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ब्लॉग संख्या :-506
नमन मंच भागों के मोती
दिनांक 15 सितंबर 2019
दिन रविवार
आयोजन मुक्तक लेखन
#मुक्तक
बिसरती संस्कृति की नीव अब फिर ठान रखना है ।
हमें हिंदी की मर्यादा का प्रतिदिन मान रखना है ।
कि हर अक्षर है नागर का ऋचा सा मंत्र सा पावन ।
नयी पीढ़ी के हाथों में यही वरदान रखना है ॥
-अंजुमन आरज़ू ©
दिनांक 15 सितंबर 2019
दिन रविवार
आयोजन मुक्तक लेखन
#मुक्तक
बिसरती संस्कृति की नीव अब फिर ठान रखना है ।
हमें हिंदी की मर्यादा का प्रतिदिन मान रखना है ।
कि हर अक्षर है नागर का ऋचा सा मंत्र सा पावन ।
नयी पीढ़ी के हाथों में यही वरदान रखना है ॥
-अंजुमन आरज़ू ©
नमन मंच भावों के मोती। गुरुजनों, मित्रों को नमन,वन्दन।
15/9/2019
मुक्तक लेखन विधा
हिंदी हमारी मातृभाषा है,हम हैं हिन्दुस्तानी।
इसको छोड़ते जा रहे हैं हम,कर रहे नादानी।
बच्चों को सिखायेंगेहिन्दी में पढ़ना, लिखना।
तभी होंगे सही मायने में वे हिन्दुस्तानी।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
15/9/2019
मुक्तक लेखन विधा
हिंदी हमारी मातृभाषा है,हम हैं हिन्दुस्तानी।
इसको छोड़ते जा रहे हैं हम,कर रहे नादानी।
बच्चों को सिखायेंगेहिन्दी में पढ़ना, लिखना।
तभी होंगे सही मायने में वे हिन्दुस्तानी।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन-भावो के मोती
दिनांक-15/07/2019
मुक्तक लेखन..............
(1)
हिंदी की सर जमीं खुशहाल रहे
तेज तूफाँ में जलती हुई मशाल रहे।
लेखनी के लिये जो शहीद हुए
उन लेखको का भी कुछ ख्याल रहे।
(2)
तन पे जामा शहीदी ,सर कफन का ताज है,
जूझता सरहद पर अपने हिंद का जांबाज है।
दोस्त जब दुश्मन बने, किस पर भरोसा नाज है,
पाक जिसको समझा था, नापाक निकला आज है।
(3)
कल्पना यदि कर्म बनकर छा गई,
समझ लो हिंदी सभी को भा गई।
कमल कीचड़ में खिला करते सदा,
यदि कोई रवि रश्मि उन तक आ गई।
(4)
जिस्म में जब जहर घर कर गया,
मां के चुंबन से ही बच्चा डर गया।
कहने को रावण जला डाले मगर,
एक सीता का हरण फिर हो गया।
(5)
स्वयं की की परछाई से जो डर गया,
समझ लो वह जीते जी ही मर गया।
हौसले जिसकी बुलंदी पर सदा,
जहां में वह नाम अपना कर गया।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक-15/07/2019
मुक्तक लेखन..............
(1)
हिंदी की सर जमीं खुशहाल रहे
तेज तूफाँ में जलती हुई मशाल रहे।
लेखनी के लिये जो शहीद हुए
उन लेखको का भी कुछ ख्याल रहे।
(2)
तन पे जामा शहीदी ,सर कफन का ताज है,
जूझता सरहद पर अपने हिंद का जांबाज है।
दोस्त जब दुश्मन बने, किस पर भरोसा नाज है,
पाक जिसको समझा था, नापाक निकला आज है।
(3)
कल्पना यदि कर्म बनकर छा गई,
समझ लो हिंदी सभी को भा गई।
कमल कीचड़ में खिला करते सदा,
यदि कोई रवि रश्मि उन तक आ गई।
(4)
जिस्म में जब जहर घर कर गया,
मां के चुंबन से ही बच्चा डर गया।
कहने को रावण जला डाले मगर,
एक सीता का हरण फिर हो गया।
(5)
स्वयं की की परछाई से जो डर गया,
समझ लो वह जीते जी ही मर गया।
हौसले जिसकी बुलंदी पर सदा,
जहां में वह नाम अपना कर गया।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
नमन भावों के मोती
आयो-मुक्तक लेखन
दि.15-9-19/रविवार
हिन्दी की ही बात क्या,सभी हिन्दी में ही रमेंगे।
हिन्दी से ही उपजे हैं हिन्दी ही में मरेंगे।
हिन्दी की ही शान है हमारी शान वारी है ---
' हितैषी 'हमेशा कविता हिन्दी में ही रचेंगे।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
आयो-मुक्तक लेखन
दि.15-9-19/रविवार
हिन्दी की ही बात क्या,सभी हिन्दी में ही रमेंगे।
हिन्दी से ही उपजे हैं हिन्दी ही में मरेंगे।
हिन्दी की ही शान है हमारी शान वारी है ---
' हितैषी 'हमेशा कविता हिन्दी में ही रचेंगे।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
भावों के मोती समूह
दिनांक -15/09/2019
विषय -मुक्तक (हिन्दी)
============================
हिन्दी का मिलकर सभी आओ करें गुणगान,
राजभाषा बनी हुई सदा हम सब की शान।
कामना करते हम बने यह राष्ट्र भाषा अब,
बनी हुई धड़कन यह जन जन की है पहचान।।
...........भुवन बिष्ट
रानीखेत, उत्तराखंड
स्वरचित/ मौलिक
दिनांक -15/09/2019
विषय -मुक्तक (हिन्दी)
============================
हिन्दी का मिलकर सभी आओ करें गुणगान,
राजभाषा बनी हुई सदा हम सब की शान।
कामना करते हम बने यह राष्ट्र भाषा अब,
बनी हुई धड़कन यह जन जन की है पहचान।।
...........भुवन बिष्ट
रानीखेत, उत्तराखंड
स्वरचित/ मौलिक
नमन "भावों के मोती"
15/09/2019
"मुक्तक"
बंगीय लाल शान मिट्टी
ये "वीरभूम"की जान मिट्टी
गौरव "रविंद्र"की है कहती
है भाल की ये मान मिट्टी।
"बाउल" गीत तान मिट्टी
राष्ट्र की ये महान मिट्टी
"गीतांजली"की खूशबू है
सबकी है पहचान मिट्टी।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
15/09/2019
"मुक्तक"
बंगीय लाल शान मिट्टी
ये "वीरभूम"की जान मिट्टी
गौरव "रविंद्र"की है कहती
है भाल की ये मान मिट्टी।
"बाउल" गीत तान मिट्टी
राष्ट्र की ये महान मिट्टी
"गीतांजली"की खूशबू है
सबकी है पहचान मिट्टी।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन "भावों के मोती"
15/09/2019
"मुक्तक"
रदीफ :----"देखा है"
मुद्दतों के बाद उनकी आँखों में वही प्यार देखा है,
नजर के सामने गिरती नफरतों की दीवार देखा है,
स्याह रातों में अलसाई पलकों का नहीं है ये असर,
दिवा रौशनी में किसी के लिये यूँ बेकरार देखा है।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
15/09/2019
"मुक्तक"
रदीफ :----"देखा है"
मुद्दतों के बाद उनकी आँखों में वही प्यार देखा है,
नजर के सामने गिरती नफरतों की दीवार देखा है,
स्याह रातों में अलसाई पलकों का नहीं है ये असर,
दिवा रौशनी में किसी के लिये यूँ बेकरार देखा है।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
विद्या-मुक्तक
साम दाम दंड भेद के गये अब जमाने।
अब तो बस प्यार के हर कोई है दिवाने।
भूलकर भी जो साम दाम दंड भेद अपनाया-
तो सारे रिश्तेदार हमसे बन जाते बेगाने।
हमारे बच्चों को भी साम दाम कहाँ पसंद।
वो भी होते है हमारे स्नेह से ही रजामंद।
भूल करे वो कोई खामोश हमें तो रहना-
लब अपने बंद रख मुस्काते रहना मंद मंद।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
साम दाम दंड भेद के गये अब जमाने।
अब तो बस प्यार के हर कोई है दिवाने।
भूलकर भी जो साम दाम दंड भेद अपनाया-
तो सारे रिश्तेदार हमसे बन जाते बेगाने।
हमारे बच्चों को भी साम दाम कहाँ पसंद।
वो भी होते है हमारे स्नेह से ही रजामंद।
भूल करे वो कोई खामोश हमें तो रहना-
लब अपने बंद रख मुस्काते रहना मंद मंद।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
दिनाँक - 15/09/1019 रविवार
शीर्षक - मातृभाषा हिन्दी
विधा - मुक्तक
मापनी - 1222 1222 1222 1222
......................
हमारी मातृभाषा ही , हमारी शान है सबकी ,
वतन की लाज हिन्दी से ,हमारी जान है सबकी ,
सभी गर चाहते होवे ,हमारे देश की उन्नति ,
लिखो,बोलो,पढ़ो'माधव',यही है आत्मा सबकी l
...................................
किसी की मातृभाषा ही , वतन की नाव होती है ,
भला ही हो जहाँ भाषा ,सभी की छाँव होती है ,
जहाँ पर एक ही भाषा ,प्रगति रफ्तार बढ़ जाती,
वतन की मातृभाषा ही ,प्रगति का पाँव होती है l
....................................
स्वरचित
सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
कबरई जि. - महोबा ( उ. प्र. )
.....................................
शीर्षक - मातृभाषा हिन्दी
विधा - मुक्तक
मापनी - 1222 1222 1222 1222
......................
हमारी मातृभाषा ही , हमारी शान है सबकी ,
वतन की लाज हिन्दी से ,हमारी जान है सबकी ,
सभी गर चाहते होवे ,हमारे देश की उन्नति ,
लिखो,बोलो,पढ़ो'माधव',यही है आत्मा सबकी l
...................................
किसी की मातृभाषा ही , वतन की नाव होती है ,
भला ही हो जहाँ भाषा ,सभी की छाँव होती है ,
जहाँ पर एक ही भाषा ,प्रगति रफ्तार बढ़ जाती,
वतन की मातृभाषा ही ,प्रगति का पाँव होती है l
....................................
स्वरचित
सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
कबरई जि. - महोबा ( उ. प्र. )
.....................................
#दिनांक"15"9"2019
#विषय मातृभाषा हिंदी
#विधा:मुक्तक:
*+* हिंदी माथे की बिंदी *+*
***+***
प्रकृति के अनुकूल मात्र भाषा हमारी,
देवनागरी समृद्ध संस्कृत की बेटी है,
अनंत काल से इसने किया गौरव हासिल,
माँ भारती के माथे की यह बिंदी है,
***+***
स्वरचित "*"दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
भुआ बिछिया जिला मंडला
मध्यप्रदेश
#विषय मातृभाषा हिंदी
#विधा:मुक्तक:
*+* हिंदी माथे की बिंदी *+*
***+***
प्रकृति के अनुकूल मात्र भाषा हमारी,
देवनागरी समृद्ध संस्कृत की बेटी है,
अनंत काल से इसने किया गौरव हासिल,
माँ भारती के माथे की यह बिंदी है,
***+***
स्वरचित "*"दुर्गा सिलगीवाला सोनी,
भुआ बिछिया जिला मंडला
मध्यप्रदेश
15/09/19
मुक्तक
**
देवनागरी में रचा,तुलसी ग्रंथ महान ।
हिन्दी का वंदन करें ,हिंदी हो अभियान ।।
सरल सहज हिन्दी रही,रस कानों में घोल।
बाँध रहे क्यों दिवस में ,हिन्दी हिंदुस्तान ।।
**
स्वरचित
अनिता सुधीर
मुक्तक
**
देवनागरी में रचा,तुलसी ग्रंथ महान ।
हिन्दी का वंदन करें ,हिंदी हो अभियान ।।
सरल सहज हिन्दी रही,रस कानों में घोल।
बाँध रहे क्यों दिवस में ,हिन्दी हिंदुस्तान ।।
**
स्वरचित
अनिता सुधीर
15.9.2019
रविवार
मुक्तक लेखन
हिन्दी दिवस
🍁🍁🍁
(1)
करें सम्मान हिन्दी का, करें गुणगान हिन्दी का
पढ़ें हर ग्रंथ हिन्दी में,बढ़ाएँ मान हिन्दी का
नहीं कोई भी भाषा,विश्व में हिन्दी से बढ़कर है
करें विस्तार हिन्दी का,बढ़े अभिमान हिन्दी का ।।
(2)
भारत के भाल की बिन्दी,है अपनी भाषा हिन्दी
ऋषियों की वेदवाणी है,यह अपनी भाषा हिन्दी
हिन्दी से भरा वाँग्मय है,समृद्ध पुरातन भाषा
झंकृत मन को करती है, जन-मन की भाषा हिन्दी।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
रविवार
मुक्तक लेखन
हिन्दी दिवस
🍁🍁🍁
(1)
करें सम्मान हिन्दी का, करें गुणगान हिन्दी का
पढ़ें हर ग्रंथ हिन्दी में,बढ़ाएँ मान हिन्दी का
नहीं कोई भी भाषा,विश्व में हिन्दी से बढ़कर है
करें विस्तार हिन्दी का,बढ़े अभिमान हिन्दी का ।।
(2)
भारत के भाल की बिन्दी,है अपनी भाषा हिन्दी
ऋषियों की वेदवाणी है,यह अपनी भाषा हिन्दी
हिन्दी से भरा वाँग्मय है,समृद्ध पुरातन भाषा
झंकृत मन को करती है, जन-मन की भाषा हिन्दी।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
भावों के मोती
विषय-मुक्तक
_________________
बादलों की ओट में चाँद छुपा न जाने क्यों,
पहाड़ों के आँसू बरसने लगे हैं न जाने क्यों,
लगता कोई दिल टूटकर बिखरा है आज़,
साँझ खामोश तारे भी बुझे-बुझे न जाने क्यों।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय-मुक्तक
_________________
बादलों की ओट में चाँद छुपा न जाने क्यों,
पहाड़ों के आँसू बरसने लगे हैं न जाने क्यों,
लगता कोई दिल टूटकर बिखरा है आज़,
साँझ खामोश तारे भी बुझे-बुझे न जाने क्यों।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
नमस्कार मंच
दिनांक-१५-९-२०१९
आयोजन- मुक्तक लेखन
विषय- हिन्दी
प्रेम-पाश की भाषा हिन्दी।
हर मन की अभिलाषा हिन्दी।
सदा जोड़कर रखती सबको-
एका की परिभाषा हिन्दी।
जाति - धर्म से बढ़कर हिन्दी।
ऊँच - नीच से ऊपर हिन्दी।
भरी हुई है मृदु वर्णों से-
हर भाषा से प्रियकर हिन्दी।
स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला
दिनांक-१५-९-२०१९
आयोजन- मुक्तक लेखन
विषय- हिन्दी
प्रेम-पाश की भाषा हिन्दी।
हर मन की अभिलाषा हिन्दी।
सदा जोड़कर रखती सबको-
एका की परिभाषा हिन्दी।
जाति - धर्म से बढ़कर हिन्दी।
ऊँच - नीच से ऊपर हिन्दी।
भरी हुई है मृदु वर्णों से-
हर भाषा से प्रियकर हिन्दी।
स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला
दिनांक 15 -9-2019
विधा -मुक्तक
"बिंदी का देख कमाल, बिंदी मान बढ़ाती है l
सही हो उपयोग हिंदी में, शब्दों में चार चांँद लगाती।
बिन बिंदी हिंदी नहीं,अर्थ अनर्थ हो जाय।
हिंदू हिंदी हिंदुस्तान, पहचान यह बनाती है
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विधा -मुक्तक
"बिंदी का देख कमाल, बिंदी मान बढ़ाती है l
सही हो उपयोग हिंदी में, शब्दों में चार चांँद लगाती।
बिन बिंदी हिंदी नहीं,अर्थ अनर्थ हो जाय।
हिंदू हिंदी हिंदुस्तान, पहचान यह बनाती है
वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमनः भावों के मोती
दि.15.9.19.
हिन्दी दिवसः'मुक्तक'लेखन
*
मुक्तकः
भावों के संप्रेषण में अति कामयाब .है हिन्दी।
सहज सुबोध सरल वैग्यानिक, लाजवाब है हिन्दी।
भारत की बोलियाँ सभी हैं , प्यारी छोटी बहनें,
सबसे बडी़ , लोकप्रिय उन्नत आफताब है हिन्दी।।
--डा.'शितिकंठ'
दि.15.9.19.
