Friday, September 13

"बंजर/रेगिस्तान "13 सितम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-504
दिनांक - 13/9/2019
शीर्षक- "बंजर/रेगिस्तान"
विधा- कविता
******************
सूख गई है धरती सारी,
बंजर बनी है क्यारी-क्यारी,
मेघा अब बरस भी जाओ,
वरना विपदा पड़ेगी भारी |

अच्छी लगती है हरियाली,
प्रकृति की छटा है निराली,
रेगिस्तान न बनाओ इसको,
बरसो प्यारी मेघा रानी |

स्वरचित- संगीता कुकरेती
विषय बंजर,रेगिस्तान
विधा काव्य

13सितम्बर 2019,शुक्रवार

मानव के कर्मठ हाथों से
बंजर भूमि हरियाली लाई।
खून पसीना सदा बहाकर
हँसी खुशी धरा पर छाई।

अनुसंधान से पाया हमने
पेट्रोलियम अथाह भंडार।
रेगिस्तान खिल उठा जग
चारों ओर नित उड़े बहार।

कर्मवीर सदा भुज बल से
नहर खोदते नीर मोड़ते।
हाथ फफोले पड़ने पर भी
नित भारी पाहन तोड़ते।

रेगिस्तानी स्वर्णिम रेती से
घर मकान महल बनते ।
बंजर सिर्फ नाम रह गया
खिले पुष्प हृदय में महके।

कल कल सिंधु यंही बही थी
आन बान भारत की शान।
खनिज सम्पदा भरी पड़ी है
सदा गौरवान्वित राजस्थान।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय .. बंजर/रेगिस्तान
***********************

यादों के भँवर से निकलूँ तो मै कहाँ जाऊँ।
तेरी याद मे जीता रहूँ की यादों मे मर जाऊँ।

रहती हो क्यो यादों में जब आती नही हो पास।
मेरा दिल तो प्यासा है क्या तुझमे भी प्यास।

एक बार बस सामने आजा, शर्म के घुघँट त्याग।
मै भी तो जानूँ की आखिर क्यो मुझमे है आग।

बन्द हृदय के फाटक से तू एक बार तो झाँक।
शायद सुप्त हृदय को खोले प्रेम मिलन आक।

बंजर जैसे मरूभूमि दिल जैसे रेगिस्तान।
भटक रहा मन शेर का जल बिन सूखे जान।

शेर सिंह सर्राफ

विधा--ग़ज़ल
प्रथम प्रयास


कितने अहसास हमने सँजोये हैं
हम रेगिस्तान में बीज बोये हैं ।।

भूल हमारी कहें या नसीब की
जो ये मेरे .....पट्टे में होये हैं ।।

जिन्दगी के ये बेहूदा वाक्यात
जो बाकायदा हमने सँजोये हैं ।।

जिन्दगी क्या कहें तमाशा हताशा
केर के संग बेर भी रोये हैं ।।

क्यों न हो घुटन क्यों न हो मन मायूस
कुदरत ने .....ऐसे रंग पिरोये हैं ।।

कुछ न कुछ तो सोचा होगा उसने
अब उन पहलुओं में मन बिंधोये हैं ।।

देख कर दंग हूँ उन सजीवों को
जो रेगिस्तान में मन रँमोय हैं ।।

कितने अनुकूलन वो लाए 'शिवम'
आज वहीं वो चैन से सोये हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/09/2019


शीर्षक -- बंजर / रेगिस्तान
द्वितीय प्रस्तुति


पाकर रेगिस्तान मैं बिखरा
पर देखा जब ऊँट का जिगरा ।।

उसके माँसल गद्देदार पाँव
चलना मीलों जहाँ नही छाँव ।।

पानी का लेकर के पिटारा
करे वो छ: महीने गुजारा ।।

तारीफी कुदरत क्या विचारा
कमियाँ देकर के ही सँवारा ।।

कितना सिखायँ हमें ये प्रानी
मुश्किलों में ही खूबियाँ आनी ।।

बँधें धरा से बने स्वाभिमानी
राजस्थान कहे यह कहानी ।।

त्याग तप को 'शिवम'हरदम नमन
उच्च सोच तो बंजर में चमन ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/09/2019



