरें समाप्त होतीं वह अपनी पूरी ताकत लगा कर फिर एक कंकड़ फेंक देती ।उसका एक कंकड़ दूर पानी में खेल रहे छोटे से मेंढक को लगा ।उससे यह चोट बर्दाश्त नही हुई और वह टर्र-टर्र करता उछल कर मीरा की.गोद में जा गिरा ।मीरा अचानक अपनी गोद मेंगिरे मेढक को देखकर अचंभित रह गई ।उसने धीरे से जब उस मेढक को परे करना चाहा तो वह उसकी हथेली पर बैठ गया और टर्र टर्र करता हुआ बोला तुमने मूझे पत्थर क्यों मारा ।देखो मुझे कितनी चोट लगी है मैं ठीक से कूद भी नही पारहा ।लहरों को भी तो चोट लगती है ।तुम मनुष्य हम जीव जन्तुओं की पीड़ा कब समझोगे ।ईश्वर ने हमें प्रकृति के संतुलन के लिये भेजा है ।हमारी प्रार्थना पर ही तो हमें जीवनदान देते हुये मेघ बरसते हैं । यदि पानी नही बरसेतो भयंकर अकाल पड़ेगा ।इसलिये यहजल जो सभी का जीवन है उसका ।आदर करना सीखो ।चोट पहुँचाना नही ।मछलियां भी तूम्हारे प्रहार से प्रताड़ित होती हैं मै सभी की ओर से
अपनी संक्षि।प्त विनती करने तुम्हारे पास आया हूँ लघु हूँ तो क्या चेतना हमारे अंदर भी जो सभी का अहसास करती है ।स्वरचितऊषा सक्सेना


नमनःभावों के मोती
दि.4/9/19.
शीर्षकः लघु/संक्षिप्त
*
जिसका लघु मौन इशारा भर,
करता ,भरता , हरता अग-जग।
सागर में ज्वार जगा मुसका-
उठता मुक्ताहल में जगमग।

खुल पड़ते अन्तस के कपाट ,
सुंदरता की विराट छाया।
दिखती अभिनव कौतुक करती,
हम - तुम - सबमें उसकी माया।।

--डा.'शितिकंठ'


भावों के मोती दिनांक 4/9/19
संक्षिप्त/ लघु

है तारीफ़
तभी
इन्सान की
बात कहे
वो संक्षिप्त
लेकिन हो
सारगर्भित

है जीवन
क्षणभंगुर
लघु और
अनिश्चित
जितना
समय बीते
परमार्थ में
बस उतना
ही है
सार्थक
जीवन अपना

रखो
मत लघु
मानसिकता
अपनी
मिलो
सभी से
खुले दिल से
चला जाऐगा
तू एक दिन
संसार से
बस रह जाएंगी
यादें अच्छी

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

 नमन् भावों के मोती
दिनाँक:04/09/19
विषय:लघु, संक्षिप्त

विधा:हाइकु

विकास दर
संक्षिप्त टिप्पणियां
मन्दी बयार

संक्षिप्त नोट्स
प्रतियोगी परीक्षा
बड़े काम के

लघु उद्दोग
विकास के आधार
आर्थिक वृद्धि

लघु आकार
सुंदर लिखावट
मोती अक्षर

छन्द योजना
'लघु',दीर्घ मात्राएँ
हिन्दी साहित्य

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली



तिथिःः4/9-2019/बुधवार
बिषयःः# लघु/ संक्षिप्त#
विधाःः ःकाव्यःः

लघु स्वरूप वामनावतार था।
लेकिन हमें बडा उपहार था।
कैसे तीनों लोक प्रभु ने नापे,
सबने देखा लघु चमत्कार था।

ये कलम नोंक लघु दिखती है।
सारगर्भित रचनाऐ लिखती हैं।
कभी सुई नोंक जीवन बचातीं,
लघु सुई विशाल तंबू सिलती है।

लघु लघुता की क्या बात करें ,
चींटी बीस गुना बोझा ढोती है।
चा पर लघु बिंदु लग जाऐ तो,
ये चांद चांदनी विस्तृत होती है।

लघु रूप शून्य का दिखता पर
लगे लक्ष्य देखें अंकों की सूरत।
रखें बिंदु बिष जिव्हा पर फिर,
कैसे असर देखलें अपनी मूरत।

