Sunday, September 1

" काजल "30अगस्त 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-490

नमन मंच,भांवो के मोती
विषय काजल
विधा काव्य

30 अगस्त,2019,शुक्रवार

कान्हा की आँखो में काजल
जसुमति लाला रोज लगाती।
हुलराती दुलराती स्नेहमयी
काला टीका भाल सजाती।

नयनों का सृंगार है काजल
आकर्षण होता है काजल।
विरहणी की आँखों में आकर
अनवरत बरसे जैसे बादल।

नन्हे शिशु की आँखो में वह
नयी दिव्यता काजल लाता।
मुख सुषमा का केंद्र बनकर
कभी हँसाता कभी रूलाता।

आँखो में अमृत है काजल
नया उजाला भर भर लाता।
नयनों की मादकता में रत
कवि काव्य किरण बरसाता।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


द्वितीय प्रस्तुति

कजरारे नयना शौभित हैं

मेघ श्याम कजरारी अल्के।
बदरी में से लुक छिप देखे
चँदा रूप सुनहरा झलके ।

इस धरती को अम्बर तरसे
धरती तरसे नित अम्बर को।
कजरारी दो आँखे तरसे नित
आलिंगन बद्ध हो जाने को।

कजरारी आँखो का दीवाना
जीवन सदा जगत में तरसा।
कजरारी जादूभरी आँखों से
छिप छिप रोया कोई हर्षा।

नयनों का सृंगार है काजल
चँचल चक्षु नर मोहित करते।
बांए दांए ऊपर नीचे झुक
गोल घूम नित मानस हरते।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


नमन मंच,भांवो के मोती
Govind Prasad Gautam 
विषय काजल
विधा काव्य

30 अगस्त,2019,शुक्रवार

कान्हा की आँखो में काजल
जसुमति लाला रोज लगाती।
हुलराती दुलराती स्नेहमयी
काला टीका भाल सजाती।

नयनों का सृंगार है काजल
आकर्षण होता है काजल।
विरहणी की आँखों में आकर
अनवरत बरसे जैसे बादल।

नन्हे शिशु की आँखो में वह
नयी दिव्यता काजल लाता।
मुख सुषमा का केंद्र बनकर
कभी हँसाता कभी रूलाता।

आँखो में अमृत है काजल
नया उजाला भर भर लाता।
नयनों की मादकता में रत
कवि काव्य किरण बरसाता।

स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


नमन मंच भावों के मोती
दिनाँक-03/08/2019
विषय-काजल

***********************
कोई आंगन सजा के बैठा है,
दीये रोशन जला के बैठा है!

कहीं घनघोर मेघ काले है,
कोई काजल लगा के बैठा है!

चमकता नूर तेरा इस जमाने मे,
कोई दीपक बना के बैठा है!

कहीं लगते है बंद दरवाजे
कोई पर्दा हटा के बैठा है!

"नील"अम्बर भी खाली खाली है,
कोई तारे छुपा के बैठा है !

स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"

नमन मंच भावों के मोती।
सुप्रभात गुरुजनों, मित्रों।

काजल
काजल है नैनों का श्रृंगार।
इससे बढता है रूप अपार।

नजर से बचाने के लिए।
छोटे बच्चों को लगाते।

माथे पर काजल का टीका।
बच्चों की है शोभा बढ़ाते।

उपमा देते बादल का काजल से।
अंधेरे को भी कजली स्याह रात बताते।

कुछ नहीं लगता है मोल।
लेकिन ये आंखों के लिए है अनमोल।

आंखों की रोशनी बढ़ाता।
आंखों की है शोभा बढ़ाता।

वीणा झा
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी

विषय--काजल
प्रथम प्रस्तुति


कहीं काजल कहीं कंगन है..
कहीं बिंदिया कहीं पायल है ..

देखा है जिस रोज से तुझको
दिल घायल है दिल घायल है..

आज नही तो कल मिलेंगे
दिल कायल है दिल कायल है ..

आशा में हर आँधी देखूँ
कहूँ बादल है ये बादल है ..

मन मयूरा नाचे मन में
हलचल है ये हलचल है ..

चंचल कजरारे नैनों का 
दिल पागल है ये पागल है ..

डूबा मन काजल को बोले 
कहे साहिल है ये साहिल है..

