Sunday, September 22

"संगत,सत्संगत " 20 सितम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-511

विषय संगत,सत्संगत
विधा काव्य

20 सितम्बर 2019,शुक्रवार

सोच स्वयं की अति प्रबल है
सत्संगत कु संगत जीवन में।
कोई पैर कुल्हाड़ी मारक है
कोई हृदय हार जन जन में।

सत्संगत के कारण रत्ना
दानव से मानव कहलाया।
श्री राम भक्त शिरोमणि
वाल्मिकी का नाम पूजाया।

जल ने संगत की धूल से
स्वंय कीच वह कहलाया।
सरयू की धारा की संगत
पावन गङ्गा जल कहाया।

सोच समझ करो संगति
स्वादु भी साधू बन बैठे ।
गुरु बना अपने भक्तों से
वित्त सदा चेलों से ऐंठे ।

कल्पलतेव होती सत्संगत
मनोवांछित फल को देती।
स्वविवेक त्याग के बल पर
दुर्बुद्धि वह नित हर लेती।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


प्रथम प्रस्तुति

कर्ण को संगत नही मिली
अच्छाई गयी पानी में ।।

कितना सार समाया हुआ
महाभारत की कहानी में ।।

गिनती जिसकी हुई हरदम
दानी क्या महादानी में ।।

स्वर में स्वर मिलाया वो ही
दुर्योधन की हर बानी में ।।

सजते सदगुण और भी पर
घाटा यारी निभानी में ।।

एक ही भूल की दुर्दशा
भूल जानी अन्जानी में ।।

बेचारा .....मारा गया
दुर्योधन की हठ नादानी में ।।

अच्छाइयों का गला घुटता
इक कुसंग इक शैतानी में ।।

यकीन करना 'शिवम' हरदम
सदवचनों ज्ञान बानी में ।।

कई मोड़ आऐंगें ऐसे
इस जीवन की रवानी में ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्

20/9/2019
नमन
 मंच भावों के मोती।
नमस्कार गुरुजनों मित्रों।

कहा गया है कि आते हैं गुण,दोष,
सत्संग के कारण।
इसीलिए रहो सज्जन के संग में,
बनोगे सबके मनभावन।

दुर्जन से सज्जन बने,
बाल्मिकी साधु बन गये डाकू से।
हो गया हृदय परिवर्तन,
साथ मिले जब सज्जन से।

दुर्जन लोग कभी सुधरते नहीं हैं,
उनके साथ रहकर बूरे हो जाओगे।
गर पाओगे सज्जन का साथ,
तुम भी सुधरते चले जाओगे।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित

नमन भावों के मोती
आज का विषय, संगत , सत्संग
दिन, शुक्रवार,

दिनांक, 20,9,2019,

ज्ञानी की संगत भली ,
बढ़ जायेगा ज्ञान ।
पारस का है गुण यही ,
छूकर करे महान ।।

डाकू था जो लूटता ,
थे लोग परेशान ।
किया साधुओं का कहा ,
रामायण सा ज्ञान ।।

पत्नी से ममता बड़ी ,
मोह भरा तूफान ।
बनिता की फटकार से,
तुलसीदास महान ।।

भली बुरी संगत रहे ,
हो जरूर पहचान ।
संगत शकुनी ने रचा ,
महाभारत जहान ।।

संगत पावन की भली,
निर्मलता आधार ।
बिना बताये जो करे ,
जन मन पर उपकार ।।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश

शीर्षक- संगति / सत्संग
सादर मंच को समर्पित -


🍊🌻 गीतिका 🌻🍊
**************************
 सत्संग 
🌹 छन्द- रजनी ( वाचिक )🌹
मापनी- 2122 , 2122 , 2122 , 2
समान्त-अता , पदांत- है
🍏🍏🍏🍏🍏🍏🍏🍏🍏🍏

जिन्दगी में सत्यता से प्यार बढ़ता है ।
भावना हो शुद्ध तो व्यवहार गढ़ता है ।।

प्रेम की सरिता बहा कर खोज लें खुशियाँ ,
आपसी सत्संग से हर कार्य चलता है ।

क्यों रहें हम द्वेष की चादर सदा ओढ़े ,
नेह की बरसात से तम-क्रोध गलता है ।

संग लाये थे न कुछ , क्या साथ ले जायें ?
जो करें भव मोह ,मद से अन्त खलता है ।

चार दिन की चाँदनी है , फिर चले जाना ,
साथ कुछ जाये नहीं , बस नाम रहता है ।

मानवी संवेदना से मोह लें जग को ,
है नहीं कोई पराया , भाव पगता है ।

बाँटते जो सुख-दुखों को साथ संगति से ,
शान्ति को पाते वही , प्रभु द्वार मिलता है ।।

