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ब्लॉग संख्या :-502
नमन भावों के मोती
तुम्हारा खत यूं सम्हाल कर रक्खा हुआ है।
जख्मे जिगर ज्यों पाल कर रक्खा हुआ है।
लगाया तुमने जिससे मेरे जख्मों पे मरहम।
मैंने वह कांटा निकाल कर रक्खा हुआ है।
यूं पूछते हैं कि तुम अब मुस्कुराते क्यों नहीं।
आंखों में समन्दर उबाल कर रक्खा हुआ है।
अब वही जाने कि उनके दिल मे छुपा क्या।
हमनें ये कलेजा निकाल कर रक्खा हुआ है।
मुझको किसी सूरत अब अफसोस न होगा।
उसने तो सिक्का उछाल कर रक्खा हुआ है।
जो घर की दहलीज छोड कर आए थे तुम।
उसी पर हमनें दिया बाल कर रक्खा हुआ है।
जो हंस रहे थे बीच शहनाईयों के उस पल।
उन्होने अब घूंघट निकाल कर रक्खा हुआ है।
क्या करेगी कल ये दुनिया जल रही है जब।
सिर्फ हाथों में हाथ डाल कर रक्खा हुआ है।
है नसीहत को ये पुतले देख कुछ डरो सोहल।
तूफान शीशे मे पिंघालकर कर रक्खा हुआ है।
विपिन सोहल
तुम्हारा खत यूं सम्हाल कर रक्खा हुआ है।
जख्मे जिगर ज्यों पाल कर रक्खा हुआ है।
लगाया तुमने जिससे मेरे जख्मों पे मरहम।
मैंने वह कांटा निकाल कर रक्खा हुआ है।
यूं पूछते हैं कि तुम अब मुस्कुराते क्यों नहीं।
आंखों में समन्दर उबाल कर रक्खा हुआ है।
अब वही जाने कि उनके दिल मे छुपा क्या।
हमनें ये कलेजा निकाल कर रक्खा हुआ है।
मुझको किसी सूरत अब अफसोस न होगा।
उसने तो सिक्का उछाल कर रक्खा हुआ है।
जो घर की दहलीज छोड कर आए थे तुम।
उसी पर हमनें दिया बाल कर रक्खा हुआ है।
जो हंस रहे थे बीच शहनाईयों के उस पल।
उन्होने अब घूंघट निकाल कर रक्खा हुआ है।
क्या करेगी कल ये दुनिया जल रही है जब।
सिर्फ हाथों में हाथ डाल कर रक्खा हुआ है।
है नसीहत को ये पुतले देख कुछ डरो सोहल।
तूफान शीशे मे पिंघालकर कर रक्खा हुआ है।
विपिन सोहल
विषय--पहला खत
विधा--ग़ज़ल
प्रथम प्रयास
खत दूर लब तक न आ पाया प्यार
नही कर पाया प्यार का इज़हार ।।
आयी जुदाई की बेरहम घड़ी
अश्रु दामन में भर जुदा हुआ यार ।।
पहला खत मेरा पहला शेर था
जो पढ़ा महफिल में कई बार ।।
सोचूँ करूँ इल्तिजा रब से यही
काश उन तक पहुँचे ये अश्आर ।।
देखी थी जो उन आँखों में वो
सोलहवें बसंत की पहली बहार ।।
आज उसी का मज़मून लिख रहा
हूँ मैं होकर मायूस बेकरार ।।
खतों की तो जैसे झड़ी लगी
पहुँच रही तादाद उनकी हजार ।।
ए-हवाओ बनो कासिदे मेरे
मिल जाए दिल को सुकूने करार ।।
तुम्ही ने किया दामन दूर उनसे
तुम्ही करो थोड़ा सा ये उपकार ।।
राहतें मिलेंगीं इस दिल को 'शिवम'
हो जाएगा जो उनसे दीदार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/09/2019
विधा--ग़ज़ल
प्रथम प्रयास
खत दूर लब तक न आ पाया प्यार
नही कर पाया प्यार का इज़हार ।।
आयी जुदाई की बेरहम घड़ी
अश्रु दामन में भर जुदा हुआ यार ।।