वाह 'शिवम' दिल की हालत
क्या चाहत है क्या चाहत है ..

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 30/08/2019

नमन भावों के मोती
विषय-- काजल

द्वितीय प्रस्तुति

।। बुन्देलखंडी लोकगीत ।।

राह भूले बूढ़ो और वारो ...
गोरी धना कजरा न डारो ...

कजरा की कोरें बनी ज्यों खोरें 
कौन नही तुम्हरी आँखें निहोरें 
घूँघट को न तुम उघारो ....
गोरी धना कजरा न डारो...

संध्या की विरियाँ बैठी हैं तिरियाँ 
तोरी ही बातें करें दोऊ विरियाँ
नजर न लगे खुद सँवारो ....
गोरी धना कजरा न डारो....

हेरन हँसन वसन मन भाये 
जोन गलिन में तूँ पग धाये 
हो जावे गलियन उजारो ...
गोरी धना कजरा न डारो...

जेठ की दोपहरिया कजरा न पिघले
गली खोर छेलन के दिल न मचले 
घूँघट से मुँह न निकारो ....
गोरी धना कजरा न डारो...

बिन काजर कजरारी अँखियाँ
बात करत थी तोरी सखियाँ
'शिवम' डोरे दिल पे न डारो....
गोरी धना कजरा न डारो...

गोरी धना-- गाँव की गोरी
दोऊ विरियाँ-- गोधूलि वेला
जोन गलिन -- जिस गली

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 30/08/2019

मन मंच भावों के मोती
30 / 8 /2019
बिषय,,"'काजल""

बड़े बड़े नयनों में झीना झीना काजल
फर फर उड़ता जाए गोरी का आंचल
मनभावन अनुपम सजनी का कजरा
माथे पे बिंदिया महके बालों का गजरा
जुल्फें ऐसी जैसे छाए हों बदरा
अधरों पे लाली गोरे गोरे गाल
मधुर मधुर मुश्कान मतवाली चाल
छम छम करती पायलिया पर क्यों न किसी का दिल आए
अँखियों में काजल डाल लिया 
दूजा कैसे फिर इनमें समाए
सुन वृषभानु दुलारी काहे को गुमान करे
तीन लोक को त्रिलोकी चरणन तेरे आन परे
. तू तो परम सयानी कहना मान री प्यारी
तेरे प्रेम को प्यासो तेरो रसिकविहारी
स्वरिचत,, सुषमा, ब्यौहार

नमन-भावो के मोती
दिनांक-30/08/2019
विषय-काजल


नाचे मन मोरा होके पागल।

बहे मेरे नैनो का ये काजल।

छा गई घटा मचल गए बादल।

खिल गई कली भंवरा हुआ पागल।

बावरा हुआ मोर चातक हुआ घायल।

गोद भरेगी की धरा की

खिल उठेगा सूनी आंचल।

तब छम- छम बाजेगी मेरी पायल।

मृग दौड़ेगा मृगमरीचिका में

हो जाते उसके पांव घायल।

अधेंरा छटेगा होगा अजोर

विचलित मनवा होगा पागल।

सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज


विषयःकाजल
घनाक्षरीः (हनुमान के प्रति)
*
महादेव ! मन्मथारि ! रुद्र एकादश ! रूप,
ब्रह्मचर्य- व्रती बल- विक्रम विशाल तुम!
छाने दसकंठ की कनक-लंक नगरी के,
राजसी महल,देखे , रूप-राशि-जाल तुम!
सीता-खोज केन्द्रित,सुदृष्टि,देख भी अदेख,
संयम अकंप - भूप , धीरज - मिसाल तुम!
काजल की कोठरी में,जाके भी रहे अरेख,
स्वर्णिम सुरेख खींच,अंजनी के लाल तुम!!

