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ब्लॉग संख्या :-489
"अंतिम यात्रा"
मैं भुला नहीं सका
बीती हुई यादों को
टूटे हुए सपनों को,
मैं मना नहीं सका
सोचे हुए ख्वाबों को
रूठे हुए अपनों को
और आ गई,
अंतिम यात्रा।
बड़ी जल्दी-जल्दी
मैंने जिंदगी को जी लिया,
बड़ी ख़ामोशी के साथ
हर दर्द को पी लिया,
रुकना चाहता था
अपने पुराने आसरे में,
कहना चाहता था
जीवन की हर दास्ताँ
अपनों के मुशायरे में,
सोचता था कुछ और ठहरूँ
कहाँ, कब, किसके संग?
ये तय कर न सका
और आ गई,
अंतिम यात्रा।
मेरे पत्र, मेरी रचनाएं,मेरी तस्वीरें
रह गई संदूकों में कहीं,
जीवन साथी के अधूरे ख्वाब
लिपट गए बातों में यहीं
और सफ़ेद बालों वाला
झुर्राता चेहरा,
कुछ कर न सका,
खाली पन्नो को भर न सका
और आ गई,
अंतिम यात्रा।
मित्र बंधु, अपने खून
खिलाये दुलारे अपने जिस्म
दिखे नहीं मुझको कहीं,
मेरी किताबें, मेरे विचार
मेरे अंधरे, मेरे उजाले, मेरे इरादे
जीवन पर मेरा अधिकार,
समेटता हूँ जल्दी-जल्दी
निपटाता हूँ जल्दी-जल्दी,
चाहता हूँ कुछ और जी लूँ,
हसरतों के लजीज रस को
सबड़ सबड़ के और पी लूँ,
पर ऐसा हो न सका,
अगला धागा पिरो न सका
और आ गई,
अंतिम यात्रा।
स्वरचित
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर
(मैसूर)
मैं भुला नहीं सका
बीती हुई यादों को
टूटे हुए सपनों को,
मैं मना नहीं सका
सोचे हुए ख्वाबों को
रूठे हुए अपनों को
और आ गई,
अंतिम यात्रा।
बड़ी जल्दी-जल्दी
मैंने जिंदगी को जी लिया,
बड़ी ख़ामोशी के साथ
हर दर्द को पी लिया,
रुकना चाहता था
अपने पुराने आसरे में,
कहना चाहता था
जीवन की हर दास्ताँ
अपनों के मुशायरे में,
सोचता था कुछ और ठहरूँ
कहाँ, कब, किसके संग?
ये तय कर न सका
और आ गई,
अंतिम यात्रा।
मेरे पत्र, मेरी रचनाएं,मेरी तस्वीरें
रह गई संदूकों में कहीं,
जीवन साथी के अधूरे ख्वाब
लिपट गए बातों में यहीं
और सफ़ेद बालों वाला
झुर्राता चेहरा,
कुछ कर न सका,
खाली पन्नो को भर न सका
और आ गई,
अंतिम यात्रा।
मित्र बंधु, अपने खून
खिलाये दुलारे अपने जिस्म
दिखे नहीं मुझको कहीं,
मेरी किताबें, मेरे विचार
मेरे अंधरे, मेरे उजाले, मेरे इरादे
जीवन पर मेरा अधिकार,
समेटता हूँ जल्दी-जल्दी
निपटाता हूँ जल्दी-जल्दी,
चाहता हूँ कुछ और जी लूँ,
हसरतों के लजीज रस को
सबड़ सबड़ के और पी लूँ,
पर ऐसा हो न सका,
अगला धागा पिरो न सका
और आ गई,
अंतिम यात्रा।
स्वरचित
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर
(मैसूर)
29 अगस्त,2019 गुरुवार
यात्रा देती मन को खुशियां
परमपिता का दर्शन होता।
किये पाप सब मिट जाते हैं
जन जीवन में कभी न रोता।
हँसी खुशी मन आल्हादित
हर कर्म आनंदमय करते हैं।
यात्री परस्पर मिलकर सारे
एक दूजे की विपदा हरते हैं ।
मिलन चाह यात्रा में होती है
जग के पालनहार दर्शन की।
चरणकमल में हिय अर्पित हो
परमानन्द स्थिति हो मन की।
जीवन के अंतिम पड़ाव पर
शव यात्रा चिर स्थायी होती।
मत इतराओ जीवन पाकर
सदा जलाओ पुण्य ज्योति।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
यात्रा देती मन को खुशियां
परमपिता का दर्शन होता।
किये पाप सब मिट जाते हैं
जन जीवन में कभी न रोता।
हँसी खुशी मन आल्हादित
हर कर्म आनंदमय करते हैं।
यात्री परस्पर मिलकर सारे
एक दूजे की विपदा हरते हैं ।
मिलन चाह यात्रा में होती है
जग के पालनहार दर्शन की।
चरणकमल में हिय अर्पित हो
परमानन्द स्थिति हो मन की।
जीवन के अंतिम पड़ाव पर
शव यात्रा चिर स्थायी होती।
मत इतराओ जीवन पाकर
सदा जलाओ पुण्य ज्योति।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
द्वितीय प्रस्तुति
संकल्पों विकल्पों को ले
जीवन यात्रा आगे बढ़ती।
कर्मशील मानव के हिय पर
विजय वैजयंती नित ही सजती।
जीवन तो संग्राम है मित्रों
समर यात्रा जीवन पथ है।
मंजिल हेतु रहे कार्य रत
मिंले उसे जीवन महारथ है।
इक दूजे का मिंले सहारा
मिलजुल आगे कदम बढ़ाओ।
हम पथिक हैं इस जीवन में
दुर्गम मार्ग सुगम बनाओ ।
सुमंगलमय स्वस्थ मयी हो
सावधान हो कदम बढ़ाना।
हम राहगीर सभी यात्रा के
मातृभूमि हित तिलक लगाना।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
संकल्पों विकल्पों को ले
जीवन यात्रा आगे बढ़ती।
कर्मशील मानव के हिय पर
विजय वैजयंती नित ही सजती।
जीवन तो संग्राम है मित्रों
समर यात्रा जीवन पथ है।
मंजिल हेतु रहे कार्य रत
मिंले उसे जीवन महारथ है।
इक दूजे का मिंले सहारा
मिलजुल आगे कदम बढ़ाओ।
हम पथिक हैं इस जीवन में
दुर्गम मार्ग सुगम बनाओ ।
सुमंगलमय स्वस्थ मयी हो
सावधान हो कदम बढ़ाना।
हम राहगीर सभी यात्रा के
मातृभूमि हित तिलक लगाना।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन "भावों के मोती"
कविता "अंनत यात्रा"
दिनांक 29-08-2019
-----------------------------
मैं राही अनजान डगर की ।
अनवरत जारी है यात्रा।
कहां से आई नहीं पता है
पूर्ण कहां होगी यह यात्रा।
विविध देह की मेरी सवारी
निशदिन नया ठिकाना है।
रात गुजारी रामरसोड़े
दिन भर चलते जाना है।
यायावर है जीवन मेरा
किससे बैर का भाव धरूं
सभी राह के संगी साथी
क्यूँ न प्रेम संचार करूं।
ना ही दूरी बोझ बनी है
ना ही समय अखरता है।
झगड़े और टंटे का डर
नैराश्य जिगर में भरता है।
प्रेम ही लेना प्रेम ही देना
प्रेमभाव ही पाना है।
प्रेमनिमग्नता लक्ष्य मेरा है
प्रेमधाम ही जाना है।
मानव देह सवारी मेरी
मुश्किल बड़ा चलाना है।
महज इसी में बैठ ठाठ से
अपने शहर को जाना है।
मित्रों मुझको करो बधाई
नया सवेरा आया है।
एक नई यात्रा के जानिब
एक संदेशा लाया है।
------------------------------
गोविंद व्यास रेलमगरा
कविता "अंनत यात्रा"
दिनांक 29-08-2019
-----------------------------
मैं राही अनजान डगर की ।
अनवरत जारी है यात्रा।
कहां से आई नहीं पता है
पूर्ण कहां होगी यह यात्रा।
विविध देह की मेरी सवारी
निशदिन नया ठिकाना है।
रात गुजारी रामरसोड़े
दिन भर चलते जाना है।
यायावर है जीवन मेरा
किससे बैर का भाव धरूं
सभी राह के संगी साथी
क्यूँ न प्रेम संचार करूं।
ना ही दूरी बोझ बनी है
ना ही समय अखरता है।
झगड़े और टंटे का डर
नैराश्य जिगर में भरता है।
प्रेम ही लेना प्रेम ही देना
प्रेमभाव ही पाना है।
प्रेमनिमग्नता लक्ष्य मेरा है
प्रेमधाम ही जाना है।
मानव देह सवारी मेरी
मुश्किल बड़ा चलाना है।
महज इसी में बैठ ठाठ से
अपने शहर को जाना है।
मित्रों मुझको करो बधाई
नया सवेरा आया है।
एक नई यात्रा के जानिब
एक संदेशा लाया है।
------------------------------
गोविंद व्यास रेलमगरा
शीर्षक-- यात्रा/सफ़र
प्रथम प्रस्तुति
जिसे सैर करने का रंग है
उसे यहाँ जीने का ढंग है ।।
जिन्दगी को हम क्या जानेंगे
खूबसूरत भी औ भदरंग है ।।
हम ठहरे भैया मस्त मौला
हम न कहें जिन्दगी जंग है ।।
बेशक बेरहम जिन्दगी ने
किया हमें बहुत ही तंग है ।।
क्या किसी से शिकवे गिले यहाँ
कब कौन कितने दिन संग है ।।
हर लम्हा जियो जिन्दगी यह
कभी गंभीर कभी हुड़दंग है ।।
कहीं बसंत तो कहीं धूप है
कहीं सावन मस्त मलंग है ।।
जीवन सफ़र ट्रेवल ऐजेन्ट
के पैकेज जैसा ढंग है ।।
सब सुनिश्चित 'शिवम' कहाँ कितने
दिनों ...ठहरने का प्रबंध है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/08/2019
प्रथम प्रस्तुति
जिसे सैर करने का रंग है
उसे यहाँ जीने का ढंग है ।।
जिन्दगी को हम क्या जानेंगे
खूबसूरत भी औ भदरंग है ।।
हम ठहरे भैया मस्त मौला
हम न कहें जिन्दगी जंग है ।।
बेशक बेरहम जिन्दगी ने
किया हमें बहुत ही तंग है ।।
क्या किसी से शिकवे गिले यहाँ
कब कौन कितने दिन संग है ।।
हर लम्हा जियो जिन्दगी यह
कभी गंभीर कभी हुड़दंग है ।।
कहीं बसंत तो कहीं धूप है
कहीं सावन मस्त मलंग है ।।
जीवन सफ़र ट्रेवल ऐजेन्ट
के पैकेज जैसा ढंग है ।।
सब सुनिश्चित 'शिवम' कहाँ कितने
दिनों ...ठहरने का प्रबंध है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/08/2019
"रूखी-सी यात्रा"
यादों को मन में संजोए
चल पड़ा हूँ
प्रगतिपथ पर अकेला
प्यासे बादल सम
भटक रहा हूँ मैं
अब मन्जिल की खोज में
ज्यों भटकती है नदी
समुद्र की तलाश में
छोड़ चुका हूँ मैं
मातृ-भू को
नभ कई पीछे
रह जाएंगे
हैं रूखी-सी यात्रा मेरी
बैचेन-सा है मेरा मन
क्या होगा मेरा
वाह-वाही मिलेगी मुझे
या मिलेगा एकांकी जीवन
इस यात्रा में
रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा,सिरसा
हरियाणा,
यादों को मन में संजोए
चल पड़ा हूँ
प्रगतिपथ पर अकेला
प्यासे बादल सम
भटक रहा हूँ मैं
अब मन्जिल की खोज में
ज्यों भटकती है नदी
समुद्र की तलाश में
छोड़ चुका हूँ मैं
मातृ-भू को
नभ कई पीछे
रह जाएंगे
हैं रूखी-सी यात्रा मेरी
बैचेन-सा है मेरा मन
क्या होगा मेरा
वाह-वाही मिलेगी मुझे
या मिलेगा एकांकी जीवन
इस यात्रा में
रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा,सिरसा
हरियाणा,
नमन मंच
भावों के मोती
शीर्षक-यात्रा
🌹अंत समय🌹
अंत समय जब आया तो
बच्चों ने आवाज लगाई
हाथों में ले हाथ पिता का
पुछा दौलत कहाँ छुपाई
राज अपने हमें बताओ
सच्चाई को ना दबाओ
उम्र में हम नहीं है कच्चे
आपके हम नादान बच्चे
पिता ने आँखों को खोला
अंदर से संदूक मंगाया
देखो बच्चों इसे जरा तुम
इसमें है महादेव भोला
इसके संग जीवन बीता
यही मेरा तन मन धन है
जो चाहो इन्हें ले जाओ
ये संगी साथी उपवन है
सारे बच्चे अब सोच रहे
भूल को अपनी कोस रहे
प्रायश्चित हम कैसे करें
अश्रुसंग चरण शीश धरें
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
भावों के मोती
शीर्षक-यात्रा
🌹अंत समय🌹
अंत समय जब आया तो
बच्चों ने आवाज लगाई
हाथों में ले हाथ पिता का
पुछा दौलत कहाँ छुपाई
राज अपने हमें बताओ