बैठे लघु इशारे आँख से करते।
कभी बडे किले इसी से ढहते।
ये लघु चिंगारी संसार जला दे,
राख स्वरूप में अस्तित्व रहते।

कहते बूंद बूंद से सागर भरता।
खून बूंद से एक जीवन बचता।
है संक्षिप्त हमारा जग से नाता,
अजर अमर सत्कर्मों से रहता।

स्वरचितःः ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

नमन"भावो के मोती"
04/09/2019
"संक्षिप्त/लघु"

वृहद यह ब्रह्माण्ड है...
अति सूक्ष्म बिंदु से......
अनंत इसका विस्तार है..
तेरे-मेरे जो किस्से है...
जीवन के संक्षिप्त हिस्से हैं.
यादों की बगिया संजोते हैं..
जीवन में कर्म अनमोल हैं..
सत्कर्मों के लिए हो प्रयास.
इसे लघुता न जानिये....
लघु कर्म ही पूर्णता की शुरुआत है....
स्व कर्मो से ही चींटी चढ़ी पहाड़ है.....।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।

नमन- भावो के मोती
दिनांक --४--९--१९
दिन--बुधवार
विषय--संक्षिप्त--लघु
विधा---हाइकु
----------------------------------------
१ - है लघु चाह
संतुष्टि जीवन में
शांति ही शांति
*************************
२ - लघु जीवन
रूकना कभी मत
बढ़ते जाना
*************************
३ - यही सच भी
है लघु परिवार
ख़ुशी अपार
*************************

रानी कोष्टी म प्र गुना
स्वरचित एवं मौलिक

4/9/2019
विषय-लघु/संक्षिप्त
🌹🌺🌹🌺🌹🌺
लघु की महिमा बड़ी अपार
न समझो इसे तुच्छ निराधार
बड़े बड़े कार्य साधें लघु बातें
इतना कि हम चकित रह जाते

बूंद बूंद जल से गागर भर जाती
लघु आकार सुई जो कर जाती
तलवार उस कार्य में होती अक्षम
सबका अपना महत्व ,कोई न कम

लघु रूप बना कर हनुमत ने
माता सिया की खोज की थी
सूक्ष्म रूप में बड़े कार्य किए
सुरसा के उदर की सैर की थी

छोटी सी एक चींटी को भी
लघुतर न आप समझना
हाथी को नाकों चने चबा दे
आकृति पर उसकी न जाना

है संक्षिप्त मानव जीवन
सार्थक कार्य कर सफल बनाएं
कम बोलें सारगर्भित बात हो
लघुता वृहदता में न समय गवाएं ।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित


नमन मंच 🙏
दिनांक- 4/9/2019
शीर्षक- "संक्षिप्त/लघु
विधा- कविता
**************
जीवन ये लगता है लघु,
इच्छाओं का दीर्घाकार ,
एक के बाद एक उमड़ती,
कहाँ, कभी तृप्ति मिलती |

सुख की अवधि लघु है लगती,
दु:ख का लम्बा समयान्तराल ,
दुख के बाद सुख आयेगा,
ऐसा रखो सब विश्वास |

चीटीं है कितना सा लघु प्राणी,
एक दिन का उसका जीवन सार,
फिर भी अपनी लगन न छोड़ती,
तिनके- तिनके को वो जोड़ती |

जीवन लघु हो या फिर हो दीर्घ,
समय पर मेहनत करना सीख,
मानव बनकर तू धरा पर आया,
सोच क्या खोया व क्या पाया ?

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*


विषय -संक्षिप्त /लघु
दिनांक 4 -9- 2019

लघु हो गया जीवन सबका, फिर भी अहम कर रहा।
अपनों को छोड़कर तू ,क्यों अकेला चल रहा।।

रख अपने विचारों को बड़ा, क्यों दूर जा रहा।
अपनी लघु सोच से,सबको आहत कर रहा ।।

बड़ों के आशीष से वंचित, परिवार लघु बना रहा।
बच्चों को संस्कारहीन, जीवन नर्क बना रहा ।।

लघु शब्द जीवन में, इंसान बहुत अपना रहा।
वस्त्र पहन रहा लघु ,सोच लघु बना रहा ।।

अपने इस लघु जीवन में,अहित सबका कर रहा।
मांँ बाप को वद्धाश्रम छोड़, जीवन स्वर्ग बता रहा।।

पर तू क्यों भूल रहा ,बेटा तेरा भी देख रहा ।
तेरे लिए भी वह, यही सोच बना रहा ।।

अब भी समझ ए मनुज, क्यों लघुता अपना रहा।
उनकी उम्र गुजर गई,क्यों अपना जीवन नर्क बना रहा।।

दे उनको थोड़ी खुशियांँ, लघु जीवन बिता जा रहा।
फिर देख प्रभु आशीष से, तेरा जीवन महका जा रहा ।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित


नमन मंच भावों के मोती

संक्षिप्त....