--डा.'शितिकंठ'

 भावों के मोती
30/08/19
विषय-काजल ।


झुमर झनका, कंगन खनका 
जब राग मिला मन से मन का, 
मोती डोला, बोली माला बल खाके ,
अब सजन घर जाना गोरी शरमा के ,
चमकी बिंदिया ,खनकी पायल 
पिया का दिल हुवा अब घायल ,
नयनों की यह "काजल "रेखा 
मुड़-मुड़ झुकी नजर से देखा ,
नाक की नथनी डोली ,
मन की खिडकी खोली, 
ओढी चुनरिया धानी-लाल 
बदल गई दुल्हन की चाल, 
कैसा समय होता शादी का 
रूप निखरता हर बाला का ।

स्वरचित।


नमन" भावो के मोती"
30/08/2019
"काजल"
################
ओ कजरी तू नैनन की आली
काली-काली तू हो मतवाली।

शिशु के माथे टीका सजती..
बुरी नजरों से उसे बचाती...
माता बलईयाँ ले नजर उतारे
तुझसे नैना होते कजरारे...।

ओ कजरी तू नैनन की आली
काली-काली तू हो मतवाली।

सुरमई अँखियों में तू सजती
प्रेम की भाषा ही तू कहती..
सजना को भी लगते हैं प्यारे
तुझसे नैना होते कजरारे....।

ओ कजरी तू नैनन की आली
काली-काली तू हो मतवाली।

कजरारी अँखियाँ तीर चलाती
दिलों को घायल कर जाती
जियरा जो धक-धक डोले..
तुझसे नैना होते कजरारे....।

ओ कजरी तू नैनन की आली
काली-काली तू हो मतवाली।

आधी रात को तू बहकती..
रातरानी जो महकती.....
नैनों से प्रीत छलकते......
तुझसे नैना होते कजरारे...।

ओ कजरी तू नैनन की आली
काली-काली तू हो मतवाली।

परदेशी पिया की याद सताती
चाँदनी रात जो अगन लगाती
अश्कों संग तू भी बह जाती.
तुझसे नैना होते कजरारे...।।

ओ कजरी तू नैनों की आली
काली-काली तू हो मतवाली।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।

कुसुम कोठारी ।

नमन मंच 
30.8.2019
शुक्रवार 

संचालक श्री-आ०सुषमा जी 

विषय-काजल 
विधा - मुक्तक 

(1) 
काजल से भी काली हैं कजरारी तेरी आँखें 
देखें तो मदहोश बना देती हैं तेरी आँखें,
मैं भी तो होश गँवा बैठा,नैनों में झाँक कर तेरे
कैसे कह दूँ,भोली-भाली सी हैं तेरी आँखें।।

(2)
#काजल की कोठरी में दाग़ 
लगना तो निश्चित है
दामन को बचा लेने की कोशिश क्या अनुचित है ,
हर चोट पे दिल कहता है, अब और न खेलूँगा
दिल को हल्का करने का रास्ता प्रायश्चित है ।।

स्वरचित 
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

सादर नमन
काजल-हाइकु
1
श्वेत वसन
काजल की कोठरी
निर्मल तन
2
लुप्त सितारे
अमावस की रात
काजल-नीर 
3
पनारे रैन
कंटक सुख चैन
काजल-रैन
-©नवल किशोर सिंह
30-08-2019
स्वरचित
विषय -''काजल "
दिनांक 30-8-2019

देख तेरी, आंँखों में काजल। 
बावला बना,रहता हूँ मैं ।।

ना लगे, काजल जब नैना । 
उदास ,हो जाता हूँ मैं ।।

काजल नैना, मन लुभाए ।
देख जग,बिसराऊँ मैं ।।

बतियाती आँखें, जब तेरी।
डूब जाता हूँ, इनमें मैं ।।

नजर जब तू ,मुझे ना आए।
बेचैन, रहता हूँ मैं ।।

तीर तलवार, जरूरत नहीं ।
देख घायल, होता हूँ मैं ।।

नैना बखान,जब कोई करें ।
तिलमिला, जाता हूंँ मैं ।।

काजल लगा,तू पर्दा रख ।
गैर नजर,बचाऊँ मैं ।। 

डूबा तेरे ,प्यार में ऐसे ।
कोई देखे, कैसे सहूँ मैं ।।

काजल चेहरा, चार चाँद ।
देख बहुत ,इठलाऊँ मैं ।।

नैनन तेरे , काजल बसा ।
कैसे अब, बस पाऊंँ मैं ।।

मेरे खातिर ,काजल लगा। 
यह बात, समझाऊंँ मैं ।।

दूर महफिल ,नैन लड़ा।
मन ही मन ,हरसाऊंँ मैं।।

वीणा वैष्णव 
कांकरोली
(स्वरचित)