सच्चाई को ना दबाओ
उम्र में हम नहीं है कच्चे
आपके हम नादान बच्चे
पिता ने आँखों को खोला
अंदर से संदूक मंगाया
देखो बच्चों इसे जरा तुम
इसमें है महादेव भोला
इसके संग जीवन बीता
यही मेरा तन मन धन है
जो चाहो इन्हें ले जाओ
ये संगी साथी उपवन है
सारे बच्चे अब सोच रहे
भूल को अपनी कोस रहे
प्रायश्चित हम कैसे करें
अश्रुसंग चरण शीश धरें
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
नमन मंच भावों के मोती
29 /8/2019/
बिषय ,,"यात्रा"'
######
मंजिल बहुत दूर यात्रा कठिन
रास्ते टेढ़े मेढ़े फिर दुनिया के बंधन
पाने की चाहत में घर से निकल पड़े
कदम कदम पर पर्वत से ब्यवधान खड़े
किसी को राह मिल गई
कोई बीच में ही थक गया
कोई मुकाम तक पहुंचने से पहले सांस में अटक गया
यात्रा कहां तक मालूम नहीं किसी को
ठिकाना मिल जाएगा बिश्वास है सभी को
जब तक सांस अनवरत जारी
अंतिम समय होगी चार कंधों की सवारी
यही शाश्वत सत्य अंतिम यात्रा का आधार
श्मशान तक सभी का साथ
फिर बिदाई देता संसार
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
29 /8/2019/
बिषय ,,"यात्रा"'
######
मंजिल बहुत दूर यात्रा कठिन
रास्ते टेढ़े मेढ़े फिर दुनिया के बंधन
पाने की चाहत में घर से निकल पड़े
कदम कदम पर पर्वत से ब्यवधान खड़े
किसी को राह मिल गई
कोई बीच में ही थक गया
कोई मुकाम तक पहुंचने से पहले सांस में अटक गया
यात्रा कहां तक मालूम नहीं किसी को
ठिकाना मिल जाएगा बिश्वास है सभी को
जब तक सांस अनवरत जारी
अंतिम समय होगी चार कंधों की सवारी
यही शाश्वत सत्य अंतिम यात्रा का आधार
श्मशान तक सभी का साथ
फिर बिदाई देता संसार
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
नमन भावों के मोती,
आज का विषय, यात्रा
दिन, गुरुवार
दिनांक, 2 9,8,2019,
यहाँ पर ईश्वर ने भेजा है हम सब को,
इस नश्वर जगत की यात्रा करने को ।
हम जायें और देखें समझें इस दुनियाँ को ,
फिर मिले अनुभवों की पूँजी लाने को ।
यहाँ हम करें कमाई बोयें अपने कर्मों को ,
भेजा है हमको कर्मों के बाग लगाने को।
अनदेखी डगर ही चलना है हम सबको ,
मिलें फूल चाहे कांटे नहीं देखना पैरों को ।
खुशियों के बदले ही तू पायेगा खुशियों को,
प्रेम बाँट कर आसान बनाना है यात्रा को।
रुकना नहीं है जब निकला है यात्रा को,
मालूम नहीं कब हमें जाना पड़े अंतिम यात्रा को ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश ,
आज का विषय, यात्रा
दिन, गुरुवार
दिनांक, 2 9,8,2019,
यहाँ पर ईश्वर ने भेजा है हम सब को,
इस नश्वर जगत की यात्रा करने को ।
हम जायें और देखें समझें इस दुनियाँ को ,
फिर मिले अनुभवों की पूँजी लाने को ।
यहाँ हम करें कमाई बोयें अपने कर्मों को ,
भेजा है हमको कर्मों के बाग लगाने को।
अनदेखी डगर ही चलना है हम सबको ,
मिलें फूल चाहे कांटे नहीं देखना पैरों को ।
खुशियों के बदले ही तू पायेगा खुशियों को,
प्रेम बाँट कर आसान बनाना है यात्रा को।
रुकना नहीं है जब निकला है यात्रा को,
मालूम नहीं कब हमें जाना पड़े अंतिम यात्रा को ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश ,
नमन भावों के मोती
विषय यात्रा
विधा कविता
दिनांक 28.8 2019
दिन गुरुवार
यात्रा
🍁🍁🍁
मृत्यु है जीवन का अन्तिम पडा़व
इस यात्रा में प्रधान होता लगाव
न जाने कौन कब चल दे
यही रहता है सबका भाव।
जीवन में होती पर एक सुन्दर लय
कृष्ण कृष्ण में होऊँ तन्मय
धीमें धीमें होठ खुलें और निकले
तमसो मा ज्योतिर्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
इस यात्रा का बस यही है सार
इसमें ही वास्तविक है निखार
वरना चौरासी लाख योनियों के वही लफडे़
वही चिंता और चिता हर बार।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय यात्रा
विधा कविता
दिनांक 28.8 2019
दिन गुरुवार
यात्रा
🍁🍁🍁
मृत्यु है जीवन का अन्तिम पडा़व
इस यात्रा में प्रधान होता लगाव
न जाने कौन कब चल दे
यही रहता है सबका भाव।
जीवन में होती पर एक सुन्दर लय
कृष्ण कृष्ण में होऊँ तन्मय
धीमें धीमें होठ खुलें और निकले
तमसो मा ज्योतिर्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
इस यात्रा का बस यही है सार
इसमें ही वास्तविक है निखार
वरना चौरासी लाख योनियों के वही लफडे़
वही चिंता और चिता हर बार।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय ,,यात्रा |
ईश्वर प्रदत जीवन जगत आया |
जन्म से मृत्यु पर्यंत यात्रा ही यात्रा |
बचपन तो बीाता मात पिता की छत्र छाया मै |
पढा़ लिखा विद्वान बनाया अब जीवन यात्रा का प्रारम्भ |
कई आडी तिरछी पगडंडिया दलदल |
काँटो भरी राहे पार करता बड चला |
सीखे सघर्षो से जीवन जीना कैसे |
सुख दुख की बेला से मिले अनुभवो से
पाई नई राहे मिला होंसला इन्ही |
फिर मौका नही मिलेगा बंधुओं |
रहो हिलमिलकर सदगुण सदाचरण
अच्छे कर्म परसेवा धर्म ही जाऐगा साध |
धन दौलत महल अटारी रह जायेगे |
अतिंम बेला की न राह तको कर्म कर्यत्वौ से मुख न मोडो |
स्वरचित ,,,दमयंती मिश्रा
ईश्वर प्रदत जीवन जगत आया |
जन्म से मृत्यु पर्यंत यात्रा ही यात्रा |
बचपन तो बीाता मात पिता की छत्र छाया मै |
पढा़ लिखा विद्वान बनाया अब जीवन यात्रा का प्रारम्भ |
कई आडी तिरछी पगडंडिया दलदल |
काँटो भरी राहे पार करता बड चला |
सीखे सघर्षो से जीवन जीना कैसे |
सुख दुख की बेला से मिले अनुभवो से
पाई नई राहे मिला होंसला इन्ही |
फिर मौका नही मिलेगा बंधुओं |
रहो हिलमिलकर सदगुण सदाचरण
अच्छे कर्म परसेवा धर्म ही जाऐगा साध |
धन दौलत महल अटारी रह जायेगे |
अतिंम बेला की न राह तको कर्म कर्यत्वौ से मुख न मोडो |
स्वरचित ,,,दमयंती मिश्रा
भावों के मोती
बिषय- यात्रा
जीवन यात्रा की राह में
कभी मिलेंगे कांटे,कभी मिलेंगे फूल।
कहीं होगी छांव तो कहीं होगी धूप।
मगर मंज़िल अगर पाना है तो
हर मुश्किल से गुजरना होगा।
खुशी मिले या गम
हर हाल में हँसना होगा।
चांदनी की शीतलता पाने के लिए
दिनभर गरमी में तपना होगा।
यूंही नहीं मिल जाती कामयाबी
फूंक फूंक कर कदम रखना होगा।
गलत आलोचनाओं का सामना
निडर होकर करना होगा।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- यात्रा
जीवन यात्रा की राह में
कभी मिलेंगे कांटे,कभी मिलेंगे फूल।
कहीं होगी छांव तो कहीं होगी धूप।
मगर मंज़िल अगर पाना है तो
हर मुश्किल से गुजरना होगा।
खुशी मिले या गम
हर हाल में हँसना होगा।
चांदनी की शीतलता पाने के लिए
दिनभर गरमी में तपना होगा।
यूंही नहीं मिल जाती कामयाबी
फूंक फूंक कर कदम रखना होगा।
गलत आलोचनाओं का सामना
निडर होकर करना होगा।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषयःः# यात्रा#
विधाःः काव्यः ः
अंत पढाव इस जीवन का
प्रभु कुछ गौरवशाली हो।
यही कामना भगवन मेरी,
अंत यात्रा वैभवशाली हो।
आवागमन चलता रहता है
उसका बना हुआ विधान।
यात्राऐं तो करना ही होंगी,
यही तो इच्छा कृपानिधान।
जीवन यात्रा अच्छी हो सब,
हम रहें सभीजन हिलमिल।
रहें प्रफुल्लित सभी यहाँ पर,
भक्त प्रभु प्रेमीजन घुलमिल।
अंत समय हम भक्ति कर लें।
अंतिम पढाव में शक्ति भर लें।
यात्रा अपनी सुखद सुलभ हो,
ऐसा ही अखिलेश्वर से वर लें।
स्वरचितःः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
विधाःः काव्यः ः
अंत पढाव इस जीवन का
प्रभु कुछ गौरवशाली हो।
यही कामना भगवन मेरी,
अंत यात्रा वैभवशाली हो।
आवागमन चलता रहता है
उसका बना हुआ विधान।
यात्राऐं तो करना ही होंगी,
यही तो इच्छा कृपानिधान।
जीवन यात्रा अच्छी हो सब,
हम रहें सभीजन हिलमिल।
रहें प्रफुल्लित सभी यहाँ पर,
भक्त प्रभु प्रेमीजन घुलमिल।
अंत समय हम भक्ति कर लें।
अंतिम पढाव में शक्ति भर लें।
यात्रा अपनी सुखद सुलभ हो,
ऐसा ही अखिलेश्वर से वर लें।
स्वरचितःः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
नमन मंच भावों के मोती
29/08/2019
वीरवार
र्शीर्षक यात्रा
विधा -- मुक्त छंद
ज़िंदगी की सांझ,
ढ़लने को है!
अनंत यात्रा जारी है!
पर ,नहीं जानती मै!
कितने और फासले मुझे!
अभी और तय करने है,
न जाने कितनी राहें,
अभी और बाकी है,
बीती स्मृतियां साथ लिये,
आगे बढ़ती जाती हूं,
जो पल लौटेगे नहीं,
पर साथ चलते हैं मेरे,
अब तो राह तकती हूं मैं,
आने वाले उस मोड़ का,
यात्रा के अंत का,
जिस पल मुझे!
ठिठके पैरों से चलकर
आगे जाना है!
मैं सोच में हूं!
साझं ही तो है!
फिर यह नैराश्य कैसा......?
भोर आदि है!
सांझ अंत तो नहीं.......!
भोर आनंद है!
सांझ सौम्य,
दोनों आनंदमय!
बस प्रतिक्षा है!
उस मधुमय पल का
नहीं जानती
वह भोर होगा?
या भरी दोपहरी?
शुभ्र चाँदनी?
या यामिनी फैली?
फिर सान्ध्य बेला?
या कोई ऐसी?
भी बेला होगी?
जिसमे मैं,
इस संसार तज,
सब बंधंनों से मुक्त,
अनंत में लीन हो जाऊंगी!
फिर लौट नहीं आऊंगी
स्वरचित डॉ.विभा रजंन(कनक)
29/08/2019
वीरवार
र्शीर्षक यात्रा
विधा -- मुक्त छंद
ज़िंदगी की सांझ,
ढ़लने को है!
अनंत यात्रा जारी है!
पर ,नहीं जानती मै!
कितने और फासले मुझे!
अभी और तय करने है,
न जाने कितनी राहें,
अभी और बाकी है,
बीती स्मृतियां साथ लिये,
आगे बढ़ती जाती हूं,
जो पल लौटेगे नहीं,
पर साथ चलते हैं मेरे,
अब तो राह तकती हूं मैं,
आने वाले उस मोड़ का,
यात्रा के अंत का,
जिस पल मुझे!
ठिठके पैरों से चलकर
आगे जाना है!
मैं सोच में हूं!
साझं ही तो है!
फिर यह नैराश्य कैसा......?
भोर आदि है!
सांझ अंत तो नहीं.......!
भोर आनंद है!
सांझ सौम्य,
दोनों आनंदमय!
बस प्रतिक्षा है!
उस मधुमय पल का
नहीं जानती
वह भोर होगा?
या भरी दोपहरी?
शुभ्र चाँदनी?
या यामिनी फैली?
फिर सान्ध्य बेला?
या कोई ऐसी?
भी बेला होगी?
जिसमे मैं,
इस संसार तज,
सब बंधंनों से मुक्त,
अनंत में लीन हो जाऊंगी!
