Sunday, September 22

"हाट/दुकान/ विपणी " 21 सितम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-512
नमन मंच
दिनांक .. 20/9/2019
विषय .. हाट/दुकान/ विपणी

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खोल लिया दिल में दुकान अब,
तुम भी इक दिन आओ ना।
खुशिया और गम से भरे पडे है,
फुर्सत मे तुम आओ ना॥
**
यादों की मनमोहक झाँकी,
दिल के हाट मे पाओगे।
ढूँढ लो चाहे जितनी विपणी,
दिल सा ना तुम पाओेगे॥
**
भाभी जी को लेकर आना,
बच्चों को तुम मत बतलाना।
शेर हृदय मे भाव बहुत है,
अच्छा लगे तो लेकर जाना॥
**
गम भी बेचता रहता हूँ मै,
उस पर सेल लगा है।
पैकिंग झोला साथ मिलेगा,
अच्छा मेल लगा है॥
**

शेर सिंह सर्राफ

विषय हाट,दुकान,विपणी
विधा काव्य

21 सितम्बर,2019 शुक्रवार

जीवन संचरण के लिये
दुकानों का बड़ा महत्व।
मात्र अंटी में हो रोकड़ा
क्रय बनजाता है सम्भव।

जग जीवन भव्य हाठ है
बड़े ठाठ और बाट है।
जाने अंजाने सब मिलते
सदा स्नेह बढ़े हाथ है।

दिनभर चहल पहल रहती
बढ़ चढ़कर करते हैं विक्रय।
जो बोलता उसका बिकता
बड़ बोले का करते हैं क्रय।

परमपिता की मूरत बिकती
पैसो खातिर सब बिक जाता।
झूँठ फरेब यँहा सब बिकते
खाने को हर नर यँहा भूखा।

मंदी चल रही सभी दुकानें
विक्रय हेतु सभी तरस रहे।
घटाटोप नित बादल छाते
मेघा प्रतिदिन भू बरस रहे।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

21 /9 / 2019
बिषय , हाट ,,दुकान ,, विपणी

ए जीवन दुकान की.तरह है
जिसकी जितनी चल जाए
जितना शुद्ध माल उतना ही नाम
विश्वास उत्तमता के मिलते हैं दाम
इस तरह तो हजारों आकर चले जाते हैं
कुछ को भूल जाते कुछ याद बहुत आते हैं
जैसे कि हाट में ऊँची दुकानों स्वादिष्ट पकवान
इसी तरह सज्जन पुरुष की पहचान
एक बड़े हाट की तरह है संसार
जिसकी जैसी दुकान वैसा ब्यापार
इसमें केवल गुणवत्ता की होती कमाई
जोड़ने वाले जोड़ लेते पाई पाई
ए दुनिया हमारे गुणों को तौलती है
जैसे कि जरा सी खुशबू चहुंओर फैलती है
इस बाजार की भीड़ में जाने कहाँ खो जाऐंगे
भावों के मोतियों को बिखराते जाऐंगे
रहें न रहें हम हमारी याद तो रहेगी
हमारी संजोई हुई दुकान हमारे नाम से चलेगी
स्वरिचत,, सुषमा,, ब्यौहार

विधा--ग़ज़ल
मात्रा भार -- 23

काफ़िया-- आयी ( स्वर )
रदीफ़ -- है
प्रथम प्रयास

दुनिया के बजार में दुकान लगायी है
खरी कमाई खाने की कसम खायी है ।।

न ही कोई टाइल्स न ही कोई सज्जा
दुकान इकदम बिल्कुल सिम्पल बनायी है ।।

फ्रेम वाली फोटो जो थी पिताजी की
बड़े आदर भाव से आगे सजायी है ।।

किताब की दुकान और बाजू मयखाना
थी दिल की ये सूझ पूँजी डुबायी है ।।

नसीहत वालों की कमी न कहलायी
रोज बोलें चाचा क्या मति बौरायी है ।।

हमसे ही पूछ लेते ये वो जगह जहाँ
एक दिन में कई हजार की कमाई है ।।

पूँजी भी न लगती सब सेलमेन देते
कहीं आधा कहीं फायदा चौथाई है ।।

अण्डे भले न आप छुते बैठता लड़का
कितनी तरह से यहाँ पैसा उघाई है ।।

रूह की सुने पहले या कि दुनिया की 'शिवम'
कश्मकश में हमने जिन्दगी बितायी है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/09/2019