नमन मंच भावों के मोती
13/9/2019/
बिषय , बंजर ,, रेगिस्तान,,

ए मेघा अब तो तरस खाओ
अगले बरष फिर आना
अपने घर को लौट जाओ
जहँ तहँ बाढ़ों का मंजर है
चहुँ ओर समंदर ही समंदर है
बंजर भूमि भी उफनानी है
रेगिस्तान में भी पानी पानी है
तुम घने घने से छा जाते हो
मूसलधार वारिष लाते हो
क्यों करते नहीं मेहरबानी
क्यों बिनाश की तुमने ठानी
सर्वत्र मायूसी का नजारा है
हे प्रभु तेरा ही सहारा है
भगवान. भास्कर भी विलोप हुए
न जाने कहां आलोप हुए
जाने किस देश विदेश में कर लिया अपना ठिकाना
स्वरिचत,, सुषमा, ब्यौहार

नमन भावों के मोती
आज का विषय, रेगिस्तान
शुक्रवार

13, 9, 2019,

अजीब बात
भयंकर बारिश
रेगिस्तान में ।

जल संकट
तपता रेगिस्तान
जीना कठिन ।

मधुर तान
नृत्य संगीत खान
ये रेगिस्तान ।

बेरोजगारी
जीवन रेगिस्तान
अव्यक्त व्यथा ।

शौर्य गाथाऐं
रेगिस्तान की शान
महान लोग ।

कला संस्कृति
सौंदर्य रेगिस्तान
निराली शान ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


सुप्रभात समूह के सभी साथियों
13/09/2019

विषय:बंजर
विधा हाइकु

🌲🌲🌲
बंजर भूमि
किसान कर्म भूमि
बीजारोपण।

बंजर दृश्य
करना है जतन
पर्यावरण ।

बढा बंजर
भारत की चुनौती
कृषि शिक्षण।

कृषक शोध
उपजाऊ जमीन
हरा बंजर ।

बाँझ महिला
अदृश्य दिव्यागता
कोख बंजर।

पति वियोग
बंजर हुआ मन
सूने नयन।
🌳🌳🌳🌳
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।



आदरणीय जन को नमन
🙏🌹🙏🌹🙏🌹
🙏
दिनांक-13/9/2019
विषय-बंजर/रेगिस्तान

बंजर सी कुछ जमी थी मेरे गाँव में
फिर भी था किसान खुशहाल मेरे गाँव में

एक दिन कुछ पदाधिकारी पधारे
कर रहे थे मुआवना मेरे गाँव में।।

बंजर जमी पर फ्रेक्ट्री की योजना थी
मिलने वाला था सबको काम मेरे गाँव में।।

औने पौने दाम में सबने जमी बेच दी
प्रशासन का था भय मेरे गाँव में

तब से आज तक रोटी की बाट जोह रहे हैं लोग
गरीबी पसरी है मेरे गाँव में।।

अब उस जमी पर हमें ही बसाया जा रहा है
गरीबी कार्ड थमाया है मेरे गाँव में।।

जी एस टी काटकर कुछ खप्पर,बल्ली मिल रहें हैं
अधिकारी, सरपंच फल रहे हैं मेरे गाँव में।।

बैंक,बिजनेस मैन,गरीब सबका तो भला किया
मध्यम वर्ग को भी कुछ दे दोे दाता मेरे गाँव में।।

स्वरचित
सीमा आचार्य(म.प्र.)

 II बंजर / रेगिस्तान II नमन भावों के मोती........

विधा: त्रिवेणी.....


१.
जात-पात धर्म झगड़े....
रिश्तों की ज़मीन बंजर हो रही है....