🌺🍀🌻☀️🌹

🌴🍎**स्व रचित ....रवीन्द्र वर्मा आगरा


नमन मंच भावों के मोती
20 /9 /2019
बिषय,, संगत,, सत्संग,

जैसा खाऐं अन्न
वैसा होवे मन
ज्ञानी से ज्ञानी मिलें दो दो बातें होय
मूरख से मूरख मिलें दो दो लातें होय
दो घड़ी बैठ लीजिए जहाँ होत सत्संग
कबहुं तो जाय चढ़ेगो मेंहदी जैसो रंग
कांटे बिच फूले गुलाब और सुवास बिखराय
कीचड़ के बीच रहत कमल
फिर भी वह खिल जाय
एक चुटकी बिष से पानी जहर बन जाए
चार दाने शक्कर से मिठास आ जाय
वही पानी गंदगी में मिले तो नाली बन जाए
एक बूंद गंगा में मिल गंगाजल हो जाए
सत्संग में जाने से हरि हमें मिल जाऐं
मूरख की संगत जीवन अकारथ जाए
बड़े बुजुर्ग कह गए प्रवृत्ति उत्तम होय
सर्पों से चंदन घिरे फिर भी सुगंध न खोय
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार


30/9/2019
विषय-संगत/सत्संग
*****************
सत्य सनातन कथन है ये
कि असर संग का होता है

जैसी संगत होती है
वैसा ही मानव बनता है

संग तथागत का पाया
तो …
अंगुलिमाल शरणागत हुआ
बुद्ध के वचनों से प्रेरित हो
शाश्वत सत्य से वो अवगत हुआ

अग्नि का संग पाकर
सोना जब तपता है
तो ..
स्वर्ण निखर कर
आभूषण बन जाता है...!

सीख नारद की मिली
तो ..
रत्नाकर बाल्मीकि बना
बुद्धि प्रखर हुई तो
रामायण की हुई रचना...!

जड़ बुद्धि थे कालिदास कवि
पत्नी की नज़रों में नहीं थी
उनकी अच्छी छवि
सुन कटाक्ष,अंतर्निहित
प्रज्ञा जागी
तो..
वह महान कवि बना..!

संग केशव का पाकर
अर्जुन ने महा समर किया
मोह भरम से मुक्त हुए
दुष्ट 'स्वजनों' का संहार किया..!

सत संग पाकर ही
तो ..
मानुष 'नर से नारायण 'बनता है..!!

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित


दिनांक-20/09/2029
विषय-संगत


जैसी संगत वैसी रंगत
संगत ही पीर ,संगत ही पैगम्बर
शिष्ट की संगत यश के संग
दुष्ट की संगत,छल के संग
संगत साधु का चंदन
साधु का संगत मस्तक का बंदन
वर्षा की बूँदें केले पर
कपूर के संग......
सीप में पडी़ परिणाम
मोती के संग......
साँप के मुख पडी
विष के संग.......

स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज


बिषय- संगत

कहते हैं न कि
काजल की कोठरी में
कितना ही सयाना आदमी जाय
एक लीक काजल की लग ही जाय।
शकुनी की संगत के कारण ही
दुर्योधन निष्ठुर और अन्यायी बना और
श्री कृष्ण की संगत में रहकर
पाण्डव सदा सच के पथ पर चले।
अच्छी संगत उत्थान की ओर और
बुरी संगत पतन की ओर लेकर जाए।
हमेशा करें संगत पर गौर
कहना नहीं मुझे कुछ और।
वरना एक दिन पछताओगे
कुछ न होगा हासिल
हाथ मलते रह जाओगे।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर


विषय -संगत /सत्संगदिनांक -20-9- 2019

जो की अच्छी संगत,याद सदा तू रह जाय।
बुरी संगत जो फसा, जग तुझे बिसराय ।।

परिवार संग बैठ, रूखा सूखा तू खाय।
साकत संग मिष्ठान मिले, उन्हें सदा ठुकराय।।

संगत और सत्संग,कभी न निष्फल जाय।
उनकी संगती सदा ही,हरि दर्शन कराय।।

जीवन का उद्धार कर, प्रभु प्रीत लगाय।
तार देंगे तुझे, उनसे विमुख न जाय।।

एक घड़ी जो मिले, साधु संगत पाय।
कटे कोटि अपराध, सत्संग जो जाय।।

विषधर चहुँओर, मणिधर सर्प न कोय।
जो दोनों संग मिले, विष से अमृत होय।।

कहती वीणा संग साधु, कुछ पल ही पाय।
समर्पित जीवन सत्संग,तू अमर हो जाय।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