हिन्दी दिवसः'मुक्तक'लेखन
*
मुक्तकः
भावों के संप्रेषण में अति कामयाब .है हिन्दी।
सहज सुबोध सरल वैग्यानिक, लाजवाब है हिन्दी।
भारत की बोलियाँ सभी हैं , प्यारी छोटी बहनें,
सबसे बडी़ , लोकप्रिय उन्नत आफताब है हिन्दी।।
--डा.'शितिकंठ'
हिंदी हमारी शान है, इनसे हमारी पहचान है।
हिंद देश के हम निवासी,इनसे मान सम्मान है।
कभी ना करें हम अनादर,ये है हमारी माँ समान
उज्जवल भविष्य हो हिंदी का,यह देखना हमारा काम है।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
हिंद देश के हम निवासी,इनसे मान सम्मान है।
कभी ना करें हम अनादर,ये है हमारी माँ समान
उज्जवल भविष्य हो हिंदी का,यह देखना हमारा काम है।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
मुक्तक
हिन्दी हमारी शान है,यह हिन्द की पुकार है,
इसमें ही तो वो प्यार है, जिसमें भरा दुलार है।
बढा रही है ज्ञान को, इसी से सबका मान है,
कवियों के लिए हिन्दी तो, सावन की फुहार है।। © स्वरचित
(अशोक राय वत्स)
हिन्दी हमारी शान है,यह हिन्द की पुकार है,
इसमें ही तो वो प्यार है, जिसमें भरा दुलार है।
बढा रही है ज्ञान को, इसी से सबका मान है,
कवियों के लिए हिन्दी तो, सावन की फुहार है।। © स्वरचित
(अशोक राय वत्स)
१५/९/२०१९
विधा-मुक्तकविषय-हिंदी
==========
हिंदी एक नशा है प्यार से इसे पी लें
भावों के मोती पिरो कर माला पहन लें
गीत बन ये महक उठेगी फ़िज़ां में
अमृत का प्याला समझ कर इसे पी लें ।।
****
क्षमाप्रार्थी हों भूल पर, कीजिए स्वीकार हिंदी में
यही संस्कार हैं हमारे,भूल मानते हैं हम पल भर में
हमारे दिलोदिमाग में ये रची बसी है
दिल की बात दिल तक पहुंचें हिंदी में ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विधा-मुक्तकविषय-हिंदी
==========
हिंदी एक नशा है प्यार से इसे पी लें
भावों के मोती पिरो कर माला पहन लें
गीत बन ये महक उठेगी फ़िज़ां में
अमृत का प्याला समझ कर इसे पी लें ।।
****
क्षमाप्रार्थी हों भूल पर, कीजिए स्वीकार हिंदी में
यही संस्कार हैं हमारे,भूल मानते हैं हम पल भर में
हमारे दिलोदिमाग में ये रची बसी है
दिल की बात दिल तक पहुंचें हिंदी में ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
मन भावों के मोती
दिनांक - 15/9/2019
विधा - दोहा मुक्तक
कैसा माया जाल है, मधुशाला संसार।
फँस कर रह जाते सभी,पाए कैसे पार।।
साकी कोई दे पिला, राम नाम का जाम।
भक्त प्रेम में झूमता, भवसागर से तार।।
शाम ढली अरु आ गया, होठों पर फिर नाम।
साकी मुझको दो पिला, मोहब्बत का जाम।।
पी पी कर बस आज तो, पड़ा रहूँ मदहोश।
साकी के हर जाम को, पीना मेरा काम।।
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
दिनांक - 15/9/2019
विधा - दोहा मुक्तक
कैसा माया जाल है, मधुशाला संसार।
फँस कर रह जाते सभी,पाए कैसे पार।।
साकी कोई दे पिला, राम नाम का जाम।
भक्त प्रेम में झूमता, भवसागर से तार।।
शाम ढली अरु आ गया, होठों पर फिर नाम।
साकी मुझको दो पिला, मोहब्बत का जाम।।
पी पी कर बस आज तो, पड़ा रहूँ मदहोश।
साकी के हर जाम को, पीना मेरा काम।।
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
15/9/2019
विधा- मुक्तक
खिचड़ी भाषा बोल हिंद में मानव क्या जतलाता है।
मात समान रहे निज भाषा यह भी जान न पाता है।
भारत का गौरव हिंदी है ज्ञान कौमुदी खिल जाती,
जब चुग जाती खेत चिरैया तब काहे पछताता है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विधा- मुक्तक
खिचड़ी भाषा बोल हिंद में मानव क्या जतलाता है।
मात समान रहे निज भाषा यह भी जान न पाता है।
भारत का गौरव हिंदी है ज्ञान कौमुदी खिल जाती,
जब चुग जाती खेत चिरैया तब काहे पछताता है।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
वार - रविवार
तिथि - 15 सितंबर 19
हिंद की जान है हिंदी हिंद का मान है हिंदी,
हिंद की शान है हिंदी हिंद का गान है हिंदी।
होता अनेक भाषाओं का यहांँ पर बोलबाला-
मगर पहचान है हिंदी और अभिमान है हिंदी।।
स्वरचित
गीता लकवाल
गुना मध्यप्रदेश
तिथि - 15 सितंबर 19
हिंद की जान है हिंदी हिंद का मान है हिंदी,
हिंद की शान है हिंदी हिंद का गान है हिंदी।
होता अनेक भाषाओं का यहांँ पर बोलबाला-
मगर पहचान है हिंदी और अभिमान है हिंदी।।
स्वरचित
गीता लकवाल
गुना मध्यप्रदेश
दिन---रविवार
विधा---- मुक्तक
----------------------------------------
आओ घर गणराज , रखे हैं नैन बिछाए |
करना पूरण काज , तुम्हीं से आस लगाए |
सुन लो मेरी अर्ज , नहीं मुझको बिसराना |
रिद्धी - सिद्धी संग , चले घर मेरे आना |
रानी कोष्टी म प्र गुना
स्वरचित एवं मौलिक
विधा---- मुक्तक
----------------------------------------
आओ घर गणराज , रखे हैं नैन बिछाए |
करना पूरण काज , तुम्हीं से आस लगाए |
सुन लो मेरी अर्ज , नहीं मुझको बिसराना |
रिद्धी - सिद्धी संग , चले घर मेरे आना |
रानी कोष्टी म प्र गुना
स्वरचित एवं मौलिक
विषय - माँ
मुक्तक लेखन
1
आँगन की तुलसी है माँ
चहकते बच्चे देखकर हुलसी है माँ
तपती धूप में देख बच्चों को
स्वंय भीतर तक झुलसी है माँ
2
देहरी पर बिछा गुलमोहर है माँ
ठंड की गुनगुनी दोपहर है माँ
भीषण आतप में शीतल छाया
सकल ब्रम्हांड की अमूल्य धरोहर है माँ ।
3
स्वयं पूजा की थाली महकती चंदन माँ
मधुर लोरी मतवाली खनकता कंगन माँ
संतोषी शारदा सुरसरी बच्चों के हित पल में चामुंडा बनी
सकल भार धात्री वसुधा तेरा नित नित वंदन माँ ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
मुक्तक लेखन
1
आँगन की तुलसी है माँ
चहकते बच्चे देखकर हुलसी है माँ
तपती धूप में देख बच्चों को
स्वंय भीतर तक झुलसी है माँ
2
देहरी पर बिछा गुलमोहर है माँ
ठंड की गुनगुनी दोपहर है माँ
भीषण आतप में शीतल छाया
सकल ब्रम्हांड की अमूल्य धरोहर है माँ ।
3
स्वयं पूजा की थाली महकती चंदन माँ
मधुर लोरी मतवाली खनकता कंगन माँ
संतोषी शारदा सुरसरी बच्चों के हित पल में चामुंडा बनी
सकल भार धात्री वसुधा तेरा नित नित वंदन माँ ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
दिनांक:15/09/2019
विधा:मुक्तक
विषय बारिश/बरखा
1
शाम चली मैं बाजार की ओर
लेकर थैला थाम पति की डोर
तभी गरज के जोरो शोरो से
आ गई बरखा ढूँढे सब छोर।
2
कोई भागा दुकानों की ओर
सब ओर मच गया शोर ही शोर
तब तक आ गई मेरी सवारी
भागी पति संग पीहर की ओर।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
हिंदी भाषा का परचम विश्व में लहरा रहा,
सरस सुमधुर भाषा का गुणगान देखो गा रहा।
आओ मिल समृद्ध करें
अपनी इस भाषा को
राष्ट्र भाषा बने ये बस भाव
मन में आ रहा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
सरस सुमधुर भाषा का गुणगान देखो गा रहा।
आओ मिल समृद्ध करें
अपनी इस भाषा को
राष्ट्र भाषा बने ये बस भाव
मन में आ रहा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
दिनांक :- 14/9/19.
विधा :- "मुक्तक"
सबसे सुघड़, सयानी हिन्दी।
रत्न-जड़ित,लासानी हिन्दी।
शब्द - शब्द में, वैज्ञानिकता,
सकल विश्व ने, मानी हिन्दी।
विधा :- "मुक्तक"
सबसे सुघड़, सयानी हिन्दी।
रत्न-जड़ित,लासानी हिन्दी।
शब्द - शब्द में, वैज्ञानिकता,
सकल विश्व ने, मानी हिन्दी।
विषय:-हिंदी भाषा
विधा :-मुक्तक
हिंदी कहाँ राज भाषा भी , सम्राज्ञी कैसे बनाएँ ।
एक दिवस देते सिंहासन , सर्वदा कैसे दिलाएँ ।
ज्वलंत विषय पर चर्चा करें , बातें छोड कर व्यर्थ की ,
बनें सहचरी सब भाषाएँ , कौन कैसे सुझाएँ ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
विधा :-मुक्तक
हिंदी कहाँ राज भाषा भी , सम्राज्ञी कैसे बनाएँ ।
एक दिवस देते सिंहासन , सर्वदा कैसे दिलाएँ ।
ज्वलंत विषय पर चर्चा करें , बातें छोड कर व्यर्थ की ,
बनें सहचरी सब भाषाएँ , कौन कैसे सुझाएँ ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
नमन भावों के मोती
विषय-हिन्दी (मुक्तक)
हमारी माँ के स्वर्णिम भाल
की बिंदी है ये हिंदी
पढूँ हिन्दी लिखूँ हिंदी
कहूँ हिंदी सुनूँ हिंदी
मेरी आँखों ने सारे स्वप्न
हिंदी में ही देखे है
करूँ साकार स्वप्नो को
रचूँ हिन्दी जियूँ हिंदी।
गीता गुप्ता 'मन'
विषय-हिन्दी (मुक्तक)
हमारी माँ के स्वर्णिम भाल
की बिंदी है ये हिंदी
पढूँ हिन्दी लिखूँ हिंदी
कहूँ हिंदी सुनूँ हिंदी
मेरी आँखों ने सारे स्वप्न
हिंदी में ही देखे है
करूँ साकार स्वप्नो को
रचूँ हिन्दी जियूँ हिंदी।
गीता गुप्ता 'मन'
दिनांक -15-9-2019
स्वरचित मुक्तक
हिंदी अपनी शान है हिंदी अपनी आन
सरस,मधुर,विज्ञानमयी सहज करे संधान
पहुंचाई सर्वत्र ही जग के हर कोने में-
खुसरो,तुलसी,सूर,कबीरा धन्य हिंदी विद्वान
___________________
स्वरचित -
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
स्वरचित मुक्तक
हिंदी अपनी शान है हिंदी अपनी आन
सरस,मधुर,विज्ञानमयी सहज करे संधान
पहुंचाई सर्वत्र ही जग के हर कोने में-
खुसरो,तुलसी,सूर,कबीरा धन्य हिंदी विद्वान
___________________
स्वरचित -
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
सादर नमन
मुक्तक लेखन
१
सिर उठा कर सीखो जीना,
अपमान का घूँट अब ना पीना,
शिक्षा के हीरे जवाहारात में
हिन्दी तो है अनमोल नगीना।
२
भावो के मोती समूह माहान,
विधाओं का हमें देते ज्ञान,
लिखकर कुछ अपने विचार,
हिंदी को हम देते सम्मान।
***
हिंदी है एक महकता चमन,
भावो के इसमें खिलते सुमन,
राष्ट्रिय भाषा हिन्दी को हम,
करते हैं शत्-शत् नमन।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/9/19
रविवार
मुक्तक लेखन
१
सिर उठा कर सीखो जीना,
अपमान का घूँट अब ना पीना,
शिक्षा के हीरे जवाहारात में
हिन्दी तो है अनमोल नगीना।
२
भावो के मोती समूह माहान,
विधाओं का हमें देते ज्ञान,
लिखकर कुछ अपने विचार,
हिंदी को हम देते सम्मान।
***
हिंदी है एक महकता चमन,
भावो के इसमें खिलते सुमन,
राष्ट्रिय भाषा हिन्दी को हम,
करते हैं शत्-शत् नमन।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/9/19
रविवार
नमन भावों के मोती
१५/०९/२०१९
विधा - मुक्तक
हर भारतवासी का मान है,अपनी भाषा माँ हिंदी ,
युगों युगों तक अमरगान है,अपनी भाषा माँ हिंदी ,
हिन्द हिंदू और हिंदुस्तान है,अपनी प्यारी ये भाषा ,
शर्म को छोड़ो गर्व से बोलो,जय हिंदी जय माँ हिंदी।।
स्वरचित
आरती अक्षय गोस्वामी
देवास मध्यप्रदेश
१५/०९/२०१९
विधा - मुक्तक
हर भारतवासी का मान है,अपनी भाषा माँ हिंदी ,
युगों युगों तक अमरगान है,अपनी भाषा माँ हिंदी ,
हिन्द हिंदू और हिंदुस्तान है,अपनी प्यारी ये भाषा ,
शर्म को छोड़ो गर्व से बोलो,जय हिंदी जय माँ हिंदी।।
स्वरचित
आरती अक्षय गोस्वामी
देवास मध्यप्रदेश
तनहाई का गीत लिखेंगे
तुमको मन का मीत लिखेंगे
जीवन की भाषा समझाते
झरने का संगीत लिखेंगे...
चंदा वाली रात लिखेंगे
किरणों की सौगात लिखेंगे
शुष्क हुए मन के दूबों पर
शबनम की बरसात लिखेंगे...
स्वरचित 'पथिक रचना'
तुमको मन का मीत लिखेंगे
जीवन की भाषा समझाते
झरने का संगीत लिखेंगे...
चंदा वाली रात लिखेंगे
किरणों की सौगात लिखेंगे
शुष्क हुए मन के दूबों पर
शबनम की बरसात लिखेंगे...
स्वरचित 'पथिक रचना'
मुक्तक
कितना सहज सरल है बहती
सदा समेटे संस्कृति चलती
शुचि पावन है सदा सर्वदा
हिंदी है गौरव की सम्पदा
हिंदी हिन्द देश की मान
सदा करें इसका सम्मान
क्यों अपनाएँ हम अंग्रेजी
हिंदी का क्यों करें अपमान
सारे विश्व की मान है हिंदी
राष्ट्र की अभिमान है हिंदी
भारत माँ की भाल सुशोभित
जन जन की सम्मान है हिंदी।
हिंदी को सम्मान दिलाएंगे
राष्ट्र भाषा की मान दिलाएंगे
चलो सब मिल लेते संकल्प
कभी ना अंग्रेजी अपनाएंगे।
@ मणि बेन
कितना सहज सरल है बहती
सदा समेटे संस्कृति चलती
शुचि पावन है सदा सर्वदा
हिंदी है गौरव की सम्पदा
हिंदी हिन्द देश की मान
सदा करें इसका सम्मान
क्यों अपनाएँ हम अंग्रेजी
हिंदी का क्यों करें अपमान
सारे विश्व की मान है हिंदी
राष्ट्र की अभिमान है हिंदी
भारत माँ की भाल सुशोभित
जन जन की सम्मान है हिंदी।
हिंदी को सम्मान दिलाएंगे
राष्ट्र भाषा की मान दिलाएंगे
चलो सब मिल लेते संकल्प
कभी ना अंग्रेजी अपनाएंगे।
@ मणि बेन
नमन मंच भावों के मोती
आयोजन- हिंदी दिवस "कुंडली लेखन"
दिन-रविवार
दिनाँक-१५/०९/२०१९
१
भाषा हिंदी शान है, है भारत की जान।
कीर्तिपताका है यही, है अनुपम वरदान।।
है अनुपम वरदान, मातृभाषा है हिंदी।
है अतुलित सम्मान, भारती की है बिंदी।।
कह शंकर कविराय, यही है सबसे आसा।
करदो खूब प्रसार, पढ़ें सब हिंदी भाषा।।
२
भाषा शैली हो विमल, और शुद्ध सुविचार।
लेखन,पाठन हो सरल, हिंदी हो करतार।।
हिंदी हो करतार, बने यह राष्ट्र पताका।
हो सबकी यह बोल, बने भारत की साका।।
कह शंकर कविराय, यही मेरी अभिलाषा।
हिंदी अपनी शान, बने यह वैश्विक भाषा।।
- पूर्णतः स्वरचित एवं मौलिक
- जयशंकर पाण्डेय (बलरामपुर, उ०प्र०)
आयोजन- हिंदी दिवस "कुंडली लेखन"
दिन-रविवार
दिनाँक-१५/०९/२०१९
१
भाषा हिंदी शान है, है भारत की जान।
कीर्तिपताका है यही, है अनुपम वरदान।।
है अनुपम वरदान, मातृभाषा है हिंदी।
है अतुलित सम्मान, भारती की है बिंदी।।
कह शंकर कविराय, यही है सबसे आसा।
करदो खूब प्रसार, पढ़ें सब हिंदी भाषा।।
२
भाषा शैली हो विमल, और शुद्ध सुविचार।
लेखन,पाठन हो सरल, हिंदी हो करतार।।
हिंदी हो करतार, बने यह राष्ट्र पताका।
हो सबकी यह बोल, बने भारत की साका।।
कह शंकर कविराय, यही मेरी अभिलाषा।
हिंदी अपनी शान, बने यह वैश्विक भाषा।।
- पूर्णतः स्वरचित एवं मौलिक
- जयशंकर पाण्डेय (बलरामपुर, उ०प्र०)
नमन भावों के मोती
आयो-हिन्दी दिवस
कुंडली लेखन
दि-15-9-19/रविवार
हिन्दी है जीवन सदन,हिन्दी अपना देश।
भाषा अपनी है यही,हिन्दी ही परिवेश।।
हिंदी ही परिवेश,सभी को वश कर लेती।
अलंकार संसार, काव्य सुख अनुपम देती।।
खरी ' हितैषी 'राय,भारत भाल की बिंदी।
विश्व गगन पर छाय,हमारी पावन हिन्दी।।
*****स्वरचित***************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
आयो-हिन्दी दिवस
कुंडली लेखन
दि-15-9-19/रविवार
हिन्दी है जीवन सदन,हिन्दी अपना देश।
भाषा अपनी है यही,हिन्दी ही परिवेश।।
हिंदी ही परिवेश,सभी को वश कर लेती।
अलंकार संसार, काव्य सुख अनुपम देती।।
खरी ' हितैषी 'राय,भारत भाल की बिंदी।
विश्व गगन पर छाय,हमारी पावन हिन्दी।।
*****स्वरचित***************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
नमन मंच
भावों के मोती"
आयोजन-हिन्दी दिवस "कुँडली लेखन"
दिन-रविवार
दिनांक-15-9-2019
🌹🌹 #हिन्दी #दिवस*🌹🌹पर हिन्दी का सम्पूर्ण योगदान,,,,,,,,
"" सुन"वीणा" के बोल,सभी को करै साक्षर /
""साहित्य मे अनमोल,चमकते हिन्दी आखर //
#मातृभाषा हिन्दी पर दो कुँडलियाँ
~~~~~~~~~~~
🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷
*********************************
हिन्दी भाषा देश की,,,,,,सबसे मीठी बोल
डोर एकता सूत्र की,,,,,,,भाषा है अनमोल
भाषा है अनमोल,,,;,,लेखनी प्यारी लगती,
ज्यों मोती की माल,,,चमकती न्यारी लगती
चमके भारति-भाल ,,दमकती-बिन्दी-हिन्दी
है स्वदेश -सिरमौर,,,राष्ट्र की भाषा हिन्दी /
*********************************
*********************************
आख़र चमके स्वर्ण सम,,रचना रचे कमाल
हिन्दी अपनी सी लगै,,,,,भाषा रूप विशाल
भाषा रूप विशाल,,,,लेखन की है सरोवर,
देशज,क्षत्रिय संग,,,,,,,,,देवनागरी धरोहर,
सुन "वीणा"के बोल,,,,सभी को करैं साक्षर
लेखन मे अनमोल,चमकते हिन्दी आखर /
*********************************
🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
(गाजियाबाद)
भावों के मोती"
आयोजन-हिन्दी दिवस "कुँडली लेखन"
दिन-रविवार
दिनांक-15-9-2019
🌹🌹 #हिन्दी #दिवस*🌹🌹पर हिन्दी का सम्पूर्ण योगदान,,,,,,,,
"" सुन"वीणा" के बोल,सभी को करै साक्षर /
""साहित्य मे अनमोल,चमकते हिन्दी आखर //
#मातृभाषा हिन्दी पर दो कुँडलियाँ
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हिन्दी भाषा देश की,,,,,,सबसे मीठी बोल
डोर एकता सूत्र की,,,,,,,भाषा है अनमोल
भाषा है अनमोल,,,;,,लेखनी प्यारी लगती,
ज्यों मोती की माल,,,चमकती न्यारी लगती
चमके भारति-भाल ,,दमकती-बिन्दी-हिन्दी
है स्वदेश -सिरमौर,,,राष्ट्र की भाषा हिन्दी /
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आख़र चमके स्वर्ण सम,,रचना रचे कमाल
हिन्दी अपनी सी लगै,,,,,भाषा रूप विशाल
भाषा रूप विशाल,,,,लेखन की है सरोवर,
देशज,क्षत्रिय संग,,,,,,,,,देवनागरी धरोहर,
सुन "वीणा"के बोल,,,,सभी को करैं साक्षर
लेखन मे अनमोल,चमकते हिन्दी आखर /
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
(गाजियाबाद)
(द्वितीय प्रस्तुति )
नमन मंच भावों के मोती समूह
आयोजन - हिन्दी दिवस "कुंडली लेखन"
15-9-2019
#हिन्दी दिवस" के महान पर्व बधाई व शुभकामनाएँ,,,,,,
मातृभाषा हिन्दी की गरिमा में,,,
कुंडलिया छंद " भारत-भारती "
=========
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
हिन्दी मातु समान है,,,,,हिन्द की आन बान
भारत की है भारती,,,,,,,,,,भाषा का वरदान
भाषा का वरदान,,, प्रथम बोली बालक की
कहता शिशु माँ- माँइ,"तूतलि"बोल शैशव की
सुन वीणा" के बोल,,,मधुर मुरली सम हिन्दी ,
कभी न हो अपमान,,,,,,हिन्दुस्तान है हिन्दी //
********************************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
रचनाकार = ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
(गाजियाबाद)
नमन मंच भावों के मोती समूह
आयोजन - हिन्दी दिवस "कुंडली लेखन"
15-9-2019
#हिन्दी दिवस" के महान पर्व बधाई व शुभकामनाएँ,,,,,,
मातृभाषा हिन्दी की गरिमा में,,,
कुंडलिया छंद " भारत-भारती "
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हिन्दी मातु समान है,,,,,हिन्द की आन बान
भारत की है भारती,,,,,,,,,,भाषा का वरदान
भाषा का वरदान,,, प्रथम बोली बालक की
कहता शिशु माँ- माँइ,"तूतलि"बोल शैशव की
सुन वीणा" के बोल,,,मधुर मुरली सम हिन्दी ,
कभी न हो अपमान,,,,,,हिन्दुस्तान है हिन्दी //
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रचनाकार = ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
(गाजियाबाद)
हिन्दी दिवस ( द्वितीय)
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
🌷🌷🌷🌷🌷
मातृभाषा हिन्दी की गरिमा में,,,***
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कुंडलिया छंद " भारत-भारती "
=========
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हिन्दी मातु समान है,,,,,,देश की आन बान /
भारत की है भारती, ,,,,,,,,भाषा का वरदान ,
भाषा का वरदान,,,,प्रथम भाषा बालक की !