नमन भावों के मोती
30अगस्त2019शुक्रवार
विषय-काजल
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
गोरा बदन

काजल की कोठरी

सफेद पोश👌
💐💐💐💐💐💐
वस्त्र धवल

कारनामें काजल

काला बदन👍
💐💐💐💐💐💐
मन काजल

कारनामें भी काले

तन भी काला💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू"अकेला"

नमन भावों के मोती
विषय काजल
विधा कविता
दिनांक 30.8.2019
दिन शुक्रवार

काजल
🍁🍁🍁🍁

काजल ! काले हो फिर भी हो अनुपम
तुमसे ही निखार पाता रुपम
तुम छटा बिखेरते ऐसी हरदम
आँखों से निकलने लगती सरगम।

बाल छटा के भी तुम आकर्षण
सौन्दर्य का तुम करते वर्षण
सौन्दर्य नज़रियाय न जाये कहीं
काले टीके का रुप ले होते अर्पण।

शोभित होते तुमसे नायिका नयन
कवि करता शब्दों के उन्नत चयन
फिर बडी़ बारीकी से उनको धरता
यूँ कविता को कजरारी करता।

काली घटा करती आह्लादित
कजरारी अँखियाँँ करतीं उन्मादित 
काजल में कुछ बात निराली है
सौन्दर्य बसता इसमें मर्यादित।

 नमन भावों के मोती 🙏
३०/०८/२०१९

संचालक - आ . सुषमा जी

विषय - " काजल "
विधा - कविता

" काजल "
श्रृंगार किए सारे ही उसने , दिल में अपने साजन को बसाया था ,
बिंदिया कुमकुम रोली महावर और प्रीत का काजल लगाया था ,

हिय में पिया के आने की आस लिए निहार रही थी चंद्रमा को ,
रूप स्वयं का देखा जब आईने में काजल ख़ुद शर्माया था ,

हर आहट पर उसकी बढ़ बढ़ जाती थी धड़कन दिल की ,
न जाने आज पिया ने आने में क्यों इतना समय लगाया था ,

अचानक तेज हवा का एक झौंका आया सबकुछ उड़ा ले गया ,
श्रृंगार गिरे सब ही धरती पर , धवलता ने उसको गले लगाया था ,

चंद्रमा भी फिर लौटा फिर रातें तीज त्योहार की आती रहीं ,
सारे वादे तोड़ दिए सजना ने केवल धरती का कर्ज़ चुकाया था ,

निहार न सका मुखड़ा सजनी का , काजल की कोर न देख सका ,
सजनी का व्रत न तोड़ सका , एक सैनिक का फर्ज़ निभाया था ।।
©®आरती अक्षय गोस्वामी


नमन भावों के मोती
दिनांक ३०/८/२०१९
शीर्षक_"काजल"
आँखो में कजरा
बालों में गजरा
किया रूप श्रृंगार
नयन ताक रहे है रास्ता
कब आयेंगे घनश्याम?

शर्म लाज सब छोड़ कर
गोपियां भागी जाये
कृष्ण सखा संग मिलकर
होगी पूरण आस
आओ हे घनश्याम।

नयन भर न देखें कृष्ण
बोले ऐसी बात,
ब्राह्म आर्कषण ब्यर्थ है
ब्यर्थ रूप श्रृंगार
मैं एक ब्रहृं हूँ
बाकी अंश हमार

सत्य वचन सुनकर
आँसू बहे अपार
कजरा बह गये नैनन से
कृष्ण खड़े मुस्काये।

करें ठिठोली राधा संग
मंद मंद मुस्काये
मैं ही तेरी माथे की बिंदिया
मैं तेरे नयनों का कजरा

मैं तेरे बालों का गजरा
मैं तेरा सोलह श्रृंगार
राधा रानी आओ पास
करो ह्रदय में वास।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

नमन भावों के मोती🙏
30/8/2019
विषय-काजल
************
शिशु के नयनों में लगा के काजल
माँ उसे हर बुरी नज़र से बचाए
कभी उसके नन्हें पगों में 
काजल की छोटे बिंदु बनाए
चूम के निज प्रिय ललना को
ले बलैयां सौ सौ बलिहारी जाए