फिर लौट नहीं आऊंगी
स्वरचित डॉ.विभा रजंन(कनक)
आज का विषय है यात्रा,१/सेदोका मेरे,
१/वसुधा पर,
जीव जन्म लेकर,
जीवन यात्रा करें,
प्रारब्ध कर्म,
भोगने आता, जी व,
कर्म भोग के जाता।।१।।
२/जीवन यात्रा,
माया जाल बुनते,
धन लिप्सा लिपटे,
मोह बंधन,
सामान ही जुटाया,
जीवन ही गंवाया।।२।।
३।।
दुख बहुत,
जिन्दगी में आते हैं,
समय निकाल के
आत्मानंद को,
कुछ पल हंसाओ,
प्रुभ को याद करो।।
४।।
जीवन यात्रा,
कांटों भरी पथ है,
लंबी-लंबी डगर
टेढ़े-मेढ़े सा
अंधेरे उजाले मे
जीव करते यात्रा।।
सेदोकाकार देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,ग।
१/वसुधा पर,
जीव जन्म लेकर,
जीवन यात्रा करें,
प्रारब्ध कर्म,
भोगने आता, जी व,
कर्म भोग के जाता।।१।।
२/जीवन यात्रा,
माया जाल बुनते,
धन लिप्सा लिपटे,
मोह बंधन,
सामान ही जुटाया,
जीवन ही गंवाया।।२।।
३।।
दुख बहुत,
जिन्दगी में आते हैं,
समय निकाल के
आत्मानंद को,
कुछ पल हंसाओ,
प्रुभ को याद करो।।
४।।
जीवन यात्रा,
कांटों भरी पथ है,
लंबी-लंबी डगर
टेढ़े-मेढ़े सा
अंधेरे उजाले मे
जीव करते यात्रा।।
सेदोकाकार देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,ग।
विषय-यात्रा
विधा-मुक्त छंद
🌹🌹🌹🌹
अपने जीवन में
बहुत सी यात्राएं की हैं मैंने
शहर-शहर, गांव-गांव
कभी मिले मीलों फैले
घने जंगल और तपती राहें
कभी शीतलता पहुंचाती
पीपल की ठंडी छाँव
चलते चलते कदम ठिठकने लगे
रास्ते मानो और दूर खिसकने लगे
अभी तो मीलों का सफर बाकी है
अभी से कैसी छाई ये मायूसी है
मंज़िल को भी तो अभी पाना है
इस जीवन को सफल बनाना है
सबके दिलों पर छा जाना है
देखने हैं अभी कई ख़्वाब रुपहले
खुद को भी तो अभी जानना है
अपनी उस अंतिम
अनंत यात्रा पर जाने से पहले.. !!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विधा-मुक्त छंद
🌹🌹🌹🌹
अपने जीवन में
बहुत सी यात्राएं की हैं मैंने
शहर-शहर, गांव-गांव
कभी मिले मीलों फैले
घने जंगल और तपती राहें
कभी शीतलता पहुंचाती
पीपल की ठंडी छाँव
चलते चलते कदम ठिठकने लगे
रास्ते मानो और दूर खिसकने लगे
अभी तो मीलों का सफर बाकी है
अभी से कैसी छाई ये मायूसी है
मंज़िल को भी तो अभी पाना है
इस जीवन को सफल बनाना है
सबके दिलों पर छा जाना है
देखने हैं अभी कई ख़्वाब रुपहले
खुद को भी तो अभी जानना है
अपनी उस अंतिम
अनंत यात्रा पर जाने से पहले.. !!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
सूरज,चांद,तारे
यह निहारिकाएं,,यह ब्रह्मांड
अनन्त यात्रा पर है..
ब्रह्मांड के पंचतत्वों से
निर्मित यह जीव
ज्ञात एक मात्र धरती पर
सांसों की लयता में
कथित आयुष्य का
यात्री ही तो है..
कोटि-कोटि योजन आकाश
निरीह जीवों की श्रृंखला में
मानव ही एक मात्र
बुद्धिमान स्वघोषित प्राणी है..।
काम,क्रोध,मद,मोह,लोभ
घृणा, तिरस्कार, अंहकार
में डूबा मानव छोटी सी
यात्रा का यात्री होकर भी
दुनिया को जीतना चाहता है
जबकि खुद चंद समय का
एक मेहमान मात्र है।
गोविन्द सिंह चौहान
यह निहारिकाएं,,यह ब्रह्मांड
अनन्त यात्रा पर है..
ब्रह्मांड के पंचतत्वों से
निर्मित यह जीव
ज्ञात एक मात्र धरती पर
सांसों की लयता में
कथित आयुष्य का
यात्री ही तो है..
कोटि-कोटि योजन आकाश
निरीह जीवों की श्रृंखला में
मानव ही एक मात्र
बुद्धिमान स्वघोषित प्राणी है..।
काम,क्रोध,मद,मोह,लोभ
घृणा, तिरस्कार, अंहकार
में डूबा मानव छोटी सी
यात्रा का यात्री होकर भी
दुनिया को जीतना चाहता है
जबकि खुद चंद समय का
एक मेहमान मात्र है।
गोविन्द सिंह चौहान
दि.29/8/19.
विषयः यात्रा
*
जीवन की लघु - तरणी से,
संसृति - समुद्र तिर पाना!
है कितनी कठिन चुनौती,
यात्रा-पथ अजब अजाना!!
फिर भी चलना तो है ही,
रुक रहना अरे मरण है!
उत्ताल तरंगों से भी,
टकराना नराचरण है।
संघर्षों तूफानों भी,
आस्था का दीप जलाये।
विपदाओं पर पद रख जो,
बढ़ते हौंसला बढ़ाये।
निश्चय अन्ततः सफलता,
चूमती चरण है उनके।
सत्कर्म निरत जो जग-हित,
मांगलिक भाव हैं जिनके।।
-- डा.'शितिकंठ'
विषयः यात्रा
*
जीवन की लघु - तरणी से,
संसृति - समुद्र तिर पाना!
है कितनी कठिन चुनौती,
यात्रा-पथ अजब अजाना!!
फिर भी चलना तो है ही,
रुक रहना अरे मरण है!
उत्ताल तरंगों से भी,
टकराना नराचरण है।
संघर्षों तूफानों भी,
आस्था का दीप जलाये।
विपदाओं पर पद रख जो,
बढ़ते हौंसला बढ़ाये।
निश्चय अन्ततः सफलता,
चूमती चरण है उनके।
सत्कर्म निरत जो जग-हित,
मांगलिक भाव हैं जिनके।।
-- डा.'शितिकंठ'
नमन भावो के मोती
शुभ दुपहर दोस्तों
दैनिक लेखन
विधा हाइकू
29/8/2019
सफर /यात्रा
1
शरीर बस
ईश हैं ड्राइवर
साँसो की यात्रा
2
जग सागर
लहरों का सफर
प्रभु जहाज
3
शरीर बस
अंग हमसफर
दिल चालक
4
जीवन नैया
भगवान खिवैया
साँसो का सफर
5
प्यासे है नैना
ढूंढे हमसफर
चैन न रैना
6
चाँद की यात्रा
भटके है चांदनी
रैना प्रसन्न
7
चाँद बेबस
कैद मे अमावस
रुकी थी यात्रा
8
यात्रा सुहानी
मंगेतर चांदनी
चाँद प्रतीक्षा
9
राधा के कृष्ण
मथुरा का सफर
छुटा गोकुल
कुसुम पंत (उत्साही )
स्वरचित
देहरादून
उत्तराखंड
शुभ दुपहर दोस्तों
दैनिक लेखन
विधा हाइकू
29/8/2019
सफर /यात्रा
1
शरीर बस
ईश हैं ड्राइवर
साँसो की यात्रा
2
जग सागर
लहरों का सफर
प्रभु जहाज
3
शरीर बस
अंग हमसफर
दिल चालक
4
जीवन नैया
भगवान खिवैया
साँसो का सफर
5
प्यासे है नैना
ढूंढे हमसफर
चैन न रैना
6
चाँद की यात्रा
भटके है चांदनी
रैना प्रसन्न
7
चाँद बेबस
कैद मे अमावस
रुकी थी यात्रा
8
यात्रा सुहानी
मंगेतर चांदनी
चाँद प्रतीक्षा
9
राधा के कृष्ण
मथुरा का सफर
छुटा गोकुल
कुसुम पंत (उत्साही )
स्वरचित
देहरादून
उत्तराखंड
मन मंच
29-08-2019
यात्रा
1
हल्का हो बोझ
मन सुंदर सोच
सुखद यात्रा
तृष्णा दरकिनार
भवसागर पार
2
कंधे पे घर
यात्रा में यायावर
चलती साँस
आँगन की तलाश
कहीं खुला आकाश
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
29-08-2019
यात्रा
1
हल्का हो बोझ
मन सुंदर सोच
सुखद यात्रा
तृष्णा दरकिनार
भवसागर पार
2
कंधे पे घर
यात्रा में यायावर
चलती साँस
आँगन की तलाश
कहीं खुला आकाश
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
नमन भावों के मोती 🙏
दिनांक :- 29 /08 /19
विषय :- यात्रा
जीवन को तू यात्रा जान,
चलते जाना तेरा काम,
कभी धूप, कभी छाँव मिलेगी,
कठिनायाँ अपार मिलेगी,
सुख को ठंडी छाँव समझना,
नदियाँ में नाव समझना,
दुःख पथ के काँटों जैसा,
हर जीवन में आये हमेशा,
इन बातों से न घबराना ,
काम तेरा हैं चलते जाना ,
भोग - विलास को दिशाएँ जान,
इनमें भटकना नहीं तेरा काम,
दृढ़ निश्चय करके तुझे चलना,
संस्कारों का मान रखना,
काम - क्रोध हैं, आधी - तूफान,
इसमें बह जाता इंसान,
खुद को तू न कमजोर समझना,
कर्म - पथ पर हैं तुझे आगे बढ़ना,
यात्रा में कई लोग मिलेगे ,
कुछ मिलेगे, कुछ वियोग भी होगे,
इनसे तू न विचलित होना,
अंतिम पड़ाव पर तू थक जाएगा,
बुढ़ापा जब तुझकॊ आएगा,
तब लेकर लाठी हाथ में चलना,
पर जीवन यात्रा तू पूरी करना ।
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित
दिनांक :- 29 /08 /19
विषय :- यात्रा
जीवन को तू यात्रा जान,
चलते जाना तेरा काम,
कभी धूप, कभी छाँव मिलेगी,
कठिनायाँ अपार मिलेगी,
सुख को ठंडी छाँव समझना,
नदियाँ में नाव समझना,
दुःख पथ के काँटों जैसा,
हर जीवन में आये हमेशा,
इन बातों से न घबराना ,
काम तेरा हैं चलते जाना ,
भोग - विलास को दिशाएँ जान,
इनमें भटकना नहीं तेरा काम,
दृढ़ निश्चय करके तुझे चलना,
संस्कारों का मान रखना,
काम - क्रोध हैं, आधी - तूफान,
इसमें बह जाता इंसान,
खुद को तू न कमजोर समझना,
कर्म - पथ पर हैं तुझे आगे बढ़ना,
यात्रा में कई लोग मिलेगे ,
कुछ मिलेगे, कुछ वियोग भी होगे,
इनसे तू न विचलित होना,
अंतिम पड़ाव पर तू थक जाएगा,
बुढ़ापा जब तुझकॊ आएगा,
तब लेकर लाठी हाथ में चलना,
पर जीवन यात्रा तू पूरी करना ।
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित
नमन भावों के मोती
दिनांक .. 29/8/2019
विषय .. यात्रा
********************
मुकद्दर मे नही थे तुम तो क्या करते बताओ।
तुम्ही को मार देते या कि मर जाते बताओ।
गिला शिकवा शिकायत अब नही करना कभी भी,
तुम्हारा सेज सँजता हम किधर जाते बताओ।
**
जो हम ना कर सके तो तुमने क्या की है बताओ।
चढी डोली पे जब तुम याद ना आयी बताओ।
सफर अब है मेरा जिसमें ना तू है साथ मेरे,
जो अब ना प्यार तो आँसू भला क्यो है बताओ।
**
मिली हो आज वर्षो फिर भी रौनक तो वही है।
धडकतें शेर के दिल की है धडकन भी वही है।
चलो करते है दोनो यात्रा यादों मे जाकर,
क्यो चुप हो प्यार है मुझसे की ना सच मे बताओ।
**
स्वरचित ..
शेर सिंह सर्राफ
देवरिया उ0प्र0
दिनांक .. 29/8/2019
विषय .. यात्रा
********************
मुकद्दर मे नही थे तुम तो क्या करते बताओ।
तुम्ही को मार देते या कि मर जाते बताओ।
गिला शिकवा शिकायत अब नही करना कभी भी,
तुम्हारा सेज सँजता हम किधर जाते बताओ।
**
जो हम ना कर सके तो तुमने क्या की है बताओ।
चढी डोली पे जब तुम याद ना आयी बताओ।
सफर अब है मेरा जिसमें ना तू है साथ मेरे,
जो अब ना प्यार तो आँसू भला क्यो है बताओ।
**
मिली हो आज वर्षो फिर भी रौनक तो वही है।
धडकतें शेर के दिल की है धडकन भी वही है।
चलो करते है दोनो यात्रा यादों मे जाकर,
क्यो चुप हो प्यार है मुझसे की ना सच मे बताओ।
**
स्वरचित ..