छंदमुक्त

आज की भागमभाग भरी जिन्दगी
आपाधापी
आगे जाने की मची है
होड़ आपस में
हर कोई सफलता प्राप्त करन चाहे
सब ढूंढ रहे है मंजिलों तक पहुँचने का लघु मार्ग....
समय को पीछे छोड़ना चाहते है सब..
अपनी अपनी दौड़ रहे है बिना देखे
आपस में अपनों से ही कर रखी है
प्रतिस्पर्धा
रिश्ते तो हाशिये पर चले गए है
आभासी जगत में जीवन की खुशियाँ ढूंढ रहा है आज का इंसान
वक्त नही है किसी के पास
बैठ कर एक साथ कर सकें हँसी ठिठोली
बाँट सकें अपनों का गम
जीवन की प्राथमिकताएं दीर्घ से लघुता की ओर
हो रही है अग्रसर....
हावी हो रही ये लघुता
मानवीय मूल्यों पर
समाज के पथप्रदर्शक
प्रयासरत है इस लघुता को
मिटाने के लिए
समानता की नई मशाल जलाने के लिए
जो समाज को नवीन दिशा दे सकें।
इस लघु जीवन में
आकांक्षाओं का विशाल गिरि
अक्सर बनता है क्षोभ और दुःख
कारण
और हम रचयिता की तैयार की हुई संक्षिप्त रुपरेखा का मंचन करते है धरा पर
जीवन पर्यन्त....

गीता गुप्ता 'मन'


दिन :- बुधवार
दिनांक :- 03/09/2019
शीर्षक :- लघु/संक्षिप्त

लेकर आकाश भर सपन....
प्राणी गगन को उड़ता है...
है ये जीवन तो संक्षिप्त ही...
फिर भी अहम् न तजता है..

जीवन की इस नश्वरता को..
कहाँ वह समझ पाता है...
पाकर क्षणिक उपलब्धियां...
अहम् भाव से भर जाता है...

करता दरकिनार सबको...
खुद ही को सर्वोच्च मानता...
अहम् में होकर लीन वो...
सबको ही निम्न समझता...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


 भावों के मोती
बिषय- लघु
लघु से इस जीवन में

करने हैं मुझे काम बड़े।
रह जाए जो सबको याद
पूरे करने हैं अरमान बड़े।
ख्वाहिशों के पंख लगाकर
छूना है अम्बर, बनाने हैं
हर दिल में मकान बड़े।
कोई कुछ भी कहता रहे
मुझे बस चलते जाना है
मंज़िल नहीं मिलती खड़े खड़े।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर


नमन मंच
विषय-संक्षिप्त/लघु
तिथि-04सितम्बर2019
वार-बुधवार
विधा-गीत

प्रेम की भाषा को जो समझे वो सच्चा इंसान है।
प्रेम शब्द चाहे #लघु पर इसका अर्थ महान है।।

प्रेम मंदिर मस्जिद है प्रेम धर्म व जात भी,
जो इसे चित में धरे सह ले सारे आघात भी,
सात जनम भी कम होये प्रेम का ऐसा बखान है।
प्रेम शब्द चाहे #लघु पर इसका अर्थ महान है।।

प्रेम जिसने भी किया उसने सब कुछ वार दिया,
जीवन की नैया को भी भवसागर से पार किया,
प्रेम भरे दिल के बिना तो ये जीवन शमशान है।
प्रेम शब्द चाहे #लघु पर इसका अर्थ महान है।।

मन से मन का प्रेम तो हर पल स्वर्ग बनाये,
मनोभावों को जोड़े ये हर दुःख दूर भगाये,
प्रेम भरे इस दिल की तो शांति ही पहचान है।
प्रेम शब्द चाहे #लघु पर इसका अर्थ महान है।।