आओ मन को पौधा बनाएं.....

२.
प्रदूषण पर सब का भाषण और सब बधिर...
चीख चिल्लाहट है रेगिस्तान की....

बिल्ली के घंटी पहले तुम...पहले तुम !

३.
नभ रोता रोता सूख गया....
बच्चा पैदा होते ही बूढा हो गया...

काश! अपनी सरस्वती को लुप्त....बंजर न होने देते

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१३.०९.२०१९


बंजर/रेगिस्तान
नमन मंच भावों के मोती।गुरूजनों तथा मित्रों को नमन।

हाइकु लेखन
1
बंजर भूमि
उपजाऊ ना होती
हो नाउम्मीदी
2
ये रेगिस्तान
दिखे रेत हीं रेत
वृक्षरहित
3
मिले ना पानी
जलस्रोतों की कमी
शुष्क हो कंठ

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
13/9/2019

दिनांक - 13/9/2019
आज का विषय - रेगिस्थान/बंजर/मरुथल
विधा - दोहागीत

साजन तेरी याद में, बैठी नदिया तीर।
किसे सुनाऊं वेदना, कौन हरेगा पीर।।

पलकें भीगी ही रही, दिल में है अरमान।
जीवन ऐसा हो गया, बिना सुरों का गान।।
मिला प्रेम में क्यों विरह, कैसी है तकदीर।
किसे सुनाऊं वेदना, कौन हरेगा पीर।।

भटके मन ये बावरा,व्याकुल दिन अरु रैन।
देख हृदय मरुथल बना, प्यासे मेरे नैन।।
दिल दरिया अब हो गया, बहे नयन से नीर।
किसे सुनाऊं वेदना, कौन हरेगा पीर।।

जग के ताने सह रही, रखूं मिलन की आस।
मन पपिहा व्याकुल रहा,जल्दी आना पास।।
चातक भी अब पूछता, कैसे रांझा हीर।
किसे सुनाऊं वेदना, कौन हरेगा पीर।।

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा ( हरियाणा)


Shambhu Singh Raghuwanshi 1भा.नमन साथियों
तिथिःः13/9/2019/शुक्रवार
बिषयःः# बंजर/रेगिस्तान#

विधाःः काव्यः ः

चहुंओर हरयाली फैले,
कहीं नहीं हो रेगिस्तान।
सभी दूर हरयाली छाऐ,
हरित हो ये भूमि महान।

हरी वादियाँ हों कश्मीरी,
दिखे सुंन्दर बहुत सुजान।
रूप खिले इस वसुधा का,
कृपाकरें प्रभु कृपानिधान।

प्रत्येक इंच हो भू उपजाऊ
कहीं नहीं बंजर धरती मिले।
करें परिश्रम कठोर सभी तो
अपना गुलशन चमन खिले।

सरिता बांध लवालव सब हैं
हुए इंद्रदेव जी बहुत प्रसन्न।
आप तो हमसब यही चाहते,
श्री सूर्यदेव जी भी हों प्रसन्न।

सूखी बंजर जहाँ हो धरती,
अपने इंद्रदेवता वहीं पधारें।
अब जो बरसाऐं अमृतजल
सचमुच ये सदुपयोग कराऐं।

स्वरचितःः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

सादर मंच को समर्पित -

🏵🌾 गीतिका 🌾 🏵 *****************************
 बंजर 
🌺🌼🌻🌺🌼🌻🌺🌼🌻🌺

द्बेष के बंजर सदा पल ,
शूल क्यों उर में उगायें ।
हृदय पावन , भाव मीठे ,
सहजता मन में सजायें ।।

दे नहीं सकते अगर हम ,
मधुरता का दान मितवा ,
जहर से कण्टक वचन कह ,
क्षोभ क्यों जन में बढ़ायें ।