हाट/बाजार/विपणी

सुन्दर चीजों से बाजार सजा है।
जितना चाहें खरीद लो।
पर याद रखना रिश्ते नहीं मिलते यहां।
कि रिश्ते भी यहीं से खरीद लो।

रिश्तों के लिए, बहुत कुछ करना पड़ता है।
बेमतलब के हंसना और रोना पड़ता है।
फिर भी तुमसे खुश कभी होते हैं नहीं रिश्तेदार।
रिश्तों को ढोते रहना पड़ता है उम्र भर।

पर रिश्तों के चलते हीं खुश रहते हैं हम।
इसके इर्द-गिर्द हीं घूमते रहते हैं सदा हम।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित

सुप्रभात समूह के सभी साथियों को
दिनांक 21/09/2019

विषय:हाट/दुकान
विधा: हाइकु

देह व्यापार
नित नई दुकान
शिक्षा आभाव।

निज उद्योग
अवसर दुकान
मेले की शान ।

अतिक्रमण
सडके हुई हाट
जाम ही जाम।

गाँव मे हाट
ग्रामीण रोजगार
उम्मीद रोज़ ।

बदले रूप
आन लाइन हाट
विश्व ग्राहक ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।

दिनांक - 21/09/2019
विषय-बाजार


ये कैसा रूप तेरा श्रृंगार

तू बिकती खुले बाजार।

कौन करेगा तुझसे प्यार..

सजी-धजी गलियों की दीवार।।

लाल रोशनी से है गुलजार

कदम कदम पर सौंदर्य हजार।

गाणिकायें खड़ी गलियों में

लिए मादकता का बयार।।

जिस्म की यहाँ बोली लगती

नंगे तन के जादूगर

नोचे तन को ,यौवन के ठेकेदार।।

हर हृदय है निर्मोही पाषाण छाती

पैसे से तोला जाता

खादी करती जिस्मों का व्यापार।।

फूलता फलता यहां सिद्ध कदाचार

दर्द का कोलाहल कौन सुने

कानों में गूंजती गणिका की चित्कार।।

है समाज यहां मेरा क्यों लाचार

मची है चहुँओर हाहाकार......

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

बिषय _#हाट/दुकान/विपणी#
विधा :::काव्य

बहुत माल है मेरी दुकान में
पर सिर्फ प्यार की कमी है.।
लाकर भी क्या करूं यहां ,
खरीददारों की ही कमी है.।

चाहना बहुत बिके माल मेरा.।
चारोंओर हो ये धमाल मेरा.।
मिले माल प्रेम इसी दुकान पर
बिका माल तो ये कमाल मेरा.।

वैरभाव यहां सब खूब खरीदते.।
बिन मोलभाव के खून खरीदते.।
जिंदगी माटी से सस्ती खरीद लें
कोई प्रेम एक जून नहीं खरीदते.।

मंदी की मार मै भी झेल रहा हूँ ।
बैठे बैठे दंड मैं यहां पेल रहा हूँ ।
हाट विपणी सब विपन्न पडे हैं ,
नित राग-द्वेष से खेल रहा हूँ ।

स्वरचित :::
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश
जय जय श्री राम राम जी
1भा#हाट/दुकान/विपणी #काव्य

Veena Vaishnav नमन 
विषय -दुकान/ हाट /विपणी
दिनांक 21 -9-19
दिल का खिलौना बना, दुकान पर सजा दिया।
कितना बेदर्द जमाना, लेबल उस पर चिपका दिया।