पहला खत मेरा पहला शेर था
जो पढ़ा महफिल में कई बार ।।
सोचूँ करूँ इल्तिजा रब से यही
काश उन तक पहुँचे ये अश्आर ।।
देखी थी जो उन आँखों में वो
सोलहवें बसंत की पहली बहार ।।
आज उसी का मज़मून लिख रहा
हूँ मैं होकर मायूस बेकरार ।।
खतों की तो जैसे झड़ी लगी
पहुँच रही तादाद उनकी हजार ।।
ए-हवाओ बनो कासिदे मेरे
मिल जाए दिल को सुकूने करार ।।
तुम्ही ने किया दामन दूर उनसे
तुम्ही करो थोड़ा सा ये उपकार ।।
राहतें मिलेंगीं इस दिल को 'शिवम'
हो जाएगा जो उनसे दीदार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/09/2019
सादर मंच को समर्पित -
🍊🌷 गीत 🌷🍊
🌹🍀 पहला ख़त 🍀🌹
******************************
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
मीत पहला ख़त मिला है ,
देख उसको चूम लूँ मैं ।
या सिरहाने रख , प्यारे
स्वप्न लख कर झूम लूँ मैं ।।
क्या लिखा होगा न जानूँ ,
हृदय की वीणा बजा के ।
सोचता हूँ दिल लुटा के ,
फूल भेजे हैं सजा के ।।
खोलता ज्यों थाम दिल को ,
फिर सहम , कर रोक लूँ मैं ।
मीत पहला ख़त मिला है,
देख उसको चूम लूँ मैं ।।
लो बटोरा पिघलता मन ,
खोल डाला ख़त तुम्हारा ।
जो निहारा साँस थामे ,
पढ़ न पाया शून्य प्यारा ।।
क्योंकि था कोरा , न अक्षर,
बस गुलाब कि सूँघ लूँ मैं ।
मीत पहला ख़त मिला है ,
देख उसको चूम लूँ मैं ।।
पा लिया सारांश सारा ,
फूल सा दिल सोंपते हो ।
लिख नहीं पाये जिया की ,
मूक हिय रस घोलते हो ।।
बस मिली पहचान दिल को ,
प्यार सच्चा बूझ लूँ मैं ।
मीत पहला ख़त मिला है ,
देख उसको चूम लूँ मैं ।।
🌹🍀🌻💧🌺
🌴🌻**....रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
नमन मंच भावों के मोती
11 //9 //2019
पहला खत ,,पत्र
उनसे पिछड़े हुए जमाने हो गए
गैर अपने हुए हम बेगाने हो गए
सोचती थी पहला खत उन्हीं का आएगा
पल दो पल मन संभल जाएगा
खत न आने के सौ सौ बहाने हो गए
जब सामने होंगे शिकायत मैं करुंगी
कुछ उनकी सुनूंगी कुछ अपनी कहूंगी
वो तो आए नहीं हम क्यों दीवाने हो गए
आंखें भी थक चुकी उनके इंतजार में
सोचती थी बात होगी पत्र ब्यवहार में
उनका पता पुराना हो गया
हम अनजाने हो गए
हमको जो मिला ए उनकी मेहरबानी थी
हमने भरोसा किया ए हमारी नादानी थी
शमां को जलाने हम परवाने हो गए
स्वरिचत,, सुषमा ब्यौहार
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
दिनांक-11/9/2019
विषय-पहला खत
हमने सजदे किये उनके आने पर
वो यूँ ही ख़फ़ा हो गये।।
ज़र्रे-ज़र्रे पर लिखा उनका नाम
बुल रफ़्ता-रफ़्ता फ़ना हो गये।।
आज देखकर उन्हें अज़नबी की तरह
फ़िर दर्द जवां हो गये।।
छुपाया तो था पहला खत सीमा
नगमें आँखों से बयां हो गये।।
जबसे ख़फ़ा हुआ तू मुझसे साकी
हम एकदम तन्हा-तन्हा हो गये।।
स्वरचित✍
सीमा आचार्य(म.प्र.)