शेर सिंह सर्राफ
देवरिया उ0प्र0
विषय-यात्रा ( सफर )
मै निकली "सफर "पर अकेली
मंजिल क्या होनी ये पता लेकर,
पर चल पडी राह बदल
न जाने किधर,
भूल गयी कहाँ से आई
और कहाँ है जाना ,
किस भूल भुलैया में भटकी
कभी चली फिर अटकी ,
साथ में थी फलों की गठरी
कुछ मीठे कुछ खट्टे,
कुछ नमकीन कसैले ,
खाना होगा एक-एक फल,
मीठे खाये खुश हो-हो कर,
कुछ रोकर ,
कुछ निगले दवा समान,
कुछ बांटने चाहे ,
पर किसी को ना दे पाये,
अपने हिस्से के थे सब
किसको हिस्से देते,
अब कुछ अच्छे मीठे
फलों के पेड लगादूं,
तो आगे झोली में
मधुर-मधुर ही ले के जाऊं,
अनित्य में से शाश्वत समेटूं,
फिर एक यात्रा पर चल दूं,
पाना है परम गति
तो निर्मल, निश्छल,
विमल, वीतरागी बन,
मोक्ष मार्ग की राह थाम लूं,
मै आत्मा हूं ,
काम, क्रोध ,मोह-माया,
राग, द्वेष में लिपटी ,
भव बंधन में जकडी
तोड के सब जंजीरे
स्वयं स्वरूप पाना है,
बार-बार के सफर से
मुक्त हो जाना है।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।
फल=पूर्व कृत कर्म।
मै निकली "सफर "पर अकेली
मंजिल क्या होनी ये पता लेकर,
पर चल पडी राह बदल
न जाने किधर,
भूल गयी कहाँ से आई
और कहाँ है जाना ,
किस भूल भुलैया में भटकी
कभी चली फिर अटकी ,
साथ में थी फलों की गठरी
कुछ मीठे कुछ खट्टे,
कुछ नमकीन कसैले ,
खाना होगा एक-एक फल,
मीठे खाये खुश हो-हो कर,
कुछ रोकर ,
कुछ निगले दवा समान,
कुछ बांटने चाहे ,
पर किसी को ना दे पाये,
अपने हिस्से के थे सब
किसको हिस्से देते,
अब कुछ अच्छे मीठे
फलों के पेड लगादूं,
तो आगे झोली में
मधुर-मधुर ही ले के जाऊं,
अनित्य में से शाश्वत समेटूं,
फिर एक यात्रा पर चल दूं,
पाना है परम गति
तो निर्मल, निश्छल,
विमल, वीतरागी बन,
मोक्ष मार्ग की राह थाम लूं,
मै आत्मा हूं ,
काम, क्रोध ,मोह-माया,
राग, द्वेष में लिपटी ,
भव बंधन में जकडी
तोड के सब जंजीरे
स्वयं स्वरूप पाना है,
बार-बार के सफर से
मुक्त हो जाना है।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।
फल=पूर्व कृत कर्म।
दिनांक- २९- ८- १९
दिन- गुरूवार
विषय -यात्रा
विधा--हाइकु
=≠========================
1 - जीवन यात्रा
पग पग कठिन
चलते रहे
2 - शेष है सांसें
रूक न पाए यात्रा
किसी भी हाल
3 - कर्म उत्तम
यात्रा मंगलमय
हर समय
4 - पुष्प बरसें
जीवन की यात्रा में
बनो महान
रानी कोष्टी म प्र गुना
स्वरचित एवं मौलिक
दिन- गुरूवार
विषय -यात्रा
विधा--हाइकु
=≠========================
1 - जीवन यात्रा
पग पग कठिन
चलते रहे
2 - शेष है सांसें
रूक न पाए यात्रा
किसी भी हाल
3 - कर्म उत्तम
यात्रा मंगलमय
हर समय
4 - पुष्प बरसें
जीवन की यात्रा में
बनो महान
रानी कोष्टी म प्र गुना
स्वरचित एवं मौलिक
जीवन यात्रा शुरू, कंँटीली राहों सेl
हार ना मानी, सामना कठिनाई से।।
शारदे का साज हूँ,हार ना मानती।
राह आसां बनी,मांँ के आशीर्वाद से।।
शूल हृदय सदा लगे,सबके बर्ताव से ।
यात्रा क्षण जिया,मांँ के आशीर्वाद से।।
हर दर्द सहा,खामोशी धारण कर।
जमाना दुश्मन,कैसे जीती खुशी से।।
भावों मोती संग,शेष यात्रा शुरू।
नित्य सृजन,मांँ के आशीर्वाद से।
अनुभव मैंने, कलम कागज उतार।
यात्रा यूं शुरू ,मांँ के आशीर्वाद से।
शुक्रिया उनका,यात्रा दुर्गम बनाई।
कलम पहचान,मांँ के आशीर्वाद से।
जान जब तक है,लेखनी रहेगी।
जिऊंगी हर पल, मांँ के आशीर्वाद से।
शेष यात्रा आसां,अपनों के आशीर्वाद से।
स्नेह सम्मान मिला, मांँ के आशीर्वाद से।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
हार ना मानी, सामना कठिनाई से।।
शारदे का साज हूँ,हार ना मानती।
राह आसां बनी,मांँ के आशीर्वाद से।।
शूल हृदय सदा लगे,सबके बर्ताव से ।
यात्रा क्षण जिया,मांँ के आशीर्वाद से।।
हर दर्द सहा,खामोशी धारण कर।
जमाना दुश्मन,कैसे जीती खुशी से।।
भावों मोती संग,शेष यात्रा शुरू।
नित्य सृजन,मांँ के आशीर्वाद से।
अनुभव मैंने, कलम कागज उतार।
यात्रा यूं शुरू ,मांँ के आशीर्वाद से।
शुक्रिया उनका,यात्रा दुर्गम बनाई।
कलम पहचान,मांँ के आशीर्वाद से।
जान जब तक है,लेखनी रहेगी।
जिऊंगी हर पल, मांँ के आशीर्वाद से।
शेष यात्रा आसां,अपनों के आशीर्वाद से।
स्नेह सम्मान मिला, मांँ के आशीर्वाद से।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमन मंच भावों के मोती।
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
यात्रा
हाइकु लेखन
1
यात्रा अनन्त
जीवन सफर में
चलते राही
2
ईश मिलन
यात्रा ईहलोक से
मृत्यु की ओर
3
थकते पांव
जीवन यात्रा में
कठिन बड़ा
4
जीवन यात्रा
रुके नहीं पांव
मिले मंजिल
5
नदी की यात्रा
सागर से मिलन
हुआ विलीन
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
नमस्कार गुरुजनों, मित्रों।
यात्रा
हाइकु लेखन
1
यात्रा अनन्त
जीवन सफर में
चलते राही
2
ईश मिलन
यात्रा ईहलोक से
मृत्यु की ओर
3
थकते पांव
जीवन यात्रा में
कठिन बड़ा
4
जीवन यात्रा
रुके नहीं पांव
मिले मंजिल
5
नदी की यात्रा
सागर से मिलन
हुआ विलीन
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
विषय -यात्रा।विधा-कविता
यात्रा-
बड़ी कठिन है
जीवन यात्रा
पग-पग पर
यहाँशूल रहे-।
कंकरीली
पथरीली राहें
चलना दूभर
एक कदम भी ।
मंजिल को
पाना है हमको
डगर कठिन
पर चलना होगा ।
बीच राह में
रुक न सकेंगे
मंजिल तक
जाकर पहुंचेगे ।
यह अनंत पथ
की,यात्रा है
कोई रोक न
सकता इसकोः।
उषासक्सेना-स्वरचित
यात्रा-
बड़ी कठिन है
जीवन यात्रा
पग-पग पर
यहाँशूल रहे-।
कंकरीली
पथरीली राहें
चलना दूभर
एक कदम भी ।
मंजिल को
पाना है हमको
डगर कठिन
पर चलना होगा ।
बीच राह में
रुक न सकेंगे
मंजिल तक
जाकर पहुंचेगे ।
यह अनंत पथ
की,यात्रा है
कोई रोक न
सकता इसकोः।
उषासक्सेना-स्वरचित
नमन् भावों के मोती
दिनांक 29अगस्त19
विषय यात्रा
विधा हाइकु
मृत्यु पर्यन्त
अनवरत् चलती
जीवन यात्रा
मीठी आवाज
मंगलमय यात्रा
स्टेशन पर
जंगल यात्रा
खतरों की दुनिया
प्रकृति गोद
शुभ मुहूर्त
प्रायोजित यात्राएं
विचार लग्न
आरम्भ यात्रा
वैवाहिक जीवन
गृहस्थी जाल
शैक्षिक यात्रा
विद्यालय प्रस्थान
शिशु भविष्य
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
दिनांक 29अगस्त19
विषय यात्रा
विधा हाइकु
मृत्यु पर्यन्त
अनवरत् चलती
जीवन यात्रा
मीठी आवाज
मंगलमय यात्रा
स्टेशन पर
जंगल यात्रा
खतरों की दुनिया
प्रकृति गोद
शुभ मुहूर्त
प्रायोजित यात्राएं
विचार लग्न
आरम्भ यात्रा
वैवाहिक जीवन
गृहस्थी जाल
शैक्षिक यात्रा
विद्यालय प्रस्थान
शिशु भविष्य
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
नमन मंच। भावों के मोती
29/08/19
विषय यात्रा
**अगर स्थान और तथ्य में कोई गलती हो तो कृपया सुधार करें ,क्षमा सहित
**
अपनी यात्रा का वृतांत सुनाती हूँ
अविरल ,अविराम चलती जाती हूँ,
कहीं जन्मती और कहीं जा गिरती ,
के मध्य मोक्षदायिनी गंगा कहलाती हूँ ।
भागीरथ के पूर्वज हुए भस्म शाप से
कर तपस्या लाये,मुक्त करने पाप से ,
शंकर की जटाओं से उतरी धरा पर
गंगोत्री हिमनद से चली मैदानों पर ।
भागीरथी बन गोमुख से निकली ,
पथगामी कई यात्रा में मिलते रहे,
ऊंचे नीचे पथरीले रास्तों में मिलन
मेरे सफर को सुहाना करते रहे।
धौली,अलकनंदा मिली विष्णुप्रयाग में
नंदाकिनी,अलकनन्दा मिलीं नंदप्रयाग ,
चलते जा मिली पिंडर से कर्णप्रयाग में
मन्दाकिनी देख रही रास्ता रुद्रप्रयाग में।
ऋषिकेश से पहले देवप्रयाग में
अलकनंदा भागीरथी का संगम हुआ ,
पवित्र पावनी बनी पंचप्रयाग में
ये मनोरम दृश्य बड़ा विहंगम हुआ ।
गढ़मुक्तेश्वर ,कानपुर हो पहुंची प्रयाग
यमुना सरस्वती से मिल जगे मेरे भाग ।
वक्र रूप लिये जा पहुंची काशी
मिर्जापुर पटना से हुई पाकुर वासी।
सोन ,गंडक ,घाघरा कोसी सहगामिनी रहीं
भागलपुर से दक्षिणीमुख पथगामिनी रही ,
मुर्शिदाबाद में बंटे,भागीरथी और पद्मा
पद्मा अविरल चली देश बांगला ।
हुगली तक मैं भागीरथी रही
मुहाने तक हुगली नदी कहलाई।
सुंदरबन डेल्टा ,बंगाल की खाड़ी में समाई
कपिल मुनि के दर्शन करती
हिंदुओ का पवित्र तीर्थ गंगासागर कहलाई।
पूरा हुआ यात्रा वृत्तांत ,एक बात समझ न आई,
अपने पाप सभी धोते रहे,मुझे मैला करते रहे ,
करोड़ों रुपयों खर्च कर भी ,सफाई न हो पाई
जीवनदायिनी गंगा माँ हूँ ,सबका जीवन हरषाई ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
29/08/19
विषय यात्रा
**अगर स्थान और तथ्य में कोई गलती हो तो कृपया सुधार करें ,क्षमा सहित
**
अपनी यात्रा का वृतांत सुनाती हूँ
अविरल ,अविराम चलती जाती हूँ,
कहीं जन्मती और कहीं जा गिरती ,
के मध्य मोक्षदायिनी गंगा कहलाती हूँ ।
भागीरथ के पूर्वज हुए भस्म शाप से
कर तपस्या लाये,मुक्त करने पाप से ,
शंकर की जटाओं से उतरी धरा पर
गंगोत्री हिमनद से चली मैदानों पर ।
भागीरथी बन गोमुख से निकली ,
पथगामी कई यात्रा में मिलते रहे,
ऊंचे नीचे पथरीले रास्तों में मिलन
मेरे सफर को सुहाना करते रहे।
धौली,अलकनंदा मिली विष्णुप्रयाग में
नंदाकिनी,अलकनन्दा मिलीं नंदप्रयाग ,
चलते जा मिली पिंडर से कर्णप्रयाग में
मन्दाकिनी देख रही रास्ता रुद्रप्रयाग में।
ऋषिकेश से पहले देवप्रयाग में
अलकनंदा भागीरथी का संगम हुआ ,
पवित्र पावनी बनी पंचप्रयाग में
ये मनोरम दृश्य बड़ा विहंगम हुआ ।
गढ़मुक्तेश्वर ,कानपुर हो पहुंची प्रयाग
यमुना सरस्वती से मिल जगे मेरे भाग ।
वक्र रूप लिये जा पहुंची काशी
मिर्जापुर पटना से हुई पाकुर वासी।
सोन ,गंडक ,घाघरा कोसी सहगामिनी रहीं
भागलपुर से दक्षिणीमुख पथगामिनी रही ,
मुर्शिदाबाद में बंटे,भागीरथी और पद्मा
पद्मा अविरल चली देश बांगला ।
हुगली तक मैं भागीरथी रही
मुहाने तक हुगली नदी कहलाई।
सुंदरबन डेल्टा ,बंगाल की खाड़ी में समाई
कपिल मुनि के दर्शन करती
हिंदुओ का पवित्र तीर्थ गंगासागर कहलाई।
पूरा हुआ यात्रा वृत्तांत ,एक बात समझ न आई,
अपने पाप सभी धोते रहे,मुझे मैला करते रहे ,
करोड़ों रुपयों खर्च कर भी ,सफाई न हो पाई
जीवनदायिनी गंगा माँ हूँ ,सबका जीवन हरषाई ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
मन भावों के मोती मंच को समर्पित
दिनांक 29 अगस्त 2019
विषय यात्रा
विधा: काव्य
कल से कर रही थी घर मे व्यवस्थाएँ
निश्चिन्त हो रही थी कि घर में लोगों को
असुविधा न हो मेरी अनुपस्थिति में
खुद भी तैयार हो रही थी यात्रा के लिए ।
निकली जब सुबह मैं आज की यात्रा के लिए
सडकों पर भाग रही थी स्कूटी, आंटो ,कारें
सभी की, दैनिक की, छोटी बडी यात्राऐ थी
बच्चे स्कूलों की ओर ,और बढें आफिसों को।
सभी के मन और मस्तिष्क की उडान भी थी
मन की यात्रा का वेग वायु तरंगों जैसा तेज
मस्तिष्क करता रहता उन वेगों को बस मे..