आए बहुत खरीददार,सब ने ठुकरा दिया।
देख दरार उसमें, सब ने नजर अंदाज किया।।

हर खरीदार ने खेल कर, दिल को देख लिया।
मेरे दर्द को आज तक, किसी ने महसूस न किया।।

दुकान खुलते ही बाहर, मुझको लटका दिया।
दिनभर उसका इंतजार, फिर अंधेरे में पटक दिया।।

नहीं पता उन्हें किसी की, जान बसती है इसमें।
ले जाकर इसको उन्होंने, खिलौना बना दिया।।

सहता रहा हर दर्द, जो उसने मुझे दिया।
दिल से खेल उसने, मुझे दुकान खिलौना बना दिया।।

प्यार करता बहुत में ,पागल बनता गया।
आज उसने प्यार बदले, दुकान पर सजा दिया।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित

21/9/2019::शनिवार
विषय--दुकान, हाट, आदि

विधा-- मुक्तकाव्य

तुम भी कुछ ग़मगीन प्रिये
मै भी पलट के देख रहा हूँ....
जाना तो होगा ही मुझको
मन ही मन ये सोच रहा हूँ....
तेरी यादें दिल में लेकर
जा रहा मै हाट प्रिये.....
पलक बिछाये तकती रहना
रोज़ जोहना बाट प्रिये....
ऑंखें कभी न नम हों तेरी
उसमे मेरी चाहत है.....
बूँद-बूँद जो बिखरें मोती
मिले न मुझको राहत है....
जब भी याद सताये मेरी
चाँद से बातें कर लेना....
सन्देश मिलेगा उसमे मेरा
उसे निगाह में भर लेना......
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

दिनांक २१/९/२०१९
शीर्षक-"हाट/दुकान

हर उपहार मिलते दुकान में,
पर खुशियाँ मिलती सिर्फ परिवार में।।

हर आभूषण मिलते दुकान में,
पर सेहत सदा होते हमारे हाथ में।।

दाम देकर सौदा करें हम दुकान से,
पर,प्यार समर्पण करूणा हमारे संस्कार में।।

सही माल नहीं मिलते दुकान में,
सिर्फ पैकेजिंग होते,दिखावे में।।

घर घर में प्यार बरसे संसार में,
जब स्वार्थ ना छलके कोई व्यवहार में।।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

21सितम्बर19शनिवार
विषय-हाट/दूकान/विपणी

विधा-लघु कविता
💐💐💐💐💐💐
ये दुनिया
एक बहुत बढ़िया
सुन्दर बाजार है👌
जहाँ हर वस्तु
बिकने को
सदैव तैयार है👍
जो बिकें
वो भाग्यशाली हैं💐
जो न बिकें
वो अभागे ही हैं🎂
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला

21/09/2019
"हाट/दुकान/विपनी"

मुक्तकाव्य
-----------------------------------
इक नारी की व्यथा कथा....
धूमधाम से ब्याह हुआ....
आँगन बाबुल का छोड़ चली.
साजन संग ससुराल चली.....
नया-नया संसार मिला....
पर ये तो मालूम न था.....
साजन थे बड़े मनमौजी...
शराब, जुए की लत थी लगी.
नशे ने गृहस्थी को लील लिया
जुए में घर नीलाम हुआ....
बीमारी ने जो धर दबोचा..
घर का सामान इलाज में बिक गया.....
फिर भी न बात बनी....
दूनिया से वो कूच कर गया..
अपने पीछे तीन संतान छोड़ गया...
गरीबी से नाता जोड़ गया...
भूखे पेट सोते मासूम नादान.
देख ममता हुई लाचार..
आइने में देखा अपना तन..
फिर देखा ......
भूख से तड़पता जीवन....
अपनी आबरु को सरेबाजार
नीलाम किया...
तन को दूकान बनाकर बेच डाला...।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
Damyanti Damyanti 