काजल बिन 
दुल्हन का श्रृंगार अधूरा
कजरा,बिंदी टीका 
सङ्ग मांग में सिंदूर 
तब होता है गोरी का श्रृंगार पूरा

कवि लेखनी में भर कर काजल
नित नई कल्पनाओं की उड़ान भरे
सामाजिक व्यवस्था, कुरीतियों पर
निज लेखनी से कड़े शब्दों में प्रहार करे

पीड़ित शोषित नारी के आँखो से
काजल की अश्रुधार यदि बह गई
तब समझना इस संसार की
अभिशापित घड़ी की शुरुआत हुई ..।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित

नमन- भावो के मोती
दिनांक--३०--८--१९
दिन--शक्रवार
विषय--काजल
विधा-- गज़ल
----------------------------------------
बना श्रृंगार है काजल
सजन का प्यार है काजल

मुहब्बत से भरा हो तो
सुखी संसार है काजल

सुहागन का हमेशा ही
बना आधार है काजल

कभी जो दूर हो जाए
बहाता धार है काजल

चले जो आंधियां गम की
चुभाता खार है काजल

नजर रखता बिछाकर है
अगर उस पार है काजल

यही रानी कहे दिल से
सपन साकार है काजल

रानी कोष्टी म प्र गुना
स्वरचित एवं। मौलिक

नमन मंच🙏
शीर्षक- "काजल"
विधा- कविता 
***********
कैद कर अपनी आँखों में, 
काजल का ताला लगा देना, 
थोड़ा अवारा है ये दिल तुम, 
निगाहों का जादू चला देना |

ये कजरारे से तेरे नैंना हैं
काजल का जिनमें घेरा है, 
मृगनयनी सी तुम लगती हो, 
बस दिवाना सा कर देती हो |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*

नमन् भावों केमोती
विषय:-काजल 
29/08/19
विधा :-हाइकु
1
सिंदूर रेखा
नयनों का काजल
गोरी श्रृंगार
2
काजल टीका
माथे पर लगाती
माँ की ममता
3
बुआ लगाती
नज़र उतारिती
काजल प्यार
4
अछूत नही
काजल की कोठरी
दाग दामन
5
काजल करे
मुखड़े पर चाँद
आँखों की रक्षा
6
काजल होता
अच्छा अवशोषक
सत्य प्रयोग

7
काजल होता
बढ़िया उत्सर्जक
भौतिक विश्व

मनीष कुमारश्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली

नमन भावों के मोती
आज का विषय, काजल
दिन, शुक्रवार
दिनांक,
30,8,2019,

मनमोहक छबि वाला है नंदलाला ,

बलि - बलि जाये है जसुमति माता ।

ग्वाल बाल गोपी और सब राजा ,

रोज आयें देखन यशोदा का लाला ।

लग जाये नजर न डरती है माता ,

माथे रोज लगाये काजल का टीका ।

जब - जब मंद- मंद हँसते हैं कान्हा,

अपना तन मन वारे है यशोदा माता ।

कृष्ण के काजल दीठ पाँव पैजनियाँ , 

सोहें पीले वस्त्र गले मोतियों की माला ।

नंद अंगना में जब नाचते हैं गोपाला,

निरख छवि देव मनुज सबका मन डोला ।

धर कर बाल रूप मोहते हैं कान्हा , 

करता है लीला जग का रखवाला,

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

सादर नमन

" काजल"
गमों का साया बनकर काजल,
नैनों में मेरे बसता है,
तेरी साँसों की वो महक,
जिस की चाहत में दिल तरसता है,
आँखों से काजल की लहरे,
दिल के समुन्द्र से उठती हैं,
बिन खिवैया के जैसे नैया,
साहिल को ढ़ूँढती है,
मेरी आँखों से काजल का रिश्ता,
तुम क्या समझ पाओगे,
तेरी याद में बन जएँगें शायरी,
जिसे तुम भी गुन गुनाओगे।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
30/8/19
शुक्रवार


नमन भावों के मोती
पटल
वार : शुक्रवार 
दिनांक : 30.08.2019
आज का शीर्षक : 
काजल
विधा : काव्य

ग़ज़ल / गीतिका

नयनों बीच बसा कर देखो !
हमको भी अपना कर देखो !!