रूहों का रूहों से मिलन तो प्रेम का ही प्रमाण है,
इससे ही मिलते हैं प्रभु और हर जन पाता त्राण है
जीवन में अब हर तरफ बस प्रेम गुंजायमान है।
प्रेम शब्द चाहे #लघु पर इसका अर्थ महान है।।

प्रेम की भाषा को जो समझे वो सच्चा इंसान है।
प्रेम शब्द चाहे #लघु पर इसका अर्थ महान है।।

पूर्णतया स्वरचित,स्वप्रमाणित
सर्वाधिकार सुरक्षित

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)


नमन भावों के मोती
आज का विषय, संक्षिप्त, लघु
दिन , बुधवार
दिनांक , 4,9,2019,

संक्षिप्त ख्वाहिशें कर सकतीं हैं,
जीवन को खुशहाल ।
हमेशा बड़े - बड़े धनवान जगत में,
रहते हैं बेहाल ।
करे छोटा सा दीपक ही उजाला,
नाज करे परिवेश ।
जलता हुआ आग का दरिया,
फूंके अपना देश ।
इक छोटी सी सुई हमेशा,
करती रहे सिलाई ,
बड़ी बड़ी तलवारों ने तो,
खूब तवाही मचाई ।
लघु बीज ही भविष्य में,
आकार वृक्ष का लेता ,
संस्थान का लघु आगाज ही,
विस्तृत स्वरूप में ढलता ।
संक्षिप्त अपने वाक्यों में ही,
लेखक बहुत कुछ कहता ,
कहने वाला लघुतम रचना मैं,
पूरी रामायण कह देता ।
छोटे से एक उपहास भाव से,
अंकुर महाभारत का फूटा।
समझा जिसे लघु था बलि ने,
वो देवों का देव था निकला ।
अति लघु रूप मस्तिष्क का,
देह का शासक वही होता ।
आज इसी के बलबूते मानव ,
चंद्रयान है रचता ।
वक्त की संक्षिप्तता जो समझा,
चला समय के साथ हुआ नहीं पछतावा ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


विषय:-संक्षिप्त/लघु
विधा:-चौका
🌹🍁🌹🍁🌹🍁🌹

लघु विचार
लाता नहीं निखार
आचरण में
लघु जीवन
रमा मन भवन
गुरु चरण
मिलती दिशा
संक्षिप्त जीवन को
तब गुरु से
लघुआकार
शरीर का पाकर
आत्मा निखार
संक्षिप्त रूप
आत्मा रूपी मानव
परमात्मा का
शीष झुकाओ
लघु विचार दूर
गुरु कृपा में
संक्षिप्त मन
जिजीविषा पूरी है
भटका जन

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू


पिरामिड
"लघु/संक्षिप्त"
4/9/2019
**********
हाँ
लघु
संवाद
मीठा भाव
हिय जुड़ाव
छिटक दुर्भाव
तू तू मैं मैं अभाव।।

(2)
हाँ
लघु
कनिष्ठा
चमत्कार
विपदा तार
जीवन संचार
अमित उपहार।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित


नमन:भावो के मोती मंच
दिनांक 04/09/2019
विषय:लघु
विधा: हाइकु

सयाली छंद
प्रचलित लघु विधा
भाव प्रधान ।

जापानी लघु
हाइकु तांका चोका
बिंब विषेश ।

लघु चित्रण
गागर मे सागर
रचनाकार।

छणिका विधा
मन की भावनाएं
लघु है रूप

लघु मिलन
स्मृतियाँ अनेकानेक
ह्रदयाभार।

स्वरचित रचना
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।


आज की प्रस्तुति में
कुछ नहीं दोहे

विषय-लघु

लघु पाये सम्मान नित,गुरुता रखें अभिमान।
तीन लोक को नाप ले,वामन बन भगवान।।

होते जब भी घन तिमिर,मावस काली रात।
जगमग जग खद्योत सब,करते ले लघु गात।।

कभी करें मत हीनता,होते ना लघु रूप।
राव रंक हो जात हैं,जीवन के छाँव धूप।।

जीवन झंझावात है,कर्म नेक ही सार।
समय मिला लघु रूप है,वृहत रूप संसार।।

नमित रहें लघु बन सदा,रहें दूब सा जान।
बच जाते छू कर धरा,आए जब तूफान।।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
4-9-2019