विषय-पहला खत
दिनांक -11-9-2019पहला खत पिया,जब मोहे मिला।
मैं देख बहुत,मन ही मन शरमाई।
क्या लिखा उसमें,मैं बहु हरसाई।
सखी को,पिया खत बात बताई।।
जाऊ मैं विदेश, लिखा हरजाई।सखी मुख सुन,तीर ह्रदय चुभाई।
बिन मिले मुझसे, ना तुम जाई। सखी खत, यह बात लिखाई ।।
पहला खत पिया,मैं ना बिसराई।
उसको देख,मैंने जिंदगी बिताई।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
पहला ख़त
हाइकु लेखन
1
पहला ख़त
मुझको बड़ा भाये
अधिक सुहाये
2
उनकी आई
पहली जब पाती
भीनी खुशबू
3
तेरा वो पहला
ख़त जब से आये
मुझे रुलाये
4
मुझे हंसाये
फिर मुझे रुलाये
पहला ख़त
5
जाये महक
मेरा शुष्क जीवन
पहला ख़त
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
विषय प्रथम पत्र,खत।
विधा काव्य
11 सितम्बर 2019,बुधवार
खत अन्तर्मन अभिव्यक्ति
सबसे नहीं अपनों से कहते।
आशा और विश्वास लिये हम
खत में मन की बातें लिखते।
खत लिखता संसद देवालय
लोकतन्त्र मुल्क विकास हो।
लिप्त रहें मिल जन परहित
कोई कभी निराश यँहा न हो।
खत लिखता हूँ गुरु जनों को
शिष्यों को संस्कारित कर दो।
मातृभूमि की हर विपदा मिल
एक एक सबको प्रिय हर दो।
जीवन के जग पालनहारा
ज्ञान भक्ति बल सदा नेह दो।
जीवन जो प्रभु दिया आपने
परोपकारी प्रिय निज देह दो।
पद कमलों में खत अर्पित है
द्वेष घृणा लालच प्रभु हर लो।
भांवो के मोती विनय है हरि
दीन दयालु आलिंगन भर लो।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
भावों के मोती
बिषय- पहला ख़त
प्यार की खुशबू से भरा
वो पहला ख़त तुम्हारा।
तुम्हारी अमानत समझ
रखा है मैंने सम्हालकर।
कागज़ पीला पड़ गया है
शब्द लगभग मिट चुके हैं
फिर भी जिन्दा है अब तक
दिल में वो अहसास तुम्हारा।
हर हर्फ महक रहा प्रीत से
है मुझको ये जान से प्यारा।
दूर जाकर भी पास हो तुम
नहीं मिटेगा कभी प्यार हमारा।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
विषय =खत पत्र ,
विधा= हाइकु
(1)इंद्र को खत
धरा हुई है तृप्त
करिए बस
(2)मैया का खत
वृद्धाश्रम से आया
निकले आंसू
(3)पहला खत
सम्हालकर रखा
यादों की पूंजी
(4)खत जमाना
हुआ अब पुराना
मोबा मार्डन
(5)लेकर झट
ह्रदय से लगाया
पहला खत
स्वरचित
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
दिनांक:11/09/2029
विधा: मात्रिक छंद दोहा
विषय: पहला पत्र/खत
पहला पत्र लिख देव को,गाऊँ वंदन गान।
पूर्ण किया सब कामना,हो गई बान शान।।
पहला खत लिख देश को,है मुझमें अभिमान ।
उत्तर पाकर मौन थी,मन में आया मान।
अभिभावकों का पालना,जीवन भर का काम
प्रथम पत्र की भावना,अर्पित उनको मान।।
लिखन चली जब प्रेम की,पहले पत्र में बात ।
सूझ न आया क्या लिखूं, बीती जाएं रात।।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश ।
नमन भावों के मोती
दिनांक-११/९/२०१९
पहला - पत्र
मेरा प्यारा बेटा राज,
सदा खुश रहो।
यह मेरा पहला पत्र है जो मैं तुम्हें लिखने बैठी हूँ,जो मैं आज तक कह नही पाई, मुझे पहली बार कहने का मौका मिला है, तुम छोटे से ही बहुत समझदार थे, शायद तुम्हें पता था कि, तुम्हारे साथ साथ मुझे तुम्हारी दीदी,और संयुक्त परिवार के अन्य लोगों की भी पूरी जिम्मेदारी मेरे साथ थी, अतः बचपन से लेकर आज तक, कभी तुमने मुझे परेशान नही किया, तुम्हारी परवरिश और पढ़ाई के लिए मुझे खाश मशक्कत नही करनी पड़ी, तुम अपनी पढ़ाई और कर्त्तव्य के प्रति जागरूक थे।
बाबू,,मुझे आज भी याद है कि जब तुम अपनी इन्जीनियरिंग की पढ़ाई के लिए शहर से बाहर जाने लगे तो तुमने मुझसे पूछा"मम्मी, तुम्हारा कोई पेंडिंग काम है",और मैंने झट से पन्द्रह वर्ष पूर्व लिखी हुई एक रचना तुम्हें पोस्ट करने दे दी,और पहले ही प्रयास में वह रचना एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र में पुरस्कृत हुई,जो मेरे लिए संजीवनी का काम किया, क्योंकि तुम्हारी दीदी तो पहले से ही पढ़ाई के सिलसिले में शहर से बाहर रहने लगी थी,,और पापा आफिस के काम में व्यस्त रहते,और अब संयुक्त परिवार से एकल परिवार में आ गई थी,वैसे में तुम्हारे द्वारा मेरे लिए उठाया गया वह पहला कदम, मेरे लिए एक नया मार्ग प्रशस्त कर गया।
तब से लेकर आज तक मैंने कितनी रचनाएं रच डाली,और पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई,और मुझे अपनी पहचान मिली, तुम हमेशा खुश रहो भगवान से मैं यही प्रार्थना करती हूँ।
तुम्हारी माँ-आरती श्रीवास्तव।
दिनांक 11/09/2019
वार - बुधवारविषय - पहला पत्र
पहला पत्र
तुझे ढूँढ जब नैन थके,
मन व्याकुल कुछ अकुलाया।
मैंने कितने माध्यमों से,
संदेशा तुझ तक पहुँचाया।
टांका मन के कोमल भाव,
पुरवाई के आँचल पर।
कागज की कश्ती में छोड़ा,
संदेशा लहरों की हलचल पर।
सूनी मन की कुंज गली है,
नैनों का तट है भर आया।
मन का भाव बिखरा जब,
बनकर तारक नभ पर छाया।
रोज बादल में भरती हूँ,
आँखों के अश्रु अपने।
झर जाते हैं अंबर से,
बनकर बूँदें सारे सपने।
निशा ढले तब नीरवता में,
करती रजनीगंधा से मनुहार।
अपनी महक में भर पहुँचा दे,
प्रिये के अंगना मेरा प्यार।
नैन विकल हो बाट निहारे,
तेरा कोई तो संदेशा आए !