माँ,माँ बोलता शिशु,"तूतलि" -बोल-शैशव की
सुन वीणा" के बोल,,,,,मधुर मुरली सम हिन्दी /
कभी न हो अपमान,,,,मान-स्वाभिमान हिन्दी //
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रचनाकार = ब्रह्माणी वीणा
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
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मातृभाषा हिन्दी की गरिमा में,,,***
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कुंडलिया छंद " भारत-भारती "
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हिन्दी मातु समान है,,,,,,देश की आन बान /
भारत की है भारती, ,,,,,,,,भाषा का वरदान ,
भाषा का वरदान,,,,प्रथम भाषा बालक की !
माँ,माँ बोलता शिशु,"तूतलि" -बोल-शैशव की
सुन वीणा" के बोल,,,,,मधुर मुरली सम हिन्दी /
कभी न हो अपमान,,,,मान-स्वाभिमान हिन्दी //
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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रचनाकार = ब्रह्माणी वीणा
तृतीय प्रस्तुति
नमन मंच
भावों कै मोती
कुंडली लेखन^
रविवार
कुंडलियां छंद,,,,
"हिन्दी की महिमा"
🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿
*********************************
हिन्दी है मनभावनी,,,,कविता का श्र॔गार/
आखर-आखर की चमक,जैसे मुक्ता-हार//
जैसे मुक्ता-हार,,,,,काव्य को करे अलंकृत/
शब्द- शब्द में गान,लगै ज्यों वीणा-झंकृत/
सुन "वीणा" के बोल,बहै कविता-कालिंदी/
शारद का वरदान,मातु सम पावन हिन्दी//
*********************************
🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
नमन मंच
भावों कै मोती
कुंडली लेखन^
रविवार
कुंडलियां छंद,,,,
"हिन्दी की महिमा"
🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿
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हिन्दी है मनभावनी,,,,कविता का श्र॔गार/
आखर-आखर की चमक,जैसे मुक्ता-हार//
जैसे मुक्ता-हार,,,,,काव्य को करे अलंकृत/
शब्द- शब्द में गान,लगै ज्यों वीणा-झंकृत/
सुन "वीणा" के बोल,बहै कविता-कालिंदी/
शारद का वरदान,मातु सम पावन हिन्दी//
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🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
नमन मंच
भालों के मोती
कुंडली लेखन "
रविवार--15-9-2019
एक वर्ष पूर्व की जन्माष्टमी
**********************
कुंडलिया छंद
***********
🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥
🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯
********************************* **** भए यशुमति-के लाला,,,,,, ,छाई खुशी अपार
गोप ग्वाल सब झूमते , ,,,,, बृज में नाचत नार
बृज में नाचत नार ,,,,,,,,,,,,बिरज में बजै बधाई
कृष्ण लिहिन अवतार,नंद- घर किशन कन्हाई
सुन "वीणा" के बोल,,,,,,,, धाय बृज में गोपाला/
बरसत प्रेमानंद,,,,,,,भए यशुमति- के लाला //
************************************
🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
भालों के मोती
कुंडली लेखन "
रविवार--15-9-2019
एक वर्ष पूर्व की जन्माष्टमी
**********************
कुंडलिया छंद
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🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯
********************************* **** भए यशुमति-के लाला,,,,,, ,छाई खुशी अपार
गोप ग्वाल सब झूमते , ,,,,, बृज में नाचत नार
बृज में नाचत नार ,,,,,,,,,,,,बिरज में बजै बधाई
कृष्ण लिहिन अवतार,नंद- घर किशन कन्हाई
सुन "वीणा" के बोल,,,,,,,, धाय बृज में गोपाला/
बरसत प्रेमानंद,,,,,,,भए यशुमति- के लाला //
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🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯
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ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार #सुरक्षित
रविवार - 15- 9-2019
कुंडली लेखन "#माँ #जगदम्बे
🌹🌹🌹🌹
कुॅडलिया छंद में,,,,,?
🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹
********************************
जग जननी भव तारिणी, आदि शक्ति नव रूप
उमा अंबिके ब्रह्माणी,,,,, माॅ के विविध स्वरूप
माॅ के विविध स्वरूप,,,,, मातु दुर्गे दुख; हरनी
धरैं कालिका रूप ,,,,,,,,,,,,,,,महासुर दैत्य मर्दनी
सुन वीणा" के बोल, ,,,,जयति दुर्गा सुख करनी
नमन करूँ नौरात, ,,,,,,,,नवम् देवी जग जननी !
*********************************
🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
(गाजियाबाद)
नमन मंच
कुंडलिया
**
होता हिन्दी दिवस पर,भाषा का गुणगान।
आहत है मन देख के,हिन्दी हो अभियान।।
हिन्दी हो अभियान,विषय रहा सम्मान का ।
कर दूजे का मान, मार्ग हो उत्थान का।।
विवश क्यों मनुज आज,वही बीज स्वयं बोता ।
करना है अनुसरण ,कहने से नहीं होता ।।
**
स्वरचित
अनिता सुधीर
कुंडलिया
**
होता हिन्दी दिवस पर,भाषा का गुणगान।
आहत है मन देख के,हिन्दी हो अभियान।।
हिन्दी हो अभियान,विषय रहा सम्मान का ।
कर दूजे का मान, मार्ग हो उत्थान का।।
विवश क्यों मनुज आज,वही बीज स्वयं बोता ।
करना है अनुसरण ,कहने से नहीं होता ।।
**
स्वरचित
अनिता सुधीर
सादर नमन भावों के मोती
15/09/2019
विधा - कुंडलिया
नौका जैसी ज़िन्दगी , अवश पड़ी मझधार ।
तुम इसकी रक्षा करो , आओ तारणहार ।।
आओ तारणहार , तुम्हीं केवट बलशाली ।
मनु बगिया आधार, तुम सर्वोत्तम माली ।।
तुम पर है विश्वास , न छोड़ूँगी ये मौका ।
श्वास श्वास में आप , बचालो जीवन नौका ।।
-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित
15/09/2019
विधा - कुंडलिया
नौका जैसी ज़िन्दगी , अवश पड़ी मझधार ।
तुम इसकी रक्षा करो , आओ तारणहार ।।
आओ तारणहार , तुम्हीं केवट बलशाली ।
मनु बगिया आधार, तुम सर्वोत्तम माली ।।
तुम पर है विश्वास , न छोड़ूँगी ये मौका ।
श्वास श्वास में आप , बचालो जीवन नौका ।।
-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित
नमन भावों के मोती
आयोजन :-हिन्दी दिवस कुंडली लेखन
दिन :- रविवार
दिनाँक :- 15/09/19
***************(1)****************
हिन्दी सबकी आन है हिन्दी सबकी शान।
हिन्दी को बोलो सभी, बढ़े देश का मान।
बढ़े देश का मान बहुत ही प्यारी भाषा।
सूत्र बद्ध हो देश यही सबकी अभिलाषा।
कहे सरल कविराय भाल की है ये बिन्दी।
करो न सोच विचार सभी अपनाओ हिन्दी।
**************(2)******************
हिन्दी के इस देश में है इंग्लिश का राज।
इसे बोलकर के सभी करते खुद पर नाज।
करते खुद पर नाज चले जाते इतराते।
भरी सभा के बीच बोल हिन्दी ना पाते।
कहे सरल कविराय, बहे ये ज्यों कालिन्दी।
भाषा में सिरमौर हमारी प्यारी हिन्दी।
********************************
स्वरचित
शिवेन्द्र सिंह चौहान"सरल"
ग्वालियर मध्यप्रदेश
आयोजन :-हिन्दी दिवस कुंडली लेखन
दिन :- रविवार
दिनाँक :- 15/09/19
***************(1)****************
हिन्दी सबकी आन है हिन्दी सबकी शान।
हिन्दी को बोलो सभी, बढ़े देश का मान।
बढ़े देश का मान बहुत ही प्यारी भाषा।
सूत्र बद्ध हो देश यही सबकी अभिलाषा।
कहे सरल कविराय भाल की है ये बिन्दी।
करो न सोच विचार सभी अपनाओ हिन्दी।
**************(2)******************
हिन्दी के इस देश में है इंग्लिश का राज।
इसे बोलकर के सभी करते खुद पर नाज।
करते खुद पर नाज चले जाते इतराते।
भरी सभा के बीच बोल हिन्दी ना पाते।
कहे सरल कविराय, बहे ये ज्यों कालिन्दी।
भाषा में सिरमौर हमारी प्यारी हिन्दी।
********************************
स्वरचित
शिवेन्द्र सिंह चौहान"सरल"
ग्वालियर मध्यप्रदेश
दिनांक - 15/9/2019
विषय - गाँव
विधा - कुण्डलिया
( 1 )
गाँवों की गलियाँ सभी,पीपल की वो छाँव।
दिन भर सारे खेलते, दौड़े नंगे पाँव।।
दौड़े नंगे पाँव, पेड़ पर झूला झूले।
दादी की वो बात, नहीं बचपन को भूले।।
कहता कवि बलबीर,अमीरी थी भावों की।
सबके दिल में प्यार,मधुर बोली गाँवों की।।
( 2 )
अपना सुन्दर गाँव था, आती जिसकी याद।
आने का मौका मिला, बड़े दिनों के बाद।।
बड़े दिनों के बाद, लगा था सूना पनघट।
पीपल खड़ा उदास,न लोगों का वो जमघट।।
घंटी की झंकार, लगे अब केवल सपना।
दूध दही का खान, याद मुझे गाँव अपना।।
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
नमन मंच🙏
१५/९/२०१९
विधा-कुंडलीविषय-हिंदी
*************
निज भाषा उन्नति अहै,
सब उन्नति को मूल
बिन हिंदी भाषा-ज्ञान के
कहीं न हम कबूल
कहीं न हम कबूल,अपनाएं हिंदी भाषा
बढ़ेगा मान जग में ,न होगी कभी निराशा
कहत वंदना भोली हिंदी हमारी मातृभाषा
राष्ट्रभाषा बन जाए सबकी है अभिलाषा।।
***
अंग्रेजी के दरबार में हिंदी आँसू रोती
सौतेले व्यवहार से सुध बुध अपनी खोती
सुध बुध अपनी खोती मगर धैर्य न खोती
इंग्लिश में गिटपिट करे,बच्चे बूढ़े नाती पोती
कहत वंदना सयानी समय पर चेत जाइए
निज भाषा में व्यवहार करें,दिल से इसे अपनाइए ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
*कुंडली लेखन में प्रथम प्रयास
१५/९/२०१९
विधा-कुंडलीविषय-हिंदी
*************
निज भाषा उन्नति अहै,
सब उन्नति को मूल
बिन हिंदी भाषा-ज्ञान के
कहीं न हम कबूल
कहीं न हम कबूल,अपनाएं हिंदी भाषा
बढ़ेगा मान जग में ,न होगी कभी निराशा
कहत वंदना भोली हिंदी हमारी मातृभाषा
राष्ट्रभाषा बन जाए सबकी है अभिलाषा।।
***
अंग्रेजी के दरबार में हिंदी आँसू रोती
सौतेले व्यवहार से सुध बुध अपनी खोती
सुध बुध अपनी खोती मगर धैर्य न खोती
इंग्लिश में गिटपिट करे,बच्चे बूढ़े नाती पोती
कहत वंदना सयानी समय पर चेत जाइए
निज भाषा में व्यवहार करें,दिल से इसे अपनाइए ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
*कुंडली लेखन में प्रथम प्रयास
नमन मंच
आयोजन - कुण्डलिया लेखन
दिनाँक - 15/ 9/ 2019
💐 दो कुण्डलिया 💐
ऊँची चौकी हो, भले,
फीके हो पकवान।
मैं भी खोलूँगा नया,
साहित्यिक संस्थान।।
साहित्यिक संस्थान,
नाम दूँ हिन्दी सेवा।
चेले होंगे बीस,
बैठ खाऊँगा मेवा।।
लिया नहीं है हाथ,
कभी भी कागज कूँची।
करते सभी प्रणाम,
देख कर चौकी ऊँची।।
( 2 )
गली गली में अब खुलें,
शिक्षा के संस्थान।
गुरुकुल पद्धति भूल कर,
रखी विदेशी शान।।
रखी विदेशी शान,
दुखी है भारत माता।
पैसों की है लूट,
तोड़ शिक्षा से नाता।।
पला बढ़ा है स्वार्थ,
देश की चिन्ता है कब।
भ्रष्ट सभी संस्थान,
खुले गली गली में अब।।
✒ आलोक मिश्र 'मुकुन्द'
आयोजन - कुण्डलिया लेखन
दिनाँक - 15/ 9/ 2019
💐 दो कुण्डलिया 💐
ऊँची चौकी हो, भले,
फीके हो पकवान।
मैं भी खोलूँगा नया,
साहित्यिक संस्थान।।
साहित्यिक संस्थान,
नाम दूँ हिन्दी सेवा।
चेले होंगे बीस,
बैठ खाऊँगा मेवा।।
लिया नहीं है हाथ,
कभी भी कागज कूँची।
करते सभी प्रणाम,
देख कर चौकी ऊँची।।
( 2 )
गली गली में अब खुलें,
शिक्षा के संस्थान।
गुरुकुल पद्धति भूल कर,
रखी विदेशी शान।।
रखी विदेशी शान,
दुखी है भारत माता।
पैसों की है लूट,
तोड़ शिक्षा से नाता।।
पला बढ़ा है स्वार्थ,
देश की चिन्ता है कब।
भ्रष्ट सभी संस्थान,
खुले गली गली में अब।।
✒ आलोक मिश्र 'मुकुन्द'
नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
15-9-2019
विषय:-प्रेम
विधा :-कुण्डलिया
ढाई अक्षर प्रेम के , रखते दिव्य प्रकाश ।
प्रेम रश्मियाँ चमकती , भू मंडल आकाश ।।
भू मंडल आकाश , जहाँ भी रहते प्राणी ।
देख छलकता प्रेम , बोलते मीठी वाणी ।।
रंग प्रेम का लाल , रक्त बने रोशनाई ।
लिखें प्रेम के गीत , हृदय पर अक्षर ढाई ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
15-9-2019
विषय:-प्रेम
विधा :-कुण्डलिया
ढाई अक्षर प्रेम के , रखते दिव्य प्रकाश ।
प्रेम रश्मियाँ चमकती , भू मंडल आकाश ।।
भू मंडल आकाश , जहाँ भी रहते प्राणी ।
देख छलकता प्रेम , बोलते मीठी वाणी ।।
रंग प्रेम का लाल , रक्त बने रोशनाई ।
लिखें प्रेम के गीत , हृदय पर अक्षर ढाई ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
भावों के मोती
विषय-माया
विधा-कुंडली लेखन
==============
माया माया करते रह गए माया मिली न चैन
गले पड़ी हैं ये तृष्णाएं लेकर हाथ कटारी
पूरी करते इनको सब हम भूले दुनियादारी
तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन
मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं
एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय-माया
विधा-कुंडली लेखन
==============
माया माया करते रह गए माया मिली न चैन
गले पड़ी हैं ये तृष्णाएं लेकर हाथ कटारी
पूरी करते इनको सब हम भूले दुनियादारी
तृष्णा के भँवर में फसकर मन हो गया बैचेन
मन हो गया बैचेन,चैन अब कहां से पाएं
एक तृष्णा मिटी नहीं दूजी फिर जग जावे
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
नमन मंच
"भावों के मोती"
दिनांक :- 14/9/19.
विधा:- "कुण्ड़ली"
1.
लौटा दे फिर से मेरे, बचपन के दिन चार।
पिताश्री की झिड़कियां,मां का स्नेह दुलार।
मां का स्नेह दुलार, भरूँ फिर से किलकारी।
जी लूं फिर एक बार सपन की खोल पिटारी।
कहे 'तरुण' कविराय, ईश सब पीड़ मिटा दे।
भोगूँ सब रस - रंग, फेर बचपन लौटा दे।
2.
पाना चाहो गर खुशी, परहित करो अनेक।
सच्ची राखो भावना, सरल राह बस एक।
सरल राह बस एक सकल दुख मिटते पल में।
दिल में हो उल्लास,कमी नहीं आत्मबल में।
कहे 'तरुण' कविराय, भेद ये हमने जाना।
मन पर कसो नकेल, सरल है खुशियां पाना।
"भावों के मोती"
दिनांक :- 14/9/19.
विधा:- "कुण्ड़ली"
1.
लौटा दे फिर से मेरे, बचपन के दिन चार।
पिताश्री की झिड़कियां,मां का स्नेह दुलार।
मां का स्नेह दुलार, भरूँ फिर से किलकारी।
जी लूं फिर एक बार सपन की खोल पिटारी।
कहे 'तरुण' कविराय, ईश सब पीड़ मिटा दे।
भोगूँ सब रस - रंग, फेर बचपन लौटा दे।
2.