समय बदला सब स्वरूप बदला |
हाट /दुकान/विपणी सब कुछ |

सबकुछ मोल बिकने लगे ईनमे |
नाते रिश्ते भी बेमोल हुये यहां |
पर शांति सकुन था पहले सब मे
अब वो नही दुनिया के हाट मे |
ईमानदारी सच्चाई का कारोबार सब,
चोपट हुआ बेईमान आबाद हुई |
असली सब नकली हुई यहां |
मिलते सब आन लाइन अब
पर वो रिश्ते गुम हुऐ जिनसे मिलती खुशियाँ |
अब चैन ईमान सब चले गये रहगई बाते |
दुनिया के हाट मे सत्य अहिंसा का मोल नही |
बडबोले हो चलती उनकी गरीब व सज्जन मौन हुऐ |
स्वरचित ,दमयंती मिश्रा |

21/9/2019
विषय-दुकान/हाट/विपणी

🌷🌷🌷🌷🌷🌷

खबरों का बाजार गर्म है आज
इंसानियत बिक रही मिट्टी के भाव
हाट लगी है सपनों की
नींदों का चल रहा अभाव..
तरह तरह की सजी दुकानें
शब्दों की भी लगी है हाट
मीठे शब्द के वाणों से
चतुर सौदागरों के ठाठ ही ठाठ..
दया ममता का कोई मोल नहीं है
माँ की ममता गिरवी रखी
सीधे सरल हृदय की
इस बाजार में कीमत कम कर दी..
धरती की क्या बात कहें
ये सयाने तो आकाश बेच दें
रिश्तों नातों की बोली लगाएं
द्रोपदी को भरे बाजार बेच दें..
देह नेह को तौल रहे ये
बेईमानी के तराजू में
सच्चाई और ईमानदारी को
इन सौदागरों ने दबाया अपने बाजू में.
इस धंधे में खूब कमाया
इन कुशल चालाक लोगो ने
विपणन के बादशाह हैं ये
फुसला रहे मासूमो को बातों में..
हाड़-मांस की नहीं है कीमत
बिकता यहाँ हृदय-पाषाण
इज्जत ,शौहरत ईनाम सभी बिकते हैं
अनमोल दामों में बिकता है ईमान ..
अखबार मीडिया सब बिकाऊ
सत्ताधारियों के इशारे पर चलते
निर्दोष सच्चे लोग इनके
लालच और लोलुपता में फंसते ।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®

21/09/19
विषय :हॉट /दुकान /बाजार

विधा :हाइकु

दुकानें सजी
मीठे पकवानों से-
तीज त्यौहार

दुकानें हटीं
अतिक्रमण टीम-
नयन अश्रु

दुकानें बनी
नौकरी का ठिकाना-
पेट की रोटी

नगर हाट
महंगाई की मार-
सब्जी दर्शन

प्रत्येक हॉट
तहबजारी ख़र्च
जीवन पट

मनीष श्री
स्वरचित

भावों के मोती
बिषय- दुकान
नफरत से मन की गोदाम भरी है

रूख- ए-दुकान पर मुस्कान सजी है।
दिखाते कुछ, हकीकत में होता कुछ
आज के इस दौर की सच्चाई यही है।
जो जितना इस काम में माहिर है
दुनिया में इज्जत उतनी पाता वही है।
सीधे सादे सच्चे लोगों के कारन ही
अमीरों की जिंदगी की मौज-मस्ती है।
फुटपाथों पे सोते मजदूरों की नींव पर
बेईमान नेताओं की खड़ी हवेली है।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