लिखा कण - कण में पहला पत्र,
क्या किसी ने तुझ तक पहुँचाए ?
स्व रचित
डॉ उषा किरण
11/9/2019
विषय-पहला खत/पत्र✍️❤️✍️❤️✍️❤️
पहले खत का पहला अहसास
जीवन में होता है बड़ा ही खास
कितनी दूर बसे थे तुम प्रियतम
मगर पहले खत में लगे थे बिल्कुल पास
बेकाबू होने लगयीं थी धड़कनें
वो कांपते हाथों से खत खोलने का प्रयास
खुशी से नम हो गईं थी आँखे
धुंधली नज़र से पढ़ने का वो बेताब प्रयास
फिर यूँ लगा तुमने पोंछ दी मेरी आँखें
ये मेरे मन का वहम था या था तेरा आभास ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय -पहला खत
दिनांक- 11/9/2019
विधा -मुक्त छन्द
पहला खत तुमने जो लिखा था,
रखा है, उसको दिल ने संभाले
भाव वही, तासीर वही है
बाकी है, अब भी वो मोहब्बत,
झिलमिल करते, सपन सुनहरे
आंखों की वो मूक सी भाषा
अक्षर अक्षर प्रेम पगा है
जैसे कल की बात लगे,
बेले की मादक सी खुशबू
लेती हिलोरे मेरे मन में
और समाती है तन में
भीनी भीनी खुशबू से भर
भीग के तेरा नाम पुकारे,
ऐसा तेरे खत का जादू
आज भी मेरे मन में डोलेl
ऊषा पाण्डेय ‘कनक
विधा-दोहे
विषय-पहला पत्र
पहली पाती पिया की , उर से लिया लगाय
भीनी-भीनी महक से तन-मन भीगा जाय
जानम तेरी याद में ,हमको नींद न आय
मिलना कब होगा सनम,पाती पूछे जाय
पाती में सन्देश था, कब मिलने आ जाय
आकर तुमको थाम लें,झटपट हिया लगाय
प्रिय देना सन्देश तुम अपनी पाती भेज
मुश्किल से रातें कटें,काटे मुझको सेज
पाती में जो कुछ लिखा उसको समझो तार
तुरत फुरत उत्तर लिखो,भेजो अपना प्यार
अक्षर अक्षर प्रेम का,मोती सम था रूप
मन पर मेरे खिल गई, सुबह-सुबह की धूप
सरिता गर्ग
नमन भावों के मोती
विषय पहला पत्र
विधा कविता
दिनांक 11.9.2019
दिन बुधवार
पहला पत्र
🍁🍁🍁🍁
कोयल भी गाने लगी थी शहनाई
परिभाषित होने लगी थी तन्हाई
मौसम का जादू परवान पर था
युवा पंछी भी नई उडा़न पर था।
नया फैशन लिये होते थे वस्त्र
मन में तन में उमंग थी सर्वत्र
भाषा के जब भी चलते थे सत्र
नये शब्द खंगालता लिखने को पत्र।
वक्त था उभरते उभरते यौवन का
कल्पनाओं में डूबे स्वप्निल धन का
रेखांकित चित्र था सुन्दर से उपवन का
हाथों में हाथ लिये मधुर से बन्धन का।
पत्र में कलियों का खिलना था
पगले भौंरों का मिलना था
पुरवाई का मादक उन्माद था
तन्हाई भरा कुछ अवसाद था।
जि़क्र था उत्सवों के नयनालाप का
विरह अग्नि से जलते ताप का
अनिद्रा से सूजी हुई आँखें
और एकान्त में होते प्रलाप का।
पर जब धरा ही होती है बंजर
ठण्डी हवा भी निकल जाती सर सर
मेरी अलँकृत भाषा का पन्ना भी
व्यर्थ ही उड़ गया फर फर ।
मेरे प्रथम पत्र में ही पतझर छाया
प्रीत की शैय्या में भयंकर ज्वर आया।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
नमन "भावो के मोती"
11/09/2019
"पहला खत"
-----------------------------------
एक दिन अनायास एक खत मिला.....