दिनांक -४/९/२०१९
शीर्षक-लघु/संक्षिप्त
जीवन लघु हो या दीर्घ
नीरसता ना आये कभी
लघु खुशियाँ भी जब आये द्वार
उससे हो जाये जीवन खुशहाल।

हो तम गहन जहाँ
लघु दीप भी रौशन करें वहाँ
लघु संवाद भी कायम जहाँ
रिश्तों में मिठास सदैव वहाँ।

लघु रूप धरे हनुमान
सुरसा मुख तुरंत भये पार
लघु रूप ही प्रभु लिन्हा
सीता सम्मुख नत मस्तक किन्हा।

जीवन में न हो प्रभुता का भान
लघु रूप भी करें कल्यान
लघुकथा भी दे जीवन में सीख महान
हो जीवन लघु पर कर्म हो महान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।


नमन मंच
विषय:--लघु
विधा:--मुक्त
दिनांक:--04 / 09 /19
~~~~~~~~~~~~~~
विशाल अर्थ हैं छिपे
लघु शब्द में
शक्ति के प्रचंड वेग हैं
लघु शब्द में

तीर से लक्ष्य-भेदें
घाव से गहरे लगें
अमिट से हैं ये
शब्द लघु से

ढाई अक्षर देख लें
असीम अर्थ लिए
हैं प्रभुता लिए
शब्द लघु से ।

डा.नीलम

भावों के मोती
4/09/19
विषय-लघु

कहता दीप सूर्य से
हे तेज रोशनी पुंज
न जलता मैं करने
तुझसे प्रतिस्पर्धा
बस तेरी अनुपस्थिति में
बन तेरा मुरीद
जग के तम को
हर पाऊं
ऐसी तुझ से मैं ।
ज्योति चाहूं
मै लघु हूं
लघुता ही चांहू
बस भटकों को
राह दिखाऊं।।

स्वरचित
कुसुम कोठारी।

विषय - लघु / संक्षिप्त

1

लघु आकांक्षा
आखिर जीत गई
दीर्घ संघर्ष

2

लघु तिनका
बन जाता सहारा
जीवन धारा

3

वृहद गांव
जीवन धूप छांव
लघु है ठांव

(स्वरचित ) सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )




नमन भावों के मोती
विषय - लघु

समय समर्पित करो श्रम को ,
जीवन अर्पित शुभ कर्म को ,
लघु जीवन अवधि भी
रचती है वृहद इतिहास ।
देखो लघुता में छुपी विशालता,
सातों सागर पीकर भी ,
रह जाता घट प्यासा,
शीतल जल की एक बूंद
है बढ़ाती जीवन आशा ।
सुख सागर के सच्चे मोती
दुख दरिया में तैर निकालो
सुर्य अस्त होता है हो जाये
झंझावात दीप बुझाये,
ना हो निराश जगा आस,
जीत जीवन जंग , अल्प अनोखा प्रकाश लिए
जुगनू जगमगाये ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )

नमन भावों के मोती
दिनांक -4/9/2019
विषय-संक्षिप्त /लघु
संक्षिप्त सी मुलाकात , जीवन में नए रिश्ते बना देती है
संक्षिप्त सी वार्तालाप जीवन सँवार देती है ।
केवल संक्षिप्त सा शब्द महात्मा बुद्ध ने बोला था
जिससे अंगुलिमाल जैसे डाकू का दिल डोला था ।
बदल डाला था इस शब्द ने उसके जीवन को
क्रूरता को दूर कर जिसने मधु रस घोला था ।
संक्षिप्त सी सहायता किसी को मंजिल दिला देती है ।
हौसले के लघु शब्द किसी को आत्मविश्वास से भर देती है ।
एक लघु औषधि मृतपाय को जिला देती है ।
एक लघु चीटी एक विशाल हाथी को मार देती है
एक लघु सरिता जाने कितनों की प्यास बुझा देती है ।
विशाल समुद्र की जलराशि को बेकार दिखा देती है
संक्षिप्त शब्द सार बना देते हैं ,
अपनी ताकत से विशाल शब्दावली को हरा देते है ।
लघु सुई जहाँ उपयोगी है वहां तलवार नहीं
अतः संक्षिप्त शब्द संक्षिप्त है उसकी उपयोगिता नहीं।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय

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