दिन :- शनिवार
दिनांक :- 21/09/2019

शीर्षक :- हाट/दुकान/विपणी

हाट के अब वो ठाठ कहाँ,
दम तोड़ती अब वो रीत यहाँ।
सजती थी रंग बिरंगी दुकाने जो,
खनकती थी रंगीन चूड़ियाँ जहाँ।
होती थी हँसी ठिठौली हाट में,
हाट के अब वो ठाठ कहाँ।
मिलती थी चवन्नी की कुल्फी,
अठन्नी की मिल जाती थी बर्फी।
कहीं लगते थे चाट के ठेले,
कहीं होते थे नट के मेले।
खूब होती थी मस्ती हाट में,
हाट के अब वो ठाठ कहाँ।
आया जमाना आधुनिकता का,
हाट खोया शॉपिंग मॉलों में।
बदली रंगत,शान औ शौकत ने,
पाश्चात्य के उलझे जालों में।
जाते हैं सब पिज्जा हॉट में,
हाट के अब वो ठाठ कहाँ।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

विषय :-"हाट /दुकान, आदि"
दिनांक :- 21/9/19.

विधा :- "दोहा"

1.
हाट लगीं बाजार में, सब कुछ मिलता मीत।
खोज खोज कर मैं थका, मिली न सच्ची प्रीत।
2.
लगी दिखी बाज़ार में, अद्भुत एक दुकान।
मनमोहक पैकिट सजा, बेच रहे ईमान।
3.
विविध वस्तुओं से सजा, दिखता था बाज़ार।
हाट-हाट ढूंढत फ़िरा, मिले नहीं संस्कार।
4.
रहा शराफ़त का यहाँ, सबसे हलका तोल।
बिकी आज बाज़ार में, दो कौड़ी के मोल।
5.
सीख अगर नीकी लगे, तो मानो श्रीमान।
सब कुछ बिके बज़ार में, पर राखो ईमान।
6.
सत्ता के बाज़ार में, हावी हुए दलाल।
निर्धन जन पिसते रहे, पूछे कौन सवाल।
विषय- दुकान/हाट
विधा- गद्य लेखन

21/9/2019

घर के बुजुर्गों से सुना करता था कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे और अच्छे कर्मों का प्रतिफल अवश्य मिलता है ।
इन संस्कारों को अपने भीतर समाहित किए स्नातक तक की शिक्षा अर्जित की। सुना करता था कि अच्छे दिन आएंगे पर कभी देखे नहीं थे। आगे की शिक्षा के लिए धन अभाव के कारण एक छोटी सी दुकान डाली।
दुकान से बस इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर का खर्चा चलता रहे। लेकिन आकस्मिक खर्च आ जाने पर नानी याद आ जाती थी।
किंतु किसी की बढ़ती आमदनी को देखकर न कभी ईर्ष्या की भावना का अनुभव हुआ न कभी मन में यह ग्लानि हुई कि हमारा काम छोटा है।
एक समय तो ऐसा आया कि हर मौसम और पर्व पर सीजनल काम का ठेला तक लगाना पड़ा। धनिक रिश्तेदार उलाहना देते थे कि इस ने हमारी नाक कटा दी।
लेकिन मैंने कभी अपने पांव चादर से बाहर नहीं निकलने दिए। उतने ही पैर फैलाए जितनी चादर थी।
हमेशा उन लोगों को देखता था जो मुझसे भी बुरी परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे थे।
छोटे-छोटे फड़ लगाने वालों से थोड़े बहुत रुपयों का कुछ सामान जरूर खरीदता था ताकि उनका भी गुजारा हो सके। और वे किसी के आगे हाथ फैलाने के लिए मजबूर न हो।
आमदनी कम थी तो धीरे-धीरे रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी कन्नी काटनी शुरू कर दी थी।
हर 7 या 8 वर्ष बाद काम बदलने की नौबत भी आ जाती थी।
लेकिन कहते हैं ना कि उपकार का प्रतिफल उपकार ही मिलता है। मैंने बहुत कम पूंजी लगाकर प्लास्टिक का सामान दुकान पर रख लिया।
छोटी दुकान देख कर ग्राहकों ने चढ़ने पर संकोच किया, लेकिन मैंने देखा कि बाजार - हाट के दिन एक फकीर ने मेरी दुकान के आगे आकर बैठना शुरु कर दिया।
उस फकीर को पैसे देने के बहाने जो लोग रुकते, वह एक नजर दुकान पर भी डालते।
वाजिब दाम देखकर उन्होंने सामान खरीदना शुरू कर दिया और मेरी बिक्री धीरे-धीरे बढ़ने लगी।
1 वर्ष की अवधि में ही मेरे काम का इतना अधिक विस्तार हो गया कि मैंने एजेंसी तक ले डाली।
मैंने गौर किया कि अब उस फकीर ने मेरी दुकान के आगे बैठना बंद कर दिया है और कहीं और अपना ठिकाना बना लिया।इंसानियत के नाते मैं दिन में दो से तीन बार केवल उसे ठंडा पानी पिलाता था और कुछ नहीं।
मुझे लगता है कि इंसानियत जिंदा है, जिंदा थी और जिंदा रहेगी।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