कौन खरा है खोटा कोई !
खुद को तो अजमा कर देखो !!

आँखोँ में काजल काढा है !
खुद को आज बचा कर देखो !!

कब तक रूठे रूठे रहना ,
थोड़ा सा मुस्का कर देखो !!

खुशबू बाँधे बंधती ना है ,
बगिया आज सजा कर देखो !!

झगड़े भी हैं मेल कराते ,
थोड़ा सा टकरा कर देखो !!

मिलन हमारा बहुत पुराना ,
आओ पास हमारे बैठो !!

रेशम रेशम रिश्ते सारे ,
इनमें गाँठ लगा कर देखो !!

मंजिल तो आसां है " नीरद "
अपने कदम बढ़ा कर देखो !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )


नमन भावों के मोती!
आज का कार्य,,शीर्षक__काजल!
विधा____ मुक्तक!
३०/०८/१९

1️⃣
शिशु भाल काजल मां की जान है,
अंखियां सजीली काजल से शान है,
रंग काला है काजल का तो क्या हुआ?
भर देवे काजल सबके नैनों में प्राण है।

2️⃣
सखियां कर रही बतियां हैं,
कैसे कैसे बीती रतियां हैं,
कजरारी अंखियों का काजल शर्माए,
झूमे बेला की लड़ियां हैं!

3️⃣
नैनों में काजल है लगाए चली,
मुखड़ा आंचल में छिपाए चली,
नटखट कान्हा से बरजोरी करते,
वृषभानु लली बंसी बजाए चली!

4️⃣
कजरारे नैना सुंदर सजीले हैं,
काजल कटार बांकें हठीले हैं,
रुपसी अभिसारिका इठला रही,
चंचल चितवन छैल छबीले हैं!

5️⃣
सुंदर अंखियां ऊपर काजल वार करे,
इठलाए,शरमाए हदें सारी है पार करे,
साजन पर डोरे डाले है सजनी,
करे कटाक्ष मोटे नैना जियरा पे मार करे!

मौलिक स्वरचित,
नीलू मेहरा!
नमन,"भावों के मोती"
,🌺🌹🌺🌹🌺🌹
मुक्तक
तेरे दिल पर मेरा ही इख्तियार है
तू ही साजन तू ही मेरा दिलदार है
दो आँखें देती हैं पहरा दिल पर
इन आँखों का काजल मेरा प्यार है

अँखियाँ काजल बनी कटार
साजन पर करती हैं वो बार
रुठे सजनी जब पिया से 
घायल हो साजन का प्यार

स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू


कहने लगे सजनी साजन से
तुम तो हो काजल से काले
लाकर दे दो एक हार तब
मै जब मानूँ तेरा प्यार को

काजल की महिमा है न्यारी
साजन को सजनी अति प्यारी
लाकर दिया हार जब उसने
रूठी सजनी उसकी है मानी

गले लगाएं नेह जगाती
भर भर कर बाँहें फैलाती
दीप हृदय में जगने लगे
ऐसे वो इठलाती आती

स्वरचित 
नीलम शर्मा#नीलू


भावों के मोती 
विषय - काजल 
दिनांक - 30/08/19

मंच को समर्पित मेरी रचना ....

ये जो परछाई सी 
नित्य प्रलंबित हो जाती है 
अणु सा मन बिखरता है 
अश्रुओं मेंं घुल कर 
बहा देती है 
प्रतीक्षा का काजल .....

सीमांत मेंं अब चाँद 
सो रहा होगा निश्चिंत नींद मेंं 
और एक परछाई टहलती होगी 
उस रेगिस्तानी रेत पर 
और बह रही होगी हवा 
चुरा कर नमी 
एक बंजारन के काजल से .....

देखो न , 
काली घटा से ओढ़ा हुआ ये गगन 
आज चुप सा है ...
इतनी बूंदें समायी है 
उसकी आँखों मेंं ....
कि बह जाएगा अनायास 
..स्मृति काजल ....

आज लताओं मेंं 
कोंपलें आयीं हैं ....
वन माधुरी के नयनों मेंं 
भर रहें हैं ...सपनों के काजल .....

और सुनो न , 
क्यूँ मेरे नैनों मेंं 
दीप्त है विरह का काजल ? 

.....अनिमा दास ....
कटक , ओडिशा


No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...