पाना चाहो गर खुशी, परहित करो अनेक।
सच्ची राखो भावना, सरल राह बस एक।
सरल राह बस एक सकल दुख मिटते पल में।
दिल में हो उल्लास,कमी नहीं आत्मबल में।
कहे 'तरुण' कविराय, भेद ये हमने जाना।
मन पर कसो नकेल, सरल है खुशियां पाना।
नमन मंच भावों के मोती
15/09/19
विधा - छंद मुक्त
बाबा भोलेनाथ
""""""'""""""""""""""""""""
बहुत भोला है वह विकराल है
वह त्रिशूलधारी महाकाल हैं
जिसने कण्ठों से विषपान किया
गंगा को जटाओं में धारण किया
वो देवों देव महादेव है
त्रिनेत्रधारी त्रिपुरारी हैं
पिशाचों ने भी जिसको अपना प्रभु माना है
मृगछाल ओढ़े बैरागी हैं
सर्प गले में सृंगार जिनके सोहे
बाबा भोलेनाथ सृजनकर्ता भी महान है
वो संहारकारी भी है जग के
जिसका तांडव प्रलयकारी है
वो निराकार भी है वही ओंकार भी है
वह त्रिनेत्रधारी महाकाल है
सब प्रेम से बोलो हर हर महादेव शिव शंकर।
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित एवं मौलिक
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
15/09/19
विधा - छंद मुक्त
बाबा भोलेनाथ
""""""'""""""""""""""""""""
बहुत भोला है वह विकराल है
वह त्रिशूलधारी महाकाल हैं
जिसने कण्ठों से विषपान किया
गंगा को जटाओं में धारण किया
वो देवों देव महादेव है
त्रिनेत्रधारी त्रिपुरारी हैं
पिशाचों ने भी जिसको अपना प्रभु माना है
मृगछाल ओढ़े बैरागी हैं
सर्प गले में सृंगार जिनके सोहे
बाबा भोलेनाथ सृजनकर्ता भी महान है
वो संहारकारी भी है जग के
जिसका तांडव प्रलयकारी है
वो निराकार भी है वही ओंकार भी है
वह त्रिनेत्रधारी महाकाल है
सब प्रेम से बोलो हर हर महादेव शिव शंकर।
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित एवं मौलिक
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
मंच भावो के मोती
हिंदी दिवस की शुभ कामनायें
विषय :-हिंदी ।विधा:/छंदमुक्त रचना
हिंदी हमारी भाषा
जीवन की है परिभाषा
जो जन्म से मिली है
कहलाती है मातृभाषा ।
आजाओ नमन करे
परकरके आचमन हम
वह वंदनीय माता
चरणों में हैं प्रणत हम ।
जन की बोलियो में
उसका ही निवास रहता
शहर छोड़ गांव में
उसका हीआग़ाज रहता।
चिंतनीय वह नही है
चिंतन विषय राष्ट्र कीभाषा
जिसकी नअपनी भाषा
उसकी होगी क्या परिभाषा।
इक बार कठघरे में
फिर राष्ट्र हीआ खड़ा है
वैश्विक बाजारवाद में
अब आगई है हिंदी
अपने स्वयं विस्तार को
आज पागई है हिंदी ।
राष्ट्र से भी ऊपर स्वतः
पहुँच गई है हिंदी
वह थी हमारी अबतक
अब सबकी होगई ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
हिंदी दिवस की शुभ कामनायें
विषय :-हिंदी ।विधा:/छंदमुक्त रचना
हिंदी हमारी भाषा
जीवन की है परिभाषा
जो जन्म से मिली है
कहलाती है मातृभाषा ।
आजाओ नमन करे
परकरके आचमन हम
वह वंदनीय माता
चरणों में हैं प्रणत हम ।
जन की बोलियो में
उसका ही निवास रहता
शहर छोड़ गांव में
उसका हीआग़ाज रहता।
चिंतनीय वह नही है
चिंतन विषय राष्ट्र कीभाषा
जिसकी नअपनी भाषा
उसकी होगी क्या परिभाषा।
इक बार कठघरे में
फिर राष्ट्र हीआ खड़ा है
वैश्विक बाजारवाद में
अब आगई है हिंदी
अपने स्वयं विस्तार को
आज पागई है हिंदी ।
राष्ट्र से भी ऊपर स्वतः
पहुँच गई है हिंदी
वह थी हमारी अबतक
अब सबकी होगई ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
भावों के मोती
विषय-नादान ज़िंदगी
विधा-काव्य लेखन
________________
नादान ज़िंदगी
उलझी रही तेरा-मेरा में
धीरे-से उमर सरक गई
समय की गाड़ी में बैठ
ज़िंदगी में की नादानियाँ
अब क्यों पछ्ताए समय बीते
अपने दिल की सुन न पाए
अंत समय हाथ जाएंगे रीते
मौज-मस्ती करने में अपना
बिता दिया वर्तमान सुनहरा
अपने कल की फ़िक्र न कर
भविष्य को किया अंधेरा
तब तो की खूब नादानियाँ
अब किस बात से घबराना
यह राह जो तुमने चुनी
उस राह पर अकेले चलते जाना
अब न अपने काम आएंगे
ना ही साथी काम आएंगे
ज़िंदगी की तकलीफों के अब
हम ही सवारी और सारथी कहलाएंगे
_अनुराधा चौहान_स्वरचित
विषय-नादान ज़िंदगी
विधा-काव्य लेखन
________________
नादान ज़िंदगी
उलझी रही तेरा-मेरा में
धीरे-से उमर सरक गई
समय की गाड़ी में बैठ
ज़िंदगी में की नादानियाँ
अब क्यों पछ्ताए समय बीते
अपने दिल की सुन न पाए
अंत समय हाथ जाएंगे रीते
मौज-मस्ती करने में अपना
बिता दिया वर्तमान सुनहरा
अपने कल की फ़िक्र न कर
भविष्य को किया अंधेरा
तब तो की खूब नादानियाँ
अब किस बात से घबराना
यह राह जो तुमने चुनी
उस राह पर अकेले चलते जाना
अब न अपने काम आएंगे
ना ही साथी काम आएंगे
ज़िंदगी की तकलीफों के अब
हम ही सवारी और सारथी कहलाएंगे
_अनुराधा चौहान_स्वरचित
नमन-भावो के मोती
दिनांक-15/09/2019
विधा- छंद मुक्त काव्य लेखन
शब्द चुनर है, हिंदी का मेरे धानी
नस में हिंदी, रग में बड़ी सुहानी
ध्वज लहराता आजादी के भारत का
सौंधी मिट्टी की खुशबू है प्रेम दीवानी ।
दीप जले चँहुअओर ,घोर अंधेरा
हिंदी के रथ को क्यों दीमक ने ही घेरा।।
मातृभाषा आज मेरी वनवास काट रही
फ्रेंच पश्चिमी भाषा कर रही सहवास
दीप जले हिंदी का फैले चारो ओर
अजोरा
हिंदी कहती अपनी गाथा.....
कलम का सीना स्याही की माथा
मैं तो हूं एक दिन की दुल्हन
दिवस है वह 14 सितंबर
हाथों की लेखनी में अनंत प्रजनन
कौन करेगा मेरा दर्द स्याही से प्रथम चुंबन
प्यासे कवि करें अनंत दर्शन........
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक-15/09/2019
विधा- छंद मुक्त काव्य लेखन
शब्द चुनर है, हिंदी का मेरे धानी
नस में हिंदी, रग में बड़ी सुहानी
ध्वज लहराता आजादी के भारत का
सौंधी मिट्टी की खुशबू है प्रेम दीवानी ।
दीप जले चँहुअओर ,घोर अंधेरा
हिंदी के रथ को क्यों दीमक ने ही घेरा।।
मातृभाषा आज मेरी वनवास काट रही
फ्रेंच पश्चिमी भाषा कर रही सहवास
दीप जले हिंदी का फैले चारो ओर
अजोरा
हिंदी कहती अपनी गाथा.....
कलम का सीना स्याही की माथा
मैं तो हूं एक दिन की दुल्हन
दिवस है वह 14 सितंबर
हाथों की लेखनी में अनंत प्रजनन
कौन करेगा मेरा दर्द स्याही से प्रथम चुंबन
प्यासे कवि करें अनंत दर्शन........
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
हिंदी पर छंदमुक्त काव्य लेखन
नमन मंच भावों के मोती।
जब भी अपना मुंह खोलो।
हिंदी में हीं कुछ ना कुछ बोलो।
हिंदी हमारा अभिमान है।
हिंदी में वसती हमारी जान है।
हिंदी में सब कार्य करना।
हिंदी में हीं सबकुछ लिखना।
हिंदी से मिलती हमारी पहचान है।
इसलिए बोली तुम हिंदी में हीं बोलो।
जब भी अपना मुंह खोलो।
हिंदी में हीं कुछ ना कुछ बोलो।
हिंदी हमारी मातृभाषा।
हिन्दुस्तान के जन,जन की भाषा।
कद्र करो सदा इसकी।
बची रहे मातृभाषा हिंदी।
हिंदी से हमारी पुरानी पहचान है।
बच्चों को भी कहो कि हिन्दी में बोलो।
जब भी अपना मुंह खोलो।
हिंदी में हीं कुछ ना कुछ बोलो।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती।
जब भी अपना मुंह खोलो।
हिंदी में हीं कुछ ना कुछ बोलो।
हिंदी हमारा अभिमान है।
हिंदी में वसती हमारी जान है।
हिंदी में सब कार्य करना।
हिंदी में हीं सबकुछ लिखना।
हिंदी से मिलती हमारी पहचान है।
इसलिए बोली तुम हिंदी में हीं बोलो।
जब भी अपना मुंह खोलो।
हिंदी में हीं कुछ ना कुछ बोलो।
हिंदी हमारी मातृभाषा।
हिन्दुस्तान के जन,जन की भाषा।
कद्र करो सदा इसकी।
बची रहे मातृभाषा हिंदी।
हिंदी से हमारी पुरानी पहचान है।
बच्चों को भी कहो कि हिन्दी में बोलो।
जब भी अपना मुंह खोलो।
हिंदी में हीं कुछ ना कुछ बोलो।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन भावों के मोती
विद्या-छंद मुक्त
हमारे मिलने की वजह एक कार थी,
जो मुझे बिल्कुल नहीं स्वीकार थी।
फिर भी कार ने हमें पति पत्नी बनाया,
कारण पिता की जीद ये परिवार थी।
दहेज का दानव पिता को डरा नहीं पाया,
मैं सब कुछ जानते हुए भी लाचार थी।
सोचा शायद कार ले तुम इंसान बनो,
पर दहेज लालसा तुम जीवन आधार थी।
आज दहेज परीक्षा देते देते मैं थक गई,
अब अग्नि परीक्षा ही मेरा आधार थी।
इसलिए तुम्हारे आँगन ही हवन कुंड में,
तन के अग्नी स्नान को मैं लाचार थी।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
विद्या-छंद मुक्त
हमारे मिलने की वजह एक कार थी,
जो मुझे बिल्कुल नहीं स्वीकार थी।
फिर भी कार ने हमें पति पत्नी बनाया,
कारण पिता की जीद ये परिवार थी।
दहेज का दानव पिता को डरा नहीं पाया,
मैं सब कुछ जानते हुए भी लाचार थी।
सोचा शायद कार ले तुम इंसान बनो,
पर दहेज लालसा तुम जीवन आधार थी।
आज दहेज परीक्षा देते देते मैं थक गई,
अब अग्नि परीक्षा ही मेरा आधार थी।
इसलिए तुम्हारे आँगन ही हवन कुंड में,
तन के अग्नी स्नान को मैं लाचार थी।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
मन मंच भावों के मोती
15/9/2019
विधा-छंद मुक्त
===========
*साइलेंट मोड*
खामोशियाँ
जब बात करती हैं
तब उनमें
मोहब्बत छुपी होती है
तब कुछ बातें अक्सर
अनकही सी भी होती हैं
कभी कभी
खामोशियाँ बहुत भाती हैं
कभी ये गुदगुदाती हैं
कभी हँसाती हैं
मगर जब रिश्ते खामोश
होने लगते हैं
तब यही खामोशियाँ
रुला जाती हैं
आज रिश्तों में
खामोशी पसरने लगी है
अजब सी वीरानी
पनपने लगी है
आज रिश्ते साइलेंट मोड
पर जा रहे हैं
रिश्ते अपना चार्म
खोते जा रहे हैं
इसके अनेक कारण हैं
गर कारण हैं तो निवारण भी हैं
आज की व्यस्त
जीवन शैली
धक्कम मुक्का पेली
समय की कमी
कार्य की अधिकता
या यूं कहें
कि अत्याधुनिकता
सोशल मीडिया पर निर्भरता
अजनबी रिश्तों की उत्सुकता
संभल जाएं जनाब
कहीं ये गले का
फंदा न बन जाए
तो ...पहले तो
सोशल मीडिया से जुड़े
हर पहलू के
कुछ अहम नियम बनाएं..
अपने रिश्तों में
प्यार के मीठे बोलों से
गर्माहट लाएं
खामोशी की आहट पहचाने
रिश्ते ज़रूरी हैं ये जाने
रिश्तों की कितनी
अहमियत है
आपकी ज़िंदगी में
ये महसूस कराएं
रिश्तों संग कीमती
समय बिताएं
दिल से जुड़ें
न कि सिर्फ नेट से
दूर हो जाइए
साइलेंट मोड से..!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
15/9/2019
विधा-छंद मुक्त
===========
*साइलेंट मोड*
खामोशियाँ
जब बात करती हैं
तब उनमें
मोहब्बत छुपी होती है
तब कुछ बातें अक्सर
अनकही सी भी होती हैं
कभी कभी
खामोशियाँ बहुत भाती हैं
कभी ये गुदगुदाती हैं
कभी हँसाती हैं
मगर जब रिश्ते खामोश
होने लगते हैं
तब यही खामोशियाँ
रुला जाती हैं
आज रिश्तों में
खामोशी पसरने लगी है
अजब सी वीरानी
पनपने लगी है
आज रिश्ते साइलेंट मोड
पर जा रहे हैं
रिश्ते अपना चार्म
खोते जा रहे हैं
इसके अनेक कारण हैं
गर कारण हैं तो निवारण भी हैं
आज की व्यस्त
जीवन शैली
धक्कम मुक्का पेली
समय की कमी
कार्य की अधिकता
या यूं कहें
कि अत्याधुनिकता
सोशल मीडिया पर निर्भरता
अजनबी रिश्तों की उत्सुकता
संभल जाएं जनाब
कहीं ये गले का
फंदा न बन जाए
तो ...पहले तो
सोशल मीडिया से जुड़े
हर पहलू के
कुछ अहम नियम बनाएं..
अपने रिश्तों में
प्यार के मीठे बोलों से
गर्माहट लाएं
खामोशी की आहट पहचाने
रिश्ते ज़रूरी हैं ये जाने
रिश्तों की कितनी
अहमियत है
आपकी ज़िंदगी में
ये महसूस कराएं
रिश्तों संग कीमती
समय बिताएं
दिल से जुड़ें
न कि सिर्फ नेट से
दूर हो जाइए
साइलेंट मोड से..!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
नमन "भावों के मोती"
15/09/2019
छंदमुक्त काव्य रचना
################
आज सूना है जीवन
खाली-खाली मन...
था कभी नाचता शैशव
वो उछलना कूदना.....
मेरी टहनियों में झूलना,
हँसी ठहाके, वो बालमन
कहाँ है वो जीवन........
वो मासूमियत........
उनके बीच ...ढूँढ लेता था
अपना लड़कपन ......।
उषा की किरणों संग..
पक्षियों का कलरव..
माँ को विदा करते चूजे
घोसले में चीं चीं कर चहकते
साँझ होते ही......
आतुर निगाहों से झाँकना.
संतान की क्षुधा तृप्त कर..
शांत स्थिर निशा की गोद में
देख संतुष्ट मातृत्व.......
अपने अस्तीत्व पर गर्व करता
कहाँ है वो पथिक.....
दिनभर की थकान लिए
मेरी छत्रछाया में ......
कर लेते थोड़ी देर विश्राम
दिखता न अब उनका ...
नामोनिशान.......
फिर शुरु होता ....
मंजिल तक का सफर..
जीना मेरा धन्य हो जाता।
क्यों आज ...हो रही मेरी
परिहास......
हैं बस उस जिंदगी की तलाश
जल रहा मैं......और मेरा..
अस्तित्व........
कुछ दिन का अब रहा ..
मेहमान.....
"""""""मैं बूढ़ा बरगद"""""""
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
15/09/2019
छंदमुक्त काव्य रचना
################
आज सूना है जीवन
खाली-खाली मन...
था कभी नाचता शैशव
वो उछलना कूदना.....
मेरी टहनियों में झूलना,
हँसी ठहाके, वो बालमन
कहाँ है वो जीवन........
वो मासूमियत........
उनके बीच ...ढूँढ लेता था
अपना लड़कपन ......।
उषा की किरणों संग..
पक्षियों का कलरव..
माँ को विदा करते चूजे
घोसले में चीं चीं कर चहकते
साँझ होते ही......
आतुर निगाहों से झाँकना.
संतान की क्षुधा तृप्त कर..
शांत स्थिर निशा की गोद में
देख संतुष्ट मातृत्व.......
अपने अस्तीत्व पर गर्व करता
कहाँ है वो पथिक.....
दिनभर की थकान लिए
मेरी छत्रछाया में ......
कर लेते थोड़ी देर विश्राम
दिखता न अब उनका ...
नामोनिशान.......
फिर शुरु होता ....
मंजिल तक का सफर..
जीना मेरा धन्य हो जाता।
क्यों आज ...हो रही मेरी
परिहास......
हैं बस उस जिंदगी की तलाश
जल रहा मैं......और मेरा..
अस्तित्व........
कुछ दिन का अब रहा ..
मेहमान.....
"""""""मैं बूढ़ा बरगद"""""""
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
नमन मंच
15.9.2019
रविवार
छंदमुक्त रचना
मैं
कौन हूँ मैं
कोई बताए
कवि, लेखक
या कि मैं
कोई श्रमिक हूँ
प्रात से
नित रात तक
संलग्न रहती
श्रम हूँ करती
एक पल
अपने लिए
अब तक न पाया
हर घड़ी
छीना समय को
अपना बनाया ।
ज़िन्दगी है जंग
हम सब
एक सैनिक
लड़ रहे
अपने ही रण को
जीत की
ख़ुशियाँ मनाते
हार पर
कुछ रंज खाते
लिख रहे
अपनी कहानी
ख़ुशनुमाँ सी
ज़िन्दगानी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
15.9.2019
रविवार
छंदमुक्त रचना
मैं
कौन हूँ मैं
कोई बताए
कवि, लेखक
या कि मैं
कोई श्रमिक हूँ
प्रात से
नित रात तक
संलग्न रहती
श्रम हूँ करती
एक पल
अपने लिए
अब तक न पाया
हर घड़ी
छीना समय को
अपना बनाया ।
ज़िन्दगी है जंग
हम सब
एक सैनिक
लड़ रहे
अपने ही रण को
जीत की
ख़ुशियाँ मनाते
हार पर
कुछ रंज खाते
लिख रहे
अपनी कहानी
ख़ुशनुमाँ सी
ज़िन्दगानी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
नमन मंच
दिनांक १५/९/२०१९
छंदमुक्त कविता
झरते पात
कहते यही
चिरस्थाई,
मैं या तू नहीं
कल मेरी भी साख थी,
आज नहीं कोई पहचान,
सभी खेलते अपनी पारी
प्रकृति का नियम सबको नचाता
जहाँ कल मैं था ,आज कोई और है
और कल कोई और होगा।
प्रकृति न्यायप्रिय है।
सबको मौका देती है
मौके का लाभ उठाओ
और अपनी मंजिल पाओ।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक १५/९/२०१९
छंदमुक्त कविता
झरते पात
कहते यही
चिरस्थाई,
मैं या तू नहीं
कल मेरी भी साख थी,
आज नहीं कोई पहचान,
सभी खेलते अपनी पारी
प्रकृति का नियम सबको नचाता
जहाँ कल मैं था ,आज कोई और है
और कल कोई और होगा।
प्रकृति न्यायप्रिय है।
सबको मौका देती है
मौके का लाभ उठाओ
और अपनी मंजिल पाओ।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
नमन
भावों के मोती
१५/९/२०१९
विषय-हिंदी
विधा-छंदमुक्त
हिंदी हमारी है मातृभाषा,
है विस्तृत भू-भाग की भाषा।
अनेक हैं उपभाषाएं इसकी,
बड़ा विस्तृत परिवार है इसका।
साहित्य-संस्कृति का मूल है ये,
सब भाषाओं के शब्दों को अपनाती।
नये प्रतिमान ये गढ़ती जाती।
बड़ा विशाल शब्द-कोश है इसका,
इतना सम्पन्न और है किसका।
जनसंपर्क की भाषा न्यारी,
अति मधुर श्रवण सुखकारी।
वैज्ञानिक शब्दावली से है संपन्न,
राजकाज की भाषा गई बन।
लिपि इसकी कहलाती देवनागरी
सुंदर सुकुमारी है ये रस की गागरी।
किसी भाषा से नहीं बैर इसका,
सहोदर सम रखती ध्यान सबका।
अखिल विश्व करे सम्मान इसका,
कई देशों में प्रथम स्थान इसका।
फिर भी न बन पाई ये राष्ट्र की भाषा,
देख-देख अति होती है हताशा।
माना अंग्रेजी है आज की जरूरत,
पर हम कैसे हो गए इतने बैगेरत।
क्यों इसे बोलने में हैं शरमाते,
टूटी-फूटी अंग्रेजी बोल इतराते।
इसके बिना बोलो क्या पहचान है अपनी,
यही हमारी साहित्य- संस्कृति की जननी।
जननी का हम अपमान करें क्यों?
इसको अपनाने में संकोच करें क्यों?
आओ मिल अभियान चलाएं
हिंदी को राष्ट्रभाषा का पद दिलवाएं।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
भावों के मोती
१५/९/२०१९
विषय-हिंदी
विधा-छंदमुक्त
हिंदी हमारी है मातृभाषा,
है विस्तृत भू-भाग की भाषा।
अनेक हैं उपभाषाएं इसकी,
बड़ा विस्तृत परिवार है इसका।
साहित्य-संस्कृति का मूल है ये,
सब भाषाओं के शब्दों को अपनाती।
नये प्रतिमान ये गढ़ती जाती।
बड़ा विशाल शब्द-कोश है इसका,
इतना सम्पन्न और है किसका।
जनसंपर्क की भाषा न्यारी,
अति मधुर श्रवण सुखकारी।
वैज्ञानिक शब्दावली से है संपन्न,
राजकाज की भाषा गई बन।
लिपि इसकी कहलाती देवनागरी
सुंदर सुकुमारी है ये रस की गागरी।
किसी भाषा से नहीं बैर इसका,
सहोदर सम रखती ध्यान सबका।
अखिल विश्व करे सम्मान इसका,
कई देशों में प्रथम स्थान इसका।
फिर भी न बन पाई ये राष्ट्र की भाषा,
देख-देख अति होती है हताशा।
माना अंग्रेजी है आज की जरूरत,
पर हम कैसे हो गए इतने बैगेरत।
क्यों इसे बोलने में हैं शरमाते,
टूटी-फूटी अंग्रेजी बोल इतराते।
इसके बिना बोलो क्या पहचान है अपनी,
यही हमारी साहित्य- संस्कृति की जननी।
जननी का हम अपमान करें क्यों?