भाग्यशाली हैं , मिला है
मनुज तन इस सृष्टि पावन ,
क्यों करें हम व्यर्थ इसको ,
कार्य शुभ दिल में पगायें ।

मनुज हैं हम , मानवी
संवेदना दिल में रखें तो ,
है पराया कौन , हिल-मिल
प्यार नित मन में जगायें ।

इस धरा मेंं खिल रहे हैं
सुमन नीके , मोहते मन ,
शूल को भी फूल कर के ,
प्रीति बंजर मन खिलायें ।

धारणा हो सत्य मन में ,
खोज कर लें हम विवेकी ,
नफरतों को त्याग फिर से
प्रेम कण-कण में बसायें ।

साँस गिनती की मिली हैं,
जा रही हैं बीत पल-पल ,
कार्य कुछ ऐसे करें हम ,
याद आ जग में सुहायें ।।

🌺🌾🌷🌲🍑

🌻🏵🍀*...रवीन्द्र वर्मा आगरा


13/09/2019
"बंजर/रेगिस्तान"

छंदमुक्त
-----------------------------------
रिश्तों में अपनापन जो न रहता.
मौन हो जाते हैं जज्बात
भाव की भूमि बंजर हो जाती
मन हो जाता है रेगिस्तान ।

नफरत और द्वेष भाव के कारण
प्रेम की उर्वरता होती नष्टप्राय
मन बन जाता बंजर समान
धीरे-धीरे हो जाता रेगिस्तान।

प्रेम-प्यार को जो न बोया
अपनापन को भी है खोया
रिश्तों से झरते न रसधार
बन जाता वीराना रेगिस्तान।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल 



13/09/2019
"बंजर/रेगिस्तान"

1
बंजर भूमि
खेत लहलहाते
श्रम किसान
2
स्वर्णिम रेत
रेगिस्तान की शान
कण बसा जाँ
3
ठूँठ जज्बात
बंजर मनोभाव
प्रेम निष्प्राण
4
घृणा व द्वेष
मन भी रेगिस्तान
प्रेम न पास
5
अहं का ताप
बंजर बनी भूमि
मन की मिट्टी

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।

नमन--भावो के मोती
दिनांक--१३--९--१९
दिन----शुक्रवार

विषय--बंजर/रेगिस्तान
विधा----हाइकु

न हो निराश
है बंजर भूमि तो
करें चमन

बंजर भूमि
बहा दो पसीना को
हो हरियाली

रानी कोष्टी म प्र गुना
स्वरचित एवं मौलिक


विषय -बंजर/रेगिस्तान
दिनांक --13-9-19

विधा --गीत

संख्या के दबाव में हम खुद से दूर हो गए।
समस्या चक्रव्यूह में हम सुख चैन खो गए।

सीमा को लांघने में ,सीता विरह सिक्त हुई।
धरती अधिक दोहन से,बंजर और रिक्त हुई ।
विनाश के बीज यूँ ही हम अनजाने बो गए----

बंजर सूखी भूमि से फसलें कहाँ मिलती हैं।
फसल जो भी बोई थी ,वो मिट्टी में मिलती है।
जैविक खाद बिना जमीं के तत्व सभी खो गए --

******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
बिषय- बंजर
सदियों से बंजर पड़ी

मेरे दिल की जमीं पर
फुहारें पड़ी जो तेरी प्रीत की
अंकुर फूटे नेह बीज से
दबे पड़े थे जो जाने कब से।
बनेंगे इस अंकुर से पौधे
और एक दिन आएगा ऐसा
प्रेम रस से पूर्ण फलों का
एक वृक्ष होगा इस दिल में।
ये हरा-भरा प्यार भरा वृक्ष
न केवल मीठी रसपूर्ण वाणी से
प्यार की भूखी इस दुनिया की
सांत्वना रूपी फल देगा
वरन् अपनेपन की छांव तले
गम की धूप में थोड़ी राहत देगा।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