तिथि ___20/9 /2019 /शुक्रवार
बिषय - - #संगत/सत्संग#

विधा ____काव्य

बिन सत्संग विवेक नहीं होता.।
आज करें वो कल नहीं होता ।
सुसंगति करते उनका यारो
कभी बद आजकल नहीं होता ।

गर हम सत्संग साधु से कर लें.।
अपना जीवन खुशी से भर लें.।
संगति अपना स्वभाव बदलती
हम जो चाहते मन से कर लें.।

सज्जन मिलें हमें सतसंगों से ।
क्या मिलता हमें अधनंगों से ।
हम कुसंगति में पडे अगर तो
न फुरसत मिले हमें पंगों से ।

यदि सुसंस्कार संगति मिल जाए
कुछ बचपनी संस्कृति मिल जाए
संस्कार आधारित हो. बचपन
इस जीवन में शुभगति मिल जाए.।

स्वरचित
इंजी शम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्रदेश

दिन :- शुक्रवार
दिनांक :- 20/09/2019

शीर्षक :- संगत/सत्संग

बनो खुद चंदन सा...
स्वभाव न बदलें संगत...
लिपटे रहे सर्प घने...
बदले नहीं कभी रंगत...
निश्चय हो हृदय में...
घेरे न कोई दुर्व्यसन...
नियत रखो साफ...
रखो स्वच्छ अंतर्मन...
जाने महत्व स्व-तन का...
मिला अहम ये जीवन...
बिन संस्कार औ सत्संग..
निराधार है ये जीवन...
सत्संग हो सद्ज्ञान का..
मिलते संस्कार जहाँ..
संगत पाकर कुम्हार की...
माटी पाए आकार यहाँ...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

20/09/2019
"संगत/सत्संग"

-----------------------------------
जीवन में दिखता संगत का असर
बच्चों पर पड़ता ज्यादा प्रभाव
संगत हो गुणीजनों की..
जीवन में आता निखार...
अगर संगत बुरी हो तो ....
हाथों हाथ मिलता बदनाम..।

सज्जन व्यक्ति का संगत हो
दिख जाता गुणों का असर
दूर्जन व्यक्ति के संगत से
सद्गुण हो जाता छूमंतर..
मूढ़ता का होता आगमन
भ्रम में घूमता रहता मन।

संगति जो हो गुरुजनों की
दुर्गुण सारे नष्ट हो जाते
मन का विश्वास दृढ़ होता
बाधाओं से भी टकरा जाता
मुकाम हासिल हो ही जाता।

जब संगत हो साधु का...
भाग्य का उदय होता....
ताप त्रय का क्षय होता....
मन लीन होता हरि चरण।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

**
ये विषय देख अपने मन के भावों को पिरोया है।कोई काव्य सौंदर्य या विधा में नहीं और न इसे एडिट किया है।
मैं इस बात पर सदैव जोर देती रही हूँ।
क्षमा सहित
***
संगत की महिमा सुनते आए
सज्जन का गान करते आए
एक प्रश्न सदा सामने खड़ा
जवाब अब तक समझ ना पाए।
संगत से जीवन सुधर जाए
कुसंगत से मानव बिगड़ जाए
ये तो बड़ा सरल है बंधु
काजल की कोठरी में हो जाते काले सभी
बात तो तब उचित है
जब उसमें से उजले निकल आये ।
बड़ी आसानी से दोष लगा देते हैं
अपनी गलतियां दूसरों के मत्थे मढ़ देते हैं
कोई कैसे बिगाड़ सकता है किसी को
वो बिगड़े को सुधारता क्यों नहीं ?
कमियां भीतर है
नैतिकता और सच्चरित्रता
अब तो किताबी ज्ञान भी कहाँ रहा।
एक दोस्त ने नशा किया
दूसरे दोस्त को सिखा दिया
अब ये दूसरे की बात करें
क्या इनका कोई चरित्र नहीं था
इन्होंने पहले का छुड़ाया क्यो नहीं ।
अब सत्संग की बात करते हैं
बड़े बड़े ज्ञानी महात्मा के प्रवचन होते हैं
हमारे देश की भोली भाली
जनता इनको सुनने जाती है,
अब जो मोह माया छोड़ने की
बात करते हैं
उनके ही हजारों में फीस होती है ,
या जो ये कहते है
या जो लोग सुनते हैं
क्या कहे और सुने का अनुसरण करते है।
सार यही जीवन का
चरित्र ही मूल मंत्र है ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