इसको अपनाने में संकोच करें क्यों?
आओ मिल अभियान चलाएं
हिंदी को राष्ट्रभाषा का पद दिलवाएं।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
नमन🙏भावों के मोती🙏 दिनांक 15 -9-2019
विधा-छंद मुक्त काव्यबिंदी का तू, महत्व समझ।
मान तेरा ,हिंदी बढ़ाय ।।
जो तू बिंदी ,भूल गया
अर्थ अनर्थ हो जाय।।
हिंदी बिंदी, बहू जरूरी।
शब्दों में,चार चांद लगाय।।
जैसे ललाट, स्त्री सजी ।
सुहागन, वह कहलाय।।
बिंदी हिंदी, जो नहीं।
कही न, स्थान पाए।।
शक्कर पर, बिंदी लगे।
तो वह, शंकर कहलाय।।
बिंदी से ही, तो बना।
हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ।।
जन्म लिया, इस धरा।
फूला में न समाय।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विधा-छंद मुक्त काव्यबिंदी का तू, महत्व समझ।
मान तेरा ,हिंदी बढ़ाय ।।
जो तू बिंदी ,भूल गया
अर्थ अनर्थ हो जाय।।
हिंदी बिंदी, बहू जरूरी।
शब्दों में,चार चांद लगाय।।
जैसे ललाट, स्त्री सजी ।
सुहागन, वह कहलाय।।
बिंदी हिंदी, जो नहीं।
कही न, स्थान पाए।।
शक्कर पर, बिंदी लगे।
तो वह, शंकर कहलाय।।
बिंदी से ही, तो बना।
हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ।।
जन्म लिया, इस धरा।
फूला में न समाय।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
जिंदगी !
एक ऐसी किताब-
जो कभी भी,
पूरी पढ़ी नहीं जाती ।
हाशिये पर लिखे
सुख और दुख संग
उमर के हस्ताक्षरित
सारे पन्ने फड़फड़ाते।
आमंत्रित करती
साँसों की रेखाएं
गुजरते वक्त के साथ
अक्षर -अक्षर करने
अध्ययन।
असंभव है!
इस किताब को बाँचना
क्योंकि।
गवाही देता वक्त
छोड़ देता है साथ।
अधूरी अपठित,
रह जाती है किताब।
कौन पढ़ पाया इसे?
सभी के हाथ होती है
अबूझ पहेली बन
किताब।।
हाँ कुछ गिने चुने
प्रज्ञा प्रवर लोग
करते हैं प्रयास
पढ़ने और पढ़ाने की
पर,
हो जातें हैं,
शब्द धूमिल -
बदल जाते हैं अर्थ!
किताबें
अनेक रूप धर
खो देते हैं
अपना वास्तविक
स्वरूप ।।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
एक ऐसी किताब-
जो कभी भी,
पूरी पढ़ी नहीं जाती ।
हाशिये पर लिखे
सुख और दुख संग
उमर के हस्ताक्षरित
सारे पन्ने फड़फड़ाते।
आमंत्रित करती
साँसों की रेखाएं
गुजरते वक्त के साथ
अक्षर -अक्षर करने
अध्ययन।
असंभव है!
इस किताब को बाँचना
क्योंकि।
गवाही देता वक्त
छोड़ देता है साथ।
अधूरी अपठित,
रह जाती है किताब।
कौन पढ़ पाया इसे?
सभी के हाथ होती है
अबूझ पहेली बन
किताब।।
हाँ कुछ गिने चुने
प्रज्ञा प्रवर लोग
करते हैं प्रयास
पढ़ने और पढ़ाने की
पर,
हो जातें हैं,
शब्द धूमिल -
बदल जाते हैं अर्थ!
किताबें
अनेक रूप धर
खो देते हैं
अपना वास्तविक
स्वरूप ।।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
दिनांक -15-9-2019
स्वरचित छंदमुक्त कविता
विषय-" हिंदी है अपनी पहचान"
शैशव में
हिले अधर
बोल अस्फुट
फूटे दंतमध्य
'मां' 'पा-पा' 'मम' 'हप्पा'
ता- ता बा-बा दा-दू दा-दी
चहका आंगन
महक उठा मन
मीठी हिंदी
तुझको नमन!
भारत की माटी
पावन चंदन
जन्मे हम इसपर
लेकर ये तन
थिरक उठे अंग
भाषा के संग
सुर-सज्जित लोरी
मोहक से गीत
कथा-किस्से ढेरों
हिंदी से प्रीत
भाषा में रमण
हिंदी तुझको नमन!
सरल,सरस,प्यारी
जन जन से यारी
बहुल विधाएं
जग को भी भाएं
सीखें,जानें,समझें
अटर पटर बोलें
मोहित हो हर क्षण
पटरानी हिंदी है
हिंद की सुखन
तुझको नमन!
---------
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
स्वरचित छंदमुक्त कविता
विषय-" हिंदी है अपनी पहचान"
शैशव में
हिले अधर
बोल अस्फुट
फूटे दंतमध्य
'मां' 'पा-पा' 'मम' 'हप्पा'
ता- ता बा-बा दा-दू दा-दी
चहका आंगन
महक उठा मन
मीठी हिंदी
तुझको नमन!
भारत की माटी
पावन चंदन
जन्मे हम इसपर
लेकर ये तन
थिरक उठे अंग
भाषा के संग
सुर-सज्जित लोरी
मोहक से गीत
कथा-किस्से ढेरों
हिंदी से प्रीत
भाषा में रमण
हिंदी तुझको नमन!
सरल,सरस,प्यारी
जन जन से यारी
बहुल विधाएं
जग को भी भाएं
सीखें,जानें,समझें
अटर पटर बोलें
मोहित हो हर क्षण
पटरानी हिंदी है
हिंद की सुखन
तुझको नमन!
---------
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
नमन मंच
विषय:--हिंदी
विधा:--मुक्त
दिनांक:--15 / 09 /19
€€€€€€€€€€€€€€€
युगयुगांतर से हिंदी का
सफर जारी है
बहती नदियों से इसका
प्रवाह जारी है
श्लोक-मंत्रोच्चार की
ध्वनि की गूँज
देववाणी की दरवेशी
भाषा सब पर है भारी
सिद्ध,नाथों,जैन,बौद्धो
सबके हृदय की
नानक,कबीर जायसी की
निराकार वाणी है
तुलसी की मर्यादा का
पहने वसन
मीरां के प्रिय,सूर के
नटखट बाल है हिंदी
केशव ,बिहारी के श्रृंगार
से सज्जित
गागर में सागर भरती है
बनकर पीर घनानंद की
भावभूमि पर बरसती है
पंत,प्रसाद,निराला के संग
प्रकृति को जीवन देती है
महादेवी के आँसूओं में
पीर भरी बदली बनती है
नागार्जुन बाबा की लडै़ती
लाडली है
मुक्तिबोध ,केदार,रणजीत की
व्यंग में छिपी करुणा की
गुप्त गंगा है हिंदी भाषा
माखन की पुष्प की नाजुक अभिलाषा बन आई
कभी प्रेमचंद की कर्मभूमि से गुजर किसानों,मजदूरों की
आवाज बनी हिंदी भाषा
अज्ञेय के यज्ञ में जब प्रयोग
हुआ भाषा का
तारसप्तक के सात सात सितारों में चमकी ये भाषा
यूं छंद-शब्दों में ढलती-ढलती
अर्थ को अलंकारिक कर रही
सदियों से जग-जन की धारा
में बहती देववाणी बन हर युग की सरताज बनी है हिंदी।
डा.नीलम
विषय:--हिंदी
विधा:--मुक्त
दिनांक:--15 / 09 /19
€€€€€€€€€€€€€€€
युगयुगांतर से हिंदी का
सफर जारी है
बहती नदियों से इसका
प्रवाह जारी है
श्लोक-मंत्रोच्चार की
ध्वनि की गूँज
देववाणी की दरवेशी
भाषा सब पर है भारी
सिद्ध,नाथों,जैन,बौद्धो
सबके हृदय की
नानक,कबीर जायसी की
निराकार वाणी है
तुलसी की मर्यादा का
पहने वसन
मीरां के प्रिय,सूर के
नटखट बाल है हिंदी
केशव ,बिहारी के श्रृंगार
से सज्जित
गागर में सागर भरती है
बनकर पीर घनानंद की
भावभूमि पर बरसती है
पंत,प्रसाद,निराला के संग
प्रकृति को जीवन देती है
महादेवी के आँसूओं में
पीर भरी बदली बनती है
नागार्जुन बाबा की लडै़ती
लाडली है
मुक्तिबोध ,केदार,रणजीत की
व्यंग में छिपी करुणा की
गुप्त गंगा है हिंदी भाषा
माखन की पुष्प की नाजुक अभिलाषा बन आई
कभी प्रेमचंद की कर्मभूमि से गुजर किसानों,मजदूरों की
आवाज बनी हिंदी भाषा
अज्ञेय के यज्ञ में जब प्रयोग
हुआ भाषा का
तारसप्तक के सात सात सितारों में चमकी ये भाषा
यूं छंद-शब्दों में ढलती-ढलती
अर्थ को अलंकारिक कर रही
सदियों से जग-जन की धारा
में बहती देववाणी बन हर युग की सरताज बनी है हिंदी।
डा.नीलम
दिनांक -15-9-2019
स्वरचित छंदमुक्त कविता
विषय-" हिंदी है अपनी पहचान"
शैशव में
हिले अधर
बोल अस्फुट
फूटे दंतमध्य
'मां' 'पा-पा' 'मम' 'हप्पा'
ता- ता बा-बा दा-दू दा-दी
चहका आंगन
महक उठा मन
मीठी हिंदी
तुझको नमन!
भारत की माटी
पावन चंदन
जन्मे हम इसपर
लेकर ये तन
थिरक उठे अंग
भाषा के संग
सुर-सज्जित लोरी
मोहक से गीत
कथा-किस्से ढेरों
हिंदी से प्रीत
भाषा में रमण
हिंदी को नमन!
सरल,सरस,प्यारी
जन जन से यारी
बहुल विधाएं
जग को भी भाएं
सीखें,जानें,समझें
अटर पटर बोलें
मोहित हो हर क्षण
पटरानी हिंदी है
हिंद की सुखन
इसको नमन!
---------
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
स्वरचित छंदमुक्त कविता
विषय-" हिंदी है अपनी पहचान"
शैशव में
हिले अधर
बोल अस्फुट
फूटे दंतमध्य
'मां' 'पा-पा' 'मम' 'हप्पा'
ता- ता बा-बा दा-दू दा-दी
चहका आंगन
महक उठा मन
मीठी हिंदी
तुझको नमन!
भारत की माटी
पावन चंदन
जन्मे हम इसपर
लेकर ये तन
थिरक उठे अंग
भाषा के संग
सुर-सज्जित लोरी
मोहक से गीत
कथा-किस्से ढेरों
हिंदी से प्रीत
भाषा में रमण
हिंदी को नमन!
सरल,सरस,प्यारी
जन जन से यारी
बहुल विधाएं
जग को भी भाएं
सीखें,जानें,समझें
अटर पटर बोलें
मोहित हो हर क्षण
पटरानी हिंदी है
हिंद की सुखन
इसको नमन!
---------
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
नमन मंच
विषय -हिंदी
विधा- छंद मुक्त
मैं हिंदी हूँ, शान तुम्हारी,
जन-जन में पहचान तुम्हारी।
पढ़कर मुझको होती है कवि,
दुनिया में जयकार तुम्हारी।।
डरती हूँ अपने लोगों में,
खो न जाऊँ आज कहीं मैं।
व्यथित बहुत है,मन मेरा पर,
तुमसे हूँ नाराज नहीं मैं।।
बढ़ चढ़कर आजादी की,
मैंने भी लड़ी लड़ाई थी।
जन को जागृत करने में,
अपनी भूमिका निभाई थी।।
तुलसी, सूर, कबीर ने मुझको,
दिया हमेशा मान बहुत।
पंत, निराला, दिनकर,
मुंशी जी पर है अभिमान बहुत।।
सरकारों से करूँ अपेक्षा,
करेंगी वो समृद्ध मुझे?
नहीं भरोसा इन पर मुझको,
देती हूँ यह काम तुझे।।
अब तक जिंदा रखा है तो,
आगे भी ऐसे ही रखना।
बनूँ राष्ट्रभाषा भारत की,
कुछ प्रयास ऐसा भी करना।।
रविशंकर विद्यार्थी
सिरसा मेजा प्रयागराज
विषय -हिंदी
विधा- छंद मुक्त
मैं हिंदी हूँ, शान तुम्हारी,
जन-जन में पहचान तुम्हारी।
पढ़कर मुझको होती है कवि,
दुनिया में जयकार तुम्हारी।।
डरती हूँ अपने लोगों में,
खो न जाऊँ आज कहीं मैं।
व्यथित बहुत है,मन मेरा पर,
तुमसे हूँ नाराज नहीं मैं।।
बढ़ चढ़कर आजादी की,
मैंने भी लड़ी लड़ाई थी।
जन को जागृत करने में,
अपनी भूमिका निभाई थी।।
तुलसी, सूर, कबीर ने मुझको,
दिया हमेशा मान बहुत।
पंत, निराला, दिनकर,
मुंशी जी पर है अभिमान बहुत।।
सरकारों से करूँ अपेक्षा,
करेंगी वो समृद्ध मुझे?
नहीं भरोसा इन पर मुझको,
देती हूँ यह काम तुझे।।
अब तक जिंदा रखा है तो,
आगे भी ऐसे ही रखना।
बनूँ राष्ट्रभाषा भारत की,
कुछ प्रयास ऐसा भी करना।।
रविशंकर विद्यार्थी
सिरसा मेजा प्रयागराज
नमन मंच भावों के मोती
आज के विविध कार्यक्रम के तहत
एक कविता----
हम हिन्द के हिंदी मेरी,चलो आज लेते संकल्प .
सभ्यता संस्कार है हिंदी अभिव्यक्ति का सार है हिंदी
बोल चाल अपनाएं हिंदी,करें हिंदी में सब काज !
भारत का इतिहास समाहित सकल देश की आस है हिंदी,
राष्ट्र की गाथा गाती हिंदी स्वाभिमान बढाती हिंदी !
गंगा हिंदी ,यमुना हिंदी,हिन्द महा सागर है हिंदी !
वेद ,ग्रन्थ पुराण है हिंदी,रामायण ,गीता है हिंदी !
राष्ट्र की है अनमोल धरोहर,भाषाओं की जान है हिंदी !
गौरव गाथा गान है हिंदी,भारत का अभिमान है हिंदी !
एकता की पहचान है हिंदी ,भारत माँ की शान है हिंदी !
सारे प्रान्तों में बहती है.पावन अविरल धार है हिंदी !
सबको बाँधे एक सूत्र में,माँ शारद का वरदान है हिंदी !!
जय हिन्द --जय हिंदी
-मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी ( उत्तर प्रदेश )
आज के विविध कार्यक्रम के तहत
एक कविता----
हम हिन्द के हिंदी मेरी,चलो आज लेते संकल्प .
सभ्यता संस्कार है हिंदी अभिव्यक्ति का सार है हिंदी
बोल चाल अपनाएं हिंदी,करें हिंदी में सब काज !
भारत का इतिहास समाहित सकल देश की आस है हिंदी,
राष्ट्र की गाथा गाती हिंदी स्वाभिमान बढाती हिंदी !
गंगा हिंदी ,यमुना हिंदी,हिन्द महा सागर है हिंदी !
वेद ,ग्रन्थ पुराण है हिंदी,रामायण ,गीता है हिंदी !
राष्ट्र की है अनमोल धरोहर,भाषाओं की जान है हिंदी !
गौरव गाथा गान है हिंदी,भारत का अभिमान है हिंदी !
एकता की पहचान है हिंदी ,भारत माँ की शान है हिंदी !
सारे प्रान्तों में बहती है.पावन अविरल धार है हिंदी !
सबको बाँधे एक सूत्र में,माँ शारद का वरदान है हिंदी !!