अपनी अन्तर्मन की यात्रा करती मै भी
पहुची अपने आज की कर्मभूमि पर
पुरा करती आज के दिय गये लक्ष्यों को
करने लगी फिर से मनन बिठाने लगी तालमेल
पुन: करनी है कल की उडान व नई यात्रा ।
स्वरचित रचना
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
दिनांक 29 अगस्त 2019
विषय यात्रा
विधा: काव्य
कल से कर रही थी घर मे व्यवस्थाएँ
निश्चिन्त हो रही थी कि घर में लोगों को
असुविधा न हो मेरी अनुपस्थिति में
खुद भी तैयार हो रही थी यात्रा के लिए ।
निकली जब सुबह मैं आज की यात्रा के लिए
सडकों पर भाग रही थी स्कूटी, आंटो ,कारें
सभी की, दैनिक की, छोटी बडी यात्राऐ थी
बच्चे स्कूलों की ओर ,और बढें आफिसों को।
सभी के मन और मस्तिष्क की उडान भी थी
मन की यात्रा का वेग वायु तरंगों जैसा तेज
मस्तिष्क करता रहता उन वेगों को बस मे..
अपनी अन्तर्मन की यात्रा करती मै भी
पहुची अपने आज की कर्मभूमि पर
पुरा करती आज के दिय गये लक्ष्यों को
करने लगी फिर से मनन बिठाने लगी तालमेल
पुन: करनी है कल की उडान व नई यात्रा ।
स्वरचित रचना
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
भावों के मोती दिनांक 30/8/19
यात्रा
है कठिन
जीवन यात्रा
दुर्गम पथ
बीहड़ जंगल
पर्वत और
नदी नाले
हो दृढ़ विश्वास
मन में
हो सच्ची लगन
और मेहनत
पहुँचेगे
मंजिल अपनी
है महापुरुषों की
यात्रा निराली
गांधी की
दाण्डी यात्रा ने
दिलाई आजादी
गये राम
वन गमन
रही साथ
सफर
माता सीता
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
यात्रा
है कठिन
जीवन यात्रा
दुर्गम पथ
बीहड़ जंगल
पर्वत और
नदी नाले
हो दृढ़ विश्वास
मन में
हो सच्ची लगन
और मेहनत
पहुँचेगे
मंजिल अपनी
है महापुरुषों की
यात्रा निराली
गांधी की
दाण्डी यात्रा ने
दिलाई आजादी
गये राम
वन गमन
रही साथ
सफर
माता सीता
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
शीर्षक - यात्रा
दिनांक - 29/08/19
जीवन यात्रा
......................
यातनाओं को पूर्ण विराम देते हुए
धीरे से सरक जाता है जीवन
अति पूर्णता के गह्वर से
होते हुए ...लीन हो जाता है
सहसा शांत महासागरीय उफान मेंं ।
अनंतर प्रयासों के बाद भी
कल्पवृक्ष सूख जाता है
उम्मीदों के जल के बिना
और मायामृग बन लक्ष्य
जीवन यात्रा का पीछा करते हुए
सहसा सो जाता है भाग्य की गुफा मेंं ।
सोचती हूँ ,
यदि ..देह न होती तो
आत्मा अविचल रहती ?
महाकाश के कौन से स्तर मेंं
बहती आत्माओं की धुंध ?
जिस बहाव से
बहता जा रहा है प्राण स्रोत ....एक दिन
सहसा स्तब्ध रहा जाएगा अंतिम उच्छ्वास मेंं
अंतिम महायात्रा के मार्ग मेंं .......
.....अनिमा दास .....
कटक , ओडिशा ....
दिनांक - 29/08/19
जीवन यात्रा
......................
यातनाओं को पूर्ण विराम देते हुए
धीरे से सरक जाता है जीवन
अति पूर्णता के गह्वर से
होते हुए ...लीन हो जाता है
सहसा शांत महासागरीय उफान मेंं ।
अनंतर प्रयासों के बाद भी
कल्पवृक्ष सूख जाता है
उम्मीदों के जल के बिना
और मायामृग बन लक्ष्य
जीवन यात्रा का पीछा करते हुए
सहसा सो जाता है भाग्य की गुफा मेंं ।
सोचती हूँ ,
यदि ..देह न होती तो
आत्मा अविचल रहती ?
महाकाश के कौन से स्तर मेंं
बहती आत्माओं की धुंध ?
जिस बहाव से
बहता जा रहा है प्राण स्रोत ....एक दिन
सहसा स्तब्ध रहा जाएगा अंतिम उच्छ्वास मेंं
अंतिम महायात्रा के मार्ग मेंं .......
.....अनिमा दास .....
कटक , ओडिशा ....
भावों के मोती
29/8/19
यात्रा
तांका
------------
1)
जीवन यात्रा
अनजान शहर
कांटो से भरी
मुश्किल है डगर
चल थामे जिगर
2)
मिले राह में
अपनों से जहर
विष हो सुधा
हो विश्वास मगर
उठ थाम जिगर
3)
तुफान घिरे
किसमत का कहर
मोड़ दे धारा
उठ थाम जिगर
उस पार गुजर ।।
-------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
29/8/19
यात्रा
तांका
------------
1)
जीवन यात्रा
अनजान शहर
कांटो से भरी
मुश्किल है डगर
चल थामे जिगर
2)
मिले राह में
अपनों से जहर
विष हो सुधा
हो विश्वास मगर
उठ थाम जिगर
3)
तुफान घिरे
किसमत का कहर
मोड़ दे धारा
उठ थाम जिगर
उस पार गुजर ।।
-------
क्षीरोद्र कुमार पुरोहित
नमन मंच 'भावों के मोती '
29/08/19
विषय - यात्रा
विधा - काव्य
----------------------------------
जीवन के पथ पर
सबको यात्रा करनी पड़ती है
पथरीली राहों पर
नंगे पाँव भी चलना पड़ता है
सुगम रास्तों पर
हर कोई दौड़ता है
जीवन की आपाधापी में
यात्रा करना पड़ता है
राह कठिन है
पर चलना पड़ता है
यही यथार्थ है जीवन का
इसको समझना पड़ता है
कुछ भी हो जाए जीवन में
फिर भी चलना पड़ता है
रुक सकते कदम नहीं
कदम बढ़ाना पड़ता है |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
29/08/19
विषय - यात्रा
विधा - काव्य
----------------------------------
जीवन के पथ पर
सबको यात्रा करनी पड़ती है
पथरीली राहों पर
नंगे पाँव भी चलना पड़ता है
सुगम रास्तों पर
हर कोई दौड़ता है
जीवन की आपाधापी में
यात्रा करना पड़ता है
राह कठिन है
पर चलना पड़ता है
यही यथार्थ है जीवन का
इसको समझना पड़ता है
कुछ भी हो जाए जीवन में
फिर भी चलना पड़ता है
रुक सकते कदम नहीं
कदम बढ़ाना पड़ता है |
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
"यात्रा"
################
जिंदगी का सफर...
जा रही मौत नगर...
यात्राएँ होती सुबह से शाम
रात्रि को लेते विश्राम..
यात्रा के दौरान...
मिलते राही अनजान...
होती मुलाकात...
मिल जाता कोई खास..
कुछ साथ चलते...
कुछ बिछुड़ जाते...
ऐसे ही पार करते..
उम्र का हर पड़ाव...
मंजिल तक आते-आते
छूट जाते अपने-बेगाने..
रह जाती हैं सिर्फ यादें...।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
################
जिंदगी का सफर...
जा रही मौत नगर...
यात्राएँ होती सुबह से शाम
रात्रि को लेते विश्राम..
यात्रा के दौरान...
मिलते राही अनजान...
होती मुलाकात...
मिल जाता कोई खास..
कुछ साथ चलते...
कुछ बिछुड़ जाते...
ऐसे ही पार करते..
उम्र का हर पड़ाव...
मंजिल तक आते-आते
छूट जाते अपने-बेगाने..
रह जाती हैं सिर्फ यादें...।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
नमन भावों के मोती
दिनांक - 29/8/019
विषय - यात्रा।
कवि मन नहीं रूकता कभी
हर पल चलते रहता है
निर्भय, निडर वह बाबड़ा
हर प्रान्त में यात्रा करता रहता है।
नहीं बँध पाता वह
शरहद और सीमाओं के घेरे में,
बहा ले जाता हर
अहंकारी के गूरूर
अपने शब्दों के सैलाब में
और दिखा देता
हर मुल्क को उसकी
अपनी ही छवि अपने आइने में।
वह झाँक आता परमाणुओं के देश
और बटोर लाता राख के ढ़ेर से
बेकसूरों की अस्थियाँ।
कवि की यात्रा यूँ ही
अनवरत चलता रहता
देश- विदेश में विचरते रहता
कभी पंख पसार
हवा के वेग को चीरता
कभी डूबते कश्ती का
पतवार बन जाता
हर पल हर छण
एक भावों का पोधा लगाता
नव सृजन करता
नए पथ पर फिर
नए यात्रा की
ओर फिर बढ़ता चला जाता।
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
दिनांक - 29/8/019
विषय - यात्रा।
कवि मन नहीं रूकता कभी
हर पल चलते रहता है
निर्भय, निडर वह बाबड़ा
हर प्रान्त में यात्रा करता रहता है।
नहीं बँध पाता वह
शरहद और सीमाओं के घेरे में,
बहा ले जाता हर
अहंकारी के गूरूर
अपने शब्दों के सैलाब में
और दिखा देता
हर मुल्क को उसकी
अपनी ही छवि अपने आइने में।
वह झाँक आता परमाणुओं के देश
और बटोर लाता राख के ढ़ेर से
बेकसूरों की अस्थियाँ।
कवि की यात्रा यूँ ही
अनवरत चलता रहता
देश- विदेश में विचरते रहता
कभी पंख पसार
हवा के वेग को चीरता
कभी डूबते कश्ती का
पतवार बन जाता
हर पल हर छण
एक भावों का पोधा लगाता
नव सृजन करता
नए पथ पर फिर
नए यात्रा की
ओर फिर बढ़ता चला जाता।
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
शीर्षक--यात्रा
दिनांक--29-8-19
विधा --मुक्तक
1
पूर्व तयारी कीजिए,यात्रा की हो सोच।
बिना तयारी के सखा,सब कुछ होता पोच।
मौसम के अनुरूप ही, रखें वस्त्र सामान--
इतना भारी हो नहीं, सकें न जिसको गोच।
2.
रोज रोज यात्रा करें, रखें सदा ये ख्याल।
गैर जरूरी वस्तु को, समझें हरदम ब्याल।
कम से कम सामान हो , रुके न अपना काम--
व्यर्थ न समय गवांइये, बने न निज हित जाल।
*********************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी'
बड़वानी(म.प्र )451551
दिनांक--29-8-19
विधा --मुक्तक
1
पूर्व तयारी कीजिए,यात्रा की हो सोच।
बिना तयारी के सखा,सब कुछ होता पोच।
मौसम के अनुरूप ही, रखें वस्त्र सामान--
इतना भारी हो नहीं, सकें न जिसको गोच।
2.
रोज रोज यात्रा करें, रखें सदा ये ख्याल।
गैर जरूरी वस्तु को, समझें हरदम ब्याल।
कम से कम सामान हो , रुके न अपना काम--
व्यर्थ न समय गवांइये, बने न निज हित जाल।
*********************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी'
बड़वानी(म.प्र )451551
विषय-यात्रा
विधा-कहानी
शीर्षक-सफल यात्रा
हर बार की तरह इस बार भी मैं अपनी दो-तीन दिन की छुट्टियां बिताकर वापस बरेली जाने के लिए अपने स्टेशन पहुँच चुका था।
ट्रेन 2घण्टे लेट थी इस वजह से मैं बैठकर ट्रेन का इंतजार कर रहा था।
ये तो सभी जानते हैं कि इंतजार की घड़ियां कितनी लम्बी होती हैं।
खैर अब हमारा इंतज़ार खत्म हो चुका था ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर एक पर आकर जैसे ही खड़ी हुई,मैं जाकर अपनी सीट पर बैठ गया,जैसे की मेरी आदत है कि मैं ट्रेन में न तो किसी का दिया हुआ भोजन करता हूँ और न तो किसी को जल्दी भोजन या नाश्ता करने के लिए आमंत्रित करता हूँ,वह इस वजह से जनाब! कि आजकल कल ट्रेन में खिलापिलाकर लोग सामानों और रुपयों की छिनैती भी कर लेते हैं।हाँ ये अगल बात है कि किसी सार्वजनिक मुद्दे पर बहस छिड़ जाय तो वहाँ मैं अपनी राय देने में पीछे नहीं रहता हूँ।
ट्रेन बेशक लेट थी लेकिन जिस स्टेशन पर मैं बैठा वहाँ के बाद ट्रेन की रफ़्तार काफी अच्छी हो गयी और फैजाबाद आते -आते ट्रेन समय से हो गयी। जब कभी ट्रेन की यात्रा में ऐसा हो कि लेट चलती ट्रेन समय से हो जाये तब बहुत सुकून मिलता है!ये सच है न?
मेरे बगल वाली सीट पर एक महिला और एक बच्ची बैठी हुई थी जो मेरे पैतृक निवास क्षेत्र की थी,इस वजह से उनसे बीच-बीच में थोड़ी वार्ता हो जाया करती!
मेरे सामने वाली सीट पर एक बाबा जी बैठे थे,जो दिखने में सांवले,शरीर की लंबाई भी ज्यादा नहीं,बुढ़ापे की मार से शरीर कमजोर और चेहरे पर काफी झुर्रियां आ गयी थीं ,आँखे भी धँस चुकी थी जो चेहरे पर लगे चश्मे के भीतर से झाँक रही थीं, बगल में एक चद्दर रखी थी जो शायद आवश्यकता पड़ने पर ओढ़ने या बिछाने के लिए रही होगी।इंसान होने के कारण मैं भी उनके चेहरे की क्रिया-प्रतिक्रिया देख रहा था।इसी बीच एक कटलेट बेचने वाले से उन्होंने कीमत पूछी, फिर कुछ नहीं बोले,शायद उनकी जेब खाली थी!इस वज़ह से!