किसी नें अपनें जज्बातों को लिखा था....
उस खत के अंदर एक गुलाब रखा था......
प्रीत की खुशबू से महक रहा था....।
बार-बार पढ़ती रही थी..
एक-एक शब्दों को जी रही थी..
इतनी मेरी समझ कहाँ थी..
मैं नादां इन बातों से बेखबर थी..।
आहिस्ता-आहिस्ता दूनिया मेरी बदल रही थी..
ख्वाबों में सपने सजाने लगी थी....
अपना सा कोई लगने लगा था....
प्रेम को उस दिन महसूस किया था....।
अब भी उन एहसासों से.. रोम-रोम सिहर उठता है..
वो गुलाब करीने से रखा है..
प्रेम का वो"पहला खत" था।।
स्वरचित पूर्णिमा साह..
पश्चिम बंगाल ।।
विधाःः काव्यः ःः
प्रातःस्मर्णीय पिताश्री को
मैने लिखा था पहला पत्र।
सादर चरण वंदन कर ही,
संम्बोधित था पहला पत्र।
मन छोटू था पिताश्री से दूर।
करी मिलने कोशिश भरपूर।
पत्र तभी लिखता रहता था ,
क्योंकि था मै बहुत मजबूर।
अपने मैने सब हाल लिखे थे।
ये बोलचाल के भाव लिखे थे।
सोचसमझकर लिखता था मै,
था बचपन पर भाव बहुत थे।
लिखे परिस्थितियों में खत।
छोटा फिर भी पाई शोहरत।
प्यार पिताजी हमें करते थे,
बर्षों में मिलने थी मोहलत।
मिले पत्र पढ प्रसन्न होते थे।
लगता वे मन ही मन रोते थे।
शब्दों की मरहम थी अपनी,
शायद भावुकता में खोते थे।
स्वरचितःः ः
इंंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
पहला पत्र (वास्तविक में लिखा पहला पत्र )
आई जब
समझ थोड़ी
सोचा लिखूं
किसे पहला पत्र
गया था,
मैं
एनसीसी
केम्प में पचमढी
रह गयी थी
माँ
घर अकेली
लिखा यूँ
पहला पत्र
"
मेरी प्यारी
माँ
पडूँ पैर
कर दंडवत
कहती थी तुम
मुझे आलसी
यहाँ उठता हूँ
भौंर सबेरे
दौड़ना रिहर्सल
चढ़ना पहाड़
फिर उतरना
सच माँ
आ गया है
मेहनत लगन और
देश सेवा का
जज़्बा मुझ में
समझ गया
बात तुम्हारी
घबराना मत
गिरना फिर उठना
चोट तकलीफ तो
चलती जिन्दगी में
लेकिन आऊंगा
बहादुर बेटा बन कर
तुम्हार।
- बेटा तुम्हारा "
हो गया हूँ आज
साठ का
लेकिन रखा है
संजो कर
माँ को लिखा
पहला पत्र
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय .. पहला पत्र
**************
सजा कर दर्द जो रखा है,
मैने आज महफिल में।
तो उम्दा, वाह सुन्दर है,
कहा सबने है महफिल में॥
**
परोसा अश्क को अपने,
सजा करके जो शब्दों में।
कहा सबने कि वाह क्या,
खूब लिखा है ये नगमों में॥
**
उभरते दर्द को लफ्जों ने,
बाँधा है समा ऐसे।
कि मानो माशूका ने फ़ाड़ दिया,
वो पहला पत्र हो जैसे॥
**
उभारा शेर ने यादें सभी,
महफिल मे आकर के।
सभी ने वाह बोला है,
वफा पे आज आकर के॥
**
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
दिनांक :- 11/09/2019
शीर्षक :- पहला खत
वो पहला खत..