जय हिन्द --जय हिंदी
-मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी ( उत्तर प्रदेश )
मंच को नमन
विषय:- हिंदी /विधा :-वर्णपिरामिड :-
ये
हिंदी
हमारी
मातृभाषा
राज्य कीभाषा
सुशोभित होगी
राष्ट्र कीभाषा बन ।
(2)
क्या
राष्ट्र
की भाषा
परिभाषा
विनभाषा के
राष्ट्र कैसे चला
जनभाषित भाषा।स्वरचित :/उषासक्सेना
विषय:- हिंदी /विधा :-वर्णपिरामिड :-
ये
हिंदी
हमारी
मातृभाषा
राज्य कीभाषा
सुशोभित होगी
राष्ट्र कीभाषा बन ।
(2)
क्या
राष्ट्र
की भाषा
परिभाषा
विनभाषा के
राष्ट्र कैसे चला
जनभाषित भाषा।स्वरचित :/उषासक्सेना
भावों के मोती
विषय-हाइकु
_____________
गुलमोहर-
जेठ की दुपहरी
रक्तिम पुष्प
रात अंधेरी-
तारों से चमकते
पटबिजना
सोनकिरवा-
धरा पे अर्द्ध रात्रि
विद्युत द्युती
रेत के टीले-
मृग मरीचिका में
फसा पथिक
फूस की छत-
लालच की आग में
दुल्हन जली
फूल पे ओस-
ममत्व की छाया में
शिशु मुस्काया
रक्षा बंधन-
बहन बैठी द्वारे
सीमा पे भाई
फूस की छत-
बाढ़ की विभीषिका
फसा है वृद्ध
छाज में गेंहू-
फटकती गृहणी
कंकड़ घुन
भोर की बेला-
कलियों चमकती
ओस की बूँदें
भोर की बेला-
पूजा के थाल संग
कलश पुष्प
वन में अग्नि-
फुगनी पे लटका
बया का नीड़
इमली वृक्ष-
टहनी पे भुजंग
नीड़ में चूजा
गीला बदन-
जल धारा के मध्य
भस्मी के फूल
रंगोली द्वार-
चतुर्थी उत्सव में
लड्डु प्रसाद
अर्द्ध भास्कर-
बज्रमणि अंगुठी
अम्बर बीच
इमली वृक्ष-
छाँव तले आश्रित
वृद्ध पथिक
पूनम रात्रि-
अम्बर के दमकी
चाँद की बिंदी
हिंदी की बिंदी-
शान माँ भारती की
मस्तक सजी
कुंकुम बिंदी-
सुहाग का प्रतीक
नारी के भाल
स्कूल का द्वार-
कच्ची कैरी की फांकें
बच्चों के हाथ
रात्रि प्रहर~
पटबीजना पंख
बच्चे के हाथ ।
भोर की बेला-
आँगन के नीड़ में
नन्हे परिंदे
सघन वन-
हिरन का शावक
ग्राह मुख में
*अनुराधा चौहान* स्वरचित
विषय-हाइकु
_____________
गुलमोहर-
जेठ की दुपहरी
रक्तिम पुष्प
रात अंधेरी-
तारों से चमकते
पटबिजना
सोनकिरवा-
धरा पे अर्द्ध रात्रि
विद्युत द्युती
रेत के टीले-
मृग मरीचिका में
फसा पथिक
फूस की छत-
लालच की आग में
दुल्हन जली
फूल पे ओस-
ममत्व की छाया में
शिशु मुस्काया
रक्षा बंधन-
बहन बैठी द्वारे
सीमा पे भाई
फूस की छत-
बाढ़ की विभीषिका
फसा है वृद्ध
छाज में गेंहू-
फटकती गृहणी
कंकड़ घुन
भोर की बेला-
कलियों चमकती
ओस की बूँदें
भोर की बेला-
पूजा के थाल संग
कलश पुष्प
वन में अग्नि-
फुगनी पे लटका
बया का नीड़
इमली वृक्ष-
टहनी पे भुजंग
नीड़ में चूजा
गीला बदन-
जल धारा के मध्य
भस्मी के फूल
रंगोली द्वार-
चतुर्थी उत्सव में
लड्डु प्रसाद
अर्द्ध भास्कर-
बज्रमणि अंगुठी
अम्बर बीच
इमली वृक्ष-
छाँव तले आश्रित
वृद्ध पथिक
पूनम रात्रि-
अम्बर के दमकी
चाँद की बिंदी
हिंदी की बिंदी-
शान माँ भारती की
मस्तक सजी
कुंकुम बिंदी-
सुहाग का प्रतीक
नारी के भाल
स्कूल का द्वार-
कच्ची कैरी की फांकें
बच्चों के हाथ
रात्रि प्रहर~
पटबीजना पंख
बच्चे के हाथ ।
भोर की बेला-
आँगन के नीड़ में
नन्हे परिंदे
सघन वन-
हिरन का शावक
ग्राह मुख में
*अनुराधा चौहान* स्वरचित
हिंदी दिवस पर हाइकु लेखन
1
हमारी हिंदी
देश के माथे बिंदी
भारत मां के
2
हमारी भाषा
हैं यह मातृभाषा
हमारी हिंदी
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
1
हमारी हिंदी
देश के माथे बिंदी
भारत मां के
2
हमारी भाषा
हैं यह मातृभाषा
हमारी हिंदी
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
दिनांक-15/09/2019
विषय- पिरामिड
ये
हिंदी
अर्चना
प्रस्फुटित
स्वर अधर
के गुनगुनाने लगे।
(2)
ये
राह
दुर्गम
मेरे पग
डगमगाने लगे
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय- पिरामिड
ये
हिंदी
अर्चना
प्रस्फुटित
स्वर अधर
के गुनगुनाने लगे।
(2)
ये
राह
दुर्गम
मेरे पग
डगमगाने लगे
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
15/09/2019
"माहिया"
चल झील के उस पार
मन चाँद के पास
ख्वाब सा ये संसार।
धरती संग आसमां
क्षितिज पर मिलना
शाम का सुंदर शमां।
साजन बिन सावन
जले जियरा रात
चाँदनी न मनभावन।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"माहिया"
चल झील के उस पार
मन चाँद के पास
ख्वाब सा ये संसार।
धरती संग आसमां
क्षितिज पर मिलना
शाम का सुंदर शमां।
साजन बिन सावन
जले जियरा रात
चाँदनी न मनभावन।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
हाइकु
"दर्पण/शीशा/आईना"
1
मन दर्पण
अनुभव दिव्यता
ईश चरण
2
दर्पण भेद
भले, बुरे का खेल
देखा विवेक
3
धर्म, संस्कार
व्यवहार आईना
देखा,झलका
4
दूर्नीति किस्सा
राजनीति का हिस्सा
धूमिल शीशा
5
सत्य वचन
दर्पण ऱाज खोले
झूठ न बोले
"बूँद"
1
हिंद किसान
श्वेद बूँद से सींचा
कर्मो को बोया
2
जल संचय
हर बूँद अमूल्य
जीवन तुल्य
3
विश्व पोलियो
दो बूँद में जीवन
स्वस्थ्य संतान
4
प्यासी धरती
आसमान निहारे
बरखा बूँदें
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
"दर्पण/शीशा/आईना"
1
मन दर्पण
अनुभव दिव्यता
ईश चरण
2
दर्पण भेद
भले, बुरे का खेल
देखा विवेक
3
धर्म, संस्कार
व्यवहार आईना
देखा,झलका
4
दूर्नीति किस्सा
राजनीति का हिस्सा
धूमिल शीशा
5
सत्य वचन
दर्पण ऱाज खोले
झूठ न बोले
"बूँद"
1
हिंद किसान
श्वेद बूँद से सींचा
कर्मो को बोया
2
जल संचय
हर बूँद अमूल्य
जीवन तुल्य
3
विश्व पोलियो
दो बूँद में जीवन
स्वस्थ्य संतान
4
प्यासी धरती
आसमान निहारे
बरखा बूँदें
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
हिंदी दिवस
मनाये आज विश्व
हम ही पीछे,
देश के भाल
चमकी हिंदी बिंदी
चकित विश्व
अपने घर
मेहमान बनी है
क्यों माता हिंदी
विदेशी पढ़ें
स्वदेशी क्यों भागते
मातृ भाषा से
अपने घर
निर्वासित है हिंदी
दुर्भाग्यपूर्ण
आओ दिलाएं
माँ का खोया सम्मान
परम् कर्तव्य।।।
@भावुक
मनाये आज विश्व
हम ही पीछे,
देश के भाल
चमकी हिंदी बिंदी
चकित विश्व
अपने घर
मेहमान बनी है
क्यों माता हिंदी
विदेशी पढ़ें
स्वदेशी क्यों भागते
मातृ भाषा से
अपने घर
निर्वासित है हिंदी
दुर्भाग्यपूर्ण
आओ दिलाएं
माँ का खोया सम्मान
परम् कर्तव्य।।।
@भावुक
पिरामिड लेखन
हिंदी
1
ये
हिंदी
बिंदी सी
भारत के
माथे शोभित
सुन्दर है भाषा
हमारी मातृभाषा
2
है
मीठी
सुन्दर
हिंदी भाषा
बोलना सरल
हमारी मातृभाषा
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
हिंदी
1
ये
हिंदी
बिंदी सी
भारत के
माथे शोभित
सुन्दर है भाषा
हमारी मातृभाषा
2
है
मीठी
सुन्दर
हिंदी भाषा
बोलना सरल
हमारी मातृभाषा
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच
दिनांक-१५/९/२०१९
हाइकु
१)
हिंदी को जाने
मातृभाषा हमारी
देश की आत्मा।
२)
हिंदी मुखिया
नही है ऐसी वैसी
है श्रेष्ठतम।
३)
सर्वश्रेष्ठ है
हमारी मातृभाषा
हिंदी है न्यारी।
वर्ण पिरामिड
मैं
हिंदी
भूषण
हिन्दुस्तान
माँ हूँ तुम्हारी
अपनाओ मुझे
मेरे प्यारे संतान।
२)
तू
बिंदी
भारती
हिंदी प्यारी
गर्व है मुझे
उन्नति करें ये
मातृभाषा हमारी।
सेदोका
१)
हिंदी से प्रेम
करते हम सदा
मातृभाषा हमारी
नमन हिंदी
इनका अपमान
कभी नही करना।
चोका
हिंदी साहित्य
सदैव उच्चकोटी
ज्ञानवर्धक
पहचान दिलाये
विश्व पटल।
सायली
हिंदी
हमारी मातृभाषा
रोज अपनाये हम
सहज सरल
नमन हिंदी
सदा।
क्षणिकाएं १
अपने स्तर पर सभी करें प्रचार प्रसार
तभी संभव है हमारी मातृभाषा हिंदी का विकास।
२
हिंद देश के हम निवासी
हिंदी हमारी मातृभाषा
इसके बिना नही कोई हिन्दुस्तान की परिभाषा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक-१५/९/२०१९
हाइकु
१)
हिंदी को जाने
मातृभाषा हमारी
देश की आत्मा।
२)
हिंदी मुखिया
नही है ऐसी वैसी
है श्रेष्ठतम।
३)
सर्वश्रेष्ठ है
हमारी मातृभाषा
हिंदी है न्यारी।
वर्ण पिरामिड
मैं
हिंदी
भूषण
हिन्दुस्तान
माँ हूँ तुम्हारी
अपनाओ मुझे
मेरे प्यारे संतान।
२)
तू
बिंदी
भारती
हिंदी प्यारी
गर्व है मुझे
उन्नति करें ये
मातृभाषा हमारी।
सेदोका
१)
हिंदी से प्रेम
करते हम सदा
मातृभाषा हमारी
नमन हिंदी
इनका अपमान
कभी नही करना।
चोका
हिंदी साहित्य
सदैव उच्चकोटी
ज्ञानवर्धक
पहचान दिलाये
विश्व पटल।
सायली
हिंदी
हमारी मातृभाषा
रोज अपनाये हम
सहज सरल
नमन हिंदी
सदा।
क्षणिकाएं १
अपने स्तर पर सभी करें प्रचार प्रसार
तभी संभव है हमारी मातृभाषा हिंदी का विकास।
२
हिंद देश के हम निवासी
हिंदी हमारी मातृभाषा
इसके बिना नही कोई हिन्दुस्तान की परिभाषा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
15/09/2019
रविवार
विषय हिन्दी
विधा - चोका
हिन्दी हमारी
अपनी मातृभाषा
माता समान
देवनागरी लिपि
राष्ट्र की शान
इनका हो सम्मान
लज्जा न लगे
हिन्दी में बोलने में
हिन्दी भाषी को
अँग्रेजी के सामने
हिन्दी है श्रेष्ठ
पर अफसोस है
भारतवर्ष
मनाता आता है
हिंदी दिवस
मुखोटा है अँग्रेजी
अँग्रेजी दिन
कभी सुना नहीं है
झूठा दिखावा
देश की बोली हिन्दी
लज्जित हिन्दी
अपने ही घर में
लाचार हिन्दी
साल में एक दिन
हिन्दी उत्सव
फिर हिन्दी बेचारी
कोने में पड़ी
सिसकती रहती
अँग्रेजी भाषी
अक्सर चारो ओर
दिखाई देते
सच्चे मन से अब
हिन्दी को मानो
इसका सम्मान हो
राष्ट्र का कल्याण हो
सवरचित डॉ.विभा रजन(कनक)
नयी दिल्ली
रविवार
विषय हिन्दी
विधा - चोका
हिन्दी हमारी
अपनी मातृभाषा
माता समान
देवनागरी लिपि
राष्ट्र की शान
इनका हो सम्मान
लज्जा न लगे
हिन्दी में बोलने में
हिन्दी भाषी को
अँग्रेजी के सामने
हिन्दी है श्रेष्ठ
पर अफसोस है
भारतवर्ष
मनाता आता है
हिंदी दिवस
मुखोटा है अँग्रेजी
अँग्रेजी दिन
कभी सुना नहीं है
झूठा दिखावा
देश की बोली हिन्दी
लज्जित हिन्दी
अपने ही घर में
लाचार हिन्दी
साल में एक दिन
हिन्दी उत्सव
फिर हिन्दी बेचारी
कोने में पड़ी
सिसकती रहती
अँग्रेजी भाषी
अक्सर चारो ओर
दिखाई देते
सच्चे मन से अब
हिन्दी को मानो
इसका सम्मान हो
राष्ट्र का कल्याण हो
सवरचित डॉ.विभा रजन(कनक)
नयी दिल्ली
विद्या-हाइकु
विषय-मायका
मायका होता
बेटियों का संसार
स्नेह की धार
माँ की ममता
भाई बहन प्यार
पिता का दुलार
राखी की राह
त्योहार का भंडार
भाई का प्यार
भाभी आधार
सखियों सा प्यार
माँ का दुलार
सखी सहेली
उलझे ना पहेली
याद सताएं
जिंदगी जंग
मायका भरे दम
खुशी ना कम
होता है गम
बचपन की सोगात
याद आती है रात
भोर आनंद
नया जोश भरके
मन महके
जोश दिलाती
मायके की हिम्मत
दुर्गम पथ
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
विषय-मायका
मायका होता
बेटियों का संसार
स्नेह की धार
माँ की ममता
भाई बहन प्यार
पिता का दुलार
राखी की राह
त्योहार का भंडार
भाई का प्यार
भाभी आधार
सखियों सा प्यार
माँ का दुलार
सखी सहेली
उलझे ना पहेली
याद सताएं
जिंदगी जंग
मायका भरे दम
खुशी ना कम
होता है गम
बचपन की सोगात
याद आती है रात
भोर आनंद
नया जोश भरके
मन महके
जोश दिलाती
मायके की हिम्मत
दुर्गम पथ
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
हिन्दी दिवस-
हाइकु लेखन
दि-15-9-19/रविवार
1.
सुगन्ध हिन्दी
बनी रहे निर्द्वन्द
भूलें हिंग्लिश।
2.
अपनी हिन्दी
विश्व गगन चढ़ी
बढा आयाम।
3.
भाषा राष्ट्र की
बनने को तैयार
भारत हिन्दी।
4.
हिन्दी की बिन्दी
पंचम वर्ण ढेर
हिन्दी की खूबी।
5.
हिन्दी में काम
आदेश शासन का
आंग्ल भाषा में ।
हाइकु लेखन
दि-15-9-19/रविवार
1.
सुगन्ध हिन्दी
बनी रहे निर्द्वन्द
भूलें हिंग्लिश।
2.
अपनी हिन्दी
विश्व गगन चढ़ी
बढा आयाम।
3.
भाषा राष्ट्र की
बनने को तैयार
भारत हिन्दी।
4.
हिन्दी की बिन्दी
पंचम वर्ण ढेर
हिन्दी की खूबी।
5.
हिन्दी में काम
आदेश शासन का
आंग्ल भाषा में ।
क्षणिका / माहिया/हाइकू
***
क्षणिका
संदूक
में रखिये अब हिंदी !
बहुत मना लिया दिवस ,
अब अगले वर्ष
दिखानी है धूप ।
***
माहिया छन्द
हिंदी
हिन्दी मीठी वाणी
कवियों की बोली
है सुंदर कल्याणी।
गैर रहे अपनों में
दंश को झेलती
पर अस्तित्व बचाती।
***
हाइकु
रक्तिम सूर्य
गगन में चमके
हिंदी जग में ।
झिलमिलाते
खूबसूरत रत्न
हिंदी नगीना।
***
स्वरचित
अनिता सुधीर
****
***
क्षणिका
संदूक
में रखिये अब हिंदी !
बहुत मना लिया दिवस ,
अब अगले वर्ष
दिखानी है धूप ।
***
माहिया छन्द
हिंदी
हिन्दी मीठी वाणी
कवियों की बोली
है सुंदर कल्याणी।
गैर रहे अपनों में
दंश को झेलती
पर अस्तित्व बचाती।
***
हाइकु
रक्तिम सूर्य
गगन में चमके
हिंदी जग में ।
झिलमिलाते
खूबसूरत रत्न
हिंदी नगीना।
***
स्वरचित
अनिता सुधीर
****
Durga Sinha **स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
रविवार
हिन्दी दिवस
क्षणिकाएँ
स्वदेश
(1)
नव विहग
उड़ान भर रहे हैं
#स्वदेश के लिए
आसमान छू रहे हैं
कुछ पंछी
पंख सिकोड़े
दुबक रहे हैं ।।
(2)
स्वदेश
स्वाभिमान है
खुला सा आसमान है
देश ये महान है
हमारी पहचान है ।।
(3)
देश प्रेमियों ने
स्वदेश हित
जान गँवाई
ग़ैर स्वदेशी
जयचंदों ने
मुँह की खायी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
हिन्दी दिवस
क्षणिकाएँ
स्वदेश
(1)
नव विहग
उड़ान भर रहे हैं
#स्वदेश के लिए
आसमान छू रहे हैं
कुछ पंछी
पंख सिकोड़े
दुबक रहे हैं ।।
(2)
स्वदेश
स्वाभिमान है
खुला सा आसमान है
देश ये महान है
हमारी पहचान है ।।
(3)
देश प्रेमियों ने
स्वदेश हित
जान गँवाई
ग़ैर स्वदेशी
जयचंदों ने
मुँह की खायी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
है
हिंदी
जननी
राष्ट्र भाषा
मातृभाषा है
मान सम्मान है
शान, अभिमान है।
है
हिंदी
सरस
सुहावन
मनभावन
लोक लुभावन
सत्य और पावन।
है
हिंदी
गौरव
भारत के
माथे की बिंदी
शब्द का श्रृंगार
जीवन का आधार।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित
हिंदी
जननी
राष्ट्र भाषा
मातृभाषा है
मान सम्मान है
शान, अभिमान है।
है
हिंदी
सरस
सुहावन
मनभावन
लोक लुभावन
सत्य और पावन।
है
हिंदी
गौरव
भारत के
माथे की बिंदी
शब्द का श्रृंगार
जीवन का आधार।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित
नमन भावों के मोती
विषय -हिन्दी
15/09/19
रविवार
वर्ण पिरामिड
है
भाषा
देश की
पहचान
स्वाभिमान
सभी जन करें
हिन्दी का गुणगान
है
हिन्दी
हमारी
प्रियभाषा
प्रगति-आशा
राष्ट्रभाषा बने
भारत-भाग्य जगे
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय -हिन्दी
15/09/19
रविवार
वर्ण पिरामिड
है
भाषा
देश की
पहचान
स्वाभिमान
सभी जन करें
हिन्दी का गुणगान
है
हिन्दी
हमारी
प्रियभाषा
प्रगति-आशा
राष्ट्रभाषा बने
भारत-भाग्य जगे
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
भावों के मोती
वर्ण पिरामिड
विषय - हिंदी
1
ये
भाषा
वैदिक
मंत्र प्राण
वेद पुराण
वर्णों का विज्ञान
हिंदी मधुर गान
2
है
हिंदी
समृद्ध
शब्द ज्ञान
हिंद की शान
संस्कृत है प्राण
करो इसका त्राण
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
वर्ण पिरामिड
विषय - हिंदी
1
ये
भाषा
वैदिक
मंत्र प्राण
वेद पुराण
वर्णों का विज्ञान
हिंदी मधुर गान
2
है
हिंदी
समृद्ध
शब्द ज्ञान
हिंद की शान
संस्कृत है प्राण
करो इसका त्राण
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
हाइकु 🍍🌹🌲
*************************
🍑🍀🌻 हिंदी 🌻🍀🍑
*************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
🍅 (1 )
हमारी हिन्दी
भारती भाल बिन्दी
ज्ञान कालिन्दी
🌺 ( 2 )
ज्ञान , विज्ञान
शुद्ध अध्यात्म भान
हिन्दी निदान
🍓 ( 3 )
साहित्य न्यारी
भारतेन्दु उभारी
पंत निखारी
🌹 ( 4 )
देव नागरी
उच्च शब्द पिटारी
विधायें भारी
🍥 ( 5 )
काव्य सरिता
व्याकरण शुद्धता
सर्व ग्राह्यता
🍋 ( 6 )
भाव शब्दिता
छंद , रस , कविता
भाषा श्रेष्ठता
🍇 ( 7 )
हिन्द की आत्मा
जन- जन की भाषा
साहित्य आशा
🌿 ( 8 )
सुअभिव्यक्ति
आत्मीय भाव शक्ति
हिन्दी से भक्ति
🌸 ( 9 )
साहित्य सुधा
हिन्दी मर्मस्पर्शिता
अलंकारिता
🍃 ( 10 )
राष्ट्र दुलारी
प्रेम की भाषा प्यारी
शिक्षा प्रसारी
🌺🍀🌻🍃🌸
🌷 🌸 ***...रवीन्द्र वर्मा, मधुनगर आगरा
*************************
🍑🍀🌻 हिंदी 🌻🍀🍑
*************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
🍅 (1 )
हमारी हिन्दी
भारती भाल बिन्दी
ज्ञान कालिन्दी
🌺 ( 2 )
ज्ञान , विज्ञान
शुद्ध अध्यात्म भान
हिन्दी निदान
🍓 ( 3 )
साहित्य न्यारी
भारतेन्दु उभारी
पंत निखारी
🌹 ( 4 )
देव नागरी
उच्च शब्द पिटारी
विधायें भारी
🍥 ( 5 )
काव्य सरिता
व्याकरण शुद्धता
सर्व ग्राह्यता
🍋 ( 6 )
भाव शब्दिता
छंद , रस , कविता
भाषा श्रेष्ठता
🍇 ( 7 )
हिन्द की आत्मा
जन- जन की भाषा
साहित्य आशा
🌿 ( 8 )
सुअभिव्यक्ति
आत्मीय भाव शक्ति
हिन्दी से भक्ति
🌸 ( 9 )
साहित्य सुधा
हिन्दी मर्मस्पर्शिता
अलंकारिता
🍃 ( 10 )
राष्ट्र दुलारी
प्रेम की भाषा प्यारी
शिक्षा प्रसारी
🌺🍀🌻🍃🌸
🌷 🌸 ***...रवीन्द्र वर्मा, मधुनगर आगरा
नमन
हाइकु
हिंदी से हिंद
मातृभाषा है हमारी
करो सम्मान
आज का हाल
अंग्रेज़ी मालामाल
हिंदी बेहाल
संस्कृत सुता
हर भाषा की सखी
सीधी है हिन्दी
स्वरचित
गीता लकवाल
गुना मध्यप्रदेश
हाइकु
हिंदी से हिंद
मातृभाषा है हमारी
करो सम्मान
आज का हाल
अंग्रेज़ी मालामाल
हिंदी बेहाल
संस्कृत सुता
हर भाषा की सखी
सीधी है हिन्दी
स्वरचित
गीता लकवाल
गुना मध्यप्रदेश
नमन मंच
हिंदी दिवस
चोका
सबको प्यारी
हमारी राष्ट्रभाषा
अपनी हिंदी
संस्कृत से उदित
सरल सौम्य
रस छंद आधार
साहित्य प्राण
वैदिक संवाहक
शोभित काव्य
रुचिकर सुगम
रसों से भरा
अलंकार भूषित
शब्दशक्तियाँ
अनुपम शैलियाँ
शब्दसौष्ठव
बहती रसधार
प्राचीन विधा
बोलते है अक्षर
स्वर व्यंजन
अतुल शब्दावली
हिन्दी है मातृभाषा।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
हिंदी दिवस
चोका
सबको प्यारी
हमारी राष्ट्रभाषा
अपनी हिंदी
संस्कृत से उदित
सरल सौम्य
रस छंद आधार
साहित्य प्राण
वैदिक संवाहक
शोभित काव्य
रुचिकर सुगम
रसों से भरा
अलंकार भूषित
शब्दशक्तियाँ
अनुपम शैलियाँ
शब्दसौष्ठव
बहती रसधार
प्राचीन विधा
बोलते है अक्षर
स्वर व्यंजन
अतुल शब्दावली
हिन्दी है मातृभाषा।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
नमन मंच भावों के मोती
आज के विविध कार्यक्रमों के रहत्मेरी
वर्ण पिरामिड
हिंदी दिवस पर कुछ वर्ण पिरामिड--
********************************************
हिंदी दिवस पर कुछ वर्ण पिरामिड
--१
****
है
हिंदी
सम्मान
राष्ट्र शान
गौरव गान
निज स्वाभिमान
हमारी पहचान
******************
--२
*****
ये
हिंदी
शोभित
देश भाल
भारत आन
राष्ट्र आन बान
विश्व का स्वाभिमान
**********************
--३
****
है
हिंदी
दैदीप्य
पूजनीय
संस्मरणीय
अनुकरणीय
सादर वंदनीय
*****************
--४
****
ये
हिंदी
शोभित
राष्ट्र भाल
ज्ञान गागर
शब्दों का भण्डार
समाहित संस्कार
******************
--५
*****
है
हिंदी
पोषित
सुवासित
स्व राष्ट्र हित
सर्वत्र पूजित
संस्कृति समाहित
********************
--६
*****
लें
सर्व
संकल्प
निज कार्य
हिंदी भाषा में
करें सम्पादित
अपनाएं सु निति
**********************
@ मणि बेन द्विवेदी
आज के विविध कार्यक्रमों के रहत्मेरी
वर्ण पिरामिड
हिंदी दिवस पर कुछ वर्ण पिरामिड--
********************************************
हिंदी दिवस पर कुछ वर्ण पिरामिड
--१
****
है
हिंदी
सम्मान
राष्ट्र शान
गौरव गान
निज स्वाभिमान
हमारी पहचान
******************
--२
*****
ये
हिंदी
शोभित
देश भाल
भारत आन
राष्ट्र आन बान
विश्व का स्वाभिमान
**********************
--३
****
है
हिंदी
दैदीप्य
पूजनीय
संस्मरणीय
अनुकरणीय
सादर वंदनीय
*****************
--४
****
ये
हिंदी
शोभित
राष्ट्र भाल
ज्ञान गागर
शब्दों का भण्डार
समाहित संस्कार
******************
--५
*****
है
हिंदी
पोषित
सुवासित
स्व राष्ट्र हित
सर्वत्र पूजित
संस्कृति समाहित
********************
--६
*****
लें
सर्व
संकल्प
निज कार्य
हिंदी भाषा में
करें सम्पादित
अपनाएं सु निति
**********************
@ मणि बेन द्विवेदी
विद्या-कविता
विषय-हास्य व्यंग
🌹हास्य कविता🌹
हमारे पडोसी भाई कपड़े धो रहे हैं मसल मसल,
लगता है भाभीजी से झगडा चल रहा आजकल।
सुबह भाभीजी के चिल्लाने की आवाज आई थी,
मैं तो चली मायके सह न पाऊँ आपका छल बल।
काम के वक्त तो चले आते हो मुझसे मदद लेने,
स्नेह व धन लुटाते उस कलमुही पर आजकल ।
आपकी नजदीकियाँ क्यों दुश्मनों से आजकल,
साथ निभा दुश्मनों का मुझको जलाते पलपल।
घर मे स्नेह बहाते हो एक सूखी नदियाँ की तरह,
दुश्मनों पर स्नेह बरसाते बहती नदी सा कलकल।
पडोसी भाई की आवाज आ रही थी बाहर तक,
भागवान इतना शक ठीक नहीं तुम्हारा प्रतिपल।
बच्चे क्या सोचते होंगे हमारे बारे में समझो जरा,
अभी उनका अंतरमन है नासमझ नादान चंचल।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
विषय-हास्य व्यंग
🌹हास्य कविता🌹
हमारे पडोसी भाई कपड़े धो रहे हैं मसल मसल,
लगता है भाभीजी से झगडा चल रहा आजकल।
सुबह भाभीजी के चिल्लाने की आवाज आई थी,
मैं तो चली मायके सह न पाऊँ आपका छल बल।
काम के वक्त तो चले आते हो मुझसे मदद लेने,
स्नेह व धन लुटाते उस कलमुही पर आजकल ।
आपकी नजदीकियाँ क्यों दुश्मनों से आजकल,
साथ निभा दुश्मनों का मुझको जलाते पलपल।
घर मे स्नेह बहाते हो एक सूखी नदियाँ की तरह,
दुश्मनों पर स्नेह बरसाते बहती नदी सा कलकल।
पडोसी भाई की आवाज आ रही थी बाहर तक,
भागवान इतना शक ठीक नहीं तुम्हारा प्रतिपल।
बच्चे क्या सोचते होंगे हमारे बारे में समझो जरा,
अभी उनका अंतरमन है नासमझ नादान चंचल।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
15/09/2019
"हास्य व्यंग"
नेताजी के बोल हैं गोल-गोल
न कोई ओर न कोई छोर..