गाड़ी जब फैजाबाद स्टेशन से आगे बढ़ी तब मुझे थोड़ा भूख का एहसास होने लगा,मैंने बैग से अपना नाश्ता और पानी की बोतल निकाली और खाना शुरू कर दिया।यह आम धारणा लगभग सब में होती है कि ट्रेन में हर यात्री नाश्ते की व्यवस्था और रुपये पैसे लेकर ही चलता होगा!
और नहीं भी चलता होगा तो किसी को नाश्ता पानी पूछ कर क्यों लफड़े में पड़ना।
खैर मैं नाश्ता करने लगा,सामने बैठे बाबा जी मुझे बार-बार देख रहे थे,वह क्यों मुझे देख रहे थे!
इसका अंदाज़ा मुझे उस वक्त नहीं लगा,नाश्ता करके मैंने बचा हुआ नाश्ता दुबारा खाने के लिए बैग में वापस रख दिया।अब मैं अपनी सीट पर बैठा था,लेकिन ये बात मेरे दिमाग में बार-बार आ रही थी कि बाबा जी क्यों मेरी तरफ आशा भरी नज़रों से देख रहे थे,तभी बाबा जी ने बगल में बैठी बच्ची से धीरे से कुछ कहा उनकी आवाज तो मुझे नहीं सुनाई दी लेकिन बच्ची ने उनसे कहा
नहीं बाबा!
मेरे पास तो कुछ नहीं रखा खाने के लिए!
आखिर मैं भी तो इनसान ही हूँ,
मैं तुरन्त समझ गया कि बाबा जी को भूख लगी है।
मैंने पूछा बाबा नाश्ता दे दूँ !
खाओगे!
उनकी गीली आंखों ने बिना कुछ बोले सब कुछ बयां कर दिया।
मैंने बैग से नाश्ता निकाला और बाबा जी को अपने हाथों देता गया,वह खाते चले गये,अब बोतल से दिया हुआ पानी पीकर बाबा के आंखों की चमक वापस आ चुकी थी!
सच कहूँ तो मेरे जीवन की आज यह पहली सफल यात्रा थी।जिसको करके मुझे आत्मिक आनन्द मिला।
मेरा मन खुश था बाबा के आंखों की चमक देखकर!
स्वरचित/मौलिक
लाल चन्द्र यादव(अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश)
विधा-कहानी
शीर्षक-सफल यात्रा
हर बार की तरह इस बार भी मैं अपनी दो-तीन दिन की छुट्टियां बिताकर वापस बरेली जाने के लिए अपने स्टेशन पहुँच चुका था।
ट्रेन 2घण्टे लेट थी इस वजह से मैं बैठकर ट्रेन का इंतजार कर रहा था।
ये तो सभी जानते हैं कि इंतजार की घड़ियां कितनी लम्बी होती हैं।
खैर अब हमारा इंतज़ार खत्म हो चुका था ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर एक पर आकर जैसे ही खड़ी हुई,मैं जाकर अपनी सीट पर बैठ गया,जैसे की मेरी आदत है कि मैं ट्रेन में न तो किसी का दिया हुआ भोजन करता हूँ और न तो किसी को जल्दी भोजन या नाश्ता करने के लिए आमंत्रित करता हूँ,वह इस वजह से जनाब! कि आजकल कल ट्रेन में खिलापिलाकर लोग सामानों और रुपयों की छिनैती भी कर लेते हैं।हाँ ये अगल बात है कि किसी सार्वजनिक मुद्दे पर बहस छिड़ जाय तो वहाँ मैं अपनी राय देने में पीछे नहीं रहता हूँ।
ट्रेन बेशक लेट थी लेकिन जिस स्टेशन पर मैं बैठा वहाँ के बाद ट्रेन की रफ़्तार काफी अच्छी हो गयी और फैजाबाद आते -आते ट्रेन समय से हो गयी। जब कभी ट्रेन की यात्रा में ऐसा हो कि लेट चलती ट्रेन समय से हो जाये तब बहुत सुकून मिलता है!ये सच है न?
मेरे बगल वाली सीट पर एक महिला और एक बच्ची बैठी हुई थी जो मेरे पैतृक निवास क्षेत्र की थी,इस वजह से उनसे बीच-बीच में थोड़ी वार्ता हो जाया करती!
मेरे सामने वाली सीट पर एक बाबा जी बैठे थे,जो दिखने में सांवले,शरीर की लंबाई भी ज्यादा नहीं,बुढ़ापे की मार से शरीर कमजोर और चेहरे पर काफी झुर्रियां आ गयी थीं ,आँखे भी धँस चुकी थी जो चेहरे पर लगे चश्मे के भीतर से झाँक रही थीं, बगल में एक चद्दर रखी थी जो शायद आवश्यकता पड़ने पर ओढ़ने या बिछाने के लिए रही होगी।इंसान होने के कारण मैं भी उनके चेहरे की क्रिया-प्रतिक्रिया देख रहा था।इसी बीच एक कटलेट बेचने वाले से उन्होंने कीमत पूछी, फिर कुछ नहीं बोले,शायद उनकी जेब खाली थी!इस वज़ह से!
गाड़ी जब फैजाबाद स्टेशन से आगे बढ़ी तब मुझे थोड़ा भूख का एहसास होने लगा,मैंने बैग से अपना नाश्ता और पानी की बोतल निकाली और खाना शुरू कर दिया।यह आम धारणा लगभग सब में होती है कि ट्रेन में हर यात्री नाश्ते की व्यवस्था और रुपये पैसे लेकर ही चलता होगा!
और नहीं भी चलता होगा तो किसी को नाश्ता पानी पूछ कर क्यों लफड़े में पड़ना।
खैर मैं नाश्ता करने लगा,सामने बैठे बाबा जी मुझे बार-बार देख रहे थे,वह क्यों मुझे देख रहे थे!
इसका अंदाज़ा मुझे उस वक्त नहीं लगा,नाश्ता करके मैंने बचा हुआ नाश्ता दुबारा खाने के लिए बैग में वापस रख दिया।अब मैं अपनी सीट पर बैठा था,लेकिन ये बात मेरे दिमाग में बार-बार आ रही थी कि बाबा जी क्यों मेरी तरफ आशा भरी नज़रों से देख रहे थे,तभी बाबा जी ने बगल में बैठी बच्ची से धीरे से कुछ कहा उनकी आवाज तो मुझे नहीं सुनाई दी लेकिन बच्ची ने उनसे कहा
नहीं बाबा!
मेरे पास तो कुछ नहीं रखा खाने के लिए!
आखिर मैं भी तो इनसान ही हूँ,
मैं तुरन्त समझ गया कि बाबा जी को भूख लगी है।
मैंने पूछा बाबा नाश्ता दे दूँ !
खाओगे!
उनकी गीली आंखों ने बिना कुछ बोले सब कुछ बयां कर दिया।
मैंने बैग से नाश्ता निकाला और बाबा जी को अपने हाथों देता गया,वह खाते चले गये,अब बोतल से दिया हुआ पानी पीकर बाबा के आंखों की चमक वापस आ चुकी थी!
सच कहूँ तो मेरे जीवन की आज यह पहली सफल यात्रा थी।जिसको करके मुझे आत्मिक आनन्द मिला।
मेरा मन खुश था बाबा के आंखों की चमक देखकर!
स्वरचित/मौलिक
लाल चन्द्र यादव(अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश)
नमन मंच को
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 29/08/2019
शीर्षक :- यात्रा
ललचाती,
सकुचाती,सीखाती,
भरमाती,इठलाती,
अंततः,
सुस्ताती चीर निंद्रा!!
जीवन यात्रा।
अंदाज अलग,
भागमभाग,
चैन औ सुकूं की,
अंततः,
नींद उड़ाती!!
जीवन यात्रा।
अनुभव बांटे,
भविष्य को बांचती,
वर्तमान भुलाती,
अंततः,
मन भटकाती!!
जीवन यात्रा।
कहकहे लगाती कभी,
मन कचोटती कभी,
हंसाती कभी, रुलाती,
अंततः,
मिट्टी मिश्रित होती!!
जीवन यात्रा।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 29/08/2019
शीर्षक :- यात्रा
ललचाती,
सकुचाती,सीखाती,
भरमाती,इठलाती,
अंततः,
सुस्ताती चीर निंद्रा!!
जीवन यात्रा।
अंदाज अलग,
भागमभाग,
चैन औ सुकूं की,
अंततः,
नींद उड़ाती!!
जीवन यात्रा।
अनुभव बांटे,
भविष्य को बांचती,
वर्तमान भुलाती,
अंततः,
मन भटकाती!!
जीवन यात्रा।
कहकहे लगाती कभी,
मन कचोटती कभी,
हंसाती कभी, रुलाती,
अंततः,
मिट्टी मिश्रित होती!!
जीवन यात्रा।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिनांक :- 29/8/19.
विधा :- "छन्द मुक्त काव्य"
"जग सारा ही सफ़र पर है।"
*********************
धरा ये रवि, चांद, तारे,
नभ की ये तारावलियाँ सब,
नीले नभ के वक्ष पर,
अनगिन आकाश-गंगाएं,
ब्रह्मांड की गतिशीलता,
ये मेघ, तड़ित,ये उलकाएं,
निश्चित है गति इन सभी की,
अविरल ये सब यात्रा पर हैं।
जग सारा ही सफ़र पर है।....
पंच-तत्व से जीव ये निर्मित,
लेता जन्म कभी मरता है।
सांसों की डोरी में बंघकर,
ये जीवन-यात्रा करता है।
धन-यौवन ये रूप सजीला,
स्थिर नहीं, सब सफ़र पर हैं।
जग सारा ही सफ़र पर है।...
लख-चौरासी की यात्रा कर,
मानव तन जो तूने पाया।
ये कोई झूठी बात नहीं है,
वेद-शास्त्रों में बतलाया।
लोभ, मोह, मद, अहंकार का,
चढ़ा भूत तेरे सिर पर है ।
जग सारा ही सफ़र पर है।..
मृत्यु-लोक में जो भी आया,
उसका जाना भी निश्चित है।
नहीं एक क्षण घट-बढ़ सकता,
विधि का पैमाना निश्चित है।
कितने ही पुरजोर यत्न कर,
करना पड़े अनन्त सफ़र है।
जग सारा ही सफ़र पर है।....
क्षण-भंगुर, तेरी जीव-यात्रा,
दुनिया वश में करना चाहें।
पल का पता नहीं, कब पगले,
मौत खडी फैलाये बाहें ।
सोच, कहां, कब, क्या करना है,
जिम्मा, अब सारा तुझ पर है।
जग सारा ही सफ़र पर है।...
कर चल नेक कमाई, हे! नर,
भ्रमित मन को तू समझा ले।
जीवन सफ़र सुहाना होगा,
परमार्थ, को ध्येय बना ले।
कर जल्दी, मत समय गवां रे!
जीवन-नाव, हुई जर्जर है।
जग सारा ही सफ़र पर है।.....
विधा :- "छन्द मुक्त काव्य"
"जग सारा ही सफ़र पर है।"
*********************
धरा ये रवि, चांद, तारे,
नभ की ये तारावलियाँ सब,
नीले नभ के वक्ष पर,
अनगिन आकाश-गंगाएं,
ब्रह्मांड की गतिशीलता,
ये मेघ, तड़ित,ये उलकाएं,
निश्चित है गति इन सभी की,
अविरल ये सब यात्रा पर हैं।
जग सारा ही सफ़र पर है।....
पंच-तत्व से जीव ये निर्मित,
लेता जन्म कभी मरता है।
सांसों की डोरी में बंघकर,
ये जीवन-यात्रा करता है।
धन-यौवन ये रूप सजीला,
स्थिर नहीं, सब सफ़र पर हैं।
जग सारा ही सफ़र पर है।...
लख-चौरासी की यात्रा कर,
मानव तन जो तूने पाया।
ये कोई झूठी बात नहीं है,
वेद-शास्त्रों में बतलाया।
लोभ, मोह, मद, अहंकार का,
चढ़ा भूत तेरे सिर पर है ।
जग सारा ही सफ़र पर है।..
मृत्यु-लोक में जो भी आया,
उसका जाना भी निश्चित है।
नहीं एक क्षण घट-बढ़ सकता,
विधि का पैमाना निश्चित है।
कितने ही पुरजोर यत्न कर,
करना पड़े अनन्त सफ़र है।
जग सारा ही सफ़र पर है।....
क्षण-भंगुर, तेरी जीव-यात्रा,
दुनिया वश में करना चाहें।
पल का पता नहीं, कब पगले,
मौत खडी फैलाये बाहें ।
सोच, कहां, कब, क्या करना है,
जिम्मा, अब सारा तुझ पर है।
जग सारा ही सफ़र पर है।...
कर चल नेक कमाई, हे! नर,
भ्रमित मन को तू समझा ले।
जीवन सफ़र सुहाना होगा,
परमार्थ, को ध्येय बना ले।
कर जल्दी, मत समय गवां रे!
जीवन-नाव, हुई जर्जर है।
जग सारा ही सफ़र पर है।.....