जो लिखा था कभी किसी की याद में,
आज भी रखा है...उसी दराज में।
शब्द-शब्द सजाए थे बड़े चाव से,
लहराते थे जो समंदर में नाव से।
जज्बात रख दिए थे सब खोलकर,
लिखे थे शब्द-शब्द सब तौलकर।
एहसास सब मेरे अपने थे,
देखे मैंने भी कुछ सपने थे।
पर दे न सका वो खत उसे,
कह न सका दिल की बात उसे।
दिल की मेरे दिल में ही रह गई,
बात जुबां पर ही अटक गई।
सोचा था शब्दों से सब हाल बयां कर दूँ,
जिंदगी को उसी के हवाले कर दूँ।
काश! वो खत उसे दिया होता,
तो, सुकूं भर जिंदगी जिया होता।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिनांक-11/09/2019
विषय- पहला पत्र
प्रेम का पहला पत्र जो पढ़ता
नस नस में उग्र प्रवाह उठता।।
शब्दों के थपेड़ों को जो सहता
अंतर्मन क्यों करुण क्रंदन करता।।
शब्दों के शूलों की पीड़ा जो कहता
मन में अशांत क्यों दर्द उभरता।।
तपती सीना ,तपती माथा
पत्र अग्नि की कहती अपनी गाथा।
संकल्प सत्य पर जब मैं डिगती
मन अशांत अग्नि उद्विग्न दमकती।
पत्रों को ठोकर देकर
युग के आगे मैं बढ़ती।
कष्टों की कलमुही रातों में
अशांत मन पुंज प्रकाश भरती।
पहला पत्र शून्य में खड़ा अकेला
लेकर संग रश्मिओं का मेला।
मन का हार मेरे सजाएं......
थकी दुपहरी की बेला........
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
नमन मंच
11/09/2019
बुद्धवार
विषय -- पहली पाती / पत्र
विधा-- चोका
पहला पत्र
स्मरण कराता है
बीती यादों को
ले जाता हृदय को
यादों की गली
यौवन की चौखट
खिलखिलाना
कोई फिकर नहीं
मस्त रहना
तभी अचानक से
आँगन बीच
पत्र का हाथ आना
समझ गई
भेजा किसने पत्र
सामने वाला
मेरा नया पडोसी
प्रेमपत्र था
हो गये सूर्ख गाल
नया मंजनूं
रटी रटाई शायरी
हास्यास्पद सा
वह प्रेमपत्र था
रोमांच हुआ
थोडी़ मैं शरमाई
हँसी भी आई
कितनी बार पढ़ा
कोई देखे न
सोच मैं घबडायी
झट से फाड़ा
गमले में दबाया
डाँट पिलाया
खूब ही धमकाया
ड़रा बेचारा
उसने माफी मांगी
हमने देदी माफी
स्वरचित डॉ.विभा रजंन(कनक)
नयी दिल्ली
नमन, "भावों के मोती"
विषय :- "पहला खत"
दिनांक :- 11/9/19.
प्रथम पाती लिखूं कैसे, चांद मेरा खो गया है।....
रात की, रानी खिली है,
प्रीत के हैं, गीत गाती।
भ्रमरों ने, राग छेड़ा,
पवन है, खुशबू लुटाती।
दिल हुआ अवसाद का घर,
अब नहीं, दुनिया सुहाती।
विरहिणी का रुदन जागा,
वेदना तन को जलाती।
हवाएं खामोश हैं अब,
छुप गए हैं, लो सितारे।
दिशाएं हैं, मूक सारी,
शिखर पर है, रवि चढ़ा रे।
राह तकते, दिवस बीता,
कन्त की ना, खबर पायी।
दिन ढ़ला, रवि भी गया घर,
घोर काली, रात छायी।
प्रीत के सब बंधनों को लांघ बागी हो गया है।...