विषय- बंजर /रेगिस्तान
दिनांक 13-9-2019
मैं किसान ,कभी हार नहीं मानता हूंँ ।
बंजर जमीन से, सोना उगाने का हुनर जानता हूँ।।

यह बंजर भूमि यह रेगिस्तान, जब देखता हूँ।
इनको चमन बनाया, यही सोच गौरवान्वित होता हूँ।।

साल भर करता मेहनत, खेतों में अन्न उगाता हूँ।
अतिवृष्टि अनावृष्टि से, थोड़ा परेशान होता हूंँ।।

बंजर भूमि मेहनत से,उपजाऊं मैं बनाता हूँ।
करता हूंँ अथक परिश्रम,तब फल पाता हूँ।।

नहीं हारता कभी हिम्मत, क्योंकि मैं किसान हूँ।
खेतों में अन्न उगाने की, कला में जानता हूँँ।।

बहुत करता हूँ मेहनत, बंजर में फसल लहलहाता हूँ।
मैं देश के हर घर में,मेहनत से खुशियांँ लाता हूँ।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमन भावों के मोती
दिनाँक-13-09-2019
विषय-बंजर/रेगिस्तान

विधा -हाइकु
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
1- कटते वृक्ष
फैलता रेगिस्तान
पखेरू प्राण।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺

2- रिश्ते बंजर
सिमटती खुशियाँ
तंग दुनिया।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺

3- वीर जवान
तपता रेगिस्तान
निगेहबान।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺

सर्वेश पाण्डेय
स्वरचित

दिन :- शुक्रवार
दिनांक :- 13/09/2019

शीर्षक :- बंजर/रेगिस्तान

यह गर्म सागर रेत का...
मृगमरीचिका है रिश्तों की
नहीं टिकते यहाँ निशां कोई...
सब लीलता रेगिस्तान..
यादों सँग दफ्न होते..
गर्म होकर रिश्तों के एहसास..
वीरानगी का आलम यहाँ...
दफ्न होती हर आस...
सूखा है हर दरख्त...संवेदना का,
है सूखी हर शाख...
उड़ा ले जाती है स्वार्थी आंधियाँ...
फलित होती बेल रिश्तों की....
तपता रहता पीत सागर...
अहंकार की गर्मी से...
पनपते है कैक्टस पौध...
वहम् की खाद से...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

 नमन भावों के मोती
दिनांक-१३/९/२०१९
शीर्षक-"बंजर/रेगिस्तान

विधा तांका
बंजर भूमि
कड़ी हो मेहनत
फसल खड़ी
खुशहाल किसान
जागे स्वाभिमान।

कर्त्तव्य मेरा
धरती रहे हरी
प्रयत्न सदा
फसल लहलहाये
बंजर भूमि हँसे।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

बंजर
मैं बंजर हूँ, बेजान नहीं
सिकता यह निष्प्राण नहीं
कोई सावन बन बरसे
अंग अंग यौवन हरसे
नेह कलश छींटे जल के
बूँद आस की बन छलके
मन उमंग छककर लूटे
हरित भरित कोंपल फूटे
उर्वर रेह अठान नहीं
मैं बंजर हूँ, बेजान नहीं
-©नवल किशोर सिंह
13-09-2019
स्वरचित