शीर्षक"-यात्रा"
यात्रा -वृतांत
यात्रा माँ बैष्णव देवी की।
पीछले साल १७जुलाई को मैं एवं मेरे पति टाटानगर रेलवे स्टेशन से राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली के लिए रवाना हुए,सा्वन का सोमवार होने के कारण मेरा उपवास था, ट्रेन में बैठने के बाद मीठा का सेवन कर मैं सोने का उपक्रम करने लगी, ट्रेन नियत समय पर दिल्ली पहूँची वहां हमें तीन घंटा वेट करना था, हरिद्वार के लिए जन शताब्दी ट्रेन का। खैर इंतजार की घड़ी समाप्त हुई और हम हरिद्वार रात करीब आठ बजे पहुँच गए, होटल तो हमने पहले से ही बुक कर रखा था, किंतु सावन माह होने के कारण सड़क पर सभी जगह बेरिकेडिंग था, अतः हमें स्टेशन से होटल का रास्ता पैदल ही तय करना पड़ा,नौ बजे हम होटल पहुँचे और चैन की सांस ली और हम नींद के आगोश में डूबते चले गये,सुबह हमने गंगा नहाने का प्लान बनाया था,पर आलस और थकावट बस देर सुबह तक सोते रहे, दोपहर तक भैया भाभी और भतीजा भी आ गये थे, फिर हम सब शाम को गंगा आरती के लिए निकल पड़े रास्ते भर कांवरियों का शोरगुल और,भारी भीड़ के कारण हम ठीक से गंगा आरती में शामिल भी नही हो पाये, लेकिन गंगा किनारे पहुंच कर असीम शांति की अनुभूति हुई, फिर हमें पैदल ही रास्ता तय करना पड़ा। होटल में आकर हम जल्दी ही नींद के आगोश में चले गए, दूसरे दिन सुबह हमें गंगा स्नान के लिए जाना था,हम भीड़ को चीरते हुए अपने गंतव्य तक पहुंचे,भारी भीड़ का सामना कर गंगा स्नान के बाद हम वापस होटल में आये,शाम साढ़े पांच बजे हमें हेमकुंड एक्सप्रेस पकड़ना था, मैं मेरे पति और भाभी दो रिक्सा में बैठकर स्टेशन पर नियत जगह पहुंच कर भैया और भतीजा का इंतजार करने लगे, परन्तु काफी इंतजार के बाद भी भैया और भतीजा नही दिखे तो हम तो बिल्कुल घबरा उठे , क्योंकि हरिद्वार में काफी भीड़ व शोरगुल था,और मेरे और भाभी के पास कोई मोबाइल भी नहीं था,और तो और मेरे पति का मोबाइल भी मेरे भतिजा के पास छूट गया था, गाड़ी आने का समय हो गया था, जिससे हम लोग कटरा माँ बैष्णव देवी के दर्शन के लिए जाने वाले थे,हमारी हालत पतली हो रही थी, क्योंकि हमने बहुतो से मोबाइल माँगी, लेकिन किसी ने भी हमारी मदद नहीं की, आखिर कर हमने पुलिस भाई से उनकी मोबाइल माँगी, उन्होंने हमें अपनी मोबाइल दी भी , लेकिन घबराहट में हमसे नम्बर नही डायल हो रहे थे,तभी माता रानी की कृपा से भाभी की नजर भतीजा पर पड़ी,और हमारी जान में जान आई गाड़ी पन्द्रह मीनट लेट आई माता रानी की कृपा थी,और हम आराम से गाड़ी में बैठ पायें।
सुबह छः बजे हमारी गाड़ी कटरा पहुँची, जहां पहले से ही हमारे दोनों बच्चे बैंगलोर से पहुँच हमारा इंतजार कर रहे थे, कटरा हमें बहुत ही साफ सुथरा वह आकर्षक लगा,वहां हमलोग माता बैष्णव के श्राईन बोर्ड निहारिका गेस्ट हाउस गये,जो पहले से ही बुक था, वहां से तैयार होकर हमलोग हेलीपैड गये जो वहां से तीन किलोमीटर दूर था,अटो से जाने में हमें पन्द्रह मिनट लगा,वहा जाकर पता चला कि सुबह से बादल होने के कारण हेलिकॉप्टर उड़ा ही नहीं, सुबह से ही हमलोग इंतजार कर रहे थे,हमारी फ्लाइट ढाई बजे की थी,हम परेशान जरूर थे,पर निराश नहीं, क्योंकि हमें माता रानी पर पूरा भरोसा था, ऐसा सुखद संयोग हुआ कि जो फ्लाइट सुबह से उड़ी ही नहीं हमारे टाइम पर उड़ी,और हम १५मीनट में साँझी छत पहुँच गए,और माता के दर्शन के लिए हम लोग आगे बढ़े, भीड़ तो बहुत थी, लेकिन हमने धीरे धीरे पहुंच कर अपनी मंजिल हासिल की,रात दो बजे हमने माता रानी के दर्शन किए, हमारे पीछे कोई भी नही था सो हमने माता के सामने अच्छी तरह से माता टेके और भरपूर दर्शन किए,इस तरह से हमारी यात्रा बहुत ही सफल रही।
आरती श्रीवास्तव।
यात्रा -वृतांत
यात्रा माँ बैष्णव देवी की।
पीछले साल १७जुलाई को मैं एवं मेरे पति टाटानगर रेलवे स्टेशन से राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली के लिए रवाना हुए,सा्वन का सोमवार होने के कारण मेरा उपवास था, ट्रेन में बैठने के बाद मीठा का सेवन कर मैं सोने का उपक्रम करने लगी, ट्रेन नियत समय पर दिल्ली पहूँची वहां हमें तीन घंटा वेट करना था, हरिद्वार के लिए जन शताब्दी ट्रेन का। खैर इंतजार की घड़ी समाप्त हुई और हम हरिद्वार रात करीब आठ बजे पहुँच गए, होटल तो हमने पहले से ही बुक कर रखा था, किंतु सावन माह होने के कारण सड़क पर सभी जगह बेरिकेडिंग था, अतः हमें स्टेशन से होटल का रास्ता पैदल ही तय करना पड़ा,नौ बजे हम होटल पहुँचे और चैन की सांस ली और हम नींद के आगोश में डूबते चले गये,सुबह हमने गंगा नहाने का प्लान बनाया था,पर आलस और थकावट बस देर सुबह तक सोते रहे, दोपहर तक भैया भाभी और भतीजा भी आ गये थे, फिर हम सब शाम को गंगा आरती के लिए निकल पड़े रास्ते भर कांवरियों का शोरगुल और,भारी भीड़ के कारण हम ठीक से गंगा आरती में शामिल भी नही हो पाये, लेकिन गंगा किनारे पहुंच कर असीम शांति की अनुभूति हुई, फिर हमें पैदल ही रास्ता तय करना पड़ा। होटल में आकर हम जल्दी ही नींद के आगोश में चले गए, दूसरे दिन सुबह हमें गंगा स्नान के लिए जाना था,हम भीड़ को चीरते हुए अपने गंतव्य तक पहुंचे,भारी भीड़ का सामना कर गंगा स्नान के बाद हम वापस होटल में आये,शाम साढ़े पांच बजे हमें हेमकुंड एक्सप्रेस पकड़ना था, मैं मेरे पति और भाभी दो रिक्सा में बैठकर स्टेशन पर नियत जगह पहुंच कर भैया और भतीजा का इंतजार करने लगे, परन्तु काफी इंतजार के बाद भी भैया और भतीजा नही दिखे तो हम तो बिल्कुल घबरा उठे , क्योंकि हरिद्वार में काफी भीड़ व शोरगुल था,और मेरे और भाभी के पास कोई मोबाइल भी नहीं था,और तो और मेरे पति का मोबाइल भी मेरे भतिजा के पास छूट गया था, गाड़ी आने का समय हो गया था, जिससे हम लोग कटरा माँ बैष्णव देवी के दर्शन के लिए जाने वाले थे,हमारी हालत पतली हो रही थी, क्योंकि हमने बहुतो से मोबाइल माँगी, लेकिन किसी ने भी हमारी मदद नहीं की, आखिर कर हमने पुलिस भाई से उनकी मोबाइल माँगी, उन्होंने हमें अपनी मोबाइल दी भी , लेकिन घबराहट में हमसे नम्बर नही डायल हो रहे थे,तभी माता रानी की कृपा से भाभी की नजर भतीजा पर पड़ी,और हमारी जान में जान आई गाड़ी पन्द्रह मीनट लेट आई माता रानी की कृपा थी,और हम आराम से गाड़ी में बैठ पायें।
सुबह छः बजे हमारी गाड़ी कटरा पहुँची, जहां पहले से ही हमारे दोनों बच्चे बैंगलोर से पहुँच हमारा इंतजार कर रहे थे, कटरा हमें बहुत ही साफ सुथरा वह आकर्षक लगा,वहां हमलोग माता बैष्णव के श्राईन बोर्ड निहारिका गेस्ट हाउस गये,जो पहले से ही बुक था, वहां से तैयार होकर हमलोग हेलीपैड गये जो वहां से तीन किलोमीटर दूर था,अटो से जाने में हमें पन्द्रह मिनट लगा,वहा जाकर पता चला कि सुबह से बादल होने के कारण हेलिकॉप्टर उड़ा ही नहीं, सुबह से ही हमलोग इंतजार कर रहे थे,हमारी फ्लाइट ढाई बजे की थी,हम परेशान जरूर थे,पर निराश नहीं, क्योंकि हमें माता रानी पर पूरा भरोसा था, ऐसा सुखद संयोग हुआ कि जो फ्लाइट सुबह से उड़ी ही नहीं हमारे टाइम पर उड़ी,और हम १५मीनट में साँझी छत पहुँच गए,और माता के दर्शन के लिए हम लोग आगे बढ़े, भीड़ तो बहुत थी, लेकिन हमने धीरे धीरे पहुंच कर अपनी मंजिल हासिल की,रात दो बजे हमने माता रानी के दर्शन किए, हमारे पीछे कोई भी नही था सो हमने माता के सामने अच्छी तरह से माता टेके और भरपूर दर्शन किए,इस तरह से हमारी यात्रा बहुत ही सफल रही।
आरती श्रीवास्तव।
भावों के मोती:
#दिनांक:29"8"2019:
#विषय:यात्रा:
#विधा:काव्य:
*+*+*जीवन यात्रा *+*+*
जीवन यात्रा पर हम निकले सभी,
मंजिल हम सबकी मौत की गोद,
कुछ सहज सरल है अनेकों रास्ते,
कभी डगर कठिन कभी मिले अवरोध
यात्रारम्भ की थी अज्ञात अवस्था,
तब नादान थे हम थी समझ अबोध
कुछ ज्ञात हुआ ज़ब यात्रा पथ पर
कुछ द्वन्द भी उपजे कुछ अंतर्विरोध
हमसफर भी मिले हमें सूनी राहों के
सहयात्री बनने का भी बना संयोग,
मंजिल भी तय थी एक हमारी,
किसी से मिलन था किसी से वियोग
कुछ लाभ हानि कुछ नफा नुकसान
कभी आंसू तो कभी हर्ष मुस्कान
धूप छाँह और सुख दुख मिले समान
जीवन यात्रा का तो यही है विधान
"*"रचनाकार दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया मंडला मप्र
#दिनांक:29"8"2019:
#विषय:यात्रा:
#विधा:काव्य:
*+*+*जीवन यात्रा *+*+*
जीवन यात्रा पर हम निकले सभी,
मंजिल हम सबकी मौत की गोद,
कुछ सहज सरल है अनेकों रास्ते,
कभी डगर कठिन कभी मिले अवरोध
यात्रारम्भ की थी अज्ञात अवस्था,
तब नादान थे हम थी समझ अबोध
कुछ ज्ञात हुआ ज़ब यात्रा पथ पर
कुछ द्वन्द भी उपजे कुछ अंतर्विरोध
हमसफर भी मिले हमें सूनी राहों के
सहयात्री बनने का भी बना संयोग,
मंजिल भी तय थी एक हमारी,
किसी से मिलन था किसी से वियोग
कुछ लाभ हानि कुछ नफा नुकसान
कभी आंसू तो कभी हर्ष मुस्कान
धूप छाँह और सुख दुख मिले समान
जीवन यात्रा का तो यही है विधान
"*"रचनाकार दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया मंडला मप्र
29/8/19
भावों के मोती
विषय=यात्रा
===========
जन्म लेते ही शुरू होती
जीवन की कठिन यात्रा
चार लोगों से रिश्ते में बंधे
घर में संस्कारों को संमझते
सीख लेने ज़िंदगी की
पहली बार घर से निकल
गुरुकुल की और कदम बढ़ा
धीरे-धीरे जीवन को समझ
आगे बढ़ते जाते
हमारी इस जीवन यात्रा में
जुड़ते कई यादगार पल
कुछ नये रिश्ते बनते
कई दोस्त प्रिय बन जाते
कई अनुभवों से होकर
गुजरती जीवन यात्रा
कुछ बेहद कड़वे
कठिनाइयों से भरे
रास्तों से गुजरते हुए
साथ मिलता हमसफ़र का
खुशियों से झूमते
तो कभी लड़ते-झगड़ते
हर परिस्थिति में साथ निभाते
नयी ज़िंदगियों को संवारते
ज़िंदगी के अंतिम
मुकाम पर पहुँचकर
तजुर्बों की पोटली खोलकर
नयी पीढ़ी को सही राह दिखाते
जब प्रभू संदेश आता
तो सब-कुछ पीछे छोड़
अनंत यात्रा पर निकल जाते
फिर से एक नये सफर के लिए
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
भावों के मोती
विषय=यात्रा
===========
जन्म लेते ही शुरू होती
जीवन की कठिन यात्रा
चार लोगों से रिश्ते में बंधे
घर में संस्कारों को संमझते
सीख लेने ज़िंदगी की
पहली बार घर से निकल
गुरुकुल की और कदम बढ़ा
धीरे-धीरे जीवन को समझ
आगे बढ़ते जाते
हमारी इस जीवन यात्रा में
जुड़ते कई यादगार पल
कुछ नये रिश्ते बनते
कई दोस्त प्रिय बन जाते
कई अनुभवों से होकर
गुजरती जीवन यात्रा
कुछ बेहद कड़वे
कठिनाइयों से भरे
रास्तों से गुजरते हुए
साथ मिलता हमसफ़र का
खुशियों से झूमते
तो कभी लड़ते-झगड़ते
हर परिस्थिति में साथ निभाते
नयी ज़िंदगियों को संवारते
ज़िंदगी के अंतिम
मुकाम पर पहुँचकर
तजुर्बों की पोटली खोलकर
नयी पीढ़ी को सही राह दिखाते
जब प्रभू संदेश आता
तो सब-कुछ पीछे छोड़
अनंत यात्रा पर निकल जाते
फिर से एक नये सफर के लिए
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
नमन मंच
विषय:-यात्रा
🌹🌷🌹🌷🌹
विधा:-हाइकु
🌷🌹🌷
यही जीवन
यात्राओं का संगम
आत्मा भटके
🌹🌷🌹🌷
यात्रा के बाद
आत्मा करें विश्राम
मिला आराम
🌹🌷🌹🌷
कम सामान
यात्रा अनगिनत
देता आराम
🌹🌷🌹🌷
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
विषय:-यात्रा
🌹🌷🌹🌷🌹
विधा:-हाइकु
🌷🌹🌷
यही जीवन
यात्राओं का संगम
आत्मा भटके
🌹🌷🌹🌷
यात्रा के बाद
आत्मा करें विश्राम
मिला आराम
🌹🌷🌹🌷
कम सामान
यात्रा अनगिनत
देता आराम
🌹🌷🌹🌷
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
🌹दिनांक-२९/८/२०१९
🌹वार -गुरुवार
🌹विषय-यात्रा (छंदमुक्त)
🌹हमारी इस जीवन #यात्रा में प्रिय,
कई उतार-चढ़ाव देखे साथ-साथ।
जैसे ढाला तुमने ढलती गई,
आज अंतर्मन कर रहा प्रश्न,
हर इक प्रश्न का तुमसे जवाब चाहती हूँ.....