बातें करते तोड़ मरोड़..।
आम जनता है बेहाल..
नेताजी के वादे नाकाम
पाँच सालों के बाद..
दर्शन देते बस एक बार।
उम्रभर जो भूखे सोते
मिलते उन्हें चुनावी पेड़े
जनमानस है बहुतेरे...
सदैव रहते उनको घेरे ।
जनसभाओं में देते जब भाषण
दिखाते हैं खूब अनुसाशन
विपक्ष का मुद्दा उछाल..
बतलाते है स्वयं को महान।
प्रलोभन दिखाके भीड़ बटोरते
नाऱो की होती अद्भुत शैली
करते हैं अनेको बार रैली..
जीत जो जाते एकबार..
गायब हो जाते ऐसे..
जैसे हों दूज का चाँद।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"हास्य व्यंग"
नेताजी के बोल हैं गोल-गोल
न कोई ओर न कोई छोर..
बातें करते तोड़ मरोड़..।
आम जनता है बेहाल..
नेताजी के वादे नाकाम
पाँच सालों के बाद..
दर्शन देते बस एक बार।
उम्रभर जो भूखे सोते
मिलते उन्हें चुनावी पेड़े
जनमानस है बहुतेरे...
सदैव रहते उनको घेरे ।
जनसभाओं में देते जब भाषण
दिखाते हैं खूब अनुसाशन
विपक्ष का मुद्दा उछाल..
बतलाते है स्वयं को महान।
प्रलोभन दिखाके भीड़ बटोरते
नाऱो की होती अद्भुत शैली
करते हैं अनेको बार रैली..
जीत जो जाते एकबार..
गायब हो जाते ऐसे..
जैसे हों दूज का चाँद।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
१५/९/२०!९
विषय-अनोखी बारात
विधा-हास्य व्यंग्य के अंतर्गत
------------
*अनोखी बारात
'बारात आ गई -बारात आ गई'
शोर सुन दुल्हन की सहेलियां
दुल्हन को छोड़ बारात देखने भागीं
दुल्हन का श्रृंगार अभी पूरा न हो पाया था
बिंदी ,झुमके टीका टिक न पाया था
लिपस्टिक भी लगी थी अधूरी आधी
घोड़ी पर सवार दूल्हा
नीचे उतरने की जद्दोजहद में लगा था
आधा घोड़ी पर आधा नीचे लटका था
तभी किसी शरारती तत्व ने
बंदूक की गोली दागी
घोड़ी लटकते दूल्हे को ले सरपट
भागी
समाचार सुन शामियाने में
भगदड़ मच गई
दूल्हे की खोज में
पूरी बारात लग गई
उधर दुल्हन बेखबर थी
सो सलीके से खुद को सजाने लगी
जैसे तैसे दूल्हे को
सही सलामत मंडप में लाया गया
बदहवास दूल्हे को
एनर्जी ड्रिंक पिलाया गया
आखिरकार वर माला हुई
ब्याह हुआ
पर दूल्हा बेचारा
शादी से पहले ही स्याह हुआ
आने वाली दुर्घटना की
मानो ईश्वर ने एक झलक दिखा दी
दिखावे के चक्कर में
हम ये क्यों भूल जाते हैं
इन बेचारी घोड़ियों
पर भी तो कितने अत्याचार होते हैं
शुभ मुहूर्तों में तो
उन पर न जाने कितने
दूल्हे सवार होते हैं
ये बेजुबान कुछ कह नहीं सकते
हमारे क्षणिक मनोरंजन की खातिर
हमने कितनी बड़ी सजा दी ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय-अनोखी बारात
विधा-हास्य व्यंग्य के अंतर्गत
------------
*अनोखी बारात
'बारात आ गई -बारात आ गई'
शोर सुन दुल्हन की सहेलियां
दुल्हन को छोड़ बारात देखने भागीं
दुल्हन का श्रृंगार अभी पूरा न हो पाया था
बिंदी ,झुमके टीका टिक न पाया था
लिपस्टिक भी लगी थी अधूरी आधी
घोड़ी पर सवार दूल्हा
नीचे उतरने की जद्दोजहद में लगा था
आधा घोड़ी पर आधा नीचे लटका था
तभी किसी शरारती तत्व ने
बंदूक की गोली दागी
घोड़ी लटकते दूल्हे को ले सरपट
भागी
समाचार सुन शामियाने में
भगदड़ मच गई
दूल्हे की खोज में
पूरी बारात लग गई
उधर दुल्हन बेखबर थी
सो सलीके से खुद को सजाने लगी
जैसे तैसे दूल्हे को
सही सलामत मंडप में लाया गया
बदहवास दूल्हे को
एनर्जी ड्रिंक पिलाया गया
आखिरकार वर माला हुई
ब्याह हुआ
पर दूल्हा बेचारा
शादी से पहले ही स्याह हुआ
आने वाली दुर्घटना की
मानो ईश्वर ने एक झलक दिखा दी
दिखावे के चक्कर में
हम ये क्यों भूल जाते हैं
इन बेचारी घोड़ियों
पर भी तो कितने अत्याचार होते हैं
शुभ मुहूर्तों में तो
उन पर न जाने कितने
दूल्हे सवार होते हैं
ये बेजुबान कुछ कह नहीं सकते
हमारे क्षणिक मनोरंजन की खातिर
हमने कितनी बड़ी सजा दी ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती
15/09/19
आज का यथार्थ
लेडीज़ एंड जेंटलमैन
आज हम सब यहाँ हिंदी डे मनाने के लिए इकठ्ठा हुए हैं ।
एज यू नो हिंदी लैंग्वेज हमारी मदर टंग है ।एवरी ईयर ये 14th सेप्टेंबर को आता है । हम लोग बड़े जोर शोर से इसे मनाते हैं ।हम सबको आफिस में हिंदी में ही काम करना चाहिये । जितनी भी फ़ाइल हो उसमें सिस्टम से नीट एंड क्लीन काम हो ।
हमें अपने वर्क प्लेस पर और अधिक अटेंशन देने की जरूरत है ।
हिंदी के प्रौग्रेस और प्रोमोशन के लिये पोएम कंपीटिशन भी जरूर करवाना चाहिए ।
यंग जनरेशन से स्पेशली अपील करता हूँ कि वो हिंदी को एक्सेप्ट करें ।
थैंक्यू
स्वरचित
अनिता सुधीर
15/09/19
आज का यथार्थ
लेडीज़ एंड जेंटलमैन
आज हम सब यहाँ हिंदी डे मनाने के लिए इकठ्ठा हुए हैं ।
एज यू नो हिंदी लैंग्वेज हमारी मदर टंग है ।एवरी ईयर ये 14th सेप्टेंबर को आता है । हम लोग बड़े जोर शोर से इसे मनाते हैं ।हम सबको आफिस में हिंदी में ही काम करना चाहिये । जितनी भी फ़ाइल हो उसमें सिस्टम से नीट एंड क्लीन काम हो ।
हमें अपने वर्क प्लेस पर और अधिक अटेंशन देने की जरूरत है ।
हिंदी के प्रौग्रेस और प्रोमोशन के लिये पोएम कंपीटिशन भी जरूर करवाना चाहिए ।
यंग जनरेशन से स्पेशली अपील करता हूँ कि वो हिंदी को एक्सेप्ट करें ।
थैंक्यू
स्वरचित
अनिता सुधीर
भावों के मोती
विषय-हास्य व्यंग्य
============
आओ बैठकर हम करें, कुछ बातें नई-पुरानी,🤷
ज़िंदगी की भागदौड़ में,बीत जाए न जिंदगानी।🏃
आज़ रख दो अपनी रचनाएं,तुम उठाकर ताले में,🔒
जाओ बनाकर ले आओ,अदरक की चाय प्याले में।☕
वाहवाही लूटने के लिए,बन गई तुम लोभी,👩🚒
कितनी महंगी लाया था,सूख गई वो गोभी।🥦
बहुत देर से लिख रही हो,अब समेट लो पोथी,📕
बड़े जोरों की भूख लगी,बना दो गरमागरम रोटी।🥪
साम-दाम-दंड-भेद, अब-तक खूब चलाए तुमने,🤛
अब कुछ दिन रख दो, तुम समेटकर यह पन्ने।📝
छुट्टी के मिले कुछ दिन, जी भरकर जी ले जरा,👦
भाग-दौड़ की ज़िंदगी,एक-दूजे की सुन ले जरा। 💑
देखो नाराज न होना, जरूर सुनेंगे तुम्हारी कहानी,🤔
आओ आज़ थोड़ा घूम आएं, हवाएं चल रही सुहानी।🤗
लिखती हो बहुत सुंदर, मैं पढूँगा सारी रचनाएं,👌
चलो बाहों में बाहें डाल,आज़ बुने नई कल्पनाएं।👫
***अनुराधा चौहान***©️स्वरचित
विषय-हास्य व्यंग्य
============
आओ बैठकर हम करें, कुछ बातें नई-पुरानी,🤷
ज़िंदगी की भागदौड़ में,बीत जाए न जिंदगानी।🏃
आज़ रख दो अपनी रचनाएं,तुम उठाकर ताले में,🔒
जाओ बनाकर ले आओ,अदरक की चाय प्याले में।☕
वाहवाही लूटने के लिए,बन गई तुम लोभी,👩🚒
कितनी महंगी लाया था,सूख गई वो गोभी।🥦
बहुत देर से लिख रही हो,अब समेट लो पोथी,📕
बड़े जोरों की भूख लगी,बना दो गरमागरम रोटी।🥪
साम-दाम-दंड-भेद, अब-तक खूब चलाए तुमने,🤛
अब कुछ दिन रख दो, तुम समेटकर यह पन्ने।📝
छुट्टी के मिले कुछ दिन, जी भरकर जी ले जरा,👦
भाग-दौड़ की ज़िंदगी,एक-दूजे की सुन ले जरा। 💑
देखो नाराज न होना, जरूर सुनेंगे तुम्हारी कहानी,🤔
आओ आज़ थोड़ा घूम आएं, हवाएं चल रही सुहानी।🤗
लिखती हो बहुत सुंदर, मैं पढूँगा सारी रचनाएं,👌
चलो बाहों में बाहें डाल,आज़ बुने नई कल्पनाएं।👫
***अनुराधा चौहान***©️स्वरचित
वार - रविवार
हास्य व्यंग
मेरी रचना -
👇👇👇👇
मेरी एक सहेली जिसे ऊंँची -ऊंँची फेंकने की बेहद आदत थी।
समझाया कई बार की बुरी फंँसोगी किसी दिन।
पर उसे तो अब बस लत सी लग गई थी।
हर किसी से बड़ी- बड़ी डींगें हांँकना उसकी आदत सी बन गई थी।
उस दिन भी हम दोनों ट्रेन से सफर कर रहे थे। पहली बार हम उस रास्ते से सफ़र कर रहे थे और उस ट्रेन में भी पहली बार बैठे थे।
सफ़र 2 घंटे का था तो वो बोली रिजर्वेशन की जरूरत ही कहांँ है।
मैंने कहा भी, अनजान रास्ता है। इस ट्रेन के बारे में पता भी नहीं है।
वो बोली, कुछ नहीं होता। खैर हम टिकट लेकर ट्रेन मैं चढ़ गए।
डिब्बे में भीड़ तो थी।जैसे -तैसे अंदर पहुंँचे। दो तीन भले लोगों ने हमें सीट दे दी।हम बैठ गए।
ट्रेन चल दी।सामने सीट पर बैठे व्यक्ति ने मेरी सहेली से पूछा," कहांँ तक जाओगे आप ?"
वो बोली , हमे तो कोटा जाना है।
वो रिजर्वेशन नहीं मिल रहा था और जाना अर्जेंट था। नहीं तो, हम कभी जनरल कोच में बैठते ही नहीं।
आज पहली बार पता चला कितना मुश्किल होता है।
"क्या, इस ट्रेन में रिजर्वेशन से!"उस आदमी ने बोला
हांँ ,वो एसी में भी नहीं था तो सोचा स्लीपर में करवा ले पर मिला ही नहीं। वैसे इतनी गर्मी में तो एसी बगैर तो कभी सफ़र किया ही नहीं।
उस व्यक्ति ने कहा,"अच्छा!
उसके चेहरे पर अजीब सी हंँसी थी।
वो फिर बोली,"हंँस क्यों रहे हो भाई, मज़ाक नहीं कर रही।
तुम्हे लगता नहीं कि मैं सच बोल रही हूंँ?
वो तो मज़बूरी थी आज..
अरे ऐसा क्यों बोल रहे हो आप?मुझे तो पूरा विश्वास है । आप क्यों झूठ बोलेगीं ।
वैसे आप इस ट्रेन से कितनी बार यात्रा कर चुकीं?"
उसने तुरंत बोला,"मैं तो कई बार। हमारा तो आना जाना लगा रहता है।बिना झिझके वो बोले जा रही थी और मैं उसे अंचभित हो देख रही थी।
उस व्यक्ति ने फिर चुटकी लेते हुए बोला,"पर आज तो मैडम पूरी ट्रेन में एक भी एसी और स्लीपर का डिब्बा नहीं लगा।
तभी रिजर्वेशन नहीं मिला हमें।वैसे क्यों नहीं लगे आज। पता है कुछ आपको ?"
अभी भी बिना समझे बुझे बोले ही जा रही थी वो।
क्योंकि इसमें कभी लगते ही नहीं मैडम।
ये लोकल ट्रेन है हम जैसे लोगों के लिए।
आप जैसों के लिए..
उस डिब्बे में बैठे सभी यात्री हंँसने लगे।
और मेरी सहेली का चेहरा देखने लायक था।
स्वरचित
गीता लकवाल
गुना मध्यप्रदेश
हास्य व्यंग
मेरी रचना -
👇👇👇👇
मेरी एक सहेली जिसे ऊंँची -ऊंँची फेंकने की बेहद आदत थी।
समझाया कई बार की बुरी फंँसोगी किसी दिन।
पर उसे तो अब बस लत सी लग गई थी।
हर किसी से बड़ी- बड़ी डींगें हांँकना उसकी आदत सी बन गई थी।
उस दिन भी हम दोनों ट्रेन से सफर कर रहे थे। पहली बार हम उस रास्ते से सफ़र कर रहे थे और उस ट्रेन में भी पहली बार बैठे थे।
सफ़र 2 घंटे का था तो वो बोली रिजर्वेशन की जरूरत ही कहांँ है।
मैंने कहा भी, अनजान रास्ता है। इस ट्रेन के बारे में पता भी नहीं है।
वो बोली, कुछ नहीं होता। खैर हम टिकट लेकर ट्रेन मैं चढ़ गए।
डिब्बे में भीड़ तो थी।जैसे -तैसे अंदर पहुंँचे। दो तीन भले लोगों ने हमें सीट दे दी।हम बैठ गए।
ट्रेन चल दी।सामने सीट पर बैठे व्यक्ति ने मेरी सहेली से पूछा," कहांँ तक जाओगे आप ?"