दिनांक-21/9/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
िषय :-"दुकान"

(1)
बिकता पानी
समय की दुकान
सस्ता आदमी
(2)
सत्य आचार
कलियुगी दुकान
झूठ व्यापार
(3)
दर्द की किस्म
मज़बूरी दुकान
खिलौना जिस्म
(4)
हरेक दवा
धरा की दुकान में
मुफ्त है हवा
(5)
फीस की मार
शिक्षा की दुकानों में
ज्ञान व्यापार

स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)

भावों के मोती
विषय=हाट/दुकान

लघु कविता
===========
भ्रष्टाचार के बाजार में
लगे हुए भांति-भांति के ढेले
कही बिक रहा ईमान किसी का
तो कहीं इंसानियत तराजू में
सभी लगे हैं बेचने,खरीदने
तमाशबीन तमाशा देख रहे
गरीब का सुकून बिक रहा
दुराचारियों की दुकान सजी
नारी की अस्मिता दाँव पर लगी
महंगाई बैठी सजी-संवरी
गरीब की रोटी महँगी हो गई
अमीरों के बाजार की चमक में
आम आदमी की दीवाली फीकी हो गई
अब पहले जैसी रौनक कहाँ
हर चीज का लगने लगा दाम
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित

दिन - शनिवार
दिनांक - 21,9,2019

तरह- तरह की वस्तुओं के,
बहुत ही बने हुए प्रतिष्ठान ।
करते हैं जरूरत पूरी सबकी,
मिल जाता है हर सामान ।
कहाँ मिलेगा सस्ता और ,
मँहगा कहाँ पर है समान ।
होती है यह जानकारी हमको,
रखते हम अच्छे की पहचान ।
हम हाट में जाकर दुकान पे,
खरीदें पैसे से काम की चीज ।
धोखेबाजी व चोर बाजारी तो,
आजकल है बहुत ही मशहूर ।
हाट सिखा देता है दुनियादारी,
कर देता विश्वास को कोसों दूर
दुनियाँ लगती है बाजार सी ,
रिश्तों की बनीं हैं जैसे दुकानें ।
प्रेम प्यार से हो जहाँ खरीदारी,
भावनाओं की होती है पूर्ति सारी ।

स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश 

21/9/2019
विषय हाट, दुकान, विपणी

हाइकु
1
संसार हाट
मानव कठ पुतली
ईश व्यापारी
2
नेता व्यापारी
राजनीती दुकान
भृष्ट इंसान
3
ये अस्पताल
बन गए दुकान
लुटा इंसान
4
नयन हाट
प्रेमियों का व्यापार
आर या पार
कुसुम उत्साही
स्वरचित

भावों के मोती
विषय=हाट/ दुकान

हाइकु
====
ऊँची दुकान-
पकवान है फीके
मंहगाई से

गाँव का हाट-
टोकरी में दीप से
पैसे की आस

व्यापार मेला-
खुश होता भीड़ से
दुकानदार

_अनुराधा_चौहान_स्वरचित


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"अंदाज"05मई2020

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