🌹जीवन #यात्रा के इस मध्यम पड़ाव में,
मेरे नयनों की मौन भाषा तुम,
क्यों नही पढ़ पाते हो ?.....
अंतर्मन में कैद कर रखी इच्छाएँ जो मैंने,
उनसे अब आज़ाद होना चाहती हूँ।
तुमसे न्याय पाना चाहती हूँ......
🌹चाहती हूँ खोल के अपनी मुट्ठी,
उन्मुक्त रूप से उड़ सकूँ गगन तले,
अब जिंदगी को जीना चाहती हूँ....
बच्चों की तरह खिलखिलाना चाहती हूँ...
मार मन खुद को सज़ा देती रही अब तक।
हाँ!....प्रिय तुम्हारे लिए समर्पित,
हमारी इस जीवन #यात्रा में ,
तुमसे न्याय पाना चाहती हूँ.......!
🌹©सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
🌹नागपुर (महाराष्ट्र)
🌹वार -गुरुवार
🌹विषय-यात्रा (छंदमुक्त)
🌹हमारी इस जीवन #यात्रा में प्रिय,
कई उतार-चढ़ाव देखे साथ-साथ।
जैसे ढाला तुमने ढलती गई,
आज अंतर्मन कर रहा प्रश्न,
हर इक प्रश्न का तुमसे जवाब चाहती हूँ.....
🌹जीवन #यात्रा के इस मध्यम पड़ाव में,
मेरे नयनों की मौन भाषा तुम,
क्यों नही पढ़ पाते हो ?.....
अंतर्मन में कैद कर रखी इच्छाएँ जो मैंने,
उनसे अब आज़ाद होना चाहती हूँ।
तुमसे न्याय पाना चाहती हूँ......
🌹चाहती हूँ खोल के अपनी मुट्ठी,
उन्मुक्त रूप से उड़ सकूँ गगन तले,
अब जिंदगी को जीना चाहती हूँ....
बच्चों की तरह खिलखिलाना चाहती हूँ...
मार मन खुद को सज़ा देती रही अब तक।
हाँ!....प्रिय तुम्हारे लिए समर्पित,
हमारी इस जीवन #यात्रा में ,
तुमसे न्याय पाना चाहती हूँ.......!
🌹©सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
🌹नागपुर (महाराष्ट्र)
नमन भावों के मोती
विषय - यात्रा
1
संघर्ष यात्रा
चेहरे की झुर्रियाँ
मिला ईनाम
2
जीवन यात्रा
वक्त की चाक पर
दिन व रात
3
पांवों के छाले
सफर की कहानी
पीर अंजानी
4
निशा की यात्रा
तारा मंडल साक्षी
इंदु के साथ
5
सत्य की जीत
मनमोहन संग
धर्म की यात्रा
6
तन का अंत
जीवन है अनंत
आत्मा की यात्रा
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
विषय - यात्रा
1
संघर्ष यात्रा
चेहरे की झुर्रियाँ
मिला ईनाम
2
जीवन यात्रा
वक्त की चाक पर
दिन व रात
3
पांवों के छाले
सफर की कहानी
पीर अंजानी
4
निशा की यात्रा
तारा मंडल साक्षी
इंदु के साथ
5
सत्य की जीत
मनमोहन संग
धर्म की यात्रा
6
तन का अंत
जीवन है अनंत
आत्मा की यात्रा
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
मंच को नमन
दिनांक -29/8/2019
विषय -यात्रा
मनुज काया की गाड़ी में बैठ
साँसों की टिकट लेकर आए
करने अपने जीवन की यात्रा
तुम इसलिए धरती पर आए
चलते रहने यात्रा करना पूरी
पल एक व्यर्थ ना तुम करना
जगह जगह पर पड़ाव मिलेंगे
मंज़िल अपनी से तुम ना भटकना
संघर्षों की चिलचिलाती धूप
कहीं छायादार वृक्ष मिलेंगे
अनुभवों की खुली किताब में
खट्टे मीठे भाव अंकित होंगे
कुछ बातें सीखना और सिखाना
यात्रा का होगा सुखदायी नाम
टिकट की लागत करना वसूल
वक़्त का पहिया चलना काम
अंतकाल जब आएगा पास
तेरी यात्रा पूरी हो जाएगी
गाड़ी जलकर बनेगी राख
टिकट तुझे परमधाम दिखाएगी
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
दिनांक -29/8/2019
विषय -यात्रा
मनुज काया की गाड़ी में बैठ
साँसों की टिकट लेकर आए
करने अपने जीवन की यात्रा
तुम इसलिए धरती पर आए
चलते रहने यात्रा करना पूरी
पल एक व्यर्थ ना तुम करना
जगह जगह पर पड़ाव मिलेंगे
मंज़िल अपनी से तुम ना भटकना
संघर्षों की चिलचिलाती धूप
कहीं छायादार वृक्ष मिलेंगे
अनुभवों की खुली किताब में
खट्टे मीठे भाव अंकित होंगे
कुछ बातें सीखना और सिखाना
यात्रा का होगा सुखदायी नाम
टिकट की लागत करना वसूल
वक़्त का पहिया चलना काम
अंतकाल जब आएगा पास
तेरी यात्रा पूरी हो जाएगी
गाड़ी जलकर बनेगी राख
टिकट तुझे परमधाम दिखाएगी
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
विधा____छंदमुक्त!
२९/०८/१९
मैं यायावर मेरी अनन्त असीम यात्रा विशेष,
हैं कुछ पल कदाचित अब रह गए हैं शेष!
थे सम्भवत: कुछ शेष ऋण मुझ पर,
जीवात्मा अवतरित हुई इस धरा पर!
कर्म प्रारब्ध,संचित, क्रियमाण,
सब चुकता होंगें तमाम समान!
यात्रा के दुरूह अंजान पथ में,
आवागमन के इस चक्रव्यूह में!
चौरासी के इस जटिल फर में,
शताब्दियों के इस रेल पेल में!
मिले कई सपाट रास्ते,कई संकरी पगडंडियां,
बरबस जाल बिछाए कई कटिली झाड़ियां!
करती गई परास्त मैं सबको,
बढ़ती रही निरस्त कर सबको!
राह में कई पड़ाव कई खेमे भी आए,
सुंदर वन उपवन मधुबन भी थे आए!
कभी अलौकिक दिव्य पंथ यात्रा,
कभी तमोमय अदृश्य सम यात्रा!
रहा सुखद व दुखद जीवन मिश्रण,
उस परम सत्य का विशेष आमंत्रण!
अब उसकी प्रतिध्वनि ध्वनित है,
उसकी प्रतिच्छाया दृष्टिगोचर है!
मैं कल कहां थी,आज कहां हूं,
कौन जाने अब कल कहां हूं?
इस जीवन यात्रा में अब बस,
कुछ दिनों का और बसेरा है!
क्या रखा व्यर्थ के इन झमेलों में,
यहां कुछ भी ना तेरा है ना मेरा है!
इस रूहानी यात्रा का बस एक ही नज़राना है,
खाली हाथ आना है और खाली हाथ जाना है!
सब पहले से सुनिश्चित है,
कर्म भी सारे सुरक्षित है!
परमार्थ तत्व की चिर यात्रा अब समाप्ति की ओर है,
उस असीम,अव्यक्त,अचिंत्य विश्रांति की ओर है!!!!
मौलिक स्वरचित,
नीलू मेहरा।
२९/०८/१९
मैं यायावर मेरी अनन्त असीम यात्रा विशेष,
हैं कुछ पल कदाचित अब रह गए हैं शेष!
थे सम्भवत: कुछ शेष ऋण मुझ पर,
जीवात्मा अवतरित हुई इस धरा पर!
कर्म प्रारब्ध,संचित, क्रियमाण,
सब चुकता होंगें तमाम समान!
यात्रा के दुरूह अंजान पथ में,
आवागमन के इस चक्रव्यूह में!
चौरासी के इस जटिल फर में,
शताब्दियों के इस रेल पेल में!
मिले कई सपाट रास्ते,कई संकरी पगडंडियां,
बरबस जाल बिछाए कई कटिली झाड़ियां!
करती गई परास्त मैं सबको,
बढ़ती रही निरस्त कर सबको!
राह में कई पड़ाव कई खेमे भी आए,
सुंदर वन उपवन मधुबन भी थे आए!
कभी अलौकिक दिव्य पंथ यात्रा,
कभी तमोमय अदृश्य सम यात्रा!
रहा सुखद व दुखद जीवन मिश्रण,
उस परम सत्य का विशेष आमंत्रण!
अब उसकी प्रतिध्वनि ध्वनित है,
उसकी प्रतिच्छाया दृष्टिगोचर है!
मैं कल कहां थी,आज कहां हूं,
कौन जाने अब कल कहां हूं?
इस जीवन यात्रा में अब बस,
कुछ दिनों का और बसेरा है!
क्या रखा व्यर्थ के इन झमेलों में,
यहां कुछ भी ना तेरा है ना मेरा है!
इस रूहानी यात्रा का बस एक ही नज़राना है,
खाली हाथ आना है और खाली हाथ जाना है!
सब पहले से सुनिश्चित है,
कर्म भी सारे सुरक्षित है!
परमार्थ तत्व की चिर यात्रा अब समाप्ति की ओर है,
उस असीम,अव्यक्त,अचिंत्य विश्रांति की ओर है!!!!
मौलिक स्वरचित,
नीलू मेहरा।
दिन -बृहस्पतिवार
दिनांक 29/08/2019
शिर्षक -यात्रा
**************
यात्रा भी तो
जीवन के
एक पड़ाव सा
तैयारी करने में
उत्सुक मन
प्रसन्नचित्त हो
कर पैर अपने आप
गन्तब्य की ओर जाने को
बेताब
मन भी तरह तरह के
चित्र अपने भित्ति पटल पर
कूद कूद कर रखता है
वैसे ही जैसे की
जीवन की यात्रा
कोई शुरू करता हो
उसके आने की
प्रसन्नता में
की गई तैयारी
यात्रा जैसे जैसे खत्म
होती है मन और तन
को थकान ऊब बेचैनी
लगती है कोसने
फिर वापस वही
पहुचने की
जल्दी
जहाँ से गए थे
जीवन की यात्रा खत्म होने पर
वापसी का रास्ता नही
जीवन के पहले की यात्रा से
हकीकत का वास्ता नही
ओ तो एक कहानी हो जाती है
जिसे सुनकर या बन्द आँखों
से देख कर आनंदित हो
पाता कोई और धीरे धीरे
खत्म हो जाता
आनंद और यात्रा एक साथ
छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
29/08/2019
दिनांक 29/08/2019
शिर्षक -यात्रा
**************
यात्रा भी तो
जीवन के
एक पड़ाव सा
तैयारी करने में
उत्सुक मन
प्रसन्नचित्त हो
कर पैर अपने आप
गन्तब्य की ओर जाने को
बेताब
मन भी तरह तरह के
चित्र अपने भित्ति पटल पर
कूद कूद कर रखता है
वैसे ही जैसे की
जीवन की यात्रा
कोई शुरू करता हो
उसके आने की
प्रसन्नता में
की गई तैयारी
यात्रा जैसे जैसे खत्म
होती है मन और तन
को थकान ऊब बेचैनी
लगती है कोसने
फिर वापस वही
पहुचने की
जल्दी
जहाँ से गए थे
जीवन की यात्रा खत्म होने पर
वापसी का रास्ता नही
जीवन के पहले की यात्रा से
हकीकत का वास्ता नही
ओ तो एक कहानी हो जाती है
जिसे सुनकर या बन्द आँखों
से देख कर आनंदित हो
पाता कोई और धीरे धीरे
खत्म हो जाता
आनंद और यात्रा एक साथ
छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
29/08/2019
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