वो बोली , हमे तो कोटा जाना है।
वो रिजर्वेशन नहीं मिल रहा था और जाना अर्जेंट था। नहीं तो, हम कभी जनरल कोच में बैठते ही नहीं।
आज पहली बार पता चला कितना मुश्किल होता है।
"क्या, इस ट्रेन में रिजर्वेशन से!"उस आदमी ने बोला
हांँ ,वो एसी में भी नहीं था तो सोचा स्लीपर में करवा ले पर मिला ही नहीं। वैसे इतनी गर्मी में तो एसी बगैर तो कभी सफ़र किया ही नहीं।
उस व्यक्ति ने कहा,"अच्छा!
उसके चेहरे पर अजीब सी हंँसी थी।
वो फिर बोली,"हंँस क्यों रहे हो भाई, मज़ाक नहीं कर रही।
तुम्हे लगता नहीं कि मैं सच बोल रही हूंँ?
वो तो मज़बूरी थी आज..
अरे ऐसा क्यों बोल रहे हो आप?मुझे तो पूरा विश्वास है । आप क्यों झूठ बोलेगीं ।
वैसे आप इस ट्रेन से कितनी बार यात्रा कर चुकीं?"
उसने तुरंत बोला,"मैं तो कई बार। हमारा तो आना जाना लगा रहता है।बिना झिझके वो बोले जा रही थी और मैं उसे अंचभित हो देख रही थी।
उस व्यक्ति ने फिर चुटकी लेते हुए बोला,"पर आज तो मैडम पूरी ट्रेन में एक भी एसी और स्लीपर का डिब्बा नहीं लगा।
तभी रिजर्वेशन नहीं मिला हमें।वैसे क्यों नहीं लगे आज। पता है कुछ आपको ?"
अभी भी बिना समझे बुझे बोले ही जा रही थी वो।
क्योंकि इसमें कभी लगते ही नहीं मैडम।
ये लोकल ट्रेन है हम जैसे लोगों के लिए।
आप जैसों के लिए..
उस डिब्बे में बैठे सभी यात्री हंँसने लगे।
और मेरी सहेली का चेहरा देखने लायक था।
स्वरचित
गीता लकवाल
गुना मध्यप्रदेश
विधा - संस्मरण
संस्मरण :- बेज़ुबान जानवर और मैं
रिश्ता एक एहसास है, जो मनुष्य या जानवर सभी के जीवन में प्रसन्नता लाता है l मुझे आज भी याद आता है वो बचपन के समय का वो प्यारा बंधन जो मुझे बहुत ही एक खुशनुमा एहसास देता है l पंछियो और जानवरों से मुझे बहुत लगाव रहता था और आज भी है l मेरे पिताजी उस समय मिर्जापुर उत्तर प्रदेश में सरकारी विभाग में कार्यरत थे और मै उनके साथ रहता था l जिस घर में हम किराये पर रहते थे, वह मुख्य सड़क से जुड़ा हुआ था l हम लोग दूसरे तल पर रहते थे l सड़क से गुजरने वाले सभी लोगों को हम बालकनी से देख सकते थे l एक दिन सुबह मैं बालकनी में खड़ा था, अचानक मेरी निगाह सड़क के उस पार खड़े एक भूरे रंग के कुत्ते पर पड़ी l मैं उसे पुचकारने लगा और वह प्यारा कुत्ता पूँछ हिलाकर बड़ी ही उम्मीद लगाकर देखने लगा l मुझे समझते देर न लगी की उसे भूख लगी है और मै रसोईघर से दो रोटी लेकर नीचे उतर कर गया l रोटी खाकर वो मुझे ऐसे देख रहा था मानो वो बहुत आभार जता रहा हो l मेरा उसके साथ एक प्यारा सा रिश्ता जुड़ चुका था वह प्यार का रिश्ता था l अब सुबह के दिनचर्या में वो जुड़ गया था l वह मेरे से पहले ही आकर सड़क के उस पार मेरा इंतजार करता था l मुझे बहुत अच्छा लगता था, जल्द ही हम अच्छे दोस्त बन चुके थे l मैं रोज उसको कभी रोटी, कभी बिस्किट देता था l कभी मैं अपने पिताजी के साथ बाजार जाता था तो कहीं से भी मुझे देख लेता तो मेरे ऊपर ऐसा स्नेह लुटाता की मैं उसके इस अनंत प्रेम के लिए आभारी हो जाता l मेरे पिताजी आश्चर्यचकित हो कर मुझे शाबाशी देकर कहते की बेटा हम इंसानों को अपनी इंसानियत नहीं भूलनी चाहिए और इस बेज़ुबान जानवर से सबक सीखना चाहिए l धीरे-धीरे समय बीतता गया और गर्मी की छुट्टी आ गई जिसके कारण मुझे पिताजी के साथ गाँव जाना पड़ा l बहुत ही उदास मन से सुबह बस में चढ़ते हुए उसे देखा उसकी आँखों में भी ऐसा ही एहसास मुझे झलका l जब मैं एक महीने के बाद मिर्जापुर पहुँचा तो शाम हो चुकी थी l रात में उसके बारे में ही सोच कर सोया की सुबह अपने प्यारे दोस्त से मिलूंगा और पुचकारूँगा l सुबह वह नहीं दिखा, व्याकुल मन से मैं स्कूल गया l आकर जब पता किया तो वह रोज सुबह यहाँ आता था लेकिन दो हफ्ते पहले एक बस से दब गया ये सुनते ही मेरे आँखों से अश्रुधारा बह निकली मैं उदास हो गया l मैने एक प्यारा प्यार करने वाला अनमोल दोस्त खो दिया l जब भी बचपन को सोचता हूँ तो वो दोस्त मुझे बहुत याद आता है मेरी आँखों में आँसू आ जाते है l यह मेरे और उसके बीच की एक अनकही जब्बात था और वह सच्ची दोस्ती का मिशाल था l
-- सूर्यदीप कुशवाहा
संस्मरण :- बेज़ुबान जानवर और मैं
रिश्ता एक एहसास है, जो मनुष्य या जानवर सभी के जीवन में प्रसन्नता लाता है l मुझे आज भी याद आता है वो बचपन के समय का वो प्यारा बंधन जो मुझे बहुत ही एक खुशनुमा एहसास देता है l पंछियो और जानवरों से मुझे बहुत लगाव रहता था और आज भी है l मेरे पिताजी उस समय मिर्जापुर उत्तर प्रदेश में सरकारी विभाग में कार्यरत थे और मै उनके साथ रहता था l जिस घर में हम किराये पर रहते थे, वह मुख्य सड़क से जुड़ा हुआ था l हम लोग दूसरे तल पर रहते थे l सड़क से गुजरने वाले सभी लोगों को हम बालकनी से देख सकते थे l एक दिन सुबह मैं बालकनी में खड़ा था, अचानक मेरी निगाह सड़क के उस पार खड़े एक भूरे रंग के कुत्ते पर पड़ी l मैं उसे पुचकारने लगा और वह प्यारा कुत्ता पूँछ हिलाकर बड़ी ही उम्मीद लगाकर देखने लगा l मुझे समझते देर न लगी की उसे भूख लगी है और मै रसोईघर से दो रोटी लेकर नीचे उतर कर गया l रोटी खाकर वो मुझे ऐसे देख रहा था मानो वो बहुत आभार जता रहा हो l मेरा उसके साथ एक प्यारा सा रिश्ता जुड़ चुका था वह प्यार का रिश्ता था l अब सुबह के दिनचर्या में वो जुड़ गया था l वह मेरे से पहले ही आकर सड़क के उस पार मेरा इंतजार करता था l मुझे बहुत अच्छा लगता था, जल्द ही हम अच्छे दोस्त बन चुके थे l मैं रोज उसको कभी रोटी, कभी बिस्किट देता था l कभी मैं अपने पिताजी के साथ बाजार जाता था तो कहीं से भी मुझे देख लेता तो मेरे ऊपर ऐसा स्नेह लुटाता की मैं उसके इस अनंत प्रेम के लिए आभारी हो जाता l मेरे पिताजी आश्चर्यचकित हो कर मुझे शाबाशी देकर कहते की बेटा हम इंसानों को अपनी इंसानियत नहीं भूलनी चाहिए और इस बेज़ुबान जानवर से सबक सीखना चाहिए l धीरे-धीरे समय बीतता गया और गर्मी की छुट्टी आ गई जिसके कारण मुझे पिताजी के साथ गाँव जाना पड़ा l बहुत ही उदास मन से सुबह बस में चढ़ते हुए उसे देखा उसकी आँखों में भी ऐसा ही एहसास मुझे झलका l जब मैं एक महीने के बाद मिर्जापुर पहुँचा तो शाम हो चुकी थी l रात में उसके बारे में ही सोच कर सोया की सुबह अपने प्यारे दोस्त से मिलूंगा और पुचकारूँगा l सुबह वह नहीं दिखा, व्याकुल मन से मैं स्कूल गया l आकर जब पता किया तो वह रोज सुबह यहाँ आता था लेकिन दो हफ्ते पहले एक बस से दब गया ये सुनते ही मेरे आँखों से अश्रुधारा बह निकली मैं उदास हो गया l मैने एक प्यारा प्यार करने वाला अनमोल दोस्त खो दिया l जब भी बचपन को सोचता हूँ तो वो दोस्त मुझे बहुत याद आता है मेरी आँखों में आँसू आ जाते है l यह मेरे और उसके बीच की एक अनकही जब्बात था और वह सच्ची दोस्ती का मिशाल था l
-- सूर्यदीप कुशवाहा
भावों के मोती
विधा-संस्मरण
____________
मैं ग्वालियर में अपने परिवार के साथ रहती थी,मेरा स्कूल घर से ज्यादा दूर नहीं था तो हम सब बच्चे साथ ही स्कूल जाया करते थे।यह बात उस समय की जब मैं कक्षा तीन या चार की छात्रा थी। बहुत छोटी थी यही कोई आठ,नौ,की बहुत ही ज्यादा शैतान थी।
मेरी टोली भी शैतान बच्चों की बन गई थी।स्कूल से घर आते समय गली पड़ती थी वहाँ ज्यादातर पैदल चलने वाले ही निकला करते थे, गाड़ियाँ कम ही निकलती थी।
तो हम सभी बच्चे उस गली से खूब मस्ती करते हुए निकलते थे।
वहां एक घर ऐसा था,जिनकी बेटी उम्र में बड़ी पर मानसिक रूप से बच्ची थी,हम बच्चों की आवाज़ सुन कर वो जोर-जोर से चिल्लाने लगती थी।
खिड़की बंद रहने की वजह से हम बच्चों को सही बात पता नहीं थी। तो हम लोग उसकी आवाज़ की नकल करते हुए भागते थे।
इस कारण उन लोगों को उसे संभालने में बहुत तकलीफ़ होती थी।
हम लोग चुपचाप निकले इसके लिए एक दिन आंटी ने हम बच्चों को बहुत डरा दिया था यहाँ भूत है चुपचाप जाया करो नहीं तो पकड़ लेगा,यह सुनकर हम सभी बच्चे बहुत डर गए थे।
उसके बाद उस गली से हम सब चुपचाप गुजरने लगे।एक दिन मैं किसी कारण से बच्चों के ग्रुप से पीछे हो गई अकेली उस गली से निकल रही थी।
अचानक आँटी की कही बातें याद आ गई, फिर तो निगाहें खिड़की पर थी धड़कनें तेज थी।
उस दिन किस्मत भी धोखा दे गई जैसे ही खिड़की के नीचे से निकलने वाली थी वैसे ही खिड़की खुली वो लड़की मुझे देख दोनों हाथ बाहर निकाल चिल्लाने लगी।
मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, फिर तो मैं ऐसी भागी फिर घर जाकर रुकी। रो-रोकर भूत-भूत चिल्लाती हुई माँ से लिपट गई, फिर रात भर बुखार में पड़ी रही नींद में भी डर कर चिल्लाने लगती थी।
फिर कभी अकेले स्कूल भी नहीं गई, हालांकि बाबा ने बाद में उन दीदी से पास से मिलवाया, उनके बारे में सब समझाया,पर बचपन की यह घटना जिसे आज़ तक नहीं भूली हूँ।हाँ इस घटना से यह सीख जरूर मिली कि कभी भी किसी बच्चे को इस तरह की बातों से नहीं डराना चाहिए।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विधा-संस्मरण
____________
मैं ग्वालियर में अपने परिवार के साथ रहती थी,मेरा स्कूल घर से ज्यादा दूर नहीं था तो हम सब बच्चे साथ ही स्कूल जाया करते थे।यह बात उस समय की जब मैं कक्षा तीन या चार की छात्रा थी। बहुत छोटी थी यही कोई आठ,नौ,की बहुत ही ज्यादा शैतान थी।
मेरी टोली भी शैतान बच्चों की बन गई थी।स्कूल से घर आते समय गली पड़ती थी वहाँ ज्यादातर पैदल चलने वाले ही निकला करते थे, गाड़ियाँ कम ही निकलती थी।
तो हम सभी बच्चे उस गली से खूब मस्ती करते हुए निकलते थे।
वहां एक घर ऐसा था,जिनकी बेटी उम्र में बड़ी पर मानसिक रूप से बच्ची थी,हम बच्चों की आवाज़ सुन कर वो जोर-जोर से चिल्लाने लगती थी।
खिड़की बंद रहने की वजह से हम बच्चों को सही बात पता नहीं थी। तो हम लोग उसकी आवाज़ की नकल करते हुए भागते थे।
इस कारण उन लोगों को उसे संभालने में बहुत तकलीफ़ होती थी।
हम लोग चुपचाप निकले इसके लिए एक दिन आंटी ने हम बच्चों को बहुत डरा दिया था यहाँ भूत है चुपचाप जाया करो नहीं तो पकड़ लेगा,यह सुनकर हम सभी बच्चे बहुत डर गए थे।
उसके बाद उस गली से हम सब चुपचाप गुजरने लगे।एक दिन मैं किसी कारण से बच्चों के ग्रुप से पीछे हो गई अकेली उस गली से निकल रही थी।
अचानक आँटी की कही बातें याद आ गई, फिर तो निगाहें खिड़की पर थी धड़कनें तेज थी।
उस दिन किस्मत भी धोखा दे गई जैसे ही खिड़की के नीचे से निकलने वाली थी वैसे ही खिड़की खुली वो लड़की मुझे देख दोनों हाथ बाहर निकाल चिल्लाने लगी।
मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, फिर तो मैं ऐसी भागी फिर घर जाकर रुकी। रो-रोकर भूत-भूत चिल्लाती हुई माँ से लिपट गई, फिर रात भर बुखार में पड़ी रही नींद में भी डर कर चिल्लाने लगती थी।
फिर कभी अकेले स्कूल भी नहीं गई, हालांकि बाबा ने बाद में उन दीदी से पास से मिलवाया, उनके बारे में सब समझाया,पर बचपन की यह घटना जिसे आज़ तक नहीं भूली हूँ।हाँ इस घटना से यह सीख जरूर मिली कि कभी भी किसी बच्चे को इस तरह की बातों से नहीं डराना चाहिए।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
देश के विकास मे समर्पित सभी अभियंताओ को अभियंता दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें कि आपकी ।भारत के महान अभियंता "भारत रत्न " डा0 मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जी की जयंती पर उन्हे शत् शत् नमन ।
समूह के सभी सृजन कर्ताओ को भी कोटि कोटि बधाई एवं शुभकामनायें 🌹🌹
दिनांक 15/09/2019
विधा:संस्मरण
पिछले वर्ष की बात है मै अपने संस्थान में बैठी सोच रही थी कि अध्यापकों और विद्यार्थियों को क्या नया लक्ष्य दिया जाए जो आज देश के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो।बैठक की ,सभी शिक्षकों के साथ और वार्ताल्प कर एक समिति गठित की ।
समिति का कार्य था विद्यार्थियों मे स्वरोजगार की भावना प्रेरित करना।मै ढूँढने लगी, आसपास ऐसे अवसर ,जहाँ विद्यार्थी कर सके अपनी प्रतिभा का प्रयोग ।तभी अखबार मे देखा "प्लास्टिक के विरुद्ध रण" का आगाज़ प्रदेश स्तर पर प्रतियोगिता के रूप में पर्यावरण विभाग द्वारा किया गया था।
विभागाध्यक्ष सिविल को जिम्मेदारी दी कि कुछ विद्यार्थी इसमे प्रतिभाग करे।फिर क्या था उन्होंने तैयारी शुरू कर दी।हजारों टोलियाँ ने पूरे प्रदेश से इसमें भाग लिया और हमारा संस्थान कई पठाव पार करता हुआ आखरी पड़ाव पर पहुँच गया ,जिसमे दस प्रतिभागी टोलियाँ बची थी।उन्हें अपना प्रदर्शन अपने विषय मे पारंगत निर्णायकों की टोली के सम्मुख "गांधी जयंती " के अवसर पर लखनऊ मे प्रस्तुत करना था।
मन में मेरे भी कौतूहल था । विद्यार्थी पहली बार कुछ नया इतिहास रचने जा रहे थे ।जब परिणाम घोषित हुए और संस्थान की टीम विजयी हो पुरस्कृत घोषित हुई तो मन गद् गद् हो उठा ।
फिर क्या था विद्यार्थियों के हौसले बुलंद हुए और वह स्वरोजगार के लिए नित नई-नई सोच के साथ आते और किसी न किसी प्रतियोगिता में भाग लेते .....
विकास के पथ पर संस्थान संघर्षरत है और भावी अभियंता को सवारने मे प्रयासरत है।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
समूह के सभी सृजन कर्ताओ को भी कोटि कोटि बधाई एवं शुभकामनायें 🌹🌹
दिनांक 15/09/2019
विधा:संस्मरण
पिछले वर्ष की बात है मै अपने संस्थान में बैठी सोच रही थी कि अध्यापकों और विद्यार्थियों को क्या नया लक्ष्य दिया जाए जो आज देश के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो।बैठक की ,सभी शिक्षकों के साथ और वार्ताल्प कर एक समिति गठित की ।
समिति का कार्य था विद्यार्थियों मे स्वरोजगार की भावना प्रेरित करना।मै ढूँढने लगी, आसपास ऐसे अवसर ,जहाँ विद्यार्थी कर सके अपनी प्रतिभा का प्रयोग ।तभी अखबार मे देखा "प्लास्टिक के विरुद्ध रण" का आगाज़ प्रदेश स्तर पर प्रतियोगिता के रूप में पर्यावरण विभाग द्वारा किया गया था।
विभागाध्यक्ष सिविल को जिम्मेदारी दी कि कुछ विद्यार्थी इसमे प्रतिभाग करे।फिर क्या था उन्होंने तैयारी शुरू कर दी।हजारों टोलियाँ ने पूरे प्रदेश से इसमें भाग लिया और हमारा संस्थान कई पठाव पार करता हुआ आखरी पड़ाव पर पहुँच गया ,जिसमे दस प्रतिभागी टोलियाँ बची थी।उन्हें अपना प्रदर्शन अपने विषय मे पारंगत निर्णायकों की टोली के सम्मुख "गांधी जयंती " के अवसर पर लखनऊ मे प्रस्तुत करना था।
मन में मेरे भी कौतूहल था । विद्यार्थी पहली बार कुछ नया इतिहास रचने जा रहे थे ।जब परिणाम घोषित हुए और संस्थान की टीम विजयी हो पुरस्कृत घोषित हुई तो मन गद् गद् हो उठा ।
फिर क्या था विद्यार्थियों के हौसले बुलंद हुए और वह स्वरोजगार के लिए नित नई-नई सोच के साथ आते और किसी न किसी प्रतियोगिता में भाग लेते .....
विकास के पथ पर संस्थान संघर्षरत है और भावी अभियंता को सवारने मे प्रयासरत है।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
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