प्रथम पाती लिखूं कैसे चांद मेरा खो गया है।
पहला खत
**
अरमान फिर वो मचल उठे
तुम्हारी पहली चिट्ठी जो पढ़ी ,
पीले पड़ गए उन पन्नों में
एहसासों की वही महक भरी।
चाँद सितारों की बाते न थीं
ख्वाबों को तुमने लिखा नहीं
पहले खत के चंद शब्दों में
जीवन का अद्भुत प्रेम लिखा ।
सूखे गुलाबों की खुश्बू से
भीगा आज मेरा तन मन है ,
पढ़ती जाती पहले खत को
जज्बातों से आंखे नम हैं ।
पहला खत तुम्हारा,पूंजी मेरी
वही एहसास,धड़कन है मेरी
जेहन में तुम वही याद आते
खत थमाते हुए वो नजरें तेरी।
स्वरचित
अनिता सुधीर
वो पहली प्यार की पाती, हमें भी याद आती है।
पाती में छिपी यादें, हमें हर पल सताती हैं।।
लिखा था प्यार पाती में, जिसे हमने नहीं समझा।
छिपा था प्यार शब्दों में, उसे हमने न पहचाना।।
हमारी बेरुखी ने ही ,किया रुखसत उसे हमसे।
गर समझते इजहार को उसके, वो होती दूर न हमसे।।
जो पाती को समझ लेते, वो होती पास अब मेरे।
न होती दूर नजरों से,जो भावों को समझ लेते।।
दुआ है रब से ये मेरी, उसे रखें हिफाजत से।
मिले हर पल उसे खुशियाँ, यही अरदास मौला से।।
यही बस अब तो चाहत है, जब भी दीदार उसका हो।
समझ ले बेबसी मेरी, निगाहों मे न नफरत हो।।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
जयपुर
विधा--ग़ज़ल
द्वितीय प्रयास
खत के चलते बना नग़्मा-निगार
जाना पहचाना क्या होता प्यार ।।
बाँधने लगा दिलों के उमड़ते भाव
गिरते उठते ये ख्याल बेशुमार ।।
नही लिख पाया जो कभी भी खत
ये उसी का तिलिस्म या चमत्कार ।।
दिलों की बातें कब दबीं हैं भला
लिया उन्होने एक दिन आकार ।।
दिल अगर पुरखुलूस हो तो फिर
क्यों न हो सुख़नवर करिये विचार ।।
मुक़द्दस दिल तड़फता है जब किसी
की चाह में 'शिवम' निकलते अश्आर ।।
ये जो प्यार में पगी सीं ग़ज़ल हैं
शायर के खत समझो इनको यार ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/09/2019
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रखें हैं संभालकर मैंने वो खत,
जो तुमने मुझे कभी लिखे थे,
वो पहला खत तुम्हारा मेरी ही,
सहेली के हाथों यूँ भिजवाना ,
कितना सादा था वो जमाना |
पकड़े जाने का डर सदा लगता था,
फिर भी खत का इंतजार रहता था ,
मुलाकात तो रोज ही हो जाती थी,
पर खत का अपना ही मजा होता था,
एक सुखद सा एहसास होता था |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय=पहला पत्र/पहली पाती
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वो पहली पाती तेरे नाम की,
भावनाओं की स्याही से लिखी,
कलम को जज़्बात में डुबोकर,
शब्दों से दिल की कहानी लिखी।
लाज-शरम के परदे से ढके,
जज़्बात वो सारे लिख डाले,
किसी तरह का न रहे परदा,
हालात वो सारे लिख डाले।
जवाब जो तेरा पत्र लाया,
मन-मंदिर मेरा महकाया,
लिखा तूने जो दिल का हाल,
वो पहले पत्र के साथ आया ।
माँ की लिखी पहली पाती,
आँसुओं में मुझको भिगोती
ममता के रस भरे शब्दों से,
माँ का मुझे अहसास दिलाती।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
11,9,2019,
पहला खत माँ का जब आया,
ससुराल में मेरी शादी के बाद ।
भड़क उठा फिर स्नेह माँ का,
आँखों से होने लगी बरसात ।
पहला खत लिखा भाई को ,
रक्षाबंधन में आने की थी बात।
नयन बिछे रहे थे दरवाजे पर ,
भूल गई थी भूख और प्यास।
पहला खत आया साजन का ,
भूल गई थी मायके की बात।
महक उठीं थीं दसों दिशाऐ,
माँगा दिल ने साजन का साथ।
पहले खत का अनुभव विचित्र,
होता रिश्तों का सजीव चित्र।
रूठे जो अपने बन जाते मित्र,
लिखो जरूर इक बार सुचित्र।
स्वरचित, मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
11/9/2019
हाइकु
1
पहली पाती
दिल में समा जाती
होती है थाती
2
जीवन पत्र
कर्म की है लिखाई
पढ़े सुपात्र
3
नयन पत्र
प्रेम की लिखावट
प्यार के शब्द
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
विषय:--पहला पत्र
विधा:--मुक्त
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आज भी
मेरी रुह की
तिजोरी में
वो.........
शब्दहीन
कोरे सफ्फाक
सफे पर
आँसूओं के
बिखरे
अनमोल मोतियों से सजा
गुलाब के सूखे
फूल की महक नहीं
तुम्हारी
साँसों की महक में
रचा बसा
तेरी रुह का
लिखा
पहला पत्र
संभाल कर
रखा है।
डा.नीलम
दिनांक : 11/09/2019
विधा छंदमुक्त कविता
वो जमाना ओर था
इश्क के नन्हे कदम ,
बढ़ते चलें पत्रों के दम ,
खुशनुमा वो दौर था ,
वो जमाना ओर था ।
वो जमाना ओर था ।
पहली पहल नजरें मिलीं ,
कली इश्क की दिल में खिली ।
मन झूमता बन भांवरा,
प्रियतम लगे बस सांवरा ।
मन प्रेम से सराबोर था ,
वो जमाना ओर था ।
वो जमाना ओर था ।
वो प्रेम की पहली पाती ,
खुशबू तेरी अब भी आती ।
भुलाए ना भूले याद तुम्हारी ,
उस पाती में जान हमारी ।
लोक लाज का जोर था ,
वो जमाना ओर था ।
वो जमाना ओर था ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब
शीर्षक-पहली पाती, पहला पत्र
विधा-हाइकु
1.