दिन- शुक्रवारविषय- संगत/सत्संग
विधा - कविता

संगत

भावपूर्ण शब्दों के ,
संगत से रचता है गीत।
सुर,ताल और लय के
संगत से सजे मधुर संगीत।

खाली दीया का भाई,
मोल नहीं कुछ खास।
तेल-बाती के संगत से ही,
वह जग को करे उजास।

कुसंगत गर्त में धकेलेगा,
सम्भल पाओगे न मीत।
जब संगत हो अच्छी और सच्ची,
तो हारी बाजी भी जाओगे जीत।

परिश्रम और लगन के संगत से ही,
छू सकते सफलता का आकाश।
यकीं न आए तो कभी,
पलट कर देखो तुम इतिहास।

सदियों से चली आ रही,
बस यही शाश्वत रीत।
जिसकी संगत जैसी,
वैसी उसकी चरित।

स्वरचित
@सर्वाधिकार_सुरक्षित
रानी कुमारी
पूर्णियां,बिहार

🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
विषय:-संगत/सत्संग
विधा:-
हाइकु

संगत थाली
परोसा आचरण
जीव संचार

जन जीवन
संगत का असर
दिखा तत्पर ।

संगत पाल
जीवन का कमाल
जन सम्भाल ।

संगत शैली
बड़ी अलबेली है
बनी पहेली ।

संगत मिले
संरक्षण ही पले
जीवन चले ।

सतसंग में
व्यभिचारी मानव
कुसंग दूर ।

मिले संगत
तब खिले रंगत
बनें सज्जन ।

सज्जन प्राणी
सतसंग बखान
बढ़ाता मान

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू


शुभ संध्या 🌹🌹
दिनांक:20/09/2019
िषय:संगत
विधा:कुडलियाँ

1
संगत इसी समूह की,दिन दिन बढती जाय।
बिना मिले लागे लगे, बरसों से मन भाय।।
बरसों से मन भा य,वंदना नित नित गाऊ।
माँ दुर्गे का ध्यान, रोज़ मैं भोग लगाऊ।।
करके मंगल गान, हुई समूह में रंगत।
मुझको सबका मान,अनमोल है यह संगत।।

2
संगत से सब आत है,संगत से सब जाय।
सोच समझ दोस्ती करो,गाढी पूँजी पाय।।
गाढी पूँजी पाय,दिया सम्मान सभी को।
भोज बैठकर खाय,सभी मित्रों संग मैं भी।
रोज़हि वाद विवाद ,मिले फिर से वह पंगत।
करू रोज़ फरियाद, खिले मुझसे यह संगत।।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।

विषय :- "संगत / सत्संग"
दिनांक :- 20/9/19.

विधा :- "दोहा"
1.
संगत सहज न सत्य की, गर मन में लो ठान।
अन्तर उजियारा करे, हो आत्म - उत्थान।
2.
मन यदि रमा कुसंग में, क्षणिक मिले आराम।
लोभ, मोह, मद घेरते, जीवन हो निष्काम।
3.
संगत हो पहचान जो, कभी न धोखा होय।
आदर मिले समाज में, बांह न पकड़े कोय।
4.
संग न दुर्जन का भला, लाँछन मिले अनेक।
नेक अकेला भी रहे, पशुपति राखै टेक।
5.
निपट अकेला ही भला, पर मत बैठ कुसंग।
जन्म - जन्म उतरै नहीं, बदनामी को रंग।

दिनांक-२०/९/२०१९
शीर्षक-संगत/सत्संग


करें कुसंग, फिर अफसोस
नही ये सज्जन काम
करें चयन सत्संग का
सन्मार्ग पर ले जाये।

अन्त:करण शुद्ध हो तो
सत्संग स्वंय मिल जाये
दुर्मति हो तो कुसंग ही लुभाये
रहे भरोसा आप पर
बुद्धि नहीं भरमाये।

सत्संग से सम्मान मिले
कुसंग से मिले अपमान
मानव जीवन अमोल है
सत्संग है अमृत समान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव

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