13/9/19
विषय: बंजर
विधा:हाइकु

बंजर धरा
कुछ भी नही हरा
नदियां प्यासी

बादल रूठे
बंजर हुए खेत
प्यासी धरती

रेगिस्तान में
चमकती रेणुका
पानी का भ्रम

बंजर दिल
फैलती नफ़रत
प्रेम अकाल

रोते शहर
फैलते रेगिस्तान
प्रकृति ह्रास

शिवेंद्र कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली

दिनांक-13/09/2019
विषय-बंजर

बंजर मिट्टी के भीतर पड़ी है

छिपी हुई एक सुषुप्त आवाज।

आतुर है अपना सच जानने को

कैसा उसका मौन आभास।।

बंजर मिट्टी का कैसा यह आगाज

जल रहा है धरित्री का सुहाग।।

बंजर मिट्टी में है कसक भरी

मंद मंद मुस्काती बेदर्द आवाज।।

बंजर धरती खोज रही है

सीने में दर्द का दरार लिए।

बाट जो हो रहे हैं किसान

अनंत प्रजनन का करार लिए।।

बंजर मिट्टी चांदी का मुकुट पहने

अपने यौवन पर इठलाती।

उसी मिट्टी की ठंडी राख

धुएं के गुबार में सुलग जाती।।

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज


13/9/2019
विषय-बंजर/रेगिस्तान
**************
मन की तंग अंधेरी कुटिया में
हमने राग द्वेष के नाग पाले हैं
जो कभी कभी हमें ही काट लेते हैं...

उन्माद मद मोह के बीज
जो हमने बोए और सींचे हैं
मुल्ला पंडित उनमें अंधविश्वास की खाद डाल कर वर्धित कर देते हैं...

रिश्तों नातो की फसल
कब की बंजर हो चुकी है
अब तो बैर के पैर उग आए हैं
हम स्वयं ही तो वैमनस्य की हवा फैला देते हैं...

मर्यादा की बंजर खेती पर
समीप के रिश्ते सांप बन डसने आये हैं
रेगिस्तान के अंधड़ वैसे भी
नज़रों को धुंधला कर देते हैं...

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित

विषय:-रेगिस्तान/बंजर
विधा:-गीतिका छंद।
🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹

2122 2122, 2122 212
आज ये धरती हमारी ,क्यों मिटा खुद को रही ।
माँ बनी इस सृष्टि की जो, रूप अपना खो रही ।

था कभी हर पुष्प डाली, कोख खाली हो रही .
अब पड़ी बंजर जमीन सी,ये सवाली रो रही ।

कट चली बिन नीर धरती, पेड की छाया नहीं ।
है पथिक बेकल यहाँ पर, चैन वो पाया नहीं

खग करे कलरव कहाँ से,कंठ सूखा जा रहा।
आदमी ही आदमी की ,जान भूका खा रहा ।

नीलम शर्मा #नीलू

#विषय:बंजर:रेगिस्तान:
#विधा:काव्य:

**+** रेगिस्तान **+**

उपयोगिता सभी की अपनी अपनी है,
वो उपजाऊ खेती हो या खलिहान,
सभी की अपनी भी कीमत है,
बंजर भूमि हो या तपता रेगिस्तान,

धरती वरदान है कुदरती करिश्मा,
जीव जंतुओं के हित मैं परम उपयोगी,
किन्तु मानवीय अप्राकृतिक कृत्यों ने,
स्वतः के लिए बना लिया वियोगी,

कण कण बहुमूल्य इस ईश्वरी देन का,
तिनके से भी होता है जीवकोपार्जन,
जीवन पर्यन्त भी ये आवश्यक है हमें,
मरणोपरांत उपयोगी अनेक संसाधन,

बंजर बीहड़ में उपजते देखा है हमने,
फल फूल और जीवन रक्षक अनाज,
योगदान कम नहीं है रेगिस्तान का,
किसे नहीं है तेल गैस पर नाज़,

"*"रचनाकार "*"
दुर्गा सिलगीवाला सोनी
भुआ बिछिया जिला मंडला
(मप्र)