पहली पाती
दो दिलों को मिलाती
प्यार बढ़ाती
2.
पहला पत्र
गणेश जी के नाम
किया प्रणाम
3.
पहला पत्र
हिंदुस्तान के नाम
देशभक्ति का
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
क्या तुम्हें याद है,
वो पहला ख़त,
जब हम दोनों ही अनजान थे,
ख़त की परिभाषाओं से,
बस यूं ही, कॉपी के अंतिम पन्ने में,
कुछ अनगढ़ शब्दों में,
गढ़ दिए थे मैंने वो भाव,
जो उपजे थे,
तुम्हारी स्नेहिल दृष्टि से,
मंदस्मिता से,
मासूमियत से,
आबनूसी जुल्फों से,
और तुम्हारी सहज, सरल ,मिठास भरी बातों से,
और तुमने भी तो,
उन भावों को,
ठीक वैसे ही ग्रहण किया था,
जैसे मेरी चाहना थी।
कितना कठिन था,
क्लास की तीसरी बैंच में बैठकर,
दोस्तों से छिपाते हुए,
उन अनगिन भावों को,
एक छोटे से कागज के लिख देना,
जिनकी उद्दीपक थी तुम।
"अनुमेहा" अपनी कॉपी देना,
एक प्रश्न का उत्तर देखना था,
हां, यही तो बहाना था,
तुम तक अपनी भावनाओं का,
पहला ख़त पहुंचाने का,
हां, मैंने देखा था,
तुम्हें उस कॉपी को,
किसी धरोहर की तरह,
सम्हालते हुए,
जिसके बीच में ख़त के बहाने,
अपनी भावनाओं को,
अपने प्रेम को,
और स्वयं को,
सौंप दिया था मैंने तुम्हें,
आज वो पहला खत,
उसके अनगढ़ शब्द,
उसकी यादें भले ही,
धुंधली हो गई हों,
पर वो भाव,
आज भी ठीक वैसे ही,
या यूं कहूं,
उससे भी कहीं ज्यादा गुलाबी होकर,
जुड़े हुए हैं,
सिर्फ तुमसे।।
स्वरचित - महेश भट्ट ' पथिक '
विषय - पहला पत्र
आसान नही पहला पत्र लिखना
एक एक पहलू पर विचार करना
जैसे तैसे शब्दों का चयन करके
फिर कोरे काग़ज़ पर उन्हें उकेरना
बात कोई भी अधूरी छूट ना जाए
सोच सोचकर दिल का घबराना
शब्दों को सीमा के दायरे में रख
अपने मनोभावों को यूँ लिख देना
वाक्य रचना,विराम चिह्न प्रयोग
वर्तनी प्रयोग का भी ध्यान रखना
कोई बात हमारी ना अप्रिय लगे
दिल दिमाग़ में तालमेल बिठाना
पत्रों की बड़ी अजीब सी दुनिया
कितनी बंदिशों से पड़ता गुज़रना
सच मायनो में ऐसा मुझको लगता
अग्नि परीक्षा है पहला पत्र लिखना
उसके प्रत्युत्तर में चैन को तजकर
बेसब्री से दिल थामे प्रतीक्षा करना
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
विधा :-पद्य
पहला प्रेम पत्र जब पाया ,
पाँव ज़मीं पर नहीं थे मेरे ।
पढ़ती और छुपा लेती थी ,
आठ पहर अरु साम सवेरे ।
ख़त में केवल ढाई आखर ,
बार बार पढ़ती मैं ऐसे ।
मैथिल कोकिल का पद कोई ,
समझ न आता मुझको जैसे ।
ढाई अक्षर की चिट्ठी ने ,
नींद चैन सब छीने मेरे ।
उत्तर जब भी लिखने बैठी ,
लिख लिख ख़त फाड़े बहुतेरे ।
ख़ाली काग़ज़ मोड़ तोड़ कर ,
पुस्तक में रख कर लौटाया ।
उस अनुभूति के आनंद सा ,
नही पदार्थ कोई बनाया ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
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