विषय=बंजर/रेगिस्तान
==============
ज़िंदगी की पहेली
जो कभी सुलझी
नहीं सुलझाए
कभी ज़िंदगी खुशियों
के रास्ते छोड़कर
दुःख की गलियों में
विचरण करने लगती
पता ही नहीं चलता
उपजाऊ भूमि में
अंकुर नहीं खिलता
तो वही बंजर भूमि में
फूल खिल उठते हैं
यह ज़िंदगी बड़ी पहेली है
कब दुःख से सुख में
और सुख से दुःख में बदल जाए
पता ही नहीं चलता
मौत भी आती है
तो दबे पाँव आती है
हवा-सी ज़िंदगी को
पल उड़ा ले जाती
तो कहीं मखमली
बिस्तर पर करवटें बदलते
फिर भी नींद नहीं आती
कहीं टिप-टिप टपकती
छत में सुकून से सो जाती
बड़ी अनोखी ज़िंदगी है
धूप-छाँव के सभी
रंगों के दिखलाती है
अनसुलझी पहेली है
यह ज़िंदगी की है
अनसुलझी ही रह जाती है
***अनुराधा चौहान***स्वरचित

विषय- बंजर
13/9/2019

आजमाइशों की बारिश हैं इन्सा क्या करें
काम आती नहीं कोई सलाह ..क्या करे।

दौरे वहशत है हरेक सूं पासबान क्या करें
मुरझाया है हरेक गुंचा बागबान क्या करे।

शर्मसार हुई इन्सानियत जहान क्या करें
बंजर है जमीन सारी आसमान क्या करे।

कुदरत ने कहर बरपाया कारवां क्या करें
हर शै हैं हरजाई ........मेहमान क्या करे।

बीतती जाए जिंदगानी खिजां ..क्या करें
है नहीं मुंतजिर परवाने वो शमा क्या करें।

खीरगी में सुखनवर हैं.. फतवा क्या करे।
तुम्हीं बताओ अहले सुबह हम क्या करें।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

बंजर / रेगिस्तान

छंदमुक्त कविता

लगती नहीं
अच्छी
बंजर भूमि
बनो उत्पादक
दो योगदान
देश के लिए
बनो सहारा
माता पिता के
बनो भाग्य-विधाता
परिवार के

करना ही है तो
करो कुछ ऐसा
बह जाऐ
जल धाराएँ
रेगिस्तान में

है नहीं
कुछ भी
असंभव
जीवन में
रहे कृतसंकल्प
मेहनती
लगनशील
तो है नहीं
बंजर
कहीं भी

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विषय:--बंजर / रेगिस्तान
विधा :--मुक्त
दिनांक:--१३ / ०९ /१९
~~~~<~~~>~~~~
कितनी कितनी
कोशिशे
कितने प्रयास
विफल हुए
अक्षरों के बीज
भावों की भूमी पर
सिंचन भी
बाँध-पलक के
बंद कर
अश्रु जल से
भीतर ही भीतर
किया
उपजी ना
कोई गीत-बेल
ना लगी
मुक्ता-मोती की पौध
ना गज़ल की
बहर बही
ना कोई
किस्से कहानी का
विटप लग सका
बार-बार
अक्षरों के बीज
शब्दों में लपेट
ख्वाहिशों,यादों की खाद
से भी पोषित किये
पर कुछ ना
पा सके
भावों की भूमि से
क्योंकि.........
बंजर थी ना
कैसे फलित होती

डा.नीलम

विस्तृत है मरुथल पीडा का ,
दिखता नहीं कोई मरुद्यान ।
मिलन बना रहता मृगतृष्णा ,
विरह का दुस्तर रेगिस्तान ।

मन विरहिण का बन कर सिकता ,
रैन दिवस ही उड़ता रहता ।
विरह किरकिरी चुभे आँख में ,
रक्त टपक के रहता बहता ।

रक्त रंग आँसू विरहिण से ,
दहके किंशुक वन प्रांतर में ।
ताप दग्ध है विरह वेदना ,
मरुथल उगता अभ्यंतर में ।

अँसुवन जल से रोज विरहिणी ,
मनोभूमि का सिंचन करती ।
खिलती नहीं हृदय शेफाली ,
मन को व्यथा अकिंचन करती ।

स्वरचित:-
ऊषा सेठी
सिरसा

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"अंदाज"05मई2020

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